एक तो मेरा हाहाकारी जिस्म । दूसरे सोल्जर पर शराब का नशा और तीसरे पाउडर का प्रभाव ।
तीनों ने मिलकर सोल्जर की हालत खराब कर दी थी ।
"प.. .प्लीज़ रीमा! अब और नहीं सहा जाता ।"
"मगर तुम भी तो अपने कपड़े उतारो । तभी तो बात आगे हैं बढेगी ।"
भेरी तरफ से हरी झण्डी मिलते ही उसने उठकर आनन-फानन में अपने कपड़े उतार फेके ।
अब वह भी वेलिवास था ।
मैं उसकी बगल में जा बैठी ।
सोल्जर का ध्यान किसी भी तरफ नहीं था । वह ती मुझमें समाने के लिये बेताब हुआ जा रहा था । मैं देख चुकी थी कि उसकी पैंट की जेब में रिवाल्वर मौजूद था । मैंने जेब से रिवाल्वर निकालकर बड़ी सफाई से तकिये के नीचे सरका दिया ।
अब खेल की शुरुआत होनी थी ।
और वो खेल वेड पर खेला जाने वाला था ।
सहसा ।
सोल्जर ने मुझे पीछे की तरफ धकेल दिया । मैं पीठ के वल बेड पर गिरी । वह मेरे जिस्म को देखकर पागल-सा हुआ जा रहा था । उसने मेरे उपर झुककर मेरी नाभि पर अपने होंठ रख दिये । दूसरे क्षण उसके होंठ रोम-रोम में गुदगुदाहट भरते हुए नीचे की तरफ सरकने लगे ।
मैंने वॉल क्लाक की तरफ़ देखा ( दस बज रहे थे ।
मार्शल क्रिसी भी क्षण यहां पहुंच सकता था ।
फिर एक पल भी नहीं गुजरा।
तभी भड़ाक की तीव्र आवाज के साथ दरवाजा खुला।
सोल्जर चौंका ।
उसने हढ़बड़ाकर अपना चेहरा उठाया ।
साथ ही उसकी निगाहें दरवाजे की तरफ उठ गईं ।
मेरी निगाह भी दरवाजे की तरफ घूम गई थीं ।
दरवाजे कै र्बीचों बीच मार्शल ख़ड़ा था । भीतर का दृश्य देखते ही उसका चेहरा सुर्ख पड़ता चला गया था, मानो जिस्म का सारा खून सिमटकर पर एकत्र हो गया हो । आँखों से अंगारे बरस उठे थे । जबड़े एक-दूसरे पर जमकर सख्ती से कस गये थे ।
वो मेरी आशा के अनुरूप हर रात की तरह आज भी शराब में टुन्न होकर आया था ।
मैंने मांर्शले का उग्र रूप देखा तो मैं उछलकर बेड पर बैठ गई ।
" 'हरामजादे' !" मार्शल के होठों से भेडिये जैसी गुर्राहट निकली- ! तेरी इतनी हिम्मत कि तू रीमा भारती को हाथ लगाये? ऐसा करते वत्त तुझे मेरा खौफ़ नहीं आया सुअर के बच्चे ।"
" आप मुझ पर खामखा खफा हो रहे हैं सर ।" सोल्जर बेखौफ स्वर में बोला-" अगर में रीमा के साथ मौज-मस्ती कर लूगा तो आपका क्या विगड जायेगा? ये आपकी प्रॉपर्टी… तो नहीं है?"
"जुबान चलाता है कुत्ते ।" मार्शल आगे बढ़ता हुआ गला फाड़कर चिल्लाया----" तू अच्छी तरह से जानता है कि जिस लड़की पर मैं हाथ रख देता हूं उसकी तरफ कोई आँख उठाकर नहीं देखता, अगर कोई ऐसी गलती करता है तो मैं उसकी आखे नोंच लेता हूं और तूने तो बहुत भयंकर भूल की है ।"
मै 'मन'-मन खुश थी ।
मुझे अपनी योजना कामयाब होती लग रही थी ।
"आप मुझसे ओहदे में ब्रड़े हैं मार्शल साहब, लेकिन इसका मतलब ये नहीं हैं कि आप मेरे साथ इस तरह से पेश आयें । आखिर मेरी भी कोई इज्जत है ।" सोल्जर का स्वर जोश से भर उठा ।
" और रही बात रीमा की तो मैं फिर कहता हूँ ये आपकी जागीर नहीं है । ऐसी चीजें मिल वाटकर इस्तेमाल की जाती हैं ।"
" तुझमें इतना हौंसला कहां से आ गया हरामी, जो तू मुझसे इस तरह की बातें कर सके । मैं तेरी बोटी-बोटी करके कुत्तों के सामने डाल दूंगा ।"
वह वेड के करीब पचकर ठिठ्कता हुआ बोला ।
"मैंने भी हाथों में चुड्रियां नहो पहन रखी हैं मार्शल साब । अगर आने मुझ पर हाथ उठाया तो मैं भूल जाऊंगा कि आप मेरे चीफ हैं । बेहतर है कि आप यहाँ से चले जाइये ।"
मार्शल के चेहरे पर हैरत के भाव थिरके । कदाचित् उसे सोल्जर से ऐसे शब्दों की उम्मीद नहीं थी । सोल्जर तो मानो मुझे पाने के लिये मरा जा रहा था । रही सहीं कसर उस पाउडर ने कर दी थी । बह गया था कि इस समय सेना का सर्वोच्च कमाण्डर उसके खड़ा था ।
"ऐसा लगता है कि तेरा बुरा वक्त आ गया है, अगर अपनी जिन्दगी चाहता है तो फौरन यहां से भाग जा, वरना मैं मौत बनकर तुझ पर टूट पडूंगा ।"
" धमकी मत दो मार्शल । में तुम्हारी धमकी से डंरने वाला नहीं हू ।"
"तो तू यहां से नहीं जायेगा?"
"नहीं ।"
इस घडी दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे नजर आ रहे थे और इसका कारण मैं थी ।
तो जो मेरा जाखिरी हथियार है । मेरा रूप, योबन, जिस्म की हरारत । उसने मानो उन दोनों की बुद्धि को कुन्ठित करके रख दिया था । अपहरण कर लिया था उसका।
मैं खामोश बैठी सब सुन रही थी । अब मुझे मार्शल के अगले कदम का इन्तजार था ।
"मेरे रहमो-करम पर पलने वाले कुत्ते मुझे ही आंखें दिखा रहा है?" मार्शल फुफ़क्रारा-"मैँ ऐसी मौत मारूगां कि तेरी रूह तक कांप उठेगी ।"
"कोशिश करके देख तो मार्शलों शायद कामयाब हो जाओ ।"
मार्शल का गुस्सा आसमान छू गया । बह सोल्जर पर झपटा ।
सोल्जर भी मानो पागल हुआ जा रहा था । वह बला की फुर्ती से बेड से नीचे उत्तरा । साथ ही उसने अपने सिर की भयानक टक्कर मार्शल के चेहरे पर जड़ दी ।
मार्शल लड़खड़ाया ।
तभी सोल्जर ने उसकी कनपटी पर जबरदस्ती घूंसा जढ़ दिया । इससे पहले कि मार्शल सम्भल पाता, उसने पुनः घूंसा चला दिया ।
इस बार घूसां उसके जबड़े पर पड़ा । उसके होंठ फट गये । खून की पतली धार बह निकली ।
मैं दिलचस्प नजरों से सब देख रहीँ थी ।
"'मैँ तुझे छोडूंग़ा नहीं ।" मार्शल दहाड़ा-"तूने मेरे ऊपर हाथ उठाया ।" कहने के साथ ही उसने अपने सिर की भयानक टक्कर सोल्जर के सीने पर जड़ दी ।
सोल्जर लड़खड़ाकर दो कदम पीछे हट गया ।
मार्शल को मौका मिल गया । उसने स्प्रिंग लगे खिलौने की तंरह उछलकर सोल्जर के सीने पर फ्लाइंग किक जड़ दी । सोल्जर -पीछे वेड से टकराया।
वह उठा ।
तब तक हवा का झोंका बना मार्शल उसके सिर पर पहुचे चुका था । सोल्जर ने घूंसा चलाया । किन्तु मार्शल ने बीच में ही उसका -हाथ थामकर उसके पेट में मुक्क्रा जड़ दिया ।
सोल्जर कराहकर दुहरा होता चला गया ।
मार्शल का घुटना तीव्रता के साथ उसकी ठोड्री पर पड़ा । वह पीछे की तरफ उलट गया । हलक से मार्मतक चीख उबल पडी थी ।
मार्शल उस पर छलांग लगाने ही जा रहा था कि सोल्जर ने अपना पैर उठा दिया । पेर से टकराकर वह गिरा । फिर इससे पहले कि बह संभल पाता, सोल्जर ने उठकर उसकी पसलियों पर जबरदस्त ठोकर जड़ दी ।
पीड़ा से बिलबिला उठा मार्शल ।
निःसन्देह दोनों में से कोई कम नहीं था । साथ ही उनका ये मुकाबला पल-पल खूनी रूप अख्तियार करता जा रहा था ।
मार्शल उठकर खड़ा हो चुका था । उसने उछलकर उसके गुप्तांग पर ठोकर जड़ दी । वह पीड़ा से चीख उठा । उसके चेहरे पर पीडा की असंख्य रेखाएं खिंचती चली गई और वह दोनों हाथों से. .जांघों का जोड़ दबाकर झुकता चला गया ।
मगर ये जरुर कहना पड़ेगा कि दिलेर किस्म का इन्सान था सोल्जर । उसने इस हालत में भी अपने हौसले नहीं छोड़े थे । उसने मार्शल की एक टांग-पकड़कर जोरों का झटका दिया ।
मार्शल फिरकनी की तरह नाचकर फर्श पर गिरा ।
इधर सोल्जर उछलकर खडा हुजा और जैसे ही मारूशल ने उठने का प्रयास किया तो वह उस पर जम्प लगाकर उसे बाजुओं में समेटे दूर तक फिसलता चला गया, फिर उसने मार्शल को पैरों पर रखकर दूर उछाल दिया था ।
वह फर्श से टकराया ।
"मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं मार्शल ।" सोल्जर कहता हुआ अपने कपडों की तरफ झपटा ।
उसका इरादा अपनी पैन्ट की जेब से रिवाल्वर निकालने का था, मगर रिवाल्वर तो मैंने पहले ही पार कर दिया था । मैं जानती थी कि ऐसी स्तिति आ सकती है ।
सोल्जर ने पैन्ट उठाकर अपनी जेब में हाथ डाला ।
धक्क से रह गया वह ।
जेब से रिवाल्वर गायब था । उसके चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे । जाहिर है कि वह समझ नहीं पाया होगा कि रिवाल्वर कहां गायब हो गया था?
वह पैन्ट रखकर फुर्ती से फिरकनी की तरह मार्शल की तरफ़ घूमा ।
उधर मार्शल अपनी जेब से रिवाल्वर निकाल चुका था और सोल्जर पर तानता हुआ गुर्रा उठा-"रिवाल्वर निकाल रहा था हरामजादे! चल, निकाल रिवाल्वर ।"
सोल्जर बेबसी भरे अन्दाज में दांत पीसकर रह गया ।
"मरने के लिये तैयार हो जा ।" वह रिवाल्वर के ट्रेगर पर अपनी ऊंगली सख्त करता हुआ भयानक अन्दाज में गुर्राया-"ओर घबराना नहीं । मैं गोली ऐसी जगह मारूगाकि मरते वत्त तुझे जरा भी तकलीफ नहीं होगी । आखिर मेरा वफादार कुत्ता रहा है मगर क्या करूं? कुत्ता जब पागल हो तो उसे गोली मारनी ही पडती है ।"
साथ ही मार्शल ने ट्रेगर दबा दिया ।
धांय! !
हवा में सनसनाती गोली सोल्जर की खोपडी में धंसी । उसकी खोपडी से खून का फव्वारा फूट निकला ।
मार्शल ने पुन: ट्रेगर दबा दिया ।
इस बार गोली सोज्जर के माथे के ठीक बीचों-बीच धंसी । वह फिरकनी की तरह घूमकर कटे पेड़ की तरह धड़ाम् से फर्श पर गिरा । गिरते ही वह स्थिर हो गया । जाहिर था कि यह लाश में तब्दील हो चुका था ।
वही हुआ जो मैं चाहती थी'। . . . . मेरी स्कीम कामयाब हुई थी ।
मैंने अपने दिमाग के वल पर सोल्जर को मार्शल के हाथों ही अपने रास्ते-से हटा द्रिया था ।
मै चुप रही ।
"टामसन ।" मार्शल ने दरवाजे की तरफ मुँह करके आवाज लगाई ।
टामसन नाम का कमाण्डो भीतर दाखिल हुआ ।
"इस हरामजादे की लाश उठाकर गटर में फेंक दो ।" मार्शल ने हुक्म दनदनाया ।
टामसन ने आगे बढकर सोल्जर की लाश उठाकर रेत के बोरे की तरह कधे पर लादी ओर दरवाजे की तरफ बढता चला गया ।
उसके चेहरे पर किसी तरह का कोई भाव नहीं था ।
जब टामसन बाहर निकल गया तो मार्शल ने आगे बढकर दरवाजा बन्द किया और पलटकर बेड की तरफ बढता चला गया ।
मेरा कलेजा लरज उठा ।
अब मेरी शामत आने वाली थी । मैं उस शामत को सहने के लिये अपने आपको मानसिक रूप से तैयार करने लगी ।
इतना सब होने के बावजूद मार्शल मेरे साथ वेड का खेल खेलने के पूरे मूड में लग रहा था ।
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
दरवाजे पर दस्तक पडी । मेरी नींद में खलल पड़ गया था । मैंने फटाक से आखें खोलकर वॉल फ्लॉक में वक्त देखा ।
सुबह के आठ बज रहे थे ।
मै… झुझला उठी ।
मेरा झुंझला उठना स्वाभाविक भी था ।
मैं दस बजे से पहले उठने वाली कहां हू!
"कौन !" दरवाजे की तरफ मुंह करके हाक लगाई ।
"सारा ।"
"क्या बात है?"
"ब्रेकफास्ट लाई हूं ।"
मैंने उठकर दरबाज़ा खोला ।
सारा हाथों में ब्रेकफास्ट की ट्रे सम्भाले भीतर दाखिल हुई ।।
सुबह के आठ बज रहे थे ।
मै… झुझला उठी ।
मेरा झुंझला उठना स्वाभाविक भी था ।
मैं दस बजे से पहले उठने वाली कहां हू!
"कौन !" दरवाजे की तरफ मुंह करके हाक लगाई ।
"सारा ।"
"क्या बात है?"
"ब्रेकफास्ट लाई हूं ।"
मैंने उठकर दरबाज़ा खोला ।
सारा हाथों में ब्रेकफास्ट की ट्रे सम्भाले भीतर दाखिल हुई ।।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
मैंने दरवाजा बन्द किया और अटैच्ड बाथरूम में घुस गई । दस मिनट बाद मैं फ्रेश होकर बाहर निकली, फिर बेड की तरफ बढ़ गई ।
सारा मेज पर ब्रेकफास्ट लगा चुकी थी ।
मैं टेबल के सामने कुर्सी पर बैठती हौई बोली----"बैठोसारा ।"
" म . .मेँ ऐसे ठीक हु मेडम ।"
" क्यों ?"
"आपने सोल्जर का व्यवहार तो देखा था । वह मुझसे कितनी बुरी तरह से पेश आया था ?" वह बोली--" वह इस तरफ आ धमका तो मुझे डॉट पिंलायेगा । बड़ा ही कमीना इन्सान है ।"
सारा की बात से साफ था कि कल रात इस कमरे में जो कुछ हुआ था, उसकी सारा को भनक तक नहीं थीं ।
"अब तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा सारा । तुम बैठो तो सही ।" मैं टोस्ट उठाकर चबाती बोली ।
लह सिमटी-सी कुर्सी पर बैठ गई ।
"तुम्हें सोल्जर के बोरे कुछ मालूम नहीं है क्या?"
"नहीं तो ।" उसकी सवालिया निगाहें मेरे देने पर फिक्स होकर रह गईं-"बात क्या है?"
"इस इमारत में इतनी यही घटना घट गई और तुम्हें मालूम ही नहीं है?"
"मुझे कुछ मालूम नहीं ।" सारा के चेहरे पर उत्सुकता के भाव उभरे-"आखिर हुआ क्या ?"
"तुम्हारा एक दुश्मन खत्म हो गया है ।" मैंने जैसे धमाका किया-"सोज्जर को मार्शल ने गोली मार दी है ।"
सारा उछल पडी ।
यह आश्चर्य और अविश्वास भरी निगाहों से मेरा चेहरा देखती रह गई । उसे तो मानो मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ था ।
"य. . .ये आप क्या कह रही हैं?" एक पल बाद सारा किसी तरह से कहने में कामयाब हुई थी ।
"मैं सच कह रही हूँ सारा । कल रात दस बजे के आसपास मार्शले ने इसी कमरे में सोल्जर को गोली मारी थी, फिर उसकी लाश गटर में फिकवा दी गई थी ।" मैंने कॉफी का घूट भरने के बाद कहा ।
"ल. . . लेकिन सोल्जर तो मार्शल का दायां हाथ था । वह उस पर आँखे मूंदकर विश्वास करता था । आखिर उसे सोल्जर को गोली मारने की क्या जरूरत आ पडी थी?" चकराई-सी सारा ने पूछा ।
"मार्शल ने मेरी वजह से सोल्जर को गोली मारी है ।"
=========
"अ. ..आपकी वजह से?"
"मैं कुछ समझी नहीं । साफ-साफ बताइये ।" मैंने सारा क्रो पूरा किस्सा बता दिया । वो सब कुछ. जो मेरे कमरे में हुआ था और अन्त में बोली-"सोल्जर को अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा था ।"
"अब समझी ।" . मैंने कॉफी का आखिरी घूंट भरकर खाली कप ट्रे में रखकर कहा-" अब तुम जल्दी ही इस कैद से आजाद-हो जाओगी सारा ।"
"जब तक वो दरिन्दा मार्शले जिन्दा है, तब तक मेरा इस कैद से आजाद होना असम्भव है ।"
"घबराओ मत । मार्शले के ऊपर पहुंचने का वक्त करीब आ चुका है ।"
"वो कैसे?" उसका चेहरा चमक उठा ।
"इस बारे में मैं खुद नहीं जानती ।" मैंने झूठ बोला ।
"आप मुझसे जरूर कुछ छिपा रहीँ हैं ।" इससे पहले कि मैं कुछ का पाती, मार्शल का टामसन नाम का कमाण्डो तीर की तरह भीतर दाखिल हुआ ।
मैंने होंठ भौंच लिये । सारा जल्दी-जल्दी मेज पर रखा सामान समेटने लगी ।
"मेरे साथ चलो मेडम ।" टामसन मेरे करीब पहुंचकर बोला ।
"कहा ?"
"मार्शलं साहब ने आपको फौन बुलाया है ।"
कुछ सोचकर मैंने कहा-"तुम चलो, मैं आती हूं।"
"मार्शल साहब ने कहा है कि मैं आपको अपने साथ लेकर ही जाऊं ।" वह बोला ।
"चलो ।" मैं एक झटके से कुर्सी छोड़ती हुई बोली ।
टामसन पलटकर दरवाजे की तरफ़ बढ गया । उसके पीछे वढ़ते हुए मैं समझ नहीं पा रही थी कि मार्शल को अचानक मेरी क्या जरुरत आ पडी थी?
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कमाण्डो मुझे लेकर उसी हॉल में पहुचा जहाँ मार्शल से मेरी पहली मुलाकात हुई थी । मार्शल आबनूस की लम्बी मेज के पीछे कुर्सी पर मौजूद था । उसके चेहरे पर गम्भीरता कुण्डली मारे बैठी थी ।
वह किसी भारी उलझन में दिखाई दे रहा था । "यस मार्शल साहव ।" मैं मेज के करीब पहुंचकर बोली ।
"बैठो ।" मैंने उसके सामने कुर्सी सम्भाल ली । साथ ही मेरी सवालिया निगाहें मार्शल के चेहरे पर जा टिकी ! मार्शल खामोश रहा ।
जब उसकी खामोशी मुझे खलने लगी तो मैं बोल उठी-"आपने मुझे किसलिये बुलाया मार्शल साहब?"
"मैं एक भारी उलझन में र्फस गया हु रीमा ! इसलिये मैंने तुम्हें बुलवाया है ।"
"आप-ऐसी कौनन्सी उलझन में फंस गये हैं?"
"जिस जेल में क्लाइव को कैद करके रखा गया है । अब से कुछ देर पहले वहां से एक अधिकारी का मैसेज आया है कि क्लाइव बुरी तरह से टॉर्चर क्रिया गया है, लेकिन वो बराबर अपने मुंह पर ताला डाले हुए है, जबकि हमारे लिये उसका मुंह खुलबाना जरूरी है ।"
मेरा अनुमान ठीक निकला था ।
" आप इतनी छोटी-सी बात को लेकर परेशान हैं मिस्टर मार्शल "
"तुम इसे छोटी बात कह रही हो । ये मेरे लिये बहुत बडी परेशानी का सबब है, अगर क्लाइव ने अपना मुंह नहीं खोला तो` हमारे लिये बहुत बड़ी प्रॉब्लम खडी हो जायेगी । क्लाइव का मुंह खुलवाना जरूरी है, ताकि हमें सर एडलॉंफ का पता मालूम हो । जब तक वो हमारे कब्जे में नहीं आ जाता, तब तक हमारे सिर पर एक तलबार-सी लटकी रहेगी ।"
" हूं ।! "
" इतनी यातनाएं सहने के बाद तो बेजुबान पत्थर भी मुंह खोल देते हैं, मगर क्लाइव तो एक ही जवाब पर अड़ा हुआ है कि उसे सर एडलॉफ के बारे में कुछ मालूम नहीं है । मेरा दिल तो करता है कि हरामजादे का किस्सा ही खत्म कर दूं ।" वह अपनी हथेली पर मुक्का मारता हुआ बेबसी भरे अंदाज मे बोला-"मगर मैं वो भी नहीं कर सकता । क्योंकि उसे सर एडलॉफ के बारे में मालूम हैं !"
इस वत्त मेरे भीतर का जासूस सजग था ।
मेरा मस्तिष्क तेजी से काम कर रहा था ।
"जिस तरह से क्लाइव को यातनाएं दी गई हैं ।" वह बैचेनी से पहलू बदलता हुआ गम्भीर स्वर में बोला---और वह रटा रटाया एक ही राग अलापे जा रहा है । उससे तो यहीं लगता है कि क्लाइव मरता पर जायेगा, मगर अपने मुंह पर पडा ताला नहीं खोलेगा ।"
"मेरे लिये क्या आदेश हैं मार्शल साहब?"
"तुम आई०एस०सी० की नम्बर वन एजेन्ट रह चुकी हो रीमा । तुम्हारा दिमाग कम्प्यूटर से भी ज्यादा तेज चलता है । एक-से-एक खत्तरनाक मुजरिमो से तुम्हारा वास्ता पढ़ चुका है । अब तुम्ही क्लाइव का मुंह खुलवाने का कोई रास्ता सोचो ।"
मैं मन ही मन खुशी से उछल पडी ।
मेरे मस्तिष्क के सारे बल्ब एक साथ रोशन हो गये । मार्शल ने मेरी बहुत बडी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी थी ।
मैंने अपने चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं उभरने दिया । मैं पहले से ज्यादा गम्भीर नजर आने लगी थी ।
"आप फिक्र न करें मार्शल साहब ! आप अपने दिमाग से सारी चिन्ता निकाल दीजिये ।" एक पल ठहरकर मैंने कहा-"आप मुझे क्लाइव के पास ले चलिये । उसका मुंह खुलवाने की जिम्मेदारी मेरी है । क्लाइव तो है क्या चीज ? उसके तो फरिश्ते भी मुंह खोलने पर मज़बूर हो जायेंगे ।"
'"त. . .तुम उसका मुह खुलवाने में कामयाब हो जाओगी ।"
"क्यों नहीं?" मैंने शांत स्वर में उत्तर दिया…"मिशंस के दोरान मेरा वास्ता बड़े-बड़े सूरमाओं से पड़ चुका है मार्शल साहब । जिनके बारे में कहा जाता था कि वे मरते-मर जायेंगे, लेकिन अपना मुंह नहीं खोलेंगे । वे मेरे सामने टेपरिकार्द्ध बनने पर मजबूर हो गये । आप मुझे एक मौका दीजिये है यकीन कीजिये, आपकी सारी समस्या का समाधान हो जायेगा ।"
"ठीक है रीमा ।" मार्शल ने काम' 'मैं तुम्हें मौका देता हूँ ।"
मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था । मै तो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थी और वो मौका खुद मार्शल ने मुझे दे दिया था ।
"क्लाइव को किस जेल में रखा गया है !" हालांकि मुझे मालूम था । डगलस के बारे में मुझे बरनाड नाम का कमाण्डर बुटैल जेल की खासियत बता चुका था, फिर भी मैंने पूछ लिया था ।
"क्लाइब को कौंनन्सी जेल में रखा गया है?"
"उसे बुटैल जेल में रखा गया है ।"
"फिर देर किस बात की हे? मेरी रवानगी का बन्दोबस्त करवाइयेगा, क्योंकि ऐसे कामों में देर करना उचित नहीं होता है ।"
"वहां अकेली नहीं जाओगी रीमा । मैं तुम्हारे साथ चलूगा ।" मार्शल ने कहा-"मैं अपने कानों से क्लाइव के मुंह से सव कुछ सुनना चहाता हूं।"
सारा मेज पर ब्रेकफास्ट लगा चुकी थी ।
मैं टेबल के सामने कुर्सी पर बैठती हौई बोली----"बैठोसारा ।"
" म . .मेँ ऐसे ठीक हु मेडम ।"
" क्यों ?"
"आपने सोल्जर का व्यवहार तो देखा था । वह मुझसे कितनी बुरी तरह से पेश आया था ?" वह बोली--" वह इस तरफ आ धमका तो मुझे डॉट पिंलायेगा । बड़ा ही कमीना इन्सान है ।"
सारा की बात से साफ था कि कल रात इस कमरे में जो कुछ हुआ था, उसकी सारा को भनक तक नहीं थीं ।
"अब तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा सारा । तुम बैठो तो सही ।" मैं टोस्ट उठाकर चबाती बोली ।
लह सिमटी-सी कुर्सी पर बैठ गई ।
"तुम्हें सोल्जर के बोरे कुछ मालूम नहीं है क्या?"
"नहीं तो ।" उसकी सवालिया निगाहें मेरे देने पर फिक्स होकर रह गईं-"बात क्या है?"
"इस इमारत में इतनी यही घटना घट गई और तुम्हें मालूम ही नहीं है?"
"मुझे कुछ मालूम नहीं ।" सारा के चेहरे पर उत्सुकता के भाव उभरे-"आखिर हुआ क्या ?"
"तुम्हारा एक दुश्मन खत्म हो गया है ।" मैंने जैसे धमाका किया-"सोज्जर को मार्शल ने गोली मार दी है ।"
सारा उछल पडी ।
यह आश्चर्य और अविश्वास भरी निगाहों से मेरा चेहरा देखती रह गई । उसे तो मानो मेरी बात पर विश्वास ही नहीं हुआ था ।
"य. . .ये आप क्या कह रही हैं?" एक पल बाद सारा किसी तरह से कहने में कामयाब हुई थी ।
"मैं सच कह रही हूँ सारा । कल रात दस बजे के आसपास मार्शले ने इसी कमरे में सोल्जर को गोली मारी थी, फिर उसकी लाश गटर में फिकवा दी गई थी ।" मैंने कॉफी का घूट भरने के बाद कहा ।
"ल. . . लेकिन सोल्जर तो मार्शल का दायां हाथ था । वह उस पर आँखे मूंदकर विश्वास करता था । आखिर उसे सोल्जर को गोली मारने की क्या जरूरत आ पडी थी?" चकराई-सी सारा ने पूछा ।
"मार्शल ने मेरी वजह से सोल्जर को गोली मारी है ।"
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"अ. ..आपकी वजह से?"
"मैं कुछ समझी नहीं । साफ-साफ बताइये ।" मैंने सारा क्रो पूरा किस्सा बता दिया । वो सब कुछ. जो मेरे कमरे में हुआ था और अन्त में बोली-"सोल्जर को अपनी गलती का खामियाजा भुगतना पड़ा था ।"
"अब समझी ।" . मैंने कॉफी का आखिरी घूंट भरकर खाली कप ट्रे में रखकर कहा-" अब तुम जल्दी ही इस कैद से आजाद-हो जाओगी सारा ।"
"जब तक वो दरिन्दा मार्शले जिन्दा है, तब तक मेरा इस कैद से आजाद होना असम्भव है ।"
"घबराओ मत । मार्शले के ऊपर पहुंचने का वक्त करीब आ चुका है ।"
"वो कैसे?" उसका चेहरा चमक उठा ।
"इस बारे में मैं खुद नहीं जानती ।" मैंने झूठ बोला ।
"आप मुझसे जरूर कुछ छिपा रहीँ हैं ।" इससे पहले कि मैं कुछ का पाती, मार्शल का टामसन नाम का कमाण्डो तीर की तरह भीतर दाखिल हुआ ।
मैंने होंठ भौंच लिये । सारा जल्दी-जल्दी मेज पर रखा सामान समेटने लगी ।
"मेरे साथ चलो मेडम ।" टामसन मेरे करीब पहुंचकर बोला ।
"कहा ?"
"मार्शलं साहब ने आपको फौन बुलाया है ।"
कुछ सोचकर मैंने कहा-"तुम चलो, मैं आती हूं।"
"मार्शल साहब ने कहा है कि मैं आपको अपने साथ लेकर ही जाऊं ।" वह बोला ।
"चलो ।" मैं एक झटके से कुर्सी छोड़ती हुई बोली ।
टामसन पलटकर दरवाजे की तरफ़ बढ गया । उसके पीछे वढ़ते हुए मैं समझ नहीं पा रही थी कि मार्शल को अचानक मेरी क्या जरुरत आ पडी थी?
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कमाण्डो मुझे लेकर उसी हॉल में पहुचा जहाँ मार्शल से मेरी पहली मुलाकात हुई थी । मार्शल आबनूस की लम्बी मेज के पीछे कुर्सी पर मौजूद था । उसके चेहरे पर गम्भीरता कुण्डली मारे बैठी थी ।
वह किसी भारी उलझन में दिखाई दे रहा था । "यस मार्शल साहव ।" मैं मेज के करीब पहुंचकर बोली ।
"बैठो ।" मैंने उसके सामने कुर्सी सम्भाल ली । साथ ही मेरी सवालिया निगाहें मार्शल के चेहरे पर जा टिकी ! मार्शल खामोश रहा ।
जब उसकी खामोशी मुझे खलने लगी तो मैं बोल उठी-"आपने मुझे किसलिये बुलाया मार्शल साहब?"
"मैं एक भारी उलझन में र्फस गया हु रीमा ! इसलिये मैंने तुम्हें बुलवाया है ।"
"आप-ऐसी कौनन्सी उलझन में फंस गये हैं?"
"जिस जेल में क्लाइव को कैद करके रखा गया है । अब से कुछ देर पहले वहां से एक अधिकारी का मैसेज आया है कि क्लाइव बुरी तरह से टॉर्चर क्रिया गया है, लेकिन वो बराबर अपने मुंह पर ताला डाले हुए है, जबकि हमारे लिये उसका मुंह खुलबाना जरूरी है ।"
मेरा अनुमान ठीक निकला था ।
" आप इतनी छोटी-सी बात को लेकर परेशान हैं मिस्टर मार्शल "
"तुम इसे छोटी बात कह रही हो । ये मेरे लिये बहुत बडी परेशानी का सबब है, अगर क्लाइव ने अपना मुंह नहीं खोला तो` हमारे लिये बहुत बड़ी प्रॉब्लम खडी हो जायेगी । क्लाइव का मुंह खुलवाना जरूरी है, ताकि हमें सर एडलॉंफ का पता मालूम हो । जब तक वो हमारे कब्जे में नहीं आ जाता, तब तक हमारे सिर पर एक तलबार-सी लटकी रहेगी ।"
" हूं ।! "
" इतनी यातनाएं सहने के बाद तो बेजुबान पत्थर भी मुंह खोल देते हैं, मगर क्लाइव तो एक ही जवाब पर अड़ा हुआ है कि उसे सर एडलॉफ के बारे में कुछ मालूम नहीं है । मेरा दिल तो करता है कि हरामजादे का किस्सा ही खत्म कर दूं ।" वह अपनी हथेली पर मुक्का मारता हुआ बेबसी भरे अंदाज मे बोला-"मगर मैं वो भी नहीं कर सकता । क्योंकि उसे सर एडलॉफ के बारे में मालूम हैं !"
इस वत्त मेरे भीतर का जासूस सजग था ।
मेरा मस्तिष्क तेजी से काम कर रहा था ।
"जिस तरह से क्लाइव को यातनाएं दी गई हैं ।" वह बैचेनी से पहलू बदलता हुआ गम्भीर स्वर में बोला---और वह रटा रटाया एक ही राग अलापे जा रहा है । उससे तो यहीं लगता है कि क्लाइव मरता पर जायेगा, मगर अपने मुंह पर पडा ताला नहीं खोलेगा ।"
"मेरे लिये क्या आदेश हैं मार्शल साहब?"
"तुम आई०एस०सी० की नम्बर वन एजेन्ट रह चुकी हो रीमा । तुम्हारा दिमाग कम्प्यूटर से भी ज्यादा तेज चलता है । एक-से-एक खत्तरनाक मुजरिमो से तुम्हारा वास्ता पढ़ चुका है । अब तुम्ही क्लाइव का मुंह खुलवाने का कोई रास्ता सोचो ।"
मैं मन ही मन खुशी से उछल पडी ।
मेरे मस्तिष्क के सारे बल्ब एक साथ रोशन हो गये । मार्शल ने मेरी बहुत बडी प्रॉब्लम सॉल्व कर दी थी ।
मैंने अपने चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं उभरने दिया । मैं पहले से ज्यादा गम्भीर नजर आने लगी थी ।
"आप फिक्र न करें मार्शल साहब ! आप अपने दिमाग से सारी चिन्ता निकाल दीजिये ।" एक पल ठहरकर मैंने कहा-"आप मुझे क्लाइव के पास ले चलिये । उसका मुंह खुलवाने की जिम्मेदारी मेरी है । क्लाइव तो है क्या चीज ? उसके तो फरिश्ते भी मुंह खोलने पर मज़बूर हो जायेंगे ।"
'"त. . .तुम उसका मुह खुलवाने में कामयाब हो जाओगी ।"
"क्यों नहीं?" मैंने शांत स्वर में उत्तर दिया…"मिशंस के दोरान मेरा वास्ता बड़े-बड़े सूरमाओं से पड़ चुका है मार्शल साहब । जिनके बारे में कहा जाता था कि वे मरते-मर जायेंगे, लेकिन अपना मुंह नहीं खोलेंगे । वे मेरे सामने टेपरिकार्द्ध बनने पर मजबूर हो गये । आप मुझे एक मौका दीजिये है यकीन कीजिये, आपकी सारी समस्या का समाधान हो जायेगा ।"
"ठीक है रीमा ।" मार्शल ने काम' 'मैं तुम्हें मौका देता हूँ ।"
मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था । मै तो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थी और वो मौका खुद मार्शल ने मुझे दे दिया था ।
"क्लाइव को किस जेल में रखा गया है !" हालांकि मुझे मालूम था । डगलस के बारे में मुझे बरनाड नाम का कमाण्डर बुटैल जेल की खासियत बता चुका था, फिर भी मैंने पूछ लिया था ।
"क्लाइब को कौंनन्सी जेल में रखा गया है?"
"उसे बुटैल जेल में रखा गया है ।"
"फिर देर किस बात की हे? मेरी रवानगी का बन्दोबस्त करवाइयेगा, क्योंकि ऐसे कामों में देर करना उचित नहीं होता है ।"
"वहां अकेली नहीं जाओगी रीमा । मैं तुम्हारे साथ चलूगा ।" मार्शल ने कहा-"मैं अपने कानों से क्लाइव के मुंह से सव कुछ सुनना चहाता हूं।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
"ये तो मेरे लिये खुशी की बात है कि आप मेरे साथ चलेंगे । आप चलने की तैयारी कीजिए ।"
"हमें बुटैल जेल पहुंचना है टामसन ।" मार्शल ने करीब खडे कमाण्डो को हिदायत्त दी-" चलने की तैयार करो ।"
" ओ०कै० !!" कहकर टामसन पलटा और लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ दरवाजे की तरफ़ बढता चला गया ।
कुछ देर बाद मार्शल मुझे लेकर इमारत के कापाउण्ड मे पहुँचा । उसके कमाण्डो साथ थे ।
"जोंगें में बैठो रीमा ।" मार्शल बोला । मैं जोंगे में सवार हो गई । मेरे पीछे-पीछे मार्शल और उसके कमाण्डो भी जोंगे में आ समाये । ड्राइविंग सीट पर पहले से ही एक सैनिक मौजूद था । जोंगा चल पड़ा ।
जोंगा किले के कम्पाउण्ड से बाहर निकला और शहर से बाहर जाने वालीं सड़क पर दौड़ पड़ा । मैं सीट से पीठ टिकाकर अपने अगले कदम के बारे में सोचने लगी ।
=====
=====
मेरी निगाहें बिन्दु स्कीन के उस पार उठ गई । सामने जेल का विशाल फाटक नजर आ रहा था । फाटक के बाहर दो सशस्त्र सेनिक सतर्कता की मूर्ति बने खड़े थे । फाटक के शीर्ष पर सेन्द्रल जेल बुटैल अंकित था ।
ऐसा लगता था मार्शल के यहाँ आने की खबर पहले ही पहुचे चुकी थी, क्योंकि जेल का फाटक भाड़-का मुंह फाड़े हमारे स्वागत के लिये तैयार था । अत: जोंगा निर्विघ्न आगे बढता चला गया ।
आने बाले क्षण मेरे लिये बड़े ही खतरनाक थे ।
एक जगह पहुंचकर जोंगा रूक गया ।
पहले तीनों कमाण्डो जोगे से नीचे उतरे । फिर मैं और मार्शल भी नीचे उतर गये ।
वो एक खुला मैदान था । जिसके दोनों तरफ कैदियों की वैरक्स बनी हुई थीं । मैदान में कई सेनिक मुस्तेदी से पहरा देते नजर आ रहे थे।
मार्शल को देखकर जेल में हड़कम्प-सा मच गया था । वहां का प्रत्येक कर्मचारी सावधान हो गया था । जेल के कई अधिकारी दौड़ते हुए बहा आ पहुँचे थे ।
इस वक्त मेरे पास शानदार मौका था । मैं क्लाइव के साथ-साथ डगलस को भी जेल से सुरक्षित निकाल सकती थी । बहरहाल, मैं एक खतरनाक रिस्क लेने जा रही थी, मगर रिस्क लेने के अलावा मेरे सामने अन्य कोई रास्ता भी तो नहीं था ।
कुछ देर बाद हम एक बैरक के सामने पहुंचकर ठिठके ।
बैरक का सलाखों वाला दरवाजा बन्द था । उसके मुंह पर लोहे का मजबूत ताला लटका हुआ था ।
बाहर एक गार्ड कंधे पर गन लटकाये चौकन्ना खडा था ।
बैरक के भीतर उजाला था ।
भीतर सीमेन्ट के एक चबूतरे पर मुझे क्लाइव बैठा नजर आया । उसके कपड़े जगह-जगह से फ़टे हुए थे । फटे कपडों के बीच से झांकते जिस्म पर टॉर्चर करने के निशान साफ नजर आ रहे थे ।
चेहरा खून से रंगा हुआ था । आंखों के नीचे नीले निशान दिखाई दे रहे थे । माथे पर जख्म के कई निशान थे ।
क्लाइव की निगाहें मेरे ऊपर पड़ी तो उसका चेहरा पत्थर की मानिन्द कठोर पड़ता चला गया । जबड़े कस गये और आँखों से नफरत की चिंगारियां फूट निकली ।
"दरवाजा खोलो ।" मार्शल गार्ड से मुखातिब हुआ ।
गार्ड ने जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला, फिर ताला खोलकर दरवाजे को भीतर की तरफ धकेल दिया ।
मार्शल भीतर प्रवेश कर गया ।
कमाण्डो साये की तरह उसके साथ लगे हुए थे ।
मार्शल के भीतर प्रवेश करते ही मैं भीतर दाखिल हो गई ।
"कैसे हो क्लाइव ?" मैं चबूतरे के करीब पहुंच-बोली ।
"मैं जैसा भी हु, तुम्हारे सामने हूं । तुमने तो मुझे मरवाने में कोई कसर नहीं छोडी है । अब तुम यहां किसलिये आई हो?" वह चबूतरे से नीचे उतरता हुआ बोला ।
इससे पहले, कि मैं कुछ कह पाती, मार्शल भेड्रिये जैसे स्वर में गुर्रा उठा-'"सर एडलॉफ कहां हैं?"
"तो तुम लोग सर एडलॉफ का पता-टिकाना जानने के लिये मेरे पास दौड़े आये हो, लेकिन तुम लोगों का यहां आना बेकार साबित होगा, क्योंकि मुझे सर एडलॉफ के बारे में कुछ मालूम नहीं है ।"
"बक्रो मत ।" मार्शल भयानक स्वर में दहाड़ा-"अगर तुम अपनी जिन्दगी चाहते हो तो चुपचाप बता दो, वरना मैं तुम्हारी खाल खींचकर भुस भरवा दूंगा ।"
क्लाइव खामोश रहा ।
मैं अच्छी तरह जानती थी, वह सर एडलॉफ के बारे में तो तब बतायेगा, जब उसे खुद मालूम होगा । वो तो खुद एडलॉफ को तलाश कर रहा था, मगर बात जानते हुए भी मैँ खामोश रही । क्योंकि यही तो मेरी स्कीम का एक अहम् हिस्सा था ।
"जवाब दो ।" मार्शल फूंफकारा ।
"जवाब तो मैं तब दूं जब मुझे कुछ मालूम हो । तुम लोग बेवजह मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हो । तुम लोग मेरी बात पर विश्वास क्यों नहीं करते ?"
क्लाइव एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला ।
पलक झपकते ही मार्शले का चेहरा पत्थर की तरह सख्त एवं खुरदरा पड़ता चला गया ।
आँखों में कहर नाच उठा ।
साथ ही उसका हाथ घूम गया ।
'तडाक् . .!'
मार्शल की चौडी हथेली क्लाइव के गाल से टकराईं । थप्पड़ की आबाज फायर की तरह गूंजी थी । पांचों उंगलियां उसके गाल पर छप गई थीं । अगर उसका बश चलता तो वह मार्शल को . चीर-फाड़कर रख देता, लेकिन इस वक्त बह मजबूर था और कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं था ।
"अभी भी वक्त है क्लाइव ।" तभी मैं बोल उठी-"एडलाॅफ का पता बता दो । क्यों बेवजह मरना चाहते हो? जिन्दगी बहुत कीमती होती है, अगर एक बार चली जाये तो दोबारा नहीं मिलती ।"
क्लाइव ने रटा-रटाया राग अलापा।
"तुम क्या समझते हो कि मैं इतनी आसानी से तुम्हारी बात पर विश्वास कर लूंगी । तुम झूठ बोलकर मुझे बहका नहीं सकते क्लाइव । मेरा नाम रीमा भारती है । मैं टॉर्चर करने के ऐसे-ऐसे तरीके जानती हुं किं इन्सान तो क्या बेजुबान जानवर भी बोलने पर मजबूर हो जाते ।तुम्हारी तो औकात क्या है?"
"मैं टार्चर तो क्या मौत से भी नहीं डरता रीमा. . . और बेहतर ही होगा कि तुम मुझे मार डालो । बस मेरे सीने में एक गोली उतारने की जरूरत है । में समझूगां कि तुमने मेरे ऊपर एक अहसान कर दिया है !"
"वो मौत तो तुम्हारे लिये आसान मौत होगी । क्लाइव, मैं ऐसीं मौत दूंगी आज तक किसी ने किसी को नहीं दीं । अगर तुम मेरे सवाल का जवाब दे दो तो मैं मार्शल साहब से रिक्वेस्ट करूंगी कि ये तुम्हारी जिन्दगी वख्श दे और हो सकता है कि मार्शल साहब कौं तुम्हारे ऊपर दया जा जाये ।"
"मुझे किसी की दया ही जरुरत नहीं है रीमा । मैं इतना कायर नहीं हूँ मौत से डर जाऊ । मैं तो खुद चाहता हू कि तुम लोग के मुझे मार डालो ।"
मैंने उसकी कनपटी पर जबरदस्त घूसा जड़ दिया । वह होठों से चीख उगलता हुआ पीछे चबूतरे से टकराया, फिर नीचे फर्श पर फैल गया ।
"उठ हरामजादे।" मैं उसकी पसलियों पर बूट की ठोकर जड़ती हुई गुर्रा उठी ।
किन्तु वह नहीं उठा । …
मैं झुकी और उसका गिरेहबान थामकर उसे एक झटके से उसके पैरों पर खडा कर दिया, फिर उसकी आँखों में आँखे डालकर हिसक स्वर में बोली----" मैं तुम्हें एक मिनट देती हू.. . सिर्फ एक मिनट ! या तो तुम सब कुछ बकोगे, या फिर मैँ तुम्हारे जिस्म में इतना बारूद भर दूंगी कि तुम कभी बोलने के काबिल नहीं रहोगे। सर एडलाॅफ को तो हम और किसी ढंग से भी ढूढ़ लेंगे !"
कहने के साथ ही मैंने एक झटके से उसका गिरेहबान छोड़ दिया ।
वह लढ़खड़ाकर गिरते-गिरते बचा था ।
====
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"मुझे गन दो ।" मैंने एक कमाण्डो की तरफ हाथ बढाकर कहा ।
उस कमाण्डो ने हडबड़ाकर प्रश्नभरी निगाहों से मार्शल की तरफ देखा । मैं जानती थी कि मार्शल के इंकार करने का सवाल ही नहीं था । मैं उस पर अपना पूस विश्वास जमा चुकी थी ।
उधर मार्शल तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि मैं गन क्यों मांग रही थी? उसकी नजरों में तो मैं क्लाइव को धमकाने जा रहीं थी ।
"मेरी तरफ क्या देखरहे हो ? " मार्शल ने हुक्म दनदनाया--"रीमा भारती को गन दो ।"
कमाण्डो ने तुरन्त गन मेरी तरफ बढा दी ।
मैंने गन थाम ली ।
"हमें बुटैल जेल पहुंचना है टामसन ।" मार्शल ने करीब खडे कमाण्डो को हिदायत्त दी-" चलने की तैयार करो ।"
" ओ०कै० !!" कहकर टामसन पलटा और लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ दरवाजे की तरफ़ बढता चला गया ।
कुछ देर बाद मार्शल मुझे लेकर इमारत के कापाउण्ड मे पहुँचा । उसके कमाण्डो साथ थे ।
"जोंगें में बैठो रीमा ।" मार्शल बोला । मैं जोंगे में सवार हो गई । मेरे पीछे-पीछे मार्शल और उसके कमाण्डो भी जोंगे में आ समाये । ड्राइविंग सीट पर पहले से ही एक सैनिक मौजूद था । जोंगा चल पड़ा ।
जोंगा किले के कम्पाउण्ड से बाहर निकला और शहर से बाहर जाने वालीं सड़क पर दौड़ पड़ा । मैं सीट से पीठ टिकाकर अपने अगले कदम के बारे में सोचने लगी ।
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मेरी निगाहें बिन्दु स्कीन के उस पार उठ गई । सामने जेल का विशाल फाटक नजर आ रहा था । फाटक के बाहर दो सशस्त्र सेनिक सतर्कता की मूर्ति बने खड़े थे । फाटक के शीर्ष पर सेन्द्रल जेल बुटैल अंकित था ।
ऐसा लगता था मार्शल के यहाँ आने की खबर पहले ही पहुचे चुकी थी, क्योंकि जेल का फाटक भाड़-का मुंह फाड़े हमारे स्वागत के लिये तैयार था । अत: जोंगा निर्विघ्न आगे बढता चला गया ।
आने बाले क्षण मेरे लिये बड़े ही खतरनाक थे ।
एक जगह पहुंचकर जोंगा रूक गया ।
पहले तीनों कमाण्डो जोगे से नीचे उतरे । फिर मैं और मार्शल भी नीचे उतर गये ।
वो एक खुला मैदान था । जिसके दोनों तरफ कैदियों की वैरक्स बनी हुई थीं । मैदान में कई सेनिक मुस्तेदी से पहरा देते नजर आ रहे थे।
मार्शल को देखकर जेल में हड़कम्प-सा मच गया था । वहां का प्रत्येक कर्मचारी सावधान हो गया था । जेल के कई अधिकारी दौड़ते हुए बहा आ पहुँचे थे ।
इस वक्त मेरे पास शानदार मौका था । मैं क्लाइव के साथ-साथ डगलस को भी जेल से सुरक्षित निकाल सकती थी । बहरहाल, मैं एक खतरनाक रिस्क लेने जा रही थी, मगर रिस्क लेने के अलावा मेरे सामने अन्य कोई रास्ता भी तो नहीं था ।
कुछ देर बाद हम एक बैरक के सामने पहुंचकर ठिठके ।
बैरक का सलाखों वाला दरवाजा बन्द था । उसके मुंह पर लोहे का मजबूत ताला लटका हुआ था ।
बाहर एक गार्ड कंधे पर गन लटकाये चौकन्ना खडा था ।
बैरक के भीतर उजाला था ।
भीतर सीमेन्ट के एक चबूतरे पर मुझे क्लाइव बैठा नजर आया । उसके कपड़े जगह-जगह से फ़टे हुए थे । फटे कपडों के बीच से झांकते जिस्म पर टॉर्चर करने के निशान साफ नजर आ रहे थे ।
चेहरा खून से रंगा हुआ था । आंखों के नीचे नीले निशान दिखाई दे रहे थे । माथे पर जख्म के कई निशान थे ।
क्लाइव की निगाहें मेरे ऊपर पड़ी तो उसका चेहरा पत्थर की मानिन्द कठोर पड़ता चला गया । जबड़े कस गये और आँखों से नफरत की चिंगारियां फूट निकली ।
"दरवाजा खोलो ।" मार्शल गार्ड से मुखातिब हुआ ।
गार्ड ने जेब से चाबियों का गुच्छा निकाला, फिर ताला खोलकर दरवाजे को भीतर की तरफ धकेल दिया ।
मार्शल भीतर प्रवेश कर गया ।
कमाण्डो साये की तरह उसके साथ लगे हुए थे ।
मार्शल के भीतर प्रवेश करते ही मैं भीतर दाखिल हो गई ।
"कैसे हो क्लाइव ?" मैं चबूतरे के करीब पहुंच-बोली ।
"मैं जैसा भी हु, तुम्हारे सामने हूं । तुमने तो मुझे मरवाने में कोई कसर नहीं छोडी है । अब तुम यहां किसलिये आई हो?" वह चबूतरे से नीचे उतरता हुआ बोला ।
इससे पहले, कि मैं कुछ कह पाती, मार्शल भेड्रिये जैसे स्वर में गुर्रा उठा-'"सर एडलॉफ कहां हैं?"
"तो तुम लोग सर एडलॉफ का पता-टिकाना जानने के लिये मेरे पास दौड़े आये हो, लेकिन तुम लोगों का यहां आना बेकार साबित होगा, क्योंकि मुझे सर एडलॉफ के बारे में कुछ मालूम नहीं है ।"
"बक्रो मत ।" मार्शल भयानक स्वर में दहाड़ा-"अगर तुम अपनी जिन्दगी चाहते हो तो चुपचाप बता दो, वरना मैं तुम्हारी खाल खींचकर भुस भरवा दूंगा ।"
क्लाइव खामोश रहा ।
मैं अच्छी तरह जानती थी, वह सर एडलॉफ के बारे में तो तब बतायेगा, जब उसे खुद मालूम होगा । वो तो खुद एडलॉफ को तलाश कर रहा था, मगर बात जानते हुए भी मैँ खामोश रही । क्योंकि यही तो मेरी स्कीम का एक अहम् हिस्सा था ।
"जवाब दो ।" मार्शल फूंफकारा ।
"जवाब तो मैं तब दूं जब मुझे कुछ मालूम हो । तुम लोग बेवजह मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हो । तुम लोग मेरी बात पर विश्वास क्यों नहीं करते ?"
क्लाइव एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला ।
पलक झपकते ही मार्शले का चेहरा पत्थर की तरह सख्त एवं खुरदरा पड़ता चला गया ।
आँखों में कहर नाच उठा ।
साथ ही उसका हाथ घूम गया ।
'तडाक् . .!'
मार्शल की चौडी हथेली क्लाइव के गाल से टकराईं । थप्पड़ की आबाज फायर की तरह गूंजी थी । पांचों उंगलियां उसके गाल पर छप गई थीं । अगर उसका बश चलता तो वह मार्शल को . चीर-फाड़कर रख देता, लेकिन इस वक्त बह मजबूर था और कुछ भी कर पाने की स्थिति में नहीं था ।
"अभी भी वक्त है क्लाइव ।" तभी मैं बोल उठी-"एडलाॅफ का पता बता दो । क्यों बेवजह मरना चाहते हो? जिन्दगी बहुत कीमती होती है, अगर एक बार चली जाये तो दोबारा नहीं मिलती ।"
क्लाइव ने रटा-रटाया राग अलापा।
"तुम क्या समझते हो कि मैं इतनी आसानी से तुम्हारी बात पर विश्वास कर लूंगी । तुम झूठ बोलकर मुझे बहका नहीं सकते क्लाइव । मेरा नाम रीमा भारती है । मैं टॉर्चर करने के ऐसे-ऐसे तरीके जानती हुं किं इन्सान तो क्या बेजुबान जानवर भी बोलने पर मजबूर हो जाते ।तुम्हारी तो औकात क्या है?"
"मैं टार्चर तो क्या मौत से भी नहीं डरता रीमा. . . और बेहतर ही होगा कि तुम मुझे मार डालो । बस मेरे सीने में एक गोली उतारने की जरूरत है । में समझूगां कि तुमने मेरे ऊपर एक अहसान कर दिया है !"
"वो मौत तो तुम्हारे लिये आसान मौत होगी । क्लाइव, मैं ऐसीं मौत दूंगी आज तक किसी ने किसी को नहीं दीं । अगर तुम मेरे सवाल का जवाब दे दो तो मैं मार्शल साहब से रिक्वेस्ट करूंगी कि ये तुम्हारी जिन्दगी वख्श दे और हो सकता है कि मार्शल साहब कौं तुम्हारे ऊपर दया जा जाये ।"
"मुझे किसी की दया ही जरुरत नहीं है रीमा । मैं इतना कायर नहीं हूँ मौत से डर जाऊ । मैं तो खुद चाहता हू कि तुम लोग के मुझे मार डालो ।"
मैंने उसकी कनपटी पर जबरदस्त घूसा जड़ दिया । वह होठों से चीख उगलता हुआ पीछे चबूतरे से टकराया, फिर नीचे फर्श पर फैल गया ।
"उठ हरामजादे।" मैं उसकी पसलियों पर बूट की ठोकर जड़ती हुई गुर्रा उठी ।
किन्तु वह नहीं उठा । …
मैं झुकी और उसका गिरेहबान थामकर उसे एक झटके से उसके पैरों पर खडा कर दिया, फिर उसकी आँखों में आँखे डालकर हिसक स्वर में बोली----" मैं तुम्हें एक मिनट देती हू.. . सिर्फ एक मिनट ! या तो तुम सब कुछ बकोगे, या फिर मैँ तुम्हारे जिस्म में इतना बारूद भर दूंगी कि तुम कभी बोलने के काबिल नहीं रहोगे। सर एडलाॅफ को तो हम और किसी ढंग से भी ढूढ़ लेंगे !"
कहने के साथ ही मैंने एक झटके से उसका गिरेहबान छोड़ दिया ।
वह लढ़खड़ाकर गिरते-गिरते बचा था ।
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"मुझे गन दो ।" मैंने एक कमाण्डो की तरफ हाथ बढाकर कहा ।
उस कमाण्डो ने हडबड़ाकर प्रश्नभरी निगाहों से मार्शल की तरफ देखा । मैं जानती थी कि मार्शल के इंकार करने का सवाल ही नहीं था । मैं उस पर अपना पूस विश्वास जमा चुकी थी ।
उधर मार्शल तो सपने में भी नहीं सोच सकता था कि मैं गन क्यों मांग रही थी? उसकी नजरों में तो मैं क्लाइव को धमकाने जा रहीं थी ।
"मेरी तरफ क्या देखरहे हो ? " मार्शल ने हुक्म दनदनाया--"रीमा भारती को गन दो ।"
कमाण्डो ने तुरन्त गन मेरी तरफ बढा दी ।
मैंने गन थाम ली ।
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Re: हिन्दी नॉवल-काली दुनिया का भगबान - रीमा भारती सीरीज
फिर मैंने गन क्लाइव पर तान दी । क्लाइव ने एक गहरी सांस लेकर आंखें बन्द कर लीं और शरीर ढीला छोड़ दिया । मानो उसे यकीन हो गया था कि मैं उसे वाकई गोली मारने जा रहीँ थी ।
परन्तु तभी, मैंने पासा पलंट दिया ।
एकाएक मैं एडियों पर घूमी ।
और.......
पलक झपकते ही मैंने गन की नाल मार्शल के सीने से सटा दी ।
मार्शल बुरी तरह से उछल पड़ा-"य. . .ये क्या हरकत है रीमा?"
"इसे हरकत नहीं, गन कहते हैं मार्शल !" मैंने बर्फ की मानिन्द सर्द स्वर में कहा-"और जब ये चलती है तो इसकी गोली ये नहीं देखती कि तो क्लाइव जैसे क्रान्तिकारी के सीने में उतर रही है या तुम्हारे जैसे किसी फौजी कुत्ते के सीने में । इसलिये कोई गलत हरकत मत करना ।"
मार्शल का चेहरा पीला पड़ता चला गया ।
उसके साथ आये कमाण्डो और जेल अधिकारों बुरी तरह बौखलाये नजर आ रहे थे ।
उधर क्लाइव ने भी फटाक से आँखे खोल दी थीं और वह हैरत से मुंह बाये इस बदले दृश्य को देख रहा था ।
"माफ़ करना क्लाइव दोस्त ।" मैंने कहा-"तुम्हारी जो हालत हुई है, उसके लिये मैँ जिम्मेदार हूँ लेकिन मैं करती भी क्या? मुझे मज़बूरी में तुम्हारे साथ ऐसा करना पडा था । मेरा मकसद डगलस तक पहुंचना था और बरनाड नाम के कमाण्डर से मुझे जेल की सुरक्षा व्यवस्या के बारे में जो जानकारी मिली थी, उसे भेदने का मेरे पास सिर्फ यही एक रास्ता था । मैंने तुम्हें कुर्बानी का बकरा बना दिया ।"
क्लाइव अजीब निगाहों से मेरी तरफ देखता रह गया था । किन्तु उसकी आँखों में मेरे प्रति उत्पन्न नफरत के भाव गायब होते चले गये थे, और उनकी जगह उसके चेहरे पर उभर आये भाव इस बात की चुगली कर रहे थे कि अब उसे मुझसे कोई शिकायत नहीं रह गई ।
"और तुम ये भी समझ चुके होगे क्लाइव कि मेरा जेल में जाने का क्या मसकद है?" मैं पुन: बोली ।
जवाब में क्लाइव, धीरे से हां में गर्दन हिलाकर रह वया ।
अब सब कुछ क्लाइव के सामने खुली किताब की तरह था ।
इधर मार्शल अभी भी नहीं समझ पाया होगा कि मेरा जेल में पहुचने का मकसद क्या है? मैंने उसके साथ जो हरकत की थी और जो कुछ क्लाइव से कहा ।
उसे सुनने के बाद उसकी खोपडी अवश्य अंतरिक्ष में उड़ने लगी-होगी ।।
उधर कमाण्डोज़ के हाथ गनों पर कसे हुए थे और उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उन्हें सिर्फ एक मौके की तलाश थी ।
"खबरदारा" मैं जहरीली नागिन की तरह फुफकार उठी---" गलत हरकत मत करना, वरना तुम्हारे जिस्म में सुराखन्हीं-सुराख नजर आयेंगे और तुम लोगों की आत्मा ये सोचने पर मजबूर हो जायेगी कि वह किस सुराख से बाहर निकले । इसे मेरी धमकी मत समझना । मेरा नाम रीमा मारती है । मैं जो कहती हूं। वह करके दिखाती हूं ।"
कमाण्डोज के के रंग उड गये ।
"अपने कमाण्डोज़ से कहो मार्शल कि गनें फेक दें ।" मैंने कहा ।
'मार्शल मजबूर था।
"गने फेंक दो ।" उसके होठों से आदेश भरा स्वर निकला ।
दोनों कमाण्डो ने अपने हाथों से गनें फिसल जाने दीं ।
"गर्ने उठा तो क्लाइव ।" मैंने कहा ।
क्लाइव ने दोनों गने उठा लीं ।
वातावरण में पुन: मेरा चेतावनी भरा स्वर गूंजा-"अगर तुम लोगों में से किसी ने भी गलत हरकत करने की कोशिश की अथवा चालाकी दिखाई तो मैं मार्शल को गोलियों से छलनी कर दूंगी और इसकी मौत के जिम्मेदार तुम लोग होगे ।" `
किसी के होठों से बोल नहीं फूटा ।
इसबीच मार्शल संभल चुका था । वह मुझे घूरता हुआ बोला-"तुम्हारी इस हरकत का मतलब… क्या है?"
"मतलब मैं बाद में समझाऊंगी मार्शल ।" ' मैंने उत्तर दिया-"पहले डगलस को यहाँ बुलवाओ ।"
मार्शल मानो आसमान से गिरा ।
उसके चेहरे पर समूचे संसार के आश्चर्य ने एक साथ हमला-सा कर दिया था । मार्शल तो सपने में भी गुमान नहीं होगा कि मैं डगलस को भी जानती हो सकती हू।
"अब ये मत कह देना कि डगलस इस जेल में नहीं है ।" मैं बोली--" मैं जानती हूं कि उसे इसी जेल में रखा गया है । तुम्हीं ने सोल्जर से कहा था क्लाइव को उसी जेल में भेज दो! जिसमें डगलस को रखा गया है ।"
मार्शल के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं बचा था ।
"मैं ये नहीं कहूंगा कि डगलस इस जेल में नहीं है । वो इसी जेल में बन्द है, लेकिन तुम डगलस को कैसे जानती हो और ,उससे 'तुम्हारा क्या सम्बन्ध हैं?" मार्शल ने सबाल किया ।
मै तुमहारे हर सवाल का जबाब दूंगी ।
पहले अपने कामाण्डो को आदेश दो कि वो डगलस को यहां: लेकर आए !"
"लेकिन क्यों ?" मार्शल ने गुस्से से दांत पीसे ।
"सवाल मत करो । इस वक्त तुम सवाल करने की स्थिति में नहीं हो और तुम्हारी खैरियत इसी मेँ है कि मैं जैसा कह रही हूँ वैसा करते जाओ ।"
“अगर मैं डगलस को यहां न बुलवाऊं तो?" वह दिलेरी का परिचय देता हुआ बोला ।
"तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगी ।"
"मुझे गोली मारने का अंजाम जानती हो?"
" अंजाम की परवाह होती तो मैं इस देश में कदम ही क्यों रखती मार्शल? फिलहाल तो तुम अपने अंजाम के बारे में सोचो । मेरे इशारे करने भर की देर है । क्लाइव तुम्हें गोलियों से भून डालेगा । ये तो पहले ही तुम लोगों से खार खाए बैठा है । ये जानता है कि तुम मिलेट्री के चीफ हो, अगर तुम मर गये तो सेना के हौंसले पस्त हो जायेंगे और बाजी सर एडलॉंफ़ के समर्थकों के हाथों में होगी ।"
मार्शल खामोश रहा ।
"जल्दी डगलस को वुलवाओ, वरना मेरे सब्र का प्याला छलक जायेगा और वो स्थिति तुम्हारे लिये खतरनाक होगी मार्शल । मेरे बारे में सब कुछ जानते हो । मेरी बात न मानने का मतलब मौत होता है ।"
मैं गन की नाल -उसके माथे से सटाती हुई सर्द स्वर में कह उठी ।
क्या मजाल कि मार्शल के चेहरे पर खौफ का एक भी भाव उमरा हो । वह बडी दिलेरी-के साथ बोला-"मुझे धमकाने की कोशिश मत करो रीमा । मैं तुम्हारी गीदड़ भभकियों से डरने वाला नही हूं !"
" डरोगे तो उस वक्त जब रीमा भारती तुम पर कहर बनकर । तुम क्या समझते हो मैं डगलस तक नहीं पहुच पाऊँगी । वो इसी जेल में है । उसे तो मैं देर-सबेर तलाश कर ही लूंगी, लेकिन तुम बेमौत मोरे जाओगे मार्शल ।"
"तो फिर कर तो न तलाश । मुझें बार-बार धमकाने की कोशिश क्यों कर रही हो?"
मैं पहले ही जानती थी कि मार्शल इतनी आसानी से डगलस को वहां बुलाने वाला नहीं है । आखिर वो भी एक जीवट बाला इंसान था । लेक्रिन मैं क्या कम हू? मेरे हाथ' में सुनहरी मौका था । मैं उस मोके को भला कैसे केश न करती? …
बैसे इस वक्त मार्शल उस पल को अवश्य कोस रहा होगा । जब यह मेरे जाल में फंस कर मुझे क्लाइव का मुंह खुलवाने के लिये इस सबसे सुरक्षित जेल में ले आया था । लेकिन अब उसके पछताने से कुछ होने वाला नहीं था । तीर तो कमान से निकल चुका था । फिलहाल बाजी मेरे हाथ में थी ।
"तुम इस वक्त एक तरह से शेर की मांद में खडी हो लड़की ।" पहली बार वहां मौजूद एक जेल अधिकारी ने अपना मुंह खोला-"मार्शल साहब को छोड़ दो, वरना अंजाम बहुत बुरा होगा ।"
"पैं मार्शल को किस खुशी में छोड़ दूं?" "मैंने मजे लेने वाले अंदाज में पूछा ।
"अगर तुम ये समझ रहीं हो कि तुम मार्शल साहब का कुछ बिगाड़ पाओगी तो ये तुम्हारी वहुत बडी गलतफहमी है ।" इस बार दूसरा गुर्राया---" तुम यहां से जिंदा बचकर नहीं निकल सकती ।"
"तुम भी मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो मिस्टर ।" मैंने जवाब 'दिया-"मेरा नाम रीमा भारती है । भारत की सबसे महत्वपूर्ण जासूसी संस्था की नम्बर वन ऐंजट । आज तक जिस किसी ने भी मेरे काम में टांग र्फसाई है । मैंने जिंदा नहीं छोड़ा है , तुम किस खेत की मूली हो, अगर तुम लोग बेमौत मरना नहीं
चाहते हो तो चुपचाप तमाशा देखते रहो ।"
उसने तुरंत अपने होठ भीच लिये । कदाचित मेरा परिचय सुनकर उसके देवता कूच कर गये थे ।
"'त...तो तुम एजेन्ट रीमा भारती हो ।" पहले वाले के होठों से हैरत भरा स्वर निकला ।
" हां, मैं वही रीमा भारती हूं अगर तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है तो मैं तुम्हें लिखकर दूं?"
उस पट्टे के होठों पर भी मानो ताला पड़ गया ।
"अभी तक तुमने अपने कमाण्डोज को डगलस को लाने का आदेश नहीं दिया मार्शल । लगता है कि तुम जिन्दा रहने के मूड में नहीं हो ।”
"मेरी बात तो सुनो... ।"
"में कुछ सुनना नहीं चाहती ।" मैं उसका वाक्य बीच में ही काटती हुई फूंफकारी-"इंकार का मतलब है तुम्हारी मौत ।"
उसकी आँखों में साक्षात् मौत नृत्य करने लगी ।
" मैं ट्रेगर दबाऊं या डगलस को बुलवात्ते हो।" मैंने पूछा । मांर्शलं की सारी दिलेरी धरी की धरी रह गई ।
" ट्रेगर मत दबाना ।" उसके होठों से अजीब-सा फंसा फंसा स्वर निकला-----" मै डगलस को बुलबाता हू !"
मेरा चेहरा सफलता से चमक उठा-" तो देख क्या रहे हो? बुलबाओ ।' "
" 'प. . . पहले गन की नाल मेरे मुंह से बाहर निकालो ।"
मैंने गन वापस खींच ली ।
"डगलस को लेकर आओ ।" मार्शल जेल अधिकारियों से आदेश भरे स्वर में बोला ।
जेल अधिकारी पलटकर भागे ।
इस बीच मैं एक क्षण के लिये भी असावधान नहीं हुई थी । मेरी निगाहें बराबर मार्शल और उसके कमाण्डो पर जमी हुई थीं ।
"मेरी एक बात सुनो ।" मार्शल बोला ।
"अब तुम अपनी हर बात सुना सकते हो । मैं तुम्हारी सारी बकवास सुनने के लिये तैयार हूं!"
"तुम जो कर रही हो अच्छा नहीं कर रही हो रीमा । अब तुम्हारी जिन्दगी की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है , ये मत भूलो कि इस वक्त भी तुम्हारी जिन्दगी मेरी मुट्ठी में है । मेरे रहमो-करम पर जिंदा हो । अगर मैं तुम्हारी जिदगी की गांरटो ले सकता हुं तो तुम्हें-मौत के, मुंह में भी पहुंच' सकता हूँ । तुम्हारी अपनी ही जासूसी संस्थान आई०एस०सी० तुम्हारी दुश्मन वन चुकी है । उसे बड्री शिद्दत से तुम्हारी तलाश है । अगर मैं उन्हें खबर कर दूं कि तुम मडलैण्ड में हो तो जानती हो क्या होगा?"
"क्या होगा?" मैंने मुस्कराते हुए पूछा।
" वे लोग तुम्हें हांसिल हासिल के ऐडी चोटी का जोर लगा देंगे, और जैसे तुम उनके हाथ आई तुम्हें जिन्दगी भर एडिया रगड़ने के लिये किसी अज्ञात जेल में डाल दिया जायेगा या फिर हो सकता है कि तुम्हें बडी खामोशी से मार डाला जाये । अभी भी वक्त है अगर तुम जिंदा रहना चाहती हो तो अपने खतरनाक इरादों से बाज आ जाओ ।"
मै दिल खोलकर हंसी ।
बह अजीब निगाहों से मेरी तरफ़ देखता हुआ होता---".,हंस रही हो ।' मैंने गलत नहीं कहा है । अगर तुम्हें अई एस सी को सोंप दिया गया तो तुम इतिहास की चीज बन जाओगी । लोग जान भी नहीं पयेयेंगे कि कभी आ०एस०सी० में रह चुकी नम्बर बन एईजेन्ट रीमा भारती अचानक दुनिया के तख्ते से कहां गायब होगई ?"
" तो मुझे आई०एसं०सी को सौपने का इरादा रखते हो मार्शल ?" मैंने पूछा ।
"अगर तुम अपने इरादों से बाज नहीं आई तो मुझे ऐसा ही करना पडेगा ।"
"तुम कह चुके मार्शल ।"
"हां ।"
"अब तुम मेरी बात सुन लो ।"
" सुनाओ ।"
"मैंने सोल्जर को अपने बारे में जो कुछ बताया था, वो सब झूठ था । न तो मैंने आई०एस०सी० छोडी और न ही मैंने कोई जुर्म किया है । वास्तव में मैंने तुक तक पहुंचने के लिए एक झूठी कहानी गढकर सोल्जर को सुनार थी ।"
"तुम सरासर बकवास कर रही हो । अपनी मौत के डर से झूठ बोल रही हो तुम ।" उसने कहा… " 'उस वत्त मुझे तुम्हारी कहानी पर विश्वास नहीं हुआ था । मैंने सोल्जर से हिन्दुस्तान में अपने एक पहुंच वाले सोर्संजे से तुम्हारी कहानी के बारे तस्दीक करने के लिये कहा था और फिर तल्दीक होने के बाद ही मैंने तुम्हें अपने करीब फटकने दिया था ।"
"तुम्हारे सोर्स ने तुम्हें गलत रिपोर्ट नहीं दी थी मार्शला दरअसल उस बेचारे को भी आई०एस०सी० से यही मालूमात हासिल हुई होगी । क्योंकि अपनी योजना पर अमल शुरु करने से पहले ही ट्रांसमीटर पर अपने चीफ से सम्पर्क करके उसे सब कुछ समझा दिया था । मैं जानती थी कि तुम तस्दीक किये बगैर मानने वाले … नहीं हो, इसलिए मैंने पहले ही पुख्ता इंतजाम कर दिया था । फिर तुम्हें 'वहीँ' सुनने को मिला, जो मै तुम्हें सुनाना चाहती थी और तुम जाल में फंस गये मार्शल !"
मेरी बात सुनकर नि:संदेह मार्शल की खोपडी फिरकनी की तरह नाचकर रह गई होगी ।
"म. . .मगर तुम्हें ये सब करने की क्या ज़रूरत आ पडी थी ?" मार्शल के होठों से वहीं कठिनाई से निकला !
उसी क्षण । जेल अधिकारियों से घिरे डगलस ने भीतर कदम रखा । वार्तालाप बीच मे ही रूपक गया ।
डगलस की निगाहें हम लोगों के ऊपर चकराती चली गई । उसके चेहरे परे उलझन के भाव थे ।
कदाचित वह समझ नहीं पा रहा था कि माजरा क्या है और उसे यहाँ क्यों लाया गया ।।
उसकी हालत देखकर लग रहा था कि उसे भी भयानक यातनाओं के दौर से गुजरना पंढ़ रहा था ।
कुछ पल के लिये ,वहां खामोशी ने अपने पांव पसार दिये थे ।
डगलस की घूमती निगाहे मेरे चेहरे पर स्थिर होकर रह गई । चेहरे पर सोच के भाव उभर आये थे । जाहिर था उसकी सोचों का केन्द्र मैं ही थी ।
परन्तु तभी, मैंने पासा पलंट दिया ।
एकाएक मैं एडियों पर घूमी ।
और.......
पलक झपकते ही मैंने गन की नाल मार्शल के सीने से सटा दी ।
मार्शल बुरी तरह से उछल पड़ा-"य. . .ये क्या हरकत है रीमा?"
"इसे हरकत नहीं, गन कहते हैं मार्शल !" मैंने बर्फ की मानिन्द सर्द स्वर में कहा-"और जब ये चलती है तो इसकी गोली ये नहीं देखती कि तो क्लाइव जैसे क्रान्तिकारी के सीने में उतर रही है या तुम्हारे जैसे किसी फौजी कुत्ते के सीने में । इसलिये कोई गलत हरकत मत करना ।"
मार्शल का चेहरा पीला पड़ता चला गया ।
उसके साथ आये कमाण्डो और जेल अधिकारों बुरी तरह बौखलाये नजर आ रहे थे ।
उधर क्लाइव ने भी फटाक से आँखे खोल दी थीं और वह हैरत से मुंह बाये इस बदले दृश्य को देख रहा था ।
"माफ़ करना क्लाइव दोस्त ।" मैंने कहा-"तुम्हारी जो हालत हुई है, उसके लिये मैँ जिम्मेदार हूँ लेकिन मैं करती भी क्या? मुझे मज़बूरी में तुम्हारे साथ ऐसा करना पडा था । मेरा मकसद डगलस तक पहुंचना था और बरनाड नाम के कमाण्डर से मुझे जेल की सुरक्षा व्यवस्या के बारे में जो जानकारी मिली थी, उसे भेदने का मेरे पास सिर्फ यही एक रास्ता था । मैंने तुम्हें कुर्बानी का बकरा बना दिया ।"
क्लाइव अजीब निगाहों से मेरी तरफ देखता रह गया था । किन्तु उसकी आँखों में मेरे प्रति उत्पन्न नफरत के भाव गायब होते चले गये थे, और उनकी जगह उसके चेहरे पर उभर आये भाव इस बात की चुगली कर रहे थे कि अब उसे मुझसे कोई शिकायत नहीं रह गई ।
"और तुम ये भी समझ चुके होगे क्लाइव कि मेरा जेल में जाने का क्या मसकद है?" मैं पुन: बोली ।
जवाब में क्लाइव, धीरे से हां में गर्दन हिलाकर रह वया ।
अब सब कुछ क्लाइव के सामने खुली किताब की तरह था ।
इधर मार्शल अभी भी नहीं समझ पाया होगा कि मेरा जेल में पहुचने का मकसद क्या है? मैंने उसके साथ जो हरकत की थी और जो कुछ क्लाइव से कहा ।
उसे सुनने के बाद उसकी खोपडी अवश्य अंतरिक्ष में उड़ने लगी-होगी ।।
उधर कमाण्डोज़ के हाथ गनों पर कसे हुए थे और उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि उन्हें सिर्फ एक मौके की तलाश थी ।
"खबरदारा" मैं जहरीली नागिन की तरह फुफकार उठी---" गलत हरकत मत करना, वरना तुम्हारे जिस्म में सुराखन्हीं-सुराख नजर आयेंगे और तुम लोगों की आत्मा ये सोचने पर मजबूर हो जायेगी कि वह किस सुराख से बाहर निकले । इसे मेरी धमकी मत समझना । मेरा नाम रीमा मारती है । मैं जो कहती हूं। वह करके दिखाती हूं ।"
कमाण्डोज के के रंग उड गये ।
"अपने कमाण्डोज़ से कहो मार्शल कि गनें फेक दें ।" मैंने कहा ।
'मार्शल मजबूर था।
"गने फेंक दो ।" उसके होठों से आदेश भरा स्वर निकला ।
दोनों कमाण्डो ने अपने हाथों से गनें फिसल जाने दीं ।
"गर्ने उठा तो क्लाइव ।" मैंने कहा ।
क्लाइव ने दोनों गने उठा लीं ।
वातावरण में पुन: मेरा चेतावनी भरा स्वर गूंजा-"अगर तुम लोगों में से किसी ने भी गलत हरकत करने की कोशिश की अथवा चालाकी दिखाई तो मैं मार्शल को गोलियों से छलनी कर दूंगी और इसकी मौत के जिम्मेदार तुम लोग होगे ।" `
किसी के होठों से बोल नहीं फूटा ।
इसबीच मार्शल संभल चुका था । वह मुझे घूरता हुआ बोला-"तुम्हारी इस हरकत का मतलब… क्या है?"
"मतलब मैं बाद में समझाऊंगी मार्शल ।" ' मैंने उत्तर दिया-"पहले डगलस को यहाँ बुलवाओ ।"
मार्शल मानो आसमान से गिरा ।
उसके चेहरे पर समूचे संसार के आश्चर्य ने एक साथ हमला-सा कर दिया था । मार्शल तो सपने में भी गुमान नहीं होगा कि मैं डगलस को भी जानती हो सकती हू।
"अब ये मत कह देना कि डगलस इस जेल में नहीं है ।" मैं बोली--" मैं जानती हूं कि उसे इसी जेल में रखा गया है । तुम्हीं ने सोल्जर से कहा था क्लाइव को उसी जेल में भेज दो! जिसमें डगलस को रखा गया है ।"
मार्शल के झूठ बोलने का सवाल ही नहीं बचा था ।
"मैं ये नहीं कहूंगा कि डगलस इस जेल में नहीं है । वो इसी जेल में बन्द है, लेकिन तुम डगलस को कैसे जानती हो और ,उससे 'तुम्हारा क्या सम्बन्ध हैं?" मार्शल ने सबाल किया ।
मै तुमहारे हर सवाल का जबाब दूंगी ।
पहले अपने कामाण्डो को आदेश दो कि वो डगलस को यहां: लेकर आए !"
"लेकिन क्यों ?" मार्शल ने गुस्से से दांत पीसे ।
"सवाल मत करो । इस वक्त तुम सवाल करने की स्थिति में नहीं हो और तुम्हारी खैरियत इसी मेँ है कि मैं जैसा कह रही हूँ वैसा करते जाओ ।"
“अगर मैं डगलस को यहां न बुलवाऊं तो?" वह दिलेरी का परिचय देता हुआ बोला ।
"तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगी ।"
"मुझे गोली मारने का अंजाम जानती हो?"
" अंजाम की परवाह होती तो मैं इस देश में कदम ही क्यों रखती मार्शल? फिलहाल तो तुम अपने अंजाम के बारे में सोचो । मेरे इशारे करने भर की देर है । क्लाइव तुम्हें गोलियों से भून डालेगा । ये तो पहले ही तुम लोगों से खार खाए बैठा है । ये जानता है कि तुम मिलेट्री के चीफ हो, अगर तुम मर गये तो सेना के हौंसले पस्त हो जायेंगे और बाजी सर एडलॉंफ़ के समर्थकों के हाथों में होगी ।"
मार्शल खामोश रहा ।
"जल्दी डगलस को वुलवाओ, वरना मेरे सब्र का प्याला छलक जायेगा और वो स्थिति तुम्हारे लिये खतरनाक होगी मार्शल । मेरे बारे में सब कुछ जानते हो । मेरी बात न मानने का मतलब मौत होता है ।"
मैं गन की नाल -उसके माथे से सटाती हुई सर्द स्वर में कह उठी ।
क्या मजाल कि मार्शल के चेहरे पर खौफ का एक भी भाव उमरा हो । वह बडी दिलेरी-के साथ बोला-"मुझे धमकाने की कोशिश मत करो रीमा । मैं तुम्हारी गीदड़ भभकियों से डरने वाला नही हूं !"
" डरोगे तो उस वक्त जब रीमा भारती तुम पर कहर बनकर । तुम क्या समझते हो मैं डगलस तक नहीं पहुच पाऊँगी । वो इसी जेल में है । उसे तो मैं देर-सबेर तलाश कर ही लूंगी, लेकिन तुम बेमौत मोरे जाओगे मार्शल ।"
"तो फिर कर तो न तलाश । मुझें बार-बार धमकाने की कोशिश क्यों कर रही हो?"
मैं पहले ही जानती थी कि मार्शल इतनी आसानी से डगलस को वहां बुलाने वाला नहीं है । आखिर वो भी एक जीवट बाला इंसान था । लेक्रिन मैं क्या कम हू? मेरे हाथ' में सुनहरी मौका था । मैं उस मोके को भला कैसे केश न करती? …
बैसे इस वक्त मार्शल उस पल को अवश्य कोस रहा होगा । जब यह मेरे जाल में फंस कर मुझे क्लाइव का मुंह खुलवाने के लिये इस सबसे सुरक्षित जेल में ले आया था । लेकिन अब उसके पछताने से कुछ होने वाला नहीं था । तीर तो कमान से निकल चुका था । फिलहाल बाजी मेरे हाथ में थी ।
"तुम इस वक्त एक तरह से शेर की मांद में खडी हो लड़की ।" पहली बार वहां मौजूद एक जेल अधिकारी ने अपना मुंह खोला-"मार्शल साहब को छोड़ दो, वरना अंजाम बहुत बुरा होगा ।"
"पैं मार्शल को किस खुशी में छोड़ दूं?" "मैंने मजे लेने वाले अंदाज में पूछा ।
"अगर तुम ये समझ रहीं हो कि तुम मार्शल साहब का कुछ बिगाड़ पाओगी तो ये तुम्हारी वहुत बडी गलतफहमी है ।" इस बार दूसरा गुर्राया---" तुम यहां से जिंदा बचकर नहीं निकल सकती ।"
"तुम भी मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो मिस्टर ।" मैंने जवाब 'दिया-"मेरा नाम रीमा भारती है । भारत की सबसे महत्वपूर्ण जासूसी संस्था की नम्बर वन ऐंजट । आज तक जिस किसी ने भी मेरे काम में टांग र्फसाई है । मैंने जिंदा नहीं छोड़ा है , तुम किस खेत की मूली हो, अगर तुम लोग बेमौत मरना नहीं
चाहते हो तो चुपचाप तमाशा देखते रहो ।"
उसने तुरंत अपने होठ भीच लिये । कदाचित मेरा परिचय सुनकर उसके देवता कूच कर गये थे ।
"'त...तो तुम एजेन्ट रीमा भारती हो ।" पहले वाले के होठों से हैरत भरा स्वर निकला ।
" हां, मैं वही रीमा भारती हूं अगर तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा है तो मैं तुम्हें लिखकर दूं?"
उस पट्टे के होठों पर भी मानो ताला पड़ गया ।
"अभी तक तुमने अपने कमाण्डोज को डगलस को लाने का आदेश नहीं दिया मार्शल । लगता है कि तुम जिन्दा रहने के मूड में नहीं हो ।”
"मेरी बात तो सुनो... ।"
"में कुछ सुनना नहीं चाहती ।" मैं उसका वाक्य बीच में ही काटती हुई फूंफकारी-"इंकार का मतलब है तुम्हारी मौत ।"
उसकी आँखों में साक्षात् मौत नृत्य करने लगी ।
" मैं ट्रेगर दबाऊं या डगलस को बुलवात्ते हो।" मैंने पूछा । मांर्शलं की सारी दिलेरी धरी की धरी रह गई ।
" ट्रेगर मत दबाना ।" उसके होठों से अजीब-सा फंसा फंसा स्वर निकला-----" मै डगलस को बुलबाता हू !"
मेरा चेहरा सफलता से चमक उठा-" तो देख क्या रहे हो? बुलबाओ ।' "
" 'प. . . पहले गन की नाल मेरे मुंह से बाहर निकालो ।"
मैंने गन वापस खींच ली ।
"डगलस को लेकर आओ ।" मार्शल जेल अधिकारियों से आदेश भरे स्वर में बोला ।
जेल अधिकारी पलटकर भागे ।
इस बीच मैं एक क्षण के लिये भी असावधान नहीं हुई थी । मेरी निगाहें बराबर मार्शल और उसके कमाण्डो पर जमी हुई थीं ।
"मेरी एक बात सुनो ।" मार्शल बोला ।
"अब तुम अपनी हर बात सुना सकते हो । मैं तुम्हारी सारी बकवास सुनने के लिये तैयार हूं!"
"तुम जो कर रही हो अच्छा नहीं कर रही हो रीमा । अब तुम्हारी जिन्दगी की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है , ये मत भूलो कि इस वक्त भी तुम्हारी जिन्दगी मेरी मुट्ठी में है । मेरे रहमो-करम पर जिंदा हो । अगर मैं तुम्हारी जिदगी की गांरटो ले सकता हुं तो तुम्हें-मौत के, मुंह में भी पहुंच' सकता हूँ । तुम्हारी अपनी ही जासूसी संस्थान आई०एस०सी० तुम्हारी दुश्मन वन चुकी है । उसे बड्री शिद्दत से तुम्हारी तलाश है । अगर मैं उन्हें खबर कर दूं कि तुम मडलैण्ड में हो तो जानती हो क्या होगा?"
"क्या होगा?" मैंने मुस्कराते हुए पूछा।
" वे लोग तुम्हें हांसिल हासिल के ऐडी चोटी का जोर लगा देंगे, और जैसे तुम उनके हाथ आई तुम्हें जिन्दगी भर एडिया रगड़ने के लिये किसी अज्ञात जेल में डाल दिया जायेगा या फिर हो सकता है कि तुम्हें बडी खामोशी से मार डाला जाये । अभी भी वक्त है अगर तुम जिंदा रहना चाहती हो तो अपने खतरनाक इरादों से बाज आ जाओ ।"
मै दिल खोलकर हंसी ।
बह अजीब निगाहों से मेरी तरफ़ देखता हुआ होता---".,हंस रही हो ।' मैंने गलत नहीं कहा है । अगर तुम्हें अई एस सी को सोंप दिया गया तो तुम इतिहास की चीज बन जाओगी । लोग जान भी नहीं पयेयेंगे कि कभी आ०एस०सी० में रह चुकी नम्बर बन एईजेन्ट रीमा भारती अचानक दुनिया के तख्ते से कहां गायब होगई ?"
" तो मुझे आई०एसं०सी को सौपने का इरादा रखते हो मार्शल ?" मैंने पूछा ।
"अगर तुम अपने इरादों से बाज नहीं आई तो मुझे ऐसा ही करना पडेगा ।"
"तुम कह चुके मार्शल ।"
"हां ।"
"अब तुम मेरी बात सुन लो ।"
" सुनाओ ।"
"मैंने सोल्जर को अपने बारे में जो कुछ बताया था, वो सब झूठ था । न तो मैंने आई०एस०सी० छोडी और न ही मैंने कोई जुर्म किया है । वास्तव में मैंने तुक तक पहुंचने के लिए एक झूठी कहानी गढकर सोल्जर को सुनार थी ।"
"तुम सरासर बकवास कर रही हो । अपनी मौत के डर से झूठ बोल रही हो तुम ।" उसने कहा… " 'उस वत्त मुझे तुम्हारी कहानी पर विश्वास नहीं हुआ था । मैंने सोल्जर से हिन्दुस्तान में अपने एक पहुंच वाले सोर्संजे से तुम्हारी कहानी के बारे तस्दीक करने के लिये कहा था और फिर तल्दीक होने के बाद ही मैंने तुम्हें अपने करीब फटकने दिया था ।"
"तुम्हारे सोर्स ने तुम्हें गलत रिपोर्ट नहीं दी थी मार्शला दरअसल उस बेचारे को भी आई०एस०सी० से यही मालूमात हासिल हुई होगी । क्योंकि अपनी योजना पर अमल शुरु करने से पहले ही ट्रांसमीटर पर अपने चीफ से सम्पर्क करके उसे सब कुछ समझा दिया था । मैं जानती थी कि तुम तस्दीक किये बगैर मानने वाले … नहीं हो, इसलिए मैंने पहले ही पुख्ता इंतजाम कर दिया था । फिर तुम्हें 'वहीँ' सुनने को मिला, जो मै तुम्हें सुनाना चाहती थी और तुम जाल में फंस गये मार्शल !"
मेरी बात सुनकर नि:संदेह मार्शल की खोपडी फिरकनी की तरह नाचकर रह गई होगी ।
"म. . .मगर तुम्हें ये सब करने की क्या ज़रूरत आ पडी थी ?" मार्शल के होठों से वहीं कठिनाई से निकला !
उसी क्षण । जेल अधिकारियों से घिरे डगलस ने भीतर कदम रखा । वार्तालाप बीच मे ही रूपक गया ।
डगलस की निगाहें हम लोगों के ऊपर चकराती चली गई । उसके चेहरे परे उलझन के भाव थे ।
कदाचित वह समझ नहीं पा रहा था कि माजरा क्या है और उसे यहाँ क्यों लाया गया ।।
उसकी हालत देखकर लग रहा था कि उसे भी भयानक यातनाओं के दौर से गुजरना पंढ़ रहा था ।
कुछ पल के लिये ,वहां खामोशी ने अपने पांव पसार दिये थे ।
डगलस की घूमती निगाहे मेरे चेहरे पर स्थिर होकर रह गई । चेहरे पर सोच के भाव उभर आये थे । जाहिर था उसकी सोचों का केन्द्र मैं ही थी ।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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