चंद्रकांता

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Jemsbond
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Re: चंद्रकांता

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जो कुछ दिन बाकी था दीवान हरदयालसिंह ने जासूसों को इकट्ठा करने और समझाने - बुझाने में बिताया। शाम को सब जासूसों को साथ ले हुक्म के मुताबिक महाराज जयसिंह के पास बाग में हाजिर हुए।

खुद महाराज जयसिंह ने जासूसों से पूछा, “तुम लोग जालिमखां का पता क्यो नहीं लगा सकते?” इसके जवाब में उन्होंने अर्ज किया, “महाराज, हम लोगों से जहां तक बनता है कोशिश करते हैं, उम्मीद है कि पता लग जायगा।”

महाराज ने कहा, “आफतखां एक नया शैतान पैदा हुआ? इसने अपने इश्तिहार में अपने मिलने का पता भी लिखा है, फिर क्यों नहीं तुम लोग उसी ठिकाने मिलकर उसे गिरफ्तार करते हो?” जासूसों ने जवाब दिया, “महाराज आफतखां ने अपने मिलने का ठिकाना 'टेटी - चोटी' लिखा है, अब हम लोग क्या जानें 'टेटी-चोटी' कहां है, कौन - सा मुहल्ला है, किस जगह को उसने इस नाम से लिखा है, इसका क्या अर्थ है तथा हम लोग कहां जायें?”

यह सुनकर महाराज भी 'टेटी-चोटी' के फेर में पड़ गए। कुछ भी समझ में न आया। जासूसों को बेकसूर समझ कुछ न कहा, हां डरा - धामका के और ताकीद करके रवाना किया।

अब महाराज को अपने जीने की उम्मीद कम रह गई, खौफ के मारे रात भर हाथ में तलवार लिये जागा करते, क्योंकि थोड़ा - बहुत जो कुछ भरोसा था अपनी बहादुरी ही का था।

दूसरे दिन इश्तिहार फिर शहर में चिपका हुआ पाया गया जिसे पहरे वालों ने लाकर हाजिर किया। दीवान हरदयालसिंह ने उसे पढ़कर सुनाया, यह लिखा था:

“देखना, खूब सम्हले रहना! बद्रीनाथ को गिरफ्तार कर चुका हूं, अपने पहले वादे के बमूजिब कल बारह बजे रात को उसका सिर लेकर तुम्हारे महल में हम लोग कई आदमी पहुंचेंगे। देखें कैसे गिरफ्तार करते हो!!

- आफतखां”
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Re: चंद्रकांता

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विजयगढ़ के पास भयानक जंगल में नाले के किनारे एक पत्थर की चट्टान पर दो आदमी आपस में धीरे - धीरे बातचीत कर रहे हैं। चांदनी खूब छिटकी हुई है जिसमें इन लोगों की सूरत और पोशाक साफ दिखाई पड़ती है। दोनों आदमियों में से जो दूसरे पत्थर पर बैठे हुए हैं एक की उम्र लगभग चालीस वर्ष की होगी। काला रंग, लंबा कद, काली दाढ़ी, सिर्फ जांघिया और चुस्त कुरता पहने हुए, तीर - कमान और ढाल - तलवार आगे रखे एक घुटना जमीन के साथ लगाए बैठा है। बड़ी - बड़ी काली और कड़ी मोछें ऊपर को चढ़ी हुई हैं, भूरी और खूंखार आंखें चमक रही हैं, चेहरे से बदमाशी और लुटेरापन झलक रहा है। इसका नाम जालिमखां है।

दूसरा शख्स जो उसी के सामने वीरासन में बैठा है उसका नाम आफतखां है। दरम्याना कद, लंबी दाढ़ी, चुस्त पायजामा और कुरता पहने, गंडासा सामने और एक छोटी - सी गठरी बाईं तरफ रखे जालिमखां की बात खूब गौर से सुनता और जवाब देताहै।

जालिमखां - तुम्हारे मिल जाने से बड़ा सहारा हो गया।

आफतखां - इसी तरह मुझको तुम्हारे मिलने से! देखो यह गंडासा, (हाथ में लेकर) इसी से हजारों आदमियों की जानें जाएंगी। मैं सिवाय इसके कोई दूसरा हरबा नहीं रखता। यह जहर से बुझाया हुआ है, जिसे जरा भी इसका जख्म लग जाय फिर उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं।

जालिम - बहुत हैरान होने पर तुमसे मुलाकात हुई!

आफत - मुझे तुमसे जरूर मिलना था, इसलिए इश्तिहार चिपका दिए क्योंकि तुम लोगों का कोई ठिकाना तो था नहीं जहां खोजता, लेकिन मुझे यकीन था कि तुम ऐयारी जरूर जानते होगे, इसीलिए ऐयारी बोली में अपना ठिकाना लिख दिया जिससे किसी दूसरे की समझ में न आवे कि कहां बुलाया है!

जालिम - ऐसी ही कुछ थोड़ी - सी ऐयारी सीखी थी, मगर तुम इस फन में ओस्ताद मालूम होते हो, तभी तो बद्रीनाथ को झट गिरफ्तार कर लिया!

आफत - ओस्ताद तो मैं कुछ नहीं, मगर हां बद्रीनाथ जैसे छोकड़े के लिए बहुत हूं।

जालिम - जो चाहो कहो मगर मैंने तुमको अपना ओस्ताद मान लिया, जरा बद्रीनाथ की सूरत तो दिखा दो।

आफत - हां - हां देखो, धाड़ तो उसका गाड़ दिया मगर सिर गठरी में बंधा है, लेकिन हाथ मत लगाना क्योंकि इसको मसाले से तर किया है जिससे कल तक सड़ न जाय।

इतना कह आफतखां ने अपनी बगल वाली गठरी खोली जिसमें बद्रीनाथ का सिर बंधा हुआ था। कपड़ा खून से तर हो रहा था। जितने आदमी उसके साथियों में से उस जगह थे बद्रीनाथ की खोपड़ी देख खुशी के मारे उछलने लगे।

जालिम - यह शख्स बड़ा शैतान था।

आफत - लेकिन मुझसे बच के कहां जाता!

जालिम - मगर ओस्ताद, तुम एक बात बड़ी बेढब कहते हो कि कल बारह बजे रात को महल में चलना होगा।

आफत - बेढब क्या है देखो कैसा तमाशा होता है!

जालिम - मगर ओस्ताद, तुम्हारे इश्तिहार दे देने से उस वक्त वहां बहुत से आदमी इकट्ठे होंगे, कहीं ऐसा न हो कि हम लोग गिरफ्तार हो जाएं?

आफत - ऐसा कौन है जो हम लोगों को गिरफ्तार करे?

जालिम - तो इसमें क्या फायदा है कि अपनी जान जोखिम में डाली जाय, वक्त टाल के क्यों नहीं चलते?

आफत - तुम तो गदहे हो, कुछ खबर भी है कि हमने ऐसा क्यों किया?

जालिम - अब यह तो तुम जानो!

आफत - सुनो मैं बताता हूं। मेरी नीयत यह है कि जहां तक हो सके जल्दी से उन लोगों को मार - पीट सब मामला खतम कर दूं। उस वक्त वहां जितने आदमी मौजूद होंगे सबों को बस तुम मुर्दा ही समझ लो, बिना हाथ - पैर हिलाए सबों का काम तमाम करूं तो सही।

जालिम - भला ओस्ताद, यह कैसे हो सकता है!

आफत - (बटुए में से एक गोला निकालकर और दिखाकर) देखो, इस किस्म के बहुत से गोले मैंने बना रखे हैं जो एक - एक तुम लोगों के हाथ में दे दूंगा। बस वहां पहुंचते ही तुम लोग इन गोलों को उन लोगों के हजूम (भीड़) में फेंक देना जो हम लोगों को गिरफ्तार करने के लिए मौजूद होंगे। गिरते ही ये गोले भारी आवाज देकर फूट जायेंगे और इनमें से बहुत - सा धुआं निकलेगा जिसमें वे लोग छिप जायेंगे, आंखो में धुआ लगते ही अंधो हो जायेंगे और नाक के अंदर जहां गया कि उन लोगों की जान गई, ऐसा जहरीला यह धुआ होगा।

आफतखां की बात सुनकर सब - के - सब मारे खुशी के उछल पड़े। जालिमखां ने कहा, “भला ओस्ताद, एक गोला यहां पटक के दिखाओ, हम लोग भी देख लें तो दिल मजबूत हो जायगा।”

“हां देखो।” यह कह के आफतखां ने वह गोला जमीन पर पटक दिया, साथ ही एक आवाज देकर गोला फट गया और बहुत - सा जहरीला धुआं फैला जिसको देखते ही आफतखां, जालिमखां और उनके साथी लोग जल्दी से हट गए तिस पर भी उन लोगों की आंखें सूज गईं और सिर घूमने लगा। यह देखकर आफतखां ने अपने बटुए में से मरहम की एक डिबिया निकाली और सबों की आंखों में वह मरहम लगाया तथा हाथ में मलकर सुंघाया जिससे उन लोगों की तबीयत कुछ ठिकाने हुई और वे आफतखां की तारीफ करने लगे।

जालिम - वाह ओस्ताद, यह तो तुमने बहुत ही बढ़िया चीज बनाई है!

आफत - क्यों अब तो महल में चलने का हौसला हुआ?

जालिम - शुक्र है उस पाक परवरदिगार का जिसने तुम्हें मिला दिया! जो काम हम साल भर में करते सो तुम एक रोज में कर सकते हो। वाह ओस्ताद वाह, अब तो हम लोग उछलते - कूदते महल में चलेंगे और सबों को दोजख में पहुंचाएंगे। लाओ एक - एक गोला सबों को दे दो।

आफत - अभी क्यों, जब चलने लगेंगे दे देंगे, कल का दिन जो काटना है।

जालिम - अच्छा, लेकिन ओस्ताद, तुमने इतने दिन पीछे का इश्तिहार क्यों दिया? आज का ही दिन अगर मुकर्रर किया होता तो मजा हो जाता।

आफत - हमने समझा कि बद्रीनाथ जरा चालाक है, शायद जल्दी हाथ न लगे इसलिए ऐसा किया मगर यह तो निरा बोदा निकला!

जालिम - अब क्या करना चाहिए?

आफत - इस वक्त तो कुछ नहीं, मगर कल बारह बजे रात को महल में चलने के लिए तैयार रहना चाहिए।

जालिम - इसके कहने की कोई जरूरत नहीं, अब तो हम और तुम साथ ही हैं। जब जो कहोगे करेंगे।

आफत - अच्छा तो आज यहां से टलकर किसी दूसरी जगह आराम करना मुनासिब है। कल देखो खुदा क्या करता है। मैं तो कसम खा चुका हूं कि महल में जाकर बिना सबों का काम तमाम किए एक दाना मुंह में नहीं डालूंगा।

जालिम - ओस्ताद, ऐसा नहीं करना चाहिए, तुम कमजोर हो जाओगे।

आफत - बस चुप रहो, बिना खाये हमारा कुछ नहीं बिगड़ सकता।

इसके बाद वे सब वहां से उठकर एक तरफ को रवाना हो गये।
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Re: चंद्रकांता

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वह दिन आ गया कि जब बारह बजे रात को बद्रीनाथ का सिर लेकर आफतखां महल में पहुंचे। आज शहर भर में खलबली मची हुई थी। शाम ही से महाराज जयसिंह खुद सब तरह का इंतजाम कर रहे थे। बड़े - बड़े बहादुर और फुर्तीले जवांमर्द महल के अंदर इकट्ठा किए जा रहे थे। सबों में जोश फैलता जाता था। महाराज खुद हाथ में तलवार लिये इधर - से - उधर टहलते और लोगों की बहादुरी की तारीफ करके कहते थे कि ”सिवाय अपने जान - पहचान के किसी गैर को किसी वक्त कहीं देखो गिरफ्तार कर लो” और बहादुर लोग आपस में डींग हांक रहे थे कि यो पकडूंगा, यों काटूंगा! महल के बाहर पहरे का इंतजाम कम कर दिया गया, क्योंकि महाराज को पूरा भरोसा था कि महल में आते ही आफतखां को गिरफ्तार कर लेंगे और जब बाहर पहरा कम रहेगा तो वह बखूबी महल में चला आवेगा, नहीं तो दो - चार पहरे वालों को मारकर भाग जायगा। महल के अंदर रोशनी भी खूब कर दी गयी, तमाम मकान दिन की तरह चमक रहा था।

आधी रात बीता ही चाहती थी कि पूरब की छत से छ: आदमी धामाधाम कूदकर धाड़धाड़ाते हुए उस भीड़ के बीच में आकर खड़े हो गये, जहां बहुत से बहादुर बैठे और खड़े थे। सबके आगे वही आफतखां बद्रीनाथ का सिर हाथ में लटकाये हुए था।



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खोह वाले तिलिस्म के अंदर बाग में कुंअर वीरेन्द्रसिंह और योगीजी मे बातचीत होने लगी जिसे वनकन्या और इनके ऐयार बखूबी सुन रहे थे।

कुमार - पहले यह कहिये चंद्रकान्ता जीती है या मर गई?

योगी - राम - राम, चंद्रकान्ता को कोई मार सकता है? वह बहुत अच्छी तरह से इस दुनिया में मौजूद है।

कुमार - क्या उससे और मुझसे फिर मुलाकात होगी?

योगी - जरूर होगी।

कुमार - कब?

योगी - (वनकन्या की तरफ इशारा करके) - जब यह चाहेगी।

इतना सुन कुमार वनकन्या की तरफ देखने लगे। इस वक्त उसकी अजीब हालत थी। बदन में घड़ी - घड़ी कंपकंपी हो रही थी, घबराई - सी नजर पड़ती थी। उसकी ऐसी गति देखकर एक दफे योगी ने अपनी कड़ी और तिरछी निगाह उस पर डाली, जिसे देखते ही वह सम्हल गई। कुंअर वीरेन्द्रसिंह ने भी इसे अच्छी तरह से देखा और फिर कहा :

कुमार - अगर आपकी कृपा होगी तो मैं चंद्रकान्ता से अवश्य मिल सकूंगा।

योगी - नहीं यह काम बिल्कुल (वनकन्या को दिखाकर) इसी के हाथ में है, मगर यह मेरे हुक्म में है, अस्तु आप घबराते क्यों हैं। और जो - जो बातें आपको पूछनी हो पूछ लीजिये, फिर चंद्रकान्ता से मिलने की तरकीब भी बता दी जायगी।

कुमार - अच्छा यह बताइये कि यह वनकन्या कौन है?

योगी - यह एक राजा की लड़की है।

कुमार - मुझ पर इसने बहुत उपकार किये, इसका क्या सबब है?

योगी - इसका यही सबब है कि कुमारी चंद्रकान्ता में और इसमें बहुत प्रेम है।

कुमार - अगर ऐसा है तो मुझसे शादी क्यों किया चाहती है?

योगी - तुम्हारे साथ शादी करने की इसको कोई जरूरत नहीं और न यह तुमको चाहती ही है। केवल चंद्रकान्ता की जिद्द से लाचार है, क्योंकि उसको यही मंजूर है।

योगी की आखिरी बात सुनकर कुमार मन में बहुत खुश हुए और फिर योगी से बोले -

कुमार - जब चंद्रकान्ता में और इनमे इतनी मुहब्बत है तो यह उसे मेरे सामने क्यों नहीं लातीं?

योगी - अभी उसका समय नहीं है।

कुमार - क्यो

योगी - जब राजा सुरेन्द्रसिंह और जयसिंह को आप यहां लावेंगे, तब यह कुमारी चंद्रकान्ता को लाकर उनके हवाले कर देगी।

कुमार - तो मैं अभी यहां से जाता हूं, जहां तक होगा उन दोनों को लेकर बहुत जल्द आऊंगा।

योगी - मगर पहले हमारी एक बात का जवाब दे लो।

कुमार - वह क्या?

योगी - (वनकन्या की तरफ इशारा करके) इस लड़की ने तुम्हारी बहुत मदद की है और तुमने तथा तुम्हारे ऐयारों ने इसे देखा भी है। इसका हाल और कौन - कौन जानता है और तुम्हारे ऐयारों के सिवाय इसे और किस - किस ने देखा है?

कुमार - मेरे और फतहसिंह के सिवाय इन्हें आज तक किसी ने नहीं देखा। आज ये ऐयार लोग इनको देख रहे हैं।

वनकन्या - एक दफे ये (तेजसिंह की तरफ बताकर) मुझसे मिल गए हैं, मगर शायद वह हाल इन्होंने आपसे न कहा हो, क्योंकि मैंने कसम दे दी थी।

यह सुनकर कुमार ने तेजसिंह की तरफ देखा। उन्होंने कहा, “जी हां, यह उस वक्त की बात है जब आपने मुझसे कहा था कि आजकल तुम लोगों की ऐयारी में उल्ली लग गई है। तब मैंने कोशिश करके इनसे मुलाकात की और कहा कि 'अपना पूरा हाल मुझसे जब तक न कहेंगी मैं न मानूंगा और आपका पीछा न छोड़ूंगा।' तब इन्होंने कहा कि 'एक दिन वह आवेगा कि चंद्रकान्ता और मै कुमार की कहलाऊंगी मगर इस वक्त तुम मेरा पीछा मत करो नहीं तो तुम्हीं लोगों के काम का हर्ज होगा।' तब मैंने कहा कि 'अगर आप इस बात की कसम खायें कि चंद्रकान्ता कुमार को मिलेंगी तो इस वक्त मैं यहां से चला जाऊं।' इन्होंने कहा कि 'तुम भी इस बात की कसम खाओ कि आज का हाल तब तक किसी से न कहोगे जब तक मेरा और कुमार का सामना न हो जाय।'आखिर इस बात की हम दोनों ने कसम खाई। यही सबब है कि पूछने पर भी मैंने यह सब हाल किसी से नहीं कहा, आज इनका और आपका पूरी तौर से सामना हो गया इसलिए कहता हूं।”

योगी - (कुमार से) अच्छा तो इस लड़की को सिवाय तुम्हारे तथा ऐयारों के और किसी ने नहीं देखा, मगर इसका हाल तो तुम्हारे लश्कर वाले जानते होंगे कि आजकल कोई नई औरत आई है जो कुमार की मदद कर रही है।

कुमार - नहीं, यह हाल भी किसी को मालूम नहीं, क्योंकि सिवाय ऐयारों के मैं और किसी से इनका हाल कहता ही न था और ऐयार लोग सिवाय अपनी मंडली के दूसरे को किसी बात का पता क्यों देने लगे। हां, इनके नकाबपोश सवारों को हमारे लश्कर वालों ने कई दफे देखा है और इनका खत लेकर भी जब - जब कोई हमारे पास गया तब हमारे लश्कर वालों ने देखकर शायद कुछ समझा हो।

योगी - इसका कोई हर्ज नहीं, अच्छा यह बताओ कि तुम्हारी जुबानी राजा सुरेन्द्रसिंह और जयसिंह ने भी कुछ इसका हाल सुना है?

कुमार - उन्होंने तो नहीं सुना, हां, तेजसिंह के पिता जीतसिंहजी से मैंने सब हाल जरूर कह दिया था, शायद उन्होंने मेरे पिता से कहा हो।

योगी - नहीं, जीतसिंह यह सब हाल तुम्हारे पिता से कभी न कहेंगे। मगर अब तुम इस बात का खूब ख्याल रखो कि वनकन्या ने जो - जो काम तुम्हारे साथ किए हैं उनका हाल किसी को न मालूम हो।

कुमार - मैं कभी न कहूंगा, मगर आप यह तो बतावें कि इनका हाल किसी से न कहने में क्या फायदा सोचा है? अगर मैं किसी से कहूंगा तो इसमें इनकी तारीफ ही होगी।

योगी - तुम लोगों के बीच में चाहे इसकी तारीफ हो मगर जब यह हाल इसके मां - बाप सुनेंगे तो उन्हें कितना रंज होगा? क्योंकि एक बड़े घर की लड़की का पराये मर्द से मिलना और पत्र - व्यवहार करना तथा ब्याह का संदेश देना इत्यादि कितने ऐब की बात है।

कुमार - हां, यह तो ठीक है। अच्छा, इनके मां - बाप कौन हैं और कहां रहतेहैं।

योगी - इसका हाल भी तुमको तब मालूम होगा जब राजा सुरेन्द्रसिंह और महाराज जयसिंह यहां आवेंगे और कुमारी चंद्रकान्ता उनके हवाले कर दी जायगी।

कुमार - तो आप मुझे हुक्म दीजिए कि मैं इसी वक्त उन लोगों को लाने के लिए यहां से चला जाऊं।

योगी - यहां से जाने का भला यह कौन - सा वक्त है। क्या शहर का मामला है? रात - भर ठहर जाओ, सुबह को जाना, रात भी अब थोड़ी ही रह गई है, कुछ आराम करलो।

कुमार - जैसी आपकी मर्जी।

गर्मी बहुत थी इस वजह से उसी मैदान में कुमार ने सोना पसंद किया। इन सबों के सोने का इंतजाम योगीजी के हुक्म से उसी वक्त कर दिया गया। इसके बाद योगीजी अपने कमरे की तरफ रवाना हुए और वनकन्या भी एक तरफ को चली गई।



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Re: चंद्रकांता

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थोड़ी - सी रात बाकी थी, वह भी उन लोगों को बातचीत करते बीत गई। अभी सूरज नहीं निकला था कि योगीजी अकेले फिर कुमार के पास आ मौजूद हुए और बोले, “मैं रात को एक बात कहना भूल गया था सो इस वक्त समझाए देता हूं। जब राजा जयसिंह इस खोह में आने के लिए तैयार हो जायं बल्कि तुम्हारे पिता और जयसिंह दोनों मिलकर इस खोह के दरवाजे तक आ जायं, तब पहले तुम उन लोगों को बाहर ही छोड़कर अपने ऐयारों के साथ यहां आकर हमसे मिल जाना, इसके बाद उन लोगों को यहां लाना, और इस वक्त स्नान - पूजा से छुट्टी पाकर तब यहां से जाओ।” कुमार ने ऐसा ही किया, मगर योगी की आखिरी बात से इनको और भी ताज्जुब हुआ कि हमें पहले क्यों बुलाया।

कुछ खाने का सामान हो गया। कुमार और उनके ऐयारों को खिला - पिलाकर योगी ने बिदा कर दिया।

दोहराके लिखने की कोई जरूरत नहीं, खोह में घूमते - फिरते कुंअर वीरेन्द्रसिंह और उनके ऐयार जिस तरह इस बाग तक आये थे उसी तरह इस बाग से दूसरे और दूसरे से तीसरे में होते सब लोग खोह के बाहर हुए और एक घने पेड़ के नीचे सबो को बैठा देवीसिंह कुमार के लिए घोड़ा लाने नौगढ़ चले गये।

थोड़ा दिन बाकी था जब देवीसिंह घोड़ा लेकर कुमार के पास पहुंचे, जिस पर सवार होकर कुंअर वीरेन्द्रसिंह अपने ऐयारों के साथ नौगढ़ की तरफ रवाना हुए।

नौगढ़ पहुंचकर अपने पिता से मुलाकात की और महल में जाकर अपनी माता से मिले। अपना कुल हाल किसी से नहीं कहा, हां, पन्नालाल वगैरह की जुबानी इतना हाल इनको मिला कि कोई जालिमखां इन लोगों का दुश्मन पैदा हुआ है जिसने विजयगढ़ में कई खून किए हैं और वहां की रियाया उसके नाम से कांप रही है, पंडित बद्रीनाथ उसको गिरफ्तार करने गये हैं, उनके जाने के बाद यह भी खबर मिली है कि एक आफतखां नामी दूसरा शख्स पैदा हुआ है जिसने इस बात का इश्तिहार दे दिया है कि फलाने रोज बद्रीनाथ का सिर लेकर महल में पहुंचूंगा, देखूं मुझे कौन गिरफ्तार करता है।

इन सब खबरों को सुनकर कुंअर वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी बहुत घबराये और सोचने लगे कि जिस तरह हो विजयगढ़ पहुंचना चाहिए क्योंकि अगर ऐसे वक्त में वहां पहुंचकर महाराज जयसिंह की मदद न करेंगे और उन शैतानों के हाथ से वहां की रियाया को न बचावेंगे तो कुमारी चंद्रकान्ता को हमेशा के लिए ताना मारने की जगह मिल जायगी और हम उसके सामने मुंह दिखाने लायक भी न रहेंगे।

इसके बाद यह भी मालूम हुआ कि जीतसिंह पंद्रह दिनों की छुट्टी लेकर कहीं गये हैं। इस खबर ने तेजसिंह को परेशान कर दिया। वह इस सोच में पड़ गये कि उनके पिता कहां गये, क्योंकि उनकी बेरादरी में कहीं कुछ काम न था जहां जाते, तब इस बहाने से छुट्टी लेकर क्यों गये?

तेजसिंह ने अपने घर में जाकर अपनी मां से पूछा कि हमारे पिता कहां गये हैं! जिसके जवाब में उस बेचारी ने कहा, “बेटा, क्या ऐयारों के घर की औरतें इस लायक होती हैं कि उनके मालिक अपना ठीक - ठीक हाल उनसे कहा करें!”

इतना ही सुनकर तेजसिंह चुप हो रहे। दूसरे दिन राजा सुरेन्द्रसिंह के पूछने पर तेजसिंह ने इतना कहा कि ”हम लोग कुमारी चंद्रकान्ता को खोजने के लिए खोह में गये थे, वहां एक योगी से मुलाकात हुई जिसने कहा कि अगर महाराज सुरेन्द्रसिंह और महाराज जयसिंह को लेकर यहां आओ तो मैं चंद्रकान्ता को बुलाकर उसके बाप के हवाले कर दूं। इसी सबब से हम लोग आपको और महाराज जयसिंह को लेने आये हैं।”

राजा सुरेन्द्रसिंह ने खुश होकर कहा, “हम तो अभी चलने को तैयार हैं मगर महाराज जयसिंह तो ऐसी आफत में फंस गये हैं कि कुछ कह नहीं सकते। पंडित बद्रीनाथ यहां से गये हैं, देखें क्या होता है। तुमने तो वहां का हाल सुना ही होगा!”

तेज - मैं सब हाल सुन चुका हूं, हम लोगों को वहां पहुंचकर मदद करना मुनासिब है।

सुरेन्द्रसिंह - मैं खुद कहने को था। कुमार की क्या राय है, वे जायेंगे या नहीं?

तेज - आप खुद जानते हैं कि कुमार काल से भी डरने वाले नहीं, वह जालिमखां क्या चीज है!

राजा - ठीक है, मगर किसी वीर पुरुष का मुकाबला करना हम लोगों का धर्म है और चोर तथा डाकुओं या ऐयारों का मुकाबला करना तुम लोगों का काम है, क्या जाने वह छिपकर कहीं कुमार ही पर घात कर बैठे!

तेज - वीर और बहादुरों से लड़ना कुमार का काम है सही, मगर दुष्ट, चोर, डाकू या और किसी को भी क्या मजाल है कि हम लोगों के रहते कुमार का बाल भी बांका कर जाय 1

राजा - हम तो मान के आगे जान कोई चीज नहीं समझते, मगर दुष्ट घातियों से बचे रहना भी धर्म है। सिवाय इसके कुमार के वहां गए बिना कोई हर्ज भी नहीं है, अस्तु तुम लोग जाओ और महाराज जयसिंह की मदद करो। जब जालिमखां गिरफ्तर हो जाय तो महाराज को सब हाल कह - सुनकर यहां लेते आना, फिर हम भी साथ होकर खोह में चलेंगे।

राजा सुरेन्द्रसिंह की मर्जी कुमार को इस वक्त विजयगढ़ जाने देने की नहीं समझकर और राजा से बहुत जिद करना भी बुरा ख्याल करके तेजसिंह चुप हो रहे। अकेले ही विजयगढ़ जाने के लिए महाराज से हुक्म लिया और उनके खास हाथ की लिखी हुई खत का खलीता लेकर विजयगढ़ की तरफ रवाना हुए।

कुछ दूर जाकर दोपहर की धूप घने जंगल के पेड़ों की झुरमुट में काटी और ठंडे हो रवाना हुए। विजयगढ़ पहुंचकर महल में आधी रात को ठीक उस वक्त पहुंचे जब बहुत से जवांमर्दों की भीड़ बटुरी हुई थी और हर एक आदमी चौकन्ना होकर हर तरफ देख रहा था। यकायक पूरब की छत से धामाधाम छ: आदमी कूदकर बीचोंबीच भीड़ में आ खड़े हुए, जिनके आगे - आगे बद्रीनाथ का सिर हाथ में लिये आफतखां था।

तेजसिंह को अभी तक किसी ने नहीं देखा था, इस वक्त इन्होंने ललकारकर कहा - ”पकड़ो इन नालायकों को, अब देखते क्या हो?” इतना कहकर आप भी कमंद फैलाकर उन लोगों की तरफ फेंका, तब तक बहुत से आदमी टूट पड़े। उन लोगों के हाथ में जो गेंद मौजूद थे, जमीन पर पटकने लगे, मगर कुछ नहीं, वहां तो मामला ही ठंडा था, गेंद क्या था धोखे की टट्टी थी। कुछ करते - धारते न बन पड़ा और सब - के - सब गिरफ्तार हो गये।

अब तेजसिंह को सबों ने देखा, आफतखां ने भी इनकी तरफ देखा और कहा - ”तेज, मेमचे बद्री।” इतना सुनते ही तेजसिंह ने आफतखां का हाथ पकड़कर इनको सबों से अलग कर लिया और हाथ - पैर खोल गले से लगा लिया। सब गुल मचाने लगे - ”हां - हां यह क्या करते हो, यह तो बड़ा भारी दुष्ट है, इसी ने तो बद्रीनाथ को मारा है। देखो, इसी के हाथ में बेचारे बद्रीनाथ का सिर है, तुम्हें क्या हो गया कि इसके साथ नेकी करते हो?” पर तेजसिंह ने घुड़ककर कहा - ”चुप रहो, कुछ खबर भी है कि यह कौन हैं? बद्रीनाथ को मारना क्या खेल हो गया है?”

तेजसिंह की इज्जत को सब जानते थे। किसी की मजाल न थी कि उनकी बात काटता। आफतखां को उनके हवाले करना ही पड़ा, मगर बाकी पांचों आदमियों को खूब मजबूती से बांधा।

आफतखां का हाथ भी तेजसिंह ने छोड़ दिया और साथ - साथ लिये हुए महाराज जयसिंह की तरफ चले। चारों तरफ धूम मची थी, जालिमखां और उसके साथियों के गिरफ्तार हो जाने पर भी लोग कांप रहे थे, महाराज भी दूर से सब तमाशा देख रहे थे। तेजसिंह को आफतखां के साथ अपनी तरफ आते देख घबरा गये। म्यान से तलवार खींच लिया। तेजसिंह ने पुकारकर कहा, “घबराइये नहीं, हम दोनों आपके दुश्मन नहीं हैं। ये जो हमारे साथ हैं और जिन्हें आप कुछ और समझे हुए हैं, वास्तव में पंडित बद्रीनाथ हैं।” यह कह आफतखां की दाढ़ी हाथ से पकड़कर झटक दी जिससे बद्रीनाथ कुछ पहचाने गए।

आप महाराज जयसिंह का जी ठिकाने हुआ, पूछा, “बद्रीनाथ उनके साथ क्यों थे?”

बद्री - महाराज अगर मैं उनका साथी न बनता तो उन लोगों को यहां तक लाकर गिरफ्तार कौन कराता?

महा - तुम्हारे हाथ में यह सिर किसका लटक रहा है?

बद्री - मोम का, बिल्कुल बनावटी।

अब तो धूम मच गई कि जालिमखां को बद्रीनाथ ऐयार ने गिरफ्तार कराया। इनके चारों तरफ भीड़ लग गई, एक पर एक टूटा पड़ता था। बड़ी ही मुश्किल से बद्रीनाथ उस झुण्ड से अलग किये गए। जालिमखां वगैरह को भी मालूम हो गया कि आफतखां कृपानिधान बद्रीनाथ ही थे, जिन्होंने हम लोगों को बेढब धोखा देकर फंसाया, मगर इस वक्त क्या कर सकते थे? हाथ - पैर सभी के बंधे थे, कुछ जोर नहीं चल सकता था, लाचार होकर बद्रीनाथ को गालियां देने लगे। सच है जब आदमी की जान पर आ बनती है तब जो जी में आता है बकता है।

बद्रीनाथ ने उनकी गालियों का कुछ भी ख्याल न किया बल्कि उन लोगों की तरफ देखकर हंस दिया। इनके साथ बहुत से आदमी बल्कि महाराज तक हंस पड़े।

महाराज के हुक्म से सब आदमी महल के बाहर कर दिये गये, सिर्फ थोड़े से मामूली उमरा लोग रह गए और महल के अंदर ही कोठरी में हाथ - पैर जकड़ जालिमखां और उसके साथी बंद कर दिये गये। पानी मंगवाकर बद्रीनाथ का हाथ - पैर धुलवाया गया, इसके बाद दीवानखाने में बैठकर बद्रीनाथ से सब खुलासा हाल जालिमखां के गिरफ्तार करने का पूछने लगे जिसको सुनने के लिए तेजसिंह भी व्याकुल हो रहे थे।

बद्रीनाथ ने कहा, “महाराज, इस दुष्ट जालिमखां से मिलने की पहली तरकीब मैंने यह की कि अपना नाम आफतखां रखकर इश्तिहार दिया और अपने मिलने का ठिकाना ऐसी बोली में लिखा कि सिवाय उसके या ऐयारों के किसी को समझ में न आवे। यह तो मैं जानता ही था कि यहां इस वक्त कोई ऐयार नहीं है जो मेरी इस लिखावट को समझेगा।”

महा - हां ठीक है, तुमने अपने मिलने का ठिकाना 'टेटी - चोटी' लिखा था, इसका क्या अर्थ है?

बद्री - ऐयारी बोली में 'टेटी - चोटी' भयानक नाले को कहते हैं।

इसके बाद बद्रीनाथ ने जालिमखां से मिलने का और गेंद का तमाशा दिखला के धोखे का गेंद उन लोगों के हवाले कर भुलावा दे महल में ले आने का पूरा - पूरा हाल कहा, जिसको सुनकर महाराज बहुत ही खुश हुआ और इनाम में बहुत - सी जागीर बद्रीनाथ को देना चाहा, मगर उन्होंने उसको लेने से बिल्कुल इंकार किया और कहा कि बिना मालिक की आज्ञा के मैं आपसे कुछ नहीं ले सकता, उनकी तरफ से मैं जिस काम पर मुकर्रर किया गया था जहां तक हो सका उसे पूरा कर दिया।

इसी तरह के बहुत से उज्र बद्रीनाथ ने किये जिसको सुन महाराज और भी खुश हुए और इरादा कर लिया कि किसी और मौके पर बद्रीनाथ को बहुत कुछ देंगे जबकि वे लेने से इंकार न कर सकेंगे।

बात ही बात में सबेरा हो गया, तेजसिंह और बद्रीनाथ महाराज से बिदा हो दीवान हरदयालसिंह के घर आये।
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Re: चंद्रकांता

Post by Jemsbond »

सुबह को खुशी - खुशी महाराज ने दरबार किया। तेजसिंह और बद्रीनाथ भी बड़ी इज्जत से बैठाये गए। महाराज के हुक्म से जालिमखां और उसके चारों साथी दरबार में लाये गये जो हथकड़ी - बेड़ी से जकड़े हुए थे। हुक्म पा तेजसिंह जालिमखां से पूछने लगे :

तेजसिंह - क्यों जी, तुम्हारा नाम ठीक - ठीक जालिमखां है या और कुछ?

जालिम - इसका जवाब मैं पीछे दूंगा, पहले यह बताइये कि आप लोगों के यहां ऐयारों को मार डालने का कायदा है या नहीं?

तेज - हमारे यहां क्या हिंदुस्तान भर में कोई धार्मिष्ठ हिंदू राजा ऐयार को कभी जान से न मारेगा। हां वह ऐयार जो अपने कायदे के बाहर काम करेगा जरूर मारा जायगा।

जालिम - तो क्या हम लोग मारे जायेंगे?

तेज - यह खुशी महाराज की मगर क्या तुम लोग ऐयार हो जो ऐसी बातें पूछते हो?

जालिम - हां हम लोग ऐयार हैं।

तेज - राम - राम, क्यों ऐयारी का नाम बदनाम करते हो। तुम तो पूरे डाकू हो, ऐयारी से तुम लोगों का क्या वास्ता?

जालिम - हम लोग कई पुश्त से ऐयार होते आ रहे हैं कुछ आज नये ऐयार नहीं बने।

तेज - तुम्हारे बाप - दादा शायद ऐयार हुए हों, मगर तुम लोग तो खासे दुष्ट डाकुओं में से हो।

जालिम - जब आपने हमारा नाम डाकू ही रखा है, तो बचने की कौन उम्मीद हो सकती है!

तेज - जो हो खैर यह बताओ कि तुम हो कौन?

जालिम - जब मारे ही जाना है तो नाम बताकर बदनामी क्यों लें और अपना पूरा हाल भी किसलिए कहें? हां इसका वादा करो कि जान से न मारोगे तो कहें।

तेज - यह वादा कभी नहीं हो सकता और अपना ठीक - ठीक हाल भी तुमको झख मार के कहना होगा।

जालिम - कभी नहीं कहेंगे।

तेज - फिर जूते से तुम्हारे सिर की खबर खूब ली जायेगी।

जालिम - चाहे जो हो।

बद्री - वाह रे जूतीखोर।

जालिम - (बद्रीनाथ से) ओस्ताद, तुमने बड़ा धोखा दिया, मानता हूं तुमको!

बद्री - तुम्हारे मानने से होता ही क्या है, आज नहीं तो कल तुम लोगों के सिर धाड़ से अलग दिखाई देंगे।

जालिम - अफसोस कुछ करने न पाए!

तेजसिंह ने सोचा कि इस बकवाद से कोई मतलब न निकलेगा। हजार सिर पटकेंगे पर जालिमखां अपना ठीक - ठीक हाल कभी न कहेगा, इससे बेहतर है कि कोई तरकीब की जाय, अस्तु कुछ सोचकर महाराज से अर्ज किया, “इन लोगों को कैदखाने में भेजा जाय फिर जैसा होगा देखा जायगा, और इनमें से वह एक आदमी (हाथ से इशारा करके) इसी जगह रखा जाय।” महाराज के हुक्म से ऐसा ही किया गया।

तेजसिंह के कहे मुताबिक उन डाकुओं में से एक को उसी जगह छोड़ बाकी सबों को कैदखाने की तरफ रवाना किया। जाती दफे जालिमखां ने तेजसिंह की तरफ देख के कहा, “ओस्ताद, तुम बड़े चालाक हो। इसमें कोई शक नहीं कि चेहरे से आदमी के दिल का हाल खूब पहचानते हो, अच्छे डरपोक को चुन के रख लिया, अब तुम्हारा काम निकल जायगा।”

तेजसिंह ने मुस्कराकर जवाब दिया, “पहले इसकी दुर्दशा कर ली जाय फिर तुम लोग भी एक - एक करके इसी जगह लाए जाओगे।”

जालिमखां और उसके तीन साथी तो कैदखाने की तरफ भेज दिए गए, एक उसी जगह रह गया। हकीकत में वह बहुत डरपोक था। अपने को उसी जगह रहते और साथियों को दूसरी जगह जाते देख घबरा उठा। उसके चेहरे से उस वक्त और भी बदहवासी बरसने लगी जब तेजसिंह ने एक चोबदार को हुक्म दिया कि ”अंगीठी में कोयला भरकर तथा दो - तीन लोहे की सींखें जल्दी से लाओ, जिनके पीछे लकड़ी की मूठ लगी हो।”

दरबार में जितने थे सब हैरान थे कि तेजसिंह ने लोहे की सलाख और अंगीठी क्यों मंगाई और उस डाकू की तो जो कुछ हालत थी लिखना मुश्किल है।

चार - पांच लोहे के सींखचे और कोयले से भरी हुई अंगीठी लाई गई। तेजसिंह ने एक आदमी से कहा, “आग सुलगाओ और इन लोहे की सींखों को उसमें गरम करो।” अब उस डाकू से न रहा गया। उसने डरते हुए पूछा, “क्यों तेजसिंह, इन सींखों को तपाकर क्या करोगे?”

तेज - इनको लाल करके दो तुम्हारी दोनों आंखों में, दो दोनों कानों में और एक सलाख मुंह खोलकर पेट के अंदर पहुंचाया जायगा।

डाकू - आप लोग तो रहमदिल कहलाते हैं, फिर इस तरह तकलीफ देकर किसी को मारना क्या आप लोगों की रहमदिली में बट्टा न लगावेगा?

तेज - (हंसकर) तुम लोगों को छोड़ना बड़े संगदिल का काम है, जब तक तुम जीते रहोगे हजारों की जानें लोगे, इससे बेहतर है कि तुम्हारी छुट्टी कर दी जाय। जितनी तकलीफ देकर तुम लोगों की जान ली जायगी उतना ही डर तुम्हारे शैतान भाइयों को होगा।

डाकू - तो क्या अब किसी तरह हमारी जान नहीं बच सकती?

तेज - सिर्फ एक तरह से बच सकती है।

डाकू - कैसे?

तेज - अगर अपने साथियों का हाल ठीक - ठीक कह दो तो अभी छोड़ दिए जाओगे।

डाकू - मैं ठीक - ठीक हाल कह दूंगा।

तेज - हम लोग कैसे जानेंगे कि तुम सच्चे हो?

डाकू - साबित कर दूंगा कि मैं सच्चा हूं।

तेज - अच्छा कहो।

डाकू - सुनो कहता हूं।

इस वक्त दरबार में भीड़ लगी हुई थी। तेजसिंह ने आग की अंगीठी क्यों मंगाई? ये लोहे की सलाइयें किस काम आवेंगी? यह डाकू अपना ठीक - ठीक हाल कहेगा या नहीं? यह कौन है? इत्यादि बातों को जानने के लिए सबों की तबीयत घबड़ा रही थी। सभी की निगाहें उस डाकू के ऊपर थीं। जब उसने कहा कि 'मैं ठीक - ठीक हाल कह दूंगा' तब और भी लोगों का ख्याल उसी की तरफ जम गया और बहुत से आदमी उस डाकू की तरफ कुछ आगे बढ़ आये।

उस डाकू ने अपने साथियों का हाल कहने के लिए मुस्तैद होकर मुंह खोला ही था कि दरबारी भीड़ में से एक जवान आदमी म्यान से तलवार खींचकर उस डाकू की तरफ झपटा और इस जोर से एक हाथ तलवार का लगाया कि उस डाकू का सिर धाड़ से अलग होकर दूर जा गिरा, तब उसी खून भरी तलवार को घुमाता और लोगों को जख्मी करता वह बाहर निकल गया।

उस घबड़ाहट में किसी ने भी उसे पकड़ने का हौसला न किया, मगर बद्रीनाथ कब रुकने वाले थे, साथ ही वह भी उसके पीछे दौड़े।

बद्रीनाथ के जाने के बाद सैकड़ों आदमी उस तरफ दौड़े, लेकिन तेजसिंह ने उसका पीछा न किया। वे उठकर सीधो उस कैदखाने की तरफ दौड़ गए जिसमें जालिमखां वगैरह कैद किये गये थे। उनको इस बात का शक हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि उन लोगों को किसी ने ऐयारी करके छुड़ा दिया हो। मगर नहीं, वे लोग उसी तरह कैद थे। तेजसिंह ने कुछ और पहरे का इंतजाम कर दिया और फिर तुरंत लौटकर दरबार में चले आये।

पहले दरबार में जितनी भीड़ लगी हुई थी अब उससे चौथाई रह गई। कुछ तो अपनी मर्जी से बद्रीनाथ के साथ दौड़ गए, कितनों ने महाराज का इशारा पाकर उसका पीछा किया था। तेजसिंह के वापस आने पर महाराज ने पूछा, “तुम कहां गए थे?”

तेज - मुझे यह फिक्र पड़ गई थी कि कहीं जालिमखां वगैरह तो नहीं छूट गए, इसलिए कैदखाने की तरफ दौड़ा गया था। मगर वे लोग कैदखाने में ही पाए गए।

महा - देखें बद्रीनाथ कब तक लौटते हैं और क्या करके लौटते हैं?

तेज - बद्रीनाथ बहुत जल्द आवेंगे क्योंकि दौड़ने में वे बहुत ही तेज हैं।

आज महाराज जयसिंह मामूली वक्त से ज्यादा देर तक दरबार में बैठे रहे। तेजसिंह ने कहा भी - ”आज दरबार में महाराज को बहुत देर हुई?” जिसका जवाब महाराज ने यह दिया कि ”जब तक बद्रीनाथ लौटकर नहीं आते या उनका कुछ हाल मालूम न हो ले हम इसी तरह बैठे रहेंगे।”
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