गद्दार देशभक्त complete

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kunal
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Re: गद्दार देशभक्त

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"जी करता है कि इस गन की सारी की सारी गोलियां इसकी छाती में उतार हूँ ।" पहली वार एके सैंतालीस लिए गिरीश ने अपना मुंह खोला था------"लेकिन चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता ।"



भल्ला ने भी ठंडी आह भरी ।


उनकी बेबसी और छटपटाहट पर मुस्तफा ठहाका लगा उठा ।


"कुछ नहीं कर सकते तुम लोग ।" यह उनका उपहास उड़ाता हुआ बोला------" जब तक अपोजीशन लीडर की बीबी मेरे आदमियों के कब्जे में है, तुम लोग चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते । अगर किसी ने मुझे नुकसान पहुचाने की हिमाकत की, तो कसम खुदा की, मैं कुछ भी नहीं करूंगा । उस नेता की बीबी तो मरेगी-ही-मरेगी, तुम सवको भी फांसी पर चढा़ दिया जाएगा और ऐसा तुम्हारे अपने मुल्क की सरकार करेगी । तुम्हारे वो अाका केरेंगे जिन्होंने तुम्हें इस मिशन पर भेजा है । वे कहेंगे कि तुम नाकारा हो । जाहिल हो ।"



रत्नाकर का चेहरा उत्तेजना से सुर्ख हो गया । गिरीश तथा भल्ला की हालत भी ऐसी ही थी । होलकर भी अंदर ही अंदर गीली लकड़ी की तरह सुलग रहा था, लेकिन वह अपने ज़ज्जार्तों पर सख्ती से काबू किए हुए था । यह तो स्पष्ट था कि मुस्तफा उसे उकसाने की कोशिश कर रहा था पर यह नहीं समझ पा रहा था कि क्यों? वह ऐसी कोशिश क्यों कर रहा था? चाहता क्या था वह?



"जहर से भी ज्यादा कड़वा है, मगर सच है ।" मुस्तफा एक बार फिर कहता चला गया-----"हम कश्मीर सुलगा सकते हैं----"असम धघका सकते हैं । उत्तर प्रदेश को खून से नहला सकते हैं-मुबई को हाइजैक कर सकते है । तुम्हारी संसद में घुसकर अातिशबाजी फोड़ सकते हैं । तुम्हारे सिरों को काटकर ले जा सकते हैं । इस मुल्क में जहां चाहै पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगवा सकते हैं और तुम हमें टेढ़ी नजरों से भी देख नहीं सकते, बंदर घुड़की भी नहीं दे सकते । बोलो, क्या मैं गलत कह रहा हूं ?"




रत्नाकर देशपांडे इस बार अपने अाप पर काबू न रख सका और होलकर की सारी चेतावनियां के बावजूद अपना आपा खोकर मुस्तफा पर झपट पड़ा ।



“भड़ाक...... ! "


उसका प्रचंड पूंसा मुस्तफा के चेहरे से टकराया ।


मुस्तफा के हलक से चीख निकल गई ।


रत्नाकर तो जैसे पागल हो गया था । ।

वह मुस्तफा पर इस तरह पिल पड़ा मानो वह हाड…मांस का इंसान नहीं, कोई बोरा हो । रत्नाकर के उस अप्रत्याशित रिएक्शन पर होलकर उठा ।


वह तेजी से उसकी तरफ़ झपटा ।


बडी़ मुश्किल से बिफरे हुए रत्नाकर को काबू में किया ।


महज इतनी ही देर में रत्नाकर ने मुस्तफा के चेहरे का भूगोल बदल दिया था । उसके गाल व होंठ फट गए थे ।


कई जगह से खून बहने लगा था ।


मुस्तफा चीखने के अलावा और कुछ भी नहीं कर सका था ।


गिरीश तथा भल्ला तटस्थ थे ।


उन्होंने रत्नाकर को रोकने का जरा भी प्रयास नहीं किया था ।


उनके चेहरों के भाव ही बता रहे थे कि रत्नाकर वही कर रहा था, जो वे चाहते थे ।


"त...तुम क्या पागल हो गए हो देशपांडे!" होलकर अपनी गिरफ्त में मचलते रत्नाकर को डापटता हुआ बोला

"मैंने तुम्हें पहले ही वार्न किया था कि यह हरामजादा किसी मकसद के तहत जहर उगल रहा है । यह जानबूझकर हमें उकसा रहा है और तुम इसकी उस शातिर चाल को कामयाब बना रहे हो । मैँ कहता हूं होश में आओ । म. . .मैं तुम्हें आजाद कर रहा हूँ । पर खबरदार, दुबारा ऐसी हरकत मत करना मेरे दोस्त, प्लीज ।"



रत्नाकर का विरोध एकदम से शांत हो गया ।



होलकर ने उसे आजाद कर दिया ।


उन्होंने देखा-मुस्तफा की चीखे अव थम गई थी ।


वह गहरी-गहरी सांसे ले रहा था ।


चेहरे पर गहन पीडा़ के भाव उभर आए थे ।


लेकिन जैसे ही उन दोनों से निगाहें मिली, मुस्तफा के होठो पर एकाएक फिर उन्हें सुलगाने वाली मुस्कान उभर आई ।



पीड़ा के बावजूद उसके चेहरे पर व्यंग उभर आया था, वो व्यंग जो रत्नाकर को ही नहीं, होलकर को भी लहुलुहान कर गया ।



"तेरे हाथ वहुत सख्त हैं अॉफिसर ।" मुस्तफा गहरी-गहरी सांसें भरता हुआ बोला------"लैंकिन तुम हिंदुस्तानियों की कैद में मैंने इससे कई गुना ज्यादा सख्ती देखी है । मेरे जिस्म से बहते इस लहू को आखिरी वार ठीक से देख ले । कसम है मुझे खुदाबंद करीम की, इस खून के एक-एक कतरे का हिसाब लूंगा । हर बूंद के बदले में एक हिंदुस्तानी की लाश गिराऊंगा ।"



"उससे पहले मैं ही तेरी लाश गिरा दूंगा ।" रत्नाकर फिर उबला लेकिन फिर तुरंत ही संभल भी गया ।



" देखते हैं हिंदुस्तानी सियारों कि कौन किसकी लाश गिराता है ।"



रत्नाकर रिएक्ट करता, उससे पहले ही पोत को एक झटका लगा । कोई कुछ समझ पाता, उससे पहले ही कप्तान वहां पहुचा ।



उसने सरसरी निगाह से वहां का मुआयना किया, फिर कल्याण होलकर से मुखातिब हुआ-----“हम मंजिल पर पहुच गए हैं सर ।"



"पोत यहीं रोक दो ।" होलकर बोला ।



"रुकवा दिया है ।"



"ओह !"होलकर के मुंह से निकला । तब उन सबकी समझ में अाया कि वह झटका पोत रुकने का ही था ।



"अब हमारी क्या स्थिति है?" होलकर ने कैप्टन से पूछा ।

"हम ठीक उस जगह खडे़ है, जहां पहुंचने को कहा गया था । लेकिन इंटरनेशनल सीमा की बात करें यह एक निहायत ही सम्वेदनशील अंतर्राष्टीय सीमा है, एक तरफ़ साठ अंश अक्षांक्ष पर ओमान देश की समुद्री सीमा लगी हुई है और दूसरी तरफ. . .



"जाहिर है पाकिस्तान होगा !"



“यकीनन पाकिस्तान है ।"' इस बार रत्नाकर देशपांडे बोला था-----" परंतु इस जगह को सम्बेदनशील पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन बनाता है । यहाँ हमें असली खतरा चीन से है ।"



"रत्ऩाकर, भूगोल मैंने भी पढ़ा है ।"' होलकर ने कहा था-------""यहां चीन कहाँ से अा गया?"
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Re: गद्दार देशभक्त

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“यहां भले ही चीन की समुद्गी सीमा नहीं है, लेकिन तुम शायद नहीं जानते कि चीन ने अपना एक बड़ा नौसैनिक अड्डा ग्वादर ने वना रखा है, जो कि करांची में ही आता है । सामने की तरफ़ से थोड़ा अागे बढ़ते ही ग्वादर के इलाके की सीमा शुरू हो जाती है, जहाँ चीन की सशक्त नेवी पूरी तैयारी के साथ बैठी हुई है और जो पलक झपकते ही हमारे पोत को तबाह करने की ताकत रखती है । तीसरी तरफ़ से फिर करांची की सीमा शुरू हो जाती है, वहां तैनात नापाक की गश्ती बोटे यहां से भी नजर आ सकती हैं ।"



वे बातें मुस्तफा भी सुन रहा था और उसके खून से सने होंठों पर एक कुटिल मुस्कराहट उभर आई थी ।



“हूं !" होलकर ने गम्भीरता से हुंकार भरी-यह तो हमारी सोच से भी ज्यादा सेंसेटिव जोन है । दुश्मनों ने काफी सोच-समझकर जगह चुनी है ।“



"अब मेरे लिए क्या हुक्म है?” कैप्टन ने पूछा ।



“लंगर डाल दो और अगले आदेश का इंतजार करो ।"' ।

"ठीक है ।”

“और जहाँ तक भी देख सकते हो, हर तरफ़ बेहद पैनी निगाह से देखो । हमे एक पल के लिए भी असावधान नहीं होना है ।"


“बेहतर ।"


कैप्टन जाने को मुड़ा ही था कि होलकर का सेटेलाइट फोन ब्लिंक करने लगा । होलकर कैप्टन से कहा------" जरा ठहरो कैप्टन ।"'

कैप्टन ठिठका और उत्सुक निगाहों से होलकर को देखने लगा ।


होलकर ने फोन अॉन किया ।



"उधर क्या चल रहा है आफिसर?” कान से आईबी चीफ़ बलवंत राव का अधिकार भरा स्वर टकराया।



“सब ठीक है चीफ़ ।" होलकर सावधान स्वर में बोल----" हम मंजिल पर पहुच चूके हैं ।"



"हम देख रहे हैं ।" बलवंत राव बोला----"शिप हर पल हमारे रडार पर है । तुम विल्कुल सही वक्त पर मंजिल पर पहुंचे हो । मगर सावधान रहना, वह हमारी समुद्गी सरहद का बहुत सन्वेदनशील इलाका है । तुम्हारे शिप पर पाकिस्तान के साथ…साथ चीन की भी नजरें लगी हैं । कोई गलती मत कर बैठना । सब कुछ वैसे ही होना चाहिए जैसे प्लान किया गया है ।"




“आप चिंता न करें सर । सब कुछ बिल्कुल वैसे ही हो रहा है लेकिन अब अागे क्या करना है?"



"जाहिर है कि इंतजार ही करना होगा । अच्छे मूवमेंट को लेकर दूसरी तरफ़ से अभी कोई मैसेज नहीं मिला है । जैसे ही मिलेगा तुम्हें फारवर्ड कर दिया जाएगा लेकिन एक बात अच्छी तरह से अपने दिमाग में बैठा लो, जब तक तुम्हें चांदनी मेडम नहीं दिखती, तुम्हें दुश्मन को मुस्तफा का दीदार हरगिज नहीं कराना है । अगर चांदनी हमारी कमजोरी है तो मुस्तफा दुश्मन की कमजोरी है । जैसे हम चांदनी की जान को जोखिम में नहीं डाल सकते बैसे ही दुश्मन मुस्तफा की जान को जोखिम में नहीं डाल सकता । समझे?"



" यस सर ।"



"तुम्हें जरा भी फिक्रमंद होने की जरूरत नहीं है । अगर तुम्हारा शिप दुश्मन के निशाने पर है, तो हमने भी आंखें बंद नहीं कर रखी हैं । हमारे सेटेलाइट भी हर तरफ़ अपनी गिद्ध---दृष्टि जमाए हुए हैं । मजबूरी वश बात अगर ताकत और मुकाबले पर जाएगी तो दुश्मन मुंह की खाएगा । मजे की बात यह है कि दुश्मन इस सच को जानता है और शायद इसीलिए वो नौबत नहीं आएगी । ओवर ।"



" आलराइट सर ।"


"ओवर एंड आल ।"

फोन डिस्कोक्ट हो गया ।



होलकर ने फोन कान से हटा लिया ।


कैप्टन अपलक उसे ही देख रहा था ।



“हम थोडी देर में डेक पर पहुच रहे है ।" होलकर उससे बोला-----" तुम हमें वहीं मिलो ।"



कैप्टन ने सहमति में सिर हिलाया ।



फिर वह वापस घूमा और वहां से चला गया ।



मुस्तफा जख्मी सांप की तरह अपनी सुर्ख आंखों से होलकर और रत्नाकर को देख रहा था । इधर, होलकर और रत्नाकर की नजरें मिलीं । आंखों ही आंखे में बाते हुईं और फिर वे मुस्तफा से दूर, एक एकांत कोने में चले गए ।



" हम दोनों ही अपने वतन के वफादार सिपाही है अॉफिसर ।" रत्नाकर दबे स्वर में होलकर से बोला----“ओंर यह जरूरी नहीं कि वतन का वफादार हुकूमत का भी वफादार हो ।"



"कहना क्या चाहते हो देशपांडे ?" होलकर ने पूछा ।



“मुस्तफा सिर्फ दहशतगर्द नहीं, एक डायनामाइट है । इसके दिल में हिंदुस्तान के लिए नफ़रत नहीं, जहर भरा है, घृणा भरी है । अगर यह आजाद हो गया, तो देख लेना, मुल्क में दहशतगर्दी का ऐसा भयानक अंधड़ उठेगा, जो बेगुनाहों के खून से हमारे वतन की जमीन को सुर्ख कर देगा ।"



होलकर कसमसाया…""म. . .मैं जानता हूं !”



"जानते हो, फिर भी सरकार के वफादार बनकर दिखा रहे हो ।" रत्नाकर हैरान हुआ था ।



“दूसरे शब्दों से मुझे बगावत की बू नज़र आ रही है देशपांडे ।"



" सूंघा तुमने ?"



"मुझसे क्या चाहते हो?"



“क्या मेरी चाहत पूरी होगी?"


"चाहत जानने के बाद ही बता पाऊंगा ।"



"तो फिर सुनो ।" रत्नाकर निर्णायक स्वर में बोला-----'"यह खूनी दरिंदा यहाँ से जिंदा वापस नहीं जाना चाहिए ।"



"चांदनी मैडम की कीमत पर भी नहीं?" उसने पूछा !

"चांदनी सिंह को बचाने की पूरी कोशिश करेगे ।”



"हम इस वक्त वहुत खतरनाक जगह पर खड़े है ।”



"आईबी के आंफिसर होकर जोखिम से डरते हो!"




"डरना तो हमें सिखाया ही नहीं जाता ।”



"तो फिर तुमने कहाँ से सीख लिया ।"



"मैँ डर नहीं रहा देशपांडे बल्कि सोच रहा हूं कि जो हम करना चाहते हैं उसके बाद दोनों मुल्कों में कितना बडा़ बवंडर उठेगा !"



"उसके बारे में मत सोचो ! अपना फैसला बताओ ।”



“वही, जो तुम चाहते हो?"



"साफ-साफ़ बताओ ।"


"मुस्तफा जिंदा नहीं जाएगा ।"



रत्नाकर का चेहरा हजार बांट के बल्ब की तरह चमक उठा ।


वह खुशी से चहकता हुआ बोला.........…“ये हुई न बात । मगर...........




"मगर ?"



"होग कैसे ये ?"



होलकर बोला…....“मेरे दिमाग में प्लान है ।"



"क्या ?"



"वक्त आएगा तो बता दूगां ।"

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Re: गद्दार देशभक्त

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शंकरलाल का पूरा नाम शंकरलाल कौशिक था । वह पचास साल की उम्र का गैंडे जेैसी डील…डौल वाला शख्स था ।



उसकी गिनती मुबई के माफिया डॉन उमर जहांगीर के चुनिंदा विश्वास पात्र लोगों में होती थी । इस वक्त वह फोर्ट के इलाके में स्थित अपने आलीशान आँफिस में था । वह आँफिस भी अंडरवर्ल्ड की ही सम्पत्ति थी मगर प्रत्यक्ष में एक प्रतिष्ठित एक्सपोर्ट इम्पोर्ट कम्पनी की मानी जाती थी ।



शंकरलाल के हाथों में कुछ कागजात थे । वे कागजात जो कुछ ही देर पहले उसकी ई-मेल आई डी पर आए थे ।



उसका अॉपरेटर प्रिंट निकालकर दे गया था ।




उनमें एक रंगीन फोटाग्राफ भी था ।



फोटो राजा चौरसिया का था ।



फोटोग्राफ का मुआयना करने के बाद शंकरलाल कौशिक ने प्रिंट आउट को पढ़ा ।


लिखा था-------




यह तुम्हारा अगला संभावित टार्गेट है कौशिक यह एक कुख्यात देसी कम्पूटर हैकर राजा चौरसिया है ।




पिछले तीन दिनों से नबाब की खुफिया प्रयोगशाला में बैठा उसका काम का रहा है ! राजा चौरसिया हिंदुस्तान कै साइबर क्राइम वर्ल्ड का एक कुख्यात नाम है और इसके हुनर के जितने किस्सें आज तक सुने हैं, उनकी रोशनी में कह सकता हूं कि इसकी नाकामी के चांस बहुत कम हैं !



यह भी सम्भव है कि चौरसिया अपने काम को अंजाम देने में कामयाब हो चुका हो । लिहाजा, हम कह सकते हैं कि हमारी मंजिल बेहद नजदीक है और मुझे पुरा यकीन है यह तुम्हारे लिए मेरा आखिरी काम होगा ।



इस काम की पेशगी रकम तुम्हारे पास पहुचाई जा चुकी है ।



नवाब की मांद से निकलने के बाद मुम्बई की सीमा से बाहर नहीं जाना चाहिए ! यदि मैरी सम्भावना खरी उतरती है यानी चौरसिया सचमुच नवाब का काम करने में सफ़ल हो गया है तो फिर तुम्हें उसे कत्ल नहीं करना है !



तब मैं उसे लेने खुद मुम्बई अाऊंगा । अगर वह कामयाब नहीं हुआ तो तुम जानते ही हो क्या करना है ।



पर याद रहे, इस बार उसकी लाश पुलिस के हाथ नहीं लगनी चाहिए । क्योंकि इससे पहले जिन कम्यूटऱ हेर्क्स को तुमने कत्ल किया था, मेरी सारी उम्मीदों के खिलाफ उनकी शिनाख्त उजागर हो चुकी है और खुफिया विभाग से जुडे़ लोगों के कान खड़े हो चुके हैं ।। ऐसे में इस चौथे कम्पूटर हैकर का कत्ल भारी मुश्किल खड़ी कर सकता है जो मुझे मंजुर नहीं होगा ।



नवाब की मुझे कोई फिक्र नहीं लेकिन खुफिया या पुलिस की तवज्जो इस मामले की तरफ नहीं जानी चाहीए-----जितनी जा चुकी हैं, उससे ज्यादा तो बिल्कुल नहीं, वैसे तो तुम उसे रोकने में सक्ष्म हो, फिर भी अगर कोई मुश्किल आए खबर करना , मैं संभाल लूंगा ! ईधर दिल्ली का कोई काम निकले तो जरूर बताना । और हां जहांगीर भाऊ को मेरा सलाम कहना मत भूलना !


डबल एस !!!!

कौशिक ने एक बार फिर राजा चौरसिया का फोटो देखा, फिर दोनों चीजें मेज पर रख दी ।




दिमाग तेजी से कुछ सोचने लगा था ।



डबल एस के बारे में उसे मालूम था कि दिल्ली के अंडरवर्ल्ड में उसकी वही हैसियत है जो मुम्बई में उमर जहांगीर की है । नवाब खान के खिलाफ उसने जो कुछ भी किया था, डबल एस के लिए ही किया था और यह कोई नई बात नहीं थी । अगर जहांगीर आर्गेनाइजेशन का दिल्ली एनसीआर में ऐसा केई वाम निकलता था तो उसे डबल एस बखूबी अंजाम देता था । साउथ में भी ऐसा ही एक अन्य क्राइम आर्गेनाइजेशन अपने
पांव पसारे हुए था और समुचे देश में आर्गेनाइज्ड क्राइम के सूरमाओं की जमात का वह नेटवर्क ही काम कर रहा था ।


वक्त तथा जरूरत के हिसाब से कारोबारी तौर पर सभी एक-दूसरे पर निर्भर थे और एक-दुसरे के काम अाते थे ।



नवाब खान भी मुम्बई के अंडरवर्ल्ड में जहांगीर जैसी बुलंद हैसियत रखता था और सारा शहर जानता था कि ताकत के मामले में वह जागीर से किसी भी तरह कमजोर नहीं है लेकिन अंडरवर्ल्ड किंग बनने में उसने कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई थी ।



डबल एस ने जो काम सौंपा था, वह उसे कोई वहुत बडा़ काम नहीं लगा था मगर जब से कम्यूटर हैकर्स के कत्ल के सिलसिले में आईबी का दखल हुआ था, कौशिक के कान खडे हो गए थे ।



उसे साधारण मामले में गहरा पेच नजर आने लगा था ।




उबल एस ने उसे कुछ भी खास नहीं बताया था लेकिन जुर्म के दुनिया का तजुबेकार कौशिक समझ गया था कि मामला गहरा है । उसे लग रहा था कि जरूर कोई गहरा पेच है । ऐसा पेच, जिसे डबल एस उससे छुपा रहा है । कौशिक का दिमाग कहता था कि सारे मामले में कहीं न कहीं उसके अपने आर्गेनाइजेशन का भी हित छुपा है क्योकि राजा राजा चौरसिया हैकिंग के जरिए बैंकों का खजाना खाली करने में माहिर था ।

अर्थात् मामले में करोडों रुपयों का दखल सम्भव था ।



उसे बार-बार लग रहा था कि डबल एस शायद किसी मोटी रकम को अकेला हजम कर जाना चाहता है ।



वह जानना चाहता था कि जो उसे लग रहा है उसमें दम है या नहीं । इस बारे में वह चाहता तो डबल एस से सवाल कर सकता था लेकिन डर था कि यह बिगड़ न जाए । केवल नवाब खान ही ऐसा बचता था, जो उस राज से पर्दा हटा सकता था । लिहाजा उसने अपनी सोच का फोकस नवाब की तरफ घुमा दिया ।



कौशिक जैसे लोग अपने समकक्ष प्रतिद्वद्धियों के अंदर से असंतुष्ट आदमियों की लिस्ट हमेशा अपने पास रखते थे । किसी क्राइसिस में फंसे लोंगों का नाम भी उस लिस्ट में शामिल होता था । ऐसे खास लोगों की लिस्ट आर्गेनाइजेशन के बेहद काम आती थी ।




कौशिक ने हाल ही में उस लिस्ट से कुछ नाम छाँटकर अपने एक लेफ्टिनेट राकेश सिंघल को दिए थे और उनमें से किसी को शीशे में उतारने का काम सौपा था, ताकि उससे अपने मतलब की जानकारी हासिल की जा सके और अब, डबल एस द्वारा सौंपे गए, राजा से जुडे़ काम के कारण वह काम और भी जरूरी हो गया था । इसलिए, कौशिक ने राकेश सिंधल के मोबाइल पर फोन लगाया ।



दुसरी तरफ से फोरन जवाब मिला ।



"काम का क्या हुआ सिंघल?" उसने सवाल किया ।


सिंघल की आबाज-“कौन-सा काम सर?"



"नवाब का कोई आदमी काबू मे आया या नहीं?"



"मैं कभी नकामयाब हुआ हूं सर ! ''



"शाबाश । कौन है वो?"



"जगनलाल । नवाब का खास आदमी है । गैंग में व अंदर तक पकड़ रखता है । नवाब के ज्यादातर राज उसे मालूम हैं ।"



"नाम सुना हुआ है । उसकी समस्या क्या है?”


"उसकी इकलौती बेटी !"



"क्या हुआ उसे?"



"कनाडा में सैटल्ड है । वहां बहुत बडी़ डॉक्टर है । उसकी प्रैक्टिस अच्छी जमी हुई है । जगन अपने काले धंधों से जितना यहां कमाता है उससे कई गुना ज्यादा वह अपनी सीधी साफ प्रैक्टिस से कनाडा में कमा लेती है । बाप के अलावा बेटी का दुनिया है दूसरा कोई नहीं है । वह अपने बाप के काम के बारे में भी जानती है इसीलिए चाहती है कि वह काली दुनिया को छोड़कर उसके पास कनाडा आ जाए । खुद जगन भी बेटी के पास जाना चाहता है लेकिन नवाब को यह मंजूर नहीं ।"
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Re: गद्दार देशभक्त

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"होना भी नहीं चाहिए । सिंडीकेट के इतने सारे राज जानने वाले को नवाब भला कैसे खुला छोड़ सकता है!"




"नवाब ने उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया है । इस बात को लेकर जगन अपने बिग बॉस से वहुत ज्यादा खफा है !"




"जगन फर्जी पासपोर्ट का इंतजाम नहीं कर सकता?”



"नवाब के सिंडीकेट के खिलाफ़ जाकर नहीं, सिंडीकेट ही जगन की ताकत है ।"



"हूं !" कौशिक ने हुंकार भरी…"तुमने जगन को यकीन दिलाया होगा कि तुम उसके कनाडा जाने का बंदोबस्त कर सकते हो?"



"वह भी उसकी सारी जमा पूंजी के साथ । इसके अलावा उसे और किसी तरह काबू में नहीं किया जा सकता था !"



"अभी कहाँ है जगन ?"




"मेरे एक फोन पर हाजिर हो जाएगा । कब हाजिर करू ?"



" अभी--------इसी वक्त ।"


"ऐसा? "



"हां ।"



"आधे घंटे मैं उसे लेकर आपके हुजूर में पेश होता हूं ।"




“उससे भी पहले पहुचने की कोशिश करना ।"



"ठीक है ।"




कौशिक ने फोन काट दिया ।
सिंघल बीस मिनट में कौशिक के पास पहुंच गया ।



जगनलाल पचास साल का एक तंदुरुस्त व्यक्ति था ।



वह झिझकता---सकुचाता और आशंकाओं से घिरा हुआ कौशिक के सामने, मेज के इस तरफ, कुर्सी पर बैठ गया ।



"आपको मुझे यहां नहीं बुलाना चाहिए था कौशिक साहब ।'" वह व्यग्र भाव से पहलू बदलता हुआ बोला-----“किसी ने देख लिया तो गजब हो जाएगा ।"




" कुछ नहीं होगा ।" कौशिक ने उसे आश्वस्त किया------"कम से कम यहां मोजूद मेरे सभी आदमी विश्वसनीय हैं ।"




“मैं उसूलन नमकहराम नहीं है ।" जगनलाल जैसे अपनी सफाई देने की गर्ज से बोला-------“गद्दारी मेरे खून में नहीं है लेकिन...



"मुझे पता है ।" कौशिक उसकी बात बीच में काटता हुआ बोला था-----------"कोईं नमकहराम और गद्दार नबाब के गिरोह में इतना ऊपर तक पहुच भी नहीं सकता । तुम अगले हफ्ते कनाडा में अपनी लाड़ली बेटी पास होगे ।"




"आपका यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा कौशिक साहब ।" वह आभार भरे स्वर में बोला-----“शुक्रिया ।"



"एहसान नहीं! यह तो एक डील है------सौदा है, जो मैं करूंगा । उसकी कीमत तो तुमसे पहले ही हासिल कर रहा हूं ।"




"आप ऐसा सोचते हैं, यह आपका बडप्पन है ।”



"आजकल नवाब किस फिराक में है?" कौशिक ने मतलब का सवाल किया-----" मुझे पता है वह साइबर क्राइम के मोड्स आपरेंडी के धंधे में नहीं है, फिर भी दुनिया भर के कुख्यात कम्यूटर हैकर्स को मुम्बई में इकट्ठा कर रहा है । राजा चौरसिया उसका नया बकरा है । आखिर क्या खेल चल रहा है नवाब के खेमे में?”





"क्या आप केवल यही जानना चाहते हैं?”


"हां ।"



आपका इस मामले में क्या दखल है? मेरा मतलब है कि. . . . . . .



“वगेर सवाल किए जवाब दो तो बेहतर होगा ।"

जगनलाल का चेहरा गम्भीर हो गया बोला------"नवाब का उस काम में कोई दखल नहीं हे ।"



"फिर? "



"किसी और का दखल है, जिसके बारे में नवाब के अलावा और कोई नहीं जानता । वह उसी शख्स के लिए यह सब कर रहा हैं?”



"माजरा क्या है?"




"आप चौंक पड़ेगे ।"



"चौंकाओ ।"



"माजरा बीस हजार करोड़ का है ?"




"क . . .क्या?" कौशिक के हलक से चीख निकल गई-----"ब--बीस हजार करोड ! बीस हज्जार करोड !"




सिंघल का दिमाग तो अंतरिक्ष में तैरने लगा था ।



वह जगनलाल की तरफ ऐसी नजरों से देख रहा था जैसे उसे संसार का सबसे बड़ा गप्पी समझ रहा हो जबकि उसने अहिस्ता से कहा था------“हां, बीस हजार करोड !"




"पूरा किस्सा बताओ ?"' कौशिक संभलकर बैठ गया-----"कहां चौपट पड़ा है यह बीस हजार करोड़ रुपया मुम्बई मे?"



"वह सारा का सारा रुपया एक स्विस एकाउंटिंग सिस्टम जैसे किसी विदेशी बैक में पड़ा है और जिसका वह एकाउंट है, वह इंसान अब इस दुनिया में नहीं है ।”



" कौन था वह?" कौशिक ने उंत्सुकतापूर्वक पूछा----“इतनी वड़ी रकम उसके पास कहां से अाई !"




"इस बारे में मुझे कुछ नहीं पता । मेरे खयाल से यह बात है नवाब को भी नहीं मालूम होगी । दुनिया जानती है कि स्विस बैकिंग सिस्टम जैसे दुनिया भर के सारे बैक एकाउंट, उनके एकाउंट होल्डर से नहीं बल्कि उसके यूजर नेम और पासवर्ड से आपरेट किए जाते हैं है यानी एकाउंट होल्डर दुनिया में रहे या न रहे, उसका यूजर-----नेम और पासवर्ड जिसके पास होगा, वह उस एकाउंट को अॉपरेट कर सकता है, एक तरह से वही उस एकाउंट का मालिक है ।"



"क्या मरने से पहले उस अादमी ने अपने एकाउंट का पासवर्ड किसी को बता दिया था ?"

“बता दिया होता तो फिर यह सारा बखेड़ा ही क्यों होता! मेरा मतलब है तब इस मामले में कम्यूटर हैकर्स का दखल क्यों होता?"




"नवाब वह पासवर्ड कैसे हासिल करना चाहता है? क्या दुनिया का कोई कम्यूटर हैकर स्विस बैंकिंग जैसे सिस्टम वाले किसी बैंक एकाउंट का पासवर्ड हैक कर सकता है?”



"नामुमकिन ।"



“नवाब क्या नामुमकिन को मुमकिन करने निकला है?"



“बात दरअसल यह है सर कि उस स्विस एकाउंट का यूजर नेम और पासवर्ड इंटरनेट के किसी खास प्रोग्राम में छुपा दिए गए हैं ।"




"कौन-से खास प्रोग्राम में?"



" यह पता लगाना ही वह काम है जो नवाब उन कम्यूटर हैकर्स से करवाना चाहता है और यह काम नामुमकिन नहीं है ।"


"मुझे तो मुमकिन भी नहीं दिखता ।" कौशिक बोला----“इंटरनेट पर हजारों नहीं लाखों प्रोग्राम होते हैं । फिर यह कैसे मालूम होगा कि कौन से प्रोग्राम में पासवर्ड छुपाया गया है?"
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Re: गद्दार देशभक्त

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"माफ करें कौशिक साहब, ये काम कठिन तो है पर नामुमकिन नहीं है, किसी एकाउंट को हैक करने वाले काम जैसा नामुमकिन नहीं है । इसीलिए नवाब ने यह काम अपने हाथ में लिया और उसे करने की कोशिश कर रहा है ।"



कोशिक के दिलोदिमाग में हलचल मच गई थी-----" तो यह बात है । नवाब इतनी बड्री रकम अकेले ही डकार जाना चाहता है ।"'




"नहीं कौशिक साहब । मैं बता चुका हूं , नवाब यह काम किसी और के लिए कर रहा है ।"



"क्या तुम्हें यकीन है कि अगर नवाब ने पासवर्ड हासिल कर लिया तो वह हजार-दो हजार करोड़ लेकर तसल्ली कर लेगा? वकोह, पूरा बीस हजार करोड़ रुपया हासिल करने की कोशिश नहीं करेगा ?"



"नवाब अपने क्लाइंट के साथ कभी धोखा नहीं करता । वह जो भी कान्ट्रेक्ट अपने हाथ में लेता है, उसे ईमानदारी से पुरा करता है ।"

" यानी वह अपने क्लाइंट से धोखा नहीं करेगा और कामयाब होने के बाद उससे तयशुदा रकम लेकर पूरा बीस हजार करोड़ रुपया अपने क्लाइंट के हवाले कर देगा?"



"ठीक कहा आपने !"



"बीस हजार करोड़ की रकम ऐसी है तो नहीं कि ईमानदार आदमी ईमानदार ही बना रहे । फिर भी, यकीन कर लेता हूं !"



जगनलाल खामोशी से उसे देखता रहा ।



"तो तुम उस आदमी के बारे में नहीं जानते जिसके लिए नवाब ये काम कर रहा है?"



“वो तो मैं आपको बता ही चुका हूं ।”



"कोई अंदाजा ?"


"अंदाजा ?"



"जो कि नवाब के वफादार को हो जाना कोई बड़ी बात नही है । जिस माहौंल में और जिसके साथ हम हर समय रहते हो, उसके बारे में कुछ भी न जानने के बावजूद वहुत कुछ जान जाते हैं ।"



"यह तो अंधेरे में तीर चलाने जैसा होगा ।”


"चलाओ ।"



"मेरे खयाल से नवाब का वह क्लाइंट जरूर किसी टेरेरिस्ट ग्रुप का अादमी होना चाहिए ।"



"इस खयाल की वजह?"



"मैं यह तो नहीं कह सकता कि जो मुझें लग रहा है वो सच ही है मगर मैंने कुछ चीजो को जोड़कर नतीजा निकाला है ।”



" क्या ?"



"आज की तारीख में जो दुनिया का सबसे खूंखार व खतरनाक आतंकी संगठन है, उसका नाम तो आपको मालूम होगा ही!"



"अलकायदा ।"



"नहीँ । लादेन की मौत और अमरीका की लगातार बमबारी ने अलकायदा की कमर तोड़ दी है । आज दुनिया के सबसे खतरनाक और ताकतवर आतंकी संगठन का नाम अाईएसअाईएस है ।"



"ओह हां, याद आया । यह संगठन हाल ही में उभरा है । उसका पूरा नाम इस्लामिक स्टेट आंफ़ ईराक एँड सीरिया है ।"

“आज़ यह संगठन अाधे सीरिया के बाद आधे से ज्यादा ईराक पर काबिज हो चुका है ।”



"तो क्या वह आतंकी संगठन आईएसआईएस है जो. . .



“इतनी जल्दी नतीजे पर न पहुंचें सर, मुझें नहीं लगता कि नवाब का क्लाइंट अाईएसआईएस है ।"



" तो? "



"दरअसल अाईसआईएस ने ईराक के अंदर भारी मात्रा में मौजूद युद्धक हथियारों की बड़ीं व्यापक लूटपाट की है ।"



"तुम्हारा मतलब किसी खास हथियार से है?”



"बहुत ही खास ।”



“क्या नाम है उसका?"



"नहीं मालूम । लेकिन इतना जरूर मालूम है कि वह हथियार वहुत ही खास और दुर्लभ है । यह सारी दुनिया में केवल अमरीका और रूस के बाद किसी भी तीसरे मुल्क में नहीं है, यहां तक कि चाइना के पास भी नहीं ।"



"तो ईराक के पास कहां से आया?"



“न भूंले सर कि कई सालों से ईराक की जमीन पर अमरीका का कब्जा रहा है । वहां के तानाशाह शासक को पकड़कर फांसी पर चढ़ाने के काफी बाद तक भी अमरीकी फौजें ईराक में ही डेरा डाले रही हैं और उसका युद्ध से जुड़ा तमाम साजो सामान भी ईराक में ही चारों तरफ फैल रहा है । कहा जाता है कि ईराक के ही एक आंतकी गुट ने कुछ अमरीकी सैनिकों को मारकर वह हथियार हासिल किया था, मगर वह उसका इस्तेमाल करना नहीं जानता था । इस वक्त वह आईएसआईएस के पास है और वह उसका सौदा करना चाहता है ।"



"किससे सौदा करना चाहता है?”



"जो भी माकूल कीमत देगा, चाहे यह किसी की सरकार हो या कोई आतंकी । वैसे इस मामले में आईएसआईएस की पहली चायस किसी इस्लामिक टेरेरिस्ट गुप है ।"



“इस्लामिक टेरेरिस्ट ग्रुप ही क्यों?"

" --क्योंकि आईएसआईएस खुद को एक जेहादी संगठन मानता है और दुनिया के तमाम आतंकी ग्रुप उसके लिए जेहादी संगठन हैं, जिनके रास्ते भले ही अलग हों लेकिन मंजिल एक ही है ।"




" आईएसअाईएस ने उस वेपन की कितनी कीमत लगाई है?"



"सुना है------बाइस हजार करोड़ ।"



"बाइस हजार करोड़!" एक बार फिर कौशिक के हलक से चीख निकल गई थी------“क्या कह रहे हो यार, आज क्या मेरा सिर इस कक्ष के लेंटर से ही टकराकर मानोगे!"




“में क्या कर सकता हूं सर !"



"काफी दुर्लभ हथियार होगा वह?"
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