Romance जलन

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rajan
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Re: Romance जलन

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पंद्रह
मेहर ने अन्दर आते हुए सुलतान की ओर देखा।
उसे महान आश्चर्य हुआ यह देखकर कि आज सुलतान के मुख मण्डल पर तेज की आभा झलक रही है। सारा दुख सारी जलन आज उनसे दूर थीं।

सुलतान प्रसन्नचित्त हंसते हुए मसनद के सहारे पलंग पर बैठ गये और बोले- *मैहर...! आज मैं न जाने क्यों बहुत खुश हूं।"

"फजल है खुदा का, मेरे सरताज!" मेहर ने कहा-और आकर सुलतान के पास बैठ गयी।

सुलतान बोले—“मगर तुम अभी खुश न हो सकी, मल्लिका मुअज्जमा! उठो! आज मुझे इन नाजुक हाथों से थोड-सा शरबते-अनार पिला दो...।"

मेहर को बहुत आश्चर्य हो रहा था कि आज सुलतान इतने खुश क्यों हैं? शराब! जिसे छूने से भी उन्हें नफरत हो गयी थी, उसे आज पीने की क्यों ख्वाहिश कर उठे हैं। उसका मन आशंका से भर उठा। अत्यंत नम्र स्वर में वह बोली-*शराब न पीये मेरे मालिक!"

“शराब न पियू।न पियू। कतई नहीं ! नहीं, मैं जरूर पियूँगा! उठो मेहर!"

सुलतान के आग्रह करने पर मेहर उठी और प्याला भरकर सुलतान को पिलाने लगी। कई प्याले खाली हो गये। सुलतान पर धीरे-धीरे शराब का नशा चढने लगा __ "तुम...तुम भी मेहर! अजीब औरत हो, खुदा की दी हुई इतनी खूबसूरती को बेकार बरबाद कर रही हो—मैं प्यासा हूं मेहर ! और तुम? तुम्हारे हाथ में पानी है, मगर मुझे पिलाना नहीं चाहती...मगर...मगर वह कौन है?...कौन हाथ में में बन्दक ताने खडा है?"

“कहां? कहां, मेरे आका?" मेहर चौंक पड़ी ।

"ओह भाग गया वह ! बुजदिल कहीं का! अपनी बन्दूक से मेरे सीने को छेद क्यों नहीं दिया कि मैं हमेशा के लिए अपनी प्यास को लिये हुए सो जाता—सारी जलन मिट जाती और यह क्या? यह आग कैसी? मेहर! देखो तो, यह आग किधर लगी है।" ___

“कहां है आग, मेरे अजीज!" मेहर को सुलतान की अवस्था बिगडती हुई मालूम पड़ी ।

"तम नहीं देख रही हो आग? यह देखो....!" कहकर सुलतान ने अपने सीने पर का कपडा चीर-फाड दिया— देखो! आग यहां है, मेरे दिल में ।और मुंह रट रहा है प्यास! प्यास!"

__ "बिस्तर पर आराम फरमाइये मेरे आका!" मेहर ने सुलतान को पलंग पर लिटा दिया।

सुलतान बोले- तुम मेरे पास ही बैठो, मेहर! तुझे डर लग रहा है। चारों ओर डरावनी सूरतें नजर आ रही हैं। तुम कहीं न जाओ। मुझे अपना बना लो। यह क्या? नदी! उफ! बचाओ! बचाओ!! नदी भयानक तेजी से मेरी ओर बढी आ रही है।"

"नहीं, कहीं नहीं, मेरे मालिक!"

“नदी बढी आ रही है—तुम उसे नहीं देख सकती। यह यह देखो।" सुलतान ने मेहर के शरीर पर हाथ रख दिया- यह नदी है—हां मेहर! तुम्हारा शरीर ही नदी है, तालाब है और मैं हं प्यासा?-आओ मेरी प्यास बुझा दो—मैं प्यासा हूं—प्यास बेहद लगी है मुझे।" कहते हुए सुलतान ने मेहर को अपने अंकपाश में कस लिया। __ अर्द्धरात्रि अपना भयानक रूप लेकर आई। बादल गरज रहे थे। हवा जोर से बह रही थी। बिजली रह-रहकर चमक उठती थी। मालूम होता था कि आकाश फट बढगा -प्रलय हो जाएगा।

सुलतान नशे के झोंके में मेहर को अपने वक्षस्थल से लगाये निद्रा में मग्न थे। मेहर भी विभोर होकर वक्ष से चिपटी थी।

बाहर बिजली जोर से कडकी -मेहर का सारा बदन कांप उठा। नींद उचट गई। उसका हृदय न जाने क्यों हाहाकार कर उठा।
उफ? यह बादलों की गरज, यह बिजली की चमक, यह हवा की सनसनाहट ! कितनी दशहत पैदा कर रही है!

ओह! अगर आज वह अपने बचपन वाले खशनुमा जंगल के पास होती तो क्या डर जाती। नहीं, ऐसा नजारा देखकर वह खुशी से पागल हो उठती। पानी बरसता, मोर नाचते और पपीहा बोलता-पी कहाँ, पी कहा तो वह भी चकोर बनकर अपने प्रियतम की खोज करती—क्या मजा आता!

मेहर ने धीरे-धीरे अपने को सुलतान के बहुओं से छुड़ाया और पलंग से उतरकर खिडकी के पास चली आई।

बाहर अंधकार छाया हुआ था। अभी बूंदें नहीं पड़ रही थीं, परंतु मालूम होता था कि शीघ्र ही वर्षा होने वाली है।

मेहर के हृदय में भयंकर जलन होने लगी। उसे लगा, जैसे उसके बदन में आग लग गईं है, उसका दम घुटा जा रहा है और यदि वह जल्दी ही भाग न गई तो हमेशा के लिए यहीं कैद रह जायेगी।

नियति का चक्र तेजी से घूम रहा था।

मेहर का दम घुटने लगा— अब मैं नहीं रह सकती—नहीं रह सकती इस जेलखाने में मैं भाग जाऊंगी।"

मेहर दरवाजे की ओर बढ़ी । आहिस्ते से दरवाजा खोलकर वह बाहर निकल आई। कमरे में घोर सन्नाटा छा गया। अन्धेरी रात में दूर कोई उल्लू अपनी कर्कश आवाज में चीख उठा।

“बचाओ! बचाओ मेहर ! मुझे बचाओ...।" सुलतान ने भी चीख मारकर आंखें खोली।

अभी तक उन पर शराब का नशा विद्यमान था—"मुझे छोडकर तुम नहीं जा सकती—मैं मर जाऊंगा—पकडो वह भागी जा रही है।
सुलतान पलंग पर से हड बड़ा कर उठे और दरवाजे की ओर झपटे।
rajan
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Post by rajan »

उसी समय दौडते हुए किसी व्यक्ति के आने की आहट सुनाई पड़ी और दूसरे ही क्षण बुड्डा वजीर हांफता हुआ सुलतान के सामने आकर खड हो गया— आप कहां जा रहे हैं? कहां जा रहे हैं आप?"

"हटो रास्ते से। मुझे जाने दो, वह भागी जा रही है।"

"मगर शहंशाह ! आप बाहर न जायें, खतरा है। आपकी जान जाने की साजिश की गई

“तुम रोको मत—मेरी जिंदगी और मौत का सवाल है, जाने दो मुझे।"

"नहीं जाने दंगा आपको! शहजादे और कमर ने मिलकर साजिश की है, मैं आपको बचाने के लिए दौड़ा चला आ रहा हूं।"

"तुम झूठे हो-हटो मेरे रास्ते से।"

सुलतान ने बुड्ढे वजीर को अलग ढकेल दिया और स्वयं दौडते हुए अंधेरे में बढ़ते गये। विद्युत प्रकाश में उन्हें कुछ दूर पर जाती हुई एक स्त्री जैसी आकृति दिखाई पडी , वे उसी ओर दौड़ा

"सिपहसालार! शहंशाह की जान लेने की साजिश की गई है। परवेज और कमर अपने महल से बाहर हैं। सुलतान भी मेहर के पीछे बाहर निकले हैं। खुदा ही खैर करे। तुम सिपाहियों को लेकर महल के आस-पास फैल जाओ। परवेज, कमर, मेहर या सुलतान इनमें से जो भी मिले, उन्हें रोक लेना, जाओ।" वजीर ने कहा।

सिपहसालार ने वजीर को कोर्निश की।
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सुलतान दौडते हुए उस औरत के पास आ पहुंचे। वह मैहर ही थी।

सुलतान मेहर को अपने बाहुपाश में आबद्ध कर हांफते हुए बोले-मैं तुम्हें नहीं जाने दूंगा—तुम्हारे चले जाने से में मर जाऊंगा, तुम न जाओ मेहर! न जाओ!"

“शहंशाह !" - मेहर ने सिसकते हुए सुलतान के वक्षस्थल पर अपना सिर रख दिया।

उसी समय दूर पर कुछ खट-खट का शब्द सुनाई पड। सुलतान मेहर को छोड कर उस और बढ़ चले, कदाचित् इस बात का पता लगाने के लिए कि यह किस तरह की आवाज़ है

कुछ दूर पर सुलतान को कुछ आदमियों की धुंधली छाया दीख पड़ी ।

उसी समय धाय-धाय बन्दूक छूटने की आवाज गूंज उठी। सुलतान ने अपना कलेजा थाम लिया। वे चक्कर खाकर भूमि पर गिर पड़े । उनके मुख से निकली हुई करुण चीत्कार चारों ओर प्रतिध्वनित हो उठी। झपटती हुई मेहर सुलतान के पास आई। उसने देखा सुलतान के कलेजे से खून का फव्वारा छूट रहा है। ___

“सुलतान! शहंशाह !" मेहर पछाड। खाकर गिर पड़ी क्या हआ आपको? यह किस जालिम का काम है? किसने मेरी दुनिया उजाड दी?" मेहर जोरों से रो पड़ी ।

उसने जमीन पर पड सुलतान के सिर को अपनी गोद में रख लिया।

सुलतान के शिथिल मुख से सिर्फ इतना ही निकला—"मेहर अब मैं चला।

"या अल्लाह ! मैं कहीं की न रही, मेरे आका! मेरे मालिक!" मेहर सुलतान के शरीर से लिपट गईं।

उसी समय अंधकार को चीरता हुआ एक मनुष्य वहां आ खडा हुआ। मेहर ने उसे पहचाना। वह जहूर था।


"जहर! तुम यहाँ !" मेहर बोली- तो क्या यह तुम्हारा ही काम है? क्या तुम्हीं ने मेरी मुहब्बत पाने के लिए इस फरिश्ते को अपनी बन्दूक का निशाना बनाया है, इतने हैवान बन गये तुम? मेरी दुनिया उजाडते हुए तुम्हारा कलेजा टुकड-टुकड़ नहीं हो गया।"

"मेहर! यह काम मेरा नहीं है। मैं तो बन्दूक की आवाज सुनकर इधर आ गया हूं।"

"तुम मुझे भुलावे में डाल रहे हो। खुदा तुम्हें गारत करे, जहूर! खुदा तुम पर गजब ढाये, कहर ढाये, हाय मेरे आका!"


"मेरे आका को क्या हुआ?" कहता हुआ बुद्ध वजीर वहां आ पहुंचा। उसके पीछे सिपाहियों से घिरे हुए शहजादा परवेज और कमर थे। वजीर ने उन्हें बंदी बना लिया था।

सुलतान की हालत देखते ही वजीर हाय कर उठा—"मुझे थोडी देर हो गई, इतने ही में इन शैतानों ने शहंशाह की जान ले ली।"

"वजीर! मेरे बुजुर्ग!" शहंशाह के मुख से अस्फुट शब्द निकले।

"शहंशाह !" बेचारा वजीर रो पड़ा —"यह करतूत शहजादे की है।"

"शहजादे की...?" सुलतान की मुखाकृति क्षण-प्रति-क्षीण होती जा रही थी।

"हां, भाईजान ! मैं ही आपका कातिल हूं-मैं ही खूनी हूं।" कहते-कहते शहजादा परवेज रो पड़ा ।

"खूनी यह नहीं, मैं हूं—इधर देखो सुलतान!" कमर गरज उठा। उसके हाथ में अब भी बन्दूक विद्यमान थी—“देखो ! मैं कौन हूँ ?"
कहते हए कमर ने अपना साफा उतारकर जमीन पर फेंक दिया। अन्दर से लम्बे-लम्बे बाल पीठ पर नागिन की तरह लहरा उठे! मुंह पर लगी नकली मुंछ खींच ली।

"कौन? मल्लिका-आलम!"

"हां, वहीं मल्लिका-आलम-जिसे तुमने एक दिन मक्खी की तरह मसलना चाहा था, मगर उसने अपनी चालाकी से तुमसे आज इस तरह इन्तकाम लिया है कि तुम कब्र में भी याद रखोगे।"

"परवेज!"— शहंशाह ने पुकारा। __

भाईजान!" परवेज रो पड़ा, "मुझसे खता हुई और वह खौफनाक खता आपकी जान लेकर ही रही-उफ! मुझे इसी नापाक मल्लिका ने बहकाया-मैंने चुपके से इसे अपने महल में लाकर मर्द का लिबास पहनाया और अपने दोस्त कमर के नाम से मशहूर किया सब कुछ इसी के कहने से किया।" कहकर शहजादे परवेज ने मल्लिका को गर्दन पकड कर दूर ढकेल दिया।

"वजीर! मेरे नादान भाई को सही रास्ते पर लाने की कोशिश करना।” सुलतान बोले ____ मेहर...!" सुलतान की अवस्था अब बदतर होती जा रही थीं।
rajan
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Re: Romance जलन

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___ "मेहर...!" सुलतान टी-फूटी आवाज में बोले- मैं अब चला। अपनी प्यास, अपनी जलन, अपने साथ ही लिये जा रहा हूं। तुम इतनी सितमगर निकली कि मेरा ख्याल भी न किया। तुम्हारे ही लिए मैं बरबाद हुआ, मगर तुमने मेरी प्यास न बुझाई, फिर भी मुझे गम नहीं है, मेहर! खुश हूं कि आज जिगर की सारी जलन हमेशा के लिए रफा हो जाएगी। अफसोस सिर्फ एक बात का है कि कब्र में तुम्हारी सूरत देखने को न मिलेगी...।" सुलतान का गला फंस गया...मौत के आसार करीब नजर आने लगे—“हो सके तो तुम जहूर को खुश कर देना, मेहर !" ___

"यह क्या कह रहे हैं मेरे आका....!" मेहर ने अवरुद्ध कण्ठ से कहा- अब यह नामुमकिन है। आप मेरे जिगर में हमेशा के लिए जलन छोड- जा रहे हैं। मैं कहां जाऊंगी? क्या करूंगी मेरे महबूब !" ___

"दिल पर काबू रखो मेहर ! मेरे लिए अफसोस न करो। खुदा को याद करो और जिस तरह तुम्हें खुशी हासिल हो, वही करना। मैं वजीर को कहे जाता हूं कि तुम्हारी हरेक बात पूरी की जाए।" सुलतान को एक हिचकी आई।

दूर से किसी के गाने की आवाज आ रही थी
जिन्दगी भर रह गये प्यासे तुम्हारी चाह पर। हो भला अब भी तो कुछ दे दे खुदा की राह पर।।

हैं! किसकी आवाज है?" गले की आवाज कान में पड़ते ही सुलतान ने एक बार, फिर एक क्षण के लिए आंखें खोली और रुकते स्वर में बोले- कादिर यहां भी आ गया। खुदा का शुक्र—बुलाओ उसे, उसको भी जाते-जाते देख लें। या खुदा...या खुदा।" एकाएक तीन-चार हिचकियां क्रमश: आई और अभागा सुलतान अपनी प्यास लिये हुए इस संसार से चल बसा।

मेहर रो पड़ी __"मेरे आका! मेरे मालिक ! मेरे शहंशाह !"

शहजादा और वजीर ने सुलतान के मृत शरीर को अभिवादन किया।

दूर से घोड़े की टाप उसी ओर आती हुई सुनाई पड़ी और थोडा ही देर में एक घुडसवार वहाँ आकर घोड़े से उतर पड़ा ।

उस पर दृष्टि पडते ही मेहर चौंक पड़ी वह उसका अब्बा अब्दुल्ला था। "अब्बा!" मेहर उठकर बुड़े की ओर बढ़ी ।

"मेरी बेटी!" कहकर वृद्ध अब्दुल्ला ने उसे अपने कलेजे से लगा लिया और हंसती-रोती आंखों से बोला- आज सालों से इसी घोड़े पर दौडता हुआ तेरी खोज कर रहा हूं, बेटी! आज यह सुनकर कि तू सुलतान के महल में है तो इधर आ निकला, मगर यह कौन
अब्दुल्ला की दृष्टि सुलतान पर जा पड़ी _"मुसाफिर!"

"मुसाफिर नहीं, सुलतान काशगर हैं ये अब्बा!"
यह वाक्य जैसे मेहर का कलेजा चीरकर मुख से निकला था।
वृद्ध ने झुककर सुलतान के शव के प्रति सम्मान प्रकट किया।

थोडी देर में सुलतान की दृष्टि जहूर पर जा पड़ी । उसे देखकर वृद्ध की भृकुटी तन गईं। उसकी तलवार म्यान से बाहर हो गईं।

“इसे माफ कर दो अब्बा!" मेहर ने कहा।

"माफ कर दूं? दुश्मन के जहरीले बच्चे को माफ कर दूं?" बूढ IT अब्दुल्ला दांतों से होंठ काटता खड़ा रहा चुपचाप।

"अब्बा!" मेहर बोली-"जब से तुमसे जुदाई हुई, मुझे परेशानी-ही-परेशानी उठानी पड़ी । लाखों मुसीबतों को झेलते-झेलते ऊब गईं हूं। मैं अब, फिर वहीं चलना चाहती हूं वहीं अपने कबीले में। मुझे ले चलो मेरे अब्बा ! मैं यहां रहंगी तो पागल हो जाऊंगी। इन सब चीजों की याददाश्त! यहां रहने पर मेरे दिल की जलन को बढायेंगे। चलो अब्बा, मैं एक पल भी अब नहीं रुकना चाहती...और रुकू भी किसके लिए?"

"मैं बहुत खुश हूं बेटी, चलो!"

मेहर सुलतान के शव के पास आकर बैठ गईं और उनके सिर को अपनी गोद में लेकर बोली- मैं जा रही हूं, मेरे आका! मुझे माफ करना। मैंने सचमुच तुम पर जुल्म ढाया। पानी रहते हुए भी तुम्हें प्यासा रखा। आज तुम्हारे चले जाने पर यह सब बातें मुझे याद आ रही हैं। मैं जा रही हूं, अफसोस और परेशानी लिए जा रही हूं-खौफनाक जंगल में घूमती हुई तुम्हारी याद को ताक्यामत जिन्दा रखूगी, मेरे मालिक!" __मेहर उठी और जहूर के पास आकर बोली- मुझे माफ करना जहूर ! इस जिन्दगी में मैं तुम्हारी न हो सकी—तुम्हारी मुहब्बत का बदला न दे सकी-जा रही हूं, मुझे भूलने की कोशिश करना...।" कहती हुई मेहर अपने अब्बा के साथ घोड़े की ओर बढ़ी ।

दोनों एक ही घोड़े पर चढ गये।

घोड़े पर चढ कर आखिरी बार मेहर ने सुलतान के मुख पर दृष्टि डाली। उसका हृदय हाहाकार कर उठा। सूख गई आंखों से पुन:
जलधारा बह निकली।

बेचारा कादिर, सुलतान और मेहर की खोज में शहर काशगर में घुस रहा था और आज गाता हआ इधर ही आ निकला था, मगर उसे क्या मालूम था कि सुलतान और मेहर यहीं पर मौजूद हैं।

वर्षा होने लगीं। बिजली चमक उठी। कादिर गाता हुआ आ रहा था
रग-रग में सोजे गम है आंसू निकल रहे हैं।
बारिश भी हो रही है और घर भी जल रहे हैं।।

सचमुच उस वक्त मेहर का दिल जल रहा था—उस पर वह बारिश। कितनी खौफनाक! मेहर की आंखों से आंसुओं की धारा अब भी जारी थी। कादिर अभी तक हृदय विदारक स्वर में गा रहा था
आंखों में तेरे आंस.काटों पे जैसे शबनम।
दम भर जिंदगी पर कैसे उछल रहे हैं।।

“मैं जा रही हूं!" मेहर ने सबको सम्बोधित कर कहा।

वजीर और शहजादे आप्रद ने जाती हुई मेहर को सम्मानपूर्वक झुककर अभिवादन किया। भला, जिसे स्वयं सुलतान काशगर इतनी इज्जत देते रहे हों, उसका सम्मान वे क्यों न करते?

उसी समय जोरों की बिजली कडक उठी। मजबूत घोड़े मेहर और उसके अब्बा को लेकर भाग चला। मेहर घूम-घूमकर सुलतान की लाश को तब तक देखती रही, जब तक दूर क्षितिज के पास उसकी छाया विलीन नहीं हो गईं।

मेहर महल को सूना छोड कर अपनी 'जलन' लिये हुए चली गईं। सुलतान की स्थिर आंखों में दो बूंद आंसू दिखाई पड , परंतु वे आंसू की बूंदें नहीं थीं।

कदिर के गाने की आवाज अभी तक आ रही थी "बारिश भी हो रही है और घर भी जल रहे हैं।

कहानी का अन्त
कहानी समाप्त कर चुकने पर मैंने तुरंत के चेहरे की ओर देखा, उसके गाल आंसुओं से भीगे थे। कहानी सुनकर वह सचमुच रो पडी थी।
मैंने अपने दिल की व्यथा इस कहानी में उडेल दी।

तुरन—मेरे दिल की रानी-अपने घर चली गई थी, मेरे दिल में हमेशा के लिए जलन छोड कर।

तुरन से आज तक मेरी भेंट न हुई। मैं उसके लिए दिन-रात तडपता हूं। मुझे मैंटल डिसाइर्ट हो गया है। डॉक्टर ने रम लेने की राय दी है। आजकल रम का पैग चढ़ कर कुर्सी पर बैठा हुआ कागज और कलम से खिलवाड किया करता हूं। मेरी आंखों में रहती है आंसुओं की बूंदें और मेरे सामने छाया रहता है घनघोर अन्धकार! मैं भी तडपते हुए दिल की जलन बुझाने का व्यर्थ प्रयत्न करता हूं।


समाप्त
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