Romance जलन

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rajan
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"जाओ, तुम चले जाओ जहूर! तुम क्यों मुझे तडपाने के लिए, मुझे जलाने के लिए यहाँ आये हो जाओ, खड क्यों हो? या खुदा किस मनहूस घडी में तुम्हारा-हमारा साथ हुआ था? जाओ, चले जाओ यहाँ से। मैं तुमसे नफरत करती हूं।"

"नफरत करती हो?" जहूर ने आगे बढ़ कर, मेहर का हाथ पकड लिया।

मेहर के पैर उस समय कांप रहे थे। उसका सारा शरीर सुन्न-सा होता जा रहा था।

जहर कहता गया—अपने दिल से पछो मेहर कि तुम मुझसे नफरत करती हो या मुहब्बत! सूरत देखो अपनी! तुम्हारी सूरत कह रही है कि तुम्हें मुझसे मुहब्बत है।"

“जहूर! खुदा के लिए चुप रहो, नहीं तो।" वाक्य पूरा करने के पूर्व ही उसका मस्तिष्क चकरा गया।

जहूर ने आगे बढ़ कर गिरती मेहर को अपनी बांहों में सम्हाल लिया। बोला— "मेहर ! बोलो, तुम मुझे मुहब्बत करती हो या नहीं?"

इसी समय बाहर मधुर स्वर में कोई गा उठा
हाय, क्या पूछते हो दर्द किधर होता है! एक जगह हो तो बताऊं कि किधर होता है!

बेचारा कादिर ! डाकुओं के गिरोह का वहीं गायक कादिर, आजकल अपने दर्द भरे गाने गाता हुआ इधर-उधर, फिर रहा था। जब सुलतान गिरोह से चले आये तो कादिर का दिल भी वहां न लगा।

अवसर देखते ही एक दिन वह भाग खडा हुआ। इसी बीच वह एक दिन छिपता हुआ गिरोह तक आ गया था मेहर से मिलने के लिए, मगर उसे पता चला कि मेहर भी यहां से चली गई है। तब से वह दरबदर गाने गाता हुआ घूम रहा था-सुलतान और मेहर की खोज में घूमता-घामता वह आज इधर आ निकला था। ___

"हैं, यह तो कादिर की आवाज है। आश्चर्य एवं कुछ प्रसन्न होकर मेहर बोली-"कोई बुलाओ उसे? ओह ! कोई भी नहीं है जिसे भेज सकू। खुदा भी मुझसे मजाक कर रहा है। कोई बुलाओ उसे...उसे बुलाओ।" मेहर की सांस जोरों से चलने लगी।

"वह बहुत दूर निकल गया, मैहर !, फिर मैं उसे बुलाने जाऊं तो कैसे जाऊं? छिपकर जो यहां आया हूं।" जहूर ने कहा।

मेहर के हृदय में इस समय भयानक द्वन्दु मचा हुआ था।
वह बोली- सच कहूं जहूर! मैं तुम्हें चाहती हूं, मुझे तुमसे मुहब्बत है—और मुझे सुलतान से भी मुहब्बत है।

“क्या कहा? दोनों के साथ मुहब्बत?" जहूर आश्चर्य के साथ बोला।

"हां, जहूर! आज सब राज तुम पर खोल दूंगी! मैं तुम्हें चाहती हूं, सुलतान को भी चाहती हूं

। जहूर ने एक ठण्डी सांस ली—“भला, दो शख्स को कोई एक-सी मुहब्बत कर सकता है, मेहर?"

मेहर बोली_*मेरे बदन का खुन क्यों पानी हुआ जा रहा है, इसका सबब मेरे दिल से पूछो—मेरी सूरत से पूछो। मेरे दिल में मुहब्बत की जलन है—मगर यह मुहब्बत बड़ी खौफनाक है। जाओ. मझे ज्यादा दर्द न दो। इस जिंदगी में तुम मझे नहीं पा सकते...हा! नहीं पा सकते।" मेहर की हालत बदतर होती जा रही थी— जाओ? जाते क्यों नहीं? में तुम्हारी नहीं हो सकती, मैं सुलतान की हूं, सुलतान की! मैं सुलतान को चाहती हूं, तुमसे नफरत करती हूं तुम जाओ।"

"ऐसा न कहो मेहर ! मेरा कलेजा टुकड-टुकड हुआ जा रहा है, मैं तुम्हें नहीं छोडगे। आओ, हम तुम कहीं भाग चलें।"

__ "भाग चलूं? तुम्हारे साथ ? जान से अजीज सुलतान को तडपता हुआ छोडकर? — यह गैर-मुमकिन है, जहूर ! अपने लिए मैं सुलतान की तकलीफ नहीं दे सकती। तुमसे ज्यादा वे मुझे चाहते हैं। जाओ तुम, मैं यूं ही जलूंगी—मगर सुलतान को तकलीफ न दूंगी।"
rajan
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"मेहर!।" कहते हुए जहूर ने मेहर को अपने अंक में कस लिया। मेहर का शरीर उस समय शिथिल हो गया था।

बातचीत का सिलसिला कुछ ऐसा रंग लाया कि किसी को आस-पास की सुध ही न रही।

जहर और मेहर दोनों किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि दाहिनी ओर की दीवाल का एक हिस्सा धीरे से खुल गया है और छिपे दरवाजे पर स्वयं सुलतान काशगर खड़े खड़े उनकी सारी कारगुजारी देख रहे हैं।

"समझा !" सुलतान के मुंह से गम्भीर आवाज निकली।

मेहर और जहूर चौंककर उठ खड़े खड़े हुए। दोनों थर-थर कांपने लगे। जहूर ने सुलतान को कोर्निश की और मेहर ने भी।। ___

“समझा !"कहते हुए सुलतान पलंग पर बैठ गये—“मेहर ! आज तुम्हारा दर्द समझ चुका हूं मैं—" सुलतान का दिल बैठता जा रहा था—"तुमने मुझसे राजे-मुहब्बत छिपाने की कोशिश की थी, मगर आज मैं सब कुछ जान गया।" सुलतान जहूर की ओर अभिमुख होकर बोले-"खुशकिस्मत नौजवान! तुझे मेहर चाहती है—मगर मेहर! तुमने मुझसे ऐसा छल क्यों किया?"

"मेरे आका!" - मेहर चीख पड़ी __“ऐसा अल्फाज मुंह से न निकालिए।"

"मेहर! मैं बहुत खुश हं! बहुत खुश हं मैं! आज मेरे दिल का बोझ हल्का हो गया। जब तुम दोनों एक होकर आराम की जिंदगी बसर करो—मैं प्यासा ही ठीक है मेहर! किसी कदर अपनी मायूस जिंदगी की घडियां काट लूंगा।" ____

"मेरे आका! मेरे मालिक!।" मेहर ने सुलतान को अपनी फूल-सी बांहों में जकड। लिया—"ऐसा न कहिए मेरे मालिक! आप मुझे समझने में भूल कर रहे हैं—मैं आपको चाहती हूं—हमेशा चाहती रहूंगी-मगर मैं अपने दिल से मजबूर हूं । उफ ! फकीर के वे खौफनाक अल्फाज? या खुदा? या इलाही।"

मेहर की जकड़ ढीली हो गई। सुलतान ने मेहर को पकड़ लिया, नहीं तो वह बेहोश होकर गिर जाती। "मेहर!" पुकारा सुलतान ने।

"मेरे आका?" मेहर ने अपना भर्राया हुआ मुंह ऊपर उठाया— इस गुलाम को अभी यहां से चले जाने का हुक्म दीजिए।"

“जहूर! जाओ।तुम यहां से अभी चले जाओ।"

जहूर धीरे-धीरे कमरे से बाहर हो गया। सुलतान बोले—“

मैं तुम्हें अभी तक समझ न सका, मेहर! तुम जाने कैसी औरत हो— औरत हो या पहेली?" __

"शहंशाह ! मेरी तरफ से कोई बुरा ख्याल दिल में न लाइये। मैं गरीब हूं, आपको मायूस देखकर मैं मर जाऊंगी मेरे मालिक!" मेहर ने सुलतान के वक्ष पर अपना सिर रख दिया।
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"शहंशाह ! मेरी तरफ से कोई बुरा ख्याल दिल में न लाइये। मैं गरीब हूं, आपको मायूस देखकर मैं मर जाऊंगी मेरे मालिक!" मेहर ने सुलतान के वक्ष पर अपना सिर रख दिया।

और सुलतान ने उसे अपने अंक में समेट लिया। दो आत्मा दो शरीर मिलकर एक हो गये, परंतु इस मय भी मेरा का हृदय जल रहा था।

तुम्हारे दिल में न जाने क्या दर्द है, मेहर!" सुलतान बोले- अगर मैं जान पाता तो दर्द को रफा करने के लिए जमीन-आसमान एक कर देता, मगर तुम्हारी खामोशी मुझे गर्क दरिया कर देगी। मेहर! मेरे दिल की मल्का! अगर तुम्हें अपने ऊपर तरस नहीं आता, तो कम-से-कम मेरी हालत पर रहम करो। खुदा के लिए तुम अपना राजे-दर्द मुझे बता दो।" ____

“जान से अजीज सुलतान! आप मुझ नाचीज के लिए क्यों इस कदर मायूसी के शिकार बनते हैं? मुझ जैसी गरीब बांदियां तो आपके दरें-दौलत पर रोज-ब-रोज आया करती हैं फिर क्यों मेरे लिए इतना परेशान होते हैं ?"मेहर ने कहा।

सुलतान ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया। बोले-"मेहर! तुम बांदी हो और मैं सुलतान, मैं यह जानता हूं, मगर दिल तो सिर्फ मुहब्बत देखता है। मेरी निगाह में, मेरे दिल में —तुम्हारे लिए मल्का से भी अधिक इज्जत है।" ___

"फजल है खुदा का शहंशाह ! कि आप मुझ नाचीज के लिए इस कदर हमदर्दी रखते हैं! काश! मैं भी आपको खुश रख सकती?" इतना कहकर मेहर ने एक ठण्डी सांस ली।

सुलतान बोले- मेहर! तुम अपने दिल को सम्भालने की कोशिश करो। मेरी ओर देखो। मैं बदकिस्मत सुलतान अभी तक प्यासा ही है। इतनी सब ऐश की चीजें रहते हुए भी मैं तुम्हारी शमये-सूरत का परवाना बना हुआ हूं, मगर तुम तो जब से यहां आई हो, बराबर मेरी परेशानी ही बढ़ी है, इसे क्या कहूं, खुदा की मरजी ही तो कहना पड़े गा!"
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चौदह

मेहर की अवस्था में कोई परिवर्तन न हुआ।

मेहर जानती थी कि वह जहर को भी चाहती है और सुलतान को भी—इन दोनों की मुहब्बत ने उसे परेशान कर रखा है। इसके अतिरिक्त और बहुत-सी बातें उसके मस्तिष्क में चक्कर काट रही थीं।

रात को सुलतान और मेहर पास सोते थे, परंतु दोनों के दिलों की अवस्था दो दिशाओं की ओर प्रवाहित होती रहती थी।
कभी-कभी अर्धरात्रि के समय मेहर की निद्रा भंग हो जाती और उसका हृदय इतना विचलित हो उठता था कि वह उद्विग्न हो जाती। कभी-कभी वह अपनी अंगुलियों में पड़ी _ हई बहमूल्य हीरे की अंगूठी की ओर देखती और सोचती कि इसी के द्वारा अपने भाग्यहीन जीवन का अंत क्यों न कर दे? परंतु सुलतान का मुंह देखते ही वह अपना विचार बदल देती।
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rajan
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"आज की रात हमारे काम के लिए बेहतरीन है, मेरे दोस्त!" कमर ने शहजादा परवेज से कहा- यह देखो काली अंधियारी रात, आसमान में बादल के बड़-बड़ टुकड़, जोरों से बहती हवा की खौफनाक सनसनाहट!–ये सब चीजें हमें मंजिलें-मकसूद तक पहुंचाने में मदद देंगी। आज अपने इन्हीं हाथों से सुलतान से बदला लूंगा-खून करूंगा।" कमर की एक राक्षसी हंसी ने प्रकोष्ठ की दीवारों तक को प्रकम्पित कर दिया।

"कमर! मैं तुमसे बहुत बार कह चुका हूं कि अब तुममें मेरी जरा भी दिलचस्पी न रहीं। अगर तुमने भाईजान की जिंदगी का खौफनाक हमला करने का इरादा किया, तो तुम्हारे हक में ठीक न होगा।" परवेज ने कहा। इस समय उसकी मुखाकृति पर क्रोध की आभा झलक रही थी।

__ "क्या कहा? ठीक नहीं होगा? तुम अपने आपको भूले जा रहे हो शहजादे! होश की दवा करो। तुम्हारी सारी इज्जत व हर्मत इस वक्त मेरे हाथ में है। अगर तुमने मेरे रास्ते में पड़ने की कोशिश की, तो इसका अंजाम अच्छा न होगा।"

"कमर! तुम अन्धे बनते जा रहे हो। तुम भूल गये हो कि मैंने ही डूबते हुए को तिनके का सहारा दिया था। तुम्हें शाही सजा मिली थी, मगर मैंने ही हुक्म-उली कर तुम्हारी जान बचाई थी और इस महल में तुम्हें पनाह दी थी। तुमने यहां आकर मुझ पर न जाने कैसा जादू कर दिया कि मेरा पाक दिल नापाक हो गया। तुमने भाई से बगावत कराई और न जाने क्या-क्या कराया, मगर अब मैं होश में आ गया हूं। यह देखो मेरी तलवार।" शहजादे ने अपनी तलवार खींच ली और दौडकर कमर की गर्दन पकड ली। ___

"भल जाओ शहजादे ! उस दस्तावेज की बात? अगर वह कहीं सुलतान के हाथों में पहंच जाये? तो तुम्हारी इज्जत क्या सुलतान के सामने वही बनी रहेगी? तब क्या तुम अपनी जान की खैर मना सकते हो...मगर याद रखो! यह दस्तावेज एक ऐसे आदमी के पास है, जो मेरी मौत की खबर सुनते ही उसे सुलतान के सामने पेश कर देगा। उस वक्त तुम्हारी जो हालत होगी, वह तुम खुद समझ सकते हो!"

“या खुदा ! जरा-सी गलती कहर मचा सकती है, यह मैं नहीं जानता था!"

शहजादे ने अपना सिर पकड लिया! उसके हाथ की तलवार छूटकर जमीन पर गिर पड़ी

कमर कहता गया—“नादान न बनो शहजादे ! सुलतान को नेस्तनाबूद करने में मेरी ही भलाई नहीं, तुम्हारी भी भलाई है..दिल को सम्हालो। यह देखो-बजीर चला आ रहा है चेहरा कुछ तमतमाया हुआ-सा है, मैं चला, तुम होशियारी से निपट लेना।" कमर चला गया।

वजीर ने आकर शहजादे को अभिवादन किया, फिर कहने लगा—“गुस्ताखी माफ कीजियेगा शहजादे साहब! मुझे खुफिया तौर से पता चला है कि मल्काये आलम, जिन्हें शहंशाह ने शहर-बदर करने का हुक्म दिया था, अभी तक आपके महल में मौजूद हैं।"

यह बात सुनते ही शहजादा कांप उठा। उसने भयभीत नेत्रों से वजीर की ओर देखा। उस समय वीर की मुखाकृति गम्भीर थीं, परंतु आंखों में क्रोध की लाली थी। अपने चेहरे पर आने वाली घबराहट को छिपाते हुए शहजादा बोला—“वजीर यह क्या कह रहे हो तुम?"

"ठीक कह रहा हूं, शहजादे साहब! मेरे खुफियों की बातें गलत नहीं होती। मुझे पूरा यकीन है कि मल्काये-आलम को आपने छिपा रखा है और दोनों आदमी मिलकर, फिर सुलतान की जान लेने की कोशिश में हैं।

"वजीर...!" शहजादा क्रोधपूर्वक मुद्रा बनाकर बोला।

"गुस्सा न कीजिये शहजादा साहब! असली बात छिपाने की कोशिश फिजूल है। बुड्ढे की नजर से आपकी कोई हरकत छिपी नहीं है। मैं सब कुछ जान चुका हूं शहजादे साहब! मैं आपको यह भी बता दूं कि उस दिन जुलूस में सुलतान की जान पर खौफनाक हमले में खुद आपका ही हाथ था।"

"मेरा हाथ?" शहजादा गरज पड़ाI

वजीर ने कोर्निश की—"शहजादे साहब को मालूम हो कि मैं यह भी जान चुका हूं कि यह कमर कौन है ?"
"सब कुछ जानते हुए भी मैं अब तक खामोश था—सिर्फ इसलिए कि शाहंशाह तक यह सभी नापाक बातें न पहुंचें, नहीं तो सुनकर वे खुदकुशी कर लेंगे।"

"तुम वजीर हो या शैतान?" शहजादे के मुंह से एकाएक निकल पडITI

"इतनी बडी सल्तनत का काम देखना शैतान का ही काम है. शहजादे साहब!" कहकर वजीर ठहाका मारकर हंस पड़ा— आखिरी बार दरखास्त करता हूं कि आप लोग बंद इरादों से बाज आयें।"
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