उसने लिफाफा वापस मेज पर गिरा दिया ।
" क्या हुआ? पढ़ोगे नहीं?"
"नहीं ।"
" क्यों ?"
"मेरा दिल वहुत कमजोर है । हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूं !”
बलवंत राव के होंठों पर वहुत ही जबरदस्त व्यंगभरी मुस्कान उभरी । बोला-----"जल्लाद कह रहा है कि उसका दिल बहुत कमजोर है । हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है । क्या तुम्हें याद है कि आज तक तुम कितनी लाशें गिरा चुके हो?”
" बको मत ।" ओंवरकोटधारी गुर्राया-“और अपनी जुबानी बताओ कि इस लेटर में क्या लिखा है?”
"मुझें हुक्म दे रहे हो?"
"दे सकता हूं मगर दे नहीं रहा ।"
'" तुम्हारा जवाब मुझे पसंद अाया ।"
“ फिर बताओ, लेटर में क्या लिखा है?”
"आंपरेशन दुर्ग पर पाकिस्तान में गिरफ्तार हुए पांचों सीक्रेट एजेंटों की फांसी की तारीख निश्चित हो चुकी है । पांर्चों को एक साथ, एक ही दिन, एक ही जेल में फांसी देना निश्चित हुआ है ।"
"हूं !" ओवरकोटधारी के चेहरे पर एक लहर-सी आकर चली गई । उसने सूसंयत स्वर में पूछा------“वह तारीख कब है?"
"ठीक एक महीने बाद-----आज ही की तारीख को । मुल्तान की कोट लखपत जेल में उन्हें...
“बहुत बुरा किया । उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था । वे पांचों मेरे जिगर के टुकडे़ है । उन्हें मैंने ही आपरेशन दुर्ग पर पाकिस्तान भेजा था । मैं उस जेल को डायनामाइट से उड़ा दूंगा, जहां वह उन्हे फांसी देने वाले हैं ।"
"कोशिश भी मत करना, मारे जाओगे ।"
" मौत से किसे डरा रहे हो चीफ !" ओवरकोट धारी का लहजा सुलगने लगा-----“ज़ल्ताद को ? मौत के फरिश्ते को ?"
" जनून और पागलपन में फ़र्क होता है । उन पांचों के साथ मेरा भी रिश्ता है------सारे मुल्क का रिश्ता है । होम मिनिस्टर साहव को भी तुम्हारे इसी पागलपन से डर लगता है ।"
" इसीलिए जान बूझकर मुझसे यह लेटर छुपाया गया? इसीलिए लेटर तक पहुंचाने में आनाकानी हो रही थी ?”
“ऐसी बात नहीं है । मैं पिछले दिनों सचमुच बहुत व्यस्त था । आज़ तो और भी ज्यादा हूं । चांदनी सिंह क बारेे में तुम्हें मालुम हो ही चुका होगा ?"
"बात मत बदलो चीफ, कबूल करो कि मैं सच कह रहा हूं !"
बलवंत राव ने कबूल नहीं किया । लेकिन इंकार भी न किया !
ओवरकोटधारी एकाएक उठकर खड़ा हो गया ।
“ स......सुनो ।" बलवंत राव उतावलेपन से बोला…"सुनो !"
ओवरकोटधारी ठिठका ।
पलटकर बलवंत राव की तरफ़ देखा ।
"तुम्हारे इरादे मुझें ठीक नहीं लग रहे । मैं जानता हूं तुम चुप नहीं बैठोगे ! तुम जरूर कुछ करोगे ।"
"क्या मुझे नहीं करना चहिए ?"
" मुझे नहीं पता । लेकिन मैं तुम्हारे बाप की उम्र का हूँ और उसी नाते सलाह दे रहा हूं----कोई हिमाकत मत करना । यह ज्वालामुखी के दहाने में छलांग लगाने जैसा होगा, जबकि इस मुत्क को तुम्हारी जरूरत है । इस मुल्क को-----हर उस हिंदुस्तानी की जरूरत है, जिसकी रर्गों खून नहीं हिंदुस्तान बहता है ।"
"सलाह का शुक्रिया चीफ । लेकिन...... . .
“लेकिन? "
ओवरकोट धारी ने जैसे कुछ सोचा, फिर फैसला करता हुआ बोला-------"मैं-शुरू कर चुका हूँ ।"
"क्या शुरू कर चुके हो?"
"वह मिशन जिसे न करने की सलाह दे रहे हो ।"
बलवंत की आंखें हैरत से फट पड़ी----“क्या कह रहे हो तुम?"
"वही, जो तुमने सुना ।"
गद्दार देशभक्त complete
- kunal
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Re: गद्दार देशभक्त
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: गद्दार देशभक्त
बलवंत के मुंह से बोल न फूट सका । ओवरकोट धारी को ऐसी नजरों से देखता रह गया वह अपने सामने खडी कुतुबमीनार को कत्थक करते देख रहा हो ।
" पहले सोचा था इस बारे में तुम्हें भी कुछ नहीं बताऊंगा मगर लग रहा है, तुम्हें बताए बगैर काम नहीं चलेगा ।" ओवरकोट थारी कहता चला गया----'"बहरहाल, तुम्हारी मदद भी तो चाहिए ।"
"म------मेरी मदद ?"'
"यकीनन ।"
"मेरी क्या मदद चाहिए तुम्हें और तुम क्या करने वाले हो?”
ओवरकोट धारी ने बताया तो बलवंत राव की हालत ऐसी हो गई जैसे किसी साधु के श्राप से पत्थर की मूर्ति में बदल गया हो ।
ओवरकोट धारी ने पूछा'-'"क्या हुआ"'
"त. . .तुम पागल तो नहीं हो?” पत्थर के होंठ हिले ।
"वो तो तुम जैसे लोग मुझे वहुत पहले घोषित कर चुके हैं । अब तो सिर्फ यह बताना है कि मेरी मदद करोगे या नहीं! यह तो समझ ही गए होगे कि अगर तुमने इंकार भी किया तो मैं अपने कदम वापस खींचने वाला नहीं हूं । जंग में पहला तीर छोड़ने के बाद कदम वापस खींचने भी नहीं चाहिए और वो मैं छोड़ चुका हूं ।"
बलवंत राव ने बस तीन शब्द उगले-"क्या चाहते हो?"
ओवरकोट अरी ने बताना शुरू किया और जितना बताता गया ! बलवंत की आखें उतनी ही फैलती चली गई ।
कल्याण होलकर आईबी के मुख्यालय में स्थित, अपने आफिस में बैठा कम्यूटर में उलझा हुआ था ।
उसने इंटरपोल पुलिस की वह वेबसाइट खोल रखी थीी, जिस पर आईबी की तरफ से आधिकारिक तौर पर उन तीनों विदेशियों के फोटो और भौतिक पहचान का मुकम्मल डाटा हाल ही में अपलोड कराया गया था और अव आईबी को इंटरपोल की तरफ से अाने वाली किसी प्रतिक्रिया का इंतजार था मगर, जो आज एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी नहीं आई थी ! मारे गए विदेशियों को लेकर होलकर का अंदाजा अगर सही था और वे तीनों या फिर उनमें से कोई एक अपने मुल्क में या किसी भी मुल्क में वांटेड थे, तो इंटरपोल के पास उनका डाटा होना चाहिए था और इस तरह होलकर को उनकी शिनाख्त सुलभ हो सकती थी ।
अगर वे उतने की क्रिमिनल नहीं थे, जितना होने पर कोई भी इंटरपोल के रॉडार पर आता है तो होलकर की सारी कोशिश बेकार साबित होने वाली थी । तब, उन तीनों कत्लों की गुत्थी सुलझाने के लिए और उस मामले की तह तक पहुंचने के लिए उसे कोई दूसरा रास्ता अख्यियार करना पड़ता, जिसका कि उसे दूर--दूर तक कोई और-छोर नजर नहीं आ रहा था ।
अभी कोई रिजल्ट नहीं निकला था कि प्रताप ने आफिस में कदम रखा ।
प्रताप उसका एक युवा और होनहार जूनियर था, जो आईबी में भर्ती होने के पहले से उसका दोस्त था । उसे देखते ही होलकर का हाथ स्वत: ही कम्यूटर के माउस से हट गया ।
"आओ प्रताप, यया खबर लाए हो?”
"एक से ज्यादा खबर लाया हूं बॉस ।" वह अपनी अादत के मुताबिक बेबाकी से बोला ।
“अच्छा !" होलकर की उम्मीद रोशन हुई----“क्या कोई खबर उन विदेशियों के कत्ल से भी सम्बंध रखती है?"
"एक खबर उस मामले से भी सम्बंध रखती है ।"
"जल्दी बताओ ।"
"बताता हूं यार । सांस तो लेने दो ।"
"यार ?" होलकर ने आंखे निकाली ।
"सॉरी . . .बॉंस ।"
"हां । यह ठीक है । आगे बोलो ।"
"आगे क्या बोलूं ?”
" पहले मेरे केस से सम्बंध रखने वाली खबर सुनाओ ।"
"दूसरी खबर भी उसी केस से सम्बंध रखने वाली हो सकती है !"
"बाद में देखेंगे । पहले पहली सुनाओ ।"
प्रताप सांस लेने के लिए रुका, फिर बोला---"आज इतने दिनों बाद पहला ऐसा शख्स मिला है, जिसके साथ अपनी मौत से पहले तुम्हारे एक मृतक को देखा गया है ।"
"कौन से मृतक को?"
''तीसंरे को, जो हाल ही में मरा है ।"
"अच्छा ।" होलकर संभलकर बैठ गया------"कौन है वह शख्स ? और उसके साथ थर्ड मृतक को कब और कहां देखा गया?"
"वह शख्स एक है औरत.......सॉरी, लड़की है । बत्तीस-बाईस बत्तीस साइज वाली एक कयामत, जो अपनी फिगर और खूबसूरती में फैशन माडलों को भी मात कर सकती है । हमारे थर्ड मृतक को उसकी मौत से पहले फर्स्ट एंड लास्ट बार उसी बला या बाला के साथ देखा गया था ।"
“कौन है वह बला?"
"इस बारे में अभी तक पता नहीं चल सका है ।"
“लेकिन कहां देखा गया है उस लड़की के साथ उसे?"
‘'एक हाई प्रोफाइल पब में, वहां वह उस अधनंगी लड़की के साथ बांहों में बांहें डाले होश खोकर नाच रहा था । दोनों ही वहुत ज्यादा नशे में थे ।"
"पब का नाम?"
"याना. . .याना पब ।"
"पता ?"
"खार मेन रोड पर स्थित काफी फेमस पब है ।"
"किसने देखा?"
"पब के एक अटेंडेंट ने ।"
“अटेंडेंट का नाम?"
"पास्को ।"
"गोवानी है क्या?"
"नाम से ही जाहिर है ।"
"कब की बात है?"
“मृतक के कत्ल से एक सप्ताह पहले की ।"
"पास्को ने मृतक को पहचाना कैसे ?"
"अगले रोज अखबार में उसकी मृत अवस्था की फोटो देखी थी । तुम्हें याद होगा, चेहरा इतना नहीं बिगड़ा था कि पहचाना ही न जा सके ।"
" पहले सोचा था इस बारे में तुम्हें भी कुछ नहीं बताऊंगा मगर लग रहा है, तुम्हें बताए बगैर काम नहीं चलेगा ।" ओवरकोट थारी कहता चला गया----'"बहरहाल, तुम्हारी मदद भी तो चाहिए ।"
"म------मेरी मदद ?"'
"यकीनन ।"
"मेरी क्या मदद चाहिए तुम्हें और तुम क्या करने वाले हो?”
ओवरकोट धारी ने बताया तो बलवंत राव की हालत ऐसी हो गई जैसे किसी साधु के श्राप से पत्थर की मूर्ति में बदल गया हो ।
ओवरकोट धारी ने पूछा'-'"क्या हुआ"'
"त. . .तुम पागल तो नहीं हो?” पत्थर के होंठ हिले ।
"वो तो तुम जैसे लोग मुझे वहुत पहले घोषित कर चुके हैं । अब तो सिर्फ यह बताना है कि मेरी मदद करोगे या नहीं! यह तो समझ ही गए होगे कि अगर तुमने इंकार भी किया तो मैं अपने कदम वापस खींचने वाला नहीं हूं । जंग में पहला तीर छोड़ने के बाद कदम वापस खींचने भी नहीं चाहिए और वो मैं छोड़ चुका हूं ।"
बलवंत राव ने बस तीन शब्द उगले-"क्या चाहते हो?"
ओवरकोट अरी ने बताना शुरू किया और जितना बताता गया ! बलवंत की आखें उतनी ही फैलती चली गई ।
कल्याण होलकर आईबी के मुख्यालय में स्थित, अपने आफिस में बैठा कम्यूटर में उलझा हुआ था ।
उसने इंटरपोल पुलिस की वह वेबसाइट खोल रखी थीी, जिस पर आईबी की तरफ से आधिकारिक तौर पर उन तीनों विदेशियों के फोटो और भौतिक पहचान का मुकम्मल डाटा हाल ही में अपलोड कराया गया था और अव आईबी को इंटरपोल की तरफ से अाने वाली किसी प्रतिक्रिया का इंतजार था मगर, जो आज एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी नहीं आई थी ! मारे गए विदेशियों को लेकर होलकर का अंदाजा अगर सही था और वे तीनों या फिर उनमें से कोई एक अपने मुल्क में या किसी भी मुल्क में वांटेड थे, तो इंटरपोल के पास उनका डाटा होना चाहिए था और इस तरह होलकर को उनकी शिनाख्त सुलभ हो सकती थी ।
अगर वे उतने की क्रिमिनल नहीं थे, जितना होने पर कोई भी इंटरपोल के रॉडार पर आता है तो होलकर की सारी कोशिश बेकार साबित होने वाली थी । तब, उन तीनों कत्लों की गुत्थी सुलझाने के लिए और उस मामले की तह तक पहुंचने के लिए उसे कोई दूसरा रास्ता अख्यियार करना पड़ता, जिसका कि उसे दूर--दूर तक कोई और-छोर नजर नहीं आ रहा था ।
अभी कोई रिजल्ट नहीं निकला था कि प्रताप ने आफिस में कदम रखा ।
प्रताप उसका एक युवा और होनहार जूनियर था, जो आईबी में भर्ती होने के पहले से उसका दोस्त था । उसे देखते ही होलकर का हाथ स्वत: ही कम्यूटर के माउस से हट गया ।
"आओ प्रताप, यया खबर लाए हो?”
"एक से ज्यादा खबर लाया हूं बॉस ।" वह अपनी अादत के मुताबिक बेबाकी से बोला ।
“अच्छा !" होलकर की उम्मीद रोशन हुई----“क्या कोई खबर उन विदेशियों के कत्ल से भी सम्बंध रखती है?"
"एक खबर उस मामले से भी सम्बंध रखती है ।"
"जल्दी बताओ ।"
"बताता हूं यार । सांस तो लेने दो ।"
"यार ?" होलकर ने आंखे निकाली ।
"सॉरी . . .बॉंस ।"
"हां । यह ठीक है । आगे बोलो ।"
"आगे क्या बोलूं ?”
" पहले मेरे केस से सम्बंध रखने वाली खबर सुनाओ ।"
"दूसरी खबर भी उसी केस से सम्बंध रखने वाली हो सकती है !"
"बाद में देखेंगे । पहले पहली सुनाओ ।"
प्रताप सांस लेने के लिए रुका, फिर बोला---"आज इतने दिनों बाद पहला ऐसा शख्स मिला है, जिसके साथ अपनी मौत से पहले तुम्हारे एक मृतक को देखा गया है ।"
"कौन से मृतक को?"
''तीसंरे को, जो हाल ही में मरा है ।"
"अच्छा ।" होलकर संभलकर बैठ गया------"कौन है वह शख्स ? और उसके साथ थर्ड मृतक को कब और कहां देखा गया?"
"वह शख्स एक है औरत.......सॉरी, लड़की है । बत्तीस-बाईस बत्तीस साइज वाली एक कयामत, जो अपनी फिगर और खूबसूरती में फैशन माडलों को भी मात कर सकती है । हमारे थर्ड मृतक को उसकी मौत से पहले फर्स्ट एंड लास्ट बार उसी बला या बाला के साथ देखा गया था ।"
“कौन है वह बला?"
"इस बारे में अभी तक पता नहीं चल सका है ।"
“लेकिन कहां देखा गया है उस लड़की के साथ उसे?"
‘'एक हाई प्रोफाइल पब में, वहां वह उस अधनंगी लड़की के साथ बांहों में बांहें डाले होश खोकर नाच रहा था । दोनों ही वहुत ज्यादा नशे में थे ।"
"पब का नाम?"
"याना. . .याना पब ।"
"पता ?"
"खार मेन रोड पर स्थित काफी फेमस पब है ।"
"किसने देखा?"
"पब के एक अटेंडेंट ने ।"
“अटेंडेंट का नाम?"
"पास्को ।"
"गोवानी है क्या?"
"नाम से ही जाहिर है ।"
"कब की बात है?"
“मृतक के कत्ल से एक सप्ताह पहले की ।"
"पास्को ने मृतक को पहचाना कैसे ?"
"अगले रोज अखबार में उसकी मृत अवस्था की फोटो देखी थी । तुम्हें याद होगा, चेहरा इतना नहीं बिगड़ा था कि पहचाना ही न जा सके ।"
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: गद्दार देशभक्त
"फिर भी चुप बैठा रहा ! पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी?"
" आम आदमी पुलिस को छूत की बीमारी जो समझता है! मैं भी पुलिस बाला बनकर उससे नहीं मिला था, वरना मुझे भी अपने पास नहीं फटकने देता ।"
"क्या पास्को को पूरा यकीन है कि जिस आदमी को उसने देखा, अखवार में मृत अवस्था में उसी की फोटो छपी थी! मेरा मतलब, उसे पहचानने में उससे कोई भूल तो नहीं हुई है ?"
"नहीं ।" प्रताप ने मजबूती से इंकार में गर्दन हिलाई------" उसे पहचानने में अपने गोवानी से कोई भूल नहीं हुई है ।"
"दावे के वजह?”
"मेरे पास सबूत है ।"
"सबूत? ”
"मेरे इस मोबाइल में है, बल्कि इसमें पड़ी 'चिप' में है ।" उसने अपना मोबाइल निकालकर होलकर के सामने रख दिया ।
" मैं समझा नहीं ।” होलकर के माथे पर वल पड़ गए ।
"उस पब में सीसीटीवी कैमेरे लगे हुए हैं, जो पब के समूचे हॉल में नजर रखते है और पिछले एक माह तक की रिकार्डिंग का डाटा अपनी मेमोरी में सेव रखते हैं । मैंने गोवानी की बताई हुई तारीख तथा समय की रिकार्डिंग को चेक कराया तो उससे गोवानी की बातों की स्पष्ट तस्दीक होगई ।"
" यानी सीसीटीवी रिकार्डिंग में हमारा मृतक उस बला के साथ डांस करता नजर अा रहा है?"
"अपने चक्षुओं से देख तो ।"
होलकर इस तरह मोबाइल पर झपटा कि चीता भी क्या अपने शिकार पर झपटता होगा । उसने प्रताप के मोबाइल में मोजूद सीसीटीवी रिकार्डिंग देखी मगर पूरी नहीं । एक घंटे की रिकार्डिंग देखने का न उसके पास टाइम था और न ही उसकी जरूरत थी । उसे केवल यह पुष्टि करनी थी कि रिकार्डिंग में मृतक ही था और यह पुष्टि केवल पांच मिनट में हो गई । रही उस हसीना की बात, जिसके साथ वह था…वह उसके लिए नितांत अजनबी थी परंतु अल्ट्रा माडर्न हसीना की खूबसूरती के बारे में प्रताप ने जो भी बताया था, वह अक्षरशः सच था ।
वह सचमुच बला की हसीन और सैक्सी थी ।
मादकता उसके अंग-अंग से टपक रही थी ।
अगर वह हसीना आईबी के हाथ लग जाती तो होलकर का रास्ता काफी आसान हो सकता था ।
वह उत्तेजित हो उठा ।
वह एक बड़ा क्लू था जो प्रताप के हाथ लगा था, जिसके जरिए वह दूसरे रास्ते से अपनी मंजिल तक पहुच सकता था ।
“ये चाहिए ।" होलकर मोबाइल मेज पर रखता हुआ बोता ।
"बोला न, अभी इसके बारे में कुछ पता नहीं लग सका है ।" प्रताप बोला-----"लेकिन बकरे की मां कब तक खेर मनाएगी! पास्को का कहना है कि वह गाहे-बगाहे पब में आती रहती है ।"
" अकेली ?"
"बांस । पब में भला किसी अकेली या अकेले का क्या काम?"
"यानी इसके साथ हमेशा कोई-न-कोई होता हैं?"
"हां । यह बला अपने साथ किसी-न-किसी लड़के को लपेट ही लीती है ।"
"क्या पिछले हफ्ते के बाद यह दोबारा पब में पहुची थी?"
"पहुंची थी ।"
"पहुंची थी! कब?"
“कल ।"
"क्या? "
" मैंने कहा, कल उसे फिर उसी पब में देखा गया था बॉस ।"
"किसी दूसरे लड़के के साथ?"
"नहीं, उसी मृतक के साथ ।"
होलकर ने उसे घूरा----" तुम मुझसे मजाक कर रहे हो?”
"मजाक तो आप कर रहे हैं बांस ।"
"कल वह किसके साथ थी?"
"उसका चेहरा भी मेरे मोबाइल में मोजूद है ।"
"अच्छा !"
"कल जिस लड़के के साथ वह पब में पहुंची थी, उसकी सीसीटीवी रिकार्डिंग भी मैंने अपने मोवाइल में सेव कर ली है । कल वह केवल पैतीस मिनट वहां रुकी थी । अगला फोल्डर उसी का है ।"
होलकर ने दोबारा मोबाइल उठा लिया ।
निर्देशित फोल्डर खोला ।
उस फोल्डर में हसीना उतने नशे में नहीं थी । न है आधा-अधूरा लिबास पहन रखा था । इसमें उसने जींस और कुर्ती पहन रखी थी ।
डांस में भी पहले जैसा फूहड़पन नहीं था । इस फोल्डर मे, उसकी बांहों में बाहे़ डाले जो नौजवान म्यूजिक की धुन पर थिरक रहा था, वह कोई विदेशी नहीं था । वह इंडियन था तथा किसी फिल्म स्तर जैसा हैंडसम है स्मार्ट लग रहा था । उसने अपनी आंखों पर गॉगल्स लगा रखा था । होलकर के लिए वह नितांत अजनबी था ।
"यह लडका कौन है?" उसने प्रताप से सवाल किया----"क्या तुम इसे जानते हो?”
प्रताप इत्मीनान से बोला----"' तुम्हें याद है न, मैंने कहा था कि एक से ज्यादा खबर लाया हूं ! यह अगली खबर है ।”
“मैंने इस लड़के के बारे में सवाल किया है !"
"मैं भी इसी लड़के की बात कर रहा हूं !" " प्रताप ने ऐसे अंदाज़ में कहा जैसे धमाका कर रहा हो----"इसका नाम राजा हैं-----राजा चौरसिया ।"
"कौन राजा चौरसिया?"
" आम आदमी पुलिस को छूत की बीमारी जो समझता है! मैं भी पुलिस बाला बनकर उससे नहीं मिला था, वरना मुझे भी अपने पास नहीं फटकने देता ।"
"क्या पास्को को पूरा यकीन है कि जिस आदमी को उसने देखा, अखवार में मृत अवस्था में उसी की फोटो छपी थी! मेरा मतलब, उसे पहचानने में उससे कोई भूल तो नहीं हुई है ?"
"नहीं ।" प्रताप ने मजबूती से इंकार में गर्दन हिलाई------" उसे पहचानने में अपने गोवानी से कोई भूल नहीं हुई है ।"
"दावे के वजह?”
"मेरे पास सबूत है ।"
"सबूत? ”
"मेरे इस मोबाइल में है, बल्कि इसमें पड़ी 'चिप' में है ।" उसने अपना मोबाइल निकालकर होलकर के सामने रख दिया ।
" मैं समझा नहीं ।” होलकर के माथे पर वल पड़ गए ।
"उस पब में सीसीटीवी कैमेरे लगे हुए हैं, जो पब के समूचे हॉल में नजर रखते है और पिछले एक माह तक की रिकार्डिंग का डाटा अपनी मेमोरी में सेव रखते हैं । मैंने गोवानी की बताई हुई तारीख तथा समय की रिकार्डिंग को चेक कराया तो उससे गोवानी की बातों की स्पष्ट तस्दीक होगई ।"
" यानी सीसीटीवी रिकार्डिंग में हमारा मृतक उस बला के साथ डांस करता नजर अा रहा है?"
"अपने चक्षुओं से देख तो ।"
होलकर इस तरह मोबाइल पर झपटा कि चीता भी क्या अपने शिकार पर झपटता होगा । उसने प्रताप के मोबाइल में मोजूद सीसीटीवी रिकार्डिंग देखी मगर पूरी नहीं । एक घंटे की रिकार्डिंग देखने का न उसके पास टाइम था और न ही उसकी जरूरत थी । उसे केवल यह पुष्टि करनी थी कि रिकार्डिंग में मृतक ही था और यह पुष्टि केवल पांच मिनट में हो गई । रही उस हसीना की बात, जिसके साथ वह था…वह उसके लिए नितांत अजनबी थी परंतु अल्ट्रा माडर्न हसीना की खूबसूरती के बारे में प्रताप ने जो भी बताया था, वह अक्षरशः सच था ।
वह सचमुच बला की हसीन और सैक्सी थी ।
मादकता उसके अंग-अंग से टपक रही थी ।
अगर वह हसीना आईबी के हाथ लग जाती तो होलकर का रास्ता काफी आसान हो सकता था ।
वह उत्तेजित हो उठा ।
वह एक बड़ा क्लू था जो प्रताप के हाथ लगा था, जिसके जरिए वह दूसरे रास्ते से अपनी मंजिल तक पहुच सकता था ।
“ये चाहिए ।" होलकर मोबाइल मेज पर रखता हुआ बोता ।
"बोला न, अभी इसके बारे में कुछ पता नहीं लग सका है ।" प्रताप बोला-----"लेकिन बकरे की मां कब तक खेर मनाएगी! पास्को का कहना है कि वह गाहे-बगाहे पब में आती रहती है ।"
" अकेली ?"
"बांस । पब में भला किसी अकेली या अकेले का क्या काम?"
"यानी इसके साथ हमेशा कोई-न-कोई होता हैं?"
"हां । यह बला अपने साथ किसी-न-किसी लड़के को लपेट ही लीती है ।"
"क्या पिछले हफ्ते के बाद यह दोबारा पब में पहुची थी?"
"पहुंची थी ।"
"पहुंची थी! कब?"
“कल ।"
"क्या? "
" मैंने कहा, कल उसे फिर उसी पब में देखा गया था बॉस ।"
"किसी दूसरे लड़के के साथ?"
"नहीं, उसी मृतक के साथ ।"
होलकर ने उसे घूरा----" तुम मुझसे मजाक कर रहे हो?”
"मजाक तो आप कर रहे हैं बांस ।"
"कल वह किसके साथ थी?"
"उसका चेहरा भी मेरे मोबाइल में मोजूद है ।"
"अच्छा !"
"कल जिस लड़के के साथ वह पब में पहुंची थी, उसकी सीसीटीवी रिकार्डिंग भी मैंने अपने मोवाइल में सेव कर ली है । कल वह केवल पैतीस मिनट वहां रुकी थी । अगला फोल्डर उसी का है ।"
होलकर ने दोबारा मोबाइल उठा लिया ।
निर्देशित फोल्डर खोला ।
उस फोल्डर में हसीना उतने नशे में नहीं थी । न है आधा-अधूरा लिबास पहन रखा था । इसमें उसने जींस और कुर्ती पहन रखी थी ।
डांस में भी पहले जैसा फूहड़पन नहीं था । इस फोल्डर मे, उसकी बांहों में बाहे़ डाले जो नौजवान म्यूजिक की धुन पर थिरक रहा था, वह कोई विदेशी नहीं था । वह इंडियन था तथा किसी फिल्म स्तर जैसा हैंडसम है स्मार्ट लग रहा था । उसने अपनी आंखों पर गॉगल्स लगा रखा था । होलकर के लिए वह नितांत अजनबी था ।
"यह लडका कौन है?" उसने प्रताप से सवाल किया----"क्या तुम इसे जानते हो?”
प्रताप इत्मीनान से बोला----"' तुम्हें याद है न, मैंने कहा था कि एक से ज्यादा खबर लाया हूं ! यह अगली खबर है ।”
“मैंने इस लड़के के बारे में सवाल किया है !"
"मैं भी इसी लड़के की बात कर रहा हूं !" " प्रताप ने ऐसे अंदाज़ में कहा जैसे धमाका कर रहा हो----"इसका नाम राजा हैं-----राजा चौरसिया ।"
"कौन राजा चौरसिया?"
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: गद्दार देशभक्त
प्रताप के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे जैसे उसका धमाका फुस्स हो गया हो और इसका उसे अफसोस हो । फिर, थोड़ा चौंका । जैसे कुछ याद आया हो और तब बोला…“ओहा हां, उन दिनों तो तुम एक खास मिशन पर चीन गए थे । पूरे दो महीनों के लिए!"
“किन दिनों?"
“जिन दिनों राजा चौरसिया नाम की इस अजीमुशशान हस्ती ने एक ऐसा कारनामा अंजाम दिया था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था ।"
"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा कि तुम यया कह रहे हो?"
"समझाता हूं बाॉस, असल में तुम्हें पूरा किस्सा एबीसीडी से समझाना पडे़गा ।" कहते हुए प्रताप ने ठंडी सांस ली और पुन: शुरू हो गया
हस्ती का नाम राजा चौरसिया है, वह हमारे मुल्क का एक कुख्यात कम्यूटर घुसपैठिया है, जिन दिनों तुम चाईना गए हैं थे उन दिनों इसने शातिराना हुनर से भारत को नहीं बल्कि सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया था और एक घंटे के अंदर------महज एक घंटे के अंदर मुत्क के कई बैकों से ढाई सौ करोड़ रुपए उड़ा लिए थे ।"
"ए. . .एक घंटे के अंदर ढाई सौ करोड़ रुपए उड़ा लिए थे?" होलकर की आंखें हैरानी से फ़टी रह गई थी । मुह से अविश्वसनीय स्वर निकला------" तुम क्या कह रहे हो? ऐसा कैसे हो सकता है?”
"हो सकता है नहीं बॉस, हुआ है । इस इंसान ने, जो उस लड़की के साथ पब में नाच रहा है, इसने यह कारनामा करके दिखाया है । साइबर फ्राड के जरिए इसने बैकों से दाई सौ करोड़ रुपए लिए थे ।"
" कैसे ?"
"अमरीकी कम्पनी के मेन सिक्योरिटी सरवर को हैक करके ।"
"कौन भी अमरीकी कम्पनी ?"
"उस कम्पनी का नाम "एनस्टेज साफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड' है, उसकी इंडियन ब्रांच दिल्ली में कनॉट प्लेस में है ।"
"किसी अमरीकी साफ्टवेयर कम्पनी का भारत के बैकिंग सिस्टम के सरवर से क्या सम्बंध?"
“तुम इसी दुनिया के जानवर हो बॉस या मोहन जीदड़ो और हडप्पा की खुदाई से निकले हुए !"
"मांइड योर लेग्वेज ।" होल्कर ने आंखें निकाली ।
“सौरी बॉस. .लेकिन ऐसा इसलिए मुंह से निकल गया क्योकिं मैं नहीं समझता था कि तुम्हें आजकल की वेर्किग के बारे में मालूम नहीं होगा ।"
"तुम तो जानते हो प्रताप, साइबर दुनिया की जानकारी रखने के मामले में मैं जीरो हूं ! कभी इंट्रैस्ट ही नहीं लिया इसमे ।"
" उम्मीद है अब लिया करोगे ।"
"प्लीज, मुझे सारी बातें खोलकर--------विस्तार से समझाओ ।"
“तो सुनो ।" प्रताप चालू हो गया------"अकेला हमारा देश ही नहीं, सारी दुनिया के मुल्कों के बेैंक अपने अॉन-लाइन फंड ट्रांजेक्शन के लिए इसी अमरीकी कम्पनी पर निर्भर हैं । दूसरे लफ्जों में कहें तो दुनिया भर के मुल्कों के लगभग सारे ही बैंकों के आनलाइन ट्रांजेक्शन को एनस्टेज साफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड ही अंजाम देती है, वह ट्रांजेक्शन चाहे एटीएम कार्ड के जरिए हो, क्रेडिट कार्ड के जरिए हो या फिर अन्य किसी भी आनंलाइन इलेवट्रॉनिक ट्रांसफ़र के माध्यम से । इस संदर्भ में राजा चौरसिया जैसे कम्यूटर हैकरों तथा हर तरह की आंनलाइन धोखाधडी़ को रोकने का जिम्मा भी इसी कम्पनी का होता है । एकाकी होल्डर के एकाउंट से सम्बंधित सभी सन्वेदनशील जानकारियों को गोपनीय रखने का काम भी यही कम्पनी करती है । इसके लिए उसने दुनिया-भर में अपने "थ्री डी सिक्योर साल्यूशन' का अभेद्य कम्यूटर नेटवर्क स्थापित कर रखा है । इसीलिए तो सारी दुनिया के बैंकों ने 'ऐनस्टेज' के साथ आनलाइन फंड ट्रांसफर का करार कर रखा है ।"
"इसके बावजूद राजा चौरसिया ने सारे सिक्योरिटी सिस्टम को धता बताकर दाई सौ करोड़ रुपए लूट लिए?"
" उसने निहायत ही शातिराना तरीका अपनाया था ।"
"वया था उसका यह शातिराना तरीका?"
"मुझे नहीं लगता कि यहां उसके जिक्र का कोई फायदा होगा बॉस । हमारा टार्गेट दूसरा है ।"
"ओ.के तो उस लूट के बाद क्या हुआ?"
"क्या हुआ से मतलब?”
"क्या राजा कभी पकड़ा नहीं गया?"
" पकड़ा गया । सरासर पकड़ा गया । इस तरह के बैंकिग फ्राड की जांच करने वाली ट्रस्टवेयर स्पाइडर लेब नाम की फारेंसिक कम्पनी ने फोरन ही सच मालूम कर लिया था । उसकी निशानदेही पर पुलिस ने फौरन ही राजा को गिरफ्तार कर लिया था !"
"तो फिर वह आजाद कैसे घूम रहा है और जो ढाई सौ करोड़ रुपए उसने लूटे थे, क्या वह रकम उससे बरामद हुई ?"
"एक रुपया भी बरामद नहीं हुआ था । ट्रस्टवेयर फारेंसिक लेब वालों ने सच भले ही मालूम कर लिया था, लेकिन राजा के खिलाफ़ उसके पास ऐसा एक भी सबूत नहीं था, जो उसे अदालत में मुजरिम सावित कर पाता और सजा दिला पाता । उसके पास तो लूटी गई रकम तक बरामद नहीं हुई थी । वैसे भी साइबर एक्ट को लेकर मुल्क का कानून अभी बेहद लचर है ।"
"तो फिर ?"
"इस मामले को उसी अमरीकी साफ्टवेयर कम्पनी ने हैंडल किया था जिसका बैंकों के साथ करार है, नियमानुसार बैकों को हुए नुकसान की भरपाई एनस्टेज साफ्टवेयर को ही करनी पड़ती, यानी "एनस्टेज‘ बैकों के लूटे गए ढाई सौ करोड़ की देनदार थी । इसके लिए उसने बीच का रास्ता अपनाया ।'"
"बीच का रास्ता?”
‘उसने राजा के सामने शर्त रखी कि अगर यह बैंकों से लूटा गया रुपया वापस कर दे तो वह उसके खिलाफ़ लगे सारे आरोप वापस ले लेगी और राजा को एक दिन भी जेल में नहीं रहना पडेगा ।'"
राजा मान गया?"
"हां । मगर सूखे-सूखे नहीं । उसने पचास करोड़ रुपए अपने पास रख लिए थे, जिसका कि बाकायदा कम्पनी से लिखित एग्रीमेंट किया और बाकी दो सौ करोड़ कम्पनी को लौटा दिए ।"
"कमाल है । ऐसा ईमानदार लुटेरा मैंने पहले कभी नहीं देखा ।"
"कैसा ईमानदार लुटेरा बॉस ! उसने तो अपना मेहनताना पचास करोड़ रुपए हासिल कर ही लिया था । वेैसे अगर वह चाहता तो एक रुपया भी कम्पनी को न लौटाता । लेकिन वह फैसला मुनासिब नहीं होता । ऐसी रकम का क्या फायदा होता जो उसके द्वारा छुपाई गई जगह पर पड़ी सडती रहती और वह जेल में सिसकता रहता । फिर पचास करोड़ रुपए क्या कम होते हैं, जिन्हें खर्च करने के लिए राजा अब पूरी तरह से आजाद था ।"
"बहुत खूब !" ये शब्द होलकर के मुंह से स्वतः निकल गए----" बड़ा सुलझा हुआ और शातिर लड़का है ये ।'"
"कहते हैं उसके बाद "एनस्टेज' ने राजा को अपनी कम्पनी में बहुत अच्छी जॉब का ओंफ़र दिया था, कम्पनी राजा की विलक्षण काबिलियत का पूरा फायदा उठाना चलती थी । लेकिन राजा ने आफर नामंजूर कर दिया ।'"
"क्यों भला?"
"जो अपने हुनर से एक घंटे में ढाई सौ करोड़ कमा सकता हो, उसे किसी का गुलाम बनकर रहना भला क्यों मंजूर होगा? वेसे 'एनस्टेज‘ ने अब इस बात का पुख्ता इंतजाम कर दिया है कि राजा चौरसिया या फिर उस जैसा दूसरा कम्यूटर हैकर कम्पनी के सिक्योरिटी सिस्टम के साथ वैसा फ्रांड न कर सके ।"
"सवाल ये उठता है कि राजा चौरसिया जैसा कुख्यात कम्यूटर हैकर मुम्बई में क्यों आया है? इससे भी बड़ी बात, वह उस लड़की के साथ क्या कर रहा है जो हमारे मृतक नम्बर थ्री के साथ थी?"
"इसका जवाब तो राजा ही दे सकता है या फिर वह लडकी? "
"गडबड है…जरूर कोई गड़बड़ है ।"
"केैसी गड़बड़ बॉस?"
"फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन राजा का फौरन हमारे हाथ जाना जरूरी है । यह हमें कहां मिलेगा?"
"मालूम करने की कोशिश कर चुका हूं-----कोईं रेग्यूलर ठीया नहीं है । आजाद पंछी है । कब कहां होता , उसे खुद नहीं पता होता ।"
“फिर ? "
"अपनी कोशिश जारी रखता हूं ! अगर वह अभी भी मुम्बई में ही है तो मुझे पूरा यकीन है, मैं उसे दूंढ़ निकालूंगा !"
"और वह लड़की ! वह भी मुझे चाहिए । केवल वही है जो उन विदेशियों के कत्ल के रहस्य से पर्दा हटा सकती है ।"
"उसकी भी खोज…खहर निकालता हूं !"
"जितनी जल्दी हो सके । इन दोनों कामों को करो ।"
तभी इंटस्काम बजा ।
होलकर ने रिसीवर उठाया ।
“किन दिनों?"
“जिन दिनों राजा चौरसिया नाम की इस अजीमुशशान हस्ती ने एक ऐसा कारनामा अंजाम दिया था जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था ।"
"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा कि तुम यया कह रहे हो?"
"समझाता हूं बाॉस, असल में तुम्हें पूरा किस्सा एबीसीडी से समझाना पडे़गा ।" कहते हुए प्रताप ने ठंडी सांस ली और पुन: शुरू हो गया
हस्ती का नाम राजा चौरसिया है, वह हमारे मुल्क का एक कुख्यात कम्यूटर घुसपैठिया है, जिन दिनों तुम चाईना गए हैं थे उन दिनों इसने शातिराना हुनर से भारत को नहीं बल्कि सारी दुनिया को हिलाकर रख दिया था और एक घंटे के अंदर------महज एक घंटे के अंदर मुत्क के कई बैकों से ढाई सौ करोड़ रुपए उड़ा लिए थे ।"
"ए. . .एक घंटे के अंदर ढाई सौ करोड़ रुपए उड़ा लिए थे?" होलकर की आंखें हैरानी से फ़टी रह गई थी । मुह से अविश्वसनीय स्वर निकला------" तुम क्या कह रहे हो? ऐसा कैसे हो सकता है?”
"हो सकता है नहीं बॉस, हुआ है । इस इंसान ने, जो उस लड़की के साथ पब में नाच रहा है, इसने यह कारनामा करके दिखाया है । साइबर फ्राड के जरिए इसने बैकों से दाई सौ करोड़ रुपए लिए थे ।"
" कैसे ?"
"अमरीकी कम्पनी के मेन सिक्योरिटी सरवर को हैक करके ।"
"कौन भी अमरीकी कम्पनी ?"
"उस कम्पनी का नाम "एनस्टेज साफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड' है, उसकी इंडियन ब्रांच दिल्ली में कनॉट प्लेस में है ।"
"किसी अमरीकी साफ्टवेयर कम्पनी का भारत के बैकिंग सिस्टम के सरवर से क्या सम्बंध?"
“तुम इसी दुनिया के जानवर हो बॉस या मोहन जीदड़ो और हडप्पा की खुदाई से निकले हुए !"
"मांइड योर लेग्वेज ।" होल्कर ने आंखें निकाली ।
“सौरी बॉस. .लेकिन ऐसा इसलिए मुंह से निकल गया क्योकिं मैं नहीं समझता था कि तुम्हें आजकल की वेर्किग के बारे में मालूम नहीं होगा ।"
"तुम तो जानते हो प्रताप, साइबर दुनिया की जानकारी रखने के मामले में मैं जीरो हूं ! कभी इंट्रैस्ट ही नहीं लिया इसमे ।"
" उम्मीद है अब लिया करोगे ।"
"प्लीज, मुझे सारी बातें खोलकर--------विस्तार से समझाओ ।"
“तो सुनो ।" प्रताप चालू हो गया------"अकेला हमारा देश ही नहीं, सारी दुनिया के मुल्कों के बेैंक अपने अॉन-लाइन फंड ट्रांजेक्शन के लिए इसी अमरीकी कम्पनी पर निर्भर हैं । दूसरे लफ्जों में कहें तो दुनिया भर के मुल्कों के लगभग सारे ही बैंकों के आनलाइन ट्रांजेक्शन को एनस्टेज साफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड ही अंजाम देती है, वह ट्रांजेक्शन चाहे एटीएम कार्ड के जरिए हो, क्रेडिट कार्ड के जरिए हो या फिर अन्य किसी भी आनंलाइन इलेवट्रॉनिक ट्रांसफ़र के माध्यम से । इस संदर्भ में राजा चौरसिया जैसे कम्यूटर हैकरों तथा हर तरह की आंनलाइन धोखाधडी़ को रोकने का जिम्मा भी इसी कम्पनी का होता है । एकाकी होल्डर के एकाउंट से सम्बंधित सभी सन्वेदनशील जानकारियों को गोपनीय रखने का काम भी यही कम्पनी करती है । इसके लिए उसने दुनिया-भर में अपने "थ्री डी सिक्योर साल्यूशन' का अभेद्य कम्यूटर नेटवर्क स्थापित कर रखा है । इसीलिए तो सारी दुनिया के बैंकों ने 'ऐनस्टेज' के साथ आनलाइन फंड ट्रांसफर का करार कर रखा है ।"
"इसके बावजूद राजा चौरसिया ने सारे सिक्योरिटी सिस्टम को धता बताकर दाई सौ करोड़ रुपए लूट लिए?"
" उसने निहायत ही शातिराना तरीका अपनाया था ।"
"वया था उसका यह शातिराना तरीका?"
"मुझे नहीं लगता कि यहां उसके जिक्र का कोई फायदा होगा बॉस । हमारा टार्गेट दूसरा है ।"
"ओ.के तो उस लूट के बाद क्या हुआ?"
"क्या हुआ से मतलब?”
"क्या राजा कभी पकड़ा नहीं गया?"
" पकड़ा गया । सरासर पकड़ा गया । इस तरह के बैंकिग फ्राड की जांच करने वाली ट्रस्टवेयर स्पाइडर लेब नाम की फारेंसिक कम्पनी ने फोरन ही सच मालूम कर लिया था । उसकी निशानदेही पर पुलिस ने फौरन ही राजा को गिरफ्तार कर लिया था !"
"तो फिर वह आजाद कैसे घूम रहा है और जो ढाई सौ करोड़ रुपए उसने लूटे थे, क्या वह रकम उससे बरामद हुई ?"
"एक रुपया भी बरामद नहीं हुआ था । ट्रस्टवेयर फारेंसिक लेब वालों ने सच भले ही मालूम कर लिया था, लेकिन राजा के खिलाफ़ उसके पास ऐसा एक भी सबूत नहीं था, जो उसे अदालत में मुजरिम सावित कर पाता और सजा दिला पाता । उसके पास तो लूटी गई रकम तक बरामद नहीं हुई थी । वैसे भी साइबर एक्ट को लेकर मुल्क का कानून अभी बेहद लचर है ।"
"तो फिर ?"
"इस मामले को उसी अमरीकी साफ्टवेयर कम्पनी ने हैंडल किया था जिसका बैंकों के साथ करार है, नियमानुसार बैकों को हुए नुकसान की भरपाई एनस्टेज साफ्टवेयर को ही करनी पड़ती, यानी "एनस्टेज‘ बैकों के लूटे गए ढाई सौ करोड़ की देनदार थी । इसके लिए उसने बीच का रास्ता अपनाया ।'"
"बीच का रास्ता?”
‘उसने राजा के सामने शर्त रखी कि अगर यह बैंकों से लूटा गया रुपया वापस कर दे तो वह उसके खिलाफ़ लगे सारे आरोप वापस ले लेगी और राजा को एक दिन भी जेल में नहीं रहना पडेगा ।'"
राजा मान गया?"
"हां । मगर सूखे-सूखे नहीं । उसने पचास करोड़ रुपए अपने पास रख लिए थे, जिसका कि बाकायदा कम्पनी से लिखित एग्रीमेंट किया और बाकी दो सौ करोड़ कम्पनी को लौटा दिए ।"
"कमाल है । ऐसा ईमानदार लुटेरा मैंने पहले कभी नहीं देखा ।"
"कैसा ईमानदार लुटेरा बॉस ! उसने तो अपना मेहनताना पचास करोड़ रुपए हासिल कर ही लिया था । वेैसे अगर वह चाहता तो एक रुपया भी कम्पनी को न लौटाता । लेकिन वह फैसला मुनासिब नहीं होता । ऐसी रकम का क्या फायदा होता जो उसके द्वारा छुपाई गई जगह पर पड़ी सडती रहती और वह जेल में सिसकता रहता । फिर पचास करोड़ रुपए क्या कम होते हैं, जिन्हें खर्च करने के लिए राजा अब पूरी तरह से आजाद था ।"
"बहुत खूब !" ये शब्द होलकर के मुंह से स्वतः निकल गए----" बड़ा सुलझा हुआ और शातिर लड़का है ये ।'"
"कहते हैं उसके बाद "एनस्टेज' ने राजा को अपनी कम्पनी में बहुत अच्छी जॉब का ओंफ़र दिया था, कम्पनी राजा की विलक्षण काबिलियत का पूरा फायदा उठाना चलती थी । लेकिन राजा ने आफर नामंजूर कर दिया ।'"
"क्यों भला?"
"जो अपने हुनर से एक घंटे में ढाई सौ करोड़ कमा सकता हो, उसे किसी का गुलाम बनकर रहना भला क्यों मंजूर होगा? वेसे 'एनस्टेज‘ ने अब इस बात का पुख्ता इंतजाम कर दिया है कि राजा चौरसिया या फिर उस जैसा दूसरा कम्यूटर हैकर कम्पनी के सिक्योरिटी सिस्टम के साथ वैसा फ्रांड न कर सके ।"
"सवाल ये उठता है कि राजा चौरसिया जैसा कुख्यात कम्यूटर हैकर मुम्बई में क्यों आया है? इससे भी बड़ी बात, वह उस लड़की के साथ क्या कर रहा है जो हमारे मृतक नम्बर थ्री के साथ थी?"
"इसका जवाब तो राजा ही दे सकता है या फिर वह लडकी? "
"गडबड है…जरूर कोई गड़बड़ है ।"
"केैसी गड़बड़ बॉस?"
"फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन राजा का फौरन हमारे हाथ जाना जरूरी है । यह हमें कहां मिलेगा?"
"मालूम करने की कोशिश कर चुका हूं-----कोईं रेग्यूलर ठीया नहीं है । आजाद पंछी है । कब कहां होता , उसे खुद नहीं पता होता ।"
“फिर ? "
"अपनी कोशिश जारी रखता हूं ! अगर वह अभी भी मुम्बई में ही है तो मुझे पूरा यकीन है, मैं उसे दूंढ़ निकालूंगा !"
"और वह लड़की ! वह भी मुझे चाहिए । केवल वही है जो उन विदेशियों के कत्ल के रहस्य से पर्दा हटा सकती है ।"
"उसकी भी खोज…खहर निकालता हूं !"
"जितनी जल्दी हो सके । इन दोनों कामों को करो ।"
तभी इंटस्काम बजा ।
होलकर ने रिसीवर उठाया ।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
- Pro Member
- Posts: 2708
- Joined: 10 Oct 2014 21:53
Re: गद्दार देशभक्त
"इंटरपोल से कोई मिस्टर कार्टर आए है सर ।" उसके कानों में अॉपरेटर की मधुर आवाज पड़ी-------"आपसे मिलना चाहते है ।"
होलकर के माथे पर वल पड़ गए ।
"उन्हें भेज दो ।" उसने अॉपरेटर से कहा और रिसीवर वापस रख दिया ।
नजरे उठाकर प्रताप को देखा जो उसे ही देख रहा था ।
"कोई इंटरपोल से आया है ।" होलकर ने उसे बताया----फौरन मिलने को कह रहा है ।"
"लगता है कोशिशे रंग ला रही हैं ।" प्रताप होंठों में बुदबुदाया था !
"वह जरूर उन विदेशियों के बारे में कोई खबर लाया होगा । मुबारक हो बॉस ।"
" शुक्रिया । अभी तुम जाओ ।"
" ओ.के ! " कहने वाद प्रताप चला गया ।
तभी वहां कार्टर ने कदम रखा ।
केंद्रीय गृहमंत्री बादल नारंग के सरकारी आवास पर चुनिंदा सांसदों की आपात बैठक बुलाई गई थी ।
बैठक में सत्ता पक्ष ही नहीं वरन् प्रमुख विपक्षी दलों के सांसदों को भी आमंत्रित किया गया था ।
प्रधानमंत्री की गैेर मौजूदगी में आपात बैठक की अध्यक्षता स्वयं बादल नारंग कर रहे थे ।
रक्षामंत्री हंसराज ठकराल भी मौजूद थे ।
इसके अलावा मुख्य विपक्षी दल का नेता बसंत स्वामी भी शिरकत कर रहा था ।
कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों के संसदीय नेता भी मीटिंग में मौजूद थे । देश की इतनी सारी महत्वपूर्ण हस्तियों की उपस्थिति के बावजूद दुधिया रोशनी से जगमगाते समूचे हाल में एक तनाव भरा सन्नाटा छाया हुआ था ।
हर चेहरे पर गहरा तनाव व्याप्त था ।
सबसे गहरा व विचलित करने वाला सन्नाटा मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता बसंत स्वामी के चेहरे पर खिंचा हुआ था ।
आपात बैठक का एजेंडा, जैसा कि वहां उपस्थित सभी नेतागण जानते थे कि चान्दनी सिंह थी ।
चांदनी सिंह !
वह चांदनी सिंह जिसे हाल ही में अगवा कर लिया गया था ।
चौबीस घंटे बीतने से पहले ही पाकिस्तान के प्रमुख अातंकी संगठन जमात उल फिजा ने इस अपहरण की जिम्मेदारी ले ली थी । सभी जानते थे कि जमात उल फिजा का सरगना हाफिज लुईस है ।
हाफिज लुईस ने भारत सरकार के सामने चांदनी सिंह को छोड़ने की शर्त रख दी थी । चांदनी सिंह के बदले में उसके द्वारा खूंखार आतंकी मुस्तफा को मांगा गया था, उस मुस्तफा को जो तिहाड़ में अपनी फांसी का इंतजार कर रहा था ।
महज मुस्तफा की रिहाई ।
और कुछ नहीं ।
जमात उल फिजा की तरफ से भारत सरकार को केवल बीस घंटे का वक्त दिया गया था ।
यानी अगले बीस घंटे से पहले ही उसे मुस्तफा को रिहा करना था ।
रिहा न करने का अंजाम सारी दुनिया बखूबी मालूम था ।
बीस में से दस घंटे बीत भी चुके थे ।
एब सरकार के पास दस घंटे शेष थे !
केवल दस घंटे!
दहशतगर्दों की ओर से आया बीडीयो टेप अभी-अभी माननीय सांसदों को दिखाया गया था । वह वीडियो टेप जिसमे चांदनी सिंह दो नकाबपोश गनधारियों की धार पर नजर आ रही थी, बेक ग्राउंड से गूंजी थी धमकियां देती खनकदार आवाज ।
वह आवाज जो वीडीयों टेप समाप्त हो जाने के बाद भी वहां मौजूद हर शख्स के कानों में दहशत बनकर गूंज रही थी ।
जव यह फैसला लिया जाना था कि आगे क्या किया जाए !
सरकार को चांदनी सिह की रिहाई के बदले दहशतगर्दों की मांग मान लेनी चाहिए या कोई और रास्ता अख्तियार करना चाहिए!
उस पैनी तथा तनाव भरी खामोशी को अंतत: बादल नारंग को ही छोड़ना पड़ा----"यह हमारे तथा इस देश के लिए सचमुच मुश्किल समय है । आज हमारा मुल्क बहुत संवेदनशील घटनाचक्र के मुहाने पर खड़ा है । नियति एक बार फिर हमारे धैर्य की परीक्षा लेने पर आमादा है और हमारे पास केवल दो रास्ते है मुल्क की आन गंवा दे या दहशतगर्दों को मुंहतोड जवाब दे । दोनों की ही कीमत इस देश को चुकानी होनी ।”
" सब इस सरकार के ढुलमुल रवैये का परिणाम है ।" बसंत स्वामी अपना हाथ लहराकर आवेश में बोला…“यह उसके नाकारापन का जीता-जागता सबूत है । मैं पूछता हूं कि जब हमारी खुफिया एजेसियों ने पहले ही सरकार को खबरदार कर दिया था कि जमात उल फिजा फांसी की सजा पाए अपने खूंखार आतंकी मुस्तफा को छुड़ाने का प्लान वना रहा है, इसके बावजूद सरकार क्यों सोती रही, क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और क्यों उस आफ़त का इंतजार करती रही, जो आज हमारे सिर पर टूटी है । यदि सरकार ने पहले से ऐहतियात बरती होती तो इस मुसीबत को टाला जा सकता था । मैं इस वारदात के लिए साफ़-साफ़ सत्ताधारी लोगों को जिम्मेदार ठहराता हूं जिनके पास देश को नेतृत्व देने की क्षमता का सर्वथा आभाव है ।"
स्वामी चुप हुआ तो सत्तापक्ष के माननियों की भृकुटि तन गई ।
कई के चेहरे तमतमाने लगे ।
एक मंत्री ने अपनी कड़ीं प्रतिक्रिया जताने के लिए मुंह खोला ही था कि नारंग ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया ।
"गुस्ताखी माफ स्वामी साहब !" बह बोला…“क्या चांदनी सिह सचमुच आपकी पत्नी हैं?"
“व्याट !" वसंत स्वामी ने तमककर नारंग को देखा---" क्या मतलब है आपका मंत्री महोदया मिसेज चांदनी मेरी व्याहता बीबी है और वह इस वक्त दहशतगर्दों की चंगुल में है ।"
“फिर भी आप राजनीति कर रहे हैं…इस सम्बेदनशील मौके को अपना राजनैतिक करियर संवारने में केश करने की केशिश कर रहे है । सत्ता पक्ष को 'नाकारा' और 'नेतृत्वहीन' ठहराने का प्रयास कर रहे हैं । जबकि यह मीटिंग मैंने राजनीति करने के लिए नहीं बुलाई है । मैंने सर्वसम्मति से यह फैसला करने के लिए आप सबको यहां इकट्ठा किया है कि इन हालात में हमें क्या करना चाहिए। उनकी बात मान लेनी चाहिए या उन्हें इंकार कर देना चाहिए ?"
"इंकार का मतलब आप जानते हैं?” वसंत स्वामी रोष भरे स्वर में बोला था ।
"जानता हूं । हमें हिन्दुस्तान के किसी कोने से आपकी बीबी की लाश मिल जाएगी और अगर हाफिज की बात मानते हैं तो एक बार फिर भारत माता का मस्तक लज्जा से झुक जाएगा ।"
"मैं आपको किसी भी कीमत पर इंकार करने की सलाह नहीं दे सकता ।" बसंत स्वामी पुरजोर विरोधपूर्ण स्वर में बोला-------और फिर यह कोई पहला मौका नहीं है । इससे पहले भी मुल्क के सामने ऐसे हालात पेश उग चुके हैं, जब आतंकियों की मांग के आगे हमें घूटने टेकने पड़े थे, वह चाहे रजिया अपहरण कांड हो या कंधार हाईजैक कांड । फिर, भारतीय दंड विधान भी तो यही कहता है कि गुनाहगार को जितने छूट जाएं लेकिन एक भी बेगुनाह की जान नहीं जानी चाहिए ।”
"बसंत स्वामी साहब ने तो अपना फैसला सुना दिया ।" नारंग अन्य सभी सांसदों से मुखातिब होकर बोला-----अब मैं बाकी लोगों से उनकी राय जानना चाहता हूं ! ”
सूअर जैसी थूथनी वाला डिफेंस मिनिस्टर बोला…“स्वामी साहब सही कह रहे । हमें मुस्तफा को छोड़ देना चाहिए । एक बार स्वामी साहब की धर्मपत्नी वापस आ जाएं, फिर हम मुस्तफा को दोबारा गिरफ्तार करने का रास्ता निकल सकते हैं ।"
नारंग ने एक अन्य विपक्षी नेता की तरफ़ देखा ।
" टैरेरिस्टों ने अपने केवल एक साथी की रिहाई की शर्त रखी है ।" वह खंखारकर अपना गला साफ करता हुआ बोला"-“किसी एक टेरेरिस्ट के लिए चांदनी सिह जैसी महिला को कुर्बान नहीं किया जा सकता । मेरी बेशक राय तो यही है कि हमे मुस्तफा को छोड़ देना चाहिए ।"
नारंग एक अन्य शख्स से हुआ। उसने भी कमोवेश वैसी ही राय जाहिर की, उससे पहले शख्स दे चुके थे ।
सबसे अंत में नारंग ने हंसराज ठकराल की तरफ देखा।
"इस सम्मानीय सभा का बहुमत मुस्तफा को छोड़ देने ही सिफारिश कर रहा है ।" ठकराल गहरी सांस भरता हुआ बोला----“मैं इस सभा की खिलाफत करने का हौंसला तो नहीं जुटा सकता मगर आज यहां एक बात जरूर कहना चाहता हूं ।"
"हम आपको सुन रहे हैं ।" नारंग ने उसका हौंसला बढ़ाया ।
“हमेँ अपने मुल्क की इस पुरानी और धिसी हुई परिपाटी को बदलना होगा, जो गुनाहगारों और टेरेरिस्टों का रास्ता आसान करती है । वक्त आगया कि हम इस सच्चाई को समझें कि वीवीआईपी होने के सिर्फ फायदे ही नहीं, नुकसान भी है । हम अगर विशिष्ट जन बनकर सारे ऐश्वयों का भोग कर सकते है तो नुकसान उठाने को भी तेयार रहना चाहिए---------खासतौर पर तब, जब मामला मुल्क-की अस्मित से जुड़ा हो ।”
वसंत स्वामी तुरंत तीखे स्वर में बोला-----"'क्या आप यह कहना चाहते हैं मिनिस्टर साहब कि मुझे अपनी पत्नी को देश पर कुर्बान कर देना चाहिए? उसे आप लोगों के नाकारापन की सलीब पर चढ़ा देना चाहिए?"
" आपको क्या करना चाहिए, मैं इस बारे में कोई कमेंट नहीं कर सकता, मगर इतना जरूर कहूंगा, आज अगर इस जगह मेरी अपनी पत्नी होती तो मैंने उसे देश लिए कुर्बान करने में एक पल भी न लगाया होता !"
ठकराल के अल्फाजों से कक्ष में धारदार सन्ताटा खिंच गया ।
"तो साहबान !" अंतत: नारंग उस सन्नाटे को भंग करता हुआ बोला-------" हम सर्वसम्मति से मुस्तफा को रिहा करने का फैसला करते हैं और इस फैसले से हममें से किसी को कोई आपत्ति नहीं है । क्योंकि फिलहाल यही मानवता और हमारे देश के हित में है ।"
होलकर के माथे पर वल पड़ गए ।
"उन्हें भेज दो ।" उसने अॉपरेटर से कहा और रिसीवर वापस रख दिया ।
नजरे उठाकर प्रताप को देखा जो उसे ही देख रहा था ।
"कोई इंटरपोल से आया है ।" होलकर ने उसे बताया----फौरन मिलने को कह रहा है ।"
"लगता है कोशिशे रंग ला रही हैं ।" प्रताप होंठों में बुदबुदाया था !
"वह जरूर उन विदेशियों के बारे में कोई खबर लाया होगा । मुबारक हो बॉस ।"
" शुक्रिया । अभी तुम जाओ ।"
" ओ.के ! " कहने वाद प्रताप चला गया ।
तभी वहां कार्टर ने कदम रखा ।
केंद्रीय गृहमंत्री बादल नारंग के सरकारी आवास पर चुनिंदा सांसदों की आपात बैठक बुलाई गई थी ।
बैठक में सत्ता पक्ष ही नहीं वरन् प्रमुख विपक्षी दलों के सांसदों को भी आमंत्रित किया गया था ।
प्रधानमंत्री की गैेर मौजूदगी में आपात बैठक की अध्यक्षता स्वयं बादल नारंग कर रहे थे ।
रक्षामंत्री हंसराज ठकराल भी मौजूद थे ।
इसके अलावा मुख्य विपक्षी दल का नेता बसंत स्वामी भी शिरकत कर रहा था ।
कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों के संसदीय नेता भी मीटिंग में मौजूद थे । देश की इतनी सारी महत्वपूर्ण हस्तियों की उपस्थिति के बावजूद दुधिया रोशनी से जगमगाते समूचे हाल में एक तनाव भरा सन्नाटा छाया हुआ था ।
हर चेहरे पर गहरा तनाव व्याप्त था ।
सबसे गहरा व विचलित करने वाला सन्नाटा मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता बसंत स्वामी के चेहरे पर खिंचा हुआ था ।
आपात बैठक का एजेंडा, जैसा कि वहां उपस्थित सभी नेतागण जानते थे कि चान्दनी सिंह थी ।
चांदनी सिंह !
वह चांदनी सिंह जिसे हाल ही में अगवा कर लिया गया था ।
चौबीस घंटे बीतने से पहले ही पाकिस्तान के प्रमुख अातंकी संगठन जमात उल फिजा ने इस अपहरण की जिम्मेदारी ले ली थी । सभी जानते थे कि जमात उल फिजा का सरगना हाफिज लुईस है ।
हाफिज लुईस ने भारत सरकार के सामने चांदनी सिंह को छोड़ने की शर्त रख दी थी । चांदनी सिंह के बदले में उसके द्वारा खूंखार आतंकी मुस्तफा को मांगा गया था, उस मुस्तफा को जो तिहाड़ में अपनी फांसी का इंतजार कर रहा था ।
महज मुस्तफा की रिहाई ।
और कुछ नहीं ।
जमात उल फिजा की तरफ से भारत सरकार को केवल बीस घंटे का वक्त दिया गया था ।
यानी अगले बीस घंटे से पहले ही उसे मुस्तफा को रिहा करना था ।
रिहा न करने का अंजाम सारी दुनिया बखूबी मालूम था ।
बीस में से दस घंटे बीत भी चुके थे ।
एब सरकार के पास दस घंटे शेष थे !
केवल दस घंटे!
दहशतगर्दों की ओर से आया बीडीयो टेप अभी-अभी माननीय सांसदों को दिखाया गया था । वह वीडियो टेप जिसमे चांदनी सिंह दो नकाबपोश गनधारियों की धार पर नजर आ रही थी, बेक ग्राउंड से गूंजी थी धमकियां देती खनकदार आवाज ।
वह आवाज जो वीडीयों टेप समाप्त हो जाने के बाद भी वहां मौजूद हर शख्स के कानों में दहशत बनकर गूंज रही थी ।
जव यह फैसला लिया जाना था कि आगे क्या किया जाए !
सरकार को चांदनी सिह की रिहाई के बदले दहशतगर्दों की मांग मान लेनी चाहिए या कोई और रास्ता अख्तियार करना चाहिए!
उस पैनी तथा तनाव भरी खामोशी को अंतत: बादल नारंग को ही छोड़ना पड़ा----"यह हमारे तथा इस देश के लिए सचमुच मुश्किल समय है । आज हमारा मुल्क बहुत संवेदनशील घटनाचक्र के मुहाने पर खड़ा है । नियति एक बार फिर हमारे धैर्य की परीक्षा लेने पर आमादा है और हमारे पास केवल दो रास्ते है मुल्क की आन गंवा दे या दहशतगर्दों को मुंहतोड जवाब दे । दोनों की ही कीमत इस देश को चुकानी होनी ।”
" सब इस सरकार के ढुलमुल रवैये का परिणाम है ।" बसंत स्वामी अपना हाथ लहराकर आवेश में बोला…“यह उसके नाकारापन का जीता-जागता सबूत है । मैं पूछता हूं कि जब हमारी खुफिया एजेसियों ने पहले ही सरकार को खबरदार कर दिया था कि जमात उल फिजा फांसी की सजा पाए अपने खूंखार आतंकी मुस्तफा को छुड़ाने का प्लान वना रहा है, इसके बावजूद सरकार क्यों सोती रही, क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और क्यों उस आफ़त का इंतजार करती रही, जो आज हमारे सिर पर टूटी है । यदि सरकार ने पहले से ऐहतियात बरती होती तो इस मुसीबत को टाला जा सकता था । मैं इस वारदात के लिए साफ़-साफ़ सत्ताधारी लोगों को जिम्मेदार ठहराता हूं जिनके पास देश को नेतृत्व देने की क्षमता का सर्वथा आभाव है ।"
स्वामी चुप हुआ तो सत्तापक्ष के माननियों की भृकुटि तन गई ।
कई के चेहरे तमतमाने लगे ।
एक मंत्री ने अपनी कड़ीं प्रतिक्रिया जताने के लिए मुंह खोला ही था कि नारंग ने हाथ उठाकर उसे रोक दिया ।
"गुस्ताखी माफ स्वामी साहब !" बह बोला…“क्या चांदनी सिह सचमुच आपकी पत्नी हैं?"
“व्याट !" वसंत स्वामी ने तमककर नारंग को देखा---" क्या मतलब है आपका मंत्री महोदया मिसेज चांदनी मेरी व्याहता बीबी है और वह इस वक्त दहशतगर्दों की चंगुल में है ।"
“फिर भी आप राजनीति कर रहे हैं…इस सम्बेदनशील मौके को अपना राजनैतिक करियर संवारने में केश करने की केशिश कर रहे है । सत्ता पक्ष को 'नाकारा' और 'नेतृत्वहीन' ठहराने का प्रयास कर रहे हैं । जबकि यह मीटिंग मैंने राजनीति करने के लिए नहीं बुलाई है । मैंने सर्वसम्मति से यह फैसला करने के लिए आप सबको यहां इकट्ठा किया है कि इन हालात में हमें क्या करना चाहिए। उनकी बात मान लेनी चाहिए या उन्हें इंकार कर देना चाहिए ?"
"इंकार का मतलब आप जानते हैं?” वसंत स्वामी रोष भरे स्वर में बोला था ।
"जानता हूं । हमें हिन्दुस्तान के किसी कोने से आपकी बीबी की लाश मिल जाएगी और अगर हाफिज की बात मानते हैं तो एक बार फिर भारत माता का मस्तक लज्जा से झुक जाएगा ।"
"मैं आपको किसी भी कीमत पर इंकार करने की सलाह नहीं दे सकता ।" बसंत स्वामी पुरजोर विरोधपूर्ण स्वर में बोला-------और फिर यह कोई पहला मौका नहीं है । इससे पहले भी मुल्क के सामने ऐसे हालात पेश उग चुके हैं, जब आतंकियों की मांग के आगे हमें घूटने टेकने पड़े थे, वह चाहे रजिया अपहरण कांड हो या कंधार हाईजैक कांड । फिर, भारतीय दंड विधान भी तो यही कहता है कि गुनाहगार को जितने छूट जाएं लेकिन एक भी बेगुनाह की जान नहीं जानी चाहिए ।”
"बसंत स्वामी साहब ने तो अपना फैसला सुना दिया ।" नारंग अन्य सभी सांसदों से मुखातिब होकर बोला-----अब मैं बाकी लोगों से उनकी राय जानना चाहता हूं ! ”
सूअर जैसी थूथनी वाला डिफेंस मिनिस्टर बोला…“स्वामी साहब सही कह रहे । हमें मुस्तफा को छोड़ देना चाहिए । एक बार स्वामी साहब की धर्मपत्नी वापस आ जाएं, फिर हम मुस्तफा को दोबारा गिरफ्तार करने का रास्ता निकल सकते हैं ।"
नारंग ने एक अन्य विपक्षी नेता की तरफ़ देखा ।
" टैरेरिस्टों ने अपने केवल एक साथी की रिहाई की शर्त रखी है ।" वह खंखारकर अपना गला साफ करता हुआ बोला"-“किसी एक टेरेरिस्ट के लिए चांदनी सिह जैसी महिला को कुर्बान नहीं किया जा सकता । मेरी बेशक राय तो यही है कि हमे मुस्तफा को छोड़ देना चाहिए ।"
नारंग एक अन्य शख्स से हुआ। उसने भी कमोवेश वैसी ही राय जाहिर की, उससे पहले शख्स दे चुके थे ।
सबसे अंत में नारंग ने हंसराज ठकराल की तरफ देखा।
"इस सम्मानीय सभा का बहुमत मुस्तफा को छोड़ देने ही सिफारिश कर रहा है ।" ठकराल गहरी सांस भरता हुआ बोला----“मैं इस सभा की खिलाफत करने का हौंसला तो नहीं जुटा सकता मगर आज यहां एक बात जरूर कहना चाहता हूं ।"
"हम आपको सुन रहे हैं ।" नारंग ने उसका हौंसला बढ़ाया ।
“हमेँ अपने मुल्क की इस पुरानी और धिसी हुई परिपाटी को बदलना होगा, जो गुनाहगारों और टेरेरिस्टों का रास्ता आसान करती है । वक्त आगया कि हम इस सच्चाई को समझें कि वीवीआईपी होने के सिर्फ फायदे ही नहीं, नुकसान भी है । हम अगर विशिष्ट जन बनकर सारे ऐश्वयों का भोग कर सकते है तो नुकसान उठाने को भी तेयार रहना चाहिए---------खासतौर पर तब, जब मामला मुल्क-की अस्मित से जुड़ा हो ।”
वसंत स्वामी तुरंत तीखे स्वर में बोला-----"'क्या आप यह कहना चाहते हैं मिनिस्टर साहब कि मुझे अपनी पत्नी को देश पर कुर्बान कर देना चाहिए? उसे आप लोगों के नाकारापन की सलीब पर चढ़ा देना चाहिए?"
" आपको क्या करना चाहिए, मैं इस बारे में कोई कमेंट नहीं कर सकता, मगर इतना जरूर कहूंगा, आज अगर इस जगह मेरी अपनी पत्नी होती तो मैंने उसे देश लिए कुर्बान करने में एक पल भी न लगाया होता !"
ठकराल के अल्फाजों से कक्ष में धारदार सन्ताटा खिंच गया ।
"तो साहबान !" अंतत: नारंग उस सन्नाटे को भंग करता हुआ बोला-------" हम सर्वसम्मति से मुस्तफा को रिहा करने का फैसला करते हैं और इस फैसले से हममें से किसी को कोई आपत्ति नहीं है । क्योंकि फिलहाल यही मानवता और हमारे देश के हित में है ।"
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