प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: प्यासा समुन्दर

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"आप हैं....!!" दूसरी तरफ से ठहाके के साथ कहा गया...."क्यों श्रीमान....क्या आपके पिताजी भी बिल्कुल आप ही की तरह है?"

"अगर वो मेरी तरह हो गये तो मुझे ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए..."

"वो खुद ही मौत के मुँह मे जा बैठे हैं इमरान साहब..."

"इस समय टॅक्सी कहाँ है?"

"चीथम रोड पर...अब मैने अपनी गाड़ी उसके आगे निकाल ली है और बैक व्यू मिरर मे उसे देख रहा हूँ..."

"ये बहुत अच्छा तरीका है.....पीछा करने का संदेह नहीं हो सकता. लेकिन होशियारी की ज़रूरत है."

"मेरे विचार से ये भाग दौड़ शहर के बाहर ही समाप्त होगा."

"कोई बात नहीं......मैं भी चीथम रोड पहुचने ही वाला हूँ. लेकिन तुम किस दिशा मे जा रहे हो?"

"पूरब की तरफ..."

"मैं समझ गया.....निश्चिंत रहो..."

"लेकिन ये क्या मामला है इमरान साहब? ऐसी परिस्थिति मे जबकि पिछली रात रहमान साहब पर हमला हो चुका था......उन्होने इस समय ऐसी असावधानी क्यों बरती. शायद आपको एक्स-२ ने सिचुयेशन से अवगत करा दिया होगा. कुच्छ देर पहले तक मैं उसी को सूचना देता रहा हूँ...."

"हाँ.....मुझे पता है की उनकी कार खराब हो गयी थी......इसलिए उन्होने टॅक्सी मंगाई. लेकिन ये ज़रूरी नहीं की उन्हें इस समय घर ही जाना रहा हो. हो सकता है की तुम ने केवल शक की बुनियाद पर पीछा शुरू कर दिया हो...."

"रहमान साहब का पीछा तो मैं एक्स-2 के आदेश से सुबह ही से कर रहा हूँ. घर से ऑफीस तक भी मैने उन पर नज़र रखी थी. और मैने वो बात चीत भी सुनी थी जो उन्होने ड्राइवर से की थी. इसलिए शक की कोई बात ही नहीं. वैसे भी मैने उनका पीछा ये सोच कर ही आरंभ किया था की टॅक्सी उन्हें घर ही ले जाएगी."

"तब तो ठीक है. अब मैं चीथम रोड पर पहुच चुका हूँ......पूरब की दिशा मे जा रहा हूँ...."

"चले आईए.....अभी तक पिछली कार सीधी ही आ रही है. हम अब तक शहर से लगभग 15 किमी बाहर आ चुके हैं. आप कुछ तेज़ गति से आएँ तो अच्छा है."

"ओके...सावधान रहो..."
इमरान की कार की स्पीड पहले से ही काफ़ी अधिक थी. वो सोच रहा था की अचानक ये कैसा खेल शुरू हो गया.

डैडी पर हमला क्यों हुआ था.....और हमलावरों को किस चीज़ की तलाश थी? क्या वो कोई डिपार्टमेंटल सीक्रेट फाइल आदि था....जिसके कारण रहमान साहब ने उसे इसके बारे मे कुछ नहीं बताया था. वो सोचता रहा और कार तेज़ी से रास्ता तय करती रही. फिर वो शहर की सीमा से निकल आया.
तभी खावीर की आवाज़ उभरी...."टॅक्सी लेफ्ट साइड एक कच्चे रास्ते पर मुड़ गयी है...."

"अब क्या करोगे?" इमरान ने पूछा.

"अब क्या करना चाहिए?"

"अपनी गाड़ी उसी जगह रोक कर पैदल उधर जाओ जहाँ से टॅक्सी मूडी थी. इसके अलावा और कोई चारा नहीं है. संभव है इस प्रकार कोई उपाय निकल आए. मैं बहुत तेज़ी से आ रहा हूँ...."

"खावीर की आवाज़ फिर नहीं आई. सूरज की अंतिम किरणें उँचे पेड़ों की चोटियों पर नारंगी रंग बिखेर रही थी.

कुछ देर बाद इमरान को खावीर दिखाई दिया जो सड़क के किनारे खड़ा उत्तर दिशा मे देख रहा था. इमरान ने कार उसके निकट रोक दी.

"उधर..." खावीर ने उत्तर दिशा मे एक कचे रास्ते की तरफ इशारा किया......जो लगभग 200 मीटर जाकर राइट साइड मूड गया था.
इमरान ने चारों तरफ निगाह दौड़ाई.....सड़क के दोनों तरफ लगातार जंगल थे.

"इस कच्चे रास्ते पर टायर्स के निशान हमे रास्ता बता सकते हैं..." खावीर ने कहा. "और इसी आशा पर मैने यहीं रुकना अच्छा समझा था....वरना कोई दूसरी राह निकालता."

"एक्स-2 की पार्टी के कुच्छ लोग सचमुच जीनियस हैं....." इमरान ने एक लंबी साँस खींच कर कहा.

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Re: प्यासा समुन्दर

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रहमान साहब तो तब चौंके थे जब टॅक्सी ग्रानिंग स्ट्रीट से चीथम रोड पर मूडी.

"इधर कहाँ?"उन्होने पूछा.

"साहब.....उधर सड़क जाम है.....फिल्म वाले शूटिंग कर रहे हैं......आगे से मुगल स्ट्रीट मे मोड़ कर निकाल ले चलूँगा."

रहमान साहब फिर सन्तुष्ट हो गये. वो सोच भी नहीं सकते थे की दिन दहाड़े उनके विरुद्ध किसी प्रकार की साज़िश भी की जा सकती है. उन्होने न्यूयार्क टाइम्स का वीक्ली एडिशन खोल लिया जो आज ही आया था. फिर वो उस मे इस प्रकार खो गये कि समय का भी एहसास ना रहा. लेकिन जब अंधेरा फैल गया तब उन्हें होश आया. और उस अंधेरे का कारण पता चलते ही उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हुआ. वो रात का अंधेरा नहीं था.....बल्कि टॅक्सी का पिछला भाग एक ऐसे बॉक्स मे बदल चुका था जिस से शायद उनकी आवाज़ भी बाहर न जा सकती. उनके और ड्राइवर के बीच एक दीवार सी आ चुकी थी और खिड़कियों के ग्लास भी डार्क हो चुके थे. रहमान साहब ने शीशों पर ही मुक्के बरसाना शुरू कर दिया. मगर वो ऐसे नहीं थे की चूर चूर हो जाते. उनका हाथ बुरी तरह दुखने लगा. लेकिन अंदर का अंधेरा ज्यों का त्यों ही रहा. वास्तव मे खिड़कियों पर भी ऐसे मेटीरियल की प्लेट्स चढ़ गयी तीन जो शीशे जैसी तीन लेकिन टूट नहीं सकती तीन. और ये परिवर्तन किसी प्रकार की मेकेनिज़्म के से हो सकती थी.
कुच्छ देर संघर्ष कर के थक हार कर सीट पर गिर गये. अगर उनकी कलाई पर रेडियम डाइयल वाली घड़ी नहीं होती तो उन्हें समय का भी पता नहीं चल पाता.
कुछ देर बाद जब गाड़ी मे झटके लगने लगे तब वो सीधे हो कर बैठ गये. शायद अब टॅक्सी किसी कच्चे रास्ते पर चल रही थी.

15 मिनट बाद टॅक्सी रुक गयी. तभी एक झटके के साथ टॅक्सी का पिछला भाग अपनी पहली वाली स्थिति मे आ गया. चारों तरफ से उठ चुकी दीवारें नीचे सरकती हुई गायब हो चुकी थीं. रहमान साहब ने ड्राइवर की तरफ देखा.....जो व्यंग भरे अंदाज़ मे उन पर हंस रहा था. नीचे दो आदमी दिखाई दिए जिनके हाथों मे राइफल्स थे.

"उतर जाइए सर...." ड्राइवर ने कहा. "पिछली रात तो आपने बड़ी फुर्ती दिखाई थी."
रहमान साहब उसे कहर भारी निगाहों से घूरते हुए नीचे उतर गये.
दोनों राइफल्स उनके पीठ से आ लगी......और उन्हें एक दिशा मे चलने पर मजबूर किया जाने लगा.

"तुम लोग बहुत बड़ा अपराध कर रहे हो...." उन्होने क्रोध भरे स्वर मे कहा.

"श्योर.......अगर हम पकड़ लिए गये.....तो ये एक बहुत बड़ा अपराध होगा...." टॅक्सी ड्राइवर ने हंस कर कहा.

रहमान साहब चलते रहे. ये एक पतली पगडंडी थी. केवल एक आदमी के चलने लायक उसकी चौड़ाई थी. दोनों तरफ सरकांडों की घनी झाड़ियाँ थी. कहीं कहीं पर तो उन्हें सामने की झाड़ियों को हटा कर चलना पड़ रहा था.

रहमान साहब के आगे ड्राइवर चल रहा था......और पीछे एक आदमी राइफल की नाल रहमान साहब की पीठ से सटा कर चल रहा था.

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अभी सूरज डूबा नहीं था......और इतना उजाला तो था ही की इमरान और खावीर झाड़ियों के बीच उस हथियार-बंद आदमी को देख लेते जो टॅक्सी के निकट खड़ा सिगेरेट जला रहा था. उसने अपनी राइफल टॅक्सी से टिका कर खड़ी कर दी थी. अभी उसने जली हुई तीली को फेका भी नहीं था की खावीर ने उस पर छलाँग लगा दी. इस समय इमरान और खावीर दोनों के चेहरों पर नक़ाबें थी.

वो आदमी चूँकि बेख़बर था इस लिए संभल न सका और खावीर ने दो ही तीन रद्दो मे उसके कस-बाल निकाल दिए. वो एकदम खामोश था.....और उन दोनों नक़ाब पोषों को इस तरह आँखें फाड़ फाड़ कर देख रहा था जैसे वो आकाश से टपके हों.

"जान से मार दूँगा...." खावीर गुर्राया.

"अरे नहीं.....इसकी ज़रूरत ही क्या है....अगर ये जल्दी से मुहह खोल दे..." इमरान ने कहा.

"ये नहीं बताएगा.....हम खुद ही तलाश कर लेंगे...." खावीर ने कहा और उसका गला घोंटने लगा.

"ठठ....ठहरो...." वो भर्राई हुई आवाज़ मे बोला.
गर्दन पर खावीर की पकड़ ढीली हो गयी. लेकिन वो उसे अपने पैरों से वैसे ही जकड़े रहा.

"तुम क्या चाहते हो?"

"डीजी साहब को किधर ले गये हैं?" खावीर ने पूछा.

"तुम कोन हो?"

"अरे.....मेरे सवाल का जवाब...." खावीर ने फिर गर्दन पर ज़ोर लगाया.

"उधर...." उसने दाएँ तरफ गर्दन घुमा कर कहा. "झाड़ियों मे पगडंडी है....और आगे लकड़ी का मकान है."

"इतनी देर मे इमरान अपनी टाई से उसके दोनों पैर बाँध चुका था. फिर उसने खावीर की टाई भी खोली और अपराधी के दोनों हाथ उसके पीठ पर बाँध दिए. जब उन्होने उसके मूह मे रुमाल ठूंसना चाहा तो उसने घिघिया कर कहा...."मैं बिकुल शोर नहीं करूँगा...." और अपना मुहह कस कर बंद कर लिया. फिर उसका मूह खुलवाने केलिए खावीर को थोड़ा मार पीट भी करना पड़ा.
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Re: प्यासा समुन्दर

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कुछ देर बाद वो उसके मुहह मे रुमाल ठूंस कर उसे एक तरफ झाड़ियों मे डाल आए. पगडंडी सरकांडों की झाड़ियों के कारण कष्ट-दायक हो गयी थी. अगर उनके चेहरे भी नक़ाबों मे छुपे ना होते तो उनके चेहरों पर कितने ही खराशें आ जातीं. हाथ मे ग्लव्स तो उन्होने पहले ही से पहन रखे थे.

वो चलते रहे. पगडंडी अभी तक किसी तरफ मूडी नहीं थी. अब अंधेरा फैलने लगी थी. झींगुरों की झाएँ....झाएँ....से उनके कानों मे सनसनाहट सी होने लगी थी. ठंडक भी कुछ बढ़ गयी थी.

पगडंडी की समाप्ति पर ही उन्हें वो लकड़ी का घर दिखाई दिया जिसकी छत सरकांडों की झाड़ियों से अधिक उँची नहीं थी. यहाँ झाड़ियाँ उँची ज़मीन पर थी इसलिए वो घर पूरी तरह सुरक्षित समझा जा सकता था. बीच मे थोड़ी सी जगह शायद आने जाने केलिए सॉफ कर लिया गया था.....वरना नीचे ढलान मे भी मकान के आस पास झाड़ियाँ ही झाड़ियाँ बिखरी हुई थी.

इमरान ने खावीर के कंधे पर हाथ रख दिया.

"ठीक है..." उसने मूड कर धीरे से कहा.
और वो दोनों ज़मीन पर लेट कर बहुत सावधानी से मकान की तरफ खिसकने लगे.

कमरे मे रहमान साहब सहित छह आदमी थे. उन मे से तीन ने अपने चेहरे नक़ाबों मे छुपा रखे थे. उनमे से दो तो रहमान साहब के साथ ही आए थे. टॅक्सी ड्राइवर के संबंध मे अब उन्हें विश्वास हो चुका था की वो मेक-अप मे है. दूसरा आदमी जिसके हाथ मे राइफल थी कुछ परेशान सा दिखाई दे रहा था. ऐसा लगता था जैसे वो मामले के बारे मे जानता तो है लेकिन इस गैर क़ानूनी गतिविधि का समर्थन दिल से नहीं कर रहा.

टॅक्सी ड्राइवर की पोज़िशन बाकी सबों मे उपर लग रही थी......क्योंकि उनसे बात करते समय उसका लहज़ा आदेशात्मक होता था.

"हाँ रहमान साहब.....अब क्या इरादा है?" उसने रूखे स्वर मे पूछा.

"मैं तुम्हारी किसी बकवास का उत्तर नहीं दूँगा." रहमान साहब गुर्राए. वो भयभीत नहीं लगते थे. इसके विपरीत उनकी आँखों से कहर झाँक रहा था.

"क्या आप समझते हैं की यहाँ से सकुशल विदा हो जाएँगे?" टॅक्सी ड्राइवर ने हंस कर कहा.

"तुम कुछ शुरू करो.....फिर देख ही लोगे..."

"मुझे मालूम है मिस्टर रहमान की आप अपनी सर्वोत्टन मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के कारण इस पोस्ट तक पहुचे हैं. लेकिन अब बूढ़े हो चुके हैं. आप को गुस्सा अधिक आता है.....और आपका दिमाग़ कुछ सोचने समझने के लायक नहीं रह जाता. आप अब उसी समय यहाँ से जा सकेंगे जब उस रेड पैकेट के बारे मे बता देंगे."

"मैं कह चुका हूँ.....तुम जैसे गधों से बात करना मैं अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझता हूँ."

"तो ठीक है रहमान साहब.....अब आप को हम गधों की लातें भी ज़रूर सहनी पड़ेंगी..."

रहमान साहब खड़े हो गये और ऐसा लगने लगा जैसे वो उस टॅक्सी ड्राइवर से उलझ ही पड़ेंगे.

उनको नक़ाब-पोषों ने पकड़ कर फिर चेयर मे धकेल दिया.

टॅक्सी ड्राइवर हंस रहा था. अचानक उसने कहा...."आग दहकाओ.....मैं सी आई बी के डाइरेक्टर साहब की चर्बी निकालूँगा."

रहमान साहब कुछ ना बोले. उनके होन्ट भिंचे हुए थे. अंगीठी मे कोयले तो पहले ही से दहक रहे थे और उस मे लोहे की एक सलाख भी पड़ी हुई तप रही थी. शायद उन्होने पहले ही से टॉर्चर करने के जुगाड़ कर रखे थे.....क्योंकि रहमान साहब अपनी ज़िद्दी मिज़ाज केलिए दूर दूर तक प्रसिद्ध थे....और ये भी ज़रूरी नहीं था की रेड हॉट सलाख से दागे जाने की धमकी उन्हें नर्म कर देती. वो बड़े खरे पठान थे.......और उन्हें इस पर गर्व था की चंगेज़ ख़ान से लेकर उन तक की नस्ल मे आ रही विशेषताओं को सब ने मेनटेन किया था. किसी दूसरे नस्ल के खून की मिलावट भी नहीं होने पाई थी.

अंगीठी उनके समीप लाई गयी. उद्देश्य ये था कि वो तपती हुई सलाखों को देख सकें.

"ये...." रहमान साहब ने घृणा के साथ कहा....."चर्बी आवश्या निकाल लेगी लेकिन ज़ुबान तक शायद इसकी पहुच ना हो सके.......तुम मुझे क्या समझते हो.....चलो उठाओ सलाख. मैं देखूँगा की मेरे शरीर पर ठंडा होने मे ये कितना समय लेती है. चलो उठाओ.....मेरा मूह क्या देख रहे हो...."

टॅक्सी ड्राइवर पलकें झपकाने लगा. रहमान साहब उसे कहर भारी निगाहों से घूर रहे थे. इस सचाई से इनकार नहीं किया जा सकता की वो उन पाँचों पर छाए हुए दिखाई दे रहे थे.

चूँकि दिन दहाड़े वो इस प्रकार की हरकत की कल्पना नहीं कर सकते थे. वरना इस समय उनके जेब मे रेवोल्वर अवश्य होता. और फिर शायद यहाँ इस लकड़ी के घर तक आने की नौबत ही नहीं आती. रहमान साहब कुछ इसी तरह के व्यक्ति थे. बुढ़ापे मे भी उनका शरीर शिथिल नहीं हुए थे. वो गुस्से वाले भी थे.....लेकिन गुस्से मे उनकी अकल अपनी जगह पर ही रहा करती थी.

अचानक टॅक्सी ड्राइवर ने मुड़ कर कहा "दाग दो...."

एक नक़ाब पॉश ने सलाख उठाई. रहमान साहब ने अपना हाथ आग बढ़ा दिया.

लेकिन ठीक उसी समय एक फायर हुआ और वो नक़ाब पोश सलाख समेत उछल कर दूर जा पड़ा. गोली उसके हाथ पर ही लगी थी.

बाकी लोग अनायास उछल पड़े. लेकिन उनके संभलने से पहले ही खिड़की के दोनो पट खुल गये और दो हाथ दिखाई दिए जिन मे रेवोल्वर थे.

"तुम सब अपने हाथ उपर उठा लो." गूंजीली आवाज़ मे कहा गया. और एका-एक रहमान साहब का चेहरा खिल उठा. क्या अब वो इमरान की आवाज़ भी नहीं पहचान सकते.
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उन लोगों के हाथ उपर उठ गये. फिर दरवाज़ा खुला.....और उन्होने एक नक़ाब पॉश को कमरे मे आते हुए देखा. ये खाली हाथ था और उसने आते ही उन पाचों की मरम्मत करनी शुरू कर दी. खिड़की मे दो रिवॉलव अब भी दिखाई दे रहे थे. उन मे से एक ने अपनी जेब मे हाथ डालना चाहा ही था की उसे भी चीख कर ढेर हो जाना पड़ा. खिड़की से फिर फायर हुआ था.

"ये तुम क्या कर रहे हो?" रहमान साहब ने गरज कर कहा...."अगर ये आसानी से काबू मे आ सकें तो क़ानून से तुम उन पर फायर नहीं कर सकते."

"क़ानून की बात तुम मत सुनो दोस्त..." खिड़की से कहा गया. इमरान ने खावीर को संबोधित किया था.

खावीर ने उन की तलाशियाँ लेकर 5 रिवॉलवर्स बरामद किए......और उन्हें अपने क़ब्ज़े मे कर लिया. फिर पाँचों रेवोल्वर और राइफल उसने खिड़की से बाहर फेक दिया.

अब वो शेष 3 पर पिल पड़ा था. घूँसे, लातें थप्पड़.....सब को उनके हिसाब से दिए जा रहा था.

वो तीनो खामोशी से पिटते रहे.....क्यों की दो का अंजाम वो देख चुके थे. और ये भी जानते थे की दोनों रिवॉलव अब भी खिड़की मे मौजूद हैं.

"अब समाप्त करो ये बट्टमीज़ी का तूफान." रहमान साहब ने डपट कर कहा.

"क़ानून अगर खामोश ही रहे तो अच्छा है." इमरान ने खिड़की से कहा.

"खामोश रहो बट्टमीज़...."

"मुझे ऐसी बातों पर गुस्सा नहीं आता.....क्योंकि मुझ तक चंगेज़ ख़ान का खून काफ़ी ठंडा होकर पहुचा है."

रहमान साहब केवल दाँत पीस कर रह गये.

इमरान कहता रहा..."मैने उन दोनों को जान से नहीं मारा.....एक का हाथ ज़ख़्मी हुआ है और दूसरे का पैर. ये शायद बेहोश हो गये हैं. लेकिन अगर मार भी गये तो मेरा क्या बिगड़ेगा."

"मैं तुम्हें अदालत मे घसीतूँगा." रहमान साहब गरजे. "मेरी उपस्थिति मे क़ानून को तोड़ा गया है."

"आप मेरे खिलाफ कुच्छ भी साबित नहीं कर सकेंगे. मैं जितना मासूम एक साल की उमर मे था उतना ही आज भी हूँ. अतः कृपया अदालत की धमकी ना दीजिए...."

"चुप्प्प्प रहो..."

"हाँ....ये संभव है..." इमरान ने कहा और चुप हो गया. इतनी देर मे खावीर ने तीनों को रस्सी से बाँध दिए जो शायद रहमान साहब को बाँधने केलिए वहाँ रखा गया था.

अब उन्होने रेवोल्वेरोन को खिड़की से गायब होते देखा और कुच्छ ही देर मे कमरे मे उन्हें दूसरा नक़ाब पॉश दिखाई दिया.

"क्या आप टॅक्सी ड्राइव कर सकेंगे?" इमरान ने रहमान साहब से पूछा.

"क्यों?"

"वहाँ टैक्सी के पास झाड़ियों मे भी एक आदमी है. कुल पाँच आदमी ज़िंदा या मुर्दा आप के साथ जा सकेंगे. छठा मुझे पसंद आ गया है." इमरान टैक्सी ड्राइवर की तरफ देखने लगा.

"तुम दोनों को भी मेरे साथ ही चलना पड़ेगा. और तुम विधिवत अपना बयान दोगे."

"मैं गवाही और बयानों का सिरे से नहीं मानता. चाहे वो फॉर्मल हो या नोनफॉर्मल."

"तुम जहाँ कहीं भी होगे....तुम्हें इस सिलसिले मे आना ही पड़ेगा."
इमरान कुछ ना बोला. अचानक रहमान साहब खावीर की तरफ मुड़े...."तुम अपना चेहरा दिखाओ..."

"बॉस की अनुमति के बिना ये असंभव है सर...." खावीर ने इमरान की तरफ इशारा कर के कहा.

"आप ऐसी बातों की फरमाइश न करें जो मेरे वश से बाहर हो..." इमरान ने आदर पूर्वक कहा. फिर इमरान और खावीर अलग जाकर धीरे धीरे बात करने लगे.
रहमान साहब उन्हें घूर रहे थे.

थोड़ी देर बाद खावीर एक बेहोश आदमी को अपनी कमर पर लाद रहा था.
इमरान ने दरवाज़ा खोला और खावीर बेहोश को कमर पर लादे बाहर चला गया.

"ये क्या कर रहे हो तुम?" रहमान साहब ने भर्राई हुई आवाज़ मे धीरे से कहा. स्वर मे अब पहले जैसी कठोरता नहीं थी.

"आप की वापसी की व्यवस्था." इमरान ने उत्तर दिया. "मुझे दुख है की मैं देर से पहुँचा.....वरना आप यहाँ न आते."

"लेकिन अब तुम जो कुछ भी कर रहे हो मैं उसे पसंद नहीं करता. मैं तुम्हें क़ानून की सीमा से बाहर निकालने की अनुमति नहीं दे सकता. अच्छा यही होगा की मेरे साथ चलो और विधिवत अपना बयान पुलिस को दो."

"सॉरी....मैं ऐसा नहीं कर सकूँगा. आख़िर मेरे भी कुछ ड्यूटी हैं."

"मैं समझा नहीं...?"

"देखिए आप जानते ही हैं की मैं अक्सर सर सुल्तान केलिए काम करता रहता हूँ. ये सब भी मैं उन्हीं केलिए कर रहा हूँ. आप ये भी जानते हैं की वो एक ज़िम्मेदार इंसान हैं..."

"मैं सब कुछ जानता हूँ.....लेकिन इस मामले से सर सुल्तान को क्या रूचि हो सकती है?"

"सर सुल्तान ही ठहरे...." इमरान सर हिला कर बोला. "उन्हें तो इसकी चिंता भी पड़ी रहती है की उनके पड़ोसी के घर प्रति दिन मूँग की दाल क्यों पकाई जाती है?"

"बको मत....तुम्हें मेरे साथ चलना पड़ेगा..." रहमान साहब को फिर गुस्सा आ गया..."वरना हो सकता है कल सुबह तुम हथकड़ियों मे मेरे सामने लाए जाओ..."

"भुगत लूँगा.....जो भी भाग्य मे है..." इमरान ठंडी साँस लेकर बोला.
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Re: प्यासा समुन्दर

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खावीर वापस आ गया था.....और अब दूसरे बेहोश आदमी को कमर पर लाद रहा था. उसके बाहर जाते ही रहमान साहब फिर बोले..."अच्छा तो फिर ये सब मेरे साथ जाएँगे....और तुम से मैं बाद मे समझूंगा...."

"मैं आप से पहले ही निवेदन कर चुका हूँ की ये मेरा शिकार है..." इमरान ने ड्राइवर की तरफ हाथ उठा कर कहा.

"लेकिन इसका परिणाम सोच लो." रहमान साहब ने कहा.
इमरान ने टैक्सी ड्राइवर के पैरों को बँधे रहने दिया और शेष दो के पैरों से रस्सी निकाल दी थी ताकि वो चल कर टॅक्सी तक जा सकें. उनके हाथ पीठ पर बँधे ही थे.

"मैं फिर कहता हूँ की तुम से मूर्खता हो रही है." रहमान साहब ने नर्म लहजे मे उसे समझने की कोशिश की.

"पैदाइश से आज तक मुझ से कोई अकल्मंदी नहीं हुई.....आप जानते ही हैं."
इस पर रहमान साहब फिर उबल पड़े.....और थोड़ी देर तक बहस चलती रही फिर खावीर वापस आ गया.

"आप इन दोनों को ले जाइए" इमरान ने रहमान साहब से कहा. "और प्लीज़ मेरे मामले मे दखल मत दीजिए.....वरना जिस प्रकार आप क़ानून को सामने ला खड़ा कर देते है उसी प्रकार मजबूरी वश मुझे भी अपने अधिकारों का प्रदर्शन करना पड़ेगा. क्या आपको पता नहीं है की मुझे होम मिनिस्ट्री से इस प्रकार के विशेष अधिकार प्राप्त हैं...."

"खामोश रहो....सब बकवास है....वो विशेष अधिकार स्थाई नहीं थे जो जो तुम्हें कभी सर सुल्तान के कारण मिले थे."

"मैं खामोश हूँ.....लेकिन मुझे इस बात का दुख है की आप ने अभी तक शाम की चाय नहीं पी होगी."

"बको मत नालयक.....मैं इसे अपने साथ ले जाउँगा." रहमान साहब ने दाँत पीस कर कहा.

"तो आप नहीं मानेंगे?" अचानक इमरान का मूड भी ख़राब हो गया....उसने खावीर से कहा...." डी जी साहब को टॅक्सी तक छोड़ कर वापस आ जाओ."

रहमान साहब कुछ पल उसे घूरते रहे फिर दरवाज़े की तरफ मुड़ गये.

अंधेरा फैलते ही सिम्मी की बेचैनी बढ़ने लगी. आज उसने ठान लिया था की सुनहरी लड़की को घर ज़रूर लाएगी. पापा आज भी लैब मे ही रात बिताने वाले थे. उनका खाना पहुँचा कर सिम्मी सोचने लगी की किसी तरह उस बूढ़े नौकर को भी उसके क्वॉर्टर मे ही भेज दिया जाए.....जो रात को बंगले मे सोता था.
वो उसे भी बंगला से टाल देने मे सफल हो गयी......और अब उसे सुनहरी लड़की की प्रतीक्षा थी. इसलिए वो अंधेरा फैलते ही किचन की खिड़की मे जा खड़ी हुई थी.......और उसका दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था.

वो खुद को पृथ्वी की पहली लड़की मान रही थी जिस की किसी दूसरे ग्रह की लड़की से दोस्ती हुई थी. कितनी अजीब बात थी.....कितनी अजीब.......वो सोचती और सोचती ही रह जाती. स्परसिया या शुक्र ग्रह वाले कितने विकसित थे. उन्होने ऐसी मशीन भी बना ली थी जो सोचों को उसी भाषा मे प्रकट कर दें जो सुनने वाले की हो. उस मशीन ने उसे सचमुच हैरत मे डाल दिया था.

वैसे उसे पिछली रात सुनहरी लड़की की आवाज़ एकदम सपाट लगी और उस मे किसी प्रकार के भाव नहीं थे. लेकि शायद वो उसकी अपनी आवाज़ ही न रही हो.
हाँ ठीक तो है. वो तो केवल सोच को प्रकट किया जा रहा था. वो आवाज़ भी उस मशीन की ही पैदा की हुई होगी.

वो सोचती रही और उसे ये याद आया की वो आवाज़ उस लड़की की आवाज़ से भिन्न भी थी.

वो ना जाने कब तक खिड़की मे खड़ी रही फिर नरकुल की झाड़ियों के पास रौशनी देख कर चौंक पड़ी.

और दूसरे ही पल वो खुद नहीं दौड़ रही थी बल्कि उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई शक्ति उसे हवा मे उड़ाए ले जा रही हो.

झाड़ियों के पास सुनहरी लड़की मौजूद थी......और आज सिम्मी को वो इतनी अजीब लगी की उसने बोखला कर अपनी आँखें बंद कर लीं. वो सर से पैर तक सफेद थी. शरीर का रंग ही सफेद था. लेकिन वो किसी कपड़ों मे नहीं थी. अजीब बात ये थी की उसे नंगी नहीं कह सकती थी. वैसे वो पहली नज़र मे नंगी ही लगती थी. उसने आगे बढ़ कर सिम्मी को दबोच लिया.......और उसे प्यार करने लगी.

"तत....तुम्हें शर्म नहीं आती...." सिम्मी हक्लाई. लेकिन लड़की शायद समझी ही नहीं की वो क्या कह रही है. फिर वो उसे नरकुल की झाड़ियों की तरफ खींचने लगी.

और थोड़ी देर बाद वो पिछली ही रात की तरह फेग्राज़ मे बैठी हुई थी.

सिम्मी उसकी तरफ नहीं देख रही थी. चाहे वो किसी प्रकार का लिबास ही रहा हो लेकिन सिम्मी केलिए आँखें उठाना दूभर हो रहा था.

सुनहरी लड़की ने उसके सर पर चमड़े का खोल रख दिया और सिम्मी के कानों मे फिर वही पिछली रात की तरह हल्की सरसराहट गूंजने लगी.

अचानक उस से कहा गया...."क्या तुम आज मुझ से नाराज़ हो?"

"नहीं तो......मगर तुम......"

"हाँ बोलो चुप क्यों हो गयीं?"

"मुझे तुम्हारी तरफ देखते शर्म आती है. तुम सर से पैर तक नंगी लग रही हो."

"ओहह..." सुनहरी लड़की हंस पड़ी. फिर बोली...."अरे.....मैं कपड़ों मे हूँ...."

"इतने पतले और चुस्त कपड़े कि नंगी लग रही हो....हम लोग इसे अच्छा नहीं समझते...."

"मैं पहले ही कह चुकी हूँ की तुम स्परसिया के निवासियों से 1000 साल पीछे हो. अरे ये तो स्परसिया की लड़कियों का मॉडर्न ड्रेस है. लेकिन केवल हाई क्लास की लड़कियाँ ही इस फैशन को अपना सकती हैं क्योंकि इस का कॉस्ट काफ़ी है. तुम इस कपड़े को छू कर देखो.....ये तुम्हें मेरी स्किन की तरह ही नर्म और गर्म लगेगी."

"नहीं.....तुम मत पहना करो ऐसा लिबास जो शरीर से चिपक कर रह जाए. मैं तुम से बहुत प्रेम करती हूँ. इसलिए कह रही हूँ.....वरना मुझे क्या...."

"ओके.....अब नहीं तुम्हारे सामने नहीं आउंगी इस ड्रेस मे.....मैं अभी अपना गाउन पहन लेती हूँ..."
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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