भागू (उपन्यास )

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Jemsbond
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भागू (उपन्यास )

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भागू (उपन्यास )

लेखक - परगट सिंह सतौज ( अनुवाद - हरकीरत हीर )

(1)

चाहे बरसात हो चुकी थी , फिर भी गर्मी से बुरा हाल था। हवा जैसे रूठ गई थी। दरख़्तों का पत्ता तक नहीं हिल रहा था। आज सारा दिन बाड़े में खड़े पशु हाथ -हाथ भर लम्बी जीभ निकाले हाँफते रहे थे। बूढ़े -ठेरे गर्मी से डरते सथ्थ (वह स्थान जहां लोग अक्सर एकजुट होकर बैठते हैं ) के बीच फैले बरगद के नीचे जा बैठे। कुछ ताश के शौकीन घेरे बना पत्ते फेंकने लग पड़े और कुछ रात भर मच्छर के सताये उनकी ओर करवट बदल कर कंधे पर रखे गमछों का तकिया बना गहरी नींद सो गए। भैसों को सन्नी (चारा) कर भगवान भी इस मण्डली के बीच जा शामिल हुआ। अब लगभग पांच बजे भैसों को चारा डालने के ख़्याल से मुड़ परत आया था। आते ही उसने मशीन के आगे से मकई का कतरा हुआ चारा टोकरी में भर लिया। दोनों बाहों से उसे उठाकर कमर पर टिका लिया और फिर भैंसों के चारागाह में जा फेंका । दोनों भैंसें एक दुसरे से बढ़कर जल्दी - जल्दी कच्ची मकई को मुंह मारने लगीं। भगवान ने '' ऐ मेरियो सालियों '' कहकर दोनों के थोबड़े पर एक -एक मुक्का जड़ दिया . भैंसों ने चारे से मुंह हटा लिया , उसने जल्दी से चारागाह के बीच की सन्नी में हाथ मार दिया। माँ से आँख बचा कर बरामदे में खड़ा अध पुराना साइकिल उठाया , हाथ से दबाकर दोनों टायरों की हवा जाँची और पैडल मार चिमियाँ की ओर जाती सड़क पकड़ ली …………………………………… . ।
गुरुद्वारा पार होते ही टोभा आ गया। टोभे के ठीक सामने श्मशान में स्थित बड़ा बुजुर्ग पीपल का पेड़ दिखाई देने लग पड़ा। पीपल से कुछ हट कर एक पुराना जंड का पेड़ भी था। यह जंड तो पता नहीं कितनी पीढ़ियों का इतिहास अपनी टहनियों में छुपाए इसी तरह खड़ा था। कोई गिनती नहीं कितने ही सूरज इसने चढ़ते- छिपते देखे। कितने ही मचते श्मशानों की लाटें आसमान में चढती देखीं और अभी पता नहीं कितनी और चिताओं की आग सेकनी बाकी थी। भगवान ने साईकिल सड़क से उतार कर नई पिंडी (छोटा गाँव ) की ओर मुड़ते कच्चे पाहे पर डाल ली। सड़क से पाहे पर उतरते ही सामने नए पिंड के घर नज़र आते हैं। इस पिंड में बसने वाले कोई अजनबी नहीं , बल्कि सांतपुर से आकर यहाँ बसे थे क्योंकि पिंड के दक्षिण में बहता नाला बरसातों के मौसम में कई बार उछल कर पिंड में आ जाता। निचले घर ज्यादा पानी की मार झेल नहीं पाते और ढह जाते। कईयों ने पानी के क्रोध से डरकर पिंड की चढती तरफ ऊंची जगह पर घर डाल लिए. यह जगह टिब्बे की जमीन होने के कारण सस्ती मिल गई थी और कुछ बेकार पड़ी सरकारी जमीन पर कब्जा कर गोबर - उपले की जगह बना ली. इस तरह पानी की मार ने एक नए गाँव का निर्माण कर दिया था।
पाहे में साइकिल रुक -रुक जा रही थी। भगवान सीट से उठकर रिक्शे की तरह झूल - झूल कर पैडल मारने लगा। उसकी चढ़ी हुई साँस धौकनी की तरह चलने लगी। जब साइकिल रेत पार कर पक्की सड़क जा चढ़ा , वह उलटी हथेली से पड़पडियों से पसीना पोंछता सीट पर जा बैठा। सामने ही करमी का घर दिखा। किसी प्यार भरे डर से उसके दिल की धडकन तेज हो गई। पगली मुझे देख कर ऐसे मुंहफुला लेगी ! बोलेगी , '' इतने दिन बाद आया ओये !'' मैं भी कई दिनों से नहीं गया था. भला मैं क्या बहाना बनाऊंगा? चलो कोई न कोई तो बहाना ढूंढना ही पड़ेगा। वह करमी के सात आसमानी पहुंचे गुस्से को ठंडा करने की मन ही मन किसी बहाने को तरतीब देता बाहर से पार हो अंदर आ गया।
सामने ओटे के पास बैठी करमी बर्तन माँज रही थी. उसके पास ही बैठी कोई और लड़की माँजे बर्तनों को बट्टठल में धो -धोकर टोकरे में रख रही थी. एक बार तो देख कर भगवान अन्दर तक हिल गया. उसने होश गुम करती खूबसूरती पहली बार देखी थी. जैसे उसकी आँखों को यकीन न आ रहा हो , '' उफ्फ ! इतनी सुंदर लड़की पहले तो कभी नहीं देखी। किसी रिश्तेदारी में से न हो …!'' वह इसी उलझन में अनुमान लगाता करमी के पास जा खड़ा हुआ .
'' करमी ! '' भगवान ने बुलाया …।
करमी ने अपने गोरे माथे पर सिलवटें डालते हुए नीचे का होंठ थोड़ा आगे निकाला और दूसरी ओर मुंह घुमा लिया पर उसका मन अन्दर से भगवान से बातें करने को पल - पल तरस रहा था .

'' करमी पहले सुन तो ले , फिर चाहे जो मर्जी कह लेना .'' कहता हुआ भगवान उसके सामने बारिश में भीगी गाय की तरह इकठ्ठा सा होकर खड़ा हो गया.
'' हाँ , बता फिर !'' करमी के माथे की सिलवटें कुछ कम हुईं।
'' मुझे मेरे घर वालों ने बुआ के पास भेज दिया था जमीन जोतने ! '' भगवान ने रस्ते में बनाया बहाना करमी के आगे परोस दिया। करमी ने इसे सच मान सुलह कर ली.
'' अच्छा फिर सुबह भी जरुर आना . '' उसने चेहरे के हाव- भाव पूरी तरह बदले नहीं थे अभी क्योंकि उसे पता था कि अगर वह इतनी जल्दी उसकी बात से सहमत हो गई , फिर उसने अगले दिन भी ऐसे ही करना है । .
'' अच्छा मेरी माँ आ जाऊंगा। '' भगवान ने दोनों हाथ करमी के आगे जोड़ दिए.
पास बैठी लड़की ने भगवान और करमी की नोक - झोंक सुन होंठों में ही धीमा - धीमा मुस्कुराते हुए नखरे के साथ भगवान की ओर देखा।
लड़की की आसमान से परिंदे उतारती नज़र ने भगवान के धड़कते दिल में प्यार की ज्वाला जला दी. उसके पैर थिरक गए.
'' अरी कोई काम- धंधा भी करोगी या यूँ ही बैठी गप्पें लड़ाती रहोगी !''
करमी की माँ के बोल सुन भगवान को होश आई। उसने मेले में रुलती गाय की तरह डोर - भोर हुए खड़े ने आस - पास नज़र मारी। करमी की माँ बट्टठल बाहर के कोल के पास रख कर , मुंह में दाने से भुनती नलके पर हाथ धोने लग पड़ी।
'' बेबे मुश्किल से तो अपना भागू आया , तूने यूँ ही आकर ' गाजरों में गधा ' ला खड़ा कर दिया '' करमी ने हाथ बट्टठल में धोकर चुन्नी के लड़ से पोंछ लिए।
करमी की माँ सुरजीत को इन बहन- भाइयों के गहरे प्यार का पता था. आज ही नहीं, जब भी भागू आता , करमी सब काम धंधा छोड़ कर उसके साथ जा बैठती । फिर पता नहीं दोनों कौन सी कथाएँ छेड़ बैठते, न वो कभी खत्म होतीं न उनका कोई अंत दिखता। बातें करते- करते कभी वे बारिश में धुले फूल से खिल जाते तो कभी संजीदा हो जाते इसलिए वे और बहस करने की बजाय नलके पर हाथ धो कमरे में जा घुसी।
'' बैठ जा भागू क्यों भागने जैसी मुद्रा में खड़े हो. '' करमी ने चारपाई की ओर इशारा किया।
'' चौड़ी होकर हमें तो रोज़ बुला लेती हो , जिस दिन व्याही गई , हमारे घर एक दिन भी नहीं घुसना तूने '' भगवान चारपाई पर बैठी लड़की की बगल में बैठ गया.
'' तुझे भी देख लूँगी बड़े नाडू खाँ को , जब आ गई न कोई झबरिटी सी फिर पूछूंगी , उसके बिना तो खांसेगा भी नहीं। पीछे - पीछे दुम हिलाता घूमता फिरेगा सारा दिन । '' करमी ने भगवान की बात का वकीलों की तरह तुरंत जवाब दिया।
'' मैं तो आगे लगा कर रखूंगा आगे …. तीर की तरह सीधी करकर रखूंगा '' भगवान ने चारपाई पर बैठे ही सीना उभार कर ऊँगली हवा में तीर की तरह लहराई। साथ बैठी लड़की मुंह पर हाथ रख हँस पड़ी.
'' चल आने दे वक़्त , देख लूँगी तुझे भी. '' करमी भगवान के कंधे पर हाथ मारती उसके बराबर बैठ गई. तीनों के भार से चारपाई की घुन खाई बाही चर … र …. र ' करती टूट गई. करमी और उसकी सहेली बीच में बैठे भगवान के ऊपर जा गिरीं। लड़की का ऊपरी हिस्सा भगवान की चौड़ी छाती को छू गया. यह छुअन दोनों जवान शरीरों में इक कंपकपी सी फैला गई. लड़की बिजली के झटके सी खड़ी हो गई. अनजानी शर्म से उसका चेहरा सुर्ख फूल सा लाल हो गया.
'' अरी चढा दिया चाँद … ? '' बाही टूटने की आवाज़ सुनकर सुरजीत गोली की गति से बाहर आई. भगवान और लड़की ' चाँद चढा देने ' की बात पर एक - दुसरे की ओर देख मुस्कुरा पड़े.
'' इसने तोड़ी बाजे ने '' करमी ने शरारत से भगवान की ओर इशारा किया।
''लो देख लो लोगो , वैसे ही भले आदमियों पर इतने बड़े -बड़े कलंक ! हम तो आराम से बैठे थे ताई , यही बाद में आकर बैठी थी '' फिर भगवान ने धीमे सुर में बोलते हुए करमी की ओर मुक्का ताना , '' खीर में कोकडू।''
किरना आ चलें। '' बाहर साइकिल पर खड़े लगभग चालीस साल के आदमी ने लड़की को आवाज़ मारी।
'' अच्छा करमी। '' किरना लिफाफा लेकर चल पड़ी.
'' अरी बैठ जाती और थोड़ा घर में क्या सूत कातना है. '' करमी अभी उसे जाने नहीं देना चाहती थी पर कुछ बोले बिना ही किरना उस आदमी के साथ बैठकर चली गई.
'' भागू आ जा चूल्हे के पास ही बैठ जा , मैं रोटी उतारती हूँ , तुम रोटी खा लेना और कुछ सुनाना भी नई ताज़ी। '' करमी भगवान की बाँह पकड़ के जोर जबरदस्ती चौके के पास ले गई और पास पडा पीढ़ा अपने गोर पाँव से सरका कर उसके आगे कर दिया। भगवान पीढ़े पर बैठ गया। करमी ओटे पर पड़ी परात उठाकर अन्दर आटा लेने चली गई. ।
किरना चली गई थी पर भगवान की आँखों के सामने वह खूबसूरत चेहरा अभी तक घूम रहा था. .' किरना !' यह शब्द उसके होंठों से अपने आप निकल गया और उसने किसी शर्मीली लड़की की तरह मुस्कुरा कर निगाह नीची कर ली. वह इस सुंदर सूरत के बारे जानने के लिए अपने अन्दर ही अन्दर धागे की तरह उलझा पड़ा था जिसका उसे अभी तक कोई सिरा नहीं मिला था।
'' यह लड़की कौन थी ?'' उसने करमी को आटा लेकर आते देख पूछा।
''कौन ? यह किरना …. ?''
'' हाँ ''
'' यह तो भंगुओं की लड़की है , जो तल्लोवाल गाँव जाते वक़्त रस्ते में घर आता है.'' कहते हुए वह आटा गूंधने लगी।
'' अच्छा ! अच्छा ! भगवान ने पूरी समझ से सर हिलाया। उसने इस लड़की के हुस्न के चर्चे पिंड के हर गली मोड़ पर सुने थे पर उसने उसे देखा आज था पहली बार . पिंड का हर लड़का इस ताजी महक को अपना बनाने के लिए ललायित था। उसका ताजे खिले गुलाब सा गुलाबी चेहरा , हिरनी सीचमकती आँखें , पीठ पर काले नाग सी लहराती लम्बी चोटी हर एक देखने वाले को डस लेती। उसके सुर्ख होंठों से हर जवान दिल प्यार के बोल सुनने को बेताब रहता . जब वह मुर्गाबी की तरह चलती हुई लड़कों की मंडली के पास गुजरती तो लड़के दिल पर हाथ रखकर ठंडी आहें भरते।
''भागू ! ओये भागू !! '' करमी ने पहले धीमे से फिर जोर से आवाज़ मारकर कहा , कौन सी परियों से देश में गुम गए … ?''
'' हूँ … ! नहीं … ! '' भगवान इस तरह तबका , जैसे किसी ने झकझोर कर उठा दिया हो, '' यह पहले तो कभी नहीं देखी , कहाँ रहती थी … ?''
'' हाँ , अपनी बुआ के पास रहती थी , बीस - पच्चीस दिन हुए आई को । '' करमी ने रोटी बेल कर तवे पर डाल दी ।
'' यह इसका क्या लगता है जो इसे लेकर गया … ? ''
'' तुम नहीं जानते इसको ? '' करमी ने हैरानी भरी सवाली नज़रें उसके चेहरे पर गड़ा दीं ।
'' जानता तो हूँ पर यह नहीं जानता कि यह इसका लगता क्या है । '' भगवान ऊँगली से धरती पर लकीरें खींचने लगा ।
'' यह इसका बाप है बाजे । ख़ास बन्दों का तो पता रखा कर …. । '' करमी की खोजी आँखें भगवान के दिल में किरना प्रति पल रहे प्यार को खुरच - खुरच कर देख रहीं थीं ।
'' करमी बहन एक बात बोलूं , मानेगी ? '' कहते हुए भगवान ने नज़र नीची कर ली । उसका दिल जोर -जोर से धडका ।
'' करमी बहन ! '' करमी ने भगवान का मुंह चिढ़ा दिया , '' जरुर कोई मतलब होगा जो करमी बहन, करमी बहन कर रहे हो … ? '' चाहे करमी को पता था कि वह क्या कहना चाहता है पर वह उसके मुंह से सुन स्वाद लेना चाहती थी ।
' हाँ बता मानूँगी । '' करमी रोटी उतार बैठी थी ।
' करमी!'' उसने खंगुरा मारकर गला तर किया और फिर धड़कते दिल को सँभालते हुए हिम्मत कर बोला , '' यह …क…किरना …. !'' भगवान के आधे शब्द मुंह में ही दब कर रह गए। उसका दिल फिर फड़क -फड़क बजने लगा ।
'' हाँ …. हाँ… मुझे पता है, मैं भी कहूँ आज मुझ से इतने मीठे -प्यारे क्यों हुए जाते हो। मुझे सब पता चल गया तुम दोनों की चोरी का । वह भी कैसे तुम्हारी ओर आँखें फाड़ - फाड़ कर देख रही थी । ''
'' ही … ही …. !'' भगवान ने हँसते हुए निगाह नीची कर ली।
'' अच्छा यूँ करना बाजे , अपना थोबड़ा अच्छी तरह धोकर आ जाना मैं उसे बुला लाऊँगी। '' करमी उसे छेड़कर भागने को तैयार हो गई ।
भगवान ने झपट्टा मार कर करमी की चोटी जा पकड़ी , '' अब बोल क्या बोल रही थी । ''
आ … ई … ई बेबे … ए … . '' करमी ने लम्बी चीख के साथ बेबे को पुकारा ।
'' अरी क्या हो गया तुम लोगों को , क्या झाटम-झट्टे हुए पड़े हो। '' सुरजीत बोलती हुई अन्दर से बाहर आई ।
'' बेबे ये भागू सा नहीं हटता । '' करमी ने नकली गुस्सा दिखलाया ।
'' मुझ से नहीं तुम लोगों से निपटा जाता । तुम लोगों का तो रोज का यही काम है ।'' कहती हुई वह फिर अन्दर चली गई ।
'' छोड़ मेरी चोटी।'' करमी ने भगवान के डौले पे धीमे से मुक्की जमाई।
'' पहले मेरा काम । ''
'' जा बाजे कर दूंगी वह भी । ''
'' अच्छा चल ले , तू भी क्या याद रखेगी । '' भगवान ने करमी की चोटी छोड़ दी , अच्छा करमी मैं जाता हूँ । '' भगवान ने समय का ख्याल करते हुए करमी से इजाज़त मांगी ।
'' भागू बस आधा घंटा और बैठ जा । ''
ना भाई जाकर पशुओं की भी देख -भाल करनी है । अभी दूध भी दोहना है । '' भगवान ने अपना काले रंग का अध पुराना साइकिल उठा लिया ।
'' अच्छा फिर कल जरुर आना । '' करमी ने ' जाते चोर की पगड़ी ही सही ' का दाव खेला ।
'' अच्छा मेरी माँ ।'' भगवान मुस्कुराते हुए साइकिल की काठी पर बैठ गया ।
' ओ भागू और वोटें … !'' करमी ने इशारे के साथ ऊँगली हवा में हिला दी और अगली बात वह समझ गया जानकर बीच में ही छोड़ दी ।
भगवान ने भी आगे से सहमती में हाथ खड़ा कर दिया । वह किसी नई ख़ुशी में आसमां में उड़ान लगा रहा था । उसके होंठों पर थिरकती मुस्कान किसी बेअंत ख़ुशी का इज़हार कर रही थी । गर्मियों का खुश्क वातावरण ख़ुशी में हँसता दिख रहा था। पाहे में बिछी रेत ने उसे पसीना -पसीना कर दिया था पर उसका ख़ुशी भरा मन अब इसकी परवाह कब करता , वह तो किसी अद्भुत शक्ति के बस में कैद साइकिल को सरपट दौडाई जा रहा था। शाम के झुरमुटे में भगवान के पैर पैडल पर मशीन की तरह चल रहे थे।
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२ .

अच्छी बरसात होने के कारण खेतों में धान की बिजाई ने जोर पकड़ लिया था । जमीनों में चलती गर्म लौ की जगह अब ठंडी हवा ने ले ली थी । चारो ओर खड़े ठंडे पानी से बहती ठंडी हवा , शहरों में चलते कूलरों को मात देती । दोपहर होते ही खेतों में काम करते लोग चाय पीने के बहाने दम लेने के लिए कोठियों के पास लगे दरख्तों के नीचे आ बैठते । काम से थके होने के कारण ठंडी छाया तले नींद की झपकी आती पर काम का लालच उन्हें दो घड़ी बैठने न देता । दिन रात खेतों में चलते ट्रैक्टरों की गूंज खेतों की सीमा से गुजरती पिंड तक सुनाई देती। इंजन की फट -फट खेतों में शोर डाले रहती ।
मिट्ठू और बलौर सुबह अँधेरे मुंह उठकर वट्ट बनाने के काम में लगे हुए थे । वे काम जल्द निपटाकर पिंड जाने को उतावले थे क्योंकि पिंड में वोटों के दिन नजदीक होने के कारण शराब के भंडारे खुले चल रहे थे। जीभ के सवादी शाम होते ही काम छोड़ पिंड की ओर भाग खड़े होते ।
पिंड में शुरू से ही दो पार्टियों की टक्कर चली आ रही थी। एक पार्टी का मोहरी मुख्तयार कांग्रस पार्टी के साथ संबंध रखता था। मुख्तयार एक आँख से काना होने के कारण लोगों ने मुख्तयार नाम के संग 'काना' शब्द और जोड़ दिया था । चाहे वह अपने नुक्स को छिपाने की खातिर काली एनकें लगाकर रखता पर आम लोग उसे आगे पीछे ' मुख्तयार काना ' कहकर ही पुकारते । आकालियों की ओर से मोहरी गुरदीप नौजवान लडका था ।
चाहे वह उम्र में मुखत्यार से आधा था पर पढ़ा - लिखा होने के कारण उसका प्रभाव पिंड में ज्यादा था । अब यह दूसरी बार वोटों में अपना हाथ आजमा रहा था । पिछली वोटों के समय वह अपने ही विरोधी , साबका सरपंच मुख्तयार को चार वोटों के फर्क से पीठ के भार गिरा चुका था । मुखत्यार भी अपनी पुरानी हार भूल कर मैदान में दोबारा आ खड़ा हुआ था । इस समय दोनों की बराबर की टक्कर थी.। जिसके नतीजे पर चलते शाम को पिंड के कुत्ते भी शराबी हो जाते । शराब पानी की तरह बहायी जाती । पिंड में दोनों पार्टियों ने कई -कई अड्डे खोल रखे थे । पिंड के चोटि के शराबियों कबाबियों को इन अड्डों के मोहरी बना दिया गया था । दोनों पार्टियों ने एक -एक अपना अड्डा नए पिंड में भी बना रखा था क्योंकि नया पिंड सरकारी तौर पर कोई अलग पिंड नहीं था , बल्कि सांतपुर का ही एक अलग अंग था । दोनों की पंचायत भी एक ही होती ।
''क्यों मिटठू दम न मार लें थोड़ा सा …. ?'' बलौर ने सर ऊपर आये सूरज की ओर देखकर माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।
'' यार बस ये एक वट्ट रह गई है इसे भी पूरी कर लेते हैं। '' मिट्ठू ने कुदाल पानी में रख दिया और अपने दोनों हाथ पीठ पीछे रख खडा- खड़ा ही पीछे की ओर झुक गया , जिस से कमर के दो पटाखे पड़ गए और दुखती कमर दोबारा काम करने की स्थिति में आ गई ।
'' अच्छा फिर जैसे तेरी मर्जी '' बलौर ने मिटटी का चेपा उखाड़कर वट्ट पर रख दिया और उलटा कुदाल मार पोंछ दिया।। कुदाल ठोकने से गारे के छींटे खड़े पानी में जा गिरे, जिससे गंदे पानी में चक्कर से बन गए। पिंड में चल रही खुली शराब के लालच ने इनके हाथों में तेजी ला दी थी । वे काम को जल्दी खत्म कर पिंड जाने को उतावले थे ।
दोनों बाकी की वट्ट पोंछ कर कोठे के पास आ गए । मोटर की घू … ऊ … ऊ … की आवाज़ के साथ साफ्ट के पट्टे चौरासी के चक्करों की तरह चक्कर लगा रहे थे । टंकी , पाइप में से गिरते पानी को अपने बड़े पेट में समा लेती और फिर उसे एक सीध देकर खाल में गिरा देती । खाल के बीच का चाँदी रंगा पानी सांप की तरह बल खाता दूर तक चलता रहता और आगे जाकर प्यासी धरती की प्यास बुझाने के लिए उसके सीने में समा जाता। दोनों ने टंकी में से खाल में गिर रहे पानी के नीचे अपने पैर धो लिए और दो -दो पानी के छींटे गर्मी से धुआंखी अपनी आँखों पर भी मार लिए ।
'' यार, भगवान अभी तक अगले खेतों से ही वापस नहीं आया । '' बलौर गमछे से अपना मुंह पोंछता चारपाई पर बैठ गया ।
''आता ही होगा यहीं कहीं '' मिट्ठू ने अपने माथे के ऊपर हाथ की छतरी सी बना कर लम्बी निगाह मारी।। भगवान आठ नौ गज की दूरी पर चला आ रहा था , '' वो …ओ …ओ …आ रहा है । ''
'' कहाँ ओये कहाँ …. ?'' बलौर बंदर की तरह टपुसी मार कर चारपाई पर खड़ा हो गया ।
'' वो ….ओ … ओ … देख टाहली (एक तरह का पेड़ ) के पास से '' उसने बलौर का कंधे से कुर्ता पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए दूर बड़ी टाहली की ओर इशारा किया ।
'' आये हाय ! मेरी गुगली - मुगली अब चक्कू बार में से रुड़ी । '' बलौर ने अपनी लम्बी बाहें मिट्ठू के ठिगने शरीर में कस दीं। '' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग- लिंग . '' वह एक लात ऊपर कर भांगड़ा डालने लग पड़ा ।
इन दोनों का आपस में बहुत प्यार था । दोनों ही कई सालों से भगवान के घरवालों के साथ पक्के मजदूरों की तरह काम करते आ रहे थे । बलौर गोरे रंग का पतले -दुबले शरीर का झिउर जाति का लड़का था । जिसकी शादी को अभी थोड़ा ही वक़्त हुआ था । उसकी घरवाली भी खूबसूरती के पक्ष में किसी से कम नहीं थी । दोनों की जोड़ी 'सोने की अंगूठी में हीरे का नग' थी । मिट्ठू चार बच्चों का बाप , नाटे कद और गठे शरीर का पक्की उम्र का आदमी था । सीरी ( जमीदार से फसल का कुछ हिसा लेने वाला ) होने की हैसियत में फसल अच्छी हो जाती । सारे परिवार की आई चलाई-चलती रहती । अब मिट्ठू ने अपने भाई से अलग होकर नए पिंड में एक बड़ा सा मकान डाल लिया था । ये दोनों मजदूर भगवान के परिवार में पूरी तरह घुल - मिल गए थे । जब भी घर का या खेती- बारी का कोई काम करना होता तो इन दोनों की सलाह जरुर ली जाती ।
'' आजा … आजा … , बहुत समय हो गया तुम्हें उडीकते । '' बलौर ने पास आये भगवान को ज्यादा समय लगा आने का अहसास करवाते हुए कहा ।
'' ओये बहुत मिल जाएगी तुझे , भूखे बैल की तरह रंभाते जा रहे हो '' वह टंकी पर डिब्बे से ठंडा पानी पीने लगा ।
'' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग- लिंग .'' बलौर ने ' बहुत मिल जाएगी ' सुन पहले की तरह नाचना शुरू कर दिया ।
'' देख - देख साला कैसे लंगड़ी हिजड़ी की तरह नाच रहा है । '' मिट्ठू भी कहने से रुक न सका ।
'' चलो मिट्ठू पहले हरे चारे से दो हाथ कर लें , कहीं बारिश न आ जाये । ''
भगवान ने ऊपर नज़र मारी , आग उगलते सूरज को एक बड़ी बदली ने अपने आलिंगन में ले लिया था ।
' चलो - चलो बलौर कोठे में से दात्री (हंसुआ ) उठा बाहर आ गया । स्कूटर स्टार्ट करने की तरह उसने एक लात ऊपर उठा कर धरती पर मारी ' डर… र …र … करता दात्री के स्टेयरिंग को पकडे सब से पहले मकई के चारे में जा घुसा । मिट्ठू और भागू उसकी बच्चों जैसी हरकतों के ऊपर हँस पड़े ।
थोड़े समय में ही तीनों ने हरा चारा काट कर ठेले पर लाद लिया ।
बलौर तू नाले की पटरी पर से रेहड़ा (ठेला) लेकर आ हम पगडण्डी से होकर आते हैं । ''
भगवान ने रेहड़ा बलौर को पकड़ा दिया और खुद दोनों ने पिंड को जाती सीधी पगडण्डी पकड़ ली ।
'' भागू ! और कोई जीते या न जीते तेरा बापू तो मैंम्बरी ले ही जाएगा । '' मिट्ठू ने सर पर आई वोटों की बात छेड़ ली ।
'' असल तो भाई वोटों वाले दिन ही पता चलेगा कौन बाजी मारता है । '' चाहे भगवान को अपने पिता की अच्छी स्थिति के बारे में पता था पर उसने भविष्यवाणी करनी अच्छी न समझी ।
'' हाँ भई असल तो वोटों वाले दिन ही पता चलेगा । '' मिट्ठू ने अपने मालिक से सहमती जताई । भई तू माने या न माने , गुरदीप का तो मुझे सरपंची में काम डावां- डोल ही लगता है । '' साथ ही उसने गुरदीप की कमजोर स्थिति का ज़िक्र किया ।
'' तभी तो मेरे बापू को मैंम्बरी में खड़ा किया है , कि अगर हार भी गया तो अपनी पार्टी का एक बंदा तो पंचायत में रह जाएगा । '' भगवान ने अपने पिता को मैंम्बरी में खड़ा करने का मकसद बता दिया ।
''अच्छा … !''मिट्ठू इस तरह हैरान हो गया , जैसे बहुत बड़े भेद का जानकार हो गया हो , '' तो ही किया मेरे चाचे चनण को भी खड़ा !''
'' यार मिट्ठुआ मुझे तो गुरदीप ने बुलाया था , काम - धंधे में याद ही न रहा , कहेगा पतंदर आया ही नहीं । '' भगवान को गुरदीप का भेजा बुलावा याद आ गया ।
'' हाँ भई जब मुँह मुलाहजा है तो जाना तो पड़ेगा ही ।'' मिट्ठू पसीने से तर छाती के बटन खोल फूंक मार -मार ठंडा करने लगा ।
दोनों बाते करते हुए पिंड पहुँच गए । सूरज बदली का घूँघट हटा दोबारा चमक उठा । उसकी आग उगलती किरणें अब काफी मद्धम पड़ गईं थीं । सर से ऊपर उड़ते जाते कौओं की कतारों ने दक्षिण की ओर अपने घोंसलों की ओर उडारियाँ भर ली थीं । घर आकर भगवान ने दोनों को एक -एक लाल परी पकड़ा दी ।
'' बलौर मिट्ठू का तो मुझे पता है , अगर तूने घर जाकर कोई करतूत की तो देखते रहना ।'' भगवान ने बलौर को बोतल पकड़ाते हुए आगाह किया ।
'' मैंने कहा भाई परवाह मत कर 'फट्टे चक दूँ !' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग - लिंग …। ' बलौर ने बोतल पकड़कर कमर में खोंस ली और दोनों हाथों की एक -एक ऊँगली को हवा में नचाया ।
'' तुझे 'फट्टे चकने ' को नहीं कहा , अगर पी कर कुछ इधर - उधर किया तो देख लेना फिर ।'' भगवान नहीं चाहता था कि बलौर घर जाकर लड़ाई करे और उस पर पिलाने का दोष लगे ।
'' नहीं करता भाई मान ले । '' बलौर बोतल लेकर भाग खड़ा हुआ ।
'' ओ भागू तुझे गुरदीप सरपंच ने बुलाया था । '' बाहर से किसी ने आवाज़ दी ।
'' चल - चल मैं उधर ही आ रहा था ।'' भगवान उस व्यक्ति के साथ चल पड़ा ।
सरपंच के खुले आँगन में शराब के प्रेमी एकत्रित होने लगे थे । शराब के पियक्कड़ मक्खियों की तरह हमेशा उसके आगे - पीछे रहते । उन्होंने वोटों तक घर का ख्याल बिलकुल ही त्याग दिया था । भले ही पहले भी वे घर का ख्याल बहुत नहीं किया करते थे पर अब तो अपने आप को सरपंच के मेहमान ही समझने लगे थे । अच्छी तरह खा - पी लेते और फिर अपना - अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देते . टेक ने शराब में धुत होकर विरोधी पार्टी को गन्दी गालियों की झड़ी लगा दी और फिर टल्ली 'राम प्यारी ' को पी टल्ली हो जाता और टूटी - फूटी अंग्रेजी पर जुबान चलाता , जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता , जो भी शब्द आगे आता वही बोल देता । अपनी इस विलक्षण बोली को वह खुद भी नहीं समझ पाता । शराबी हुए टल्ली का विचार था, ' इंगलिश बोलनी है चाहे जैसे मर्जी बोली जाये । '''
सरपंच और कानून के रखवाले पुलसिये अन्दर खुले कमरों में सोफों पर बैठे शराब पी रहे थे । घर की निकाली शराब सबके बीच मुजरे वाली की तरह घूम रही थी । कमरे के अन्दर घुसते ही शराब और मीट का तेज भभका भगवान के नाक में आ घुसा । वह नाक को मसलता अन्दर सोफे के पास जा खड़ा हुआ ।
'' तुम यार अच्छे आये । '' सरपंच ने नशे में लाल हुई आँखें भगवान के चेहरे पर गड़ा दीं।
'' मैं तुम्हारी ओर ही आने वाला था , तभी यह चला आया । '' भगवान ने उसे बुलाकर लाये व्यक्ति की ओर इशारा किया ।
'' अभी सारी वोट पर्चियां बनाकर बांटनी बाकी हैं , भाई बनकर जल्दी बना दे ।'' सरपंच ने माँस का टुकडा उठा दाढ़ के नीचे दबा लिया ।
'' बस तू बनी समझ '' भगवान एक तरफ बैठे राजे के साथ वोट की पर्चियां बनाने लग पड़ा ।
'' सरपंच तू चिंता मत कर सब हो जाएगा । '' थानेदार ने घर की निकाली शराब का गिलास होंठों से लगा ट्राली जैसे बड़े पेट में उतार लिया।
'' ये तो खैर शेर बच्चे संभाल लेंगे '' सरपंच क्लब के लड़कों पर मान कर गया ।
'' साहब जी '' पास खड़े सिपाही की खत्म होती बोतलें देख लारें गिरने लगीं ।
'' लो … लो … , अपने पास कौन सी कमी है । '' सरपंच ने बोतल उठा सिपाही को पकड़ा दी ।
''' ही … ही … ही … कमी किस बात की जी । '' सिपाही दांत निकालता हुआ बोतल की बची -खुची सारी उलट गया । मेज पर खाली बोतल और गिलास रखकर अपनी खुश्क मूंछों के सख्त बालों पर हाथ फेर लिया ।
'' टल्ली … ओये टल्ली । '' सरपंच खाली बोतल देख कर अमरीकी बैल की तरह रंभाने लगा ।
'' क्या है स … सरपंच सा … ह … ब … । '' टल्ली लड़खड़ाता हुआ बार में आ खड़ा हुआ ।
'' ऐसे कर ढोली से एक और भर कर ले आ । '' सरपंच ने खाली बोतल टल्ली को पकड़ा दी ।
'' न … न … ओ प्रोब्लम , डी …दि …. दिस … इज … प … प्लेन ऑफ़ दा ग्राउंड … इन …. द … मोर्निंग … व … अ … क … । '' टल्ली की टूटी - फूटी अंग्रेजी सुन सारे हँस पड़े ।
'' तू ले आ यार अगर लानी है तो । '' थानेदार अपना ठंडा सा रोब डाल गया । उसके कन्धों पर लगे स्टार टल्ली को घूर - घूर कर देख रहे थे ।
'' नो … दिया … दियर … इ … इज … वै … वैरी …। '' टल्ली बोलता हुआ कमरे से बाहर चला गया ।
'' सरपंच बन्दे बड़े कमाल रखे हैं । '' थानेदार ने हड्डी का टुकड़ा चूस कर ट्रे में रख दिया और मसाले से लिबड़ी हुई ऊँगलियाँ दरवाजे जैसे मुंह में डालकर चाटने लगा ।
'' बन्दे तो जी सभी काम वाले हैं ।'' सरपंच ने टेढ़ी आँख से लड़कों की और देखा। अपनी तारीफ होती देख कर लड़कों के हाथों ने और तेजी पकड़ ली ।
'' सरपंच बदाणे का प्रोग्राम कहता था करने को ।'' थानेदार के बदाणे बारे ज़िक्र करने से वैष्णू लड़कों के कान खड़े हो गए ।
'' हाँ … हाँ … आज रात को तैयार करेंगे , तड़के बाँट देंगे । '' सरपंच तसल्ली दे गया ।
'' दिस इज वै … वैरी … म … मच !'' टल्ली ने रुड़ी मार्का मेज पर ला रखी । थानेदार के साथ आये दोनों सिपाही बोतल की तरफ भूखी नज़रों से देखने लगे ।
''लो थानेदार साहब लगाओ फिर । '' सरपंच ने बोतल और गिलास थानेदार की ओर सरका दी ।
'' वैसे तो सरपंच पहले तुम्हारा हक़ था चक्की के फेर की तरह । '' थानेदार ने चक्की के ह्थड़े की तरह ऊंगली घुमाई ।
जब आपने कह ही दिया तो … । '' फिर वो होंठो से लगे गिलास को एक ही डीक में पी गया ।
'' इसकी माँ की , कौन मुख्त्यार - सुख्त्यार । '' बाहर टेक की पी हुई रंग दिखाने लग पड़ी थी ।
'' चढ़ गई टेक की तो सुई लाल पर । '' सरपंच अपने विरोधी को दी हुई गाली सुनकर हँस पड़ा ।
'' अच्छा सरपंच अब हम चलते हैं । '' लड़के काम से निवृत हो चुके थे ।
'' अच्छा फिर सवेरे जरा जल्दी आ जाना , बदाना( मिठाई ) हम लोगों ने ही बांटना है । '' सरपंच ने इज़ाज़त देने के साथ ही यह हुक्म भी दे दिया ।
'' जब कहेगा , तभी ।'' लड़के सरपंच को तसल्ली दे गए .
'' मुझे टक्कर आकर,चाहता है सरपंची , सर … सरपंची तो ह … हमने लेनी है… सी ….सीने के जोर से . इसकी माँ की . '' टेक का इंजन गर्मी पकड़ गया था .
अन्धेरा होने तक सरपंच का आँगन शराब के पियक्कड़ों से शादी के घर जैसा भर गया था । सारे आँगन में चींटियों की तरह कुर्बल - कुर्बल होने लग पड़ी थी . कुछ मुफ्त के पियक्कड़ पी -पी कर बेसुरत हुए पड़े थे । सारे लड़के अपने -अपने घरों को चल पड़े . भगवान अपने घर जाने के लिए बाहर की फिरनी पड़ गया । आसमान में मद्धम -मद्धम से तारे निकल आये थे। चाँदनी मिले अँधेरे से गलियाँ भरी हुई थीं । लोग कोठों पर पड़ी चारपाइयों पर ऊंघ रहे थे । किसी-किसी कोठे से दबे बोल में घुसर-मुसर सुनाई दे रही थी । टेक की गालियाँ अभी भी चांदनी रात में दूर तक सुनाई दे रही थी ।
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Re: भागू (उपन्यास )

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3

गुरदीप सरपंच पिछले दो दिनों के बीच ही मुख्त्यार के ऊपर पानी की तरह फिर गया । शराब की ओर हाथ और खुला कर दिया । बदाना पकाकर कई गाँव में बाँट दिया। कई औरतें बदाने की लालच में मुख्यतार से टूट कर गुरदीप से आ जुडी । वे एक दुसरे के कान में कहतीं , '' लो री जैसे मर्दों को इतनी-इतनी मंहगी दारु पिलाते हैं औरतों के लिए भी तो कुछ होना चाहिए न । क्या हमारी वोटें नहीं होतीं … ? ''
'' ले बहन , ये तो गुरदीप ने बढ़िया किया । '' दूसरी पहली की बात को पकड़ते हुए बोली ।
दोनों पार्टियों के लोग वोटें मांगने के लिए आधी - आधी रात तक चप्पलें घिसाते गलियों में घूमते रहते । आखिर वोटों का दिन भी आ ही गया । जो स्थिति वोटों से पांच सात दिन पहले थी , वह अब पिछले दो दिनों में हवा के झोंखे की तरह इक तरफ से आकर दूसरी तरफ बढ़ गई थी । गुरदीप जो कि पहले डावाँडोल दखाई दे रहा था अब मुख्त्यार के बराबर आ खड़ा हुआ । क्लब के लड़कों ने टैंट गाड़ कर काम मुकम्मल कर लिया ।
'' ये लो भागू वोटर सूचियाँ । '' सरपंच ने स्कूटर की डिक्की में से वोटर सूचियाँ निकाल कर पकड़ा दीं ।
''देख सरपंच टैंट ठीक है … ? '' क्लब के लड़के अपने किये काम को सरपंच की अच्छी निगाह में चढाना चाहते थे ।
'' हाँ … हाँ … बहुत बढ़िया , अगर किसी और चीज की जरुरत हो तो बता देना । '' सरपंच किसी भी पक्ष से किसी चीज की कमी नहीं रहने देना चाहता था .
'' चाय जरुर भेज दिया करना करड़ी सी । '' राजा अपनी चाय पीने की आदत सरपंच के आगे खोल गया ।
'' वह मैंने कहा है टल्ली को , जब भी जरुरत हो कह कर मंगवा लेना । '' सरपंच सारे काम अच्छे अगुवाई की तरह संभाल रहा था .
'' तेरी जान नूं की लड्डूआँ दा तोड़ा सालिये … '' गुनगुनाते हुई टल्ली ने चाय की केतली तख़्त पोश पर रख दी । जैसे ' माँ जन्मी नहीं पुत्र कोठे पे ' कहावत की तरह टल्ली कहने से पहले ही चाय बना लाया था ।
ओये वाह… ओये टल्ली सिंह '' राजे ने चाय की केतली देखकर टल्ली की पीठ थपथपाई ।
टल्ली ने चाय डाल सबको एक -एक गिलास पकड़ा दिया । सभी चाय पी कर अपने - अपने काम में जुट गए । टल्ली खाली केतली और चाय के जूठे गिलास लेकर चला गया । धीरे - धीरे वोटें डालने का काम जोर पकड़ने लगा । पोलिंग पर तिल धरने को जगह नहीं थी । वोटें डालने वालों की जैसे बाढ़ सी आ गई थी । हरेक पार्टी के आदमी अपने - अपने उम्मीदवारों के निशान लेकर सबके सामने कर देते । क्लब के कुछ लड़के गुरदीप और चंदन के चुनाव निशान उठाये हर इक को दिखा रहे थे और कुछ पोलिंग बूथ पर वोट पर्चियां निकालने में उलझे हुए थे।

'' भागु ! वह देख करमी और वह लड़की । '' राजे ने पर्ची निकालते भागु के कान में आकर कहा।

'' कहाँ … ?'' भगवान का चेहरा फूल सा खिल गया । वह कुर्सी से बंदर की तरह टपुसी मार खड़ा हो गया ।

'' वह … देख पीपल के नीचे । '' राजे ने बड़े पीपल की ओर इशारा किया । दोनों गहरे रंगों के सूटों में सजी पीपल के नीचे खड़ी आसमान से उतरी परियाँ सी दिख रही थीं । भगवान देख ख़ुशी में उछल पड़ा । भगवान क्या जो भी इनकी ओर देखता , सांप की तरह कील जाता । कितने ही लड़कों की नज़रें इन दोनों पर टिकी हुई थीं ।

'' क्यों करमी कैसे आना हुआ … ?'' भगवान के पास आते ही आस -पास के लड़के पीछे सरक गए थे ।

'' बस ऐसे ही वीर जी के दर्शनों को । ''

'' वोट डाल आये या रहती हैं अभी … ? '' भागू ने साथ खड़ी किरना को भी साथ जोड़ लिया ।
'' अभी कहाँ , गुरजीत वीर जी वोट पर्चियां ढूंढ कर ला रहे हैं , फिर जाते हैं डालने । भीड़ में जल्दी मिलती भी नहीं । '' करमी पोलिंग के पास जुडी भीड़ को देख परेशान थी ।

'' वोटें किसे डालोगी … ? '' भागु बातों के बहाने से किरना के खिले चेहरे को जी भर भर देख लेना चाहता था ।

'' मैं तो वीर जी सरपंची की गुरदीप को और मैम्बरी की चाचे चन्नन को डालूंगी , बाकी तू इसे पूछ ले । '' करमी ने पास खड़ी किरना की ओर इशारा किया । वह दोनों को इक - दूसरे से खोल देना चाहती थी ।

'' हमें क्या पता भाई किसी के दिल का , न हमारे कहने से किसी ने डालनी है ।'' भगवान ने किरना के शर्बत जैसे मीठे बोल सुनने के लिए चोट की ।
'' भागु जी , अभी तो आपके साथ ही चल रहे हैं , जिधर मर्जी डलवा लो . '' किरना ने कहते हुए नज़रे नीची कर लीं । जिन गुलाबी होंठों से भागु दो शब्द सुनने को बरसात को तरसते पपीहे की तरह तड़प रहा था , आज उन्हीं होंठों से 'भागु जी ' और ' आपके साथ ' दो शब्द सुन कर भगवान ताजा खिले गुलाब सा खिल गया ।
'' लो अपनी वोट पर्चियाँ । '' गुरजीत ने दोनों को -एक एक वोट पर्ची पकड़ा दी ।
पर्चियां लेकर दोनों वोट डालने चली गईं । भगवान और गुरजीत दोबारा पर्चियां बाँटने के काम में जुट गए । शाम होने तक काम बहुत कम रह गया था। अब सिर्फ वे वोटें ही भुगतान वाली रह गईं थीं जो पिंड के बाशिंदे या तो बाहर रहते थे या फिर किसी रिश्तेदारी में गए हुए थे । दोनों पार्टियों ने अपनी - अपनी गाड़ियाँ हाँकी और बाहर रहते वोटर ढोने शुरू कर दिए । शाम के पांच बजे तक वोटें जोर - शोर से डाली जाती रहीं । दोनों पार्टियों ने अपनी ओर से कोई कसर न छोड़ी। वोटों की गिनती के समय उम्मीदवारों के सिवा बाकी सारे बाहर निकाल दिए गए ताकि कोई हेरा-फेरी न कर सके क्योंकि पिछली वोटों के समय दूसरी पार्टी बाद में जाली वोटें भुगता गई थी पर गुरदीप फिर भी चार वोटों के फर्क से जीत गया था । वोटों की गिनती शुरू हो गई । पहले दो बूथों में से मुखत्यार की बीस वोटें ज्यादा निकल आईं। वह ख़ुशी में दूना - चौना हो गया।
'' अब तो करतार भाई ले लिया काम । '' मुखत्यार ने सफेद मुछों पर हाथ फेरा ।
'' असल तो अगले बूथ में ही पता चलेगा . '' करतार का भीतरी मन छलक आया ।
गुरदीप के मुंह का रंग उड़ गया कि इतनी मेहनत करने के बावजूद मुखत्यार क्यों आगे जा रहा है ।
बाहर खड़े लोगों के दिल की धडकन पल -पल बढती जा रही थी । लोग कुम्भ के मेले की तरह नतीजे की प्रतीक्षा कर रहे थे । दोनों पार्टियों के लोग अपने -अपने जीते सरपंच के गले में हार डालने के लिए उतावले थे । पर यह किसी को नहीं पता था कि किसके हार किसकी गर्दन तक पहुंचेंगे । सात बजे तक कहीं जाकर वोटों की गिनती खत्म हुई ।
'' गुरदीप की हो गई बल्ले - बल्ले , बाकि सारे थल्ले थल्ले । '' अन्दर से गूंजते नारे बाहर आये ।
नौ वोटों के फर्क से गुरदीप जीत गया था । छ: मैम्बरों में से चार मैम्बर गुरदीप की पार्टी के जीत गए । चन्नन मैम्बरी में सबसे ज्यादा वोटों से बाजी मार गया । बाहर आते ही लोगों ने गुरदीप को कन्धों पर उठा लिया । नोटों से गुंथे हारों से गुरदीप की गर्दन भर गई । सारा पिंड नारों से गूंज उठा । क्लब के लड़के ढोल के साथ नाचते गुरदीप के साथ गुरुद्वारे माथा टेकने गए । फिर सारी भीड़ नाचती , नारे लगाती भागू के घर की ओर चल पड़ी ।
मुखत्यार ससुराल से मार खाकर चली बहु की तरह रोता हुआ घर आ गया । उसके साथियों ने उसके गले में डालने के लिए हार , हाथों में पकड़े काँटों की तरह दूर उठाकर फेंक दिए और ईंटे पत्थर उठाकर गुरदीप की नाचती आती टोली पर मारने लगे। एक पत्थर … टी … टी … टी … करता गुरदीप के सर के पास से होता हुआ नाचते हुए लाडकों के पैरों पर आ लगा । लड़कों का गर्म खून उबाल खा गया । उन्होंने सड़क के किनारे पड़े पत्थर उठा लिए पर सयाने बुजुर्गों ने कह-कहा कर उन्हें ठंडा कर लिया । मुखत्यार के चमचे लड़कों को ' ताब ' में आया देख खिसक गए ।

---------------0 -----------------

मुखत्यार के घर किसी ' जीव के भगवान को प्यारे ' हो जाने जैसा शोक पसरा पड़ा था। मुखत्यार बाहरी गली के पास बने कमरे में बैठा जारो -जार रो रहा था । उसके 'कटोरी चाट यार ' अगर रोयें न तो रोने जैसी शकल बना लें ' कहावत को चरितार्थ करते उल्लुओं की तरह मुंह लटकाए बैठे थे ।
मुखत्यार सिंह कोई बात नहीं अखाड़े में एक जन तो हारता ही है । '' करतार ने उसके कंधे दबाते हुए हौंसला दिया ।
'' '' और क्या … हौंसला रख , यूँ रोने से क्या होगा अब ….? '' बीच से कोई और बोल पड़ा ।
'' हमने इतनी मेहनत की , वह फिर भी साला …. '' मुखत्यार के बोल मुंह में ही लटक गए । वह फिर सुबक पड़ा । दूसरी बार हुई हार ने उसे पूरी तरह कुचल दिया था ।
'' मुखत्यार सिंह हौंसला रख हौंसला । क्यों बच्चों की तरह करे जा रहे हो , फिर कौन सी वोटें नहीं पड़नी । '' बीच से कोई और बोला था ।
'' सीधी तरह तो नहीं जीता , सालों ने कोई रण नीति तो खेली होगी । '' करतार ने हौंसला देने के लिए एक और पैंतरा फेंका ।
'' अगर जीत भी गया तो कौन सा पांच साल सरपंची कर लेगा । एक दो महीनों में ही लगवा देंगे साले की बूथ । बीच में से चांदी ने शुरली छोड़ी .।
'' अगर तुम सब मेरे साथ हो तो कुछ और मैम्बरों को साथ मिलाकर , दे कर परचा अभी उतार देते हैं । '' मुखत्यार भी ताव में आ गया था ।
'' लो हम भला तेरा साथ कब छोड़ने लगे हैं । तुम आगे चलो हम तुम्हारे साथ हैं । '' करतार सिंह हवा में हाथ हिलाता तसल्ली दे गया ।
'' लो इसे फेंको अन्दर और दुःख को निकालो बाहर । '' सरपंच के भतीजे ने रूडी मार्का की दो बोतलें लाकर सामने रख दीं । शराब के एक - एक पैग ने ही सबको गम के दलदल से बाहर निकाल फेंका । वे शराब के नशे में अपनी हार भूल के गुरदीप का तख्ता पलटने की स्कीमें बनाने लगे ।

----------------------------0 ----------------------------

गुरदीप की पार्टी नाचती हुई भागु के घर आ पहुँची । आते ही सबने लाल परी की सीलें तोड़ लीं । क्लब के लड़के नाचते - नाचते पसीने से तर ब तर हो गए । पर ख़ुशी उनके क़दमों की लोर को कम न कर सकी । टेक अपनी भारी आवाज़ से ऊंचे-ऊंचे ललकारे मारता शेर की तरह गरज रहा था । भगवान ने तीन बोतलें झोले में डाल लीं और साइकिल में टांग खेत की ओर चल पड़ा ।
''ओये बलोर जीत गए हम '' भगवान साइकिल का स्टैंड लगाकर कोठे के पास बिछी चारपाई पर बैठ गया ।
'' कसम खा कर बोल '' बलोर हैरानी से सारा मुंह खोल गया ।
'' तो और क्या । ''
'' आये हाय ! हो ताऊ टिंग-लिंग , हो ताऊ टिंग-लिंग । '' बलोर साइकिल पर बंधे झोले की तेजी से गाँठे खोलने लगा ।
'' सरकार क्या बात हो गई … ? '' पनीरी खोदते साथियों की रोटी बनाता बिहारी भइया , बलोर के छोटे बछड़े की तरह टपुसी मारने पर हैरान था ।
'' अरे भईया हम जीत गए । '' भगवान ने दो बोतलें झोले से निकाल कर भईये के दोनों हाथों में दे दीं ।
'' अरे सच्च !''
'' ओये हाँ यार … ये शराब किस लिए दी है तुझे ? ''
'' अरे … ! सरदार जीत गया , सरदार जीत गया . ''भईया दोनों हाथों में ली हुई बोतलों को छलकाता कोठे के बार के सामने नाचने लगा । फिर पनीरी खोदते सारे भइये कोठे के बार के सामने बलोर के साथ देसी भांगड़ा डालने लग पड़े । ''अरे भइया, खाइके पान बनारस वाला , खुल जाए बंद अकल का ताला …. '' बीच से एक गुनगुनाने लग पड़ा ।
सारे भइयों ने कोठे के दाहिनी ओर झुण्ड बना लिया । मिट्ठू और बलोर बहते नाले में टाँगे लटकाकर बैठ गए । दो कटोरी और लाल परी दोनों के बीच रख ली ।
'' ले फिर मिट्ठू कर मुहूर्त ;'' बलोर ने कटोरी और बोतल मिट्ठू की ओर सरका दी। मिट्ठू ने कटोरी में ऊँगलियाँ फेर कर हथेली पर झाड लीं और एक छोटा सा पैग गटक गया ।
'' क्यों ! आ रहा है लोर !'' बलोर ने एक पैग खुद भी डाल लिया ।
'' क्या पूछता है , यह तो चीज है चीज । जहां से पार होती है बस चीरती जाती है ।'' मिट्ठू ने प्याज कटोरी से चीर कर एक टुकडा दाढ़ के नीचे दबा लिया । दोनों की बे सर पैर की बातें कितनी ही देर चलती रहीं । कभी - कभी कोई मच्छर नंगी टांगों पर दांत गड़ा जाता । पर ये बेध्याने से ' ए मेरे सालियाँ दा ' कहकर मच्छर की काटी जगह पर थप्पा सा मारकर फिर अपनी बातों में रुझ जाते । भगवान दोनों से विदा लेकर चल पड़ा । उसने साँप जैसी बल खाती पही से निकल कर साइकिल चोए (नाले ) की पटरी चढा ली । चारों ओर गहरा अन्धेरा छा गया था । आसमान से कोई - कोई तारा झाँकने लगा था । भगवान को कल करमी के घर जाने का वादा याद आ गया । वह साइकिल के पैडलों को अपने पैरों से और जोर - जोर से दबाने लगा , जैसे उसने कल नहीं आज ही जाना हो । साइकिल रात के अँधेरे को चीरता हुआ , रुण्ड - मरुन्ड कीकरों के नीचे से सरपट दौड़ता जा रहा था .।
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Re: भागू (उपन्यास )

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भगवान और गुरजीत दसवीं तक इकट्ठे पढ़ते रहे थे । गुरजीत दसवीं करके हट गया और अपनी गाड़ी खरीद भाड़े पर चलाने लगा । भगवान आगे पढता रहा और अब चीमे में बारहवीं में दाखिल हो गया था । राहें अलग -अलग होने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कोई फर्क नहीं आया था । दोनों पहले की तरह ही एक - दुसरे के घर आते जाते थे । गुरजीत की बहन करमी भगवान को भी अपना दुसरा भाई समझती थी । वह उसे हर रोज़ अपने घर आने की जिद करती . यदि भगवान कभी एक - दो दिन नहीं जाता तो वह उसके आने पर बोलती नहीं , मुंह फेर काम पर लगी रहती । भगवान उसे सौ बहाने लगाता । हर रोज़ आने की हामी भरता , फिर कहीं जाकर वह मुस्कुराती । दोनों एक - दुसरे को छोटी - बड़ी खुशी देने की हर कोशिश करते । करमी, किरना और भगवान के दिलों में एक दूजे के लिए अंकुरित होते प्यार को भांप कर दिल से खुश थी । वह चाहती थी इन दोनों का मेल हो जाये । आज करमी ने सुबह ही संदेशा भेज किरना को बुला लिया था ।
'' क्यों …. ? क्या आफत आ गई थी …? '' किरना आते ही करमी को संबोधित हुई ।
'' आफत मुझ पर नहीं तुझ पर गिरेगी मेरी सूरज की किरने । ''
'' क्या ? मुझ पर ?''
'' हाँ तुझ पर ।''
'' जो भी बात है तू सीधे - सीधे बता दे , यूँ ही वकीलों की तरह उलझनों में मत डाल । '' किरना बात को साफ़ - साफ़ सुनना चाहती थी ।
'' बात तो कोई नहीं बस ऐसे ही बुला लिया । '' करमी असल बात छुपा गई । इस डर से कि कहीं बात बनने से पहले ही न टूट जाए । वह किरना से बातें करती हुई घड़ी - घड़ी टाइम - पीस की ओर नज़र फेर लेती ।
'' क्यों घड़ी - घड़ी टाइम - पीस की ओर देखती जा रही है ? कोई आने वाला तो नहीं … ? '' किरना ने करमी की कमर में चिंयुटी काटी ।
'' मेरे तो नहीं तुम्हारे ग्राहक जरुर आ जायेंगे जो गाय की तरह टपुसी मारती फिर रही है । '' करमी ने चिंयुटी का जवाब चिंयुटी में दिया ।
'' किसे बेचने की तैयारी हो रही है … ?'' बाहर से आते हुए भागु ने दोनों की बात सुन ली थी । वह किरना को देख खिल गया था ।
'' आ भागू तुम्हारा ही इन्तजार था । '' करमी ने नीची नज़र किये बैठी किरना की ओर मौन इशारा किया ।
'' हमारा इन्तजार भला कौन करता है यहाँ … ?'' भगवान की प्यार उडीकती आखें किरना के चेहरे पर जा टिकीं . किरना ने अपने सुरमई नयनों की पलकें अदा के साथ उठा कर सामने खड़े भागु की ओर सेध लीं । उसका दिल किया कह दे , ' नहीं मेरे हीरया , तुझे उडीकने वाले तेरे सामने बैठे हैं । '
'' भागू तू बैठ मैं अभी चाय बनाकर लाई । '' करमी जान बुझ कर दोनों को अकेला छोड़ गई ।
करमी चले जाने से कमरे में ख़ामोशी छा गई । पंखे की साँय - साँय और टाईम -पीस की टिक -टिक साफ़ सुनाई दे रही थी । किरना ने भगवान की ओर धीमे से देखा और होंठों पर हलकी सी मुस्कान फेंक नजरें नीची कर लीं । किरना की मुस्कान भगवान के डोलते दिल को हौंसले में ले आई । वह किरना की चारपाई पर थोड़ी दूरी बनाकर बैठ गया ।
'' तुम लोग पहले कहाँ रहते थे …. ?'' भगवान ने जानते हुए भी पैंतरा मारा .।
''मैं अपनी बुआ के पास रहती थी । बस थोड़े दिनों से ही आई हूँ । ''
'' यहाँ आकर दिल तो लग गया होगा ?'' लडका बात को चलाए रखने के लिए लड़ी से लड़ी जोड़े जा रहा था ।
'' पहले दस - बीस दिन तो लगा नहीं , अब कुछ - कुछ लगने लगा है । '' असल में किरना अन्दर से कहीं महसूस करती थी कि यहाँ मेरा दिल तेरे साथ हुई मुलाक़ात के बाद ही लगा है ।
'' कहीं कोई दिल लगाने वाला तो नहीं मिल गया …. ?'' भगवान अन्दर के प्यार का मोहरा बना धड़कते दिल और कांपते होंठों से इतनी बात कह तो गया , पर वह डर से कांपता सोचता रहा 'कहीं मैंने कोई जल्दबाजी तो नहीं कर ली ।'
'' शायद …हो सकता है … । '' कानों तक लाल हुई लड़की अपने जादुमई नयन भगवान के सारे चेहरे पर घुमा गई । जिन्होंने उसे अन्दर तक फाड़ दिया ।
'' कौन है वो कर्मों वाला … ? हमें भी तो पता चले । ''
'' खुद ही जान लो । ''
'' यदि हम ही अपने आपको आगे कर दें …. ?'' भगवान आगे से मिलने वाले हाँ पक्ष के जवाब का कयास लगाता होंठों में मुस्काया ।
'' मान लेंगे । ''
'' सच्च !'' भगवान हैरानी और ख़ुशी मिश्रित भावों से उछल पड़ा ।
'' हाँ सच्च !'' लड़की ने फौलाद सा जिगरा कर अपना हाथ भगवान के हाथ पर टिका दिया ।
'' हाय ओये !'' मेरिआ रब्बा , अब तो चाहे जान निकाल ले । '' भागु प्यार के खुमार में बेहोश सा हो गया ।
'' ला पकड़ा जान । '' लड़की ने दोनों हाथों को जोड़ भगवान के आगे कर दिया ।
'' यह ले !'' भगवान ने दिल के पास से हवा की मुट्ठी भर कर हाथों पर रख दी ।
'' क्यों मेरे भाई की जान निकालने लगी है चंदरिये । '' करमी ने दो चाय के गिलास चारपाई के पास लाकर रख दिए ।
'' अगर कोई अपने आप जान लुटाता फिरे , फिर भला हम क्या कर सकते हैं । '' तीनों की हँसी की महक सारे कमरे में बिखर गई ।
अगर साथ को साथ मिल जाये तो बातों का सिलसिला यूँ चलता है कि समय का पता ही नहीं चलता कब बीत गया । इस तिकड़ी को बातें करते हुए शाम के चार बज गए पर इनकी बातें अभी तक खत्म होने पर नहीं आईं थीं पर वक़्त किसी के रोके नहीं रुकता । वह अपनी चाल दौड़ा चला जाता है । किरना को समय का ख्याल आया तो वह घर जाने को उतावली हो गई ।
'' करमी इतना समय हो गया , मुझे कोई लेने ही नहीं आया अभी तक ? ''
'' कोई बात नहीं हम छोड़ आयेंगे । '' करमी ने भागु को अपने साथ जोड़ कर लड़की को तसल्ली दी ।
'' फिर अभी छोड़ दो , घर माँ अकेली है , इंतजार करती होगी । ''
'' गुरजीत को आ जाने दे वह छोड़ आयेगा । ''
'' उसका क्या पता कब आयेगा । '' किरना घर जाने के फ़िक्र में डूब गई । सूरज लाल सुर्ख हुआ पश्चिम में ऊँघ रहा था ।
'' अच्छा यूँ कर भागु को ले जा साथ । ''
'' क्या पता यह जाये या न जाये । '' किरना भगवान के मुंह से सुनना चाहती थी ।
'' मैं क्या करूंगा । '' लड़का यूँ तो जाने को तैयार था पर सोच रहा था उसे कुछ और जोर डाला जाये ।
'' मैं क्या करूंगा …तूने छोड़ कर मुड़ आना है , और क्या तूने वहाँ मंत्र फुकना है ?. ''करमी भागू को छेड़ती हुई उसके कंधे पर मुक्की मार गई ।
'' अच्छा बाबा अच्छा , चला जाता हूँ । '' भागू झट तैयार हो गया। असल में भागू का अपना मन भी किरना के साथ जाने के लिए ललायित था ।
वे दोनों करमी से अलविदा लेकर चल पड़े । सूरज पश्चिम की गोद में नीचे उतर गया था । करमी दरवाजे पर खड़ी दोनों को इकट्ठे जाते देख मन ही मन खुश हो रही थी । '' कितनी सुंदर लगती है जोड़ी '' कहकर करमी मुस्कुरा पड़ी । दोनों एक - दुसरे के नजदीक हो -हो बातें करते , हँसते चले जा रहे थे । दोनों को बातें करते , हँसते देख करमी गर्व से भर जाती । वह ख़ुशी में कुछ और ऊंची हो जाती । भगवान और किरना पहे का रस्ता पूरा कर पीछे मुड़कर झांके , करमी अभी भी दरवाजे पर खड़ी देख रही थी । दोनों मुस्कुराते हुए फिर बातों में व्यस्त हो गए ।
'' मैंने सुना तुमलोग यहाँ बाहर से आकर बसे हो … ?'' चाहे भगवान को इस बात का जरा सा पता था पर उसने अच्छी तरह जान्ने के लिए बात चला ली ।
'' हाँ मेरे बापू बताते थे की हम लोग बुन्गां से आये हैं । ''
कौन से बुन्गां से … ?''
'' पकिस्तान से । ''
'' अच्छा तो फिर तुम लोग रफ्युजी हो । ''
'' हाँ ।''
'' फिर तुम लोग यहाँ कैसे आ गए ? '' भगवान के दिल में किरना के बारे में और अधिक जानने की इच्छा प्रबल हो गई ।
'' मेरे बापू पहले पाकिस्तान के पिंड बुन्गां में रहते थे , वहां हमारी सारी जमीन मारू होने के कारण फसल कम होती थी । फिर बातें होने लगीं कि देश का बंटवारा होगा । हिन्दुओं और मुसलामानों के दो अलग अलग देश हो जायेंगे । फिर धीरे -धीरे हल्ला तेज हो गया , अभी कोई वारदात नहीं हुई थी कि हम यहाँ आ गए । तब मेरा बापू कुछ दिनों का अभी गोद में था । यहाँ करमी के घर वालों से हमारी रिश्तेदारी निकली मेरे ननिहाल की तरफ़ से । इन्होंने हमें यहाँ जमीन दिलवाई । फिर हमने यहीं घर डाल लिया । ''
'' यहाँ दिल लग जाता है अकेलों का … ?'' भगवान ने चाल थोड़ी तेज कर दी ताकि जल्दी मुड़ सके ।
'' तेरे जैसे आते -जाते सड़क पर बहुत मिल जाते हैं ।'' लड़की ने छेड़ते हुए आस - पास देख कर हौले से लड़के की कमर में कोहनी मार दी ।
'' क्यों मारती है बैरन ,, मैं तो पहले ही तेरे प्यार में मरा तड़प रहा हूँ ।''
'' अभी क्या तड़पे हो अभी तो और तड़पना पडेगा बच्चू ।''
'' ना बाबा ना यह जुल्म मत करना दास पर , मैं तो पहले ही मर जाऊंगा । '' भागू ने दोनों हाथ कानों से लगा लिए ।
'' दोनों बिना किसी डर के बातें करते सड़क पर चले जा रहे थे । आसमान में उड़ते पंछियों की तरह कभी एक - दुसरे से फासला कर लेते तो कभी नजदीक आ जाते । चारो ओर बिहारी मजदूर काम में जुटे हुए थे । आधे से ज्यादा धरती धान से हरी - पीली दिखाई दे रही थी और बाकी के खेतों में खड़ा पानी चांदी की तरह लिशकारे मार रहा था । हवा के झोंके खेतों के खड़े पानी संग घुलकर लू की जगह अब ठन्डे हो गए थे । सड़क पर चले जा रहो को कोई एक आध साइकिल सवार या स्कूटर वाला दिखाई देता , जो इनकी ओर अजीब सा देखते हुए आगे निकल जाता । जब घर आये तो सचमुच ही किरना की माँ के सिवा घर में कोई नहीं था ।
''ताई घर में कोई नज़र नहीं आ रहा ? … ।'' भगवान ने स्वभाविक ही पूछ लिया ।
'' भाई सारे खेतों में गए हुए हैं जीरी (धान की पौध ) लगाने ।''
''अभी कितनी बाकी है … ?''
'' बस दो - तीन दिन एकड़ रह गई , परसों तक खत्म हो जाएगी । तूने अच्छा किया जो किरना को छोड़ने आ गया , यहाँ तो कोई लाने वाला ही नहीं था । ''
'' अच्छा ताई मैं चलता हूँ । '' भगवान जाने के लिए तैयार हो गया ।
'' नहीं - नहीं तू बैठ , मैं दूध बनाकर लाती हूँ । पी कर जाना । '' लड़की लड़के की ओर आँखें दिखाती हुक्म दे अन्दर चली गई ।
'' अच्छा फिर जल्दी कर । '' भगवान गेट के सामने बने कमरे में बैठ गया । किरना थोड़े समय बाद ही दूध बना लाई ।
'' लो भागू जी । '' लड़की ने दूध का गिलास बड़े अदब से भागू की ओर बढाया ।
'' क्यों फीका ही पिला रही हो कुछ मीठा भी डाल दिया होता । ''
किरना झट समझ गई । उसने अपने गुलाबी होंठों से एक घूंट भरा और फिर गिलास भागू को पकड़ा दिया । भागू ने दूध पी कर खाली गिलास किरना को पकड़ाया और बोला ,'' अब जाने की आज्ञा मिलेगी बाबयो … ?''
'' हाँ अब आप जा सकते हो , पर अब मिलने जरुर आ जाया करना । ''
'' अगर बुलाओगे तो जरुर आयेंगे मालिको ।''
'' हाँ सच अभी जाने की आज्ञा नहीं । '' किरना को जैसे कुछ भूला हुआ याद आ गया था ।
'' बताओ जी । '' भगवान अद्भुत लोर में पैरों से लेकर सर तक डूबा हुआ था ।
'' मैंने सुना आप कुछ लिखते भी हो … ?''
'' न तुझे किसने बता दिया … ?''
'' मुझे सब पता है , ज्यादा चालाकियाँ मत कर ,सुनाना तो होगा ही आज कुछ, मुझे नहीं पता । ''
किरना अड़ गई ।
'' अच्छा ले फिर सुन ….
तेरे हुस्न के चर्चे
हर मोड़ गली
मुण्डियाँ ते डोरे पौन वालिये
तेरी संभदी नहीं अजे नली …. हा …. हा …। ''
भागू छलाँग मार दूर जा खड़ा हुआ , '' अच्छा जी हम चले … ''
किरना मुक्की दिखाकर उसकी ओर भागी पर वह तो सड़क पर जा चढ़ा था । भगवान ने सड़क पर जाकर हाथ हिलाया । किरना ने दूर खड़ी ने मुक्की दिखा दी । जो रास्ता भगवान ने किरना के साथ पलों में पार कर लिया था अब दुगुना लगने लगा । पहले उसने करमी की ओर जाने का मन बनाया पर फिर घर की ओर ही चल पड़ा ।
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Re: भागू (उपन्यास )

Post by Jemsbond »

5 .

मुख्त्यार की हार ने उसे पूरी तरह तोड़ कर रख दिया था . हार का दुःख न सहन कर पाने की वजह से वह बीमार पड़ गया । एक - दो महीने इलाज़ चलता रहा पर कोई फर्क न पड़ा । डाक्टर ने सलाह दी कि वह जरा बाहर घूम फिर आये पर अपनी नमोशी भरी हार से वह लोगों को मुंह दिखाने से झिझकता था तो फिर उसके दोस्तों मित्रों ने उसे हौंसला देना शुरू कर दिया । उसकी गिरती दीवार को दोबारा खड़ा करने की खातिर । अब मुख्त्यार और मुख्त्यार के ' कटोरी चाट ' यार हर रोज़ ही गुरदीप को सरपंची की गद्दी से उतारने की योजनायें बनाते रहते पर कोई योजना पूरी तरह कारगार सिद्ध न होती । आखिर इस बात पर सारे राजी हो गए कि क्यों न हम सारे मैम्बरों को अपनी ओर खींच लिया जाये । फिर साला अपने आप मैंने की तरह मैं -मैं करेगा । उन्होंने पूरी जोर शोर से मैम्बर अपनी ओर जोड़ने शुरू कर दिए । दो मैम्बर उन्होंने आसानी से अपनी ओर खींच लिए । पर अब जो कठिन काम था बाकी के मेम्बरों को अपनी ओर खींचना । सब से पहले उन्होंने श्रवण को बस में करना शुरू कर दिया . करतार दिन ढलते ही बोतल लेकर श्रवण के घर जा धमका ।
'' ओये और बता श्रवण सिंह क्या हाल -चाल हैं तेरे … ?'' करतार ने हाथ मिलाते हुए जोर से दबाया ।
'' बस भाई टाईम पास है । '' श्रवण के अन्दर की गरीबी बोल पड़ी । वह करतार को बिना पलस्तर किये खण्हर जैसे छोटे से कमरे में ले आया ।
'' टाईम पास ही करना है हम लोगों ने और यहाँ क्या रखा है। .'' कहता हुआ करतार बैठक में रखी चारपाई पर बैठ गया। .
'' करना तो टाईम पास ही है भाई। . '' श्रवण बात को ज्यादा खींचने के बजाय उसी से सहमत हो गया। .
'' और सुना नई - ताज़ी । . ''
'' हमने क्या सुनानी है भाई , आप सुनाओ आज गरीब के घर कैसे दर्शन दिए ? ''
'' भाई जी कोई गरीब अमीर नहीं। .यह तो बस लोगों ने बनाया हुआ है। . अगर अमीर बनना है तो दिल का अमीर बने । ऐसे ही कह देते हैं यह चमार , यह हरिजन यह फलां यह ढलां। . खून तो सबका एक ही है। . सच पूछो तो मुझे आज तुम्हारे संग पीने का दिल कर आया। . इसी लिए अब सीधा बोतल लेकर तुम्हारे पास ही आया हूँ। . '' करतार ने दाना डालना शुरू कर दिया। बात अपने अनुकूल होती देख , बोतल निकाल श्रवण के आगे रख दी। .
'' अगर तुम्हारा मन मेरे साथ पीने का है तो मैं कौन सा मोड़ रहा हूँ। . यह भी तुम्हारा अपना ही घर है , जब मर्जी आ जाना। . '' श्रवण ने भी बोतल पर लारे गिरा लीं। .
'' ले डाल फिर। . ''
'' एक मिनट। . '' श्रवण अलमारी से कांच का गिलास निकाल कर बोतल के पास रख गया और बाहर से पानी का जग भर लाया। . थोड़ा पानी गिलास में डाल कर धो दिया और मुड़ शराब से आधा कर अन्दर गटक गया। .
'' मैम्बर इस बार तो पिंड को ग्रांट भी बहुत मिल गए लगता है। . '' करतार ने भी एक पैग चढा खुश्क मुछों पर हाथ फेरा। .
'' भाई ग्रांट को ग्रांट वाले जाने। . ''
'' नहीं यार मैम्बर तो तू भी है हिसाब लिया कर । ''
'' हमने हिसाब लेकर क्या करना । पिंड के पैसे हैं पिंड में लग जायेंगे। . ''
'' अगर पैसे पिंड में ही लगें तो फिर हिसाब की क्या जरुरत है। . ''
'' और फिर कहाँ लगते हैं। । ?'' श्रवण के माथे की त्योरियों पर प्रश्न चिन्ह उभर आया। .
'' आपको इस बार स्कूल के कमरों में कितने लगते हैं ?… '' प्रश्न का उत्तर देने की बजाए करतार ने एक और प्रश्न खड़ा कर दिया। .
'' लगा होगा डेढ़ लाख जैसा। . ''
'' डेढ़ लाख जैसा '' करतार ने ऊपर से नीचे की ओर सर हिलाया , बाकी कहाँ गए पता कुछ ? करतार उस पर पानी की तरह फ़ैल गया ।
'' किधर गए ?'' श्रवण ने उत्तर देने की बजाये वही प्रश्न वापस मोड़ दिया ।
'' जाने किधर हैं , खा गया साला । "
'' अच्छा मुझे नहीं पता था इस बात का। . '' श्रवण तबक कर बोला , जैसे कोई अँधेरे में फिर रहे के आगे उजाले की किरण ले आया हो ।
'' अभी तो इसी में से इतने खा गया , जो आगे गरान्टें आयेंगी उनका क्या होगा ?'' करतार ने एक मोटा पैग और चढ़ा लिया। .
'' चल छोड़ यार खुद ही भरेगा साला। . '' श्रवण थोड़ा नरम पड़ गया। .
'' भरने - भराने को कौन देखता है श्रवणा , तू खुद ही देख उसका कोई बच्चा इस स्कूल में पढता है क्या … ?''
'' ना '' श्रवण ने ढोल की तरह सर हिला दिया । .
'' फिर उसे पैसे लगाने की क्या जरुरत है। उसके एक लड़का है वहीं प्राइवेट स्कुल में दाल रखा है . यहाँ तो तेरे जैसे गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं। . ''
'' अगर खा ही गया तो कौन सा अब वापस कर देगा। . '' श्रवण ने बेबसी जाहिर की। .
'' अगर मोड़ता नहीं तो अगली गरांटें तो नहीं खायेगा। . ''
'' वह कैसे ?''
'' अगर सारे मैम्बर एक तरफ हो जाएँ तो दो मिनट लगेंगे तख्ता पलटने में । . '' करतार चुटकी मार गया । .
दोनों ने एक -एक पैग और अन्दर कर लिया। .
'' यार हम तो कुछ कर भी नहीं सकते । . लोग कहेंगे खुद ही बनाकर खुद ही हटा दिया । . '' श्रवण ने आम के अचार की गुठली चूस कर मुड़ कटोरी में रख दी। .
'' अगर कोई अपना काम ही न करे फिर हमने उससे क्या करवाना। . '' करतार धीरे - धीरे श्रवण को कब्जे में करने की कोशिश में था। .
'' यह तो भाई तुम्हारी बात सोलह आने की है। . '' वह हाँ में हाँ मिला गया। .
'' भाई जी अगर तू मेरी मदद करे तो पौ- बारह हो जाए। . ''
हम कौन सा तेरे से भागे जा रहे हैं करतार सिंह , जहाँ जी करे जोड़ लेना। . ''
'' बस फिर , अगर तुम हमारे साथ हो , उसका अभी कर देते हैं घोगा चित्त। .'' करतार चारपाई से उठ खड़ा हुआ। .
करतार ने श्रवण से कस के हाथ मिलाया और चल पड़ा । अपनी ओर से वह श्रवण को पटाने की पूरी कोशिश कर आया था। जब वह बाहर निकला , गली में काफी अन्धेरा हो चुका था पर लोग अभी आ जा रहे थे। . करतार लड़खड़ाता हुआ दरवाजे से अपने घर की गली की ओर मुड़ गया । श्रवण के घर पीकर उसे अच्छा नशा हो आया था। . वह अपने घर के आगे जाकर रुक गया। घर का गली वाला दरवाजा ढोया हुआ था। . उसने उसे धकेल कर नहीं देखा और न ही आवाज मारी। . वह वहीँ खड़ा कुछ सोचता रहा और फिर वापस परत गया। .गाडों के बड़े दरवाजे के पास आकर सीधा मुख्त्यार के घर की ओर चल पड़ा। . आगे चाँदी , मुख्त्यार और मुख्त्यार का भतीजा जग्गी बैठे करतार का ही इन्तजार कर रहे थे। .
'' क्यों फँसा चूहा पिंजरे में ?'' जग्गी जानने के लिए उतावला हो उठा। .
'' हम फँसाए बिना छोड़ते क्या ?'' करतार ने छाती फुला कर कहा। .
'' अच्छा ले फिर लगा ले घूँट ? मुख्त्यार ने गिलास और बोतल करतार की ओर सरका दी। .
शराब का दौर चल पड़ा। . सबके चेहरों पर ख़ुशी की लहरें दौड़ रहीं थी , जैसे कोई बड़ी जंग जीत ली हो। . वह एक तरह से जंग ही तो लड़ रहे थे। . अपने मिशन का पहला पडाव सहज ही पूरा कर लिया था। . अब दुसरे मैम्बरों को बस में करने की बारी थी। . कुछ समय हो हल्ला होता रहा अंत में अगले मेंबर को बस में करने के लिए चाँदी के जिम्मे डाला गया , जो चाँदी के खेत का पड़ोसी था। . चाँदी ने इसे सहज ही कबूल कर लिया। .
चाँदी कई दिन जूते घिसाता जिउणे मैम्बर के पीछे घूमता रहा । उसने लाख कोशिश की , कई पापड बेले पर कुछ हाथ न लगा। . वह दांत किटकिटाता मूत की झाग की तरह बैठ गया। . फिर करतार, फिर जग्गी सबने अपने - अपने दाव -पेच चला कर देख लिए पर जिउणा टस से मस न हुआ। . आखिर थक - हार कर पीछा ही छोड़ दिया। .
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अब यह मंडली हर रोज़ नया पैंतरा सोचने के लिए बैठ जाती और काफी रात तक शराब के साथ - साथ गुरदीप को फसाने की नई - नई जुगतें लगाई जातीं। . ' जितने मुंह उतनी बातें ' कहावत की तरह हर कोई अपनी - अपनी राय देता पर किसी न किसी को यह फिट ना बैठती। . इसी तरह एक - दो महीने बीत गए। . एक दिन शाम को हांफता हुआ जैलू सरपंच की जुडी मंडली के पास आया , '' स … स … सरपंच !गुरदयाल और उसके साथियों ने गली बंद कर ली। .
''क्यों …. ? '' मुख्त्यार ने माथे पर बलों से शिव जी का त्रिशूल बना लिया ।
'' पता नहीं। . ''
'' न ऐसे कैसे गली बंद कर लेंगे। . उनके बाप का राज है क्या ?'' मुख्त्यार गुस्से में लाल हो गया। .
'' ओये यह सारी करतूत गुरदीप की होगी .'' करतार की सोच के आगे मौजूदा सरपंच घुमने लगा। .
'' फिर वह क्या कर लेगा साला, चलो दीवार गिरा कर आयें। . देखते हैं कौन हटाता है। . '' जग्गी ने कोने से लगा गंडासा उठा लिया। . बाकी भी उसके साथ चल पड़े। . जग्गी सबसे आगे सांड की तरह बिफरा जा रहा था। . उसके हाथ का गंडासा पक्की वीही में 'ठक- ठक ' बजता जा रहा था। . आगे बढ़े तो गली खाली भांय -भांय कर रही थी। . सारे गली में की गई दीवार के पास पहुँच गए। . कमर तक आती टेढ़ी - मेढ़ी दीवार खुद ही बनाई लगती थी। .
'' क्यों कैसे करें … ?''
'' देखता क्या है गिरा दे। . '' मुखत्यार ने जोश दिलाया। .
जग्गी ने गीली दीवार को धक्का दिया तो दीवार 'धाड़' सी गिर पड़ी । गिरती दीवार की आवाज़ होते ही ' टी… ई… टी …' करता एक पत्थर का टुकडा जग्गी के कान के पास से पार हो गया। . '' इसकी माँ की …. !'' जग्गी गंडासा उठाकर पत्थर आने की दिशा में दौड़ पड़ा पर सरपंच ने उसे बांह से पकड़ कर खींच लिया , '' अब हमें क्या जरुरत है , अपना काम हो गया, चलो चलें। . ''
सारे उलटे पैर भाग खड़े हुए। . भागते-भागते एक और पत्थर उनके पैरों में आ लगा । गुरदयाल और उसकी घरवाली सीतो और दो लोग पत्थर उठा कर मारते गली तक आ गए थे । जब और पास आये तो दीवार गिरी हुई दिखी। . सभी कुछ समय तो वहां खड़े रहे फिर विरोधी पक्ष को गालियाँ निकालते धीरे - धीरे घरों की ओर चल पड़े। . गली सूनी थी। .
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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