प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: प्यासा समुन्दर

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"क्यों?"
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"वहाँ टॅक्सी के पास झाड़ियों मे भी एक आदमी है. कुल पाँच आदमी ज़िंदा या मुर्दा आप के साथ जा सकेंगे. छटा(6थ) मुझे पसंद आ गया है."

इमरान टॅक्सी ड्राइवर की तरफ देखने लगा.

"तुम दोनों को भी मेरे साथ ही चलना पड़ेगा. और तुम फोर्मली अपना स्टेट्मेंट दोगे."

"मैं स्टेट्मेंट और बयानों को सिरे से नहीं मानता. चाहे वो फॉर्मल हो या नोन फॉर्मल."

"तुम जहाँ कहीं भी होगे....तुम्हें इस क्रम मे आना ही पड़ेगा."

इमरान कुच्छ ना बोला. अचानक रहमान साहब खावीर की तरफ मुड़े...."तुम अपना चेहरा दिखाओ..."

"बॉस की अनुमति के बिना ये असंभव है सर...." खावीर ने इमरान की तरफ इशारा कर के कहा.

"आप ऐसी बातों की फरमाइश ना करें जो मेरे वश से बाहर हो..." इमरान ने आदर पूर्वक कहा.

फिर इमरान और खावीर अलग जाकर धीरे धीरे बात करने लगे.

रहमान साहब उन्हें घूर रहे थे.

थोड़ी देर बाद खावीर एक बेहोश आदमी को अपनी कमर पर लाद रहा था.

इमरान ने दरवाज़ा खोला और खावीर बेहोश को कमर पर लादे बाहर चला गया.

"ये क्या कर रहे हो तुम?" रहमान साहब ने भर्राई हुई आवाज़ मे धीरे से कहा. स्वर मे अब पहले जैसी कठोरता नहीं थी.

"आप की वापसी की व्यवस्था." इमरान ने उत्तर दिया. "मुझे दुख है कि मैं देर से पहुचा.....वरना आप यहाँ ना आते."

"लेकिन अब तुम जो कुच्छ भी कर रहे हो मैं उसे पसंद नहीं करता. मैं तुम्हें क़ानून की सीमा से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दे सकता. अच्छा यही होगा कि मेरे साथ चलो और विधिवत अपना बयान पोलीस को दो."

"सॉरी....मैं ऐसा नहीं कर सकूँगा. आख़िर मेरे भी कुच्छ ड्यूटीस हैं."

"मैं समझा नहीं...?"

"देखिए आप जानते ही हैं कि मैं अक्सर सर सुल्तान केलिए काम करता रहता हूँ. ये सब भी मैं उन्हीं केलिए कर रहा हूँ. आप ये भी जानते हैं कि वो एक ज़िम्मेदार इंसान हैं..."

"मैं सब कुच्छ जानता हूँ.....लेकिन इस मामले से सर सुल्तान को क्या रूचि हो सकती है?"

"सर सुल्तान ही ठहरे...." इमरान सर हिला कर बोला. "उन्हें तो इसकी चिंता भी पड़ी रहती है कि उनके पड़ोसी के घर प्रति दिन मूँग की दाल क्यों पकाई जाती है?"

"बको मत....तुम्हें मेरे साथ चलना पड़ेगा..." रहमान साहब को फिर गुस्सा आ गया..."वरना हो सकता है कल सुबह तुम हथकड़ियों मे मेरे सामने लाए जाओ..."

"भुगत लूँगा.....जो भी भाग्य मे है..." इमरान ठंडी साँस लेकर बोला.

खावीर वापस आ गया था.....और अब दूसरे बेहोश आदमी को कमर पर लाद रहा था. उसके बाहर जाते ही रहमान साहब फिर बोले..."अच्छा तो फिर ये सब मेरे साथ जाएँगे....और तुम से मैं बाद मे समझूंगा...."

"मैं आप से पहले ही निवेदन कर चुका हूँ कि ये मेरा शिकार है..." इमरान ने ड्राइवर की तरफ हाथ उठा कर कहा.

"लेकिन इसका परिणाम सोच लो." रहमान साहब ने कहा.

इमरान ने टॅक्सी ड्राइवर के पैरों को बँधे रहने दिया और शेष दो के पैरों से रस्सी निकाल दी थी ताकि वो चल कर टॅक्सी तक जा सकें. उनके हाथ पीठ पर बँधे ही थे.

"मैं फिर कहता हूँ कि तुम से मूर्खता हो रही है." रहमान साहब ने नर्म लहजे मे उसे समझाने की कोशिश की.

"पैदाइश से आज तक मुझ से कोई अकल्मंदी नहीं हुई.....आप जानते ही हैं."

इस पर रहमान साहब फिर उबल पड़े.....और थोड़ी देर तक बहस चलती रही फिर खावीर वापस आ गया.

"आप इन दोनों को ले जाइए" इमरान ने रहमान साहब से कहा. "और प्लीज़ मेरे मामले मे दखल मत दीजिए.....वरना जिस प्रकार आप क़ानून को सामने ला खड़ा कर देते है उसी प्रकार मजबूरी वश मुझे भी अपने अधिकारों का प्रदर्शन करना पड़ेगा. क्या आपको पता नहीं है कि मुझे होम मिनिस्ट्री से इस प्रकार के विशेष अधिकार प्राप्त हैं...."

"खामोश रहो....सब बकवास है....वो विशेष अधिकार पर्मनेंट नहीं थे जो जो तुम्हें कभी सर सुल्तान के कारण मिले थे."

"मैं खामोश हूँ.....लेकिन मुझे इस बात का दुख है कि आप ने अभी तक शाम की चाइ नहीं पी होगी."

"बको मत नालयक.....मैं इसे अपने साथ ले जाउन्गा." रहमान साहब ने दाँत पीस कर कहा.

"तो आप नहीं मानेंगे?" अचानक इमरान का मूड भी खराब हो गया....उसने खावीर से कहा...."डीजी साहब को टॅक्सी तक छोड़ कर वापस आ जाओ."

रहमान साहब कुछ पल उसे घूरते रहे फिर दरवाज़े की तरफ मूड गये.
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Re: प्यासा समुन्दर

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अंधेरा फैलते ही सिम्मी की बेचैनी बढ़ने लगी. आज उसने ठान लिया था कि सुनहरी लड़की को घर ज़रूर लाएगी. पापा आज भी लॅब मे ही रात बिताने वाले थे. उनका खाना पहुचा कर सिम्मी सोचने लगी कि किसी तरह उस बूढ़े नौकर को भी उसके क्वॉर्टर मे ही भेज दिया जाए.....जो रात को बंग्लो मे सोता था.

वो उसे भी बंग्लो से टाल देने मे सफल हो गयी......और अब उसे सुनहरी लड़की की प्रतीक्षा थी. इसलिए वो अंधेरा फैलते ही किचन की खिड़की मे जा खड़ी हुई थी.......और उसका दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था.

वो खुद को पृथ्वी की पहली लड़की मान रही थी जिस की किसी दूसरे ग्रह की लड़की से दोस्ती हुई थी. कितनी अजीब बात थी.....कितनी अजीब.......वो सोचती और सोचती ही रह जाती. स्पारिया या शुक्र ग्रह वाले कितने विकसित थे. उन्होने ऐसी मशीन भी बना ली थी जो सोचों को प्रकट उसी भाषा मे कर दें जो सुनने वाले की हो. उस मशीन ने उसे सच मुच हैरत मे डाल दिया था.

वैसे उसे पिच्छली रात सुनहरी लड़की की आवाज़ एकदम सपाट और उस मे किसी प्रकार के भाव नहीं थे. लेकि शायद वो उसकी अपनी आवाज़ ही ना रही हो.

हां ठीक तो है. वो तो केवल सोच को प्रकट किया जा रहा था. वो आवाज़ भी उस मशीन की ही पैदा की हुई होगी.

वो सोचती रही और उसे ये याद आया कि वो आवाज़ उस लड़की की आवाज़ से भिन्न भी थी.

वो ना जाने कब तक खिड़की मे खड़ी रही फिर नरकुल की झाड़ियों के पास रौशनी देख कर चौंक पड़ी.

और दूसरे ही पल वो खुद नहीं दौड़ रही थी बल्कि उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई शक्ति उसे हवा मे उड़ाए ले जा रही हो.

झाड़ियों के पास सुनहरी लड़की मौजूद थी......और आज सिम्मी को वो इतनी अजीब लगी कि उसने बोखला कर अपनी आँखें बंद कर लीं. वो सर से पाओं तक सफेद थी. शरीर का रंग ही सफेद था. लेकिन वो किसी कपड़ों मे नहीं थी. अजीब बात ये थी कि उसे नंगी नहीं कह सकती थी. वैसे वो पहली नज़र मे नंगी ही लगती थी. उसने आगे बढ़ कर सिम्मी को दबोच लिया.......और उसे प्यार करने लगी......[ ]

"त्त....तुम्हें शर्म नहीं आती...." सिम्मी हक्लाई. लेकिन लड़की शायद समझी ही नहीं कि वो क्या कह रही है. फिर वो उसे नरकुल की झाड़ियों की तरफ खिचने लगी.

और थोड़ी देर बाद वो पिच्छली ही रात की तरह फेग्राज़ज़ मे बैठी हुई थी.

सिम्मी उसकी तरफ नहीं देख रही थी. चाहे वो किसी प्रकार का लिबास ही रहा हो लेकिन सिम्मी केलिए आँखें उठाना दूभर हो रहा था.

सुनहरी लड़की ने उसके सर पर चमड़े का खोल रख दिया और सिम्मी के कानों मे फिर वही पिच्छली रात की तरह हल्की सरसराहट गूंजने लगी.

अचानक उस से कहा गया...."क्या तुम आज मुझ से नाराज़ हो?"

"नहीं तो......मगर तुम......"

"हां बोलो चुप क्यों हो गयीं?"

"मुझे तुम्हारी तरफ देखते शर्म आती है. तुम सर से पैर तक नंगी लग रही हो."

"ओह्हो..." सुनहरी लड़की हंस पड़ी. फिर बोली...."अर्रे.....मैं कपड़ों मे हूँ...."

"इतने पतले और चुस्त कपड़े की नंगी लग रही हो....हम लोग इसे अच्छा नहीं समझते...."

"मैं पहले ही कह चुकी हूँ कि तुम स्परसिया के निवासियों से 1000 साल पिछे हो. अर्रे ये तो स्परसिया की लड़कियों का मॉडर्न ड्रेस है. लेकिन केवल हाइ क्लास की लड़कियाँ ही इस फॅशन को अपना सकती हैं क्योंकि इस का कॉस्ट काफ़ी है. तुम इस कपड़े को छु कर देखो.....ये तुम्हें मेरी स्किन की तरह ही नर्म और गर्म लगेगी."

"नहीं.....तुम मत पहना करो ऐसा लिबास जो शरीर से चिपक कर रह जाए. मैं तुम से बहुत प्रेम करती हूँ. इसलिए कह रही हूँ.....वरना मुझे क्या...."

"ओके.....अब नहीं तुम्हारे सामने नहीं आउन्गि इस ड्रेस मे.....मैं अभी अपना गाउन पहन लेती हूँ..."

उसने फेग्राज़ज़ के एक बॉक्स से अपना गाउन निकाल कर पहन लिया....फिर बोली.

"ये लो अब देखो मेरी तरफ..."

"अब देखूँगी...." सिम्मी मुस्कुराइ. "हां ठीक हैं.....तुम मुझे इस गाउन मे अच्छी लगती हो."
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Re: प्यासा समुन्दर

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14

"ये तो अब से 5000 साल पहले का ड्रेस है. मुझे चूँकि ओल्ड फॅशन भी रोमटिक लगता है इस लिए कभी कभी इन ओल्ड फॅशन वाले ड्रेस को भी एंजाय करती हूँ. अगर स्परसिया मे मुझे कोई इस ड्रेस मे देख ले तो शायद पागल समझे या भूत समझ कर चीखना शुरू कर दे. मैं अक्सर अपने फ्रेंड्स को इस लबादे (गाउन) से डरा चुकी हूँ."

सिम्मी हँसने लगी. उसकी समझ मे नहीं आ रहा था कि अब वो किस टॉपिक पर बात करे. वो तो ये भी भूल गयी थी कि उसने आज उसे अपने बंग्लो पर ले जाने की ठान रखी थी.

उसने चमड़े की उस टोपी की तरफ इशारा कर के कहा...."तुम्हारी ये मशीन बड़ी विचित्र है. आज मैं दिन भर इसी के बारे मे सोचती रही."

"ओह्ह....ये 'कपल टॅययेज' है. ये तो हमारी दो सौ साल पुरानी आविष्कार है......और इसका ये मॉडेल तो बहुत पुराना है. अब तो हम ने ऐसे कपल टॅययेजस बनाए हैं जिन मे तार जोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती. आज मैं वैसा ही एक सेट लाई हूँ. ये तो कल जल्दी मे उठा लाई थी.......और ये यहीं फेग्राज़ज़ मे पड़ा रह गया था. अच्छा आप उस टोपी को उतारो.....मैं तुम्हें लेटेस्ट कपल टॅययेज का एक्सपीरियेन्स कराउन्गी..."

सिम्मी ने सर से वो खोल उतार दिया. सुनहरी लड़की पहले ही उतार चुकी थी. अब उसने एक बॉक्स से एक छोटा सा बॅग निकाला. ये बॅग भी सोने का ही लगता था. उसने उसे खोल कर दो ट्रॅग्युलर प्लेट जैसी कोई वस्तु निकाली. ये भी किसी चमकदार मेटल का बना हुआ था. उन ट्रॅंगल्स के दो सिरों पर पतले पतले तार थे.......और तारों की समाप्ति पर छ्होटे छ्होटे हेड-फोन से लगे हुए थे.

उसने एक ट्रॅग्युलर प्लेट उठा कर सिम्मी की नाक की जड़ से ऐसे लगाया कि उसके होन्ट छुप गये. ट्रॅंगल का तीसरा सिरा जिस पर तार नहीं था नीचे की तरफ लटकता रहा. हेड फोन मे हुक लगे हुए थे जो कानों मे फसा दिए गये. इस प्रकार सिम्मी के दोनों कान और मूह बंद हो गये लेकिन वो आसानी से अपने होंठो को हिला सकती थी.

सुनहरी लड़की ने वैसा ही हेड फोन अपने कानों से लगाए......और उसका मूह भी चमकदार ट्रॅंगल से छुप गया.

"क्या तुम मेरी आवाज़ सुन रही हो?" तभी सुनहरी लड़की ने पुछा.

"हां....सुन रही हूँ." सिम्मी के स्वर मे हैरत थी. क्योंकि दोनों के बीच किसी प्रकार का कॉंटॅक्ट नहीं था. अर्थात दोनों प्लेट किसी प्रकार के तार से नहीं जुड़े हुए थे.

"ये उस से भी अधिक आश्चर्य-जनक है." सिम्मी ने कहा.

"निश्चित रूप से तुम्हारे लिए आश्चर्य-जनक होगा लेकिन हम लोग जो आए दिन देवलांडो की यात्रा करते रहते हैं.....इसे ऐसे ही साथ रखते हैं जैसे सब अपने साथ रुमाल रखते हैं."

"क्यों...? देवलांडो से इसका क्या संबंध?"

"आज से दो सौ साल पहले देवलांडो तक पहुचने की योजना बनाई गयी थी. लेकिन इसकी भी ज़रूरत थी कि हम देवलांडो के निवासियों की सोच से अवगत रह सकें.......और जो कुच्छ सोचें उसे उनके दिमाग़ मे पहुचा सकें. इसलिए एक तरफ तो ऐसे फेग्राज़ज़ बनाने की कोशिश होती रही जो देवलांडो तक पहुचा सकें......दूसरी तरफ सोचों के आदान प्रदान के लिए कपल टेरिगेल बनाने पर भी प्रयास होता रहा. साधारण सा फेपोफ्फ जो केवल स्परसिया के उपर उड़ सकते थे.....आज से पाँच सौ साल पहले ही बना लिए गये थे. बाद मे कपल टॅययेज भी बन गये जो और फेपोफ्फ को डेवेलप कर के फेग्राज़ज़ मे बदला जा सका."

"तो देवलांडो के निवासियों से तुम लोगों ने कम्यूनिकेशन बना लिया है?"

"हां....बिल्कुल....अब तो हम वहाँ की काई भाषा बोल भी सकते हैं.`100 साल पहले हमे अधिकतर कपल टॅययेज का ही सहारा लेना पड़ता था. किसी किसी भाग मे अब भी कपल टॅययेज की ही मदद लेनी पड़ती है."

"क्यों?"

"क्योंकि उन भागों के लोगों की भाषा हम आज तक नहीं सीख पाए. वो भाषाएँ विचित्र हैं."

"क्या देवलांडो भी तुम्हारी तरह ही विकसित हैं?"

"नहीं......बॅस ये समझो कि वो लोग कपड़े बुनना जानते हैं लेकिन सिल कर पहनना नहीं जानते....."

"ओह्हो.....तब तो सच मुझ तुम सब उन पर राज करते होगे...."

"शासन तो तुम लोगों पर भी हो सकती है......लेकिन केवल तुम्हारे कारण मैं उसे पसंद नहीं करूँगी."

"ओह्ह....याद आया...." सिम्मी अचानक चौंक कर बोली...."आज तो मैं तुम्हें अपने घर ले जाउन्गि..."

"नहीं प्यारी लड़की.....मुझे इसपर मजबूर मत करो..."

"क्यों?"

"अगर किसी ने मुझे देख लिए तो मैं ज़िंदा वापस ना जा सकूँगी...."

"तुम डरती क्यों हो? मेरे बंग्लो मे इस समय मेरे अलावा और कोई नहीं है....पापा अपनी लॅब मे हैं और मैने नौकरों को उनके घरों मे भेज दिया है."

"इसके लिए ज़िद मत करो....मैं नहीं चाहती कि तुम किसी मुसीबत मे पड़ जाओ..."

"नहीं.....मैं तो तुम्हें हर हाल मे लेकर जाउन्गि..."

"ज़िद मत करो.....पता नहीं वहाँ जाकर कैसी परिस्थिति बन जाए..."

"मुझ पर भरोसा करो....कोई तुम्हारा बाल भी बाका नहीं कर सकेगा."

"अच्छा...." सुनहरी लड़की ने एक लंबी साँस ली....."मगर आज नहीं.....मुझे जल्दी वापस जाना होगा. कल रखो....कल मैं आते ही तुम्हारे साथ चल दूँगी. मुझे भी इच्छा है कि मैं रयामी के निवासियों की रहण सहन देखूं......ओके अब मुझे अनुमति दो...."

सिम्मी निराश हो गयी. उसे खुद पर गुस्सा आने लगा कि उसने पहले ही ये बात क्यों नहीं कही.

कुच्छ पल वो चुप चाप बैठी रही फिर फेग्राज़ज़ से बाहर निकल आई.

कुच्छ ही देर मे फेग्राज़ज़ हवा मे उँचा उठ कर निगाहों से ओझल हो गया.


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Re: प्यासा समुन्दर

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15
"क्यों दोस्त....?" इमरान ने टॅक्सी ड्राइवर से कहा....."इस खेल का क्या मकसद था?"

"तुम कॉन हो?" टॅक्सी ड्राइवर ने लापरवाही से कहा.

"मैं क्यों बताउ कि मैं......अर्रर...." इमरान अपना मुहह पीट'ता हुआ बोला...."शायद मैं बताने ही जा रहा था......यार इतनी अकल तो तुम्हें होनी ही चाहिए कि अगर यही बताना होता तो मैं अपने चेहरे पर नक़ाब क्यों लगाता?"

"ना बताओ...." टॅक्सी ड्राइवर ने अपने कंधे उचका कर अपनी लापरवाही का प्रदर्शन किया.

"मैं जानता हूँ कि तुम उड़ने की कोशिश अवश्य करोगे....और मुझे तुम पर वही हथियार इस्तेमाल करना होगा जो जो तुम मिस्टर रहमान केलिए इस्तेमाल कर रहे थे.....यहाँ कहीं ना कहीं और भी कोयला होगा.....जिन से अंगीठी का पेट भरा जा सके. और ये सलाख......क्या समझे...."

"टॅक्सी ड्राइवर कुच्छ ना बोला.....वो अंगीठी की तरफ देखने लगा था. इमरान को अब उसकी आँखों मे चिंता के लक्षण दिखाई दिए.

"बोलो....मेरी समझ से तुम देर कर रहे हो....." इमरान ने कहा.

"क्या पुच्छना चाहते हो?"

"उसी रेड पॅकेट के बारे मे जो तुम मिस्टर रहमान से वसूल करने के चक्कर मे हो...."

"तुम्हें धोका हुआ है.....ये एक पुराना झगड़ा था. रहमान साहब ने एक आदमी के कुच्छ पेपर्स दबा रखे हैं.....मैं नहीं जानता कि उन्होने ये काम किसके इशारे पर किया है...."

"वो आदमी कॉन है? और वो पेपर्स कैसे हैं?" इमरान ने पुछा.

"ये मैं कैसे जान सकता हूँ कि वो पेपर्स कैसे हैं. मैं तो एक आदमी केलिए काम कर रहा हूँ...."

"किस आदमी केलिए?"

"जिसके पेपर्स रहमान साहब ने दबा रखे हैं...."

"उस आदमी का पता बताओ..."

"पता.....पता तो मुझे नहीं है.....हां वो अक्सर इधर उधर मिलता रहता रहता है. मेरा अनुमान है कि वो खुद भी एक धनी आदमी है. हमेशा कीमती कारो मे दिखाई देता है. शायद उसके पास कयि कारें हैं. उस ने मुझे एक बड़ी राशि ऑफर किया था. इसी लिए मैं कोशिश कर रहा हूँ कि रहमान साहब वो पेपर्स मेरे हवाले कर दें. मैं तो केवल धमका रहा था उन्हें......" वो दहक्ति हुई अंगीठी की तरफ देख कर खामोश हो गया.

"मुझे तुम्हारे इस स्टेट्मेंट पर यकीन नहीं आया....." इमरान ने कहा.

"तो फिर मुझे मार डालो....इस से अच्छा और कोई तरीका नहीं."

"रहमान साहब की नकल मत करो...." इमरान ने शुस्क स्वर मे कहा...."तुम उस से घाटे मे रहोगे..."

"मैं किसी की नकल नहीं कर रहा.....सच कह रहा हूँ.....क्योंकि मेरे फरिश्ते भी नहीं बता सकेंगे कि उस रेड पॅकेट मे क्या है...और मुझे ये काम किन लोगों ने सौंपा था...."

"ओह्ह.....तुम उन्हें नहीं पहचानते...."

"जी नहीं....वो भी नकाबों मे थे......और उन्होने मुझे इसके लिए पचास हज़ार दिए थे......और काम हो जाने पर पचास हज़ार का वादा था."

"और तुम ने उसे स्वीकार कर लिया था..."

"आप खुद सोचिए कि एक लाख कम नहीं होते.....जबकि इस से भी कम पैसों केलिए लोग अपनी जान पर खेल जाते हैं..."

"तुम भी अपनी जान पर खेल गये...." इमरान हंस पड़ा. लेकिन फिर अचानक ख़ूँख़ार भेड़िए की तरह गुर्राया..."अगर मैं तुम्हारे चेहरे पर लिक्विफाइड अमोनिया के छिन्टे दूं तो कैसी रहेगी?"

"म्म....मतलब.....मैं समझा नहीं..." टॅक्सी ड्राइवर हकलाया.

"मतलब उसी समय समझ मे आएगा जब मैं ये कर दूँगा फ्लेगर....."

टॅक्सी ड्राइवर के कंठ से अजीब सी आवाज़ निकली जो भय का परिणाम ही समझा जा सकता था.

"हुन्ह....तुम जैसे कीड़े अगर मुझे धोका दे सकें तो मैं इसे अपना दुर्भाग्य ही समझूंगा मिस्टर जॅम्स फ़्लगगेर....तुम मेक अप ज़रूर अच्छा कर लेते हो लेकिन अपनी आँखें नहीं छुपा सकते......और मैं ये भी जानता हूँ कि अक्सर तुम विदेशी एजेंट्स के मोहरे बनते रहते हो. पोलीस इसके कारण तुम पर नज़र भी रखती है.....लेकिन अभी तक तुम्हारा मामला संदेह की सीमा से आगे नहीं बढ़ सका. क्या अब ये भी बता दूं कि तुम हाइवे-13 पर एक छोटा सा केफे चलाते हो....."
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Re: प्यासा समुन्दर

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16
"म्म....मैं इस से इनकार नहीं करूँगा....." टॅक्सी ड्राइवर ने कहा..."मैं खुद ही आपको अपने बारे मे सब कुच्छ बता देता.....लेकिन आप ने इसका मौका ही नहीं दिया.....और विश्वास कीजिए कि मैं उन लोगों के बारे मे बिल्कुल नहीं जानता जिन्होने मुझे ये काम सौपा था...."

"ख़तम करो.....ना तुम मुझे विश्वास दिला सकते और ना मैं तुम्हें छोड़ सकता हूँ.....इसलिए मूह को थकाने से क्या लाभ...."

"मैं वो पचास हज़ार आप की सेवा मे प्रस्तुत कर के कहीं और चला जाउन्गा...."

"नहीं....तुम वो पचास हज़ार मेरी सेवा मे प्रस्तुत किए बिना ही कहीं और चले जाओगे...."

बाहर से कदमों की आवाज़ें आईं.....फिर खावीर अंदर प्रवेश किया. वो हंस रहा था.

"क्यों.....क्या हुआ?"

"रहमान साहब बहुत गुस्से मे थे." खावीर ने कहा.

"कोई नयी बात नहीं है....." इमरान ने लापरवाही से कहा.

"उनके पास रेवोल्वर नहीं था..." खावीर ने कहा...."मैने उन्हें अपना रेवोल्वर दिया.....जिसे उन्होने बड़ी सावधानी से हाथ मे रुमाल लपेट कर पकड़ा था. मगर मैने तुरंत उन्हें याद दिलाया कि मेरे हाथों मे ग्लव्स हैं.....उन्हें रेवोल्वर पर मेरे फिंगर प्रिंट नहीं मिल सकेंगे......इस पर वो और अधिक क्रोध मे आ गये....."

"ख़तम करो..." इमरान हाथ उठा कर बोला. "क्या तुम इस आदमी को पहचानते हो?"

"नहीं..."

"मिस्टर जेम्ज़ फ्लेगर से मिलो.....थर्टींत हाइवे पर फेमस जेम्ज़ पॉइंट आप ही की है...."

"नहिंन्न्न्...." खावीर के स्वर मे हैरत थी.

"हां....ये वही जेम्ज़ फ्लेगर है जिसके बारे मे तुम लोगों का 'गुरुघन्टाल' अक्सर उलझनों का शिकार रहा है."

"फिर अब इसके लिए क्या किया जाए?" खावीर ने चिंतित लहजे मे कहा.

"मैं जानता हूँ कि अभी ये अपना मूह नहीं खोलेगा....इसलिए तुम इसे बंद रखो.....मेरा मतलब शायद समझ ही गये होगे.....हेड क्वॉर्टर्स का साउंड प्रूफ कमरा इस काम केलिए सूटेबल रहेगा. लेकिन इस से पहले वहाँ का समान हटाना पड़ेगा......और तुम इसकी आँखों पर पट्टी बाँध कर इसे वहाँ ले जाओगे."

"वो तो ठीक है.....मगर...."

"हां.....मैं जानता हूँ कि तुम लोग गुरुघन्टाल की अनुमति के बिना उस इमारत मे कदम भी नहीं रख सकते. लेकिन इस समय तुम्हें मुझ पर विश्वास करना चाहिए. तुम्हारा गुरुघंताल अगर इस बारे मे तुम से पुच्छे तो तुम बड़े आराम से मेरा नाम कह देना. मैं ये सब अपनी ज़िम्मेदारियों पर कर रहा हूँ."

"टॅक्सी ड्राइवर एकदम चुप हो गया था. ऐसा लग रहा था जैसे अब वो खुद को लापरवाह प्रकट करने की कोशिश कर रहा हो. वो तब भी नहीं बोला जब खावीर ने उसके कॉलर पकड़ कर उठाया था.

उसके हाथ भी पीठ पर बाँध दिए गये लेकिन पैर की रस्सी खोल दी गयी ताकि उसे कार तक ले जाने मे कठिनाई नहीं हो.

"चलिए..." खावीर ने इमरान से कहा.

"मैं कुच्छ देर यहाँ ठहरुन्गा....तुम इसे ले जाओ लेकिन देखो तुम्हें उस समय तक वहाँ रुकना होगा जब तक कि मुझे तुम्हारे गुरुघन्टाल की तरफ से इसके बारे मे कोई निर्देश ना मिल जाए...."

खावीर टॅक्सी ड्राइवर को धक्के देता हुआ कमरे से बाहर निकाल ले गया. इमरान ने उसे दानिश मंज़िल ले जाने को कहा था. दानिश मंज़िल सीक्रेट सर्विस का हेडक्वार्टर था. ये भी सच था कि सीक्रेट सर्विस का कोई भी मेंबर X2 के आदेश के बिना उसकी कॉंपाउंड मे भी पैर नहीं रख सकता था.

इमरान कुच्छ देर उस लकड़ी के घर की तलाशी लेता रहा फिर बाहर निकल आया. इस तलाशी के क्रम मे वहाँ से कोई ऐसी वस्तु नहीं मिली थी जो इस केस मे इमरान केलिए सहायक होती.

15 मिनट बाद वो अपनी कार के पास खड़ा अंधेरे मे आँखें फाड़ रहा था. अब उसे इसकी चिंता थी कि जल्दी से जल्दी शहर पहुच जाए. वो चाहता था कि रहमान साहब अपनी धमकी को सच कर देने मे सफल ना हो सकें. अगर उन्हें मौका मिल जाता तो इमरान के सामने कुच्छ नयी कठिनाइयाँ आ खड़ी होतीं. और वो निश्चिंत होकर काम नहीं कर पाता. वैसे वो अपनी पोज़िशन किसी पर भी प्रकट नहीं करना चाहता था. लेकिन अगर रहमान साहब अगर उसकी राह मे रोड़े अटकाना शुरू कर देते तो ये भी स्मभाव था कि X2 का राज़ खुल ही जाता.
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