मेरे न रहने से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है रीमा । मेरे पीछे इस मुल्क की जनता है । सर एडलोंफ़ के समर्थक हैं । जब उनकी बगावत की आँधी चलेगी तो ये सब तानाशाह तिनके की तरह उड जायेंगे और उस आंधी से तुम भी नहीं बच पाओगी ।। किसी को ख़बर तक नहीं लगेगी कि रीमा भारती नाम को खतरनाक शै दुनिया के तख्ते से अचानक कहां गायब हो गई?"
"तुम अपने आपको बहुत बडा तीसमारखां समझते हो ।" मैं रिवाल्वर की नाल क्लाइव के माथे के ठीक बीचों-बीच सटार्ती हुंई गुर्रा उठी----"तुम बहुत देर से फू-फा कर रहे हो और मैं खामोश सुन रही हू। यहीं है कि तुम्हारी जुबान सदा-सदा के लिये बंद कर दी जाये ।"
"नहीं रीमा:" एकाएक सोल्जर बोल उठा----"गोली मत चलाना । क्लाइव को जिंदा रखना हमारी मज़बूरी हैं अगर इसकी हत्या कर दी तो हम लोग सर एडलॉफ़ के अन्य समर्थकों का पता-टिकाना नहीं जान पायेंगे । जबकि हमारे लिये उनके बारे में जानना बहुत जरूरी है ।"
मैंने रिवाल्वर की नाल, हटा ली ।
"यहीँ बेहतर होगा कि तुम मुझे गोली मार दो । बाद में तुम्हें पछतावा होगा कि तुमने मुझे गोली क्यों नहीं मारी?" क्लाइव ने कहा -" ओर उस वक्त बहुत देर हो चुकी होगी ।"
" अगर हम लोग यहीं खड़े रहे तो ये हरामजादा इसी तरह की बाता करता रहेगा ।" सोल्जर ने हुक्म दनदनाया-' "इसे ले चलो । इसकी मौत तो निश्चित है, लेकिन इसका फैसला मार्शल साहब करेंगे ।"
उसे पीछे से गनों की नालों से आगे धकेला गया ।
"आओ रीमा ।" सोल्जर बोला । मैं सोल्जर के साथ बढी । . , . कुछ देर बाद हम लोग खण्डहर से बाहर निकले । खण्डहर के पिछले हिस्से में सेना की चार जीपें खडी थीं ।
"जीप में बैठो क्लग्रइव ।" बोला सोल्जर । बिना किसी घबराहट के क्लाइव दूसरे नम्बर की जीप के पिछले हिस्से में सवार हो गया । उसके अलावा चार सेनिक भी जीप में बैठ गये . ।
बाकी सेनिक अन्य जीपों में सवार हो गये थे ।
मैं सोल्जर के साथ सबसे पीछे वाली जीप में बैठी थी । फिर चार जीपों का छोटा-सा काफिला आगे बढ गया।
देखते-हीं-देखते जीपों ने रफ्तार पकड ली ।
इस वक्त मेरे दिमाग में एक ही सवाल था कि सोल्जर मुझे कहां ले जा रहा है? मैंने अपनी बगल में बैठे सोल्जर को कनखियों से देखा, उसकी निगाहें मेरी शर्ट के खुले गले के भीतर झांक रही थी ।
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====
तकरीबन एक घंटे बाद जीपों का वो काफिला एक विशाल इमारत के कम्पाउंड में पहुंचकर रूका ।
"आओ रीमा ।" सोल्जर जीप से नीचे उतरता हुआ बोला ।
मैं भी नीचे उतर गई । आगे वाली तीनों जीपों से सेनिक नीचे उतर चुके थे ।
उन्होंने क्लाइव को चारों तरफ़ से घेरा हुआ था ।
क्लाइव ने जलाकर राख कर देने बाली निगाहों से मुझे देखा, फिर. आगे बढ गया ।
उसके साथ क्या होने वाला था, ये तो ऊपर वाला ही जानता था ।
अब वहां मेरे और सोल्जर के अलावा दो सैनिक मौजूद थे ।
"मेरे साथ आओं ।"सोल्जर ने आगे बढते हुए कहा ।
मैं उसके साथ चल पडी ।
दोनों सैनिक मेरे पीछे थे ।
कई राहदारियों से गुजरकर सोल्जर एक कमरे के बंद दरवाजे के सामने पहुंचकर ठिठका ।
फिर मुझे वहीं रुकने के लिये कहकर वह कमरे का दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हो गया । साथ ही उसने भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया था ।
… मेरा माथा ठनका ( मेरे भीतर का जासूस सजग हो उठा । सोल्जर का इस तरह से कमरे में दाखिल होकर इस तरह से दरवाजा बंद कर लेना मुझे बड़ा -हीँ रहस्यमय लगा था ।
. "सोल्जर कालिंग सर. . . ओवर ।" दो पल बाद मेरे कानों से टकराया ।
पलक झपकते ही मेरे कान वायरलेस बन गये ।
अब सब कुछ मेरे सामने आइने की तरह साफ था सोल्जर ट्रांसमीटर पर मार्शल से बात कर रहा था ।
"मेसेज दो. . . ओवर. . . ।" सोल्जर के जवाब में कहा गया ।
वो तो मेरे कान थे जो ट्रांसमीटर पर चले रहे वार्तालाप को सुनने की क्षमता रखते थे, अगर कोई और होता तो उसे कुछ भी सुनाई नही देता । वेसे वो शक्तिशाली ट्रांसमीटर था, जिस पर सोल्जर बात कर रहा था ।
"हमने सर एडलॉफ के समर्थकों के मुखिया क्लाइव को गिरफ्तार कर लिया है और इस वक्त वह हमारे कब्जे में है और हमें ये कामयाबी रीमा भारती की वजह से मिली है सर । क्लाइव का क्या करना है. . . ओवर ।"
"क्लाइव को उसी जेल में बंद कर दो, जिसमें डगलस को रखा गया है । अब हमें उससे कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल करनी हैँ. . . ओवर ।"'
"ओ०कै० । उसे अभी कडी सुरक्षा व्यवस्था के बीच उसी जेल में भिजवा दिया जायेगा. . -ओवर ।"
"वो रीमा भारती कहां है. ओवर ।"
"इसी गुप्त इमारत में है, जहाँ से मैं आपसे ट्रांसमीटर पर बाते कर रहा हूं। अब आपको रीमा भारती की शर्त मान लेनी चाहिये सर. . . ओवर ।"
" तुम बेवकूफ हो सोल्जर । तुम्हारे दिमाग में अक्ल का खजाना नहीं है । तुमने कूद कर ये फैसला कर लिया हे ।. . .ओवर ।"
"फ़. . . फैसला तो आपको ही करना है सर । मैं तो सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि रीमा भारती ने अपना बादा पूरा कर दिया है. . . ओवर ।"
"तुमसे ज्यादा रीमा भारती को मैं जानता हूँ सोल्जर । मैंने आज तक उसे देखा तो नहीं है, लेकिन उसके बारे में बहुत कुछ सुना है । रीमा भारती एक ऐसी जीनियस शखिसयत है कि उसने दुनिया भर के अपराधियों को हिलाकर रख दिया है । उसमे न जाने कितने सूरमाओं की कब्र खोदी है । उसका दिमाग कम्यूटर से ज्यादा तेज चलता है । यह जितनी खूबसूरत है, उससे ज्यादा खतरनाक भी है । मौत का दूसरा नाम रीमा भारती है, अगर कोई नागिन से इस बात की उम्मीद रखे कि वो डसेगी नहीं तो ऐसा सोचना बेवकूफी है सोल्जर । नागिन का काम तो इसना है और रीमा भारती तो एक ऐसी नागिन है, उसका काटा इंसान पानी नहीं मांगता. . . ओवर ।"
मैं मन-हीं-मन मुस्कुराई ।
मार्शल तो मेरे बारे में बहुत कुछ जानकारी रखता था ।
"आप खुलकर बताइये सर । बात क्या है. . .ओवर ।"
"रीमा भारती ने जो कुछ बताया है । बो तुमसे झूठ भी तो बोल सकती है । ये भी तो हो सकता है कि इसमें उसकी कोई चाल हो । वो हमें किसी जाल में फंसाना चाहती हो । उसके शब्दों की सच्चाई जाने बगेर फैसला करना बेवकूफी होगी । पहले इण्डिया में मौजूद अपने सोर्सेज से इस बारे में जानकारी हासिल करो कि क्या वो सच बोल रहीँ है? क्या उसने वाकई आई०एस०सी० छोड़ दी हे? उसके बाद दूध का दूध और पानी-का पानी होजायेगा. . ओवर ।"
"ओ०के० सर, फिलहाल रीमा भारती का क्या करना है ।
"जब तक हमें उसके बारे में 'कन्मर्मेंशन‘ नहीं मिल जाती तब तक उसे नजरबंद रखो । ओवर. . . ।"
" बेहतर सर ।"
उसके बाद मुझे आवाज सुनाई नहीं दी ।
जाहिर था कि वार्तालाप खत्म हो गया था ।
मुझे मार्शर एक बेहद धूर्त और चालाक इंसान लगा थे ।
अगर वो डाल-डाल था तो मैं पात-पात थी । मैं जानती थी कि ऐसी नौबत भी आ सकती है । अत: मैं पहले ही खुराना से ट्रांसमीटर पर सम्पर्क स्थापित करके सब कुछ बता चुकी थी ।
सोल्जर को वहीँ सब सुनने को मिलना था, जो मैंने बताया था । तभी सोल्जर दरवाजा खोलकर बाहर निकला ।
"इसे ले जाकर कमरे में बंद कर दो ।" मुझसे चंद कदमों के फासले पर ख़ड़े दोनों सैनिकों को सम्बोधित करके बोला सोल्जर । इस बारे में तो मैं सुन चुकी हूं , लेकिन प्रकट में चौकी…"य. . .ये तुम क्या कर रहे रहेहो ?"
"आई-एम सॉरी रीमा । तुमने मुझे अपनी वर्तमान पोजीशन के बारे में जो कुछ भी बताया था । पहले मैं उस बारे-में कंफर्म करूंगा । तब तक के लिये तुम्हें नजरबंद रखना पड़ेगा ।"
"क्या तुम्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं है?"
"ये मार्शल साहब का आदेश है । मेरे विश्वास करने या ऩ करने से कुछ नहीं होने बाला !" . . इस बीच मेरे जिस्म से गनों की नाले आ चिपकी थीं । सैनिक मुझे धकेलते हुए सामने वाले कमरे की तरफ़ बढ गये । दो पल बाद सेनिक मुझे उस कमरे में बंद करके बापस लौट गये थे !
मैंने उस कमरे का निरीक्षण किया वह एक छोटा कमरा था । एकदम खाली कमरे में सामने वाली दीवार में एक लोहे का दरवाजा था । जिसके मुंह पर लोहे का मजबूत ताला लटका हुआ था । दरवाजे के बगल में एक खिड़की बनी हुई थी । उसमें लोहे की मजबूत छड़े लगी हुई थीं । कोने में एक मेज रखी हुई-थी । यह कमरा पुराने जमाने का कैदखाने जैसा था । मैं फर्श पर बैठ गई और दीवार से पीठ सटाकर आंखें बंद कर लीं । अब मुझे आगे पेश आने वाले हालातों का इंतजार था ।
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हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - complete
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
तुम्हारे दिमाग में इस कमरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता है मेरे कानों से एक धीमा-सा स्वर टकराया । मैं चौंकी । मैंने पट से आंखें खोल दीं । फिर मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया था ।
मैंने सोचा मेरा वहम है । लेकिन वो मेरा वहम कैसे हो सकता था? वो आवाज मैंने साफ-साफ सुनी थी ।
मेरे कान खड़े हो गये।
"जवाब दो ।" इस बार दूसरा स्वर मुझे सुनाई दिया था ।
वह आवाज ऐसी थी जैसे कोई मच्छर भिनभिनाता हो ।
आवाज बगल वाले कमरे से आई थी, जिसके मजबूत दरवाजे पर लोहे का ताला लटका हुआ था ।
पलक झपकते ही मेरे जेहन में एक सवाल कौंध गया था ।
कमरे में कौन लोग हैँ?
"मेरे दिमाग में कमरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है ।" जवाब में कहा गया ।
मेरी उत्सुकता आसमान छूने लगी ।
मै स्प्रिग लगे खिलौने की तरह उछलकर खडी हो गई और दबे कदमों कोने में रखी मेज की तरफ बढी ।
"ओपफो ।" इस बार तीसरे व्यक्ति का बैचेनी भरा स्वर मुझे सुनाई दिया…"कुछ तो सोचो । इस तरह हथियार डाल देने से काम नहीं चलेगा, अगर हमलोग यहां से नहीं निकले तो हमें ऐसी भयानक मौत मिलेगी, जिसकी हमने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी ।"
"तुम ही कुछ क्यों नहीं सोचते?"
"क्या सोचूं?. मेरे दिमाग ने तो काम करना ही की कर दिया है ।"
"फिर तो मौत का इंतजार करो । कुछ देर बाद हमें गोलियों से भून दिया जायेगा, और हमारी लाशें चीलें-कौओ के खाने के लिये छत पर डाल दी जायेंगी । मुझे एक ही बात का अफसोस है कि मैं सर एडलॉफ के लिये कुछ नहीं कर सका ।"
अब मैं समझ गई कि वे लोग सर एडलॉफ के समर्थक हैं ।
मैं मेज के करीब पहुंची ।
मैंने मेज उठाकर उसका वजन परखा, वो ज्यादा भारी नहीं थी । मैंने मेज को खिड़की के नीचे दीवार के साथ सटाकर रख दिया, फिर उस पर चढ गई । "
अब मेरा चेहरा खिड़की के सामने था ।
मैंने चेहरा सलाखों से सटाकर दूसरी तरफ झाका, उस कमरे के फर्श पर छ: व्यक्ति बैठे हुए थे । सभी के चेहरों पर पत्थर जैसी कठोरता नजर जा रहीँ थी ।
कमरे में बल्ब का पीला एवं बीमार प्रकाश फैला हुआ था ।
"अच्छा ये बताओ क्या किसी तरह इस कमरे की दीवार नहीं तोडी जा सकती?" एक ने कहा ।
"पागल हो तुम?" दुसेर ने कहा-"इस कमरे की दीवारें कागज की हैं क्या, जो तोडी जा सकी तुम्हारा सवाल बहा ही बचकाना है ।"
पहले वाला अपना-सा मुँह लेकर रह गया
क्षण भर कुछ सोचकर सलाखों पर दस्तक दी ।
सभी ने चेहरे उठाकर खिड़की की तरफ देखा । मुझे खिड़की के पीछे देख उनके चेहरों पर असमंजस के भाव उभरे।
मैंने उनमें से एक को हाथ से अपनी तरफ़ आने का इशारा किया । उसने प्रश्न भरी निगाहों से अपने साथियों की तरफ देखा ।
"सोच क्या रहे हो?" मैंने धीमे स्वर में कहा----" जल्दी से मेरे पास आओं ।"
वह एक झटके से उठा और लपकता हुआ खिड़की के नीचे आकर खड़ा हो गया, फिर उसने अपना ऊपर उठाकर पूछा-"कौंन हो ?"
" हमदर्द समझो ।"
" मेरी हमदर्द यहाँ कहां से आ गई?" वह चकराया-सा बोला---"यहाँ तो हर कोई हमारा दुश्मन है । हमारे खून का प्यासा !"
"मैंने जो कहा है । वह सच है ।"
"तुमने मुझे क्यों बुलाया?" उसने सवाल किया ।
"तुम दीवार को तोड़ने की बात कर रहे थे न ।"
"हां ।"
"कमरे की दीवार तोड्री जा सकती है ।"
" क. .क्या ?" उसका मुंह हैरत से भाड़ की तरह खुल गया ।
" मैँ ठीक का रही हू । इस काम में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं !"
"लेकिन तुम हमारी मदद क्यों करना चाहती हो, इसमें तुम्हारी क्या दिलचस्पी हैं ?"
"तुम लोग सर एंडलॉफ़ के समर्थक हो और एक अच्छे काम के लिये जालिमो के खिलाफ जंग लड़ रहे हो । यही वजह है कि मैं तुम लोगों की मदद करना चाहती हूं।" मैं फुसफुसाई ।
उसका चेहरा चमक उठा ।
"ल .लेकिन दीवार कैसे तोडी जा सकती है ?" उसने सवाल किया ।
"वो भी बताऊगी । लेकिन पबले ये बताओ कि दीवार के दूसरी तरफ़ क्या है?"
"खाली जगह है ।"
"पक्की बात ।"
" एकदम पक्की बात ।"
" यानि दीवार टूटने के बाद तुम आसानी से यहां से भागने मे कामयाब हो जाओगे !"
"अबश्य ।"
"यहां से निकलने के बाद तुम लोगों को एक काम करना होगा ।"
"क्या ?" उसकी सवालिया निगाहें मेरे चेहरे पर फिक्स होकर रह गई ।
"तुम सर एडलॉंफ के समर्थक हो । तुम्हें इस बारे में जानकारी होगी कि इस शहर में तुम लोगों के ठिकाने कहां-कहां हैँ? तुम्हारे साथी किस जगह छिपकर अपनी कार्यवाही करते हैं ।"
"हमें पूरी जानकारी है ।"
"यहां से निकलने के बाद तुम उन ठिकानों पर मोजूद अपने साथियों को सावधान कर दोगे कि अब वो जगह उनके लिये सुरक्षित नहीँ रही है । कभी भी सैनिक यहां पहुंचकर उन्हें गिरफ्तार कर सकते ।"
मैंने ये बात उसे-इसलिए कहीं थी कि अगर सैनिक क्लाइव का मुंह खुलवाने में कामयाब हो भी जायं तो वहां उन्हें चिडिया का बच्चा भी न मिले ।
" अपने साथियों को खबर करना मेरी जिम्मेदारी है । अब मुझें जल्दी से बताओं कि दीवार केसे तोडी जा सकती हे? अगर सैनिक यहां आ गये तो हम लोगों की मौत निश्चित है ।"
"अपनी शर्ट फैलाओ ।"
उसने अपनी शर्ट के दोनों कोने पकड़कर आगे की तरफ फैला दिए।
मैंने अपने सैडिल की एडी ढक्कन की तरह खोली और उस खोखली एडी में रखा बड़े आकार का एक कैप्सूल निकालकर सलाखों के बीच में हाथ डालकर नीचे छोड़ दिया ।
कैप्पूल उसकी फैली शर्ट पर'गिरा ।
"य. . .ये क्या है ?“ उसने र्केप्सूल पर निगाह मारी, फिर चेहरा उठाकर मेरी तरफ देखता हुआ बोला ।
"दरअसल ये कैप्सूल एक शक्तिशाली बम है । ये इन्सानी जान भी ले सकता है । कमरे की दीवार को ध्वस्त करने के लिये । एक कैंप्यूल बम काफी होगा ।"
"अ. . . अच्छा ।" उसके होठों से आश्चर्य भरा स्वर निकला ।
"हां !"
उसने कैप्पूल उठाकर अपनी मुट्ठी में दबा लिया । पलक झपकते ही उसका चेहरा पत्थर की तरह कठोर होता चला गया । जबड़े कस गये । इस बीच उसके पांचो साथी भी वहीं पहुच गये थे ।
"लेकिन एक बात है ।" मैंने कहा ।
"क्या?" इस बार उसका एक साथी बोल उठा ।
दीवार उडाने के चक्कर में तुम लोगों की जाने भी जा सकती हैं । तुम लोग मलवे की चपेट में आ सकते हो ।"
"हम लोग सैनिकों के हाथों दर्दनाक मोत मरने से ऐसी मौत मरना बैहतर समझते हैं ।" तीसरे ने कहा ।
"एक बात और ।"
"वो क्या?" उन सभी की निगाहें मेरे चेहरे पर आ टिकी ।
"बम फटने से जबरदस्त धमाका होगा । धमाके की आवाज इस समूची इमारत में सुनी जायेगी । तुम लोग पकडे भी जा सकते हो । फिर सैनिक तुम्हे ऐसी मौत देगे, जिसका अंदाजा तुम स्वयं भी लगा सकते हो ।" मैंने कहा ।
" वो बाद की बात है । अगर हम यहां से भाग निकले तो फिर हम सैनिकों के फरिश्तों के हाथ भी नहीं आयेंगे । बस हमें भागने . के लिए रास्ता मिल जाये ।"
"रास्ता तो तुम्हें मिल ही जायेगा । गोड का नाम लेकर इस कैपूसूल को पूरी ताकत से सामने वाली दीवार पर दे मारो । कमरे की दीबार मलबे के देर में तब्दील हो जायेगी ।"
उस शख्स ने कैप्सूल पूरी ताकत से सामने वाली दीवार पर दे मारा ।
अगले क्षण ।
धड़ाम् ।
मैंने सोचा मेरा वहम है । लेकिन वो मेरा वहम कैसे हो सकता था? वो आवाज मैंने साफ-साफ सुनी थी ।
मेरे कान खड़े हो गये।
"जवाब दो ।" इस बार दूसरा स्वर मुझे सुनाई दिया था ।
वह आवाज ऐसी थी जैसे कोई मच्छर भिनभिनाता हो ।
आवाज बगल वाले कमरे से आई थी, जिसके मजबूत दरवाजे पर लोहे का ताला लटका हुआ था ।
पलक झपकते ही मेरे जेहन में एक सवाल कौंध गया था ।
कमरे में कौन लोग हैँ?
"मेरे दिमाग में कमरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है ।" जवाब में कहा गया ।
मेरी उत्सुकता आसमान छूने लगी ।
मै स्प्रिग लगे खिलौने की तरह उछलकर खडी हो गई और दबे कदमों कोने में रखी मेज की तरफ बढी ।
"ओपफो ।" इस बार तीसरे व्यक्ति का बैचेनी भरा स्वर मुझे सुनाई दिया…"कुछ तो सोचो । इस तरह हथियार डाल देने से काम नहीं चलेगा, अगर हमलोग यहां से नहीं निकले तो हमें ऐसी भयानक मौत मिलेगी, जिसकी हमने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी ।"
"तुम ही कुछ क्यों नहीं सोचते?"
"क्या सोचूं?. मेरे दिमाग ने तो काम करना ही की कर दिया है ।"
"फिर तो मौत का इंतजार करो । कुछ देर बाद हमें गोलियों से भून दिया जायेगा, और हमारी लाशें चीलें-कौओ के खाने के लिये छत पर डाल दी जायेंगी । मुझे एक ही बात का अफसोस है कि मैं सर एडलॉफ के लिये कुछ नहीं कर सका ।"
अब मैं समझ गई कि वे लोग सर एडलॉफ के समर्थक हैं ।
मैं मेज के करीब पहुंची ।
मैंने मेज उठाकर उसका वजन परखा, वो ज्यादा भारी नहीं थी । मैंने मेज को खिड़की के नीचे दीवार के साथ सटाकर रख दिया, फिर उस पर चढ गई । "
अब मेरा चेहरा खिड़की के सामने था ।
मैंने चेहरा सलाखों से सटाकर दूसरी तरफ झाका, उस कमरे के फर्श पर छ: व्यक्ति बैठे हुए थे । सभी के चेहरों पर पत्थर जैसी कठोरता नजर जा रहीँ थी ।
कमरे में बल्ब का पीला एवं बीमार प्रकाश फैला हुआ था ।
"अच्छा ये बताओ क्या किसी तरह इस कमरे की दीवार नहीं तोडी जा सकती?" एक ने कहा ।
"पागल हो तुम?" दुसेर ने कहा-"इस कमरे की दीवारें कागज की हैं क्या, जो तोडी जा सकी तुम्हारा सवाल बहा ही बचकाना है ।"
पहले वाला अपना-सा मुँह लेकर रह गया
क्षण भर कुछ सोचकर सलाखों पर दस्तक दी ।
सभी ने चेहरे उठाकर खिड़की की तरफ देखा । मुझे खिड़की के पीछे देख उनके चेहरों पर असमंजस के भाव उभरे।
मैंने उनमें से एक को हाथ से अपनी तरफ़ आने का इशारा किया । उसने प्रश्न भरी निगाहों से अपने साथियों की तरफ देखा ।
"सोच क्या रहे हो?" मैंने धीमे स्वर में कहा----" जल्दी से मेरे पास आओं ।"
वह एक झटके से उठा और लपकता हुआ खिड़की के नीचे आकर खड़ा हो गया, फिर उसने अपना ऊपर उठाकर पूछा-"कौंन हो ?"
" हमदर्द समझो ।"
" मेरी हमदर्द यहाँ कहां से आ गई?" वह चकराया-सा बोला---"यहाँ तो हर कोई हमारा दुश्मन है । हमारे खून का प्यासा !"
"मैंने जो कहा है । वह सच है ।"
"तुमने मुझे क्यों बुलाया?" उसने सवाल किया ।
"तुम दीवार को तोड़ने की बात कर रहे थे न ।"
"हां ।"
"कमरे की दीवार तोड्री जा सकती है ।"
" क. .क्या ?" उसका मुंह हैरत से भाड़ की तरह खुल गया ।
" मैँ ठीक का रही हू । इस काम में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं !"
"लेकिन तुम हमारी मदद क्यों करना चाहती हो, इसमें तुम्हारी क्या दिलचस्पी हैं ?"
"तुम लोग सर एंडलॉफ़ के समर्थक हो और एक अच्छे काम के लिये जालिमो के खिलाफ जंग लड़ रहे हो । यही वजह है कि मैं तुम लोगों की मदद करना चाहती हूं।" मैं फुसफुसाई ।
उसका चेहरा चमक उठा ।
"ल .लेकिन दीवार कैसे तोडी जा सकती है ?" उसने सवाल किया ।
"वो भी बताऊगी । लेकिन पबले ये बताओ कि दीवार के दूसरी तरफ़ क्या है?"
"खाली जगह है ।"
"पक्की बात ।"
" एकदम पक्की बात ।"
" यानि दीवार टूटने के बाद तुम आसानी से यहां से भागने मे कामयाब हो जाओगे !"
"अबश्य ।"
"यहां से निकलने के बाद तुम लोगों को एक काम करना होगा ।"
"क्या ?" उसकी सवालिया निगाहें मेरे चेहरे पर फिक्स होकर रह गई ।
"तुम सर एडलॉंफ के समर्थक हो । तुम्हें इस बारे में जानकारी होगी कि इस शहर में तुम लोगों के ठिकाने कहां-कहां हैँ? तुम्हारे साथी किस जगह छिपकर अपनी कार्यवाही करते हैं ।"
"हमें पूरी जानकारी है ।"
"यहां से निकलने के बाद तुम उन ठिकानों पर मोजूद अपने साथियों को सावधान कर दोगे कि अब वो जगह उनके लिये सुरक्षित नहीँ रही है । कभी भी सैनिक यहां पहुंचकर उन्हें गिरफ्तार कर सकते ।"
मैंने ये बात उसे-इसलिए कहीं थी कि अगर सैनिक क्लाइव का मुंह खुलवाने में कामयाब हो भी जायं तो वहां उन्हें चिडिया का बच्चा भी न मिले ।
" अपने साथियों को खबर करना मेरी जिम्मेदारी है । अब मुझें जल्दी से बताओं कि दीवार केसे तोडी जा सकती हे? अगर सैनिक यहां आ गये तो हम लोगों की मौत निश्चित है ।"
"अपनी शर्ट फैलाओ ।"
उसने अपनी शर्ट के दोनों कोने पकड़कर आगे की तरफ फैला दिए।
मैंने अपने सैडिल की एडी ढक्कन की तरह खोली और उस खोखली एडी में रखा बड़े आकार का एक कैप्सूल निकालकर सलाखों के बीच में हाथ डालकर नीचे छोड़ दिया ।
कैप्पूल उसकी फैली शर्ट पर'गिरा ।
"य. . .ये क्या है ?“ उसने र्केप्सूल पर निगाह मारी, फिर चेहरा उठाकर मेरी तरफ देखता हुआ बोला ।
"दरअसल ये कैप्सूल एक शक्तिशाली बम है । ये इन्सानी जान भी ले सकता है । कमरे की दीवार को ध्वस्त करने के लिये । एक कैंप्यूल बम काफी होगा ।"
"अ. . . अच्छा ।" उसके होठों से आश्चर्य भरा स्वर निकला ।
"हां !"
उसने कैप्पूल उठाकर अपनी मुट्ठी में दबा लिया । पलक झपकते ही उसका चेहरा पत्थर की तरह कठोर होता चला गया । जबड़े कस गये । इस बीच उसके पांचो साथी भी वहीं पहुच गये थे ।
"लेकिन एक बात है ।" मैंने कहा ।
"क्या?" इस बार उसका एक साथी बोल उठा ।
दीवार उडाने के चक्कर में तुम लोगों की जाने भी जा सकती हैं । तुम लोग मलवे की चपेट में आ सकते हो ।"
"हम लोग सैनिकों के हाथों दर्दनाक मोत मरने से ऐसी मौत मरना बैहतर समझते हैं ।" तीसरे ने कहा ।
"एक बात और ।"
"वो क्या?" उन सभी की निगाहें मेरे चेहरे पर आ टिकी ।
"बम फटने से जबरदस्त धमाका होगा । धमाके की आवाज इस समूची इमारत में सुनी जायेगी । तुम लोग पकडे भी जा सकते हो । फिर सैनिक तुम्हे ऐसी मौत देगे, जिसका अंदाजा तुम स्वयं भी लगा सकते हो ।" मैंने कहा ।
" वो बाद की बात है । अगर हम यहां से भाग निकले तो फिर हम सैनिकों के फरिश्तों के हाथ भी नहीं आयेंगे । बस हमें भागने . के लिए रास्ता मिल जाये ।"
"रास्ता तो तुम्हें मिल ही जायेगा । गोड का नाम लेकर इस कैपूसूल को पूरी ताकत से सामने वाली दीवार पर दे मारो । कमरे की दीबार मलबे के देर में तब्दील हो जायेगी ।"
उस शख्स ने कैप्सूल पूरी ताकत से सामने वाली दीवार पर दे मारा ।
अगले क्षण ।
धड़ाम् ।
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यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
एक जबरदस्त विस्फोट हुआ ।. . पलक झपकते ही .कमंरे मे धुएं का पहाड-सा खडा हो गया था । फिर मलबे के गिरने की आवाज सुनाई दी इस धुएं में मेरे लिए कुछ भी देख पाना संभव नहीं था । कुछ क्षणों वाद धूआं छंटा । मेंने देखा, तो दीवार आधी से अधिक उड़ चुकी थी । कमरे में मलवा बिखरा पड़ा था 1 उस त्तरफ खाली जगह थी ।
"अब देर मत करो ।" मैं बोल उठी-"भाग जाओं ।"
मेरे कहने की देर थी कि वे खुली जगह में जम्प लगा गये । फिर खाली जगह में यूं भाग खड़े हुए मानो उनके पीछे सेकंडों भूत लगे हो ।
मैंने उन लोगों की जान बचा दी थी ।
तभी ।
इमारत में भारि ब्रूटो की आवाज गूजती चली गई । जाहिर था कि विस्फोट की आबाज़ सेनिकों ने सुन ली थी ।
अब बो आबाज करीब आती जा रही थी ।
एक क्षण का सौवा हिस्सा भी व्यर्थ किये बगैर मैं मेज से नीचे कूद गई थी । मैंने दोनों हाथों से मेज़ उठाकर यथास्थान रख दी, फिर आगे बढकर दीवार से पीठ सटाकर खडी हो गई । अब बूटो की आवाज बाहर राहदारी में गूंज रही थी । कुछ क्षण ही गुजरे थे कि मेरे कमरे का दरवाजा तीव्रता के साथ खुला। अगले क्षण कई सेनिक घडधड़ाते हुए भीतर दाखिल हुए।
सैनिकों के पीछे सोल्जर ने भीतर कदम रखा।
"धमाका क्रिस तरफ हुआ रीमा?" सोल्जर ने मुझसे पूछा ।
"बगल वाले कमरे में ।" मेने कहा-"धमाका बडा जबरदस्त था । मुझे तो अपने कानों के परदे फटते हुए से महसूस हुए थे । चक्कर क्या हैं ?"
मेरे सवाल का जबाब दिये बगैर वह सैनिकों को सम्बोधित करता हुआ आदेशपूर्ण लहजे में बोला-"मुझें कोई गड़बड़ लगती है । जल्दी से कमरा खोलकर देखो ।"
सैनिक दरवाजे की तरफ लपके । मैं उठकर खडी हो चुकी थी । सैनिक ने दरवाजे के मुंह पर पडा ताला खोला और दरवाजा धकेलते हुए 'तीर की तरह भीतर दाखिल हुए । भीतर उन्हें क्या मिलना था? कमरा खाली पड़ा हुआ था । पंछी उड़ चुके थे ।
"कमरे में तो कोई नहीं है सर ।" एक सैनिक कमरे से बाहर निकलता हुआ बोला--"कमरे की पीछे वाली दीवार टूटी पडी है ।"
"व. . . व्हाट ?" सोल्जर उछल पडा ।
"यस सर ।" सैनिक ने कहा---" वे दीवार तोडकर भाग गये हैं । दीवार को बम से उड़ाया गया है । वॅ धमाका बम का ही था ।"
"उन लोगों के पास बम कहां से आ गया बेवकूफ ।" सोल्जर ' बोला---" उन हरामजादों को इस कमरे में बंद क्रिया गया था, उनकी बारीकी से तलाशी ली गई थी । उनके पास सुई तक नहीं थी और तुम कह रहे हो कि वे बम से दीवार तोड़कर भागे हैं ।"
सैनिक पर कुछ कहते नहीं वना ।
"वे भागे नहीं हैँ! उन्हें भगाया गया है ।" बह पुन: बोल उठा-"उन्हें भगाने में जरूर किसी ने उनकी मदद की ।"
मेरा दिल जोरों से धडक उठा ।
पलक झपकते ही मेरे दिमाग में एक बिचार चकराता चला गया कि अगर सोल्जर को मेरे ऊपर शक हो गया तो मेरी सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा ।
"उन कुत्तों का पीछा करो । अभी वो ज्यादा दूर नहीं गये होंगे ।" सोल्लर ने हुक्म दनदनाया----"हरिअप ।"
सेनिकं पलटकर कमरे में दाखिल हो गया ।
"अजीब बात है ।" सोज्जर बढ़बड़ाया-"उन लोगों को यहाँ से कौन भगा सकता है? इस बारे में तो कोई नहीं जानता था कि वे इस इमारत में कैद हैं ।"
"बात क्या है सोज्जर?" मैंने मासूमियत से पूछा ।
"इस कमरे में सर एडलाफ के छ समर्थक कैद थे ।" उसने बताया- "वे कमरे से गायब हैं । सवाल इस बात का है कि वे भागे कैसे ? "
"जरूर किसी ने उनकी मदद की है ।"
" 'कौन कर सकता है उनकी मदद ?" सोल्जर ने अजीब निगाहीं से मुझे देखा ।
"मुझे यहाँ आये आधा घंटा भी नहीं हुआ है । तुम मुझसे पूछ रहे हो? इस सवाल का जवाब तो तुम्हारे पास होगा ।"
"इस बारे में वे खुद बतायेंगे कि उनकी मदद किसने की है, क्योंकि अब वे ज्यादा देर तक खुली हवा में सांस नहीं ले सकेंगे । बहुत जल्दी सेनिक उन हरामजार्दो को तलाश कर लेंगे ।"
कहने कै साथ ही वह लंबे-लंबे डग भरता हुआ बगल वाले कमरे में प्रवेश कर गंया ।
इस वक्त सोज्जर की हालत घायल शेर जैसी हो रही थी ।
एक मिनट बाद यह कमरे से बाहर निकला और सामने, वाले दरवाजे की तरफ बढ गया ।
एक पल बाद मैंने सोल्जर को राहदारी कै उस पार सामने वाले कमरे का दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल होते देखा ।
मैं दबे पांव दरवाजे की तरफ बढी ।
=====
=====
"सोल्जर स्पीकिंग. . . ओवर ।"
मेरे कानों से सोज्जर का स्वर टकराया ।
इस वक्त में उस कमरे के दरवाजे से कान सटाये खडी थी, जिसमें अभी-अभी सोज्जर दाखिल हुआ था ।
"मार्शल कालिंग । मेसेज दो.. .ओवर ।"
ट्रांसमीटर पर वार्तालाप चल रहा था । मुझे मार्शल की आवाज भी साफ सुनाई दे रहीँ थी ।
"रीमा भारती ने जो कुछ बताया है । वो सब सच है सर ।"
मैंने हिन्दुस्तान में अपने "सोसँज' से सम्पर्क स्थापित करुके जानकारी हासिल की है...ओवर ।"
"गुड ।"
"अब मेरे लिये क्या आदेश है सर. . .सर ।"
"रीमा भारती एक दिमागदार और तेज-तर्रार जासूस है । वो हमारे लिये वहुत काम की साबित हो सकती है । तुम रीमा भारती को लेकर मेरे पास पहुचो-ओवर ।"
"में पहुंचता हूँ सर, लेकिन एक बुरी खबर है. . . ओवर ।"
"व... बूरी खबर क्या हे... ।"
" हम लोगों जिन छ: सर एडलॉफ के समर्थकों को गिरफ्तार किया था । वे कैदखाने से फरार हो गये ।"
"व . .व्हाट?"
"मैं ठीक कह रहा हू सर. . सर ।"
"इतने कडे सुरक्षा-प्रबंधों के बावजूद वो कैसे फरार हो गये. . .ओवर?"
"यहीँ बात तो मेरी समझ में नहीं आ रही है । अचानक इमारत में एक जबरदस्त धमाका हुआ । ऐसा लगा जैसे कोई शक्तिशाली बम फटा हो । मैं सैनिकों लेकर कैदखाने में पहुचा तो मेंने देखा कि कमरे की दीवार टूटी हुई थी और वे सभी कैदी गायब थे-ओबर ।"
सुनकर दूसरी तरफ मौजूद मार्शल का दिमाग निश्चित रूप से फिरकनी की तरह घूमकर रह गया होगा ।
"जाहिर है कि उन लोगों को कैदखाने से भगाने में किसी ने उनकी मदद की है.. .ओवर ।"
"कहीं ऐसा तो नहीँ कि तुम्हारा कोई सैनिक उन लोगों से मिल गया हो ।"
"जी नहीं । ये कैसे ममकिन हो सकता है? किसी बाहरी आदमी ने उनकी मदद की . . .ओवर ।"
मै मन-ही-मन मुस्कुराई ।
वे तो सपने में भी कल्पना नहीं कर सकते थे कि. उन को भगाने में मेरा हाथ था ।
"उन सर एडलॉफ के समर्थकों का फरार हो जाना हमारे लिये चिंता की बात है सर । अब हमेँ इस बारे में कैसे जानकारी मिलेगी कि सर एडलॉफ के और समर्थक कहां छिपे हुए हैं । शहर में उनके ठिकाने क्रहां-कहां हैं, . . ओवर ।", . .
"इस बारे में तो हम लोग क्लाइव से मालूम कर लेंगे. . लेकिन उन लोगों क्रो भी गिरफ्तार करने जरूरी है .ओवर ।"
"मैंने उनकी तलाश में सैनिक दौड़ा दिये हैं । वो ज्याद-देर तक आजाद नहीं रह सकेंगे। उम्मीद है कि उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जायेगा. . . !"
"गुड और कुछ. .. ।"
" नो सर । ओवर एण्ड आल ।"
उन लोगों का वार्तालाप खत्म हो चुका था । अब मेरा यहां खड़े रहने का कोई मतलब नहीं था । अत: मैं घूमी और पंजों के बल दौडती हुई उसी कमरे में वापस आ गई ।
एक मिनट बाद सोल्जर मेरे कमरे में दाखिल हुआ, फिर मेरे करीब ठिठकता हुआ बोला-"तुमने अपने बारे में जो कुछ बताया मैं था । वो सही निकला । तुम वाकई में आइ एस०सी० छोड़ चुकी हो । इस बारे में मैं पूरी इंफार्मेशन हासिल कर चुका हु ।"
"मैंने सच ही बताया थ्, लेकिन तुमने मेरी बात पर विश्वास ही नहीं किया ।" मैंने कहा।
" सच जानना जरूरी था ओर ये मार्शल साहब का आदेश था । इसका मुझे खेद है कि तुम्हें थोड़े समय के लिये सहीं लेकिन एक कैदी की तरह की करना पड़ा ।"
"मार्शल साहब का आदेश जो था ।"
"राइट !"
मैं मुस्कराई ।
" अब मेरे साथ चलो मिस रीमा ।" बह बोला ।
"कहां ?" मैंने जानबूझकर अनजान बनते हुए पूछा ।
"मार्शले साहब के पास ।"
" क. . . क्यों ?"
! मार्शल साहब ने तुम्हें बुलाया है !"
मैं भी यहीं चाहती थी । मैंने इतना लंबा खेल मार्शल तक पहुओने के लिये ही तो खेला था !
"अब देर मत करो ।" मैं बोल उठी-"भाग जाओं ।"
मेरे कहने की देर थी कि वे खुली जगह में जम्प लगा गये । फिर खाली जगह में यूं भाग खड़े हुए मानो उनके पीछे सेकंडों भूत लगे हो ।
मैंने उन लोगों की जान बचा दी थी ।
तभी ।
इमारत में भारि ब्रूटो की आवाज गूजती चली गई । जाहिर था कि विस्फोट की आबाज़ सेनिकों ने सुन ली थी ।
अब बो आबाज करीब आती जा रही थी ।
एक क्षण का सौवा हिस्सा भी व्यर्थ किये बगैर मैं मेज से नीचे कूद गई थी । मैंने दोनों हाथों से मेज़ उठाकर यथास्थान रख दी, फिर आगे बढकर दीवार से पीठ सटाकर खडी हो गई । अब बूटो की आवाज बाहर राहदारी में गूंज रही थी । कुछ क्षण ही गुजरे थे कि मेरे कमरे का दरवाजा तीव्रता के साथ खुला। अगले क्षण कई सेनिक घडधड़ाते हुए भीतर दाखिल हुए।
सैनिकों के पीछे सोल्जर ने भीतर कदम रखा।
"धमाका क्रिस तरफ हुआ रीमा?" सोल्जर ने मुझसे पूछा ।
"बगल वाले कमरे में ।" मेने कहा-"धमाका बडा जबरदस्त था । मुझे तो अपने कानों के परदे फटते हुए से महसूस हुए थे । चक्कर क्या हैं ?"
मेरे सवाल का जबाब दिये बगैर वह सैनिकों को सम्बोधित करता हुआ आदेशपूर्ण लहजे में बोला-"मुझें कोई गड़बड़ लगती है । जल्दी से कमरा खोलकर देखो ।"
सैनिक दरवाजे की तरफ लपके । मैं उठकर खडी हो चुकी थी । सैनिक ने दरवाजे के मुंह पर पडा ताला खोला और दरवाजा धकेलते हुए 'तीर की तरह भीतर दाखिल हुए । भीतर उन्हें क्या मिलना था? कमरा खाली पड़ा हुआ था । पंछी उड़ चुके थे ।
"कमरे में तो कोई नहीं है सर ।" एक सैनिक कमरे से बाहर निकलता हुआ बोला--"कमरे की पीछे वाली दीवार टूटी पडी है ।"
"व. . . व्हाट ?" सोल्जर उछल पडा ।
"यस सर ।" सैनिक ने कहा---" वे दीवार तोडकर भाग गये हैं । दीवार को बम से उड़ाया गया है । वॅ धमाका बम का ही था ।"
"उन लोगों के पास बम कहां से आ गया बेवकूफ ।" सोल्जर ' बोला---" उन हरामजादों को इस कमरे में बंद क्रिया गया था, उनकी बारीकी से तलाशी ली गई थी । उनके पास सुई तक नहीं थी और तुम कह रहे हो कि वे बम से दीवार तोड़कर भागे हैं ।"
सैनिक पर कुछ कहते नहीं वना ।
"वे भागे नहीं हैँ! उन्हें भगाया गया है ।" बह पुन: बोल उठा-"उन्हें भगाने में जरूर किसी ने उनकी मदद की ।"
मेरा दिल जोरों से धडक उठा ।
पलक झपकते ही मेरे दिमाग में एक बिचार चकराता चला गया कि अगर सोल्जर को मेरे ऊपर शक हो गया तो मेरी सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा ।
"उन कुत्तों का पीछा करो । अभी वो ज्यादा दूर नहीं गये होंगे ।" सोल्लर ने हुक्म दनदनाया----"हरिअप ।"
सेनिकं पलटकर कमरे में दाखिल हो गया ।
"अजीब बात है ।" सोज्जर बढ़बड़ाया-"उन लोगों को यहाँ से कौन भगा सकता है? इस बारे में तो कोई नहीं जानता था कि वे इस इमारत में कैद हैं ।"
"बात क्या है सोज्जर?" मैंने मासूमियत से पूछा ।
"इस कमरे में सर एडलाफ के छ समर्थक कैद थे ।" उसने बताया- "वे कमरे से गायब हैं । सवाल इस बात का है कि वे भागे कैसे ? "
"जरूर किसी ने उनकी मदद की है ।"
" 'कौन कर सकता है उनकी मदद ?" सोल्जर ने अजीब निगाहीं से मुझे देखा ।
"मुझे यहाँ आये आधा घंटा भी नहीं हुआ है । तुम मुझसे पूछ रहे हो? इस सवाल का जवाब तो तुम्हारे पास होगा ।"
"इस बारे में वे खुद बतायेंगे कि उनकी मदद किसने की है, क्योंकि अब वे ज्यादा देर तक खुली हवा में सांस नहीं ले सकेंगे । बहुत जल्दी सेनिक उन हरामजार्दो को तलाश कर लेंगे ।"
कहने कै साथ ही वह लंबे-लंबे डग भरता हुआ बगल वाले कमरे में प्रवेश कर गंया ।
इस वक्त सोज्जर की हालत घायल शेर जैसी हो रही थी ।
एक मिनट बाद यह कमरे से बाहर निकला और सामने, वाले दरवाजे की तरफ बढ गया ।
एक पल बाद मैंने सोल्जर को राहदारी कै उस पार सामने वाले कमरे का दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल होते देखा ।
मैं दबे पांव दरवाजे की तरफ बढी ।
=====
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"सोल्जर स्पीकिंग. . . ओवर ।"
मेरे कानों से सोज्जर का स्वर टकराया ।
इस वक्त में उस कमरे के दरवाजे से कान सटाये खडी थी, जिसमें अभी-अभी सोज्जर दाखिल हुआ था ।
"मार्शल कालिंग । मेसेज दो.. .ओवर ।"
ट्रांसमीटर पर वार्तालाप चल रहा था । मुझे मार्शल की आवाज भी साफ सुनाई दे रहीँ थी ।
"रीमा भारती ने जो कुछ बताया है । वो सब सच है सर ।"
मैंने हिन्दुस्तान में अपने "सोसँज' से सम्पर्क स्थापित करुके जानकारी हासिल की है...ओवर ।"
"गुड ।"
"अब मेरे लिये क्या आदेश है सर. . .सर ।"
"रीमा भारती एक दिमागदार और तेज-तर्रार जासूस है । वो हमारे लिये वहुत काम की साबित हो सकती है । तुम रीमा भारती को लेकर मेरे पास पहुचो-ओवर ।"
"में पहुंचता हूँ सर, लेकिन एक बुरी खबर है. . . ओवर ।"
"व... बूरी खबर क्या हे... ।"
" हम लोगों जिन छ: सर एडलॉफ के समर्थकों को गिरफ्तार किया था । वे कैदखाने से फरार हो गये ।"
"व . .व्हाट?"
"मैं ठीक कह रहा हू सर. . सर ।"
"इतने कडे सुरक्षा-प्रबंधों के बावजूद वो कैसे फरार हो गये. . .ओवर?"
"यहीँ बात तो मेरी समझ में नहीं आ रही है । अचानक इमारत में एक जबरदस्त धमाका हुआ । ऐसा लगा जैसे कोई शक्तिशाली बम फटा हो । मैं सैनिकों लेकर कैदखाने में पहुचा तो मेंने देखा कि कमरे की दीवार टूटी हुई थी और वे सभी कैदी गायब थे-ओबर ।"
सुनकर दूसरी तरफ मौजूद मार्शल का दिमाग निश्चित रूप से फिरकनी की तरह घूमकर रह गया होगा ।
"जाहिर है कि उन लोगों को कैदखाने से भगाने में किसी ने उनकी मदद की है.. .ओवर ।"
"कहीं ऐसा तो नहीँ कि तुम्हारा कोई सैनिक उन लोगों से मिल गया हो ।"
"जी नहीं । ये कैसे ममकिन हो सकता है? किसी बाहरी आदमी ने उनकी मदद की . . .ओवर ।"
मै मन-ही-मन मुस्कुराई ।
वे तो सपने में भी कल्पना नहीं कर सकते थे कि. उन को भगाने में मेरा हाथ था ।
"उन सर एडलॉफ के समर्थकों का फरार हो जाना हमारे लिये चिंता की बात है सर । अब हमेँ इस बारे में कैसे जानकारी मिलेगी कि सर एडलॉफ के और समर्थक कहां छिपे हुए हैं । शहर में उनके ठिकाने क्रहां-कहां हैं, . . ओवर ।", . .
"इस बारे में तो हम लोग क्लाइव से मालूम कर लेंगे. . लेकिन उन लोगों क्रो भी गिरफ्तार करने जरूरी है .ओवर ।"
"मैंने उनकी तलाश में सैनिक दौड़ा दिये हैं । वो ज्याद-देर तक आजाद नहीं रह सकेंगे। उम्मीद है कि उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया जायेगा. . . !"
"गुड और कुछ. .. ।"
" नो सर । ओवर एण्ड आल ।"
उन लोगों का वार्तालाप खत्म हो चुका था । अब मेरा यहां खड़े रहने का कोई मतलब नहीं था । अत: मैं घूमी और पंजों के बल दौडती हुई उसी कमरे में वापस आ गई ।
एक मिनट बाद सोल्जर मेरे कमरे में दाखिल हुआ, फिर मेरे करीब ठिठकता हुआ बोला-"तुमने अपने बारे में जो कुछ बताया मैं था । वो सही निकला । तुम वाकई में आइ एस०सी० छोड़ चुकी हो । इस बारे में मैं पूरी इंफार्मेशन हासिल कर चुका हु ।"
"मैंने सच ही बताया थ्, लेकिन तुमने मेरी बात पर विश्वास ही नहीं किया ।" मैंने कहा।
" सच जानना जरूरी था ओर ये मार्शल साहब का आदेश था । इसका मुझे खेद है कि तुम्हें थोड़े समय के लिये सहीं लेकिन एक कैदी की तरह की करना पड़ा ।"
"मार्शल साहब का आदेश जो था ।"
"राइट !"
मैं मुस्कराई ।
" अब मेरे साथ चलो मिस रीमा ।" बह बोला ।
"कहां ?" मैंने जानबूझकर अनजान बनते हुए पूछा ।
"मार्शले साहब के पास ।"
" क. . . क्यों ?"
! मार्शल साहब ने तुम्हें बुलाया है !"
मैं भी यहीं चाहती थी । मैंने इतना लंबा खेल मार्शल तक पहुओने के लिये ही तो खेला था !
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
*****************
दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
*****************
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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- Joined: 18 Dec 2014 12:09
Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
"क्या मार्शल साहब ने मेरी शर्त मान ली है ?' मैंने उत्सुकता भरे स्वर में पूछा ।
"इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता । ये तो मार्शल साहब के पास पहुचने के बाद ही मालूम होगा । वेसे मुझे विश्वास है कि तुम्हारी मान ली जायेगी ।" बह बोला----"चलो ।" कहकर सोल्जर घूमा जोर दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
मैं उसके-पीछे चल पडी ।
कुछ पलै बाद सोल्जर मुझे लेकर कम्पाउण्ड में पहुंचा । फिर वह एक जीप की ड्रायविंग सीट संभालता हुआ 'बोला-"बैठो ।"
मैं उसकी बगल वाली सीट पर बैठ गई ।
सोल्जर ने जीप स्टार्ट करके आगे बढा ही । जीप तीर की तरह कम्पाउंड से बाहर निकली और फिर एक दिशा नें भागती चली गई ।
लगभग एक घंटा शहर की विभिन्न सडकों पर दौडने के बाद वो जीप एक इमारत के कम्पाउंड में पहुंचकर रुकी ।
"नीचे उतरो रीमा ।" सोज्जर जीप से कूदता हुआ बोला ।
मैं समझ गई कि मंजिल आ गई है ।
मैं भी तुरंत जीप से नीचे उतर गई ।
वो लंबा-चौड़ा कम्पाउण्ड था । वहाँ कई जीपों के अलावा दो नई नकौर कारें भी खडी हुई थीं । कम्पाउण्ड में थोड़े थोड़े फासले में सशस्त्र सैनिक टहलते नजर आ रहे थे ।
सोल्जर जीप के सामने से चक्कर काटकर मेरे करीब पहुंचता हुआ बोला…"आओ ।"
मैं सोल्जर के साथ चल पडी ।
वो किले जैसी इमारत लाल पत्थरों से बनी हुई थी । उसके अग्रभाग में लोहे का मज़बूत गेट लगा हुआ था, जो इस वक्त बंद था । गेट के दायें-बाये दो सशस्त्र सैनिक खड़े थे ।
मैं सोज्जर के साथ मुख्य द्वार की तरफ़ बढ़ रही थी ।
सोज्जर जिस सेनिक के सामने से गुजरता उसी सेनिक की एडियों बज उठतीं । हाथ सैल्यूट की मुद्रा में माथे से चिपक जाता । सोल्जर सिर की हल्की सी जुम्बिश साथ उसके अभिवादन का जवाब देकर आगे बढ जाता ।
"इसी इमारत में मार्शल साहब रहते हैं ।" मैंने पूछा ।
"हां, ये इमारत नहीं किला है ।"
" उन्होंने तो अपनी सुरक्षा के बहुत कड़े प्रबंध किये हुए हैं ।"
"अभी तुमने मार्शल साहब की सुरक्षा के प्रबन्ध देखे ही कहां है? उन्होंने अपनी सुरक्षा के ऐसे कड़े प्रबंध किये हैं कि उनकी मर्जी के खिलाफ एक परिन्दा भी उनके पास पर नहीं मार सकता ।"
मेरे लिये मार्शल के सुरक्षा प्रबंधों की जानकारी हासिल करना वहुत जरूरी था । आज की डेट में मार्शल मेरा सबसे बड़ा शिकार था मुझे उसे अपने कब्जे में करना था । उसे कब्जे में किये बिना मेरा मिशन पूरा नहीं होने वाला था ।
हम प्रवेश द्धार के करीब पहुंचे ।
वहां मौजूद सैनिकों की एड्रियां बज उठी ।
तदुपरांत । उनमें से एक सैनिक ने लोहे का वो मजबूत दरवाजा खोल दिया, फिर वह पीछे हटकर सावधान मुद्रा में खडा हो गया ।
सोज्जर भीतर प्रवेश कर गया । मैं उसके पीछे थी । सैनिकों ने विचित्र निगाहों से देखा था । . .
दरबाजे के उस पार खुली जगह थी ।
उसके दो तरफ ऊंची-ऊची पत्थरों ,की दीवारें थीं । सामने खूबसूरत इमारत दिखाई दे रही थी । खुली जगह में भी कई सशस्त्र सैनिक विचरते दिखाई है रहे थे ।
कुछ देर बाद मुझे लेकर सोज्जर एक हॉल में पहुंचा । .
वह लंबा चौड़ा होल टूयूब लाइंटूस के दूधिया प्रकाश से रोशन था । हाॅल के बीचो-बीच आबनूस की एक लंबी मेज बिछी हुई थी । उसके पीले रिवाल्विंग चेयर पर एक व्यक्ति था । उसकी उम्र पैंतालिस साल से ज्यादा नहीं रही होगी । सुर्ख रंग । लंबा कद । कसरती जिस्म । बिल्ली जैसी चमकीली आंखें । उसमें ब्लेड की धार जैसा पैनापन था । चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता थी । चेहरे से 'ही धूर्त और जालिम किस्म का इंसान लगता था । सिर के बाल छोटे-छोटे थे । मूंछे छोटी थीं । किन्तु उन्हें संवारने में हज्जाम ने काफी मेहनत की लगती थी ।
उस शख्स के दायेँ-बायें और पीछे कमाण्डो जैसे लगने वाले सैनिक उपस्थित थे । उनके हाथों में गनें थमी हुई थीं । आंखें सर्षीली थीं ।
मुझे अंदाजा लगाने में क्षण भर से ज्यादा का वक्त नहीं लगा था कि मेजर के पीछे कुर्सी पर मोजूद शख्स ही मार्शल था ।
सेना का प्रमुख ।
हॉल के एक कोने में वायरलेस सेट और दूसरे नीचे मं टेलीविजन रखा हुआ था । सामने परिवार में यही नफासत के साथ फिक्स क्रिया हुआ मूवी कैमरा, मूवी कैमरे की इकलौती आँख, मेरी निगाहों से छिपी नहीं रह सकी थी ।
जैसे ही मैं सोज्जर के साथ हाॅल में दाखिल हुई थी, मार्शल की निगाहें दरवाजे की तरफ उठ गई थीं । फिर उसकी निगाहें सिर से पांव तक मेरे जिस्म पर सरसराती चली गई थी ।
मैंने उसकी आँखों में दिलचस्पी के भाव नोट किये थे । भला वह मेरे रूप के जादू से कैसे बच सकता था?
आखिर मैं चीज ही ऐसी हूं ।
हम मेज…के करींवं पहुचे?"
तीनों कमाण्डो जैसे सेनिक-पहले से कहीं ज्यादा सतर्क दिखाई देने लगे ।
"तो तुम रीमा भारती हो ।" मार्शल मेरे चेहरे पर आंखे फिक्स करता हुआ बोला !
"यस ।" मैं मुस्कुराई ।
" तुम्हारी काबलियत के साथ साथ तुम्हारी खूबसूरती के जितने चर्चे मैने सुने थे , उससे कुंछ ब्रढ़कर पा रहा हू।"
" शुक्रिया ।" मेरे होंठों की मुस्कान गहरी ही उठी ।
" मुझे मार्शल कहते हैं । मैं सेना का प्रमुख भी और मुझसे हर मुल्क कीं सरकार खौफ़ खाती है ।"
" आपसे मिलकर खुशी हुई मार्शल । मैंने खनकदार स्वर में कहा ।
" तुम खडी क्यों हो , बैठो ना ?" एकाएक… मार्शल बोल पड़ा ।
मैंने उसके सामने कुर्सी संभाल ली ।
मार्शल ने सोल्जर भी बैठने का संकेत क्रिया ।
बह मेरी बगल में खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
मैने मार्शल की तरफ देखा तो मैंने उसे भौचक्का सा अपनी तरफ देखते पाया । बह अजीब निगाहों से मुझे यूं घूर रहा था, मानो एकाएक उसने कोई अजूबा देख लिया हो ।
फिर मैंने उसकी निगाहों का पीछा किया तो उसकी'निगाहीं को अपने योवन शिखरों पर टिके पाया ।
दरअसल मैंने जानबूझकर अपनी शर्ट के उपरी तो बटन खुले छोड दिये थे । मैं नीचे ब्रा नहीं पहनी थी । अत: मेरी दूधिया गोलाइयां क्रांफी हद तक नुमायां हो रही थीं ।
"मिस्टर मार्शल !" एकाएक मैं बोल उठी ।
मार्शल हढ़बड़ाकर रह गया । उसने तुरंत अपनी निगाहें वहा से हटा लीं और मेरे चेहरे पर टिका दीं । मेरी हंसी छूटते-छूटते बची ।
"यस मिस रीमा ।" बह अपनी हडबड़ाहट पर काबू करता हुआ बोला ।
"हम लोगों का परिचय तो हो चुका ।" मैंने पहलू बदला-" अब-काम की बाते भी हो जाये ।"
… "जरूर ।"'
"मैंने मिस्टर सोल्जर से जो वादा क्रिया था उसे पूरा क्रिया । यानि क्लाइव को गिरफ्तार क्ररवा दिया है ।"
" हूं !"
"इस काम की एवज में मैंने अपनी एक शर्त रखी थी । वो शर्तं मिस्टर सोल्जर ने आपको बता दी होगी !"
‘ 'यस !" उसने कहा---" लेकिन वो शर्त मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं । तुम मुझे अच्छी तरह से समझा सक्रोगी कि तुम चाहती क्या हो ?"
"उसमें समझाने के लिये है ही क्या मिस्टर मार्शल ? मैंने कोई लंवी-चौड्री शर्तं तो नहीं रखी थी ।" मैंने कहा-" जैसा कि मैं बता चुकी हूँ कि मैंने आई०एस०सी० छोड़ दी है । आज की तारीख में मेरी स्थिति एक मुजरिम जैसी है । मेरा अपना ही डिंपार्टमेंट मेरा दुश्मन बन चुका है । यहीं वजह है कि मुझे इस मुल्क में पनाह लेने के लिये मजबूर होना पड़ा है । अत: मेरी पहली शर्तें ये है कि आपको मुझे पनाह देनी होगी, बल्कि मेरी जिदगी की गारंटी लेनी होगी !"
" मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है ।"
" दूसरी शर्त है कि अपनी जीविका चलाने के लिये आप मुझे कोई काम देंगे ।"
"क्या काम करना चाहती हो तुम?"
"आप मेरे एक सवाल का जबाब देगे ।"
"अवश्य ।"
"आप मुझसे अच्छी तरह से परिचित हैं ।"
"में अच्छी तरह से परिचित ही नहीं हुं बल्कि तुम्हारी पूरी जन्मपत्री मेरे पास है । तुम एक ऐसी खतरनाक हौंसले वाली यूवती हो । जिस काम में हाथ डालती हो, उसे पूरा करके दम-लेती हो तुमने दुनिया के खतरनाक मुजरिमों, गैगस्टरों, डाॅन, जुर्म के पंडितों और अण्डरवर्ल्ड के बादशाहों को या तो बेरहमी की मौत दी है अथवा उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुचाकर जिंदगी भर एड्रियां रगड़ने पर मजबूर कर दिया है ।"
"जब आपको मेरे बारे में इतना कुछ मालूम है तो मैं अपनी हैसियत के आधार पर ही काम करना चाहती हूं।"
"में तुम्हे सेना में आर्मी इन्टेलीजेस में रखना पसंद करूँगा । क्योंकि मुझे तुम जैसी जासूस की सख्त जरूरत है । अब बोलो, तुम इस पद पर रहकर काम करोगी?"
" मुझे आर्मी इंटेलीजेंस के लिये काम करने में वेहद खुशी होगी मिस्टर मार्शल । आपने मेरी हैसियत देखकर ही मुझे काम दिया है । इसके लिये आपका वहुत-वहुत शुक्रिया है" '
"इसमें शुक्रिया वाली क्या बात है मिस रीमा । मुझे तो तुम जैसी युवती की तलाश थी । मेरे लिये खुशी की बात है दुनिया की नः वन जासूसी मेरे लिए काम करेगी !"
"आप मेरी कुछ ज्यादा ही प्रशंसा कर रहे हैं मिस्टर मार्शल ।"
"प्रशंसा उसी की की जाती है, जो प्रशंसा के काबिल होता है । तुममें वो हर खूवी मौजूद है, जो एक सफल जासूस में होनी चाहिए ।"
मैंने खामोशी साध ली ।
"और भी शर्त हो तो बोलो ।"
"नहीं मार्शल साहब ।“ "
"तुम्हें चिंत्ता करने की जरूरत नहीं है रीमा । अब तुम मार्शल की छत्रछाया में हो । तुम अपने आपकी पूरी तरह से सुरक्षित समझो । कोई तुम्हारा बाल बांका नहीं कर सकता ।"
"शुक्रिया मार्शल साहब ।"
"एक बात और सुनो ।"
"वो क्या?" . "
"तुम्हें जल्दी ही इस मुक्त की नागरिकता मिल जायेगी ।"
मैंने पुन: उसका शुक्रिया अदा क्रिया ।
मैं जो चाहती थी । वहीं हुआ । मैं मार्शल को अपने शीशे में उतारने मे कामयाब रही थी ।
मैनै जो चाल चली थी । वो कामयाब रही थी । है
मार्शल तो मुझे मडलैंड की नागरिकता दिलाना चाहता था, मगर वो पट्ठा क्या जानता था कि मैं इस मुल्क में चंद दिनों की मेहमान हूं । मिशन सफल होते ही मुझे अपने प्यारे भारत की तरफ रुख करना था ।
"इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता । ये तो मार्शल साहब के पास पहुचने के बाद ही मालूम होगा । वेसे मुझे विश्वास है कि तुम्हारी मान ली जायेगी ।" बह बोला----"चलो ।" कहकर सोल्जर घूमा जोर दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
मैं उसके-पीछे चल पडी ।
कुछ पलै बाद सोल्जर मुझे लेकर कम्पाउण्ड में पहुंचा । फिर वह एक जीप की ड्रायविंग सीट संभालता हुआ 'बोला-"बैठो ।"
मैं उसकी बगल वाली सीट पर बैठ गई ।
सोल्जर ने जीप स्टार्ट करके आगे बढा ही । जीप तीर की तरह कम्पाउंड से बाहर निकली और फिर एक दिशा नें भागती चली गई ।
लगभग एक घंटा शहर की विभिन्न सडकों पर दौडने के बाद वो जीप एक इमारत के कम्पाउंड में पहुंचकर रुकी ।
"नीचे उतरो रीमा ।" सोज्जर जीप से कूदता हुआ बोला ।
मैं समझ गई कि मंजिल आ गई है ।
मैं भी तुरंत जीप से नीचे उतर गई ।
वो लंबा-चौड़ा कम्पाउण्ड था । वहाँ कई जीपों के अलावा दो नई नकौर कारें भी खडी हुई थीं । कम्पाउण्ड में थोड़े थोड़े फासले में सशस्त्र सैनिक टहलते नजर आ रहे थे ।
सोल्जर जीप के सामने से चक्कर काटकर मेरे करीब पहुंचता हुआ बोला…"आओ ।"
मैं सोल्जर के साथ चल पडी ।
वो किले जैसी इमारत लाल पत्थरों से बनी हुई थी । उसके अग्रभाग में लोहे का मज़बूत गेट लगा हुआ था, जो इस वक्त बंद था । गेट के दायें-बाये दो सशस्त्र सैनिक खड़े थे ।
मैं सोज्जर के साथ मुख्य द्वार की तरफ़ बढ़ रही थी ।
सोज्जर जिस सेनिक के सामने से गुजरता उसी सेनिक की एडियों बज उठतीं । हाथ सैल्यूट की मुद्रा में माथे से चिपक जाता । सोल्जर सिर की हल्की सी जुम्बिश साथ उसके अभिवादन का जवाब देकर आगे बढ जाता ।
"इसी इमारत में मार्शल साहब रहते हैं ।" मैंने पूछा ।
"हां, ये इमारत नहीं किला है ।"
" उन्होंने तो अपनी सुरक्षा के बहुत कड़े प्रबंध किये हुए हैं ।"
"अभी तुमने मार्शल साहब की सुरक्षा के प्रबन्ध देखे ही कहां है? उन्होंने अपनी सुरक्षा के ऐसे कड़े प्रबंध किये हैं कि उनकी मर्जी के खिलाफ एक परिन्दा भी उनके पास पर नहीं मार सकता ।"
मेरे लिये मार्शल के सुरक्षा प्रबंधों की जानकारी हासिल करना वहुत जरूरी था । आज की डेट में मार्शल मेरा सबसे बड़ा शिकार था मुझे उसे अपने कब्जे में करना था । उसे कब्जे में किये बिना मेरा मिशन पूरा नहीं होने वाला था ।
हम प्रवेश द्धार के करीब पहुंचे ।
वहां मौजूद सैनिकों की एड्रियां बज उठी ।
तदुपरांत । उनमें से एक सैनिक ने लोहे का वो मजबूत दरवाजा खोल दिया, फिर वह पीछे हटकर सावधान मुद्रा में खडा हो गया ।
सोज्जर भीतर प्रवेश कर गया । मैं उसके पीछे थी । सैनिकों ने विचित्र निगाहों से देखा था । . .
दरबाजे के उस पार खुली जगह थी ।
उसके दो तरफ ऊंची-ऊची पत्थरों ,की दीवारें थीं । सामने खूबसूरत इमारत दिखाई दे रही थी । खुली जगह में भी कई सशस्त्र सैनिक विचरते दिखाई है रहे थे ।
कुछ देर बाद मुझे लेकर सोज्जर एक हॉल में पहुंचा । .
वह लंबा चौड़ा होल टूयूब लाइंटूस के दूधिया प्रकाश से रोशन था । हाॅल के बीचो-बीच आबनूस की एक लंबी मेज बिछी हुई थी । उसके पीले रिवाल्विंग चेयर पर एक व्यक्ति था । उसकी उम्र पैंतालिस साल से ज्यादा नहीं रही होगी । सुर्ख रंग । लंबा कद । कसरती जिस्म । बिल्ली जैसी चमकीली आंखें । उसमें ब्लेड की धार जैसा पैनापन था । चेहरे पर पत्थर जैसी कठोरता थी । चेहरे से 'ही धूर्त और जालिम किस्म का इंसान लगता था । सिर के बाल छोटे-छोटे थे । मूंछे छोटी थीं । किन्तु उन्हें संवारने में हज्जाम ने काफी मेहनत की लगती थी ।
उस शख्स के दायेँ-बायें और पीछे कमाण्डो जैसे लगने वाले सैनिक उपस्थित थे । उनके हाथों में गनें थमी हुई थीं । आंखें सर्षीली थीं ।
मुझे अंदाजा लगाने में क्षण भर से ज्यादा का वक्त नहीं लगा था कि मेजर के पीछे कुर्सी पर मोजूद शख्स ही मार्शल था ।
सेना का प्रमुख ।
हॉल के एक कोने में वायरलेस सेट और दूसरे नीचे मं टेलीविजन रखा हुआ था । सामने परिवार में यही नफासत के साथ फिक्स क्रिया हुआ मूवी कैमरा, मूवी कैमरे की इकलौती आँख, मेरी निगाहों से छिपी नहीं रह सकी थी ।
जैसे ही मैं सोज्जर के साथ हाॅल में दाखिल हुई थी, मार्शल की निगाहें दरवाजे की तरफ उठ गई थीं । फिर उसकी निगाहें सिर से पांव तक मेरे जिस्म पर सरसराती चली गई थी ।
मैंने उसकी आँखों में दिलचस्पी के भाव नोट किये थे । भला वह मेरे रूप के जादू से कैसे बच सकता था?
आखिर मैं चीज ही ऐसी हूं ।
हम मेज…के करींवं पहुचे?"
तीनों कमाण्डो जैसे सेनिक-पहले से कहीं ज्यादा सतर्क दिखाई देने लगे ।
"तो तुम रीमा भारती हो ।" मार्शल मेरे चेहरे पर आंखे फिक्स करता हुआ बोला !
"यस ।" मैं मुस्कुराई ।
" तुम्हारी काबलियत के साथ साथ तुम्हारी खूबसूरती के जितने चर्चे मैने सुने थे , उससे कुंछ ब्रढ़कर पा रहा हू।"
" शुक्रिया ।" मेरे होंठों की मुस्कान गहरी ही उठी ।
" मुझे मार्शल कहते हैं । मैं सेना का प्रमुख भी और मुझसे हर मुल्क कीं सरकार खौफ़ खाती है ।"
" आपसे मिलकर खुशी हुई मार्शल । मैंने खनकदार स्वर में कहा ।
" तुम खडी क्यों हो , बैठो ना ?" एकाएक… मार्शल बोल पड़ा ।
मैंने उसके सामने कुर्सी संभाल ली ।
मार्शल ने सोल्जर भी बैठने का संकेत क्रिया ।
बह मेरी बगल में खाली कुर्सी पर बैठ गया ।
मैने मार्शल की तरफ देखा तो मैंने उसे भौचक्का सा अपनी तरफ देखते पाया । बह अजीब निगाहों से मुझे यूं घूर रहा था, मानो एकाएक उसने कोई अजूबा देख लिया हो ।
फिर मैंने उसकी निगाहों का पीछा किया तो उसकी'निगाहीं को अपने योवन शिखरों पर टिके पाया ।
दरअसल मैंने जानबूझकर अपनी शर्ट के उपरी तो बटन खुले छोड दिये थे । मैं नीचे ब्रा नहीं पहनी थी । अत: मेरी दूधिया गोलाइयां क्रांफी हद तक नुमायां हो रही थीं ।
"मिस्टर मार्शल !" एकाएक मैं बोल उठी ।
मार्शल हढ़बड़ाकर रह गया । उसने तुरंत अपनी निगाहें वहा से हटा लीं और मेरे चेहरे पर टिका दीं । मेरी हंसी छूटते-छूटते बची ।
"यस मिस रीमा ।" बह अपनी हडबड़ाहट पर काबू करता हुआ बोला ।
"हम लोगों का परिचय तो हो चुका ।" मैंने पहलू बदला-" अब-काम की बाते भी हो जाये ।"
… "जरूर ।"'
"मैंने मिस्टर सोल्जर से जो वादा क्रिया था उसे पूरा क्रिया । यानि क्लाइव को गिरफ्तार क्ररवा दिया है ।"
" हूं !"
"इस काम की एवज में मैंने अपनी एक शर्त रखी थी । वो शर्तं मिस्टर सोल्जर ने आपको बता दी होगी !"
‘ 'यस !" उसने कहा---" लेकिन वो शर्त मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं । तुम मुझे अच्छी तरह से समझा सक्रोगी कि तुम चाहती क्या हो ?"
"उसमें समझाने के लिये है ही क्या मिस्टर मार्शल ? मैंने कोई लंवी-चौड्री शर्तं तो नहीं रखी थी ।" मैंने कहा-" जैसा कि मैं बता चुकी हूँ कि मैंने आई०एस०सी० छोड़ दी है । आज की तारीख में मेरी स्थिति एक मुजरिम जैसी है । मेरा अपना ही डिंपार्टमेंट मेरा दुश्मन बन चुका है । यहीं वजह है कि मुझे इस मुल्क में पनाह लेने के लिये मजबूर होना पड़ा है । अत: मेरी पहली शर्तें ये है कि आपको मुझे पनाह देनी होगी, बल्कि मेरी जिदगी की गारंटी लेनी होगी !"
" मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है ।"
" दूसरी शर्त है कि अपनी जीविका चलाने के लिये आप मुझे कोई काम देंगे ।"
"क्या काम करना चाहती हो तुम?"
"आप मेरे एक सवाल का जबाब देगे ।"
"अवश्य ।"
"आप मुझसे अच्छी तरह से परिचित हैं ।"
"में अच्छी तरह से परिचित ही नहीं हुं बल्कि तुम्हारी पूरी जन्मपत्री मेरे पास है । तुम एक ऐसी खतरनाक हौंसले वाली यूवती हो । जिस काम में हाथ डालती हो, उसे पूरा करके दम-लेती हो तुमने दुनिया के खतरनाक मुजरिमों, गैगस्टरों, डाॅन, जुर्म के पंडितों और अण्डरवर्ल्ड के बादशाहों को या तो बेरहमी की मौत दी है अथवा उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुचाकर जिंदगी भर एड्रियां रगड़ने पर मजबूर कर दिया है ।"
"जब आपको मेरे बारे में इतना कुछ मालूम है तो मैं अपनी हैसियत के आधार पर ही काम करना चाहती हूं।"
"में तुम्हे सेना में आर्मी इन्टेलीजेस में रखना पसंद करूँगा । क्योंकि मुझे तुम जैसी जासूस की सख्त जरूरत है । अब बोलो, तुम इस पद पर रहकर काम करोगी?"
" मुझे आर्मी इंटेलीजेंस के लिये काम करने में वेहद खुशी होगी मिस्टर मार्शल । आपने मेरी हैसियत देखकर ही मुझे काम दिया है । इसके लिये आपका वहुत-वहुत शुक्रिया है" '
"इसमें शुक्रिया वाली क्या बात है मिस रीमा । मुझे तो तुम जैसी युवती की तलाश थी । मेरे लिये खुशी की बात है दुनिया की नः वन जासूसी मेरे लिए काम करेगी !"
"आप मेरी कुछ ज्यादा ही प्रशंसा कर रहे हैं मिस्टर मार्शल ।"
"प्रशंसा उसी की की जाती है, जो प्रशंसा के काबिल होता है । तुममें वो हर खूवी मौजूद है, जो एक सफल जासूस में होनी चाहिए ।"
मैंने खामोशी साध ली ।
"और भी शर्त हो तो बोलो ।"
"नहीं मार्शल साहब ।“ "
"तुम्हें चिंत्ता करने की जरूरत नहीं है रीमा । अब तुम मार्शल की छत्रछाया में हो । तुम अपने आपकी पूरी तरह से सुरक्षित समझो । कोई तुम्हारा बाल बांका नहीं कर सकता ।"
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प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
अब मेरे दो मकसद थे ।
पहला मकसद डगलस तथा क्लाइव को जेल से छुड़बाकर सर एडलॉफ तक पहुंचना था ।
और ।
दूसरा मकसद मार्शल का खात्मा करना था ।
उसका खात्मा करने के लिये सबसे पहले मुझे सोल्जर को अपने रास्ते से हटाना था ।
उसके बाद राष्ट्रपति सर एडलॉफ का फिर से मडलैंड की सता की बागडोर संभालने का रास्ता साफ हो जाना था ।
"सोल्जर ।" मार्शल की निगाहें सोज्जर की तरफ घूमी ।
"यस सर ।"
===========
"क्लमइव के हमारे कब्जे में आ जाने से हमारी एक वहुत बडी प्रॉब्लम सौल्व हो गई है । क्लाइव की गिरफ्तारी से सर एडलॉफ के समर्थकों के हौंसले पस्त हो जायेंगे । उनमें सेना के खिलाफ़ आबाज बुलंद करने की हिम्मत नहीं बचेगी ।"
"आप ठीक कह रहे हैं ।
"लेकिन ये हमारी प्रॉब्लम का अंत नहीं है सोल्जर । हमारी प्राब्लम का अंत उस वक्त होगा । जब हम सर एडलॉफ को तलाश करके सलाखों के पीछे पहुचा देगे । वरना वह हमारे लिये सिरदर्द बना रहेगा ।"
मैं खामोश बैठी सब सुन रही थी ।
"मैं आपकी बात से सहमत हूँ लेकिन डगलस तो कुछ भी बताने के लिये तैयार नहीं है । वह तो अपने मुंह पर ताला डाले हुए है । उसे इतनी भयानक यातनाएं दी गई हैं कि अगर उसकी जगह पत्थर भी होता तो वो भी अपना मुंह खोलने पर मजबूर हो जाता । "
"जब ऐसी समस्या सामने आ जाये तो इंसान को दूसरा रास्ता सोच लेना चाहिये, और वह रास्ता हमारे सामने है ।"
सोल्जर के देने पर आश्चर्य के भाव उभरे।
"व. , .वो कौन-सा रास्ता है सर?" सोल्जर की सवालिया निगाहें मार्शल के चेहरे पर जा टिकी ।
"तुम इतनी छोटी-सी बात भी नहीं समझे ।"
वह हढ़बड़ाकर रह गया ।
"वो रास्ता है, क्लाइब ।"
"आपके कहने का मतलब है कि क्लाइव जानता है कि सर एडलॉफ कहां छिपा हुआ है?"
"उसे क्यों मालूम नहीं होगा? हर हालत में वो जानता होगा कि सर एडलॉफ कहा छिपा हुआ है? आखिर वो सर एडलॉफ के समर्थकों का मुखिया है ।" मार्शल ने कहा-"डगलस को छोड़कर क्लाइव का मुंह खुलवाओ । अगर वह अपना मुंह न खोले तो उसे इतनी भयानक यातनाएं दो कि उसे उपने पैदा होने पर अफसोस होने लगे !"
"अगर क्लाइव ने भी अपना मुँह नहीं खोला तो. . . ।"
"तुम यहीं बैठे-बैठे अंदाजों की खिचड़ी मत पकाओ । उसका मुह खुलबाने की कोशिश तो करो, अगर उसने अपना मुंह नहीं खोला तो कोई रास्ता सोचेगे लेकिन मेरी निगाहों में इससे आसान रास्ता दूसरा नहीं हो सकता ।"
"क्लाइव का मुंह खुलवाने की पूरी कोशिश की जायेगी ।" सोल्जर का लहजा कठोर हो उठा- "लेकिन डगलस के बारे में आपने क्या सोचा?"
"उसके बारे में भी सोच लेंगे । वो कहीं भागा नहीं जा रहा है !!"
"मैं एक बात कहू सर ।"
"कहो ।"
"जब डगलस हमारे क्रिसी मतलब का नहीं है तो उसे गोली मार देनी चाहिये----" सोल्जर का लहजा खुरदुरा था ।
मुझे जोरों का झटका लगा । किंतु मैंने अपने चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं उभरने दिया ।
"पागलों जैसी बात मत को सोल्जर ।" मार्शल ने अजीब निगाहों से सोल्जर को घूरा-"भले ही डगलस ने सर एडलॉफ के बारे से अपना मुह नहीं खोला है, लेकिन वो हमारे लिये काम का आदमी साबित सकता है । उसे उस वक्त तक जिंदा रखना होगा जब तक हम अपने हाथ मजबूत नहीं कर लेते । डगलस के सीने में तो हम कभी भी गोली उतार देगे ।"
"ठीक है सर । आप मुझसे बेहतर जानते हैं ।"
"शहर के हालात केसे हैं?" मार्शल ने सवाल क्रिया ।
"शहर के हालात तो खराब है सर ।" सोल्जर ने वताया-----" मालूम हुआ है, सर एडलॉफ के समर्थक घात लगाकर -सैनिकों पर हमला कर रहे हैं । एक तरह से उन्होंने छापामार युद्ध शुरु कर दिया है । अब तक काफी संख्या में सेनिक मारे जा चुके हैं । वे सैनिकों पर हमला करके छलावे क्री तरह गायब हो जाते है । जनता तो सैनिक शासन का विरोध कर ही रही थी । बच्चा-बच्चा विद्रोह पर उतर आया है । स्थिति विस्फोटक होती जा रही है ।"
मार्शल के चेहरे पर गम्भीरता नाच उठी ।
"मैं कुछ कहना चाहती हूं मार्शलं साहब ।" मैंने बीच में टांग र्फसाईं ।
"जरूर कहो ।"
"हमें सर एडलॉफ के समर्थकों को चुन-चुनकर खत्म करना होगा । तभी ये विद्रोह दब पायेगा ।"
"हमें तो मालूम नहीं है कि वे कहां-कहां छिपे हुए हैं, उन तक कैसे पहुंचा जा सकता है?"
" उन तक पहुंचने का एक आम-सा रास्ता है और उस रास्ते का नाम है क्लाइव ! वह बतायेगा कि सर एडलॉफ के समर्थक शहर में कहां-कहां छिपे हुए हैं । इस बारे में हुमें क्लाइव का मुंह खुलवाना होगा और जब मालूम हो जाये तो उन पर एक साथ हल्ला बोल दिया जायेगा । किसी को बचकर निकलने का मौका नहीं दिया जायेगा । अगर कुछ भी समर्थक बच गये तो वे उन लोगों को अपने साथ मिला लेगे, जो सेना के खिलाफ हैं । जब सर एडलॉफ का कोई समर्थक ही नहीं बचेगा तो जनता के दिलो में विद्रोह की आग कौन भड़कायेगा? उन्हें आधुनिक हथियार कौन देगा ? जब सर एडाॅलफ के समर्थक ही नही होंगे तो वो भी अपग हो जाएँगे ।!"
मार्शल ने प्रशंसनीय निगाहों से मेरी तरफ देखा ।
मैंने जानबूझकर मार्शल के सामने ये विचार रखा था, ताकि उसे पूस विश्वास हो जाये कि अब मैं हर तरह से उन लोगों के साथ हू । "
!इसे कहते हैं दिमाग ।" मार्शल सोल्जर की तरफ देखता हुआ बोला-"रीमा भारती ने एकदम सहीं राय दी है ।"
"वो तो ठीक है सर, लेकिन अगर क्लाइव ने भी जुबान -नहीँ खोली तो क्या होगा?"
" वो जुबान जरूर खोलेगा सोल्जर । जब उस पर यातनाओं के पहाड़ टूटेगे तो यह सब टेप रिकार्डर की तरह बतायेगा ।" मार्शल मुस्कृराया ।
सोल्जर चुप रहा ।
"हमारे बीच सब बातें तय हो गइं हैं मार्शल साहब ।" मैंने कहां-"अब मुझे अपने रहने की कोई-न-कोई व्यवस्था, करनी होगी ।"
" तुम्हें अपने रहने की व्यवस्था करने की कोई जरूरत नहीं है ।" मार्शल बोला-"आखिर तुम हमारी महत्वपूर्ण डिपार्टमेंट, का अंग बन चुकी हो । तुम्हारे रहने की व्यवस्था करने को जिम्मेदारी हमारी. . है । तुम इसी इमारत में रहोगी । सिर्फ इतना ही नहीं, तुम्हारी हर सुख सुबिधा का पूरा ध्यान रखा जायेगा ।"
" थेंक्यू मार्शल साहब ।" मैं मन-हो-मन खुशी से झूम उठी ।
"तुम्हें रीमा भारती का पूरा ध्यान रखना है सोल्जर ।" मार्शल ने सोल्जर को हिदायत दी, फिर मुझसे मुखातिब हुआ-"अगर तुम आराम करना चाहती हो तो तुम्हें तुम्हारा कमरा दिखा दिया जाये ।"
"जेसी आपकी मर्जी ।"
"ओ०के०---रीमा मारती को इसका कमरा दिखा दो ।"
"आओ .रीमा ।" सोल्जर एक झटके से कुर्सी छोड़ता हुआ बोला ।
"चलो ।" मैं भी उठ खड़ी हुई । सोल्जर मुझे लेकर हॉल से बाहर निकला और एक तरफ चल पड़ा । अब मेरे मिशन का अगला चरण शुरु हो चुका था ।
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पहला मकसद डगलस तथा क्लाइव को जेल से छुड़बाकर सर एडलॉफ तक पहुंचना था ।
और ।
दूसरा मकसद मार्शल का खात्मा करना था ।
उसका खात्मा करने के लिये सबसे पहले मुझे सोल्जर को अपने रास्ते से हटाना था ।
उसके बाद राष्ट्रपति सर एडलॉफ का फिर से मडलैंड की सता की बागडोर संभालने का रास्ता साफ हो जाना था ।
"सोल्जर ।" मार्शल की निगाहें सोज्जर की तरफ घूमी ।
"यस सर ।"
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"क्लमइव के हमारे कब्जे में आ जाने से हमारी एक वहुत बडी प्रॉब्लम सौल्व हो गई है । क्लाइव की गिरफ्तारी से सर एडलॉफ के समर्थकों के हौंसले पस्त हो जायेंगे । उनमें सेना के खिलाफ़ आबाज बुलंद करने की हिम्मत नहीं बचेगी ।"
"आप ठीक कह रहे हैं ।
"लेकिन ये हमारी प्रॉब्लम का अंत नहीं है सोल्जर । हमारी प्राब्लम का अंत उस वक्त होगा । जब हम सर एडलॉफ को तलाश करके सलाखों के पीछे पहुचा देगे । वरना वह हमारे लिये सिरदर्द बना रहेगा ।"
मैं खामोश बैठी सब सुन रही थी ।
"मैं आपकी बात से सहमत हूँ लेकिन डगलस तो कुछ भी बताने के लिये तैयार नहीं है । वह तो अपने मुंह पर ताला डाले हुए है । उसे इतनी भयानक यातनाएं दी गई हैं कि अगर उसकी जगह पत्थर भी होता तो वो भी अपना मुंह खोलने पर मजबूर हो जाता । "
"जब ऐसी समस्या सामने आ जाये तो इंसान को दूसरा रास्ता सोच लेना चाहिये, और वह रास्ता हमारे सामने है ।"
सोल्जर के देने पर आश्चर्य के भाव उभरे।
"व. , .वो कौन-सा रास्ता है सर?" सोल्जर की सवालिया निगाहें मार्शल के चेहरे पर जा टिकी ।
"तुम इतनी छोटी-सी बात भी नहीं समझे ।"
वह हढ़बड़ाकर रह गया ।
"वो रास्ता है, क्लाइब ।"
"आपके कहने का मतलब है कि क्लाइव जानता है कि सर एडलॉफ कहां छिपा हुआ है?"
"उसे क्यों मालूम नहीं होगा? हर हालत में वो जानता होगा कि सर एडलॉफ कहा छिपा हुआ है? आखिर वो सर एडलॉफ के समर्थकों का मुखिया है ।" मार्शल ने कहा-"डगलस को छोड़कर क्लाइव का मुंह खुलवाओ । अगर वह अपना मुंह न खोले तो उसे इतनी भयानक यातनाएं दो कि उसे उपने पैदा होने पर अफसोस होने लगे !"
"अगर क्लाइव ने भी अपना मुँह नहीं खोला तो. . . ।"
"तुम यहीं बैठे-बैठे अंदाजों की खिचड़ी मत पकाओ । उसका मुह खुलबाने की कोशिश तो करो, अगर उसने अपना मुंह नहीं खोला तो कोई रास्ता सोचेगे लेकिन मेरी निगाहों में इससे आसान रास्ता दूसरा नहीं हो सकता ।"
"क्लाइव का मुंह खुलवाने की पूरी कोशिश की जायेगी ।" सोल्जर का लहजा कठोर हो उठा- "लेकिन डगलस के बारे में आपने क्या सोचा?"
"उसके बारे में भी सोच लेंगे । वो कहीं भागा नहीं जा रहा है !!"
"मैं एक बात कहू सर ।"
"कहो ।"
"जब डगलस हमारे क्रिसी मतलब का नहीं है तो उसे गोली मार देनी चाहिये----" सोल्जर का लहजा खुरदुरा था ।
मुझे जोरों का झटका लगा । किंतु मैंने अपने चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं उभरने दिया ।
"पागलों जैसी बात मत को सोल्जर ।" मार्शल ने अजीब निगाहों से सोल्जर को घूरा-"भले ही डगलस ने सर एडलॉफ के बारे से अपना मुह नहीं खोला है, लेकिन वो हमारे लिये काम का आदमी साबित सकता है । उसे उस वक्त तक जिंदा रखना होगा जब तक हम अपने हाथ मजबूत नहीं कर लेते । डगलस के सीने में तो हम कभी भी गोली उतार देगे ।"
"ठीक है सर । आप मुझसे बेहतर जानते हैं ।"
"शहर के हालात केसे हैं?" मार्शल ने सवाल क्रिया ।
"शहर के हालात तो खराब है सर ।" सोल्जर ने वताया-----" मालूम हुआ है, सर एडलॉफ के समर्थक घात लगाकर -सैनिकों पर हमला कर रहे हैं । एक तरह से उन्होंने छापामार युद्ध शुरु कर दिया है । अब तक काफी संख्या में सेनिक मारे जा चुके हैं । वे सैनिकों पर हमला करके छलावे क्री तरह गायब हो जाते है । जनता तो सैनिक शासन का विरोध कर ही रही थी । बच्चा-बच्चा विद्रोह पर उतर आया है । स्थिति विस्फोटक होती जा रही है ।"
मार्शल के चेहरे पर गम्भीरता नाच उठी ।
"मैं कुछ कहना चाहती हूं मार्शलं साहब ।" मैंने बीच में टांग र्फसाईं ।
"जरूर कहो ।"
"हमें सर एडलॉफ के समर्थकों को चुन-चुनकर खत्म करना होगा । तभी ये विद्रोह दब पायेगा ।"
"हमें तो मालूम नहीं है कि वे कहां-कहां छिपे हुए हैं, उन तक कैसे पहुंचा जा सकता है?"
" उन तक पहुंचने का एक आम-सा रास्ता है और उस रास्ते का नाम है क्लाइव ! वह बतायेगा कि सर एडलॉफ के समर्थक शहर में कहां-कहां छिपे हुए हैं । इस बारे में हुमें क्लाइव का मुंह खुलवाना होगा और जब मालूम हो जाये तो उन पर एक साथ हल्ला बोल दिया जायेगा । किसी को बचकर निकलने का मौका नहीं दिया जायेगा । अगर कुछ भी समर्थक बच गये तो वे उन लोगों को अपने साथ मिला लेगे, जो सेना के खिलाफ हैं । जब सर एडलॉफ का कोई समर्थक ही नहीं बचेगा तो जनता के दिलो में विद्रोह की आग कौन भड़कायेगा? उन्हें आधुनिक हथियार कौन देगा ? जब सर एडाॅलफ के समर्थक ही नही होंगे तो वो भी अपग हो जाएँगे ।!"
मार्शल ने प्रशंसनीय निगाहों से मेरी तरफ देखा ।
मैंने जानबूझकर मार्शल के सामने ये विचार रखा था, ताकि उसे पूस विश्वास हो जाये कि अब मैं हर तरह से उन लोगों के साथ हू । "
!इसे कहते हैं दिमाग ।" मार्शल सोल्जर की तरफ देखता हुआ बोला-"रीमा भारती ने एकदम सहीं राय दी है ।"
"वो तो ठीक है सर, लेकिन अगर क्लाइव ने भी जुबान -नहीँ खोली तो क्या होगा?"
" वो जुबान जरूर खोलेगा सोल्जर । जब उस पर यातनाओं के पहाड़ टूटेगे तो यह सब टेप रिकार्डर की तरह बतायेगा ।" मार्शल मुस्कृराया ।
सोल्जर चुप रहा ।
"हमारे बीच सब बातें तय हो गइं हैं मार्शल साहब ।" मैंने कहां-"अब मुझे अपने रहने की कोई-न-कोई व्यवस्था, करनी होगी ।"
" तुम्हें अपने रहने की व्यवस्था करने की कोई जरूरत नहीं है ।" मार्शल बोला-"आखिर तुम हमारी महत्वपूर्ण डिपार्टमेंट, का अंग बन चुकी हो । तुम्हारे रहने की व्यवस्था करने को जिम्मेदारी हमारी. . है । तुम इसी इमारत में रहोगी । सिर्फ इतना ही नहीं, तुम्हारी हर सुख सुबिधा का पूरा ध्यान रखा जायेगा ।"
" थेंक्यू मार्शल साहब ।" मैं मन-हो-मन खुशी से झूम उठी ।
"तुम्हें रीमा भारती का पूरा ध्यान रखना है सोल्जर ।" मार्शल ने सोल्जर को हिदायत दी, फिर मुझसे मुखातिब हुआ-"अगर तुम आराम करना चाहती हो तो तुम्हें तुम्हारा कमरा दिखा दिया जाये ।"
"जेसी आपकी मर्जी ।"
"ओ०के०---रीमा मारती को इसका कमरा दिखा दो ।"
"आओ .रीमा ।" सोल्जर एक झटके से कुर्सी छोड़ता हुआ बोला ।
"चलो ।" मैं भी उठ खड़ी हुई । सोल्जर मुझे लेकर हॉल से बाहर निकला और एक तरफ चल पड़ा । अब मेरे मिशन का अगला चरण शुरु हो चुका था ।
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प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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