Romance जलन

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rajan
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Re: Romance जलन

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"क्या हुआ?—क्या हुआ?" कहते हुए सुलतान ने मेहर को जोर से अपने अंक में कस लिया।

मेहर ने प्रेम विभोर होकर कुछ चिंता व्यक्त करते हुए कहा-"किस्मत हम लोगों के साथ मजाक कर रही है, मेरे आका!"

मगर सुलतान ने उसकी बात का कुछ भी मतलब न समझा। वे न जान सके कि मेहर की बातें एक भयानक घटना की ओर संकेत कर रही हैं।

मेहर अब उनके खास महल में रहने लगी। सुलतान की महबूबा जानकर सब उसका आदर करने लगे।

यद्यपि उसका रहन-सहन सभी मल्का की तरह था, फिर भी उसका दिल दिन-रात चिंताग्रस्त रहता था। फकीर की बातें उसके हृदय में तूफान मचाये रहती थीं। वह बहुत प्रयत्न करती थी अपने हृदय को संभालने का, परंतु सब व्यर्थ, सारा महल जैसे उसे काटने के लिए दौडता था। महल की चहल-पहल उसे अच्छी नहीं लगती थी—वह यह कि पुन: अपने कबीले में चलकर जंगलों की पहाड पर विहार करे।

कभी-कभी उसे जहूर की—उस अभागे की, जिसने उसकी मुहब्बत के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था—याद आ जाती थी। उस अभागे नौजवान ने तो उसी के लिए अपना घर-बार छोडा था।

मेहर की अवस्था दिन-ब-दिन बिगडने लगी। हाय! जहूर उसे कितना चाहता था दोनों किस जंगल की गोद में अपनी मुहब्बत की उलझन सुलझाते थे। कितना लुत्फ था उस मुहब्बत में ! इन्हीं सब चिन्ताओं में वह घुलने लगी।

अब सुलतान जब कभी उसके सामने आते तो न जाने किस विधि-विडम्बना से उसका हृदय कांपने लगता था। आने वाले अंधकारमय भविष्य की सूचना, मेहर को सुलतान की मुखाकृति पर दृष्टिगोचर हो जाती थी। ओह, यह अभागा सुलतान भी उसका पुजारी है, मगर यह भी बर्बाद हो जाएगा, फकीर का यही कथन था।

उफ्फ् ! फकीर के अल्फाज कितने खौफनाक थे। याद आते ही मेहर भय से अपना मुंह ढक लेती।

सुलतान ने भी मेहर की इस बिगडती हुई हालत पर गौर किया। वे मेहर को सच्चे दिल से चाहते थे। उन्होंने मेहर के मन-बहलाव के लिए कुछ उठा न रखा था, परंतु उस पर आक्रमण करती हुई चिंता दूर न हुई। उसकी अवस्था देखकर सुलतान भी उदासीन रहने लगे। उनका भी किसी काम में मन न लगता था। उन्होंने शराब छोड दी-ऐश व इशरत छोड दी थी-सब कुछ छोड दिया था, केवल मेहर के लिए। कई बार उन्होंने मेहर से उसके कष्ट के बारे में पूछा भी, परंतु मेहर से कोई स्पष्ट उत्तर न पाकर वे चुप रहे। दोनों रात को एक ही कमरे में सोते, मगर एक-दूसरे के इतना पास होते हुए भी मानो वे बहुत दूर थे।

मेहर का मन स्थिर था। वह कभी अपने कबीले के बारे में सोचती. कभी अपने अब्बा और जहूर के बारे में, कभी दिल में आता, कहीं भाग जाये! भाग जाये वहां, जहां रंज की पहुंच तक न हो—मगर वह भाग भी कैसे सकती थी? उसी के हाथ में तो सुलतान के जीवन की बागडोर थी। उसके भाग जाने पर सुलतान का जीवित रहना असम्भव था। मेहर सब समझती थी। उसे सुलतान के साथ पूरी सहानुभूति और पूरी मुहब्बत थी, इसलिए वह उन्हें छोड कर जाना भी नहीं चाहती थी! मगर वहां रहते-रहते उसका दिल जो जल रहा था, उसका कष्ट उसे असह्य था। वह कभी उन दिनों की बात सोचने लगती, जबकि सुलतान और वह डाकुओं के गिरोह में रहा करते थे। किस तरह उन दोनों में मुहब्बत थी ! स्वतंत्र न होते हुए भी वे दोनों कितने खुश थे। ___ मगर यहां आते ही क्या हो गया? किसने उसकी दुनिया में आग लगा दी? किसने उसके दिल में इतनी जलन, इतनी तकलीफ पैदा कर दी? कैसे उसके हृदय में इतनी व्यथा, इतनी पीड उत्पन्न हो गईं कि अपने प्यारे सुलतान से दो बात कर लेना भी कष्टकर प्रतीत होने लगा?

मेहर फकीर को कोसती मगर फकीर का इसमें क्या दोष था? उसने तो सिर्फ भाग्य की रेखा पढ दी थी—उसका नियंत्रण तो उसके अधिकार में नहीं था।

"मेहर...।" उस दिन बडी कोशिश करके सुलतान ने मेहर को पुकारा। ___ "तुम्हारी तबीयत अभी तक ठीक नहीं हुई। तुम दिन-पर-दिन सूखती जा रही हो...आखिर इसमें राज क्या है?* ___

"खुदा की कुदरत है, मेरे आका! जिसके लिए यह दिल तड पता था, उसे पाकर भी न पा सका। ___

"तुम यह कैसी बातें कर रही हो मेहर! तुम्हारी तकलीफ देखकर मैं भी अधमरा हो रहा है। देखो, शराब मैंने छोड दी, हंसना-बोलना छोड दिया, औरतों से खेलना छोड। दिया। सब कुछ छोड दिया मैंने ! सिर्फ तुम्हारे लिए। मैं तुम्हें चाहता हूं, मेहर! . मगर तुम यहां आकर न जाने कितनी जालिम बन गई हो। मैहर ! मेरे दिल में जलन है...और जलन तो सभी के दिल में होती है—दौलत की जलन, इन्तकाम की जलन, खुदा ने न जाने कितनी किस्म की जलन पैदा की है। मेहर! मैं प्यासा —तुम्हारे हाथ में पानी है, मगर मेरी प्यास बुझाना नहीं चाहती तुम। अपनी तकलीफ भी नहीं बताती कि उसे दूर करने की कोशिश करूं। आखिर इसका सबब?"

मेहर चुप रही। किस मुंह से, किन शब्दों में बेचारी मेहर बताये कि उसे क्या दुख, क्या तकलीफ है, क्या जलन है? अपने दुख की बात, अपनी जलन की कहानी तो खुद वह भी अभी तक नहीं समझ सकी है।

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rajan
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Re: Romance जलन

Post by rajan »

तेरह

"तुम तो बड ताज्जुब की बात सुना रहे हो दोस्त!" कमर ने शहजादे से कहा।

"बात ताज्जब की भी है और खौफ की भी।" शहजादा कहने लगा—“आज महल-भर में उसकी तुती बोल रही है। सभी उसका हुक्म मानते हैं। खुद भाईजान भी उसकी बात नहीं टाल सकते। भाईजान ने उसे बांदी की तरह खरीदा था, मगर आज वह मल्का की तरह जिंदगी बसर कर रही है। जब से वह आई है, तब से मैं गौर कर रहा हूं, तो भाई साहब की हालत अच्छी नहीं नजर आती। वे दिन-पर-दिन सुखते चले जा रहे हैं। किसी काम में उनका दिल नहीं लगता। उनकी वजह से महल में जो बीसों छोरियों की जिन्दगी गुजर हो रही थी, वे महल से निकाल दी गई हैं और सिर्फ उसी एक छोकरी के पीछे पागल बने हुए हैं। अपनी हमदर्द शराब को भी उन्होंने कतई छोड दिया है।" ___

"ऐसी बात!। कमर ताज्जुब-भरी आवाज में बोला—"तब जरूर ही वह छोकरी बहुत खूबसूरत होगी। आखिर उसका नाम क्या है?"

"नाम है उसका मेहरुन्निसा!"

जहूर, परवेज का नया खरीदा हुआ गुलाम, जो दरवाजे के बाहर खड़ा हुआ भीतर की सब बातें सुन रहा था, एकदम चौंक पड। उसका मस्तिष्क घूम गया और वह धडाम से जमीन पर गिर पड़ाI

“जहूर!" परवेज ने पुकारा उस गुलाम को। गुलाम कराहता हुआ उठा और उदासीन भाव से सामने आकर खडा हो गया। "क्यों रे, कैसी तबीयत है?" परवेज ने पूछा।

"अच्छी है, आलीजाह!"

"देख मेरी बांदी अभी इस सल्तनत की होने वाली मल्का को लेकर आती होगी, उसे अंदर आ जाने देना।"

जहूर बाहर आकर बैठ गया। अन्दर बातचीत आरम्भ हो गई? कमर बोला— क्या तुमने उसे बुलाया है?"

"हां! मैंने सोचा, जरा तुम भी उसकी सूरत देख लो और उससे दो-दो बातें कर लो।"

“अच्छा ही किया...।" कमर ने कहा।

गुलाम दरवाजे पर बैठा हुआ बांदी के लौटने की राह देख रहा था। थोडी देर बाद उसने देखा कि बांदी के साथ मल्का -सी सजी हुई मेहर आ रही है। उस समय मेहर की खूबसूरती गजब ढा रही थी, फिर भी चांद जैसे मुखड पर कालिमा की अस्फुट छाया विद्यमान थी।

मेहर जब पास आ गई तो गुलाम ने झुककर कोर्निश की। मेहर की नजर उस पर हठात् जा पड़ी ।

यह क्या? यह कौन? मेहर का दिल कांप उठा। या खदा! यह उसकी आंखें क्या देख रही हैं? उसकी मुहब्बत का शिकार जहूर, आज गुलाम की हालत में उसके सामने खड़ा है।

“तुम?—जहूर तुम!"-उसके मुंह से कांपती हुई आवाज निकली।

जहूर धीमे से हंस पडII

उफ्फ् ! बाहर की इस सूखी हंसी में प्रेम का कितना भयानक इतिहास छिपा था! वह कितनी कृतघ्न है कि जिसने उसके लिए लाखों कष्ट सहे, उसे उसने पत्थर की तरह ठुकरा दिया।

"उस फकीर की बात सच हुई, मेहर!" कहते हुए जहूर ने मुंह फेर लिया। उसकी आंखें डबडबा आई थीं।

मेहर को, फिर उस फकीर की याद आ गई। फकीर के ही लफज तो कहर के अल्फाज बनकर उसे जला रहे थे। ।

मेहर अपने को संभाल न सकी, वह मूर्च्छित होकर गिरने की वाली थी कि शहजादा परवेज भीतर से आ पहुंचा। इज्जत के साथ उसने मेहर को कोर्निश की और भीतर लाकर बा-इज्जत पलंग पर बैठा दिया।

"क्या तबीयत कुछ खराब हो गई है ? " परवेज ने पूछा।

"नहीं शहजादे ! सब ठीक है। किसलिए मुझे याद फरमाया है आपने?"
rajan
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Re: Romance जलन

Post by rajan »

"यूं ही, आपकी खिदमत करने की ख्वाहिश हो आई। ये हैं मेरे दिली दोस्त कमर! इन्होंने अभी तक आपको देखा नहीं था।"

इतने में ही गुलाम ने भीतर प्रवेश किया और कोर्निश करते हुए कहा—"वजीर आ रहे है

.. “वजीर?...यहां कैसे?" कमर ने आश्चर्य के साथ कहा—"दोस्त! तुम उससे निपटो। मैं जाता हूं।"

"आखिर तुम वजीर से कब तक डरते रहोगे? बैठे रहो।"- परवेज ने कहा।

तब तक वजीर भी आ गया। पहले उसने मेहर को, फिर शहजादे को देखा और कोर्निश की तथा बैठ गया।

एकाएक उसकी निगाह कमर पर आ पड़ी

वह चौंक पड]T, मगर उसने अपने दिल को सम्हाल लिया—“फिर उसने कमर की मुखाकृति देखी— आप कौन है।?" वजीर ने शहजादे से पूछा।

"ये मेरे दोस्त है।।" परवेज ने कहा।

"ओह !" वजीर आश्चर्य से बोला- आपकी सूरत हमारी मल्काये-आलम से बहुत मिलती-जुलती है। खुदा का कहर ! कौन जाने वे किस हालत में होंगी?"

"तुम्हारा ख्याल गलत है वजीर! उन्हें तो जंगली जानवरों ने चीर फाड़ कर पेट के हवाले कर लिया होगा...।" परवेज ने कहा।

वजीर ने थोडा -सा उठकर कोर्निश की मानो उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली हो।

अब वह मेहर की तरफ मुखातिब हुआ। बोला— शहंशाह अभी तक ख्वाबगाह से बाहर नहीं निकले हैं। पता नहीं, उनकी तबीयत कैसी है?" ___

*रात में तो तबीयत ठीक थी।" और मैहर की मुखाकृति पर चिंता की अनेक रेखाएं उभर आईं। शीघ्रता से वह वहां से चली गईं।

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rajan
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Re: Romance जलन

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ज्योंही ख्वाबगाह में उसने प्रवेश किया, उसने देखा-सुलतान तकिये में मुंह छिपाये पलंग पर लेटे हैं। सिसकने की आवाज आ रही है। उनकी यह हालत देखते ही मेहर का कलेजा मुंह को आ गया।

उफ्फ्, कैसे वह इस अभागे सुलतान की प्यास बुझाये?

वह धीरे-धीरे आगे बढ़ | आई और सुलतान के बगल में बैठ गई। सुलतान ने आंसुओं से भीगा हुआ मुंह ऊपर उठाया। उनकी हालत देखते ही मेहर रो पड - मेरे आका...।"

"मेहर! मैं प्यासा हूं।" सुलतान के गले से करुण आवाज निकली। मेहर उठी। रत्नजडित प्याले में चांदी की सुराही से पानी उड लकर सुलतान के सामने आई।

"यह क्या? पानी।" सुलतासन हंस पड]-"मेरी प्यास इस ठण्डे पानी से नहीं बुझेगी, मेहर! उसके लिए तो।"

मेहर सुलतान के पास बैठ गईं। सुलतान की गरदन में हाथ डालते हुए बोली— मेरे आका! अपनी हालत पर रहम कीजिये।"

"तुम अपनी हालत तो देखो मेहर!"

"मेरी किस्मत में यही लिखा है, शहंशाह!"

"मालूम पड़ता है तुम मुझसे आजिज आ गई हो। जब मेरे पास आती हो, तब तुम्हारे चेहरे पर मुर्दनी-सी छा जाती है। लगता है, जैसे तुम्हारे दिल में जरूर कोई तकलीफ है जरूर कोई जलन है—मगर तुम मुझसे बताना नहीं चाहती। मेहर...! अगर तुम यहां से ऊब गई हो तो बोलो, तुम्हें, फिर से तुम्हारे अब्बा के पास भेज दूं। मैं तुम्हारे लिए सब कुछ करूंगा
-चाहे तडप-तड़पकर मर ही क्यों न जाऊं।"

"जब से तुम आई हो, मैंने एक दिन भी तुम्हारे चेहरे पर खुशी नहीं देखी। डाकुओं के गिरोह में हम-तुम कितनी खशी के साथ मिला करते थे? उस वक्त मेरी प्यास न बुझी-और अब तुमको पाकर भी प्यासा ही रहूं, तो जिंदगी भर प्यासा रह जाऊंगा। या खुदा। कैसा नसीब पाया है, मैंने।" कहते-कहते सुलतान निढाल होकर पलंग पर गिर पड़ा ।

मेहर घबरा उठी। उसने सुलतान के सिर को अपनी गेंद में ले लिया और आंचल से हवा करने लगी।

आज सुबह से ही सुलतान आखेट को गये हुए थे। मेहर पलंग पर पड -पड अपनी आंतरिक व्यथा से करवट बदल रही थी। भयानक मानसिक चिंताएं उसके हृदय को व्यथित कर रही थीं।

सुबह से दोपहर हुई, संध्या हुई—परंतु मेहर ने अभी तक एक भी दाना मुंह में न रखा था। वह चिंतातुर अवस्था में पलंग पर लेटी रही।

कुछ खटका हुआ। मेहर ने सिर उठाकर देखा और चौंक पड़ी ।

दरवाजे पर जहूर खडा था। मेहर आश्चर्यमिश्रित मुद्रा में उठकर खड़ा हो गईं "जहूर, तुम यहां?”

"हां, मुहब्बत मुझे यहां तक खींच लाई है।"

"मुहब्बत! मुहब्बत! मुहब्बत!" मेहर विवश एवं शिथिल स्वर में बडबड उठी। जहूर को देखकर उसकी जलन तीव्रतर हो गई थी।


"अपने दिल से लाचार हूं मेहर, तुम क्या अब भी मुझसे खुश न हुई। क्यों इतना जुल्म ढा रही हो? खुदा से तो डरो।"
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