जोरू का गुलाम या जे के जी
- kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
जीभ से उन्होंने मंजू बाई की भीगी गीली बुर चोदनी शुरू कर दी।
मस्त कसैला स्वाद जिसके पीछे दुनिया पागल है। खूब गाढ़ा ,सीधे जीभ की टिप पे रस की पहली बूँद ,
और फिर उनके प्यासे होंठ भी आ गए ,मंजू बाई की बुर को भींच कर जोर जोर से चूसते,
फिर उनके हाथ , एक हाथ की उंगलिया मंजू बाई के पिछवाड़े की दरार में घूम टहल रही थीं तो दूसरी की तर्जनी सीधे ,मंजू बाई की क्लीट को फ्लिक कर रही थी।
मटर के दाने ऐसी वो क्लीट एकदम फूल कर कुप्पा , फिर अंगूठे और तर्जनी के बीच उन्होंने उसे रोल करना शरू कर दिया।
तिहरा हमला ,जीभ होंठों और ऊँगली का ,नतीजा जल्द ही रस की धार बहनी शुरू हो गई और मंजू बाई ने जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए और साथ में
" उह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह , आह्ह्ह्ह , हाँ , उह्ह्ह , ओह्ह्ह ,चूस चूस , ऐसे ही ,... आह्हः क्या मस्त मादरचोद ,... झाड़ मुझे , अरे मेरा आसीर्बाद मिलेगा ,मंजू बाई का आसीर्बाद तो बहुत जल्द ,....
ह ह ,ओह्ह उफ्फ्फ ,...
हाँ चूस , ... मेरा आसीर्बाद मिलेगा न तो बहुत जल्द इसी घर में तू मेरे सामने , अपनी माँ के भोंसडे में , मंजू बाई का आशिर्वाद खाली नहीं जाता , चूस बस नहीं और नहीं ,...
ओह मेरा आसीर्बाद ,तेरी माँ के भोंसडे में तेरी मलाई छलकती रहेगी ,ओह्ह नहीं रुक साले मादरचोद और नहीं ,.... ओह ,ओह्ह तेरी माँ का ,... "
और मंजू बाई ने झड़ना शुरू कर दिया।
उनकी बुर के पपोटे बार बार फडक रहे थे , सिकुड़ रहे थे , रस की धार बह रही थी।
रूकती थी फिर बहती थी।
ट्रिंग ट्रिंग , बाहर काल बेल बजनी शुरू हो गयी।
और उन्होंने और जोर जोर से मंजू बाई के भोंसड़ी से निकल रही गाढ़ी चासनी को चाटना पीना शूरु कर दिया।
उनके होंठ , ठुड्डी पूरे चेहरे पर मंजू बाई के भोंसडे का रस लिपटा लगा था।
लेकिन वो एक बार फिर दूनी ताकत से जीभ अंदर बाहर कर के , भोंसडे के अंदर का रस भी ,...
ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग , मैं बाहर जोर जोर से काल बेल प्रेस कर रही थी। शापिंग बैग्स के भार से हम लोगों के हाथ टूटे पड़ रहे थे।
मंन्जू बाई झड के शिथिल पड़ गयी थी। उसने इनके सर पर से भी पकड़ ढीली कर दी थी लेकिन ये ,
उसके भोंसडे में लगे सारे रस को , झांटों में फंसी रस की बूंदो को चाट रहे थे। जो फ़ैल कर मंजू बाई की जाँघों पर पहुँच गया था वो भी ,
ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ,... अबकी मैंने अपनी ऊँगली काल बेल से हटाई ही नहीं।
और दो मिनट में उन्होंने आके दरवाजा खोला।
मुझे पूछने की जरुरत नहीं पड़ी वो क्या कर रहे थे। उनके चेहरा जिस तरह चमक रहा था ,रस से लिपटा पुता , वो महक मैंने भी पहचान ली , मम्मी ने भी।
हम दोनों ने मुस्कराकर एक दूसरे को देखा।
उन्होंने बिना कुछ बोले,आँखे झुकाये ,हम लोगों के हाथ से शापिंग बैग ले लिया।
मम्मी अंदर गयीं ,पीछे पीछे मैं।
लेकिन मुझसे रहा नहीं गया।
खूँटा अभी भी जबरदस्त खड़ा था ,एकदम कड़ा।
लुंगी के ऊपर से उसे कस के दबाते मैं बोली ,
" अरे तझे ग्रीन सिग्नल दिया था न , फिर भी तेरा सिग्नल नहीं डाउन हुआ। "
और चिढाते हुए मैंने उनकी लुंगी हटा दी।
सुपाड़ा अभी भी खुला हुआ था।
आगे आगे मम्मी और मैं ,पीछे पीछे ये ,सरे शापिंग बैग्स लादे।
,
मम्मी धम्म से बेड पे बैठ गयीं और इनकी ओर पैर बढ़ा दिया।
ये तबतक घुटनों के बल बैठ चुके थे और मम्मी के संदली पैरों से उनकी सैंडल उतारने लगे.
जैसे अनजाने में ,मम्मी ने अपनी दूसरी सैंडल से उनके तन्नाए , 'हार्ड आन' को रगड़ दिया।
ये बात उन्हें भी अब तक पता चल चुकी थी की मम्मी का कोई काम अनजाने में नहीं होता।
सैंडल के बाद मम्मी ने अपनी सफ़ेद शिफॉन की साड़ी उतार कर उनकी ओर उछाल दी ,वो चुपचाप तहियाने लगे ,लेकिन उनकी निगाहें चोरी चोरी चुपके चुपके ,मम्मी की दोनों ब्लाउज फाड़ती ,डीप लो कट ब्लाउज से झांकती दोनों पहाड़ियों पर ही लगी थीं।
साडी के बाद वो शापिंग बैग अन पैक करने के लिए बढे , तो मम्मी ने उन्हें रोक दिया,
" अरे बड़ी थकान लगी है पहले जा , ताज़ी कड़क चाय बना के ले। "
जब वो किचेन के लिए मुड़े ही थे तो मम्मी ने उन्हें ऊँगली के इशारे से बुला लिया और जब तो वो समझे समझे ,अपनी बाहो में भींच लिया।
भींच क्या लिया ,एकदम अपने दोनों ३८ डी डी से उन्हें क्रश कर दिया और उनके चेहरे की ओर आँख नचा के देखते बोलीं ,
" आज तो तेरे चेहरे पे ,.... " और फिर सीधे लिप्स पे ,.. कस के ,... चूम लिया फिर उन्हें छोड़ते हुए बोलीं
" क्या बात है आज तो तेरे होंठों पे एकदम नया स्वाद है ,... "
बिचारे एकदम गौने की दुल्हन की तरह उन्होंने ब्लश किया और आँखे झुकाये किचेन की ओर मुड़ लिए।
वो कमरे के बाहर निकले ही नहीं थे की फिर रुक गए ,मम्मी ने आवाज दी ,
" सुन बहनचोद , अरे हम लोगों के चाय बना के लाने के बाद ,अपने और मंजू बाई के लिए भी बना लेना। "
जी बोलते हुए वो सीधे किचन में।
हम लोगों को चाय देने के बाद किचन में पहुँच कर एक ग्लास में मंजू बाई के लिए चाय निकाली और दूसरी ग्लास ढूंढने लगे ,
तो मंजू बाई ने उनके कंधे पर हाथ रख के रोक लिया उन्हें ,
" काहें को दूसरा ग्लास ढूंढते हो , ये हैं ना इसी में से ,दोनों ,... फिर धोना तो तुम्ही को पडेगा। "
एक बड़ी सी सिप ले कर मंजू बाई ने ग्लास उन्हें पास कर दिया।
ग्लास तो उन्होंने ले लिया लेकिन उनकी निगाहें अभी भी अपने तने लुंगी से झांकते खूंटे पे लगी थी।
" अरे मुन्ना चाय पी लो ,इसकी चिंता छोडो। रात को आ जाना ९-१० बजे , मैं हूँ न और गीता भी है कर देंगे इसका इलाज। "
और ये कहते हुए लुंगी के ऊपर से मंजू बाई ने खूंटा दबोच लिया और लगी हलके हलके रगड़ने।
" अरे पहली बियाई का दूध लगेगा न इसके ऊपर तो एकदम पत्थर हो जाएगा , दूध तो छलकता रहता है गीता का ,पीना मन भर के। "
"सच में " ख़ुशी से उनकी आँखें चमक गयी और ग्लास उन्होंने फिर मंजू बाई को पास कर दिया।
बाएं हाथ से मंजू बाई ने ग्लास पकड़ के सिप लेना शुरू कर दिया लेकिन मंजू बाई के शरारती दाएं हाथ ने अब लुंगी हटा के सीधे 'उसे' पकड़ के दबोच लिया था और खुल के मुठियाने लगी थी। सुपाड़ा तो पहले से ही खुला था ,मंजू बाई का अंगूठा जोर जोर से पेशाब के छेद पर रगड़ रहा था।
सिप लेते हुए बोली ,
" अरे तेरे वो बहन भी न ,एकदम मस्त पटाखा है ,साली शक्ल से चुदवासी लगती है। मेरी मानो तो उसको पटा के यहाँ ले आओ , फिर हचक के चोद दो साली को। सीधे से न माने तो जबरदस्ती , अरे थोड़ा चिंचियायेगी , छिनारपना करेगी पर ,...एक बार जब खूंटा घोंट लेगी न तो अगली बार खुदै ,... और फिर उसको गाभिन कर दो। जब बियाएगी न तो फिर उसका दूध ,... "
और मंजू बाई ने चाय का ग्लास उन्हें पास कर दिया , लेकिन सिप लेते हुए भी उनके कानों में मंजू बाई की ही बातें गूँज रही थी।
" अरे पहली बियाई के दूध में अलग नशा होता है एकदम जादू। लन्ड पे लगा के जब मलोगे न तो सब तेल ,मलहम दवाई झूठ एक दम लोहे का खम्भा हो जाएगा। अपने हाथ से चूंची दबा दबा के दूध निकालने का न ,एक दम छर्र छर्र धार सीधे चेहरे पे , एक बार पीओगे तो दो बोतल का नशा हो जाएगा , वो भी असली महुआ का। "
मुठियाते हुए मंजू बाई की बातें चालू थीं और उनकी हालात खराब हो रही थीं।
बची हुयी चाय उन्होंने फिर एक बार मंजू बाई के हाथ में पकड़ा दी।
मंजू बाई ने एक ही सिप में चाय ख़तम कर दी और उन्हें ग्लास पकडाते बोलीं ,
" गीता तुझे दूध का मजा तो देगी लेकिन , बस उसकी एक शर्त रहती है , दूध तभी पिलाएगी जब तुम उसकी देह से निकला सब कुछ , सुनहली शराब ,..सब कुछ,... "
वो ग्लास साफ़ कर रहे थे लेकिन मंजू बाई की बातें सुन के गिनगिना गए।
" अरे उसकी चिंता तुम छोडो ,बस एक बार तुम रात में आ आ जाओ , ... फिर तो तुम्हारा हाथ पैर बाँध के ,... जो भी होगा गीता करेगी। मैं रहूंगी न तेरे पास ,घबड़ाता क्यों है , वो मजा वो स्वाद है जो तुम सपने में भी नहीं सोच सकते हो सब मिलेगा। "
मंजू बाई ने उनके खूंटे को छोड़ दिया था और पिछवाड़े सहला रही थीं।
मंजू बाई बाहर निकल गयी लेकिन दरवाजे के पास से एक बार फिर उनको आवाज लगाई ,
" अरे बहनचोद ,दरवाजा बंद कर ले। "
वो जो दरवाजा बंद करने पहुँचे तो मंजू बाई ने एक बार फिर उन्हें अपनी बाहो में दबा के अपने बड़े बड़े जोबन उनके सीने पे दबाते हुए ,कान में फुसफुसाया ,
" आना जरूर रात को ,मैं और गीता इंतजार करेंगे। "
और वो चली गयी।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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जोरू का गुलाम भाग ४४
जोरू का गुलाम भाग ४४
और जब वो मम्मी के पास लौटे तो ढेर सार काम उनका इन्तजार कर रहे थे।
पहला तो शापिंग बैग खोलना ,
फिर सामान अरेंज करना।
पहले तो साड़ियां वो भी एक दो नहीं पूरी चार , और साथ में मम्मी की क्विज़ उनसे ,
बोल क्या है सिल्क ,कौन सा सिल्क कोस ,टसर, और गनीमत थी उन्हें १० में १० मिले वरना आज मम्मी उनके सारे खानदान की,...
फिर बाकी कपडे ,
वो बोल तो नहीं रहे थे लेकिन हर पैकेट खुलते उन्हें लग रहा था शायद उनके लिए कुछ होगा ,लेकिन मेरा या मम्मी का सामान निकलता।
बिचारे और ऊपर से साडी हो या शलवार सूट ,मम्मी ट्राई उन्ही के ऊपर कर के देखतीं और फिर बोल देतीं ," देख ये कैसे लगेगा अच्छा न तेरी बीबी के ऊपर "
जब आखिरी पैकेट बचा था तो मम्मी ने सबसे कठिन काम उनको सौंप दिया ,
" अरे सुन ज़रा ये सब साड़ियां ड्रेसेज तहिया के कबर्ड में रख दो और फिर चाय ज़रा कड़क बना लाओ। "
बिचारे सब साड़ियों की तह हमने खोल के रख दी थी ,एक एक उन्होंने फिर से ठीक से अरेंज की। मम्मी अपनी तेज निगाह से देख रही थीं उन्हें ,लेकिन इसमें भी उन्होंने कोई गलती नहीं की ,
और फिर थोड़ी देर में चाय।
उनकी निगाह बार बार उस अनखुले पैकेट की ओर दौड़ रही थी।
" तेरे माल के लिए लाये हैं , तूने मम्मी को उसकी साइज बतायी थी न ३२ सी बस एक दम उसी साइज की , चाहो तो उसे फोन कर के बता दो " मैंने छेड़ा उन्होंने
लेकिन मम्मी भी उन्होंने जोर से घूरा मुझे , मम्मी की यही बात , ...उनका बस चले तो हरदम आपने दामाद की ऐसी की तैसी ,लेकिन कोई दूसरा एक बोल ,बोल के तो दिखाए।
उन्होंने जोर से मुझे घूरा और चाय की प्लेटें मुझे ले जाने को बोला।
और जब मैं लौटी तो उनके पैकेट खुल चुके थे
टी शर्ट्स ,शर्ट , और एक दो फार्मल शर्ट भी।
मम्मी उनके पैकेट खोलने के बाद उन्हें खोलने पे तुली थीं।
"अरे तेरा सब कुछ देख तो चुकी हैं हम दोनों ,चल पहन के दिखा न। " वो पीछे पड़ीं थीं। उनके हाथ में टी शर्ट थी एक हाथ ,आफ कोर्स पिंक।
जब उन्होंने पहन लिया तो मैंने शीशे में दिखाया , पीछे का हिस्सा, उसपर लिखा था ," प्योर बॉटम। "
बाकी टी शर्ट्स भी पिंक थी और सब पे इसी तरह, ' लव बोनी थिंग्स , हार्डर द बेटर " " कम इन हार्ड " इसी तरह के एक से एक।
और फिर जीन्स जो लेडीज थी और मम्मी ने एक कमजोर सा बहाना बनाया , " तेरा नम्बर नहीं मालुम था तो इसी के नाप का ले लिया , वैसे भी तू इसके सारे कपडे तो पहनता ही रहता है। "
यहाँ तक तो गनीमत थी लेकिन मम्मी ने उनको वो जीन्स पहना भी दी।
सच बोलूं तो पिंक टी और जीन्स में बहुत मस्त लग रहे थे। उनका बबल बॉटम एकदम चिपका साफ़ साफ़ झलक रहा था।
बॉक्सर शार्ट्स ,साटन के ,मेल थांग और भी उस तरह की मेल लिंजरी
इसके अलावा और भी ट्रिंकेट थे ,दो बियर के मग्स भी मम्मी ने इनके लिए , लिए थे , एक पर एम् सी लिखा था और दूसरे पर बी सी।
" मेरी समधन और इसकी ननद के ऊपर चढ़ने में तो अभी कुछ टाइम है तो तब तक , इसी से गम गलत करना। " मम्मी ने बड़े गंभीर ढंग से उनसे बोला।
सामान समेटते हुए उन्हें लगा की काम ख़तम हो गया लेकिन मम्मी तो मम्मी है न।
उन्होंने लगा दिया काम पे ,
" अभी तो खाना में देर है ,सुन वो चारों साड़ियां हैं न उन पे ज़रा फाल टांक दे। सुबह तूने बहुत अच्छा टांका था ,बस वैसे। "
और मेरा हाथ पकड़ के मम्मी उठ गयी ,हम दोनों लाउंज में आगये थे उनका कुछ सीरियल छूटा हुआ था
एक डेढ़ घंटे बाद फाल टाकने का काम ख़तम हुआ ,फिर माम को अचानक जल्दी लग गयी।
वो किचेन में कुछ स्नैक्स बना रहे थे की मम्मी ने मुझे भी भेज दिया।
" ज़रा तू भी हेल्प करा दे न जल्दी हो जायेगी। " घडी की ओर देखते वो बोलीं।
और कुछ देर में खुद भी किचेन में दाखिल हो गयीं , बोलीं
" अरे सवा आठ बज रहे हैं ,बोलो कुछ हेल्प करना हो मैं करा दूँ। "
" मम्मी आज आप को बड़ी जल्दी मच रही है ,कोई खास बात है क्या " मैंने चिढाया उन्हें।
" हाँ हैं न बड़ी ख़ास बात है आज " उनके नितम्बो को सहलाते हुए उन्होंने अपना इरादा जाहिर कर दिया।
वो ब्लश कर रहे थे। पर मम्मी उनके ईयर लोब्स से अपने होंठ छुलाती बोलीं ,
" कुछ लाइट बना लो ,कुछ भी पर जल्दी। मैं हेल्प करा देती हूँ। पराठा सास भी चलेगा। "
" मम्मी आज तो आप का कोई सीरियल भी नहीं आता है न तब भी ,... " पराठे के लिए आटा गूंथते मैं बोलीं।
मम्मी का हाथ अभी भी उनके नितंबों पर था ,एक ऊँगली उन्होंने जोर से बीच की दरार में घुसाते हुए बोला ,
" है न , आज हम सब खुद सीरियल बनाएंगे , एकदम हॉट। "
लेकिन पंद्रह मिनट में उनकी प्लानिंग फेल हो गयी। बड़ा लंबा सा मुंह मम्मी ने लटकाया लेकिन ,
उनकी एक सहेली थीं ,पक्की वालीं। शहर के दूसरे कोने में रहती थीं ,उनका फोन आ गया था ,लेडीज संगीत था ,ओनली लेडीज। आल नाइट और डिनर भी।
उन्हें कुछ देर पहले ही पता चला था की मम्मी यहाँ है इसलिए उन्होंने इनवाइट कर लिया।
बिचारि मम्मी ,उनको मना भी नहीं कर सकती और यहां,…
सवा नौ बजे तक हम लोग ऑलमोस्ट तैयार हो गए थे। मैंने मम्मी को सजेस्ट भी किया की इनको भी ले चलते हैं पर मम्मी ,उन्होंने साफ मना कर दिया।
" अरे नहीं यार , भले ही वो मेरी कितनी भी पुरानी सहेली क्यों न हो ,उसने , इनको तो बुलाया नहीं न , ...इसलिए ठीक नहीं होगा। "
मैं और मम्मी कार में बैठ चुके थे तब तब मुझे एक काम याद आया ,उतर कर जैसे मैं आयी तो ये पोर्च में ही मिल गए।
" मंजू बाई का घर तो तुमने देखा ही है ,पास में ही तो है। बस , जाके उससे बोल देना सुबह आने की जरुरत नहीं है। तुम तो अकेले ही होंगे तो एक आदमी का क्या बर्तन , और फिर हम लोगों को भी कल आते आते ९-१० तो बज ही जाएगा। बस अभी चले जाना की कहीं वो सो वो न जाए। "
और मैं वापस गाडी में ,साढ़े नौ के पहले हम लोग रास्ते में थे।
लेकिन उनके घर में घुसते ही उन्हें मेरा एक मेसेज मिला ,
ग्रीन सिग्नल.
ढल चुकी शाम , छलक रहे जाम
और जैसे ही मैं और मम्मी गए ,घर में एक बार फिर सन्नाटा पसर गया , सन्नाटा और अकेलापन,...
वो चुपचाप ड्राइंग में रूम में बैठे बाहर के दरवाजे की ओर देख रहे थे ,जहां से कल सुबह तक कोई आनेवाला नहीं था।
रात का इन्तजार सिर्फ मम्मी नहीं वो भी कर रहे थे ,
उन्हें बस बार बार कल रात की ,मम्मी की बात की याद आ रही थी ,
" मादरचोद ,अभी तो कुछ नहीं है ,बस ये शुरुआत है ,अरे अभी ट्रेलर है ,ट्रेलर , असली फिल्लम तो कल रात चलेगी ,रात भर सोने नहीं दूंगी। "
सोने तो मम्मी ने उन्हें कल रात भी नहीं दिया था ,लेकिन , ...आज शाम से बस उन्हें लग रहा था की कब रात होगी ,...कब रात ,....
लेकिन,
कल जो उनके साथ हुआ था रात भर उसे सोच सोच के डर तो लग रहा था उन्हें,... लेकिन मन भी बहुत कर रहा था।
इट वाज लाइक आल ड्रेस्ड अप एंड नो व्हेयर टू गो।
कुछ देर उदासी में वो डूबे रहे , फिर उनकी निगाह बार पे पड़ी। जहां बैठे थे वहीँ ,उन्होंने खोल लिया ,
" इसमें क्या बुरा है ,अरे पीते हो तो स्टाइल से पीयो ,प्रापर ग्लास, मग प्रापर ,... "ये मॉम की उनके लिए गिफ्ट थी , कल ही तो लायी थीं वो।
उनके घर में पीना तो दूर कोई नाम भी नहीं ले सकता था। लेकिन यहां एक दो बार थोड़ा जबरदस्ती ,थोड़ा मान मनौवल कर के , धीरे धीरे ,... और अब तो
उन्होंने अपने दिमाग में आ रहे ख्याल को झटक दिया। अरे उनके ससुराल में सभी पीते हैं ,सभी ,... लेडीज भी तो फिर ,... और उन्होंने बार खोल लिया।
दो मग सामने ही रखे थे।
वही जो मम्मी उनके लिए लायी थीं शाम को,....और उनको याद आया गया ,कैसे मम्मी ने उन्हें छेड़ते हुए कहा था की ,
" तू क्या सोचता था हम तेरे लिए जो लाये हैं उसपे तेरा नाम भी लिखा है ,देखो न। "
और जो बियर का मग था उसपे एक किशोरी की तस्वीर सी बनी थी , उसका हैंडल बस आते हुए उभारों सा था और उस पर इंग्रेव्ड था ,बी सी।
ये कहने का मतलब नहीं था बी सी का मतलब क्या है और उनकी आँखों के सामने गुड्डी की शक्ल घूम गयी। और उन्होंने बिना कुछ सोचे लबालब बियर से से भर दिया।
लेकिन जैसे ही उनके होंठ बियर से लगे उनका ख्याल दूसरी ओर चला गया ,
गीता की ओर ,मंजू बाई की बेटी।
गुड्डी से मुश्किल से साल भर ही तो बड़ी होगी , और साल भर पहले उसकी शादी भी होगयी और अब बच्चा भी और वो गुड्डी को छोटा ,... सच में वो तो कब से ,
गदराये जोबन ,पतली कमरिया और मंजू बाई कैसे बोल रही थी ,सब मजे देगी वो
फिर एक बार मंजू बाई की ओर उनका ध्यान लौट गया। काम वाली है तो लेकिन , ... देह कितनी मस्त है ,उसके गदराये जोबन ,कितना मजा आएगा ,...
और मजा कितना देती है , उनकी निगाह घड़ी की ओर पड़ी।
नहीं ठीक नहीं होगी ,सोचा उन्होंने लेकिन मन में मंजू और गीता ही घूम रही थीं ,एक बार फिर खाली बीयर का मग उन्होंने भर लिया ,लबालब ,
उनकी ऊँगली मग के हैंडल पर टहल रही थी ,किसी किशोरी के उभारों ऐसा गढ़ा था ,
गीता के भी तो ऐसे ही ,और मंजू बाई क्या कह रही थी , दूध छलछलाता रहता है। सच में सीधे ब्रेस्ट से दूध , ...
नहीं नहीं झटके दे कर उन्होंने वो ख्याल अपने मन से निकाला और बार में बियर का मग खाली कर दिया।
घर में पूरा सन्नाटा था।
और सुबह तक कोई आने वाला नहीं था ,सुबह क्या ९-१० बजे तक।
फिर एक बार मंजू की शक्ल ,
फिर उन्हें याद आया की मंजू के यहां जाना तो पडेगा ,उसे बोलना होगा न की सुबह नहीं आना है।
अब तक कह आते तो ,
कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,उन्होंने मग तीसरी बार भर लिया।
और मग खाली करते उन्होंने फैसला कर लिया था ,
मंजू बाई के यहाँ तो वो जाएंगे लेकिन अंदर नहीं ,बाहर से ही उसे बुलाकर बता देंगे।
निकलते समय उन्हें याद आया की उन्हें ' ग्रीन सिगनल " तो मिल गया है ,ऊपर से कल से उनका एकदम तन्नाया,...
उन्होंने बाहर ताला बंद करते समय सर झटका ,कुछ भी हो बस उसके घर के अंदर नहीं जाएंगे तो कुछ नहीं होगा ,बस बता के चले आएंगे।
बियर का कुछ कुछ असर हो रहा था उनके ऊपर।
बाहर आसमान में कुछ नशे में धुत्त आवारा बादल टहल रहे थे ,चांदनी को छेड़ते।
कभी वो घेर के खड़े हो जाते चंद्रमुख को तो बस रौशनी हलकी हो जाती और जब जबरन वो लोफर बादल उस के चेहरे पर हाथ रख कर भींच लेते तो घुप्प अँधेरा।
मंजू बाई का घर पास में ही था। कुछ झोपड़ियां स्लम की तरह ,कच्चे पक्के मकान और उसी के आखिर में एक गली में , मंजू बाई का घर। थोड़ा कच्चा ,थोड़ा पक्का।
गली में सन्नाटा हो चला था।
आसमान में तो वैसे ही चांदनी और बादलों का लुकाछिपी का खेल चल रहा था ,गली में कुछ कमजोर लैम्पपोस्ट के बल्ब , कमजोर हलकी पीली रोशनी से स्याह अँधेरे को हटाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे ,और मंजू बाई के घर के पास के लैम्प पोस्ट का बल्ब निशानेबाजी की प्रैक्टिस का शिकार हो गया था।
घुप्प अँधेरा।
चारो और सन्नाटा था ,फिर मंजू बाई के घर के आसपास कोई घर था भी नहीं , बस एक बड़ा सा पुराना नीम का पेड़ , जिसकी टहनियां मंजू बाई के आंगन को झुक कर छू लेती थीं।
घर की दीवालें तो कच्ची थी ,लेकिन छत पक्की।
उन्होंने आसपास देखा, कोई नहीं दिख रहा था। थोड़ी देर पहले दस बजने के घंटे की आवाज कहीं से आयी थी।
बस मैं नाक करूँगा , और मंजू बाई को बोल कर की उसे कल सुबह नहीं आना है ,ये बता के चला आऊंगा। घर के अंदर एकदम नहीं घुसूंगा।
बार बार ये मन में अपनी सोच दुहरा रहे थे।
लेकिन मंजू बाई के घर का दरवाजा खुला हुआ था , अँधेरे में अदंर से लालटेन की हल्की कमजोर पीली रौशनी बस छन छन कर आ रही थी।
क्या करें ,क्या करें ये सोचते रहे , फिर सांकल खड़का दी।
कोई जवाब नहीं मिला।
अबकी हिम्मत कर सांकल उन्होंने और जोर से खड़काई ,फिर भी कोई जवाब नहीं मिला।
उठंगे ,अधखुले दरवाजे से उन्होंने देखा ,
अंदर कुछ दिख नहीं रहा था , बस एक कच्चा सा छोटा सा बरामदा ,उसके बगल में एक कमरा।
लेकिन कोई भी नही दिख रहा था।
उन्होंने अपना इरादा पक्का किया , बस एक बार और सांकल ... , कोई निकला तो ठीक वरना चला जाऊंगा। अंदर नहीं जाऊंगा।
आसमान में आवारा बादलों की संख्या बढ़ गयी थी ,
और कुछ देर रुक के उन्होंने थोड़ी तेजी से सांकल खड़काई ,हलकी आवाज में बोला भी
मंजू बाई ,
लेकिन कोई जवाब नहीं ,और खुले दरवाजे से अंदर का कच्चा बरामदा ,थोड़ा सा कच्चा आँगन साफ़ दिख रहा था।
उहापोह में उनके पैर ठिठके थे।
" कही सो तो नहीं गयी वो लेकिन इस तरह दरवाजा खोल के ,... "
कुछ नहीं तय कर पा रहे थे वो।
" बस एक सेकेण्ड के लिए अदंर जा के ,बस बोल के वापस आ जाऊंगा। "
कमजोर मन से सोचा उन्होंने।
अंदर कोई भी नहीं दिखा।
बस कच्चे बरामदे के एक कोने में लालटेन जल रही थी ,हलकी हलकी परछाईं बरामदे के दीवारों पर पड़ रही थी।
छोटे से आँगन में भी एक दरवाजा था बाहर का।
कमरा बंद था ,.
उनकी निगाह आंगन की ओर लगी थी तभी बाहर के दरवाजे के बंद होने की आवाज आयी।
चरर , और फिर सांकल लगने की ,ताला लगने की।
मुड़ कर वो दरवाजे के पास पहुंचे ,पर दरवाजा बाहर से बंद हो चुका था।
एक बार उन्होंने फिर बरामदे की ओर देखा , कच्चा मिट्टी के फर्श का बरामदा , उसके एक कोने में टिमटिमाती लालटेन।
फिर वो दरवाजे के पास गए ,हिलाया ,डुलाया ,झाँक कर देखा।
दरवाजा अच्छी तरह बंद था , कुण्डी में लगा ताला भी दरवाजे की फांक से दिख रहा था।
किसी ने बाहर से दरवाजा बन्द कर ताला लगा दिया था।
जोरू का गुलाम भाग ४५
और फिर एक खिलखिलाहट ,जैसे चांदी की हजार घण्टियाँ एक साथ बज उठी हों।
और उन्होंने मुड़ कर देखा तो जैसे कोई सपना हो , एक खूबसूरत परछाईं , एक साया सा ,
बस वो जड़ से होगये जैसे उन्हें किसी ने मूठ मार दी हो।
और जब वो मम्मी के पास लौटे तो ढेर सार काम उनका इन्तजार कर रहे थे।
पहला तो शापिंग बैग खोलना ,
फिर सामान अरेंज करना।
पहले तो साड़ियां वो भी एक दो नहीं पूरी चार , और साथ में मम्मी की क्विज़ उनसे ,
बोल क्या है सिल्क ,कौन सा सिल्क कोस ,टसर, और गनीमत थी उन्हें १० में १० मिले वरना आज मम्मी उनके सारे खानदान की,...
फिर बाकी कपडे ,
वो बोल तो नहीं रहे थे लेकिन हर पैकेट खुलते उन्हें लग रहा था शायद उनके लिए कुछ होगा ,लेकिन मेरा या मम्मी का सामान निकलता।
बिचारे और ऊपर से साडी हो या शलवार सूट ,मम्मी ट्राई उन्ही के ऊपर कर के देखतीं और फिर बोल देतीं ," देख ये कैसे लगेगा अच्छा न तेरी बीबी के ऊपर "
जब आखिरी पैकेट बचा था तो मम्मी ने सबसे कठिन काम उनको सौंप दिया ,
" अरे सुन ज़रा ये सब साड़ियां ड्रेसेज तहिया के कबर्ड में रख दो और फिर चाय ज़रा कड़क बना लाओ। "
बिचारे सब साड़ियों की तह हमने खोल के रख दी थी ,एक एक उन्होंने फिर से ठीक से अरेंज की। मम्मी अपनी तेज निगाह से देख रही थीं उन्हें ,लेकिन इसमें भी उन्होंने कोई गलती नहीं की ,
और फिर थोड़ी देर में चाय।
उनकी निगाह बार बार उस अनखुले पैकेट की ओर दौड़ रही थी।
" तेरे माल के लिए लाये हैं , तूने मम्मी को उसकी साइज बतायी थी न ३२ सी बस एक दम उसी साइज की , चाहो तो उसे फोन कर के बता दो " मैंने छेड़ा उन्होंने
लेकिन मम्मी भी उन्होंने जोर से घूरा मुझे , मम्मी की यही बात , ...उनका बस चले तो हरदम आपने दामाद की ऐसी की तैसी ,लेकिन कोई दूसरा एक बोल ,बोल के तो दिखाए।
उन्होंने जोर से मुझे घूरा और चाय की प्लेटें मुझे ले जाने को बोला।
और जब मैं लौटी तो उनके पैकेट खुल चुके थे
टी शर्ट्स ,शर्ट , और एक दो फार्मल शर्ट भी।
मम्मी उनके पैकेट खोलने के बाद उन्हें खोलने पे तुली थीं।
"अरे तेरा सब कुछ देख तो चुकी हैं हम दोनों ,चल पहन के दिखा न। " वो पीछे पड़ीं थीं। उनके हाथ में टी शर्ट थी एक हाथ ,आफ कोर्स पिंक।
जब उन्होंने पहन लिया तो मैंने शीशे में दिखाया , पीछे का हिस्सा, उसपर लिखा था ," प्योर बॉटम। "
बाकी टी शर्ट्स भी पिंक थी और सब पे इसी तरह, ' लव बोनी थिंग्स , हार्डर द बेटर " " कम इन हार्ड " इसी तरह के एक से एक।
और फिर जीन्स जो लेडीज थी और मम्मी ने एक कमजोर सा बहाना बनाया , " तेरा नम्बर नहीं मालुम था तो इसी के नाप का ले लिया , वैसे भी तू इसके सारे कपडे तो पहनता ही रहता है। "
यहाँ तक तो गनीमत थी लेकिन मम्मी ने उनको वो जीन्स पहना भी दी।
सच बोलूं तो पिंक टी और जीन्स में बहुत मस्त लग रहे थे। उनका बबल बॉटम एकदम चिपका साफ़ साफ़ झलक रहा था।
बॉक्सर शार्ट्स ,साटन के ,मेल थांग और भी उस तरह की मेल लिंजरी
इसके अलावा और भी ट्रिंकेट थे ,दो बियर के मग्स भी मम्मी ने इनके लिए , लिए थे , एक पर एम् सी लिखा था और दूसरे पर बी सी।
" मेरी समधन और इसकी ननद के ऊपर चढ़ने में तो अभी कुछ टाइम है तो तब तक , इसी से गम गलत करना। " मम्मी ने बड़े गंभीर ढंग से उनसे बोला।
सामान समेटते हुए उन्हें लगा की काम ख़तम हो गया लेकिन मम्मी तो मम्मी है न।
उन्होंने लगा दिया काम पे ,
" अभी तो खाना में देर है ,सुन वो चारों साड़ियां हैं न उन पे ज़रा फाल टांक दे। सुबह तूने बहुत अच्छा टांका था ,बस वैसे। "
और मेरा हाथ पकड़ के मम्मी उठ गयी ,हम दोनों लाउंज में आगये थे उनका कुछ सीरियल छूटा हुआ था
एक डेढ़ घंटे बाद फाल टाकने का काम ख़तम हुआ ,फिर माम को अचानक जल्दी लग गयी।
वो किचेन में कुछ स्नैक्स बना रहे थे की मम्मी ने मुझे भी भेज दिया।
" ज़रा तू भी हेल्प करा दे न जल्दी हो जायेगी। " घडी की ओर देखते वो बोलीं।
और कुछ देर में खुद भी किचेन में दाखिल हो गयीं , बोलीं
" अरे सवा आठ बज रहे हैं ,बोलो कुछ हेल्प करना हो मैं करा दूँ। "
" मम्मी आज आप को बड़ी जल्दी मच रही है ,कोई खास बात है क्या " मैंने चिढाया उन्हें।
" हाँ हैं न बड़ी ख़ास बात है आज " उनके नितम्बो को सहलाते हुए उन्होंने अपना इरादा जाहिर कर दिया।
वो ब्लश कर रहे थे। पर मम्मी उनके ईयर लोब्स से अपने होंठ छुलाती बोलीं ,
" कुछ लाइट बना लो ,कुछ भी पर जल्दी। मैं हेल्प करा देती हूँ। पराठा सास भी चलेगा। "
" मम्मी आज तो आप का कोई सीरियल भी नहीं आता है न तब भी ,... " पराठे के लिए आटा गूंथते मैं बोलीं।
मम्मी का हाथ अभी भी उनके नितंबों पर था ,एक ऊँगली उन्होंने जोर से बीच की दरार में घुसाते हुए बोला ,
" है न , आज हम सब खुद सीरियल बनाएंगे , एकदम हॉट। "
लेकिन पंद्रह मिनट में उनकी प्लानिंग फेल हो गयी। बड़ा लंबा सा मुंह मम्मी ने लटकाया लेकिन ,
उनकी एक सहेली थीं ,पक्की वालीं। शहर के दूसरे कोने में रहती थीं ,उनका फोन आ गया था ,लेडीज संगीत था ,ओनली लेडीज। आल नाइट और डिनर भी।
उन्हें कुछ देर पहले ही पता चला था की मम्मी यहाँ है इसलिए उन्होंने इनवाइट कर लिया।
बिचारि मम्मी ,उनको मना भी नहीं कर सकती और यहां,…
सवा नौ बजे तक हम लोग ऑलमोस्ट तैयार हो गए थे। मैंने मम्मी को सजेस्ट भी किया की इनको भी ले चलते हैं पर मम्मी ,उन्होंने साफ मना कर दिया।
" अरे नहीं यार , भले ही वो मेरी कितनी भी पुरानी सहेली क्यों न हो ,उसने , इनको तो बुलाया नहीं न , ...इसलिए ठीक नहीं होगा। "
मैं और मम्मी कार में बैठ चुके थे तब तब मुझे एक काम याद आया ,उतर कर जैसे मैं आयी तो ये पोर्च में ही मिल गए।
" मंजू बाई का घर तो तुमने देखा ही है ,पास में ही तो है। बस , जाके उससे बोल देना सुबह आने की जरुरत नहीं है। तुम तो अकेले ही होंगे तो एक आदमी का क्या बर्तन , और फिर हम लोगों को भी कल आते आते ९-१० तो बज ही जाएगा। बस अभी चले जाना की कहीं वो सो वो न जाए। "
और मैं वापस गाडी में ,साढ़े नौ के पहले हम लोग रास्ते में थे।
लेकिन उनके घर में घुसते ही उन्हें मेरा एक मेसेज मिला ,
ग्रीन सिग्नल.
ढल चुकी शाम , छलक रहे जाम
और जैसे ही मैं और मम्मी गए ,घर में एक बार फिर सन्नाटा पसर गया , सन्नाटा और अकेलापन,...
वो चुपचाप ड्राइंग में रूम में बैठे बाहर के दरवाजे की ओर देख रहे थे ,जहां से कल सुबह तक कोई आनेवाला नहीं था।
रात का इन्तजार सिर्फ मम्मी नहीं वो भी कर रहे थे ,
उन्हें बस बार बार कल रात की ,मम्मी की बात की याद आ रही थी ,
" मादरचोद ,अभी तो कुछ नहीं है ,बस ये शुरुआत है ,अरे अभी ट्रेलर है ,ट्रेलर , असली फिल्लम तो कल रात चलेगी ,रात भर सोने नहीं दूंगी। "
सोने तो मम्मी ने उन्हें कल रात भी नहीं दिया था ,लेकिन , ...आज शाम से बस उन्हें लग रहा था की कब रात होगी ,...कब रात ,....
लेकिन,
कल जो उनके साथ हुआ था रात भर उसे सोच सोच के डर तो लग रहा था उन्हें,... लेकिन मन भी बहुत कर रहा था।
इट वाज लाइक आल ड्रेस्ड अप एंड नो व्हेयर टू गो।
कुछ देर उदासी में वो डूबे रहे , फिर उनकी निगाह बार पे पड़ी। जहां बैठे थे वहीँ ,उन्होंने खोल लिया ,
" इसमें क्या बुरा है ,अरे पीते हो तो स्टाइल से पीयो ,प्रापर ग्लास, मग प्रापर ,... "ये मॉम की उनके लिए गिफ्ट थी , कल ही तो लायी थीं वो।
उनके घर में पीना तो दूर कोई नाम भी नहीं ले सकता था। लेकिन यहां एक दो बार थोड़ा जबरदस्ती ,थोड़ा मान मनौवल कर के , धीरे धीरे ,... और अब तो
उन्होंने अपने दिमाग में आ रहे ख्याल को झटक दिया। अरे उनके ससुराल में सभी पीते हैं ,सभी ,... लेडीज भी तो फिर ,... और उन्होंने बार खोल लिया।
दो मग सामने ही रखे थे।
वही जो मम्मी उनके लिए लायी थीं शाम को,....और उनको याद आया गया ,कैसे मम्मी ने उन्हें छेड़ते हुए कहा था की ,
" तू क्या सोचता था हम तेरे लिए जो लाये हैं उसपे तेरा नाम भी लिखा है ,देखो न। "
और जो बियर का मग था उसपे एक किशोरी की तस्वीर सी बनी थी , उसका हैंडल बस आते हुए उभारों सा था और उस पर इंग्रेव्ड था ,बी सी।
ये कहने का मतलब नहीं था बी सी का मतलब क्या है और उनकी आँखों के सामने गुड्डी की शक्ल घूम गयी। और उन्होंने बिना कुछ सोचे लबालब बियर से से भर दिया।
लेकिन जैसे ही उनके होंठ बियर से लगे उनका ख्याल दूसरी ओर चला गया ,
गीता की ओर ,मंजू बाई की बेटी।
गुड्डी से मुश्किल से साल भर ही तो बड़ी होगी , और साल भर पहले उसकी शादी भी होगयी और अब बच्चा भी और वो गुड्डी को छोटा ,... सच में वो तो कब से ,
गदराये जोबन ,पतली कमरिया और मंजू बाई कैसे बोल रही थी ,सब मजे देगी वो
फिर एक बार मंजू बाई की ओर उनका ध्यान लौट गया। काम वाली है तो लेकिन , ... देह कितनी मस्त है ,उसके गदराये जोबन ,कितना मजा आएगा ,...
और मजा कितना देती है , उनकी निगाह घड़ी की ओर पड़ी।
नहीं ठीक नहीं होगी ,सोचा उन्होंने लेकिन मन में मंजू और गीता ही घूम रही थीं ,एक बार फिर खाली बीयर का मग उन्होंने भर लिया ,लबालब ,
उनकी ऊँगली मग के हैंडल पर टहल रही थी ,किसी किशोरी के उभारों ऐसा गढ़ा था ,
गीता के भी तो ऐसे ही ,और मंजू बाई क्या कह रही थी , दूध छलछलाता रहता है। सच में सीधे ब्रेस्ट से दूध , ...
नहीं नहीं झटके दे कर उन्होंने वो ख्याल अपने मन से निकाला और बार में बियर का मग खाली कर दिया।
घर में पूरा सन्नाटा था।
और सुबह तक कोई आने वाला नहीं था ,सुबह क्या ९-१० बजे तक।
फिर एक बार मंजू की शक्ल ,
फिर उन्हें याद आया की मंजू के यहां जाना तो पडेगा ,उसे बोलना होगा न की सुबह नहीं आना है।
अब तक कह आते तो ,
कुछ समझ में नहीं आ रहा था ,उन्होंने मग तीसरी बार भर लिया।
और मग खाली करते उन्होंने फैसला कर लिया था ,
मंजू बाई के यहाँ तो वो जाएंगे लेकिन अंदर नहीं ,बाहर से ही उसे बुलाकर बता देंगे।
निकलते समय उन्हें याद आया की उन्हें ' ग्रीन सिगनल " तो मिल गया है ,ऊपर से कल से उनका एकदम तन्नाया,...
उन्होंने बाहर ताला बंद करते समय सर झटका ,कुछ भी हो बस उसके घर के अंदर नहीं जाएंगे तो कुछ नहीं होगा ,बस बता के चले आएंगे।
बियर का कुछ कुछ असर हो रहा था उनके ऊपर।
बाहर आसमान में कुछ नशे में धुत्त आवारा बादल टहल रहे थे ,चांदनी को छेड़ते।
कभी वो घेर के खड़े हो जाते चंद्रमुख को तो बस रौशनी हलकी हो जाती और जब जबरन वो लोफर बादल उस के चेहरे पर हाथ रख कर भींच लेते तो घुप्प अँधेरा।
मंजू बाई का घर पास में ही था। कुछ झोपड़ियां स्लम की तरह ,कच्चे पक्के मकान और उसी के आखिर में एक गली में , मंजू बाई का घर। थोड़ा कच्चा ,थोड़ा पक्का।
गली में सन्नाटा हो चला था।
आसमान में तो वैसे ही चांदनी और बादलों का लुकाछिपी का खेल चल रहा था ,गली में कुछ कमजोर लैम्पपोस्ट के बल्ब , कमजोर हलकी पीली रोशनी से स्याह अँधेरे को हटाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे ,और मंजू बाई के घर के पास के लैम्प पोस्ट का बल्ब निशानेबाजी की प्रैक्टिस का शिकार हो गया था।
घुप्प अँधेरा।
चारो और सन्नाटा था ,फिर मंजू बाई के घर के आसपास कोई घर था भी नहीं , बस एक बड़ा सा पुराना नीम का पेड़ , जिसकी टहनियां मंजू बाई के आंगन को झुक कर छू लेती थीं।
घर की दीवालें तो कच्ची थी ,लेकिन छत पक्की।
उन्होंने आसपास देखा, कोई नहीं दिख रहा था। थोड़ी देर पहले दस बजने के घंटे की आवाज कहीं से आयी थी।
बस मैं नाक करूँगा , और मंजू बाई को बोल कर की उसे कल सुबह नहीं आना है ,ये बता के चला आऊंगा। घर के अंदर एकदम नहीं घुसूंगा।
बार बार ये मन में अपनी सोच दुहरा रहे थे।
लेकिन मंजू बाई के घर का दरवाजा खुला हुआ था , अँधेरे में अदंर से लालटेन की हल्की कमजोर पीली रौशनी बस छन छन कर आ रही थी।
क्या करें ,क्या करें ये सोचते रहे , फिर सांकल खड़का दी।
कोई जवाब नहीं मिला।
अबकी हिम्मत कर सांकल उन्होंने और जोर से खड़काई ,फिर भी कोई जवाब नहीं मिला।
उठंगे ,अधखुले दरवाजे से उन्होंने देखा ,
अंदर कुछ दिख नहीं रहा था , बस एक कच्चा सा छोटा सा बरामदा ,उसके बगल में एक कमरा।
लेकिन कोई भी नही दिख रहा था।
उन्होंने अपना इरादा पक्का किया , बस एक बार और सांकल ... , कोई निकला तो ठीक वरना चला जाऊंगा। अंदर नहीं जाऊंगा।
आसमान में आवारा बादलों की संख्या बढ़ गयी थी ,
और कुछ देर रुक के उन्होंने थोड़ी तेजी से सांकल खड़काई ,हलकी आवाज में बोला भी
मंजू बाई ,
लेकिन कोई जवाब नहीं ,और खुले दरवाजे से अंदर का कच्चा बरामदा ,थोड़ा सा कच्चा आँगन साफ़ दिख रहा था।
उहापोह में उनके पैर ठिठके थे।
" कही सो तो नहीं गयी वो लेकिन इस तरह दरवाजा खोल के ,... "
कुछ नहीं तय कर पा रहे थे वो।
" बस एक सेकेण्ड के लिए अदंर जा के ,बस बोल के वापस आ जाऊंगा। "
कमजोर मन से सोचा उन्होंने।
अंदर कोई भी नहीं दिखा।
बस कच्चे बरामदे के एक कोने में लालटेन जल रही थी ,हलकी हलकी परछाईं बरामदे के दीवारों पर पड़ रही थी।
छोटे से आँगन में भी एक दरवाजा था बाहर का।
कमरा बंद था ,.
उनकी निगाह आंगन की ओर लगी थी तभी बाहर के दरवाजे के बंद होने की आवाज आयी।
चरर , और फिर सांकल लगने की ,ताला लगने की।
मुड़ कर वो दरवाजे के पास पहुंचे ,पर दरवाजा बाहर से बंद हो चुका था।
एक बार उन्होंने फिर बरामदे की ओर देखा , कच्चा मिट्टी के फर्श का बरामदा , उसके एक कोने में टिमटिमाती लालटेन।
फिर वो दरवाजे के पास गए ,हिलाया ,डुलाया ,झाँक कर देखा।
दरवाजा अच्छी तरह बंद था , कुण्डी में लगा ताला भी दरवाजे की फांक से दिख रहा था।
किसी ने बाहर से दरवाजा बन्द कर ताला लगा दिया था।
जोरू का गुलाम भाग ४५
और फिर एक खिलखिलाहट ,जैसे चांदी की हजार घण्टियाँ एक साथ बज उठी हों।
और उन्होंने मुड़ कर देखा तो जैसे कोई सपना हो , एक खूबसूरत परछाईं , एक साया सा ,
बस वो जड़ से होगये जैसे उन्हें किसी ने मूठ मार दी हो।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
झिलमिलाती दीपशिखा सी , और एक बार फिर वही हजार चांदी के घंटियों की खनखनाहट ,
' भइया क्या हुआ , क्या देख रहे हो , मैं ही तो हूँ "
उस जादू की जादुई आवाज ने , वो जादू तोडा.
" माँ ने कहा था तुम आओगे ,अरे ताला बाहर से मैंने ही बंद किया है। ये रही ताली। "
चूड़ियों की खनखनाहट के साथ कलाई हिला के उसने चाभी दिखाई.
बुरा हो दीवार का , अमिताभ बच्चन का,।
एकदम फ़िल्मी स्टाइल ,
और लग भी रही थी वो एक फ़िल्मी गाँव की छोरी की तरह ,
लेकिन निगाह उनकी बस वहीँ चिपकी थी जहां चाभी छुपी थी ,
छलछलाते ,छलकते हुए गोरे गोरे दूध से ,
दूध से भरे दोनों थन।
एकदम जोबन से चिपका एकदम पतले कपडे का ब्लाउज , बहुत ही लो कट ,
ब्रा का तो सवाल ही नहीं था , अपनी माँ की तरह वो भी नहीं पहनती थी और आँचल कब का सरक कर, ढलक कर ,...
गोल गोल गोलाइयाँ।
"भइया क्या देख रहे हो ,... " शरारत से खिलखिलाते उसने पूछा।
मालुम तो उसे भी था की उनकी निगाहें कहाँ चिपकी है। ,
चम्पई गोरा रंग , छरहरी देह ,खूब चिकनी,
माखन सा तन दूध सा जोबन ,और दूध से भरा छोटे से ब्लाउज से बाहर छलकता।
साडी भी खूब नीचे कस के बाँधी ,न सिर्फ गोरा पान के पत्ते सा चिकना पेट , गहरी नाभी ,कटीली पतली कमरिया खुल के दिख रही थी ,ललचा रही थी , बल्कि भरे भरे कूल्हे की हड्डियां भी जहन पर साडी बस अटकी थी।
और खूब भरे भरे नितम्ब।
पैरों में चांदी की घुँघुरु वाली पायल ,घुंघरू वाले बिछुए , कामदेव की रण दुंदुभि और उन का साथ देती ,
खनखनाती ,चुरमुर चुरमुर करती लाल लाल चूड़ियां ,कलाई में , पूरे हाथ में , कुहनी तक।
गले में एक मंगल सूत्र ,गले से एकदम चिपका और ठुड्डी पर एक बड़ा सा काला तिल ,
एक दम फ़िल्मी गोरियों की तरह , लेकिन मेकअप वाला नहीं एकदम असली।
हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ जाते।
और एक बार फिर हंस के ,खिलखलाते हुए उसने वही सवाल दुहराया , एकदम उनके पास आके , अपने एक हाथ से अपनी लम्बी चोटी लहराते ,उसमें लगा लाल परांदा जब उनके गालों निकल गया तो बस ४४० वोल्ट का करेंट उन्हें मार गया।
" भैया क्या देख रहे हो , बैठो न ,पहली बार तो आये हो। "
और गीता ने उनकी और एक मोढ़ा बढ़ा दिया। और खुद घस्स से पास में ही फर्श पर बैठ गयी।
मोढ़े पर बैठ कर उन्होंने उस जादू बंध से निकलने की कोशिश की , बोलना शुरू किया ,
" असल में मैं आया था ये कहने की ,... लेकिन दरवाजा खुला था इसलिए अंदर आ गया ,... "
लेकिन नए नए आये जोबन के जादू से निकलना आसान है क्या ,और ऊपर से जब वो दूध से छलछला रहा हो ,नयी बियाई का थन वैसे ही खूब गदरा जाता है और गीता के तो पहले से ही गद्दर जोबन ,...
फिर जिस तरह से वो मोढ़े पर बैठे थे और वो नीचे फर्श पर बैठी थी , बिन ढंके ब्लाउज से उसकी गहराई , उभार और कटाव सब एकदम साफ़ साफ़ दिख रहा था।
एक बार फिर आँख और जुबान की जंग में आँखों की जीत हो गयी थी ,उनकी बोलती बंद हो गयी थी।
" हाँ भैया बोल न ,... "
उसने फिर उकसाया।
वह उठ कर जाना चाहते थे लेकिन उनके पैर जमीन से चिपक गए थे। दस दस मन के।
और फिर ताला भी बाहर से बंद था और चाभी गीता की ,
हिम्मत कर के उन्होंने फिर बोलना शुरू किया ,
" असल में ,असल में ,... मैं ये कहने आया था न की तेरी माँ से की,... की ,... कल ,... "
एक बार फिर चांदी के घुंघरुओं ने उनकी आवाज को डुबो दिया।
गीता बड़े जोर से खिलखिलाई।
" अरे भैय्या , वो मैंने माँ को बोल दिया है। यही कहना था की न भौजी कल सबेरे खूब देर में आएँगी , वो और उनकी माँ कही बाहर गयी है ,यही न "
चंपा के फूल झड रहे थे। बेला महक रही थी।
उनकी निगाहें तो बस उसके गोल गोल चन्दा से चेहरे पर , लरजते रसीले होंठों पर चिपकी थी।
" अब तुम कहोगे की मुझे कैसे मालुम हो गया ये सब तो भैया हुआ ये ,की मैं बनिया के यहाँ कुछ सौदा सुलुफ लेने गयी थी , बस निकली तो भौजी दिख गयीं। गाडी चला रही थी.एकदम मस्त लग रही थी गाडी चलाते। बस ,मुझे देख के गाडी रोक लिया। "
गीता दोनों हाथों से स्टियरिंग व्हील घुमाने की एक्टिंग कर रही थी और उनकी निगाह उसकी कोमल कोमल कलाइयों पर ,लम्बी लम्बी उँगलियों से चिपकी हुयी थी।
जब इतना कुछ देखने को हो तो सुनता कौन है। गीता चालू रही
" भौजी बहुत अच्छी है , मुझसे बहुत देर तक बातें की फिर बोली की वो लोग रात भर बाहर रहेंगी ,कल सबेरे भी बहुत देर में आएँगी। घर पे आप अकेले है , इसलिए मैं माँ को बोल दूँ की सबेरे जाने की जरुरत नहीं है बस दुपहरिया को आये। और मैंने माँ को बोल भी दिया। वो भी बाहर गयी है , मुझसे रास्ते में मिली थी , तो बस आप का काम मैंने कर दिया ,ठीक न। "
और एक बार फिर दूध खील बिखेरती हंसी ,उस हंसिनी की।
और अब जब वो तन्वंगी उठी तो बस उसके उभार उनकी देह से रगड़ते , छीलते , ,... ऊपर से कटार मारती काजर से भरी कजरारी निगाहें ,
बरछी की नोक सी ब्लाउज फाड़ते जुबना की नोक।
" भैया कुछ खाओगे ,पियोगे? "
अब वो खड़ी थी तो उनकी निगाह गीता के चिकने चम्पई पेट पर ,गहरी नाभी पर थी।
गीता के सवाल ने उन्हें जैसे जगा दिया और अचानक कही से उनके मन में मंजू बाई की बात कौंध गयी ,
" ,... लेकिन तुझे पहले खाना पीना पडेगा ,गीता का , सब कुछ ,... लेकिन घबड़ाओ मत हम दोनों रहेंगे न ,एकदम हाथ पैर बाँध के , जबरदस्ती ,... "
और वो घबड़ा के बोले ,
" नहीं नहीं कुछ नहीं मैं खा पी के आया हूँ ,बस चलता हूँ। " उन्होंने मोढ़े पर से उठने की कोशिश की।
पर झुक कर गीता ने उनके दोनों कंधे पकड़ के रोक लिया।
पहली बार गीता का स्पर्श उनकी देह से हुआ था ,और वो जैसे झुकी थी , गहरे कटे ब्लाउज से झांकते गीता के कड़े कड़े गोरे गुलाबी उभार उनके कांपते प्यासे होंठों से इंच भर भी दूर नहीं थे।
" वाह वाह ऐसे कैसे जाओगे , मैं जाने थोड़े ही दूंगी। भले आये हो अपनी मर्जी से लेकिन अब जाओगे मेरी मर्जी से , फिर वहां कौन है ,भौजी तो देर सबेरे लौंटेगी न। बैठे रहो चुपचाप ,चलो मैं चाय बनाती हूँ आये हो तो कम से कम मेरे हाथ की चाय तो पी के जाओ न भइया। "
वो बोली और पास ही चूल्हे पर चाय का बर्तन चढ़ा दिया।
चूल्हे की आग की रोशनी में उसका चम्पई रंग ,खुली गोलाइयाँ और दहक़ रही थी।
……चाय बनाते समय भी वो टुकुर टुकुर , अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखों से ,उन्हें देख रही थी।
आँचल अभी भी ढलका हुआ था.
" लो भैया चाय " एक कांच की ग्लास में गीता ने चाय ढाल कर उन्हें पकड़ा दिया और दूसरे ग्लास में उड़ेलकर खुद सुड़ुक सुड़ुक पीने लगी।
वास्तव में चाय ने उनकी सारी थकान एक झटके में दूर कर दी। गरम ,कड़क ,... और कुछ और भी था उसमें। या शायद जो उन्होंने बीयर पी थी ,उसका असर रहा होगा।
आँख नचाकर ,शरारत से मुस्कराते हुए गीता ने पूछा ,
" क्यों भैय्या ,चाय मस्त है ना , कड़क। "
और न चाहते हुए भी उनके मुंह से निकल गया ,
" हाँ एकदम तेरी तरह। "
और जिस शोख निगाह से गीता ने मेरी ओर देखा और अदा से बोली ,
" भैया ,आप भी न "
न जाने मुझे क्या हो रहा था , चाय में कुछ था या बीयर का नशा ,
" हे आप नहीं तुम बोलो। " मैं बोल पड़ा।
" धत्त , आप बड़े हो न " खिस्स से हंस पड़ी वो और दूर बादलों में बिजली चमक गयी।
" तो क्या हुआ ,बोल न ,... तुम। " मैंने जिद की।
" ठीक है ,तुम ,...लेकिन तुम को मेरी सारी बातें माननी पड़ेगीं। " उठती हुयी वो बोलीं ,और जब उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया तो पता नहीं जाने अनजाने देर तक उसकी उँगलियाँ ,मेरी उँगलियों से रगडती रहीं।
देह में तो मेरी मस्ती छा रही थी पर सर में कुछ कुछ , अजीब सा ,... "
और मैंने उससे बोल ही दिया ,
" मेरे सर में कुछ दर्द सा ,... "
" अरे अभी ठीक कर देती हूँ ,मैं हूँ न आपकी छोटी बहना। "
और उसने एक कटोरी में तेल लेके आग पे रख दिया गरम होने और मेरे पास आके मुझे भी उठा दिया। मेरे नीचे से मोढा हटा के उसने चटाई बिछा दी।
और फिर एक दम मुझसे सट के ,मेरी छाती पे अपना सीना रगड़ते , उसने बिना कुछ कहे सुने मेरी शर्ट उतार कर वही खूंटी पे टांग दी,
फिर बोली ,
" तुम लेट जाओ ,मैं तेल लगा देती हूँ। "
फिर बोली "नहीं नहीं रुको , आपकी , तेरी पैंट गन्दी हो जाएगी। आप ये मेरी साडी लुंगी बना के पहन लो न। "
और जब तक मैं मना करूँ ,कुछ समझूँ ,सर्र से सरकती हुयी उसकी साडी उसकी देह से अलग हो गयी और बस उसने मेरी कमर के चारो ओर बाँध के मेरी पैंट उतार दी। पेंट भी अब शर्ट के साथ खूंटी पे
और मैं उसकी साडी लुंगी की तरह लपेटे ,
लेकिन मैं उसे पेटीकोट ब्लाउज में देख नहीं पाया ज्यादा ,
उसने मुझे चटाई पर लिटा दिया , पेट के बल ,बोला आँखे बंद क्र लूँ।
तेल अब उसके पास था और मेरा सर , ....ये साफ़ था गीता का पेटीकोट सरक के जाँघों के एकदम ऊपरी हिस्से तक पहुंच गया था ,क्योंकि मेरा सर उसने अपनी खुली मखमली जाँघों पर रखा था और धीरे धीरे अपनी उँगलियों से मेरे सर में ,माथे पर ,कनपटी पर तेल लगा रही थी।
थोड़ी ही देर में आराम हो गया।
सब कुछ भूल कर बस उसके मांसल जंघाओं के स्पर्श का अहसास हो रहा था।
और पता भी नहीं चला की कब गीता की जादुई उँगलियाँ सर से पैर पर पहुँच गयीं।
जादू था बस।
एक एक मसल्स , एक एक रग , कभी धीरे धीरे कभी पूरी ताकत से ,
उनके तलुओं को पहले दोनों हाथों से , फिर मुट्ठी से हलके हलके मुक्कों से मार के , उँगलियों को तोड़ के ,
सारी थकान ,सब दर्द काफूर।
और धीरे धीरे वो मुलायम जादुई उँगलियाँ पिण्डलियों की ओर बढ़ी,धीमे धीमे जो साडी लुंगी की तरह ;लपेटी गयी थी , वो ऊपर और ऊपर होती गयी।
जादू था बस।
एक एक मसल्स , एक एक रग , कभी धीरे धीरे कभी पूरी ताकत से ,
उनके तलुओं को पहले दोनों हाथों से , फिर मुट्ठी से हलके हलके मुक्कों से मार के , उँगलियों को तोड़ के ,
सारी थकान ,सब दर्द काफूर।
और धीरे धीरे वो मुलायम जादुई उँगलियाँ पिण्डलियों की ओर बढ़ी,धीमे धीमे जो साडी लुंगी की तरह ;लपेटी गयी थी , वो ऊपर और ऊपर होती गयी।
पहले जो उँगलियाँ पिंडलियों से घुटनों तक सहला रही थीं , अब जोर जोर से दबा रही थीं ,अंदर की ओर प्रेस कर रही थी।
वो पेट के बल लेटे हुए थे ,
रात भर का रतजगा ,दिन भर के काम की थकान ,सारा तनाव ,दर्द सब धीमेधीमे बूंदबूंद कर बह रहा था।
और गीता की मुलायम रस भरी उँगलियाँ एकदम नीचे से ऊपर तक , उसके नितम्बो को भी कभी कभी छू लेती थी।
लेकिन थोड़ी देर में दोनों रेशमी हथेलियां सीधे नितंबों पर कभी हलके हलके तो कभी कस के , कभी दबाती ,कभी मसलती तो बस हलके हलके सहला देती।
,
लुंगी बनी साडी अब पतला सा छल्ला बना उनके कमर में बस ज़रा सा अटका था बाकी देह , गीता की भूखी उँगलियों के हवाले ,
" अरे अरे भैय्या तुम्हारे सर पर तो एकदम कडा कड़ा लग रहा हो , उफ़ , चलो मेरे ब्लाउज की ,देती हूँ अभी ,... हाँ ज़रा सा सर उठाओ , बस ठीक है अभी , हां ये लो। "
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
जब तक वो हाँ ना करते गीता का ब्लाउज उनके सर के नीचे तकिया बना कर रख दिया था।
गीता भी अब सिर्फ पेटीकोट में और पेटीकोट भी ऊपर , जाँघों तक चढ़ा हुआ।
और एक बार फिर गीता की उंगलियां उनके नितंबों पर ,
पहले तो गीता ने उलटे हाथ से हलके हलके ,कभी धीमे कभी तेजी से नितंबों पर सहलाया ,
जैसे उँगलियाँ उसके पिछवाड़े डांस कर रही हों ,
तबले पर ,मृदंग पर थिरक रही हों।
अब उन्हें सिर्फ वो उँगलियाँ महसूस हो रहीं थीं ,उनकी छुअन कभी सिहरा देने वाली थरथरा देने वाली तो कभी लगता
जैसे हजार बिच्छू उनके पिछवाड़े की पहाड़ियों पर चल रहे हों।
एक ऐसी फीलिंग जो आज तक उन्होंने कभी महसूस नहीं की हो।
खूँटा उनका खड़ा था लेकिन वो जिस तरह लेटे थे , तन्नाया फनफनाता उनकी जांघ और चटाई के बीच दबा कसमसाता।
और वो थिरकती उँगलियाँ कभी कभार नितम्ब के बीच से सरक कर , ' वहां ' भी उत्थित शिश्न को भी छू देतीं लेकिन ऐसे की जैसे बस यूँ हीं ,गलती से।
और वो १००० वाट का करेंट ' वहां ' लगाने के लिए काफी था।
अचानक उन दोनों हाथों ने कस के ,पूरी ताकत से उसके दोनों नितंबों को फैला दिया।
और गीता उस पिछवाड़े के भूरे भूरे छेद को फैलाये रही।
वो कसा दर्रा ,जिसके अंदर अभी तक कोई भी नहीं गया था।
क्या करेगी वो , क्या करेगी वो ,... बस वो सोच रहे थे ,तड़प रहे थे।
और तेल की चार पांच बूंदे बैकबोन के एकदम आखिरी हिस्से से , सरकती ,लुढ़कती पुढकती,
धीमे धीमे उस दरार के अंदर ,
गीता ने पूरी ताकत से दरार को फैला रखा था ,खोल रखा था , अपने कोमल कोमल हाथों से नितंबों को थोड़ा उचका भी दिया।
और सब की सब तेल की बूंदे अंदर।
बस अगले ही पल जैसे कोई खजाने के दरवाजे को बंद कर दे गीता के दोनों हाथों ने दबोच कर दोनों नितंबों को एकदम पास पास सटा दिया ,और आधे तरबूज के कटे दो गोलार्द्धों की तरह आपस में उन्हें रगड़ने लगी।
जैसे कोई चकमक पत्थर को रगड़ कर आग लगाने की कॊशिश कर रहा हो।
नितम्बो की रगड़ , और अंदर जाती ,सरसराती चिकनी तेल की बूंदे।
अंदर तक , एककदम नए तरह का अहसास हो रहा था उन्हें।
और फिर अचानक एक बार फिर गीता ने , नितंबों को फैला दिया और गीता की तेल लगी मंझली ऊँगली , दरार के बीच ,बार बार रगड़ घिस करने लगी।
मन तो कर था की बस वो , ... लेकिन गीता बजाय ऊँगली की टिप से प्रेशर लगाने के पूरी ऊँगली दरार में दरेरती ,रगड़ घिस करती ,
मन तो उनका ये कर रहा था की अब बस वो ,.... लेकिन गीता बस रगड़ रही थी , और अचानक
पूरी कलाई के जोर से
गचाक ,
दो तीन धक्के और ,
गचाक गचाक
और पूरी ऊँगली अंदर , वो उसे गोल गोल घुमा रही थी। ठेल रही थी।
फिर कुछ गड़ा उन्हें अंदर , उफ़ दर्द ,... और एक अलग तरह का मज़ा।
किताबों में पढ़ा था उन्होंने था इसके बारे में ,... प्रोस्ट्रेट पर प्रेशर ,...
शायद गीता के ऊँगली की अंगूठी गड रही थी अंदर,पर उसका असर ,सीधे खूंटे पर लग रहा था की कहीं ,...
झटके से खुद धनुषाकार उनकी देह हो गयी और जैसे गीता इसी मौके का इन्तजार कर रही थी ,
बस झट से खूंटे को उसने गचाक से अपनी कोमल गोरी गोरी मुट्ठी में दबोच लिया झटके में जो झटका दिया ,
सुपाड़ा घप्प से खुल गया।
एक हाथ लन्ड मुठिया रहा था तो दूसरे की मंझली ऊँगली गांड में धंसी,
अब गए , अब गए ,... उन्हें लग रहा था , कल रात से भूखा था ,पहले सास ने तड़पाया ,आज शाम को मंजू बाई ने।
और अगले पल गीता की चूड़ियों की खनखनाहट भी बंद हो गयी। दोनो हाथ अलग और अब दोनों हाथ सीधे शोल्डर ब्लेड्स पर फिर मालिश शुरू।
तेल की मालिश कंधो से शुरू होकर बैकबोन के अन्त में ,
एक बार फिर से एक नया नशा तारी होने लगा , सारी थकान गायब और एक नयी ताकत नया जोश ,
लेकिन जैसे ही मालिश शुरू हुयी थी , वैसे ही रुक गयी , और अब गीता की देह का कोई भी अंग उनके देह को छू नहीं रहा था।
मन कर रहा था की गीता कुछ करे , गीता कुछ करे।
और अचानक उनके कान दहक़ उठे , फागुन में दहकते पलाश वन की तरह।
गीता के आग से होंठ बस उनके इयरलोब्स को छू गए थे ,उसने चूमा था या बस ऐसे ही ,
" भइय्या , "
और गीता के किशोर जोबन की नोक , उसके छलछलाते थनों का अग्रभाग बस , उनके पीठ को छू सा गया।
लेकिन ये गलती से नहीं था। गीता की दोनों कलाइयों ने उनके हाथ को कस के पकड़ लिया था और भरी भरी छातियाँ पीठ पर रगडती मसलती ,नीचे की ओर ,
और थोड़ी देर में वो रस से भरे उभार पीठ से सरकते फिर सीधे नितंबों पर, साथ ही गीता ने लुंगी बनी साड़ी को जो बस उनकी देह के नीचे दबी कुचली फंसी थी उसे खींच कर दूर कर दिया।
निपल्स अब उनकी गांड के बीच में ,दरारों के बीच जैसे अपनी चूंची से उनकी गांड मार रही हो ,पूरी तेजी से।मस्ती के मारे उनकी हालत खराब हो रही थी।
ऐसा कभी भी नहीं हुआ था ,उनके साथ। कभी भी नहीं।
बीच बीच में कभी कभी उसे लगता है गीता नहीं , गुड्डी है , उसकी अपनी गुड्डी ,ये उभार रुई के फाहे से मुलायम , बड़े बड़े।
खूँटा लगता था मारे जोश के कहीं ,एकदम तन्नाया,
और गीता ने अचानक अपने दोनों हाथों से कमर के पास से पकड़ के ,
गीता की कोमल कोमल उँगलियाँ उसके तन्नाए औजार से छू गयीं ,इतना तगड़ा करेंट लगा की
और अब वो पीठ के बल गीता उसके ऊपर , दोनों लंबी टाँगे ,खुली हुयी जाँघे गीता उसके सीने के दोनों ओर घुटने के बल बैठी थी।
गीता ऑन टॉप , टॉपलेस।
लालटेन की हलकी हलकी रोशनी सीधे गीता के उभारों पर पड़ रही थी , बाकी का हिस्सा मखमली अँधेरे में डूबा हुआ था।
कड़े कड़े किशोर उभार गोरे गोरे दूध से छलछलाते, उनकी ललचायी निगाहें बार बार वहीँ , और उन्होंने हाथ बढाया ,
पर
गीता ने हाथ रोक लिया।
" नहीं भैया , नहीं तुम कुछ नहीं करोगे। छूना मना है /"
एक बार फिर हजार चांदी की घंटिया बज उठीं।
" देखो न भैया कैसे हैं मेरे ये , "
अपनी हथेली से दोनों गदराये जोबन को सहलाते ,दबाते उभारते उसने पूछा और अपने खड़े खड़े निपल्स को पहले तर्जनी से उसने फ्लिक किया थोड़ी देर ,फिर अंगूठे और मंझली ऊँगली के बीच दबाते ,मटर के दाने ऐसे कड़े कड़े निपल को रोल करते हुए गीता ने उसे उकसाया।
"बोलो न भैया , बोल न " फिर गीता ने उकसाया।
" बहुत मस्त ,खूब रसीली है तेरी चूंचियां मस्त है एकदम। " वो बोल पड़े।
और जोर से खिलखला पड़ी वो, और बोली
" सच में बहुत रस है तेरी बहना की चूंची में भइय्या , अभी चखाती हूँ इसका मजा। बस अभी , दबाना चूसना लेकिन ज़रा इसकी भी तो हाल चाल पूछ लूँ ,बहुत तड़प रहा है। इसकी भी तो मालिश कर दूँ न भैया। "
झुक के एक बार उनके होंठों पे गीता ने अपने जुबना रगड़ दिए और फिर मुड़ के सीधे खड़े खूंटे की ओर
कुतबमीनार भी मात था , इतना कस के खड़ा था।
झुक के खुले सुपाड़े को गीता ने बस अपने कड़े निपल से रगड़ दिया ,सीधे पी होल ( पेशाब के छेद ) पे।
" क्या मस्त लन्ड है भइय्या , खाली खाली भउजिये को मजा देते हो ,बिचारि बहन भूखी प्यासी तड़पती है कभी कभार उसको भी तो ,... मोटा कितना है ,भौजी को तो बहुत मजा आता होगा। '
गीता की गदराई रसीली चूंचियां कड़े बौराये सुपाड़े को रगड़ रही थीं और उसके मुलायम हाथ , एक हाथ से वो उसके बॉल्स सहला रही थी ,उसकी तर्जनी बार बार पिछवाड़े के छेद के बीच में रगड़ रही थी।
दूसरे हाथ की एक ऊँगली मोटे लन्ड के बेस से दबाते रगड़ते ,सुपाड़े तक , लेकिन सुपाड़े को छूने से पहले वो रुक गयी।
उसकी छुअन इतनी मस्त थी , इतने मजे की और तरह तरह से ,
कभी वो हलके हलके सहलाती , निपल से पेशाब के छेद में सुरसुरी कर देती तो कभी दोनों ताहों से जोर से मथानी की तरह उसे रगडती।
और कभी उसकी एक ऊँगली पिछवाड़े के छेद को छेडती ,गोल छेद के चारो और चक्कर काटती और अचानक गीता ने गचाक से अपनी मंझली ऊँगली में पेल दी।
मारे जोश के उन्होंने खुद ही कमर उचका दी।
एक ही झटके में आधी से ज्यादा ऊँगली अंदर थी और दूसरे हाथ से वो जोर जोर से मुठिया रही थी।
लन्ड की हालत खराब थी।
गीता एक बार फिर उनके मुंह के पास उठंगी बैठी थी।
क्यों भैया मजा आया न छुटकी बहिनिया के साथ ,अभी तो बस ,... "
उनकी निगाहें गीता के पेटीकोट पे अटकी थीं , कमर के नीचे बंधा ,जांघ तक चढ़ा।
और उन्हें देखते देख वो मुस्करा पड़ी ,
" सच में भैया बहुत नाइंसाफी है मैंने तो तेरा सब कुछ देख लिया ,छू लिया ,इतना मस्त मोटा और अपना , खजाना छुपा के बैठी हूँ। "
कुछ देर तक तो वो उनका चेहरा देखती रही फिर उकसाया
" अरे भैया देख क्या रहे हो खोल दो न अपने हाथ से बहन के पेटीकोट का नाड़ा "
उनके आँखों के सामने एक बार फिर गुड्डी का चेहरा घूम गया।
वो भी तो उन्हें ऐसे भैया बोलती थी ,ऐसे ही खूब प्यार से ,.. और आज कल तो वो कुरता शलवार ही पहनती है , शलवार का नाडा।
" शरमाते काहें हो ,भइय्या तुम सच में बहुत बुद्धू हो ,प्यारे वाले बुद्धू , अरे हर बहन यही चाहती है , इससे अच्छी बात क्या हो सकती है बहन के लिए की उसका भाई नाडा खोले , ,... खोलो न। "
और गीता ने खुद उसका हाथ पकड़ के अपने नाड़े पर रख दिया।
बस अपने आप उनके हाथ नाडा खोलने लगे , सरसरा के पेटीकोट नीचे ,
लेकिन मन उनका कहीं और , उस दिन जब वो मौका चूक गए थे।
शादी में , गुड्डी ने पहले उनसे केयरफ्री लाने को बोला था और जैसे ही वो निकले ,
ढेर सारी स्माइली के साथ गुड्डी का मेसेज आया ,"आल लाइन क्लीयर ,अब नहीं चहिये। आंटी जी चली गयीं। टाटा बाई बाई। मेरी छुट्टी खत्म " और साथ में हग की साइन भी।
और लौटते ही उसने सच में हग कर लिया था , उसके रूई के फाहे ऐसे उभार उनके सीने से रगड़ रहे थे ,कितने सिग्नल दिए थे गुड्डी ने।
शाम को लेडीज संगीत था , नो ब्वायज ,लेकिन बाकी लड़को के साथ वो भी छुप के , गुड्डी ने चनिया चोली पहन रखी थी और जैसे उन्हें दिखा दिखा के ,कूल्हे मटका के गा , नाच रही थी ,
" कुण्डी मत खड़काना राजा ,सीधे अंदर आना राजा। "
और जब वो बाहर निकली तो सीधे उन्ही से भिड़ गयी , चिढाते बोली ,बदमाश मुझे सब मालूम है तुम छिप छिप के देख रहे थे न , और उसकी नाक पकड़ के बोली
" बुद्दू ,कुण्डी मत खड़काना सीधे अंदर आना ,समझे। "
और रात में भी , बोली ,.. भैया आज ऊपर आना , ... लेकिन वो बुद्धू इत्ते इशारे भी नहीं समझे। उस रात अगर वो नाड़ा खोल देते ,
और फिर वो वापस आ गए ,गीता की आवाज ,
" भैय्या कैसा लगा बहन का खजाना। "
एकदम संतरे की रस भरी फांके , दोनों गुलाबी मखमली जाँघों के बीच चिपकी दबी।
लग रहा था बस रस अब छलका , तब छलका।
बहुत छोटी सी दरार , दोनों ओर खूब मांसल गद्देदार वो प्रेम केद्वार और चारो और ,काली नहीं
भूरी भूरी छोटी छोटी झांटे केसर क्यारी ऐसे जैसे किसी ने सजाने के लिए लगाई हो ,
जैसे उस प्रेम गली के बाहर वंदनवार हों ,
और अब गीता ने झुक के उनके चेहरे के एकदम पास , वो सिर्फ देख ही नहीं पा रहे थे ,बल्कि सूंघ भी सकते थे , ज़रा सा चेहरा उठा के चख भी सकते थे।
और उन्होंने जैसे ही चेहरा उठाने की कोशिश की , गीता ने प्यार से झिड़क दिया अपने दोनों हाथों से उन्हें वापस उसी जगह ,
" नहीं नहीं भैया सिर्फ देखो न अपनी बहना का खजाना ,बोल न भैय्या कैसे है। "
और वो ,... उनके होंठ प्यासे होंठ तड़प रहे थे। बस लार टपका रहे थे ,किसी तरह अपने को रोक पा रहे थे।
"बहुत मस्त कितना रस है , क्या खूश्बु ,"
और जोर से उन्होंने गहरी सांस लेकर उस महक का मजा लेने की कोशिश की।
गीता की लंबी लंबी उंगलिया , उन मांसल भगोष्ठ को रगड़ रही थी मसल रही थी। वो लम्बी गोरी पतली किशोर उँगलियाँ अपने बीच दबाकर अब कभी हलके तो कभी जोर से चूत की दोनों फांकों को,
रस की एक बूँद छलक आयी।
गीता ने उस खजाने को थोड़ा और उसके चेहरे के पास कर दिया , बस वो जीभ निकाल कर चाट सकते थे।
और और और गीता ने उन्ही रस से गीली उँगलियों से अपने दोनों गुलाबी निचले होंठों को पूरी ताकत से फैलाया और अब,
अंदर की गुलाबी प्रेम गली , एकदम साफ़ साफ़ दिख रही थी।
गीता ने अपना अंगूठा अब उभरे मस्ताए साफ़ साफ़ दिख रहे कड़े क्लीट पर रखा और उन्हें दिखा के हलके हलके रगड़ने लगी ,
साथ में वो अब सिसक रही थी ,मस्त हो रही थी ,
ओह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह इहह्ह्ह्ह ओह्ह्ह
रस की ढेर सारी बूंदे उसकी सहेली के बाहर चुहचुहा आयी थीं।
बहुत मुश्किल हो रहा था उनको अपने को रोकना ,
उनकी निगाहें बस गीता की रसीली बुर से चिपकी थीं। और गीता ने हलके हलके अपनी तर्जनी की टिप ,सिर्फ टिप अंदर घुसेड़ी और जोर की चीख भरी।
कुछ देर तक वो ऊँगली की टिप हलके हलके गोल गोल घुमाती रही और जब ऊँगली बाहर निकली तो उसकी टिप रस से चमक रही थी।
उनके प्यासे दहकते होंठों पर वो ऊँगली आके टिक गयी और सब रस लथेड़ दिया।
उनकी जीभ ने बाहर निकल कर सब कुछ चाट लिया ,
" बहुत मन कर रहा है भैया लो चाट लो " वो हंस के बोली
और खुद ही झुक के उसने अपनी बुर , उनके होंठों पर रगड़ दी।
और वो कौन होते थे अपनी प्यारी प्यारी बहना को मना करने वाले।
हलके से पहले उनकी जीभ की नोक ने गीता की बुर पर चुहचुहाती रस की बूंदो को चाट लिया , फिर जोर से सपड़ सपड़ , ऊपर से नीचे तक
कुछ ही देर में वो संतरे की रसीली फांके उनके होंठों के बीच थी और वो कस कस के चूस चुभला रहे थे।
गीता की उत्तेजित क्लीट इनके नाक के पास थी लेकिन वो थोड़ा सा सरकी और सीधे होंठ पे ,
फिर क्या ,उनके होंठ ये दावत कैसे छोड़ देते। जोर जोर से कभी जीभ से उसकी भगनासा सहलाते तो कभी चूस लेते।
" हाँ भैया ,हाँ ... मजा आ रहा है न बहन की बुरिया चूसने में ,चूस और चूस। ओह्ह इहह्ह आहहहह उह्ह्ह " गीता सिसक रही थी ,चूतड़ पटक रही थी।
लेकिन कुछ देर में बोली ,
" भैय्या तू अपनी बहन के बुर का मजा लो तो ज़रा हमहुँ अपने भैय्या के मस्त लन्ड का मजा ले लें , इतना मस्त गन्ना है ,बिना चूसे थोड़ी छोडूंगी। "
और अगले पल गीता के होंठ उनके तन्नाए ,खुले सुपाड़े पर , चाटते चूमते।
कुछ देर वो जीभ से सुपाड़े को लिक करती रही , फिर जीभ की नोक पेशाब वाले छेद में डालकर वो शरारती सुरसुरी करने लगी।
वो कमर उचका रहे थे और जवाब में एक झटके में गीता ने उनका ,
लीची ऐसा मोटा सुपाड़ा अपने रसीले होंठों के बीच गप्प कर लिया और लगी चूसने ,चुभलाने।
एक पल के लिए उन्हें लगा की गुड्डी , उनकी ममेरी बहन अपने कोमल कोमल होंठों के बीच ,उनका रसीला सुपाड़ा ,
सोच सोच कर उनकी मस्ती सौ गुना हो रही थी।
तभी ,
चररर चररर , आँगन से पीछे वाले दरवाजे के खुलने की आवाज आयी।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: जोरू का गुलाम या जे के जी
aaj bas itna hi
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!