Thriller कागज की किश्ती

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rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

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“सूअर का बच्चा!” — खुर्शीद कहरभरे स्वर में बोली — “मेरे को इकसठ-बासठ बोला।”
लड़के के वैसे ही राक्षसनुमा दोनों साथियों ने आंतकित भाव से पीड़ा से बिलबिलाते अपने साथी की तरफ देखा। फिर आंखों में खून लिए उन दोनों में से एक खुर्शीद की तरफ और दूसरा लल्लू की तरफ बढ़ा।
तभी उन दोनों के कानों पर दो फौलादी हाथ पड़े।
उन्होंने फौरन घूमकर पीछे देखा। अपने कान उन्होंने एंथोनी फ्रांकोजा की गिरफ्त में पाये तो दोनों के चेहरे भय से पीले पड़ गए।
“अभी तुम दोनों क्या करने जा रहे थे?” — एंथोनी दोनों के कान और जोर से खींचता हुआ सहज भाव से बोला।
“क-कुछ...कुछ नहीं, टोनी!” — दूसरा बोला — “लेकिन यह साला हलकट...”
“साला! हलकट!” — एंथोनी की भवें उठीं — “मुझे तो यहां कोई साला, कोई हलकट नहीं दिखाई दे रहा! मुझे तो यहां सिर्फ ये साहब दिखाई दे रहे हैं। क्या?”
“टोनी, ये साहब...”
“हजारे साहब। क्या!”
“हजारे साहब।”
“तुमने हजारे साहब के साथ जो बेअदबी की है उसके लिये साहब से माफी मांगो।”
“टोनी, लेकिन...”
“शायद ये तुम्हें माफ कर दें। बोलो, सॉरी, हजारे साहब।”
“सॉरी, हजारे साहब!” — दोनों सम्वेत स्वर में बोले।
“सॉरी, मैडम।”
“सॉरी, मैडम।”
एंथोनी ने दोनों के कान छोड़ दिये।
तब तक बार काउन्टर छोड़कर गुलफाम अली भी वहां आ खड़ा हुआ था।
“उस छोकरे का क्या नाम है?” — एंथोनी अभी भी घुटनों में हाथ दबाये पीड़ा से बिलाबिलाते राक्षस जैसे लड़के की ओर देखता बोला।
“पक्या।” — लड़के का एक साथी बोला।
“इसे कहो छोकरी से माफी मांगे।”
“टोनी!” — उसी साथी ने फरियाद की — “वो छोकरी तो तरंग में है। उसे तो पता भी नहीं कि यहां क्या हो रहा है।”
“जब ये...पक्या...पांव पकड़ कर माफी मांगेगा तो पता लग जायेगा।”
“प-पांव...पांव पकड़ कर?”
“हां।”
“मैं किसी आइटम के पांव नहीं पकड़ने वाला।” — पक्या भुनभुनाया।
टोनी ने गुलफाम की तरफ देखा।
गुलफाम पक्या के करीब पहुंचा। उसने नीचे झुककर अपनी पेंट का एक पांयचा ऊपर किया और जुर्राब में खुंसा उस्तुरा खींच लिया। उसने उस उस्तुरे को खोला और बड़े निर्विकार भाव से अपने बायें हाथ के अंगूठे पर उसकी धार चैक करने लगा।
पक्या का चेहरा पीला पड़ गया। उसने व्याकुल भाव से अपने साथियों की तरफ देखा।
“टोनी!” — उसका एक साथी याचनापूर्ण स्वर में बोला — “अब बिल्कुल ही तो हमारी इज्जत का जनाजा मत निकालो। कुछ तो खयाल करो!”
“ठीक है।” — एंथोनी बड़ी दयानतदारी जताता बोला — “खयाल करने का काम हजारे साहब पर छोड़ा। हजारे साहब चाहेंगे कि तुम्हारा यह पक्या लड़की के पांव छुये तो यह छुयेगा। हजारे साहब नहीं चाहेंगे तो यह नहीं छुयेगा। हजारे साहब से पूछ इनकी क्या मर्जी है!”
तीनों लड़कों ने लल्लू की तरफ था।
लल्लू ने नर्वस भाव से अपने होंठों पर जुबान फेरी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि एंथोनी उसका कैसा इम्तहान ले रहा था और उस वक्त उसे कौन सा रुख अख्तियार करना चाहिये था। उसने गुलफाम की तरफ देखा लेकिन गुलफाम ने उस्तुरे पर से सिर तक न उठाया। उसने एंथोनी की तरफ देखा लेकिन वहां भी उसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। उसने खुर्शीद की तरफ देखा।
खुर्शीद उसके कान में कुछ फुसफुसाई।
तुरन्त लल्लू के चेहरे पर रौनक आयी।
“जाओ, तुम्हें माफ किया।” — लल्लू बोला — “लेकिन आइन्दा ऐसी हरकत न करना।”
तीनों की जान में जान आयी।
“साहब का शुक्रिया बोलो।” — एंथोनी बोला।
सबने शुक्रिया बोला।
“कट लो।”
तीनों फौरन परे हट गये।
“आ।” — खुर्शीद फिर लल्लू की बांह थामती हुई बोली।
“कहां?” — लल्लू सकपकाया।
“वहीं, जहां इस हंगामे से पहले जा रहे थे। पिछवाड़े में। राइड मारने। उधर कमरा है।”
“ओह! लेकिन...”
“अरे, चल न!”
लल्लू उसके साथ घिसटता चला गया।
एंथोनी बार की तरफ बढ़ा।
लोग यूं उसके रास्ते से हटने लगे जैसे किसी रियासत का राजा आ रहा हो।
गुलफाम ने उस्तुरा बन्द करके वापिस यथास्थान रख लिया। एंथोनी बार पर अपने पसन्दीदा स्थान पर पहुंचा। वहां बैठे लोग उसे आया देखकर दो-दो स्टूल परे हट गये। शान्ता और शोभा तुरन्त उसके दायें बायें पहुंच गयीं।
पास्कल ने फौरन उसे ड्रिंक सर्व किया।
“टोनी” — शान्ता उसकी एक बांह से झूलती बोली — “हमें गोवा कब ले के चलोगे?”
“तुमने पिछले हफ्ते का वादा किया था।” — शोभा उसकी दूसरी बांह से चिपकती बोली।
“पास्कल” — एंथोनी बोला — “ये फंटी कौन हैं जो मेरे पर लाइन मार रही हैं?”
पास्कल ने उत्तर न दिया। वह जानता था उत्तर उससे अपेक्षित भी नहीं था।
“ओह, टोनी” — शान्ता मुंह बिसूर कर बोली — “हमेशा इन्सल्ट करते रहते हो।”
“तूने भी कुछ कहना होगा?” — एंथोनी शोभा को घूरता बोला।
“इतने लोगों के सामने तो हमारी इन्सल्ट न किया करो।” — वह एक क्षण ठिठकी और फिर अपने वक्ष को उसकी बांह के साथ रगड़ती बड़े चिताकर्षक स्वर में बोली — “वैसे जो मर्जी किया करो।”
“गॉड डैम यू, बिचिज़!” — एंथोनी कहरभरे स्वर में बोला — “मेरा नाम एंथोनी फ्रांकोजा है। एंथोनी ने कब क्या करना होता है, यह उसे किसी लैग पीस ने नहीं बताना। दोबारा मुझे सलाहें दीं तो गला रेत दूंगा। गोवा जाना है तो जाना है, नहीं जाना है तो नहीं जाना। फैसला मैं करूंगा। यह भी फैसला मैं करूंगा कि मैंने वहां एक फंटी बांध कर ले जानी है या दो। क्या?”
दोनों चुप रहीं।
“अरे, बोलो।” — एंथोनी दहाड़ा — “क्या?”
“ठीक है।” — दोनों बोली।
“दोबारा ऐसी चख-चख नहीं मांगता मेरे को।”
“ठीक है।”
“अब बोलो क्या पियोगी?”
बार के कोने में अकेला बैठा गुलफाम मुस्करा रहा था। लोगों को छोटेपन का अहसास कराने का और इलाके में अपना दबदबा बनाये रखने का वह टोनी का अपना तरीका था। वहां कदम रखते ही वह हमेशा बिना वजह किसी न किसी पर बरस पड़ता था।
तभी लल्लू खुर्शीद के साथ फिर हाल में प्रकट हुआ। दोनों काउन्टर पर एंथोनी के करीब पहुंचे।
“मजा आ गया?” — एंथोनी ने लल्लू से पूछा।
“क्यों न आता भला!” — खुर्शीद बोली — “देखा नहीं किसके साथ गया था!”
एंथोनी का एक झन्नाटेदार झापड़ खुर्शीद के मुंह पर पड़ा।
खुर्शीद की गर्दन फिरकनी की तरफ घूमी। उसकी आंखों में आंसू छलछला आये। हाल में सन्नाटा छा गया।
लल्लू एकाएक एंथोनी की तरफ झपटा लेकिन खुर्शीद उसके रास्ते में आ गई।
“टोनी जिससे सवाल करता है” — एंथोनी दांत भींचकर फुंफकारा — “वही जवाब देता है। क्या?”
खुर्शीद की आंखें अपमान से जल रही थीं लेकिन वह जबरन मुस्कराई।
“आजकल क्या रेट है तेरा?”
खुर्शीद ने तीन उंगलियां उठाईं।
एंथोनी ने जेब से तीन नोट निकाल कर उसके ब्लाऊज में खोंस दिये।
“यह तेरी अक्खा बॉडी इस्तेमाल करने का प्राइस है। मैंने तो सिर्फ एक गाल इस्तेमाल किया। ठीक?”
“ठीक।”
“हिसाब बरोबर?”
“बरोबर।”
“कट ले।”
खुर्शीद फौरन वहां से हट गई।
“तुम दोनों” — एंथोनी शोभा और शान्ता से बोला — “बाहर जाकर गाड़ी में बैठो।”
“किधर जाने का है?” — शोभा बोली।
एंथोनी ने खूनी निगाहों से उसकी तरफ देखा।
शोभा के सारे शरीर में सिहरन दौड़ गयी। उसका हाथ यूं अपने गाल को छुआ जैसे झांपड़ पड़ भी चुका हो।
तभी शान्ता ने उसकी बांह थामी और उसे बाहर को ले चली।
“इधर आ, लल्लू।”
लल्लू एंथोनी के करीब पहुंचा।
“अभी तू मेरे झपटने लगा था?” — एंथोनी धीमे किन्तु बेहद हिंसक स्वर में बोला — “एक रण्डी की खातिर टोनी पर झपटने लगा था?”
“न... नहीं!” — लल्लू हकलाया — “नहीं!”
“आज दस मिनट में दो बार तूने मेरी उम्मीदों पर पानी फेरा।”
“द... दो बार!”
“मैंने तो तुझे लल्लू से हजारे बनाया, तू करम चन्द भी बनकर न दिखा सका। जब जरूरत उन छोकरों को धूल चटाने की थी तो तूने उन्हें माफ कर दिया।”
“वो अपनी करतूत से शर्मिन्दा थे।”
“बेवकूफ! शर्मिन्दा होना तो दूर की बात है, वो तो शर्मिन्दा लग भी नहीं रहे थे। उन्होंने सॉरी नहीं बोला था, तुझे बेवकूफ बनाया था। जो जुबान वो समझते और आइन्दा याद रखते, वो तू न बोल सका। तू लल्लू ही रहा।”
लल्लू खामोश रहा।
“तू क्या समझता है मुझे इस बात की परवाह थी कि वो छोकरे उस नशे में टुन्न लड़की के साथ क्या करते थे! मेरी बला से वो लड़की को यहां नंगी नचाते।”
“तो... तो?”
“वो लड़के नौजवान थे, राक्षसों जैसे विशाल और हट्टे-कट्टे थे और जाबर बनने की कोशिश में थे। लल्लू, यहां इज्जत और दबदबा किसी पिलपिलाए हुए कुत्ते की दुम उमेठने से नहीं बनता, जाबर पर जोर दिखाने से बनता है। वो तीनों मेरे से डबल थे, उनमें से जो चाहता, मेरी बोटी-बोटी नोचकर यहां छितरा देता। किसी की मजाल हुई? नहीं हुई। लेकिन तू, जो उनसे भी डबल है, तेरे से भिड़ने की मजाल हुई उनकी। मैं न पहुंच गया होता तो तू यहां के फर्श से अपने दांत बटोर रहा होता। मैंने तुझे लल्लू से करम चन्द बनने का मौका दिया जो कि तूने खो दिया। तू उन्हें मजे से उधेड़ कर रख सकता था लेकिन तू पिलपिला गया। तेरी हिम्मत नहीं हुयी। बावजूद मेरे और गुलफाम के यहां होते तेरी हिम्मत नहीं हुयी। आज अगर तू यह हिम्मत कर गया होता तो यहां मौजूद लोग अदब से तेरे सामने झुके हुए होते। लेकिन तू लल्लू का लल्लू ही रहा।”
“टोनी” — लल्लू खेदपूर्ण स्वर में बोला — “मुझे अफसोस है कि...”
“अरे, तुझे क्या अफसोस है। अफसोस तो मुझे है, लल्लू।”
“वो... वो...”
“छोड़। जा काम कर अपना। कल अड्डे पर आना।”
“मैं अब जाकर उन तीनों को...”
“पागल है! वो मौका अब गया। अब उनके पास भी न फटकना। तेरी वजह से उनकी बेइज्जती हुई है। वो लाश का भी पता नहीं लगने देंगें। अब किसी अगली बार का इन्तजार कर।”
“अगली बार होगी?”
“क्यों नहीं होगी? जरूर होगी। अब फूट।”
मन में बड़े खतरनाक इरादे संजोता लल्लू वहां से हटा।
बाहर शोभा और शान्ता इस बात के लिए आपस में झगड़ रही थीं कि कार में टोनी के साथ आगे कौन बैठेगी।
“पिछली बार तू बैठी थी।” — शोभा बोली — “अब मेरी बारी है।”
“होगी।” — शान्ता लापरवाही से बोली — “लेकिन मुझे टोनी ने कहा है मैं आगे बैठूं।”
एंथोनी दोनों को झगड़ते देख रहा था। वह खुश था कि लड़कियां उसके लिए झगड़ रही थीं।
वह कार के समीप पहुंचा।
“टोनी” — शोभा बोली — “शान्ता मुझे आगे नहीं बैठने दे रही। इस बार मेरी बारी...”
“टोनी” — शान्ता बोली — “तूने कहा था कि...”
“दोनों पीछे बैठो।” — एंथोनी ने हुक्म दनदनाया।
दोनों भीगी बिल्ली बनी पीछे बैठ गयीं।
फिर वह कार की ड्राइविंग साइड वाले दरवाजे पर पहुंचा। वह उसे खोलकर भीतर बैठने ही लगा था कि कोई बोला — “हल्लो, टोनी।”
एंथोनी ठिठका। उसने घूमकर पीछे देखा।
पीछे उसने यशवन्त अष्टेकर को खड़ा पाया।
rajan
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अष्टेकर लम्बे-चौड़े खुले-खुले हाथ-पांव वाला उम्रदराज मराठा था और स्थानीय थाने का इन्स्पेक्टर था। उस वक्त वह अपनी इन्स्पेक्टर की वर्दी की जगह एक सूट पहने था जिसमें कि उसका जिस्म फंसा हुआ मालूम हो रहा था। सूरत से वह निहायत बद्सूरत था। उसकी नाक पकौड़े जैसी थी, कान हाथी के कानों की तरह झूलते लहराते मालूम होते थे, आंखें बटन जैसी थीं और रंगत एकदम काली थी। इसके बावजूद कोई कसर रह गई थी तो वह चेचक के दागों ने पूरी कर दी थी।
अष्टेकर धारावी की ही पैदायश था। पुलिस में वह बत्तीस साल पहले बतौर सिपाही भरती हुआ था और अपनी मेहनत और लगन के दम पर इन्स्पेक्टर के ओहदे तक पहुंचा था।
एंथोनी उसे देखकर जबरन मुस्कराया।
“कमाल है! — अष्टेकर करीब आकर बोला — “कैसा इन्स्पेक्टर हूं मैं! मेरे इलाके का भीड़ू जेल से छूट भी आया और मुझे खबर ही नहीं! कब छूटे?”
“बीस दिन हो गए।”
“बीस दिन हो गए!” — अष्टेकर यूं बोला जैसे कोई बहुत हौलनाक बात सुन ली हो — “दो-चार भी नहीं, पूरे बीस दिन हो गए। क्या घर से निकले ही नहीं इतने दिन?”
एंथोनी खामोश रहा।
“टोटल कितना अरसा भीतर रहे?”
“छः महीने।” — एंथोनी बोला। वह जानता था कि जो सवाल वो पुलिसिया उससे पूछ रहा था, उन सबके जवाब उसे पहले से मालूम थे। आखिर उसी ने तो उसे जेल भिजवाया था।
“सस्ते छूटे! छः महीने तो चुटकियों में काट लिए होंगे तुमने!”
“हां। चुटकियों में ही काटे। तुमसे दोबारा मिलने को बेकरार जो था मैं!”
“मैं खुद बहुत बेकरार था। चलो, अच्छा हुआ मुलाकात हो गयी। दोनों की बेकरारी मिट गई।”
एंथोनी खामोश रहा।
“जरा ये तसवीरें देखो।” — अष्टेकर जबरन उसके हाथ में कुछ तसवीरें धकेलता बोला।
एंथोनी ने सबसे ऊपरली तसवीर पर निगाह डाली। उसमें एक कार की अगली सीट पर उसके जिगरी दोस्त विलियम की लाश पड़ी दिखाई दे रही थी। उसका गला कटा हुआ था और उसके चारों तरफ खून ही खून बिखरा दिखाई दे रहा था।
एंथोनी ने झुरझुरी ली।
“आगे देखो।” — अष्टेकर बोला — “आगे भी ऐसी ही तसवीरें हैं। एक कटे हुए गले का क्लोजअप भी है। शायद उसे एनलार्ज कराकर तुम घर में लगाना चाहो।”
एंथोनी ने कहरभरी निगाहों से उसकी तरफ देखा लेकिन मुंह से कुछ न बोला।
“किसी ने” — अष्टेकर बोला — “तुम्हारे जेल में होने का फायदा उठाकर तुम्हारे जिगरी यार का गला रेत दिया। तुम आजाद होते तो जरूर उसे बचा लेते। आखिर वो तुम्हारा जिगरी यार था, पार्टनर था, सगे भाई जैसा था।”
“मैं बाहर होता” — एंथोनी क्रूर स्वर में बोला — “तो किसी की उसकी तरफ आंख उठाने की भी मजाल न हुई होती।”
“बाहर आकर ढ़ूंढ़ा होता अपने जिगरी यार के कातिल को!”
“मैं ढ़ूंढ़ रहा हूं। ढ़ूंढ़ कर रहूंगा। तुम एकदम निकम्मे पुलिस वाले तो यह काम कर नहीं सकते इसलिए यह काम मुझे ही करना पड़ेगा।”
“मुंह बड़ा हो तो बात भी बड़ी ही निकलती है। समझते हो कि पुलिस से ज्यादा होशियार और साधनसम्पन्न हो तुम।”
“हां, हूं।”
“ठीक है। ढ़ूंढ़ो। ढ़ूंढ़ो अपने यार के कातिल को। लेकिन एक बात याद रखना।”
“क्या?”
“विलियम के कातिल की मुझे भी तलाश है। अगर मुझे मालूम हुआ कि तुम विलियम के कातिल की बाबत कोई जानकारी रखते हो लेकिन उसे पुलिस से छुपा रहे हो तो मैं तुम्हारी वो गत बनाऊंगा कि तुम उम्र भर याद रखोगे।”
“कोई गोली-वोली खा लो, इन्स्पेक्टर। बुढ़ापे में इतना गुस्सा खतरनाक साबित हो सकता है तुम्हारे लिए। गुस्से में तुम्हारा काला थोबड़ा लाल तो हो नहीं पा रहा, बैंगनी हो गया है।”
“बकवास जितनी मर्जी कर लो लेकिन मेरी वार्निंग याद रखना। समझे?”
अष्टेकर ने एंथोनी के हाथ से तसवीरें झटक लीं और वहां से विदा हो गया।
एंथोनी ने एक गहरी सांस ली और कार में सवार हो गया।
“टोनी!” — शांता बोली — “क्या कह रहा था वो इन्स्पेक्टर?”
“शटअप!” — एंथोनी कार स्टार्ट करता बोला। बार-बार उसकी निगाह के सामने विलियम की गला कटी लाश की तसवीर घूम जाती थी।
पास्कल के बार वाली सड़क का मोड़ काटकर उसने कार रोक दी।
उसने कार के डैशबोर्ड में बना एक खाना खोला और उसमें से काले रंग के दो ऐसे थैले निकाले जिनके मुंह डोरी खींचने से बन्द होते थे।
उसने हाथ बढ़ाकर वे थैले बारी-बारी दोनों लड़कियों के सिरों पर ओढ़ा दिए और डोरियां उनकी गरदन के गिर्द कस दीं।
“टोनी” — शोभा ने फरियाद की — “जब भी तुम हमें अपने साथ ले जाते हो तो हमें अन्धा क्यों कर देते हो?”
“क्योंकि इसी में तुम्हारी भलाई है।” — एंथोनी बोला।
“हमारी क्या भलाई है?”
“टोनी के अड्डे का पता मालूम होने से तुम लोगों की जान जा सकती है। कोई तुम्हें टार्चर करके पता जान सकता है।”
“किसी को मालूम कैसे होगा कि हमें पता मालूम है?” — शोभा बोली।
“मालूम हो जाता है। हर वक्त गोंद की तरह तो मेरे साथ चिपकी रहती हो। लोग क्या मूर्ख हैं?”
“ओह, टोनी!”
“अब थोबड़ा बन्द।”
उसने कार आगे बढ़ा दी। रियरव्यू मिरर में वे दोनों उसे दिखाई दे रही थीं। उसने उन्हें समझाया हुआ था कि अगर उन्होंने नकाब से बाहर झांकने की कोशिश की तो वह उनके थोबड़े तेजाब से जला देगा। वैसे दोनों लड़कियों की इस दहशत में भी नकाब से बाहर झांकने की हिम्मत नहीं होती थी कि टोनी उन्हें उनकी उस गुस्ताखी की सजा उनका पत्ता काट कर दे सकता था। मुम्बई शहर में तो क्या, धारवी में ही वह उन जैसी लड़कियां दर्जनों की तादाद में हासिल कर सकता था।
रास्ते में शोभा ने शान्ता से कोई बात करने की कोशिश की तो शान्ता ने उसे डपट कर चुप करा दिया।
“लेकिन शान्ता...”
“अरे, कहा न, चुप रह।” — शान्ता बोली।
शोभा को उसका स्वर बेहद गम्भीर लगा। पिछली दो-तीन बार से वह नोट कर रही थी कि उस अन्धे सफर के दौरान शान्ता हमेशा हद से ज्यादा गम्भीर हो जाती थी।
पता नहीं किस फिराक में थी शान्ता!
कोई बीस मिनट चलती रहने के बाद एकाएक कार की रफ्तार घटी। फिर कार रुक गई। उस का अगला दरवाजा खुला और बन्द हुआ। थोड़ी देर बाद दरवाजा फिर खुला और बन्द हुआ। कार थोड़ा-सा आगे बढ़ी और रुक गई। उसका दरवाजा फिर खुला और बन्द हुआ।
कुछ क्षण सन्नाटा रहा।
“निकलो।” — फिर लड़कियों के कानों में एंथोनी की आवाज पड़ी।
पिछले फेरों के तजुर्बों से उन्हें मालूम था कि अब वे नकाब हटा सकती थीं। उन्होंने काले थैले अपनी गर्दनों के गिर्द से हटा कर कार की सीट पर डाल दिये और बाहर निकलीं। बाहर घुप्प अन्धेरा था। एंथोनी दोनों की बांह थामकर उन्हें एक बन्द दरवाजे तक लाया। उसने ताले को चाबी लगाकर खोला। तीनों भीतर दाखिल हुए। एंथोनी ने दरवाजा भीतर से बन्द किया और बिजली का एक स्विच आन किया। जरूर वह कोई मेन स्व‍िच था क्योंकि उसने कई बत्त‍ियां एक साथ जलीं। लड़कियों की आंखें चौंधिया गयीं।
वह जगह एंथोनी फ्रांकोजा का अड्डा था, उसका गोदाम था, उसकी ऐशगाह थी। स्काच विस्की की बोतलों, विदेशी सिगरेटों, घड़ियों, वीडियो रिकार्डरों, ट्रांजिस्टरों और पोर्टेबल टीवियों के वहां अम्बार थे। उसके अलावा वहां हेरोइन, एल.एस.डी. और समैक का तगड़ा स्टॉक था।
एंथोनी ने एक लोहे की अलमारी खोली। उसने वहां से हीरा जड़ी सोने की दो अंगूठियां निकालीं और अलमारी बन्द कर दी।
“टोनी” — शान्ता मन्त्रमुग्ध स्वर में बोली — “इतना माल तुम्हारे पास कहां से आ जाता है?”
“जीसस महान है। जीसस मेहरबान है। जीसस देता है।”
“तुम्हें यहां कोई पहरेदार नहीं बिठा कर रखना चाहिये! आखिर इतना माल...”
“पहरेदार की जरूरत नहीं। इस जगह की किसी को खबर नहीं। तुम्हें भी नहीं। क्या?”
“लेकिन...”
“अब बातों में वक्त जाया मत करो।”
एंथोनी ने एक और दरवाजा खोला।
वह एक अत्यन्त ऐश्‍वर्यशाली ढंग से सजा बैडरूम था।
टोनी ने दोनों को एक-एक अंगूठी दी।
फौरन दोनों के चेहरे खुशी से दमकने लगे।
“खुश?” — एंथोनी बोला।
“ओह, टोनी!” — दोनों उससे लिपट गयीं — “यू आर ग्रेट।”
“अब बोलो तुम्हारा मालिक कौन है?”
“एंथोनी फ्रांकोजा!” — दोनों सम्वेत स्वर में बोलीं।
“कपड़े उतारो।”
उन्होंने सम्पूर्ण नग्नावस्था में पहुंचने में एक मिनट भी न लगाया।
एंथोनी ने एक भरपूर निगाह दोनों के पुष्ट, नौजवान जिस्मों पर डाली।
फिर वह भी अपने कपड़े उतारने लगा।
उस घड़ी उसे मोनिका की याद आये बिना न रह सकी।
लड़कियों की खैर नहीं — उसने मन ही मन सोचा — आखिर जो कुछ उसे मोनिका से हासिल नहीं था, वह उसने उन लड़कियों से हासिल करना था।
निर्वस्त्र होकर उसने सिर उठाया तो उसने दोनों को पलंग पर लेटे पाया। दोनों की आमन्त्रणपूर्ण गोरी, नंगी बांहें उसकी तरफ फैली हुई थीं।
rajan
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आधी रात के करीब लल्लू पास्कल के बार से बाहर निकला।
शाम को गुलफाम से पांच सौ रुपये हासिल करने के बाद वह कल्याण का चक्कर लगा भी आया हुआ था जहां कि एम्बैसेडर को उसने यथास्थान खड़ी पाया था लेकिन एम्बैसेडर में से या उसके भीतर पड़ी शोफर की वर्दी में से उसका पर्स बरामद नहीं हुआ था। जरूर किसी ने पॉकेट ही मारी थी उसकी।
लल्लू सड़क पर आगे बढ़ा।
तभी एक जीप उसके पहलू में आकर रुकी।
“लिफ्ट चाहिए, हजारे?”
लल्लू ने सकपका कर जीप की तरफ देखा। जीप पुलिस की थी। अलबत्ता जीप की ड्राइविंग सीट पर बैठे इकलौते पुलिसिये को वह नहीं पहचानता था।
“पुलिसियों की लिफ्ट नहीं मांगता।” — लल्लू रूखे स्वर में बोला।
“मुझे जानता है?”
“नहीं। लेकिन हो तो पुलिसिये ही! हो कि नहीं?”
“हूं। मुझे अष्टेकर कहते हैं। इन्स्पेक्टर होता हूं मैं धारावी थाने का। मुझे जानता होना चाहिए था तुझे!”
“तुमने अभी मुझे हजारे कहकर पुकारा था। तुम मेरा नाम कैसे जानते हो?”
“तेरा बाप मेरा दोस्त होता था। बसन्त हजारे। यही नाम था न तेरे बाप का?”
लल्लू ने सहमति में सिर हिलाया।
“बढ़िया आदमी था। खामखाह मर गया। क्या हुआ था? पेट का अल्सर फट गया था न?”
लल्लू ने फिर सहमति में सिर हिलाया।
“दारू जो नहीं छोड़ता था! कोई बीमा-वीमा था?”
“नहीं।”
“च च च। ऊपर से तू कुछ करता-धरता नहीं।”
“तुम्हें कैसे मालूम?”
“क्या? कि तू कुछ करता-धरता नहीं?”
“हां।”
अष्टेकर मुस्कराया।
“मुझे बहुत कुछ मालूम है तेरे बारे में।” — वह बोला — “मसलन यही मालूम है कि आजकल तू टोनी नाम के उस घटिया मवाली की शार्गिदी में है।”
“टोनी घटिया मवाली नहीं है।” — लल्लू तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोला।
“तो बढ़िया मवाली सही। है तो मवाली ही!”
“नहीं। वो... वो भला आदमी है।”
अष्टेकर ने जोर का अट्टहास किया।
“तेरी मां की...” — लल्लू गुस्से में बोला और घूमकर आगे बढ़ चला।
अष्टेकर ने चीते की तरह जीप से बाहर छलांग लगाई। उसने हाथ बढ़ाकर पीछे से लल्लू की जैकेट का कालर थामा और उसे वापिस घसीट लिया। उसने फिरकी की तरह उसे अपनी तरफ घुमाया और दोनों हाथों से उसका गिरहबान थाम लिया। उसने भड़ाक से उसे पीछे दीवार के साथ टकराया और अपने भारी-भरकम बूट की ठोकर उसकी टांग पर जमाई।
लल्लू पीड़ा से बिलबिला गया। अष्टेकर ने उसे थामा न हुआ होता तो जरूर वह दोहरा होकर नीचे सड़क पर ढ़ेर हो गया होता।
पास्कल के बार की एक खिड़की में गुलफाम खड़ा था और चुपचाप वह नजारा कर रहा था।
“तेरा बाप मेरा दोस्त था” — अष्टेकर तिरस्कारपूर्ण स्वर में बोला — “इस बात का लिहाज कर रहा हूं वर्ना तेरी गाली के बदले में आज मैं तुझे चलने-फिरने के काबिल न छोड़ता।”
लल्लू के मुंह से बोल न फूटा।
“विलियम के बारे में क्या जानता है?”
“क... कौन विलियम?”
“वही जो तेरे उस्ताद का जिगरी यार होता था। विलियम फ्रांसिस।”
“म... मैं यही जानता हूं कि वह मर चुका है। और कुछ नहीं जानता मैं।”
“टोनी कभी उसका जिक्र नहीं करता?”
“नहीं।”
“मेरे से झूठ बोलने का अंजाम जानता है न?”
“जानता हूं।”
“हूं।” — एकाएक अष्टेकर ने उसका गिरहबान छोड़ दिया — “अभी छोड़ रहा हूं। फिर मिलूंगा तेरे से। एक बात तेरे भले के लिए बोलता हूं। धारावी में रहता है तो मेरी सूरत अच्छी तरह से पहचान ले। मेरा नाम भी याद कर ले। अष्टेकर कहते हैं मुझे। यशवंत अष्टेकर।”
फिर लल्लू को वहीं खड़ा छोड़कर वह जीप में जा सवार हुआ।
बाहर पौ फट रही थी जब कि एंथोनी ने अपने फ्लैट में कदम रखा।
मोनिका बैडरूम में सोई पड़ी थी।
एंथोनी ने बैडरूम के पहलू में पड़ा एक टेबल लैम्प जलाया, वार्डरोब में से कुर्ता-पजामा निकाला और अपने कपड़े उतारने लगा।
रोशनी होते ही मोनिका जाग गई थी लेकिन एंथोनी को इस बात की खबर नहीं लगी थी। मोनिका अपलक उसे देख रही थी।
“अब एक आइटम से तसल्ली नहीं होती!” — एकाएक वह बोली — “आज दो के साथ लेट कर आये हो!”
एंथोनी कुर्ता पहनता-पहनता रुक गया। उसने घूमकर मोनिका की तरफ देखा।
“तुम्हारे कन्धे पर दो जुदा रंगों की लिपस्टिक के निशान हैं। एक गुलाबी। दूसरा बैंगनी।”
एंथोनी चुप रहा। उसने कुर्ता-पजामा पहना और अपने कोट की जेब से एक नैकलेस निकला। फिर उसने एक भरपूर निगाह मोनिका पर डाली।
साली कितनी खूबसूरत थी! — वह मन ही मन आह सी भरता बोला — औलाद पैदा कर चुकने के बाद भी बला की हसीन लग रही थी! कहीं से भी तो कोई कस बल ढीले नहीं पड़े थे साली के! कितना खुशकिस्मत था विलियम जिसे ऐसी औरत का प्यार हासिल था!
“यह नैकलेस” — एंथोनी नैकलेस उसकी तरफ बढ़ाता बोला — “मैं तुम्हारे लिए लाया हूं।”
मोनिका ने नैकलेस थामा, उसने एक सरसरी निगाह उस पर डाली और फिर उसे पलंग से दूर बैडरूम के एक कोने में उछाल दिया।
“यह” — एंथोनी आहत भाव से बोला — “पचास हजार रुपये का था।”
“लाख का होगा।” — मोनिका बोली — “इसे अपनी किसी छोकरी को देना। खूब अहसान मानेगी। खूब सेवा करेगी।”
वही हरकत किसी और औरत ने की होती तो एंथोनी अब तक उसकी गर्दन मरोड़ चुका होता लेकिन मोनिका के साथ वह ऐसा नहीं कर सकता था। वह दिल के हाथों मजबूर था। वह मोनिका से मुहब्बत करता था। वह‍ मोनिका के साथ सख्ती से पेश नहीं आ सकता था। उसका व्यवहार नापसन्द आने पर वह सदा के लिए वहां से रुखसत हो सकती थी। यूं कम से कम वह वहां उसके करीब तो रह रही थी।
उसने मोनिका के पहलू में सोये पड़े मिकी पर निगाह डाली। वह जब भी मिकी की तरफ देखता था, उसे विलियम अपनी तरफ देखता दिखाई देता था। विलियम से कितनी शक्ल मिलती थी कम्बख्त की।
“अगर मैं” — एकाएक एंथोनी भड़ककर बोला — “छोकरियों के साथ लेटकर आया हूं तो क्या आफत आ गयी! छ: महीने की सजा काटकर निकला आदमी औरत की ख्वाहिश न करे तो क्या करे? जिस औरत की उसके मन में ख्वाहिश हो, अगर उसे उसकी परवाह न हो तो वह जाकर बाजारी औरतों की गोद में गर्क न हो तो कहां गर्क हो? तुम... तुम एक प्रेत के साथ बन्धी बैठी हो। रोज कब्रिस्तान जाती हो। जो मर चुका है उसकी याद के साथ चिपकी हुई हो, जो...”
“विलियम मर चुका है” — मोनिका धीरे से बोली — “लेकिन उसका कातिल जिन्दा है।”
“तुम्हारे रोज कब्रिस्तान जाने से मुर्दा कब्र से उठकर खड़ा नहीं हो जायेगा और न ही यूं उसके कातिल को मौत आ जाएगी।”
मोनिका ने आग्नेय नेत्रों से उसकी तरफ देखा।
“मोनिका” — एंथोनी पलंग के करीब पहुंचा — “तुम क्यों मुझे इस कद्र बेइज्जत करती हो? सच जानो, मेरी उन छोकरियों में कोई दिलचस्पी नहीं, जिनके तुम मुझे ताने देती हो। वो सिर्फ जनाना जिस्म हैं जिन्हें मैं अपनी जिस्मानी जरूरत पूरी करने के लिए महज इस्तेमाल करता हूं।”
“तुम मुझे भी इस्तेमाल करना चाहते हो!”
“नहीं। मैं तुमसे मुहब्बत करता हूं। मैं...”
“जानते हो मैं तुम्हारे पास क्यों आयी थी?”
“नहीं। क्यों आयी थी?”
“क्योंकि विलियम ने मुझे कहा था कि अगर उसे कभी कुछ हो जाए तो मैं तुम्हारे पास जाऊं। विलियम चाहता था कि उसका बेटा तुम्हारी छत्रछाया में परवान चढ़े। वह तुम्हें अपना मानता था। बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई अपने किसी सगे वाले को अपना मानता है। मैंने तुम्हारी हर मुमकिन खिदमत की है। जेल में मैं हर हफ्ते तुम्हें मिलने आती रही। खंडाला जाकर तुम्हारे मां-बाप को विश्‍वास दिलाती रही कि तुम बिजनेस के वास्ते कहीं बाहर गए हुए थे। तुम्हारा घर सम्भालती रही। तुम्हारा खाना बनाती रही। तुम्हें अपने जिस्म के साथ खिलवाड़ करने देती रही। और मुझसे क्या चाहते हो तुम?”
“प्यार!” — एंथोनी भर्राये स्वर में बोला — “तुम्हारा प्यार चाहता हूं मैं। तुम्हारा वो प्यार चाहता हूं जो विलियम को हासिल था।”
“उसके लिये तुम विलियम बनके दिखाओ।”
“मैं कुछ भी करने को तैयार हूं। बोलो, क्या करना होगा मुझे विलियम बनने के लिए? क्या करूं मैं?”
“सबसे पहले तो नहाकर आओ” — एकाएक वह मुस्कराई — “ताकि तुम्हारे जिस्म से बाजारी औरतों की महक धुल सके।”
अष्टेकर ने अपने सामने मिशन हस्पताल के बैड पर पड़े रामचन्द्र नागप्पा पर निगाह डाली। वह इन्टेन्सिव केयर यूनिट में था। उसकी नाक, मुंह और बांह में रबड़ की ट्यूबें लगी हुई थीं। उसकी छाती उसकी सांसों के साथ उठ-गिर रही थी लेकिन वह बेहोश था।
“कैसी हालत है इसकी?” — उसने करीब खड़े डाक्टर से पूछा।
“पहले से अच्छी है।” — डाक्टर बोला।
“बयान देने के काबिल कब होगा?”
“अभी कुछ कहा नहीं जा सकता।”
“होश में एक बार भी नहीं आया? एक बार भी नहीं बोला कि किसने इसकी यह हालत बनायी?”
“नहीं। लेकिन नींद में बड़बड़ाता है।”
“बड़बड़ाता है? क्या कहता है?”
“सिर्फ एक नाम लेता है। बार-बार। एक ही नाम।”
“क्या नाम?”
“मुझे याद नहीं।”
“आप एक इकलौता नाम याद नहीं रख सकते?”
“याद था।” — डाक्टर खेदपूर्ण स्वर में बोला — “भूल गया।”
“क्या फायदा हुआ?”
डाक्टर चुप रहा।
“नाम याद आए या यह दोबारा बड़बड़ाए तो नाम कागज़ पर नोट कर लीजिएगा वर्ना फिर भूल जाएगा।”
डाक्टर ने सहमति में सिर हिलाया।
“हुआ क्या है इसे?”
“फ्रेक्चर। ब्रेन कनकशन। किसी खतरनाक नशे का ओवरडोज।”
“इसे यहां कौन लाया?”
“पता नहीं।”
“यह प्राइवेट हस्पताल है। जब इसकी तीमारदारी का बिल अदा करने वाला कोई नहीं तो आप लोग...”
“इसकी जेब में से दो हजार रुपये निकले थे।”
“इसका मतलब यह हुआ कि इसको लूटने के लिए इस पर हमला नहीं किया गया था!”
“जाहिर है। इसकी घड़ी और अंगूठी भी सलामत थी।”
“हूं। इसके बयान देने से काबिल होते ही आपने हमें खबर करनी है।”
“आई अण्डरस्टैन्ड।”
अष्टेकर वहां से बाहर निकल आया।
बाहर ए.एस.आई. पाकीनाथ और हवलदार पाण्डुरंग मौजूद थे।
“ये कहां पड़ा मिला था?” — अष्टेकर ने पूछा।
“एक्रेजी के इलाके में।” — पाकीनाथ तत्पर स्वर में बोला।
“एक्रेजी के इलाके में कहां?”
“पास्कल के बार वाली सड़क की नुक्कड़ पर। एकदम बेहोश। टुन्न।”
“मालूम नहीं हुआ उस हालत में कैसे पहुंचा?”
“नहीं।”
“पास्कल के बार में पूछताछ की?”
“की। बार में उसे किसी ने नहीं देखा था। हर कोई कहता था कि वह वहां नहीं आया था।”
“साले सब झूठ बोलते होंगे!”
“हमने इसकी खोली की तलाशी ली थी। वहां से ढेर सारी नशे की गोलियों के अलावा हमें एक यह चीज भी मिली थी।”
उसने एक उस्तुरा अष्टेकर को दिखाया।
“उस्तुरा!” — अष्टेकर बोला — “नागप्पा उस्तुरे से हजामत बनाता है?”
“वो हजामत बनाता ही नहीं। पन्द्रह-बीस दिन में जो एक हजामत इसकी होती है वह नाई की दुकान पर होती है। मैंने मालूम किया है।”
“तो फिर यह उस्तुरा!”
“सर” — पाकीनाथ धीरे से बोला — “विलियम का गला ऐसे ही हजामत बनाने वाले उस्तुरे के काटा गया था। नागप्पा नींद में विलियम-विलियम भजता था।”
rajan
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Re: Thriller कागज की किश्ती

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“तुम्हें कैसे मालूम? डाक्टर को तो नाम याद नहीं था।”
“मैंने नर्स से पूछा था। वह कहती है कि नागप्पा जो नाम नींद में बार-बार बड़बड़ाता था, वो विलियम का था।”
“नाम के अलावा और कुछ नहीं बोलता?”
“कुछ ‘जानता हूं, सब जानता हूं’ कहता है। पता नहीं साला क्या जानता है!”
“हूं।”
अष्टेकर एक क्षण सोचता रहा फिर बोला — “यह उस्तुरा तुम्हारे पास क्या कर रहा है? इसे पुलिस लैब में एग्जामिनेशन के लिए भेजो।”
“यस, सर!” — पाकीनाथ एक क्षण खामोश रहा और फिर बोला — “सर!”
“क्या है?”
“सर, विलियम के कत्ल में आप कुछ ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं। लगता है इतनी रात गये आप इस गटर के कीड़े को देखने भी विलियम के कत्ल की वजह से ही आये हैं। तीन महीने हो गए विलियम के कत्ल को लेकिन आप...”
अष्टेकर उसकी सारी बात सुनने को वहां न रुका। वह लम्बे डग भरता हस्पताल के लम्बे गलियारे में आगे बढ़ गया।
उसके मानसपटल पर मार्था की तसवीर उभरी।
मार्था... जुहू... रात का अंधेरा... जुहू की रेत... रेत में अभिसार। तीस साल पहले। ...मार्था नाम की युवती के साथ अष्टेकर का अपनी जिन्दगी का पहला और आखिरी अभिसार।
अष्टेकर से बेइज्जत होने के बाद लल्लू घर जाने की जगह वापिस बार में घुस गया जहां कि वह सवेरे के चार बजे तक दारू पीता रहा। फिर नशे में टुन्न वह कोलीवाड़े की अपनी चाल में लौटा जहां कि एक खोली में वह अपनी बूढ़ी मां और बूढ़ी दादी के साथ रहता था।
उसकी मां ने उसे दरवाजा खोला।
“कहां रहता है, रे, इतनी रात-रात भर!” — मां व्याकुल भाव से बोली — “लोगों का घर से निकलने का वक्त होता है तो तेरा घर लौटने का वक्त होता है। मुझे फिक्र लगी रहती है तेरी। बुरे-बुरे खयाल आते रहते हैं।”
“मां” — लल्लू नशे में झूमता बोला — “जब मोटा रोकड़ा कमाना हो तो दिन रात नहीं देखे जाते।”
“ऐसा क्या कर रहा है, रे, तू?”
“सवाल मत पूछ मां, लेकिन देखना, एक दिन मैं तुझे इस नर्क से निजात दिला कर रहूंगा।”
“घर को नर्क कहता है, रे!” — दादी बोली — “अरे, लल्लू, इस खोली में तो तेरा बाप भी पैदा हुआ था।”
“मुझे लल्लू मत कह, दादी। अब मैं बच्चा नहीं हूं। पूरे इक्कीस साल का हो गया हूं, इक्कीस साल का।”
“तू कितना बड़ा मर्जी हो जा। मेरे लिए तो लल्लू ही रहेगा!”
लानत — लल्लू भुनभुनाया — क्यों हर कोई उसे लल्लू ही बनाये रखने की ठाने हुए था!
एकाएक वह उठा और अपनी मां और दादी की आवाजों को अनसुना करके वहां से बाहर निकल आया।
चाल के कोने पर एक चाय की दुकान थी। उसने चाय के लिए बोला और उस रोज का अखबार उठा कर पढ़ने लगा।
मुखपृष्ठ पर ही छपा था :
कल्याण में बैंक डकैती। आठ लाख लूटे।
आठ लाख!
उस रकम के खयाल से ही लल्लू का चेहरा खिल उठा।
मोनिका अंगड़ाई लेती एंथोनी के पहलू से उठी। एंथोनी ने उसे फिर दबोच लेना चाहा लेकिन वह मुस्कराती हुई उसकी पहुंच से परे हो गई और सम्पूर्ण नग्नावस्था में चलती हुई टायलेट में दाखिल हो गयी।
चेहरे पर तृप्तिभरी मुस्कराहट लिए एंथोनी अधलेटा-सा बैठा रहा।
आज वह बहुत सन्तुष्ट था। आज उसे अपनी पसंदीदा चीज वैसे हासिल हुई थी जैसे वह उसे हासिल करने की ख्वाहिश रखता था। मोनिका ने पहली बार बिना किसी संकोच या झिझक के उस पर अपने आपको समर्पित किया था।
विलियम की बीवी — उसने सोचा — विलियम का माल। अब मेरा माल। मुकम्मल तौर से। इस जिस्म का हर अंग, हर कोना-खुदरा अब मेरे इस्तेमाल के लिए।
उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और मोनिका के साथ हुए अभिसार की कल्पना करता उसके कश लगाने लगा।
“मोनिका!” — फिर वह उच्च स्वर में बोला।
“क्या है?” — बाथरूम से आवाज आयी।
“सुन रही हो?”
“सुन रही हूं। तभी तो जवाब दे रही हूं।”
“आज मेरे को खण्डाला जाने का है।”
“क्यों?”
“आज मेरे मां-बाप की शादी की पैंतीसवीं सालगिरह है। बूढ़े सैन्टीमैन्टल हो रयेले हैं। ग्रैंड पार्टी कर रहे हैं। तू चलेगी?”
“अपने मां-बाप को जाके क्या बताओगे? जब तुम जेल में थे तो मैं जब उन्हें तुम्हारे कहने पर खर्चे-पानी का पैसा पहुंचाने जाती थी तो मैं अपने आपको तुम्हारी सैक्रेटरी बताया करती थी। क्या अब भी अपनी सैक्रेट्री बताओगे?”
एंथोनी थोड़ी देर सोचता रहा, फिर बोला — “ठीक है। जाने दे। फिर कभी चलेंगे।”
“फिर कभी कब?”
“जब मैं यह कह सकूंगा कि मैंने अपनी सैक्रेट्री से शादी कर ली है।”
“ठीक है।”
थोड़ी देर बाद मोनिका टायलेट से बाहर निकली तो वह बोला — “अब एक काम और कर।”
“क्या?” — मोनिका बोली।
“मिकी को सिखा।”
“क्या सिखाऊं?”
“मुझे डैडी कहना।”
जवाब में मोनिका बड़ी चित्ताकर्षक हंसी हंसी।
rajan
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जोगलेकर ट्रेन में बैठा था और भुनभुनाता हुआ अखबार पढ़ रहा था। भुनभुना वह इसलिये रहा था क्योंकि गाड़ी उस रोज भी लेट थी।
उसे अखबार पढ़ कर ही पता लगा था कि कल्याण के पंजाब बैंक पर कल डकैती पड़ गयी थी। तीन सिख नौजवान बैंक का आठ लाख रुपया लूट कर ले गए थे।
तभी उसके करीब एक टिकट चैकर पहुंचा। जोगलेकर ने देखा कि वह पिछले रोज वाला ही टिकट चैकर था। उसका हाथ स्वयंमेव ही पास निकालने के लिए कोट की भीतरी जेब की तरफ बढ़ा।
“नहीं, नहीं।” — टिकट चैकर उसके सामने बैठता बोला — “मैं जानता हूं आप डेली पैसेंजर हैं। जिस लड़के का कल आपने किराया भरा था, उसको जब आपने अपना कार्ड दिया था तो मैंने कार्ड पर से आपका नाम पढ़ा था। जोगलेकर साहब हैं न आप?”
“हां।”
“लड़के ने किराया लौटाया?”
“अभी तो नहीं!”
“मुझे लगता है अपना पर्स खो जाने के बारे में वह सच बोल रहा था।”
“अच्छा! वो कैसे?”
“कल आप दोनों के ट्रेन से उतर जाने के बाद मैं टायलेट में गया था। वहां मुझे एक पर्स पड़ा मिला था। हो सकता है वह पर्स उसी लड़के का हो।”
“पर्स में माल कितना था?”
“माल तो जरा भी नहीं था। मेरे से पहले कोई टायलेट में गया होगा, उसने पर्स देखा होगा, उसमें से माल निकाला होगा और पर्स वापिस फेंक दिया होगा।”
“ओह!”
“पर्स में कुछ रसीदें वगैरह हैं लेकिन मालिक का नाम-पता कुछ नहीं। पर्स पहले तो मैं फेंकने लगा था, फिर मैंने यह सोचकर रख लिया था कि आज आपको दे दूंगा। लड़का आपके पैसे लौटाने आए तो उसे दिखा लीजिएगा। क्या पता उसी का हो।”
“ठीक है।”
टिकट चैकर ने जोगलेकर को एक चमड़े का पर्स सौंप दिया।
एंथोनी फ्रांकोजा, गुलफाम अली और करम चन्द हजारे तीनों अड्डे पर मौजूद थे। पिछले रोज की लूट की रकम गिनी जा चुकी थी और उसे तीन हिस्सों में बांटा जा चुका था। दो हिस्से बराबर थे, एक उनसे काफी छोटा था।
कुल रकम चार लाख तीस हजार रुपये निकली थी।
“अखबार में तो आठ लाख छपा है!” — लल्लू बोला।
“यहां तो इतने ही निकले हैं!” — एंथोनी बोला — “जरूर ये साले बैंक वाले आठ लाख लुटे बताकर बाकी रकम खुद हजम कर जायेंगे।”
“ऐसा कहीं होता है!”
“होता है।”
“तुम दोनों का हिस्सा पौने दो-दो लाख। मेरा अस्सी हजार। मेरा हिस्सा तुम दोनों से कम क्यों?”
“क्योंकि तेरा काम कम था।” — एंथोनी गुस्से से बोला — “तूने क्या किया था? सिर्फ गाड़ी चलाई थी और मजे से बैंक के बाहर बैठा रहा था। सारा रिस्क हमने लिया था। हमारी जानें जा सकती थीं। वो गार्ड हमें शूट कर सकता था। मालूम!”
लल्लू खामोश रहा लेकिन उसके चेहरे से असन्तोष के भाव न गए।
“उस्ताद पर भरोसा रखना सीख, लल्लू।” — गुलफाम सख्ती से बोला — “अपना हिस्सा उठा और फूट।”
लल्लू ने हाथ बढ़ाकर नोटों का छोटा ढ़ेर उठा लिया।
“कुछ दिन रोकड़ा दबोच कर रखना।” — एंथोनी बोला — “आज ही इसे इधर-उधर उड़ाना मत शुरू कर देना।”
“और अष्टेकर से माथा नहीं मारने का है।” — गुलफाम बोला — “उससे दूर-दूर रहने का है। एकाध हाथ भी जमाये तो चुप रहने का है।”
“समझ गया, लल्लू?” — एंथोनी बोला।
“करम चन्द।” — लल्लू बोला।
“वो अभी बनेगा। बनता-बनता बनेगा। अभी तो तुझे अपना हिस्सा गिनना भी नहीं आता। अभी तो अपने साथियों का एतबार करना भी सीखना है तुझे।”
“स... सॉरी।”
“कट ले।”
अष्टेकर ने बच्चे की उंगली थामे मोनिका को इमारत से बाहर कदम रखते देखा तो वह जीप में से बाहर निकला और सड़क पार कर उसके करीब पहुंचा।
“हल्लो, मोनिका।” — वह मुस्कराता बोला।
“हल्लो।” — मोनिका रुखाई से बोली।
अष्टेकर दोहरा होकर मिकी के लैवल पर पहुंचा और मुस्कराता बोला — “हल्लो! कैसा है हमारा बेटा!”
मिकी मां की ओट में हो गया।
“डर जायेगा।” — मोनिका बोली।
“काहे को! मेरी शक्ल क्या इतनी भयानक है?”
“हां।”
अष्टेकर ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा।
“हद है!” — वह बोला — “मैं तुम्हारे साथ इतना अच्छी तरह से पेश आता हूं और तुम्हें मेरी तौहीन करने से भी गुरेज नहीं। मेरी उम्र का नहीं तो मेरी वर्दी का ही लिहाज करो!”
मोनिका खमोश रही।
“तुम जानती हो मैं जी जान से तुम्हारे हसबैंड के कातिल का पता लगाने की कोशिश कर रहा हूं।”
“वो तुम मेरी खातिर नहीं, अपनी नौकरी की खातिर कर रहे हो। विलियम के कातिल को पकड़ कर शायद तुम कोई तरक्की पाना चाहते हो।”
“यह बात नहीं। तुम्हारे हसबैंड के कत्ल के केस में मेरी इतनी भारी दिलचस्पी की कोई और वजह है।”
“और क्या वजह है?”
“तुम” — अष्टेकर ने बात बदली — “नागप्पा नाम के किसी आदमी को जानती हो? रामचन्द्र नागप्पा...”
“नहीं।”
“कभी नाम तक नहीं सुना?”
“नहीं। कौन है वो?”
“एक डोप डीलर है जो इस वक्त मिशन हस्पताल में बड़ी खस्ता हालत में पड़ा है। किसी ने उसकी तगड़ी धुनाई की है। वह बेहोश है लेकिन बेहोशी में तुम्हारे हसबैंड का नाम बड़बड़ाता रहता है। उसकी खोली की तलाशी में एक उस्तुरा बरामद हुआ है जोकि तुम्हारे हसबैंड के कत्ल के केस का मर्डर वैपन हो सकता है। उस्तुरा चैकअप के लिए पुलिस लैब में भेज दिया गया है लेकिन उसकी रिपोर्ट आना अभी बाकी है। मैं तुमसे यह मालूम होने की उम्मीद कर कहा था कि उसका विलियम से क्या वास्ता हो सकता था और उसने क्यों विलियम का कत्ल किया हो सकता था!”
“मैंने पहले ही कहा है कि मैंने पहले कभी नागप्पा का नाम तक नहीं सुना।”
“पक्की बात?”
“अब क्या लिखकर दूं?”
“विलियम नॉरकॉटिक्स में दिलचस्पी रखता था?”
“नहीं।”
“ठीक है।” — अष्टेकर समापन के अन्दाज से बोला — “मैं नागप्पा के ही होश में आने का इन्तजार करता हूं।”
उसने फिर मिकी की तरफ देखा। इस बार मिकी मां की ओट से मुस्कराया। अष्टेकर भी मुस्कराया।
“बेटा खूबसूरत है तुम्हारा।” — वह बोला।
“बाप पर गया है।” — मोनिका बोली।
“हां।” — अष्टेकर ने गहरी सांस ली — “विलियम भी बहुत खूबसूरत था।”
फिर एकाएक वह घूमा और जीप की तरफ बढ़ गया।
उजाड़ फार्म में लावारिस खड़ी एम्बैसेडर कार की बरामदी की खबर सुनकर कल्याण थाने का इन्स्पेक्टर पेनणेकर खुद घटनास्थल पर पहुंचा।
गाड़ी निश्‍चय ही वही थी जो पिछले रोज डकैती में इस्तेमाल की गयी थी। बैंक के गार्ड से और अई अन्य चश्‍मदीद गवाहों से उसकी शिनाख्त करवाई जा चुकी थी। उसे पंजाब बैंक की स्टाफ कार बताती नम्बर प्लेट अभी भी उस पर लगी हुई थी। गार्ड को — और कुछ चश्‍मदीद गवाहों को भी — वह नम्बर बाखूबी याद था।
एम्बैसेडर पर से या उसके भीतर मौजूद ब्रीफकेसों वगैरह पर से कहीं से उंगलियों के निशान न बरामद हुए।
फिर इत्तफाक से ही किसी का ध्यान कपड़ों में पड़ी एक फिफ्टी की तरफ गया। फिफ्टी पर कोई गोंद सी चिपकी हुई थी।
गोंद के कपड़े पर फैले हुए उस थक्के में एक अंगूठे का निशान साफ दिखाई दे रहा था।
लल्लू पास्कल के बार पहुंचा।
“बीयर।” — वह पास्कल से बोला।
पास्कल ने एक बीयर खोलकर उसके सामने रख दी।
लल्लू का हाथ अपनी जैकेट की जेब में पड़ी सौ-सौ के नोटों की एक गड्डी पर गया। सबसे पहले वह पास्कल को ही प्रभावित करना चाहता था कि अब वह पैसे वाला आदमी था लेकिन फिर उसे अपने साथियों की चेतावनी याद आ गई। उसने गड्डी पर से हाथ खींच लिया और एक बीस का मुड़ा-तुड़ा नोट निकाल कर काउन्टर पर डाल दिया।
उसने बार में चारों तरफ निगाह दौड़ाई।
“खुर्शीद नहीं दिखाई दे रही!” — वह बोला।
“यहीं है।” — पास्कल दांत निकालता बोला — “पीछू वाले कमरे में गिराहक के साथ गयेली है।”
न जाने क्यों लल्लू को खुर्शीद का यूं जिक्र बहुत बुरा लगा।
“अच्छा, अच्छा!” — वह भुनभुनाया।
वह बीयर चुसकने लगा।
कुछ क्षण बाद खुर्शीद पिछवाड़े से हाल में प्रकट हुई। उसके साथ कॉलेज स्टूडेंट लगने वाला एक नौजवान था जिसकी शक्ल पर उस घड़ी उस बिल्ली जैसे भाव थे जो ढ़ेर सारी मलाई चाट कर हटी हो।
दोनों की निगाहें मिलीं।
खुर्शीद मुस्कराई।
उस एक मुस्कराहट ने लल्लू को निहाल कर दिया।
मैं राजा हूं — उसने मन ही मन सोचा — यह मेरी रानी है।
खुर्शीद नौजवान से अलग हुई और बार पर उसके करीब पहुंची।
“किचू किचू।” — वह बोली — “कैसा है, रे?”
“अच्छा हूं। तू कैसी है?”
“मैं भी अच्छी हूं। मैं...”
“मैं तेरे से मुहब्बत करता हूं।”
वह अप्रत्याशित घोषणा हथौड़े की चोट की तरह खुर्शीद की चेतना से टकराई।
“क-क्या” — वह हकलाई — “क्या बोला?”
“वही, जो तू सुना।”
“हां, सुना। सुना मैंने।”
“क्या सुना?”
“वही जो तू बोला। तू मेरे से मुहब्बत करता है।”
“बरोबर। अब चलें?”
“चलें! कहां चलें?”
“कहीं भी। सैर करने।”
“तेरे साथ?”
“और किसके साथ?”
“लेकिन... लेकिन...”
“क्या लेकिन?”
“यह मेरा धन्धे का टेम है।”
“इस राजा की रानी को धन्धा करने की जरूरत नहीं।”
“रानी! कौन रानी?”
“तू, और कौन?”
“यहां दर्जनों लड़कियां हैं। तू मेरे ही पीछे क्यों पड़ेला है?”
“उनमें तेरे जैसी कोई नहीं।”
“मेरे में क्या मोती जड़े हैं?”
“हां। मोती भी। हीरे-जवाहरात भी। पुखराज भी।”
“मेरी कीमत चुका सकता है?”
“तू तो बेशकीमती है। तेरी कीमत तो कुल जहान की दौलत से नहीं चुकाई जा सकती लेकिन इस वक्त तेरा इशारा जिस कीमत की तरफ है, वो चुकता कर सकता हूं।”
“अजीब आदमी है तू! अजीब बातें करता है! ऐसी बातें तो आज तक मेरे से किसी ने नहीं कीं!”
लल्लू बड़े अन्दाज से मुस्काराया।
“कहां जाना चाहता है?”
“कहीं भी। लेकिन यहां से चल।”
“मेरे घर चलेगा?”
“तू अकेली रहती है?”
“नहीं। छोटी बहन है। बूढ़ी मां है। लेकिन मैं घर जाऊं तो वो लोग घर से चले जाते हैं। इसलिए अकेली ही समझ।”
“बाद में, बाद में चलूंगा तेरे घर। पहले कहीं घूमने चल।”
“ठीक है। चल।”
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