चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

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Jemsbond
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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गाडी की रफ्तार यदि ज्यादा होती तो निश्चित रूप से उलट जाती----इस वक्त सिर्फ इतना हुआ कि किरन के ब्रेक मारने पर गाडी दो-तीन जबरदस्त झटकों के साथ रुक गई । " तभी !"


"धांय.....धांय..…धांय ।"



गोलियों की एक और बाढ़ गाडी पर झपटी ।



इस बार मारुति डीलक्स के टिंटिड ग्लास चकनाचूर होगये ।



किरन ने तेजी से खुद को अगली सीटो पर गिरा दिया-----गोलियां चलने और खतरनाक कांच टूटने की आवाजों ने उसके रोंगटे खड़ेे कर दिए।



सीट में मुंह दिये उकडू वैठी थी वह !



गोलियों की बाढ़ जिस तेजी से अाई थी उसी तेजी से शति पड़ गयी ।



परन्तु । किरन का दिल धाड़धाड़ करके बज रहा था ।



चेहरा पसीने-पसीने हो गया ।


मारे दहशत के हालत ऐसी हो गई कि काफी देर तक कोई घटना न घटने के बावजूद सिर उठाकर देखने का साहस न कर सकी कि हुआ क्या है ?



उसके जीवन की यह पहली भयानक घटना थी ।


हाथ-पावं फूल गये ।


एकाएक दिमाग में ख्याल उभरा कि हमलावर उसकी गाडी को घेरने का प्रयत्न कर रहे होंगे और इस ख्याल ने तो छक्के ही छुडा दिये उसके------दिमाग हालांकि ठीक से काम नहीं कर रहा था मगर फिर भी, उकडू अवस्था में ही उसने खुद को दोनों सीटों के बीच से गुजार कर पिछली सीट पर डाल दिया !

एकाएक दिमाग में ख्याल उभरा कि हमलावर उसकी गाडी को घेरने का प्रयत्न कर रहे होंगे और इस ख्याल ने तो छक्के ही छुडा दिये उसके------दिमाग हालांकि ठीक से काम नहीं कर रहा था मगर फिर भी, उकडू अवस्था में ही उसने खुद को दोनों सीटों के बीच से गुजार कर पिछली सीट पर डाल दिया !




तभी !


ऐसी आवाज सुनी जैसे कोई गाड़ी "सर्र ..र्र ..रररर......से दौडती चली गई हो ।


चेहरा ऊपर उठाकर देखा ।


आंधी-तूफाऩ की तरह दोडी चली अा रही एक काली एम्बेसेडर के पृष्ट भाग पर उसकी आंखें स्थिर हो गई--नम्बर पढने के चेष्टा की, परन्तु 'प्लेट' गायब थी और तब तक गाडी इतनी दूर निकल चुकी थी कि प्रयास के बावजूद किरन यह अनुमान न लगा सकी कि एम्बेसेडर में कितने आदमी थे ?



चकनाचूर हुई अपनी 'विंड-स्कीन' के पार सुनसान सडक पर दौडी चली जा रही एम्बेसेडर को वह तब तक देखती रही जब तक कि बिन्दु की शक्ल में चेंज होने के बाद आंखों की रेंज से -बाहर न निकल गई ।



हालांकि उसे विश्वास था कि हमलावर अभी गाडी में सवार थे और अब वे यहां नहीं हैं, परन्तु इतना साहस न जुटा सकी कि गाडी का दरवाजा खोलकर सडक पर आ जाती !



चूहे की मानिन्द सहमी किरन के दिमाग ने धीरे-घीरे काम करना शुरू किया-----जहन में यह विचार उभरा कि हमला करने वालों का आखिर उद्देश्य क्या था ?


केवल गाडी को क्षति पहुंचाकर क्यों भाग गये ?


अभी दिमाग ने ज़वाब नहीं उगला था कि पीछे से अाई 'ग्रे' कलर की एक फियेट 'सर्र.........'र्र.......से गुज़र गई ।


किरन उसके पिछले हिस्से को देख ही रही थी कि करीब दो सो गज आगे जाने के बाद ब्रेकों की चरपराहट के साथ फियेट रुकी

किरन का दिल पुन: जोर जोर से धड़कने लगा ।


हालांकि उसने नोट कर लिया था कि फियेट में केवल एक व्यक्ति था और वह भी जो ड्राइव कर रहा था किन्तु फियेट के बैक गेयर में पड़कर वापस सरकते ही उसके होश फाख्ता हो गए ।


चेहरा पीला पड़ चुका था ।


फियेट उसकी गाडी के ठीक बगल में रुकी, ड्राइविंग सीट पर मौजूद युवक ने ऊचीं आवाज में पूछा-----" क्या मैं आपकी मदद कर सकता हुं ?"



" हहह हां ।" हलक सूखा होने के कारण बडी मुश्किल से कह सकी किरन ।


युवक ने पूछा-----" आपकी गाड़ी को यह क्या हो गया है ?"

" म-मुझ पर कुछ बदमाशों ने गोलियां चलाई थी ।"


"गोलियां ?" युवक हकला गया, अातंक के भाव उसके चेहरे पर भी उभर आये !



किरन यह सोचकर घबरा गई कि कहीं एकमात्र मददगार स्वयं डरकर न भाग जाये, अत: तेजी से बोली----" अब वे भाग गये है, काले रंग की एम्बेसेडर में थे वे” ।



युवक के चेहरे की रौनक लौटी पूछा…"आपसे क्या चाहते थे ?"


"प-पता नहीं ।"


"मेरी गाडी चलने लायक नहीं है, क्या आप मुझे लिफ्ट दे सकते हैं ?"



"आँफकोर्स ?" युवक ने आकर्षक मुस्कान के साथ कहा ।


किरन ने फुर्ती से डैशबोर्ड के टॉप पर पड़ा अपना पर्स उठाया, मारुति का दरवाजा खोला और फियेट में युवक की बाल में बैठती हुई बोली -----"थेंक्यू।" .

"कहां चलना है ?"
"मुझे किसी पब्लिक टेलीफोन बूथ में छोड दीजिए ।"



युवक ने जवाब मुह से नहीं दिया मगर आंखों में ऐसे भाव अवश्य उत्पन्न किये जैसे उसे अपने प्रभाव में लेना चाहता हो ----जाने क्यों, उस क्षण किरन को लगा कि इस युवक को उसने कहीं देखा है !


कहां देखा है ?


अभी जवाब नहीं सूझा था कि गाडी अागे बढाते हुऐ युवक ने पूछा---" हृमलाबर कौन थे ? "



"मैं देख नहीं पाई ।"


“अनुमान तो होगा कुछ, किसी से आपकी दुश्मनी होगी ?"


"द-दुश्मनी ?" किरन के मस्तिष्क में विस्फोट-सा हुआ-----पलक झपकते ही दिमाग में वह विचार कौंधा कि जो होलनाक घटना घटी है जिसकी वजह इसके अलावा कुछ और नहीं हो सकती कि उसने संगीता मर्डर कैस की रिं-इन्वेस्टीगेशन के लिए कदम बढा दिये हैं ।


युवक ने तन्द्रा भंग की ----"आपने जवाब नहीं दिया, किसी से दुश्मनी है आपकी हैं''



"नहीं ।” किरन ने युवक को संक्षिप्त जवाब देकर टरका दिया, परन्तु स्वयं उसका मस्तिष्क यही तेजी से काम कर रहा था----हमले के बारे में जितना सोचती गई उतना ही विश्वास होता गया कि कारण संगीता मर्डर कैस की रि--इन्वेटीगेशन का उसका फैसला है ।


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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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हमलावरों ने सिर्फ उसकी गाडी को क्षति पहुंचाई । वे केवल उसे आतंकित करना चाहते थे ।


क्यों ?

क्या वे यह कहना चाहते है कि अगर मैंने इस केस की रि'-इन्वेस्टीगेशन की तो अंजाम खतरनाक होगा ?


हां…यही वजह है ।

इसके अलावा दूसरी कोई वजह हो ही नहीं सकती ।


बात किरन को जम गई ।


और इस बात के जमते ही उसके दिलो--दिमाग पर छाया सारा भय, सारा आतंक, सारा खौफ़ यूं काफूर हो गया जैसे आग में गिरते ही कपूर काफूर हो जाता है------सफलता से लबालब मुस्कराहट पहले से गुलाबी होंठों का श्रृंगार बन गई,,,, आंखें 'विजयी' अंदाज से 'देदीप्यमान' हो उठी----उसकी इस अवस्था को देखकर युवक चकरा गया ।

चकराने की बात भी थी ।


. जिस युवती को क्षण-भर पूर्व शेर से डरी हिरनी की सी हालत में देखा था उसी को इस वक्त चालाक लोमडी की भाति मुस्कराते देख रहा था, बोला----" जाने आप क्या सोच रहीं हैं ?"


“क-कुछ नहीं ।" किरन ने उसे टालना चाहा ।


"कुछ देर पहले आप बुरी तरह डरी हुई थी । मगर अब ! "



" व-वो सामने पब्लिक टेलीफोन बूथ है, मुझे यहीं उतार दीजिए ।"' किरन ने उसकी बात काट दी ।


"मेरे ख्याल में आपको पुलिस स्टेशन जाना चाहिए ।"


"क्यों ?"


“जो हुआ है, उसकी 'रपट' लिखवाने ।"


"नहीं, रपट की जरूरत नहीं है-मुझें उतार दो ।"


युवक ने कंधे उचकाने के साथ ब्रेक लगाये----गाडी बूथ के नजदीक रुकी और किरन गजब की तेजी के साथ दरवाजा खोलकर बाहर निकलती हुई बोली ----" थैक्यू फॉर लिफ्ट !"

" इंसपेक्टर अक्षय हियर !" दूसरी तरफ से कहा गया !


“बैरिस्टर विश्वनाथ की बेटी बोल रही हूं इंस्पेक्टर, अम्बेडकर रोड़ पर मुझ पर हमला हुआ है ।"


"कैसा हमला?"


"मेरी गाड़ी पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गई ।" किरन कहती चली गई----" पहले उसके टायर "ब्रस्ट' किये फिर शीशों को चकनाचूर किया गया और इसके बाद बिना नम्बर प्लेट वाली काले रंग की एक एम्बेसेडर में हमलावर फरार हो गये ।"


" क-क्या कह रहीं हैं अाप ?"


"मेरी रपट दर्ज कर लीजिए-क्षतिग्रस्त गाडी वहीं खडी है-जैसे चाहें, जांच करने के बाद मारुति को वर्कशाप में पहुंचवा दीजिए ।"


“आप कहां से बोल रही हैं ?"


"सुभाष मार्ग स्थित बूथ से ।"


"में अम्बेडकर मार्ग पर गाडी के नजदीक पहुंच रहा हूं आप भी वहीं--



" नहीं, मैं वहां नहीं पहुंच रही हूं इंस्पेक्टर------मुझे इस वक्त कहीं और पहुंचना है ।"


“कहां ? "



"जहां मुझे संगीता का हत्यारा नहीं पहुचने देना चाहता ।" रहस्यमय स्वर में कहने के साथ उसने सम्बन्थ विच्छेद कर दिया ।

"ओह, किरन बेटी !" शहजाद राय की अावाज उभरी----"कैसे फोन किया ?"


"मैं आपसे "संगीता मर्डर कैस' के सिलसिले में बात करना चाहती हूं अंकल ।"


" संगीता मर्डर केस ?" ये शब्द शहजाद राय के मुंह से ऐसे अन्दाज में निकले जेसे वह उस सिलसिले को याद न करना चाहते हों, कुछ देर चुप्पी के बाद बोले----" उस बारे में बात करने के लिए अब बचा ही क्या है ?"


"जब क्रोईं "क्लाइन्ट' अपना केस लेकर बचाव पक्ष के वकील के पास जाता है तो वकील क्लाइन्ट से सबसे पहला यह सवाल यह पूछता है कि 'जो अभियोग तुम पर लगाया गया है वह सच्चा है या झूठा----क्या यह सवाल आपने शेखर मल्होत्रा से किया था ?"


"अनेक बार ।"


"क्या जवाब दिया उसने ?"


"यही तो मुसीबत रही…हंमने उससे हर तरह से पूछा, एक बार नहीं बल्कि अनेक बार यह कहा कि अगर तुमने कुछ किया है तो साफ़-साफ़ बता दो----" वताने से तुम्हारा कुछ बिगड़ेगा नहीं बल्कि फायदा ही होगा, क्योंकि तब हम ज्यादा सशक्त ढंग में कोर्ट से तुम्हारा बचाव कर सकेगे--वह पटृठा था कि लगातार झूठ रहा, आज तक झूठ बोल रहा है ।"


“झूठ बोल रहा है ?”


“यह झूठ नहीं तो और क्या है कि उसने संगीता की हत्या नहीं की ?"


" अाप ? " "किरन चकित रह गई-----“आप उसके वकील होने के बाबजूद ऐसा कह रहे है है"'


"कोर्ट में जो कुछ भी कहें मगर कोर्ट के बाहर हम वही कहते हैं जो लग रहा होता है और फिर इस मामले में तो शायद इतना भी दम नहीं रहा कि कोर्ट में हमारे कहने से कुछ हो सके ।”


"आप तो जरूरत से ज्यादा निराश हैं अंकल ! " किरन बोली…“अब मेरी समझ में इतना सब आ रहा है कि आप शेखर मल्होत्रा क्रो बेगुनाह साबित क्यों नहीं कर सके हैं"'


"क्या कहना चाहती हो ?"


' "जो वकील अपने ही दिल में अपने क्लाइन्ट को भी गुनेहगार मानता हो वह उसे कोर्ट में बेगुनाह साबित कैसे कर सकता है ?” कहने के साथ उसने रिसीवर हैंगर पर लटका दिया ।

" सिगार मुंह में दबाये कीमती कपडे़ पहने और लान में खडे अधेड़ आदमी ने पूछा---"'किससे मिलना है तुम्हें ?"


"शेखर मल्होत्रा से ।"


"श-शेखर ?""' यह लपज उसके मुंह से . कुछ यूं निकला जैसे भद्दी गाली निकली हो और फिर लगभग गुर्राता-सा बोला ----“कौन हो तुम ?"



""मेरा नाम किरन अग्निहोत्री है ।"

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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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. अधेड के चेहरे पर मौजूद भाव साफ-साफ बता रहे थे कि वह शेखर मल्होत्रा से ही नहीं बल्कि उससे मिलने अाने वालों से भी नफरत करता है, ऊंची आवाज में बोला---“अरे बुन्दू है ?"




"जी मालिक ?" फूलों की पानी देता बलिष्ठ नौकर आकर्षित हुआ ।"


"ये लड़की शेखर से मिलना चाहती है, उसके कमरे में ले जाओ ।"



"जीं ।" उसने वहीं से चीखकर कहा और फिर किरन को कुछ ऐसी नजरों से देखता हुआ इस तरफ अाने लगा जैसे वह चिडि़याघर से निकल भागी हिरनी हो ।



किरन ने अधेड़ से पूछा-“क्या मैं आपका परिचय जान सकती हूँ ?"

"क्यो ?-"' उसने अक्खड़ स्वर में कहा----" हमारा परिचय जानकर क्या करोगी ?"


नजदीक आते वुन्दू पर एक नजर डालती हुई किरन बोली…"नौकर द्वारा, आपको 'मालिक' कहने से असमंजस में पड़ गई हूं क्योंकि जानती हू कि इस कोठी का मालिक शेखर मल्होत्रा है 1”



किरन के इन शब्दों ने अधेड़ को तिलमिलाकर रख दिया--मारे गुस्से से चेहरा भभक उठा, गुर्राया ---" बुन्दु , इस बेवकूफ़ लड़की को बताओ कि कोठी का मालिक कौन है ?"



"य-ये बड़े शाब के भाई हैं मेमसाब ।"' बुन्दू ने किरन से कहा ।



“कौन बड़े साहब ?"



"सेठ गुलाब चन्द जी, संगीता मेमसाब के पिता ।"



"ओह !" बात किरन की समझ में आ गई----" तो ये ' संगीता के चाचा हैं ?"



हां ।" सिगार मुंह में दबाये अधेड ने अागे बढ़त्ते हुए कहा-----''" अनजाने में जो भूल की सो की, मगर भविष्य में कभी उस हत्यारे को इस कोठी का मालिक कहने की 'जुर्रत' मत करना ।"



' “क्यों ?"



क्योंकि उसने इस जायदाद का मालिक बनने के फेर में पहले हमारे बड़् भाई को ऐसे ढंग से मरवा दिया कि जिसे पुलिस 'हत्या' ही नहीं समझती----" फिर उस हरामजादे ने हमारी बेटी संगीता की हत्या कर दी मगर पाप की हांडी रोज नहीं चढ़ती-इस वार फूट गई-यह जायदाद भला उस कमीने की कैसे हो सकती है जिसने इसे हथियाने के लिए दो दो हत्याएं कर दी , अंधेर है क्या ?"


"आपने किस अधिकार से जायदाद का चार्ज सम्भाल लिया है?"\\

"अधिकार--- तुम अधिकार की बात करती हो ?" अधेड भड़क उठा---" हमें कोर्ट ने सम्पूर्ण जायदाद और र्फवट्री का 'रिसीवर' नियुक्त किया है ।"


"र-रिसीवर ?”


"हुंह......तुम बेवकूफ लड़की भला क्या जानो कि रिसीवर किसे कहते है है"'



हौले से मुस्कूराईं किरन, बोली---" आप बता दीजिए !"



"जब कोई ऐसा शख्स किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या के जुर्म में फंस जाता है जिसके बाद जिसकी सारी दौलत फंसने वाले की होनी हो तो कोर्ट वारिस नम्बर दो को मरने वाले की जायदाद का 'रिसीवर' नियुक्त कर देती है…रिसीवर को कानून यह अधिकार सौंपता है कि जब तक _ बारिस नम्बर एक पर मुकदमा चले तब तक जायदाद की देखभाल तुम्हें करनी है-----वारिस नम्बर एक अगर बेगुनाह साबित हो जाता है तो वारिस नम्बर दो यानि रिसीवर को सारा चार्ज उसे वापस सोंप देना होता है और अगर वह गुनाहगार साबित होता है तो वारिस नम्बर दो मालिक बन जाता है ।"


किरन अचानक अागे बढी और अधेड़ की आंखों में आंखें डालकर बोली-----"अाप तो यह सोचते होंगे कि शेखर मल्होत्रा ने संगीता की हत्या करके अच्छा ही किया ?”


" क---क्या मतलब ?" अधेड़ सकपका गया । किरन ने तपाक से कहा----"उसकी बेवकुफी के कारण आप करोडों की जायदाद के मालिक बन गये ।"


"क-क्या' ' ' 'क्या बका तुमने !" अधेड़ हलक फाड़कर चीख पड़ा-“त--तुम हमेँ जायदाद का लालची समझती हो?"



"अजी क्या हुआ........ 'इतनी जोर'-जोर से क्यों चीख रहे है आप ?" कहती हुई एक अधेड़ महिला ड्राइंगरूम से निकलकर लॉन में आ गई ।

यह अकेली नहीं थी ।

एक जवान लडकी और दो युवा लडके भी लॉन में आ गये थे ।


किरन उन सबको ध्यान से देख ही रही थी कि शक्ल से गुन्डा और लफंगा--सा नजर आने वाला लड़का अधेड़ के नजदीक पहुंचता हुआ बोला----'"क्या हुआ पापा, अाप इतने गुस्से में क्यों हैं ?"



जरा इस लड़की की बात सुनो ।" अधेड़ किरन की तरफ हाथ नचाकर बोला---"कहती है हम बड़े भाई और संगीता बेटी की मौत पर वहुत खुश होंगे, यह जायदाद जो मिल गई है हमें ।"


लड़के ने सुर्ख आंखों से किरन को घूरा ।


अधेड़ स्त्री ने पुछा ---" कौन है ये ?"



"पता नहीं कौन है, हत्यारे से मिलने आई है ।"



सबकी नजरें किरन पर स्थिर थीं ।


किरन यह सोच-सोच-कर मुस्करा रही थी कि उसके शब्दों का प्रभाव ठीक बैसा ही हुआ जैसा वह चाहती थी----"दरअसल वह यह जानना चाहती थी कि शेखर मल्होत्रा के बाद वारिस किस मन: स्थिति में है ?"




अभी यह मुस्करा ही रही थी कि बड़ा लड़का बांहें चढाता हुआ उसकी तरफ़ बढा और नजदीक पहुंचकर गुर्राया-“कौन है तू?"


"तमीज से बात करो मिस्टरा" किरन गुर्राई !
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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"त--तु मुझे तमीज सिखाएगी ?" कहने साथ उसने हाथ हवा में उठाया ही था कि-----

अधेड़ झपटकर उसे पकड़ता हुआ चीखा--" क्या बेवकूफी है कमल, छोटे लोगों के मुंह नहीं लगते !"



"कमल ने कुछ कहने के लिए मुहं खोला ही था कि---" अरे आप…आप यहाँ किरन जी ?"

किरन सहित सभी ने आवाज की दिशा में देखा !


साइड गैलरी से निकलकर सफेद कुर्ता और पायजामा पहने शेखर मल्होत्रा अभी-अभी वहां पहुंचा था-उसके पहुचते ही अधेड, उसकी पत्नी, बेटी पर ही नहीं बुन्दू तक पर सन्नाटा छा गया ।



" हां शेखर ।" किरन ने संयत स्वर में क्ला-“मैं यहाँ ।"


"अअ-आप यहां किसलिए अाई है ?"



"तुमसे मिलने ।"



"म-मुझसे मिलने है"' शेखर उछल पड़ा-"क-क्यों ?"



किरन ने पूछा-"क्या हम कहीं अराम से बैठकर बाते नहीं कर सकते ?‘"



"क-क्यों नहीं--म-मगर.............'मुझसे क्या बातें करना चाहती हैं आप ?"



किरन ने एक नजर कमल, अधेड़ और उसके पूरे परिवार पर डाली तथा शेखर से बोली--" तुम्हें बेगुनाह साबित करने निकली हुं ।"



" ब-बेगुनाह-म---मैं समझा नहीं ।" शेखर बुरी तरह बौखला गया ।



"मेरी बात जल्दी ही तुम्हारी समझ में अा जायेगी और इनकी समझ में भी ।" कहने के साथ उसने 'खुखार नजरों से कमल की तरफ़ देखा-कमल-अभी तक खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था ।
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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कौठी के भीतर कमरे में अधेड़ , उसकी पत्नी, दौनों बेटे और बेटी आपस में सिऱ जोड़े फुसफुसाते के से अन्दाज में बातें कर रहे थे ।


उनके बीच एक छोटी सीं सेन्टर टेबल थी ।




अधेड की पत्नी ने अभी-अभी कहा था…"मुझे तो उस लड़की की इस बात से डर लग रहा है कि वह उस मुए को बेगुनाह साबित करने निकली है---' उसने-उसे सचमुच बेगुनाह साबित कर दिया तो हमारा क्या होगा ?"



"बरबाद हो जायेगे हम ।" बड़ा लड़का अर्थात् कमल कह उठा ।"



छोटे ने पूछा----"कैसे ?"



"कैसे ?"---कमल भड़क उठा-"पूछ्ता है कैसे-----तेरे भेजे में भूसा भरा है क्या----हम अपनी अमीनाबाद वाली दुकान बेच चुके हैं---अगर दौलत हाथ से निकल गई तो खायेंगे क्या ?"



"उस दुकान से हमें मिलता--ही क्या था?"



"कुछ न सही…मगर पेटे भर रोटी तो दे ही रही थी दुकान ।" कमल कहता चला गया-कुछ भी हो अब हम इस जायदाद और फेवट्री को किसी भी कीमत पर नहीं गंवा सकते ।"



"फैसले की तारीख में अब केवल तीन दिन रह गए है और ये लगभग स्पष्ट है कि अदालत का फैसला क्या होने जा रहा है ---- दुनिया की कोई ताकत उसे सजा से नहीं बचा सकती ।" अधेड़ ने कहा ।


"लेक्ति अगर उससे पहले इस लड़की ने उसे बेगुनाह साबित कर दिया है?" अधेड स्त्री ने पुन: शंका व्यक्त की ।



"ऐसा नहीं होगा, एड़ी--चोटी का जोर लगाने के बावजूद वह ऐसा नहीं क़र सकेगी ।"



कमल बोला----" और अगर मुझे लगा कि वह ऐसा कर सकती है तो तुम सब यकीन रखो मैं ऐसी स्थिति कर दूगा कि न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी ।"


"यानि ?"



"शेखर का काम तमाम कर दूंगा मैं !"

" तुम ऐसी बेवकूफी हरगिज नहीं करोगे ।" गुर्राकर अधेड ने सख्त स्वर में कहा---""जरा-सी चूक होते ही सारे किए-धरे पर पानी फिर सकता है, हम बरबाद हो जायेगे ।"



कुछ कहने के लिए कमल ने मुंह खोता ही था कि मां पर नजर पड़ते ही ठिठक गया…होठों पर अंगुली रखे बड़े रहस्यमय अन्दाज में वह सबको चुप रहने का इशारा कर रही थी ।


कमल का मुंह खुला रह गया ।

सबकी नजरें अधेड़ स्त्री के चेहरे पर स्थिर थी , दिल जोर-जोर से धड़कने लगे थे ।


कमरे में संनाटा छा गया ।


. डायमंड की धार'-सा पैना सन्नाटा ।

"अधेड ने उसके कान पर झुककर पूछा…"क्या बात है सुमित्रा?"



"उ उधर देखिये, उधर ।” सुमित्रा ने अंगुली से कमरे के बन्द दरवाजे की तरफ इशारा किया ।


अधेड़ सहित सबकी नजरें दरवाजे की तरफ उठ गई और'वहां नजर पड़ते ही सबके दिल धक्क से रह गये-----" चेहरों पर हवाइयां उड़ने लगी, सबकी हालत सुमित्रा जैसी हो गई थी ।


बंद किवाडों और फर्श के बीच बनी बारीक झिर्री से एक जोड़ी पैरों का थेड़ा सा हिस्सा अस्पष्ट नजर आ रहा था…समझते देर न लगी कि वहाँ खड़ा कोई शख्स बाते सुनने का प्रयत्न कर रहा है ।



आतंक की ज्यादती के कारण छोटा लड़का चीख पड़ा…



" कौन कौन है दरवाजे पर?"


और बस !


खेल बिगड गया ।

पैर तेजी के साथ हटे और गेलरी में भागते कदमों की आवाज गूंजी । "



सबसे पाले उछलकर कमल खडा हुआ-दौड़कर दरवाजे तक पहुंचा, चटकनी गिराकर जब उसने दरवाजा खोला तो कोई पांच मीटर लम्बी गेलरी....सन्नाटे में डूबी हुई थी ।


एक साया कोठरी के अन्तिम मोड़ पर गुम होते जरूर देखा था उसने ।


अभी कमल वहीं खड़ा था और जिस्म में एक अजीब-सी सनसनी का अहसास कर रहा था कि थर्राते से उसके मम्मी, पापा, भाई-बहन नजदीक अाये, अधेड़ ने पूछा---"कौन था कमल ?"


"पता नहीं ।" कमल अपने छोटे भाई पर चढ दौडा…“इसकी बेवकूफी से भाग गया ।"

"अ--अाप .......आप कहीं मजाक तो नहीं कर रही हैं किरन जी ?"


किरन ने गम्भीर स्वर में कहा--"' मैं इतनी दूर से चलकर तुमसे मजाक करने अाई हूं?"'



"म......मगर.......मगर मेरे लिए यह बात दुनिया के नौवें आश्चर्य जैसी है कि किसी ने मुझे मेरे कहने---सिर्फ कहने के आधार पर बेगुनाह मान लिया---कोई तर्क, सबूत पेश नहीं किया है मैंने ।"


“अगर ऐसा है तो यूं समझो कि दुनिया का नोवां आश्चर्य हो चुका है ।"


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