प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: प्यासा समुन्दर

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रहमान साहब कुच्छ ना बोले. इमरान बाहर आ गया. अम्मा बी अब भी उसकी प्रतीक्षा मे बरामदे मे ही बैठी थीं.

"अर्रे बॅस....क्या वापस जा रहा है?"

"हां अम्मा बी....उन्होने केवल मुझे अपमानित करने के लिए बुलाया था."

"तो मुझे अपने साथ ले चल.....मैं अब यहाँ नहीं रहूंगी..."

"मैं गले मे फंदा लगा कर मर जाउंगी अम्मा बी अगर आप इनके साथ गयीं." सुरैया बोल पड़ी.

"अरे कम्बख़्तो....! फिर मुझे ही ज़हर दे दो..."

"अम्मा बी...." इमरान उनके कंधे पर हाथ रख कर बोला. "आप बिल्कुल चिंता मत करें. मैं इश्स सुरैया की बच्ची को भी अपने साथ ले चलूँगा..."

"अर्रे.....ज़ुबान संभाल कर...." सुरैया चिढ़ कर बोली.

"बस अम्मा बी....अब इजाज़त दीजिए. मैं अब आता रहूँगा. क्योंकि डैडी ने ये नहीं कहा है की मैं अब दुबारा यहाँ ना आऊं. मैं आता रहूँगा तब तक जब तक मना नहीं कर दें."

वो अम्मा बी को सिसकता हुआ छ्चोड़ कर गेट की तरफ बढ़ गया.


**************
********

दूसरी रात भी डा. दावर को लैब मे ही गुज़ारनी थी. सिम्मी दिन ही मे उन से मिल आई थी. लेकिन उसने उस सुनहरी लड़की वाली बात उन से नहीं की थी. अगर वो चमकीली लिखावट काग़ज़ पर मौजूद होतीं तो वो निश्चित रूप से चर्चा करती.

अब चूँकि उसके पास कोई प्रूफ नहीं रह गया था. इसलिए वो रहस्सयमयी घटना की चर्चा कर के अपना मज़ाक नहीं उड़ाना चाहती थी. किसी को विश्वास नहीं होता. क्योंकि सभी उसे 'एक सपनों मे रहने वाली लड़की' समझते थे.

इस समय रात के आठ बजे थे.....और सिम्मी अब भी किचन ही मे मौजूद थी. क्योंकि यहाँ की खिड़की से वो जगह सॉफ दिखाई देती थी जहाँ पिछली रात उसने उस सुनहरी लड़की को बैठे देखा था.

उसका वो गर्मजोशी भरा चुंबन उसे अब भी याद आता था और जब भी वो उसको याद करती उसकी पेशानी गर्म हो जाती थी. उसने उसे कितने प्यार से भींचा था. मगर वो कौन थी? कहाँ से आई थी.......और वो उड़ने वाली मशीन............!!!|

उसने रॉकेट भी देखे थे......और उडनतश्तरियों के नमूने भी उसकी निगाहों से गुज़रे थे. लेकिन उसे अभी तक पता नहीं था की उड़ने वाली मशीन मे कोई नया आविष्कार भी हो चुका है.......लेकिन वो लड़की........वो उस से कितनी अलग थी......उसके शरीर का रंग कितना असाधारण था. अगर उसके बाज़ुओं पर पंख भी लगे होते तो वो बिना किसी बहस के उसे परी मान लेती. और यही सोचती की वो इंद्र सभा की कहानियों वाली कोई सुनहरी परी है. नीलम परी, याक़ूत परी इत्यादि की तरह.

फिर उसे ग्रहों(प्लननेट्स) का ख़याल आया. उन मे सो कोई कोई आबाद भी तो हैं. तो क्या वो किसी दूसरे ग्रह से आई थी? वो खिड़की पर खड़ी उसके बारे मे सोचती रही. उसे आशा थी की शायद वो आज फिर वहाँ दिखाई दे.

और उसकी उम्मीद सच मुच पूरी हो गयी. उसे ठीक उसी जगह एक गतिमान सी छाया दिखाई दी जहाँ उसने उसे पिछली रात देखा था.

लेकिन सं्भव है वो कोई और हो. उसने एक बार फिर खिड़की से हटना चाहा फिर रुक गयी. ये भी एक मूर्खतापूर्ण सोच थी की वो कल वाली सुनहरी लड़की होगी.

अचानक उस छाया के इर्द गिर्द हल्की सी रौशनी फैल गयी और उसे उसका नीला लबादा सॉफ दिखाई दिया. वो वहीं खड़ी थी जहाँ उसने उसे पिच्छली रात रोते देखा था.

सिम्मी दरवाज़े की तरफ भागी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके पैरों मे पंख लग गये हों.....और वो अब कभी ज़मीन पर नहीं पड़ेंगे.

वो बे-तहाशा दौड़ती हुई बंगले से निकली. ये भी संयोग ही था की किसी नौकर ने उसे इस तरह दौड़ते नहीं देखा. वरना सारे ही नौकर उसके पीछे भागने लगते.

वो टीले की ढलान मे उतरती चली गयी. वो छाया नज़दीक होती जा रही थी. उसके दोनों हाथ फैले हुए थे.

फिर उसने खुद को उसकी बाहों की जकड़ मे महसूस किया. वो उसे भींच भींच कर प्यार कर रही थी.

सिम्मी कह रही थी...."मैं तुम्हें दुबारा पा कर कितनी खुश हुई हूँ. मैं आज पूरा दिन तुम्हारे बारे मे सोचती रही. और इस समय किचन की खिड़की मे तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही थी. तुम बहुत अच्छी हो. तुम्हारे प्यार मे बड़ी मिठास होती है. मुझे आज तक किसी ने इस तरह प्यार नहीं किया."

फिर वो भी उसे वैसे ही बेतहाशा प्यार करने लगी.

कुच्छ देर बाद सुनहरी लड़की उस का हाथ थामे उसे झाड़ियों की तरफ ले जा रही थी. सिम्मी उसकी दाहिनी हथेली से एक विचित्र प्रकार की रौशनी फूटते देख रही थी.

यही धीमी रौशनी उसके चारों तरफ भी फैली हुई थी......और उसी रौशनी मे वो रास्ता तय कर रही थी.

सिम्मी को समझ मे नहीं आया की वो किस रंग की रौशनी थी.
उसने एक बार फिर खुद को उसी उडने वाले गोले के निकट पाया......जिसका अनुभव उसे पिछली रात हो चुका था.

यहाँ आकर सुनहरी लड़की की हथेली से फूटने वाली रौशनी पहले से कुछ तेज़ हो गयी. लड़की ने गोले की एक खिड़की खोली और सिम्मी को भीतर चलने का इशारा किया.

"क्यों...? नहीं....मैं तुम्हारे साथ कहीं जा नहीं सकूँगी. मेरे पापा परेशान होंगे."

सुनहरी लड़की शायद उसके चेहरे के भावों से उसकी बात का मतलब समझ गयी थी. इसलिए वो इशारे से समझने लगी की वो कुछ देर इसमे बैठेंगी......और वो उसे कहीं नहीं ले जाएगी.
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Re: प्यासा समुन्दर

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सिम्मी हिचकिचाहट के साथ गोले मे प्रवेश की. लेकिन उसे ये देख कर बड़ी हैरत हुई की उसका भीतरी भाग चौकोर था.......और उसमे दो सोफे पड़े हुए थे. उसकी उपरी सतह इतनी उँची थी की सिम्मी को उस से टकरा जाने के डर से झुकना नहीं पड़ा था. वो उसके सर से लगभग दो फीट उँची थी. एक तरफ दीवार मे एक प्रकाशित लकीर सी दिखाई दे रही थी......और उसी लकीर की तेज़ लेकिन ठंडी रौशनी चारों तरफ फैली हुई थी.

सुनहरी लड़की भी अंदर आई......और फिर उसने वो दरवाज़ा बंद कर दी. अब ये एक बहुत बड़े घन के आकर का संदूक लग रहा था. लेकिन सिम्मी को उसमे थोड़ी सी भी घुटन महसूस नहीं हुई. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो एक विशाल और हवादार कमरे मे बैठी हुई हो.

सुनहरी लड़की उसे प्यार भारी नज़रों से देख रही थी......और उसके होंटों पर मनमोहक मुस्कान थी. तभी उसने एक छ्होटा सा लेदर बैग खोला और उसमे से कुछ चीज़ें निकाली.

ये दो टोपियाँ थीं जिनके रंग डीप ब्राउन सी थी. एक छोटा सा बॉक्स था जिसका एक बटन दबा देने पर उसके सामने लगा एक छोटा सा बल्ब जलने लगा. उसने एक टोपी अपने सर पर मंढ ली और दूसरी सिम्मी के सर पर मंढने लगी. सिम्मी का दिल बड़ी तेज़ी से धड़क रहा था......और बार बार अपने सूख रहे होटों पर ज़ुबान फेर रही थी.

टोपी उसके सर पर मंढ दी गयी......और उसके कानों मे अजीब ढंग की आवाज़ें गूंजने लगीं. टोपी के दोनों तरफ दो गोल सी पट्टी लटक रही थी जिसके सिरे पर छ्होटे छ्होटे गोले लगे हुए थे.......जिससे उसके दोनों कानो मे फिक्स कर दिए गये. एक तार उसकी और सुनहरी लड़की की टोपी को जोड़ती थी. उस तार के बीच से जुड़ा एक दूसरा तार उस बॉक्स से जुड़ा हुआ था जिस पर छोटा सा बल्ब जल रहा था.


इधर सिम्मी बडबडाई...."पता नहीं तुम क्या करने जा रही हो?"

"इस तरह हम एक दूसरे को समझ सकेंगे...." लड़की ने उत्तर दिया. सिम्मी का मुहह हैरत से खुल गया क्योंकि ये उत्तर हिन्दी मे था.....हलाकी आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई आदमी नहीं बोला हो बल्कि किसी मशीन से निकली हो. ऐसे जैसे कोई मुर्गा "कुकड़ू कू" बोलते बोलते हिन्दी बोलने लगा हो.

आवाज़ मे वो लोच.....वो मिठास नहीं थी जो सिम्मी ने पिछली रात महसूस किया था.

"तुम्हें हैरत है...?" सुनहरी लड़की फिर बोली. "मैं तुम्हारी भाषा नहीं बोल सकती थी लेकिन ये यंत्र मुझे ना केवल तुम्हारी सोच से अवगत कराता है बल्कि मेरी सोच तुम्हारी ही भाषा मे तुम्हारे कानों तक पहुचता है."

"मैं समझी नहीं."

"तुम जो कुछ भी कह रही हो वो इस यंत्र के द्वारा मेरी भाषा मे मेरे कानों तक पहुच रही है और जो कुछ मैं अपनी भाषा मे कह रही हूँ वो तुम्हारी भाषा मे तुम तक पहुच रही है. अर्थात तुम जो कुछ सोचती हो उसे मैं समझ लेती हूँ और जो कुछ मैं सोचती हूँ उस से तुम अवगत हो जाती हो."

"तत....तब तो ये जादू है." सिम्मी बोली.

"नहीं.....ये साइन्स है. हम स्पार्सिया के निवासी बहुत विकसित हैं. लेकिन ये तो बताओ ये कौन सा ग्रह है?"

"पृथ्वी...." सिम्मी ने कहा. उसका दिल फिर धड़कने लगा था.

"पृथ्वी....!!!" सुनहरी लड़की ने हैरत से दुहराया. "मैं ये नाम पहली बार सुन रही हूँ. मैं तो समझी थी की मैं रयामी मे पहुच गयी हूँ."

"ओहो....ये रयामी भी कोई ग्रह है?" सिम्मी ने भी हैरत प्रकट किया. "मैं भी ये नाम पहली बार सुन रही हूँ. हमारे सौरमंडल मे इस नाम का कोई ग्रह नहीं है."

"रूको.....मैं बताती हूँ की हमारा ग्रह स्पार्सिया कौन सा है." उसने स्विच बोर्ड के एक बटन पर उंगली रखी......और गोले की छत खुल गयी. सिम्मी को तारों भरा आकाश दिखाई देने लगा.

"वो देखो.." सुनहरी लड़की ने एक तरफ उंगली उठाई..."वो सब से चमकीला ग्रह....सब से बड़ा ग्रह....वही स्परसिया है..."

"अर्रे.....वो तो शुक्र ग्रह है.....उसे इंग्लीश मे वीनस कहते हैं."

"बिल्कुल नया नाम जो मैने कभी नहीं सुना. वो स्पार्सिया है अच्छी लड़की.....मैं वहीं से आई हूँ."

"अच्छा चलो स्पार्सिया ही सही..." सिम्मी ने हंस कर कहा.....लेकिन वो तो वीरान है....उस मे जीवन के लक्षण नहीं पाए जाते..."

"तब तो निश्चित रूप से तुम लोग हम से कम से कम ५०० साल पीछे हो. स्पार्सिया के वैग्यानिक ५०० वर्ष पहले यही कहते थे की रियामी अर्थात तुम्हारा ग्रह निर्जन है. लेकिन अब यही देख लो की मैं रियामी मे मौजूद हूँ. तुम्हारे टेलिस्कोप अपूर्ण होंगे. हमारा ग्रह तो लाखों सालों से आबाद है."

शुक्र ग्रह के बारे मे ये एकदन नयी खोज थी. सिम्मी ने सोचा की अब वो अपने पापा के ग्यान को चैलें्ज कर सकेगी....

"मुझे घोर आश्चर्य है..." सिम्मी बोली.

"नहीं.....तुम्हें हैरत नहीं होनी चाहिए....क्या तुम ने कभी किसी दूसरे ग्रह की यात्रा की है?"

"अभी हम कोई ऐसा रॉकेट नहीं बना सके जिन के द्वारा ऐसी यात्रा संभव हो...."

"बस तो तुम स्पार्सिया से १००० वर्ष पीछे हो. हजार वर्ष पहले स्पार्सिया मे भी ऐसे फेग्राज़ बनाने की समस्सया सामने थी जो दूसरे ग्रहों तक जा सकें."

"फेग्राज़ क्या...??"

"यही.....जिसमे हम अभी बैठे हैं...."

"ओह्ह.....तो ये उड़ने वाली मशीन तुम्हारे स्पार्सिया मे फेग्राज़ कहलाती हैं....."

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Re: प्यासा समुन्दर

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"हां....अब से ५०० वर्ष पहले इसका रूप कुछ और था. उस समय ये फे-पोफ्फ कहलाती थी. लेकिन उस समय वो केवल स्पार्सिया के आक्साश मे उड सकती थी. उस मे इतनी शक्ति नहीं थी की वो स्पार्सिया की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की सीमा को पार कर सके......और आज हम इससे उन सीमाओं से आगे ले जा सकते हैं जहाँ से दूसरे ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव इस पर पड सकता हो........लेकिन मेरा फेग्राज़..."

सुनहरी लड़की के चेहरे पर चिंता के लक्षण दिखाई देने लगे थे.

"क्यों.....क्या बात है?" सिम्मी ने पुछा.

"मैं ये सोच रही हूँ की मेरे फेग्राज़ज़ मे ये खराबी कैसे पैदा हो गयी..."

"कैसी खराबी...?"

"ये रयामी के गुरुत्वाकर्षण मे कैसे प्रवेश कर गया और क्यों प्रभावित हो गया......जबकि ये विशेष रूप से देवलांडो के लिए बनाया गया था. मैं इश्स फेग्राज़ज़ से सैकड़ों बार देवलांडो की यात्रा कर चुकी हूँ. लेकिन अब ऐसा होता है की स्परसिया के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की सीमा से निकलते ही इसकी दिशा रयामी की तरफ हो जाती है."

"देवलांडो क्या है?"

"वो स्परसिया से सब से निकटतम ग्रह है. पता नहीं तुम लोग उसे क्या कहते हो..."

सिम्मी कुच्छ सोच रही थी. फिर उसने पुचछा...."तुम्हारा नाम क्या है?"

"नाम......नाम से तुम्हारा क्या अभिप्राय है?"

"तुम्हें क्या कह कर बुलाते हैं?"

"ओह्ह.....मैं समझ गयी....लोग मुझे पाँच लाख पचपन हज़ार तीन सौ सोलह कहते हैं."

"ये तो नंबर हुआ...." सिम्मी ने हैरत से कहा.

"हां....ये नंबर ही है. मैं समझ गयी कि नाम से तुम्हारा क्या मतलब है. आज से एक हज़ार साल पहले जीवन पद्धति दूसरी थी. उस समय नाम रखे जाते थे. लेकिन उसमे एक झंझट थी. नाम के साथ बाप का नाम आवश्यक होता था. अब उसकी ज़रूरत नहीं. पहले एक ही नाम के दर्ज़नों बाप और बेटे मिल जाया करते थे. इस के कारण व्यवस्था मे कठिनाई होती थी. उस ज़माने मे स्परसिया की समाज़ी ज़िंदगी पाबंदियों से भरी हुई थी. एक मर्द और एक औरत जीवन भर के लिए एक दूसरे के पाबंद होते थे. इसलिए वो अपनी संतानों को अपनी संपत्ति समझ कर उन्हें विशेष नाम दिया करते थे......ताकि मा-बाप के नामों से जुड़े रहें. लेकिन अब उसकी आवश्यकता ही ना रही. शादी ब्याह का रस्म अब स्परसिया मे नहीं पाई जाती. इसलिए नामों की जगह नंबर चल रहे हैं. ये अधिक साइंटिफिक सिस्टम है...."

"घोर शर्म की बात है..." सिम्मी ने क्रोधित स्वर मे कहा.

"बहुत बैक वॉर्ड लगती हो...." सुनहरी लड़की हंस पड़ी. "स्परसिया मे अब से एक हज़ार साल पहले इस प्रकार के बेकार सिस्टम पाए जाते थे. जब तक स्परसिया मे शादी ब्याह की दकियानूसी सिस्टम चलती रही तब तक स्परसिया विकास के क्षेत्र मे आगे नहीं बढ़ सका."
"भला शादी के रस्म और साइंटिफिक डेवेलपमेंट मे क्या संबंध?" सिम्मी का लहज़ा अब भी क्रोध भरा था.

"अफ....सोस....मुझे बेकार ही तुम से मुहब्बत हो गयी है......वरना तुम्हारा मानसिक स्तर मेरे मानसिक स्तर से बहुत नीचे है."

"हुहह.......तुम तो बड़ी बुद्धिमान हो..." सिम्मी चिढ़ गयी.

"तुम से हज़ार गुना अधिक प्यारी लड़की...."

"मेरे पापा बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं......मैं उन्हीं की बेटी हूँ...."

"साइंटिस्ट......बहुत बड़े.....हाहा..." सुनहरी लड़की मज़ाक उड़ाने वाले ढंग से हंस पड़ी.
"तुम मुझे अकारण गुस्सा दिला रही हो..."

"अच्छा अब नहीं दिलाऊँगी..." सुनहरी लड़की अचानक गंभीर हो गयी. "तुम मुझे बहुत प्यारी सी गुड़िया लगती हो......और पिछली रात तुम ने मुझ पर एहसान किया था...."

"नहीं.....वो सोच कर तुम खामोश मत हो जाओ....साबित करो की तुम मुझ से अधिक बुद्धिमान हो...."

"जिस तरह कहो साबित कर दूं..."

"यही समझा दो की शादी ब्याह का सिस्टम वैग्यानिक विकास मे किस प्रकार बाधक है...?"

"इस प्रकार बेहतरीन दिमाग़ पैदा नहीं सकते प्यारी लड़की.....लेकिन मुझे ये बात पूरी बहस के बाद कहनी चाहिए थी." सुनहरी लड़की बोल कर चुप हो गयी. फिर कुछ देर बाद बोली...."हाँ मुझे ज़रा ये बताओ....की तुम ने अपने दोनों कानों मे क्या लटका रखे हैं?"

"अर्रे ये तो झुमके हैं....."

"क्या ये तुम्हारे ग्रह पर सभी लटकाते हैं?"

"हाँ....हाँ.....तुम्हें इस पर हैरत क्यों है? क्या तुम्हारे ग्रह पर ज्वेल्लेरी नहीं पहने जाते?"

"नहीं......पर ये बताओ.....की सारे झुमके ऐसे ही होते हैं जैसे तुम लटकाई हुई हो.....?"

"नहीं....ये सैकड़ों डिज़ाइन के बनते हैं...."

"लेकिन तुम ने विशेष रूप से इसी डिज़ाइन के क्यों लटकाए हैं?"

"अरे मुझे यही पसंद हैं..."

"तुम इन से संतुष्ट हो...?"

"संतुष्ट ना होती तो लेती क्यों?"

"अच्छा.....अगर ऐसे झुमके तुम्हारे कान मे लटका दिए जाएँ जो तुम्हारी च्वायस के अनुसार बदसूरत हों......तो?"

"मैं उन्हें उतार कर फेंक दूँगी..."

"लेकिन क्यों?"

"इसलिए की वो मेरी पसंद के अनुसार नहीं होंगे."

"तो इस से तुम्हारा क्या नुकसान होगा?"

"होगा क्यों नहीं.....मैं उनको लेकर एक टेन्शन मे पड़ी रहूंगी.....शायद उनके कारण किसी दूसरे के मुकाबले मे मुझे हीन भावना भी होने लगे...."

"इस हीन भावना से ही तुम्हारा क्या नुकसान होगा?"

"बहुत बड़ा नुकसान.....मेरे व्यक्तित्व को चौपट कर देगी..."

"ओके.....और जब तुम्हारा व्यक्तित्व बर्बाद हो चुका होगा तब तुम्हारी संतान कैसी होंगी?"

"लीव इट...." सिम्मी झेंप कर बोली...."मैं कुछ नहीं सुनना चाहती अगर तुम इस तरह की बातें करोगी तो मैं चली जऊँगी..."

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Re: प्यासा समुन्दर

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सुनहरी लड़की हँसने लगी. फिर बोली..."अगर तुम अपने हज़्बेंड के मामले मे किसी प्रकार के टेनशन से ग्रसित रहोगी . विश्वास करो की उस टेनशन या उस मानसिक कुंठा की छाया तुम्हारे बच्चों के व्यक्तित्व पर अवश्य पड़ेगी. अगर तुम एक दूसरे से संतुष्ट नहीं हो तो तुम्हारे बच्चे असंतुलित व्यक्तित्व वाले होंगे........और इस तरह विकास रुक सकता है."

"फिर वही.....मैं कहती हूँ चुप हो जाओ...." सिम्मी शर्म से लाल हो गयी.

"तुम मुझ से हज़ारों साल पीछे हो." सुनहरी लड़की मुस्कुराई.."ओके अब हम इस चर्चा को विराम दें तो अच्छा है. वरना हो सकता है की हम दोनों एक दूसरे से बेज़ार हो जाएँ."

"तुम्हारी रंगत सुनहरी क्यों है?" सिम्मी ने टॉपिक बदलते हुए कहा.

"बस हम ऐसे ही होते हैं...हाँ देखो....मैने अपने ग्रह मे किसी से भी इसकी चर्चा नहीं किया है कि मेरा फेग्राज़ मुझे देवलांडो के बजाए रयामी मे ले जाता है......तुम भी मेरा ज़िक्र किसी से मत करना."

"वाहह...." सिम्मी हंस कर बोली..."मैं तो तुम्हें अपने पापा से मिलाना चाहती थी."

"कदापि नहीं.....बिल्कुल नहीं....इसके लिए मुझे कभी मजबूर मत करना.....वरना हमारी दोस्ती सिरे से समाप्त हो जाएगी...और अगर मैने स्पारसिया मे किसी को बताया तो मुझे अपने फेग्राज़ से भी हाथ धोना होगा."

"क्यों?"

"इस पर सरकार क़ब्ज़ा कर लेगी.....और ये पता करने केलिए इसके टुकड़े टुकड़े कर देंगे की ये देवलांडो की बजाए रयामी क्यों पहुँच जाता है."

"हाँ.....मुझे भी बताओ की ऐसा क्यों होता है?"

"मैं नहीं जानती..."

"अच्छा ये तो बताओ की तुम आज भी ठीक उसी जगह कैसे पहुँच गयी जहाँ कल पहुँची थी. जाहिर बात है की अपने ग्रह के गुरुत्वाकर्षण सीमा से निकालने के बाद तुम्हारा ये फेग्राज़ तुम्हारे नियंत्रण से बाहर हो जाता होगा. अर्थात इसकी गति इसकी मेकॅनिकल सिस्टम के अधीन नहीं रह जाती होगी. इसलिए ठीक इसी जगह तुम ने इसे कैसे उतारा?"

"ये इतना आश्चर्या-जनक नहीं है.....प्यारी लड़की जितना की इसका देवलांडो की जगह रयामी पहुँचना. कल मैं समय देख कर चली थी. हमेशा इसी तरह चलना पड़ता है. अतः आज भी ठीक उसी समय रवाना हुई जिस समय कल हुई थी. इस प्रकार मैं ठीक उसी स्थान पर पहुँच गयी जहाँ कल इसी समय पहुँची थी."

"लेकिन क्या ये ज़रूरी है की आज भी तुम्हें यहाँ तक आने मे उतना ही समय लगा हो.......चलो....खैर मैं इसे भी मान लेती हूँ कि दोनों ग्रह एक ही गति से अपनी धूरी पर चक्कर काट'ती हैं. लेकिन क्या उनकी सुर्य की परिक्रमा वाली गति तुम्हारे प्रस्थान करने और पहुचने के स्थानों मे परिवर्तन का कारण नहीं बन सकती थी?"

"यही तो मैं भी सोचती हूँ.....लेकिन ये समस्या अभी तक हल नहीं कर पाई.....अच्छी लड़की अगर मैं संयोग से मिली इस नयी खोज की घोषणा स्परसिया मे कर दूं तो जानती हो....मेरी क्या पोज़ीशन हो जाएगी?"

"तुम्हारी गिनती वहाँ की बड़ी बड़ी हस्तियों मे होने लगेगी."

"लेकिन मैं ऐसा नहीं करूँगी."

"क्यों?"

"केवल तुम्हारे कारण मुझे रयामी के निवासियों से हमदर्दी हो गयी है. अगर स्परसिया वालों को इसका पता चल जाए तो वो देवलांडो की तरह ही रयामी को भी तबाह कर दें. तुम लोग स्परसिया वालों का मुकाबला नहीं कर सकोगे. स्परसिया के केवल 10 आदमी और एक फेग्राज़ पूरे रयामी को उलट पलट कर दे सकते हैं. और तुम मे से जो ज़िंदा बचेंगे वो स्परसिया वालों के गुलाम कहलाएँगे."

"ओह्ह...." सिम्मी की आँखें हैरत और भय से फैल गयीं.

"और अगर तुम ने यहाँ किसी से मेरी चर्चा कर दी तब भी मेरा फेग्राज़ ख़तरे मे पड़ जाएगा. और फिर मैं कभी स्परसिया भी वापस ना जा पाउन्गी."

"हाँ.....तुम मुसीबत मे पड़ सकती हो." सिम्मी चिंतित स्वर मे बोली.

"बस अगर तुम चाहती हो की हम एक दूसरे से मिलते रहें तो मेरे बारे मे किसी को भी ना बताना. अपने पापा को भी नहीं. तुम ने अभी बताया की वो साइंटिस्ट हैं. इसलिए वो भी मेरे फेग्राज़ के लिए ख़तरनाक साबित हो सकते हैं. देखो मैं फिर कहती हूँ.....अगर तुम ने किसी से भी कुछ कहा तो मेरी मौत की ज़िम्मेदार होगी."

"नहीं.....मैं किसी से भी नहीं कहूँगी. चलो मेरे साथ मेरे घर चलो."

"फिर कभी. अब मुझे वापस जाना चाहिए. वरना मैं स्परसिया के किसी वीरान भाग मे जा पहुँचुँगी और फिर मुझे बहुत देर तक इधर उधर भटकना पड़ेगा."

"अच्छा मुझे उस रौशनी के बारे मे भी बताओ जो तुम्हारे हाथ से निकलती है."
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Re: प्यासा समुन्दर

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"हाथ से नहीं निकलती बल्कि ये एक प्रकार का टॉर्च है जो स्परसिया के अंतरिक्ष यात्री इस्तेमाल करते हैं......ये देखो..." सुनहरी लड़की ने दाईं हथेली सिम्मी के सामने कर दी.....और अब सिम्मी ने देखा की उसके हाथ नंगे नहीं थे बल्कि उन पर ग्लव्स थे और उन ग्लव्स का रंग भी सुनहरा ही था. लेकिन हथेली के बराबर हरे रंग का सर्किल दिखाई दे रहा था. तभी लड़की ने फेग्राज़ के भीतर की लाइट ऑफ कर दी. सिम्मी ने देखा की उसकी दाहिनी हथेली के हरे गोले से रौशनी फूटने लगी है. धीरे धीरे फेग्राज़ मे उतनी ही तेज़ रौशनी फैल गयी जितनी कुछ देर पहले फेग्राज़ की लाइट थी.

"कल मुझ पर मुसीबतें टूट पड़ी थीं." सुनहरी लड़की ने कहा. "फेग्राज़ की मशीन खराब हो गयी थी......इस टॉर्च के ग्लो-बॅज़्म्स ठंडे पद गये थे.....और मैं अंधेरे में ठोकर खा कर गिर पड़ी थी. अगर तुम ना होती तो मुझे यहीं आत्महत्या कर लेनी पड़ती. क्योंकि किसी शरारती व्यक्ति की नज़र मुझ पर पड़ जाती तो मैं क्या करती. तुम खुद सोचो की क्या मैं ये फेग्राज़ उसके हाथ लगने देती......और ना वो मुझ पर ही काबू पा सकता."

"लेकिन तुम इसे कैसे बर्बाद कर देती?"

"इसमे चार तोपें भी हैं और काफ़ी मॅगज़ीन्स हर समय उपलब्ध रहते हैं. हलाकी तोपें दूसरे उद्देश्यों केलिए हैं लेकिन इन्हीं से इसे तबाह भी किया जा सकता है. केवल ऑपरेट करते समय कुच्छ चेंज करना पड़ता है. उसके बाद फेग्राज़ज़ का एक टुकड़ा भी किसी के हाथ ना आ सकेगा."

"अब केवल दो बातें और बता दो.....पहली बात ये की ग्लो बॅज़म्स क्या है जो अभी टॉर्च के बारे मे बताते हुए तुम ने कहा था."

"अब पता नहीं तुम लोग उन चमकदार कणों को क्या कहते हो......हम स्परसिया वाले उसे ग्लो-बॅज़म्स कहते हैं. ये गंधक और पारे से बनाए जाते हैं. फिर उन्हें एक रेडियो-एक्टिव पदार्थ से चार्ज किया जाता है. चलो दूसरी बात जल्दी पूछो...मुझे ठीक सातवें मिनट में यहाँ से चल देना है."

"फेग्राज़ मे तोपों की मौजूदगी का मतलब? क्या तुम उन्हें किसी के खिलाफ इस्तेमाल करती हो?"

"नहीं....ये युद्ध केलिए नहीं हैं.....बल्कि उन पर ही अंतरिक्ष की यात्रा डिपेंड करती है. अक्सर हमारे फेग्राज़ ऐसी पोज़ीशन मे पहुँच जाता है जहाँ विभिन्न ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति इस पर प्रभाव डालने लगती हैं. वहाँ फेग्राज़ या एकदम रुक जाता है. न आगे बढ़ सकता है ना पीछे. ऐसे अवसरों पर इन तोपों के धमाकों से फेग्राज़ को आगे बढ़ाते हैं. जैसे ही फेग्राज़ उन शून्य गुरुत्वाकर्षण से की सीमा से निकलता है......किसी एक ग्रह की गुरुत्वाकर्षण शक्ति उस पर सक्रिय(एक्टिव) हो जाती है और वो उसी तरफ खिंचा चला जाता है.

अच्छा बस......मैं फिर आउंगी. तुम्हारे लिए मैं भी बेचैनी महसूस करती हूँ. तुम बहुत प्यारी हो.....काश स्परसिया मे होतीं...."

सुनहरी लड़की ने अपने सर से चमड़े का कवर निकाला और फिर सिम्मी के सर से भी उतार लिया. अगले ही पल वो उसे खूब भींच भींच कर प्यार कर रही थी. इस बार सिम्मी ने भी वैसी ही गर्मजोशी प्रकट किया था.

फिर सिम्मी फेग्राज़ से बाहर आ गयी......और पिछली ही रात की तरह एक बार फिर उसे हवा के ज़ोरदार झोंके का अनुभव हुआ और फेग्राज़ हवा मे बुलंद हो चुका था.


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इमरान ने जूलियाना फिट्ज़वॉटर के नंबर डायल किए लेकिन दूसरी तरफ से कोई रिप्लाइ नहीं मिला. उसने सर को हल्के से झटका जैसे वो इसपर संतुष्ट हो.

फिर दूसरे ही पल उसके निजी फोन की घंटी बजी और वो बेडरूम की तरफ बढ़ा. दूसरी तरफ ब्लैक ज़ीरो था.

"सर रहमान साहब ऑफिस से निकले थे..." ब्लैक ज़ीरो कह रहा था...."लेकिन उनकी गाड़ी खराब हो गयी.....इसलिए उन्हें घर वापस जाने केलिए टेक्सी मंगवानी पड़ी. कैप्टन खावीर उस टॅक्सी का पीछा कर रहा है......और उस से ट्रांसमीटर पर बराबर रिपोर्ट मिल रही हैं. टॅक्सी बहुत तेज़ रफ़्तार से चीथम रोड पर जा रही है......मम....मतलब आप समझ ही गये होंगे....."

"खावीर से कहो की अब वो थ्री फाइव के सेट पर सूचना दे. पाँच मिनट बाद.....जल्दी करो....शायद वो अपनी ही गाड़ी मे होगा...."

"जी हाँ..."

"तब वो थ्री फाइव के सेट पर आसानी से सूचना दे सकेगा....ओके....हरी अप." इमरान रिसीवर रखा और बड़ी तेज़ी से कपड़े चेंज किए और फ्लॅट से बाहर आ कर कार मे बैठा. डैश बोर्ड पर लेफ्ट साइड के एक स्विच दबाने से एक छोटा सा बॉक्स सामने दिखाई देने लगा जिसके उपरी भाग मे जाली लगी हुई थी.....निचला भाग माइक्रोफोन के स्पीकर की तरह था.

कार चल पड़ी. इमरान की निगाह घड़ी पर थी. ठीक 5 मिनट बाद डैश बोर्ड पर प्रकट होने वाले बॉक्स से आवाज़ आई....."हेलो....हेलो....थ्री फाइव पर कौन है?"

"अली इमरान अली इमरान एम एस सी, पी एच डी ओक्सान....."
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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