हादसा

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Kamini
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Re: हादसा

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सुरभि काफ़ी देर तक अपने बेड पर यूँ ही लेटी रही. वो अपने दिमाग़ से लोकेश के लिंग की तस्वीर मिटाने की भरपूर कोशिश कर रही थी. लेकिन बड़ी ही अजीब बात थी कि जितना वो इस ख़्याल को हटाने की कोशिश कर रही थी वो उतना ही उसकी आँखो के सामने घूम रहा था. सुरभि ने अपनी गर्दन हिलाते हुए एक बार फिर कुछ और सोचने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही.

‘हे भगवान! कितना बड़ा था उसका वो अंग,’ सुरभि को अपनी आँखो देखी पर यक़ीन नहीं हो रहा था. ‘किसी का इतना बड़ा भी हो सकता है.’ वो सोच सोच के हैरान थी. ऐसा तो उसने सिर्फ़ इरॉटिक कहानियों में ही पढ़ा था या फिर पोर्न फ़िल्मों में देखा था. उसके पति विजय ने भी उसको यही बताया था कि ये सब कैमरे का कमाल है जो पोर्न फ़िल्मों में इतना बड़ा दिखता है किसी का ये अंग.

ये सब अगर सच था तो वो क्या था जो वो अभी नीचे डाइनिंग रूम में देख कर आई थी और जिसे देखकर अभी तक भी उसकी साँसे तेज चल रही थी. सुरभि असमंजस में थी.

अपनी असली ज़िंदगी में तो सुरभि ने अभी तक विजय के सिवा किसी और का हथियार देखा नहीं था और विजय का वो अंग लगभग पाँच इंच का ही था. ऐसे में भला वो कैसे यक़ीन कर सकती थी कि किसी का और बड़ा भी हो सकता है. एक बार उसकी फ़्रेंड नेहा ने उसे बताया भी था कि उसके पति का ये अंग लगभग नो इंच का है पर सुरभि ने उसका मजाक ही उड़ाया था कि ऐसा कभी नहीं होता, वो बस बढ़ा चढ़ा के बता रही है.

लेकिन जो नज़ारा उसने अभी नीचे देखा था उस आँखों देखी को कैसे झूठला दे. वो इस उधेड़बुन में बुरी तरह खोई हुई थी कि तभी दरवाज़े पर लोकेश ने दस्तक दी.

“दरवाज़ा खोलो,…भाभी...”

सुरभि अचानक आई इस आवाज़ से चौंक गई. उसके हाथ पैर फूल गए और वो बेड से चिपक कर पड़ी रही. वो उठ नहीं पा रही थी. उसके मन में एक साथ कई सवाल चल रहे थे ‘ये यहाँ क्या करने आया है? क्या फिर से मुझे अपना औजार दिखाएगा?’ ऐसा क्यों कर रहा है ये?’

हाँ, लेकिन एक बात तो थी उसके उस विशाल हथियार को दुबारा देखना तो वो भी चाहती थी पर फिर भी उसके कदम दरवाज़ा खोलने के लिए बढ़ नहीं रहे थे.

लोकेश लगातार दरवाज़ा पीटे जा रहा था. “भाभी , खोलो ना दरवाज़ा एक बार.”

सुरभि हिम्मत करके दरवाजे के पास पहुँची और कांपती आवाज़ में लोकेश को बोली, “त-तुम यहाँ…क-क्या करने आए हो? क्या चाहिए तुम्हें?”

“तुम पहले दरवाज़ा तो खोलो,” उसने फिर से दरवाज़ा खड़का दिया.

सुरभि को बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे फिर भी कांपते हाथों से उसने अपने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. अगले ही पल लोकेश उसके बेडरूम के अंदर था.

“तुम दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रही थी भाभी…? कब से बाहर से आवाज़ दे रहा था,” लोकेश ने ऐसे अन्दाज़ से पूछा जैसे कि कुछ हुआ ही ना था.

उसके इस सवाल का सुरभि को कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था.

“मैं तो बस ये पूछने आया था कि मैं बाज़ार जा रहा था अगर तुम्हें कुछ मँगवाना है तो बताओ.” वो इतने आराम से सब कह रहा था जैसे कि उसे याद ही ना हो कि अभी नीचे क्या हुआ था.

“मुझे कुछ नहीं मँगवाना, तुम जाओ जहाँ जाना है,” सुरभि ने उससे नज़रें चुराते हुए कहा.

“ठीक है, फिर मैं चलता हूँ,” लोकेश ने दरवाज़े की तरफ़ मुड़ते हुए कहा. लेकिन अगले ही पल वो पीछे मुड़ा और सुरभि की और देखते हुए बोला, “और हाँ, भाभी…पराँठे बहुत टेस्टी थे. ये बोलना तो मैं भूल ही गया था.”

“थैंक्स,” सुरभि ने नक़ली सी मुस्कान के साथ कहा.

“तुम रोज़ खाना ख़ुद ही बनाती हो?”

सुरभि ने हाँ में गर्दन हिला दी.

“तभी तो इतना स्वाद है तुम्हारे हाथों में,” वो उसके उभारों की तरफ़ देखते हुए बोला. “एक बात और पूछनी थी भाभी...”

“क्या?”

“तो फिर कैसा लगा तुम्हें..?”

“क्या?” सुरभि समझ ही नहीं पाई कि वो किस बारे में पूछ रहा था.

“मेरा लंड...”

हे भगवान, वो इस तरह का सवाल उससे कैसे पूछ सकता था. सुरभि ये सुनकर हैरान रह गई.

“तुम्हें इस तरह की बातें मुझ से नहीं करनी चाहिए,” उसने नज़रें झुकाए ज़मीन की तरफ़ देखते हुए कहा.

“इसमें ना करने वाली कौन सी बात है. मैं तो बस इतना ही जानना चाहता हूँ कि मेरे पेनिस को देखने के बाद तुम्हें कैसा लगा…अब देखो, मैंने भी तो तुम्हारे रसभरे उभारों और मस्त नितंबो की खुल कर तारीफ़ की थी…”

“बस करो, लोकेश,” सुरभि ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा.

“अब शर्माना छोड भी दो, भाभी…..तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि भगवान ने तुम्हें इतना सुंदर शरीर दिया है…”

सुरभि को जैसे साँप सूँघ गया था. वो हैरान थी कि लोकेश इतनी आसानी से यह सब कैसे कह सकता था. तभी उसकी नज़र उसकी पैंट पर गई. उसके सामने के हिस्से में पूरा टैंट बना हुआ था. उसे देख कर वो झेंप सी गई.

“द-देखो, लोकेश…मैं थोड़ा ठीक नहीं महसूस कर रही हूँ,” उसने बात बदलते हुए कहा.

“क्या हुआ तुम्हें भाभी? अच्छा….समझ गया…लगता है विजय तुम्हारी ठीक से लेता नहीं है,” उसने सुरभि को छेड़ते हुए कहा.

“मेरी तबियत ठीक नहीं है, लोकेश…”

वो बेशर्मों की तरह हँसने लगा और अपनी पैंट के ऊपर से ही अपने तने हुए हथियार को मसलते हुए बोला, “मुझे इंजेक्शन लगाने का एक मौक़ा दो भाभी मैं तुम्हारी सारी तबियत ठीक कर दूँगा.”

लोकेश की ये बात सुनते ही सुरभि सोच में पड़ गई कि उसका इतना बड़ा हथियार उसकी छोटी सी योनि में कैसे जाएगा और झट से बोल पड़ी, “मुझे नहीं लगता कि तुम्हारा इतना बड़ा वो, मेरी छोटी सी जगह में समा पाएगा.” बोलने के बाद उसे अहसास हुआ कि वो क्या बोल गई और वो शरम से पानी पानी हो गई.

“तुम एक बार ले कर तो देखो इसे भाभी, अपना रास्ता तो ये ख़ुद ही बना लेगा,” लोकेश ने फिर बेशर्मी से अपना लिंग मसलते हुए कहा.

“प्लीज़, लोकेश…मुझसे ऐसी बातें मत करो,” उसने नज़रें झुकाकर कहा. बोलते हुए उसका चेहरा पूरा लाल हो गया था.

“क्यों ना करुँ ऐसी बातें, मुझे पता है कि मेरी बातें सुन सुन कर तुम भी गीली हो रही है…बोलो सच कहा ना मैंने?”

“नहीं ,ऐसा कुछ नहीं है,” सुरभि ने कहा लेकिन उसकी नज़रें घूम कर फिर लोकेश की पैंट में बने हुए टैंट पर चली गई और उसकी साँसे थम गई. ये जो कुछ भी आज हो रहा था वो बहुत ही अजीब था. वो जानती थी कि उसे ये सब नहीं करना चाहिए लेकिन उसके लिए अपनी नज़रें वहाँ से हटा पाना मुश्किल हो रहा था. ये उसे क्या हो रहा था? वो ये सब क्यों कर रही थी? उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.
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वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी अचानक उसका फ़ोन बज उठा और उसे मजबूरन अपनी नज़रें वहाँ से हटानी पड़ी. किसका कॉल आया था ये देखने के लिए, वो अपने बेड की तरफ़ दौड़ी. फ़ोन की स्क्रीन पर विजय का नाम देखकर वो काँप उठी.

“कौन है?” लोकेश ने पूछा

“विजय है,” फ़ोन कान पर लगाते हुए उसने लोकेश को बाहर जाने का इशारा किया.

लोकेश ढीठ की तरह वहीं खड़ा रहा और बोला, “ तुम बात कर लो ,भाभी. मैं बीच में कुछ नहीं बोलूँगा….”

सुरभि झल्लाहट में अपनी गर्दन हिलाती हुई खिड़की के पास जा कर विजय का फ़ोन सुनने लगी.

“हेलो बेबी,” विजय ने कहा.

“हेलो विजय…कैसे हो तुम?” सुरभि ने पूछा.

“मैं तो ठीक हूँ. तुम बताओ…वहाँ सब ठीक है ना?” विजय ने थोड़ी चिंता भरी आवाज़ में कहा.

“यहाँ सब ठीक है, विजय,” उसने ग़हरी साँस लेते हुए कहा. अब उसे ये कैसे बताए कि यहाँ कुछ भी ठीक नहीं था. लोकेश तो यहाँ उसकी बीवी को अपना शॉर्ट्स उतार कर दिखा चुका और अभी उनके कमरे में ही खड़ा था. उसके सामने वो कैसे सब सच बताए भला विजय को.

“चलो ठीक है,बेबी… मुझे अभी मीटिंग के लिए तैयार होना है. मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ. ओके बाय.”

फ़ोन रखने के बाद सुरभि जैसे ही खिड़की से हटी तो क्या देखती है कि लोकेश उसके बैड पर मज़े से लेटा हुआ था और उसकी पैंट में अभी भी टेंट तना हुआ था जिसे वो बेशर्मी से सहला रहा था.

“लोकेश, तुम्हें अब…..”

“क्या कहा विजय ने?” सुरभि की बात बीच में ही काटकर लोकेश ने पूछा.

“कुछ नहीं…बस वो अभी मीटिंग के लिए तैयार हो रहा था.”

“अच्छा…तुम एक मिनट इधर आओगी ज़रा,” लोकेश ने लेटे-लेटे ही कहा.

लोकेश का इस तरह उसे बुलाना कहीं न कहीं सुरभि को अच्छा तो लग रहा था पर वो उसके पास कैसे जा सकती थी. एक तो वो शादीशुदा थी और दूसरा वो अपने पति से प्यार भी बहुत करती थी. ‘नहीं-नहीं,…वो कभी नहीं जाएगी लोकेश के पास,’ उसने अपने मन को मज़बूत करते हुए .

“क्या सोच रही हो? भाभी…आओ ना”

“तुम्हें अब यहाँ से जाना चाहिए, लोकेश,” सुरभि ने काँपती आवाज़ में कहा.

“चला जाऊँगा पर तुम एक बार आओ तो सही,” उसने बेड पर बैठते हुए कहा.

‘इसके इरादे बिलकुल भी ठीक नहीं लग रहे... कहीं मैं ही ना बहक जाऊँ,’ सुरभि ने मन ही मन सोचा और बहाना बनाते हुए लोकेश से कहा, “मैंने तो अभी नाश्ता भी नहीं किया लोकेश …मैं नीचे जा रही हूँ.”

“चली जाना ऐसी भी क्या जल्दी है, बस एक बार वो आग तो बुझा दो जो तुमने यहाँ लगाई हुई है,” उसने बड़ी बेशर्मी के साथ अपने हथियार को सहलाते हुए कहा.

सुरभि उसकी तरफ़ देख कर बेचैन हो उठी. उसका एक मन उसे रोक रहा था और एक मन लोकेश के पास जाने को मचल रहा था. वो नहीं जानती थी कि ऐसा क्यों हो रहा था.

वो ये सब सोच ही रही थी कि लोकेश अचानक से उठा और उसे खींचकर बैड की तरफ़ ले गया और बैठ गया. अगले ही पल वो उसकी गोद में थी.

“ये-ये..तुम क्या कर रहे हो,लोकेश…छोड़ो मुझे.” सुरभि उसकी बाहों से निकलने की कोशिश करती रहीं पर उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वो उठ भी नहीं पाई.

“क्या हुआ भाभी? क्यों इतना सता रही हो? हम दोनों ये जानते हैं कि तुम भी यही चाहती हो.”

“नहीं,…ये सच नहीं है, मैं एक शादीशुदा औरत हूँ. मैं ये नहीं चाहती.”

“तुम झूठ बोल रही हो भाभी… ऐसे शर्माओ मत. मेरा साथ दो….मैं तुम्हारी बड़े अच्छे से लूँगा,” लोकेश ने उसके कान में कहा.

लोकेश की सांसों की गर्म हवा ने जैसे ही सुरभि के कान को छुआ वो मचल उठी. “तुम्हारा बहुत बड़ा है……” सुरभि ने शर्माते हुए कहा.

“उसकी चिंता मत करो तुम …मैं वादा करता हूँ तुम्हें जरा भी तकलीफ़ नहीं होने दूँगा.”

“ये तुम कैसे कह सकते हो … मैं जानती हूँ कि कितना बड़ा है तुम्हारा, मुझमें नहीं समा पाएगा वो...” उसने लोकेश की बाहों से बाहर निकलने की कोशिश करते हुए कहा. ऐसे हिलते हुए उसका ध्यान उस सख़्त चीज़ पर गया जिस पर उसके नितम्ब रगड़ खा रहे थे. हे भगवन ये तो उसका हथियार था. ये अहसास होते ही उसके सारे शरीर में जैसे करंट सा लग गया. वो वहीं पर रुक गई. ऐसा पहली बार था जब वो अपने पति के अलावा किसी और का प्राइवेट पार्ट महसूस कर रही थी इस तरह. ये सब सोच कर वो शरम से पानी पानी हो गई.

“हाँ, ऐसे…बिलकुल ऐसे ही बैठी रहो. देखो कितने प्यार से मेरा शेरू तुम्हारे नितंबो को छू कर मचल रहा है,” लोकेश ने शरारती आवाज में कहा.

“ये सब सही नहीं है, लोकेश.”

“इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है, भाभी. सही गलत भूल जाओ और इस पल का मज़ा लो.”

“मुझे तुम्हारे साथ कोई मजे नहीं करने , लोकेश,” उसने धीरे से कहा पर उसकी गोद से उतरने की अब कोई कोशिश नहीं की.

“एक बार फिर सोच लो, भाभी…वैसे अपनी गोद में बैठने का मौक़ा मैं हर किसी को नहीं देता,”

“मुझे थोड़े ही ना बैठना था यहाँ…मुझे जाने दो, लोकेश,” सुरभि ने मचलते हुए कहा.

“देख लो बाद में पछताना ना पड़े,” वो सुरभि की कमर से अपनी बाहों की पकड़ ढीली करते हुए बोला.

वो एक झटके में उसकी गोद से उठ खड़ी हुई और अपने कपडे ठीक करते हुए पलटकर उसकी ओर देखा. उसकी पैंट में अभी भी वही हाल था. उसका हथियार पहले की तरह ही तना हुआ था.

“देखती क्या हों भाभी… फिर से बैठना है तो आ जाओ,” उसने सुरभि को छेड़ते हुए कहा.

“जी नहीं,” सुरभि ने उसकी पैंट से अपनी नज़रें हटाते हुए कहा.

वो हँस दिया और बेड से उठकर दरवाज़े की तरफ़ जाते हुए बोला, “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी…तो अब मैं चलता हूँ …वैसे भी मैं तो मार्किट जा रहा था.”

लोकेश के बाहर जाने के बाद सुरभि की हालत बहुत ही ख़राब थी. उसकी धड़कनें तेज़ थी, चेहरा आग की तरह तप रहा था और सबसे ज़्यादा बुरा हाल उसकी पैंटी का था जो कि पूरी तरह से भीगी हुई थी.

‘हे भगवान!…ये क्या हो रहा है मेरे साथ.’ वो ये सोच कर बेचैन हो उठी.
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(^%$^-1rs((7)
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