Romance जलन

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rajan
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दूसरे दिन दरबार लगा। अपराधी और गणमान्य दर्शक उपस्थित हुए। सभी की मुखाकृति पर जैसे मलीनता छाई हुई थी। तभी अधीरता से शहंशाह के आने की राह देख रहे थे और कान आतुर हो रहे थे उन शब्दों को सुनने के लिए, जिन पर अभागे शहजादे का दण्ड और छुटकारा निर्भर था।

एक घंटा बीता, दूसरा भी बीता और तीसरा भी बीतने को आया, फिर भी सुलतान दरबार में नहीं आये।

वजीर घबराने लगा। वह दरबार से उठकर महल में आया तो पता लगा सुलतान विलास भवन से बाहर नहीं निकले हैं।

वजीर बेहद घबरा गया। बह दौड-दौड सुलतान के विलास भवन में आया। देखा सुलतान एक खम्भे के सहारे खड हैं। आंखें बंद है, गालों पर आंसुओं की बूंदें झलक रही हैं।

पग-ध्वनि सुनकर सुलतान ने अपनी आंखें खोलीं-

"वजीर!"

"शहंशाह ! दिल को सम्भालिए, आलीजाह !"

"कैसे सम्भालू दिल को वजीर!" शहंशाह रो पड।

"चार घंटे दिन चद आया है, जहाँपनाह! दरबार लग चुका है। आज ही फैसला देना है।"

"फैसला...अपने भाई की जिंदगी का फैसला।मैं मर क्यों न गया। या खदा। क्या करूं मैं? मगर इंसाफ तो देना ही पडगा वजीर!...मैं मर जाऊंगा, अपनी जान दे दूंगा, मगर इंसाफ पूरा पूरा करूंगा। शाही इंसाफ में धब्बा न लगने दूंगा, चलो।"

सुलतान ने ज्योंही दरबार में प्रवेश किया, कानाफूसी बन्द हो गईं और चारों ओर मौत का-सा सन्नाटा छा गया।

सुलतान आकर सिंहासन पर बैठ गये। रात-भर में ही उनके चेहरे की सारी रौनक काफूर हो गई थी। उनके बाल बिखरे हुए थे। मुखाकृति पीतवर्ण धारण किये थी।

एक बार उन्होंने अपनी उडती हुई दृष्टि दरबार पर डाली, फिर वजीर से बोले-"मुकदमे की कार्यवाही ही शुरू हो।"

मुकदमा शुरू हुआ। अपराधी और उनके गवाहों के बयान हुए। शहंशाह चुपचाप सुनते रहे।

वजीर सदा की भांति मुकदमे की कार्यवाही करता गया। सब कुछ समाप्त हो जाने पर वजीर ने आश्चर्य की मुद्रा में सुलतान की और देखा।

"खून का बदला खून और जान का बदला जान, यही शाही इंसाफ है...।" सुलतान ने दृढ स्वर में कहा।

उनकी आवाज स्थिर थी—"मुकदमे के सब पहलुओं पर मैंने किया है और इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि शहजादा बेशक गुनहगार है। फरियादी के हाथ में तलवार दी जाये।

"तलवार!..."सारा दरबार कांप उठा। तलवार दी जाये फातिमा के हाथ में? आखिर इस हुक्म से शहंशाह का मतलब क्या है ?
मगर किसकी हिम्मत थी सुलतान के हुक्म में दखल देने की। वजीर भी आश्चर्यचकित-सा खडा था। सब चुप थे—“परंतु हृदय में खलबली मची हुई थी।

फातिमा के हाथ में तलवार दी गई। उसने कांपते हुए हाथों से तलवार सम्भाली। वह डर से थर-थर कांप रही थी व सोच रही थी—'या खुदा! क्या इस तलवार से मुझे परवेज का खून करना पडगा ।'
rajan
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शहंशाह उठ खडा हुए और फातिमा से चार गज की दूरी पर आकर खड हो गये। उनके मुख से गम्भीर आवाज निकली—"फातिमा ! बहुत गौर करने पर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि वाकई तुम्हारे साथ बेहद जुल्म हुआ है।"

सारा दरबार सांस रोककर सुन रहा था— ___ परवेज ने तेरे भाई का खुन किया है। सुलतान काशगर उसके लिए फांसी की सजा तजवीज करते हैं। और इधर देख, मैंने सुलतान काशगर की हैसियत से तेरा इंसाफ किया है. मगर अब एक बेबस इंसाफ की हैसियत से तेरे सामने खडाहूं। तेरे हाथ में तलवार है, उसे मेरे कलेजे में रख दे, ताकि भाई की मौत देखने के पहले ही मैं इस दुनिया से कूच कर जाऊं और तेरा इन्तकाम भी पूरा हो जाए। परवेज ने तेरे भाई को मार डाला है, उसे तो फांसी की सजा होगी ही, मगर इतने पर भी शायद तेरे दिल की जलन न जाएगी। इसलिए मैं तुझे हुक्म देता हूं कि तु भी परवेज के भाई का खन कर डाल। दोनों का भला होगा! तेरे दिल की जलन मिटेगी और मैं भी भाई की मौत अपनी आंखों से न देख सकूँगा। में इन्सान हूं, फातिमा! सुलतान बनकर मैंने इंसाफ किया, अब इन्सान बनकर तुमसे भीख मांगता हूं कि अपने हाथ की तलवार से मेरा सीना चाक कर दे।

“या खुदा!” बुड्डा वजीर गिरते-गिरते बचा।

"शहंशाह...!" सारा दरबार चिल्ला उठा। फातिमा के कांपते हुए हाथों से तलवार छूटकर जमीन पर गिर पड़ी

शहंशाह गरज उठे-बजदिल न बन! उठा ले तलवार! अपने भाई के खन का इंतकाम ले। परवेज ने तेरे भाई को मारा है, मैं उसका भाई-तेरे सामने खडहूं —उठा तलवार, रख दे मेरे सीने में ताकि तेरा इन्तकाम पूरा हो जाये। कांपती क्यों है?...उठा ले तलवार! शाही हुक्मउदूली न कर चल, जल्दी कर...।"

फातिमा ने तलवार उठाकर अपने हाथ में ले ली। सारा दरबार उठकर एकाएक खड हो गया और चिल्ला पड —शहंशाह ! यह कैसा कहर?"

"भाईजान !" बंदी अवस्था में खड परवेज चिल्ला उठा। इस समय सभी की आंखें डबडबा आई थीं।

"उफ्फ् ऐसा नेकदिल इन्सान! मरहबा ! मरहबा! भाई हो तो ऐसा! शहंशाह हो तो ऐसा! इन्साफ हो तो ऐसा! जाफरी! सद जाफरी !"

उपस्थित दरबारियों के मुंह सोये ये अल्फाज निकलकर उदासीन वातावरण में विलीन हो गये।

"हम अपनी फरियाद वापस लेते हैं!" गांव वाले चिल्ला पड -"हम इंसाफ नहीं चाहते ऐसा इंसाफ हम नहीं चाहते। हम कुछ नहीं चाहते।"

"शहंशाह, अपने लिए नहीं, मेरे लिए नहीं, अपनी बेकस रियाया के लिए नहीं तो कम-से कम इंसाफ के लिए जिंदा रहिये। आपके न रहने पर ऐसा पाक इंसाफ कौन दे सकेगा,

शहंशाह !" बूढIT वजीर बोला।

"जहाँपनाह!" फातिमा ने कहा- "मैं आपकी जान ले चुकी। मेरा इंसाफ पूरा हो गया। शहजादा परवेज को मैंने माफ किया। अब अपनी जान, मेरी ओर से सल्तनत के लिए महफूज रहने दीजिये।"
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rajan
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"तुम छूटकर आ गये दोस्त?" कमर ने कहा।

"हां, आ गया!" शहजादा परवेज बोला— यह भाईजान की ही इनायत है, नहीं तो मैं कब का मौत का शिकार हो गया होता...जानते हो! भाईजान ने मेरे साथ अपनी जान भी देनी चाही थी

-ऐसे पाक फरिश्ता है वे।

"इंसाफ तो खूब हुआ कि सुलतान की भी जान बच गईं और तुम्हारी भी।” कहकर कमर ने अट्टहास किया। ____

हंसते हो...! खुलकर हंस लो, परंतु अब मेरी आंखें खुल गईं हैं। तुम मुझे बादशाह बनाने का ख्वाब दिखाते आ रहे थे, मगर मैं समझ गया कि बादशाह बनने की कुछ भी काबिलियत मुझमें नहीं हैं। ऐसा इंसाफ भला मैं कभी कर सकता था? तुम आज से मुझे भाईजान के खिलाफ कोई भी काम करने के लिए न कहना। एक नेक दिल इन्सान के साथ बगावत करने से खुदा का कहर टूट पड गा। अपनी दोस्ती तुम अपने पास रखो।" परवेज ने स्पष्ट कह दिया।

"शहजादे साहब! तुम भी पूरे बेवकूफ निकले। काम को अधूरे में छोड देना तो तुम्हारी खास आदत है। सुनो, आजकल सुलतान अपनी जान से आजिज आ गये हैं, इसलिए तुम्हारे साथ ही वे अपनी भी जान देना चाहते थे—और तुमने उसका उल्टा ही मतलब निकाल लिया। तुमने समझा कि सुलतान तुम्हें इतना प्यार करते हैं कि तुम्हारे साथ ही अपनी जान देने को तैयार हो गये। वल्लाह! खुब है दिमाग तुम्हारा! इसी दिमाग को लेकर मेरा सथ दोगे....खैर, अपनी गलती दुरुस्त कर लो। यह लो, जरा-सा शरबते-अनार .।"
कहकर कमर ने शहजादे के होंठों से प्याला लगा दिया। शराब का दौर-दौरा शुरू हो गया।

जब शहजादे पर शराब का पूरा असर हो चुका, तो कमर ने उठकर भीतर से दरवाजा बन्द कर लिया।
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rajan
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Re: Romance जलन

Post by rajan »

बारह
शहर काशगर में एक पक्की सराय थी, जहां भिन्न-भिन्न देशों के आये हए व्यापारी उतरा करते थे। प्राय: दास और दासियों के विक्रय करने वाले व्यापारी ही वहां अधिक आते थे।

इस समय वहां वैसा ही एक व्यापारी ठहरा हुआ है, जिसके पास पचासौं दासियां और दास बिकने के लिए तैयार हैं। आज प्रात:काल से ही सराय में बडी चहल-पहल और साज-सजावट है, क्योंकि आज स्वयं सुलतान काशगर वहां बांदी खरीदने के लिए तशरीफ लाने वाले हैं।

चारों ओर एक विचित्र दृश्य उपस्थित है। सब बांदियां नहला-धुलाकर आभूषित की जा रही हैं — पता नहीं, आज किसका भाग्य सूर्य चमकने वाला है।

ठीक मध्याह्न के समय सुलतान आये।

"सुलतान आये।* का कोलाहल सराय भर में फैल गया। सब यथायोग्य स्थान पर सुलतान का स्वागत करने के लिए तैयार हो गये।

बांदियां एक कतार में खडी कर दी गईं। सौदागर सुलतान के आगमन की प्रतीक्षा में हाथ बांधकर खड़ा हो गया।

सुलतान आये और सौदागर ने कोर्निश की।

तभी बांदियां चुपचाप सिर नीचा किये खडी थीं। किसी की भी हिम्मत ऊपर आंख उठाने की नहीं होती।

सभी बांदियां एक-से-एक खूबसूरत और कमसिन हैं। उनके वस्त्रादि इतने महीन हैं कि उनके भीतर से उनकी अनुपम रूपराशि छन-छनकर बाहर आ रही है। उनके शरीर का रोम-रोम दिखाई पड़ रहा है। यद्यपि सभी बांदियां एक-से-एक खूबसूरत हैं, परंतु आखिर वाली बांदी तारों में चांद जैसी मालूम पड़ती है।

सुलतान हर बांदी के आगे आकर ध्यानपूर्वक उसकी सूरत देखते और उसकी खूबसूरती की तौल करते।

जिस बांदी के आगे जाकर खड हो जाते, वह तो मानो गड-सी जाती। सब बांदियां थर-थर कांपती हुई खडी थीं। यह क्या?

आखिर वाली बांदी पर दृष्टि पडते ही सुलतान चौंक पड। उनका सम्पूर्ण शरीर सिहर उठा। क्यों न हो ! जिस सौन्दर्यमयी की पूजा वे सोते-जागते किया करते हों, जिसकी सूरत अभी तक उनके हृदय पर अंकित हो-भला उसे ऐसी अवस्था में देखकर वे क्यों न चौंकते?, फिर भी उन्होंने अपने हृदय को सीमा उल्लंघन करने न दिया और उस बांदी की ओर हाथ से संकेत किया।

जिस बांदी को सुलतान ने पसंद किया था, वह और कोई नहीं, मेहर थी।

सुलतान का इशारा पाकर सौदागर बहुत खुश हुआ और मेहर के सामने आकर बोला — "सुना तूने, तुझे सुलतान ने पसंद किया है।"

मेहर की आंखें पृथ्वी की ओर केंद्रित थीं, उसने अभी तक सुलतान की ओर देखा भी न था। "तू अपनी ओढनी उतार दे। सुलतान तेरी जवानी का मुआइना करेंगे।" सौदागर ने मेहर से कहा।

न! हां! वहीखा। उसका सिर उसने सुनी?

मेहर कांप उठी। या खुदा! यह शर्मनाक काम वह किस तरह कर सकेगी? इतने आदमियों के सामने वह कैसे अपना वक्षस्थल आवरणहीन करेगी?

"नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं।" सुलतान ने कहा।

वह आवाज कान में पडते ही वह चौंक पड। उफ! यह किसकी आवाज उसने सुनी? अपने सुलतान की? मेहर ने सुलतान की ओर आंख उठाकर देखा। उसका सिर चकरा गया। उसका प्यार सुलतान! उसके गिरोह का डाकू सुलतान! हां! वही इस वक्त राजकीय परिधान में सामने खड। था।

मेहर को अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ। वह स्वप्न में भी यह न समझ सकी थी कि साधारण मनुष्य की तरह उसके गिरोह में रहने वाला और सरदार की झिड कियाँ सहने वाला, सुलतान काशगर हो सकता है।
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सुलतान ने समझ लिया कि मेहर उन्हें पहचान गई है, परंतु उन्होंने इस समय अपनी किसी भी हरकत से यह प्रकट न होने दिया कि मेहर से उनकी पहले भी भेंट हो चुकी है।

मेहर ने सुलतान का यह रूखापन देखकर समझा कि कदाचित् सुलतान अभी तक उसे पहचान नहीं सके।

“इसे बादियों के महल में पहुंचा दिया जाये।

मेहर सोचने लगी इतनी बेरुखी? ओह ! फकीर की बात सच होती जान पड़ती है। अब देखें, खुदा क्या खेल दिखाता है।

मेहर बादियों के महल में पहुंचा दी गईं। दो महीने बीत गये। सुलतान ने, फिर उसकी कोई खोज-खबर न ली। पता नहीं कि वे उसे भूले थे या नहीं। ___ मेहर प्राय: सुलतान की इस बेरुखी के बारे में सोचा करती। जाने क्या धीरे-धीरे उसके दिल में एक तरह का मीठा-मीठा दर्द होने लगा था। किसलिए दर्द हो रहा है, वह अभी उसे नहीं मालूम हो सका था।

रह-रहकर दुआ देने वाले उस बड़े की सूरत उसकी नजरों के सामने नाचने लगती थी। फकीर ने जो कुछ कहा था, अभी तक वह भली नहीं थी। उसने कहा था-"बेटी, में तेरी किस्मत पढ रहा हूं-तू सुलतान काशगर की महबूबा बनेगी, मगर खुश न हो सकेगी।"

तो क्या सचमुच वह खुश न हो सकेगी? क्या सचमुच उसकी भाग्यरेखा पत्थर की कलम से लिखी गई है? मेहर के हृदय से उठने वाला तूफान बढ़ता जा रहा था। उसे दिन-पर-दिन अधिक बेचैनी मालूम होने लगी थी।

उस दिन पहर रात गये सुलतान अपने विलास-भवन में अजूरी के हाथ से शराब पीते हुए बैठे थे। यह छठवां जाम भरा गया कि सुलतान एकाएक रुक गये। उनके कानों में गाने की आवाज आई

दिल में दर्द है, पर होंठ सिये बैठी हूँ। क्या कहं, किससे कहूं राज पिये बैठी हूँ। दिल में य है कि तुम्हें वानिये-बेदाद कहूं।

जी में आता है, तुम्हें मैं सितम-ईजाज कहूं।। नशे के झोंक में सुलतान ने कहा- अभी बुलाओ उसे बांदी को, जो इस वक्त ऐसा दर्द भरा गाना गा रही है ! उसे क्या तकलीफ है?"

“जहाँपनाह ! यह वही नई आई हुई बांदी है। – अजूरी ने कहा।

"नई आई हुई बांदी!" सुलतान को अब मेहर की याद आई— ओह, वह ! हां, बुलाओ उसे अभी! इसी वक्त! जाती क्यों नहीं? मुंह क्या देख रही हो?"

अजूरी गईं और थोड़ी देर में मेहर को लेकर वापस आई।

सुलतान ने एक उडती नजर मेहर पर डाली, फिर अजूरी से बोले-"इसके कपड बदलवा कर मेरे पास वापस भेजो।"

अनिच्छा रहते हुए अजूरी ने सब कुछ किया। उसने मेहर को बहुमूल्य कपड़ा पहनाये, इसके पश्चात् इत्र आदि लगाकर उसे सुलतान के पास भेज दिया। मेहर आकर सुलतान के सामने खड हो गईं। उसका हृदय इस समय तीन वेग से स्पंदित हो रहा था।

"पास आओ।" सुलतान ने कहा।

मेहर आकर उनके पास खड हो गई। इस समय सुलतान पूर्ण रूप से नशे में थे। उन्होंने मेहर को अपने पास खींच लिया और उससे इस प्रकार खिलवाड़ करने लगे, जिस प्रकार और बांदियों से किया करते थे। मेहर धधकते हृदय से चुपचाप उनकी पाशविक क्रिया सहती रही। ____

वाकई में तुम्हारी सोहबत मुझे बहुत पसंद आई...।" सुलतान बोले-"थोडी -सी शरबते-अनार मुझे पिलाना।"

मेहर ने प्याला भरकर सुलतान के आगे कर दिया।

सुलतान बोले- इस तरह नहीं ।देखो ऐसे। सुलतान ने मेहर को अपनी गोद में बैठा लिया। मेहर ने कांपते हाथों से मदिरा का प्याला सुलतान के होंठों से लगा दिया।

"तुमने तो मुझे पहचान लिया होगा मेहर!" सुलतान अब खुल पड।

"हां पहचान लिया था पहली ही नजर में, मेरे महबूब ! मगर आपने अपना असली राज मुझसे छिपा क्यों रखा था?"

"जाने दो गुजरी बातों को...बताओ कि मेरे आने के बाद क्या हुआ और तुम पर क्या-क्या बीती?"

"आपके चले जाने के बाद, सरदार ने मुझ पर बेहद जुल्म किये, मगर मैंने उसकी मुहब्बत कबूल न की। कुछ दिनों बाद कादिर भी आपकी खोज में गिरोह से भाग गया। तब से किसी ने उसकी सूरत नहीं देखी। वह आपको बहुत चाहता था और जब जाने लगा तो उसने मुझसे कहा कि में सुलतान की खोज में जा रहा हूं।"

"बड अच्छा आदमी था बेचारा!"

"जब सरदार लाचार हो गया तो उसने मुझे उसी बांदियां बेचने वाले सौदागर के हाथ बेच दिया। जिससे आपने मुझे खरीदा। अब आप मेरे मालिक और मैं आपकी बांदी हूं। आप भी तो मुझे इतने दिनों तक भूले रहे।

"हम-तुम कभी जुदा न होंगे!" सुलतान ने कहा।

उसी समय मेघाच्छन्न नभ-मण्डल पर बाहर जोरों से बिजली कडक उठी। मेहर का कलेजा कांप गया। उफ्फ् ! उस फकीर की
भविष्यवाणी यदि झूठी हो सकती...! मेहर का शरीर शिथिल हो गया। मुखाकृति मलीन पड गईं।
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