दुल्हन मांगे दहेज complete
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Re: दुल्हन मांगे दहेज
"सवाल बाद में करना, मैं तुम्हें बेडरूमं में नहीं ले जाऊंगा ।" इस आश्वासन के बावजूद वह ऊपर चलने के लिए तैयार न हुई, मगर हेमन्त किसी तरह खींच-खांचकर उसे ले ही गया, उपर वाले ड्राइगरूम के सोफे पर बैठाता हुआ बोला…"तुम यहां रहो, मैं अभी आता हूं ।"
रेखा के मुंह से बोल ना फूटा ! जवकि दोनों कमरें के बीच का दरवाजा खोलकर हेमन्त बेडरूम में चला गया-----सुचि की लाश वहां ज्यों की त्यों लटक रही थी !
सारे कपडे इधर उघर पहले ही फैेले हुए थे । उसने अपनी शादी की एलबम निकाली-----उसी के बीच रखे उसे सुचि के पत्र मिल गए----एक ऐसा पत्र देखकर उसकी आखें चमक उठी,, जिसका कागज कॉपी के बीच वाले स्थान से फाड़ा गया, यानी एक साथ दो पेज । …
उल्टे - सीधे मिलाकर चार बीच में पिंस के छेद ।
मगर सुचि ने लिख एक ही पेज रखा था ! दूसरा पूरी तरह खाली ।
हेमन्त एक पैन और उस पत्र को लिए रेखा के पास आया बोला----" जल्दी से सुचि की राइटिंग में इस खाली पेज पर सुचि के पत्र का मेटर उतार दो ! "
"इससे क्या होगा ?"
"सवाल नहीं, जल्दी करो…क्विक !"
"मगर इतनी जल्दी में राइटिंग हु-ब-हू नहीं मिल सकती भईया !"
"नहीं !" हेमन्त गुर्रा सा उठा…"राइर्टिग हू-बू-हू मिलनी चाहिए अौर काम तुम्हें जल्दी भी निबटाना है, यह किसी एक की नहीं, वल्कि हमारे सारे परिवार की जिदगी और मौत का सवाल है रेखा ।"
"आखिर बात क्या है ?"
" प्लीज, समय मत् गंवाओ-जल्दी करो !"
रेखा ने पहले उसी कागज पर जिस पर सुचि ने पत्र लिख रखा था, सुचि की राइंटिग के कुछ अक्षर बनाए, फिर शब्द और कुछ देर की कोशिश के बाद पूरी एकं पंक्ति लिखकर बोली---" देखना भइया, ठीक है ,क्या ?"
देखते ही हेमन्तं की आंखें हीरों की तरह जगमग करने लगीं…उसे सुचि की राइटिंग और रेखा द्वारा लिखी गई पंक्ति में कहीं भी कोई फर्क नजर ऩहीं आया, मुंह से बरबस ही निकल गया--;-"मार्वलस-वैरी गुड रेखा-अव जल्दी से खाली कागज पर इस पत्र की नकल उतार दो । "
रेखा शुरू हो गई ।
हेमन्त का दिल धाड़ धाड़ करके बज रहा था ।
अब उसे यह चिंता सताने लगी थी कि पत्र लाने के बहाने नीचे बाले ड्राइंगरूम से हटे उसे कांफी देर हो गई है, वे सोच तो जरूर रहे होंगे-----इस बीच बाबूजी,, मां और अमित से जाने यह घाघ इंस्पेक्टर क्या-क्या पूछ रहा होगा ? "
कहीं उनमें से कोई कुछ उल्टा-सीधा न बक दे ।
यह शंका भी उसके दिमाग में उभरने लगी थी कि कहीँ इतनी देर होती देखकर गोडास्कर स्वयं ऊपर न चला आए-बस कल्पना ने उसके दिमाग को फिरकनी की तरह घुमा दिया था, उसके ऊपर चढ़ अाने का मतलब था !
सब कुछ खत्म !
हथकडियां, जिल्लत और फासी ।
रेखा जमी आधा ही पत्र उतार पाई थी कि बाहर वाली गैलरी से भारी बूटों की पदचाप गूंजी-हेमन्त के कान कुत्ते की तरह खडे हो गए ।
उछलकर खडा हुआ ।
हाथ रोककर रेखा फूसफसाई----"प......पुलिस ।"
"तुम अपना काम करो मैं उसे संभबालता हूं ।" कहने को तो हेमन्त ने कह दिया, झपटकर दरवाजे की तरफ बढ भी गया, परंतु गोडास्कर की कल्पना मात्र से ही उसके पेट से गेस का गोला उठाकर दिल से टकराने लगा था ।
बंद दरवाजे पर दस्तक हुई ।
"क..कौन है ?" हेमन्त की आतंक से सराबोर आवाज़ ।
एक कांस्टेबल की आबाज…"आपको नीचे इंस्पेक्टर साहब बुला रहे हैं । "
स्वयं गोडास्कर नहीं था यह सोचकर हेमन्त की हिम्मत बढ़ गई, बोला---- उनसे कहना कि ढूंढ रहा हू अभी तक मिला नहीं है-पांच मिनट में आता हूं !"
" जल्दी अाइए । सपाट स्वर में इस अवाज के बाद दूर होती भारी बूटों की पदचाप, हेमन्त फूसफूसाया-"जल्दी करो रेखा, अगर खूद इंस्पेक्टर ऊपर आ गया तो सुचि की लाश उसकी नजरों से बचानी मुश्किल हो जाएगी ।"
"अब तो हद हो रहीं है ।" अपनी रिस्टवॉच पर नजर डालते हुए गोडास्कर ने कहा-----" मिस्टर हैमन्त पत्र ढूंढ रहे है या भूसे में से सुई, पूरे पंद्रह मिनट हो गये है-----मैं ही देखता हूं !"
" मैं आगया हूं इंसपेक्टर !" हेमन्त तेजी से कमरे में दाखिल होता हुआ बोला----"देर के लिए माफी चाहता हूं---------- मगर वह बात यह थी कि सब चीजे सुचि के चार्ज में रहती थीं न, इसलिए ढूढ़ने में थोड़ी दिक्कत हुई । "
"लगता ,अंत में अाप कामयाब हो ही गए । "
"ज.. जी क्या मतलब ?"
" मेरा इशारा तुम्हारे हाथ में मौजूद इस कागज की तरफ ।"
"ओह हां-----यह लीजिए।" आते हुए हेमन्त ने पत्र उसकी तरफ बढ़ा दिया-------"आप खुद देख लीजिए, यूं देखेने पर राइटिंग में कोई फर्क नजर नहीं अाता, मगर मेरा दिल कहता है कि इन दोनों में कोई फर्क जरूर निकलेगा !"
"राइटिंग का जो विवाद तुमने खडा क्रिया है मिस्टर हेमन्त, यह तुम्हें शाम या ज्यादा-से ज्यादा कल तक बचा पाएगा क्योंकि तब तक रिपोर्ट अा जाएगी । "
कसमसाकर चुप रह गया हेमन्त ।
कुछ देर के लिए वहाँ खामोशी छा गई, ऐसी खामोशी जो भी हरेक को शूल की तरह चुभने लगी-----फिर भी हेमन्त अपनी कारगुजारी पर थोडा खुश था ! किसी भी हद तक सही, मगर वह इस घाघ इंस्पेक्टर को धोखा देने में सफल जरूर हो गया था, अचानक गोडास्कर ने कहा----"'मैं आपको इसी वक्त गिरफ्तार करता हूं मिस्टर अमित ।"
सभी उछल पड़े, गोडास्कर के शब्दों ने, बम के विस्फोट का----सा काम किया था-ओंर अमित के तो दैवता ही कूच कर गए, काटो तो खून नहीं ।
चेहरा निचुड़ सा गया ।
" क.. किसे जुर्म में । हेमन्त चीख-सा पड़ा अमित पर ऐसा क्या एक्सट्रा आरोप है, जो हम पर नहीं । "
"हापुढ़ से एक कार चुराकर बुलंदशहर तकं लाए हैँ यह ।"
गड़गड़ाकर बिजली उनके सिर पर गिरी, अमित बेचारा तो आतंक की प्रतिमूर्ति सा नजर अाने लगा था, हकला उठा-----" ल----लेकिन !"
" आपने कार चुराई थी-यह अाप कुछ ही देर पहले खुद स्वीकार कर चुके है।"
" ज---जी हां !"
"बस--मै आपको उसी जुर्म में गिरफ्तार कर रहा हूं । "
गिरफ्तारी के नाम मात्र से अमित के प्राण कंठ में आ फंसे थे---सभी कसमसा कर ऱह गए, कुछ कर नहीं सकते थे बेचारे----दरअसल इस बड़े झमेले में _'कार चोरी' जैसी मामूली घटना उनके दिमागों में ही न थी ।"
विशम्बर गुप्ता और ललिता हक्का-बक्का रह गए ।
"फिक्र मत करना अमित् तुमपर कोई बहुत बड्रा आरोप नहीं है । हिम्मत करके हेमन्त ने कहा-----''हम तुम्हे जेल तक नहीं पहुंचने देगे, अाज दिन में कचहरी से ही जमानत करा लेंगे तुम्हारी।"
आँखों में खौफ लिए दयनीय भाव से अमित ने उसे देखा ।
हेमन्त को लगा कि वह बहुत डरा हुआ है, अचानक उसके दिमाग में यह ख्याल आया कि दहशतग्रस्त अमित कहीं कुछ ,बक न दे ?
इस विचार ने उसके दिमाग की जड़ों को झंझोड़ डाला ।
अचानक उसे लगा कि 'कार चोरी' का आरोप तो मात्र बहाना है , वास्तव में गोडास्कर ने उसे सुचि बाले वे केस के बारे में सवालात करने हेतु अपने चार्ज में लिया है ।
कांप उठा हेंमन्त !
इस बारे में उसने जितना सोचा, घबराहट बढती ही गई । उसे लगा कि अमित गोड़ास्कर के सवालों के सही जवाब देना तो दूर, संतुलित भी नहीं रह पाएगा-चालाक गोडांस्कर डरा धमका कर या बातों के जाल में फंसाकर कुछ उगलवा ही लेगा ।
हेमन्त का खेल खत्म-सा लगा ।
अंत में गोडास्कर अपनी चाल चल गया था ओऱ व कुछ है भी नहीं कर सकता था ।
"चलिए मिस्टर अमित !" गोडास्कर की यह आवाज हेमन्त के कान में पड़ी, वह किसी पागल की तरह चीख पड़ा ----"होंसला रखना अमित अपने बड़े भाई पर' यकीन ऱखना-मैं किसी को भी ऐसे किसी अपरांथ में फंसने नहीं दूंगा जो हमने किया ही नहीं !"
पुलिस चली गई !
इस्पेक्टर गोडास्कर नाम की वह आफत चली गई, जो सामने वाले के पेट से गैस का गोला उठा दिया करती थी, मगर वह अमित को ले गया था, शायद इसलिएं ड्राइंगरूम में काफी देर तक खामोशी छाईं रही----बीच बीच में वे एकदूसरे की तरफ डरी-सहमी निगाहों से देख लेते थे ।"
हेभन्त धीरे धीरे आगे बढा ।
थका सा वह धम्म से एक सोफे पर गिर पहा । उसीं,क्षण रेखा ने ड्राइंगरूम में कदम रखा-उसके चेहरे
पर देसै ही भाव थे जैसे शेर के सामने बंधी बकरी के चेहरे पर होते हैँ-----जाहिर था कि उसने ड्राइंगरूम के उस दरवाजे के पीछे खड़ी होकर सब कुछ सुना या जो अंदर बाली गेलरी में खुलता था ।
अचानकं बिशम्बर गुप्ता बड़बड़ा उठे------"अब क्या होगा ?"
''आप फिक्र न करे बाबुजी भगवान ने चाहा तो सब ठीक ही होगा ।"
" अगर भगवान की ही नजर तिरछी न होती तो इतना सब कुछ क्यो होता ?" ललितादेवी कह उठी----"जाने वह कौन से जन्म के बदले ले रहा है हमसे।"
"वह अमित को ले गया है, क्या इससे तुम्हें डर नही लग रहा है हेमन्त ?"
बिशम्बर गुप्ता ने पूछा !
" लग रहा है, मगर इसमे ज्यादा हम कर ही क्या सकते थे बाबूजी जितना मैंने क्रिया, सांकेतिक भ'षा में मैंने उसे समझा दिया है कि जो बयान पुलिस को दिया गया है, उससे हटकर गोडास्कर को कुछ न बताए ।
"तुम्हारे कहने से शायद कुछ नहीं होगा, पुलिस के हथकडों को हम जानते हैं-----अगर वे चाहें तो सख्त सै सख्त मुजरिम से हकीकत उगलबा लेते हैं-पुलिस के पास ढेरों तरीके होते हैं, उनके सामने अमित शायद ठहर न सके । "
"शायद ठहर सके----यह उम्मीद लगाने से ज्यादा हम कर ही क्या सकते हैं ?"
"अगर उससे गोडास्कर ने सव कुछ उगलवा लिया तो.......।"
" शुक्रिया ! " चुटकी बजाता हुआ हेमन्त अचानक सोफे से खड़ा हो गया, बोला------" अमित को पुलिस की पूछताछ से बचाने का एक रास्ता है बाबूजी । "
"क्या ?"'
" आपके तो शहर के लगभग सभी वकील जानकार हैं, जानकार ही नहीं -बल्कि कहना चाहिए कि इज्जत करते हैं आपकी-----आप किसी अच्छे वकील को इसी समय थाने भेज सकते हैं, उसके सामने पुलिस अमित को किसी तरह का टॉर्चर नहीं कर पाएगी-----जब कोर्ट के टाइम तक वहीं रहे और अपनी देखरेख में अमित को मजिरट्रेट के सामने पेश कराए--कार चोरी केस मायने नहीं रखता, जमानत आसानी से हो जाएगी । "
बिशम्बर गुप्ता ने गंभीर स्वर में कहा-----" यह सब हो तो जाएगा हेमन्त, मगर. . . ।"
"म------------मगर क्या बाबूजी ? "
"तू आखिर करना क्या चाहता है, कुछ पता तो चले ?"
" क्या ममतलब ?"
"माना कि अमित के द्वारा पुलिस को कुल पता नहीं लगता, दिन में किसी समय हम उसकी जमानत भी करा लाते हैं,, मगर इससे होगा क्या----जो संदेह हम पर किया जाता है क्या उसमे मुक्त हो सकेंगें ?"
" कोशिश तो कर रहा हुं बाबूजी ।
" क्या कोशिश कर रहे हो , हमारा ख्याल तो यह है कि जो कुछ तुम कर रहे हो उससे पल-पल हम लेग मुसीबत की दलदल में और ज्यादा धंसते जा रहे हैं ।"
" मै समझा नहीं ?"
" सबसे पहले तो यह बताओ कि तुमने पुलिस से झूठ क्यों बोला, यह क्यों कहा कि रात तुम धर ही में थे ?"
"क्योकि सच मैं बता नहीं सकता था, उसे प्रूव नहीं कर सकता था । "
"क्यों नहीं बता सकते थे और रही प्रूव करने की बात-ओवर टाइम करने वाला, तुम्हारी फैक्टरी का हर वर्कर गवाही देता कि फैक्टरीं में सारी रात काम चला है और तुम सारी रात फैक्टरी मे ही थे।"
"ऐसा नहीं होता, क्योंकि दरअसल रात न तो फैक्टरी में क्रोई काम हुआ है, न ही मै वहां था ।"
"क...क्या मतलब ?" विशम्बर गुप्ता बुरी तरह उछल पड़े--- फिर कहां थे तुम, सारी रात क्या करते रहे ?"
हेमन्त गंभीर हो गया, बोता-------"'इस सवाल को अाप छोड ही दें तो ज्यादा बेहत्तर होगा बावूजी, बताते हुए मुझे भी अच्छा नहीं लगेगा । "
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: दुल्हन मांगे दहेज
"क्या बकवास कर रहे हो तुम ? बिशम्बर गुप्ता उफन पड़े-"हमें पहली बार इल्म हुआ कि तुम कोई काम
करते हो जिसे बताते हुए तुम्हें शर्म आएगी और हमसे झूठ भी बोलते हो, बताओ कि वास्तव में रात-भर तुम कहां रहे ? "
"होटल में ! " हेमन्त ने गरदन झुका ली !
"होटल ?" बिशम्बर गुप्ता चौंक पड़े------"होटल में क्यों ?"
"‘क्योंकि रात मैने शराब पी थी !"
"श-शराब ?" विशम्बर गुप्ता की हालत ऐसी होगयी जैसे पागल होने वाले हों…हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़े----"त...तुम शराब भी पीते हो ?"
" आदतन नहीं पीता, कभी-कभी मजबूरी में पीनी पडती हैं ।"
"उफ-है भगवान, यह क्या सुन रहे हैं हम---जिदगी के अंतिम क्षणों में ये क्या क्या दिखा रहा है तू हमें--क्या औलाद का यही रूप देखने के लिए हम जिंदा थे ? "
हेमन्त की आंखो में आंसू भर आए,बोला-----"आपक्रो ठेस लगेगी, मजबूरी में जो कुछ मुझे करना पड़ता है, वह आपको पसंद नहीं अाएगा, इसीलिए जब कभी पीनी होती है । मैं घर नहीं आता----किसी होटल में कमरै लेकर रात गुजार लेता हूं !"
" क्यों-आखिर क्या मजबूरी है तेरी ?"
" आपने जिन्दगी में कभी रिश्वत नहीं ली-----रिश्वत के रूप में पैसे के लेन-देन को ही अाप घृणित रूप में देखते हैँ-शराब पीना तो आपकी नजरों में ऐसा जुर्म है जिसे कभी माफ नहीं क्रिया जा सकता और यहीं तालीम आपने हम सबको भी दी,, घंर का माहोल ही ऐसा बनाया कि इस किस्म की बातों हैं के लिए यहां कोई जगह न थी । "
दर्द से बिलबिलाते बिशम्बर गुप्ता बोले-----''तभी तो तुमने हमें ये दिन दिखाया बेटे । "
"ऐसा मत कहिए बाबूजी यकीन मानिए…आपका बेटा खुशी से यह सब नहीं कऱता ।"
"हम तेरी यह मजबूरी जानना 'चाहते हैं ।"
"एक पल ठहरने के बाद हेमन्त ने वताया--"रिश्वत न लेकर आपका काम. चल गया होगा बाबूजी, लेकिन जरा सोचिए, आप जैसे कितने हैं-मैं दाबे के साथ कहता हूं कि शायद लाखों में एक निकले----मगर वह एक आसानी से रहीं न मिलता बाबूजी, अगर उस एक को ढूंढते रहें तो बिजनेस नहीं चल सकता-आपक्रो याद होगा, शुरू शुरु में जब मैंने फैक्टरी खोली थी तो एक साल तक,मै धाटे में जाता रहा----मैं प्रोडक्शन करता, मगर माल की सप्लाई ही कहीं न थी, फैक्टरी में माल के चट्टे लग गए-मै हर कम्पनी के पास जाता, अपने माल की क्यालिटी बताता परतु ओर्डर कोई न देता-उदार किस्म के हमपेशा लोगों ने बताया कि मुझे अॉर्डर लेने का तरीका नहीं अाता है------आँर्डर तब मिलेंगे जब संबंधित लोगों की जेबें गर्म करूं----उन्हें पार्टी दूं----मगर मैं न माना, आपके सिद्धांतों पर डटा रहा----एक साल गुजर गया, फैक्टरी लगभग ठप्प पड़ गई----बैंक वाले तकादा करने लगे----आप भी डांटते कि मैं केसा बिजनेस कर रहा हू जिसने कोई इनकम ही नहीं-तब कहीं जाकर मैं आपके आदशों से गिरा,हमपेशा लोगों की राय मानी--संबंधित लोगों को रिश्वत दी,शराब पिलाई----मुझें आँर्डर मिलने लगे-किसी की दिलचस्पी इस बात में नहीं है कि मेरे माल की क्वालिटी क्या हे…रिश्वत दे दो, कूड़े को सोना वताने लगते हैं--मेरी छोटी-सी फैक्ट्री केसे चली है आपको बताने का साहस मुझमें न था----जव दूसरों
को पिलाता हूं तो साथ देने के लिए जहर के वे धूट मुझे भी भरने पड़ते हैं और जिस रात ऐसा होता है, आपके डर से घर नहीं आता-----आज ऐसी मजबूरी आगई कि अापके दिल को ठेस पहुंचाने पर मजबूर हो गया ।
बिशम्बर गुप्ता हैरत से आंखें फाडे हैमन्त को देखते रह गए । काफी देर तक वहां खमोशी छाई रहीं ।
हेमन्त ने विनती करने वाले अंदाज में कहा----" आशा है आपने मुझे माफ कर दिया होगा बाबूजी ।"
"अगर बिना रिश्वत के यह काम नहीं चल सकता था तो कोई दूसरा काम कर सकते थे ।"
"अब मैं आपको कैसे समझाऊँ कि बिना रिश्वत और शराब के आजक्ल कोई काम नहीं चल सकता-जव आपका किसी से काम नहीं पड़ता और सारी दुनिया का काम आपसे पड़ता है तो आप बिना रिश्वत लिए रह सकते हैं, मगर जब आपका काम किसी से पड़े तो बिना रिश्वत दिए काम नहीँ निकल सकता ।"
बिशम्बर गुप्ता पर कुछ कहते न पड़ा-ऐसी बात नहीं कि वे बातें उनके इल्म में न हों जो हेमन्त ने कहीं, मगर यह जानकर उन्हें ठेस लगी कि उनका अपना बेटा भी भ्रष्टाचार की दलदल में फंसा हुआ है, बोले-"मगर तुम पुलिस इंस्पेक्टऱ को वास्तविकता भी तो बता सकते थे । "
" अगर मैं वह वास्तविकता बता देता जौ दरअसल प्रूब ही नहीं हो सकती तो हम और ज्यादा फंस जाते बाबुजी । "
" क्या मतलब ।"
" 'वह इंजीनियर जिंसने कल रात मुझसे पार्टी और रिश्वत ली, किसी भी कीमत पर अदालत में भी यह बयान नहीं दे पाता, कि वह रात मेरे साथ था क्योंकि ऐसा करने से उसकी नौकरी जा सक्ली थी ।"
बिशम्बर गुप्ता उस चक्रव्यूह के बारे में सोचते रह गए, जिसमें हेमन्त फंसा हुआ था, जबकि हेमन्त ने कहा----मैं उसके अलावा और कोई बयान दे ही नहीं सकता कि रात घर ही पर था ।"
रेखा ने पूछा-----"मगर आपंने मुझसे वह पत्र क्यों लिखवाया भइया ?
"उस चक्रव्यूह से निकलने की कोशिश कर रहा हूं जिसमें व्यर्थ ही हम सब फंस गए हैं । हेमन्त ने कहा------" अगर.हमने होशियारी से काम नहीं लिया तो बहू के हत्यारों के रूप में सारे समाज में बदनामी तो होगी ही, फांसी के फंदे से भी हमे कोई नहीं बचा सकेगा ।"
" मगर पता तो लगे कि तुम करना क्या चाहतें हो ?"
" सारा दारोमदार सुचि के उस पत्र पर है जो उसने न जाने क्यों अपने पीहर लिखा था, अगर हम उसे फर्जी साबित कर दें तो इस कलंक और बरबादी से निजात पा सकते हैं ।"
"लेकिन उसे फर्जी साबित _कैंसे क्रिया जा सकता है ?"
"सुचि की वास्तविक राइटिग बनाकर जो पत्र गोडास्कर को दिया है, वह दरअसल सुचि की राइटिंग बनाकर रेखा द्वारा लिखा गया पत्र है ! कोई भी साधारण आदमी नहीं ताड़ सकता कि पत्र अलग अलग व्यक्तियों ने लिखे हैं ।"
" मगर एक्सपर्ट को फर्क ढूंढने में कोई देर नहीँ लगेगी ।"
"जानता के इसलिए यह सब कुछ किया भी है-----सोचिए, एक्सपर्ट कहेगा कि दोनों पत्र लिखने वाले व्यक्ति भिन्न है"-----रेखा द्वारा लिखे पत्र को गोडास्कर सुधि का लिखा समझ ही रहा है तो क्या एक्सपर्ट की रिपोर्ट मिलते ही वह इस नतीजे पर नहीं पहुंचेगा कि पीहर से प्राप्त सुचि का पत्र किसी नकल एक्सपर्ट ने लिखा है ?"
बिशम्बर गुप्ता मन-ही-मन अपने बेटे के दिमाग की तारीफ का उठे ।
रेखा बोली---" मगर भइया,पुतिस सुचि भाभी के घर से उनकी पुरानी राइटिंग लेकर भी तो मिलान कर सकती है-उसे अवस्था में यह साबित होते देर न लगेगी कि दरअसल वह पत्र नकली राइटिंग में है, जो हमने दिया है ।"
"ऐसा हो सकता है, मगर होगा नहीं, क्योंकि गोडास्कर के दिमाग में यह सवाल अाने का कोई कारण ही नहीं है कि हमारे द्वारा दिया पत्र भी ऩक्ल माहिर हो सकता है ।"
" मगर बहूकी लाश का क्या होगा ?"
" हां, इस वक्त हमारे सामने सबसे अहम दिक्कत सुचि की लाश है, गनीमत रही कि गोडास्कर ने सुचि के कमरे का निरीक्षण करने की कोई इच्छा नहीं रखी, वरना उसे ऊपर जाने से रोकना शायद असंभव हो जाता और उस अवस्था में इस वक्त हम सबके हाथों में हथकड़ियां पड़ी होती !"
"लेकिन यह ही तो सोचो हेमन्त कि इस तरह हम उसे कब तक छुपाए रहेंगे, सुचि की खोज के लिए इनवेस्टीगेशन शुरू हो गई है, पुलिस जिसे तलाश करती है सबसे पहले उसके सामान और कमरे की तलाशी लेती है, क्योंकि वहीं से गुमशुदा व्यक्ति का पता निकलने की गुंजाइश सबसे ज्यादा होती -इस वक्त तो शायद सर्च वारंट के अभाव में गोडास्कर ने ऐसी कोई इच्छा जाहिर नहीं की, मगर हमारा ख्याल है कि जल्दी ही वह सर्चवारंट के साथ पुन: यहाँ आ धमकेगा ।"
" आप ठीक कह रहे हैं ! "
"उस वक्त हम क्या केरेंगे ?"
"मेरा ख्याल है क्रि हमारा सबसे पहला काम लाश को वहाँ से हटाकर मकान के किसी अन्य हिस्से में रखना होना चाहिए !"
" इससे क्या होगा ?"
"गोडास्कर के दोबारा यहाँ पहुंचने से पहले ही हम कमरे को इतना व्यवस्थित कर देगे कि उसके फरिश्ते भी यह पता न लगा सके कभी वहाँ सुचि की लाश थी । "
"क्या गोडास्कर को धोखा देने से ही हमारी सारी दिक्कतों का समाधान हो जाएगा-लाश को धर में कंब तक रख सकेंगे हम, उसमें से बदबू उठने लगेगी-अड़तालीस घंटे बाद तो हालत यह हो जाएगी कि मोहल्ले बाले थाने में जाकर बदबू की रिपोर्ट करने लगेगें।"
"ऐसा होने से पहले ही पहले लाश धर से बाहर निकालनी पडेगी।"
"धर से बाहर ? ' ' विशम्बर गुप्ता कांप उठे ।
"मज़बूरी है बाबूजी, लाश को हम अपने घर में नहीं दिखा सकते ।"
" मगर लाश को कैसे और कहाँ ले जाएंगे ?"
"जैसे भी हो, यह काम तो हमें करना ही है-रात के किसी भी वक्त लाश को घर से निकालेंगे और कहीं दूर, जंगल में डाल आएंगे ।"
"बिशम्बर गुप्ता के प्राण खुश्क हो गए-यह क्या बक रहे हो तुम ?"
"मज़बूरी है बाबूजी !"
" यह काम होगा कैसे ?"
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Re: दुल्हन मांगे दहेज
" सोचना पडेगा, बल्कि पूरी योजना बनानी पडेगी हमे…हमारे पास शाम तक का वक्त है, कोई ऐसी ठोस योजना बनाऐंगें----उस पर अमल करके लाश को न सिर्फ यहां से निकाल दे, बल्कि ऐसे इंतजाम भी कर दें कि जब भी, जहाँ भी सुचि की लाश पुलिस को मिले---वह हम पर संदेह न कर सके ।"
"म--मगर यह बहुत झमेले का काम है हेमन्त, हम कहीं भी-किंसी भी क्षण रंगे हाथों पकडे़ जा सकते हैं, नहीं-----मैं तुम्हें यह खतरनाक काम करने की सलाह नहीं दूंगा ।"
"तो फिर अाप ही बताइए, क्या करें?"
बिशम्बर गुप्ता एकदम कुछ नहीं बोले-जो कुछ हेमन्त ने कहा था, दरअसल उसे सुनकर उनके होश फाख्ता हुए जा रहे थे-----एक नजर उन्होंने ललिता और रेखा पर डाली-----इस कदर स्तब्ध खडी थी, जैसे पत्थर की मूर्ति हों, एक गहरी सांस छोड़ते हुए वे बोले-----"मेरा ख्याल यह है कि गोडास्कर को यहां बुलाकर उसे सारी बातें साफ साफ बता देनी चाहिएं !" '
"क्या ऐसा अाप कर नहीं चुके है ?"
" क्या मतलब ?"
"लाश घर में है, इस हकीकत … के अलावा हमने और उससे छुपाया ही क्या है-जो कुछ हमारे साथ हुआ, क्या वह सब कुछ ज्यों-का-त्यों उसे साफ-साफ नहीं बता दिया, मगर क्या उसने यकीन किया------क्या उसने माना कि हम दहेज के लालची नहीं हैं, हमने कभी सुचि से पैसे नहीं मांगे और हम उसे वहुत प्यार करते थे-------क्या गोडास्कर ने हमारी इस बात पर , यकीन किया बाबूजी कि अमित सचमुच हेयर पिन लेने बराल से लौटा था और हमें वास्तव में यह नहीं मालूम कि सुचि के साथ क्या हुआ?"
" नही, उसे हमारी किसी बात पर यकीन नहीं ।"
"उसे ही क्या किसी को भी नहीं आएगा-----"हल व्यक्ति हमें सुचि का हत्यारे समझेगा, अदालत तक हमारा यकीन नहीं करेगी !"
बिशम्बर गुप्ता किंकर्तव्यविमूढ़ से खडे रह गए ।
जोश के साथ साथ हेमन्त भावुकता से भी भर उठा, कहता चला गया वह "तब यही हकीकत बता देने से वह हम पर कैेसे यकीन कर लेगा कि लाश हमारे घर मैं है-फिलहाल की स्थिति में तो हम यहां खडे़ बातें भी कर रहे हैं, अगर ज्यादा हकीकत बता दें तो शायद जेल की अलग-अलग-वैरकों में पडे़ हों---जरा सोचिए, क्या वह इस बात पर यकीन करेगा कि जिस कमरे में मैं सारी रात सोता रहा, उसी में फंदा डालकर सुचि ने आत्महत्या कर ली और उसे पता ही न चला-पुलिस यह पुछेगी कि सुचि कोठी में कब और केैसे अा गई तो हम क्या जवाब देगे-किसी भी सवाल का हमारे पास ऐसा जवाब नहीं है, जिस पर लोग यकीन कर सकें-----बड़ी अासानी से यह बात साबित हो जाएगी कि खुद सुचि की हत्या करने के बाद हम, जब इसको आत्महत्या का मामला बनाने की कोशिश कर-रहे हैं । "
सनसनी सन्नाटा ।
"जिन हालातों में हम फंसे हैं, उनमें भगवान किसी को न फंसाए बाबूजी !" कहता-कहता हेमन्त जाने क्यों रो पड़ा--" पोते को खिलाने दुलारने के अरमान आज मम्मी और आपके दिल में लाश बन गए हैं, रेखा और अमित ने वह भाभी खो दी है जिसके साथ चुहल करते-करते जाने कब इनका दिन गुजार जाता था और म...मैँ...मैं तो अपने दिल की रानी, अपनी जिदगी की मौत पर दो आसू भी नहीं वहा सकता बाबूजी, लोग उन्हें भी नकली समझेंगें----हसेंगे, खिल्ली उड़ायेंगे मेरी-व्यंग्य कसेंगे मुझ पर ! "
रेखा और लेलितादेबी फफक-----------फफककर रो पर्डी !
बिशम्बर गुप्ता का सारा जिस्म सूखे पत्ते सा कांप गया था उनके चेहरे पर ज़ज्वातों की अांधी उड़ रही थी और लाख संभालने के बावजूद अंखों से आसूं छलछला उठे भावुकता के भंवर में फंसे वे बोले-----"रोता क्यों है बेटे--कायर कहीं के---मर्द भी कहीं रोते हैँ?"
और यह पहला अवसर था जब ऐसा लगा कि उस धर का कोई ऐसा सदस्य मर गया है जिससे वे लोग बहुत प्यार करते थे !!!!!
हेंमन्त सोफे में चेहरा छुपाकर बिलख पड़ा ।
सारे बांध टूट गए, सारा डर जाने कहाँ चला गया ?
हेमन्त इस कदर टूटकर रोया था कि बिशम्बर गुप्ता, ललिता और रेखा के भी कलेजे दहल उठे---कल तक उनकी कल्पानों में जो 'पोता' उभरता था, वह इस वक्त उभरा तो दीवारों से सर टकरा-टकराकर खुद को लहुलुहान कर लेने की तीव्र आरजू बिशम्बर गुप्ता के दिल की गहराइयों से निकली, मगर खुद को नियंत्रित करके आगे वढ़े , हेमन्त के नजदीक पहुंचकर प्यार से उसके बाल सहलाते हुए बोले----" हौसला रखो हेमन्त, दिल छोटा नहीं करते भगवान को शायद यही मंजूर था !"
हेमन्त ने एक झटके से चेहरा ऊपर उठाया ।
उफ--आंसुओं से तर था वह चेहरा ।
सुर्ख आखों से उन्हें घूरता हुआ बोला-----"अगर मैं अपने दिल की बात किसी से कह दूं तो वह यकीन नहीं मानेगा, मगर अाप------तो मेरी बात पर यकीन केरेंगे न बाबूजी ! "
"हां-हां बेटे, क्यों नहीं-बोल, क्या कहना तुझे । "
"मैं-मैं सुचि से वहुत प्यार करता था बाबूजी । "
"प.. पगले, यह बात भी कहीं कहने की है ?" बिशम्बर गुप्ता तड़प उठे ।
"म----मुझे कहने दीजिए बाबूजी-" हद-दर्जे की दीवानगी से भरा हेमन्त कहता चला गया-"कहनें दीजिए मुझे, अगर अाप सुनने की ताकत रखते हैं तो सुनिए, मैं अाप, 'मम्मी, रेखा और अमित से भी ज्यादा प्यार सुचि को करता था-अपने बेटे का नाम तक रख लिया था मैंने----- सुचि साधारण मौत मरी होती तो जब तक मैं भी जाने कब का मर चुका होता । मगर अब, इन हालातों में मैं मर भी तो नहीं सकता------लोग शायद तब भी यहीं कहेंगे कि हेमन्त अपनी बीबी का मर्डर करने के बाद, उसके समीप अपनी शक्ल से मिलता-जुलता पुतला डालकर कहीं भाग गया है । "
" कैेसी बात कर रहे हो मेरे बच्चे, तुम पागल हो गए हो क्या ?"
"हां-हां बाबूजी-मैं पागल हो गया हूं !" कहने के साथ ही यह बिशम्बर गुप्ता से लिपटकर बिलख पड़ा !
" करीब तीस मिनट की भरपूर कोशिश के बाद वे तीनों हेमन्त को नियंत्रण में ला सके, अजीब से भावुकता युक्त जोश में भरा वह कह उठा------"अब तो मेरी जिंदगी का केवल एक ही लक्ष्य रह गया है, यह जानना कि सुचि किस चक्कर में उलझी हुई थी, अपने घर उसने झूठा पत्र लिखा और आत्महत्या क्यों की?"
" यही सब तो हम भी पता लगाना चाहते हैं हेमन्त ।"
"उसके लिए हमेँ टाइम चाहिए और टाइम के लिए हमें पुलिस और कानून से टकराना पड़ेगा बाबूजी, क्योंकि अगर हम ढीले पडे, डरे----तो कानून हमें समय नहीं देगा------सच्चाई की राह पर रहे, सुचि की लाश इसी कोठी से पुलिस को बरामद करा दी तो अंजाम अाप जानते ही हैं, क्योंकि वह बहुत स्पष्ट है । "
"ल. ..लेकिन बेटे, हम यह कह रहे हैं कि जो कुछ करने की तुम सोच रहे हो वह सब करते अगर रंगे हाथों पकड़े गए तो अंजाम और भी बुरा होगा । "
"हर हालत में एक ही अंजाम है, जिल्लत-----फांसी-----न उसके अागे कुछ है बाबूजी, न पीछे-----क्यों न हम खुद को एक मोका दे-----यह भी तो हो सकता है कि हम सफ़ल हो जाएं, दुनिया और कानून के सामने साबित कर सके कि हम निर्दोष है !"
" हम तो यह जानते हैं हेमन्त कि कानून के हाथ बहुत लम्बे हैं, हम खुद को उनसे कुछ क्षण, कुछ दिन या कुछ महीनों के लिए बचा जरुर सकते हैं ,परंतु अंतिम जीत उन्हीं की होगी-------एक दिन ऐसा जरूर अाएगा जब वे हमारी गरदऩ पर होंगे।"
" मेरे ख्याल से खुद को बेगुनाह साबित करने की कोशिश करना कोई गुनाह नहीं । "
"अगर हम पकडे गए तो बातों की तरह हमारी इस बात पर भी कोई यकीन नहीं करेगा कि यह सब हम खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए कर रहे थे !"
"जानता हूं मगर यदि हम खुद को बेगुनाह साबित करने में कामयाब हो गए, तब शायद न तो हमारे द्वारा अभी तक की गई कोई भी हरकत गुनाह की श्रेणी में अएगी और न ही वह सब जो आगे करना चाहते हैं ।"
''मगर यह काम बहुतं मुश्किल और खतरनाक है ।"
"क्या सिर्फ इसलिए हम संघर्ष करना छोड़ दें ?"
"क्या यह तुंम्हारा आखिरी फैसला है?"
"ऐसा, ही समझिए, मैं पता लगाकर रहूंगा कि सुचि ने किन हालातों में फंसकर वह पत्र लिखा-----बीस हजार रुपए का उसने क्या किया और मैं परखच्चे उड़ाकर रहूंगा उन रहस्यमय हालातों के, जिनमें पहूँचकर सुचि ने आत्महत्या की !"
"जैसी तुम्हारी मर्जी ! " बिशम्बर गुप्ता ने हथियार डाल दिए ।
हेमन्त नै स्पष्ट पूछा---"क्या अाप इस राह पर मेरे साथ हैं !"
"बेटा बाप की लाठी भले ही न वने मगर बाप अपनी अंतिम सांस तक बेटे का सरंक्षक रहता है और वह हम भी रहेंगें ।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: दुल्हन मांगे दहेज
"थ.. .थैक्यू बावूजी ।" हेमन्त ने खुद को भावुक होने से रोका ।
अब बोलो क्या करना चाहते हो तुम?"
"अाप इसी वत्त किसी वकील के पास चले जाइए, मैं मम्मी और रेखा की मदद से सुचि की लाश उस कमरे से हटाता हूं !"
"अरे !" शहर के प्रसिद्ध वकील मोहम्मद नकवी के हलक से चीख सी निकल गई-----" आप मेरे गरीबखाने पर गुप्ताजी और वह भी इतनी सुबह ?"
"काम ही कुछ ऐसा अा पड़ा नकवी जी "
"अ.. आपको और मुझसे काम है " अपने आश्चर्य पर भरपूर चेष्टा के वावजूद नकवी काबू नहीँ पा सका--"जिसको सारी जिदगी किसी से कोई काम नहीं पड़ा उसे मुझसे काम-----बडा नसीब बाला हूं गुप्ता जी, मगर ऐसा भी क्या काम था कि आपको खुद अाना पड़ा किसी के हाथ खबर भेज दी होती, मैं खुद हाजिर हो जाता । "
"हमेशा प्यासे को कुएं के पास आना पड़ता है नकवी ।"
" कुएं तो हमेशा आप ही रहेगे गुप्ताजी । "
"तुम इतना सम्मान देते हो, यह तुम्हारा बडप्पन है नकवी।"
" आइए, तशरीफ लाइए ।" यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि नकवी उन्हें दरबाजे से ड्राइंगरूम तक अपनी पलकों पर बैठाकर लाया और ऊंची आवाज में बोला----"अरी अो नबीसा, कुछ नाश्ता ला-----"आज हुमारे यहां हज़रत मोहम्मद आए हैं-----नसीब खुल गए तेरे !"
"नाश्ता रहने दो नकवी और तैयार हो जाओ, जहां हम तुम्हें भेजना चाहते हैं, वहां जाल्दी-से-जल्दी पहुचना है ।"
"आप हुक्म कीजिए, अगले पल में -वहीं नजर आऊंगा ।"
"तुम्हें कोठियात थाने जाना है ।"
"थाने । " नकवी चौंक पड़ा---"क्यों ?"
" पुलिस ने हमारे छोटे-लड़के को पकड़ लिया है । "
"प. . .पुलिस ने आपके लड़के को, यह मैं क्या सुन रहा हूं कि खुदा अमित को किस जुर्म में पकड़ लिया उन्होंने ?"
"कार चुराने के जुर्म में !"
"क...कार---- अमित कार चुराएगा-----हा’-हा'--हा', लगता' है किं आपके इलाके के थानेदार का दिमाग ख़राब.हो गया है । "
" उसने सचमुच कार चुराई थी नकवी !"
"यह अाप क्या कह रहें हैं ?"
" अगर असल मामला यह नंहीं है, इस जुर्म में तो उसकी जमानत कोई छोटा-मोटा वकील भी कर सकता था----तुम्हारे पास किसी खास मकसद से जाना पड़ा ।"
"ऐसा क्या कर दिया अमित ने ?" नकवी की आंखें गोल हो गई !"
" दरअसल किया किसी ने कुछ नहीं है, मगर हालात ऐसे हैं कि सबको यह लग सकता है कि हमने, बल्कि सारे परिवार ने बहुत कुछ का डाला है । "
"बात क्या है गुप्ताजी, ,मैंने पहले कभी आपको इतना निरूत्साहित्त नहीं देखा ।"
फिर, बिशम्बर गुप्ता उससे केवल सुधि की ताश का जिक्र छुपाते हुए सब कुछ बता गए--यह सच्चाई भी उन्होंने नकवी को नहीं बताई गोडास्कर को लिखा गया पत्र वास्तव में रेखा ने ही लिखा है ।
सुनने के बाद नकवी का चेहरा गंभीर हो गया, सच बात तो यह है कि बिशम्बर गुप्ता अब उसकी आंखों में अपने लिए वह पहले वाला सम्मान नहीं देख रहे थे ।
काफी देर तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही !
उनके ठीक सामने शांत बैठा नकवी निरंतर उन्हे घूरे जा रहा था और यह वही नकवी था जो उनसे आंखें मिलाते भी कतराता था, बिशम्बर गुप्ता की खुद्दारी को धक्का-सा लगा, बोले------"क्या सोचने नकवी ?"
" कुछ खास नहीं ।" नकवी बोला----" "अगर अाप बुरा न माने गुप्ता जी तो क्या वकील होने के नाते मैं आपसे चंद सवाल पूछ सकता हूं ?"
" जरूर !" कहते वक्त बिशम्बर गुप्ता का दिल जाने क्यों जोर-जोर से धडकने लगा-नकबी ने दूसरी बदतमीजी जेब से सिगार निकालकर सुलगाने की की ।
बिशम्बर गुप्ता की छाती पर घूंसा सा लगा ।
वे पहले ही से जानते थे कि नकवी सिगार पीता है, मगर यह भी उसे मालूम था कि उन्हें देखते ही या तो छिपा लेता या फेंक देता है, वह कुछ बोले नहीं जबकि नकवी ने पूछा---------आप मजिस्ट्रेट रहे हैं, अच्छी तरह जानते हैं कि कानूनी कार्यवाहीं क्या होती है और अदालत में वकील अपनी लड़ाई किस तरह लडते हैं ? "
बिशम्बर गुप्ता चुप रहे ।
सिगार में एक कश लगाने के बाद उसने कहा----" 'अगर कोई क्लाइंट अपने वकील से कुछ छुपाता है तो वह कलाइंट कोर्ट से मुकदमा जीत नहीं पाता, क्योंकि स्वयं ही अंधेरे में होने के कारण वकील केस पूरी दृढ़ता के साथ नहीं लड़ पाता । "
"हम समझते है !"
इस सारे मामले मे कहीं अाप मुझसे कुछ छुपा तो नहीं रहे है !"
"न. . .नहीँ । ' ' बिशम्बर गुप्ता बडी मुश्किल से कह सके ।
नकवी ने फिर पूछा----" अच्छी तरह सोच लीजिए ।"
"त.. .तुम हम पर शक कर रहे हो ?" उनकी आंखों में अांसू झिलमिला उठे ।
उस तरफ कोई ध्यान न देते हुए नकवी ने कहा---"सबाल शक करने का नहीं है गुप्ताजी, सवाल यह है कि अापने जो सुनाया, वह जम नहीं रहा है ।
विशम्बर गुप्ता को अपने सम्मान-अपनी मान-मर्यादा और उस खुद्दारी की इमारत बुरी तरह झनझनाती महसूस हुई, जिसे उन्होंने बड़ीं लगन, मेहनत, ईमानदारी और परिश्रम से पूरे पैंसठ साल तक चुना था । "
विशवशता विषाद बनकर चेहरे पर उतर आई--उनका चेहरा कुछ ऐसे अंदाज में भभकने लगा जैसे भरे बाजार में नग्न कर दिए गए हो-अपनी पूरी ताकत समेटकर बोले वे-"क्या नही जम रहा है तुम्हें ?"
"जब अापने अपनी बहू से कभी पैसे की मांग की ही नहीं तो उसने अपने पीहर ऐसा पत्र क्यों लिख दिया ?"
"हम नहीं जानते, अब ज्यादा मत पूछना नकवी ।" लगभग गिड़गिडा उठे…"यकीन करो, हम भगवान कसम खाकर कहते हैं कि नहीं जानते ।"
नकवी ने अहसान-सा किया------" आप कह रहे हैं तो मान लेता हूं,, लेकिन... । "
" लेकिन .....। " अपने धाड़ धाड़ करते दिल की आवाज वे साफ सुन सकते थे !
" है अजीब बात, शायद कोई यकीन न करे-अगर यह बात आपने न कहीं होती तो मैं कभी यकीन न मानता, क्योंकि लड़की अपने पीहर सबकुछ लिख सकती है, मगर इस मजमून का झूठा पत्र हरगिज नहीं-बिना राई के पर्वत नहीं बनता और पर्वत बना है तो कहीं-न-कहीं राई जरूर रही होगी । "
बिशम्बर गुप्ता ने मन-ही-मन कहा कि यकीन तो तुमने मेरे कहने पर भी कुछ नहीं किया है, खून के वे धूटं बिशाम्वर गुप्ता पीकर रह गए-उन्हे पहली बार महसूस हुआ कि हेमन्त ठीक ही कहता था-इस कहानी पर कोई यकीन नहीं करेगा ।
"क्या सोचने लगे आप ?"
"आ !" बिशम्बर गुप्ता चौक पडे, संभलकर बोले-----" क ..कुछ नहीं, फिलहाल मैं तुम्हारे पास इसलिए अाया था कि तुम थाने चले जाओ, ताकिवे अमित को किसी तरह टॉर्चर न कर सके---अपने साथ उसे कोर्ट ले जाना और जमानत तक सारे काम तुम्हें ही करने हैं ।"
" यह काम तो मैं आपका कर दूंगा, मगर ! ”
बिशम्बर गुप्ता बोले कुछ नहीं, धड़कते दिल से संवालिया अंदाज में नकवी की तरफ देखते भर रहे, जबकि सिगार की राख ऐश-ट्रै में झाढ़ते हुए नकवी ने कहा…"मेरे टाइम की कीमत तो आप जानते ही हैं मिस्टर गुप्ता । "
बडी जोर से घड़घड़ाकर बिशम्बर गुता के दिमाग पर बिजली गिरी-जिदगी में पहली बार हुए अपने इस अपमान पर वे 'तिलमिला' उठे, परंतु खामोशी के साथ जहर के इन घूटों को सटक जाने के अलाबा उनके पास कोई चारा न था बोले----"अपने मुंह से ऐसा कहकर तुमने अच्छा नहीं किया नकवी । "
" अाप शायद बुरा मान गए हैं मिस्टर गुप्ता है " कहता हुआ वह सोफे से खड़ा हुआ और बाएं हाथ का अंगूठा नाइट गाउन की जेब के किनारे पर र्फसाता हुआ बोला-----"मंगर यह पेशे का मामला है, अगर घोडा घास से यारी बनेगा तो खाएगा क्या । "
" घास ही खाएगा ।"
"जी ? " जेब से रुपए निकालकर मेज पर डालते हुए विशम्बर गुप्ता ने कहा----"तुम्हारे समय की कीमत लाया हू--मगर तुमने अपने मुंह से कहकर ठीक नहीं किया नकवी !"
तभी एक लड़का ट्रे में कॉफी और नाश्ता लिए वहां पहुंचा ,नकबी ने कहा--"छोहिए इन व्यापराना बातो को , आप नाश्ता लीजिए !"
ज़लालत से भरा वह नाश्ता विशम्बर गुप्ता के हलक मे उतरना नहीं था, अत: इनकार करते हुए उठकर खडे हो गए ।
नकवी ने जिद नहीं की !
सुचि की लाश डबलवैड के उपर अभी भी उसी तरह लटकी हुई थी-------उसके दिस्तेज़, किंतु विकृत हुए चेहरे, उबली हुई आंखों और जाली से ज्यादा बाहर लटकी हुई जीभ कों है देखकर ललिता और रेखा भले ही डर के मारे सूखे पते-सी कांप रहीं हों, परंतु हेमन्त के चेहरे पर कहीं खौफ न था ।
हां,, आत्मा से फूट पड़ने वाली रुलाई को रोकने के प्रयास में उसका चेहरा विकृत जरूर हो रहा था------"दर्द का सैलाब-सा नजर आ रहा था वहां, भरपूर चेष्टा के बावजूद आंखें ड्बडबा गईं और बड़बडा उठा------"तुमने क्यों किया, सुचि--------ऐसा क्यों किया तुमने-----"क्या कमी रह गई थी मेरे प्यार में ?"
सुचि की लाश पूर्ववत लटकी रही ।
"ऐसा करते समय क्या तुम्हें एक बार भी मेरा ख्याल नहीं आया ?" हेमन्त के मनोमस्तिष्क पर दीवानगी हावी होती चली गईं…"क्या तुमने एक बार भी नहीं पुछा कि तुम्हारे और गुड्डे के बाद मेरा क्या होगा ?"
"'भ,..भइया ।" उसने चौंककर रेखा की तरफ देखा ।
ललितादेवी कह उठी------" यह भावुक होने का समय नहीं हैं बेटे !"
दीवानगी के उसी जालम में कुछ देर तक चेहरे पर पागलपन के से भाव लिए वह अपनी मां और बहन को देखता रहा, फिर उसने सिर को ऐसे अंदाज में तेज झटका दिया जैसे मनो-मस्तिष्क में घूमड़ रहे विचारों से मुक्त होना चाहता हो ।।
अागे बढकर उसने पलंग के समीप लुढ़का पड़ा स्टूल उठाकर पलंग पर रखा, बोता--" लाश को उतारने में र्मेरी मदद करो । "
" हालांकि वे यही वकम करने हेमन्त ने साथ यहाँ आई थीं, परंतु लाश को हाथ लगाने की कल्पना मात्र से सांप सूंघ गया ।
जीभ तालू में कहीं जा छूपी थी !
स्टूल पर खडे होकर हेमन्त ने लोहे के कुंडे में बंधी रस्सी की गांठ खोली । उसके बार-वार कहने पर कांपती हुई मां-वेटी ने नीचे से लाश संभाली !!!
फिर आहिस्ता से उसे गले में पडे़ फंदे सहित पलंग पर लिटा दिया गया ।
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Re: दुल्हन मांगे दहेज
हेमन्त ने जेव से रूमाल निकालकर कुंडा अच्छी तरह साफ किया !
वह नही चाहता था कि रस्सी का एक भी रेशा वहां-लगा रहे । संतुष्ट होने के बाद स्टूल से उतरता हुआ बोला----"आप लाश को 'स्टोर रूम' में पहुंचाने में मेरी मदद करे मम्मी और तुम कमरे को दुरुस्त करो रेखा, हमारे तलाशी आदि लेने से सब कुछ अव्यवस्थित हो गया है । "
वहीं मुश्किल से रेखा सिर्फ गरदन हिला सकी ।
मारे भय के ललित्तादेवी का बुरा हाल जरूर था,, किंतु साथ तो उन्हें देना ही था, अतः सुचि की लाश को संभाले हेमन्त के साथ चली !
लाश के इदे-गिर्द चार…पांच गंदी मक्खियां भिनभिना रही थी ।
वे नीचे पहुंचे ।।
'स्टोररूम' मकान के भीतरी भाग में था, ऐसे स्थान पर जहां दिन में भी लाइट जलाए विना हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता था !
लाश को फर्श पर लिटाकर हेमन्त ने लाइट अॉन की और बोला…"आप सीढी तो लाइए मम्मी ।"
ललिलदेबी सीढ़ी लेने चली गई ।
स्टोररूम में रह गए हेमन्त या सुचि की लाश-बल्ब की पीली रोशनी में लाश कुछ और ज्यादा भयानक और डरावनी लग रही थी,, वे ही चार या पांच गंदी मक्खियां उस पर अब भी भिनभिना रही थीं !
हेमन्त के दिलोदिमाग में पुन: जाने क्या-क्या घुमड़ने लगा-----सुचि के चेहरे पर जमी उसकी आंखें पथरा-सी गई थी, अगले ही पल वह घुटनों के बल सुचि के नजदीक बैठ गया ।
झूका !
और फिर-----दीबानगी से सराबोर एक चुम्बन उसने सुचि के मस्तक पर अंकित कर दिया-उस मस्तक पर जो इस वक्त दरअसल बर्फ के मानिंद ठंडा था और ऐसा करते वक्त उसकी आंखों से कूदकर दो गर्म आंसू उस ठंडे चेहरे पर जा गिरे-हाथों में लोहे की छोटी सीढ़ी लिए उसी समय ललितादेबी ने दरवाजे पर कदम रखा था ।
वे ठिठक गई ।
हेमन्त की दीवानगी को देखकर उनका दिल हाहाकार कर उठा !
इस वक्त हेमन्त अपने सामने पडी लाश को नहीं बल्कि बेड के चारों तरफ अपने अागे-आगे भागती सुचि को देख रहा था, कानों में गूंज रही थी फिजां में पुष्प से बिखेर देने वाली सुचि की खिलखिलाहट ।
ललितादेवी की आंखें भर अाई ।
अगर वे उसे न पुकारती तो हेमन्त जाने कब तक खोया रहता-उनके पुकारते ही वह इस तरह हड़बड़ा गया जैसे चोरी करते पकड़ा गया हो, एक झटके से सीधा खड़ा होकर बोता---"सीढ़ी लगाओं मम्मी । "
अागे बढ़कर ललितादेवी ने स्टोररूम के फर्श से टांड तक सीढी़ लगा दी…टांड पर एक गंदी धोती का पर्दा झूल रहा था !
सुचि और हेमन्त के बेडरूम का निरीक्षण करते हुए, बिशम्बर गुप्ता ने बताया…" हमने नकवी को थाने मेज़ दिया है, साढे़ दस बजे कोर्ट जाएंगे-नकबी पुलिस और अमित के साथ वहाँ पहुंचेगा-हमारे ख्याल से बारह बजे तक अमित की जमानत हो जानी चाहिए । "
"नकवी ने आपके बयान पर संदेह तो नहीं किया ?"
नकवी का व्यवहार याद अाते ही बिशम्बर गुप्ता का सारा चेहरा भभकने लगा, किंतु शीघ्र ही स्वयं को नियंत्रित करते हुए बोले-----" उस सबको छोड़ो हेमन्त, यह बताओ कि यहां के काम में तो कोई दिक्कत नहीं अाई !"
"नहीँ ।" हेमन्त समझ गया कि उसके बाबूजी जहर के कितने कड़वे घूंट पीकर अाए हैं, मगर नासमझ बनकर सवाल किया----" इस कमरे में तो आपको कोई असामान्य बात नजर. नहीं आरही है ?"
"पिल्लहाल तो सब ठीक है, मगर...
"मगर ?"
"क्या तुमने अागे की योजना बनाईं है?" बिशम्बर गुप्ता ने पूछा----"आज रात के बाद लाश को घर में छुपाए रखना असंभव हो जाएगा ।"
"स्कीम बनाने से पहले मैं आपके साथ कुछ तर्क वितर्क करना चाहता हूं !"
" किन बातों पर ?"
" 'पहली तो यह कि उस अटैची का कहीं कोई पता नहीं है जो यहीं से हापुड़ के लिए रवाना होते वक्त सुचि साथ ले गई थी, वह कहां गई ?''
"इसका ज़वाब भला हममें से कोई भी केसे दे सकता है ?"
"मैं उन सबालों को इकट्ठा कर रहा हूं, जिनके हमारे पास जवाब होने चाहिए, मगर है नहीं ----- लगभग ये ही सवाल सुचि की लाश को देखकर पुलिस भी हमसे करती और हम उनके किसी सवाल का जवाब नहीं दे पाते, अतः यहीं अनुमान लगाया जाता कि सुचि की हत्या करके लाश हमने टांग दी है !"
"सबसे बड़ा सवाल तो यह उठता है कि सुचि बराल से यहां कैेसे और रात के किस वक्त पहुची------कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था, अंदर सुचि ने आत्महत्या कर ली-कैंसे हो गया यह सब?"
" इस सवाल का आधा जवाब तो मुझे मिल गया है ! "
"क्या ?"
"बॉंत्कनी की तरफ़ खुलने वाले दरवाजे की चटकनी अंदर से बंद की नहीं थी, अतः जाहिर है कि रात को किसी वक्त सुचि इस रास्ते कमरे में आई !
" म....ंगर बाल्कनी में केैसे पहुची होगी वह ? "
"लान से छत तक जो रेन वाटर पाइप है वह बॉंल्कनी के नजदीक से गुजरता है, अतः पाइप के ज़रिए कोई भी व्यक्ति बॉल्कनी में पहुंच सकता है ।"
"क्या सुचि पाइप पर चढ़ सकती थी?"
"काँलेज टाइम में यह खेलकूद में अग्रणी रही थी अतः पाइप पर चढ़ना उसके लिए असंभव नहीं माना जा सकता ।"
"सवाल उठता है, क्यों ?"
"जबाब एक ही हो सकता है, यह कि जब सुचि यहाँ से गई तब जानबूझकर उसने यह चटकनी नहीं लगाई !"
"इसका मतलब यह हुआ कि उसे मालूम था कि रात के किस वक्त उसे लौटकर आना था !"
"बेशक यही मतलब निकलता है । " हेमन्त ने कहा----"सारी घटनाओं पर दृष्टिपात करने से एकही बात सिद्ध होती है, यह कि सुचि सारा काम एक योजनाबद्ध तरीके से कर रही थी ! "
"क्या आत्महत्या भी उसकी योजना का ही अंग थी--यहाँ की चिटकनी वह इसीलिए खुली छोड़ गई, क्योंकि जानती थी कि रात के किसी समय आकर यहां उसे आत्महत्या करनी है?"
"यह बात बड़ी अटपटी लगती है । "
" क्यों ?"
' 'आगर किसी रहस्यमय वजह से सुचि को आत्महत्या ही करनी थी तो फिर इतने लम्बे -चौडे बखेडे के जरूरत क्या थी-----" मालूम था कि रात को मैं घर में न रहूंगा, बिना इस
बखेड़े के आत्महत्या आसानी से की जा सकती थी । "
"इसका मतलब आत्महत्या उसकी योजना का अंग नहीं, बल्कि किसी शॉक के लगने पर उसने, अचानक की । "
"किस बात का शॉक लगा उसे ?"
ललितादेबी बोली-----"घर मैं तो ऐसी कोई बात हुई नहीं थी ?"
"टेलीग्राम उसके यहां से रवाना होने और बराल से अमित को टरकाने से ऐसा लगता है कि उसे किसी से मिलना था-किसी ऐसे शख्स से जिसके बारे में वह हममें से किसी को नहीं बता सकती थी !"
" किससे ?"
"शायद उसीसे, जिसके लिए हापुड़ से बीस हजार .......!" और इतना कहकर हेमन्त खुद ही रुक गया, एक विचार उसके जेहन में बिजली की तरह कौंधा----फिर संदेह में डूबे स्वर में वह खुद ही बड़बड़ा उठा--"कहीं सुचि किसी ब्लेकमेलर के चक्कर में तो नहीं फंसी थी ?"
"क्या बडबडा रहे हो तुम ?"
"हां-यही से सकता ,सिर्फ यंही ! " वह पागलों की तरह बड़बड़ाकर जैसे खुद ही को समझाता रहा---"इसके अलावा और बात हो भी क्या सकती है, वह भला किसी को बीस हजार क्यों देने लगी, बिलकुल यहीं बात होगी । "
" तुम क्या सोच रहे हो हेंमन्त,, हमें भी तो कुछ बताओ ?"
हेंमन्त ने उन तीनों की तरफ देखा,, दिमाग में उभरे विचार को व्यस्थित किया और उत्साह के साथ चुटकी बजाता हुआ कह उठा ---" गुत्थियां खुद ही सुलझ रही हैं बाबूजी ,, वह चक्कर कुछ कुछ मेरी समझ में आ रहा है ,, जिसमें सुचि उलझी हुई थी !"
" क्या समझ में आ रहा है तुम्हारी ?"
"सुचि शायद किसी ब्लैकमेलर के चक्कर मे फंसी हुई थी, वही उसे परेशान कर रहा था और उसी की मांग पुरी करने के लिए शायद उसे बीस हजार की जरूरत पड़ी थी !"
रेखा ने कहा ---" सुचि भाभी भला किसी के द्वारा क्यों ब्लैकमेल होगी ?"
" इसके लिए हमें उसके विगत जीवन की खोजबीन करनी होगी ।"
" क्या तुम सुचि के करेक्टर पर शक कर रहे हो ?"
" सबाल करेक्टर पर शक करने का नहीं है बाबूजी ,, बल्कि पाक से पाक करेक्टर के व्यक्ति से भी किन्हीं बिशेष हालातों में फंसकर, जाने अनजाने में ऐसी भूल पाप या जुर्म हो सकता है जिसे वह करना नहीं चाहता था और जिसका पछतावा उसे सारी जिंदगी रहता है, मगर उसका यही पाप या जुर्म अगर किसी असमाजिक तत्व को पता लग जाए तो वह उस व्यक्ति के लिए ब्लैकमेलर बन जाता है !"
सभी चुप रहे !
हेंमन्त कहता चला गया ------ " सुचि से भी विगत जीवन में शायद ऐसा कोई पाप या जुर्म होगया था,, जिसका जिक्र न वह हमसे कर सकती थी, न अपने पीहर में किसी से ------ उसी का लाभ उठाकर किसी ने उसे ब्लैकमेल किया,, उसकी मांग पूरी करने का जब सुचि को कोई अन्य तरीका न मिला तो झूठा पत्र लेकर पीहर बीस हजार रूपये लाई !"
" सबाल फिर वही उठता है कि जब उसने ब्लैकमेलर की मांग को पूरी कर दी तो आत्महत्या करने की बजय ही कहां रह गई ?"
" कल रात वह ब्लैकमेलर को पैसे पहुचाने गई होगी और ने सबूत मागें होंगे जो उसके पाप या जुर्म को साबित कर सकते थे, मगर ब्लैकमेलर इतनी आसानी से अपने शिकार का पीछा नहीं छोड़ते है , उसने और रकम मांगी होगी---- सुचि ने असमर्थता जताई होगी----- मगर ऐसे लोग किसी की मजबूरी समझते कहां है , वह नहीं माना होगा,, ग्लान् से भरी विवश सुचि के सामने आत्महत्या के आलावा कोई रास्ता न बचा होगा ---- उसका पाप या जुर्म शायद कुछ ज्यादा ही घृणित था ।"
" तुम्हारा विचार हमें भी जंच रहा है हेमन्त । रेखा बोली------"तो शायद भाभी की लाश को कहीं दूसरी जगह छोड़कर अाने की जरूरत ऩही है-हम पुलिस को यहीं बुलाकर उन्हें आत्महत्या की असली वजह बता सकते । "
" पुलिस कहानियां नहीं, सबूत मांगती है रेखा-जो कुछ मैंने कहा उसे सिर्फ हम समझ सकते हैं, किसी दुसरे को नहीं समझा सकते, सबूत हमारे पास है नहीं, ब्लेकमेलिग की, वजह नहीं जानते, ब्लेकमेलर को नहीं जानते ।
सन्नाटा खींच गया वहां !!!!
'"न...नहीँ दीनदयाल ।" कर्नल जयपाल दुढ़त्तापूर्वक बोला--"यह क्या बक रहे हो तुम,,, मैं हरगिज नहीं मान सकता कि यह सच हेै…बिशम्बर गुप्ता खेेैर मेरा तो रिश्तेदार है, मग़र उसे सारा बुलंदशहर जानता है, इस शहर का बच्चा-बच्चा ईमानदारी और सच्चाई के लिए उसकी कसम…खाता है और तुम उसी को कह रहे होकि... ।"
"मैं सच कह रहा दूं कर्नल, उन्ही लोगों ने मेरी सुचि को... । "
"मैं किसी कीमत पर नहीं मान सकता, अगर तुम यह कहते कि आज सुरज पूरब की जगह पश्चिम से निकला है तो एक बार को मान लेता, मगर बिज्ञाबर गुप्ता ने दहेज मांगा-उसने सुचि को प्रताड़ित क्रिया, यह नहीँ मान सकता-मेरे सामने तो खेैर तुमने कह दिया, बुलंदशहर में रहने वाले किसी दूसरे आदमी के सामने ऐसा मत कह देना, वरना शायद उस शहर से तुम्हारा जीवित निकलना मुश्किल हो जाए है !"
"हां ,क्यों नहीँ------- तुम तो उसी का पक्ष लोगे, तुम्हारा रिश्तेदार जो ठहरा------मैं फिर भी सिर्फ दोस्त हूं, मगर इतना जरुर कहूंगा कर्नल कि मेरी वेटी को उन जल्लादों के यहां फसवाकर तुमने ठीक नहीं किया । "
"यह बात नहीं है दीनदयाल, तुम गलत ढग से सोच रहे हो----- कर्नल जयपाल एक मिलिट्री मैन है-----सिद्धांत, ईमानदारी और सच्चाई के हम पाबंद होते है और केवल वहीं बात कहते हैं जो सच्ची हो, भलेही वह चाहे जिसके पक्ष-विपक्ष की हो ।"
' 'मगर इस वक्त सच्ची बात नहीं कह रहे हो । "
"मैं यह तो मान सकता हूं कि विशम्वर गुप्ता की वाइफ, लड़के या लड़की ने दहेज की मांग की हो, मगर बिशम्बर गुप्ता भी उसमें शामिल रहा हो, ऐसा हरगिज… ! "
"बिशम्बर गुप्ता ने सुचि से खुद बीस हजार मांगे थे । ”
"क्या तुम्हारे पास सबूत है !"
" हां--यह पत्र पढ़ो, खुद सुचि का लिखा है । " जोश में भरे दीनदयाल ने पत्र की एक फोटोस्टेट कॉपी निकालकर जयपाल को पकड़ा दी-------जयपाल ने पत्र लिया और पढ़ते पढ़ते उसका भारी-भरकम चेहरा भभकने लगा ।
पत्र पूरा पढ़ते पढ़ते हैरत के साथ-साथ गुस्से के असीमित भाव उसके चेहरे पर उभर अाए, कुछ बोल नहीं सका था वह !
"कहो कर्नल, क्या अब भी तुम में सच्ची बात कहने की हिम्मत है ?"
जयपाल ने पलटकर दीनदयाल की तरफ देखा---" मुझमें उस वक्त तक सच्चाई कहने की हिम्मत है जब तक सांस में सांस है । "
"अब तुम्हें सच्चाई क्या लगती है ? '"
"अंगर यह पत्र सुचि ने लिखा है तो इसके अलावा सच्चाई कुछ भी नहीं हो सकती ,, लेकिन…"
" लेकिन ?"
"बात यह है दोस्त कि अगर सच्चाई यह है तो मैं चीख-चीखकर यह कहूंगा कि भारत के सिविलियन में से सिद्धांतप्रियता, ईमानदारी और सच्चाई यूरी तरह खत्म हो चुकी है !"
"क्या मतलब ?"
"अपने अलावा जयपाल अग्रवाल अगर किसी को ईमानदार, सच्चा, अनुशासित, न्यायप्रिय और सिद्धांतप्रिय मानता था तो उस शख्स का नाम बिशम्बर गुप्ता है, जानते हो क्यों ?"
" क्यो ?"
" मेरा छोटा लड़का नालायक निकल गया था, जुआ और शराबखोरी ही नहीं है वल्कि आबारा लड़कों के साथ कोठों पर भी जाने लगा था वह-----------एक रात चाकू घोंपकर किसी वेश्या की हत्या कर आया--------संयोग से मुकदमा बिशम्बर गुप्ता की कि अदालत में जा पहुंचा ----- तुम्हारी भाभी, बड़ा लडका और ' उसकी बीबी मुझसे कहने लगी कि बिशम्बर तुम्हारा रिश्तेदार हेै-उसके साथ बैठकर तुम शतरंज आदि खेलते हो,अतः सिफारिश करके 'सुरेश' को बरी करा दो, मगर मैं मिलिट्रीमैन-वहां रग-रग में न्यायप्रियता की बात कूट कूटकर भरी जाती है, भला कहां मानने बाला था…-वेसे भी, जो कुछ सुरेश ने किया था वह नफरत के काबिल था और मैं यह मानता था कि उसे अपने किए की सजा मिलनी चहिए------ बिशम्बर गुप्ता के घर गया जरुर, मगर सिफारिश करने ऩहीं, बल्कि यह कहने कि मेरा लड़का होने की वजह से सुरेश के साथ कोई रियायत न बरते, मैंने जैसे ही अपनी बातचीत के बीच सुरेश का नाम लिया तो-तो जानते हो दीनदयाल, विशम्बर गुप्ता ने क्या कहा ? "
"क्या ?"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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