Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

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Re: Thriller कांटा

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“व...वैसे तो....।" पठान के तेवरों से सकपकाया मदारी बोला “मैं नौकरी के दरम्यान सरकार के अलावा और किसी का हुक्म नहीं मानता श्रीमान जिसकी कि...।"

"तुम तनख्वाह पाते हो।" पठान उसकी बात लपकता हुआ बोला “यह बात तुम मुझे पहले भी बता चुके हो। लेकिन लगता है तमने मेरी बात नहीं सनी।"

“सुना तो खैर मैंने दोनों कान से है जजमान। लेकिन समझ में नहीं आया कि क्यों छोड़ दूं मैं उन्हें और उन भद्रजनों के निर्दोष होने का दावा आप इतनी मजबूती से कैसे कर सकते

"क्यों कि जिसके कत्ल के इल्जाम में तुमने उन्हें गिरफ्तार कर रखा है, वह मरा नहीं जिंदा है। और जब उसका कत्ल ही नहीं हुआ तो तुम उस जुर्म में किसी को कैसे गिरफ्तार कर सकते हो।”

“अरे भगवान, क्यों इंस्पेक्टर मदारी को धड़का लगा रहे हैं।" मदारी चौकन्ना होकर बैठ गया। उसके जेहन में कुछ अटकने सा लगा था “वैसे तो मैं काफी समझदार हूं, लेकिन यह बात मैं बिल्कुल नहीं समझ सकता कि मुर्दा आखिर जिंदा कैसे हो सकता है।"

“जानकी लाल कभी मरा ही नहीं था इंस्पेक्टर ।” पठान ने अपने एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला “और जब वह मरा ही नहीं था तो मुर्दे के जिंदा होने का सवाल कहां उठता है।"

"इसका क्या मतलब हआ जजमान।"

"इसका वही मतलब हुआ जो तुम समझकर भी नासमझ बन रहे हो इंस्पेक्टर। जानकी लाल जिंदा है।"
"तो फिर वह मुझे क्यों नहीं नजर आ रहा?"
“अभी नजर आने लगेगा।"
“कैसे? जादू के जोर से?"
“ऐसा ही समझ लो।” पठान ने कहा और फिर एकाएक उसके होठों पर रहस्यमय मुस्कराहट उभर आयी। फिर उसने अपने चेहरे पर मौजूद टिंट ग्लास का चश्मा उतारकर मदारी के सामने मेज पर रख दिया।
मदारी ने इस तरह सामने रखे चश्मे को देखा जैसे कि उसमें से जानकी लाल के प्रकट होने की उम्मीद कर रहा हो। लेकिन उसकी वह उम्मीद पूरी न हुई।
उसके बाद पठान ने अपने सीने तक झूलती नकली दाढ़ी तथा मूंछों के साथ-साथ दाहिनी तरफ नजर आ रहा काला तिल भी मेज पर रख दिया। फिर सबसे अंत में उसने अपने अधगंजे सिर पर रखी मुसलमानी टोपी को अलग कर दिया।
अब वह अपने असली चेहरे के साथ मदारी के सामने था, जिसे मदारी ने फौरन पहचाना और उसे पहचानते ही उसका दिमाग घूम गया।
उसके सामने जीता जागता जानकी लाल बैठा था।
“आ..आलोका...?" प्राची अवाक सी होकर नैना को देखने लगी थी। कितनी ही देर बाद उसके होंठों से निकला।
“हां। और...।” नैना उसे ध्यानपूर्वक देखती हुइ इत्मिनान से बोली “अपने पापा के बारे में तुमने बिल्कुल गलत नहीं कहा था। वह सचमुच कभी एक बड़े आदमी हुआ करते थे। वह स्टॉक मार्केट से जुड़े थे और एक बहुत बड़ी शेयर ब्रोकिंग कंपनी के सीनियर रिसर्च एनालिस्ट थे, जो लगभग रोजाना ही बिजनेस चैनल पर दिखाई देते थे। स्टॉक मार्केट की उन्हें बहुत गहरी समझ थी और बाजार के इन्वेस्टर उनके दीवाने थे, क्योंकि उनकी एनालिसिस बहुत सटीक होती थी। और बाजार चाहे चढ़े अथवा गिरे, उनके निवेशक हमेशा मुनाफे में रहते थे। मगर फिर अचानक उन्हें खन का कैंसर हो गया। उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। उनके इलाज में उनकी सारी जमा-पूंजी खर्च हो गई। इसके बावजूद उन्हें बचाया न जा सका।”
प्राची उर्फ आलोका की आंखें सजल हो गईं।
.
“क...क्या आप मेरे पापा को जानती थीं?" वह पूछे बिना न रह सकी।
"व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानती थी। मैं उन्हें बस वैसे ही जानती थी कि जैसे स्टॉक मार्केट से जुड़ा हर शख्स जानता
था। एक निवेशक के तौर पर मैं भी तुम्हारे पापा की फैन थी और उनकी एडवाइज पर मैंने बाजार में बहुत पैसा कमाया।

दूसरे शब्दों में कहूं तो मेरी कंपनी को यहां तक पहुंचाने में तुम्हारे पिता का बहुत बड़ा योगदान है, जिसे मैं हरगिज भी भुला नहीं सकती।"
“मगर पापा के गर्दिश के दिनों में उन्हें हर किसी ने भुला दिया था।”

“यही तो इस दुनिया का दस्तूर है।" नैना ने
असहाय भाव से सिर हिलाया “यहां केवल उगते सूरज को देखा जाता है। लेकिन यह सच है कि अगर मुझे तुम्हारे पापा के बारे में मालूम होता तो मैं उनकी मदद जरूर करती। लेकिन उस वक्त मुझे कुछ भी मालूम न हो सका। यह सब तो मुझे तुम्हारी तफ्तीश से पता चला, मगर तब तक देर हो चुकी थी। फिर भी मुझे खुशी है कि तुमने अपना फर्ज बेहतर निभाया और आखिरी वक्त में अपने पिता की बहुत सेवा की थी।"
प्राची उर्फ आलोका के चेहरे पर ना जाने कितने रंग आकर चले गए। “और हां।" नैना को जैसे एकाएक याद आया था। उसने आलोका को देखकर पूछा “जिससे तुम्हारी शादी हुई, वह तुम्हारा जेंटलमैन नहीं था। जबकि तुमने तो अपने जेंटलमैन से प्यार किया था उसे टूट-टूटकर चाहा था। फिर उसे धोखा क्यों दिया?"
आलोका के चेहरे के फिर कई रंग बदले। “आ...आप यह भी जानती हैं?" उसके होंठों से निकला।
“यह तो मेरे सवाल का जवाब नहीं है। वैसे मुझे नहीं पता तुम्हारा जेंटलमैन कहां है, लेकिन वह जहां भी होगा यह सवाल आज भी उसके सीने में कसक रहा होगा।"
आलोका कोई जवाब न दे सकी। जज्बातों के भंवर ने उसका सुंदर चेहरा विकृत कर दिया।
“कितना चाहा था तुमने उसे।” नैना ने उसे कुरेदा “और मैं जानती हूं तुम दोनों की चाहत बहुत सच्ची और निश्छल थी। फिर तुमने उस बेकसूर को आखिर किस बात की सजा दी?"
“आ...आप यह सब जानकर क्या करेंगी मैडम?” आलोका के होंठ हिले।
"शायद कुछ कर सकूँ। वैसे अब तो तुम्हें यह समझ जाना चाहिए कि मैं तुम्हारी दुश्मन नहीं हूं और तुम्हारी अहमियत मेरे लिए सेक्रेटरी से बहुत ज्यादा है। तुम उस इंसान की बेटी हो जिसका मैं बहुत सम्मान करती हूं, और खुद को जिसकी अहसानमंद समझती हूं। अगर मेरी कोई बेटी होती तो आज शायद वह तुम्हारी जैसी ही होती।"
आलोका चौंककर नैना को देखने लगी, जो आज उसे अपनी बॉस कम और एक ममतामयी मां ज्यादा प्रतीत हुई थी। जिसके अंदर बेऔलाद होने की गहरी कसक थी।
आलोका अपने जज्बातों को न रोक सकी और हिचकियों से रो पड़ी।

नैना ने उसे रोने दिया। वह जानती थी कि आंसुओं के साथ गुबार सा बह जाता है और दिल हल्का हो जाता है।
आखिरकार आलोका ने अपने आंसू पोंछ डाले।

“म...मैं मजबूर थी मैडम...।” फिर वह कातर भाव से बोली "और जिंदगी के एक दोराहे पर आकर खड़ी हो गई थी, जहां मुझे अपने प्यार और मौत की दहलीज पर खड़े पिता की
आखिरी ख्वाहिश में से किसी एक को चुनना था। और मैंने अपने पिता की आखिरी अरदास को चुना।”
“म...मैं कुछ समझी नहीं आलोका?"

“मेरे पिता ने मेरा रिश्ता बचपन में ही तय कर दिया था। वह उनके एक करीबी दोस्त का बेटा था।” आलोका ने बताया “और पापा चाहते थे कि उनकी मौत से पहले मैं सुहागिन बन जाऊं। मेरा घर बस जाएगा और उनकी मौत के बाद मुझे बेसहारा और अनाथ होकर दुनिया की ठोकर न खानी पड़े।"
“त...तुमने उन्हें अपने प्यार के बारे में बताया नहीं था?"
"कैसे बताती। पापा उस वक्त मृत्यु शय्या पर थे, और इस बात से बहुत आतंकित थे कि उनकी मौत के बाद एक
खूबसूरत, जवान और बेसहारा लड़की का यह दुनिया क्या हश्र करेगी। ऊपर से उन्होंने अपने उस दोस्त को वचन दे रखा था। और उस दोस्त ने भी अपना फर्ज निभाया था। उसने आखिरी वक्त तक हमारा साथ नहीं छोड़ा था।"
“इसलिए तुम उन्हें इंकार न कर सकी? अपना प्यार कुर्बान कर दिया, अपने पिता की पसंद के लड़के से शादी कर ली? है न?"
“और मैं क्या करती मैडम। कब्र में पांव लटकाये बैठे अपने पिता को इंकार करने का हौसला कैसे जुटाती। हो सकता था वह मेरा इंकार सहन न कर पाते और वह सदमा ही उनकी जान ले लेता। अगर ऐसा हो जाता तो आपको क्या लगता है, मैं उस कलंक के साथ जी सकती थी?"
“क्या तुम्हारे जेंटलमैन को यह सच्चाई मालूम है?"
“नहीं। मैंने उसे इस बारे में एक शब्द भी नहीं बताया था। मैंने तो उसे पापा की बीमारी के बारे में भी कुछ नहीं बताया था।"
"लेकिन सुहागिन तो तुम फिर भी न रह पाई? क्या हुआ था तुम्हारे पति को?”
“एक्सीडेंट।" आलोका बोली “जो कि इस शहर के लिए साधारण सी बात है। मगर उस रोड एक्सीडेंट ने इस अभागिन की दुनिया वीरान कर दी और शादी के छः महीने बाद ही मैं विधवा हो गई।"
“आई सी।” नैना ठंडी सांस भरकर रह गई।
"मेरी उस वक्त क्या हालत हुई होगी, आप समझ ही सकती हैं मैडम।” आलोका कहती गई “लेकिन मेरी हालत से जैसे किसी को कोई सरोकार ही नहीं था। मेरी ससुराल वालों ने मुझे ही उस एक्सीडेंट का जिम्मेदार ठहराया और मुझे मनहूस कहकर उस घर से निकाल दिया, जो शादी होते ही अपने पति को खा गई थी। मैं खुद ही अपने आपको मनहूस समझने लगी थी, जिसके जीने का न कोई मकसद था, न ही सहारा। म...मैंने उसी रोज खुद को खत्म करने का फैसला कर लिया।
और उसी रोज मैंने खुदकुशी के इरादे से एक तेज रफ्तार कार के आगे छलांग लगा दी।”

"ओह नो। फिर क्या हुआ?" नैना ने हकबकाकर पूछा।
“व...वह हुआ मैडम, जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। इतनी खतरनाक रफ्तार से जा रही उस भारी भरकम कार के सामने छलांग लगा देने के बाद मेरे जिंदा बच जाने का कोई चांस नहीं था, क्योंकि वह कार मुझे सड़क पर बहुत दूर तक घसीटती चली गई थी। लेकिन फिर भी करिश्मा हो गया और अस्पताल में मुझे बचा लिया गया।"
“यह सचमुच किसी करिश्मे से कम नहीं था।” नैना ने स्वीकार किया “मगर चोटें तो तुम्हें बहुत आयी होंगी।"
"बहुत ज्यादा। आप सोच भी नहीं सकती मैडम। कार के नीचे दूर तक घिसटने के कारण मेरे हाथ-पांव और मेरा चेहरा पूरी तरह उधड़ गया था और बहुत ज्यादा भयानक हो गया था।"
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Re: Thriller कांटा

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“लेकिन...।” नैना ने एक उड़ती निगाह उसके फैशन मॉडल जैसे हसीन चेहरे पर डाली, फिर कुछ उलझकर बोली “तुम्हारा चेहरा तो एकदम ठीक है।”
“हां। क्योंकि यह मेरा असली चेहरा नहीं है। मेरी यह सुंदरता तो कास्मेटिक सर्जरी का कमाल है, जो प्राची का चेहरा है। आलोका का चेहरा तो उस एक्सीडेंट ने मुझसे हमेशा-हमेशा के लिए छीन लिया।”
“समझ गई।” नैना के मुंह से बेसाख्ता निकला ।वह निःश्वास भरती हुई बोली “तो यह है तुम्हारे चेहरे की सर्जरी की हकीकत?"
“ज...जी मैडम।" आलोका का चेहरा झुक गया “ऑय एम वैरी सॉरी। म...मैंने इस मामले में भी आपको गुमराह किया था। असल में मुझे वैसी कोई चेहरे की बीमारी नहीं हुई थी, जिसकी वजह से मैंने अपने चेहरे की यह सर्जरी बताई थी।"
“डोंट माइंड बेबी। लेकिन तुम्हारे इलाज और तुम्हारे चेहरे की इस सर्जरी का यह भारी भरकम खर्च किसने उठाया था?"
“उ...उसी ने मैडम, जिसकी कार ने मेरी वह हालत की थी।" “और वह कौन था?"
आलोका हिचकिचाई।
"ओह कम ऑन आलोका। मेरे सवाल का जवाब दो।"

“अ...अजीब इत्तेफाक है मैडम.." आलोक ने कहा “वह शख्स भी मेरे पापा का बहुत बड़ा मुरीद था और उसने भी पापा की एडवाइज पर बहुत पैसा कमाया था।"
“और इस तरह उसे तुम्हारे पापा के अहसानों का बदला चुकाने का मौका हासिल हुआ था? राइट?"
“नहीं। वह सचमुच नेक इंसान था मैडम, जो मेरे पापा की
आपबीती सुनकर अंदर तक हिल गया था। म...मैं अगर आज जिंदा हूं तो इसका श्रेय उसी इंसान को जाता है।"
“वह तो है। आखिर उसने तुम्हारा इतना बेहतर इलाज कराया। तुम्हारे असली चेहरे में न सही, लेकिन तुम्हारी
खूबसूरती उसने तुम्हें फिर से वापस लौटा दी।”
“खुदकुशी के तमन्नाई इंसान को इन चीजों की जरूरत नहीं होती मैडम। उसने इससे कहीं ज्यादा बड़ा काम किया था।"
“ऐसा क्या काम किया था उसने?” नैना ने उत्सुकता जताई। “उसने मुझे खुदकुशी के अवसाद से उबारकर मुझमें जीने का हौसला जगाया था। उ...उसने मुझे जीने का मकसद दिया था।"

“क...क्या मकसद दिया था उसने तुम्हें ?"

“जेंटलमैन।” आलोका का स्वर हौले से लरजा। लेकिन उसने फिर से खुद को संभाल लिया और उसका आत्मविश्वास लौटने लगा था “मेरा जेंटलमैन। जिसकी जॉन उस वक्त खतरे में थी।"
“क...क्या वह शख्स तुम्हारे जेंटलमैन को जानता था?"

"हां। और वह एक मिशन पर निकला हुआ था, जिसमें अगर वह कामयाब हो जाता तो अकेले मेरे जेंटलमैन की ही नहीं,
और भी कई लोगों की जिंदगी बच जाने वाली थी।"
“और तुमने उसकी बात मान ली?"
“क्यों न मानती! मुझे आखिर मेरे जीने का मकसद जो मिल गया था।"
“और तुम्हें मेरे पास भेजने वाला भी वही है? है न
आलोका?" आलोका कसमसाई। फिर वह बेचैनी से पहलू बदलती हुई

बोली “ज..जी हां मैडम। यह सच है, मैं यहां उसी के कहने पर आयी हूं।" साथ ही आलोका ने अपना चेहरा झुका लिया।
“इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं है आलोका, क्योंकि कम से कम तुम्हारी वजह से मुझे कोई नुकसान नहीं हुआ।” नैना ने कहा “इसलिए तुम्हें अपना चेहरा झुकाने की जरूरत नहीं है।"
आलोका ने सकुचाते हुए अपना चेहरा ऊपर उठाया और नैना को देखा।

“तुमने अभी तक उस आदमी का नाम नहीं बताया।” नैना ने सवालिया निगाहों से उसे देखा “उसका नाम क्या है?"
“उ..उसका नाम...।" आलोका हिचकिचाई,? फिर उसने बता दिया “उसका नाम है जानकी लाल।"
"व्हाट?" नैना सकते में आ गई।
“श्री...श्री...।" मदारी के होठों से बेअख्तियार निकला और वह भौंचक्का सा होकर आंखें फाड़-फाड़कर जानकी लाल को देखने लगा “आप?"
उसके चेहरे के जर्रे-जर्रे पर आश्चर्य और अविश्वास के असंख्य भाव आ गए थे।
वह, जो कि सचमुच जानकी लाल था, उसके होठों पर एक रहस्यमय मुस्कराहट उभरी।
“तुमने ठीक पहचाना इंस्पेक्टर ।” जानकी लाल मंद-मंद मुस्कराता हुआ बोला “मैं सचमुच हूं और मुझे जीवित देखकर किसी की
भी यह हालत हो सकती है। लेकिन तुम्हारा इस तरह से चौंकना मेरी समझ से बाहर है।"
"लेकिन क्यों भगवान । मैं क्या इंसानों की श्रेणी में नहीं आता?" मदारी ने पूछा।
“यकीनन आते हो। लेकिन तुम्हारी लिए यह कोई राज नहीं है।” “वह क्यों श्रीमान?"
"क्योंकि तुम इस सच से बखूबी वाकिफ हो।"
___ “कौन से सच से?"
“मेरे जिंदा होने के सच से।" “य...यह आप कैसे कह सकते हैं जजमान?"
"क्योंकि जिस लाश को सारी दुनिया ने मेरी लाश समझा था, वह केवल तुम ही थे जिसने उस पर विश्वास नहीं किया था। इसीलिए तुमने बाद में उस लाश का डीएनए परीक्षण कराया था।"
“आ..आपको यह मालूम है?" मदारी की पहले से फैली आंखें
और ज्यादा फैल गई थीं।
“खेल जब खून का हो तो नजरों को बहुत पैना रखना पड़ता है। और जब सामने तुम्हारे जैसा तनख्वाह की पाई-पाई हलाल करने वाला इंस्पेक्टर हो तो और ज्यादा चौकन्ना रहना पड़ता है। पुलिस की फारेंसिक टीम के उस डॉक्टर गौतम को मेरा डीएनए सैम्पल भी तुम्हीं ने ही उपलब्ध कराया था और तुम्हारी इस कोशिश का रिजल्ट पॉजिटिव आया था।”
“आ..आप तो मेरी सोच से ज्यादा पहुंचे हुए निकले श्री-श्री।" “लिहाजा तुम्हें कबूल करना ही पड़ेगा इंस्पेक्टर कि तुम इस सच से वाकिफ थे कि मैं मरा नहीं जिंदा हूं, और अकेले तुम ही नहीं, मेरा डीएनए टेस्ट करने वाला डॉक्टर गौतम भी इस सच से बाखबर था। यह अलग बात है कि उसने किसी को भी यह नहीं बताया।”
"कैसे बताता श्री-श्री। वह भी आखिर पुलिस के महकमे का आदमी था और फिर वह इंस्पेक्टर मदारी से बाहर नहीं जा सकता था।"
“तब तो तुम्हें यह भी मालूम होगा इंस्पेक्टर कि संजना, संदीप और गोपाल के कत्ल में मेरा ही हाथ था?"
“सरासर मालूम था श्रीमान।" मदारी ने स्वीकार किया “बस जो नहीं मालूम था, वह ये कि उन भद्रजनों के कत्ल आप क्यों कर रहे थे?"
“ओह। लेकिन अब तो तुम्हें मालूम हो गया होगा?"
“सब आपकी रहमत है भगवान।” मदारी नाटकीय स्वर में बोला “लेकिन उसके लिए मुझे बड़ी भयंकर मेहनत करनी पड़ी और आपके साथ-साथ उन तमाम लोगों के अतीत को छलनी से छानकर निकालना पड़ा, जो कि आसान नहीं था। पच्चीस-तीस साल पुराने अतीत को खंगालना आसान कहां होता है? लेकिन खैर, सब बेहतर ढंग से निकल गया और मेरी मुराद पूरी हो गई।"
"लेकिन तुमने यह उजागर क्यों नहीं किया।"
“आपका मतलब है कि आपके जिंदा होने का राज मैंने उजागर क्यों नहीं किया?"

"हां। मेरा यही मतलब था।"
“वह मैंने जानबूझकर नहीं किया था श्रीमान। दरअसल मैं यह उजागर करके आपको चौकन्ना नहीं करना चाहता था। मैं चाहता था कि आप इसी गफलत में बने रहते कि आप इंस्पेक्टर मदारी को गच्चा देने में कामयाब हो गए थे। और फिर लापरवाही में आप कोई ऐसी गलती कर जाते जो मेरे हाथ आपकी गरदन तक पहुंचा देते।"
“तुम्हारा प्लान तो अच्छा था इंस्पेक्टर।” जानकी लाल की मुस्कराहट गहरी हो गई “लेकिन ऐसा हुआ तो नहीं। तुम्हारे हाथ मेरी गरदन तक पहुंच तो न पाए?"
“पुलिस के काम में देर सवेर का होना लाजिमी है श्री-श्री, क्योंकि पुलिस के पास कोई भी वन प्वाइंट प्रोग्राम नहीं होता। वैसे आप चाहें तो यकीन कर लें, आपकी गिरफ्तारी महज वक्त की बात थी। लेकिन...” उसने ठंडी सांस भरी “शुक्र है कि आप खुद ही सामने आ गए और मेरी जहमत कम हो गई।"
"तुम शायद ठीक कह रहे हो इंस्पेक्टर। चोर-सिपाही के खेल में जीत हमेशा सिपाही की ही होती है।"
“अब तो मुझे पूरा विश्वास हो गया श्रीमान कि आप अजर अमर, अविनाशी हैं और अमृत पीकर दुनिया में आए हैं।" मदारी बोला “और आपके दुश्मनों में वह ताकत नहीं है जो आपका बाल भी बांका कर सकें।" सहसा वह ठिठका, फिर वह जानकी लाल को देखता हुआ बोला “लेकिन इस बार आपके दुश्मनों का दांव बहुत जबरदस्त था, इसके बावजूद आप बच निकले. यह करिश्मा आपने आखिर कैसे किया?"
“तुम्हारा सवाल मुनासिब है इंस्पेक्टर।” जानकी लाल ने कहा "और यह सवाल हर जेहन में चीख रहा है। लेकिन शायद तुम यकीन नहीं करोगे, इस बार करिश्मा हुआ था और उसे मैंने अंजाम नहीं दिया था।"
“तो फिर उसे किसने अंजाम दिया था?"
"इत्तेफाक ने।”
"बात कुछ समझ में नहीं आयी जजमान। वह अधजली लाश आखिर किसकी थी, जो मौकाए वारदात पर आपकी कार के करीब मिली थी, और जिसे हर किसी ने आपकी लाश समझा था और जिसका आपकी लाश के तौर पर अन्तिम संस्कार भी किया गया था।
"मुझे नहीं पता।” जानकी लाल सपाट स्वर में बोला “और विश्वास करो, मैंने उसे वहां नहीं पहुंचाया था।"
"तो फिर?"
“मैंने कहा न इंस्पेक्टर, एक बहुत बड़ा इत्तेफाक था। यह सच है कि उस किलर गोपाल का वार निर्णायक था और मेरी कार दुर्घटनाग्रस्त होकर नीचे यमुना में जा गिरी थी। और यहीं से इत्तेफाक का दखल शुरू होता था, जो कि दोहरा इत्तेफाक था।"
"दोहरा इत्तेफाक?” इंस्पेक्टर मदारी के चेहरे पर सस्पेंस के भाव गहरे हो गए थे।
"नैना को तुम क्यों भूल रहे हो इंस्पेक्टर। वह भी तो आखिर उस वक्त मौकाए वारदात पर मौजूद थी और गोपाल की स्कार्पियो के बाद मेरी कार असंतुलित होकर उसकी कार से जा टकराई थी। उसके बाद ही मेरा ड्राइवर कार से अपना संतुलन खो बैठा था और वह हादसा पेश आया था।”

"मुझे याद है।” मदारी ने सहमति में सिर हिलाया “और मेरी तफ्तीश से भी यही साबित हुआ था कि नैना कजरारे का उस मामले से कोई लेना-देना नहीं था। ऐन उसी समय उनका आपके बराबर से गुजर रहा होना महज एक इत्तेफाक था। मगर दूसरा इत्तेफाक क्या था?"

“वह लाश, जो एक्सीडेंट के बाद मेरी कार के बाहर अधजली हालत में पाई गई। मुझे नहीं पता इंस्पेक्टर कि लगभग मेरे ही उम्र के शख्स की और मेरी ही कद-काठी से मिलती जुलती वह लाश अचानक वहां कैसे आ गई थी और मेरी दुर्घटनाग्रस्त कार से उलझ गई थी, जिसके बाद हालात के मद्देनजर सबने उसे मेरी ही लाश समझा था। लेकिन इस बारे में मेरी अपनी सोच यही है कि वह लाश यमुना में बहती हुई वहां आयी थी और वह उस वक्त वहां किनारे से या तो गुजर रही थी या फिर पहले से अटकी पड़ी थी। जबकि मेरी कार एक्सीडेंट होकर वहां जा गिरी और उसमें आग लग गई।"

“ओहो।” मदारी का सिर समझने वाले भाव से हिला “मगर आप...?”

“मैं पहले ही अपनी साइट के खुले दरवाजे से निकलकर पानी में जा गिरा था। वहां पानी का बहाव बहुत तेज था, जो पलक झपकते मुझे आगे पुल की तरफ बहा ले गया था। और क्योंकि उस वक्त प्रत्यक्षदर्शियों का सारा ध्यान दुर्घटनाग्रस्त कार की तरफ था इसलिए किसी की नजर मुझ पर नहीं पड़ सकी थी और मैं बहता हुआ वहां से दूर निकल गया था।"
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“ओहो।” मदारी का सिर समझने वाले भाव से हिला “मगर आप...?” “मैं पहले ही अपनी साइट के खुले दरवाजे से निकलकर पानी में जा गिरा था। वहां पानी का बहाव बहुत तेज था, जो पलक झपकते मुझे आगे पुल की तरफ बहा ले गया था। और क्योंकि उस वक्त प्रत्यक्षदर्शियों का सारा ध्यान दुर्घटनाग्रस्त कार की तरफ था इसलिए किसी की नजर मुझ पर नहीं पड़ सकी थी और मैं बहता हुआ वहां से दूर निकल गया था।"
“क्या आपको तैरना आता है?"
"नहीं। शायद इसीलिए मैं बेहोश हो गया था। आगे ही यमुना में बीचो बीच एक मछुआरा अपनी नाव पर मछली पकड़ रहा था। वह मेरे लिए भगवान बन गया और इस तरह एक बार फिर मैं अपनी निश्चित मौत को धोखा देने में कामयाब हो
गया।"
मदारी विस्मित सा होकर जानकी लाल को बस देखता ही रह गया था। वह सचमुच एक अकल्पनीय घटना थी, जिस पर सहज ही विश्वास करना मुमकिन नहीं था।
“मेरी हालत थोड़ी नाजुक हो गई थी।” जानकी लाल पुनः बोला “और मुझे स्वस्थ होने में चौबीस घंटे लग गए थे। इस दरम्यान उस मछुआरे ने मुझे अपनी झोपड़ी में ही रखा था,

काँटा जो कि यमुना के करीब ही थी और उसने मेरे बारे में पुलिस को कुछ नहीं बताया था। उसके बाद फिर जब मैंने अखबारों में अपनी मौत की खबर और उसकी डिटेल पढ़ी तो समझ ही सकते हो इंस्पेक्टर मेरी क्या हालत हुई होगी।”
“तो फिर आपने उसी समय सामने आकर उस खबर का खंडन क्यों नहीं किया?"
“मैं बेवकूफ नही था इंस्पेक्टर। अपने दुश्मनों को उनके मुकाम तक पहुंचाने का वक्त ने मुझे इतना मुफीद मौका दिया
था, जिसे मैं अपना राज फाश करके हरगिज भी नहीं गंवा सकता था।"
“वह कैसे?”
“अपने दोस्तों ही नहीं, अपने दुश्मनों की निगाह में मैं खत्म हो चुका था और वे मेरी तरफ से लापरवाह हो चुके थे। और सभी जानते हैं इंस्पेक्टर कि दुश्मन अगर लापरवाह हो तो उसे उसके अंजाम तक पहुंचाना बहुत आसान होता है।”
"म..मैं समझ गया भगवान मैं सब समझ गया।” मदारी के चेहरे पर समझने वाले भाव आ गए थे। वह गहरी सांस छोड़ता हुआ बोला “मगर...।"
“सवाल अभी बहुत हैं इंस्पेक्टर।” जानकी लाल ने मदारी का वाक्य बीच में ही काट दिया था। वह अपने अल्फाजों पर जोर देता हुआ बोला “लेकिन यह बात अब तुम्हारी समझ में आ गई होगी कि अजय, जतिन और मेरी पहली बेटी कोमल को अब भी तुम्हारा लॉकअप में रखना मुनासिब नहीं है। बेहतर होगा कि तुम उनकी रिहाई का बंदोबस्त करो और उन तीनों को यहीं बुला लो।”
“मेरा भी कुछ ऐसा ही ख्याल है श्रीमान। मगर...।"
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“हुज्जत का कोई मतलब नहीं है इंस्पेक्टर।” जानकी लाल ने फिर उसे बोलने नहीं दिया था “और मेरी नियत पर कोई संदेह मत करो। मैं खुद चलकर तुम्हारे पास आया हूं और मेरा यहां से फरार होने का कोई इरादा नहीं है। मैं पूरी तरह से तुम्हारे हवाले हूं और अपना इकबाले जुर्म भी कर रहा हूं।"
"अरे नहीं श्रीमान।” मदारी उछलकर बोला “मुझे आप जैसे महापुरुष की नियत पर कोई संदेह नहीं है। मैं अभी उन तीनों भद्रजनों को आपके सामने पेश करता हूं।" ।
“शुक्रिया इंस्पेक्टर। लेकिन उनके अलावा भी कुछ और लोग हैं जिनको मैं देखना चाहता हूं, और उम्मीद करता हूं कि तुम मेरी इस ख्वाहिश पर ऐतराज नहीं करोगे?"
“आप जैसे प्रतिभावान महापुरुष की ख्वाहिश पर तो ऐतराज का सवाल ही नहीं उठता जजमान।” मदारी तपाक से बोला “आप मुझे केवल उनके शुभ नाम बताएं जिन्हें आप यहां देखने की ख्वाहिश रखते हैं।"
जानकी लाल ने कुछ पलों की खामोशी के बाद उसे बता दिया।

इंस्पेक्टर मदारी और जानकी लाल के अलावा उस वक्त हॉल में अजय, जतिन और कोमल भी मौजूद थे।
थोड़ी देर पहले ही वहां रीनी और नैना भी पहुंच गई थीं। नैना के साथ ही जानकी लाल ने प्राची उर्फ आलोका को भी वहां बुलाया था, जो कि आनन-फानन वहां पहुंचे थे।
और फिर इंस्पेक्टर मदारी के साथ जीते-जागते जानकी लाल को सामने बैठा देखकर हक्के-बक्के रह गए।
मारे अविश्वास के उनके नेत्र फट पड़े। जिस्म का रोया-रोयां खड़ा हो गया था। वह आंखें फाड़े इस तरह जानकी लाल को देखने लगे थे, जैसे कि दुनिया का आठवां अजूबा देख रहे हों।
जो कुछ वे देख रहे थे उस पर उन्हें यकीन करना मुश्किल हो गया और वे अपनी-अपनी जगह पर जड़ हो गए थे जिस्म में एक अजीब सी सनसनी दौड़ती चली गई।
वह केवल रीनी थी जिसकी सनसनी में उत्तेजना भी शामिल थी एक अंजानी और विचित्र सी हर्षमिश्रित उत्तेजना।
“प....पापा।" फिर एकाएक उसके होंठों से चीख सी निकली और वह दौड़कर जानकी लाल से जा लिपटी “आ...आप जिंदा
जानकी लाल ने उसे कसकर अपनी बाहों में भींच लिया। उसने रीनी के समूचे जिस्म पर कम्पन महसूस किया था।
"हां मेरी बच्ची।" जानकी लाल उसकी पीठ पर स्नेह से हाथ फिराता हुआ मुस्कराकर बोला “तेरा पापा जिंदा है, और बहुत सख्त जान है। उसकी जान लेना उसके दुश्मनों के वश की बात नहीं है।”
"लेकिन पापा...।" रीनी तत्क्षण उससे अलग हुई और खुशी से छलछलाते लहजे में बोली “यह करिश्मा कैसे हुआ? मुझे तो अब भी यकीन नहीं आ रहा। पता है आपके लिए मैं कितना जार-जार रोई हूं।"
"मुझे सब मालूम है बेटी।” जानकी लाल ने उसके बालों में हाथ फिराया। उसके स्वर में एकाएक ममता उमड़ आयी थी।
“त...तो फिर आपने ऐसा क्यों किया? क्यों आप मुझसे दूर चले गए थे। अ...और...।" एकाएक उसका खिला चेहरा मुरझा गया, उस पर क्रोध और उत्तेजना की घटाएं घिर गईं।

“और क्या मेरी नन्ही परी?" जानकी लाल ने उसे प्रश्नसूचक नेत्रों से देखा।

“आ...आपको कुछ पता भी है इस बीच मेरे साथ क्या हुआ?" रीनी अपनी सिसकी को रोक नहीं सकी थी “व...वह कमीना संदीप। वह...।"

“मुझे सब मालूम है पगली।” जानकी लाल उसकी बात काटता हुआ बोला “और यह तो मुझे बहुत पहले से मालूम था कि तेरा संदीप कितना कमीना है। लेकिन तूने ही कभी अपने पापा पर विश्वास नहीं किया।"
“आ... ऑय एम सॉरी पापा।"
“डोंट माइंड माई डॉल। वह कमीना इंसान आज अपने अंजाम को पहुंच गया है।"
“ह...हां। यह तो खैर आपने ठीक कहा मगर..." रीनी ने फिर अपलक जानकी लाल को देखते हुए वह सवाल पूछा जो मदारी को छोड़कर हर किसी के चेहरे पर लिखा था “यह सब
आखिर क्या है? यह चमत्कार कैसे हो गया?"
जानकी लाल की नजरें मदारी से टकराईं। वह बदस्तूर मुस्कराता हुआ बोला “इस सवाल का जवाब तुम्हें इंस्पेक्टर मदारी से मिल जाएगा।"
रीनी समेत सभी की निगाहें मदारी की ओर उठ गई थीं।
मदारी ने ठंडी सांस भरी, फिर थोड़ा ठहरकर उसने सबको जानकी लाल की आपबीती सुना दी।
वह सभी एक बार फिर विस्मित हो उठे।
“म...मगर आपने ऐसा क्यों किया पापा?” फिर सबसे पहले वह सवाल रीनी ने किया था “आपने अपना सच क्यों सबसे छिपाया?"
"अगर मैं ऐसा नहीं करता तो तुझे उस संदीप का असली चेहरा कैसे नजर आता मेरी बच्ची, जिसे तू अपना पति परमेश्वर समझती थी, मगर जो कितने बड़े शैतान का चेहरा था। और फिर उसे उसकी शैतानियत की सजा भी तो देनी थी।"
"इ..इसका मतलब संदीप को गोली आपने ही मारी थी?"
“और मैं क्या करता? अगर उस वक्त मुझे जरा सी भी देर हो जाती तो मेरी यह बेटी आज दुनिया में नहीं होती।"
“व..वह सचमुच बहुत बड़ा शैतान था।"
कांटा....शीतल का समर्पण....खूनी सुन्दरी

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