और इस वक्त दौपहर का एक बजा था ! राष्ट्रपति भवन के एक विशेष कक्ष में वतन, विकास, विजय, अलंफासे, पिशाचनाथ, बागारोफ, धनुषटकार और अपोलो मौजूद थे ।
विकास से मुखातिब होकर वतन ने पूछा था…"वया तुम बता सकते हो कि मैग्लीन को क्या सजा देनी चाहिए ।"
"प्यारे बटन !" विकास के कुछ जवाब देने से पहले ही विजय बोल पड़ा था…"इससे तरीका मत पूछो । ये तरीका तो बताएगा मार्के का, लेकिन पसन्द नहीं अाएगा ।"
"'क्यों भला ?" गम्भील स्वर में वतन ने पूछा…"तरीका अगर अच्छा होंगा तो मुझे पसन्द क्यों नहीं अाएगा ?"
"वटन वारे !" अपनी ही टुन्न में विजय ने कहा-----"' मामला यह है कि तुम दोनों हो बिल्कुल न्यारे, नहीं समझे न -खैर, हम समझाते हैं । बात यह है कि ये साला दिलजला पूरा हिंसावादी है । दुश्मन को चीर-फाढ़कर उसकी खाल में मिर्च भरने के अलावा यह कुछ नहीं जानता और एक तुम हो-बिलकुल इसके विपरीत यानी अहिंसावादी, हिसा से बेहद नफरत करने वाले, फिर भला इसका तरीका तुम्हरे दिमाग में कैसे फिट होगा ?"
-"चचा ।" वतन ने बिल्कुल शान्त और गम्भीर स्वर में जवाब दिया----" इतना तो इाप समझ ही गए हैं कि उन अहिंसा के पुजारियों में से नहीं हूं कि जिनके गाल पर अगर कोई एक थप्पड मारे तो दूसरा और तीसरा...चौथा अागे का दें । अहिंसा को सिर्फ इतना मृहत्व देता हूं कि एक गाल पर थप्पड़ खाकर दूसरा अागे कर दूगा लेकिन अगर तीसरी बार कोई वार करे तो महान सिंगहीँ के चरणों की कसम हाथ तोड़ डालूंगा उसके । आज के जुग में बह अहिंसा, जिस पर महात्मा गांधी चले थे, बुजदिली है । सीधा सा सिद्धान्त है कि जब तक अहिंसा से काम चले,चलाओ, लेकिन जब अहिंसा बुजदिली का रूप धारण करने लगे तो ईट का जवाब पत्थर से दो ।"
"कहने का मतलब यह हुआ वतन प्यारे कि तुम आधे अहिंसावादी हो ।" विजय वे कहा---"‘मगर प्यारे, बात कुछ जमी नहीं----या तो गान्धी ही बन जाओ या सुभाष---भगतसिंह ही । ये फिफ्टी-फिफ्टी बनने से वंया लाभ ?'"'
"चचा !" वतन का पुन: गम्भीर स्वर----"' साफ शब्दों में मेरे सिद्धान्त को तुम यूं समझ सकते हो कि पहले घी को सीधी उंगली से निकालने की कोशिश करो । न निकले तो-फौरन उंगली को टेढ़ी कर लो ।"
"कहने का मतलब यह कि मैग्लीन को तुम हिंसात्मक सजा भी देने के लिए तैयार हो?"
" मैग्लीन को सजा देने की एक तरकीब है मेरे पास ।" विकास ने कहा ।
" क्या ?"
जबाव में विकास ने उस सोफे के नीचे' से, जिस पर वह बैठा था, एक मुगदर निकाला । यह देखकर सब दंग रह गए कि यह मुगदर हडिडयों का वना हुआ था, "यह मुगदर तुम्हारी मां और वहन की हडिडयों का वना है, वतन ! आज सारे दिन की मेहनत के वाद मैं इसे वना पाया हूं । तुम्हारी माँ और वहन की हडिडयों के टुकडों को मैंने फेबीकॉल से जोड़ा है । मेरे दिमाग ने कहा है कि मैग्लीन एकमात्र सजा यह मुगदर ।"
हडिडयों के उस मुगदर को देख-कर वतन के मस्तक पर एक बल पड़ गया।
एक क्षण वह ठिठका और बिकास को देखता रहा, फिर भर्राया स्वर…‘बिकास तुमने मेरे दिल की बात कहीं है ।"
" अबे , मुगदर तो सजा है लेकिन इसका उपयोग कैसे होगा ?"
जवाब में विकास सबको बताने लगा कि इस मुगदर के जरिये मैग्लीन को किस किस्म की सजा दी जाएगी । सभी ने सुना और सहमत हो गये ।
ठीक चार बजे-विकास-विजय और अलफासे के घेरे में कैद अाया मैग्लीन ! उसे मैदान में लाया गया । वतन से हाथ जोडकर उसने माफी मागीं तो वतन ने जवाब दिया था’--"मुजरिम तो तुम चमन के नागरिकों के हो । माफ करने का अघिकार मुझे कहां ? "
चीख-चीखकर मैग्लीन ने चमन के नागरिकों से माफी चाही ।
किन्तु हर आंख में मैग्लीन के लिए नफरत थी । उसे किसी ने माफ नहीं किया । मैदान के ठीक बीच में उसे ले जाकर हाथियों के साथ बांध दिया गया । लम्बी रस्सी के बीच का कुछ भाग उसके बदन पर लिपटा हुआ था । एक सिरा मेैग्लीन के दाईं तरफ खडे ह्रथी में जिस्म में ’बंधा था तो दूसरा बाई तरफ खडे हाथी के जिस्म में ।।
पहले वतन ने जनता को खामोश होने का संकेत दिया ।
खामोशी के बीच उसकी आवाज गूंज उठी…"मेरे प्यारे देशवासियों ! यह मुजरिम जो इस वक्त हाथियों के बीच बंधा खड़ा है, मुझ अकेले या चमन के क्रिसी एक नागरिक का मुजरिम नहीं, बल्कि हम सबका मुजरिम है । हमारे देश को गुलाम बनाकर इसने हम सब पर जुल्म किये हैं । अत: हम सभी इसे सजा देने के बराबर हकदार हैं । इसे सजा देने के लिए मेरे दोस्त विकास ने यह हथियार बनाया है ।"
वतन हडिडयों के उस मुगदर को हवा में उठाकर सबको दिखाता हुआ बोला----"मेरी मां और वहन की अन्तिम निशानी यानी उनकी हडिडयों से वना है । इस कुत्ते की इससे ज्यादा बढकर क्या सजा हो सकती है कि यह मुगदर चमन के
हर निवासियों के हाथ में जाए और सभी एक-एक मुगदर इस हरामजादे 'के जिस्म पर मारे ।"
"नहीँ ।" चीख़कर रो पडा मैग्लीन ।
चारों तरफ से हंसी का एक फव्वारा छूट गया । वतन कह रहा था---"हर नागरिक को इस जुल्मी पर इस का सिर्फ एक बार करने का हक प्राप्त है । यह आपकी ताकत पर निर्भर है कि एक बार अाप कितना शक्तिशाली कर सकते हैं । सबसे पहला वार मैं स्वयं करूगा ।"
और…वतन मैग्लीन के नजदीक पहुचा ।
"वतन ! मुझे माफ कर दो बेटे... माफ कर दो बेटे ।" वतन के मस्तक पर वल पड गया, गुर्रायाृ-"मेरे पिता अगर वे गुनाह करते जो तूने किए है, तो इस मुगदर की कसम, उसे भी भयानक सजा देता मैं ।।" कहने के साथ ही बिजली की-सी गति से वतन का' हाथ चला और उसकी मां और बहन की हडिडयों से वनी मुगदर भड़ाक से मैग्लीन के चेहरे पर टकरायी ।
मैग्लीन उस जिन्दे पक्षी की तरह चीख पड़ा जो पर कटते ही अाग में जा गिरा हो ।
उसके चेहरे के विभिन्न भागों से खून के फव्वारे छूट पड़े ।। वतन ने मैग्लीन के चीखते हुए खून से लथपथ चेहरे को देखा , फिर घृना से थूक दिया उस पर बोला ---" एक आदमी सिर्फ एक मुगदर मारेगा तुझे , गिन सके तो गिनना । मुगदरों की गिनती से तुझे पता लगेगा कि तूने कितने आदमियों पर जुल्म किए हैं ।।"
कहने के बाद मुगदर वहीं जमीन पर रख दिया ।।
चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़) complete
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)
भीड़ से एक आदमी आता , मुगदर उठाता और अपनी पूरी शक्ति से मैग्लीन पर बार करता ।
बच्चे भी आये, महिलाऐं भी आयीं ।।
एक ऐसी मां आई जिसके बेटे को मैग्लीन ने मारा था ।। मुगदर की एक चोट अपने बेटे के हत्यारे पर करके जैसे मां की आत्मा को शान्ति ना मिली हो। जोश में चीखती हुई वह पागलों की तरह मैग्लीन के जिस्म पर मुगदर बरसाती ही चली गई ।
आगे बढ़कर विकास उसे रोक ना लेता तो शायद वह अकेली ही मैग्लीन को मार डालती ।।
एक विधवा आई तो उसने जैसे प्रण कर लिया अपने सुहाग के हत्यारे को वह मार ही दम लेगी । विकास ने उसे भी रोका ।
इस तरह मैग्लीन चीखता रहा , लेकिन किसी के दिल में उसके लिए रहम नहीं था ।। पिटता पिटता लहू लहान हो गया ।
कहां तक सहता मैग्लीन ? मार खाता खाता बेहोश होता तो पिशाचनाथ उसे लखलखा सुंघा कर होश में ले आता ।।।
पुनः वही क्रम !
अभी तो एक हजार नागरिक भी अपना अधिकार पूरा नहीं कर पाये थे कि मैग्लीन मर गया ।।
उसके मरने के बाद भी चमन के नागरिकों को उस पर रहम ना अाया । बहुत से लोगों के दिलों में तो प्रतिशोध की एेसी आग भड़क रही थी कि मुगदर के वार मैग्लीन की लाश पर भी वार करने से बाज ना आए ।।
फिर वतन के कहने पर सब लोग रूके ।।
सब ने वतन से मांग की थी मैग्लीन की लाश को यहां से उठाया ना जाये बल्कि यही सड़ने दिया जाये ।
हालांकि वतन चाहता नहीं था किन्तु यह मांग उसे माननी ही पड़ी ।
अौर फिर शाम को चमन के एयरपोर्ट से दो विशेष विमान उड़ान भर लिये । एक रूस के लिये तो दूसरा भारत के लिये ।।
आजादी के सिर्फ छः माह पश्चात ----
चमन ने पूरे विश्व को चौंका दिया ।
विश्व में प्रकाशित वतन के स्टेटमेंट ने एक बार तो बुरी तरह सारी दुनियां को चौंका दिया ।
अमेरिका रूस , ब्रिटेन , चीन और भारत जैसे महान राष्ट्रों को तो जैसे यकीन ही नहीं आता ।
इतने अल्प समय नें-इतनी जबरदस्त प्रगति ।
निश्चय ही संसार को अस्वाभाविक-सी लगी थी ।
यूं तो समूचा विश्व देख रहा था कि आजादी मिलते ही वतन के नेतृत्व में चमन ने तीव्र वेग से प्रगति के मार्ग पर अग्रसर होना शुरू कर दिया था । इस छोटे से राष्ट्र ने बड़ी तेजी से प्रगति की थी ।
मगर ये स्टेटमेंट--वतन के स्टेटमेंट ने पूरे विश्व में एक हलचल-सी मचा दी थी ।
विश्व के लगभग सभी प्रमुख समाचारपत्रों का मुख्य शीर्षक था ।
विश्व के लगभग सभी प्रमुख समाचारपत्रों का मुख्य शीर्षक था ।
" विज्ञान की दुनिया में एक नया चमत्कार !"
चमन के राजा मिस्टर वतन ने एक ऐसे अजीबो गरीब यंत्र का आविष्कार किया है जिससे ब्रह्मांड में बिखरी आवाजों को समेटा जा सके ।"
अब आयेगा मजा हर कोई यंत्र को पाने के लिये मैदान में उतरेगा ।
वतन का स्टेटमेंट यों था ।
'कहते हैं कि इन्सान मर जाता है लेकिन इन्सान की आत्मा कभी नहीं मरती । आत्मा अज़र अमर है । आज का युग वैज्ञानिक युग कहलाता है ।
कहते हैं कि दुनिया ने किसी भी युग, में उतनी तरवकी नहीं ली जितनी कि इस युग में की है किन्तु मैं इस विचार-से सहमत नहीं, बल्कि मेरी धारणा तो यह है कि आधुनिक वैज्ञानिक युग में मौजूद विज्ञान का हर प्राचीन विज्ञान की नकल है, और अभी उस विज्ञान से हम वहुत पीछे हैं । हमने परमाणु और न्यूट्रॉन बम तो वना लिए किन्तु क्या वैसा ऐसा हथियार वना सके जैसे भारत के महान ग्रंथ 'महाभारत' में बभ्रुवाहन के पास था ? कदाचित कुछ लोगों को पता न होगा कि . किस हथियार की बात कर हूं ?
बभ्रुवाहन महाभारत काल का एक योद्धा था । वह अपने घर से कोरबों की तरफ से युद्ध करने निकला था ।
श्रीकृष्ण जानते थे कि अगर वह युद्धस्थल में पहुंच गया तो निश्चय ही पाण्डवों की पराजय होगी ।
तभी तो रास्ते में श्रीकृष्ण ने उसे रोककर पूछा…तुम कहाँ जाते हो ?"
…‘"महाभारत के युद्ध में हिस्सा लेने ।'" बभ्रुवाहन ने जवाब दिया ।
किसकी तरफ से युद्ध करोगे ?' ' .
…"हारने बालों की तरफ से !"
नीति-निपुण बासुरी का जादूगर मुस्कराया, बोला---" उस युद्ध मे भला तुम्हारी क्या बिसात है ? वहा कर्ण, दुर्योधन, अर्जुन और भीष्म पितामह जैसे जोद्धा है । उन योद्धाओं के समक्ष भला तुम क्या कर सकोगे? "
'जो भी हो ।' उसने कहा…'मेरी मां ने मुझे इस आज्ञा के साथ भेजा है के मैं हारने वालों की तरफ से युद्ध करू ।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)
माखनचोर तो सारी वास्तविकता जानते थे । दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिज्ञ ने उसे अपने शब्दजाल में फंसाया-वड़े बेवकूफ हो तुम । मां ने कहा और तुन युद्ध के लिए निकल पडे । हम तो देख हैं है कि तुम्हारे तरकश में तीर भी सिर्फ तीन ही हैं ।
युद्ध क्षेत्र मे पहुचने कुछ ही देर बाद तुम्हारे ये तीनों तीर खत्म हो जाएंगे, फिर क्या करोगे ?
गर्व से मुस्कराया बभ्रुवाहन, बोला…'मेरे पास तीन तीर है महाराज ! मुझे मालूम है कि मुझे दूसरा तीर प्रयोग करने की भी जरूरत नहीं पडे़गी । मैं एक ही तीर से सारे दुश्मनों का संहार कर दूंगा ।'
चतुर कृष्ण ने आश्चर्य प्रकट किया…"कैसी बेवकूफी की बात कर रहे हो ? भला यह कैसा तीर है जो संबक्रो एकसाथ मार देगा ?'
'मेरे तीर में ऐसी ही विशेषता है महाराज !' उसने कहा --- और यह सुनकर चौंकेंगे के सबको मारने के बाद भी मेरा तीर नष्ट नहीं-होगा बल्कि सुरक्षित वापस मेरे तरकश में आ जाएगा ।'
-"शायद कोई बेवकूफ ही तुम्हारी इस बात पर यकीन कर सकता है ।'
मुस्कराकर बभ्रुवाहन ने कहा-'युद्ध क्षेत्र में आप स्वयं देख लीजिएगा ।'
तुमने बात कुछ ऐसी कही है कि हम उस पर यकीन नहीं कर सकते ।' कन्हैया ने कहा…"और न ही युद्ध होने तक प्रतीक्षा कर सकते हैं ।‘
" गर्व में फंसे बभ्रुवाहन ने कहा-'तौ फिर आपको मेरी बात की सच्चाई का यकीन कैसे हो ?'
मन-हीँ-मन मुस्कराए मनमोहन । नीति-निपुण ने समीप के ही एक इमली के पेड़ की ओर संकेत करके कहा 'इस पेड़ को देखो, अगर तुम्हारे धनुष से छोड़ा गया एक ही तीर इस वृक्ष के सारे पतों को बेंधकर तरकश में वापस आ जाए तो मुझे तुम्हारी बात का यकीन हो जाएगा ।'
अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए आतुर बभ्रुवाहन ने सहर्ष माखनचोर की यह वात मान ती । उसने तीर छोड़ा ।
कृष्ण तो जानते ही है कि क्या होना है । उधर बभ्रुवाहन का तीर दरख्त के एकएक पते को बेंधने लगा और इधर माखनचोर ने उस दरख्त का एक पत्ता बभ्रुवाहन की दृष्टि बचाकर अपने पैर के नीचे दवा लिया ।।
अपनी इस नीति पर सांवरा मुस्करा रहा था ।
परन्तु-अन्त में सभी पतों को वेंधकऱ तीर जब श्रीकृष्ण के पैर पर लपका तो जल्दी से श्रीकृष्ण ने पैर हटा लिया, एक क्षण के लिये भी विलम्ब हो जाता तो तीर महाराज कृष्ण के पैर को जख्मी तो कर ही देता । उस अन्तिम पते को भी बेंधने के बाद तीर सीधा तरकश में पहुच गया । उसके बाद क्या हुआ ? श्रीकृष्ण ने वध्रुवाहन को युद्ध में भाग लेने से कैसे रोका ?
यह तो महाभारत का कथानक है, और उसे यहाँ कहने की मैं कोई जरुरत महसूस नहीँ करता ।
मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि आज के बैज्ञानियों ने क्या कोई रिवॉल्वर ऐसी बना ली है, एक ही गोली से सारे दुश्मनों को माररकर वापस पुन: अपनी पूर्णशक्ति' जितनी क्षमता कें साथ रिवॉल्वर में अा जाए ?
क्या है आघनिक युग में ऐसा हथियार ? नहीं ।
तो फिर हम कैसे कह सकते है कि आज का बिज्ञान सबसे ऊंचा है ? उपयुक्त किस्म के अनेक उदाहरण देकर मैं यह सिद्ध कर सकता हू प्राचीन युग विज्ञान के मामले में आधुनिक युग से पीछे नहीं बल्कि कुछ आगे ही था ।
वह सभ्यता समाप्त हो गई । उस युग में क्या था, क्या नहीं--' हम पूर्णतया नहीं जानते है ।
हां , भारत के चार महान ग्रन्थ हैं----चार वेद'-उन चारों ही वेदों में अलग-अलग-चार क्षेत्रों का गहरा ज्ञान है, सब जानते हैं क्रि ऋग्वेद में विज्ञान से सम्बन्धित ज्ञान थे । उस महान भारतीय ग्रन्थ के एक-एक दोहे में एक-एक फार्मुला था । भारत का पिछला इतिहास खून से लिखा गया है । पूरा अनगिनत लड़ाइर्यों से भरा पडा है । उन्हीं लड़ाइर्यो के चक्रवात में भारत की न जाने जितनी विशेष चीजें गुम होकर रह गई । चारों वेद भी गुम हो गए ।
कुछ पता न लग सका कि कौन कौन-सी लडाई में उन वेदों की प्रतिलिपियां किसके हाथ लगी ।
सम्भावना यह प्रकट करते हैं कि कोई भी उन वेदों की मूल प्रतिलिपि न'कब्जा सका । वे महान ग्रन्थ पृष्ठों में बदल गए । कोई पृष्ठ किसी के हाथ लगा और कोई पृष्ठ किसी के । अत: उन महान ग्रन्धों में जो ज्ञान था, वह पूर्णतया किसी को भी प्राप्त न हो सका । उस लूटखसोट से संस्कृति का जो ज़र्रा--ज़र्रा जिसके हाथ लगा, वह ले उड़ा ।
ऋग्वेद का भी यही हाल हुआ ।
उसके भी विभिन्न पुर्जे लोगों के हाथ लगे ।
और आज-मेरा बिश्वास है कि आधुनिक युग में जितने भी चमत्कृत करने वाले आविष्कार है, उसमें ज्यादातर का आइडिया उसी ऋग्वेद में से लिया गया है । मेरे विचार से कहीं किसी ने कोई नई बात नहीं निकाली है, आधुनिक युग का समूचा विज्ञान ऋग्वेद की देन है ।
मेरा यह आविष्कार' जो मैंने क्रिया है-यह भी ऋग्वेद की देन है ।
अब सुनिये कि मैंने यह आविष्कार कैसे किया ?
मुझे अपने माता-पिता और बहन से बहुत प्यार था । फलवाली बूढी दादी मां से भी असीम प्यार करता था । न जाने क्यों मेरा दिल चाहता था कि मैं अपने माता-पिता की आवाज पुन: सुनूं
बचपन में मेरी बहन से जो बातें हुंई थीं…उन्हें सुनू ?
लेकिन...सवाल यह था कि कैसे ?
कैसे मैं उनकी बातें सुन सकता हूं ?
आवश्यकता आविष्कार की जननी है ।
मुझे याद अाया--ऋग्वेद में लिखा है कि आवाज कभी नहीं मरती । आवाज आत्मा की तरह अजर अमर है । हम जो कुछ बोलते हैं, आज तक जितने भी इन्सानों ने जो कुछ बोला है, वह " ब्रह्मंड में सुरक्षित है । ऋग्वेद में लिखी इस जानकारी से भी कहीं
ज्यादा मेरा अपना विचार था कि व्रह्मांड में न सिर्फ यह सुरक्षित है जो इन्तान ने बोलता है बल्कि इससे भी ज्यादा यह भी सुरक्षित है जो कभी किसी ने सिर्फ सोचा है, बोला नहीं है । ऋग्वेद ईंसी जानकारी और माता-पिता की आबाज सुनने की आवश्यकता ने मुझे यह प्रेरणा दी कि क्यों न मैं किसी यन्त्र का आविष्कार करूं जिससे ब्रह्माण्ड में बिखरी अपने माता-पिता, बहन और फलबाली दादी मां की आबाज समेट सकू। मैं किसी ऐसे यन्त्र का आविष्कार करने में व्यस्त हो गया ।
इस यन्त्र को बनाने का विचार मेरे दिमाग में चमन की सत्ता संभालने के दो महीने बाद अाया था, अत: चार महीने में मैंने अपनी लगन, परिश्रम और प्रतिभा से वह यन्त्र बनाने में सफलत अर्जित कर ली है ।
आज़ अपने-वनाए इस यन्त्र के माध्यम से मैं खोई हुई आवाजें स्पष्ट सुनता हू!
बस, जब इस यन्त्र में एक और विशेषता यह भी भरनी है यह ब्रह्माण्ड से आवाजों के अलावा उन विचारों को भी समेट ले जो अभी मेरे माता-पिता ने सोचे थे । उम्मीद है, सारी दुनिया क्रो मेरा यह आविष्कार पसन्द आया होगा ।
हर समाचार-पत्र में इसी अाशय का समाचार था ।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)
अलग-अलग अखबारों ने अपनी अलग-अलग शेली-में यह खबर दी थी ।
इस खबर ने'सारी दुनिया में जैसे एक हलचल सी मचा दी ।
चीन, अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, भारत, पाकिस्तान इत्यादि दुनिया के सभी राष्ट्र चोंक पड़े ।
खुद को बहुत धुरन्धर वैज्ञानिक समझने वालों की तो खोपड़ी ही झन्ना गई।
सोचने लगे…यह महान आविष्कार हमारे पास क्यों नहीं है । जिस दिन यह समाचार अखबार में प्रकाशित हुआ था, उस दिन विकास को झंझोड़कर धनुषटंकार ने ज़गाया था ।
धनुषटकार के जगाने पर विकास चौंका ।
यह पहला ही मौका था कि जब धनुषटंकार ने उसे सोते से जगाया था । अभी उसने आंखें खोली ही थी, कि उसकी नजर अपनी आंखों के सामने पडे हुए एक अखबार पर पडी, नीद से भरी मिचमिचाती आंखों से उसने वे शब्द पढे जो-अखवार में उसे सबसे ज्यादा मोटे चमके थे । लिखा था…
------चमन के राजा वतन का आबाजों पर कब्जा ।
चौंक कर उठ बैठा विकास !
'जल्दी-जल्दी यह सारी खबर पढ़ गया, पड़ने के बाद उसने' धनुषटंकार की तरफ देखा । बेड के समीप ही एक 'कुर्सी पर बैठा धनुषटंकार बड़े आराम से सिगरेट के सुटॄटे लगा रहा था ।
विकास को अपनी ओर देखकर वह मुस्कुराया, मुस्कराने के प्रयास में बन्दर के मुंह की अजीब-सी आकृति बन गई ।
खुशी की एक किलकारी के साथ विकास को उसने आंख भी मारी और हाथ बढा दिया । विकास ने गर्मजोशी के साथ हाथ मिलाया । वह उसकी खुशी का अनुमान लगा सकता था कि अखबार में अपने भाई वतन की इस सफलता के विषय में पढकर मोण्टी को कितनी खुशी हुई होगी ।।
…तभी तो हाथ मिलाते हुए विकास ने उससे कहा---"बधाइं हो मोण्टो ?"
और खुशी में उछलकर धनुषटंकार विकास की गर्दन पर लटक गया और उसके चेहरे पर बेशुमार चुम्बन लेने लगा ।
विकास सोचने लगा-कैसा मजबूर है मोण्टो । जुबान से अपनी खुशी भी जाहिर नहीं कर सकता। न जाने कब तक वह विकास का चेहरा चूमता रहा, अगर उसी वक्त फोन की घण्टी न बज गई होती, वह विकास से अलग हुआ , विकास ने रिसीवर उठाया और बोला---" यस ,मैं विकास बोल ' रहा हूं ।"
" रोका किसने है---बोलते रहो ।" दूसरी तरफ से आवाज आई ।
" कौन, गुरु ?" बिकास ने कहा-"गुरु आपने आज का अखवार पढ़ा हैं" -
"पढा नहीं प्यारे, बल्कि यूं कहो कि चाट लिया है ।" विजय ने कहा ---" जिस लिये तुम पूछ रहे हो, वह खबर भी हमने पढ ली है ।"
-'"तो फिर बधाई हो गुरु !" विकास ने कहा"--"वाकई मानना पडेगा कि वतन दुनिया का सबसे बहा वैज्ञानिक है । उसका पहला आविष्कार यानी समुद्र के पानी से असली गोल्ड जैसा ही नकली गोल्ड बनाना तो तारीफ के लायक था ही, लेकिन यह,यह ब्रह्माण्ड में बिखरी आवाज को. समेटना-वास्तव में गुरु, वतन इस युग में सबसे महान वैज्ञानिक है ।"
"और इस दूनिया का सबसे बड़ा मूर्ख भी वही, प्यारे दिलजले?" विजय कहा ।
-"क्या मतलब नं गुरु ?" विकास चौंका ।
…"कई बार कहा प्यारे दिलजले कि जब तक मूंग की दाल में भीमसेनी काजल डालकर खाना शुरु नहीं करोगे तब तक हमारी बातों का मतलब तुम्हारी समझ में ना अायेगा । फिर भी अगर मतलब समझना चाहो तो हमारे दौलतखाने पर अा जाओ ।" इतना कहने के साथ ही दूसरी तरफ से विजय ने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया ।
"क्या बात है गुरू, आप कुछ सुस्त से क्यों हैं ?" विकास के रिसीवर क्रेडिल पर रखते ही धनुषटंकार ने लिखा हुआ एक कागज का टुकडा उसकी आंखों के सामने का दिया ।
………"गुरु का कहना है मोण्टो प्यारे कि इस दुनिया में वतन से ज्यादा बढकर मुर्ख कोई नहीं ।" विकास ने कहा ।
धनुषटंकार चीखकर इशारे से पूछा-"ऐसी क्या बात हुई ?"
"बात का तो मुझे भी नहीं पता ।" विकास ने कहा---"लेकिन यह तो तुम समझते ही हो कि की बात कभी गलत नहीं होती । हम कई वार गलत सलत पर उनसे लढ़ पड़ते हैं ।--मगर थिंकिंग हमेशा उनकी ही सही निकलती है जब वतन को उन्होंने दुनिया का सबसे बड़े मुर्ख की संज्ञा _ दी है तो इसमें कोई शक नहीं कहीं ना कहीं कोई गड़बड़ जरूर है । "
-"तो क्या स्वामी के पास चलें ?" धनुषटंकार ने लिखकर पूछा ।
" बिल्कुल ।" विकास ने कहा…"बस पन्द्रह मिनट में मैं निबट लूं और फोरन चलते हैं ।"
कहने के साथ ही विकास ने सीधी जम्प बैड से बाथरूम में लगा दी ।
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)
मस्त ☺continue
सबका साथ सबका विकास।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, और इसका सम्मान हमारा कर्तव्य है।
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