उसने फेग्राज़ के एक बॉक्स से अपना गाउन निकल कर पहन लिया....फिर बोली.
"ये लो अब देखो मेरी तरफ..."
"अब देखूँगी...." सिम्मी मुस्कुराइ. "हाँ ठीक हैं.....तुम मुझे इस गाउन मे अच्छी लगती हो."
"ये तो अब से 5000 साल पहले का ड्रेस है. मुझे चूँकि ओल्ड फैशन भी रोमांटिक लगता है इस लिए कभी कभी इन ओल्ड फैशन वाले ड्रेस को भी एंजाय करती हूँ. अगर स्परसिया मे मुझे कोई इस ड्रेस मे देख ले तो शायद पागल समझे या भूत समझ कर चीखना शुरू कर दे. मैं अक्सर अपने फ्रेंड्स को इस लबादे (गाउन) से डरा चुकी हूँ."
सिम्मी हँसने लगी. उसकी समझ मे नहीं आ रहा था की अब वो किस टॉपिक पर बात करे. वो तो ये भी भूल गयी थी कि उसने आज उसे अपने बांग्ला पर ले जाने की ठान रखी थी.
उसने चमड़े की उस टोपी की तरफ इशारा कर के कहा...."तुम्हारी ये मशीन बड़ी विचित्र है. आज मैं दिन भर इसी के बारे मे सोचती रही."
"श....ये 'कपल टेगेज' है. ये तो हमारी दो सौ साल पुरानी आविष्कार है......और इसका ये मॉडेल तो बहुत पुराना है. अब तो हम ने ऐसे कपल टेगेज बनाए हैं जिन मे तार जोड़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती. आज मैं वैसा ही एक सेट लाई हूँ. ये तो कल जल्दी मे उठा लाई थी.......और ये यहीं फेग्राज़ मे पड़ा रह गया था. अच्छा अब उस टोपी को उतारो.....मैं तुम्हें लेटेस्ट कपल तागगगे का एक्सपीरियेन्स कराउँगी ..."
सिम्मी ने सर से वो खोल उतार दिया. सुनहरी लड़की पहले ही उतार चुकी थी. अब उसने एक बॉक्स से एक छोटा सा बैग निकाला. ये बैग भी सोने का ही लगता था. उसने उसे खोल कर दो तिकोना प्लेट जैसी कोई वस्तु निकाली. ये भी किसी चमकदार मेटल का बना हुआ था. उन तिकोन के दो सिरों पर पतले पतले तार थे.......और तारों की समाप्ति पर छोटे छोटे हेड-फोन से लगे हुए थे.
उसने एक ट्रेंग्युलर प्लेट उठा कर सिम्मी की नाक की जड़ से ऐसे लगाया की उसके होन्ट छुप गये. तिकोन का तीसरा सिरा जिस पर तार नहीं था नीचे की तरफ लटकता रहा. हेड फोन मे हुक लगे हुए थे जो कानों मे फसा दिए गये. इस प्रकार सिम्मी के दोनों कान और मूह बंद हो गये लेकिन वो आसानी से अपने होंटो को हिला सकती थी.
सुनहरी लड़की ने वैसा ही हेड फोन अपने कानों से लगाए......और उसका मूह भी चमकदार तिकोन से च्छूप गया.
"क्या तुम मेरी आवाज़ सुन रही हो?" तभी सुनहरी लड़की ने पूछा.
"हाँ....सुन रही हूँ." सिम्मी के स्वर मे हैरत थी. क्योंकि दोनों के बीच किसी प्रकार का कॉंटॅक्ट नहीं था. अर्थात दोनों प्लेट किसी प्रकार के तार से नहीं जुड़े हुए थे.
"ये उस से भी अधिक आश्चर्य-जनक है." सिम्मी ने कहा.
"निश्चित रूप से तुम्हारे लिए आश्चर्य-जनक होगा लेकिन हम लोग जो आए दिन देवलांडो की यात्रा करते रहते हैं.....इसे ऐसे ही साथ रखते हैं जैसे सब अपने साथ रुमाल रखते हैं."
"क्यों...? देवलांडो से इसका क्या संबंध?"
"आज से दो सौ साल पहले देवलांडो तक पहुचने की योजना बनाई गयी थी. लेकिन इसकी भी ज़रूरत थी की हम देवलांडो के निवासियों की सोच से अवगत रह सकें.......और जो कुछ सोचें उसे उनके दिमाग़ मे पहुचा सकें. इसलिए एक तरफ तो ऐसे फेग्राज़ बनाने की कोशिश होती रही जो देवलांडो तक पहुचा सकें......दूसरी तरफ सोचों के आदान प्रदान के लिए कपल टेगेज बनाने पर भी प्रयास होता रहा. साधारण सा फेपोफ्फ जो केवल स्परसिया के उपर उर सकते थे.....आज से पाँच सौ साल पहले ही बना लिए गये थे. बाद मे कपल टेगेज भी बन गये जो और फेपोफ्फ को डेवेलप कर के फेग्राज़ मे बदला जा सका."
"तो देवलांडो के निवासियों से तुम लोगों ने कम्यूनिकेशन बना लिया है?"
"हाँ....बिल्कुल....अब तो हम वहाँ की काई भाषा बोल भी सकते हैं.`100 साल पहले हमे अधिकतर कपल टेगेज का ही सहारा लेना पड़ता था. किसी किसी भाग मे अब भी कपल टेगेज की ही मदद लेनी पड़ती है."
"क्यों?"
"क्योंकि उन भागों के लोगों की भाषा हम आज तक नहीं सीख पाए. वो भाषाएँ विचित्र हैं."
"क्या देवलांडो भी तुम्हारी तरह ही विकसित हैं?"
"नहीं......बॅस ये समझो की वो लोग कपड़े बुनना जानते हैं लेकिन सिल कर पहनना नहीं जानते....."
"ओह.....तब तो सच मुझ तुम सब उन पर राज करते होगे...."
"शासन तो तुम लोगों पर भी हो सकती है......लेकिन केवल तुम्हारे कारण मैं उसे पसंद नहीं करूँगी."
"श....याद आया...." सिम्मी अचानक चौंक कर बोली...."आज तो मैं तुम्हें अपने घर ले जाउँगी..."
"नहीं प्यारी लड़की.....मुझे इसपर मजबूर मत करो..."
"क्यों?"
"अगर किसी ने मुझे देख लिए तो मैं ज़िंदा वापस ना जा सकूँगी...."
"तुम डरती क्यों हो? मेरे बांग्ला मे इस समय मेरे अलावा और कोई नहीं है....पापा अपने लैब मे हैं और मैने नौकरों को उनके घरों मे भेज दिया है."
"इसके लिए ज़िद मत करो....मैं नहीं चाहती की तुम किसी मुसीबत मे पड़ जाओ..."
"नहीं.....मैं तो तुम्हें हर हाल मे लेकर जाउँगी..."
"ज़िद मत करो.....पता नहीं वहाँ जाकर कैसी परिस्थिति बन जाए..."
"मुझ पर भरोसा करो....कोई तुम्हारा बाल भी बाका नहीं कर सकेगा."
"अच्छा...." सुनहरी लड़की ने एक लंबी साँस ली....."मगर आज नहीं.....मुझे जल्दी वापस जाना होगा. कल रखो....कल मैं आते ही तुम्हारे साथ चल दूँगी. मुझे भी इच्छा है की मैं रयामी के निवासियों की रहण सहन देखूं......ओके अब मुझे अनुमति दो...."
सिम्मी निराश हो गयी. उसे खुद पर गुस्सा आने लगा की उसने पहले ही ये बात क्यों नहीं कही.
कुछ पल वो चुप चाप बैठी रही फिर फेग्राज़ से बाहर निकल आई.
कुछ ही देर मे फेगराज हवा मे उँचा उठ कर निगाहों से ओझल हो गया.
प्यासा समुन्दर --कॉम्प्लीट हिन्दी नॉवल
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Re: प्यासा समुन्दर
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Re: प्यासा समुन्दर
इमरान ने जुलीना फिट्ज़वॉटर के नंबर डाइयल किए लेकिन दूसरी तरफ से कोई रिप्लाइ नहीं मिला. उसने सर को हल्के से झटका जैसे वो इसपर संतुष्ट हो.
फिर दूसरे ही पल उसके निजी फोन की घंटी बजी और वो बेडरूम की तरफ बढ़ा. दूसरी तरफ ब्लॅक ज़ीरो था.
"सर रहमान साहब ऑफीस से निकले थे..." ब्लॅक ज़ीरो कह रहा था...."लेकिन उनकी गाड़ी खराब हो गयी.....इसलिए उन्हें घर वापस जाने केलिए टॅक्सी मंगवानी पड़ी. कॅप्टन खावीर उस टॅक्सी का पिछा कर रहा है......और उस से ट्रांसमीटर पर बराबर रिपोर्ट मिल रही हैं. टॅक्सी बहुत तेज़ रफ़्तार से चेताम रोड पर जा रही है......म्म....मतलब आप समझ ही गये होंगे....."
"खावीर से कहो कि अब वो थ्री फाइव के सेट पर सूचना दे. पाँच मिनट बाद.....जल्दी करो....शायद वो अपनी ही गाड़ी मे होगा...."
"जी हां..."
"तब वो थ्री फाइव के सेट पर आसानी से सूचना दे सकेगा....ओके....हरी अप." इमरान ने रिसीवर रखा और बड़ी तेज़ी से कपड़े चेंज किए और फ्लॅट से बाहर आ कर कार मे बैठा. डॅश बोर्ड पर लेफ्ट साइड के एक स्विच दबाने से एक छोटा सा बॉक्स सामने दिखाई देने लगा जिसके उपरी भाग मे जाली लगी हुई थी.....निचला भाग माइक्रोफोन के स्पीकर की तरह था.
फिर दूसरे ही पल उसके निजी फोन की घंटी बजी और वो बेडरूम की तरफ बढ़ा. दूसरी तरफ ब्लॅक ज़ीरो था.
"सर रहमान साहब ऑफीस से निकले थे..." ब्लॅक ज़ीरो कह रहा था...."लेकिन उनकी गाड़ी खराब हो गयी.....इसलिए उन्हें घर वापस जाने केलिए टॅक्सी मंगवानी पड़ी. कॅप्टन खावीर उस टॅक्सी का पिछा कर रहा है......और उस से ट्रांसमीटर पर बराबर रिपोर्ट मिल रही हैं. टॅक्सी बहुत तेज़ रफ़्तार से चेताम रोड पर जा रही है......म्म....मतलब आप समझ ही गये होंगे....."
"खावीर से कहो कि अब वो थ्री फाइव के सेट पर सूचना दे. पाँच मिनट बाद.....जल्दी करो....शायद वो अपनी ही गाड़ी मे होगा...."
"जी हां..."
"तब वो थ्री फाइव के सेट पर आसानी से सूचना दे सकेगा....ओके....हरी अप." इमरान ने रिसीवर रखा और बड़ी तेज़ी से कपड़े चेंज किए और फ्लॅट से बाहर आ कर कार मे बैठा. डॅश बोर्ड पर लेफ्ट साइड के एक स्विच दबाने से एक छोटा सा बॉक्स सामने दिखाई देने लगा जिसके उपरी भाग मे जाली लगी हुई थी.....निचला भाग माइक्रोफोन के स्पीकर की तरह था.
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Re: प्यासा समुन्दर
10
नेक्स्ट:
कार चल पड़ी. इमरान की निगाह घड़ी पर थी. ठीक 5 मिनट बाद डॅश बोर्ड पर प्रकट होने वाले बॉक्स से आवाज़ आई....."हेलो....हेलो....थ्री फाइव पर कॉन है?"
"अली इमरान एम एससी, पी एच डी ऑक्सन....."
"आप हैं....!!" दूसरी तरफ से ठहाके के साथ कहा गया...."क्यों श्रीमान....क्या आपके पिताजी भी बिल्कुल आप ही की तरह है?"
"अगर वो मेरी तरह हो गये तो मुझे ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए..."
"वो खुद ही मौत के मूह मे जा बैठे हैं इमरान साहब..."
"इस समय टॅक्सी कहाँ है?"
"चेताम रोड पर...अब मैने अपनी गाड़ी उसके आगे निकाल ली है और बॅक व्यू मिरर मे उसे देख रहा हूँ..."
"ये बहुत अच्छा तरीका है.....पिछा करने का संदेह नहीं हो सकता. लेकिन होशियारी की ज़रूरत है."
"मेरे विचार से ये भाग दौड़ शहर के बाहर ही समाप्त होगी."
"कोई बात नहीं......मैं भी चेताम रोड पहुचने ही वाला हूँ. लेकिन तुम किस दिशा मे जा रहे हो?"
"पूरब की तरफ..."
"मैं समझ गया.....निश्चिंत रहो..."
"लेकिन ये क्या मामला है इमरान साहब? ऐसी परिस्थिति मे जबकि पिच्छली रात रहमान साहब पर हमला हो चुका था......उन्होने इस समय ऐसी असावधानी क्यों बरती. शायद आपको X2 ने सिचुयेशन से अवगत करा दिया होगा. कुच्छ देर पहले तक मैं उसी को सूचना देता रहा हूँ...."
"हां.....मुझे पता है कि उनकी कार खराब हो गयी थी......इसलिए उन्होने टॅक्सी मंगाई. लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि उन्हें इस समय घर ही जाना रहा हो. हो सकता है कि तुम ने केवल शक की बुनियाद पर पिछा शुरू कर दिया हो...."
"रहमान साहब का पिछा तो मैं X2 के आदेश से सुबह ही से कर रहा हूँ. घर से ऑफीस तक भी मैने उन पर नज़र रखी थी. और मैने वो बात चीत भी सुनी थी जो उन्होने ड्राइवर से की थी. इसलिए शक की कोई बात ही नहीं. वैसे भी मैने उनका पिछा ये सोच कर ही आरंभ किया था कि टॅक्सी उन्हें घर ही ले जाएगी."
"तब तो ठीक है. अब मैं चेताम रोड पर पहुच चुका हूँ......पूरब की दिशा मे जा रहा हूँ...."
"चले आइए.....अभी तक पिच्छली कार सीधी ही आ रही है. हम अब तक शहर से लगभग 15 किमी बाहर आ चुके हैं. आप कुच्छ तेज़ गति से आएँ तो अच्छा है."
"ओके...सावधान रहो..."
इमरान की कार की स्पीड पहले से ही काफ़ी अधिक थी. वो सोच रहा था कि अचानक ये कैसा खेल शुरू हो गया.
डॅडी पर हमला क्यों हुआ था.....और हमलावरों को किस चीज़ की तलाश थी? क्या वो कोई डिपार्ट्मेनल सीक्रेट फाइल आदि था....जिसके कारण रहमान साहब ने उसे इसके बारे मे कुच्छ नहीं बताया था. वो सोचता रहा और कार तेज़ी से रास्ता . करती रही. फिर वो शहर की सीमा से निकल आया.
तभी खावीर की आवाज़ उभरी...."टॅक्सी लेफ्ट साइड एक कच्चे रास्ते पर मूड गयी है...."
"अब क्या करोगे?" इमरान ने पुछा.
"अब क्या करना चाहिए?"
"अपनी गाड़ी उसी जगह रोक कर पैदल उधर जाओ जहाँ से टॅक्सी मूडी थी. इसके अलावा और कोई चारा नहीं है. संभव है इस प्रकार कोई उपाए निकल आए. मैं बहुत तेज़ी से आ रहा हूँ...."
"खावीर की आवाज़ फिर नहीं आई. सूरज की अंतिम किरणें उँचे पेड़ों की चोटियों पर नारंगी रंग बिखेर रही थीं.
कुच्छ देर बाद इमरान को खावीर दिखाई दिया जो सड़क के किनारे खड़ा उत्तर दिशा मे देख रहा था. इमरान ने कार उसके निकट रोक दी.
"उधर..." खावीर ने उत्तर दिशा मे एक कचे रास्ते की तरफ इशारा किया......जो लगभग 200 मीटर जाकर राइट साइड मूड गया था.
इमरान ने चारों तरफ निगाह दौड़ाई.....सड़क के दोनों तरफ लगातार जंगल थे.
"इस कच्चे रास्ते पर टाइयर्स के निशान हमे रास्ता बता सकते हैं..." खावीर ने कहा. "और इसी आशा पर मैने यहीं रुकना अच्छा समझा था....वरना कोई दूसरी राह निकालता."
"X2 की पार्टी के कुच्छ लोग सचमुच जीनियस हैं....." इमरान ने एक लंबी साँस खींच कर कहा.
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नेक्स्ट:
कार चल पड़ी. इमरान की निगाह घड़ी पर थी. ठीक 5 मिनट बाद डॅश बोर्ड पर प्रकट होने वाले बॉक्स से आवाज़ आई....."हेलो....हेलो....थ्री फाइव पर कॉन है?"
"अली इमरान एम एससी, पी एच डी ऑक्सन....."
"आप हैं....!!" दूसरी तरफ से ठहाके के साथ कहा गया...."क्यों श्रीमान....क्या आपके पिताजी भी बिल्कुल आप ही की तरह है?"
"अगर वो मेरी तरह हो गये तो मुझे ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए..."
"वो खुद ही मौत के मूह मे जा बैठे हैं इमरान साहब..."
"इस समय टॅक्सी कहाँ है?"
"चेताम रोड पर...अब मैने अपनी गाड़ी उसके आगे निकाल ली है और बॅक व्यू मिरर मे उसे देख रहा हूँ..."
"ये बहुत अच्छा तरीका है.....पिछा करने का संदेह नहीं हो सकता. लेकिन होशियारी की ज़रूरत है."
"मेरे विचार से ये भाग दौड़ शहर के बाहर ही समाप्त होगी."
"कोई बात नहीं......मैं भी चेताम रोड पहुचने ही वाला हूँ. लेकिन तुम किस दिशा मे जा रहे हो?"
"पूरब की तरफ..."
"मैं समझ गया.....निश्चिंत रहो..."
"लेकिन ये क्या मामला है इमरान साहब? ऐसी परिस्थिति मे जबकि पिच्छली रात रहमान साहब पर हमला हो चुका था......उन्होने इस समय ऐसी असावधानी क्यों बरती. शायद आपको X2 ने सिचुयेशन से अवगत करा दिया होगा. कुच्छ देर पहले तक मैं उसी को सूचना देता रहा हूँ...."
"हां.....मुझे पता है कि उनकी कार खराब हो गयी थी......इसलिए उन्होने टॅक्सी मंगाई. लेकिन ये ज़रूरी नहीं कि उन्हें इस समय घर ही जाना रहा हो. हो सकता है कि तुम ने केवल शक की बुनियाद पर पिछा शुरू कर दिया हो...."
"रहमान साहब का पिछा तो मैं X2 के आदेश से सुबह ही से कर रहा हूँ. घर से ऑफीस तक भी मैने उन पर नज़र रखी थी. और मैने वो बात चीत भी सुनी थी जो उन्होने ड्राइवर से की थी. इसलिए शक की कोई बात ही नहीं. वैसे भी मैने उनका पिछा ये सोच कर ही आरंभ किया था कि टॅक्सी उन्हें घर ही ले जाएगी."
"तब तो ठीक है. अब मैं चेताम रोड पर पहुच चुका हूँ......पूरब की दिशा मे जा रहा हूँ...."
"चले आइए.....अभी तक पिच्छली कार सीधी ही आ रही है. हम अब तक शहर से लगभग 15 किमी बाहर आ चुके हैं. आप कुच्छ तेज़ गति से आएँ तो अच्छा है."
"ओके...सावधान रहो..."
इमरान की कार की स्पीड पहले से ही काफ़ी अधिक थी. वो सोच रहा था कि अचानक ये कैसा खेल शुरू हो गया.
डॅडी पर हमला क्यों हुआ था.....और हमलावरों को किस चीज़ की तलाश थी? क्या वो कोई डिपार्ट्मेनल सीक्रेट फाइल आदि था....जिसके कारण रहमान साहब ने उसे इसके बारे मे कुच्छ नहीं बताया था. वो सोचता रहा और कार तेज़ी से रास्ता . करती रही. फिर वो शहर की सीमा से निकल आया.
तभी खावीर की आवाज़ उभरी...."टॅक्सी लेफ्ट साइड एक कच्चे रास्ते पर मूड गयी है...."
"अब क्या करोगे?" इमरान ने पुछा.
"अब क्या करना चाहिए?"
"अपनी गाड़ी उसी जगह रोक कर पैदल उधर जाओ जहाँ से टॅक्सी मूडी थी. इसके अलावा और कोई चारा नहीं है. संभव है इस प्रकार कोई उपाए निकल आए. मैं बहुत तेज़ी से आ रहा हूँ...."
"खावीर की आवाज़ फिर नहीं आई. सूरज की अंतिम किरणें उँचे पेड़ों की चोटियों पर नारंगी रंग बिखेर रही थीं.
कुच्छ देर बाद इमरान को खावीर दिखाई दिया जो सड़क के किनारे खड़ा उत्तर दिशा मे देख रहा था. इमरान ने कार उसके निकट रोक दी.
"उधर..." खावीर ने उत्तर दिशा मे एक कचे रास्ते की तरफ इशारा किया......जो लगभग 200 मीटर जाकर राइट साइड मूड गया था.
इमरान ने चारों तरफ निगाह दौड़ाई.....सड़क के दोनों तरफ लगातार जंगल थे.
"इस कच्चे रास्ते पर टाइयर्स के निशान हमे रास्ता बता सकते हैं..." खावीर ने कहा. "और इसी आशा पर मैने यहीं रुकना अच्छा समझा था....वरना कोई दूसरी राह निकालता."
"X2 की पार्टी के कुच्छ लोग सचमुच जीनियस हैं....." इमरान ने एक लंबी साँस खींच कर कहा.
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Re: प्यासा समुन्दर
रहमान साहब तो तब चौंके थे जब टॅक्सी ग्रानिंग स्ट्रीट से चेताम रोड पर मूडी.
"इधर कहाँ?"उन्होने पुचछा.
"साहब.....उधर सड़क जाम है.....फिल्म वाले शूटिंग कर रहे हैं......आगे से मुघल स्ट्रीट मे मोड़ कर निकाल ले चलूँगा."
रहमान साहब फिर सन्तुस्त हो गये. वो सोच भी नहीं सकते थे कि दिन दहाड़े उनके विरुद्ध किसी प्रकार की साज़िश भी की जा सकती है. उन्होने न्यूयार्क टाइम्स का वीक्ली एडिशन खोल लिया जो आज ही आया था. फिर वो उस मे इस प्रकार खो गये कि समय का भी एहसास ना रहा. लेकिन जब अंधेरा फैल गया तब उन्हें होश आया. और उस अंधेरे का कारण पता चलते ही उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हुआ. वो रात का अंधेरा नहीं था.....बल्कि टॅक्सी का पिच्छला भाग एक ऐसे बॉक्स मे बदल चुका था जिस से शायद उनकी आवाज़ भी बाहर ना जा सकती. उनके और ड्राइवर के बीच एक दीवार सी आ चुकी थी और खिड़कियों के ग्लास भी डार्क हो चुके थे. रहमान साहब ने शीशों पर ही मुक्के बरसाना शुरू कर दिया. मगर वो ऐसे नहीं थे कि चूर चूर हो जाते. उनका हाथ बुरी तरह दुखने लगा. लेकिन अंदर का अंधेरा ज्यों का त्यों ही रहा. वास्तव मे खिड़कियों पर भी ऐसे मेटीरियल की प्लेट्स चढ़ गयी थीं जो शीशे जैसी थीं लेकिन टूट नहीं सकती थीं. और ये परिवर्तन किसी प्रकार की मेकॅनिसम के से हो सकती थी.
कुच्छ देर संघर्ष कर के थक हार कर सीट पर गिर गये. अगर उनकी कलाई पर रेडियम डाइयल वाली घड़ी नहीं होती तो उन्हें समय का भी पता नहीं चल पाता.
कुच्छ देर बाद जब गाड़ी मे झटके लगने लगे तब वो सीधे हो कर बैठ गये. शायद अब टॅक्सी किसी कच्चे रास्ते पर चल रही थी.
15 मिनट बाद टॅक्सी रुक गयी. तभी एक झटके के साथ टॅक्सी का पिच्छला भाग अपने पहले वाली स्थिति मे आ गया. चारों तरफ से उठ चुकी दीवारें नीचे सरक्ति हुई गायब हो चुकी थीं. रहमान साहब ने ड्राइवर की तरफ देखा.....जो व्यंग भरे अंदाज़ मे उन पर हंस रहा था. नीचे दो आदमी दिखाई दिए जिनके हाथों मे राइफल्स थे.
"उतर जाइए सर...." ड्राइवर ने कहा. "पिच्छली रात तो आपने बड़ी फुर्ती दिखाई थी."
रहमान साहब उसे कहर भरी निगाहों से घूरते हुए नीचे उतर गये.
दोनों राइफल्स उनके पीठ से आ लगी......और उन्हें एक दिशा मे चलने पर मजबूर किया जाने लगा.
"तुम लोग बहुत बड़ा अपराध कर रहे हो...." उन्होने क्रोध भरे स्वर मे कहा.
"श्योर.......अगर हम पकड़ लिए गये.....तो ये एक बहुत बड़ा अपराध होगा...." टॅक्सी ड्राइवर ने हंस कर कहा.
रहमान साहब चलते रहे. ये एक पतली पगडंडी थी. केवल एक आदमी के चलने लायक उसकी चौड़ाई थी. दोनों तरफ सरकांडों की घनी झाड़ियाँ थीं. कहीं कहीं पर तो उन्हें सामने की झाड़ियों को हटा कर चलना पड़ रहा था.
रहमान साहब के आगे ड्राइवर चल रहा था......और पिछे एक आदमी राइफल की नाल रहमान साहब की पीछे से सटा कर चल रहा था.
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अभी सूरज डूबा नहीं था......और इतना उजाला तो था ही कि इमरान और खावीर झाड़ियों के बीच उस हथियार-बंद आदमी को देख लेते जो टॅक्सी के निकट खड़ा सिगेरेट जला रहा था. उसने अपनी राइफल टॅक्सी से टिका कर खड़ी कर दी थी. अभी उसने जली हुई तीली को फेका भी नहीं था कि खावीर ने उस पर छलान्ग लगा दी. इस समय इमरान और खावीर दोनों के चेहरों पर नक़ाब थी.
वो आदमी चूँकि बेख़बर था इस लिए सम्भल ना सका और खावीर ने दो ही तीन रद्दो मे उसके कस-बाल निकाल दिए. वो एकदम खामोश था.....और उन दोनों नक़ाब पोशो को इस तरह आँखें फाड़ फाड़ कर देख रहा था जैसे वो आकाश से टपके हों.
"जान से मार दूँगा...." खावीर गुर्राया.
"अरे नहीं.....इसकी ज़रूरत ही क्या है....अगर ये जल्दी से मूह खोल दे..." इमरान ने कहा.
"ये नहीं बताएगा.....हम खुद ही तलाश कर लेंगे...." खावीर ने कहा और उसका गला घोंटने लगा.
"टट....ठहरो...." वो भर्राई हुई आवाज़ मे बोला.
गर्दन पर खावीर की पकड़ ढीली हो गयी. लेकिन वो उसे अपने पैरों से वैसे ही जकड़े रहा.
"तुम क्या चाहते हो?"
"डीजी साहब को किधर ले गये हैं?" खावीर ने पुछा.
"तुम कॉन हो?"
"अर्रे.....मेरे सवाल का जवाब...." खावीर ने फिर गर्दन पर ज़ोर लगाया.
"उधर...." उसने दाएँ तरफ गर्दन घुमा कर कहा. "झाड़ियों मे पगडंडी है....और आगे लकड़ी का मकान है."
"इतनी देर मे इमरान अपनी टाइ से उसके दोनों पैर बाँध चुका था. फिर उसने खावीर की टाइ भी खोली और अपराधी के दोनों हाथ उसके पीठ पर बाँध दिए. जब उन्होने उसके मूह मे रुमाल ठूँसना चाहा तो उसने घिघिया कर कहा...."मैं बिल्कुल शोर नहीं करूँगा...." और अपना मूह कस कर बंद कर लिया. फिर उसका मूह खुलवाने केलिए खावीर को थोड़ा मार पीट भी करना पड़ा.
कुच्छ देर बाद वो उसके मूह मे रुमाल ठूंस कर उसे एक तरफ झाड़ियों मे डाल आए. पगडंडी सरकांडों की झाड़ियों के कारण कष्ट-दायक हो गयी थी. अगर उनके चेहरे भी नक़ाबों मे छुपे ना होते तो उनके चेहरों पर कितने ही खराशें आ जातीं. हाथ मे ग्लव्स तो उन्होने पहले ही से पहन रखे थे.
वो चलते रहे. पगडंडी अभी तक किसी तरफ मूडी नहीं थी. अब अंधेरा फैलने लगा था. झींगुरों की झाएन्न....झाएन्न....से उनके कानों मे सनसनाहट सी होने लगी थी. ठंडक भी कुच्छ बढ़ गयी थी.
पगडंडी की समाप्ति पर ही उन्हें वो लकड़ी का घर दिखाई दिया जिसकी छत सरकांडों की झाड़ियों से अधिक उँची नहीं थीं. यहाँ झाड़ियाँ उँची ज़मीन पर थीं इसलिए वो घर पूरी तरह सुरक्षित समझा जा सकता था. बीच मे थोड़ी सी जगह शायद आने जाने केलिए सॉफ कर लिया गया था.....वरना नीचे ढलान मे भी मकान के आस पास झाड़ियाँ ही झाड़ियाँ बिखरी हुई थीं.
इमरान ने खावीर के कंधे पर हाथ रख दिया.
"ठीक है..." उसने मूड कर धीरे से कहा.
और वो दोनों ज़मीन पर लेट कर बहुत सावधानी से मकान की तरफ खिसकने लगे.
"इधर कहाँ?"उन्होने पुचछा.
"साहब.....उधर सड़क जाम है.....फिल्म वाले शूटिंग कर रहे हैं......आगे से मुघल स्ट्रीट मे मोड़ कर निकाल ले चलूँगा."
रहमान साहब फिर सन्तुस्त हो गये. वो सोच भी नहीं सकते थे कि दिन दहाड़े उनके विरुद्ध किसी प्रकार की साज़िश भी की जा सकती है. उन्होने न्यूयार्क टाइम्स का वीक्ली एडिशन खोल लिया जो आज ही आया था. फिर वो उस मे इस प्रकार खो गये कि समय का भी एहसास ना रहा. लेकिन जब अंधेरा फैल गया तब उन्हें होश आया. और उस अंधेरे का कारण पता चलते ही उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हुआ. वो रात का अंधेरा नहीं था.....बल्कि टॅक्सी का पिच्छला भाग एक ऐसे बॉक्स मे बदल चुका था जिस से शायद उनकी आवाज़ भी बाहर ना जा सकती. उनके और ड्राइवर के बीच एक दीवार सी आ चुकी थी और खिड़कियों के ग्लास भी डार्क हो चुके थे. रहमान साहब ने शीशों पर ही मुक्के बरसाना शुरू कर दिया. मगर वो ऐसे नहीं थे कि चूर चूर हो जाते. उनका हाथ बुरी तरह दुखने लगा. लेकिन अंदर का अंधेरा ज्यों का त्यों ही रहा. वास्तव मे खिड़कियों पर भी ऐसे मेटीरियल की प्लेट्स चढ़ गयी थीं जो शीशे जैसी थीं लेकिन टूट नहीं सकती थीं. और ये परिवर्तन किसी प्रकार की मेकॅनिसम के से हो सकती थी.
कुच्छ देर संघर्ष कर के थक हार कर सीट पर गिर गये. अगर उनकी कलाई पर रेडियम डाइयल वाली घड़ी नहीं होती तो उन्हें समय का भी पता नहीं चल पाता.
कुच्छ देर बाद जब गाड़ी मे झटके लगने लगे तब वो सीधे हो कर बैठ गये. शायद अब टॅक्सी किसी कच्चे रास्ते पर चल रही थी.
15 मिनट बाद टॅक्सी रुक गयी. तभी एक झटके के साथ टॅक्सी का पिच्छला भाग अपने पहले वाली स्थिति मे आ गया. चारों तरफ से उठ चुकी दीवारें नीचे सरक्ति हुई गायब हो चुकी थीं. रहमान साहब ने ड्राइवर की तरफ देखा.....जो व्यंग भरे अंदाज़ मे उन पर हंस रहा था. नीचे दो आदमी दिखाई दिए जिनके हाथों मे राइफल्स थे.
"उतर जाइए सर...." ड्राइवर ने कहा. "पिच्छली रात तो आपने बड़ी फुर्ती दिखाई थी."
रहमान साहब उसे कहर भरी निगाहों से घूरते हुए नीचे उतर गये.
दोनों राइफल्स उनके पीठ से आ लगी......और उन्हें एक दिशा मे चलने पर मजबूर किया जाने लगा.
"तुम लोग बहुत बड़ा अपराध कर रहे हो...." उन्होने क्रोध भरे स्वर मे कहा.
"श्योर.......अगर हम पकड़ लिए गये.....तो ये एक बहुत बड़ा अपराध होगा...." टॅक्सी ड्राइवर ने हंस कर कहा.
रहमान साहब चलते रहे. ये एक पतली पगडंडी थी. केवल एक आदमी के चलने लायक उसकी चौड़ाई थी. दोनों तरफ सरकांडों की घनी झाड़ियाँ थीं. कहीं कहीं पर तो उन्हें सामने की झाड़ियों को हटा कर चलना पड़ रहा था.
रहमान साहब के आगे ड्राइवर चल रहा था......और पिछे एक आदमी राइफल की नाल रहमान साहब की पीछे से सटा कर चल रहा था.
*************
******
अभी सूरज डूबा नहीं था......और इतना उजाला तो था ही कि इमरान और खावीर झाड़ियों के बीच उस हथियार-बंद आदमी को देख लेते जो टॅक्सी के निकट खड़ा सिगेरेट जला रहा था. उसने अपनी राइफल टॅक्सी से टिका कर खड़ी कर दी थी. अभी उसने जली हुई तीली को फेका भी नहीं था कि खावीर ने उस पर छलान्ग लगा दी. इस समय इमरान और खावीर दोनों के चेहरों पर नक़ाब थी.
वो आदमी चूँकि बेख़बर था इस लिए सम्भल ना सका और खावीर ने दो ही तीन रद्दो मे उसके कस-बाल निकाल दिए. वो एकदम खामोश था.....और उन दोनों नक़ाब पोशो को इस तरह आँखें फाड़ फाड़ कर देख रहा था जैसे वो आकाश से टपके हों.
"जान से मार दूँगा...." खावीर गुर्राया.
"अरे नहीं.....इसकी ज़रूरत ही क्या है....अगर ये जल्दी से मूह खोल दे..." इमरान ने कहा.
"ये नहीं बताएगा.....हम खुद ही तलाश कर लेंगे...." खावीर ने कहा और उसका गला घोंटने लगा.
"टट....ठहरो...." वो भर्राई हुई आवाज़ मे बोला.
गर्दन पर खावीर की पकड़ ढीली हो गयी. लेकिन वो उसे अपने पैरों से वैसे ही जकड़े रहा.
"तुम क्या चाहते हो?"
"डीजी साहब को किधर ले गये हैं?" खावीर ने पुछा.
"तुम कॉन हो?"
"अर्रे.....मेरे सवाल का जवाब...." खावीर ने फिर गर्दन पर ज़ोर लगाया.
"उधर...." उसने दाएँ तरफ गर्दन घुमा कर कहा. "झाड़ियों मे पगडंडी है....और आगे लकड़ी का मकान है."
"इतनी देर मे इमरान अपनी टाइ से उसके दोनों पैर बाँध चुका था. फिर उसने खावीर की टाइ भी खोली और अपराधी के दोनों हाथ उसके पीठ पर बाँध दिए. जब उन्होने उसके मूह मे रुमाल ठूँसना चाहा तो उसने घिघिया कर कहा...."मैं बिल्कुल शोर नहीं करूँगा...." और अपना मूह कस कर बंद कर लिया. फिर उसका मूह खुलवाने केलिए खावीर को थोड़ा मार पीट भी करना पड़ा.
कुच्छ देर बाद वो उसके मूह मे रुमाल ठूंस कर उसे एक तरफ झाड़ियों मे डाल आए. पगडंडी सरकांडों की झाड़ियों के कारण कष्ट-दायक हो गयी थी. अगर उनके चेहरे भी नक़ाबों मे छुपे ना होते तो उनके चेहरों पर कितने ही खराशें आ जातीं. हाथ मे ग्लव्स तो उन्होने पहले ही से पहन रखे थे.
वो चलते रहे. पगडंडी अभी तक किसी तरफ मूडी नहीं थी. अब अंधेरा फैलने लगा था. झींगुरों की झाएन्न....झाएन्न....से उनके कानों मे सनसनाहट सी होने लगी थी. ठंडक भी कुच्छ बढ़ गयी थी.
पगडंडी की समाप्ति पर ही उन्हें वो लकड़ी का घर दिखाई दिया जिसकी छत सरकांडों की झाड़ियों से अधिक उँची नहीं थीं. यहाँ झाड़ियाँ उँची ज़मीन पर थीं इसलिए वो घर पूरी तरह सुरक्षित समझा जा सकता था. बीच मे थोड़ी सी जगह शायद आने जाने केलिए सॉफ कर लिया गया था.....वरना नीचे ढलान मे भी मकान के आस पास झाड़ियाँ ही झाड़ियाँ बिखरी हुई थीं.
इमरान ने खावीर के कंधे पर हाथ रख दिया.
"ठीक है..." उसने मूड कर धीरे से कहा.
और वो दोनों ज़मीन पर लेट कर बहुत सावधानी से मकान की तरफ खिसकने लगे.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: प्यासा समुन्दर
11
कमरे मे रहमान साहब सहित छे आदमी थे. उन मे से तीन ने अपने चेहरे नक़ाबों मे छुपा रखे थे. उनमे से दो तो रहमान साहब के साथ ही आए थे. टॅक्सी ड्राइवर के संबंध मे अब उन्हें विश्वास हो चुका था कि वो मेक-अप मे है. दूसरा आदमी जिसके हाथ मे राइफल थी कुच्छ परेशान सा दिखाई दे रहा था. ऐसा लगता था जैसे वो मामले के बारे मे जानता तो है लेकिन इस गैर क़ानूनी गतिविधि का समर्थन दिल से नहीं कर रहा.
टॅक्सी ड्राइवर की पोज़िशन बाकी सबों मे उपर लग रही थी......क्योंकि उनसे बात करते समय उसका लहज़ा आदेशात्मक होता था.
"हां रहमान साहब.....अब क्या इरादा है?" उसने रूखे स्वर मे पुछा.
"मैं तुम्हारी किसी बकवास का उत्तर नहीं दूँगा." रहमान साहब गुर्राए. वो भयभीत नहीं लगते थे. इसके विपरीत उनकी आँखों से कहर झाँक रहा था.
"क्या आप समझते हैं कि यहाँ से सकुशल विदा हो जाएँगे?"टॅक्सी ड्राइवर ने हंस कर कहा.
"तुम कुच्छ शुरू करो.....फिर देख ही लोगे..."
"मुझे मालूम है मिस्टर रहमान की आप अपनी सर्वोत्तम मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के कारण इस पोस्ट तक पहुचे हैं. लेकिन अब बूढ़े हो चुके हैं. आप को गुस्सा अधिक आता है.....और आपका दिमाग़ कुच्छ सोचने समझने के लायक नहीं रह जाता. आप अब उसी समय यहाँ से जा सकेंगे जब उस रेड पॅकेट के बारे मे बता देंगे."
"मैं कह चुका हूँ.....तुम जैसे गधों से बात करना मैं अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझता हूँ."
"तो ठीक है रहमान साहब.....अब आप को हम गधों की लातें भी ज़रूर सहनी पड़ेंगी..."
रहमान साहब खड़े हो गये और ऐसा लगने लगा जैसे वो उस टॅक्सी ड्राइवर से उलझ ही पड़ेंगे.
उनको नक़ाब-पोशो ने पकड़ कर फिर चेर मे धकेल दिया.
टॅक्सी ड्राइवर हंस रहा था. अचानक उसने कहा...."आग दह्काओ.....मैं सीआइबी के डाइरेक्टर साहब की चर्बी निकालूँगा."
रहमान साहब कुच्छ ना बोले. उनके होन्ट भिंचे हुए थे. अंगीठी मे कोयले तो पहले ही से दहक रहे थे और उस मे लोहे की एक सलाख भी पड़ी हुई तप रही थी. शायद उन्होने पहले ही से टॉर्चर करने के जुगाड़ कर रखे थे.....क्योंकि रहमान साहब अपनी ज़िद्दी मिज़ाज केलिए दूर दूर तक प्रसिद्ध थे....और ये भी ज़रूरी नहीं था कि रेड हॉट सलाख से दागे जाने की धमकी उन्हें नर्म कर देती. वो बड़े खरे पठान थे.......और उन्हें इस पर गर्व था कि चंगेज़ ख़ान से लेकर उन तक की नस्ल मे आ रही विशेषताओं को सब ने मेनटेन किया था. किसी दूसरे नस्ल के खून की मिलावट भी नहीं होने पाई थी.
अंगीठी उनके समीप लाई गयी. ऊद्देश्य ये था कि वो तपती हुई सलाखों को देख सकें.
"ये...." रहमान साहब ने घृणा के साथ कहा....."चर्बी अवश्य निकाल लेगी लेकिन ज़ुबान तक शायद इसकी पहुच ना हो सके.......तुम मुझे क्या समझते हो.....चलो उठाओ सलाख. मैं देखूँगा कि मेरे शरीर पर ठंडा होने मे ये कितना समय लेती है. चलो उठाओ.....मेरा मूह क्या देख रहे हो...."
टॅक्सी ड्राइवर पलकें झपकाने लगा. रहमान साहब उसे कहर भरी निगाहों से घूर रहे थे. इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि वो उन पाँचों पर छाये हुए दिखाई दे रहे थे.
चूँकि दिन दहाड़े वो इस प्रकार की हरकत की कल्पना नहीं कर सकते थे. वरना इस समय उनके जेब मे रिवॉल्वर अवश्य होता. और फिर शायद यहाँ इस लकड़ी के घर तक आने की नौबत ही नहीं आती. रहमान साहब कुच्छ इसी तरह के व्यक्ति थे. बुढ़ापे मे भी उनका शरीर शिथिल नहीं हुए थे. वो गुस्से वाले भी थे.....लेकिन गुस्से मे उनकी अकल अपनी जगह पर ही रहा करती थी.
अचानक टॅक्सी ड्राइवर ने मूड कर कहा "दाग दो...."
एक नक़ाब पॉश ने सलाख उठाई. रहमान साहब ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.
लेकिन ठीक उसी समय एक फाइयर हुआ और वो नक़ाब पोश सलाख समेत उच्छल कर दूर जा पड़ा. गोली उसके हाथ पर ही लगी थी.
बाकी लोग अनायास उच्छल पड़े. लेकिन उनके संभलने से पहले ही खिड़की के दोनो पाट खुल गये और दो हाथ दिखाई दिए जिन मे रिवॉलवर थे.
"तुम सब अपने हाथ उपर उठा लो." गूंजिली आवाज़ मे कहा गया. और एका-एक रहमान साहब का चेहरा खिल उठा. क्या अब वो इमरान की आवाज़ भी नहीं पहचान सकते.
उन लोगों के हाथ उपर उठ गये. फिर दरवाज़ा खुला.....और उन्होने एक नक़ाब पोश को कमरे मे आते हुए देखा. ये खाली हाथ था और उसने आते ही उन पाचों की मरम्मत करनी शुरू कर दी. खिड़की मे दो रिवॉलवर अब भी दिखाई दे रहे थे. उन मे से एक ने अपनी जेब मे हाथ डालना चाहा ही था कि उसे भी चीख कर ढेर हो जाना पड़ा. खिड़की से फिर फाइयर हुआ था.
"ये तुम क्या कर रहे हो?" रहमान साहब ने गरज कर कहा...."अगर ये आसानी से काबू मे आ सकें तो क़ानूनन तुम उन पर फाइयर नहीं कर सकते."
"क़ानून की बात तुम मत सुनो दोस्त..." खिड़की से कहा गया. इमरान ने खावीर को संबोधित किया था.
खावीर ने उन की तलाशियाँ लेकर 5 रिवॉलवर्स बरामद किए......और उन्हें अपने क़ब्ज़े मे कर लिया. फिर पाँचो रिवॉलवर और राइफल को उसने खिड़की से बाहर फेक दिया.
अब वो शेष 3 पर पिल पड़ा था. घूँसे, लातें थप्पड़.....सब को उनके हिसाब से दिए जा रहा था.
वो तीनो खामोशी से पिट'ते रहे.....क्यों कि दो का अंजाम वो देख चुके थे. और ये भी जानते थे कि दोनों रिवॉलवर अब भी खिड़की मे मौजूद हैं.
"अब समाप्त करो ये बट्टमीज़ी का तूफान." रहमान साहब ने डपट कर कहा.
"क़ानून अगर खामोश ही रहे तो अच्छा है." इमरान ने खिड़की से कहा.
"खामोश रहो बट्टमीज़...."
"मुझे ऐसी बातों पर गुस्सा नहीं आता.....क्योंकि मुझ तक चंगेज़ ख़ान का खून काफ़ी ठंडा होकर पहुचा है."
रहमान साहब केवल दाँत पीस कर रह गये.
इमरान कहता रहा..."मैने उन दोनों को जान से नहीं मारा.....एक का हाथ ज़ख़्मी हुआ है और दूसरे का पैर. ये शायद बेहोश हो गये हैं. लेकिन अगर मर भी गये तो मेरा क्या बिगड़ेगा."
"मैं तुम्हें अदालत मे घसीटुन्गा." रहमान साहब गरजे. "मेरी उपस्थिति मे क़ानून को तोड़ा गया है."
"आप मेरे खिलाफ कुच्छ भी साबित नहीं कर सकेंगे. मैं जितना मासूम एक साल की उमर मे था उतना ही आज भी हूँ. अतः कृपया अदालत की धमकी ना दीजिए...."
"चुप्प्प्प रहो..."
"हां....ये संभव है..." इमरान ने कहा और चुप हो गया. इतनी देर मे खावीर ने तीनों को रस्सी से बाँध दिया जो शायद रहमान साहब को बाँधने केलिए वहाँ रखी गयी थी.
अब उन्होने रिवाल्वरों को खिड़की से गायब होते देखा और कुच्छ ही देर मे कमरे मे उन्हें दूसरा नक़ाब पोश दिखाई दिया.
"क्या आप टॅक्सी ड्राइव कर सकेंगे?" इमरान ने रहमान साहब से पुछा.
कमरे मे रहमान साहब सहित छे आदमी थे. उन मे से तीन ने अपने चेहरे नक़ाबों मे छुपा रखे थे. उनमे से दो तो रहमान साहब के साथ ही आए थे. टॅक्सी ड्राइवर के संबंध मे अब उन्हें विश्वास हो चुका था कि वो मेक-अप मे है. दूसरा आदमी जिसके हाथ मे राइफल थी कुच्छ परेशान सा दिखाई दे रहा था. ऐसा लगता था जैसे वो मामले के बारे मे जानता तो है लेकिन इस गैर क़ानूनी गतिविधि का समर्थन दिल से नहीं कर रहा.
टॅक्सी ड्राइवर की पोज़िशन बाकी सबों मे उपर लग रही थी......क्योंकि उनसे बात करते समय उसका लहज़ा आदेशात्मक होता था.
"हां रहमान साहब.....अब क्या इरादा है?" उसने रूखे स्वर मे पुछा.
"मैं तुम्हारी किसी बकवास का उत्तर नहीं दूँगा." रहमान साहब गुर्राए. वो भयभीत नहीं लगते थे. इसके विपरीत उनकी आँखों से कहर झाँक रहा था.
"क्या आप समझते हैं कि यहाँ से सकुशल विदा हो जाएँगे?"टॅक्सी ड्राइवर ने हंस कर कहा.
"तुम कुच्छ शुरू करो.....फिर देख ही लोगे..."
"मुझे मालूम है मिस्टर रहमान की आप अपनी सर्वोत्तम मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के कारण इस पोस्ट तक पहुचे हैं. लेकिन अब बूढ़े हो चुके हैं. आप को गुस्सा अधिक आता है.....और आपका दिमाग़ कुच्छ सोचने समझने के लायक नहीं रह जाता. आप अब उसी समय यहाँ से जा सकेंगे जब उस रेड पॅकेट के बारे मे बता देंगे."
"मैं कह चुका हूँ.....तुम जैसे गधों से बात करना मैं अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ समझता हूँ."
"तो ठीक है रहमान साहब.....अब आप को हम गधों की लातें भी ज़रूर सहनी पड़ेंगी..."
रहमान साहब खड़े हो गये और ऐसा लगने लगा जैसे वो उस टॅक्सी ड्राइवर से उलझ ही पड़ेंगे.
उनको नक़ाब-पोशो ने पकड़ कर फिर चेर मे धकेल दिया.
टॅक्सी ड्राइवर हंस रहा था. अचानक उसने कहा...."आग दह्काओ.....मैं सीआइबी के डाइरेक्टर साहब की चर्बी निकालूँगा."
रहमान साहब कुच्छ ना बोले. उनके होन्ट भिंचे हुए थे. अंगीठी मे कोयले तो पहले ही से दहक रहे थे और उस मे लोहे की एक सलाख भी पड़ी हुई तप रही थी. शायद उन्होने पहले ही से टॉर्चर करने के जुगाड़ कर रखे थे.....क्योंकि रहमान साहब अपनी ज़िद्दी मिज़ाज केलिए दूर दूर तक प्रसिद्ध थे....और ये भी ज़रूरी नहीं था कि रेड हॉट सलाख से दागे जाने की धमकी उन्हें नर्म कर देती. वो बड़े खरे पठान थे.......और उन्हें इस पर गर्व था कि चंगेज़ ख़ान से लेकर उन तक की नस्ल मे आ रही विशेषताओं को सब ने मेनटेन किया था. किसी दूसरे नस्ल के खून की मिलावट भी नहीं होने पाई थी.
अंगीठी उनके समीप लाई गयी. ऊद्देश्य ये था कि वो तपती हुई सलाखों को देख सकें.
"ये...." रहमान साहब ने घृणा के साथ कहा....."चर्बी अवश्य निकाल लेगी लेकिन ज़ुबान तक शायद इसकी पहुच ना हो सके.......तुम मुझे क्या समझते हो.....चलो उठाओ सलाख. मैं देखूँगा कि मेरे शरीर पर ठंडा होने मे ये कितना समय लेती है. चलो उठाओ.....मेरा मूह क्या देख रहे हो...."
टॅक्सी ड्राइवर पलकें झपकाने लगा. रहमान साहब उसे कहर भरी निगाहों से घूर रहे थे. इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि वो उन पाँचों पर छाये हुए दिखाई दे रहे थे.
चूँकि दिन दहाड़े वो इस प्रकार की हरकत की कल्पना नहीं कर सकते थे. वरना इस समय उनके जेब मे रिवॉल्वर अवश्य होता. और फिर शायद यहाँ इस लकड़ी के घर तक आने की नौबत ही नहीं आती. रहमान साहब कुच्छ इसी तरह के व्यक्ति थे. बुढ़ापे मे भी उनका शरीर शिथिल नहीं हुए थे. वो गुस्से वाले भी थे.....लेकिन गुस्से मे उनकी अकल अपनी जगह पर ही रहा करती थी.
अचानक टॅक्सी ड्राइवर ने मूड कर कहा "दाग दो...."
एक नक़ाब पॉश ने सलाख उठाई. रहमान साहब ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.
लेकिन ठीक उसी समय एक फाइयर हुआ और वो नक़ाब पोश सलाख समेत उच्छल कर दूर जा पड़ा. गोली उसके हाथ पर ही लगी थी.
बाकी लोग अनायास उच्छल पड़े. लेकिन उनके संभलने से पहले ही खिड़की के दोनो पाट खुल गये और दो हाथ दिखाई दिए जिन मे रिवॉलवर थे.
"तुम सब अपने हाथ उपर उठा लो." गूंजिली आवाज़ मे कहा गया. और एका-एक रहमान साहब का चेहरा खिल उठा. क्या अब वो इमरान की आवाज़ भी नहीं पहचान सकते.
उन लोगों के हाथ उपर उठ गये. फिर दरवाज़ा खुला.....और उन्होने एक नक़ाब पोश को कमरे मे आते हुए देखा. ये खाली हाथ था और उसने आते ही उन पाचों की मरम्मत करनी शुरू कर दी. खिड़की मे दो रिवॉलवर अब भी दिखाई दे रहे थे. उन मे से एक ने अपनी जेब मे हाथ डालना चाहा ही था कि उसे भी चीख कर ढेर हो जाना पड़ा. खिड़की से फिर फाइयर हुआ था.
"ये तुम क्या कर रहे हो?" रहमान साहब ने गरज कर कहा...."अगर ये आसानी से काबू मे आ सकें तो क़ानूनन तुम उन पर फाइयर नहीं कर सकते."
"क़ानून की बात तुम मत सुनो दोस्त..." खिड़की से कहा गया. इमरान ने खावीर को संबोधित किया था.
खावीर ने उन की तलाशियाँ लेकर 5 रिवॉलवर्स बरामद किए......और उन्हें अपने क़ब्ज़े मे कर लिया. फिर पाँचो रिवॉलवर और राइफल को उसने खिड़की से बाहर फेक दिया.
अब वो शेष 3 पर पिल पड़ा था. घूँसे, लातें थप्पड़.....सब को उनके हिसाब से दिए जा रहा था.
वो तीनो खामोशी से पिट'ते रहे.....क्यों कि दो का अंजाम वो देख चुके थे. और ये भी जानते थे कि दोनों रिवॉलवर अब भी खिड़की मे मौजूद हैं.
"अब समाप्त करो ये बट्टमीज़ी का तूफान." रहमान साहब ने डपट कर कहा.
"क़ानून अगर खामोश ही रहे तो अच्छा है." इमरान ने खिड़की से कहा.
"खामोश रहो बट्टमीज़...."
"मुझे ऐसी बातों पर गुस्सा नहीं आता.....क्योंकि मुझ तक चंगेज़ ख़ान का खून काफ़ी ठंडा होकर पहुचा है."
रहमान साहब केवल दाँत पीस कर रह गये.
इमरान कहता रहा..."मैने उन दोनों को जान से नहीं मारा.....एक का हाथ ज़ख़्मी हुआ है और दूसरे का पैर. ये शायद बेहोश हो गये हैं. लेकिन अगर मर भी गये तो मेरा क्या बिगड़ेगा."
"मैं तुम्हें अदालत मे घसीटुन्गा." रहमान साहब गरजे. "मेरी उपस्थिति मे क़ानून को तोड़ा गया है."
"आप मेरे खिलाफ कुच्छ भी साबित नहीं कर सकेंगे. मैं जितना मासूम एक साल की उमर मे था उतना ही आज भी हूँ. अतः कृपया अदालत की धमकी ना दीजिए...."
"चुप्प्प्प रहो..."
"हां....ये संभव है..." इमरान ने कहा और चुप हो गया. इतनी देर मे खावीर ने तीनों को रस्सी से बाँध दिया जो शायद रहमान साहब को बाँधने केलिए वहाँ रखी गयी थी.
अब उन्होने रिवाल्वरों को खिड़की से गायब होते देखा और कुच्छ ही देर मे कमरे मे उन्हें दूसरा नक़ाब पोश दिखाई दिया.
"क्या आप टॅक्सी ड्राइव कर सकेंगे?" इमरान ने रहमान साहब से पुछा.
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
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यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
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