मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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Jemsbond
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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'' जी ... आता हैजी '' उसने गर्वके साथ कहा.


'' अच्छा तो फिर इधर आकर इस पर्चीपर क्या लिखा है जरा पढके तो बता ... '' गणेश अबभी उस पर्चीको पढनेकी कोशीश करते हूए बोला.


उस देहाती लडकेने पहले गणेशके पास जानेके लिए कहांसे रास्ता है यह देखा. गणेशके सामने एकसे सटकर एक ऐसे तिन टेबल रखे हूए थे और गणेश बाए कोनेमें एकदम दिवारसे सटकर बैठा था. गणेशकी तरफ जानेका रस्ता वे तिन टेबल छोडकर एकदम दाए कोनमे था. फिर उस देहातीने गणेशके सामने रखा एक टेबल हटाकर उधर जानेकी कोशीश की. और फिर उसे क्या लगा पता नही एकदमसे अपनी उंची टांग टेबलके उस तरफ रखकर टेबलपरसे उधर चला गया. गणेश ने वह उसका तरीका देखा और हक्का बक्कासा होकर आश्चर्यसे उस लडके की तरफ देखने लगा.


'' अबे पगले हो क्या?'' गणेश गुस्सेसे चिल्लाया. लेकिन दुसरेही पल उस लडकेके चेहरेके भाव देखकर और उसका टेबल लांघनेका तरीका याद कर उसे उस लडकेकी हंसी आ रही थी.


'' अबे क्या येडे आदमी हो... वह उधरका रास्ता छोडकर... सिधे टेबल लांघकर इधर आगया तू...'' गणेश हसते हूए बोला.


उसे क्या बोला जाए? ... हंसे की उसे गुस्सा करे?... गणेशको कुछ सुझ नही रहा था.


तबतक वह लडका वह टेबल लांघकर गणेशके बगलमें खडे होकर उस परचीपर क्या लिखा है यह पढने लगा, '' खेत बोनेका परमान पत्र ''


गणेश बाजारमें दोनो तरफ लगे दुकानोंकी तरफ देखते हूए चल रहा था. सरपे मई महिनेकी धूप होते हूए लोग हरीभरी सब्जी, पके हुए आम, प्याज. लहसून लेकर बाजारमें दुकानें लगाकर बैठे थे. कोई तरकारीका दुकान लगाकर बैठे थे तो कोई सिर्फ धानके, जैसे गेहूं, ज्वार, चावल, ऐसे अलग अलग धानके दूकान लगाकर बैठे थे. आज जादा ना घुमते हूए गणेश सिधा बंडू हॉटेलवालेके टेंट के पास गया. बंडू गरमागरम भजिया, आलूवडे, दालवडे, मिर्च की भजिया, शेव, चिवडा, बुंदी , जलेबी ऐसे काफ़ी खानेकी चिजे उसके पास मिलती थी.
तलनेकी जायकेदार खुशबु, और गरम गरम तेल का मनको मोहनेवाला तडकेका आवाज, और सामने थालीमें रखे हूए कुछ पिले तो कुछ लाल ऐसी खानेकी चिजे. दुकानके सामनेसे गुजरा और उसके मुंहमे पाणी ना आया हो ऐसा बहुतही कम होता होगा. आलूवडेको वे लोग 'आलूबोंडा' कहते. बंडूके हॉटेलमें बना आलूबोंडा गणेशको खुब भाता था.


" आवो जी ... हमरे जैसा आलूबोंडा तुमको कही नाही मिलेगा... वो क्या है नाजी हमरा आलूबोंडा बनानेका तरीका बहुत अलग रही .... ' कहते हूए उसने आलूका बना हुवा गोला बेसनमें डूबोकर भट्टीपर रखे कडईके उबलते हूए गरम तेलमें छोडा. फिर दुसरा, तिसरा ... ऐसे आलूबडेसे कडई भरनेके बाद अपना बेसनसे भरा हुवा हाथ बगलमें रखे पाणीके बर्तनमें डूबोकर धोया. फिर गिले हाथसे पाणी की छीटे कडईमें आलूवडे तल रहे उबलते तेलमें छीडकी. 'तड् तड्' ऐसा आवाज हो गया. यह सब देखनेमेभी गणेशको बहुत मजा आता था. .


" बैठो ... साबजी ... बैठीयो तो ..."


गणेश दुकान के टेंटका कपडा उड ना जाए इसलिए रखे पत्थरपर बैठ गया. आलूवडे तलनेका इंतजार करते हूए वह उन तेलमें उबलते वडोंकी तरफ देखने लगा.


बंडू हॉटेलवालेके साथ दुकानमे उसकी बिवी उसे काममें हाथ बटाती थी. जब वह तलनेका काम करता था तब उसकी बिवी ग्राहक संभालती थी. और जब वह तलनेका काम करती तब बंडू ग्राहक संभालनेका काम करता . गणेशको किसीने कहा था की बंडू हॉटेलवालेने दो शादीया की थी. एक बिवी घर और उसके बच्चे संभालती थी तो दुसरी उसके साथ उसको हाथ बटानेके लीए उसके और उनके हॉटेलके साथ नगर डगर घुमती थी. ... कभी किसी मेलेमें, तो कभी दुसरे गांवके बाजारमें वे जाकर अपना दुकान लगाते थे. पंधरा दिन एक बिवी को लेकर घुमा की वह उसे घर और बच्चे संभालनेके लिए घर छोडता था और अगले पंधरा दिन दुसरे बिवीको लेकर घुमता था. अपने धंदेके अनुसार उसने अपना जिवन मानो ढाल लिया था. वैसे वह दुनियादारीके मामलेमे काफी होशीयार था. उसकी होशीयारी उसके दो शादिया करनेमें देखतेही बनती थी. दुसरी शादी करनेसे एक्स्ट्रा बिवी तो बिवी उपरसे बिना पगारकी नौकर भी उसे मिली थी.


अबतक बडे पुरे तलकर बन चुके थे. बंडू वे तले हूए वडे बाहर निकालकर एक थालीमें डालने लगा.


" दुसरे हॉटेलवाले ... ऐ ऐसे वडे खानेको परोसेंगे ... लेकिन ई तो आधाही काम हो गयाजी ... ."
वह बचे हूए वडे कडईसे थालीमें डालते हूए बोला.


" अब आगेका काम देकहियो ... इस वडे के कानके निचे ऐसे एक एक बजानेकी ... इस झारेसे .. ऐसे ... "
वह अपने हातमे थामा हुवा झारा हरएक वडेपर हल्केसे मारते हूए बोला.


जैसे जैसे वह उस झारेसे उन वडेको मारता था वैसे वैसे वे वडे टूटकर खुलते थे.


" और फिर इस खुले हूए वडोंको फिरसे तेलमें डालियो ... ऐसे ..."


फिरसे वे खुले हूए वडे तेलमें छोडते हूए वह बोला.


" अजी ई है आलूबोंडे बनानेकी असली ढंग... ये हम .... हमरे बापसे ... हमरा बाप ... उसके बाप से ... और उसका बाप ... उसके बापसे ... ऐसे पिढीयोंसे हम सिखत रहत ... ."


यह बंडूकी बकबक हर बार वडे खानेको आनेके बाद गणेशकोही नही तो वडे खानेको आए सारे ग्राहकोंको सुननी पडती. लेकिन सारे लोग ये इतने अच्छे जायकेदार वडे खानेके लालचमें सुन लेते थे. वह फिरसे तेलमें छोडे हूए वडे झारेसे हिला रहा था. बिच बिचमें यूंही बगलमें रखे पाणीके पतेलेमें हात डूबोकर पाणीकी कुछ छिंटे उस उबल रहे तेलके कडईमें छिडकता था. उससे वह 'तड् .. तड्' ऐसा आवाज बार बार आता था. और वह वैसा 'तड् .. तड्' आवाज करकी मानो उसे आदतही हो गई थी. शायद बाहर इतने तपते धुपमें... तपते भट्टीके सामने उतनेही उत्साहके साथ .. हमेशा काम करते रहनेका रहस्य शायद उस 'तड्.. तड्' होनेवाले आवाजमेंही छिपा हो ऐसा गणेशको हमेशा लगता था.

पेट पूजा होने के उपरांत गणेश ने बाज़ार के मैदान के कोने में स्थित , महादेव के मंदिर में जाने का निश्चय किया. वह महादेवीजी का मंदिर देखने में भले ही प्राचीन था परन्तु काफी बड़ा था . मंदिर के आस पास का क्षेत्र भी बड़ा और फूलो व फलो के सघन वृक्षों से घिरा था . इसमें एक विशाल नीम का वृक्ष भी था . गर्मियो में शीतल छाया के लिए इस वृक्ष का बहुत उपयोग होता था . और आज तो बाज़ार का दिन और उसमे भी गर्मियों की लू बरसाती कड़ी धुप , इस वृक्ष के नीचे काफी लोगो की भीड़ जमा हो गयी, कुछ थके हारे लोगों ने तो नींद की झपकी भी ली. मंदिर के प्रवेश द्वार के एकदम सामने एक सार्वजानिक कुआ था. गाँव के अनेक लोग उस कुए से जल भरते थे. मंदिर के तरफ जाते-जाते गणेश को कोने पर एक पान की टपरी दिखाई दी. वह उस पान की टपरी पर ही रुक गया और उस पानवाले को उसने एक बनारसी पान बनाने का आदेश दिया. पान टपरी के पास काफी लोग जमा थे, कोई व्यक्ति बिडी मांग रहा था , तो कोई सिगरेट तो किसी को तम्बाकू की छोटी पुडिया चाहिए थी. पानवाले ने ग्राहकों को निपटाया, और गणेश का बनारसी पान बनाने के लिए हाथ में लिया, गणेश वहीँ उसके सामने खड़ा रहा. पान बनने तक क्या किया जाये ये सोचते हुए गणेश ने सामने की ओर देखा तो उसे पान टपरी के बाजु में ही, मंदिर की दिवार से लगकर, कुछ बच्चे कांच के कंचो का खेल जोरशोर से खेलते दिखाई दिये. गणेश उनकी तरफ बढा. जाते-जाते उसने पान वाले को, पान तैयार होने के बाद, आवाज देने को कहा. कंचे खेलने वाले चार- पाँच बच्चे थे. उनमे से एक बच्चा दिवार से लगभग, दस ग्यारह फूट पर रखे पत्थर के पास गया. उसके हाथ में कम से कम १५-२० कंचे थे. उसने उस पत्थर के पास खड़े रहकर कंचो को दिवार की दिशा में धीरे से फेका. दिवार के पास ही, जमीं में, कंचे के आकार का एक गढ्ढा था. वह गोटिया जैसे ही गढ्ढे की दिशा में लुड़कने लगी , बाकि के बच्चो की सांस ऊपर नीचे होने लगी. क्योकि यदि एक भी गोटी उस खड्डे में गिरती है तो वह बच्चा सभी की सभी कंचे जीत जायेगा. काफी सारी गोटिया उस खड्डे के एकदम नजदीक जाकर घूम रही थी, पर एक भी उस गढ्ढे में नहीं गिरी. फिर उन्ही बच्चे में से एक ने किस गोली को मारना है, यह उस गोटिया फेकने वाले बच्चे को बताया. उस बच्चे ने, हाथ में एक गोटी लेकर, थोड़ी सी एक आँख बंद करके , उस गोटी को लक्ष्य किया और उस गोटी को हाथ में रखी गोटी से फेककर मारा. एकदम से सभी बल्लू बल्लू करके चिल्लाने लगे. उसके द्वारा मारी हुई गोटी, किसी दूसरी ही गोटी को लगी थी. गोटी मारने वाले के चेहरे पर निराशा छा गयी, उसने निराश चेहरे से अपनी निकर की जेब में हाथ डालकर कंचे निकाले और उसमे से तीन कंचे गिनकर खेल में डाल दिए. अब अगला बच्चा खेल खेलने के लिए तैयार हो गया. गणेश को यह सब देखकर आनंद आ रहा था. वह अपनी बचपन की यादो में खो गया. बचपन में वह बच्चो के साथ ऐसे ही कंचे खेलता थाई.अचानक पीछे से आयी आवाज से गणेश होश में आया.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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"पान होई गया साब" पान वाला चिल्लाया था.
उसने उसके पास से पान लिया, पैसे दिए और वह पान मूह में ठूस लिया, फिर उसे एक सिगरेट देने को कहा. सिगरेट जलाकर, पान खाते-खाते गणेश, पेट भरे होने की तृप्त आत्मा के साथ, धीरे धीरे मंदिर के प्रवेश द्वार की तरफ बढने लगा. मंदिर में दो ही द्वार थे. मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश करने के बाद एक बड़ा हॉल था. हॉल में से अहाते की तरफ जाने पर, अहाते के बाहर एक पत्थर का बड़ा सा नंदी रखा था. जिसके पीठ और कंधे पर चढ़कर, गाँव के छोटे-छोटे बच्चे खेलते रहते थे. मंदिर में दो ही द्वार होने के कारण हॉल में काफी आड़ रहती थी. मंदिर के, हॉल के कोने में, आड़ में हमेशा ही ताश के एक दो खेल चलते रहते, और बाजार के दिन तो रहते ही रहते , साथ में, बंडू के होटल के गरम गरम मिर्ची के भजिये का भी बड़े स्वाद के साथ आनंद लिया जाता.

वैसे ताश के खेल रोज ही खेले जाते. गणेश को ताश खेलने में कभी भी रूचि नहीं थी, पर यदि समय न कट रहा हो तो गणेश हमेशा ही अपने आफिस में से उठकर इस मंदिर में आ जाता था. वहा खड़े रहकर उन ताश के पत्तो को खेलते देखना गणेश को सुहाता था.

कभी-कभी तो गणेश को आश्चर्य होता था की गावों में रहने वाले बच्चे इतना कठिन रमी का खेल इतनी आसानी से कैसे खेल लेते है. मतलब इन ग्रामीण बच्चो में भी सर्वसामान्य लोगो की तरह दिमाग होता है , लेकिन वे शायद इसका उपयोग काफी बार गलत या निरर्थक रस्ते के लिए करते है. गणेश मंदिर में ताश के खेल को देखने में तल्लीन था.

तभी कोई दौड़ता हुआ आया-

"ए चलो रे....... उधर बाजार में तमाशा (गोची) होई गवा. "

ताश का खेल आधे में ही रूक गया. सभी ने खेल में लगाये अपने अपने पैसे बाँट कर वापस ले लिए. एक ने ताश का बण्डल जेब में ठूस लिया.

"क्या हुई गवा " किसी ने तो भी चिंतित स्वर में पुछा.

"अबे जल्दी चलियो ......... उहा जाकर ही देख लियो ......... ईहाँ क्या चिल्लावे है ....... और ईहाँ टेम कोनो है. " वो बोला और जैसे हवा की तरह आया था वैसे ही हवा की तरह दरवाजे से बाहर निकल गया. सभी उसके पीछे दोड़ने लगे. गणेश की भी उत्सुकता बढने लगी.

क्या हुआ होगा.........

वह उनके पीछे दोड़कर तो नहीं........... पर जितनी जल्दी हो सके उतने तेज कदमो से चलने लगा.

बाजार में एक स्थान पर बहुत सारी संख्या में लोग जमा थे. मंदिर में ताश खेलने वाले सभी लोग वहा आक़र रूक गए. गणेश भी भीड़ में घुसकर, एड़ी के बल पर, अपने पैर्रो को उचा करके, क्या हुआ ये देखने लगा. भीड़ के बीच में चल रहे द्रश्य को देखकर, गणेश को अपना दिल बैठता हुआ सा महसूस हुआ, उसके हाथ पैर ठन्डे पड़ गए, चेहरा एकदम सफ़ेद हो गया. वहाँ पर मधुरानी एक गवार से दिखने वाले व्यक्ति को अपनी अस्सल कोल्हापुरी चप्पल से बुरी तरह पीट रही थी. वह व्यक्ति अपने दोनों हाथो से उसके मार से बचने का प्रयत्न कर रहा था और उसे जो शर्मिंदगी महसूस हो रही थी वह भी छिपाने का प्रयत्न कर रहा था. जो व्यक्ति मार खा रहा था, वह शायद इन ताश खेलने वालो में से किसी एक का मित्र था. क्योकि इनमे से एक बीच में आया-

"क्या हुई गवा " उसने पुछा.

मधुरानी अत्यंत आवेश और गुस्से में थी. उसी आवेश में उसने, जो बीच में आया उसे भी दो तीन चप्पले जड़ दी.

"मरद - औरत के झगड़े और रास्ते में हो रहे झगड़े के बीच नाहीं पड़ना चाहिए............. ई कहने वाले जूठ नाहीं कहते" बाजु में खड़े एक वृद्ध ने सुझाव दिया।

"मधुबाई..........." वह कहने का प्रयत्न करने लगा.

"मधुबाई......... क्या हुई गवा .... तनिक बताओ तो " बीच में पड़े व्यक्ति ने मार खाकर बड़े ही कातर स्वर में पुछा.

"मरे, ............ की समझता है.… मुर्दे....... भीड़ में से जाते जाते चिमटी ली मरे ने.............. उस चंडाल से कहियो घर जाकर उसकी माँ बहन की चिमटी लेइयो ........."

बीच में पड़ने वाला क्या कहे, उसे समज नहीं आया, फिर भी वह बोला.........

" किहा चिमटी लीयो मधुबाई"

"मरे, अब तुझे की खोलके बताऊ ......... और ई मधुबाई , मधुबाई क्या लगा रखा रहे ....... में क्या तुझे तमाशे में नाचने वाली बाई नजर आवे है "

"वैसा नाहीं मधुबा..... मधु ..... बहन " उसने कहा.

" बहन " उसके मुँह से बहुत मुश्किल से निकला था.

गणेश ने मधुरानी का ऐसा चंडी अवतार पहले कभी नहीं देखा था. उसने मन ही मन में मधुरानी की जो कल्पना की थी उसकी छबी मलिन पड़ गयी. वह एकदम निराश, हताश दिखाई देने लगा.

चार पाच दिनसे गणेश मधुराणी की दुकान की तरफ फटकाभी नही - वैसी उसकी हिम्मत ही ना बनी. एक दो बार खिडकीसे बाहर झांककर देखते वक्त मधुराणीसे नजर मिली थी ... बस उतनीही. तब भी उसे वह बडी बडी आंखोसे उसकी तरफ़ देख रही मिली थी. कभी उसे उन आखोमें
' वह मुझसे ऐसा क्यो बर्ताव करता है? ' ऐसा ऐतराज और गुस्सा दिखता तो कभी जुदाई का गम दिखाई देता. कभी ' मेरी कुछ गल्ती हो तो मुझे माफ़ करदो' ऐसी बिनती दिखती थी.
उसे इस बातका अचरज था की मधुराणी आंखोकी भाषा से इतना सबकुछ कैसे बोल पाती है.... या फिर यह सारे उसनेही अपनी सुविधा की हिसाबसे लगाए मतलब... थे ?

बाहर कुछ गडबड सुनाई दे रही थी इसलिए गणेशने खिडकीसे झांककर देखा.
" ए पांड्या ... जल्दी आई गवा ... उधर एक गेसींग मिल गया है रे " खिडकीके बाहर किसी लडकेने मानो ऐलान कर दिया और वह नदीकी तरफ़ दौड पडा.
उसके पिछे और दो चार लडके दौड पडे. और चबुतरे पर बैठे बुजुर्ग लोग असमंजससे इधर उधर देखने लगे. गणेशका ध्यान मधुराणीकी तरफ़ गया. वह गल्लेपर बैठकर एक लडकेसे गुफ़्तगु कर रही थी. वह लडका नदीकी तरफ़ हाथसे इशारे कर उसे कुछ बोल रहा था. अब वह लडका भी नदीकी तरफ़ दौड पडा. तभी गणेशकी मधुराणीसे नजर मिली. उसने उसे एक मिठीसी स्माईल दी. गणेशके चेहरेपरभी स्माईल झलकने लगी . लेकिन फ़िर अचानक उसे मधुराणीका वह बाजारमें दिखा चंडीका अवतार याद आ गया. झटसे वह खिडकीसे बाजु हट गया.

शामको आसमानमे सुरज डुबनेसे फ़ैली लाली दिख रही थी. नदी के इस तरफ़, गावके बगलमें एक गन्ने का खेत था. वहां एक जगह गणेशको लोगोंकी भिड दिखाई दी तो गणेश भिडकी तरफ़ निकल पडा. अभीभी काफ़ी ग्रामस्थ उस भिडकी तरफ़ दौड रहे थे. गणेशभी अब जल्दी जल्दी चलने लगा.
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अबतो अंधेरा होनेको आया था. इसलिए कुछ लोग लालटेन लेकरभी आ रहे थे. गणेश जब भिडके पास पहुंच गया तब सारे लोग एकदम शांत होगए. कुछ लोग गणेशकी तरफ़ एकटक देखने लगे. तो कुछ लोग भिड्के बिचोबिच देखने लगे. भिडके बिचोबिच वह गुंगा और गुंगी गर्दन झुकाकर खडे थे. तभी गणेशने देखा की एक आदमी आवेशसे उस भिडमें घुस गया और उस गुंगीको पिटने लगा.

" रांड ... हमरेही घर जनमनी थी तोहार ... "

बह उस गुंगीको बेदम मारने लगा. गुंगी जोरजोरसे चिल्लाने लगी. वह चिल्ला रही थी की रो रही थी, समझना मुश्कील था, और भीड का भी उससे कुछ लेना देना नही दिख रहा था. उसपर वह गुंगा गुस्सेसे आग बबुला होकर उस आदमी की तरफ़ लपक पडा. तभी भिडमेंसे दो चार ताकदवर लोगोंने उसे पकड कर रोक लिया.

" ... गावमें मुंह दिखायने लायक नाही रखा तुने... अबही तुमको बहुत बेदम मारुंगा ... और मारते मारते मरही जाए तो बहुतही अच्छा होईगा... तुमरा काला मुंह देखनेसे तो जेलमें जानाही अच्छा होइगा. "

गणेशको अब माजरा क्या है ... थोडा थोडा समझमें आने लगा था. गुंगेने और गुंगीने यहां खेतमें कुछ तो प्रेमप्रताप किया होगा. और उसे मारनेवाला उसका बाप होगा.
गुंगीका बाप - एक तरफ उसका मुंह चल रहा था तो दुसरी तरफ़ उसके हाथ और लात. अब गुंगी निचे जमीनपर गीर गई थी और उसका बाप उसे हाथ और लात दोनोंसे मार रहा था. पहले पहले गणेशको उसका बाप जो कर रहा था वह सही लग रहा था. हर एक हाथ लात की मारसे उसके दिलको एक सुकुनसा महसुस हो रहा था.

सचमुछ उसने उसके बापको गांवमें मुह दिखानेके लिए भी जगह नही छोडी थी....
मै अगर उसके बापके जगह होता तो उसकी जानही लेता ...
गुंगीतो गुंगी उपरसे काफ़ी कारनामेवाली दिखती है ...
दुसरा कोई नही मिला तो उसने बराबर एक गुंगाही ढुंढा ....
अब उसके बापको उसके शादीका काफ़ी मुश्कील होगा ... .
हां कोई बुढा, बेवडा करेगा उससे शादी और उपरसे काफ़ी दहेजभी लेगा...

कुछ क्षण गणेशको वह उस गुंगीका मानो बापही हो ऐसी अनुभूती होती रही.
लेकिन जल्दीही जो हो रहा था वह उसके मन को खटकने लगा. जो हो रहा है वह कोई ठिक नही हो रहा है ऐसा उसे लगने लगा. गणेश अब एक इन्सानियत के नाते सोचने लगा.

होगया होगा बेचारीको उस गुंगेसे प्यार...
उसकाभी शायद इसपर प्रेम होगा ...
अच्छे लोगोंनेही प्यार करने का क्या ठेका ले रखा है... ? ...
क्या ऐसा कही लिखकर रखा है ?...
वे भी हमारे तुम्हारे जैसे ही ना...
उनकीभी भावनाएं हमारे जैसीही ...
उनकीभी हमारे तुम्हारे जैसीही जरुरते ...
सिर्फ फ़र्क यह है की वे गुंगे है ...
और उनका गुंगा होना क्या उनका चुनाव था ...
बेचारोके किस्मत का एक हिस्सा था ...

अचानक गणेश जोशमें आने लगा. उसे गुंगीका बाप जो उसे मार रहा था और वह तडप रही थी - देखा नही जा रहा था. उस गुंगीकी चिखे... और गुस्सेसे भरा चिल्लाना उससे देखा नही जा रहा था.

"रुको... ये क्या कर रहे हो आप लोग ? ... क्या बेचारीको जानसे मारोगे ?..."

एक आवाज आया. गुंगीका बापभी थोडी देरके लीए स्थंभीत हो गया. सब लोग कुछ क्षणके लिए शांत हो गए. गणेशको अपने आपपरही भरोसा नही हो रहा था की वह आवाज उसका खुद का था. गुंगीका बाप अब गणेशको जादा तवज्जो ना देते हूए फिरसे गुंगी को पिटने लगा.

" भाईसाब ... ये क्या कर रहे हो ... मर जाएगी बेचारी "

" बेचारी ?" उसके बापने रुककर बुरासा मुंह बनाकर कहा.

उसका बाप उसे फिरसे पिटने लगा.
अब गणेशभी उन्हे रोकनेके लिए आगे बढ गया.

" बाबूजी ... इस झमेलेमे मत पड़ियो ... नाही ही तो बादमा बहुत पछतावेंगे . .. "

" ईहा सरकार जिस कामके लिए भेज रहत ... उही चुपचाप करियो ... इ गाव के झमेलेमें मत पडियो "
"ई कोय तुमरी तालूकेकी जगा ना होवे ... उहा चलता होयगा ई सब... ईहा नाही चलेगा... "
" ऐसी घटना हमरे गांव मा कभी ना होवे है ... ई पहली बार होएगी ... "
" हम जब बच्चे रहत थे तब एक बार पाटीलके लौंडी को चमारके लौंडे के साथ पकडा रहत . ... पाटीलव उसके टूकडे टूकडे करके कुत्तेको डाला रहा उस वखत . .. " एक बुढा बता रहा था.
" फिरंगी पुलीस आवत रही उस वखत ... पुछताछ कराइ वासते ..."

गणेशने उस बुढेकी तरफ़ देखा. मानो वह अपनी मुक जबानमें उसे पुछ रहा था, ' तो फ़िर?... आगे क्या हुवा ? '
" पुलीस पुछ-पुछ कर थक गई रहत ... वोतो पाटील को कोई लडकी रहत उही साबीत ना कर पावे ... खुनकी बात तो बहुत दूर "
गणेश अचंभीत होकर उस बुढेकी तरफ़ देखने लगा.
सचमुछ ऐसा हुवा होगा क्या ?....
" लेकीन चाचाजी वह बहुत पुरानी बात होगई... अब दुनिया काफ़ी आगे बढ चुकी है ..." गणेश उस बुढे को समझानेकी कोशीश करने लगा.
" भाईसाब ... दुनिया आगे बढ गई इसका ये मतलब नही की गन्नेके के खेतका सहारा लेकर एकदुसरेके उपर चढ जावो ..." एक तिरछी टोपीवाला आदमी बोला.
उस गंभीर वातावरणमेंभी हंसी की हल्की लहर दौड गई. हंसनेवाले खांसकर जवाने लडके थे.
वह सब सुनकर गुंगीका बाप और जादा चिढ गया और पागलसा हो गया. उसने गुस्सेके जोशमे नजदीक पडा हुवा एक बडासा पत्थर दोनो हाथोसे जोर लगाकर उपर उठाया. पत्थर काफ़ी भारी होने से उसे कष्ट हो रहा था. अब उसने वह पत्थर अपने सरके उपरतक उठाया था. और बेदर्दीसे वह पत्थर वह गुंगीके सरपर मारनेही वाला था उतनेमें ...

अब उसने वह पत्थर अपने सरके उपरतक उठाया था. और बेदर्दीसे वह पत्थर गुंगीके सरपर मारनेही वाला था उतनेमें ...


" रुको " एक रौबदार आवाज गुंजा .


सारे लोग स्तब्ध होकर पिछे मुडकर देखने लगे. गुंगीके बापने वह पत्थर चुपचाप एक तरफ फ़ेंक दिया. गणेशनेभी पिछे मुडकर देखा. पिछे गांवका सरपंच खडा था. गणेशने पहले कई बार सरपंचका सात्वीक रुप देखा था. लेकिन आज पहली बार इस तरहके प्रसंगसे खंबीरतासे निबटते हूए गणेशका सरपंचके इस अलग रुपसे परिचय हुवा था.


" रघू ... ई तुम्ररी लडकी है ... इका मतलब ये नाही की तुम कानुन हाथमें लेय लो " सरपंच गुंगीके पास जाकर खडे होते हूए बोला. वहा खडे होकर उसने अपनी पैनी नजर एकबार चारो तरफ़ दौडाई . मानो वे आखोंकी जबांसे वहा उपस्थीत लोगोंसे संवाद साध रहे हो.


इतने लोग यहां पर होते हूए ऐसा जघन्य अपराध कैसे हो सकता है ?....


तुम सब लोगोंकी क्या मती मारी गई ?....


लडकीके बापका मै समझ सकता हूं ...


उसके सर पर गुस्सेका भूत सवार था... .


लेकिन तुम लोग ?...


मानो सरपंच हरएकसे सवाल कर रहा था. उनके शरीरको भेदकर निकलती नजरसे नजर मिलानेकी किसीकी हिम्मत नही बन रही थी. सारे लोगोंने अपनी नजरे निचे झुकाई थी.


" गुंगेका बाप कहां है ? " सरपंचने भिडसे सवाल पुछा.


भिडमें थोडी हलचल दिखाई दी. जहा गुंगेको कुछ जवान लडकोने पकडकर जकड रखा था, वहां पिछेसे एक देहाती सामने आया... डरते हूए ही.


" इहा आओ ... ऐसे सामने... " सरपंचने उसे एक तरफ़, सामने आनेका इशारा किया.


" और तुम... गुंगीका बाप ... रघु... इहा आओ ... ऐसे... तनिक उके बगलमाँ खडे हो जाओ " सरपंचने गुंगीके बापको आदेश दिया.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

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वह गुंगेके बापके बगलमें जाके खडा हो गया. गुंगीका बाप हीन दीन अवस्थामें खडा था. उसने एकबार अपने बगलमें ख़डे गुंगेके बापकी तरफ़ देखा लेकिन उसने उसकी उपस्थितीका ऐहसास दिखानेकीभी जरुरत नही समझी. वह अक्कड और हेकडीके साथ बेफ़िक्रसा खडा था.


" ए ... गुंगेको छोड दियो . ... " सरपंचने अगला आदेश दिया.
गुंगेको पकडे जवानोने उसे छोड दिया.


" उको ईहां खडा करो... उके बापके बगलमाँ .... " सरपंचने उन जवानोंमेसे एक जवानको फ़र्माया.


बह युवक गुंगोको पकडकर उसके बापके बगलमें ले गया.


" तूम तुमरी बेटीको इहा लाकर खडा करीयो " सरपंचने लडकीके पिताको आदेश दिया.


लडकीका बाप धीरे धीरे लडकीके पास गया. गुंगी अभीभी जमिनपर पडी अपना मुंह छुपाकर रो रही थी. उसका बाप उसके पास जाकर खडा हो गया. वह कुछ क्षण हिचकिचाया. उसे समझ नही आ रहा था की मै अब उसे किस हकसे उठाऊ. उसने झुककर उसके कंधेको पकडकर उठाया. वह दर्दसे कराहती हुई उठ गई. उसकी और उसके बापकी एक क्षण के लिए नजरे मिल गई और वह अपने पितासे लिपटकर रोने लग गई. उसके बापकेभी आखोंमे आंसू आगए और अनजानेमें उसका धीरज भरा हाथ उसे सहलाने लगा. वह दृश्य देखकर गणेशका दिलभी भर आया था.


" उको इहा लेकर आओ ...ऐसन " सरपंचने उसे टोकते हूए फ़िरसे आदेश दिया.


रघूने गुंगीको अपनेसे अलग किया और उसके कंधेको पकडकर सामने लेकर गया. वह उसके पहले जगहपर खडा होगया और बगलमें उसने अपने बेटीको खडा किया. गुंगी गर्दन झुकाकर खडी हो गई. इतनी बडी भिडसे आंखे मिलानेकी शायद उसकी हिम्मत नही बन रही थी.


गणेशने पहली बार उस गुंगीको इतने करीबसे देखा था. वह खुबसुरत थी. रंगभी गोरा था. शरीर भी सुडौल था. लेकिन इतने सौदर्यमें एक ही बाधा थी की वह गुंगी थी. अगर उसके गुंगेपन के बारेमें पता नही हो तो कोईभी पहली नजरमें उसे प्रेम कर बैठे ऐसा उसका रुप था.


" अब सारे लोगन ... मेरी बात सुनियो ... " सरपंचने सबको आदेश दिया.


गुंगीका बाप सरपंचकी तरफ़ देखने लगा. गुंगेका बापभी ना चाहकरभी सरपंच की तरफ़ देखने लगा. गुंगी बेचारी अबभी अपनी गर्दन झुकाए खडी थी. और गुंगा कभी सरपंचकी तरफ़ तो कभी गुंगीकी तरफ़ देख रहा था. उसकी गुंगीकी तरफ़ देखनेवाली नजरमें उसको उसके बारेमें लगने वाली चिंता और संवेदना दिख रही थी. बेचारा शायद सचमुछ उससे प्यार करता था. वह गुंगा होकरभी उसकी हर हरकतसे उसका गुंगीके प्रती प्रेम व्यक्त हो रहा था. शायद वह बोल पाता तो बोलकरभी इस तरह व्यक्त नही कर पाता. फिरभी उसके मुक भावनाओंको शायद गुंगीसे जादा कोई नही समझ पाता.


" तुम लोगन को अपनी इज्जत प्यारी रही ? ..." सरपंचाने लोगोंसे सवाल किया.


सिर्फ़ गुंगीके पिताने सरपंचकी तरफ़ आगतिकतासे देखा. गुंगेका बाप सरपंचसे नजरे चुरानेकी कोशीश कर रहा था.


" तुम लोगन को अपने गावकी इज्जत प्यारी रही ? " सरपंचने इसबार गुंगेके पिताकी तरफ़ रुख करते हूए गंभिरतासे पुछा.


गुंगेके पिताने किसी तरह हिचकिचाते हूए सरपंचके नजरसे नजर मिलाई.


" तो फ़िर सुनियो पंचायतका फैसला… मै इहा इसी वक्त कर देता हूं ..."


सारे लोग सरपंच आगे क्या कहता है यह सुननेके लिए बेताब थे.


" इ दोनो की जल्द से जल्द पहला मुहूर्त देखाइके शादी कर डालियो ..."


सारे लोगोंने आश्चर्यसे सरपंचकी तरफ़ देखा.


अरे यह हमारे दिमागमें क्यो नही आया ? .... शायद उनको ऐसा लगा होगा .
सारे लोगोंके नजरोंमे हामी दिखने लगी थी.


" काहे रघू तुम्हे कबूल रही ?" सरपंचने गुंगीके पितासे पुछा.


" जी ... महाराज ... लडकेके बापने हमका सहारा दियो तो बडे उपकार होंईगे हमरे उपर .." गुंगीका बाप गुंगेके बापकी तरफ़ बडी आशासे देखता हुवा बोला.
गुंगेके बापने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नही की. वह सिर्फ़ गहरी सोचमें डूबे जैस दिखने लगा खा.


" काहे पांडूरंग तुमको कबूल रही ?" सरपंचने गुंगेके बापसे पुछा.


" जी सरकार ... जोबी आपकी मर्जी " गुंगेका बाप हडबडाकर बोला.


सारे भिडमें जमे लोगोंके चेहरेपर खुशी झलकने लगी थी. गणेश कौतुहलके साथ सरपंचकी तरफ़ देखने लगा.


इसे कहते है नेतृत्व ...


सचमुछ ... सरपंचजी ... आज मान गए आपको ...


सरपंचने एक चुटकीमें सबको पसंद आएगा ऐसा न्याय और फ़ैसला देकर इतनी बडी समस्या सुलझाई थी.


" अरे फ़िर एक दुसरेका मुंह काहे ताक रहे .... चलो शुरु होई जाओ और कामपर लग जाओ ... हमें जल्द से जल्द शहनाई बजानी है का नाही ? " सरपंचभी खुशीशे बोल उठा और गांव की दिशामें तेजीसे चल पडा. सारे लोगभी अब खुशीसे सरपंचे पिछे पिछे चल पडे.
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Re: मधुरानी –कम्प्लीट हिन्दी नॉवल

Post by Jemsbond »

कुछ उत्साही जवान लडके खुशीके मारे आवेशके साथ घोषणाए देने लगे.


"सरपंच.."


"जिंदाबाद"


"सरपंच'


"जिंदाबाद"


गणेश जितना हो सके उतना मधुराणीके दूकानपर जाना टालने लगा था. लेकिन आज उसकी मजबुरी थी. क्योंकी उसे कुछ सामान खरीदना था और गावमें दुसरा दुकान जो था वहभी बंद था. दुसरा दुकान हर शुक्रवारको बंद रहता था. हर शुक्रवारको उस दुकानदारके शरीरमें गजानन महाराज प्रवेश करता है ऐसा लोग कहते थे.

लेकिन गजानन महाराजका दिन तो गुरुवार....

फ़िर गुरुवार के बजाय...

शुक्रवारको कैसे गजानन महाराज उसके शरीरमें प्रवेश करते है ....

गणेशने उस बात पर काफ़ी रिसर्च करनेकी कोशीश की. काफ़ी लोगोंसे इस सवालका जवाब ढुंढनेकी कोशीश की. लेकिन किसीके जवाबसे गणेशका समाधान नही हूवा. लेकिन एक दिन ऐसेही सोचते हूए गणेशको उसका जवाब मिल गया. गुरुवार साप्ताहिक बाजार का दिन था. उस दिन खरीदारीके लिए आस पडोसके देहातके लोग उजनीमें आते थे. उनकी पुरे हफ़्तेमें जितनी कमाई नही होती होगी उससे कई जादा कमाई उस एक दिनमें होती थी. मतलब गुरवारका दिन दुकान बंद रखना कतई उसके हितमें नही था. इसलिए शायद एड्जेस्टमेंट के तौरपर गजानन महाराज उसके शरीमें गुरवार के बजाए शुक्रवारके दिन प्रवेश करते होंगे. गणेश मनही मन मुस्कुराने लगा.

सामान लेनेके लिए थैली लेकर गणेश बाहर निकल पडा और उसने अपने दरवाजेको ताला लगाया. मधूराणीसे अपनी नजरे टालते हूए वह उसके दुकानमें गया. वह क्या चाहिए यह बताने वाला था इतनेमें वहा एक 3-4 सालका लडका दौडते हूए आगया.

" मासी एक चॉकलेत देइयो ..." एक सिक्का सामने लकडीके पेटीपर रखते हूए वह अपनी तोतली बोलीमें बोला.
मधुराणीने तुरंत उसे उठाकर अपने पास लिया,

" मासीके बछडे ...किते दिनसे आए रहत ... इते दिन कहा था बबुआ .." मधुराणीने उसे अपने पास लेते हूए तिरछी नजरोंसे गणेशकी तरफ़ देखते हूए कहा.

" जावो ... मै किस्से बात नाही करत .... " मधुराणीने इतराते हूए लडकेसे कहा. बिचबिचमें वह तिरछी नजरोंसे गणेशकी तरफ़ देखती.

" मासी चॉकलेत ..." वह बच्चा फ़िरसे बोल उठा.

" देती रे मेरे... लाल ... " मधुराणीने तिरछी नजरसे गणेशकी तरफ़ देखते हूए उस बच्चेको लगातार दो तिन बार चुमा.

मधुराणीने उस लडके को छोड दिया और चॉकलेट निकालकर उसके हाथमें थमा दिया. चॉकलेट हातमें आतेही वह लडका तुरंत दौड पडा.

" ऐसे आवत रहो मेरे बछ्डे .. " मधुराणी जोरसे बोली.

दौडते हूए उस लडकेने मधुराणीकी तरफ़ देखा और वह मुस्कुरा दिया.

" बडा प्यारा बच्चा है जी " मधुराणीने गणेशसे कहा.

मधुराणी गणेशसेही बात कर रही थी इसलिए गणेशको एकदमसे क्या बोला जाए कुछ सुझ नही रहा था.

" हां ना... बच्चे मतलब भगवानके यहांके फ़ुल होते है " गणेश किसी तरहसे बोल पडा.

" भगवानको मानत हो ?" मधुराणीने गणेशसे पुछा.

" वैसे मानताभी हूं ... और नहीभी " गणेशने कहा.

" कभीबी किसी एक छोर को पकड़े रहियो ... दुइयो छोर पे होनेकी कोसीस करियो तो बडी मुस्कील होवे है ... " मधुराणी गणेशके आखोंमे आखे डालकर बोली.

उसके बोलनेमें हलकीसी तकरार महसुस की जा सकती थी. गणेश उसके बोलको समझनेकी कोशीश करने लगा.

" छोडो जान दो... बहुत दिनवा के बाद दिखाई दिए रहे ... कुछ लेनेके लिए आए रहे या फिर ऐसेही " मधुराणीने एकदमसे अपना मूड बदलकर ताना मारा.

" वैसे नही ... मतलब थोडा सामान लेनेका था.... " गणेश हिचकिचाते हूए बोला.

" तो भी मै बोलू... आज बाबू सुरजवा पश्चिमसे कैसे निकल पडा " मधुराणीने फ़िरसे ताना मारा.

" नही वैसे नही ... " गणेश अपना पक्ष मजबुत करनेके उद्देश से कहने लगा.

" आज शुक्रवारको उधरका दुकान बंद होवेगा इसलिए आए होगे " मधुराणीने अपनी नाराजगी जताते हूए कहा.

गणेशको क्या कहा जाए कुछ समझमें नही आ रहा था.
गणेशका बुझसा गया चेहरा देखकर मधुराणी खिलखिलाते हूए बोली.

" तुम तो एकदम नाराज होये जी .... मै तो बस मजाक कर रही थी बाबूजी "

मधुराणी इतने जल्दी जल्दी अपने भाव कैसे बदल पाती है इस बातका गणेशको आश्चर्य था. कही वहभी तो नही गडबडा गई की कैसी प्रतिक्रिया दी जाए.

लेकिन एक बात तो पक्की थी की मेरा रुखा बर्ताव उसे कतई पसंद नही आया था...

गणेशका एकदमसे दिल भर आया. मानो उसका उसके प्रति प्रेम उमडने लगा था और किसी प्रेमीने ठूकराए प्रेमीकाके जैसी उसकी अवस्था लगने लगी थी. अपने दिलका दर्द छिपानेके लिएही शायद वह इतने जल्दी जल्दी अपने भाव बदल रही थी. उसे लगा तुरंत आगे जाकर उसे अपने बाहोमें भर लूं. उसे सहलाऊं... और उसके दिलका दर्द कम करनेकी कोशीश करुं.

शायद मेरा बर्ताव उससे कुछ जादाही रुखा था...

मुझे उसे इस तरहसे एकदम तोडकर नही बर्ताव नही करना चाहिए था. ....

उसपर जी जानसे मरनेवाला उसका सखा इस दुनियामें नही रहा... .

इसलिए शायद वह मुझमें उसका सखा ढुंढनेकी कोशीश कर रही होगी...

लेकिन मै कैसे उसके पतीकी जगह ले सकता हूं.?... .

मेरीभी कुछ मर्यादाएं है...

फ़िरभी अपनी मर्यादाओंमे रहके जितना हो सकता है उतना उसके लिए करनेमें क्या हर्ज है ...
तबतक मधुराणीने गणेशका सामान निकालकर उसके सामने रख दिया.

" ई लो अपना सामान " मधुराणीने कहा.

" लेकिन मैनेतो क्या क्या निकालना है कुछ बोलाही नही ... "

" बाबूजी ... मै क्या आपको एक दो दिनसे जान रही ... तुमको कब क्या चाहिए हो ... मई सब जानत रही ... "

सचमुछ उसे जो चाहिए बराबर वही सामान उसने निकाला था ...

कितनी बारीकियोंसे वह मुझे जानने लगी है ...

यहांतक की साबुन कौनसी लगती है ...

चाय कौनसी लगती है ...

और कितनी लगती है ...

सचमुछ वह मुझसे प्यार तो नही करने लगी ...
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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