Romance बन्धन

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Jemsbond
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Re: Romance बन्धन

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गोविन्द चीखता ही रहा...कांस्टेबलों ने गोविन्द को खींचकर जबर्दस्ती जीप में ठूस दिया।
___ इंस्पेक्टर ने कांस्टेबलों से कहा..." इसे पुलिस स्टेशन ले जाओ...मैं आ रहा हूं।"

जीप चल पड़ी।

गोविन्द कांस्टेबलों की पकड़ से अपने आपको छुड़ाने की कोशिश करते हुए चीखा।
"मुझे छोड़ दो...मैं इस कमीने की जान लेकर रहूंगा...मैं इसे जान से मार डालूंगा...।
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"मुझे छोड़ दो...मैं इस कमीने की जान लेकर रहूंगा...मैं इसे जान से मार डालूंगा...।"
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धीरे.धीरे गोविन्द की आवाज दूर होती चली गई।

मदन ने इंस्पेक्टर की ओर देखकर अपनी गर्दन सहलाते हुए कहा, “सुन लिया दारोगा जी आपने...अगर आप समय पर न पहुंच जाते तो यह पागल सचमुच मुझे जान से मार डालता।"

"आप मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलकर अपना बयान लिखवाइये।" इंस्पेक्टर ने मदन को तसल्ली देते हुए कहा।

फिर वे दोनों उस कार की ओर बढ़ गए, जिसे जूली ड्राइव करती हुई उनकी ओर ला रही थी।

अचानक कमला के कानों से किसी दुधमुंहे बच्चे के बिलख.बिलखकर रोने की आवाज टकराई। वह हड़बड़ाकर उठ बैठी। उसने घबड़ाकर इधर.उधर देखा।

तभी दरवाजा खटखटाने के साथ शम्भू की आवाज सुनाई दी," कमला बेटी, दरवाजा खोलो...।"

"कमला ने जल्दी से बढ़कर दरवाजा खोल दिया। रोते हुए बच्चे की सीने से चिपटाए शम्भू अंदर आ गया।

कमला हड़बड़ाकर पीछे हट गई।

"काका...यह बच्चा...?"

"जल्दी से इसे दूध पिला बेटी...न जाने कब से भूखा है...रोते.रोते इसका गला सूख गया है।"

कमला ने जल्दी से बच्चे को लेकर अपने सीने से चिपटा लिया। और हैरानी भरे स्वर में बोली, "लेकिन काका...यह बच्चा है किसका?"
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"फिर पूछना बेटी.पहले मैं इसके लिए दूध ले आऊं।"

शम्भू उलटे पांव दरवाजे से बाहर चला गया। कमला बच्चे को सीने से चिपटा कर उसे चुप कराने की कोशिश करने लगी। और फिर बच्चा धीरे.धीरे चुप होता चला गया...और थोड़ी देर बाद बिल्कुल चुप हो गया।...केवल उसकी धीमी.सी सिसकियां ही शेष रह गईं।

कमला को लग रहा था, जैसे उसके अंदर का मातृत्व सहसा जाग उठा है। उसके हृदय में ममता, स्नेह और वात्सल्य के झरने फूट चले।
__ और उसने बच्चे को सीने से लिपटाकर अपनी आंखें मूंद लीं।

अदालत के सन्नाटे में जज का गम्भीर स्वर गूंज उठा...।

"मुकदमे की सारी कार्रवाई, गवाहों के बयान और खुद मुलजिम के बयान सुनने के बाद अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि मुलजिम गोविन्द राम ने सचमुच मदनकुमार खन्ना पर कातिलाना हमला किया। मुलजिम के बयान के अनुसार मदनकुमार खन्ना ने उसकी पत्नी शीला देवी के साथ बलात्कार किया और शीला देवी ने आत्महत्या कर ली।

लेकिन मुलजिम के पास इस बात का न कोई सबूत है, न गवाह। न इस सिलसिले में रिपोर्ट ही उसने पुलिस में लिखवाई है अगर मुलजिम के इस बयान को सच मान भी लिया जाय, तो उसे मदनकुमार खन्ना को दंड देने का कोई अधिकार नहीं था। उसने कानून को अपने हाथ में लेने की कोशिश करके बहुत अपराध किया है। इसलिए अदालत उसे सात वर्ष सपरिश्रम कारावास का दंड देती

___ मदन ने इत्मीनान की सांस लेकर गोविन्द की ओर देखा, जो कटघरे में खड़ा खूखार नजरों से उसे घूर रहा था।

अदालत का निर्णय सुनते ही गोविन्द चिल्लाकर बोला, “जज साहब, आपने मुझे सजा देकर बहुत बड़ा न्याय किया है। क्योंकि आपने कानून में मदन जैसे अपराधी के लिए कोई दंड नहीं है, जिसने मेरी पत्नी की हत्या की है। अदालत भले ही मुझे कितनी ही लम्बी सजा क्यों न दे दे, मैं इस कमीने को जिन्दा नहीं छोडूंगा। मेरी आत्मा को तभी शान्ति मिलेगी, जब मैं इस कुत्ते से अपनी पत्नी की मृत्यु का बदला ले लूंगा।"

"आर्डर...आर्डर...!" जज ने मेज पर हथोड़ा मारा।
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"यहां न कोई व्यवस्था है और न न्याय...।" गोविन्द राम ने चीख कर कहा।

लेकिन पुलिस कांस्टेबल उसे खींचकर अदालत से बाहर ले गए।

अदालत के एक कोने में खड़े मुनीमजी ने अपने मालिक की ओर देखा और उनकी उमड़ती हुई आंखें बरसने लगीं।

दरवाजे की सलाखों के पास पहुंचकर गोविन्द रूक गया। मुनीम जी जल्दी से सलाखों के पास पहुंचे और कांपते स्वर में बोले, “यह क्या हो गया मालिक!...यह क्या हो गया?"

"कुछ नहीं मुनीम जी, इस दुनिया का दस्तूर ही यही है। भले लोगों को दुनिया चैन से नहीं जीने देती। लेकिन जिन्दगी इतनी छोटी नहीं कि सब कुछ भुलाया जा सके। जेल से आने के बाद मैं इस कमीने को जान से मार डालूंगा।"

__ "मालिक..." मुनीमजी का गला रूंध गया।

"मैं तुम्हारा बहुत अहसानमन्द हूं मुनीमजी, तुमने मेरे केस की पैरवी की...मुझे छुड़ाने की कोशिश की।"

“मैंने तो अपना कर्तव्य निभाया है मालिक। आप ही का तो पैसा था। अगर वह न होता, तो मैं इतना भी न कर पाता। लेकिन मुझे इसी बात का दुःख है कि इतना सब करने के बाद भी मैं आपको छुड़ा न सका।"


"मुझे जेल जाने का रत्ती भर भी दुःख नहीं है मुनीमजी। मुझे तो बस अपने बच्चे के खो जाने का दुःख है। मैं शीला की धरोहर की रक्षा न कर सका।"

"बच्चे को खोजने की मैंने बहुत कोशिश की मालिक और आगे भी करता रहूंगा।"

"मुझे उम्मीद है मुनीमजी, एक न एक दिन मेरा लाल मुझे जरूर मिलेगा। तुम उसे तलाश करते रहना। जब मिल जाए, मुझे सूचना दे देना।"

"भगवान करे वह मिल जाए।...मैं उसे अपने कजेले के टुकड़े की तरह रखूगा।"

तभी एक संतरी ने जाकर कहा, "मुलाकात का समय खत्म हो गया।"


"अच्छा मालिक, मैं फिर आऊंगा।" मुनीमजी ने गोविन्द के दोनों हाथ थामते हुए कहा।

फिर वह अपने आंसू पोंछते हुए बाहर चले गए। गोविन्द सलाखों के पीछे खड़ा उन्हें जाते हुए देखता रहा।

मदन ने शराब का आखिरी चूंट भरा और गिलास फर्श पर उछाल दिया । फिर लड़खड़ाते हुए बिस्तर की ओर बढ़ा। अचानक उसकी निगाह आईने पर पड़ी और वह ठिठक कर रूक गया। उसे आइने में अपनी जगह गोविन्द राम की सूरत दिखाई दी। गोविन्द राम ने दांत भीच कर कहा.
"मैं तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा...कमीने, मैं तेरी जान ले लूंगा।"

"खामोश...।" मदन हलक फाड़कर चिल्लाया।

फिर उसने एक फूलदान उठाकर आईने पर दे मारा। आईना झनझनाकर टूट गया, साथ ही नौकर से दौड़कर आते कदमों की आवाज सुनाई दी। मदन उछलकर भयभीत नजरों से दरवाजे की ओर देखने लगा।

"क्या हुआ मालिक?" नौकर ने घबराए स्वर में पूछा।

"भाग जाओ," मदन चिल्लाया, "मुझे कोई नहीं मार सकता...मुझे कोई नहीं मार सकता।"

नौकर भयभीत होकर भाग गया।

मदन ने दरवाजा बंद कर लिया। फिर खिड़की के पट टटोल कर देखे। खिड़की बंद थी। फिर वह लड़खड़ाया हुआ बिस्तर पर आ गिरा और कुछ देर बाद गहरी नींद सो गया।

__ खिड़की के पट धीर.धीरे खड़खड़ाए और उनकी आवाज कमरे में गूंज उठी। मदन की आंख खुल गई और वह भयभीत होकर खिड़की की ओर देखने लगा। अचानक चटकनी के दो टुकड़े हो गए और खिड़की के पट इधर.उधर फैल गए। और खिड़की में से हाथ खुला चाकू लिए गोविन्द राम अन्दर कूदा। उसकी आंखों से शोले निकल रहे थे। होंठ भिंचे हुए थे। वह धीरे.धीरे मदन की ओर बढ़ने लगा।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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(^%$^-1rs((7)
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मदन को लगा जैसे उसके हाथ.पाव बेजान हो गए हों। और उसमें हिलने की भी ताकत न रह गई हो।
अचानक गोविन्द का हाथ उठा...और मदन के हलक में से एक चीख निकल गई।
और मदन हड़बड़ाकर बिस्तर से नीचे आ गिरा। खिड़की बंद थी। लेकिन मदन को लग रहा था जैसे खिड़की की चटकनी काटी जा रही हो।
"बचाओ," मदन जोर से चिल्लाया।
फिर वह चीखता हुआ दरवाजे की ओर दौड़ा और दरवाजा खोल कर सीढ़ियों की
ओर भागा।
सीढ़ियों के पास पहुँचते ही उसे जोर की ठोकर लगी और वह सीढ़ियों पर लुढ़कता चला गया। उसकी चीखें रात के सन्नाटे में

गूंज उठीं, जिन्हें सुनकर नौकर सीढ़ियों की ओर दौड़ पड़े।
सीढ़ियों से लुढ़कता हुआ मदन फर्श पर आ गिरा। उसके घुटनों से खून बह रहा था। उसने दोनों हाथ टेककर उठने की कोशिश की, लेकिन वह उठ न सका और धम से औंधे मुंह जा गिरा।
वह बेहोश हो गया। नौकरों से उसे चारों ओर घेर लिया।
अस्पताल के बरामदे में जूली बेचैनी से टहल रही थी। उसकी निगाहें बार.बार उस बार्ड के दरवाजे की ओर उठ जाती थीं, जिसमें मदन एडमिट था...अचानक वार्ड का दरवाजा खुला और एक डाक्टर...अब मि0 मदन का क्या हाल है?"

डाक्टर ने हल्की.सी सांस लेकर जूली को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, "मिस जूली...हमें मि0 मदन के प्राण बचाने में तो सफलता मिल गई, लेकिन...!"

"लेकिन क्या...?"
"मुझे दु:ख है मिस जूली...मि0 मदन का निचला धड़ बेकार हो गया।"
__व्हाट...?" जूली हड़बड़ाकर पीछे हट गई।
"अब आप उनसे मिल सकती हैं...वे पूरी तरह होश में हैं।"
डाक्टर चला गया। जूली आश्चर्य से उसे जाते देखती रही। फिर कुछ सोचती हुई वह धीमे कदमों से वार्ड के दरवाजे की ओर बढ़ गई।
बिस्तर पर मदन तकिये के सहारे बैठा हुआ था। उसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी, घुटनों तक रजाई ढकी हुई थी। उसके चेहरे का रंग पीला हो रहा था। आंखों के नीचे काले घेरे पड़े हुए थे।
जूली को देखते ही मदन के होंठों पर हल्की सी मुस्कराहट दौड़ गई।
"तुम आ गई जूली...मुझे मालूम था कि तुम जरूर आओगी।"
जूली ने जबर्दस्ती मुस्कराने की कोशिश की और आवाज में हमदर्दी पैदा करके बोली, "मुझे दु:ख है मदन कि तुम्हारे साथ इतनी भयानक दुर्घटना हुई।"

"जूली ! भगवान को जो मंजूर होता है, वही होता है। लेकिन मुझे अपने अपाहिज होने का कोई दुःख नहीं है। तुम जो मेरे साथ हो।"
"मि0 मदन," जूली ने आंखों चुराते हुए कहा, “मैं असल में तुमसे इस समय यही कहने आई थी कि...मैं...मैं...!"
"कहो न जूली, झिझक क्यों रही हो?" मदन चिन्तित हो उठा।
"मुझे अफसोस है मदन...मेरी मम्मी तुम्हारे साथ मेरी शादी करने के पक्ष में नहीं हैं।"
"व्हाट...?" मदन बुरी तरह उछल पड़ा।
"मैं पहले ही तुम्हें यह बात बताने वाली थी। लेकिन तुमने मौका ही न दिया...मम्मी चाहती हैं कि मेरी शादी मेरे पहले मंगेतर जोजफ से ही हो।"
मदन बड़े ध्यान से जूली के चेहरे को देखने लगा था। फिर उसके नथुने फूल गए
और वह क्रुध होकर बोला, “यह निर्णय तुम्हारी मम्मी का है या तुम्हारा?"
"क्या मतलब?" जूली ने भभककर पूछा।
"मैं तुम्हारी मम्मी के स्वभाव से भली भांति परिचित हूं।...मैं जानता हूं कि मुझसे शादी करने से अब तुम क्यों इन्कार कर रही हो...इसलिए कि अब मैं अपाहिज हो गया हूं।"
जूली के तेवर एकदम बदल गए...वह झटके से बोली, “अगर तुम यही समझते हो, तो यही सही। मैं अपाहिज आदमी से शादी करके अपनी जिन्दगी बर्बाद नहीं कर सकती...मैं तो क्या दुनिया की कोई भी लड़की ऐसी मूर्खता नहीं कर सकती।"
"बको मत, “मदन गुस्से से चीख पड़ा "तुम स्वार्थी हो, धोखेवाज हो। तुम्हारी खातिर मैंने अपनी पत्नी को धक्के देकर घर से निकाला। और आज तुम्हीं मुझे इस तरह धोखा देकर जा रही हो।"
"आंखें क्यों दिखाते हो, "जूली आंखें निकाल कर बोली, “मैंने तुम से नहीं कहा
था कि तुम अपनी पत्नी को धक्के देकर घर से निकाल दो...तुम ही उससे तंग आ चुके थे। क्योंकि वह अनपढ़ और गंवार थी। तुम स्वयं मेरे रूप और मेरी जवानी पर रीझे थे।

और स्वयं मेरी ओर बढ़े थे। अच्छा हुआ कि मेरी आंखें खुल गई...और फिर जब तुम
अपनी विवाहित पत्नी के ही कादार नहीं रहे, तो मेरे कब तक रह सकते थे?...कान खोलकर सुन लो... अब तो मुझे इस बात का भी पूरा.पूरा विश्वास हो गया है कि तुमने सचमुच अपने दोस्त गोविन्द राम की पत्नी के साथ बलात्कार किया था। भगवान ने तुम्हें उसी पाप की सजा दी है।"
"गेट आउट!" मदन गला फाड़ कर चीखा।
"शटअप!" जूली ने भी उसी तरह चीखकर कहा, "मैं तुम्हारी पत्नी की तरह नहीं हूं, जिसे धक्के मार कर तुमने निकाल दिया था।...खबरदार जो अब एक भी शब्द मुंह से निकाला।"
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फिर वह पैर पटकती हुई दरवाजे से बाहर निकल गई। मदन की आंखों से आग बरस रही थी। उसके कानों में जूली के शब्द गूंज रहे थे।
"तुमने सचमुच अपने मित्र पत्नी के साथ बलात्कार किया है और भगवान ने उसी पाप का दंड तुम्हें दिया है।"
"जब तुम अपनी पत्नी के ही वफादार नहीं रहे तो मेरे वफादार कैसे रहोगे?"
मदन का पूरा बदन पसीने में डूब गया। और फिर वह दोनों हाथों में मुंह छिपा कर रोने लगा।
अचानक उसे अपने बालों में किसी की उंगलियों का स्पर्श अनुभव हुआ। उसने चौंककर आंखें खोल दी...और फिर वह भौचक्का.सा कमला की ओर देखने लगा, "तुम...तुम...कमला।"
"हा...मुझे शम्भू काका ने बताया था...।" और फिर कमला फूटफूट कर रोने लगी।
___"तुम मेरे घावों पर नमक छिड़कने आई हो?"
"नहीं...नहीं...ऐसा न कहिए, मैं तो आपकी दासी हूं।" कमला ने मदन के पैर पकड़ लिए।
"मैं तो अपाहिज हो गया हूं...क्या तुम अपाहिज के साथ जिन्दगी बिताना मसंद करोगी?"
“अपाहिज कहां हैं आप...आपका सहारा मैं जो हूं...।"

"कमला...।" मदन की आवाज कांप उठी, "मुझे क्षमा कर दो कमला...।" मैंने तुम्हारे साथ बहुत अन्याय किया था...तुम्हें धक्के मार कर घर से बाहर निकाला था।"

"मुझसे क्षमा मांगकर मुझे पाप का भागी न बनाइए मेरे देवता।"
"नहीं कमला, पापी तो मैं हूं, मैंने ऐसे.ऐसे पाप किए हैं, जिनके लिए भगवान मुझे कभी क्षमा न करेंगे।...मैंने अपने मित्र की पत्नी की आबरू लूटी, तुम जैसी देवी को एक बाजारू औरत के लिए धक्के देकर घर से निकाला।...शायद भगवान ने मुझे मेरे इन्हीं पापों का दंड दिया है कि मैं जीवन भर अपने पैरों पर खड़ा न हो सकूँ और तुम्हें वह खुशी न दे सकू, जो पत्नी के नाते तुम्हें मुझे देनी चाहिए।"
"मुझे कोई खुशी नहीं चाहिए। आपकी जीवन भर सेवा करते रहना ही मेरी सबसे बड़ी खुशी है।"
"तुम महान हो कमला...।"
मदन ने कमला को खींच कर अपने सीने से लगा लिया और फिर उसके बालों में सिर छिपा कर सिसक उठा। दरवाजे में खड़े
शम्भू की आंखों से आंसू बहने लगे।
"सच है भगवान...तेरे यहां देर है, अंधेर नहीं।"
अचानक शम्भू की गोद में सोया बच्चा जागकर रोने लगा। कमला जल्दी से मदन से अलग हो गई। उसने बढ़कर शम्भू की गोद से बच्चे को ले लिया। बच्च कमला के हाथों में आते ही चुप हो गया।
मदन ने आश्चर्य से पूछा, “यह बच्चा कहां से आया?"
"भगवान ने हमें दिया है।...इसके लालन.पालन की जिम्मेदारी हमें सौंपी है...काका को यह बच्चा पार्क में पड़ा हुआ मिला था।"
"देखू !" मदन ने उत्सुकता से कहा।
कमला ने बच्चे को मदन की गोद में दे दिया। मदन बड़े ध्यान से बच्चे को देखने लगा। उसके मन में बच्चे के लिए ममता
और प्यार जाग उठा। उसने बच्चे का माथा चूम लिया।
__ “अब मुझे पूरी तरह विश्वास हो गया कि भगवान के यहां अन्याय नहीं है। वह जानता था कि मैं कभी तुम्हारी गोद न भर सकूँगा। एक नारी की गोद खाली रहना उसके जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। इसलिए भगवान ने तुम्हारी गोद भर दी...मेरे बुढ़ापे का सहारा दे दिया। मैं इसे कलेजे से लगा कर रखूगा।"
मदन ने बच्चे का माथा फिर चूम लिया। उसकी आंखें सहसा गीली हो उठीं।
गोविन्द राम की आंखें गीली थीं। वह घुटनों पर ठोढ़ी रखे चुपचाप एक कोने में बैठा था।

अचानक एक हाथ उसके कंधे पर गया। गोविन्द राम चौंक पड़ा। वह हाथ शंकर का था।
शंकर ने मुस्कराते हुए कहा, “अकेल बैठे क्या सोच रहे हो गोविन्द? बाहर चलो,
आज दीवाली है। सारे कैदी दीवाली मना रहे हैं। सेठ हृदयनाथ ने सब के लिए मिठाई
और आतिशबाजी भेजी है।"
"जिसके भाग्य में अकेलापन ही हो, वह दीवाली कैसे मनाए शंकर। मेरी दीवाली तो उस दिन अंधेरे में बदल गयी थी, जिस दिन मेरी शीला ने आत्महत्या की थी औ जिस दिन मेरा बच्चा मुझसे बिछड़ा था...न जाने मेरा लाल कहां और किस हाल में है...जिन्दा भी होगा या नहीं।"
___ “ऐसा न कहो गोविन्द...।" शंकर ने गोविन्द के मुंह पर हाथ रख दिया, “ऐसा न कहो, भगवान तुम्हारे बच्चे कोसही सलामत और खुशी रखे।...उसके यहां देर है अंधेर नहीं..."
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"मुझे तो यह भी मालूम नहीं कि अब वह कहां है...एक दिन वह मुझसे एक पार्क में बिछड़ गया। इस बात को पूरे छह साल हो गए...अब तो काफी बड़ा हो गया होगा...अब अगर मिल भी गया तो मैं उसे पहचान न सकूँगा।"
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Re: Romance बन्धन

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"ढूंढने से तो भगवान भी मिल जाते हैं गोविन्द...तुम्हारा बच्चा तुम्हें जरूर मिलेगा...और तुम उसे पहचान भी लोगो...जी
छोटा न करो। आज पूरे छह साल बीत गए...थोड़े से दिन हैं, वे भी बीत जायेंगे।
आदमी को कभी निराश नहीं होना चाहिए।"
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"मैंने आस नहीं छोड़ी है शंकर। मैं जिन्दा हूं तो सिर्फ इसी आस पर कि जिस कमीने की वजह से मेरी जिन्दगी बर्बाद हुई है, उसे उसके अपराध का दंड दे सकू। जिस दिन मुझे इस कैद से रिहाई मिलेगी, बाहर निकलते ही उस कुत्ते को मार डालूंगा।...और तभी दीवाली मनाऊंगा।"
"उसे मार डालने के बाद दीवाली मनाने के लिए क्या कानून तुम्हें आजाद छोड़ देगा?" शंकर ने कड़वी हंसी के साथ कहा, "पागल हो गये हो तुम। प्रतिशोध ने तुम्हारी समझ पर पर्दा डाल दिया है। अगर तुमने उसे मार डाला तो, तुम्हें फिर इसी जेल में आना पड़ेगा। शायद फिर जिन्दगी ही जेलखाने में कटे। फिर क्या तुम अपने बच्चे को खोज पाओगे? क्या तुम अपनी पत्नी की आत्मा को शान्ति पहुंचा सकोगे?"
"शंकर।" गोविन्द की आवाज कांप गई।
"हां गोविन्द, कानून को अपने हाथ में लेने वाला कभी आजादी की सांस नहीं ले सकता। मुझे ही देखो...गरीबी और अभावों के कारण मैंने अपनी मां को खो दिया। अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए जब मुझे मेहनत और ईमानदारी से कुछ न मिला तो मैंने लोगों से जबर्दस्ती छीनना शुरू कर दिया। और आज मैं अपने जिले का सबसे स्मगलर हूं। मेरा एक बहुत बड़ा गैंग है...लेकिन मेरे साथी नहीं जानते कि मैं ही उनका बॉस हूं...क्योंकि मैं उनके साथ एक मामूली गुंडे के रूप में काम करता हूं... पिछले दिनों में माल के साथ पकड़ा गया। लेकिन कानून मुझसे यह न उगलवा सका कि मेरे गैंग का बॉस कौन है और गैंग में कितने लोग हैं। इसलिए मुझे इस एक मामूली
स्मगलर मानकर सिर्फ तीन साल की सजा दी गई। जिस दिन मैं पकड़ा गया था, मेरी पत्नी ने मुझे बताया था कि वह मां बनने वाली है। और अपने बच्चे के भविष्य को सुखद बनाने के लिए मैंने निश्चय कर लिया कि मैं अब कभी गलत धंधा नहीं करूंगा।...आज इस बात को छह महीने बीत चुके हैं... संभवतः मेरी पत्नी मां बन चुकी हो या बनने वाली हो। लेकिन मैं अब जेल में हूं...न अपनी पत्नी को देख पाऊंगा...न, अपने बच्चे को।"
कहते.कहते शंकर का गला रूंध गया।
तभी एक संतरी ने आकर गोविन्द से कहा." नम्बर सोलह, तुम्हें जेलर साहब बुला रहे हैं।"
गोविन्द राम उठकर संतरी के पीछे.पीछे चल दिया।
गोविन्द राम को देखकर जेलर ने मुस्कराते हुए कहा, "गोविन्द राम, तुम्हें यह जानकर खुशी होगी कि अच्छे चाल.चलन के कारण सरकार ने तुम्हारी बाकी सजा माफ कर दी है। आज दीवाली की खुशी में तुम्हें रिहा किया जा रहा है।"
गोविन्द राम को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। वह हक्का.बक्का.सा जेलर का मुंह ताकता रह गया।
गोविन्द जेल से बाहर जाने लगा तो शंकर ने उसे कहा, "मुझे खुशी है गोविन्द कि तुम्हें जेल से रिहाई मिल गई। मगर मेरी एक बात याद रखना, दुश्मन को कभी क्षमा नहीं करना चाहिए, उसे ऐसी सजा देनी चाहिए कि वह जिन्दा रहे, लेकिन उसकी जिन्दगी मौत से भी गई.बीती हो जाए।"
गोविन्द, शंकर की ओर देखने लगा।
शंकर ने उसके कंधे पर हाथ रखकर मुस्कराते हुए कहा, “जेल के ये दिन हमने दोस्त की तरह बिताए हैं। इसी नाते मैं तुम्हें एक काम सौंप रहा हूं। मैं अच्छी तरह जान गया हूं कि आप अच्छे घराने के अच्छे नेक
आदमी हो, इसीलिए मेरी प्रार्थना जरूर स्वीकार कर लोगे।"

"मुझे बताओ मेरे दोस्त...तुम जो भी कहोगे, मैं वह जरूर करूंगा।"
"बस इतना सा काम है गोविन्द...जब तक मैं जेल से रिहा होकर न आ जाऊं, मेरी पत्नी की देखभाल रखना। मेरे बच्चे को अपना बच्चा समझकर उसका पूरा.पूरा ध्यान रखना।"
"विश्वास करो शंकर...तुमने मुझे जो जिम्मेदारी सौंपी है, इसे निभाने की मैं पूरी कोशिश करूंगा।"
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