धीरे धीरे दर्द कम होने लगा और उन्माद बढ़ने लगा। ज्योति भी कई महीनों से सुनीलजी से चुदवाने के लिए बेक़रार थी। यह सही था की ज्योति ने अपने पति से सुनीलजी से चुदवाने के लिये कोई इजाजत या परमिशन तो नहीं ली थी पर वह जानती थी की जस्सूजी उसके मन की बात भलीभांति जानते थे। जस्सूजी जानते थे की आज नहीं तो कल उनकी पत्नी सुनीलजी से चुदेगी जरूर।
धीरे सुनील का लण्ड ज्योति की चूत की पूरी सुरंग में घुस गया। सुनील का एक एक धक्का ज्योति को सातवें आसमान को छूने का अनुभव करा रहा था। सुनील धक्का ज्योति के पुरे बदन को हिला देता था। ज्योति की दोनों चूँचियाँ सुनील ने अपनी हथेलियों में कस के पकड़ रक्खी थीं। सुनील थोड़ा झुक कर अपना लण्ड पुरे जोश से ज्योति की चूत में पेल रहे थे।
सुनील की चुदाई ज्योति को इतनी उन्मादक कर रही थी की वह जोर से कराह कर अपनी कामातुरता को उजागर कर रही थी। ज्योति की ऊँचे आवाज वाली कराहट वाटर फॉल के शोर में कहीं नहीं सुनाई पड़ती थी। ज्योति उस समय सुनील के लण्ड का उसकी चूत में घुसना और निकलना ही अनुभव कर रही थी। उस समय उसे और कोई भी एहसास नहीं हो रहा था। सुनील उत्तेजना से ज्योति की चूतमें इतना जोशीला धक्का मार रहे थे की कई बार ज्योति ड़र रही थी की सुनील का लण्ड उसकी बच्चे दानी को ही फाड़ ना दे।
ज्योति को दर्द का कोई एहसास नहीं हो रहा था। दर्द जैसे गायब ही हो गया था और उसकी जगह सुनील का लण्ड ज्योति को अवर्णनीय सुख और उन्माद दे रहा था। जैसे सुनील का लण्ड ज्योति की चूत की सुरंग में अंदर बाहर हो रहा था, ज्योति को एक अद्भुत एहसास रहा था। ज्योति न सिर्फ सुनील से चुदवाना चाहती थी; उसे सुनील से तहे दिल से प्यार था।
उनकी कुशाग्र बुद्धिमत्ता, उनकी किसी भी मसले को प्रस्तुत करने की शैली, बातें करते समय उनके हावभाव और सबसे ज्यादा उनकी आँखों में जो एक अजीब सी चमक ने ज्योति के मन को चुरा लिया था। ज्योति सुनीलजी से इतनी प्रभावित थी की वह उनसे प्यार करने लगी थी। अपने पति से प्यार होते हुए भी वह सुनील से भी प्यार कर बैठी थी।
अक्सर यह शादीशुदा स्त्री और पुरुष दोनों में होता है। अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी को छोड़ किसी और स्त्री से प्यार करने लगता है और उससे सेक्स करता है (उसे चोदता है) तो इसका मतलब यह नहीं है की वह अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता। ठीक उसी तरह अगर कोई शादीशुदा स्त्री किसी और पुरुष को प्यार करने लगती है और वह प्यार से उससे चुदाई करवाती है तो इसका कतई भी यह मतलब नहीं निकालना चाहिए की वह अपने पति से प्यार नहीं करती।
हाँ यदि यह प्यार शादीशुदा पति या पत्नी के मन में उस परायी व्यक्ति के लिए पागलपन में बदल जाए जिससे वह अपने जोड़ीदार को पहले वाला प्यार करने में असमर्थ हो तब समस्या होती है।
बात वहाँ उलझ जाती है जहां स्त्री अथवा पुरुष अपने जोड़ीदार से यह अपेक्षा रखते हैं की उसका जोड़ीदार किसी अन्य व्यक्ति से प्यार ना करे और चुदाई तो नाही करे या करवाए। बात अधिकार माने अहम् पर आकर रुक जाती है। समस्या यहां से ही शुरू होती है।
जहां यह अहम् नहीं होता वहाँ समझदारी की वजह से पति और पत्नी में पर पुरुष या स्त्री के साथ गमन करने से (मतलब चोदने या चुदवाने से) वैमनस्यता (कलह) नहीं पैदा होती। बल्कि इससे बिलकुल उलटा वहाँ ज्यादा रोमांच और उत्तेजना के कारण उस चुदाई में सब को आनंद मिलता है यदि उसमें स्पष्ट या अष्पष्ट आपसी सहमति हो।
ज्योति को सुनील से तहे दिल से प्यार था और वही प्यार के कारण दोनों बदन में मिलन की कामना कई महीनों से उजागर थी। तलाश मौके की थी। ज्योति ने सुनील को जबसे पहेली बार देखा था तभी से वह उससे बड़ी प्रभावित थी।
उससे भी कहीं ज्यादा जब ज्योति ने देखा की सुनील उसे देख कर एकदम अपना होशोहवास खो बैठते थे तो वह समझ गयी की कहीं ना कहीं सुनीलजी के मन में भी ज्योति के लिए वही प्यार था और उनकी ज्योति के कमसिन बदन से सम्भोग (चोदने) की इच्छा प्रबल थी यह महसूस कर ज्योति की सुनील से चुदवाने की इच्छा दुगुनी हो गयी।
जैसे जैसे सुनील ने ज्योति को चोदने की रफ़्तार बढ़ाई, ज्योति का उन्माद भी बढ़ने लगा। जैसे ही सुनील ज्योति की चूत में अपने कड़े लण्ड का अपने पेंडू के द्वारा एक जोरदार धक्का मारता था, ज्योति का पूरा बदन ना सिर्फ हिल जाता था, ज्योति के मुंह से प्यार भरी उन्मादक कराहट निकल जाती थी। अगर उस समय वाटर फॉल का शोर ना होता तो ज्योति की कराहट पूरी वादियों में गूंजती।
सुनील की बुद्धि और मन में उस समय एक मात्र विचार यह था की ज्योति की चूत में कैसे वह अपना लण्ड गहराई तक पेल सके जिससे ज्योति सुनील से चुदाई का पूरा आनंद ले सके। पानी में खड़े हो कर चुदाई करने से सुनील कोज्यादा ताकत लगानी पड़ रही थी और ज्योति की गाँड़ पर उसके टोटे (अंडकोष) उतने जोर से थप्पड़ नहीं मार पाते थे जितना अगर वह ज्योति को पानी के बाहर चोदते।
पर पानी में ज्योति को चोदने का मजा भी तो कुछ और था। ज्योति को भी सुनील से पानी में चुदाई करवाने में कुछ और ही अद्भुत रोमांच का अनुभव हो रहा था। सुनील एक हाथ से ज्योति की गाँड़ के गालों पर हलकी सी प्यार भरी चपत अक्सर लगाते रहते थे जिसके कारण ज्योति का उन्माद और बढ़ जाता था। ज्योति की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए सुनील का एक हाथ ज्योति को दोनों स्तनोँ पर अपना अधिकार जमाए हुए था।
सुनील को कई महीनों से ज्योति को चोदने के चाह के कारण सुनील के एंड कोष में भरा हुआ वीर्य का भण्डार बाहर आकर ज्योति की चूत को भर देने के लिए बेताब था। सुनील अपने वीर्य की ज्योति की चूत की सुरंग में छोड़ने की मीठी अनुभूति करना चाहते थे। ज्योति की नंगी गाँड़ जो उनको अपनी आँखों के सामने दिख रही थी वह सुनील को पागल कर रही थी।
सुनील का धैर्य (या वीर्य?) छूटने वाला ही था। ज्योति ने भी अनुभव किया की अगर उसी तरह सुनील उसे चोदते रहे तो जल्द ही सुनील अपना सारा वीर्य ज्योति की सुरंग में छोड़ देंगे। ज्योति को पूरी संतुष्टि होनी बाकी थी। उसे चुदाई का और भी आनंद लेना था। ज्योति ने सुनील को रुकने के लिए कहा।
सुनील के रुकते ही ज्योति ने सुनील को पानी के बाहर किनारे पर रेत में सोने के लिए अनुग्रह किया। सुनील रेत पर लेट गए। ज्योति शेरनी की तरह सुनील के ऊपर सवार हो गयी। ज्योति ने सुनील का फुला हुआ लण्ड अपनी उँगलियों में पकड़ा और अपना बदन नीचा करके सुनील का पूरा लण्ड अपनी चूत में घुसेड़ दिया।
अब ज्योति सुनील की चुदाई कर रही थी। ज्योति को उस हाल में देख ऐसा लगता था जैसे ज्योति पर कोई भूत सवार हो गया हो। ज्योति अपनी गाँड़ के साथ अपना पूरा पेंडू पहले वापस लेती थी और फिर पुरे जोश से सुनील के लण्ड पर जैसे आक्रमण कर रही हो ऐसे उसे पूरा अपनी चूत की सुरंग में घुसा देती थी। ऐसा करते हुए ज्योति का पूरा बदन हिल जाता था। ज्योति के स्तन इतने हिल तरहे थे की देखते ही बनता था।
ज्योति की चूत की फड़कन बढ़ती ही जा रही थी। ज्योति का उन्माद उस समय सातवें आसमान पर था। ज्योति को उस समय अपनी चूत में रगड़ खा रहे सुनील के लण्ड के अलावा कोई भी विचार नहीं आ रहा था। वह रगड़ के कारण पैदा हो रही उत्तेजना और उन्माद ज्योति को उन्माद की चोटी पर लेजाने लगा था। ज्योति के अंदर भरी हुई वासना का बारूद फटने वाला था।
सुनील को चोदते हुए ज्योति की कराहट और उन्माद पूर्ण और जोरदार होती जा रही थी। सुनील का वीर्य का फव्वारा भी छूटने वाला ही था। अचानक सुनील के दिमाग में जैसे एक पटाखा सा फूटा और एक दिमाग को हिला देने वाले धमाके के साथ सुनील के लण्ड के केंद्रित छिद्र से उसके वीर्य का फव्वारा जोर से फुट पड़ा।
जैसे ही ज्योति ने अपनी चूत की सुरंग में सुनील के गरमा गरम वीर्य का फव्वारा अनुभव किया की वह भी अपना नियत्रण खो बैठी और एक धमाका सा हुआ जो ज्योति के पुरे बदन को हिलाने लगा। ज्योति को ऐसा लगा जैसे उसके दिमाग में एक गजब का मीठा और उन्मादक जोरदार धमाका हुआ। जिसकेकारण उसका पूरा बदन हिल गया और उसकी पूरी शक्ति और ऊर्जा उस धमाके में समा गयी।
चंद पलों में ही ज्योति निढाल हो कर सुनील पर गिर पड़ी। सुनील का लण्ड तब भी ज्योति की चूत में ही था। पर ज्योति अपनी आँखें बंद कर उस अद्भुत अनुभव का आनंद ले रही थी।
end
Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete
सुनीता जैसे ही जस्सूजी की बाँहों में समायी उसने जस्सूजी के खड़े लण्ड को महसूस किया। सुनीता जानती थी की जस्सूजी उस पर कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे पर बेचारा जस्सूजी का लण्ड कहाँ मानने वाला था? सुनीता को ऐसे स्विमिंग कॉस्च्यूम में देख कर जस्सूजी के लण्ड का खड़ा होकर जस्सूजी की निक्कर में फनफनाना स्वाभाविक ही था।
सुनीता को जस्सूजी के लण्ड से कोई शिकायत नहीं थी। दो बार सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड की गरमी अपने दक्ष हाथों के जादू से निकाल दी थी। सुनीता जस्सूजी के लण्ड की लम्बाई और मोटाई के बारे में भलीभांति वाकिफ थी। पर उस समय उसका एक मात्र लक्ष्य था की उसे जस्सूजी से तैरना सीखना था।
कई बार सुनीता को बड़ा अफ़सोस होता था की उसने तैरना नहीं सीखा था। काफी समय से सुनीता के मन में यह एक प्रबल इच्छा थी की वह तैरना सीखे।
जस्सूजी जैसे आला प्रशिक्षक से जब उसे तैरना सिखने का मौक़ा मिला तो भला वह उसे क्यों जाने दे? जहां तक जस्सूजी के उसके बदन छूने की बात थी तो वह सुनीता के लिए उतनी गंभीर बात नहीं थी।
सुनीता के मन में जस्सूजी का स्थान ह्रदय के इतना करीब था की उसका बस चलता तो वह अपनी पूरी जिंदगी जस्सूजी पर कुर्बान कर देती। जस्सूजी और सुनीता के संबंधों को लेकर बार बार अपने पति के उकसाने के कारण सुनीता के पुरे बदन में जस्सूजी का नाम सुनकर ही एक रोमांच सा हो जाता था।
जस्सूजी से शारीरिक संबंधों के बारेमें सुनीता के मन में हमेशा अजीबो गरीब ख़याल आते रहते थे। भला जिसको कोई इतना चाहता हो उसे कैसे कोई परहेज कर सकता है?
सुनीता मन में कहीं ना कहीं जस्सूजी को अपना प्रियतम तो मान ही चुकी थी। सुनीता के मन में जस्सूजी का शारीरिक और मानसिक आकर्षण उतना जबरदस्त था की अगर उसके पाँव माँ के वचन ने रोके नहीं होते तो शायद अब तक सुनीता जस्सूजी से चुद चुकी होती। पर एक आखरी पड़ाव पार करना बाकी था शायद इस के कारण अब भी जस्सूजी से सुनीता के मन में कुछ शर्म और लज्जा और दुरी का भाव था।
या यूँ कहिये की कोई दुरी नहीं होती है तब भी जिसे आप इतना सम्मान करते हैं और उतना ही प्यार करते हो तो उसके सामने निर्लज्ज तो नहीं हो सकते ना? उनसे कुछ लज्जा और शर्म आना स्वाभाविक भारतीय संस्कृति है।
जब जस्सूजी के सामने सुनीता ने आधी नंगी सी आने में हिचकिचाहट की तो जस्सूजी की रंजिश सुनीता को दिखाई दी। सुनीता जानती थी की जस्सूजी कभी भी सुनीता को बिना रजामंदी के चोदने की बात तो दूर वह किसी भी तरह से छेड़ेंगे भी नहीं।
पर फिर भी सुनीता कभी इतने छोटे कपड़ों में सूरज के प्रकाश में जस्सूजी के सामने प्रस्तुत नहीं हुई थी। इस लिए उसे शर्म और लज्जा आना स्वाभाविक था। शायद ऐसे कपड़ों में पत्नीयाँ भी अपने पति के सामने हाजिर होने से झिझकेंगी।
जब जस्सूजी ने सुनीता की यह हिचकिचाहट देखि तो उन्हें दुःख हुआ। उनको लगा सुनीता को उनके करीब आने डर रही थी की कहीं जस्सूजी सुनीता पर जबरदस्ती ना कर बैठे।
हार कर जस्सूजी पानी से बाहर निकल आये और कैंप में वापस जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सुनीता से इतना ही कहा की जब सुनीता उन्हें अपना नहीं मानती और उनसे पर्दा करती है तो फिर बेहतर है वह सुनीता से दूर ही रहें।
इस बात से सुनीता को इतना बुरा लगा की वह भाग कर जस्सूजी की बाँहों में लिपट गयी और उसने जस्सूजी से कहा, “अब मैं आपको नहीं रोकूंगी। मैं आपको अपनों से कहीं ज्यादा मानती हूँ। अब आप मुझसे जो चाहे करो।”
उसी समय सुनीता ने तय किया की वह जस्सूजी पर पूरा विश्वास रखेगी और तब उसने मन से अपना सब कुछ जस्सूजी के हाथों में सौंप दिया। पर जस्सूजी भी तो अकड़ू थे।
वह दया, दान, मज़बूरी या भिक्षा नहीं वह अपनी प्रियतमा से प्यार भरा सक्रीय एवं स्वैच्छिक सम्पूर्ण आत्म समर्पण चाहते थे।
ट्रैन में सफर करते हुए जस्सूजी सुनीता के बिस्तर में जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे।
कैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण खो दिया? जब सुनीता ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह उनसे शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकती तब क्यों वह सुनीता के बिस्तर में चले गए? यह तो उनके सिद्धांतों के बिलकुल विरुद्ध था।
उन्होंने सुनीता के सामने सौगंध सी खायी थी की जब तक सुनीता सामने चलकर अपना स्वैच्छिक सक्रीय एवं सम्पूर्ण आत्म समर्पण नहीं करेगी तब तक वह सुनीता को किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध के लिए बाध्य नहीं करेंगे।
पर फीर भी ट्रैन में उस रात सुनीता के थोड़ा उकसाने पर वह सुनीता के बिस्तर में घुस गए और अपनी इज्जत दाँव पर लगा दी यह पछतावा जस्सूजी के ह्रदय को खाये जा रहा था।
सुनीता ने तो अपने मन में तय कर लिया की जस्सूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जस्सूजी ने सुनीता को चोदने की इच्छा जताई तो सुनीता जस्सूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा।
पर सुनीता को पूरा भरोसा था की जस्सूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी सुनीता का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।
जस्सूजी ने सुनीता को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा।
खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए सुनीता को दिखाया। और सुनीता को भी ऐसा ही करने को कहा।
सुनीता जस्सूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जस्सूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह सुनीता की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए।
सुनीता की नंगी गाँड़ देख कर जस्सूजी का लण्ड जस्सूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जस्सूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जस्सूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया।
जस्सूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने सुनीता के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब सुनीता ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ।
वह जानती थी की जस्सूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। सुनीता को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जस्सूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।
खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर सुनीता ने जस्सूजी का हाथ थामा और कहा, “जस्सूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?”
सुनीता को जस्सूजी के लण्ड से कोई शिकायत नहीं थी। दो बार सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड की गरमी अपने दक्ष हाथों के जादू से निकाल दी थी। सुनीता जस्सूजी के लण्ड की लम्बाई और मोटाई के बारे में भलीभांति वाकिफ थी। पर उस समय उसका एक मात्र लक्ष्य था की उसे जस्सूजी से तैरना सीखना था।
कई बार सुनीता को बड़ा अफ़सोस होता था की उसने तैरना नहीं सीखा था। काफी समय से सुनीता के मन में यह एक प्रबल इच्छा थी की वह तैरना सीखे।
जस्सूजी जैसे आला प्रशिक्षक से जब उसे तैरना सिखने का मौक़ा मिला तो भला वह उसे क्यों जाने दे? जहां तक जस्सूजी के उसके बदन छूने की बात थी तो वह सुनीता के लिए उतनी गंभीर बात नहीं थी।
सुनीता के मन में जस्सूजी का स्थान ह्रदय के इतना करीब था की उसका बस चलता तो वह अपनी पूरी जिंदगी जस्सूजी पर कुर्बान कर देती। जस्सूजी और सुनीता के संबंधों को लेकर बार बार अपने पति के उकसाने के कारण सुनीता के पुरे बदन में जस्सूजी का नाम सुनकर ही एक रोमांच सा हो जाता था।
जस्सूजी से शारीरिक संबंधों के बारेमें सुनीता के मन में हमेशा अजीबो गरीब ख़याल आते रहते थे। भला जिसको कोई इतना चाहता हो उसे कैसे कोई परहेज कर सकता है?
सुनीता मन में कहीं ना कहीं जस्सूजी को अपना प्रियतम तो मान ही चुकी थी। सुनीता के मन में जस्सूजी का शारीरिक और मानसिक आकर्षण उतना जबरदस्त था की अगर उसके पाँव माँ के वचन ने रोके नहीं होते तो शायद अब तक सुनीता जस्सूजी से चुद चुकी होती। पर एक आखरी पड़ाव पार करना बाकी था शायद इस के कारण अब भी जस्सूजी से सुनीता के मन में कुछ शर्म और लज्जा और दुरी का भाव था।
या यूँ कहिये की कोई दुरी नहीं होती है तब भी जिसे आप इतना सम्मान करते हैं और उतना ही प्यार करते हो तो उसके सामने निर्लज्ज तो नहीं हो सकते ना? उनसे कुछ लज्जा और शर्म आना स्वाभाविक भारतीय संस्कृति है।
जब जस्सूजी के सामने सुनीता ने आधी नंगी सी आने में हिचकिचाहट की तो जस्सूजी की रंजिश सुनीता को दिखाई दी। सुनीता जानती थी की जस्सूजी कभी भी सुनीता को बिना रजामंदी के चोदने की बात तो दूर वह किसी भी तरह से छेड़ेंगे भी नहीं।
पर फिर भी सुनीता कभी इतने छोटे कपड़ों में सूरज के प्रकाश में जस्सूजी के सामने प्रस्तुत नहीं हुई थी। इस लिए उसे शर्म और लज्जा आना स्वाभाविक था। शायद ऐसे कपड़ों में पत्नीयाँ भी अपने पति के सामने हाजिर होने से झिझकेंगी।
जब जस्सूजी ने सुनीता की यह हिचकिचाहट देखि तो उन्हें दुःख हुआ। उनको लगा सुनीता को उनके करीब आने डर रही थी की कहीं जस्सूजी सुनीता पर जबरदस्ती ना कर बैठे।
हार कर जस्सूजी पानी से बाहर निकल आये और कैंप में वापस जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सुनीता से इतना ही कहा की जब सुनीता उन्हें अपना नहीं मानती और उनसे पर्दा करती है तो फिर बेहतर है वह सुनीता से दूर ही रहें।
इस बात से सुनीता को इतना बुरा लगा की वह भाग कर जस्सूजी की बाँहों में लिपट गयी और उसने जस्सूजी से कहा, “अब मैं आपको नहीं रोकूंगी। मैं आपको अपनों से कहीं ज्यादा मानती हूँ। अब आप मुझसे जो चाहे करो।”
उसी समय सुनीता ने तय किया की वह जस्सूजी पर पूरा विश्वास रखेगी और तब उसने मन से अपना सब कुछ जस्सूजी के हाथों में सौंप दिया। पर जस्सूजी भी तो अकड़ू थे।
वह दया, दान, मज़बूरी या भिक्षा नहीं वह अपनी प्रियतमा से प्यार भरा सक्रीय एवं स्वैच्छिक सम्पूर्ण आत्म समर्पण चाहते थे।
ट्रैन में सफर करते हुए जस्सूजी सुनीता के बिस्तर में जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे।
कैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण खो दिया? जब सुनीता ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह उनसे शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकती तब क्यों वह सुनीता के बिस्तर में चले गए? यह तो उनके सिद्धांतों के बिलकुल विरुद्ध था।
उन्होंने सुनीता के सामने सौगंध सी खायी थी की जब तक सुनीता सामने चलकर अपना स्वैच्छिक सक्रीय एवं सम्पूर्ण आत्म समर्पण नहीं करेगी तब तक वह सुनीता को किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध के लिए बाध्य नहीं करेंगे।
पर फीर भी ट्रैन में उस रात सुनीता के थोड़ा उकसाने पर वह सुनीता के बिस्तर में घुस गए और अपनी इज्जत दाँव पर लगा दी यह पछतावा जस्सूजी के ह्रदय को खाये जा रहा था।
सुनीता ने तो अपने मन में तय कर लिया की जस्सूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जस्सूजी ने सुनीता को चोदने की इच्छा जताई तो सुनीता जस्सूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा।
पर सुनीता को पूरा भरोसा था की जस्सूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी सुनीता का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।
जस्सूजी ने सुनीता को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा।
खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए सुनीता को दिखाया। और सुनीता को भी ऐसा ही करने को कहा।
सुनीता जस्सूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जस्सूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह सुनीता की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए।
सुनीता की नंगी गाँड़ देख कर जस्सूजी का लण्ड जस्सूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जस्सूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जस्सूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया।
जस्सूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने सुनीता के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब सुनीता ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ।
वह जानती थी की जस्सूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। सुनीता को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जस्सूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।
खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर सुनीता ने जस्सूजी का हाथ थामा और कहा, “जस्सूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?”
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete
ज्योति की बात सुनकर सुनीलजी मुस्कुरा दिए। अपने आप को सम्हालते हुए बोले, “ज्योति मैं सच कहता हूँ। पता नहीं तुम्हें देख कर मुझे क्या हो जाता है। मैं अपना आपा खो बैठता हूँ। आज तक मुझे किसी भी लड़की या स्त्री के लिए ऐसा भाव नहीं हुआ। ज्योति के लिए भी नहीं।”
ज्योति ने कहा, “सुनीलजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की ‘पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की ____ लगती है।; ज्योति सुनीलजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी।
ज्योति की बात सुनकर सुनीलजी हंस पड़े और ज्योति की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, “ज्योति, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।”
ज्योति सुनीलजी की नजर अपनी गाँड़ पर फिरती हुई देख कर शर्मा गयी और उसे नजर अंदाज करते हुए उलटा लेटे हुए अपने पाँव काफी ऊपर की और उठाकर पानी की सतह पर जैसे सुनीलजी ने बताया था ऐसे पछाड़ने लगी।
पर ऐसा करने से तो सुनीलजी को ज्योति की चूत पर टिकाई हुई ज्योति के कॉस्च्यूम की पट्टी खिसकती दिखी और एक पल के लिए ज्योति की खूबसूरत चूत का छोटा सा हिस्सा दिख गया।
यह नजारा देख कर सुनीलजी का मन डाँवाँडोल हो रहा था। ज्योति काफी कोशिश करने पर भी पानी की सतह पर ठीक से लेट नहीं पा रही थी और बार बार उसक पाँव जमीन को छू लेते थे।
सुनीलजी ने बड़ी मुश्किल से अपनी नजर ज्योति की जाँघों के बिच से हटाई और ज्योति के पेट के निचे अपना हाथ देकर ज्योति को ऊपर उठाया।
ज्योति ने वैसे ही अपने पाँव काफी ऊपर तक उठा कर पछाड़ती रही और ना चाहते हुए भी सुनीलजी की नजर ज्योति की चूत के तिकोने हिस्से को बारबार देखने के लिए तड़पती रही।
ज्योति सुनीलजी के मन की दुविधा भलीभाँति जानती थी पर खुद भी तो असहाय थी।
ऐसे ही कुछ देर तक पानी में हाथ पाँव मारने के बाद जब ज्योति कुछ देर तक पानी की सतह पर टिकी रह पाने लगी तब सुनीलजी ने ज्योति से कहा, “अब तुम पानी की सतह पर अपना बदन तैरता हुआ रख सकती हो। क्या अब तुम थोड़ा तैरने की कोशिश करने के लिए तैयार हो?”
ज्योति को पानी से काफी डर लगता था। उसने सुनीलजी से लिपट कर कहा, “जैसे आप कहो। पर मुझे पानी से बहुत डर लगता है। आप प्लीज मुझे पकडे रखना।”
सुनीलजी ने कहा, “अगर मैं तुम्हें पकड़ रखूंगा तो तुम तैरना कैसे सिखोगी? अपनी और से भी तुम्हें कुछ कोशिश तो करनी पड़ेगी ना?”
ज्योति ने कहा, “आप जैसा कहोगे, मैं वैसा ही करुँगी। अब मेरी जान आप के हाथ में है।”
सुनीलजी और ज्योति फिर थोड़े गहरे पानी में आ गए। ज्योति का बुरा हाल था। वह सुनीलजी की बाँह पकड़ कर तैरने की कोशिश कर रही थी।
सुनीलजी ने ज्योति को पहले जैसे ही पानी की सतह पर उलटा लेटने को कहा और पहले ही की तरह पाँव उठाकर पछाड़ने को कहा, साथ साथ में हाथ हिलाकर पानी पर तैरते रहने की हिदायत दी।
पहली बार ज्योति ने जब सुनीलजी का हाथ छोड़ा और पानी की सतह पर उलटा लेटने की कोशिश की तो पानी में डूबने लगी। जैसे ही पानी में उसका मुंह चला गया, ज्योति की साँस फूलने लगी।
जब वह साँस नहीं ले पायी और कुछ पानी भी पी गयी तो वह छटपटाई और इधर उधर हाथ मारकर सुनीलजी को पकड़ने की कोशिश करने लगी।
दोनों हाथोँ को बेतहाशा इधर उधर मारते हुए अचानक ज्योति के हाथों की पकड़ में सुनीलजी की जाँघें आ गयी। ज्योति सुनीलजी की जाँघों को पकड़ पानी की सतह के ऊपर आने की कोशिश करने लगी और ऐसा करते ही सुनीलजी की निक्कर का निचला छोर उसके हाथों में आ गया।
ज्योति ने छटपटाहट में उसे कस के पकड़ा और खुद को ऊपर उठाने की कोशिश की तो सुनीलजी की निक्कर पूरी निचे खिसक गयी और सुनीलजी का फुला हुआ मोटा लण्ड ज्योति के हांथों में आ गया।
.......................
ज्योति ने कहा, “सुनीलजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की ‘पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की ____ लगती है।; ज्योति सुनीलजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी।
ज्योति की बात सुनकर सुनीलजी हंस पड़े और ज्योति की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, “ज्योति, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।”
ज्योति सुनीलजी की नजर अपनी गाँड़ पर फिरती हुई देख कर शर्मा गयी और उसे नजर अंदाज करते हुए उलटा लेटे हुए अपने पाँव काफी ऊपर की और उठाकर पानी की सतह पर जैसे सुनीलजी ने बताया था ऐसे पछाड़ने लगी।
पर ऐसा करने से तो सुनीलजी को ज्योति की चूत पर टिकाई हुई ज्योति के कॉस्च्यूम की पट्टी खिसकती दिखी और एक पल के लिए ज्योति की खूबसूरत चूत का छोटा सा हिस्सा दिख गया।
यह नजारा देख कर सुनीलजी का मन डाँवाँडोल हो रहा था। ज्योति काफी कोशिश करने पर भी पानी की सतह पर ठीक से लेट नहीं पा रही थी और बार बार उसक पाँव जमीन को छू लेते थे।
सुनीलजी ने बड़ी मुश्किल से अपनी नजर ज्योति की जाँघों के बिच से हटाई और ज्योति के पेट के निचे अपना हाथ देकर ज्योति को ऊपर उठाया।
ज्योति ने वैसे ही अपने पाँव काफी ऊपर तक उठा कर पछाड़ती रही और ना चाहते हुए भी सुनीलजी की नजर ज्योति की चूत के तिकोने हिस्से को बारबार देखने के लिए तड़पती रही।
ज्योति सुनीलजी के मन की दुविधा भलीभाँति जानती थी पर खुद भी तो असहाय थी।
ऐसे ही कुछ देर तक पानी में हाथ पाँव मारने के बाद जब ज्योति कुछ देर तक पानी की सतह पर टिकी रह पाने लगी तब सुनीलजी ने ज्योति से कहा, “अब तुम पानी की सतह पर अपना बदन तैरता हुआ रख सकती हो। क्या अब तुम थोड़ा तैरने की कोशिश करने के लिए तैयार हो?”
ज्योति को पानी से काफी डर लगता था। उसने सुनीलजी से लिपट कर कहा, “जैसे आप कहो। पर मुझे पानी से बहुत डर लगता है। आप प्लीज मुझे पकडे रखना।”
सुनीलजी ने कहा, “अगर मैं तुम्हें पकड़ रखूंगा तो तुम तैरना कैसे सिखोगी? अपनी और से भी तुम्हें कुछ कोशिश तो करनी पड़ेगी ना?”
ज्योति ने कहा, “आप जैसा कहोगे, मैं वैसा ही करुँगी। अब मेरी जान आप के हाथ में है।”
सुनीलजी और ज्योति फिर थोड़े गहरे पानी में आ गए। ज्योति का बुरा हाल था। वह सुनीलजी की बाँह पकड़ कर तैरने की कोशिश कर रही थी।
सुनीलजी ने ज्योति को पहले जैसे ही पानी की सतह पर उलटा लेटने को कहा और पहले ही की तरह पाँव उठाकर पछाड़ने को कहा, साथ साथ में हाथ हिलाकर पानी पर तैरते रहने की हिदायत दी।
पहली बार ज्योति ने जब सुनीलजी का हाथ छोड़ा और पानी की सतह पर उलटा लेटने की कोशिश की तो पानी में डूबने लगी। जैसे ही पानी में उसका मुंह चला गया, ज्योति की साँस फूलने लगी।
जब वह साँस नहीं ले पायी और कुछ पानी भी पी गयी तो वह छटपटाई और इधर उधर हाथ मारकर सुनीलजी को पकड़ने की कोशिश करने लगी।
दोनों हाथोँ को बेतहाशा इधर उधर मारते हुए अचानक ज्योति के हाथों की पकड़ में सुनीलजी की जाँघें आ गयी। ज्योति सुनीलजी की जाँघों को पकड़ पानी की सतह के ऊपर आने की कोशिश करने लगी और ऐसा करते ही सुनीलजी की निक्कर का निचला छोर उसके हाथों में आ गया।
ज्योति ने छटपटाहट में उसे कस के पकड़ा और खुद को ऊपर उठाने की कोशिश की तो सुनीलजी की निक्कर पूरी निचे खिसक गयी और सुनीलजी का फुला हुआ मोटा लण्ड ज्योति के हांथों में आ गया।
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- kunal
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete
जान बचाने की छटपटाहट के मारे ज्योति ने सुनीलजी के लण्ड को कस के पकड़ा और उसे पकड़ कर खुद को ऊपर आने की लिए खिंच कर हिलाने लगी।
ज्योति के मन में एक तरफ अपनी जान बचाने की छटपटाहट थी तो कहीं ना कहीं सुनीलजी का मोटा और काफी लंबा लण्ड हाथों में आने के कारण कुछ अजीब सी उत्तेजना भी थी।
सुनीलजी ने पानी के निचे अपना लण्ड ज्योति के हाथों में महसूस किया तो वह उछल पड़े। उन्होंने झुक कर ज्योति का सर पकड़ा और ज्योति को पानी से बाहर निकाला। ज्योति काफी पानी पी चुकी थी। ज्योति की साँसे फूल रही थीं।
सुनीलजी ज्योति को अपनी बाँहों में उठाकर चल कर किनारे ले आये और रेत में लिटा कर ज्योति के उन्मत्त स्तनोँ के ऊपर अपने हाथों से अपना पूरा वजन देकर उन्हें दबाने लगे जिससे ज्योति पीया हुआ पानी उगल दे और उसकी साँसें फिर से साधारण चलने लग जाएँ।
तीन या चार बार यह करने से ज्योति के मुंह से काफी सारा पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। जैसे ही पानी निकला तो ज्योति की साँसे फिर से साधारण गति से चलने लगीं।
ज्योति ने जब आँखें खोलीं तो सुनीलजी को अपने स्तनोँ को दबाते हुए पाया। ज्योति ने देखा की सुनीलजी ज्योति को लेकर काफी चिंतित थे।
उन्हें यह भी होश नहीं था की अफरातफरी में उनकी निक्कर पानी में छूट गयी थी और वह नंगधडंग थे। सुनीलजी यह सोच कर परेशान थे की कहीं ज्योति की हालत और बिगड़ गयी तो किसको बुलाएंगे यह देखने के लिए वह इधर उधर देख रहे थे।
ज्योति फिर अपनी आँखें मूंद कर पड़ी रही। सुनीलजी का हाथ जो उसके स्तनों को दबा रहा था ज्योति को वह काफी उत्तेजित कर रहा था।
पर चूँकि ज्योति सुनीलजी को ज्यादा परेशान नहीं देखना चाहती थी इस लिए उसने सुनीलजी का हाथ पकड़ा ताकि सुनीलजी समझ जाएँ की ज्योति अब ठीक थी, पर वैसे ही पड़ी रही। चूँकि ज्योति ने सुनीलजी का हाथ कस के पकड़ा था, सुनीलजी अपना हाथ ज्योति के स्तनोँ पर से हटा नहीं पाए।
जब सुनीलजी ने ज्योति के स्तनोँ के ऊपर से अपना हाथ हटा ने की कोशिश की तब ज्योति ने फिर से उनका हाथ कस के पकड़ा और बोली, “सुनीलजी, आप हाथ मत हटाइये। मुझे अच्छा लग रहा है।”
ऐसा कह कर ज्योति ने सुनीलजी को अपने स्तनोँ को दबाने की छूट देदी। सुनीलजी ना चाहते हुए भी ज्योति के उन्नत स्तनोँ को मसलने से अपने आपको रोक नहीं पाए।
ज्योति ने अपना हाथ खिसकाया और सुनीलजी का खड़ा अल्लड़ लण्ड एक हाथ में लिया तब सुनीलजी को समझ आया की वह पूरी तरह से नंगधडंग थे। सुनीलजी ज्योति के हाथ से अपना लण्ड छुड़ाकर एकदम भाग कर पानी में चले गए और अपनी निक्कर ढूंढने लगे।
जब उनको निक्कर मिल गयी और वह उसे पहनने लगे थे की ज्योति सुनीलजी के पीछे चलती हुई उनके पास पहुँच गयी।
सुनीलजी के हाथ से एक ही झटके में उनकी निक्कर छिनती हुई बोली, “सुनीलजी, निक्कर छोड़िये। अब हम दोनों के बिच कोई पर्दा रखने की जरुरत नहीं है।”
ऐसा कह कर ज्योति ने सुनीलजी की निक्कर को पानी के बाहर फेंक दिया। फिर ज्योति ने अपनी बाँहें फैला कर सुनीलजी से कहा, “अब मुझे भी कॉस्च्यूम को पहनने की जरुरत नहीं है। चलिए मुझे आप अपना बना लीजिये। या मैं यह कहूं की आइये और अपने मन की सारी इच्छा पूरी कीजिये?”
यह कह कर जैसे ही ज्योति अपना कॉस्च्यूम निकाल ने के लिए तैयार हुई की सुनीलजी ने ज्योति का हाथ पकड़ा और बोले, “ज्योति नहीं। खबरदार! तुम अपना कॉस्च्यूम नहीं निकालोगी। मैं तुम्हें सौगंध देता हूँ। मैं तुम्हें तभी निर्वस्त्र देखूंगा जब तुम अपना शरीर मेरे सामने घुटने टेक कर तब समर्पित करोगी जब तुम्हारा प्रण पूरा होगा। मैं तुम्हें अपना वचन तोडने नहीं दूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कई जन्मों तक ही इंतजार क्यों ना करना पड़े।”
यह बात सुनकर ज्योति का ह्रदय जैसे कटार के घाव से दो टुकड़े हो गया। अपने प्रीयतम के ह्रदय में वह कितना दुःख दे रही थी? ज्योति ने अपने आपको सुनीलजी को समर्पण करना भी चाहा पर सुनीलजी थे की मान नहीं रहे थे! वह क्या करे?
अब तो सुनीलजी ज्योति के कहने पर भी उसे कुछ नहीं करेंगे। ज्योति दुःख और भावनात्मक स्थिति में और कुछ ना बोल सकी और सुनीलजी से लिपट गयी।
सुनीलजी का खड़ा फनफनाता लण्ड ज्योति की चूत में घुसने के लिए जैसे पागल हो रहा था, पर अपने मालिक की नामर्जी के कारण असहाय था। इस मज़बूरी में जब ज्योति सुनीलजी से लिपट गयी तो वह ज्योति के कॉस्च्यूम के कपडे पर अपना दबाव डाल कर ही अपना मन बहला रहा था।
सुनीलजी ने सारी इधर उधर की बातों पर ध्यान ना देते हुए कहा, “देखो ज्योति, तैरने का एक मूलभूत सिद्धांत समझो। जब आप पानी में जाते हो तो यह समझलो की पानी आपको अपने अंदर नहीं रखना चाहता। हमारा शरीर पानी से हल्का है। पर हम इसलिए डूबते हैं क्यूंकि हम डूबना नहीं चाहते और इधर उधर हाथ पाँव मारते हैं…
पानी की सतह पर अगर आप अपना बदन ढीला छोड़ देंगे और भरोसा रखोगे की पानी आपको डुबाएगा नहीं तो आप डूबेंगे नहीं। इसके बाद सुनियोजित ताल मेल से हाथ और पाँव चलाइये। आप पानी में ना सिर्फ तैरेंगे बल्कि आप पानी को काट कर आगे बढ़ेंगे। यही सुनियोजित तालमेल से हाथ पैर चलाने को ही तैरना कहते हैं।”
ज्योति के मन में एक तरफ अपनी जान बचाने की छटपटाहट थी तो कहीं ना कहीं सुनीलजी का मोटा और काफी लंबा लण्ड हाथों में आने के कारण कुछ अजीब सी उत्तेजना भी थी।
सुनीलजी ने पानी के निचे अपना लण्ड ज्योति के हाथों में महसूस किया तो वह उछल पड़े। उन्होंने झुक कर ज्योति का सर पकड़ा और ज्योति को पानी से बाहर निकाला। ज्योति काफी पानी पी चुकी थी। ज्योति की साँसे फूल रही थीं।
सुनीलजी ज्योति को अपनी बाँहों में उठाकर चल कर किनारे ले आये और रेत में लिटा कर ज्योति के उन्मत्त स्तनोँ के ऊपर अपने हाथों से अपना पूरा वजन देकर उन्हें दबाने लगे जिससे ज्योति पीया हुआ पानी उगल दे और उसकी साँसें फिर से साधारण चलने लग जाएँ।
तीन या चार बार यह करने से ज्योति के मुंह से काफी सारा पानी फव्वारे की तरह निकल पड़ा। जैसे ही पानी निकला तो ज्योति की साँसे फिर से साधारण गति से चलने लगीं।
ज्योति ने जब आँखें खोलीं तो सुनीलजी को अपने स्तनोँ को दबाते हुए पाया। ज्योति ने देखा की सुनीलजी ज्योति को लेकर काफी चिंतित थे।
उन्हें यह भी होश नहीं था की अफरातफरी में उनकी निक्कर पानी में छूट गयी थी और वह नंगधडंग थे। सुनीलजी यह सोच कर परेशान थे की कहीं ज्योति की हालत और बिगड़ गयी तो किसको बुलाएंगे यह देखने के लिए वह इधर उधर देख रहे थे।
ज्योति फिर अपनी आँखें मूंद कर पड़ी रही। सुनीलजी का हाथ जो उसके स्तनों को दबा रहा था ज्योति को वह काफी उत्तेजित कर रहा था।
पर चूँकि ज्योति सुनीलजी को ज्यादा परेशान नहीं देखना चाहती थी इस लिए उसने सुनीलजी का हाथ पकड़ा ताकि सुनीलजी समझ जाएँ की ज्योति अब ठीक थी, पर वैसे ही पड़ी रही। चूँकि ज्योति ने सुनीलजी का हाथ कस के पकड़ा था, सुनीलजी अपना हाथ ज्योति के स्तनोँ पर से हटा नहीं पाए।
जब सुनीलजी ने ज्योति के स्तनोँ के ऊपर से अपना हाथ हटा ने की कोशिश की तब ज्योति ने फिर से उनका हाथ कस के पकड़ा और बोली, “सुनीलजी, आप हाथ मत हटाइये। मुझे अच्छा लग रहा है।”
ऐसा कह कर ज्योति ने सुनीलजी को अपने स्तनोँ को दबाने की छूट देदी। सुनीलजी ना चाहते हुए भी ज्योति के उन्नत स्तनोँ को मसलने से अपने आपको रोक नहीं पाए।
ज्योति ने अपना हाथ खिसकाया और सुनीलजी का खड़ा अल्लड़ लण्ड एक हाथ में लिया तब सुनीलजी को समझ आया की वह पूरी तरह से नंगधडंग थे। सुनीलजी ज्योति के हाथ से अपना लण्ड छुड़ाकर एकदम भाग कर पानी में चले गए और अपनी निक्कर ढूंढने लगे।
जब उनको निक्कर मिल गयी और वह उसे पहनने लगे थे की ज्योति सुनीलजी के पीछे चलती हुई उनके पास पहुँच गयी।
सुनीलजी के हाथ से एक ही झटके में उनकी निक्कर छिनती हुई बोली, “सुनीलजी, निक्कर छोड़िये। अब हम दोनों के बिच कोई पर्दा रखने की जरुरत नहीं है।”
ऐसा कह कर ज्योति ने सुनीलजी की निक्कर को पानी के बाहर फेंक दिया। फिर ज्योति ने अपनी बाँहें फैला कर सुनीलजी से कहा, “अब मुझे भी कॉस्च्यूम को पहनने की जरुरत नहीं है। चलिए मुझे आप अपना बना लीजिये। या मैं यह कहूं की आइये और अपने मन की सारी इच्छा पूरी कीजिये?”
यह कह कर जैसे ही ज्योति अपना कॉस्च्यूम निकाल ने के लिए तैयार हुई की सुनीलजी ने ज्योति का हाथ पकड़ा और बोले, “ज्योति नहीं। खबरदार! तुम अपना कॉस्च्यूम नहीं निकालोगी। मैं तुम्हें सौगंध देता हूँ। मैं तुम्हें तभी निर्वस्त्र देखूंगा जब तुम अपना शरीर मेरे सामने घुटने टेक कर तब समर्पित करोगी जब तुम्हारा प्रण पूरा होगा। मैं तुम्हें अपना वचन तोडने नहीं दूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कई जन्मों तक ही इंतजार क्यों ना करना पड़े।”
यह बात सुनकर ज्योति का ह्रदय जैसे कटार के घाव से दो टुकड़े हो गया। अपने प्रीयतम के ह्रदय में वह कितना दुःख दे रही थी? ज्योति ने अपने आपको सुनीलजी को समर्पण करना भी चाहा पर सुनीलजी थे की मान नहीं रहे थे! वह क्या करे?
अब तो सुनीलजी ज्योति के कहने पर भी उसे कुछ नहीं करेंगे। ज्योति दुःख और भावनात्मक स्थिति में और कुछ ना बोल सकी और सुनीलजी से लिपट गयी।
सुनीलजी का खड़ा फनफनाता लण्ड ज्योति की चूत में घुसने के लिए जैसे पागल हो रहा था, पर अपने मालिक की नामर्जी के कारण असहाय था। इस मज़बूरी में जब ज्योति सुनीलजी से लिपट गयी तो वह ज्योति के कॉस्च्यूम के कपडे पर अपना दबाव डाल कर ही अपना मन बहला रहा था।
सुनीलजी ने सारी इधर उधर की बातों पर ध्यान ना देते हुए कहा, “देखो ज्योति, तैरने का एक मूलभूत सिद्धांत समझो। जब आप पानी में जाते हो तो यह समझलो की पानी आपको अपने अंदर नहीं रखना चाहता। हमारा शरीर पानी से हल्का है। पर हम इसलिए डूबते हैं क्यूंकि हम डूबना नहीं चाहते और इधर उधर हाथ पाँव मारते हैं…
पानी की सतह पर अगर आप अपना बदन ढीला छोड़ देंगे और भरोसा रखोगे की पानी आपको डुबाएगा नहीं तो आप डूबेंगे नहीं। इसके बाद सुनियोजित ताल मेल से हाथ और पाँव चलाइये। आप पानी में ना सिर्फ तैरेंगे बल्कि आप पानी को काट कर आगे बढ़ेंगे। यही सुनियोजित तालमेल से हाथ पैर चलाने को ही तैरना कहते हैं।”
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete
ज्योति सुनीलजी की बात बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसे सुनीलजी पर बड़ा ही प्यार आ रहा था। उस समय सुनीलजी का पूरा ध्यान ज्योति को तैराकी सिखाने पर था।
मन से असहाय और दुखी ज्योति को लेकर सुनीलजी फिर से गहरे पानी में पहुँच गए और फिर से ज्योति को पहले की तरह ही प्रैक्टिस करने को कहा। धीरे धीरे ज्योति का आत्मा विश्वास बढ़ने लगा। ज्योति सुनीलजी की कमर छोड़ कर अपने आपको पानी की सतह पर रखना सिख गयी।
इस बिच दो घंटे बीत चुके थे। सुनीलजी ने ज्योति को कहा, “आज के लिए इतना ही काफी है। बाकी हम कल करेंगे।” यह कह कर सुनीलजी पानी के बाहर आगये और ज्योति अपना मन मसोसती हुई महिलाओं के शावर रूम में चलीगयी।
ज्योति जब एकपडे बदल कर बाहर निकली तो सुनीलजी बाहर नहीं निकले थे। ज्योति को उसके पति सुनीलजी और ज्योतिजी आते हुए दिखाई दिए। दोनों ही काफी थके हुए लग रहे थे।
ज्योति को अंदाज हो गया की हो सकता है सुनीलजी की मन की चाहत उस दोपहर को पूरी हो गयी थी। ज्योतिजी भी पूरी तरह थकी हुई थी। ज्योति को देखते ही ज्योतिजी ने अपनी आँखें निचीं करलीं। ज्योति समझ गयी की पतिदेव ने ज्योति जी की अच्छी खासी चुदाई करी होगी।
ज्योति ने जब अपने पति की और देखा तो उन्होंने ने भी झेंपते हुए जैसे कोई गुनाह किया हो ऐसे ज्योति से आँख से आँख मिला नहीं पाए। ज्योति मन ही मन मुस्कुरायी।
वह अपने पति के पास गयी और अपनी आवाज और हावभाव में काफी उत्साह लाने की कोशिश करते हुए बोली, “डार्लिंग, सुनीलजी ना सिर्फ मैथ्स के बल्कि तैराकी के भी कमालके प्रशिक्षक हैं। मैं आज काफी तैरना सिख गयी।”
सुनीलजी ने अपनी पत्नी का हाथ थामा और थोड़ी देर पकडे रखा। फिर बिना कुछ बोले कपडे बदल ने के लिए मरदाना रूम में चले गए। अब ज्योतिजी और ज्योति आमने सामने खड़े थे।
ज्योतिजी अपने आपको रोक ना सकी और बोल पड़ी, “अच्छा? मेरे पतिदेव ने तुम्हें तैरने के अलावा और कुछ तो नहीं सिखाया ना?”
ज्योति भाग कर ज्योति जी से लिपट गयी और बोली, “दीदी आप ऐसे ताने क्यों मार रही हो? क्या आपको बुरा लगा? अगर ऐसा है तो मैं कभी आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगी। मैं सुनीलजी के पास फरकुंगी भी नहीं। बस?”
ज्योति जी ने ज्योति को अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, “पगली, मैं तो तुम्हारी टांग खिंच रही थी। मैं जानती हूँ, मेरे पति तुम्हें तुम्हारी मर्जी बगैर कुछ भी नहीं करेंगे। और तुमने तो मुझे पहले ही बता दिया है। तो फिर मैं चिंता क्यों करूँ? बल्कि मुझे उलटी और चिंता हो रही है। मुझे लग रहा है की कहीं निराशा या निष्फलता का भाव आप और सुनीलजी के सम्बन्ध पर हावी ना हो जाए।“
ज्योति को गले लगाते हुए ज्योतिजी की आँखों में आंसूं छलक आये। ज्योतिजी ज्योति को छाती पर चीपका कर बोली, “ज्योति! मेरी तुमसे यही बिनती है की तुम मेरे सुनीलजी का ख्याल रखना। मैं और कुछ नहीं कहूँगी।”
ज्योति ने ज्योति जी के गाल पर चुम्मी करते हुए कहा, “दीदी, सुनीलजी सिर्फ आपके ही नहीं है। वह मेरे भी हैं। मैं उनका पूरा ख्याल। रखूंगी।”
कुछ ही देर में सब कपडे बदल कर कैंप के डाइनिंग हॉल में खाना खाने पहुंचे।
खाना खाने के समय ज्योति ने महसूस किया की सुनीलजी काफी गंभीर लग रहे थे। पुरे भोजन दरम्यान वह कुछ बोले बिना चुप रहे। ज्योति ने सोचा की शायद सुनीलजी उससे नाराज थे।
भोजन के बाद जब सब उठ खड़े हुए तब सुनीलजी बैठे ही रहे और कुछ गंभीर विचारों में उलझे लग रहे थे। ज्योति को मन ही मन अफ़सोस हो रहा था की सुनीलजी जैसे रंगीले जांबाज़ को ज्योति ने कैसे रंगीन से गमगीन बना दिया था।
ज्योति भी जानबूझ कर खाने में देर करती हुई बैठी रही। ज्योतिजी सबसे पहले भोजन कर “थक गयी हूँ, थोड़ी देर सोऊंगी” यह कह कर अपने कमरे की और चल पड़ी।
उसके पीछे पीछे सुनीलजी भी, “आराम तो करना ही पड़ेगा” यह कह कर उठ कर चल पड़े।
जब दोनों निकल पड़े तब ज्योति सुनीलजी के करीब जा बैठी और हलके से सुनीलजी से बोली, “आप मेरे कारण दुखी हैं ना?”
सुनीलजी ने ज्योति की और कुछ सोचते हुए आश्चर्य से देखा और बोले, “नहीं तो। मैं आपके कारण क्यों परेशान होने लगा?”
“तो फिर आप इतने चुपचाप क्यों है?” ज्योति ने पूछा.
“मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। यही गुत्थी उसुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ।” सुनीलजी ने जवाब दिया।
“गुत्थी? कैसी गुत्थी?” ज्योति ने भोलेपन से पूछा। उसके मन में कहीं ना कहीं डर था की सुनीलजी आने आप पर ज्योति के सामने इतना नियंत्रण रखने के कारण परेशान हो रहे होंगे।”
“मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो सकते हैं?” सुनीलजी कुछ गंभीर सोच में थे यह ज्योति समझ गयी।
मन से असहाय और दुखी ज्योति को लेकर सुनीलजी फिर से गहरे पानी में पहुँच गए और फिर से ज्योति को पहले की तरह ही प्रैक्टिस करने को कहा। धीरे धीरे ज्योति का आत्मा विश्वास बढ़ने लगा। ज्योति सुनीलजी की कमर छोड़ कर अपने आपको पानी की सतह पर रखना सिख गयी।
इस बिच दो घंटे बीत चुके थे। सुनीलजी ने ज्योति को कहा, “आज के लिए इतना ही काफी है। बाकी हम कल करेंगे।” यह कह कर सुनीलजी पानी के बाहर आगये और ज्योति अपना मन मसोसती हुई महिलाओं के शावर रूम में चलीगयी।
ज्योति जब एकपडे बदल कर बाहर निकली तो सुनीलजी बाहर नहीं निकले थे। ज्योति को उसके पति सुनीलजी और ज्योतिजी आते हुए दिखाई दिए। दोनों ही काफी थके हुए लग रहे थे।
ज्योति को अंदाज हो गया की हो सकता है सुनीलजी की मन की चाहत उस दोपहर को पूरी हो गयी थी। ज्योतिजी भी पूरी तरह थकी हुई थी। ज्योति को देखते ही ज्योतिजी ने अपनी आँखें निचीं करलीं। ज्योति समझ गयी की पतिदेव ने ज्योति जी की अच्छी खासी चुदाई करी होगी।
ज्योति ने जब अपने पति की और देखा तो उन्होंने ने भी झेंपते हुए जैसे कोई गुनाह किया हो ऐसे ज्योति से आँख से आँख मिला नहीं पाए। ज्योति मन ही मन मुस्कुरायी।
वह अपने पति के पास गयी और अपनी आवाज और हावभाव में काफी उत्साह लाने की कोशिश करते हुए बोली, “डार्लिंग, सुनीलजी ना सिर्फ मैथ्स के बल्कि तैराकी के भी कमालके प्रशिक्षक हैं। मैं आज काफी तैरना सिख गयी।”
सुनीलजी ने अपनी पत्नी का हाथ थामा और थोड़ी देर पकडे रखा। फिर बिना कुछ बोले कपडे बदल ने के लिए मरदाना रूम में चले गए। अब ज्योतिजी और ज्योति आमने सामने खड़े थे।
ज्योतिजी अपने आपको रोक ना सकी और बोल पड़ी, “अच्छा? मेरे पतिदेव ने तुम्हें तैरने के अलावा और कुछ तो नहीं सिखाया ना?”
ज्योति भाग कर ज्योति जी से लिपट गयी और बोली, “दीदी आप ऐसे ताने क्यों मार रही हो? क्या आपको बुरा लगा? अगर ऐसा है तो मैं कभी आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगी। मैं सुनीलजी के पास फरकुंगी भी नहीं। बस?”
ज्योति जी ने ज्योति को अपनी बाँहों में भरते हुए कहा, “पगली, मैं तो तुम्हारी टांग खिंच रही थी। मैं जानती हूँ, मेरे पति तुम्हें तुम्हारी मर्जी बगैर कुछ भी नहीं करेंगे। और तुमने तो मुझे पहले ही बता दिया है। तो फिर मैं चिंता क्यों करूँ? बल्कि मुझे उलटी और चिंता हो रही है। मुझे लग रहा है की कहीं निराशा या निष्फलता का भाव आप और सुनीलजी के सम्बन्ध पर हावी ना हो जाए।“
ज्योति को गले लगाते हुए ज्योतिजी की आँखों में आंसूं छलक आये। ज्योतिजी ज्योति को छाती पर चीपका कर बोली, “ज्योति! मेरी तुमसे यही बिनती है की तुम मेरे सुनीलजी का ख्याल रखना। मैं और कुछ नहीं कहूँगी।”
ज्योति ने ज्योति जी के गाल पर चुम्मी करते हुए कहा, “दीदी, सुनीलजी सिर्फ आपके ही नहीं है। वह मेरे भी हैं। मैं उनका पूरा ख्याल। रखूंगी।”
कुछ ही देर में सब कपडे बदल कर कैंप के डाइनिंग हॉल में खाना खाने पहुंचे।
खाना खाने के समय ज्योति ने महसूस किया की सुनीलजी काफी गंभीर लग रहे थे। पुरे भोजन दरम्यान वह कुछ बोले बिना चुप रहे। ज्योति ने सोचा की शायद सुनीलजी उससे नाराज थे।
भोजन के बाद जब सब उठ खड़े हुए तब सुनीलजी बैठे ही रहे और कुछ गंभीर विचारों में उलझे लग रहे थे। ज्योति को मन ही मन अफ़सोस हो रहा था की सुनीलजी जैसे रंगीले जांबाज़ को ज्योति ने कैसे रंगीन से गमगीन बना दिया था।
ज्योति भी जानबूझ कर खाने में देर करती हुई बैठी रही। ज्योतिजी सबसे पहले भोजन कर “थक गयी हूँ, थोड़ी देर सोऊंगी” यह कह कर अपने कमरे की और चल पड़ी।
उसके पीछे पीछे सुनीलजी भी, “आराम तो करना ही पड़ेगा” यह कह कर उठ कर चल पड़े।
जब दोनों निकल पड़े तब ज्योति सुनीलजी के करीब जा बैठी और हलके से सुनीलजी से बोली, “आप मेरे कारण दुखी हैं ना?”
सुनीलजी ने ज्योति की और कुछ सोचते हुए आश्चर्य से देखा और बोले, “नहीं तो। मैं आपके कारण क्यों परेशान होने लगा?”
“तो फिर आप इतने चुपचाप क्यों है?” ज्योति ने पूछा.
“मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूँ। यही गुत्थी उसुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ।” सुनीलजी ने जवाब दिया।
“गुत्थी? कैसी गुत्थी?” ज्योति ने भोलेपन से पूछा। उसके मन में कहीं ना कहीं डर था की सुनीलजी आने आप पर ज्योति के सामने इतना नियंत्रण रखने के कारण परेशान हो रहे होंगे।”
“मेरी समझ में यह नहीं आ रहा की एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो सकते हैं?” सुनीलजी कुछ गंभीर सोच में थे यह ज्योति समझ गयी।
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