गद्दार देशभक्त complete

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kunal
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Re: गद्दार देशभक्त

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आसिफ ने फिर पुरजोर विरोध किया, मदद के लिए जोर-से चीखा लेकिन उस बियाबान में उसकी पुकार सुनने वाला दुर---दूर तक कोई नहीं था । गुलशन थोड़ी दूर खड़ी अपनी कार में जाकर बैठ गया ।


पांच मिनट बाद उसके तीनों आदमी अपना काम खत्म करके उसके पास आ गए ।


शशांक ने कार की ड्राइविंग सीट संभाली और बाकी दोनों गुलशन के साथ उसके दाएं…बाएं बैठ गए । सभी ने एक अंतिम हिकारत भरी निगाह पेड़ पर झूलती दोनों लाशों पर डाली, फिर शशांक ने कार को मोड़कर कच्चे रास्ते पर दौड़ा दिया ।


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“धांय.......... !"



सभी उछल पड़े ।



इससे पहले कि किसी की समझ में कुछ आता, सनसनाती बुलेट कार की विंडस्क्रीन तोड़ती हुई ड्राइविंग सीट पर मौजूद शशांक की छाती में जाकर धंस गई ।




शशांक के हलक से पीड़ा भरी तेज हिचकी निकली और कार अनियंत्रित होकर बड़े भयानक ढंग से सड़क पर लहरा उठी ।




दूसरे ही पल शशांक औंधे मुंह स्टेयरिंग पर जा गिरा ।



तेज रफ्तार कार एक धमाके से सड़क पर उलट गई और वहुत दूर तक सड़क पर छत के बल घिसटती चली गई ।



गुलशन, अतुल तथा केसरी में हड़कम्प मच गया ।



तीनों की मिली-जुली चीखें कार के घिसटने की आवाज में दबकर रह गई । वे ही आपस में एक-दूसरे से गडमड होकर लहुलुहान हो गए थे ।



फिर, जब कार स्थिर तो उसकी टूटी विंडस्कीन तथा बैक स्कीन के रास्ते से तीनों कांपते----कराहते किसी तरह से बाहर निकले ।



तीनों के सिर से खून बह रहा था ।



केसरी की नाक टूट गई थी और अतुल के नाक व होंठ भी खून से तर-बतर थे ! पलक झपकते ही हालात एकदम से बदल गए थे ।



बाहर निकलकर अभी वे ठीक से खड़े भी नहीं हो पाए थे कि विपरीत दिशा से आती एक तेज रफ्तार सफेद स्कार्पियो ब्रेकों की तेज चिंघाड़ के साथ उनके सिरों पर पहुंचकर झटके से रुकी ।


स्कार्पियो से जो सबसे पहला शख्स नीचे उतरा, उसे तीनों ने तत्काल पहचाना और.......और उसे पहचानते ही तीनों के दिलोदिमाग है विस्फोट------सा हुआ ।


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वह मुस्तफा था ।


उस वक्त वह उन्हें इंसान नहीं बल्कि साक्षात यमदूत प्रतीत् हुआ था । फिर उसके दोनों तरफ़ चार आदमी प्रकट हुए ।



सैयद, नियाज़, अदील और शफीक ।



मुस्तफा की आंखों में ज्वालामुखी धधक रहा था ।



चेहरे पर भूचाल उमड़ा हुआ था ।



“बस थोडी-सी देर हो गई मुझे यहां पहुंचने में?” मुस्तफा के होंठों से सर्द गुर्राहट निकली----" बहुत थोड़ी-सी । और उतनी ही देर में तूने मेरे दो अदमियों को बेरहमी से हलाक कर दिया ।"



जख्मी गुलशन का हाथ अपनी जेब की तरफ रेंगा, मगर उसका रिवॉल्वर वहां से नदारद था ।



वह जरूर कार एक्सीडेंट के वक्त निकलकर कहीं गिर गया था । अतुल तथा केसरी के रिवॉल्वर उनकी जेब में ही मौजूद थे ,
लेकिन उनके जिस्म तथा हौंसले दोनों ही पस्त हो चुके थे । दोनों मे से किसी को भी अपने हथियारों का खयाल तक न अाया ।




“क्या सोचा था तूने!" मुस्तफा ने फिर आग उगली-----" तूं अपनी बर्बरता को अंजाम देकर यहाँ से साबुत निकल जाएगा और मैं अपने आदमियों को केवल दफनाकर संतोष कर लूंगा ! नहीं जलील इंसान, नहीं । यह नियति तो केवल तुम हिंदुस्तानियों की है । हम अपना हिसाब उधार नहीं रखते । काफिरों को हम उनके घर में घूसकर मारते हैं और उनकी गर्दन काटकर अपने मुल्क ले जाते हैं, जैसे अभी तुम तीनों की काटकर ले जाएंगे ।"



तीनों जिस्मों में मौत की सिहरन दौड़ गई ।



अपने अंजाम की कल्पना ने ही उनका खून सुखा दिया था । उस शैतान दहशतगर्द का जुनून सारी दुनिया जानती थी ।



"न-----नहीं ।" गुलशन बड़ी कठिनाई से कह सका----" नहीं ! तुम ऐसी नहीं करोगे मुस्तफा ।"

"मुस्तफा जो चाहता है, उसे करने से तो उसे खुदा भी नहीं रोक सकता ।" वह दहाढ़कर बोला------" और फिर तेरा नाम तो हाफिज की हिटलिस्ट में सबसे उपर है । बहुत खून बहाया है तूने मेरी कौम का । बहुत दिनों से तू हमारी आंखों में चुभ रहा था । अगर आसिफ ने नहीं बताया तो अब जान ले कि हाफिज के अॉपेरेशन औरंगजेब में मुम्बई पुलिस के जिस अफसर का जिक्र किया जा रहा है, उसका नाम गुलशन है, यानी वह तू हे-तू। सुना तूने! अपना सिर कलम करवाने के लिए तैयार हो जा । किसी हिंदुस्तानी खोपड़ी से फुटबाल खेले वहुत काफी अरसा हो गया है ।"



गुलशन काटों तो खून नहीं ।



उसके देवता कूच कर गए थे ।



सामने अत्याधुनिक हथियारों से लेैस शैतानों की पूरी जमात खड़ी थी और वे तीनों उनका प्रतिरोध करने की हालत में भी नहीं थे । उनका एक साथी शशांक पहले ही मौत की नीद सो चुका था ।



गुलशन को अपनी ही नहीं, अपने बाकी बचे दोनों साथियों की मौत भी साफ नजर आने लगी थी ।



उन तीनों का खेल सचमुच खत्म हो चुका था ।
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Re: गद्दार देशभक्त

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इसके विपरीत वह उन्हें फरीदाबाद के बाहरी इलाके से सटे जंगल में ले गया । वहां, जहाँ दूर-दूर तक सन्नाटा था ।
................................

कमल आर्या पैंतालीस साल की उम्र का अधगंजे सिर वाला एक घुटा हुआ पुलिसिया था ।


वह दिल्ली पुलिस के एक स्पेशल स्क्वायड दस्ते से संबद्ध था ।



फरीदाबाद इलाके में पेश अाई अजरा बेगम और आसिफ तथा गुलशन राय एवं उसकी टीम के कत्ल की खबर पाते ही वहां सबसे पहले जो पुलिस टीम पहुंची थी, यह इंस्पेक्टर कमल आर्या की ही पुलिस टीम थी ।



फिलहाल, कमल आर्या ने जैसे ही हेडक्वार्टर में स्थित अपने आफिस में कदम रखा-मोबाइल वजा ।



उसने फोन रिसीव किया------"इंस्पेक्टर कमल आर्या ।”



दूसरी तरफ से एक अजनबी स्वर कान में पडा-----"इनाम का तलबगार बोल रहा हूं ।"



आर्या चकराया----" कौन ?"



“काम की बात सुनो इंस्पेक्टर ।" अधिकीरपूर्ण स्वर में कहा गया--""मेरे पास वहुत अहम खबर है, जिसमें तुम्हारी, मेरा मतलब, दिल्ली पुलिस की दिलचस्पी हो सकती है । जानना चाहते हो तो फौरन आकर मुझसे मिलो ।"



“खबर क्या है?"



"यूं बता सकता तो तुम्हें बुलाने की क्या जरूरत थी?"



“खबर किस बारे में ?"



"निरंजननाथ के बारे में?"



"क. . .क्या?" आर्या के कान रव्रड़े हो गए…"निरंजननाथ के बारे में क्या खबर है?”



"मुझे मालूम है कि तुम्हे मालूम है कि रामलीला ग्राउंड में निरंजन नाथ की होने वाली महारैली में दहशतगर्दों ने उसे खत्म करने का प्लान तैयार किया हुआ है ।"



"इस बारे में तुम्हें कैसे मालूम?" उसने सतर्क स्वर में पूछा ।



"प्लान को अंजाम देने के लिए दहशतगर्दों की तीन अलग अलग टीमें दिल्ली में पहुंच चुकी हैं । यह खुफिया इन्फॉरमेशन तुम्हें मिल चुकी होगी ! मैं तुम्हें उनमें से दो दहशतगर्दों के बारे में बता सकता हूं कि वे इस वक्त दिल्ली में कहां है ?"

"अपना नाम बताओ ।"



"वक्त बरबाद मत करों इंस्पेक्टर । अगर उन दहशतगर्दों का पता जानना है तो फौरन आकर मुझसे मिलो !"



"कहां? "



उसने आर्या को शाहदरा का एक पता बताया ।



आर्या ने पता दिमाग में बैठा लिया ।



फिर पूछा------"' तुम इस वक्त उसी फ्लैट में हो ?"



"और क्या ! तभी तो तुम्हें बुला रहा हूं । मगर ध्यान रहे इंस्पेक्टर, तुम्हें अकेले आना होगा, पुलिस टीम के साथ नहीं?"



"टीम साथ क्यों नहीं?" आर्या की आंखें सिकुड़ी ।



"क्योंकि मैं ऐसा चलता हूं ! यह मत समझना कि मैं तुम्हारा कोई दुश्मन हूं जो तुम्हें नुकसान पहुंचाने का इरादा रखता हूं !”


"क्यों न समझूं ?"



"जिस फ्लैट में हूं उसके ठीक सामने तुम्हारे महकमे के डीसीपी का आँफिस है । समझ में अाया?"



" ह . . . . हां ।"



"नुकसान पहुंचाने का इरादा रखता तो ऐसी जगह कभी नहीं बुलाता । किसी जंगल-वंगल में बुला लेता ।"



" बुला ही क्यों रहे हो! उनका पता फोन पर बता सकते हो ।"



"नहीं बता सकता। मैं पुलिस और काले नाग की नस्ल पर कभी भरोसा नहीं करता ।" दूसरी तरफ से बोलने वाला धारा प्रवाह अंदाज में कहता चला गया----" उन दोनों दहशतगर्दों को जिंदा या मुर्दा गिरफ्तारी पर बहुत मोटा इनाम है, जो तुम लोग हजम कर जाओगे । ऐसा न हो इसलिए मेरे पास एक पेपर तैयार है । उस पर अपने आटोग्राफ देने होंगे ! दहशतगर्दों की गिरफ्तारी के बाद वही मेरे दावे का पक्का सबूत होगा । अब मैं फोन रख रहा हूँ और केवल आधा घंटे तक तुम्हारे पहुचने का इंतजार करूंगा । इस दरम्यान नहीं पहुचे तो फिर किसी दूसरे पुलिस अफसर को फोन लगाऊंगा और उसे किसी और जगह बुलाकर पेपर पर आटोग्राफ कराऊंगा ! वह सामने बैठने वाला डीसीपी भी हो सकता है और कोई दूसरा पुलिस अॉफिसर भी !"

" उ..........उसकी जरूरत नहीं है !" आर्या जल्दी से बोला-----" मैं आधे घंटे से पहले ही पहुंच रहा हूं !"




दूसरी तरफ से फोन डिस्कनेक्ट कर दिया गया ।


आर्य ने मोबाइल कान से हटाया ।



उसके दिलो दिमाग में तेज हलचल मच गई थी ।



अपनी कुर्सी पर बैठने का भी होश नहीं रहा था ।



कई पल तक शून्य में देखता रहा फिर, जैसे मन-ही-मन कोई फैसला किया ।



अपने हाथ में मौजूद मोबाइल मेज पर रखा और अपनी जेब से एक अन्य मोबाइल निकालकर उस पर तेजी से कोई नम्बर पंच किया । वह नम्बर उसकी कांटेक्ट लिस्ट में नहीं था ।



दूसरी ओर से कॉल रिसीव हुई ।



“एक बुरी खबर है ।" बह राजदाराना लहजे में बोला ।


" क्या? "



"तुम्हारे दो अदमियों की खबर मुखबिर ने सूंघ ली है ।"



दूसरी तरफ घुप्प सन्नाटा छा गया ।



" हैलो !" आर्या व्यग्र भाव से बोला ।



कहा गया…“यह नहीं हो सकता ।"



“ठीक है । फोन रख रहा हूं ।"


"अरे रुको इंस्पेक्टर ।"



"अब क्या है?” आर्या ने अक्खड़ स्वर में पूछा ।



"उन दोनों के नाम ।"



"आधे घंटे में मालूम हो जाएंगे । उनके नाम भी और उस जगह का पता भी, जहाँ उन्होंने पनाह ले रखी है ।"
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Re: गद्दार देशभक्त

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"पूरी बात बताओ इंस्पेक्टर ।"



आर्या ने उसे पूरी बात बता दी ।



दूसरी तरफ मौजूद शख्स जैसे कुछ पलों तक मनन करने के बाद बोला था-----"खबर सच मालूम पड़ती है । फाल्स खबर देने वाला डीसीपी आँफिस के साये में कभी नहीं बुलाता । फौरन से भी पहले उसके पास पहुचों वरना अगर उसने किसी और पुलिसिये को फोन लगा दिया तो भारी मुश्किल खडी़ हो जाएगी ।"



"ठीक है । लेकिन तुम्हारे लिए यह बहुत अहम खबर है !" उसका लहजा एकाएक अर्थपूर्ण हो गया था-------"बहुत जादा अहम खबर की कीमत भी वहुत अहम होती है ।"



“मिल जाएगी ।"



"अभी परसों वाले काम की कीमत भी उधार है ।"


"परसों वाला काम?"


“अजरा बेगम और आरिफ । भूल गए क्या?"


“दोनों कामों की कीमत एक साथ पहुच जाएगी !"


"ठीक है । फोन रखता हूं और काम शुरु करता हूं ! "


"गुड लक ।"

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नवाब ड्राइंग हॉल मेँ, होलकर के सामने पहुंचा ।



दोनों ने शिकार तथा शिकारी के अंदाज में एक-दूसरे को सिर से पांव और पांव से सिर तक देखा--------------एक-दूसरे की आंखों में छुपी चट्टानी कठोरता को परखा ।



नवाब ने एक सोफा चेयर पर बैठते हुए सिगरेट सुलगाई और सेंट्रल टेबल पर रखी कांच की ऐशट्रे को इसलिए उठाकर अपनी चेयर के चौड़े हत्थे पर रख ली ताकि उसे इस्तेमाल करने के लिए बार-बार आगे की तरफ न झुकना पड़े ।



एक कश लगाने के बाद उसने कहा-------"मैं आज काळी व्यस्त हूं अॉफिसर, इसके बावजूद तुम्हें निराश नहीं किया और तुमसे मिलने यहां चला आया । इसलिए, जो कहना है जल्दी कहो ।"



"शुक्रिया नवाब ।" होलकर के स्वर में व्यंग उभरा------“तुम्हारा यह एहसान मुझ पर उधार रहा ।"



“खेर ।" नबाब गहरी सांस भरकर बोला------“हमारे मुल्क में घर आए मेहमान की खातिरदारी पूछने का बुरा रिवाज है इसलिए पूछ रहा हूं ? क्या पियोगे-ठडा या गरम?"



"में यहां ठंडा-गरम पीने नहीं आया ।"



"यही तो मैं भी सोच रहा हूं कि आईबी का एक सस्पेंडिड आंफिसर यहां क्यों आया है?"



"अपने मुल्क की खातिर-----अपनी भारत माता की खातिर । जिसका दर्द मुझसे देखा नहीं जाता-------जिसके दर्द से मैं तड़पता हूं । हर तरफ घना कोहरा छाया है इस मुल्क में । यहां चारों तरफ़ सिवाय अंधेरे के मुझे और*कुछ भी नजर नहीं अाता । यह मुल्क रो रहा है, मगर इसके आंसू किसी को भी नजर नहीं आते ।"

''ये अल्फाज तो काफी जाने-पहचाने से लगते हैं ।" नवाब के माथे पर बल पड़ गया-------"' याद नहीं आ रहा कि मैंने इन्हें कब और कहां सुना था...........कहां सुना था?"




"ये भारत माता के एक ऐसे सच्चे सपूत के अल्फाज हैं, जो मुल्क के लिए वफादारी और जांनिसारी का जज्बा अपने साथ लेकर पैदा हुआ था । वह मुल्क को अपना खुदा मानता था और जुनून की हद तक उसकी इबादत करता था । एक परियों की उसके नाम का सिंदूर अपनी मांग में सजाना चाहती थी मगर उस इंसान का जनून तो केवल उसकी भारत माता थी, जिसके आंसुओं का कर्ज के लिए वह दुनिया में आया था । उसने शहजादी से कहा कि मुल्क के एक सिपाही की बीबी बनने के लिए एक सच्चे सिपाही के जज्वातों की जरूरत होती है, तो जानते हो शहजादी ने क्या किया?"



“क्या किया?" नवाब ने दिलचस्पी से पूछा ।



"कुछ कहा नहीं बल्कि वह खुद भी एक सिपाही बन गई । वह उसी जुनूनी सिपाही के महकमे में भर्ती हो गई और एक निहायत ही जोखिम भरे खतरनाक मिशन का हिस्सा बनकर हमारे दुश्मन मुल्क की जमीन पर छलांग लगा दी ।"



"भारत माता के उस सच्चे सपुत का नाम?"




" अर्जुन.............अर्जुन राणावत । उसकी नाजों से पली प्रेयसी का नाम नीलिमा है !"



"हां याद अाया । ऐसा ही कुछ नाम था उसका । लेकिन तुम उसे कैसे जानते हो? क्या यह तुम्हारी आईबी में ही काम करता है ?'"



" नहीँ ।"



" तो ?"

"अर्जुन राणावत इस मुल्क के खुफिया निजाम का गौरव है । इस मुल्क की खुफिया एजेंसियों से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा, जो अर्जुन राणावत की शख्सीयत का कायल न हो । मगर बहुत कम ऐसे खुशकिस्मत हैं, जिन्होंने अर्जुन से रूबरू होने का सौभाग्य हासिल किया है । ऐसा तो मुल्क में शायद ही कोई होगा, जिसने अर्जुन के दुस्साहसिक कारनामों के किस्से न सुने हो । वह देश के दुश्मनों का काल है । अर्जुन उन्हें मारता नहीं, कुचल देता है, फिर वह चाहे उसे पैदा करने वाला उसका बाप ही क्यों न हो ।"




नवाब ने चौंककर पूछा-------" क्या अर्जुन का बाप. . .



" तुमने ठीक समझा, उसके बाप का नाम दिनेश राणावत था । वह अर्जुन से कई दर्जे ऊंचा खुफिया अधिकारी था । दिनेश राणावत की जांबाजी के किस्से भी कम मशहूर नहीं थे । लेकिन फिर पता नहीँ कैसे वह गद्दार हो गया । उसकी गद्दारी उसके बेटे अर्जुन ने पकड़ी थी फिर उसने एक पल भी गंवाए बगैर बडी बेदर्दी से उसे छलनी कर दिया था ।"



" अभी अर्जुन राणावत का जिक्र यहां किसलिए?''



"अभी समझ में आ जाएगा, लेकिन पहले यह जान लो कि मैं यहां क्यों आया हूं ?"



“बताओ ।"



“मैं यहाँ अपने ऊपर लगे दाग को धोने आया हूं ! चांदनी सिंह के कत्ल के तौर पर मेरे दुश्मनों ने मुझे जो शिकस्त दी है, उस शिकस्त को उसे वापस लौटाने आया हूं !”



"मैं तुम्हारा दुश्मन कैसे हुआ"'



" मिशन मुस्तफा के लिए दहशतगर्दों को अपने एक नहीं, दो--दो हैलीकाप्टर मुहैया कराने वाला बंदा मेरा दुश्मन नहीं तो क्या हुअा ?"



नवाब चेहरे पर बेहद अजीब से भाव आए और गए । होलकर के लिए यह फैसला करना मुश्किल हो गया कि वे असली भाव थे या बनावटी !




"यह एक निहायत ही गम्भीर इल्जाम है अॉफिसर ।" नवाब ने सिगरेट में एक गहरा कश लगाने के बाद कहा था-----"जिसका वहुत टेढा़ मतलब निकलता है । तुम जानते हो न?"


“जानता हूं । इसका सीधा और साफ मतलब यह निकलता है कि तुम दहशतगर्दों के साथ मिले हुए हो । कल तक तुम केवल एक मुजरिम थे, मगर आज़ देशद्रोही । इसलिए, मैंने अपनी टीम के किसी एजेंट को नहीं भेजा । खुद तुम्हारे पास आया हूं ।"



"किस हैसियत से?”



'"क्या?"



"तुमने कहा-----तुम खुद यहां आए हो । मेरा सवाल यह है कि किस हैसियत से आए हो? तुम तो सस्पेंड हो चुके हो ।"



"मुझे पता है ।"



"यहां उन्हें आना चाहिए था, जो सस्पेंडिड नहीं हैं और इस मामले की अॉथराइज इंक्वायरी कर रहे हैं । जो इंक्वायरी कमीशन से जुड़े लोग है और जो मुझसे यह सवाल करने का हक रखते है ।"



" वे भी आएंगे । लेकिन मैं क्योंकि यह सवाल करने का हक नहीं रखता, इसीलिए जल्दी आ गया । तो क्या मैं यह समझू तुम मेरे सवाल का जवाब देने से इंकार कर रहे हो?"



"ठीक समझे । तुम मुझे मजबूर नहीं कर सकते । नवाब जो नहीं चाहता, उसे करने लिए उसे कोई मजबूर नहीं कर सकता ।"



"अहंकार तुम्हारे सिर पर चढ़कर बोल रहा है नवाब और अहंकारी का अंजाम वहुत बुरा होता है ।"



" अब तुम मुझें धमकाने की कोशिश कर रहे हो ।"



“मेरे पास सवाल और भी है ।"



“मुझे परवाह नहीं ।"


“जब मैं सस्पेंड नहीं हुआ था तो उस ट्रिपल मर्डर वाले फारेनर के कत्ल की तफ्त्तीश मेरे ही पास थी । मिशन मुस्तफा को हाथ में लेने की वजह से उसमें बाधा आ गई थी । पर उस मामले को लेकर भी अब मेरी तफ्तीश मुकम्मल हो गई है और मेरी तफ्तींश यह कहती है कि ।" उसने गहरी निगाहों से नवाब को देखा----------"तीनों के कत्ल के पीछे भी तुम्हारा ही हाथ है ।"



"बकवास !" नवाब ने बुरा-सा मुंह बनाया ।




" वे तीनों कम्यूटर की दुनिया के ऐसे हैकर्स थे, जो कई मुल्कों में साइबर से जुड़े गम्भीर आर्थिक अपराधों को अंजाम दे चुके थे ।
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Re: गद्दार देशभक्त

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राजा चौरसिया भी वैसा ही एक कुख्यात साइबर क्रिमनल है, जो इस वक्त तुम्हारे रहमोकरम पर है और यकीनन उन तीनो हैकर्स के अधूरे काम को पुरा करने की केशिश में मशगूल होगा । मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वह जरूर इसी इमारत में ही कहीं होगा और तुम्हारे गेंग में काम करने वाली वह फाख्ता भी बाकी तीनों हैकर्स की तरह चौरसिया को भी अपने हुस्न के जाल में फंसाकर यहाँ लाई है । क्या तुम्हारी उस फाख्ता का नाम बताऊं?"



“ज़रूरत नहीं है । मुझें पता है कि तुम एक काबिल खुफिया अधिकारी हो और ईमानदार भी !"




"यानी कबूल कर रहे हो कि मैंने जो कहा, सच कहा है?"



"इतनी जल्दी नतीजे पर नहीं पहुचा करते आफिसर । मैं ऐसा कुछ भी कबूल नहीं कर रहा । यह केवल तुम्हारा अंदाजा है कि राजा जैसा कुख्यात कम्यूटर हैकर मेरे पास है । इसलिए पहले मारे गए तीनों कम्यूटर हैकर्स का नाम तुमने मुझसे जोड़ दिया । और नगमा के बारे में अंडरवर्ल्ड से जुंड़े लगभग सभी लोग जानते है कि वह नवाब के लिए काम करती है । इसलिए पब में राजा को उसके साथ देखकर तुमने नतीजा निकल लिया । तुम्हारे पास किसी भी बात का सबूत नहीं हो सकता । बोलो, क्या मैं गलत कह रहा हूं ?"



“नहीं । लेकिन अंतत: तुम्हें कबूल करना ही पड़ेगा नवाब ।" होलकर दृढ़ता से बोला--"क्योंफि तुम्हें बताने के लिए अभी भी मेरे पास बहुत कुछ है ।"



"मैं समझ रहा था कि तुम्हारा तरकश खाली हो गया है ।"



"मेरा तरकश कभी खाली नहीं होता । उसमें कम-से-कम एक तीर मैं हमेशा बचाकर रखता हूँ । मुझे मालूम है कि तुम्हारा टार्गेट बीस हजार करोड़ रुपए की भारी-भरकम धनराशि है । मैं यह भी जानता हूं नवाब कि यह काम तुम अपने लिए नहीं बल्कि किसी और के लिए कर रहे हो ।"



"वह कौन है?”



“यह कहना जल्दबाजी होगी । मगर वह जो भी है, यकीनन कहीं न कहीं किसी टेरेरिस्ट नेटवर्क से जुड़ा है, क्योंकि अाज की तारीख में उस रकम की अगर किसी को सबसे ज्यादा जरूरत है
“यह कहना जल्दबाजी होगी । मगर वह जो भी है, यकीनन कहीं न कहीं किसी टेरेरिस्ट नेटवर्क से जुड़ा है, क्योंकि अाज की तारीख में उस रकम की अगर किसी को सबसे ज्यादा जरूरत है------------------
------------------------ तो वह यकीनी तैर पर हमारे मुल्क को तबाह करने का ख्वाब देखने बाले दहशतगर्द ही है । वह दहशतगर्द हाफिज लुईस भी हो सकता है-------मुस्तफा भी हो सकता है और लश्कर भी हो सकता है ।"




"और तुम्हारा खयाल है कि मैं इन दहशतगर्दों के लिए काम कर रहा हुं,, जिनके अभी तुमने नाम लिए । मैं उन्हीं लोगों के इशारे पर उस रकम को हासिल करना चाहता हूं!”



"किसी भी बैक एकाउंट को हवा में हैक नहीं किया जा सकता । यह कोशिश भी केवल वही कर सकता है, जिसके पास उस एकाउंट के सीक्रेटस मौजूद हो और तुम वह शख्स नहीं हो सकते । वे टेरेरिस्ट ग्रुप हो सकते है, जिनके नाम मैंने बताए । क्योंकि तुम जी जान से इस प्रयास में जुटे हो, इसका मतलब, उन्हें टेरेरिस्टों के जरिए तुम्हें वे सीक्रेटस हासिल हो चुके हैं ।"





" तुम्हारी बातों से लग रहा है कि तुम्हें उन बीस हजार करोड़ रुपयों बारे में वहुत कुछ पता है ।" नवाब ने सवाल किया------"क्या तुम उसके एकाउंट होल्डर के बारे में जानते हो?”




"मैं तो यह भी जानता हुं, कि टैरेरिस्ट उस रकम को क्यों हासिल करना चाहते हैं? इसीलिए मैं तुम्हें वार्न कर रहा हूं नवाब, यह गलती मत करना । वह रुपया किसी भी हालत में टेरेरिंस्टों तक नहीं पहुंचना चाहिए । अगर यह रुपया उन तक पहुंच गया तो तुम सोच भी नहीं सकते कि इस मुल्क पर केैसी कयामत बरपा हो सकती है । बहरहाल, तुम भी इसी मुल्क में रहते हो और मुम्बई तो खास तौर पर दुश्मन मुल्क के निशाने पर है । यहां कयामत आई तो उसकी आंच_से तुम भी नहीं बचोगे, न ही सारे शहर में फैला तुम्हारा निजाम ।"



“अच्छा!” नवाब अंजान बनता हुआ बोला । उसके स्वर में व्यंग उभर आया था------“बताने का शुक्रिया । पर यह सब मुझे बताकर तुम बेवजह अपना वक्त बरबाद कर रहे हो । मैं खुद न तो कोई विदेशी टेरेरिस्ट हुं-------न ही किन्हीं दहशतगर्दों का मददगार हूं,, न ही उनके लिए बीस हजार करोड़ रुपया हासिल करना चाहता हूं ।"




"तुम्हारी यह ढिठाई मुझ पर तो चल सकती है, क्योंकि एक सस्पेडिड अफसर हूं मगर उन पर नहीं चलेगी, जो आन डूयूटी है !"

"इंटेलीजेंस तो वहुत छोटी चीज है आफिसर, बगैर सबूत के तो खुद तुम्हारी सरकार भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती । और मेरे खिलाफ़ कोई सबूत न तो तुम्हारे पास है, न तुम्हारी इंटेलीजेंस के पास और न ही तुम्हारी सरकार के पास । होता, तो तुम इतने बेबस नजर नहीं आ रहे होते ।"




होलकर कसमसाया ।



नवाब के अल्फाजों में बेहद तीखी सच्चाई छुपी थी ।



"तुमने मुझे वाकई वहुत निराश किया है नवाब ।" होलकर अाह-सी-भरकर बोला-----" मेरा यहां आने का मकसद कुछ और था । मेरा मकसद मुस्तफा था जो निर्देष इंसानों के खुन की होली खेल रहा है और आने वाले कल में, जो इस मुल्क में बहुत बड़ा गुल खिलाने वाला है और जिसने मेरे बेदाग दामन पर कलंक लगा दिया । मैं तुम्हारी मदद से उस तक पहुंचना चाहता था-------उसके और हाफिज के खतरनाक मंसूबों पर पानी फेरना चाहता था। मगर तुम भी वहीं कर रहे हो जो तुम्हारे जैसे मुजरिम से अपेक्षित था । मैं कबूल करता हूँ कि कानून जद में रहकर मैं तुम्हें मजबूर नहीं कर सकता। न आईबी कर सकती है, न ही कोई और, लेकिन...



"लेकिन ?"



''एक इंसान ऐसा है जो यह कर सकता है । भले ही वह भी मेरी तरह कानून का मुहाफिज़ है लेकिन आज तक कानून की कभी कोई बंदिश उसके कदमों को रोक नहीं पाईं । जो कानून तुम जैसे मगरमच्छों की शैतानी ताकत के आगे बेबस हो सकता है,, उस कानून को जरूरत पड़ने पर वह तोड़ता भी है और फिर अपना काम करके उसे इस तरह से जोड़ सकता है कि उसकी दरार को किसे मैग्नीफांइग ग्लास से भी देखा नहीं जा सकता। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि वह इंसान नहीं जीता-जागता प्रेत है । कानून और मुल्क की हुकूमत की सीमाएं जहाँ खत्म होती हैं, बहां से उसकी सीमाएं शुरू होती हैं । तुम मुझे मजबूर कर सकते हो----इस मुल्क के कानून को मजबूर कर सकते हो लेकिन उसे मजबूर नहीं कर सकते ! बो जव आएगा तो तुम्हारे सारे पित्ते ढीले कर देगा ।"

" किसकी बात कर रहे हो ?"



"में अर्जुन राणावत की बात कर रहा हूं ! कुछ देर पहले तुमने पूछा था कि अर्जुन रणावत का जिक्र किसलिए? तुम्हारे उस सवाल का ज़वाब अब तुम्हें मिल गया होगा ।"



नवाब एकाएक काफी व्यग्र हो उठा था------“राणावत का इस मामले में क्या दखल है?"
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Re: गद्दार देशभक्त

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“अर्जुन राणावत का हर उस मामले में दखल होता है, जो इस मुल्क की हिफाजत से जुड़ा होता है----------इस मुल्क की अस्मिता से जुड़ा होता है-------इस मुल्क की जान से जुड़ा होता है । और इस मामले में तो उसका खास ही दखल है------बहुत ज्यादा खास ।"



"मैं समझा नहीं?"



"मैं तुम्हें एक राज की बात बताता हूं नवाब । जिस बीस हजार करोड़ रुपए के लिए तुम मुल्क की हुकूमत और उसकी इंटेलीजेंस से भिढ़ना चाहते हो, यह रुपया न तो इस मुल्क की हुकूमत का है, न ही उसकी इंटेलीजेंस का है, यह सारा का सारा रुपया तो असल में अर्जुन राणावत का है ।"



"क्या?” नवाब चौंका था--------" यह कैसे हो सकता है । इतनी बड़ी रकम राणावत के पास कहां से अाई ?"




" यह तुम्हारे जानने का विषय नहीं है । यह मुल्क की किसी इंटेलीजेंस का एक दफन हो चुका पुराना राज है, जिसके बारे में केवल इंटेलीजेंस से जुडे लोग ही जानते है । खुशकिस्मती से मैं उन्हीं कुछ लोगों में से एक हूं ।"



"मुझे विश्वास नहीं होता ।"



“मुझे तुम्हें विश्वास दिलाने की जरूरत भी नहीं है ।"



"अगर तुम सच कह रहे हो तो राणावत अपने एकाउंट को आपरेट क्यों नहीं कर पा रहा है ? उसके पास उसका सीक्रेट पासवर्ड क्यों नहीं है? वह लावारिस हालत में क्यों पड़ा है?"



"उसकी भी कोई पुख्ता वजह है, लेकिन अफसोस, मैं तुम्हें उसके बारे में नहीं बता सकता ।"

"क्या राणावत यह नहीं जानता कि उसके एकाउंट के कुछ सीक्रेट लीक हो चुके है और दुनिया भर के कम्यूटर हैकर्स उसमे जमा अकूत दौलत को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं?"




"यह भी एक ऐसा सीक्रेट था, जो हुकूमत के बहुत ऊंचे ओहदे पर बैठे कुछ चुनिंदा लोगों को ही मालूम था । इसके बावजूद अगर वह सीक्रेट लीक हुआ है तो जाहिर-सी बात है कि इसमें किसी अंदर के आदमी का हाथ है, यानी गद्दार हमारे घर में छुपा है और किसी वहुत बड़े ओहदे पर बैठा है ।"



नवाब के जेहन में जयदेव का नाम उभरा जो केंदीय रक्षामंत्री हंसराज ठकराल का पर्सनल सेकेटरी था ।



तो क्या उस मामले में सीधे डिफेंस मिनिस्टर का हाथ है?

क्या मुल्क का रक्षामंत्री गद्दार है?


जेहन में बड़ी तेजी से सवाल उभरा ।



"क्या सोचने लगे नवाब ?" उसे 'डूबा' देख होलकर ने पूछा ।

"कुछ नहीं ।" नवाब ने अपने विचारों को झटका-----"मेरे बारे में राणावत को कौन बताएगा । क्या तुम ?"



होलकर ने उसकी आंखों में आंखें डालकर कहा था-----“क्या तुम्हें शक है कि राणावत तक मेरी पहुच नहीं हो सकती?"



नवाब फिर सोच में पड़ गया ।



होलकर अपलक उसे ही देख रहा था ।



"ठीक है आंफिसर ।" निर्णायक स्वर में कहने के साथ नवाब ने सिगरेट का अंतिम सिरा ऐशट्रे में कुचला और सोफे से खडा़ होता हुआ बोला------------"तुम अपना काम करो, मैं अपना काम करता हूं ।"



होलकर ने सकपकाकर पूछा--------------" क्या मैं तुम्हारी इस हरकत को अपने लिए यहाँ से जाने का इशारा समझूं ?"



"इस मुल्क में घर आए मेहमान से जाने के लिए कहना बेअदबी होती है और मैं और भले ही चाहे जो होऊं, बेअदब नहीं हो सकता । मुझे जरुरी काम है इसलिए जाना पड़ रहा है । तुम बैठो । नाश्ता वेंगैरह भिजवा देता हूं ।" कहने के बाद नवाब वहां रुका नहीं बल्कि तेज कदमों से बाहर निकल गया ।



होलकर के होंठो पर बड़ी ही रहस्यमय मुस्कान उभरी ।


कमल आर्या सिविल ड्रेस में शाहदरा के उस एमआईजी फ्लेैट पर पंहुचा जहां उसे बुलाया गया था ।



वह हाउसिंग सोसाइटी मेन रोड पर ही स्थित थी । सड़क के पार डीसीपी आँफिस साफ नजर आ रहा था ।



सोसायटी में आम दिनों की तरह ही लोगों की आवा-जाहीं जारी थी । आर्या को कहीं कोई असामान्य बात नजर नहीं आई थी ।



बताए गए फ्लैट का प्रवेश द्वार बंद था ।



संतुष्ट होने के बाद वह आगे बढ़ा । पतलून की जेब में मौजूद सर्विस रिवॉल्वर को होले से थपथपाया, फिर कालबेल के पुश बटन पर अंगूठा रख दिया ।



दरवाजा तुरंत खुला और चौखट के बीचोंबीच हट्टा-कट्टा नौजवान नजर आया ।



वह आर्या के लिए नितांत अजनबी था लेकिन नौजवान के लिए शायद आर्या अजनबी नहीं था । इसीलिए, आर्या को देखते ही उसके होंठों पर चिरपरिचित मुस्कान उभरी थी ।



"वेलकम इंस्पेक्टर साहब ।" नौजवान, जो कि प्रताप था, हाथ जोड़ता हुआ अर्थपूर्ण भाव से बोला-----“अदर तशरीफ लाइए । मैं आप ही का इंतजार कर रहा था ।"



“तू कौन है?” आर्या ने पुलिसिया अंदाज में पूछा ।



"वही हूं जिसने आपको फोन करके बुलाया । क्या आपने मेरी आवाज़ को नहीं पहचाना?”


"पहचान लिया है ।" आर्या हड़बड़ाकर जल्दी से बोला । जबकि सच तो यह था कि प्रताप के याद दिलाने पर भी उसे सूझा था कि फोन पर बोलने बाला प्रताप ही था--------"तेरां नाम क्या है?”



"क्या सब कुछ यहीं खड़े होकर पूछ लेंगे इंस्पेक्टर साहब और फिर अाप मुझसे इस तरह क्यो पेश आ रहे हैं जैसे मैं कोई मुजरिम हूं । मैं तो आपकी मदद कर रहा हूं !"




आर्या के जेहन को झटका-सा लगा ।



"ए. . .ऐसी बात नहीं है ।" वह नरम पड़ता हुआ बोला ।

"तो फिर तशरीफ़ लाएं ।"


"अंदर और कौन है?”


"कोई नहीं ।”


आर्या झिझकता हुआ अंदर दाखिल हुआ । आदतन उसकी चौकन्नी नजरें तेजी से चारों तरफ़ पेन हुई ।


प्रताप ने दरवाजा बंद करके चिटकनी चड़ा दी ।



आर्या चटकनी बंद करने के बारे में पूछने ही वाली था है अटैच्ड रूम की तरफ़ से कदमों की आहट उभरी ।
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