बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )

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Jemsbond
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Re: बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )

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मुझे जवाब देने का अवसर न मिला । तभी एक हवालदार यादव के समीप पहुंचा और उसने झुककर यादव के कान में कुछ कहा। यादव फौरन उठकर खड़ा हो गया। "साहब को बाहर का रास्ता दिखाओ।" - वह हवालदार से बोला ।

"साहब को बाहर का रास्ता मालूम है।" - मैं उठता हुआ बोला।

मैं हैडक्वार्टर की इमारत से बाहर निकला।

पार्किंग की इमारत में मुझे एलैग्जैण्डर की इम्पाला खड़ी दिखाई दी। मैं सोचने लगा । एलैग्जैण्डर वहां क्या करने आया था? मैंने अपने ताबूत की एक कील सुलगाई और खम्बे की ओट लेकर खड़ा हो गया। दस मिनट बाद एलैग्जैण्डर हैडक्वार्टर की ईमारत से बहार निकला। उसके चेहरे पर मुझे बड़े संतोष और इत्मीनान के भाव दिखाई दिये। वह कार में आकर बैठा तो मैं खम्बे की ओट से निकलकर उसके सामने आ खड़ा हुआ ।

"हल्लो !" - मैं बोला। मुझे देखकर उसके माथे पर बल पड़ गए । फिर वह मुस्कुराया। "कहीं जाने का है" - वह बोला - "तो इधर गाड़ी में आ जा । ड्राप कर देगा ।"

"कहां ड्राप कर दोगे ? यमुना में ?"

वह हंसा ।

"सौदा हो गया यादव से ?" - मैंने अंधेरे में तीर छोड़ा - "लैजर बुक खरीद ली ?"

"हां, खरीद ली ।" - वह बड़े इत्मीनान से बोला - "और उसकी वो जेरोक्स कापियां भी जो तू कल यादव को दियेला
था । देख ।"

उसने जेब से निकाल कर मुझे लाल जिल्द वाली लैजर बुक और जेरोक्स कापियां दिखाई। मेरा खून खौल गया । मेरा जी चाहने लगा कि, मैं अभी भीतर हैडक्वार्टर में वापिस जाऊं और जाकर यादव का गला घोंट दूँ ।

"कितना रोकड़ा दिया ?" - मैंने पूछा।

जितना तेरे को देने का था, उससे पचास हजार रूपया कम ।”

"यानी कि यादव को भी रिवॉल्वर दिखाकर डायरी उससे जबरन झटककर लाये हो?"

"नहीं । अपुन उससे डायरी का जो सौदा कियेला है, वो रोकड़े से ज्यादा कीमती है । अपुन की वजह से यादव स्मगलरों के उस गैंग का पर्दाफाश कियेला है जिसका सरगना चावला था । यादव चार आदमी गिरफ्तार कियेला है। और कई किलो अफीम और चरस बरामद कियेला है । यह उसका ज्यादा बड़ा इनाम है । यह डायरी की ज्यादा बड़ी कीमत है। यह एक इतना बड़ा केस पकड़ने से उसकी परमोशन पक्की हो गई है है । वो इसी महीने इंस्पेक्टर बन जाने का है। क्या ?"

मैं चुप रहा। "और छोकरे" - एकाएक उसका स्वर बेहद हिंसक हो उठा - "खुशकिस्मत समझ अपने-आपको कि एलैग्जैण्डर पर हाथ उठाने के बाद भी, उसका माल पीटने के बाद भी, तू जिन्दा बचेला है।"

"क्यों जिन्दा बचा हूं ?"

"क्योंकि मौजूदा हालात में यादव नहीं चाहता कि तेरे कू कुछ हो जाए । चार दिन में चार कत्ल हो जाने पर केस की तफ्तीश उससे सीनियर किसी अफसर के हाथ जा सकती है। तब अपुन पर तमाम कत्ल का शुबा फिर से हो सकने का है जो कि इस वक्त अपुन को मंजूर नहीं । इसलिए घर जा और सैलीब्रेट कर कि तेरी जान बच गई । न बचने के काबिल तेरी जान बन गई । खामखाह बच गई।" फिर उसने गाडी स्टार्ट की, अविश्वसनीय रफ्तार से उसे बैक किया और फिर वह वहां से यह जा, वह जा ।

मैं वापिस हैडक्वार्टर की इमारत में दाखिल हुआ। यादव अपने कमरे में नहीं था। वह इमारत में भी नहीं था। मैंने उसके मातहतों से और कई अन्य लोगों से भी पूछताछ की लेकिन किसी को मालूम नहीं था कि वह कहां चला गया था।

,,, मैं जनपथ पहुंचा। शैली भटनागर अपने ऑफिस में नहीं था। मालूम हुआ कि वह किसी जरूरी काम से निजामुद्दीन में कहीं गया था और शाम से पहले लौटने वाला नहीं था ।

शाम तक वहां इंतजार करने की मेरी कोई मर्जी नहीं थी। 3 मैं वापिस यादव के द्वार पर लौटा। - वह तब भी वहां नहीं था।

अगर मैंने इंतजार ही करना था तो वहां इंतजार करना ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता था। यादव के कमरे के बाहर पड़े एक बैंच पर मैं जमकर बैठ गया । यादव शाम के चार बजे लौटा। "तुम यहां क्या कर रहे हो ?" - मुझे देखते ही वह बोला ।

"तुम्हारा इंतजार ।" - मैं बोला।

"क्यों ? दोबारा यहां आने की क्या जरूरत पड़ गई ?"

"दोबारा क्या मतलब ? मैं सुबह का आया यहां से गया ही कहां हूं !"

"तुम सुबह से ही यहां बैठे हो ?"

"हां । बस सिर्फ थोड़ी देर के लिए नीचे पार्किंग में गया था जहां कि मेरी एलैग्जैण्डर से बात हुई थी और जहां उसने मुझे लैजर बुक दिखाई थी। बड़ी क्विक सर्विस है तुम्हारी । लैजर बुक मेरे हाथ से निकली नहीं कि एलैग्जैण्डर के हाथ पहुंच भी गई।"

"क्या चाहते हो ?"

“यहीं बताऊं?"

"हां ।"

"बेहतर । मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि उस लैजर बुक के हर वर्क की एक-एक फोटोकॉपी अभी और है मेरे पास

वह सकपकाया । उसने घूरकर मुझे देखा। मैंने उसके घूरने की परवाह न की। "मैं आगे बढू" - मैं बोला - "या बाकी बात भीतर तुम्हारे कमरे में चलकर करें ?"

"आओ।" - वह कठिन स्वर में बोला।
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Re: बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )

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"बैंक्यू !" मैं उसके साथ कमरे में दाखिल हुआ। उसने खुद मेरे पीछे दरवाजा बन्द किया । हम दोनों बैठ गए तो वह बोला - "क्या चाहते हो ?"

"मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं" - मैंने तोते की तरह रट दिया -"कि उस लैजर बुक के हर वर्के की एक-एक फोटो
कॉपी अभी भी मेरे पास है "

* तुम और क्या कहना चाहते हो ?"

*और कहना चाहता हूं कि वे फोटोकॉपीज लेजर बुक के अस्तित्व को जरूर साबित करेंगी क्योंकिओरिजिनल के बिना तो कॉपी बनती नहीं । फिर कोई तुम्हारा बड़ा साहब, वो नहीं तो कोई अखबार वाला, शायद मेरी इस बात पर विश्वास कर ले कि असल लेजर बुक मैंने तुम्हें सौंपी थी जो कि तुमने आगे" - मैंने स्वर जानबूझकर धीमा कर दिया - "एलेग्जेण्डर को बेच दी ।”

“मैंने" - वह भी दबे स्वर में बोला - "उससे कोई रकम हासिल नहीं की..."

मुझे मालूम है । मेहरबानी कैश या काण्ड दोनों तरीकों से होती है। उस डायरी के बदले में उसने तुम्हें एक ऐसा केस पकड़वाया है जो कि तुम्हारी प्रोमोशन करवा सकता है, तुम्हें प्रशस्ति-पत्र दिला सकता है।"

*और तुम मेरी प्रोमोशन में और मेरे प्रशस्ति-पत्र में हिस्सेदारी चाहते हो ।”

"नहीं। ऐसी कोई हिस्सेदारी मुमकिन नहीं ।”

"तो ?"

"जैसी मेहरबानी तुम्हें हासिल हुई है, वैसी ही मेहरबानी में तुमसे हासिल करना चाहता हूं।"

"क्या ?"

"मैं चाहता हूं कि कमला चावला को बेगुनाह साबित करने में तुम मेरी मदद करो।”

"मेरा काम गुनहगार का गुनाह साबित करना है न कि..."

"वो" - मैंने बीच में बात काटी - "गुनहगार नहीं है । वो बेगुनाह है।”

"जो कि तुम जादू के जोर से साबित कर सकते हो ?"

"नहीं, जादू के जोर से तो नहीं कर सकता । जादू तो मुझे आता नहीं।”

"देखो, अगर तुम यह समझते हो कि तुम मुझ पर दबाव डालकर मुझे उसे रिहा करने पर मजबूर कर सकते हो तो यह ख्याल अपने मन से निकाल दो । वह हिरासत में नहीं है बल्कि बाकायदा चार्ज के साथ गिरफ्तार है। मैं उसे रिहा करूगा तो यह होगा कि मेरी नौकरी चली जायेगी और वह फिर गिरफ्तार हो जायेगी।"

"मैं उसे रिहा करने के लिए नहीं कह रहा ।"

"तो और क्या कह रहे हो ?"

"मैं यह कह रहा हूं कि उसे बेगुनाह साबित करने में तुम मेरी मदद करो।”

"वो मैं सुन चुका हूं लेकिन कैसे मदद करू ?"

"शुरूआत मेरी कमला से एक मुलाकात करवाकर करो ।”

"यह नहीं हो सकता ।"

"क्यों नहीं हो सकता ?"

"वह गिरफ्तार है ।"

"तो क्या हुआ ? जहां वो गिरफ्तार है, वो जगह चांद पर तो नहीं ।”

,,, "लेकिन..."

"मेरी उससे एक मुलाकात करवाओ, यादव साहब ।"

"धमकी दे रहे हो ?" - वह आंखें निकालकर बोला ।

"हां ।"

वह मुंह से तो कुछ न बोला लेकिन कितनी ही देर मुझे घूरता रहा । मैंने उसके घूरने की परवाह न की ।

"लैजर बुक की दूसरी कॉपी निकालो।" - कुछ क्षण बाद वह बोला।

"मिल जायेगी ।" - मैं लापरवाही से बोला - "जल्दी क्या हैं ?"

"अगर तुम मुझसे कोई मेहरबानी चाहते हो तो-"।

"मेरी कमला से मुलाकात का इंतजाम करो, वह कॉपी मैं पूरी हिफाजत के साथ तुम्हारे घर छोड़ के जाऊंगा।"
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Re: बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )

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चेहरे पर उलझन और सन्देह के भाव लिए वह फिर मुझे घूरने लगा। मैंने उसके घूरने की परवाह नहीं की। अन्त में उसने एक कागज-कलम अपनी तरफ घसीटा और कागज पर तेजी से कुछ लिखा। "वह निजामुद्दीन के थाने में है।" - वह कागज दोहरा करता हुआ बोला ।

"तो ?"

"यह रुक्का" - वह कागज मेरी तरफ उछालता हुआ बोला - "वहां दिखा देना मुलाकात हो जायेगी।"

"शुक्रिया ।" मैं फौरन वहां से विदा हो गया ।। निजामुद्दीन थाने में मेरे यादव की चिट्ठी पेश करते ही मुझे एक हवलदार के हवाले कर दिया गया। एक लम्बे कॉरीडोर में चलाता हुआ वह मुझे एक बन्द दरवाजे के करीब लाया जिसके सामने एक लेडी हवलदार खड़ी थी।

"लो।" - वह लेडी हवलदार से बोला - "एक और आ गया।"

"उसी से मिलने ?" - स्त्री बोली।

"हां । देखना, अभी तो और आयेंगे। तांता लगेगा यहां इसके हिमायतियों का । किसी रईस की बीवी को गिरफ्तार करना क्या कोई हंसी-खेल हैं !" हवलदार मुझे वहां छोड़कर विदा हो गया। स्त्री ने दरवाजा खोला और मुझे भीतर दाखिल होने का इशारा किया । मैंने कमरे में कदम रखा। स्त्री ने मेरे पीछे दरवाजा बंद कर दिया।

मैं दरवाजे पर ही ठिठका खड़ा रहा। भीतर कमला के सामने वकील बलराज सोनी बैठा था।

,,, कमला एक शादी साड़ी पहने थी । उस वक्त उसके जिस्म पर कोई जेवर नहीं था और चेहरे पर कोई मेकअप नहीं था लेनि । गिर भी खूबसूरत लग रही थी।

"देख लिया ?" - कमला व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।

"क्या ?" - में तनिक हड़बड़ाकर बोला ।

"कि में कहां हूं ?"

में खामोश रहा।

"अच्छे मददगार निकले तुम मेरे ! अच्छे डिटेक्टिव हो तुम !"

"डिटेक्टिव तो में अच्छा ही हूं । इसीलिए तो जानता हूं कि तुम बेगुनाह हो ।”

"तुम्हारे जानने से क्या होता है ? साबित करके दिखाते तो मुझे हवालात का मुंह देखना पड़ता ?"

"कमला ।" - बलराज सोनी बोला - "मैंने तो पहले ही कहा था कि यह आदमी किसी काम का नही ।"

"ओह !" - मैंने बोला - "तो यह बात तुम पहले भी कह चुके हो ?"

उसने एक तिरस्कारपूर्ण निगाह मेरी तरफ डाली और फिर परे देखने लगा।

"आओ, बैठो।" - कमला बोली। मैं उनके करीब पड़े एक स्टूल पर बैठ गया।

"आप तशरीफ ले जा रहे है ?" - मैं बलराज सोनी से सम्बोधित हुआ।

"तुम कौन होते हो मुझे यहां से भेजने वाले ?" - वह भड़ककर बोला ।

"मैं कहां भेज रहा हूं आपको ! मैंने सोचा था कि शायद आपकी कॉन्फ्रेंस खत्म हो गई हो और आप जा रहे हों !"

"सोनी साहब कहीं नहीं जा रहे ।" - जवाब कमला ने दिया - "ये मेरे वकील हैं । अदालत में भी इन्होंने ही मेरी पैरवी करनी है । और कहना न होगा कि तुम्हारे मुकाबले में अब मुझे इनसे कहीं ज्यादा उम्मीदें हैं।"

उस वक्त पता नहीं क्यों मुझे वकील के बच्चे से बहुत झुंझलाहट हो रही थी । साला हर जगह मुझे पहले से ही मौजूद मिलता था।

"कुछ किया है तुमने ?" - कमला ने पूछा।

"किया तो बहुत कुछ है लेकिन हुआ कुछ नहीं है।" - मैं बोला - "और अगर कुछ हुआ है तो तुम्हारे हक में गलत हुआ है।

" "मसलन ?"

"मसलन एलैग्जैण्डर से पुलिस पूरी तरह से संतुष्ट हो चुकी है कि वह बेगुनाह है। मसलन पुलिस को मालूम हुआ है। कि तुम्हारा पति अफीम और चरस का स्मगलर भी था और इस धन्धे में उसके चार जोड़ीदार भी पुलिस ने गिरफ्तार किए हैं । एलैग्जैण्डर की तुम्हारे पति की स्टडी से बरामद हुई लैजर बुक, जो मैंने इस उम्मीद में पुलिस को सौंपी थी। कि अब एलैग्जैण्डर तुरन्त गिरफ्तार हो जायेगा, वापिस एलैग्जैण्डर के पास पहुंच गई है।"

"वो कैसे ?"

"उस पुलिसिये की मेहरबानी से जो इस केस की तफ्तीश कर रहा है।"

"तुम्हे इस बारे में कुछ करना चाहिए। तुम्हें उस रिश्वतखोर पुलिसिये को एक्सपोज करना चाहिए।"

"कैसे ?" अब तो मैं उस लैजर बुक के अस्तित्व को भी साबित नहीं कर सकता।"

"अग व हो तुम !" "क " - बलराज सोनी बोला - "मैंने तो पहले ही कहा था कि..."

"तुम ना थोड़ा बन्द रखो ।" - मैं भड़ककर बोला' - "मुझे मालूम है तुमने पहले क्या कहा था !"

"नी ।" • कमला बोली - "अब तुम्हारे पास काम करने के लिए कोई ऐंगल नहीं ?"

"ए ऐंगल हैं" - मैं बोला - "मुझे मालूम है कि जब तुम्हारा पति बम्बई में रहता था तो वहां शैली भटनागर उसका । मैनेजर ॥ और वो उसके बिजनेस में ऐसा घोटाला हुआ था कि तुम्हारे पति की मेहरबानी से उसे दो साल की सजा काटनी पी थी । हो सकता है उस बात का बदला उसने आज उतारा हो ।”

"चावला साहब का खून करके ?"

"हो ।"

"और बाकी खून ?" ।
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Re: बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )

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"वो उस एक खून को छुपाने के लिए किए गए हो सकते हैं ।"

"डिटेक्टिव साहब, तुम्हारी जानकारी के लिए अभी एक घंटा पहले शैली भटनागर भी यहां आया था और उसके पास हर कत्ल के बारे में निहायत सिक्केबंद एलीबाई है।"

"वो यहां आया क्या करने था ? निश्चय ही अपनी एलीबाई के बारे में बताने तो आया नहीं होगा।"

"नहीं।"

"तो।"

"वो मेरे से चावला साहब की बम्बई की लाइफ के बारे में ही सवाल कर रहा था। तब मुझे यह बात तो मालूम नहीं थी कि वह चावला साहब की वजह से बम्बई में जेल की सजा काट चुका था। अब मुझे लगता है कि वह यही | भांपने आया था कि मैं चावला साहब की बम्बई की जिन्दगी के बारे में कुछ जानती थी या नहीं और इस बात के जाहिर होने का अन्देशा था या नहीं कि वह एक सजायाफ्ता मुजरिम था। वो यहां से आश्वस्त होकर गया था कि यह बात खुलने वाली नहीं थी लेकिन उसे यह नहीं सूझा होगा कि यह बात तुम्हें भी मालूम हो सकती है।"

"मुझे क्या, पुलिस को भी मालूम है।"

"वह आदमी" - बलराज सोनी बोला - "चावला साहब का हत्यारा हो सकता है।"

"लेकिन उसकी एलीबाई...." - कमला ने कहना चाहा।

"गढी हुई हो सकती है। एलीबाई उसे अपने स्टाफ से हासिल है और उसका स्टाफ तो उसकी खातिर कुछ भी कहने को तैयार हो जायेगा । कोशिश की जाये तो" - उसने आग्नेय नेत्रों से मेरी तरफ देखा - "उसकी एलीबाई को तोड़ा जा सकता है, झूठी करार दिया जा सकता है।"

"राज" - कमला बोली - "तुम्हें ऐसी कोशिश करनी चाहिए। तुम्हें शैली भटनागर के पीछे पड़ना चाहिए।"

मैंने बड़े अनमने ढंग से सहमति में सिर हिलाया।

"इसकी ऐसा कुछ करने की नीयत नहीं लगती” - बलराज सोनी बोला - "यह एक मौकापरस्त आदमी है और दौलत का दीवाना है। अपनी माली हालत सुधारने के लिए ऐसे लोग अपने क्लायंट को भी धोखा दे सकते हैं । ये रईस लोगों में उठने-बैठने का मौका पाते हैं तो रईसी के सपने देखने लगते हैं। अपनी औकात से ऊपर उठने की इनकी ख्वाहिश इनसे कुछ भी करवा सकती है। इसी आदमी को देखो । रहता तो है ये ऐसे कबूतर के दड़बे जैसे फ्लैट में जिसकी बैठक की दीवार का उधड़ा हुआ पलस्तर तक यह ठीक नहीं करवा सकता लेकिन सपने देखता है यह चावला साहब जैसे लोगों की विशाल कोठियों के।"

मेरे कान खड़े हो गए । मैंने अपलक बलराज सोनी की तरफ देखा । बड़ी कठिनाई से अपने मन के भाव मैं अपने चेहरे पर प्रकट होने से रोक पाया।

"जिस उधड़े पलस्तर का तुमने जिक्र किया है" - मैं बोला - "वो दीवार पर बोतल मारकर मैंने खुद उधेड़ा था और वो मेरे लिए मेरी जिन्दगी की एक बड़ी अहम घटना की यादगार है इसलिए वो उधड़ा पलस्तर हमेशा उधड़ा ही रहेगा।
और जहां तक अपनी माली हालत सुधारने की बात है, कोई साधू-महात्मा या कोई अक्ल का अंधा ही ऐसी कोशिश से दूर रह सकता है । हैरानी है कि किसी का महत्वाकांक्षी होना तुम्हें एक गलत और काबिलेएतराज बात लगती है। वह आदमी क्या जो महत्वाकांक्षी ना हो ! तुम एक सिड़ी दिमाग के आदमी हो और बूढ़े हो । तुम एक नौजवान आदमी के दिल को और उसके दिमाग के अन्दाज को नहीं समझ सकते । तुम तो मेरी कमला से शादी करने की ख्वाहिश को भी मौकापरस्ती का दर्जा दोगे।"
कमला चौंकी।

"अभी क्या सुना मैंने ?"

"वही जो मैंने कहा" - मैं बड़ी संजीदगी से बोला - "मुझे अफसोस है कि यह बात मुझे ऐसे माहौल में कहनी पड़ी। लेकिन इस आदमी ने मेरी गैरत को ललकारकर मुझे मजबूर किया है।"

"लेकिन तुम..."

"हां, कमला । मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।" मैंने बलराज सोनी की तरफ देखा । वह अपलक परे कहीं देख रहा था। कमला के चेहरे पर अजीब-सी उलझन, हैरानी और अविश्वास के भाव आ जा रहे थे।

"तुम वाकई मुझ से शादी करना चाहते हो ?" - वह धीरे से बोली।

"हां ।" - मैं दृढ़ स्वर में बोला - "जबसे मैंने तुम्हें देखा है, तभी से मैं तुम्हारा दीवाना बन गया हूं। अपने मन की बात मैं तुम पर बड़े सलीके ओर इत्मीनान से जाहिर करना चाहता था लेकिन अब ऐसी नफासत की गुंजायश नहीं । इस आदमी ने मुझे मजबूर किया कि है मैं तुम्हारे प्रति अपने प्यार और निष्ठा को साबित करके दिखाऊं । मैं तुमसे फौरन शादी करना चाहता हूं, कमला ।"

"लेकिन मैं गिरफ्तार हूं।"
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"कोई बात नहीं । शादी गिरफ्तारी में भी हो सकती है। मैं कल सुबह ही तुमसे शादी कर लेना चाहता हूं।"

“यहां ? हवालात में ?"

"हां । कल सुबह मैं कुछ गवाहों और पंडित के साथ यहां आऊंगा । वह यहीं हमारी शादी करा देगा।"

"ये थाने वाले ऐसा होने देंगे ?"

"मैं पुलिस कमिश्नर की इजाजत लेकर आऊंगा।" ।

"और अगर मैं कत्ल के इल्जाम में फांसी चढ़ गई तो ?"

"नहीं चढोगी । कोई पति अपनी पत्नी को यूं फांसी पर नहीं चढने दे सकता । तुम्हें बेगुनाह साबित करने के लिए मैं
जमीन-आसमान एक कर दूंगा । तभी तो तुम्हें मेरी निष्ठा और ईमानदारी का सबूत मिले।।” |

"यह जमीन-आसमान एक" - बलराज सोनी बोला - "तुम्हे फांसी से बचाने के निरन, राके लिये करेगा । यह तुम्हारी दौलत हथियाने के लिए तुमसे शादी करना चाहता है।"

"तुम गन्दे दिमाग के आदमी हो" - मैं नफरतभरे स्वर में बोला- “इसलिए कोई गन्द ३ ३ । । बीते युग के आदमी हो । तुम आज की तेजरफ्तार दुनिया को नहीं समझते । तुल रु ।” कमला की तरफ घूमा - "कमला, तुम हां बोलो । देखना, सारी दुनिया के अखबारों में राम |
अनोखी शादी कभी किसी ने नहीं की होगी । बोलो हो ।”

"हां ।"


"मैं भी पंजाबी पुत्तर हूं।" - मैं खुद अपनी छाती ठोकता हुआ बोला - "और एक डर मैं किसी बात के पीछे पड़ जाऊं सही । फिर या तो वो बात नहीं या मैं नहीं । अगर है न दिखाया तो समझ लेना मैं अपने बाप की औलाद नहीं। अगर मेरी बीवी धर उसकी चिता में कूद गया तो कहना।"
-
निजामुद्दीन से जनपथ मैं सीधा न गया । पहले मैं कनाट प्लेस पहुंचा । सारे रास्ते मेरी निगाह कार के रियरव्यू मिरर पर । टिकी रही । सारे रास्ते एक कार मुझे अपने पीछे लगी दिखाई दी। मैं अपने ऑफिस पहुंचा । डॉली ऑफिस बन्द करके जा चुकी थी। मैंने अपनी चाबी से ताला खोला और भीतर दाखिल हुआ । जब से वह केस शुरू हुआ था, तब से पहली बार मेरे अपने ऑफिस में कदम पड़े थे । मैंने अपने ऑफिस में जाकर खिड़की का पर्दा तनिक सरकाकर बाहर झांका । जो कार मेरे पीछे लगी हुई थी, वो मुझे नीचे पार्किंग में खड़ी दिखाई दी।

मैंने यादव को फोन किया । गनीमत थी कि तुरन्त सम्पर्क स्थापित हो गया। मैंने उसे वस्तुस्थिति समझाई और बताया कि मैं क्या चाहता था। बड़ी मुश्किल से उसने अपने दल-बल के साथ शैली भटनागर की एडवरटाइजिंग एजेन्सी में पहुंचने की हामी भरी ।। मैं फिर ऑफिस से निकला और कार में सवार हुआ। तब भी मैं सीधा जनपथ न गया । मैं पटियाला हाउस में स्थित रजिस्ट्रार के दफ्तर में पहुंचा। वहां बतौर रिश्वत एक मोटी रकम खर्च करके मैंने अमर चावला की रजिस्टर्ड वसीयत की कॉपी निकलवाई । मैंने बहुत गौर से वह वसीयत पढ़ी और फिर उसे तह करके अपनी जेब में रख लिया। हत्यारे की दुक्की पीटने के लिये जो उद्देश्य की कमी थी, वह वसीयत की उस कॉपी ने पूरी कर दी थी। मैं जनपथ पहुंचा। मेरे पीछे लगी कार ने तब भी मेरा पीछा छोड़ नहीं दिया था। शैली भटनागर के ऑफिस में मेरी उससे मुलाकात हुई।

"कैसे आये ?" - वह बोला।

"आपने कहा था" - मैं मधुर स्वर में बोला - "कि अगर मैं फिर कभी हाजिर होऊं तो आपको असुविधा नहीं होगी।"

"यू आर मोस्ट वैलकम ।" - वह भी मुस्कुराया - "लेकिन सिर्फ इस वजह से तो तुम यहां नहीं आये होवोगे ।”

"हां" - मैंने कबूल किया - "सिर्फ इस वजह से तो नहीं आया।"

"कोई खास ही वजह होगी ?"

"खास भी है।"

"क्या ?"

"मैं दिन में भी यहां आया था। तब आप यहां नहीं थे। तब आप शायद मिसेज कमला चावला से मिलने गये हुए थे।

"कैसे जाना ?" - वह तनिक हड़बड़ाकर बोला ।

"खुद मैडम ने बताया ।"
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