भागू (उपन्यास )

Jemsbond
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Re: भागू (उपन्यास )

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जब मनुष्य बहुत ज्यादा दुखी हो या हद से ज्यादा खुश हो तो वह अपने एक ऐसे करीबी की खोज करता है , जो उसके विचारों से मेल खाता हो , जिसे वह सारा अपना दुःख - सुख बेझिझक बता सके । अपनी ज़िन्दगी के उतार - चढाव उसके आगे खोल सके। . उसे गम बताये गम कम हो जाये, ख़ुशी सांझी करने से ख़ुशी दुगुनी हो जाए। . ऐसी स्थिति में ही गाढ़ी मित्रता का जन्म होता है। ऐसी ही मित्रता थी भागू और राजे के बीच । भगवान का राजे के साथ बातें करने के लिए पेट ऊपर तक भरा हुआ था। . उसका दिल उतावला हो - हो जाता कि मैं कब राजे से ख़ुशी सांझी कर लूँ। . वह शाम छ: बजे तक जल्दी - जल्दी काम निपटाता रहा। सारे काम निपटा कर वह राजे के घर की ओर चल पड़ा। . राजा घर ही मिल गया '' भागू ! ओये ईद का चाँद ही हो गया तू तो , कभी आता ही नहीं इधर ?''
'' यार टाईम ही नहीं मिला। . '' भगवान ने हाथ मिलाया ।
'' और सुना पढाई -वढाई ठीक चल रही है ? ''
'' हाँ यार ठीक है। . ''
'' चल , ऊपर चल कर करते हैं बातें। . '' राजा भागु को कोठे के ऊपर ले गया। दिन पूरा ढल चुका था। मटमैले आसमान में उड़ते कौओं की कतार दक्षिण की ओर तेजी से बढ़ रही थी। . सूरज ने पश्चिम का सीना खून की तरह लाल कर रखा था। . सामने कोठे पर दो लडकियां सुबह के डाले कपड़े उठाने में जुटी थीं। . राजा और भागु बनेरे पर बैठ गए। .
'' सुना यार कोई परी की बातचीत, दयाल हुई या नहीं तुझ पर ? '' राजे ने लड़के का कंधा थपथपाया। .
'' हम करे बिना छोड़ते हैं। .''
'' ओये सदके बेलिया ! क्या बोलती फिर ? '' राजे ने ऐसे मुँह फाड़ लिया जैसे बातें कानों से नहीं मुँह से सुननी हो ।
'' अब तो मरती है तेरे वीर पे , कहती है जल्दी मिल के जाया कर। . ''
'' अच्छा ! मिला फिर ?''
'' हाँ !''
'' कब ?''
''छ: दिन हुए। . ''
'' छ दिन हो गए ? राजे के माथे पे हैरानी की लकीरें उभर आईं , '' ओये जा यार, अगर तेरी जगह मैं होता तो एक दिन में दो - दो बार मिलता। . ''
'' क्या करें यार , हर रोज़ उसके घर वाले नहीं आने देते। . '' लड़के ने बेबसी जाहिर की क्योंकि जिस दिन करमी संदेशा देती या खुद जाकर ले आती , उस दिन ही गुरजीत के घर मिला जाता। .
'' फिर तेरी कौन सी टाँगे टूटी हुई हैं खुद चला जाया कर। . ''
'' मुझे वहाँ रोज़ कौन घुसने देगा ?''
'' ओये भोंदू ! तूने उनके घर थोड़े ही जाना है , सारी सड़क पड़ी है , सड़क का एक आध चक्कर लगा आया कर कभी तो मिलेगी। ''. राजे ने जुगत बताई। .
'' चल ऐसा करके भी देख लेंगे। .''
'' देखना क्या है अभी चल। ''
'' अभी ?''
'' तू चल तो सही ;'' राजा ने भागू की बाँह पकड़ खींच लिया। बाहर आते ही गुरनैब मिल गया। . तीनों ने चीमियाँ को जाती सड़क पकड़ ली।
'' अगर बाहर मिल गई तो क्या कहूँगा ? भगवान ने गुरनैब से सलाह माँगी।
'' कह देना रात को आऊँगा। .''
'' कितने बजे कहूँ ?''
'' ग्याराह बजे कह देना। ''
जब तीनों किरना के घर के पास पहुँचे तो किरना कचरा फेंकने बाहर आई और कूड़ा रूडी के ऊपर फेंक वापस परत गई। . गुरनैब ने किरना को मुड़कर जाते देखा तो दोनों हाथों से ताली मारी। . लड़की देख कर रुक गई , राजा और गुरनैब तेज क़दमों से आगे बढ़ गए। .
'' रात को ग्यारह बजे आऊँगा । .'' भगवान लड़की के पास रुक गया ।
'' न नहीं … नहीं। .'' किरना ने तेजी से इनकार में सर हिलाया। .
'' मैं जरुर आऊँगा , तुम आना चाहे न आना। . '' भगवान किरना का जवाब सुने बिना ही आगे बढ़ गया। किरण ठगी सी कुछ देर वहीँ खड़ी रही फिर अन्दर चली गई। .
'' क्या कहती फिर कबूतरी ? '' गुरनैब मस्ती में फुसफुसाया। .
'' कबूतरी डरती है घर वाली बिल्लियों से। .''
'' क्यों क्या हुआ ? '' गुरनैब उबलते दूध में मारे पानी के छींटों की तरह एकदम से ढीला पड़ गया ;;
'' वह तो इनकार कर रही थी मैंने कह दिया तू चाहे आना या न आना मैं जरुर आऊँगा ।''
'' ओये सदके तेरे। .'' गुरनैब दूध के नीचे दुबारा लगाये झोंके की तरह लड़के की पीठ पर थापी देकर उछल पड़ा ।
तीनों चीमियों को जाती सड़क पर चल पड़े। इसी सड़क पर आगे जाकर राजे का खेत पड़ता था। खेत पहुँच कर वे कोठे के आगे बनी खेल पर बैठे शाम तक बातें करते रहे। . जब वापस मुड़े तो सूरज कब का ढल चुका था। अब तो आसमान में पहला मोटा तारा भी झाँकने लगा था। . अन्धेरा धीरे - धीरे अपने आस -पास को गिरफ्त में लेने लगा था। .
पिंड तक आते - आते वे रात को आने की सलाह बनाते रहे। आखिर फैंसला कर लिया कि तीनों की बजाय दो का आना ज्यादा ठीक रहेगा। राजे को घर भेज दिया और उसके हाथ गुरनैब के घर संदेशा भिजवा दिया कि वो आज भगवान के घर ही रहेगा। दोनों रोटी खाकर बैठक में आ गए। साढ़े नौ बजे तक दोनों बातें करते रहे और फिर चारपाई डालकर लेट गए। चारपाई पर पड़े दोनों एक - दुसरे को देखते और फिर उनकी नज़र घड़ी की ओर चली जाती। समय ने जैसे चींटी की चाल पकड़ ली थी। एक - एक मिनट पहाड़ बन गया था। . फिर भी समय का चक्कर , चक्कर काटता समय को कुतरता रहा और सुई दस के ऊपर आ खड़ी हुई।
'' चल फिर भागु हो जा तैयार। टाइम देख दस बज गए हैं। '' गुरनैब ने जुत्ती पहनते हुए घड़ी की ओर इशारा किया। .
'' हाँ चल। '' लड़का छलांग लगा उठ खड़ा हुआ।
'' कोई कपड़ा तो नहीं उठाना। ''
'' छोड़ कौन सी ठंड है। ''
'' हवा की ठंड होगी । ''
'' चल ले - ले फिर एक - आध । ''
'' ये ले चलते हैं। '' गुरनैब ने बिस्तर पर बिछाई चद्दर उठा ली ।
कमरे की लाइटें बुझाकर उन्होंने बाहर गली की ओर खुलता द्वार खोल लिया । बाहर आकर द्वार को कुण्डी लगा अन्दर पड़े घर वालों की हल्की सी सुध ली। जब सभी तरफ़ से संतुष्ट हो गए तो दोनों चल पड़े। . बाहर चलती ठंडी हवा शरीर पर के लोम खड़े करती ठण्ड होने का एहसास करवा रही थी । आसमान में टिमटिमाते तारों में गोल चाँद प्रधान बना खड़ा था। आसमानी लाखों तारे चमकते हुए ऐसे जान पड़ते थे मानों किसी ने हीरों से भरा थाल उलटा कर दिया हो और उनमें पड़ा कोहेनूर हीरा चाँद हो । चाँदनी रात होने के कारण कोई भी चीज दूर तक देखी जा सकती थी। दोनों बातें करते गांव से काफी दूर आ गए थे। अब गाँव में एक - आध ही बल्ब चमक रहा था या फिर गली में कुत्तों के भौंकने की मद्धम सी आवाज़ आ रही थी। खेतों में कोठों पर लगे बल्बों से पता चलता था कि खेतों वाली लाईट आ चुकी है। वे किरना के घर से कुछ दूर फासले पर रुक गए। सामने की सड़क से दूर कोई लाईट इनकी ओर बढ़ी चली आ रही थी। .
'' ओये लगता कोई स्कूटर आ रहा है। '' गुरनैब ने भागू को सचेत किया।
'' आ जा इधर बेरी के पेड़ के पीछे हो जा । ''
'' चल । '' दोनों बेरी की ओट में हो गए । स्कूटर पास से ख …र … र … र करता पार हो गया ।
'' इस समय कौन साला भटक रहा है ? '' भागू ने दूर पार हो गए स्कूटर सवार को देख कर कहा ।
'' कोई होगा बेचारा अपने जैसा भगत । ''
'' ही … ही …. ही । '' गुरनैब की बात पर दोनों हँस पड़े.
'' ओये भागू ! अरे तूने उसे कोई जगह भी बतलाई थी …?''
'' नहीं । ''
'' ओये वाह ओये तेरे यारा । '' गुरनैब चिंता में डूब गया ।
''चल हम यूँ करते हैं , तू पीछे के दरवाजे के पास बैठ जा और मैं इधर बैठ जाता हूँ । '' भागू ने तरकीब बतलाई ।
गुरनैब घर के पिछले दरवाजे के पास बैठ गया और भगवान अगले दरवाजे से कुछ हट कर सड़क की ओर मुँह करके बैठ गया ताकि सड़क पर आते जाते लोगों पर भी नज़र रख सके। भागू कलाई पर बंधी घड़ी को बार - बार चाँद की ओर करके समय देखता । घड़ी की टिक -टिक के साथ उसके दिल की टिक -टिक बढती जा रही थी। . ग्यारह से पांच मिनट ऊपर हो गए । उसका धड़कता दिल शंकाओं से गुजरने लगा । अचानक पीछे की ओर से कोई रेशम जैसी चीज भागू की आँखों के आगे आई। जब इस रेशम को उसने हाथों से टटोला तो यह पतली - पतली उँगलियों का आकार था । . भागू का हाथ रेशम की उँगलियों से होता हुआ कोहनी तक चला गया । . कोहनी पकड़ कर उसने हल्का सा झटका दिया , अगले ही पल रेशम की किरण भागू की गोद में थी । चाँद शर्माता हुआ बदली के पीछे छुप गया। .
'' उस समय तो बड़ी ना - ना कर रही थी . ''
'' मेरा भागू इतनी दूर से चल कर आये और मैं घर से उठकर भी न आऊँ। .'' किरना भागू की गिरफ्त में छुपती जा रही थी।
चल उठ , गुरनैब की भी थोड़ी सुध लें। '' भागू ने गिरफ्त ढीली कर उसे खड़ा किया।
'' गुरनैब भी आया है तुम्हारे साथ ? ''
'' हाँ । ''
'' कहाँ है ? ''
'' दुसरे दरवाजे पर , हम तुम्हें जगह बतलानी तो भूल ही गए थे , इसलिए उसे उधर बैठाना पड़ा . ''
'' गुरनैब ! '' भागू ने दबे क़दमों से पीछे की ओर से जाकर गुरनैब के कंधे पर हाथ रखा ।
क … क क कौन ? '' गुरनैब डर से तबक सा गया। भागू और किरना हँसी न रोक सके। . '' वाह ओये डरपोक ! तुम तो जरुर मारोगे शेर , चल आ उधर चल कर बैठते हैं। '' तीनों वहाँ से सड़क पर आ गए।
'' तुम लोग उधर जा कर बातें करो मैं इधर बैठता हूँ। '' गुरनैब ने सड़क से कुछ हट कर खड़े टाहली के पेड़ की ओर इशारा किया ताकि चांदनी रात में वे टाहली के पेड़ के अँधेरे में किसी की निगाह में न आ सकें । जोडी टाहली के पीछे जा बैठी। . उन्होंने देखा उनसे थोड़ी दूरी पर खरगोश और खरगोशिनी आपस में कलोलें करते , खेलते , टपुसियाँ मारते , एक दुसरे के पीछे भागते कितने प्यारे लग रहे थे। कितनी ही देर दोनों इस जोड़ी को कलोलें करते देखते रहे। अपना मिलना भूल कुदरत की बनाई इस खूबसूरत किरत की तारीफ़ करते रहे।
'' भागू कितने आज़ाद हैं ये जानवर है न ?'' किरना लगातार अटखेलियाँ करते इस जानवर को देखे जा रही थी।
'' नहीं किरना , ये हमसे भी ज्यादा गुलाम हैं। ''
'' क्यों ?'' किरना इस तरह हैरान हुई जैसे भागू ने कोई अनहोनी बात कह दी हो।
'' हाँ , हम तो सिर्फ समाज की झिड़कियों से डरते हैं पर इन्हें हर वक़्त अपनी मौत का डर रहता है . पता नहीं ये मांस खाने वाली जात इनके लिए कब मौत का कारण बन जाये ।''
'' हाय ओये कमीनो !कभी इन्हें खेलते , अटखेलियाँ करते तो देख लो कितने प्यारे लगते हैं। '' किरना किसी अनजानी डर से भागू की गोद में दुबक गई। कितनी ही देर दोनों इस जानवर जोड़ी के लिए , इनकी आज़ादी के लिए , अपने प्यार के बारे बातें करते रहे , एक दुसरे को जी भर कर देखते और प्यार जताते रहे। समय अपनी चाल चलता रहा , चाँद चलता रहा , बदलियों के साथ अटखेलियाँ करता रहा। कभी उसके आलिंगन में जा छुपता तो कभी बाहर आ अपनी चांदी रंगी चाँदनी से धरती को रौशन करता। जब चाँद बदली के आलिंगन से बाहर आया तो भगवान ने घड़ी में समय देखा , चार बज गए थे। दूर गाँव में गुरद्वारे के लाउड स्पीकर की आवाज़ सुनाई देने लग पड़ी थी। टाहली के ऊपर बने पक्षियों के घोंसलों में हलचल हुई। दोनों उठकर गुरनैब के पास आ गए।
' जी भर गया होगा अब तो । '' गुरनैब ने दोनों को ताना मारा। .
'' नहीं भूख और बढ़ गई है। '' भागू बोला।
फिर कोई इलाज करवाओ। .''
'' अच्छा , अच्छा चल अब चलें , जरा समय तो देख। .'' भागू ने घड़ी दिखाई।
दोनों ने जल्दी- जल्दी गाँव को जाती सड़क पकड़ ली। किरना काफी देर घर के सामने खड़ी उन्हें जाते देखती रही.. जब नज़र आने बंद हो गए तो घर के अन्दर चली गई । गोल चाँद छोटी बदली से निकल कर हँस पड़ा।
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धान की फसल पक कर पूरी जवानी में खड़ी थी। खेतों में चारों ओर लहलहाती पक्की फसल सोने का झाँवला देती। किसान चाहे फसल के पकने तक बेफिक्र रहे लेकिन जब फसल पूरी जवानी में आ जाती है तो वह भी किसी जवान बेटी के पिता की तरह फ़िक्र में डूब जाता है कि कहीं कोई कुदरती आफत आकर मेरी करी कराई मेहनत पर पानी न फेर दे। जब किसी तरफ से कभी रब्ब गरजता है तो किसान का दिल धक् - धक् करने लगता है। . वह हाथ जोड़ता है , लाखों मिन्नतें करता है। शायद इसी लिए किसान को भगत कहा गया है कि वह सारा साल अपना खून - पसीना एक करके अपने बेटे - बेटी सी फसल पालता है पर जब यह पक जाती है तो माँगता रब्ब से है। फसल पकी होने के कारण गली का बखेड़ा वहीँ का वहीँ रह गया था । कितने ही दिन गली के बीच की निकाली गई ईंटें वहीँ बिखरी पड़ी रहीं क्योंकि दोनों घर अपने - अपने कामों में उलझे हुए थे। . धान की फसल काट ली गई , बेच दी गई और उस खाली हुई धरती की कोख में गेहूं की फसल मुड़ बो दी गई। . जब दोनों तरफ के लोग कामों से निर्वृत्त हो गए , फिर मैदान में आ डटे। . गुरदयाल ने रात को एक -दो आदमी लगा गली बीच की दिवार फिर उठा दी। . दिन चढा। मुखत्यार लोगों तक खबर पहुँची वे गंडासे लेकर आ गए दीवार गिराने। . जग्गी ने खोद से ऊपर की दो कतारें गिरा दीं।
'' कौन है ?'' ठहर जरा तेरी माँ की …। '' गुरदयाल , जीता और सुरजू गंडासे लेकर गली की ओर भागे। पीछे सीतो और उसकी बेटी अक्की भी शोर मचाती दौड़ी आईं।
'' आ जाओ आगे, दें जरा दूध को पैसे। '' सरपँच लोगों ने गंडासे उठा लिए।
'' हाय ! ओ लोगो मार दिया री ….! चंद कौर और उसके साथ कुछ और औरतें मुख्त्यार के सामने आ खड़ी हुईं। सीतो और अक्की ने गुरदयाल लोगों के गंडासे पकड़ लिए।
'' तू पीछे हट जरा , आज मुझे इन्हें देख ही लेने दे। '' जग्गी अपनी घरवाली को धक्का दे कर दौड़ पड़ा और एक डंडा सुरजू के सर पर दे मारा। .
'' ओये मुंडियो ! (लड़को ) शर्म करो शर्म , कभी ऐसे भी मसले हल होते हैं ? '' बुजुर्ग हरभजन ज्ञानी ने दोनों को अलग -अलग करते हुए कहा । हल्ला सुनकर गली आँगन से कुछ लोग भी और आ खड़े हुए।
''देख भजन सिंह , तू खुद सयाना है , कभी गलियों में भी दीवार हुई है ? '' मुख्त्यार सरपंच अपने आप को सच्चा साबित करना चाहता था।
'' भजन सिंह , इन्हें कह गाँव का नक्शा देखें , यहाँ से गली है ही नहीं। ''गुरदयाल पिछले शब्दों पर जोर देता हुआ बोला।
'' ओये भाई ! क्यों आपस में मारा - मारी कर रहे हो। दो सियाने बंदे बैठा कर खत्म करो इस बात को। ''
'' ये खत्म होने वाला किस्सा नहीं है , यहाँ तो अब क़त्ल होगा क़त्ल । '' सुरजू आग बबूला हुआ खड़ा था।
'' अगर क़त्ल ही करवाना है तो फिर आ इधर , न चटनी जैसे रगड़ दिया तो कहना। '' जग्गी से दाहिना हाथ बाएँ हाथ पर धर कर रगड़ दिया।
'' ओये बीसों देखे हैं तेरे जैसे मच्छर , बड़ा बातें करता है। ''
अच्छा ! तो फिर आजा अब इक्कीसवाँ भी देख ले। '' जग्गी ने डंडा थोड़ा ऊपर उठा धरती पर जो से दे मारा।
'' चलो ओये मुंडियो अपने - अपने घर। गली तो यहीं रहेगी ,पर तुम सब कहीं कोई और स्यापा न डाल देना। हरभजन ज्ञानी , गुरदयाल लोगों को उनके घर तक छोड़ आया।
मुख्त्यार और उसके साथी बड़ -बड़ करते वापस परत गए। घर जाकर जग्गी और चांदी ने स्कूटर निकाल कर चीमे थाने की ओर रुक किया। दोनों को जाते ,स्कूल से आते हुए गुरदयाल के लड़के ने देख लिया। . जब वह घर पहुँचा तो घर में लड़ाई का माहौल बना हुआ था। सबने सरपंच से हुई लड़ाई की बातें छेड़ रखी थीं। गुरदयाल के लड़के सोनू को भी उखड़े माहौल के कारण दाल में कुछ काला लगा तो उसने जग्गी और चांदी के स्कूटर पर चीमे जाने की बात भी बता दी। सबने सुनकर क्रोध से कान खड़े कर लिए।
'' ला ओये जैलू ट्रेक्टर , देखते हैं थाने जाकर वो क्या करते हैं। ''
जैलू ने गुरदयाल के कहने पर ट्रैक्टर निकाल लिया। गुरदयाल और चंदन मैम्बर जैलू के दोनों साइड वाली सीटों पर बैठ गए।
'' ओये सुरजू। ''
'' हाँ ''
'' घर में भगवान होगा , उसे जाकर कह देना गुरदीप सरपंच के घर हो आये । अगर सरपंच हुआ तो उसे कह देना चीमे थाने आ जाये।
'' अच्छा। '' सुरजू भगवान के घर चला गया।
''किधर से चलें मैम्बरा ?'' जैलू ने ट्रैक्टर घर से बाहर निकाल लिया।
'' वे तोलावाल के रस्ते से गए हैं हम बीर गाँव से होते हुए चलते हैं। ''मैम्बर की जगह गुरदयाल ने जवाब दिया। ट्रैक्टर बीर को जाती सड़क पर चढ़ा दिया गया।
'' पहले साला गाय जैसा बना कहता था कर लो गली बंद , अब आकर जात नहीं पूछता। '' गुरदयाल सरपंच की करनी पर क्रोधित हो रहा था..
'' वह क्या करे बेचारा , उसे भी बहुत काम रहते हैं। कभी किसी का हल्ला , कभी किसी की पेंशन। '' जैलू सरपंच के काम गिनाने लगा ।
''कौन से करता है वो काम ? मैं तो उसे हमेशा चीमे , बीर वालों की स्पेयर की दूकान पर बैठा देखता हूँ। ''
''चल अच्छा है अगर आज 'वहीँ मिल जाए। ''
गुरदयाल और उसके साथी बीर होते हुए चीमे पहुँच गए। गुरदयाल ने जैलू बीर वालों की दूकान में सरपंच को देखने भेज दिया। खुद थाने के गेट के आगे खड़े हो गए। जैलू को सरपंच दूकान में ही मिल गया। वह उसे सारी बात बता कर साथ ले आया। चारो थाने के अन्दर चले गए। आँगन में बिछी स्प्रिंगों वाली कुर्सी पर बैठा थानेदार झूले में पड़े छोटे बच्चे की तरह झूल रहा था। आस - पास बैठी सिपाहियों की टोली दूर आते चार लोगों की ओर मुँह उठा - उठा कर देखने लगी। जब चारो पास आये तो कुर्सियों पर बैठे सिपाही खड़े हो गए और थानेदार ने आगे रखे मेज को पकड़ कुर्सी का झुलना बंद कर लिया।
'' आओ जी सरपंच साहब ! आज भूले भटके इधर कैसे दर्शन दे दिए ?'' थानेदार ने दिखावटी हँसी के साथ कुर्सी की ओर इशारा किया।
'' बस आपके दर्शन करने को दिल कर आया। ''सरपंच और मैम्बर कुर्सियों पर बैठ गए और गुरदयाल और जैलू पास पड़े बैंचों पर बैठ गए।
'' जा मणी सामने पांच कप चाय के बोल आ। '' थानेदार ने पास खड़े होमगार्ड को हुक्म दिया।
'' चाय को रहने देते जी बस पी कर ही चले थे। ''
'' आप मत पिलाना सरपंच साहब .'' थानेदार के दरवाजे के से मुंह के आगे लगे किसी किले के गेटों की तरह मोटे -मोटे होंठ सुस्त सी मुस्कान से चौड़े हो गए क्योंकि थानेदार चाय पिला कर 'चूय '(शराब )का प्रत्युपकार जिम्मे पाना चाहता था ।
'' और बताओ फिर कैसे आना हुआ ?''
'' गली का स्यापा है यार। गली है तो सारी गुरदयाल की जगह में , इन्होंने पहले भाईबंदी में आकर छोड़ दिया था पर अब ये अपनी बंद करना चाहते हैं पर उस मुख्त्यार को पता नहीं क्या हर्ज है रोज दीवार गिरा देता है। ''
'' वह तो कहता था यहाँ से गली है । ''
'' कैसे है ? ऐसे ही पानी में लाठी मार रहा है। ''
'' वे आये थे अभी, आपके आने से कुछ देर पहले ही रपट लिखा के गए हैं।''
'' किसका - किसका नाम लिखा गए ?''
'' पन्द्रह जनों का , तुम्हारा भी है साथ में । ''
'' मेरा ? सरपंच कुर्सी से उछल पड़ा।
'' हाँ ''
'' लो सर चाय। '' होमगार्ड ने चाय वाले बच्चे से पांच कप पकड़ कर मेज पर दिए .
'' लो जी पहले चाय पी लो फिर करते हैं बातें। '' थानेदार ने चाय की ओर इशारा किया। पाँचों ने एक - एक कप उठा कर मुंह से लगा लिया। चाय पीने के बाद गुरदयाल लोगों से सलाह बनाई , ' ताए दी धी चल्ली मैं क्यों रहां कल्ली ' कहावत की तरह इन्होंने भी रपट में विरोधियों के पन्द्रह जनों का नाम लिखा दिया। गुरदीप ने थानेदार से कस कर हाथ मिलाया और इज़ाज़त लेकर चल पड़े। अभी ये घर आकर चाय पानी पीने ही लगे थे कि पुलिस का कैंटर पीछे ही आ गया। दोनों पक्षों को गली में इकठ्ठा कर लिया गया । सरपंच का भतीजा घर से दो कुर्सियां ले आया। थानेदार कुर्सी पर बैठता हुआ बोला , बताओ फिर क्या फैसला करें ?''
'' जी जो मर्जी है कर दो। '' गुरदयाल ने हाथजोड़ दिए।
''पहले आप यह बताओ यहाँ से गली है ?''
'' गली तो है जी। ''
'' नहीं है। ''
'' नहीं … नहीं …. है यहाँ से गली। ''
'' कौन कहता है, यहाँ से गली है ?''
'' शांति …. शांति , अगर आपस में बोलना था तो मुझे क्यों बुलाया ? दो मिनट चुप बैठो। '' थानेदार ने हवा में हाथ ऊपर नीचे करते हुए सबको चुप करा दिया। '' तुम में से किसी के पास पिंड का नक्शा नहीं है ?''
'' है जी , मैं अभी ले कर आया। '' मुख्तयार घर से जाकर नक्शा ले आया।
'' ये देखो जी गली , ये … यहाँ से है। '' उसने गली के निशान पर ऊँगली रखी।
'' यह तो और कहीं से है ?''
'' हाँ जी , पहले यह यहाँ से थी जी , जहाँ इनके ये बड़े कमरे डाले हुए हैं, यहाँ से ही होकर जैलू के घर बीच से थी.'' .'मुख्तयार हाथ हिला - हिला कर थानेदार को बतलाने लगा। .
'' फिर न तो अब यहाँ से गली है और न जहाँ से पहले थी वहाँ से ही निकाल सकते हैं क्योंकि वहाँ अब घर डाल दिए गए हैं। अब आप सब ही बतलाओ क्या फैंसला करें ?'' थानेदार दोनों पक्षों की राय उनके चेहरे से पढ़ने लगा।
'' जैसे आप कर दोगे जी , बस ठीक है .'' गुरदयाल बोला।
थानेदार पहले कुछ सोचता रहा फिर कोई फैसला लेकर बोला , हम यूँ करते हैं , जो गली करतार के घर पीछे से गुजरती है , वहाँ से पानी निकाल देते हैं और गुरदयाल की गली में से रस्ता रख देते हैं या यहाँ से पानी निकाल देते हैं और रस्ता वहां से रख देते हैं। क्यों मंजूर है गुरदयाल ?''
'' जैसे आप ने कह दिया ठीक है जी। .''
'' तू भाई मुख्तयार ?''
'' नहीं जी ऐसे ठीक नहीं। अगर गली इधर से है , फिर पानी भी इधर से ही निकालो। ''
'' देखो मैंने तो दोनों पक्षों की कह दी मानना न मानना तुम्हारी मर्जी है। ''
थानेदार दोनों पक्षों का फैंसला कराने के लिए शाम तक मध्यस्त बनता रहा पर मुख्तयार की जिद्द कुत्ते की पूँछ की तरह टेढ़ी की टेढ़ी ही रही। कोई भी बात सही होती न देख थानेदार ने दोनों पक्षों को सुबह थाने आने के लिए कह दिया। जाते हुए थानेदार को सरपंच ने इशारे से घर आने के लिए कहा पर थानेदार साथ आये ज्यादा मुलाजमों के कारण पासा पलट गया .
सुबह होते ही दोनों पार्टियां ट्रैक्टर लेकर थाने जा पहुँची . थानेदार ने एक -दो फरियादियों को निपटा कर उन्हें अन्दर बुला लिया . दोनों सरपंच और मैम्बर पहले ही अन्दर चले गये थे और एक - दुसरे को कनखियों से घूरते रहे। . आज भी थानेदार ने हर कोशिश करके देख ली पर कोई फैंसला न हो सका। फिर अगले दिन पर बात छोड़ दी गई.. फिर अगले दिन पर और फिर अगले दिन पर बात टलती गई। इस तरह थानेदार कई दिन बुलाता रहा कि शायद आने - जाने से तंग आकर कोई फैंसला हो जाये पर दिल्ली वहीँ की वहीँ रही। कोई फैंसला न हो सका। आखिर थानेदार ने धारा ३२५ लगा कर दोनों पक्षों की पेशियाँ डाल दीं। .
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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शीतकाल अपनी पूरी जवानी पर था। दरख्तों के पत्ते पीले पड़ झड़ने लगे थे। कई दिनों से सूरज ने अपना मुँह नहीं दिखाया था। सारा दिन धुंध पड़ती रहती। बूढ़े - ठेरे सारा दिन धूनी लगा बैठे आग सुलगाते रहते। आज जब कई दिनों बाद सूरज की चमकती किरणों ने मीठी-मीठी गर्माहट दी तो सबके चेहरों पर खुशी की लहरें दौड़ गईं। घर की औरतों ने कई दिनों से धोये गीले कपड़ों से बनेरे भर दिए. जब सूरज थोडा और ऊपर चढ़ा तो उसकी गर्म किरणे पहले से कहीं ज्यादा प्रचंड थीं।
भगवान जब गुसलखाने से नहा कर बाहर निकला तो उसकी आँखें सूरज की तेज किरणों ने एक बार बंद सी कर दीं । उसने दोनों आँखें मलीं और अंगारे से संतरी सूरज की ओर सरसरी सी निगाह भरी , '' आ … आ … आहा … हा … हा … वाह ओ रब्बा !'' कह कर उसने श्रृष्टि के मालिक की तारीफ की। उसने चुल्हे के पास बैठ के ठंडे हुए हाथ -पैर सेके . जब कंपकंपी उतर गई फिर रोटी खाई। फिर दुशाले को ओढ़ कर बाहर की ओर चल पड़ा। भगवान अब नाले की पटरी पर आ गया था। मिटटी डली होने के कारण पटरी काफी ऊँची हो गई थी। नाले के बीच के गंदे पानी की बदबू भगवान के नाक में चढ़ने लगी । उसने ओढ़े गए दुशाले को नाक के ऊपर तक सरका लिया। नाले के बदबूदार पानी से हुई बुरी हालत देख कर उसे अपना बचपन याद आ गया। तब नाले का पानी चांदी की तरह चमकता साफ़ होता था। हम छोटे - छोटे होते जब गर्मी की कड़कती दुपहरी इस नाले में नहा - नहा कर काटते। . कभी पुल से नाले में छलाँगे लगाते । गाँव की कितनी ही औरतें यहाँ कपडे धोने आतीं। हम सारा दोपहर इस नाले पर गुजार जब शाम को घर जाते तो माँ झिड़कियां देती। . पता नहीं इस पानी से मोह ही इतना था कि माँ की झिड़कियों की भी परवाह न करते हुए अगले दिन फिर इसी पानी में आ घुसते। बीच में ही भैंसे भी नहाती ,उसी में हम भी , फिर भी पानी साफ़ का साफ़ रहता पर अब बच्चों के नहाने के लिए तो क्या , पशुओं के नहाने के लिए भी ठीक नहीं था। अब दो तीन शहरों का गंद - मंद इसी में बहकर आता है। .पहले से कितना बदल गया है समां । लोग भी कितने बदल गए हैं। साथ ही गंदगी में बदल गई इस नाले की शुद्धता।

भगवान बीते समय को याद करता हुआ खेत जा पहूँचा। वह खाल में टाँगें लटकाकर किनारे बैठ गया। खाल के सामने उगे छोटे - छोटे घास पर तरेल की बूंदें सूरज की रौशनी में मोतियों की तरह चमक रहीं थीं। भगवान उनकी ओर टकटकी लगा कर देखने लगा । कितनी सुंदर, पवित्र और मासूम सी लगती हैं ये बूंदें , बिलकुल करमी की तरह। सच्च ! करमी भी तो इनकी तरह सुंदर , पवित्र और भोली सी है. उसे भी इन बूंदों की तरह अपनी सुंदरता पर फक्र नहीं। वह सबका मोह करती है , दिल में किसी के विरुद्ध नफरत नहीं। सूरज की रौशनी की तरह सबको बराबर प्यार बांटती है। कितना अच्छा है उसका दिल , कितनी भोली है बेचारी , हर एक को अपना बना लेती है। मैं भी तो उसका कुछ नहीं लगता था पर अब मुझ पर कितना हक़ रखती है। मुझे अब भी याद है , जब मैं पिछली लोहड़ी पर दस दिनों बाद उनके घर गया था। वह पहले तो मेरे साथ बोली ही नहीं , नाक चढ़ा कर फिरती रही , कहती रही इतने दिनों बाद क्यों आये हो। बड़ी मुश्किल से मनाया था । फिर उसने हँसते हुए अन्दर से गच्चकें मेरे सामने लाकर रख दीं। जब मैंने उसे इसके बारे पूछा था तो बड़े मान से बोली थी , '' वीर जी आप लोग मेरे दो वीर हो। उस वीर ने तो अपने हिस्से की खा लीं थीं , आपका हिस्सा रह गया। '' यह सुनकर मेरी आँखों में उसके लिए प्यार के आँसू छलक आये थे और बोला था परमात्मा मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ , जिसने मुझे बहन के रूप में देवी बख्श दी। भगवान भूतकाल से निकल कर वर्तमान में आ गया। उसे महसूस हुआ , जैसे उसकी आँखें अब भी नम हैं। भगवान को याद आया कि मैं अब भी तो कई दिनों से करमी के घर नहीं गया। वह जरुर नाराज़ होती होगी। इस सोच ने भगवान को वहां से उठाकर गाँव की ओर बढ़ा दिया। उठते वक़्त ठण्ड की झनझनाहट सी सारे शरीर में फ़ैल गई। उसे पैरों से लेकर सर तक कंपकंपी सी आ गई। सूरज और गर्म हो गया था। खेतों से पिंड तक आते हुए उसे दुशाला ओढ़ना अनावश्यक लगा। घर जाकर दुशाला उतार दिया और साइकिल उठाकर नए गाँव की रह पकड़ ली।

घर पहुँचते ही उसने देखा करमी बाहर चारपाई पर पड़ी धूप सेक रही थी। पास ही चारपाई पर उसका दोस्त गुरजीत और उसकी माँ बैठे थे। भगवान जाकर करमी की चारपाई पर बैठ गया। करमी ने गुस्से में मुँह दूसरी ओर घुमा लिया।
'' ताई देख ….देख … गुस्से में कैसे सुंडी की तरह मुड़ी हुई है। '' भगवान करमी के गुस्से की शिकायत सुरजीत से कर गया।
'' गुस्सा तो होगी ही , आये कितने दिनों बाद हो ?'' सुरजीत करमी के हक़ में बोल गई। .
'' ताई तुझे पता तो है , गली का मसला था , बस उधर उलझे फिरते रहे। .'' भगवान किसी न किसी तरह करमी को मना लेना चाहता था। .
'' मुझे नहीं पता , गली का मसला था या नहीं ! तू इसके साथ खुद ही निपट ले। .'' सुरजीत ने अपना पल्ला छुड़ा लिया। .
'' भागू इसके मार कान पर एक जोर से अपने आप बोल पड़ेगी।'' गुरजीत गुस्सा हुई करमी को और चिढ़ा गया।
'' नहीं ओये बदमाश , अगर गुलाब के फूल को अपने शख्त हाथों में लेकर दबायेंगे तो वह बिखरेगा ही। करमी भी तो अपने घर के बगीचे का एक गुलाब ही है। महक बांटने वाले फूल किसी से नाराज़ नहीं हुआ करते। यह तो तुझे गलतफहमी है , क्यों बहन !'' भगवान ने कवियों की भाषा में लिपा - पोती करते हुए करमी का कंधा पकड़ अपनी ओर घुमाना चाहा पर वह उठकर अन्दर चली गई। भगवान भी उसके पीछे -पीछे अन्दर चला गया।
'' हाय , हाय ! इतना गुस्सा। '' वह चारपाई पर करमी के सामने बैठ गया। करमी ने मुंह दूसरी ओर घुमा लिया। .
भगवान ने करमी का गोरा चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर अपनी ओर घुमा लिया ,'' देख करमी अगर तूने इसी तरह ही गुस्से रहना है तो फिर मैंने यहाँ क्या करने आना है। मैं जाता हूँ फिर। ''.
'' नहीं , नहीं भागू .'' करमी ने खड़े हुए भागू की बाँह पकड़ दोबारा चारपाई पर बिठा दिया . '' मुझे नहीं पता चाहे कोई भी काम आन पड़े पर तुझे यहाँ जरुर आना है। ''
'' अच्छा बाबा अच्छा , रोज़ आ जाया करूँगा , बस खुश ?'' भगवान ने दोनों कान पकड लिए। करमी ने अपने गुलाबी होंठों से थोड़ा सा मुस्कुरा दिया। .
''चल भागू खेत से सब्जी तोड़ कर लायें '।' करमी भगवान की बाँह पकड़ कर घर के साथ लगते खेतों की ओर ले चल पड़ी। . चारो ओर गेहूं के फसल की हरियाली धरती पर बिछी हरी चद्दर सी जान पड़ती थी। .गेहूँ की वट्टों के किनारे किनारे बोई गई सरसों, फूलों से लदी हुई थी। सरसों के फूलों से रस चूसने आई मधुमक्खियाँ भीं-भीं करती इधर उधर मंडरा रहीं थीं. दोनों खेत की एक बीघा जमीन में लगाई गई गोभी की जगह जा पहुँचे। .
'' करमी अब तो कितने ही दिन हो गए , कभी मिलाना न उससे मेरी प्यारी बहन । .''भागू मुरझाये से फूल की तरह मुँह बनाकर अनुरोध कर गया । .
'' अगर मिलना है तो यूँ कर। '' करमी ने भागू को अपने नजदीक कर दूर ऊँगली से इशारा किया ,'' वो … ओ … ओ …. देख सामने कलई वाला उसका ही घर है न ?''
''हाँ ''
'' यहाँ से सीधा भाग जा , जाकर मिल आ। . ''
'' ऊँ …. तुझे मजाक सूझ रहा है इधर मेरा मरण हो रहा है। .''
'' अच्छा वीर जी , आपको मरने नहीं देते , जरुर मिलवायेंगे। '' करमी ने दो गोभी के फूल उखाड़ कर भागू के दोनों हाथों में दे दिए।
'' कब मिलवाओगी ?''
'' कल , मेले में। .''
'' पक्का ?''
'' हाँ पक्का। . ''
ओ वेरी गुड '' भगवान ने ख़ुशी की लोर में करमी के दोनों हाथ पकड़ कर चूम लिए।
अब दोनों सब्जी तोड़ कर घर आ गए। करमी ने गोभी चीर कर चूल्हे पर चढ़ा दी । सुरजीत आटा गूँध कर रोटियाँ उतारने लग पड़ी। भगवान अन्धेरा होने तक करमी से बातें करता रहा और साथ - साथ उसके कामों में भी हाथ बंटाता रहा। करमी ने आज जोर जबरदस्ती भगवान को घर पर ही रोक लिया और गाँव में भगवान के घर पाली (चरवाहे ) के हाथों संदेशा भिजवा दिया। . आज ही नहीं जब कभी भी करमी और उसकी माँ घर पर अकेली होतीं या कभी भगवान को देर हो जाती तो उसे जबरदस्ती उसे वहीँ रख लेते। गुरजीत और उसकी माँ थोड़ी देर बातें कर सो गए पर करमी और भागू रजाइयों में बैठे देर रात तक बातें करते रहे।
9

सुबह गाँव जाकर भगवान ने राजा और गुरनैब को भी तैयार कर लिया मेले जाने के लिए । तीनों ने फटाफट तैयारी की। . सारे गाँव में ही मेले जाने की जल्दी में लड़के-लड़कियों के पैरों में आग सी मच गई थी। रंग - बिरंगे कपड़ों में सजी जवानी 'बूढ़े - ठेरों ' को 'हट पीछे ' कह रही थी। जल्दी -जल्दी तैयार होने की आवाजें और गाँव की फिरनी वाली सड़क पर से मेले जाते हुए ट्रैक्टरों की तेज -तेज ' खर ….र … खर …की आवाज़ मुँह से गाँव की मेलों के लिए अहमियत बतला रही थी । भगवान का ट्रैक्टर भी मेले जाने के लिए तैयार था। सयानी उम्र की औरतें पहले ही बच्चों को लेकर जगह घेरने के चक्कर में ट्राली में आ बैठी थीं। कई शौक़ीन ट्रैकर के चले जाने की परवाह न करते हुए अभी भी आईने के सामने जमे हुए थे.. जब सारे मेली इकट्ठे हो गए तो चन्नन ने ' बैठ जाओ भाई बैठ जाओ ' कहते ने ट्रैक्टर चला लिया। शांतपुर से मेले तक जाने वाली सड़क मेले जाने वालों से भरी पड़ी थी , जैसे सारा जहान ही मेले के लिए निकल पड़ा हो।
मेले में पहुँचते ही भगवान , राजा और गुरनैब सबसे अलग हो गए। सब से पहले उन्होंने तलाब में स्नान किया। देग करवाई और फिर दरबार साहिब माथा टेका। दरबार साहिब से निकलते ही चार - पांच दोस्त और मिल गए। अब इनकी सात आठ जनों की अच्छी टोली बन गई थी। जब साथ को साथ मिल जाये , फिर थकावट का पता ही नहीं चलता। भगवान की टोली ने सारे मेले की खाक छान डाली। एक गली में से चार - चार पांच-पांच बार पार हो गए पर भगवान को कहीं भी करमी और किरना न दिखाई दीं। दोपहर ढल गई। घड़ी की सुई ने दो बजा दिए। अब लड़कों की चाल में पहले की सी तेजी नहीं थी। सारे थकावट सी महसूस करने लगे। .
'' दोस्तों क्यों न अब हम थोड़ी सी रेस्ट ले लें ?'' बूटे ने सबसे सलाह मांगी। .
'' हाँ … हाँ … चलो यार अब तो बस हो गई। '' राजा कमर को दोनों हाथों से दबाता हुआ बोला।
'' चलो फिर बुआ के चलते हैं। '' बूटा सबसे आगे होकर चल पड़ा।
भगवान , राजे और गुरनैब की नज़रें अब भी मेले में करमी और किरना को तलाश रहीं थीं। पहला चौक फलांग कर दरवाजे के पास जाकर गुरनैब ने भागू की बाँह पकड़ कर पीछे मोड़ लिया ।
'' क्यों क्या हुआ ?''
'' वह देख उधर। ' गुरनैब ने दरवाजे में खड़ी करमी और किरना की ओर ऊंगली सेध ली । भगवान देख कर एकदम से खिल पड़ा । उसका ठाठें मारता अन्दर का मोह होठों पर मुस्कराहट बन कर उतर आया। . राजा और गुरनैब भागू को अकेले छोड़ आगे बढ़ गई टोली संग जा मिले।
'' किधर मुँह उठाये चले जा रहे थे ?'' लड़कियां भागू के पास आ हँसने लगीं ।
'' वह तो अपने गुरनैब की …। ''
'' अच्छा ! अच्छा ब्राह्मणी थी ''
'' हाँ। ''
'' मिले फिर ?'' किरना दोनों भौहें उठा गई।
'' गए हैं पीछे भुंड। तुम लोग यहाँ अकेले ? '' भागू के बोलों में थोड़ी हैरानी और ख़ुशी घुली हुई थी। असल में जब प्यार को प्यार मिलता है तो कैसे , क्यों की जगह मिलने की ख़ुशी को एहमियत दी जाती है। करमी ने मेले में घूम रहे लोगों का ख्याल करके दोनों को वहाँ से चलने का आग्रह किया ताकि गांव का कोई देख न ले। बातें तो रस्ते में भी हो सकती हैं।
'' अब किधर जाना है ?'' भागू ने आगे चली जा रही करमी को पूछा।
'' हमने सरभी के जाना है , उसने हमें कहा था मेले के दिन जरुर आकर जाना। ''
'' ओह हाँ सच ! मुझे भी कहा था राम ने आने के लिए। '' भागू को भी कोई भूली बात याद आ गई।
राम भगवान से एक क्लास आगे था पर फिर भी दोनों की पड़ोसी गांव के होने के कारण और एक ही बस में सफ़र करने के कारण जान -पहचान हो गई थी। राम भगवान से थोड़ा हाड-माँस से तकड़ा होने के कारण हट्टा - कट्टा और रंग से गोरा था। वह पढ़ाई में कुछ कमजोर जरुर था , फिर भी खींच - खाँच कर पास हो ही जाता था। पहले - पहले दोनों एक - दुसरे से हाथ मिलाने और हाल - चाल पूछने तक ही सिमित थे पर जब से राम के दिल में सरभी के प्रति प्यार की तरंगों ने अंगडाई ली थी तब से वह भगवान से अपने दिल की बात सांझी करने के लिए और नजदीक आ गया था क्योंकि उसे एक ऐसे दोस्त की जरुरत थी जो उसके प्यार की मंजिल को पाने के लिए उसकी मदद कर सके। उसने अपने सारे दोस्तों में से भगवान को चुना। इन दोनों के विचार आपस में अच्छे मेल खाते थे।


राम के माता - पिता दो साल पहले नैना देवी मेले में गए थे जहाँ रस्ते में दुर्घटना के शिकार हो गए थे। अब घर में सिर्फ तीन ही लोग रह गए थे। राम , उसका बड़ा भाई और भाभी। एक लड़की थी राम से बड़ी , उसके भाई के ब्याह के साथ ही उसका भी ब्याह कर दिया गया । दोनों भाइयों की अच्छी बनती थी इसलिए राम को अपनी पढ़ाई जारी रखने में कोई कठिनाई न हुई। घर की चौदह किले जमीन थी , जिस पर राम का बड़ा भाई सीरी (फसल का कुछ हिस्सा देकर रखा गया नौकर )रख कर खेती करता। कभी-कभार राम भी अपने भाई का हाथ बंटा देता।

सरभी चीमा पिंड (गांव ) के पिछली ओर पड़ते पिंड झाड़ो की थी , अपने बहन भाइयों में सबसे बड़ी.. सरभी और करमी के नानके (ननिहाल )एक ही पिंड के थे। एक बार दोनों नानके गईं हुई थीं तो इकट्ठी मिल पड़ीं. लड़कियों के लिए इकट्ठे मिल बैठने का सबब तीज ही रह गया था, जहाँ वह इकट्ठी होकर एक दुसरे से अपने दिल की बातें कर भड़ास निकाल लेती थीं। करमी का स्वभाव खुला हुआ और विशाल था। वह हर एक से बहुत जल्द घुल मिल जाती . उसके स्वभाव में भगवान का भी असर था। करमी और सरभी तीज के एक दो मिलन में ही पक्की सहेलियां बन गईं। सरभी का मन अपने प्यार की बात करमी को बताने के लिए अन्दर ही अन्दर उबाले खाता पर हर बार उसकी बात होठों पर आकर अटक जाती। वह कुछ बोलती - बोलती चुप हो जाती। . अपने उबलते मन को कब तक वह पानी के छीटे मार दबा कर रखती । आखिर एक दिन उसने बता ही दिया। जब बातों -बातों में सरभी ने भगवान का नाम लिया तो करमी ने हैरानी में माथे और नाक के बीच प्रश्न चिन्ह बनाते हुए पूछा , ''भगवान ? वह तो मेरा वीर है। ''

'' हाँ राम का गहरा दोस्त है , इकट्ठे रहते हैं दोनों। '' सरभी करमी को कोहनी मार कर मुस्कुरा पड़ी। . ''

'' ढह जाना टिंडा सा, कहीं नहीं टिकता , डालेगा बिचोलिये की सांप '' करमी की बात पर दोनों हँस पड़ी। . इन बातों को तो बहुत समय बीत गया। अब तो उन्होंने झाडो से किसी बूढी नैण को बीच में डालकर विवाह भी कर लिया था। राम ने अपने भाई को सारी बात बता दी थी। उसने खिले माथे से मान भी ली. उधर सरभी के घरवालों को भी ' तेल में कौड़ी' मिल गई.दोनों का झट-पट विवाह कर दिया गया . राम खेती करने में कुछ कम रूचि रखता था। बहुत शख्त काम करना उसके बस की बात नहीं थी। आखिर अपने भाई से सलाह कर अपने पिता के पहले खरीदे दो दुकानों के प्लाट में दुकाने डालकर एक किराये पर दे दी और एक में खुद खली , गुड आदि का सौदा लाकर रख लिया। दूकान कुछ ही समय में अच्छी चल निकली। हर रोज़ साइकिल पर आने -जाने की बजाए वह चीमे ही घर डाल कर रहने लगा। .
आज भगवान , करमी और किरना को इकट्ठा घर आया देख दोनों गुलाब की तरह खिल उठे और सबको गले से लगा लिया जैसे सदियों से बिछड़े प्रेमियों का मेल हुआ हो। .
'' आज हमारे घर की याद कैसे आ गई ?'' राम सबको अन्दर कमरे में ले आया। .
'' आप तो कभी आये नहीं वीर जी , फिर हमें ही टाँगे घसीटनी पड़ी..'' करमी ने सबकी ओर से जवाब दे दिया।
'' अच्छा आप लोग बैठो , हम चाय बनाकर लाते हैं । '' थोड़े समय के बाद राम और सरभी चाय और घर के बनाये ब्रैड और पकौड़े ले आये। .
'' इतनी तकल्लुफ की क्या जरुरत थी। '' भगवान इतनी सारी चीजें देख बोल पड़ा ।
''लो लो तकल्लुफ कैसी , तुम लोग भी तो बड़ी मुश्किल से आये हो। अगर आप सबको तकल्लुफ लगती है तो हमारे जाने पर मत करना !'' सरभी, भागू लोगों के आने पर ख़ुशी से भरी हुई थी। .
सबने इकट्ठे चाय पी और जी भरकर बातें कीं। अपनी सारी पुरानी यादें एक बार फिर ताजा कीं और उन बातों में से दूना-चौगुना स्वाद लिया . जब किसी स्कूल , कालेज या किसी संस्था में इकट्ठे समा गुजरता है तो वहां बिताये पल हमें वास्तव में उतने अच्छे नहीं लगते , जितने कि उसके बाद लगते हैं। यह कुदरती है कि जब हम उस स्टेज से पार हो जाते हैं तो वह हमें बहुत प्यारी लगने लगती है। . हमारा दिल उसी समय , उसी स्थान और उन्हीं लोगों के बीच दोबारा आने को करता है पर समय कभी वापस नहीं आता। . हाँ , रब्ब ने हमें एक याद जरुर बख्शी है , जिसके सहारे हम वक़्त की धूल हटाकर पुरानी यादों का मुँह- माथा देख लेते हैं। ये सारे साथी एक बार फिर बातों - बातों में अपनी पुरानी ज़िन्दगी में घूम आये। किरना शरीक बनी इनकी बातें सुनती रही। बाहर राम को उसके दो दोस्त बुलाकर ले गए। करमी और सरभी रसोई में जा घुसीं। .
तूने बताया नहीं अकेले कहाँ घूमती रही मेले में , कहाँ आखें लड़ाती ? भगवान ने पहले पूछी बात को और मसाला लगाया ।
'' देखो तो सही , मुझे आँखें लड़ाने वाली कह रहा है , अपनी सुनाओ किसके पीछे सुबह से जुत्तियाँ तुड़वाते रहे ।''
'' दोस्तों के लिए सबकुछ करना पड़ता है। जिधर ले जायें साथ जाना ही पड़ता है। तुम लोग बताओ सच्ची , कहाँ अकेले घुमा ?''
'' वह तो भागू मेले में लड़ाई हो गई थी शराबियों की। हम लोग माँ के साथ थे। सबको जिधर जगह मिली भाग खड़ी हुईं। हमने भी इधर की शरण ली फिर हमें कोई दिखा ही नहीं पता नहीं मेले में है या घर चले गए। ''
'' अभी खड़ी हैं तेरे लिए मेले में , है न ? समय देख !'' भगवान ने किरना का मुँह पकड़ कर दीवार पर लगी घड़ी की ओर कर दिया।
'' हाय ! पाँच बज गए ? आज तो हमें घर जाकर जरुर डांट पड़ेगी। '' किरना देर होने की वजह से फ़िक्र में जा डूबी।
'' मेरे लिए इतना भी नहीं सह सकती ?'' भागू चाहता था किरना उसके साथ दो घड़ी प्यार की बातें और कर ले।
'' भागू तेरे लिए सब कुछ सह सकती हूँ .'' किरना अपने फ़िक्र को प्यार के मीठे शहद में घोल कर पी गई।
बातें करते - करते सुई का चक्कर पांच से छ: पर आ गया. पड़ोसी गांव के ट्रैक्टर कब के परत गए थे। गड़ियों की उड़ाई धूल आसमान में जा चढ़ी थी । डूबते सूरज ने किसी नवयौवना के गुलाबी होठों की तरह पश्चिम की छाती लाल कर दी थी । भगवान ने राम का स्कूटर लिया करमी और किरना को बैठा कर चल पड़ा। अपने प्यार के साथ होने के गर्व में भगवान ने अपनी चौड़ी छाती और चौड़ी कर ली। वह आते - जाते दो -एक राहगीरों को हॉर्न बजाकर अपनी ओर देखने को मजबूर करता। जब कोई उसकी ओर देखता तो वह गर्दन अकड़ा कर और ऊपर उठा लेता। तेज चलते स्कूटर पर शरद जैसी ठंडी हवा जवान जिस्मों को छेड़ - छेड़ गुजर रही थी। भगवान दोनों को घर से कुछ फासले पर उतार कर चीमां वापस आ गया और सारी रात अपने दोस्त राम के साथ पुरानी यादें ताजा करता रहा।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: भागू (उपन्यास )

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सर्दी अपने ठण्ड के जलवे दिखाकर वापस मुड़ चली थी। पाले से रुण्ड - मरुण्ड हुए दरख़्त दोबारा फूट पड़े थे । कुछ समय पहले जिनकी छाया से डर लगता था , अब वही अच्छी लगने लगी। शाम - सबेर जरा ठंड होती पर दोपहर की तेज धूप शरीर पर काँटों की तरह लड़ती। भगवान के बारहवीं के पेपर नजदीक आ गए थे । वह अब काफी समय अपनी पढाई को देता। जब पढ़ते-पढ़ते मन थक जाता तो घर से बाहर फिरनी वाली सड़क पर आ खड़ा होता या घर पर ही किसी और काम में लग जाता। कभी - कभी पिंड में दोस्तों - मित्रों के पास भी चक्कर मार आता।
भगवान का आज पढाई में दिल नहीं लग रहा था। वह कुछ देर पढ़ता और फिर उठ खड़ा होता। इस तरह करते दोपहर ढलनी शुरू हो गई . समय देखा , चारे का समय हो गया था। उसने किताब में पैन डालकर बंदकर मेज पर ही रख दिया और कमीज की बाहें टाँगकर चारा बनाने को तैयार हो गया। टोकरा उठाकर भूसा डाला , बाल्टी में खली डालकर सुखा चारा तैयार कर दिया । छोटे कटुरुओं को मिलाया गया चारा टोकरे में डाल कर रख दिया और भैंसे खुरली पर बाँध दीं.. अभी वह तुड़ी से लिबड़े हाथ धोने के लिए नलके पर जा ही रहा था कि करमी के ताऊ का लड़का मक्खन बाहर से साईकिल लेकर आ गया। उसकी साँस उखड़ी हुई थी.. उसने उखड़ी साँस को एक पल के लिए सँभालते हुए कहा , '' भगवान फोन लगाना जरा जल्दी …. . ''
'' क्यों ?'' भगवान उसकी हालत देख किसी अनहोनी के अंदेशे में जल्दी - जल्दी हाथ धोने लगा.. उसने मक्खन की हालत से ही अंदाजा लगा लिया था कि कोई अच्छी खबर नहीं है। .
'' यार अपनी करमी का एक्सीडेंट हो गया। .'' उसने फोन वाली डायरी भगवान को पकड़ा दी। .
'' क्या ? करमी का एक्सीडेंट ?'' उसके सुनते ही होश उड़ गए। . दिमाग को चक्कर से आने लगे , जिसके साथ ही उसके सारे बदन में कंपकंपी सी छिड़ गई। वह कांपते हाथों से डायरी के पन्ने पलटता जा रहा था। .
''झाडो का नम्बर है, दो मैं निकाल दूँ ।'' मक्खन ने भगवान की हालत देख कर डायरी उसके हाथों से ले ली और नम्बर ढूँढ कर दोबारा उसे पकड़ा दी। भगवान ने नम्बर तो लगा दिया पर उससे बात न हुई। फिर मक्खन ने उससे फोन पकड़ कर करमी के मामे को उसके एक्सीडेंट के बारे बता दिया ।
भगवान गुम - सुम हुआ खड़ा था। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था कि अब वह क्या करे। उसने समय देखा चार बजने वाले थे। . सुनाम को जाने वाली बस आने वाली थी। .वह उसी तरह पैर घसीटता बस अड्डे की ओर चल पड़ा . अड्डे पर जाकर वह बार -बार घड़ी देखता , घड़ी की सुइयां जैसे थम सी गई थीं। उसका दिल तेज-तेज धड़क रहा था। इस धड़कते दिल में करमी से जल्दी मिलने की तड़प थी। इतनी तड़प कि उसे एक -एक पल घंटों की तरह बीतता हुआ लग रहा था। उसके दिल में ख्याल आया कि क्यों न मैं राजे को भी साथ ले लूँ। .'' वह लम्बे डग भरता राजे के घर आ गया। राजा घर ही मिल गया था। ''
'' राजे चल मेरे साथ। ''
'' कहाँ ?''
'' करमी का एक्सीडेंट हो गया है सुनाम चलना है। ''
'' अच्छा…. ? वो कैसे …. ?
'' ये तो ज्यादा मुझे भी नहीं पता , मुझे भी मक्खन ने बताया। किरना को लेने जा रही थी उसके घर , रस्ते में कोई टैंकर वाला मार गया। तू जल्दी चल बस आने ही वाली है। '' वे दोनों वहाँ से भागते हुए बस अड्डे पर आ गये। पाँच मिनट बाद ही बस आ गई। दोनों बस में चढ़ गए। भगवान सारी राह थोड़ी - बहुत हाँ -हूँ के अलावा ज्यादा बात न कर सका। बस बार - बार आँखों में रिस आये दर्द को पोंछता रहा। जब वे सुनाम अस्पताल पहुँचे तो देखा , करमी तीन नम्बर कमरे में बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थी। . उसके सर से दर्द उठता और सारे बदन में फ़ैल जाता। वह बिस्तर पर पड़ी ज़ख़्मी परिंदे की तरह तड़प रही थी। डाक्टर और नर्सों का जमघटा उसके पास इकट्ठा हुआ खड़ा था.. उसका सारा शरीर बोतलों और टीकों से बिंधा था। . सर में गहरी चोट थी , जिसके कारण उसे थोड़ी-थोड़ी देर बाद खून की उलटी आती और घुटने से चकनाचूर हुई दाहिनी टाँग के दर्द से उसके आँसू बहे जा रहे थे। भगवान को देख उसने मुस्कुराने की कोशिश की पर उसके सर का दर्द उसकी मुस्कान का गला दबा सामने आ गया और उसकी आँखों से दर्द से पानी छलक आया ।
'' नहीं नहीं …क्यों ,रोती है यूँ ही दिल न छोटा कर , सब ठीक हो जाएगा। '' भगवान करमी के बैड पर बैठ गया और अपने रुमाल से उसके आँसू पोंछ कर सर पर स्नेह से हाथ फेरा। .
भ … भा …. ग। .'' करमी की टूटी - फूटी आवाज़ गले से डिक - डोले खाती बाहर आई और उसने भगवान का हाथ कस कर पकड़ लिया। उसे अपनी मौत आवाजें मारती दिखी पर वह भगवान का साथ नहीं छोड़ना चाहती थी।
'' भगवान '' राजे ने भगवान को बाहर आने का इशारा किया। गुरजीत और भगवान उसके पीछे बाहर आ गए।
'' हाँ बता ? ''
'' यार मेरे से करमी की हालत देखी नहीं जा रही। '' राजा करमी का दर्द देख पिघलता जा रहा था। जब उससे और देखा न गया तो बाहर आ गया।
'' अच्छा फिर, तू ऐसा कर … '' भगवान ने घड़ी की ओर नज़र मारी , छ: बजे वाली बस आने वाली है , ''तू पिंड चला जा , साथ ही हमारे घर संदेशा भिजवा देना कि हम आज सुनाम ही रहेंगे। ''
'' अच्छा। '' राजा पिंड चला गया।
गुरजीत और भगवान दोबारा कमरे में आ गए। करमी की हालत और तरस योग्य होती जा रही थी। वह दर्द से दोहरी हुई जा रही थी। गुरजीत उसकी हालत देख डाक्टर को बुला लाया ; डाक्टर ने उसे दर्द का टीका लगा दिया। नशे में उसे दर्द में तकलीफ थोड़ी कम महसूस होने लगी पर उसकी आवाज़ पहले से और मद्दम हो गई थी और आँखों का हिलना भी कम हो गया। भगवान आधी रात तक करमी के सिरहाने बैठा उसका माथा दबाता रहा। करमी की माँ समय का ख्याल कर भगवान के पास आ गई , '' ला पुत्त अब मैं दबा देती हूँ , तू जरा कमर सीधी कर ले , बहुत समय हो गया तुझे बैठे। ''
'' कोई बात नहीं ताई , मैं बैठा हूँ अभी। '' भगवान का असल में करमी के पास से उठने का मन नहीं था।
'' नहीं पुत्त (बेटा ) तू आराम कर ले थोड़ी देर । ''
जब भगवान उठकर जाने लगा तो करमी ने उसकी कमीज़ का लड़ पकड़ लिया और खुली आँखें धीरे से बंद करके फिर खोल लीं , जिसका भाव था भगवान मेरे पास ही बैठा रहे।
'' नहीं बेटी , देख इसे कितनी देर हो गई बैठे को , इस बेचारे को भी अब आराम कर लेने दे। ''
करमी ने एक बार फिर आँखें बंद कर खोल लीं और भगवान को जाने की इज़ाज़त दे दी। भगवान और गुरजीत जाकर दुसरे बैड पर लेट गए। उन्हें नींद बिलकुल नहीं आ रही थी। बस पड़े करवटें बदलते रहे। वे नहीं चाहते थे कि उनकी ' गुड़िया ' सी बहन उन्हें सोये हुए ही छोड़ जाये। चाहे वे करमी से कुछ फासले पर पड़े थे पर उनका ध्यान करमी की ओर ही था , जिसकी साँसों की आवाज़ भी पहले से मद्धम होती जा रही थी। समय पल - पल बढ़ता गया साथ ही घटती रही करमी के साँसों की गिनती। तीन बजे के करीब सुरजीत ने गुरजीत को आवाज़ मारी ,ओये गुरजीत ! आ कर देख जरा करमी साँसें कठिनाई से ले रही है। ''
भगवान और गुरजीत भाग कर करमी के पास गए। करमी खींच -खींच कर साँस ले रही थी। उसकी नज़र बिलकुल स्थिर हो गई थी। आँखों की झिमनियाँ झपकनी बंद हो गई थीं। गुरजीत दौड़ कर डाक्टर को बुला लाया। डाक्टर ने आकर करमी की नब्ज़ टटोली । नब्ज़ रुक -रुक कर चल रही थी। उसने एक टीका और लगा दिया। धीरे - धीरे करमी की साँस रूकती गई और शरीर ठंडा होता गया। आखिर करमी की आँखें उलट गईं। नब्ज़ बंद हो गई। दिल की धड़कन रुक गई। हँसती - हँसाती करमी निर्जीव देह में बदल गई। सबकी आँखों से आँसू झर -झर बहने लगे। सुबह के चार बज गए थे। गुरजीत का चाचा दौड़ कर किसी कार को किराये पर ले आया। करमी की मिट्टी बनी देह को कार में डाल लिया गया। उसकी माँ सारी राह दहाड़े मार -मार रोती रही और अपने बाल नोचती रही। गाड़ी ज्यों - ज्यों रस्ता कम कर रही थी , त्यों- त्यों दिन चढ़ता जाता था और अँधेरा घटता जाता था पर आज इस गाड़ी में बैठे परिवार के लिए तो सारे जग में अँधेरा हो गया था। उनके आँगन में रौशनी देने वाली मोमबत्ती पिघल - पिघल कर खत्म हो चुकी थी। सारे गुम -सुम हुए बैठे थे , जैसे सारे ही लाशें बन गए हों। गाड़ी श्मशानघाट से नई पिंडी की ओर मुड गई . मरघट को देखते ही एक बार फिर सबकी आँखें बहने लगीं। दिन चढ़ गया था। पिंडी ( छोटा गाँव ) की औरतें गोबर - कूड़ा उठाने में जुट गई थीं। गाड़ी घर के बाहर आकर रुक गई।
'' हाय ओ लोगों ! लुट गए वे !'' सुरजीत ने कार से उतरते हुए दोनों हाथ जाँघों पर मारे। सुरजीत की दिल चीरती ह्रदय विदारक चीखों ने कामों में उलझे लोगों को वहीं जमा दिया।
'' ता … ई संभाल अपने आप को। '' भगवान ने कांपती आवाज़ में सुरजीत को चुप करने के लिए कहा पर खुद उसके आंसू लगातार बहे जा रहे थे.
'' वे पुत्त , मेरी राणी धी हूण कित्थों मुडू वे … ? '' सुरजीत का विलाप अब और ऊंचा होता जा रहा था वह हाथों से निकल - निकल जाती।

करमी का पिता पगलाया सा इसे ईश्वर की लीला माने बैठा था। गुरजीत और भगवान का तो रो -रोकर बुरा हाल था। रोने की आवाज़ सुन आस-पड़ोस के लोग भी इकट्ठा हो गए। सयानी बूढी औरतें सुरजीत को हौंसला दिलाने लगी पर उसके दुःख में उठते वैन आसमान चीर - चीर जाते। जिस आँगन में कभी फूलों की सुगंध जैसी हँसी खिलखिलाया करती थी , आज दुःख , तकलीफों के पहाड़ टूट पड़े थे , जिन्होंने फूलों की सुगंध जैसी हँसी को कुचल दिया था। ज्यों - ज्यों दिन चढ़ता गया , लोग और इकट्ठे होते गए। करमी के दाह - संस्कार की तैयारी की गई। जब अर्थी उठाई, एक बार फिर सबके आँसू फूट पड़े। लोगों का लम्बा काफिला श्मशानघाट को चल पड़ा। श्मशानघाट के इधर ही अर्थी को नीचे उतार लिया गया। लागी ने चार पिन्नियाँ अर्थी के चारों कोनों पर रख कर कोरे घड़े का पानी चारो ओर फेरा और फिर बाकी बचे पानी समेत पहे (कच्चा रस्ता ) पर जोर से मारा। घड़ा गिर कर टुकड़े -टुकड़े हो बिखर गया और पानी धरती में जा समाया और फिर अर्थी को दोबारा उठा लिया गया। करमी के पिता ने बिलखते हुए चिता को आग दी। आग की लपटें आसमान की ओर उठने लगीं। .
भगवान दुखों की गहरी दलदल में समाया वहाँ से सीधे घर आ गया। उसकी आँखों के आगे करमी बहन के साथ बिताये पल रील की तरह घूमते तस्वीरें बन -बन आ रहे थे।
वह दुःख में डूबा कई दिनों तक बिस्तर में ही पड़ा रहा। उसका चेहरा हल्दी की तरह पीला पड़ गया था। . राजा और गुरनैब हर रोज़ चक्कर लगा जाते। . आखिर परीक्षा के नजदीक वह कुछ पढने बैठा पर ज्यादा देर उसका पढाई में भी मन न लगता। उदासी के आलम में उसने जैसे -तैसे इम्तहान दिए और करमी की यादों को साथ रख एक बार फिर अपनी ज़िन्दगी के लम्बे सफ़र पर चल पड़ा। .

11

सर्दी अपना पल्ला छुड़ा गई और गर्मी पक्के पैर जमाने लगी थी । गेहूं पक कर कड़क हो गई थी । जब कोई हवा का झोंखा इनके साथ कलोल करता पार होता तो यह गिद्दे में नाचती किसी नवयौवना की झांझर की तरह झनकती और जब यही झोंखा किसी खेत में शहतूत की छाया में बैठे बुजुर्ग किसान की छाती में आ लगता तो वह स्वभाविक ही कह उठता , '' वाह ओये रब्बा ! वारे जाऊँ तेरे। '' खेतों में सोने सी खड़ी पक्की फसल को देख किसान छाती फुला -फुलाकर चलते। उनके दिलों में चाव था , ख़ुशी थी कि वे इस फसल से अपनी गरज पूरी कर सकेंगे। साहूकारों के कर्जे , जो किसी ने अपनी कोठे जितनी हो चुकी बेटी की शादी के लिए , किसी ने नए लिए ट्रैक्टर के लिए तो किसी ने नया घर डालने के लिए लिए थे , वे इस फसल से वो कर्जा चुकता कर सकेंगे। इस बार की अच्छी फसल देख कर मजदूरों ने भी दिहाड़ी उठा दी पर फिर भी मजदूरों की कमी रहती। . जमींदारों के लड़के अपनी जान -पहचान के मजदूर लड़कों को जोर -जबर खींच कर ले जाते। . मज्बीयों, रमदासियों के आँगन में ग्यारह-बारह बजे तक मेला लगा रहता। .
भगवान लोगों ने आज ही फसल काटनी शुरू की थी । आज ही नौ लोग डेढ़ किला काटकर बोझे बाँध आये। कल चन्नण ने सुनाम पेशी पर जाना था। इसलिए चन्नण ने भगवान लोगों से कह दिया कि वह सुबह के लिए कुछ और दिहाड़िए ले आये। .
'' बेबे हम मज़दूरों को पक्का करने जा रहे हैं , आ कर नहाऊँगा। .'' भगवान कह कर मिट्ठू के साथ मज़दूर पूछने चल पड़ा। भगवान ने सबसे पहले अपने साथ दसवीं तक पढ़े शेरी के घर जाकर आवाज़ मारी। शेरी , ओये शेरी … भई शेरी … ''
'' हाँ भई , क्या हाल चाल है ?'' शेरी ने बाहर आकर भगवान से हाथ मिलाया।
'' यार सुबह हमारे लगाकर आना एक दिन। '' भगवान ने कहा।
'' सुबह यार मैंने मंगू के जाना था। ''
'' भाई बनकर यार , उनके परसों चले जाना, कल तू हमारे आ जाना ।
'' चल यार ठीक है। ''
'' पक्का न फिर ?''
'' जब कह दिया तो फिर पक्का ही है। '' शेरी ने भगवान को यकीन दिलाया। .
भगवान और मिट्ठू दस बजे तक मज़दूरों को पूछते रहे। भगवान ने अपने दो दोस्तों को कल के लिए पक्का कर लिया और तीन मज़दूरों को मिट्ठू ने पूछ लिए। मज्बियों के आँगन से मिट्ठू सीधा अपने घर चला गया और भगवान अपने घर।
'' बे कितने मिल गए भागू ?'' भगवान के आते ही उसकी माँ ने पूछा।
'' मज़दूर तो बहुत मिल गए , सात हो गए। ''
'' चल अच्छा हुआ जल्दी काम निपट जाएगा। ''
सुबह मिट्ठू एक बार फिर रात पूछे गए मज़दूरों को जाकर बुला लाया। आते ही सबको चाय पिला दी। जिस किसी ने नशा माँगा नशा दे दिया। . सबको खिला -पिला कर ट्राली में बैठा कर ट्रैक्टर खेतों की ओर रवाना हो गया.. नाले के साथ -साथ जाते कीकर के पेड़ों से ढके मार्ग के बाद ट्रैक्टर खेतों को जाते बड़े मार्ग पर आ गया। बड़े मार्ग पर चार -पांच किलों की बाट पार करने के बाद भगवान ने ट्रैक्टर खेत की ओर जाती सांप जैसी बल खाती पगडंडी की ओर मोड़ लिया। खेत पहुँच कर ट्रैक्टर शहतूत की छाया तले खड़ा किया। चाय गुड का सामान मिट्ठू दौड़ कर कोठे में रख आया। .
'' ताऊ , किधर से काटना शुरू करें ?'' भगवान ने अपनी दराँती के दांतों पर हाथ फेरा। जाट के हाथों मेंदराँती अकड़ी पड़ी थी।
'' जिधर से कल काटी थी वहीँ से लग जाते हैं। '' गुरबचन ने कल की काटी फसल की ओर इशारा कर दिया। सबने अपनी -अपनी जगह सम्भाल ली। मिट्ठू और भागू ने जोड़ी बना ली। बलोर और जग्गे ने आपस में मेल कर लिय. बाकी दो -दो मज़दूरों ने अपनी -अपनी जोड़ी बना ली और एक मज़दूर ने गुरबचन को अपने साथ लगा लिया। पहले पहर ओस के कारण कटाई धीमी गति से चली पर ज्यों -ज्यों सूरज ऊपर उठता गया जवानों के हाथ भी तेज होते गये। दराँती के तीखे दाँत ' खाऊँ -काटूँ ' कह उठे। हाथ तेज होते गए , जवान ललकारे मारते एक -दुसरे को ' हट पीछे ' कहने लगे। इससे पहली बार फांट सबसे पहले बलोर की जोड़ी काट गई थी पर इस बार आगे जाते बलोर को भागू और मिट्ठू की जोड़ी ने पछाड़ दिया ।
'' धर ली बूथ , अब माँजेंगे। '' मिट्ठू ने बलोर के साथ मिलकर ललकारा मारा।
'' ओये तुम लोग हमारी क्या रीस करोगे , खींच जग्गे खींच। '' बलोर ने दूसरी जोड़ी को अपने साथ आते देख अपने जोड़ीदार को हल्लाशेरी दी । जवानो के हाथ और तेज हो गए, कटी फसल के ढेर आसमान छूने लगे। खड़ी फसल पूहों में बदलती जा रही थी।
'' देखते जाओ जवानों कौन मारता है बाजी। '' पीछे खड़े एक अधेड़ उम्र के मज़दूर ने जवानों का जोश देख हल्लाशेरी दी।
'' लग जाएगा पता किसने पीया है बूरी भैंस का दूध । '' भागू और मिट्ठू बलोर से दो कदम आगे हो गए। क्यारे का माथा दो कदम पर रह गया , जिसे दरांतियों की 'चीकर -चीकर' पलों में काटने को उतावली थी।
'' वाह ओये भागू , सदके तेरे। '' गुरबचन ने आगे जाती जोड़ी को हौंसले के लिए ' शाबाशी ' दी।
'' कहाँ है बलोर -शलोर। '' मिट्ठू पीछे छोड़े बलोर को ललकार गया।
'' हो …. हो …. ओ … ओ …. काट दी नाक बड़े सूरमों की , पानी पी लो पानी। ''
भागू लोगों ने पहले फाट लगाकर ललकारा मारा। बलोर और जग्गा दो कदम पीछे रह गए। उन्होंने मुस्कुराते हुए अपनी हार मान ली, आगे की जोड़ियों ने पीछे रह गई जोड़ियों का हाथ बंटा दिया बदले में उन्होंने जवानो को शाबाशी दी।
'' सदके जवानो चलो अब पानी पी लो। '' गुरबचन ने सबको हौंसला दिया।
आग लगाता सूरज सर पर आ गया था। काम करने वालों के कपड़े पसीने से भीगे शरीरों से चिपक गए थे. पसीने की बूंदे सर से होती हुई कानों और नाक पर से होती हुई नीचे की ओर बह रही थीं। हवा बहनी बिलकुल बंद हो गई थी। सबने कोठे के पास आकर घड़े का पानी पीकर अपनी सांस ठीक की और मुड़ अपनी -अपनी जगहों पर जा बैठे। गुरबचन चाय बनाने के लिए एक तरफ पड़ी सूखी टहनियों से लकडियाँ तोड़ने लगा। जब तक चाय बनी एक -एक फांट जवानों ने और लगा दी.. गुरबचन के बुलाने पर सारे चाय पीने कोठे के पास छाया के नीचे आ गए. चाय पीते हुए ओरियो के कम -ज्यादा लेने की जिद्द - जिद्दाई चलती रही। चाय पीकर सभी फिर अपने कामों में जा लगे। .
समय बीतता गया। दराँती चलती रही , शरीर तपते रहे , और तपते शरीरों के आगे गेहूं बेबस हुई कटती रही . रोटी के समय तक ढाई किले गेहूं काट दी गई और फिर रोटी खाकर गटठर बाँधने शुरू कर दिए। गटठर बांधते दिन छिप गया। खेतों में ट्रैक्टरों के स्टार्ट होने की आवाज़ आनी शुरू हो गई पर कई खेतों में अभी भी ललकारे चल रहे थे , जिससे उनके काम में जुटे होने का संकेत मिल रहा था। गुरबचन लोग गटठर बना कर मुक्त हो चुके थे और बर्तन - बाटी इकट्ठा कर ट्राली में जा बैठे। भगवान ने ट्रैक्टर स्टार्ट कर कच्चे मार्ग पे डाल लिया। सारा रस्ता किसी मेले में जाते लोगों की तरह ट्रैक्टर , ट्रालियों और रेहड़ियों से भरा हुआ था और उनमें सारे दिन की थकावट से टूटे किसान निढाल हुए बैठे थे। ट्रैक्टर , ट्रालियों के साथ उड़ती धूल शाम के अँधेरे में घुल, गड -मड हो गई थी। घर आते -आते आसमान में कोई - कोई तारा चमक उठा था।

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दोनों पक्षों के पंद्रह -पंद्रह लोग सवेरे ही सुनाम पेशी पर जा पहुँचे थे। . घर से कोई भी रोटी खाकर न गया क्योंकि काम का सीजन होने के कारण घर की जनानियाँ कहीं नौ बजे तक जाकर खाना तैयार करतीं। . बारह बजे तक दोनों पक्ष भूखे -प्यासे आवाज़ को उडीकते रहे पर कोई आवाज़ न आई। . ऊपर से भूख से बुरा हाल था। जाट चाहे लड़ाई झगड़े पर कितने ही पैसे उजाड़ दें पर उनका बाज़ार से रोटी मोल लेकर खाने का हिया नहीं होता। उसे अपनी खून -पसीना बहाकर की गई कमाई याद आती है। वह इस कमाई को बाजारी चीजें खाकर लुटाने में अपनी हेठी समझता है पर जब पेट की भूक दैत्य बन आ खड़ी होती है तो जाट बेचारा मज़बूरी वश किसी रेहड़ी के पास जा खड़ा होता है। .
''चन्नण ,आवाज़ का क्या पता कब आएगी ,सुबह से भूखे -प्यासे चले हैं घर से , चल कुछ खा-पी लेते हैं '' गुरदयाल की नज़र सुबह से खड़ी समोसे वाली रेहड़ी पर जा टिकी थी। .
'' हाँ यार खा लो कुछ न कुछ , अब तो भूख से हाल -बेहाल है '' जैलू की अन्दर की भूख छलाँग मार बाहर आ गई। .
'' जा यूँ कर फिर , उस रेहड़ी वाले को बोल आ पंद्रह चाय के गिलास और एक -एक समोसा दे जाये। .'' जैलू गुरदयाल का हुक्म सुनकर रेहड़ी वाले को पंद्रह चाय के गिलास और समोसों का हुक्म दे आया। . रेहड़ी वाला अच्छी गाहकी देख कर फुर्ती से चाय बनाने लग पड़ा और सुबह से बने पड़े समोसे गर्म कर सब्जी संग ले आया ,
'' लो साहब चाय। .''
'' ओये ये समोसे तो तेरे बासी लगते हैं। .'' गुरदयाल पास पड़े समोसों को देखने लगा जो सुबह से रेहड़ी पर सजाये अब गर्म कर ले आया था। .
'' नहीं साहब आज ही बनाये थे । .'' रेहड़ी वाला रखकर चला गया। .
'' साला आज का। .'' गुरदयाल ने मुँह में ही बड़ - बड़ कर नाक सिकोड़ कर एक समोसा उठा लिया। . सबने चाय के साथ एक -एक समोसा खाकर अन्दर की भूख को शांत किया । इनको चाय पीते देखकर मुख्तयार उन लोगों ने भी चाय और समोसे मँगवा लिए। . खा पीकर फिर वही उडीक शुरू हो गई। . फिर कहीं जाकर साढ़े चार बजे आवाज़ पड़ी और अगली पेशी की तारीख दे दी गई। . दोनों पक्षों ने चिमियाँ से पिंड को आते हुए रस्ते में पड़ते ठेके से शराब ले ली। . पिंड आकर मुखत्यार के साथी मुखत्यार के घर जुट गए और दूसरी पार्टी ने गुरदयाल के घर अड्डा जमा लिया। देर रात तक शराब का दौर चलता रहा । . तारे निकलने के बाद जब चन्नण घर आया भगवान नहा के रोटी खा रहा था ।
''' कितनी काट आये आज ?'' चन्नण ने आते ही पूछा ।
'' ढाई किले । .''
'' गट्ठर भी बाँध लिए ?''
'' हाँ ! पेशी पर क्या है ?''
'' दस दिनों बाद फिर जाना है। .''
'' अभी फिर ?''
और क्या इतनी जल्दी निपट जाएगा। .''
'' यह तो बड़ा पंगा है। .''
'' पंगा तो है ही , और मैंने तो कहा ही था पेशियों में दोनों पक्षों को हैरानगी ही है , और फिर काम का समय है। बस आधे बीच में ना -नुकर सी करते रहे । मैंने कहा भाई तुम लोगों की मर्जी है हम क्या कर सकते हैं। .''
'' चलो जो होना था हो गया ।'' भगवान ने रोटी खाके बर्तन रख दिए और हाथ धोकर अन्दर जा लेटा । .
' 12

दराँती और कम्पाइनों ने गेहूँ की फसल काट कर धरती की छाती रुण्ड - मरुण्ड कर दी ।कम्पाइन के काटे गए परालों को आग लगाई गई , काला धुआँ आसमान में जा चढा। कई जल्दबाजों ने सूखी धरती की छाती को तवियों (मिटटी खोदने वाला औजार ) से खोदना शुरू कर दिया। खाली पड़ी जमीनों में से आग सा सेक निकलता। हर रोज़ की तरह चलती तेज हवा ने रेत,धूल अम्बर में चढ़ा दी। कभी कोई चक्कर खाता हवा का रेला मचाई गई पुराल की कालख को उड़ा कर ले जाता। . गर्मियों की बहती गर्म लू जला -जला जाती। . लबेड़ियों के दूध सुखकर आधे रह गए थे। खेतों को सुंदरता बख्शने वाली हरियाली किसी -किसी खेत में ही दिखलाई देती। . सारा वातावरण किसी लम्बी उदासी में तप रहा था ।
दोपहर ढल गई थी पर गर्म लू अभी भी कान सेक रही थी। भगवान नई पिंडी (छोटा गांव )की ओर चला जा रहा था। करमी की याद उसे रह -रह कर आ रही थी। . चाहे करमी के मरने के बाद भगवान ने उनके घर जाना कम कर दिया था पर जब कभी उसकी याद दिल चीरती हुई टीस पैदा करती, दिल को डुबो -डुबो जाती तो भगवान करमी के घर जाकर यादें ताजा कर आता। उसे उनके घर से करमी की महक आती। . वह कितनी - कितनी देर उसकी दीवार पर लगी तस्वीर को देखता रहता। कितनी रौनक थी उसके साथ इस घर में। पर अब पता नहीं कितनी लम्बी चुप्पी दे गई है। . भगवान जब करमी के घर गया तो बाहर की दो जनानियाँ और एक आदमी आँगन के नीम के नीचे चारपाई पर बैठे थे। भगवान ने उन्हें 'सत श्री अकाल' बुलाई और सीधे सुरजीत के पास चला गया जो उनके लिए चाय बना रही थी ।
'' ताई ये कौन हैं ?'' भगवान ने अपने दिल की उलझन सुरजीत के आगे रखी। .
'' यह तो पुत्तर अपने गुरजीत को देखने आये हैं। .'' सुरजीत ने चूल्हे से चाय उतार कर दूध डाल दिया।
'' गुरजीत कहाँ है ?''
'' चक्की पर गया है गेहूँ पिसवाने। . तुझे नहीं मिला राह में ?''
'' नहीं तो। . ''
'' लो चाय ले जाओ। '' सुरजीत ने गिलासों में चाय डालकर भगवान को पकड़ा दी। .भगवान चाय लेकर चल पड़ा और पीछे -पीछे सुरजीत भी आ गई। .
'' हमें तो सब कुछ पसंद है भई। . बस एक बार लड़की के मामे को भी दिखा दें। '' आदमी बोला। .
'' जी सदके! दिखाओ भई। . आपने भी अपनी लड़की देनी है , और फिर रिश्ते कौन से रोज रोज बनते हैं। '' सुरजीत उनकी पूरी तसल्ली करवा देना चाहती थी। . बाहर से गुरजीत भी साईकिल पर आटा लेकर आ गया। . उसने आटा अन्दर के कमरे में रख दिया और साईकिल भी टिका दिया। . बाहर आये मेहमानों को सत श्री अकाल बुलाकर वहीँ चारपाई पर बैठ गया। .
'' एक बात और है भाई , हम ज्यादा तो दे सकते नहीं , कहीं कोई आप लोगों की मांग हो तो … !'' वह व्यक्ति फिर बोला । .
'' लो भई परसिन्न कौरे हैं ! तुझे तो पता है अब हमारे बारे , घर में कोई खाना पकाने वाला तो है नहीं , मैं हूँ , मैं बिमार रहती हूँ , क्या पता कब आँखें बंद हो जाएँ। चलो हमने तो खा -पी लिया बहुत। बस एक बार रोटी पकती हो जाये , फिर चाहे रब्ब उठा ही ले , और फिर आपने अपनी लड़की देनी है, ये क्या कम है। ' 'सुरजीत ने दहेज़ के बाबत भी उन्हें पूरी तसल्ली दिलवा दी। .
कई दिनों बाद बिचौलिया लड़की के मामे को ले आया। . सब कुछ देख -दाख कर वे लोग सगुन का दिन तय कर गए. । सगुन के बाद विवाह भी पांच महीनों तक कर देने की सलाह बना ली गई।
जब विवाह के दिन नजदीक आने लगे घर की नए सिरे से सफाई होने लगी। भगवान रोज काम में हाथ बटा जाया करता । घर के कोने -कोने से कचरा निकाल फेंका गया। उनके दुःख - सुख में हाथ बंटाती नेगी को बुला आँगन में मिटटी गोबर मिलाकर पोंछा लगा दिया गया। .विवाह के दिन तक घर बंगले की तरह चमक उठा ।

नए डाले गए बरामदे में कढ़ाई चढ़ाई गई । लड्डुओं की खुशबू हवा में इक -मिक होकर आस -पड़ोस में फैल गई। काफी समय से उदासियों से भरे आँगन में खुशियों ने आकर दस्तक दी और वक़्त के बदलने के साथ -साथ मुरझाये चेहरों पर ख़ुशी छलकने लगी। आस पड़ोस के बच्चे लड्डुओं की खुशबू लेकर तालियाँ मारने लगे। लड्डुओं का पहला कड़ाहा निकलने तक सुरजीत सगे संबंधियों और आस पड़ोस की लड़कियों को लड्डू बनाने के लिए ले आई। उनके साथ आये बच्चे लड़कियों के लड़ पकड़ -पकड़ कर खींचते जिसका भाव होता '' मुझे भी लड्डू दो.. ' सुरजीत देख कर बच्चों को एक -एक लड्डू पकड़ा देती । बच्चों के लड्डू प्राप्त करने की जिद्द में सूखे चेहरे लड्डू लेकर कपास के फूल की तरह खिल जाते। .
भगवान हलवाई के पास बैठा बार -बार बाहर की ओर देखे जा रहा था। . गुरजीत किरना को लेने गया अभी तक लौटा नहीं था , ' चल कर जाने में रस्ता भी लंबा जान पड़ता है। पहले चल कर जाना और फिर चल कर आना। . चार किलो मीटर से कम न होगा। . चलो जब आना होगा आ जायेंगे ' भगवान ने खुद से फैसला कर लड्डुओं के लिए नए निकाले कडाहे की पकौड़ियां तोड़ने लगा। . उसने अभी आधी पकौड़ियाँ ही तोड़ी होंगी कि पीछे से किसी ने उसकी पीठ पर थापी दे मारी ,'' शाबाश , अच्छी तरह बना दे चटनी। .''
'' तू ? '' पीछे गुरजीत खड़ा था। . भगवान की 'तू ' का मतलब था कि तू किरना को ले आया ?''
फिर उसने सेकेंटों में ही पुलसिया नज़र आँगन के चारो ओर डाली । . किरना कोने में गुलाबी सूट पहने गुलाबी परी बनी खड़ी थी , उसके चेहरे की लाली पूर्व से जन्म लेते सूरज की तरह झलक मार रही थी। . सर ऊपर ली गुलाबी धारियों वाली हरी चुन्नी का लड़ हवा में मद्धम सा हिलता भगवान को चोरी से न्योता दे रहा था। . भगवान का दिल किरना से बातें करने के लिए उबलते दूध की तरह उछल -उछल जा रहा था। पर उसका कोई दाव न चला। . आखिर शाम को जब परीहे (हाथ बंटाने आये अड़ोसी-पड़ोसी ) टैंट लेने के लिए सुरगढ़ चले गए तो भागू आँखें बचाकर सब्जी के लिए आलू चीरती किरना के पास जा खड़ा हुआ। .
'' क्या हाल हैं आपके ?'' भगवान ने नज़र नीची किये बैठी किरना के पास जाकर पूछा।
'' आपके ठीक हैं तो हमारे भी ठीक हैं। '' नज़र ऊपर उठाते ही किरना के काले नयन , भगवान के जादू बिखेरते नैनों से जा टकराये।
'' वे मुँडिआ वेहला खड़ें , कुड़ी नाल आलू ही चीरदे। ''
सुरजीत भगवान को कहती हुई एक थाल आलुओं का किरना के आगे रखी टोकरी में और डाल गईं।
' अंधे को क्या चाहिए दो आँखें ' भगवान को और क्या चाहिए था। उसे किरना के पास बैठने का बहाना अपने आप मिल गया , जिसके लिए वह अपने दिमाग में कब का स्कीमें बना -गिरा रहा था।
'' इतने दिन हो गए कहीं मिले नहीं ?'' भगवान किरण से बातें करता हुआ चाकू से आलुओं का छिलका उतारने लगा।
'' बस दिल ही नहीं किया। ''
'' दिल नहीं किया , या दिल से प्यार कम हो गया ? ''
'' ना , ऐसे कैसे कम हो जायेगा। '' किरना ने कहकर नज़रें नीची कर लीं। रोटी बनाने वाली लड़कियाँ आटा गूंधकर उसके पास ले आईं। भगवान का वहाँ बैठना अब मुश्किल हो गया। वह एक दो आलू चीरकर उठ आया।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Re: भागू (उपन्यास )

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बारात वाले दिन भगवान घर पर ही रहना चाहता था , उसका बरात के संग जाने को दिल नहीं कर रहा था। किरना की प्यारी तंदें उसके दिल को अपनी ओर खींच रही थीं पर गुरजीत ने उसे जबरदस्ती तैयार करवा कर कार में बराबर बैठा लिया। . गुरुद्वारे और डेरे पर माथा टेक कर सारी बारात गाड़ियों में बैठ गई। गाड़ियों का काफिला धूल उड़ाता चल पड़ा । चिमियाँ से सुनाम रोड चढ़कर गाड़ी हवा से बातें करने लगी। गाड़ी में बैठा गुरजीत अपनी ज़िन्दगी के सांझे राहों की हमसफ़र साथी को ले आने की ख़ुशी में झूम रहा था। . उसकी आँखें किसी लोर में नशियाई सी हँस रही थी। दूसरी ओर भगवान अपने साथी से कुछ घंटों की दूरी बर्दाश्त न करते हुए लाजवंती के पौधे की तरह कुम्लाया बैठा था। .उसकी आँखों में वापस जाने की चाहत पलसेटे मार रही थी। .गाड़ियाँ ढंडोली पिंड के बीच बनी हथाई (धर्मशाला) में जा रुकीं । बराती उतर कर हथाई में बिछी चारपाइयों के ऊपर जा बैठे। . कुछ देर बाद कई लोग और पिंड की पंचायत मिलनी करने आ गए। . मिलनी के बाद सारी बरात आनंद कारज (फेरों ) के लिए चल पड़ी। . नई पीढ़ी का नया खून आगे चल पड़ा और बूढ़े ठेरे पीछे।
फूलों की फुलवाड़ी में खिले रंग - बिरंगे फूलों की तरह भांति -भांति के सूट पहने खड़ी कोमल जवानियाँ , बरातियों की उडीक में नाका बंदी किये खिल -खिल हँस रही थीं। इक नौजवान ने हरे सूट वाली को देख कर दिल पर हाथ रख कर 'हाय ' कह दिया। लड़की ने उसकी ओर होंठ उलेर दिए। लड़का साथ चल रहे भगवान को कोहनी मार हँस पड़ा.. लड़कियों ने एक बार अपनी नज़रें प्यासी मृगनी की तरह सारी बरात पर डालीं और आखिर सबकी तेज नज़र ने फूलों में से गुलाब ढूंढ ही लिए। . सबकी नज़रें भगवान और नए दुल्हे पर आ टिकीं। .
'' बताओ क्या लेना है ?'' गुरजीत ने लड़कियों के बीच खड़ी अपनी साली से कहा।
'' इक्कीस सौ !'' हरी चुन्नी वाली ने सबकी ओर से जवाब दिया।
'' इक्कीस सौ तेरा मोल है ?'' 'हाय' कहने वाला नौजवान बोला।
''तुम्हारे लिए नहीं , कोई और कहे तो मान जाऊँ। '' वही लड़की भगवान को ललचाई नज़र से देखती रही। पहले लड़के ने अपनी हेठी देख नज़र नीची कर ली।
'' छेती करो भई मुंडियों '' पीछे से एक बुजुर्ग ने कहा.. कई शरारती पीछे से धक्का मारते और आगे के लड़के -लड़कियों पर उलट जाते। दस - पंद्रह मिनट लड़के लडकियां एक दूजे की बातों में स्वाद ले -ले कर बोलते रहे। आखिर बात पांच सौ पर आकर खत्म हुई। गुरजीत के मुंह को मीठा लगाते समय उसकी साली के हाथ कांपने लगे।
'' क्यों कभी लड़के नहीं देखे ?'' लड़की के कांपते हाथ देख गुलाबी पगड़ी बोल पड़ी पर लड़की ने अपने सुशील -पन में नज़र नीची कर ली। . दुल्हे के मुँह को मीठा लगने के साथ ही पीछे से धक्का पड़ा। . सामने के लड़के आगे खड़ी लड़कियों के ऊपर जा गिरे । . लड़कियां खिलखिला कर हँस पड़ीं। बाबे ने टैंट के अंदर बाजा और तेज कर दिया ढोलकी वाले ने ढोलकी पर जोर -जोर से थाप मारनी शुरू कर दी फिर लम्बी दाढ़ी वाले भाई ने शबद गाया ' हम घर साजन आये .... ''
आनंद कारज (विवाह ) होने के बाद गुरु ग्रन्थ साहिब जी को गुरुद्वारे ले गए और उसके बाद सलामी की रस्म शुरू हो गई। . हरी चुन्नी आनंद कारज होने तक भगवान को आँखें फाड़ -फाड़ देखती रही। अगर कभी भगवान की नज़र उधर हो भी जाती तो वह अपने गुलाबी होठों में मुस्कुरा देती। सलामी के वक़्त वह सरकती हुई भगवान के पास आ गई .
'' लोग अपने हुस्न पर बड़ा गरूर करते हैं , किसी की ओर देखते तक नहीं। .''
'' लोगों में आग ही ज्यादा है , तभी तो देखते नहीं कि कहीं साथ लग कर ही न मच जाये। '' भगवान लड़की के बेसब्र सा देखते रहने पर चोट कर गया। लड़की ने हँस कर नज़रें नीची करने की बजाये भगवान के चेहरे पर गड़ा दीं। भगवान उठ कर सलामी डालने चला गया।
सूरज कब का छिप चुका था पर रौशनी अभी काफी थी। आसमान में सफ़ेद बादल नीचे आ गया और रुमकती - रुमकती हवा चल पड़ी। विवाह वाली गाड़ी ने गेट के आगे आ ब्रेक मारे। देखते ही सारे घर में ख़ुशी नाच उठी। विवाह में आये सारे रिश्तेदार भागे चले आये। सुरजीत ने सिर पर लाल फुलकारी लेकर नई बहू के ऊपर से हँस - हँस कर पानी वार कर पीया और उसे अंदर बढ़ाया . चाचियों - ताइयों ने नई बहू के मुँह में रेवड़ियां डालकर उसका मुँह मीठा किया। सारा मेल ही नई बहू को देखने उमड़ आया।
इतनी ख़ुशी देख कर भगवान का दिल भी हुलारा खा गया। उसका भी अपनी प्रेमिका से मिल बैठ कर बातें करने को जी कर आया। उसने इशारे से किरना को नाचती लड़कियों में से बाहर बुला लिया।
''क्या ?'' किरना भगवान के दिल की बात बूझ लेने की ख़ुशी में हँस पड़ी।
'' चल चलें ''
'' ना.... ! ''
'' क्यों ?''
'' पता चल जायेगा। '' किरना ने आगे पीछे देखा , किसी का ध्यान नहीं था . सभी अपनी -अपनी मस्ती में भागे फिर रहे थे।
'' कहीं नहीं चलता पता। मैं जाता हूँ तुम आ जाना सोनारों वाले बाग़ में। '' भगवान किरना के कुछ बोलने से पहले ही चला गया।
जब भगवान घर से बाहर आया , अँधेरे ने रौशनी से सरदारी ले ली थी। आसमान पर छाया बादल हवा के साथ कहीं उड़ गया था और उसके नीचे से मोतियों की तरह चमकते तारे हँसने लग पड़े थे। इन तारों के बीच गोल चाँद किसी सुहागन के माथे पर लगी बिंदी सा चमक रहा था . भगवान बाहर आकर खेतों की ओर जाते पहे की भड़ी (मिटटी की ऊंची बट ) पर बैठ गया.. उसके चारो ओर बिंडों की टीं - टीं रात को सोने के लिए लोरियां दे रही थी। वहाँ से दस बारह किले की दूरी पर एक मोटर वाले कोठे पर लाइट जल रही थी और कोठे के पास किसी मनुष्य का आकार इधर - उधर घूमता साफ़ नज़र आ रहा था। भगवान को बैठे को बीस - पच्चीस मिनट हो चले थे पर उसे अभी तक घर की ओर से कोई आता न दिखा।
'' क्या हो गया अभी तक नहीं आई ?'' भगवान ने खुद ही सवाल किया। '' कहीं कोई काम न पड़ गया हो। '' फिर खुद ही जवाब दे मारा। '' क्या पता पगडंडी से आ रही हो ?'' उसने गुरजीत के घर के पीछे से बाग़ बाग़ को आती पगडण्डी की ओर निगाह मारी और फिर बाग़ की ओर देखा , सिवाए अँधेरे के उसे कुछ और न दिखा।
'' कहीं आकर न बैठ गई हो। ' भगवान की सोच भाखड़ा के पानी में पड़ती घुमेरियों की तरह चक्कर काटने लग पड़ी। वह वहाँ से उठकर बाग़ की ओर चल पड़ा। जब वह बाग़ के नज़दीक पहुंचा तो एक मनुष्य का आकार उसकी ओर बढ़ा। थोड़ा और नज़दीक आने पर एक औरत के रूप में ढल गया।
'' मैं कब की उडीकी जा रही हूँ , आप बोल कर अच्छे आये। '' किरना ने नज़दीक आये भगवान को पहचान लिया।
'' ओह ! तुम आ गई ?'' भगवान के चेहरे पर हैरानी और ख़ुशी के भाव उभर आये। '' मैं तो तुझे इधर उडीक रहा था पहे पर बैठा ,''
'' मैं तो पगडण्डी से आई । ''
'' चल अच्छा हुआ आ तो गई। '' भगवान ने ख़ुशी में बांह उसकी बगल में कस ली और बाग़ में जा बैठे।
'' मैंने तुझे विवाह से पहले भी कितने संदेशे भेजे थे , आई नहीं … ?'' भगवान ने अपने चेहरे पर गुस्से की नकली परत चढ़ा ली ।
'' घर वाले नहीं आने देते। ''
'' घर वालों का तो बहाना है मुझे तो लगता है तुम खुद ही पीछे हटती जा रही हो। '' भगवान के कहने का भाव था कि मेरा प्यार तुम्हारे दिल से कम होता जा रहा है।
किरना के शरबती होंठ मुस्कान से चौड़े हो गए और उसकी आँखों की पलकें इक बार झपक कर बंद हो गईं जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो ,'' भागू अब हम पीछे हट जाते हैं। '' किरणा प्यार की राह से वापस मुड़ना चाहती थी..
'' क्यों ? यह क्या कोई खेल है , कि जब दिल किया खेल लिया , जब दिल किया हट गए। '' किरणा की कही बात भगवान का दिल चीर गई।
'' मैं तो मज़ाक कर रही थी , कैसे मुँह फुला लिया। '' किरना भगवान के चेहरे पर बदलते हाव - भाव पढ़ती उसकी छाती में मुक्की मार हँस पड़ी।
'' किरना कभी ऐसी बात मत करना , मैं तो मर जाऊंगा। '' भगवान सचमुच ही मरने जैसा हुआ पड़ा था।
'' अच्छा बाबा , माफ़ कर दे। '' किरना ने भगवान के आगे हाथ जोड़े।
दोनों वहाँ से उठकर बाग़ के बीच चले गए। ठंडी हवा के झोंके जवान ज़िस्मों को छेड़ते हुए आगे बढ़ जाते। किरना कंपकपी के साथ भगवान की बाहों में और सिमट जाती। नज़दीक गुरजीत के घर से गिद्दा डाले जाने की मद्धम सी आवाज़ सुनाई दे रही थी। मोटर के पास फिरता आदमी खाल पर चक्कर लगाने चला गया था। आसमान में खिला गोल चाँद और टिमटिमाते तारे जोड़ी के पहरेदार बनकर खड़े थे। दोनों एक दूसरे के प्यार भरे आलिंगन में एक हो गए।
13


जब से करमी ज़िन्दगी से अलविदा कह गई थी , भगवान भी उस दिन से उखड़ा -उखड़ा रहने लगा था। गुरजीत के विवाह से पहले भगवान उनके घर दो चार गेडे मार आता था पर गुरजीत के विवाह के बाद उसने बिल्कुन जाना छोड़ दिया क्योंकि अब वहाँ उसका कोई अपना भी तो नहीं रहा था। जिसके पास बैठ कर वह अपना दुःख-सुख बाँट सके। गुरजीत और उसकी माँ भी अब पहले जैसे नहीं रहे थे। विवाह के पहले जिस भगवान को देख कर खिल उठते थे , अब उसी को देख कर माथे पर बल डाल लेते। यदि भगवान कभी न कभी जाता भी तो वे उसके साथ पहले की तरह घुलते - मिलते नहीं थे , बस एक दो बातें पूछ लेते या कभी तो बात ही न करते तो भगवान खुद ही 'अच्छा चलता हूँ ' कहकर उठ आता। अब उसे पहले की तरह कोई नहीं कहता कि ' बस वीर जी पांच मिनट और बैठ जाओ। '' आखिर उसने आना -जाना बिलकुल ही बंद कर दिया। अब तो कभी राजे लोगों के साथ बैठता तो जरा सा हँस बोल लेता या करमी की बातें कर मन हल्का कर लेता । जब कभी करमी की बहुत याद आती तो उसका दिल करमी के घर जाने को करता पर घर के लोगों का उसके प्रति व्यवहार देख कदम रोक लेता। कभी अकेले बैठे को किरना की यादें आ चिपकती जो दो महीनों से कई संदेशे देने के बाद भी नहीं आई थी। उसे समझ नहीं आ रही थी कि समय इस तरह , इतनी जल्दी कैसे बदल गया। जिन्हें वह दिल से अपना समझ बैठा था , उनका खून कैसे सफेद हो गया। इन्हीं ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव के ख्यालों में उलझे , खेतों से लौटते भगवान को नाले की पटरी पर राजा मिल गया। राजा भगवान को देखकर दूर से ही हँसता हुआ बोला , '' क्यों क्या हाल है तेरी सूरज की किरण के ?'' ''
उसे तीसरी जगह पे कहाँ याद कर रहा है पहले अपने वीर का हाल- चाल तो पूछ ले। ''
'' तुम तो अब हमारे पास ही रहते हो , तेरी तो हम रग -रग से वाकिफ हैं ,उस तीसरी जगह का हमें क्या पता चले ,वह तो तुझसे ही पूछेंगे। ''
'' वह तो अब डुबो देगी। '' भगवान के दिल की चीस बोल पड़ी।
'' क्यों ?'' राजे ने किसी भेद की बात जानने के लिए अपना पूरा ध्यान भागू की कही बात पर सेध लिया।
'' तुझे तो पता कितने संदेशे भेज दिए, मिलने ही नहीं आई।
'' अब भी कहा था कभी ?''
'' हाँ , कल ही कहा था नहीं आई। ''
'' ले हैं , बहन की .... '' राजा भगवान के हक़ में खड़ा होकर किरना को गाली दे गया।
वे घर तक बातें करते आये । राजा भगवान को अपने घर ले गया। दोनों सीढ़ियों से कोठे पर जा चढ़े। छिपती ओर बाबे रमाणे की मटील ( लोगों द्वारा श्रद्धा पूर्वक बनाया गया मिटटी का टीला ) की ओट में सूरज ऊंघ रहा था । कोठे पर से कौओं की कतारें दक्षिण की ओर अपने घरौंदों में लौटने लगी थीं। . किसी रकान के घर से जल्दी कामों में हाथ डालने का संदेशा देता धुआँ बनेरों पर चढ़ आया था। . सामने वाली गली में एक बड़े कुत्ते ने छोटे से पिल्ले को गले से पकड़कर उससे आधी रोटी का टुकड़ा छीन लिया , पिल्ला बेबस हुआ सामने की टांगों में मुँह दबाये चूँ … चूँ करता भाग खड़ा हुआ. अपने बरामदे में खड़े सीते के पाली ने छित्तर उतार कर बड़े कुत्ते के दे मारा ,कुत्ता रोटी छोड़ भाग खड़ा हुआ। . '' ओये राजे !'' राजे के आँगन से किसी की आवाज़ आई। '' गुरनैब है। '' राजे ने आवाज़ पहचान कर कहा।

'' कोठे पर हैं भाई। '' राजे की माँ बोली।
गुरनैब सीढ़ियां चढ़ कोठे पर आ गया , '' ओह भागू भी यहीं है। ''
'' राजा तो जाता नहीं इसलिए मुझे ही आना पड़ता है। ''भगवान राजे की ओर देखता हुआ बोला।
'' क्या करें यार काम ही नहीं खत्म होते। '' राजे ने घर के झमेले दोस्ती के बीच ला डाले।
'' भागू तेरी कबूतरी तो तुझसे छुड़ा गई पंख। ''
'' क्या हो गया ओये ?'' राजे के साथ भगवान भी हैरानी से पूछ बैठा , वह गुरनैब की कही बात का जवाब उसके मुँह से पढ़ने लगा। भगवान का दिल बड़े समुंदर की लहरों में उलझी छोटी कश्ती की तरह डोल गया। उसके दिल पर छूरी चल गई , जरुर कोई अनहोनी हो गई है, उसने सोचा।
'' उसने तो रफूजियों के लड़के से डाल ली है यारी। ''
''तुझे किसने कहा ?'' राजे और भगवान को अभी तक गुरनैब की बात पर यकीन नहीं आया था।
'' मंजीत कहती थी। ''
'' वैसे ही कहती होगी खीर खानी जात। '' भगवान सच्चाई से मुंह चुरा कर भाग रहा था पर सच्चाई उसके आगे आकर उसकी हालत पर हँस रही थी।
'' वैसे ही क्यों , उसने तो मुझे अभी फोन किया, कसमें भी खाईं। '' गुरनैब यकीन दिलाने के लिए पिछली बात पर जोर देकर बोला।
भगवान की आँखों के आगे अन्धेरा छ गया। पश्चिम की लाल हुई छाती उसे अपना बहता हुआ खून लगा , जिसे अभी -अभी किरना की बेवफाई की तलवार ने काट कर धारे बहा दी थी। उसे कुछ समय पहले का बेबस हुआ पिल्ला अपना ही रूप लगा। उसका रोम -रोम किरना की बेवफाई को लानतें दे गया।
'' मुझे पहले ही पता था यह तोड़ नहीं निभाएगी , स…साली… कु… कु कुतिया ' भगवान के अंदर उबलता दुःख का सागर आँखों की राह से छलकने लगा। .
'' साले काँटा तो तुझ में नहीं अगली को क्या दोष देता है ?'' गुरनैब अपने स्वभाव के मुताबिक़ बोल गया। उसने इतनी गहराई तक जाकर कभी नहीं सोचा था कि वह भगवान का अंदर पढ़ सके।
'' म … मैं जाता हूँ यार। '' भगवान उठकर चल पड़ा।
'' तू बैठ तो सही। '' राजे ने उसकी बांह पकड़ ली।
'' नहीं यार .''
'' अच्छा हम चलते हैं दोनों। '' राजा भगवान के साथ चल पड़ा और उसे घर छोड़ कर वापस परत आया।
'' बे … रोटी तो खा लिया कर वक्त पर । '' भगवान की माँ ने बर्तन धोते हुए कहा।
'' बेबे भूख नहीं। ''
जितनी भूख है उतनी ही खा ले ''
'' ना। '' भगवान कहकर अंदर बिस्तर पर जा गिरा। उसके अंदर का दर्द आंसुओं में बदल कर बाहर आना शुरू हो गया। वह किसी सदियों के रोगी की तरह बिस्तर में मुँह दिये देर तक रोता रहा। किरना की बेवफाई उसका अंतर समेट कर ले गई थी। वह सारी रात करवटें बदलता रहा पर बिलकुल भी नींद नहीं आ रही थी। फिर अचानक कुछ याद आ जाने पर वह बिस्तर से उठा और धीरे -धीरे अलमारी की ओर बढ़ा। अलमारी खोलकर किताब से एक फोटो निकाल ली , ' नहीं … नहीं यह इतना भोला, इतना मासूम चेहरा किसी को धोखा क्यों देगा ? यूँ ही मज़ाक करते होंगे .... पर वो तो कसमें भी खा गए। क्यों यह क्या किसी को धोखा नहीं दे सकती ? किसी के चेहरे पर तो नहीं लिखा होता कि यह कैसी है , और फिर गुरनैब ने एक दिन कहा भी था कि स्त्री का कभी विश्वास मत करना।'
भगवान पता नहीं पलों में ही क्या कुछ सोच गया।
उसे अपने हाथ में पकड़ी फोटो पर किरना का गुलाबी चेहरा किसी काले साँप का सर लगा। उसके गुलाबी होंठ किसी जहरीली नागिन के नीले होंठ जान पड़े. वह फोटो की ओर आँखें फाड़ -फाड़कर देखने लगा। उसने फोटो को फाड़ने के लिए दोनों हाथों में ले लिया पर पता नहीं फिर दिल में क्या आया , उसने एक गन्दी गाली देकर फोटो को फिर अलमारी में रख दिया और फिर बिस्तर पर आ गिरा। आधी रात के बाद उसे नींद ने आ दबोचा।
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प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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Jemsbond
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Re: भागू (उपन्यास )

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रफ्यूजियों का लड़का कई दिन किरना के घर आने - बहाने चक्कर मारता रहा। जब भी वह आता , चोर निगाहों से किरना की ओर देखता रहता। किरना भी कभी कभार देख जाती पर ज्यादा दिलचस्पी न लेती। उसने लड़के द्वारा दिए कई ख़त ले तो लिए पर पढ़े बिना फाड़ कर फेंक दिए।
एक दिन तोलावाल से रफ्यूजियों की पड़ोसन लड़की किरना को मिलने आई , जिसने एक बार किरना के संग इकट्ठे दरियां लगाई थीं पर उसके बाद दोनों कम ही मिल पाईं । आज दोनों गले लगकर मुद्द्तों से बिछड़ी सहेलियों की तरह मिलीं। किरणा ने हाल -चाल पूछकर चाय चढ़ा दी। चाय पीकर दोनों अपने घर के साथ लगते मोटर वाले कोठे के पास बिछी चारपाई पर आ बैठीं ।
'' बड़े दिनों बाद याद किया , क्या बात है ?'' इस तरह सुखपाल का अचनचेत आना किरना के दिमाग को किसी नए संदेशे के मिलने का अंदेशा दे गया।
'' जो तुम्हें रोज याद करते हैं उनका तो होठों पर नाम भी नहीं लाती। '' लड़की की शरारती आँखें हँस पड़ीं।
'' हमें कौन याद करता है। ''
'' क्यों करते क्यों नहीं , तुझ पर तो कम्बख्त मरा जा रहा है , तुम ही नाक पर मक्खी नहीं बैठने देती। ''
'' किसी का नाम भी ले तो पता चले। '' किरना लड़की का इशारा कुछ -कुछ समझ गई थी पर किरना को भी बातों में स्वाद आ रहा था इसलिए वह बात को खींचती जा रही थी।
'' बीस तो बेचारे ने तुझे ख़त लिख दिए , अभी कुछ और बाकी रह गया है क्या ? कम से कम एक-आध का ही जवाब दे देती, उस बेचारे का दिल रखने को । ''
'' तुझे यह किसने बताया ?'' किरना इस तरह अपने भेद को सुखपाल के जानने से हैरान हो गई ।
'' मुझे उसी ने भेजा है , बेचारा बहुत ही मिन्नते कर रहा था। ''
'' नहीं जब मैंने उसे कोरा सा जवाब दे दिया था और उसे पता भी है कि मेरी किसी और से बनती है .''
'' उसे पता है सारा। कहता है मेरे साथ जरा सा हँस के बोल लिया करे और मुझे कुछ नहीं चाहिए। ''
'' तब तो वह पागल ही है फिर। ''
'' तूने कर दिया। '' दोनों खिलखिला कर हँस पड़ीं ,'' और उसने ये सोने की चेन भेजी है तुम्हारे लिए। '' लड़की ने कुर्ती के नीचे पहनी बनयाइन की जेब से सोने की चेन निकाल किरना के गोरे हाथों पे रख दी।
'' नहीं मैं नहीं लेती। '' किरना ने चेन को लड़की की ओर बढ़ाया पर उसने किरना की चेन वाली मुट्ठी अपने हाथ से बंद कर दी और फुर्ती से चारपाई से उठ खड़ी हुई , '' अच्छा मैं चलती हूँ। ''
'' मेरी बात तो सुन। ''
'' नहीं कभी फिर। '' लड़की बोलकर चली गई।
किरना हाथ में चेन लिए उसी जगह खड़ी रही। उसने अपने हाथों में पकड़ी चेन की ओर सरसरी सी निगाह मारी , उसका दिल किया कि वह जा रही सुखपाल के पीछे फेंक मारे पर जल्द ही उसने अपनी यह सोच रद्द करते हुए सोचा '' इतनी कीमती !'' हुंह ! पागल हैं लोग। '' उसने चेन की तरफ और जा रही सुखपाल की तरफ होंठ उटेर दिए। '' तूने कर दिया '' किरना सुखपाल के कहे शब्द याद कर हँस पड़ी ' क्या सच्ची वह मुझे इतना प्यार करता है ?'' ' तुझ पर तो वो मरता है , बस जरा हँस के बुला लिया करे और मुझे कुछ नहीं चाहिए ' किरना के दिमाग में सुखपाल के कहे शब्द रील की तरह घूमने लगे।
'' हँस के बुलाने की इतनी कीमत , और फिर हँसने से क्या घिसता है। नहीं -नहीं भगवान से धोखा होगा , क्या मुंह दिखाऊंगी उसे। '' किरना के दिमाग में दो विरोधी विचारों का संघर्ष चल रहा था। वह सारा दिन कोई फैसला न ले सकी। रात बिस्तर पर पड़ी तो दिमाग में फिर वही संघर्ष शुरू हो गया ,'' भागू मुझे प्यार करता है , इतना ही यह भी करता है , नहीं -नहीं उससे भी ज्यादा करता है। भागू ने मुझे क्या दिया , इक यह चांदी की अँगूठी। '' उसने चांदनी रात में अपनी पहली ऊँगली में डाली चांदी की अंगूठी की ओर देख कर नाक चढ़ा लिया। '' इसने तो अभी ही सोने की चेन दे दी .'' किरना दोनों के प्यार को पैसे से तोलने लगी . जिसमें भगवान का पलड़ा ऊपर उठने लगा और चेन का पलड़ा नीचे दब गया। उसने कमीज में डाली चेन निकाल कर गले में डाल ली . चेन गर्व से चांदनी रात में चमकती , ऊँगली में पड़ी अंगूठी को घूरने लगी।
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रफ्यूजियों के लड़के तेजी को सुखपाल ने किरना के साथ हुई सारी बातें जा बताई और यह भी बता दिया कि उसकी दी चेन उसे पकड़ा आई है। तेजी अपनी चेन पकड़ाये जाने की बात सुन खिल उठा। जलती आग में फूस डाल देने से वह और तेज होकर मचती है पर अगर उसे इसी तरह छोड़ दिया जाये तो बुझती -बुझती बुझ जाती है। तेजी नहीं चाहता था कि उसके प्यार की चिंगारी जो किरना के दिल में सुलगी है वह ज्यादा देर करने से बुझ जाये। वह तो किरना के दिल में सुलगती प्यार की चिंगारी से अपने प्यार का दीप जलाना चाहता था। तेजी ने बरामदे से मोटरसाइकिल निकाली और उस पर प्यार से कपड़ा मार कर किरना के घर की ओर चल पड़ा। आज वह जीत कर आये फौजी की तरह मोटरसाइकिल पर छाती चौड़ी कर दुगुनी जगह में बैठा था। सब कुछ उसे आज बड़ा प्यारा -प्यारा और नया -नया लगा.। सूरज की ताजा धूप रोज़ की तरह आज तीखी नहीं लगी । पही के साथ जाते पक्के खाल पर खड़ी सफेदों की लम्बी कतार उसकी ख़ुशी में शरीक भंगड़े डालती दिखी। आज ख़ुशी बार -बार होठों की सरहद पार कर दिल को भी हँसाये जा रही थी। किरना का गुलाबी मुस्कुराता चेहरा सुरमे की तरह उसकी आँखों में आ रचा। वह दस बजे तक किरना के घर पहुँच गया। सभी मोटर वाले कोठे पर ट्रेक की छाया तले चारपाइयों पर बैठे चाय पी रहे थे। किरना का बड़ा भाई चलती मोटर पर भैंस को नहा रहा था। मोटर का चांदी रंगा पानी खेल में से सीध लेता आगे खाल में गिरता और फिर धान की अंकुरित होती फसल में जा गिरता । तेजी ने मोटरसाइकिल भंगुओं के लोहे के गेट के आगे जा लगाई । किरना उसे देखकर होठों में मुस्कुराई और फिर नज़र नीची कर ली।
'' आ भई तेजी कैसे आना हुआ ?'' भैंस को नहा रहे किरना के भाई ने हाथ उसकी ओर बढ़ाया।
'' बस तुम्हारे दर्शन को '' उसने मुँह में आई बात कह दी। फिर कुछ संभल कर बोला ,'' यार मैं तो ढोली (द्वा स्प्रे करने वाली पानी की टंकी )पूछने आया था स्प्रे वाली। ''
'' आज तो यार हम भी कर रहे हैं स्प्रे , बस यही भैंस रह गई , बाकी काम तैयार है. वो .... देख मेवे ने , भर -भर कर फौजियों के पिट्ठुओं की तरह कतार में लगा रखी हैं .'' किरना के भाई ने अपने छोटे भाई मेवे की और इशारा करते हुए कहा। वह खाल पर बैठा स्प्रे और पानी ढोलियों में डाल रहा था . तेजी ने स्प्रे का बहाना इसे देख कर की गढ़ा था ताकि आगे से भी जवाब मिल गए।
'' अच्छा यार मेरा मोटरसाइकिल खड़ा है , मैं जरा गिंदर के पता करके आता हूँ । तेजी गिंदर के खेतों की ओर चल पड़ा। सामने गिंदर के खेत में ऊंची टालियों के दरख्तों से घिरा कोठा झाड़ियों में मटील की तरह लग रहा था । बोर में से पानी की धार खेल में गिर रही थी। जो दूर से दूध में चमकते कांच के टुकड़े की तरह दिख रही थी। वह धीरे -धीरे वट्ट पर चला जा रहा था। उसके दिल में ख्याल था कि जब तक वह पलट कर आएगा तो मेवा स्प्रे करने चला जायेगा और उसे एक -आध मौक़ा किरना से बात करने का मिल जायेगा। वह यही सोच कर गिंदर के खेत जाने का बहाना लगा आया था। उसके दिल में किरना से बात करने की रीझ घास -फूस में रखी चिंगारी की तरह सुलग रही थी। वह ज्वाला का रूप धारण करती तेजी को उतावला कर रही थी। इसलिए वह गिंदर के पास ज्यादा देर न बैठा और उलटे पैर वापस आ गया। किरना और उसकी माँ बकरैन दरख़्त के पास चारपाई पर बैठी थीं। मेवा और उसका भाई पांच -छः किले की दूरी पर ढोली उठाये जा रहे थे।
'' मिल गई भई ढोली ?'' किरणा की माँ गेजो ने आते ही तेजी से पूछा।
'' नहीं ताई , मैंने कहा चलो अब सवेरे ही कर लेंगे। '' तेजी चारपाई के पास आ खड़ा हुआ।
'' अरी किरना भाई चाय गर्म करके ला दे। ''
'' बस ताई चाय को तो रहने दो। ''
'' अच्छा भाई शर्बत बना लेते हैं । जा अच्छा फिर शर्बत बना ला '' गेजो ने किरना को हुक्म दिया।
'' म … मैं … नहीं तू ही बना ला । '' किरना ने आगे के शब्दों पर जोर देते हुए जरा तल्खी से कहा . असल में वह भी कोई न कोई बात करने का बहाना ढूंढ रही थी। .
'' तू मत कहना मानना,मुझे ही जाना पड़ेगा । '' गेजो उठकर शर्बत बनाने अंदर चली गई।
'' अब तो आ गई निशानी पसंद नखरे वाली के। '' तेजी ने मौक़ा देख कहा। सोने की चेन किरना की गोरी गर्दन में चमक रही थी।
'' और फिर क्या करें , जब पीछा ही नहीं छोड़ता कोई। '' किरणा ने आँखों में आँखें दाल नखरे से होंठ मरोड़े।
'' पीछा तो हमने तमाम उम्र नहीं छोड़ना था यदि न मानती। '' तेजी किरना को पाने की लालसा जाहिर कर गया। फिर साथ ही बोला , '' कभी मिल भी लो अकेले, जी भर बातें तो कर लूँ। ''
'' हाँ जी। '' जानती हूँ तुम्हें बातें करने वाले को , मुझे नहीं मिलना। '' किरना ने नखरे में कंधे उचकाए।
'' क्यों ?''
'' क्या फायदा , हम तो यूँ ही ठीक हैं। '' किरना बोली .
'' मज़ाक छोड़ , और जल्दी बता, तेरी बेबे आ जायेगी। '' तेजी ने गेट की ओर झांका।
'' सोचेंगे। ''
'' सोचेगी कब ? ऐसी बातें तो पहले सोच कर रखनी चाहिए। ''
'' बड़े उतावले हो । ''
'' मेरे दिल से पूछ कर देख , तेरे बिना कैसे तड़पता है। ''
तेजी ने गरीब सा मुँह बना लिया। उसका दिल उतावला हो -हो जा रहा था कि कब किरना को अपने से चिपका ले। पर वह बेबस था। किरना की माँ पानी बनाकर ले आई। तीनों ने पानी पीया और पानी पीते -पीते छोटी -मोटी इधर -उधर की रस्मी सी बातें की। सूरज की धूप पहले से तेज हो गई थी। हवा पहले से धीमी हो गई थी। दूर खाल पर मेवे उन लोग एक -एक ढोली और भर कर ले गए थे. तेजी ने सोचा यहाँ ज्यादा देर बैठना उलट असर कर सकता है। तेजी वहाँ से उठ चल पड़ा. जाते तेजी को किरना ने मुस्कान की सौगात दी। चोर चाल चलती हवा मोटरसाइकिल पर बैठे तेजी को तेज हो गई लगती थी पर दरख़्त तो वैसे ही पहले की तरह धीरे -धीरे सर हिला रहे थे। हवा की तेजी उसे मोटरसाइकिल पर बैठे होने की वजह से महसूस हो रही थी क्योंकि वह खुद हवा को चीरता सरपट सड़क पर दौड़ा जा रहा था। तेजी के दिल में एक दुःख भी था कि वह किरना को मिलने के लिए स्पष्ट न पूछ सका। पर दूसरे पल ही उसके दिल में ख्याल आया कि कल तक जिस किरना को वह बुलाने के लिए तरस रहा था , आज उसने ही उसके साथ हँस -हँस बातें की थीं। उसके दिल से एक ख़ुशी की लहर उठी और होठों पर आकर मुस्कान में बदल गई। मोटरसाइकिल सड़क से उतर कर सफेदों वाली पही पर चल पड़ा।


15
'
सैंतालीस में जब रफ्यूजी पकिस्तान से उजड़कर इधर आये तो बहुतों ने जहाँ ज़मीन मिली , वहीँ घर बना लिया। तोलावाल से शांतपुर जाते हुए सड़क के आस - पास चार -चार , पांच -पांच सौ गज की दूरी पर रफ्यूजियों के कई मकान नज़र आते हैं। तोलावाल से शांतपुर की ओर लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर और किरना के घर से सौ गज़ तोलावाल की ओर सड़क से छिपती ओर सांप की तरह बल खाती एक पतली सी पही जाती है। पही के साथ एक पक्का खाल है जिस पर थोड़ी दूर जाकर आसमान को छूते सफेदों की लम्बी लाइन किले की दीवार की तरह खड़ी है। आगे जाकर पही दो तीन मोड़ खाती तेजी के घर की ओर चली जाती है। घर के आगे दो तीन बकरैना और शहतूत के दरख़्त खड़े हैं , साथ ही मोटर वाला कोठा भी है। कोठे के चढ़ती ओर चारा कुतरने वाली मशीन खड़ी है। कोठे के बाईं ओर एक लंबा बरामदा पशुओं के लिए डाला गया है। बरामदे से आगे जाकर कोठीनुमा घर है। तेजी के घर से उत्तर की ओर पचास मीटर की दूरी पर दो घर हैं , जिनको पही किसी दूसरी तरफ से लगती है। इनमें से पहला घर किरना की सहेली सुखपाल का है। पिंड से टूटे होने के कारण इनका आपस में अच्छा लेन -देन है। ब्याह शादी में तथा और छोटे -मोटे काम -धंधे में एक दूजे के आते जाते हैं। इन तीनों घरों की एक अपनी अलग ही दुनिया है। जब इनके बड़े पुरखे यहाँ आये थे तब उसनी पंजाबी बोली इधर की पंजाबी बोली से अलग थी। पाकिस्तानी रंग चढ़ा हुआ पर नई पीढ़ी अब बिलकुल इधर की बोली ही बोलने लग पड़ी । पर उनके माँ -बाप अभी भी 'आटे में नमक ' जितने फर्क से कुछ अलग तरह की बोली बोलते हैं।
तेजी किरना को मिलने के लिए पपीहे की तरह तड़प रहा था। किरना की याद उसे हर समय बेचैन करती रहती। चाहे वह कई बार किरना के घर जा आया था पर कभी उसकी किरना के साथ खुल कर बात न हुई। कल उसने सुखपाल को भी संदेशा भेजा था पर उसने भी अभी तक कुछ नहीं बताया था। वह जंग में लड़ रहे फौजी की पत्नी की तरह संदेशे का बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहा था वह बार -बार एड़ियाँ उठाकर सुखपाल के घर की ओर देखता कि शायद अब आ जाये पर उसकी हर बार जुए में खेलते बुरे कर्मों वाले खिलाड़ी की तरह हार हो जाती। वह ढेर होकर बैठ जाता। कल भी उसका सारा दिन इसी तरह इन्तजार में गुजर गया था। तेजी को इधर -उधर चक्कर काटते को देख उसकी माँ उसे आटा पिसाने के लिए बोली ,'' बेटा तेजी यूँ यहाँ फालतू के चक्कर लगाता फिर रहा है जाकर शांतपुर से आटा पिसवा ल . ''
'' ले आता हूँ मम्मी। '' फिर कुछ रूककर बोला , '' मम्मी चरने के पूछ के आऊँ यदि उन्होंने भी पिसवाना हो तो इकट्ठे ही रेहड़े पे ले जाएंगे . ''
'' मर्जी है तुम्हारी यदि पूछना है तो पूछ आ । ''
अपनी माँ की 'हाँ ' सुनकर तेजी को चाव चढ़ गया। वह सुखपाल के घर को जाती सीधी वट्ट चल पड़ा . तीनों घरों का आना -जाना इसी बट के माध्यम से होता था। इसीलिए इस वट्ट को मिटटी लगाकर हर छः महीने बाद चौड़ी कर लिया जाता था। अभी भी धान की फसल पर गिरी ओस पूरी तरह सूखी नहीं थी। ओस की बची कणिकाओं ने सुखपाल के घर तक पहुँचते -पहुँचते तेजी की पैंट को थोडा गीला कर दिया था। तेजी ने सुखपाल के घर जाकर पुलिस की तरह सारे आँगन में नज़र घुमा दी , उसकी उतावली नज़र आँगन को छानती ओटे पर आ रुकी । सुखपाल ओटे के पास बैठी बर्तन मांज रही थी। तेजी हवा के झोंके की तरह सुखपाल के पास जा खड़ा हुआ।
'' आज बुलाया है उसने। ''तेजी के बोल अभी मुँह में ही थे कि सुखपाल ने पहले ही ऐसी खबर सुना कर उसे आसमान पर चढ़ा दिया। तेजी ख़ुशी में झूम उठा। उसे सुखपाल देवी का रूप लगने लगी।
'' कब बुलाया है ?'' तेजी जल्दी से बोला।
'' आज ग्यारह बजे रात को। '' सुखपाल तेजी के चेहरे के हाव -भाव बदलते देख मुस्कुरा पड़ी।
'' कसम खा। '' तेजी को यकीन नहीं आ रहा था।
'' तेरी कसम , मैं तुझे बताने आने ही वाली थी कि तू आ गए। ''
'' घर में कोई नहीं है क्या ?'' तेजी ने चारो ओर देखते हुए कहा।
'' बेबे बाड़े गई है गोबर पथने। ''
'' मैं तो आटा पूछने आया था कि अगर आप लोगों ने भी पिसवाना हो तो रेहड़ा लेकर इकठ्ठा पिसवा लें। ''
'' हाँ कहती तो थी बेबे , हमने भी पिसवाना है। ''
'' ला उठा फिर बोरी। '' तेजी ने बोरी अपने सर पर रखवा ली। घर आकर तेजी ने बोरी रेहड़े में रख दी और फिर दो बोरियां अपनी रख ली। चारे में मुँह मारता भैंसा रेहड़े में बोरियां रखे जाने का खड़ाक सुन चारे में जल्दी-जल्दी मुँह मारने लग पड़ा ताकि मालिक के रेहड़े में जोतने से पहले अपनी बची -खुची भूख भी मिटा ले। तेजी ने सामने से पकड़ कर भैंसे को रेहड़े से जोड़ लिया और फिर उसी टेढ़ी -मेढ़ी पही में डाल लिया , पही की राह खत्म कर सड़क पर जा चढ़ा। भैंसे के कदम धीमे होते देख कर तेजी ने शहतूत की छड़ी उसकी पीठ पर दे मारी , भैंसा एकदम से तेज हो गया। सड़क पर बजते उसके पैर तेजी के साथ टक -टक करने लगे। जब भी भैंसे की चाल धीमी होती तेजी की छड़ी उसकी पीठ पर आ पड़ती या फिर रेहड़े के साथ खड़ाक से बजती , जानवर मालिक का इशारा समझ कर और तेज हो जाता। तेजी ने आज समय को पीछे छोड़ने की जिद कर रखी थी। वह हवा के साथ घुल कर हवा जितना तेज हो जाना चाहता था। किरना के घर के बराबर आकर उसने किरना को सुनाने के लिए भैंसे को तेज होने के लिए ललकारा मारा पर घर से कोई भी बाहर न निकला।
चक्की पर उससे पहले ही कई पिसावन पड़े थे पर तेजी ने जिद करके तीन पिसावन के बाद अपनी बारी ले ली , फिर भी मुड़ते - मुड़ते एक बज गया। वह किरना के घर के बराबर आया तो किरना और उसकी माँ बाहर घूम रही थीं। उसने रेहड़ा बिलकुल धीमा कर लिया। जब किरना की माँ ने पीठ घुमाई तो तेजी ने अपना हाथ छाती पर रख कर हवा में खड़ा कर दिया , जिसका मतलब था कि मुझे तुम्हारा संदेशा मिल गया है. किरना ने सहमति में सर हिलाते हुए होठों में मुस्कुरा दिया।
घर आकर तेजी सुखपाल का पिसावां उनके घर फेंक आया और फिर नहाकर चौबारे चढ़ गया। उसकी खुसी होठों पर आ आकर नाच रही थी। उसका मन प्यार के नशे में नशयाया बेकाबू हुआ जा रहा था . उसका दिल कर रहा था कि सारी प्रकृति को बाहों में भर कर चूम ले। उसने दीवार पर लगा आइना उतार लिया और फिर उसमें अपने नक्श जांचने लगा। मुश्की सा रंग , तीखे नयन नक्श , सर पर डेढ़ इंच की सी बोदी पर नाक थोड़ा बड़ा लगता था।
'' भला मुझ में क्या कमी है ? किरना क्यों न फंसती और फिर वो भागू कौन सा आसमान से उतरा हुआ है. '' फिर अचानक उसके मन में पछतावा सा हुआ , 'मैंने तो भागू के साथ धोखा किया है । मैंने कब धोखा किया ? यह तो किरना का कसूर है। ' उसके मन में खुद ही विरोधी पैदा हुए विचारों को उसने गले से पकड़ कर फिर अपने पक्ष में कर लिया। उसने आइना फिर उसी दीवार पर टांग दिया और बिस्तर पर लेट गया। विचारों की होती उथल -पुथल उसके दिमाग को कुछ समय के लिए अकेला छोड़ गई। कमरे की शान्ति में उसे घड़ी की टिक -टिक सुनाई दी। उसने उठकर देखा , पौने तीन बज गए थे। वह भैंसों को चारा डाल नीचे उतर आया।
आज जैसे तेजी के लिए समय रुक सा गया था। उसकी सोच समय को नथ डाले आगे खींच रही थी पर समय टाँगे अड़ाए वहीँ खड़ा था। उसे मिनट -मिनट गिनते हुए रात के नौ बज गए। वह थोड़े -थोड़े समय बाद चौबारे से बाहर निकलता , कोठे पर फेरा लगाकर फिर अंदर आ जाता। समय बीता , साढ़े नौ हो गए। फिर दस और फिर सुई सवा दस पर आ गई। उसके होंठ गहरी मुस्कान से चौड़े हो गए। वह बिस्तर से उठा , धीरे -धीरे सीढ़ियां उतरता आँगन में आ गया। उसे आँगन में आते देख कर भैंस रेंगी। तेजी ने उसे मन ही मन गाली दी । गेट के पास आकर उसने पीछे मुड़कर देखा , आँगन में कोई नहीं था। उसने धीरे -धीरे गेट खोलना शुरू किया फिर हलकी सी 'टिक ' की आवाज से गेट का ' घ्रील ' खुल गया। गेट से बाहर होते वक़्त उसने फिर आँगन में नज़र मारी उसे कोई खतरा महसूस न हुआ। आँगन के सिवा बाकी सारे कमरों के बल्ब बुझे हुए थे। वह बाहर निकला और गेट धीरे से बंद कर दिया। बाहर आते ही खुले खेतों से ठंडी शीत हवा का आवारा झोंखा तेजी के जवान ज़िस्म के साथ टकरा कर कंपकंपी छेड़ गया। उसने दोनों की बुक्कल मार ली । मशीन के पास खड़े शहतूत पर किसी पक्षी की सुगबुगाहट हुई। सामने पही पर बैठी टटीरी 'टरी … टरी … ई ' करती शोर मचाने लगी। दूर पिंड से किसी -किसी कुत्ते के भौकने की आवाज़ कानों से आ टकराती। पहले उसने सीधे वट्ट के ऊपर से जाने की सोची पर फिर ओस का ख्याल कर पही के रस्ते पड़ गया। चांदनी रात में लम्बे सफेदों की लम्बी छाया ने सारी पही को ढक रखा था। पही के साथ -साथ जाते पक्के खाल में पानी नहीं था। खाल में से बिंडों की टरीं .... टरीं ईं की आवाज़ टिकी रात में बोलियां डाल रही थी. वह सड़क पर आकर कुछ तेज हो गया। कहीं वह बाहर देख कर ही न लौट जाये। घर के पास आ कर वह थोड़ा झिझका फिर धीरे -धीरे गेट के पास जा खड़ा हुआ। बाहर मोटर के कोठे वाला बल्ब जल रहा था पर घर के सारे बल्ब बंद थे। उसने मन ही मन शुक्र किया। तेजी ने गेट को धीरे से अंदर धकेल कर देखा , गेट अंदर से बंद था। वह गेट के बायीं ओर लगकर खड़ा हो गया। समय देखने के लिए उसके अपनी कलाई पर हाथ मारा पर घड़ी तो वह घर ही भूल आया था। उसने सोचा चलो पंद्रह मिनट और इन्तजार कर लेता हूँ।
अभी पांच मिनट ही बीते थे कि गेट धीरे से खड़का। तेजी का दिन धड़का , कहीं कोई और ही न हो यह सोच कर उसने कहीं और छुपने की सोची पर फिर वह खड़ा रह गया। औरत का आकर गेट से बाहर आ गया। तेजी ने किरना को झट पहचान लिया। वह झट किरना के सामने आ खड़ा हुआ , '' इतनी देर लगा दी ?''
'' अभी तो ग्यारह भी नहीं बजे .''
'' मैं तो कबका इन्तजार कर रहा हूँ। ''
'' तेरा क्या है पागल का , शाम को ही आकर बैठ गए होगे। ''
तेजी अपने पागलपन पर मुस्कुरा पड़ा।
'' चल उधर चलते हैं। '' किरना तेजी को इशारा करके मोटर के पास बिछी चारपाई की ओर चल पड़ी , जो अक्सर वहीँ पड़ी रहती थी।
'' नहीं यहाँ कोई देख न ले। '' तेजी खड़ा हो गया।
कहीं नहीं देखता कोई , हम चारपाई ही कोठे से पीछे ले जाते हैं। ''
किरना के इतना कहने पर वह उसके पीछे कोठे की ओर चल पड़ा। उन्होंने वहाँ से चारपाई उठा कर अँधेरे में कर ली ताकि कोठे की लाइट की रौशनी उनपर न पड़े। दोनों चारपाई पर पास -पास बैठ गए ।
'' संदेशा मिल गया था। '' किरना बोली।
'' तो ही अब यहाँ बैठा हूँ। '' तेजी ने किरना की कमर में बाँह डाल ली और उसके गले में पड़ी सोने की चेन को टटोलने लगा।
'' क्यों दोबारा लेकर जाने का इरादा है। ''
'' न चेन तो नहीं पर तुझे लेकर जाने का जरुर दिल करता है। किरना तुझ पर इतना प्यार क्यूँ आता है मुझे , दिल तेरे लिए तड़पता है , बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ तुम्हें। '' तेजी ने किरना को अपने सीने के साथ भींच लिया और उसके चेहरे को निहारने लगा , जैसे वह उसे आँखों के रस्ते से पी जाना चाहता हो या फिर उसकी आँखों में खुद पिघल -पिघल कर उसमें समा जाये।
'' छोड़ अब मैंने जाना है। '' किरना अपनी नीम रजामंदी में उसकी बाहों की जकड़न तोड़ने लगी।
'' क्या ? अभी तो तुम आकर बैठी हो। '' तेजी किरना के जाने की बात सुन हैरान हो गया।
'' अरे … मैं तो यूँ ही कह रही थी , कैसे गुस्सा दिखाते हो। ''
तेजी को किरना पर थोड़ा गुस्सा भी आया था जो 'मैं तो यूँ ही ' सुनकर काफूर हो गया। दोनों वहीँ बैठे घंटे दो घंटे बातें करते रहे। जब दोनों के दिल का गुब्बार निकल गया तो किरना ने जाने की अनुमति मांगी। तेजी न चाहता हुआ भी उठकर खड़ा हो गया। उसने सड़क पर आकर किरना की ओर हाथ ख़ड़ा किया और आगे बढ़ गया। किरना कुछ देर वहीँ खड़ी देखती रही। सड़क पर जाते तेजी का आकार धुंधला होते -होते अँधेरे में कहीं गुम हो गया।
16
समय का चक्र घूमता रहा। उस पर लिखी तारीखें बदलती रहीं। दिन बदलते गए। महीने बदलते गए। मौसम बदलते गए। जेठ महीने ने आ दस्तक दी। किसानों ने धान की फसल लगाने के लिए कमर कस ली . मज़दूरों ने पहले ही अपने -अपने मेल की टोलियां बना लीं। निर्दयी पेट की भूख ने बिहारियों को अपनी तंदों से जकड़कर पंजाब ला फेंका। वे कई महीनों के लिए अपने परिवार , अपने पिंड , अपनी मिटटी को अलविदा कह आये।
आज भागू सारी जमीन धान की फसल लगाने के लिए तैयार कर आया। उसने पिछले तीन दिनों से रात -दिन एक कर दिया था। उसने खेतों से आते ही जल्दी- जल्दी नहाकर रोटी खा ली कि कहीं तीन दिनों की थकावट उसपर भारी न पड़ जाये और उसे बिना नहाये ही लेटना पड़ जाये . रोटी खाकर वह कोठे पर पड़ी चारपाई पर कपड़ा बिछाकर लेट गया। सारा गाँव नींद के आलिंगन में सोया था। किसी -किसी घर में ही बल्ब जल रहा था। दूर गुरुद्वारे के निशान साहिब पर लगा बड़ा बल्ब आग के किसी छोटे गोले की तरह आसमान में तैरता लग रहा था। आसमान में धुएँ के गुब्बारे जैसे छोटे -छोटे बादल काली रात में बिना हिल -हुज्जत के चोरों की तरह चले जा रहे थे। कोठे से आस -पास खड़े दरख्त अँधेरे में इस तरह लग रहे थे जैसे किसी ने बड़े दैत्य को फाँसी देने के लिए उनके चेहरों पर काले नकाब चढ़ा दिए हों। दक्षिण की तरफ चार -पांच किलों की दूरी पर नाले की दोनों पटरियों पर कीकरों की खड़ी लम्बी कतारें किसी मोटे काले स्कैच से खींची दो काली लाइने सी दिखाई दे रही थीं।
भगवान को आज नींद नहीं आ रही थी , जैसे उसके दिमाग में कोई खलबली मचा रहा हो। वह पल -पल करवटें बदलता रहा। भगवान की नज़र आसमान में काले बादल पर जा टिकी। काला बादल उसे किरना के बेगैरत काले चेहरे सा लगा , जिसने उसकी ज़िन्दगी में एक बिखराव सा पैदा कर दिया था। उसकी पढ़ाई बीच में ही छूट गई और शरीर पहले से आधा रह गया। उसने किरना की बेवफाई का दर्द अपनी हड्डियों पर झेला। इक किरना की बेवफाई दूसरा करमी बहन का विछोह ,दोनों ने भागू को चक्की के दो पाटों के बीच के अनाज की तरह पीस डाला । उसे सारी खलकत रूखी -रूखी लगने लगी। दोस्तों -मित्रों के कहने पर भी उसने आगे दाखिला नहीं लिया था। पाँच- छः महीने बीतने के बाद उसे एहसास होने लगा था कि जैसे उसने दाखिला न लेकर खुद अपनी ज़िन्दगी की नीरसता में और इज़ाफ़ा कर लिया था। उसे लगा कि जिन्हों के लिए उसने अपने शरीर को दुखों की भट्टी में झोंका , जिन्हों के लिए वह अपनी हड्ड गलाता रहा , वे ही उसकी हालत पर हँसते रहे , उसकी भावनाओं का मज़ाक उड़ाते रहे।
उसे ज़िन्दगी की पटड़ी दोबारा दिखाई देने लगी , जिसके ऊपर चल कर उसने ज़िन्दगी के अंत तक पहुँचना था और जो पहले किरना की बेवफाई के अँधेरे में उसे दिखाई देनी बंद हो गई थी। कुछ दोस्तों के कहने पर और कुछ अपने मन की रज़ामंदी से उसने अबकी बार कालेज दाखिला लेने का मन बना लिया था ।
भगवान को सुबह दाखिला लेने जाने की बात याद आई। उसकी आँखों के आगे कालेज का एक धुंधला सा दृश्य घूमने लगा। ऊँची लम्बी बिल्डिंग , जींस पहने घूमते लड़के , हिरनियों जैसी आँखों वाली , मोरनी की चाल चलती , मक्खन की सी मुलायम लड़कियां। उसके होठों पर ख़ुशी की एक मुस्कान सी आ गई। फिर उसे पता ही न चला कि वह ये सब बातें सोचता -सोचता कब नींद की आगोश में जा डूबा।
जब सुबह आँख खुली, अन्धेरा आँगन से उडारी भरने के लिए पंख फड़फड़ा रहा था . आस पास के दरख्तों पर पक्षियों की हिलजुल होने लगी थी। आसमान में एक दो तारे रह गए थे। बाकी के अपना काम निपटा कर कबके चले गए थे। भगवान बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। अपने सिरहाने से पानी की गड़वी उठाई और मुँह धो लिया। फिर अपनी दोनों बाहें ऊपर कर पंजों के भार खड़ा होकर अंगड़ाई ली। एक बार आस -पास नज़र मारी और फिर सीढ़ियों से नीचे उतर गया। उसकी माँ चाय की पतीली के नीचे आग जला रही थी। सोने रंगी आग ने चूल्हे पर पड़ी पतीली के चारों ओर एक दीवार सी बना रखी थी। माँ के चेहरे पर पसीने की बूंदें मस्सों की तरह चिपकी हुई थीं। पास ही चारपाई पर बैठा चन्नन चाय के इंतजार में चूल्हे की ओर टकटकी लगाये देखे जा रहा था। भगवान अपने पिता के पास चारपाई पर जा बैठा।
'' आज दाखिला लेने जाओगे ?'' चन्नन ने पूछा।
'' हाँ। ''
'' कितनी तारीख तक भरना है ?''
'' अभी तो चार पांच दिन पड़े हैं। ''
'' फिर सुबह भर लेना। आज यहीं रह जा। वो गली का किस्सा निपटा लें आज। तुम बस चाय -पानी का ध्य़ान रख लेना जरा। ''
'' अच्छा। ''
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भगवान आज अपने बापू के कहने पर कालेज जाने का प्रोग्राम रद्द कर घर पर ही रह गया। नौ बजते तक गुरदयाल के खुले आँगन में लोग इकत्रित होने शुरू हो गए। पिंड के सयाने -सयाने बन्दे बिछी चारपाइयों पर आ बैठे। भगवान और जीते ने सबको पानी पिलाया। थोड़े समय बाद थानेदार और उसके साथ दो पुलिस वाले आ गए। गुरदीप सरपंच ने कोई अनहोनी घटना होने के डर से थानेदार को कल ही संदेशा भेज दिया था। जब अच्छा खासा इक्कठ जमा हो गया तो एक पुलसिया और दो और आदमी जाकर मुखत्यार सरपंच को ले आये। मुखत्यार के साथ भी आठ -दस लोग आकर चारपाइयों पर बैठ गए। जीते ने उन्हें भी पानी पिला दिया। थानेदार ने सबको चुप करवा कर कहना शुरू किया , '' लो भाई गुरदयाल सिंह , अब हम सभी लोग सुन रहे हैं बताओ कैसे करना है ? ''
'' हम तो जी पहले भी सीधे थे और अब भी सीधे हैं। जैसे आप कहते हो वैसे ही कर लेंगे। '' गुरदयाल अपनी सियानप का प्रभाव डालने के लिए बड़े सलीके से बोला।
'' क्यों भाई मुखत्यार सिंह ?'' थानेदार ने अपनी मोटी आँखें मुख्त्यार की टोकरे जैसी सफ़ेद पगड़ी पर गड़ा दी।
'' देखो जी यह तो आपको भी पता है कि सरकारी गली कौन बंद कर लेगा , और पानी भी …… .''
'' ओये हो ! सौ हाथ रस्सी सिरे पर गाँठ , यह झगड़ों वाली बातें तो हमें पहले ही दो साल हो गए करते हुए। क्या निकला इनमें से ? परेशान होकर और पैसे खर्च कर तुम वापस आ जाते हो , दूसरी तरफ ये मुड़ लौट आते हैं । जो काम छूटता है वो अलग। इन बातों को अब छोड़ो, कोई निपटारे की बात करो ।'' हरभजन ज्ञानी ने दोनों पक्षों को समझाते हुए कहा। .
'' ज्ञानी जी , आप ही निपटारा करा दो। '' थानेदार ने फैसले की डोर ज्ञानी के हाथ में पकड़ा दी।
'' मैं तो देख न इनकी करूंगा , न ही उनकी , हमने तो बात करनी है विहार की , डंडे जैसी। चाहे किसी को कड़वी लगे , चाहे मीठी। जैसे फैसला कर दिया उसे मानना पड़ेगा। क्यों भाई ?'' हरभजन ज्ञानी सबके चेहरे पर सहमति के शब्द ढूंढने लगा। असल में दोनों पक्षों के पेशियों पर चक्कर लगा -लगाकर मुँह मुड़े पड़े थे। दिल से सभी चाहते थे कि फैसला हो जाये। सो सबने सर हिलाकर सहमति दे दी।
'' यूँ करो , पार होने के लिए राह तो रखो गुरदयाल की गली के बीच से और पानी दूसरी तरफ से निकाल देते हैं। ज्ञानी ने सबकी ओर देखा।
'' हां ठीक है .... ठीक है। '' थानेदार ने झट से सबकी ओर से सहमति दे दी। वह सोचता था कि कहीं कोई उलट ही न बोल पड़े। थानेदार के बाद कोई उसके विरोध में न बोला , जिसका मतलब था कि सबने फैसला मान लिया। गुरदयाल ने सबको वहीँ बैठे रहने को कहा और चाय चढ़वा दी। चाय बनने तक सभी आपस में बातें करने में व्यस्त हो गए । चाय बनने पर भगवान और जीते ने सबको चाय पिला दी। चाय पीकर मुखत्यार उनलोग अपने घर चले गए पर कुछ लालपरी के लालची और थानेदार ने गुरदयाल के घर ही पीने के लिए अखाडा जमा लिया । दोपहर से लेकर शाम तक कई बोतलें खाली कर दी गईं . जब सबकी आँखें अंगारों की तरह दहकने लगीं , धरती घूमती जान पड़ने लगी , जुबान हासिये से फिसलने लगी तब सभी धीरे -धीरे रात को गड्ढों में गिरने जैसे लड़खड़ाते हुए घरों की ओर चल पड़े। थानेदार ने गुरदयाल से कस कर हाथ मिलाया और अपने दो सिपाहियों को लेकर चिमियों की ओर जाती सड़क पर बढ़ गए।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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