कामिनी की कामुक गाथा
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Re: कामिनी की कामुक गाथा
Satish Bhai please continue
- SATISH
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Re: कामिनी की कामुक गाथा
साथ बने रहने के लिये आप सब का बहुत धन्यवाद
- SATISH
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Re: कामिनी की कामुक गाथा
पिछले भागमें आपलोगों नें पढ़ा कि किस तरह अपनी कामुकता के वशीभूत मैं एक अजनबी दूधवाले से चुद गयी। अपने हिसाब से उसनें मेरा कचूमर निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। रेखा का उसके पुत्र पंकज द्वारा शारीरिक संबंध की घटना उसी के मुख से सुनकर मैं सनसना उठी थी, हालांकि यह आग मेरी ही लगाई हुई थी। रेखा के घर से निकल कर अपने घर लौटते वक्त मेरे सारे शरीर में चींटियां दौड़ रही थीं। आग लगी हुई थी आग। मन तो कर रहा था कि इसी वक्त कोई आकर मेरे तन की ज्वाला बुझा डाले। मेरी आशाओं पर तुषारापात तब हुआ जब मुझे पता चला कि हरिया, क्रीम और रामलाल अपनी रासलीला मनाने सरिता, रबिया के यहां जा रहे हैं। तभी मेरे जेहन में अपने दूधवाले को फांस कर आज का दिन रंगीन बनाने का ख्याल आया क्योंकि आज छुट्टी का दिन था और मैं पूरा दिन घर मैं पड़े रह कर वासना की अग्नि में जलते अपने तन के साथ तड़पती नहीं रह सकती थी। लेकिन ऊपरवाले की मर्जी कुछ और ही थी। अपने स्थाई दूधवाले के स्थान पर उसका भीमकाय भाई आज दूध देने के लिए आया था। खैर, कहां तो मैं अपने दूधवाले को अपना जलता बदन परोसना चाह रही थी और कहां से यह उसका पहलवान भाई आ टपका था। पर मुझे क्या, मैं तो वासना की तपिश में मानो अंधी हो चुकी थी, मेरी हालत ऐसी थी कि इस वक्त कोई भी आकर मेरे तन से अपनी प्यास बुझा सकता था और वही हुआ भी। लेकिन इस चक्कर में उस भुक्खड़ चुदक्कड़ नें मेरी जो दुर्दशा कर दी थी, बता नहीं सकती। पता नहीं कितने दिनों का भूखा था, मुझ जैसी मलाईदार औरत उसे बड़े भाग्य से हाथ लगी थी, जिसे उसने चटखारे ले ले कर खाया, नोच नोच कर खाया, निचोड़ निचोड़ कर खाया और मैं चुदाई की मस्ती में डूबी, नुचती रही, निचुड़ती रही, पिसती रही। मदहोशी के आलम में होश ही कहां था मुझे। आनंद के समुंदर में डूबती उतराती कहां मुझे और कुछ का आभास हो रहा था। मग्न मन बस नुचती रही, चुदती रही। जब उस कामुक पशु की हवस का नशा उतर गया तो उसकी गिरफ्त से आजाद हो कर, नुची चुदी, निचुड़ी, लस्त पस्त, पसीने से सराबोर, थकान से अधमरी, किसी इस्तेमाल की बाद रद्दी की तरह फेंकी गयी वस्तु की तरह सोफे पर पड़ी लंबी लंबी सांसें ले रही थी। आंखें मेरी बंद थीं। पता नहीं कितनी देर तक उसी तरह बेशर्मी के साथ अस्त व्यस्त हालत में पसरी पड़ी रही। जैसे जैसे मेरी हालत सामान्य होने लगी तो अब मालूम पड़ रहा था कि मुझ पर क्या बीती थी। उस वासनामयी भयानक तूफ़ान के शांत होने के पश्चात अपनी बुरी गति का पता चल रहा था।
- SATISH
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Re: कामिनी की कामुक गाथा
हमको बड़ा मज़ा आया, इतने साल बाद एक औरत मिली चोदने को और वह भी इतनी मस्त माल, तबियत खुश हो गया, और हम जानते हैं कि तुमको भी खूब मज़ा आया है, अब तू माने या न माने। अब तो हम और आवेंगे।” जी भर के मेरे शरीर का उपभोग कर लेने के पश्चात पुर्ण संतुष्टि की मुस्कान उसके होंठों पर खेल रही थी। मैं ने अधमुंदी आंखों से सामने देखा, अब वह उसी तरह नंगी धड़ंग अवस्था में टांगें फैलाए, अपने चोद चोदकर आंशिक रूप से मुरझाए, झूलते लिंग के साथ सामने वाले सोफे पर बैठा बड़ी बारीकी से मेरे पसीने से लतपत, निढाल, थक कर चूर, लस्त पस्त शरीर का दर्शन कर रहा था। मेरी सांसों के साथ उठते गिरते उन्नत उरोजों के साथ साथ पूरे नग्न शरीर के उतार चढ़ावों को वह अब प्रशंसात्मक दृष्टि से मुआयना कर रहा था। शायद अपनी किस्मत पर रश्क भी हो रहा था कि बड़े भाग से ऐसी मदमस्त औरत पर हाथ साफ करने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। अब भी बड़ी ही हसरत भरी भूखी नजरों से देख रहा था। उसका सोया लिंग जाग रहा था, तनाव प्राप्त कर रहा था। तो, तों क्या अब भी उसका मन नहीं भरा था? इतनी बेरहमी से नोच खसोट के बाद भी?
“नहीं, और नहीं। आज जो हुआ सो हुआ, अब आगे से नहीं। बिल्कुल भी नहीं” हड़बड़ा कर उठने को हुई, खड़ी होने की कोशिश करते हुए बोली।
“आगे से नहीं मतलब? ठीक है ठीक है, समझ गया, अब आगे से नहीं, अब पीछे से, ठीक है?” वह बेशर्मी से बोला। इसकी आंखों में एक अजीब सी चमक आ गयी।
“क क क क्या मतलब?” मैं खुद को संभाल कर बमुश्किल सोफे पर से उठती हुई बोल उठी। दिल धाड़ धाड़ धड़कने लगा। पीछे से का मतलब क्या है, कहीं, कहीं उसका आशय गुदा मैथुन से तो नहीं? हाय दैया। अगर ऐसा है तो, हे भगवान, फाड़ ही तो डालेगा मेरी गांड़, नहीं, कदापि नहीं। वैसे भी सारा शरीर तोड़ कर रख दिया था उस कामान्ध पशु नें।
“अब मतलब भी हम ही समझावें?” बड़ी ढिठाई से बोला वह।
“मैं कककुछ समझी नहीं।” मैं खीझ उठी थी।
“अब ई भी समझा दें? अब्भिए समझा देते हैं?” वह सोफे से उठ कर फिर से मेरी ओर बढ़ता हुआ बोला। उसका दानवाकार लिंग मेरे सामने बड़ी हेकड़ी के साथ झूम रहा था, अपनी विजय के नशे में चूर। देख कर मेरा चंचल मन पुनः तरंगित होने लगा, किंतु मेरे क्लांत शरीर नें मन की तरंगों को खारिज कर दिया। मैंने नाहक ही पूछ लिया था। अभी तो जाने ही वाला था, बाद की बात बाद में देखी जाती। कहीं, कहीं, अनजाने में मैं उसे पुनः आमंत्रण तो नहीं दे बैठी।
“नहीं, मुझे नहीं समझना। तुम जाओ यहां से।” मैं अपनी आवाज में जबरदस्ती तल्खी लाते हुए बोल उठी। अबतक मैं अपने थकान के मारे थरथरा रहे पैरों पर किसी प्रकार खड़ी हो चुकी थी। मैं लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ कर फर्श पर पड़े मेरी नाईटी, जो मानो मेरी अवस्था की खिल्ली उड़ा रही थी, को उठाने का उपक्रम कर ही रही थी कि गिरते गिरते बची, बची क्या, रमेश नामक उस कामपिपाशु ग्वाले नें थाम लिया मुझे, साथ ही उसकी आवाज सुनकर चौंक उठी,
“न न न न, ऐसे नहीं मैडम। ऐसे ही थोड़ा आराम कर लीजिए, फिर आराम से कपड़े पहन लेना।” अपने मजबूत हाथों से थाम रखा था उसनें। मैंने विस्फारित नेत्रों से नीचे देखा, उसका लिंग पुनः जाग रहा था। मैं उसके हाथों से छूटना चाह रही थी किन्तु असमर्थ थी। उसकी मंशा क्या थी पता नहीं, उसनें न मुझे सोफे पर बैठने दिया न ही स्वतंत्र रूप से खड़ा रहने दिया, ऐसा लग रहा था मानो मैं पूरी तरह उसके कब्जे में हूं, एक तो नुची चुदी, निचुड़ी, थकान से चूर, उसपर उसकी अति मानवीय मर्दाना ताकत, नतीजा मैं उसके आगे बेबस, उसके रहमो-करम पर थी। मैंने उसकी आंखों में देखा, वही जानी पहचानी स्त्री तन की भूख नृत्य कर रही थी। तो क्या, तो क्या फिर से?
“नहीं, और नहीं। आज जो हुआ सो हुआ, अब आगे से नहीं। बिल्कुल भी नहीं” हड़बड़ा कर उठने को हुई, खड़ी होने की कोशिश करते हुए बोली।
“आगे से नहीं मतलब? ठीक है ठीक है, समझ गया, अब आगे से नहीं, अब पीछे से, ठीक है?” वह बेशर्मी से बोला। इसकी आंखों में एक अजीब सी चमक आ गयी।
“क क क क्या मतलब?” मैं खुद को संभाल कर बमुश्किल सोफे पर से उठती हुई बोल उठी। दिल धाड़ धाड़ धड़कने लगा। पीछे से का मतलब क्या है, कहीं, कहीं उसका आशय गुदा मैथुन से तो नहीं? हाय दैया। अगर ऐसा है तो, हे भगवान, फाड़ ही तो डालेगा मेरी गांड़, नहीं, कदापि नहीं। वैसे भी सारा शरीर तोड़ कर रख दिया था उस कामान्ध पशु नें।
“अब मतलब भी हम ही समझावें?” बड़ी ढिठाई से बोला वह।
“मैं कककुछ समझी नहीं।” मैं खीझ उठी थी।
“अब ई भी समझा दें? अब्भिए समझा देते हैं?” वह सोफे से उठ कर फिर से मेरी ओर बढ़ता हुआ बोला। उसका दानवाकार लिंग मेरे सामने बड़ी हेकड़ी के साथ झूम रहा था, अपनी विजय के नशे में चूर। देख कर मेरा चंचल मन पुनः तरंगित होने लगा, किंतु मेरे क्लांत शरीर नें मन की तरंगों को खारिज कर दिया। मैंने नाहक ही पूछ लिया था। अभी तो जाने ही वाला था, बाद की बात बाद में देखी जाती। कहीं, कहीं, अनजाने में मैं उसे पुनः आमंत्रण तो नहीं दे बैठी।
“नहीं, मुझे नहीं समझना। तुम जाओ यहां से।” मैं अपनी आवाज में जबरदस्ती तल्खी लाते हुए बोल उठी। अबतक मैं अपने थकान के मारे थरथरा रहे पैरों पर किसी प्रकार खड़ी हो चुकी थी। मैं लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ कर फर्श पर पड़े मेरी नाईटी, जो मानो मेरी अवस्था की खिल्ली उड़ा रही थी, को उठाने का उपक्रम कर ही रही थी कि गिरते गिरते बची, बची क्या, रमेश नामक उस कामपिपाशु ग्वाले नें थाम लिया मुझे, साथ ही उसकी आवाज सुनकर चौंक उठी,
“न न न न, ऐसे नहीं मैडम। ऐसे ही थोड़ा आराम कर लीजिए, फिर आराम से कपड़े पहन लेना।” अपने मजबूत हाथों से थाम रखा था उसनें। मैंने विस्फारित नेत्रों से नीचे देखा, उसका लिंग पुनः जाग रहा था। मैं उसके हाथों से छूटना चाह रही थी किन्तु असमर्थ थी। उसकी मंशा क्या थी पता नहीं, उसनें न मुझे सोफे पर बैठने दिया न ही स्वतंत्र रूप से खड़ा रहने दिया, ऐसा लग रहा था मानो मैं पूरी तरह उसके कब्जे में हूं, एक तो नुची चुदी, निचुड़ी, थकान से चूर, उसपर उसकी अति मानवीय मर्दाना ताकत, नतीजा मैं उसके आगे बेबस, उसके रहमो-करम पर थी। मैंने उसकी आंखों में देखा, वही जानी पहचानी स्त्री तन की भूख नृत्य कर रही थी। तो क्या, तो क्या फिर से?
- SATISH
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Re: कामिनी की कामुक गाथा
“छोड़ो मुझे।” बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते हुए बोली मैं।
“न न न न, ऐसे कैसे छोड़ दें मैडम। देखिए, तेरी बात सुनकर मेरा लौड़ा फिर से खड़ा हो गया।” अपने लंड को हिलाते हुए बोला वह।
“मैंने ऐसा क्या कह दिया?” मैं जानबूझकर अनजान बनती हुई बोली।
“वही, पीछे वाली बात, पिछवाड़े वाली बात, मतलब गांड़ वाली बात। सही कहा ना?” वह मुझे दबोचे हुए बोला। ओह मां, यह तो मेरी गांड़ का भुर्ता बनाने की बात कह रहा था।
“ननननहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्, ऐसा मत करो मेरे साथ। पहले जबर्दस्ती मेरी इज्जत लूट कर मेरी दुर्गति कर दी और अब मेरी गुदा का भुर्ता बनाने की बात करते हो? आगे से मेरा मतलब आज के बाद से था, चूत से नहीं। अपने से मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हो? अब मेरी पिछाड़ी के पीछे पड़ गये हो? नहीं नहीं, बिल्कुल नहीं।” मैं विरोध करने लगी।
“ई न न न न नहीं चलेगा। गांड़ तो देना ही पड़ेगा। तुम मानो चाहे न मानो। गांड़ तो हम चोदबे करेंगे।” मुझे सख्ती से थामे थामे बोला।
“नहीं होगा यह मुझ से। छोड़ दो प्लीज़।” गिड़गिड़ाने लगी थी मैं।
“जरा समझो मैडम, तेरे बदन का सबसे सुंदर हिस्सा है तेरी गांड़। बड़ी बड़ी, गोल गोल, चिकनी चिकनी, एकदम मक्खन जैसी, मस्त है मस्त। अब बोलो भला, एक तो इतने सालों का भूखा आदमी और सामने इतनी खूबसूरत गांड़, न चोदें तो मेरे साथ साथ इस खूबसूरत गांड़ के साथ अन्याय ही न होगा। कैसे छोड़ दें। हमको भी तो जवाब देना होगा भगवान को। हमसे कहेगा, “साले मादरचोद, तेरी जरूरत देख कर इतनी खूबसूरत औरत दिया चोदने को और साले भड़वे, खाली चूत मार के छोड़ दिया, फिर इतनी सुंदर गांड़ वाली औरत दे कर फायदा क्या हुआ?” यह कहते कहते वह मेरी गांड़ पर हाथ फेरने लगा।
“न न न न नहीं।” बस इतना ही तो कह सकी थी मैं। मेरी न न से उसपर क्या फर्क पड़ना था। पहले भी कौन सा फर्क पड़ा था। मेरी न न को कैसे हां हां में तब्दील होते देखा था उसनें। वह तो अपनी मनमानी के लिए अब पूर्ण आश्वस्त था। बेशर्म, जलील, कमीना, अब पूरी बेबाकी से मेरी चूचियों को अपने पंजों से सहला रहा था, आहिस्ते आहिस्ते मसल रहा था, खेल रहा था, साथ ही साथ अपने गंदे होंठों से मेरे चेहरे पर चुंबनों की बारिश कर रहा था। मुझे घिन आनी चाहिए थी, किंतु नहीं, कोई घृणा नहीं थी अब। मेरी अवस्था मानो सम्मोहित मूक गुड़िया सी थी। हाय राम, इसने तो मुझे पूरी तरह अपने काबू में कर लिया था। बिल्कुल पराधीन हो गयी थी मैं। कुछ भी विरोध करने की इच्छा ही नहीं थी। वैसे भी जुबानी विरोध का कोई अर्थ नहीं रह गया था।
अब तो मुझमें भी भीतर ही भीतर नवजीवन का संचार होने लगा था। यह क्या हो रहा था मुझे? कुछ पलों पहले मैं विरोध में पूरी ताकत आजमाईश कर रही थी और अब वह विरोध शनै: शनै: मद्धिम होते होते तिरोहित हो गया था। उसकी कामुक हरकतों से मेरा मन झंकृत हो उठा था। मेरे अंदर वासना का सैलाब उफान मार रहा था। कामुकता मुझ पर पुनः हावी हो चुका था। मैं अब समर्पण की अवस्था में थी। “आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, उफ्फ्फ, अब …..बस्स्स्स.” मेरे मुंह से निकले अल्फाजों नें जता दिया कि अब मेरे तन के साथ कामुकता भरा कोई भी खेल खेला जा सकता है। मेरी अवस्था से अनभिज्ञ नहीं था वह, खिल उठा।
“न न न न, ऐसे कैसे छोड़ दें मैडम। देखिए, तेरी बात सुनकर मेरा लौड़ा फिर से खड़ा हो गया।” अपने लंड को हिलाते हुए बोला वह।
“मैंने ऐसा क्या कह दिया?” मैं जानबूझकर अनजान बनती हुई बोली।
“वही, पीछे वाली बात, पिछवाड़े वाली बात, मतलब गांड़ वाली बात। सही कहा ना?” वह मुझे दबोचे हुए बोला। ओह मां, यह तो मेरी गांड़ का भुर्ता बनाने की बात कह रहा था।
“ननननहीं्ईं्ईं्ईं्ईं्, ऐसा मत करो मेरे साथ। पहले जबर्दस्ती मेरी इज्जत लूट कर मेरी दुर्गति कर दी और अब मेरी गुदा का भुर्ता बनाने की बात करते हो? आगे से मेरा मतलब आज के बाद से था, चूत से नहीं। अपने से मेरी बात का ग़लत मतलब निकाल कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हो? अब मेरी पिछाड़ी के पीछे पड़ गये हो? नहीं नहीं, बिल्कुल नहीं।” मैं विरोध करने लगी।
“ई न न न न नहीं चलेगा। गांड़ तो देना ही पड़ेगा। तुम मानो चाहे न मानो। गांड़ तो हम चोदबे करेंगे।” मुझे सख्ती से थामे थामे बोला।
“नहीं होगा यह मुझ से। छोड़ दो प्लीज़।” गिड़गिड़ाने लगी थी मैं।
“जरा समझो मैडम, तेरे बदन का सबसे सुंदर हिस्सा है तेरी गांड़। बड़ी बड़ी, गोल गोल, चिकनी चिकनी, एकदम मक्खन जैसी, मस्त है मस्त। अब बोलो भला, एक तो इतने सालों का भूखा आदमी और सामने इतनी खूबसूरत गांड़, न चोदें तो मेरे साथ साथ इस खूबसूरत गांड़ के साथ अन्याय ही न होगा। कैसे छोड़ दें। हमको भी तो जवाब देना होगा भगवान को। हमसे कहेगा, “साले मादरचोद, तेरी जरूरत देख कर इतनी खूबसूरत औरत दिया चोदने को और साले भड़वे, खाली चूत मार के छोड़ दिया, फिर इतनी सुंदर गांड़ वाली औरत दे कर फायदा क्या हुआ?” यह कहते कहते वह मेरी गांड़ पर हाथ फेरने लगा।
“न न न न नहीं।” बस इतना ही तो कह सकी थी मैं। मेरी न न से उसपर क्या फर्क पड़ना था। पहले भी कौन सा फर्क पड़ा था। मेरी न न को कैसे हां हां में तब्दील होते देखा था उसनें। वह तो अपनी मनमानी के लिए अब पूर्ण आश्वस्त था। बेशर्म, जलील, कमीना, अब पूरी बेबाकी से मेरी चूचियों को अपने पंजों से सहला रहा था, आहिस्ते आहिस्ते मसल रहा था, खेल रहा था, साथ ही साथ अपने गंदे होंठों से मेरे चेहरे पर चुंबनों की बारिश कर रहा था। मुझे घिन आनी चाहिए थी, किंतु नहीं, कोई घृणा नहीं थी अब। मेरी अवस्था मानो सम्मोहित मूक गुड़िया सी थी। हाय राम, इसने तो मुझे पूरी तरह अपने काबू में कर लिया था। बिल्कुल पराधीन हो गयी थी मैं। कुछ भी विरोध करने की इच्छा ही नहीं थी। वैसे भी जुबानी विरोध का कोई अर्थ नहीं रह गया था।
अब तो मुझमें भी भीतर ही भीतर नवजीवन का संचार होने लगा था। यह क्या हो रहा था मुझे? कुछ पलों पहले मैं विरोध में पूरी ताकत आजमाईश कर रही थी और अब वह विरोध शनै: शनै: मद्धिम होते होते तिरोहित हो गया था। उसकी कामुक हरकतों से मेरा मन झंकृत हो उठा था। मेरे अंदर वासना का सैलाब उफान मार रहा था। कामुकता मुझ पर पुनः हावी हो चुका था। मैं अब समर्पण की अवस्था में थी। “आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह, उफ्फ्फ, अब …..बस्स्स्स.” मेरे मुंह से निकले अल्फाजों नें जता दिया कि अब मेरे तन के साथ कामुकता भरा कोई भी खेल खेला जा सकता है। मेरी अवस्था से अनभिज्ञ नहीं था वह, खिल उठा।