चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल compleet

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Jemsbond
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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"ह-हम अाज ही तो मिले थे सर ।" हकलाते हुए मैनेजर ने शेखर से कहा----'मैँ लंच में यहाँ आ रहा था, किन्हीं बदमाशों ने इनकी गाड़ी पर गोलियां बरसाई------"तब मैंने लिफ्ट दो थी ।"



'ग--गोलियां ?"' अब उछलने की बारी शेखर की थी…'इनकी गाडी पर बदमाशों ने गोलियाँ ......’क-क्या बक रहे हो इन पर तो गाडी भी नहीं है ।"


"म… सच कह रहा हूं सर, इनसे पूछ लीजिए ।"


शेखर ने तेजी से पलट कर किरन की तरफ देखा और सवाल करने के लिये मुंह इसलिये खुला का खुला रह गया क्योंकि सवाल किये बिना ही उसे जबाब मिल चुका था ---- किरन मुस्करा ही इस अन्दाज में रही थी जैसे वह कह रही हो कि मैनेजर जो कह रहा है, ठीक कह रहा है !



तब शेखर ने पुछा --- " तुमने तो कहा था कि तुम्हारे पास गाड़ी नही है ?"



" मैनें सिरफ यह कहा था कि तुम्हारी कोठी पर टैक्सी में पहुची थी और यह सच था --- रास्ते में बदमाशों ने गोंलियां चलाकर गाड़ी की ऐसी हालत कर दी थी कि वह एक इंच नहीं चल सकती थी --- तब पहले इन महाशय से लिफ्ट ली और फिर टैक्सी के जरिये कोठी पर पहुचीं !"



" यानी हमला तब हुआ जब तुम मेरे पास आ रही थी !"


" हां !"


" मुझे क्युं नहीं बताया ?"



" डर था कि सुनते ही एक के बाद दूसरे सवाल का जबाब की झड़ी लगा दोगे , बही अब कर रहे हो !"



" क्या तुम जबाब देना नहीं चाहती ?"


" दूंगी !" किरन हौले से मुस्कराई ---" तब दूंगी जब फुर्सत होगी इस वक्त हम तुम्हारे मैनेजर साहब से मिलने अाऐ हैं और एक ये महाशय हैं कि दरबाजे में अड़े -खड़े हैं ! क्या हमारे अन्दर जाने में आपको अॉब्जेक्शन है ?


"स स सॉरी --- आइये !" झेपता हुआ वह पीछे हटा !!!!



शेखर चुुप सा हो गया था !



ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठती हुई किरन ने कहा --- " हालांकि आज ही की डेट में हम दूसरी बार मिल रहे हैं किन्तु अभी तक आपने अपना नाम नहीं बताया !!"

"मुझे रमन आहूजा कहते हैं ।"


"र-रमन-आहूजा कहते हैं ?" किरन के मस्तिष्क में मानो 'अनार' फूटा--रोशनी के फूल बिखरे और सम्पूर्ण जहन में जगमगाता प्रकाश फैल गया कि इस शख्स को उसने कहाँ देखा है? "


रमन आहूजा ने पूछा----"और आपका नाम हैं"'


"किरन अग्निहोत्री ।"


"बडा सुन्दर नाम है ।"


एकाएक किरन थोडे आगे सरकी और सामने वाले सोफे पर बेठे रमन आहूजा की आंखो में अंखों डालकर रहस्यमय स्वर में बोली-क्या तुमने मुझे पहचाना मिस्टर रमन?"



"अजीब सवाल है ! दरवाजे पर हम दोनों कुबूल कर चुके हैं ..........


"नहीँ ।" उसकी बात काटकर किरन कहती चली गई, मैं आज हुई मुलाकात की बात नहीं कर रही, मैं बात कर रही हू अाज से पांच साल पहले की…तव की, जव तुम लंदन में थे ।"


" ल ल -- लंदन में ?" जाने क्यों रमन आहूजा का चेहरा पीला पड़ गया ।



आंखों में आंखें डाले किरन ने कहा---" तुम लंदन में पढे़ हो न?"

"हां-हां ।" रमन को कहना पड़ा ।


"और संगीता भी वहीं पढती थी-वह संगीता जो सारे कॉलिज में बदनाम थी---इसलिए बदनाम थी क्योंकि वह चीबीस घण्टे स्मैक, अफीम, हेरोइन या एल. एस. डी. के नशे में चूर रहती थी ।"


रमन आहूजा हवका-बक्का। रह गया ।


काटो तो खून नहीं ।


किरन के शब्द कानों में पड़ते-पड़ते शेखर भी चौंक पड़ा था –

बह ध्यान से किरन और रमन आहूजा के चेहरों को देखने लगा । एकाएक किरन ने शेखर से कहा-"कुछ ऐसी बातें हैं शेखर जिनका जिक्र मैं तुम्हारे सामने नहीं करना चाहती थी परन्तु हातात ऐसे बन गए है कि करना पड़ेगा !"



"म-मैं समझा नहीं किरन ।"


"सुनते रहो ।" कहने के बाद किरन रमन आहूजा की तरफ मुखातिब हुई और उसे सख्त नजरों से घूरती हुई बोली---“संगीता इतनी खूबसूरत थी कि उसने सारे कॉलिज में तहलका मजा दिया, लोग उसकी स्वीनिल आंखों के दीवाने हो गए-यह भेद काकी दिन बाद खुला कि वे 'स्वप्निल' आंखें इसलिए स्वप्निल थीं क्योंकि संगीता हर वक्त नशे में रहती थी, इतना ही नहीं बाँझ 'फ्री-सेक्स वाले मूड की लड़की थी वह ।"



"क-किरन")..... ये क्या कह रही हो तुम ?" शेखर मल्होत्रा दहाड उठा ।



"प्लीज शेखर, रोको मत कहने दो, जानती हूं कि तुम्हें दुख हो रहा है-दुख से ज्यादा आश्चर्य हो रहा होगा , मगर जो सच है, खुद पर संयम रखकर सुनते रहो ।"


शेखर मूर्खों की मानिन्द उसे निहारता रह गया !!


पलटकर किरन ने पुन: रमन आहूजा से कहा-------"संगीता को किसी लडके साथ रात गुजारने और उससे शारीरिक सम्बन्थ स्थापित करने में कोई आपत्ति नहीं होती थी-क्रोई भी विदेशी लड़का एक चुटकी स्मैक, हैरोइन या अफीम के बदले उसे हासिल कर सकता अ, घीरे---धीरे यह बात सारे कोलिज में फैल गई-क्रॉलिज के प्रवन्धक बौखला उठे लडकों पर छाया संगीता का जादु कम होने लगा… उन दिनों संगीता 'कालिज की वेश्या' के नाम से पूरी तरह बदनाम हो चुकी थी जव एक ऐसी घटना घटी जिसने सारे कॉलिज को हिलाकर रख दिया !!!!!

"जो तुम कह रही हो किरन, क-क्या बह सच है ?" रोने को तैयार शेखर ने पूछा ।



किरन ने रमन आहूजा के पीले जर्द चेहरे की तरफ इशारा करके कहा----"क्या मिस्टर रमन के चेहरे पर उड़ती हवाइयां तुम्हें साफ-साफ नहीं बता रहीं कि मेरे मुंह से निकला एक-एक वाक्य "ब्रह्म-वाक्य' है ?"



शेखर ने रमन की तरफ देखा ।


उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे रंगे हाथों पकड़े जाने वाले चोर के चेहरे पर होते हैं, बोला---"तुम्हें तो मैंने अपनी फैवट्री का मेनेजर बनाया भी संगीता के ही कहने पर था मगर-----


" मगर ?" किरन ने पूछा ।



"संगीता ने कहा था कि यह मेरे दूर के रिश्ते का "कजिन' है ।"



“खैर।" किरन बोली --- अभी यह कहानी पूरी नहीं हुई है----तो मैं कह रही थी कि एक दिन अचानक एक टिचर की 'डायमंड रिग' गायब हो गई---- सबका शक संगीता पर गया--लोग यह समझते थे कि उसने स्मैक आदि खरीदने के लिए डायमंड रिंग चुरा ली है, अत: उसे पकडकर पुलिस के हवाले कर दिया गया---पुलिस ने न सिर्फ यह साबित कर दिया कि चोर संगीता है बल्कि एक डायमंड-विक्रेता से रिंग बरामद भी हो गयी ! डायमंड बिक्रेता ने कुबूल किया कि रिग उसे संगीता ने बेची थी ।"


"अ-आपको ।” रमन वड़ी मुश्किल से कह सका“अा्पको यह सब कैसे मालूम है ?"



"क्या तुमने अभी भी नहीं पहचाना?" “में वही हूं जो तुम्हारी और संगीता की क्लास में नहीं पढती थी, तुमसे सीनियर क्लास में थी और सारे कॉलिज की सबसे ज्यादा 'बिलिएन्ट' छात्रा मानी जाती थी !"

"ओ---त--तुम… 'तुम वह किरन हो ?"



"तब तक रिग बरामद हो चुकी थी और डायमंड-विक्रेता का बयान भी हो चुका था , जब मेरी तारीफ सुनकर संगीता मेरे पास अाई, मेरे कदमों में गिड़ेगिड़ा--गिड़गिड़कर कहने लगी कि मैं चरित्रहीन हूं किसी भी विदेशी लड़के के साथ सोने में मुझे हिचक नहीं होती--न्नशेबाज हूँ मगर चोर नहीं हूं ----रिंग मैंने नहीं चुराई थी-- जाने किसके इशारे पर मुझे चोरी के झूठे जुर्म में फंसाया गया है…उस दिन, बल्कि कहना चाहिए कि उस क्षण से पहले मैं भी यह समझती थी कि चोर संगीता ही है, परन्तु अपनी बात संगीता ने कुछ ऐसे ढंग और इतने आत्मविश्वास के साथ कही कि मुझे उसकी 'सच्ची' होने का यकीन हो गया…तब मैंने सारे मामले की इन्वेस्टीगेशन दुबारा से की और सारे कॉलिज के सामने साबित कर दिया कि रिग संगीता ने नहीं चुराई थी---चोर कोई और था तथा संगीता के खिलाफ़ बयान देने वाला डायमंड विक्रेता असली चोर से मिला हुआ था ।



शेखर ने धड़कते दिल से पूछा…“असली चोर कोन था ?"


"य--ये महाशय ।"


"इसने रिग क्यों चुराई थी ?" शेखर ने पूछा।



“अन्य विदेशी लड़कों की तरह यह भी संगीता को हासिल करना चाहता था ।" किरन कहती चली गई---"मगर एक तो संगीता सिर्फ विदेशी लडकों में दिलचस्पी लेती थी----दुसरे, इसके पास एक चुटकी स्मैक तक नहीं थी जो कि संगीता की रात की कीमत हुआ करती थी---कहने का मतलब ये कि यह 'फ्री' में संगीता को हासिल करना चाहता था जिसका उसने विरोध किया---' जोर जबरदस्ती पर उतर अाया और परिणाम यह हुआ कि संगीता ने इसकी अच्छी---खासी धुनाई कर दी
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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'कॉलिज की वेश्या' के नाम से बदनाम लड़की ने इसे हाथ न रखने दिया बल्कि पीटी भी…इस अपमान की अाग में सुलगकर इसने रिग चुराकर डायमंड विक्रेता को केवल इस कीमत के बदले दे दी कि अपने बयान में संगीता का नाम लेगा और संगीता स्वप्न में भी नहीं सोच सकती थी कि कोई इतनी छोटी--सी घटना का बदला उससे इतने खतरनाक अन्दाज में ले सकता है ।"


"इसके बाद क्या हुआ ?"


"चोरी के हज्जाम से तो मैंने संगीता को वरी करा दिया परन्तु इसके बाद स्वयं मैंने ही उससे ज्यादा सम्पर्क न रखा क्योंकि मैं एक बदनाम लड़की को अपने दोस्तों की लिस्ट में शामिल नहीं कर सकती थी---वाद में संगीता की बदनामी इतनी बड़ी कि प्रबन्धक कमेटी ने उसे कॉलिज से निकाल दिया । मैं संगीता के बारे में केवल इतना जानती थी कि वह इंडियन है-ऐसी तो कल्पना भी न कर पाई थी कि वह मेरे ही शहर की बल्कि मेरे पापा के दोस्त की बेटी है और यह बात तो मेरे ख्वाबों से भी बाहर थी कि एक दिन उसी संगीता के मर्डर केस की रि-इन्वेस्टीगेशन करूंगी ।"'




" ममम-मगर ।" शेखर ने कहा---“आगरा में तो संगीता का वह रूप हरगिज नहीं था जो तुम लंदन में बता रही हो… यह सच है कि संगीता नशा करती थी किन्तु कॉलिज का एक भी लड़का ऐसा नहीं था जिसने उसे हासिल करने के चेष्टा न की हो और न ऐसा एक भी लड़का था जो उसे हासिल करने में कामयाब हुआ हो----फिर रमन को यानि उस शख्स को अपना 'कजिन' बनाकर संगीता ने मुलाजिम क्यों रखवाया जिसने उसे एक दिन चोरी के इल्जाम में फंसवाया था ?"


"इसका जवाब मिस्टर रमन देगे ।"


"म-मैं ?" रमन हकला गया ।

" हां तुम !" किरन उस पर धुड़क-सी पडी-----"ऐसी संगीता के सामने क्या मज़बूरी थी कि उसने तुम्हें यानि उस शख्स को अपनी फेक्ट्री में मेनेजर रखवा दिया जिसने उसे चोरी के इल्जाम में फंसवाया था ?"



" इ - इससे ज्यादा मैंने उससे कुछ नहीं कहा था कि उसके भेद मिस्टर शेखर पर खोल दूगा ।"



"क्या मतलब ? "



"मैं बेरोजगार था-नौकरी के लिए भटक रहा -था कि एक दिन सड़क पर संगीता टकरा गई--उसे देखकर मैं चौंका, जबकि मुझे देखते ही उसका चेहरा पीला पड़ गया ! एक हफ्ते की मेहनत के बाद मैंने पता लगा लिया कि लंदन के कॉलिज से 'फ्लर्ट गर्ल के आरोप में जिस संगीता को निकाल दिया गया था वह यहाँ सती-सावित्री वनी घूमती हेै---मैँने उसकी आगरा के कॉलिज की लाईफ भी मालूम कर ली थी और यह पता लगने पर हैरान रह गया कि लंदन में "कॉलिज की वेश्या' के नाम से कुख्यात लड़की यहाँ विल्कुल बदली हुई थी ।"



“तुमने कारण जानने की कोशिश की होगी ?"



"यह पता लगने पर मैं उससे अकेले में मिला कि मिस्टर मल्होत्रा अपनी बीबी को "गंगाजल" समझते हैं-उसे धमकी दी या दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि ब्लैकमेल किया-यह सुनकर उसके छवके छूट गये कि मैं उसके लंदन वाले करेक्टर की पोल मिस्टर मल्होत्रा पर खोल सकता हुं--वह गिडगिडाने लगी-तव मैंने पूछा कि उसमें इतना चेंज कैसे आ गया है…उसने वताया कि एक गुप्त बीमारी लग गई थी, डाक्टर ने साफ-साउ कहा कि अगर वह खुद को नहीं बदलेगी तो बीमारी बढती जायेगी और एक दिन उसकी जान ले लेगी, जबकि पुरूषों से दूर रहने पर धीरे-ेधीरे स्वत: ठीक हो जायेगी ---
यही कारण था कि मिस्टर मल्होत्रा से शादी करने से पहले वह भारत में किसी पुरुष के संसर्ग में नहीं आई-मेरी धमकी के जवाब में जब उसने यह पूछा कि मैं क्या चाहता हुं , तब मैंने अपनी ज़रूरत पेश की जो मेरी फौरी समस्या थी ।"



"यानि नौकरी ?"


"हाँ ।" रमन ने बताया---" हालांकि शुरू में उसने बहुत हील हुज्जत की, पर मेरी धमकी में दम था और हमारे बीच फैसला दुआ वह मुझे अपना कजिन बनाकर फेक्ट्री में मैंनेजैर की नौकरी दिलवा देगी और उस दिन के बाद मैं भूल जाऊंगा कि किसी संगीता नाम की लड़की को जानता हूं ---उसने अपना वादा निभाया और मैंने भी, यह सच है किरन जी कि उस दिन के बाद न मैं कभी संगीता से मिला, न ही कोई डिमांड रखी ।"



"जिस दिन शेखर ने प्लेन और ट्रेन के टिकट मंगवाये थे उस दिन तुमने क्या सोचा था ?"



"मैं चौंका था-इतना ज्यादा कि इनसे कह बेठा कि 'एक ही रात ट्रेन और प्लेन के टिकट' सर ?---ये हँसकर टाल गए और फिर मुझे भी यह वात दिमाग से निकालनी पडी ।"



"इतनी चुभने वाली बात तुम दिमाग से कैसे निकाल सकै?"



"निकालनी पड़ती है किरन जी-नोकर को अपने एम्पलायर, की जाने कितनी चुभने वाली बाते दिमाग से निकालनी पड़ती हैं !"



किरन के होंठों पर नाचने वाली मुस्कुराहट गहरी हो गई, बोली--"' मुझे तुम्हारा एक फोटो चाहिए ।"


"फ-फोटो " रमन आहूजा का दिल धक धक करके बजने लगा ।

"कहां से बोल रही हो तुम ?” दूसरी तरफ़ से बैरिस्टर विश्वनाथ की उद्विग्न आवाज सुनाई दी…“हम तुम्हारे लिए परेशान हैं-सुबह की निकली अब तक घर में घुसी हो, लंच पर भी नहीं आयी ---तुमने अपने दिमाग पर क्या सनक सवार कर ली किरन---सब कुछ छोड़ो और जहां कही हो वहां से सीधी घर आओ ।"


" आपकी घडी में क्या बजा है ? "' पब्लिक टेलीफोन बूथ में खड़ी किरन ने पूछा ?"



"साढे आठ ।"



"मैं ठीक दस बजे तक घर पहुंच रही हूं ।" किरन ने कहा ----" और अब वह सुनिये जो सुनाने के लिए आपको फोन किया है---मैं यह बताना चाहती हूं पापा कि अगर दस बजे तक घर न पहुंचूं तो मेरी खोज शुरू कर दीजिएगा, उस अवस्था में या तो मैं आपको किसी अस्पताल के एमरजेन्सी वार्ड में जख्मी पडी मिलूगी या 'किडनैप' कर ली जाऊंगी और यह भी हो सकता है कि आपको कहीं से मेरी लाश भी मिले ।"



"कि किरन किरन !" बैरिस्टर विश्वनाथ पागलों की मानिन्द चीख पड़े --- ये --ये तुम यया बक रहीं हो बेटी , ऐसा क्या हो गया कि ..........!"



"हुआ नहीं पापा, होने जा रहा है ।"


"क् -क्या ? "



अगर मेरे साथ केई दुर्घटना घटे तो आप समझ जाना पापा किं उसके जिम्मेदार राय अंकल हैं ।"



" श ..... शहजाद राय ?" बैरिस्टर विश्वनाथ उछल पड़े ।


"हां !"


" क -- क्यो .......'मिस्टर राय ऐसा क्यों करेगे है ? "

"जवाब देगी वह चीज जो मैंने टैक्सी नम्बर यू बी एक्स 4889 की पिछली सीट के नीचे छुपा दी है ।"



"क-क्या छुपा दिया है तुमने वहां ?” बैरिस्टर विश्वनाथ ने लगभग चीखते हुए पूछा परन्तु किरन ने जवाब मुंह से देने के स्थान पर रिसीवर आहिस्ता से क्रेडिल पर लटका दिया ।



बूथ से बाहर निकली वह और वहीं खडी उस टैक्सी की पिछली सीट पर सवार हो गई जिसमें शेखर मल्होत्रा पहले से ही सवार था !!



"चलो ।" किरन के अादेश के साथ टैक्सी अागे बढ गई ।



शेखर ने पुछा----"'टैक्सी रूका--कर तुमने किसे फोन किया था ?"


"क्यों ? "



"यह जानने के लिए कि इस वक्त वे घर पर हैं या नहीं ?”



"क्यों जानना चाहती थीं तुम ?" तो जवाब में किरन के होंठों पर वह मुस्कान उभरी जिसका अर्थ आसानी से किसी की समझ में नहीं अाया करता----टैक्सी फर्राटे भरती हुई अपने गंतव्य की तरफ दौड रही थी------वह टैक्सी जिसका रजिरट्रेशन नम्बर यू वी एक्स 4889 था ।
किरन अपने ऊपर हुए हमले का विवरण बता चुकीं थीं और उस वक्त शेखर बार बार कह रहा था कि या तो वह इस केस की रि'-इन्वेस्टीगेशन की 'ताक' पर छोड़ दे अथवा अपनी सुरक्षा का कोई इंतजाम करे क्योंकि इस मामले से कदम पीछे ना हटाने का साफ मतलब है कि पुन: हमला होगा ।


किरन होले-से मुस्कुराई थी कि टैक्सी गंतव्य पर पंहुच गई !
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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उतरते हुए शेखर ने कहा-“तुमने बताया नहीं कि यहां शहजाद राय के बंगले पर क्यों आयी हो ?"



"तुम्हें एक चमत्कार दिखाने ।"


"च-चमत्कार ।" टैक्सी का पेमेन्ट करता हुआ शेखर चौंका । "



"हां, वह चमत्कार ही होगा-तुम्हारे लिए और "राय अंकल' के लिए भी ।” किरन कहती चली गई--“मेरे पास एक ऐसी धमाकेदार चीज है जिसे राय अंकल ने अपने पिछले जीवन में देखा तो जरूर होगा परन्तु मेरे पास देखकर उनके छवके छूट जायेगे ?"



"छ--छक्के छूट जायेंगे ?"



" निश्चित रूप से ।”


"ऐसी क्या चीज है तुम्हारे पास ?"


"जो भी चीज है उसे तुम्हारे सामने राय अंकल को दिखाऊंगी -- तभी तुम भी देखना----चीज को भी और राय अंकल क चेहरेे को भी--- मेरा दावा है कि वेसा चेहरा तुमने अपने पिछले जीवन में कभी न देखा होगा ।"



“तुम तो मारे सस्पेंस के मेरे होश फाख्ता किए दे रही हो ।"'


"आओ ।" कहने के बाद किरन तेजी से बंगले के मुख्य द्वार पर पहुच गई ।

दरवाजा खोलकर किरन ने 'एयरकंडीशन्ड' आँफिस में कदम रखा ही था कि शहजाद राय की अन्दाज गूँजी--"आओ बेटी----आओ , तुम इस वक्त यहाँ …!"


शब्द मुंह में ही रह गये ।


उसके पीछे दाखिल होते शेखर मल्होत्रा को देखकर उन्होंने स्वयं अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया था ।

किरन ने पूछा---"क्या हुआ, कुछ कह रहे थे आप हैं''



"त-तुम......इसके साथ ?" शहजाद राय बोले--"य-यानि तुम मानी नहीं ?"


"मानने से मतलब ?"


"संगीता मडर्र केस की रि---इन्वेस्टीगेशन की 'सनक' तुम्हारे दिमाग में अभी तक सवार है ?"



किरन स्कुराई, बोली-“आपके ख्याल भी पापा से मिलते हैं --- मैं कुछ जरूरी बातें करने आईं थी ।"



"बैठो ।" शहजाद राय ने खाली कुर्सी की तरफ़ इशारा किया ।


किरन उस तरफ बढ़ गई ।


मेज के उस पार सिंहासननुमा कुर्सी पर शहर का सबसे धुरंधर माना जाने वाला प्रसिद्ध 'क्रिमिनल-लायर विराजमान था-----वह, जो अंग्रेज की तरह सुर्ख और सफेद था…वह . जिसके चेहरे से रौब, तेज और रईसी टपकती थी और, वह, जिसकी अपनी 'शान' इतनी जबरदस्त थी, लोग इस आफिस में दाखिल होते ही' उसके प्रभाव में गिरफ्त हो जाते




मेज के इस तरफ़ चार कुर्सियां थी ।


"बैठो शेखर ।" किरन ने कहा ।


और !
स्वयं बैठी जब शेखर बैठ चुका, बैठते ही बोली---""शेरव्रर ने हवालात में आपको "फ़र्स्ट अप्रैल' वाली कहानी सुनाई यी मगर आपने उस कहानी को वहीं के वहीं दबा दिया और अपने दिमाग से एक नई कहानी को ज़न्म दिया-उस कहानी को जिसे आपके निर्देश पर इसने अपने बयान का जामा पहनाया औदृ फिर आपने उस कहानी की कोर्ट में 'सच्ची' साबित करने की असफल चेष्टा की ।"



किरन के शब्द सुनते ही शहजाद राय की भृकुटी तन गई, मस्तक पर बल पढ़ गये और 'घूरने' वाले "अन्दाज़' में वे शेखर मल्होत्रा की तरफ देखने लगे-मुद्रा साफ-साफ़ कह 'रही थी कि वे शेखर मल्होत्रा से खफा है और नागवारी वाले अन्दाज में अभी शेखर पर ही घुड़कने' ही वाले थे कि किरन ने कहा- -- प्लीज अंकल मेरे सवाल का जवाब केवल मेरी तरफ देखते हुए दीजिए----मैं जानना चाहती हूं कि क्या यह सच है ?"

"सच है ।" उसकी तरफ़ देखते हुए शहजाद राय ने संक्षिप्त उत्तर दिया ।



“आपने उसी कहानी के आधार पर केस क्यों नहीं के लडा जो सच थी ?"



“जितने दिन हमने इस केस को अदालत में घसीटा है उतने दिन सिर्फ और सिर्फ अपनी कहानी के बूते पर घसीटा है-अगर इसकी कहानी के आधार पर चले होते तो दो-तीन तारीखों के बाद ही इसे सजा हो जाती ।"


"मैं ऐसा नहीं समझती ।”


“इसलिए नहीं समझती क्योंकि अभी तुम "कच्ची हो-तार्जूबे का जबरदस्त अभाव है तुममें-य-इस बारे में अपने पापा से बात करना, दोनों कहानियां उन्हें सुनाना और तब पूछना कि हमने ठीक किया या नहीं ?"



“तो आपने इसकी स्टोरी पर इसलिए केस नहीं लडा " क्योंकि वह अापको जमी नहीं थी ?"
"क्या यह बात हमेँ स्टाम्प पेपर पर लिखकर देनी पडेगी? "


शहजाद राय की आंखों-में आंखें डालकर पूछा किरन ने…"कोई और वजह तो नहीं थी अंकल ?"



"अ् अ -और वजह. ?"' शहजाद राय उछल पड़े-“और क्या हो सकती है ?''



"मुमकिन है कि आपका उदूदेश्य शेखर मल्होत्रा को बचाना नहीं बल्कि फंसाना हो ?"



""-फ फसाना ?" शहजाद राय चिहुंक उठे---" क्या बक रही हो तुंम-क्या हम यहां अपने क्लाइन्दृस को फंसाने के लिए बैठे हैं?"


किरन अपने मुह से निकलने वाले एक-एक लफ्ज को चाबाती हुई बोली--" माफ कीजिएगा अंकल, शेखर मल्होत्रा सिर्फ और सिर्फ आपका 'क्लाइन्ट' ही नहीं बल्कि अबकी बेटी का हत्यारा भी था ।"



"ह-हमारी बेटी का ?" शहजाद राय के हलक से ऐसी है आवाज़ निकली जैसे कोई उनकी गर्दन दबा रहा हो ।


बूरी तरह चौंकते हुए शेखर ने पलटकर किरन की तरफ देखा ।

परन्तु !


किरन का ध्यान उनकी तरफ़ कत्तई नहीं था ।



उसका चांद-सा खूबसूरत मुखड़ा इस वक्त दोपहर के सूर्य की मानिन्द चमक रहा था, सुलगती आंखें शहजाद राय पर केन्द्रित किये किरन अपने मुह से शब्द नहीं बल्कि अाग बरसाती चली गई--"' हा", आपकी बेटी अंकल-क्या एाप मेरी आखों में आंखें डालकर कह सकते हैं कि संगीता जापकी वेटी नहीं थी ?"



"क-वया वक रही हो तुम ?"' शहजाद राय दहाड उठे---, शर्मनाक 'गप्प' तुम्हें किसने सुनाई ?"

“इसने ।" कहने के साथ किरन ने अपने पर्स से एक पुराना फोटो निकालकर मेज पर फेक दिया ।



और !!



वह फोटो ......... वह फोटो ही वह चमत्कार था जिसका जिक्र किरन ने शेखर मल्होत्रा से किया था ।

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फोटो पर नजर पड़ते ही जहाँ शेखर मल्होत्रा के हलक से आश्चर्य मिश्रित सिंसकारी निकल पडी, वहीं शहजाद राय का चेहरा ऐसा हो गया जैसे भरे बाजार में नंगे कर दिए गये हों ।


सारा तेज, सारी सौम्यता और सारी रईसी टूट-टूटकर बिखर गयी ।



चेहरा विकृत नजर आने लगा था । पीता जई ।



मुर्दे के चेहरे से भी ज्यादा निस्तेज ।


निश्चित रूप से शेखर मल्होत्रा ने अपने पिछले जीवन में ऐसा चेहरा नहीं देखा था ।



आंखों में खौफ़नाक भाव लिए शहजाद राय मेज के बीचों बीच पड़े उस फोटो को देख रहे थे, जिसमें युवावस्था में वे स्वयं गुलाब चंद की पत्नी के साथ आपत्तिजनक मुद्रा में नजर. खा रहे थे ।



उन्होंने झपटकर फोटो उठा लिया और शेखर मल्होत्रा अभी कुछ समझ भी नहीं पाया था कि किसी जुनूनी की मानिन्द फोटो के टुकड़े--टुकड़े कर दिए उन्होंने-----शेखर ने चौंककर किरन की तरफ देखा और उसकी तरफ़ देखते ही मानो दंग रह गया ।



किरन मुस्कुरा रही थी ।



बेहद जहरीली, व्यंग्यात्मक और प्यारी-प्यारी मुस्कान थी उसके होंठों पर !

शहजाद राय यूं हांफ रहे थे मानो सैकडों मील दौड़ने के बाद अभी-अभी यहां पहुचे हों



आंखों में अजीब-भी दहशत लिए उन्होंने किरन की तरफ देखा ही था कि चमचमाती मुस्कुराहट के साथ किरन ने कहा----" मुझे मालूम था अंकल कि अाप उस फोटो का यही हस्र करेंगे, इसलिए मालूम था क्योंकि मैं भी एक वकील हू और अाप भी--- वकील अच्छी तरह जानता है कि सबूत को अगर कोर्ट में पहुंचने से पहले खत्म कर दिया जाए तो कुछ साबित नहीं किया जा सकता ।"



शहजाद राय की जुबान को मानो लकवा मार गया था !



'शब्दकोष' उसके लिए फैवट्री में अभी-अभी तैयार हुआ कोरा कागज़ बन चुका था ।



और किरन ।




किरन के लिए 'शब्दकोष' की मोटाई मानो चौगुनी हो गई थी, विजेता वाली मुस्कान होंठों पर लिए यह कहती चली गई ----'' आपको यह जानकर निराशा होगी अंक्ल कि मेरे पास ऐसे ही सात फोटों और हैँ----मैंने माना उनमे आपकी और संगीता की मां की मुद्राएं अलग हों मगर कहानी सारे फोटो वही कहते हैं जो वह फोटो कह रहा था जिसके आपने दुक्रड़े कर दिए ।"



शहजाद राय की सिटृटी-पिटृटी गुम !


काटो तो खून नहीं ।


किरन ने अपने पर्स से पुराना लिफाफा निकालकर उसे दिखाते हुए कहा--" फोटो इस लिफाफे में हैं और लिफाफे वे चिट्ठियां भी हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि अाप भी कभी मूल रूप से हस्तिनापुर के रहने वाले हैं और गुलाव चन्द में संतान पैदा करने की क्षमता नहीं थी तथा संगीता अपके और उसकी पत्नी के सम्बन्धों की उत्पत्ति थी !!

"य-यह लिफाफा दे दो ।"



किरन ने जहरीले स्वर में कहा----"ताकि एाप सारे फोटो और अपने कर-कमलों से लिखी चिट्ठियां फाड़कर फेक दे?”



“उन सम्बन्धों का-इन चिट्ठियों या फोटुओं का अथवा संगीता के मेरी वेटी होने का उसके मर्डर केस से कोई सम्बन्ध नहीं है…यह एक अलग कहानी है और हम नहीं चाहते कि यह कहानी किसी को पता लगे ।"



"क्यों, क्या इस प्रेम-प्रकरण का संगीता मर्डर -- केस में इतना दखल भी नहीं है कि आपने अपने क्लाइन्ट शेखर मल्होत्रा को कोर्ट से बचाने की नहीं बल्कि कानून के चगुल में फंसने की कोशिश की?"



शहजाद राय के मुंह पर पुन: अलीगढी ताला लटक गया । "




किरन कहती चली गई…“ऐसी कोशिश आपने इसलिए नहीं की क्योंकि आपकी अपनी सोचों के मुताबिक संगीता का हत्यारा शेखर मल्होत्रा ही था और कौन बाप नहीं चाहेगा कि अपनी आंखों से वेटी के हत्यारे को फांसी पर झूलता देखे-अपने इसी--- मंसूवे को परवान चढाने के लिए आपने शेखर मल्होत्रा के अपने विश्वास में लेकर इसकी वह स्टोरी निरस्त कर दी जो इसे बचा सकती थी और ऐसी कहानी के साथ केस लड़ा जिसके बारे में आपको मालूम था कि क्रोर्ट में पिटनी ही पिटनी है, वाह !!! शेखर मल्होत्रा के चारों तरफ़ क्या जबरदस्त चक्रव्यूह रचा गया…वही फंसा रहा था जिसे इसने खुद को बचाने की जिम्मेदारी सौंपी थी… इससे ज्यादा चक्करदार चक्रव्यूह और क्या हो सकता है कि कोर्ट में खड़े दोनों वकीलों का मकसद एक ही था, शेखर मल्होत्रा को फंसाना, बचाव के लिए कोई भी तो न था…फिर..... "फिर शेखर मल्होत्रा बेगुनाह साबित होता भी तो कैसे ? "

"खुद को अपने चारों तरफ़ फैले चक्रव्यूह से बचाता भी तो कैसे अंकल ?"




"संगीता का हत्यारा यही है किरन ।"



अभी मैंने आपको सिर्फ एक स्टोरी सुनाई है अंकल, दूसरी नहीं सुनेगे ?"




"दूसरी स्टोरी है"'




"अगर मैं इस स्टोरी पर गौर करूं तो कैसा रहे कि गुलाब चन्द की कार सैकडों फिट गहरी खाई में इसलिए आ गिरी क्योंकि उसे पता लग गया था कि संगीता आपकी बेटी है और फिर जब एक दिन यही रहस्य संगीता को पता लग गया तथा वह यह कहने लगी कि अपको उसे सारी दुनिया के सामने अपनी बेटी कबूल करना पडेगा तो अपनी इज्जत की खातिर आपने अपनी अवेध संतान को खत्म करके" चक्रव्यूह में शेखर मल्होत्रा को फंसा दिया !"



" "क-क्या बेसिर-पैर की स्टोरियां सोच रही हो तुम ?"



" 'कौन-सी स्टोरी के सिर-पैर से और कौन-सी के नहीं हैं, इस बात का फैसला कोर्ट में होगा अंकल ।" गुर्राहटदार स्वर में कहने के साथ किरन एक झटके से खडी हो गई बोली…"चलो शेखर ।"




"ठ-ठहरो ।" शहजाद राय इस तरह चीख पड़े जैसे उनके जिस्म से रूह निकलकर चलने की तैयारी कर बैठी हो !


"कहिये ?"



"लिफाफा हमें दे दो ।"



"लिफाफा नहीं मिलेगा अंकल और कान खोलकर सुन लीजिए कि मैं यहीं से सीधी अपने घर जा रही हूं----अगर दोपहर की तरह मुझ पर हमला हआ, किसी ने मुझे या शेखर को रोकने अथवा मारने की केशिश की तो पापा को यह वात पता लग जाएगी कि हमारे साथ जो कुछ हुआ है बह आपने कराया है !"



शेहजाद राय यूं खड़े रह गये जैसे उनका सब कुछ लुट गया हो !!!!
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Re: चक्रव्यूह -हिन्दी नॉवल by Ved prakash sharma

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सड़क के पार खडी टैक्सी की तरफ बढते हुए शेखर ने कहा---आओ किरन ।"



“नहीं शेखर, हम टैक्सी से नहीं, बस से चलेंगे ।"



"वजह ?-"'



"वस में भीड़ होगी और क्राइम करने वाले भीड़ से कतराते हैं ।"'



“मैं सहमत हूँ और तुम्हारे दिमाग की दाद भी देता हैं ।" मुस्कुराता हुआ शेखर तुरन्त कह उठा ।


मुस्कान का जवाब मुस्कान से देती किरन ने कहा… "तो आओ, बस-सटॉप की तरफ चलें ।"



कुछ देर वाद वे भीड़ से ठसाठस, भरी बस में यात्रा कर रहे थे । दो स्टॉप बाद दो व्यक्तियों के लिए बनाई गई एक सीट मिल गई थी उसे तब शेखर ने कहा----"मैं यह नहीं समझ ' पाया किरन कि तुम हत्यारा किसे मानकर चल रही हो… रमन को या शहजाद राय को ?"




किरन के होंठों पर मोहक मुस्कान उभर आई, बीली !!!



इन्वेस्टीगेटर किसी के सामनें बाते कुछ और कर रहा होता है और दिमाग में कुछ और सोच रहा होता है-बैसे मेरे ख्याल से कल मुझे यह बात पता लग जानी चाहिए कि हत्यारा कौन है ???"



"क-कल .......कल तुम्हें यह बात पता लग जाएगी है"' शेखर उछल पड़ा है !!
किरन की मुस्कुराहट रहस्यमय हो उठी, बोली--. "सम्भावना तो है ।"



" क-- केसे ।" प्रसन्नता की ज्यादती के कारण शेखर का लहजा कांप रहा था।



"मैँने सबके फोटो मांगे हैं, वे बता देगे कि हत्यारा कौन है ?"




. "फ-फोटो तुम्हें संगीता का हत्यारा बता देगे । मैं कुछ समझा नहीं ।"



रहस्य से लबालब भरी मुस्कान के साथ किरन ने .कहा---"'हर चीज बोलती है शेखर, सुनने वाले के पास दिमाग होना चाहिए और मजे की बात ये कि कुदरत ने मुझे दिमाग देते वक्त किसी किस्म की कंजूसी नहीं वरती ।"


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