हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma) complete

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Jemsbond
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Re: हिन्दी नॉवल -ट्रिक ( By Ved Parkash Sharma)

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"दावे की वजह ।"’



"मेरा मुंह नहीं खुलवा सकेंगे वे !"


"विकास का नाम सुना है?”



'" नाम ही सुना होगा मियां । करतब नहीं देखे होंगे उसके । उसके हथकंडों में फसोगे तो तोता मैना की तरह बोलते चले जाओगे ।"
" तुम तो क्या चीज हो हमें पक्के तौर
पर यकीन है, अगर एक बार . ढंग से उसके चंगुल फंस जाएं तो खुद को वह उगलने से रोक नहीं सकेंगे जो जानते होंगे ।"



" बे फालतू की बहस में मत पडो!" तुगलक भाई ।" 'नुसरत ने कहा…-ईसे क्या पता वे क्या चीज हैं । उन्हें खुद तक पहुचने से रोकने का अब केवल एक ही रास्ता वाकी हैं । इसे रास्ते से हटाना ।"


"प.....प्लीज.. प्लीज ऐसा मत करना ।" असलम दहल उठा ।



"करना तो हम भी नहीं चाहते मगर क्या करें, मजबूरी हे'।"


कहने के साथ नुसरत ने रिवॉल्वर का रुख असलम की तरफ घुमा या ।


छक्के छूट गए असलम के । जल्दी से बोला---"मैं उन्ही को मार डालूगा ।"



"किन्हे? "



"व. . विजय- .....ब- . .विकास को ।"



"अच्छा. . .तू उन्हें मार देगा जिन्हें आज तक यमराज नहीं मार सके । साले…वहकाता है हमें । चकमा देने की कोशिश करता है ।"



"नुसरत भाई ।" तुगलक ने कहा;---"बात में कई किलो वजन है ।"


" कौन सी बात में ।"



"सोचकर देख ! दिमाग भिड़ा । खुद तक उन्हें न पहुचने देने का एक रास्ता ये भी है । ये कि----" उन्हीं सालों को खलास कर दिया जाए ।"




"ये. . .खलास करेगा उन्हें?"



" कभी -कभी चींटी वह काम कर देती है जो हाथी नहीं कर पाता । क्यों असलम मियां !"



'"हां. . .हां ।" असलम जल्दी से कह कर पूरा सिर हिला दिया ।"



" इसकी लफ्फाजी के चक्कर में मत पड़ो तुगलक बहन । बीच में से हटो । खलास करने दो मुझे इसे । "यहीं एक रास्ता है।"



"मैं तुम्हारी इस बात से सहमत नहीं हूं !"



"तो ।"



"एक मौका जरुर मिलना चाहिए इसे! क्यों असलम भाई ।”




"मौका मिला तो क्या कर लेगा ये?"



"में उन्हें खत्म कर दूंगा !" असलम ने जल्दी से कहा । "



“न कर सका तो?"
"त. . .तो?" थोड़ा -सा गड़बड़ाने के वाद असलम ने कहा…"तौ खुद को खत्म कर लूगा मगर उन्हें आप तक नहीं पहुचने दूंगा ।"




"और बता ।"’ तुगलक बोला ---" इससे ज्यादा ओंर क्या कर सकता हैं ये मेरे लिए?"



"तू समझ क्यों नहीं रहा यार । ये इसके बस का रोग नहीं है ?"



"गलत बात है । भला मौका दिए बगैर यह बात इतने दावे के साथ कैसे कहीं जा सकती है?” तुगलक कहता चला गया'-“सोचकर देख । ये जानते हैं तू इन्हें यहां इसी वक्त खलास करने पर आमादा है । जब मरना इनकी नियति बन चुकी है तो क्यों न एक कोशिश करते हुए मरें? क्या पता कामयाबी मिल जाए ।"



"तुगलक सर ठीक कह रहे हैं, मुझे एक मौका जरूर मिलना चाहिए ।” इस वक्त असलम इसके अलावा और कह भी क्या सकता था-"मैं वादा करता हू केवल दो कामों में से एक काम होगा…-या तो वे मारे जाएंगे या मैं !



नुसरत ने ऐसी मुद्रा वना ली जैसे गंभीरता से सोच रहा हो ।
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तुगलक बोला ----" सोच मत यार । दे दे एक मोका । तेरी जेब से क्या जाता है?”



"मैं कुछ और सोच रहा हू।"



'"क. . .क्या?" असलम ने जल्दी से पूछा !"



"क्यों न तुम भी उन्हीं के साथ मारे जाओ?"



"क्या मतलब ?"




“बाह ! तरीका मार्वलस है ।" नुसरत अपने दिमाग की किसी उपज पर मुग्ध सा होता हुआ बोला…"ओर तरीका भी बस ये एक ही है । किसी और तरीके से तुम उन्हें किसी भी हालत से खलास नहीं कर पाओ ।"



" त...तरीका क्या है, मैं वही करूगा'जो आप कहेंगे ।"



"कितने बच्चे हैं तुम्हारे?"


"ज. . जी?” यह सोचकर असलम की खोपडी घूम गई कि अचानक बच्चे बीच में कहां से आगए?

नुसरत ने गुर्राकर पूछा…"जवाब दो कितने बच्चे हैं?"


"नो !"

"बीबियां कितनी हैं?"


"ज . . .जी !"
"दो.....दो ।"


"क्हां रहता है?”



"कराची में ।"



"दोनों एक ही छत के नीचे रहती हैं या अलग-अलगा"


"एक ही घर में । बहने हैं ।"



"तुम्हारे मां बाप हैं?”


" हैं !"


"भाई बहन?”


"दो भाई, तीन बहने ।"


"बहनें शादी शुदा हैं?"



"नहीं । सव छोटी हैं ।" '



" यानी उन सबकी जिम्मेदारी तुम्ही परै है ।"



""..ज जी ।"



"अगर तुम्हें यहीं, इसी वक्त मार दूं तो वे सब बरबाद हो जाएंगे ।".


"..ह हा ।"


"लेकिन अगर तुम कायदे से मरे । वेसे मंरे जैसे मैं चाहता हूं तो वे सब आबाद हो जाएंगे ।"



"में कुछ समझ नहीं पा रहा आप क्या कह रहे हैं ।"


"तहमद उतारो ।"


"ज....जी ।" एक बार फिर चिहुक उठा असलम ।



तुगलक ने कहा…" फिक्र मत करो । निपटने का कोई इरादा नहीं है नुसरत भाई का । उस ढंग से निपटना तो इन्हें आता ही नहीं है जैसे तुम सोच रहे हो । उतार दो तहमद वर्ना इनका मूड बदल सकता से है !




असलम ने तहमद उतार दिया ।



"वाह । अच्छी फिगर है ।" नुसरत ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा और अपने कोट के बटन खोलता बोला--'' अब पै तुम्हें अपनी फिगर दिखाता दूं ।"



असलम का दिमाग बुरी तरह सन्न रहा था ।


उसकी समझ में आकर नहीं दे रहा था…नुसरत आखिर चाहता क्या है?


मगर ।


नुसरत का कोट उतरते ही बात समझ में आने लगी ।



उसकी कमर में एक चौडी बेल्ट वंधी हुई थी ।
बेल्ट का ऐक हिस्सा पारदर्शी प्लास्टिक का था और....... प्लास्टिक के अंदर एक तरल पदार्थ था ! असलम समझ सकता था…वह आरडीएक्स. है । बेल्ट में केवल एक बटन था-लाल-रंग का बटन । उसका मतलब भी असलम समझता था । एक पल-केवल एक पल के लिए उसके चेहरे पर के भाव उभरे। अगले पल-जबड़े कसते चले गए ।



आंखो में अजीब-सी दृढता उभर आई थी ।


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नुसरत ने बहुत सावधानी के साथ बेल्ट अपनी कमर से अलग की, उसे पहनाता हुआ बोला…"मेरा ख्याल है तुम इसका मतलब अच्छी तरह जानते हो ।"



"जानता हूं।" उसके फेस पर अब दृढता नजर अता रही थी ।


"'क्या जानते हो?"



"विजय विकास के पास पहुंचते ही मुझे लाल बटन दबा देना है ।”



"वेरी गुड । तुम भी खल्लास । वे भी खल्लास ।" नुसरत ने क्हा…"अगर मेरे द्वारा निर्धारित किए गए तरीके से मरे दिल में यह पक्का विश्वास लेकर मरना कि पाकिस्तानी सरकार तुम्हारे परिवार के प्रति हर जिम्मेदारी उतने शानदार ढंग से पूरा करेगी जितने शानदार ढंग से तुम खुद कभी पूरा नहीं कर सकते थे ! ये मेरा वादा रहा ! नुसरत अली का वादा ।"



"मेरा भी ।" तुगलक ने कहा ।
दरवाजा खोलते ही नजमा चौंक पडी।



सामने असलम खडा था । वह उसे पहचानती थी । मुंह से निक्ला -----'"त..... तुम?"



“हां मैं ।" असलम ने सपाट लहजे में कहा------"मैँ यहां !"




नजमा संभलकर बोली…"कौन हो तुम?"



"किसी नाटक की जरुरत नहीं है । मैं जानता हूं , तुम जानती हो कि मैं असलम हूँ ।"' वह बेधड्रेक कहता चला चला गया-----"आई-एस-आई का जासूस । वह, जिससे हरशरण शास्त्री मोबाइल पर बात करता था । वह, जिसने मोहम्मद इकराम को नुसरत-तुगलक के पास पहुंचाया है और वह, जिसकी खोज में विजय-विकास पाकिस्तान आए ।"



भौंचवक रह गई नजमा ।



जितने स्पष्ट शब्दों में असलम ने सब कुछ कहा था उन्हें सुनकर भोंचक्क रह भी जाना था उसे ।





कई पल तक तो निर्धारित ही नहीं कर सकी थी उसे ,क्या स्टैंड लेना चाहिए? निर्धारित किया तो झटके के साथ अपने वक्षस्थल से छोटा सा रिवॉत्वर निकाल लिया! अगले पल वह उसे असलम पर तानते हुए गुर्रा उठी ----" यहां क्यों आए हो?"



असलम उसके हाथ में रिवॉत्वर देखकर यूं मुस्कराया जैसे यह असली न होकर, रिवॉल्वर की डमी हो । बोला मैंने सुना-------" तुम और विजय-विकास मेरे फ्लैट पर आने वाले थे । सोचा… कष्ट होगा तुम्हें इसलिए खुद चला आया ।"




नजमा लाख दिमाग घुमाने के बावजूद उसकी दिलेरी का कारण न समझ पा रही थी बोली ----"क्या चाहते हो?"



"जवाब विजय-विकास को दूंगा । उन्हें बुलाओ ।"




नजमा पर कुछ कहते न बन पड़ा । असलम ने पुन: सपाट लहजे में कहा----" अब यह मत कहना, वे यहां नहीं है । ने जानता हु-यह झूठ नहीं चलेगा । वे यहीं हैं और मेरे ख्याल से तुम लोग मेरे ही फ्लैट की तरफ निकलने की तैयारी कर रहे थे "।"



"यह सब कैसे पता लगा तुम्हें?"


"नुसस्त-तुगलक ने बताया ।”



"और तुम यह जानने के वावजूद यहीं जा गए कि तुम हमारे शिकार हो ।"


"खुद नहीं आया । भेजा गया हूं ।"



"किसके द्वारा?"


“नुसरत तुगलक के द्वारा ।"


" क्यो?"


"ताकि तुम्हें. . और तुम्हारे साथ विजय विकास को भी मार डालूं !


रिवॉल्वर पर नजमा की पकड़ मजबूत हो गई। दांत भिंच गए उसके ! गुर्राकर बोली----" तुम समझते हो तुम ऐसा कर सकते हो ।"



"नहीं । मैं ऐसा नहीं समझता ।”


"फ. . .फिर क्या सोचकर चले आए?"


"वह करने का सोचकर आया होता जो कहकर भेजा गया हूं तो यहां आकर यह नहीं बताता कि मुझे किस मकसद से भेजा गया है ।

रिवॉल्वर निकालने का मोका भी नहीं देता तुम्हें । रिवॉल्वर मेरे पास भी है !
दरवाजा खुलते ही शूट कर देता । मेरा दावा है…तुम इतना तक नहीं समझ पाती कि शूट कर किसने दिया । मगर मैंने ऐसा नहीं किया । क्या इसी से जाहिर नहीं है कि मैं यहां उन हरामियों के हुक्म का पालन करने नहीं बल्कि उन्हें सबक लिखाने के मकसद से आया हूं।"



“उन्हें क्यों और कैसे सबक लिखाना चाहते हो तुम?"



"सारो बाते क्या यहीं दरवाजे ही पर खड्री-खड्री पूछ लोगी? तुम्हारे हाथ में रिवॉल्वर है । मैं निशाने पर हू । फिर किस डर से मुझें अंदर नहीं जाने दे रही?"



लाजवाब हो गई नजमा । कुछ देर सोचती रही । फिर बोली----"अपना रिवॉल्वर निकालो ।"



"ओके ।" कहने के साथ उसने जेब से रिबांत्वर निकालकर बेहिचक नजमा को पकड़ा दिया ।


अब ।


नजमा के दोनों हाथों में रिबॉंत्वर थे ।


असलम के लिए रास्ता छोडा ।


वह एक गेलरी थी ।

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गैलरी पार करके ड्राइंग रूम में पहुचे ।


जाहिर है-नजमा प्रतिपल उसे कवर किए रही थी । "एक सोफे की तरफ इशारा करके कहा…"बैठो ।"



वह बेखौफ सोफे पर बैठ गया । बोला…"विजय-विक्रास को बुला दो !


"क्या बाते करना चाहते हो उनसे?"



"तुम भी मौजूद रहोगी । सुन लेना ।"


"नहीं !" नजमा ने सख्ती से कहा-----'' जो बाते करनी हैं मुझसे करो । खुद संतुष्ट होने के बाद उन्हें बुलाऊ'गी ।"



एक पल केवल एक पल के लिए उसके चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे कुछ सोचा हो ।


अगले पल बोला…"ऐसा है तो ऐसा ही सही । बोलो. . .क्या जानना चाहती हो?"



"नुसरत- तुगलक को क्यों और क्या सबक सिखाना चाहते हो?"


उन्होंने मेरे साथ ज्यादती की है । ऐसी ज्यादती शायद वे पहले भी अनेय लोगों के साथ कर चुके हैं । मैं उन्हे यह बताना चाहता है हूं , हर सख्स उनकी-ज्यादती नहीं सह सकता ।"


" कैसी ज्यादती"
,उन्होंने मुझे हरशरण शास्त्री के सम्पर्क में रहने और उससे मोहम्मद इकराम को लेकर अपने एक ठिकाने पर पहुंचाने का काम सौपा था । यह सब मैंने सफलतापूर्वक किया ! मुझे नहीं पता, उन्हें यह कैसे पता लगा कि विजय-विकास हरशरण शास्त्री के मोबाइल के बेस पर मुझ तक पहुचने वाले हैं । उन्हें यह भी पता था --- पकिस्तान में तुम रो की एजेंट हो, और उनकी मदद कर रही हो । वे मेरे फ्लैट पर आए, कहने लगे-तुमने हरशरण शास्त्री से मोबाइल पर सम्पर्क रखा, तुम्हारी इसी बेवकूफी की वजह से विजय-विकास पाकिस्तान पहुच चुके है । कुछ देर बार हम तक भी पहुंचेंगे और उसके बाद तुम्हारे जरिए हम तक पहुघ जाएंगे, इसलिए बीच की कड़ी अर्थात तुम्हें खत्म कर देना बहुत जरुरी है, मैं घबरा गया । घबराकर कहा…मैं फोन के जरिए हरशरण शास्त्री के सम्पर्क में रहा, इसमें मेरा क्या कसूर है? तुम्ही लोगों ने उसके सम्पर्क में रहने के लिए कहा था । मगर, मेरी इस तर्कपूर्ण बात का उन पर कोई असर नहीं हुआ, कहने लगे-हसने तुमसे हरशरण शास्त्री के सम्पर्क में रहने के लिए कहा था । अपने पलेट का फोन इस्तेमाल करने के लिए नहीं ।"



अब. . .भला उन्हें कौन समझाता सम्पर्क में रहने का इससे बेहतर और क्या तरीका था । कोई भी तर्क सुनने को तैयार नहीं थे वे । दिल से गलती न मानते हुए भी मुझे कहना पड़ा----" ठीक है, मैं अपनी गलती मानता हूं मगर विजय विकास को आप तक पहुंचाने का एक रास्ता और भी हैं यह कि विजय-विकास का ही खात्मा कर डालू।' उन्हें विल्कुल यकीन नहीं था मैं ऐसा कर सकता हूं । बड़ी मुश्किल से यह मौका आखिरी मौका कहकर दिया है । कहा है…"यदि तुम उन्हें खात्म करने में कामयाब न हो सके तो खुद को खत्म कर लोगे, मगर उन्हें मोहम्मद इकराम का पता हरगिज नहीं बताओगे' ।"



"जबकि तुम हमे उसका पता बताने को तैयार हो !"



“उन्हे सबक सिखाने का मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है ।"



'तो बताओ फ्ता ।"


"विजय-विकास को बताउंगा ।"


" मुझे बताना होगा ।"


"नहीं 1मैं ऐसा नही करूंगा !" दुढ़तापूवंक कहने के साथ वह न केवल सोफे से खड़ा हो गया बल्कि नजमा की आंखो से आंखें डालकर

बौला----" तुम्हारे एक नहीं, दोनों हाथ में रिवॉल्वर है । चाहो तो मुझे शूट कर सकती हो !"


"मगर तुम्हें पता नहीं बताउूंगा ! इस कंडीशन में मेरी मौत से तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा !"
" चाहो तो शूट कर सकती हो । मगर तुम्हें पता नहीं बताऊंगा । इस कंडीशन में मेरी मौत से तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा ।"


"जिद की वजह?"


"कुछ भी समझ तो । मैंने फेसला कर लिया है तुम्हें नहीं बताऊंगा तो नहीं बताऊंगा ।" एक-एक लपज पूरी दुढ़ता के साथ कहता चला गया वह---- " वैसे मेरी समझ में नहीं आ रहा । मेरी तरफ़ से डर क्या है तुम्हें जबकि मेरा रिवॉल्वर भी तुम्हारे हाथ में है ।"



असलम के लहजे ने नजमा को समझा दिया-सह अड़ चुका है । एक पल. . केवल एक पल नजमा ने सोचने में गंवाया । अगले पल असलम को कवर किए रखकर विजय को आवाज लगाई ।



प्रत्युत्तर में विजय की आवाज उभरी ।


नजमा ने उसे ड्राइंग सम में आने को कहा ।


असलम की आंखों में वड़ी ही जबरदस्त चमक उभरी । वह वही चमक थी जो आदमी की आंखों में अक्सर अपनी मंजिल को सामने देखकर उभरती है और. . .विजय को कमरे में प्रविष्ट होता देखकर तो वह चमक उस नागिन की आंखों की चमक में तब्दील हो गई जिसके सामने उसके नाग का हत्यारा खड़ा हो ।




कमरे का दृश्य देखते ही विजय ठिठका ।



चौंके हुए स्वर में पूछा…“ये क्या माजरा है मोहतरमा? कौन हैं ये महाशय?"



असलम ने कहना चाहा…"मैं असलम हू. . . ।"



"इसका काहना है, ये यहाँ हमारी मदद करने और नुसरत तुगलक से अपने ऊपर की गई ज्यादती का बदला लेने आया है । मोहम्मद इकराम का पता बताने को तैयार है !"

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"बडी अच्छी बात हैं मियां !" आगे वढ़ते विजय ने कहा----"बताओं मंत्री का पता ।"



असलम का जी चाहा-अपना हाथ लाल बटन पर ले जाए ।


उसे दबा दे । मगर नहीं, दिमाग ने कहा --" ऐसा करना जल्दबाजी होगी । काम अधूरा होगा । विकास को भी उसके आसपास ही होना चाहिए मुंह से सवाल निकला --"बिकास कहां हैै ?"

"गुल्ली-डंडा खेल रहा है ।" विजय ने उसकी आंखी से झांकते हुए कहा---- " फिक्र| मत करो । मंत्री का पता जानने के लिए हम अकेले ही काफीहैं?"
असलम के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे ।


वह फैसला न कर सका बटन दबा दे या नहीं?



कुछ कहने के लिए उसने मुंह खोला ही था कि ---- "गुरु ।" कहता हुआ विकास ड्राइंग रुम में दाखिल हुआ ।



असलम की आंखी में वड़ी ही जबरदस्त चमक जगमगाई ।



विजय ने उसे 'मार्क' किया ।


विकास, जो कमरे का दृश्य देखकर ठिठक गया था । बोला ---" सब क्या है गुरु?


" कौन है ये?"



"अच्छा हुआ विकास तुम आ गए ।" कहते हुए विकास की तरफ बढते हुए असलम का दायां हाथ वड़ी तेजी से अपनी बेल्ट की तरफ़ बढा था मगर उससे कहीं ज्यादा फुर्ती विजय ने दिखाई ।



जाने कब उसने जेब से रिवॉल्वर निकालकर असलम प्रर गोली चला दी !




यह गोली उसकी गुदूदी में घुसने के बाद सिर के चीथड़े उड़ाती हुई मस्तक से बाहर निकल गई !



मगर ।



उसे लगने वाली वह एक मात्र गोली नहीं थी ।


एक और गोली थी जो असलम के ठीक सामने से चली और उसके दिल में जा धंसी ।



उस गोली ने विजय-विकास और नजमा को भी चौंका दिया ।


नजमा तो ईतनी जल्दी बौखला ग़ई कि जिस दिशा से असलम के सीने में लगी गोली चली थी , अपने दोंनो हाथ उधर घुमा कर अधां धुंध फायरिंग करती चली गई ! सारी गोलिंयां किचन लान की तरफ खुलने बाली खिड़की से टकराई !


परंतु !


उधर से कोई चीख नहीं उभरी !


परंतु ।

उधर से कोई चीख नहीं उभरी ।


असलम के सीने में लगी गोली उसी खिडकी के पार से चली थी । चलाने वाला शायद नजमा द्वारा की गई फायरिंग से पहले ही खिडकी के नीचे बेठ चुका था ।


बुरी तरह लहूलुहान असलम उस ववत गर्म रेत पर पड़ी मछली की मानिंद छटपटा रहा था ।


उसके प्राण---पखेरू बस उडने ही वाले थे, इसके बावजूद हाथ को बेल्ट तक पहुचाने की कोशिश कर रहा था ।
खिड़की के पार से किसी ने चीखकर कहा…"ह्यथ अपने पेट तक न ले जा पाए वह ।"


विकास ने झपटकर उसका हाथ पकड़ा और उमेठता चला गया ।



असलम के हलक से चीख निकली और वह उसकी अंतिम चीख थी !


वह ठड़ा पड़ चुका था ! सारी पीड़ा , सारी दुश्वारीयों से निजात मिल चुकी थी !



अब जाकर उस पर से तीनों का ध्यान हटा ।


खिड़की पर केंदित हुआ । उस खिडकी पर जिसके पार वह शख्स था जिसने असलम के सीने पर गोली चलाई थी ।


************


तीनों का दिल धाड़-धाड़ करके बज रहा था !


दिमागों में एकही जैसे सवाल घुमड़ रहे थे ।



"कौन है वहां?"


"असलम के सीने में गोली क्यों पेवस्त की उसने?"


"यह तो एक किस्म से उनकी मदद हुई ।"


यहाँ ।


पाकिस्तान में अचानक उनका मददगार कहाँ से पैदा हो गया?


एक पल सिर्फ एक पल के लिए तीनों की नजरें मिली । फिर सबका प्रतिनिधित्व करते हुए विजय ने ऊची अवाज में क्रहा --" तुंम हो कौन प्यारे?"


"सबके न्यारे।" खिड़की के पीछे से आवाज उभरी -- " तुम्हारे लूमड़ प्यारे ।"


"ल॰ .लूमड़ ।" विजय चौक पडा ।



विकास के मुह से हैरानी में डूबा स्वर निकला-----" अलफा'से गुरु और यहां?"


हाँ ! हम यहाँ ।" इन शब्दों के साथ खिड़की के पार सचमुच अलफांसे नजर आया !


उसके होंठों पर मुस्कान थी !


अलफांसे की चिरपरचित मुस्कान !


वही , जो अक्सर उसके होंठों पर सजी रहा करती थी !


अपने हाथ में मौजुद रिवॉल्वर को जैकेट की भीतरी जेब में ठूंसता हुया बह खिड़की को पार करके कमरे में आ चुका था !

नजमा उसे देखती रह गई थी ।


उसे---जिसका नाम अलफांसे था ।

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