Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post Reply
rajan
Expert Member
Posts: 3302
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post by rajan »

कड़ी 67

आखीरकार, दिन निकल जाता है और धीरे-धीरे रात होने लगती है। सुखजीत बहुत ही घबराई होती है। और तो और वो घबराहट में बस टाइम की तरफ ही ध्यान दे रही होती है। क्योंकी उसके दिल की धड़कन बहुत ही तेज चल रही होती है। जिसको वो खुद भी महसूस कर सकती है।

असल में वो हरपाल का इंतेजार कर रही होती है और उसने रंधावा से भी मिलने जाना होता है। पर वो हरपाल को ये भी कहकर नहीं निकल सकती है की उसे क्लब के किसी कम से जाना है। और अभी हरपाल भी नहीं आया हुआ होता है।

सुखजीत अब फैसला करती है की वो किसी को बिना बताए ही चली जाएगी और रंधावा को कहती है की 11:00 बजे तक रात को भेज दियो अपने किसी बंदे को, क्योंकी तब तक सारे सो जाएंगे। उधर रंधावा भी उसकी बात में हाँ मिला देता है।

अब सुखजीत रीत और सोनू को आवाज लगाती है और कहती है- “अपना खाना खा लो.."

दोनों सुखजीत की आवाज सुनकर आ जाते है और दोनों खाना खाकर अपने बिस्तर पर यानी अपने कमरे में चले जाते हैं। अभी सिर्फ 9:30 बजे होते है और अब बस सुखजीत हरपाल का इंतेजार कर रही होती है। क्योंकी उसके आने और उसके सोने के बाद ही सुखजीत बाहर जा सकती है।

अब ऐसे ही इंतेजार करते हुए 10:00 बज जाते है, और तभी घर की बेल बजती है और सुखजीत बाहर जाकर देखती है तो वहां हरपाल होता है। हरपाल आज परा नशे में होता है क्योंकी वो बाहर अपने दोस्तों के साथ अपनी प्रमोशन की खुशी मनाकर आ रहा होता है। उससे चला भी नहीं जाता है और उधर ये सब सुखजीत देखकर अंदर ही अंदर खुश हो रही होती है। क्योंकी अब हरपाल नशे की हालत में धुत्त होकर सो रहा होगा और वो आसानी से बाहर चली जाएगी।

अब वो उसे अंदर लाती है और कमरे में लेटा देती है और तभी खाना डालकर उसके लिए लाती है पर जैसे ही सुखजीत कमरे में आती है तो देखती है की हरपाल तो खर्राटे मारकर सो रहा होता है। ये देखकर वो बहुत खुश हो जाती है और फिर उसके बाद ऐसे ही वो अपने कपड़े लेकर कमरे की लाइट आफ करके बाथरूम में चली जाती है।

अब सुखजीत बड़े प्यार से तैयार हो रही होती है। उसने अपने गोरे चिट्टे बदन पर पिंक कलर की ब्रा और पैंटी डाली होती है और ऊपर से पिंक कलर का सूट डाला होता है। अब वो अंदर से ही पिंक लिपस्टिक, खुल्ले बाल और हाइ हील पहनकर बाहर आती है। उसकी कमीज से खिल्ली सलवार और नीचे हील डालने से उसके बाम्ब ऊपर की ओर उठ से जाते हैं। ये देखकर वो और पागल हो जाती है। और फिर बड़े अच्छे से तैयार होकर बाहर आती है, फिर सबको देखती है की बाहर का माहौल कैसा है।

ये सब वो देख ही रही होती है की तभी उसके पास फोन वाइब्रेट करने लगता है। वो किसी अंजान नम्बर को देखकर फोन उठती है।
सुखजीत- हेलो।
वो- हाँ जी मेडम हम आपके घर के बाहर खड़े हैं।
सुखजीत ये सुनकर समझ जाती है की ये तो उस रंधावा का भेजा हुआ बंदा है। जो मुझे लेने आया है- “हाँ मैं बस आई...” कहकर फोन कट कर देती है।
वो अब सबको एक बार फिर से देखती है की सब सो रहे हैं ना। और फिर अपनी एक चादर को अपने ऊपर लेकर धीरे-धीरे बाहर की ओर चली आती है।

बाहर ब्लैक कलर की बड़ी सी कार इंनोवा खड़ी होती है। तो वो उसकी पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ जाती है
और अपने ऊपर ली चादर को उतारकर अपने बाल सवारने लगती है। रंधावा का भेजा हुआ भैया उसे घूर-चूर कर देख रहा होता है।
सुखजीत- “ऐसे क्या देख रहा है, अपनी कार चला सीधा होकर?"
वो बंदा अपने मन में सोचता है की आज तो रंधावा सर की मौज ही मौज है। फिर वो धीरे-धीरे चल पड़ता है, और थोड़ी ही देर बाद कार को खेतों के बीच बने फार्महाउस के बाहर लगा लेता है। अब सुखजीत भी उतरकर फार्महाउस देखती है और जब अंदर जाती है तो देखती है की रंधावा किसी बंदे के साथ बैठकर शराब पी रहा होता है।
सुखजीत मन में सोचती है- “कहीं ये भी तो नहीं?"
अब वो वहीं खड़ी होती है की तभी रंधावा की नजर सुखजीत पर पड़ती है तो वो उसे पटियाला शाही सलवार सूट में देखकर देखता ही रह जाता है। सुखजीत को देखकर रंधावा को और नशा चढ़ जाता है।
रंधावा- “सतबीर इतनी देरी से पी रहा हूँ पर नशा तो अब चढ़ा है..”
उधर सतबीर भी अब उसको देखता है और कहता है- “हाँ बात तो सही कही."
दर्शल सतबीर उसी कुर्सी पर होता है जिस पर अब हरपाल आया हुआ होता है। और फिर अब उसको देखकर रंधावा को कहता है।
सतबीर- "मेरी तो नजर इस पर तब से थी जब ये महकमे में आई थी...”
सुखजीत भी उसको देखती है और सोचती है की उसको देखकर की अब तो ये भी मेरे पीछे पड़ेगा। अब इतना सब होने के बाद अब सुखजीत धीरे-धीरे आगे बढ़ती है।
तभी रंधावा कहता है- “हाई ओईए मर जावां..."
तभी उसकी बाजू को रंधावा पकड़ लेता है और वो उसकी गोद पर आकर गिर जाती है, और उठने की कोशिश करती है की तभी उसकी चुन्नी को रंधावा हटा देता है जिससे उसकी चूचियां नजर आती हैं।
उधर सतबीर उसकी चूचियों को देखकर पागल हो रहा होता है, और तभी सुखजीत उसको छिपा लेती है।

सतबीर ये देखकर अपना लण्ड मसलते हुए बोला- “हाए अब तू मुझसे क्यों शर्मा रही है? एहसान तो मैंने भी तेरे ऊपर किया है, तेरे बंदे को फिर से नौकरी पर रखकर। और तू सिर्फ एहसान रंधावा का उतार रही है...”

रंधावा ये सुनकर हंसता है और सुखजीत को धक्का दे देता है। जिससे सुखजीत उछालकर सतबीर की गोद में जाकर गिरती है। उसकी चूचियां सीधे सतबीर के मुँह पर जाकर लगती हैं।

सुखजीत की मोटी गोरी नंगी चूचियां देखकर सतबीर ने जो पेग अपने हाथ में पकड़ा हुआ था। वो पेग को सुखजीत की चूचियां के ऊपर गिरा देता है। शराब से सुखजीत की चूचियां पूरी तरह से भीग जाती हैं। फिर सतबीर चूचियों के बीच की लाइन में अपनी जीभ रखकर वहां से शराब सो चाटने लगता है।

सुखजीत इससे पागल होने लगती है और बोलती है- “ओहो... ये क्या कर रहे हो आप?"
सतबीर वैसे ही सुखजीत की चूचियों को चाटता हुआ बोला- "मैं वो ही कर रहा हूँ, जो रंधावा ने करना था...”
सुखजीत समझ जाती है, की अब सतबीर उसे चोदने वाला है। आखीरकार, वो अपनी शर्म को तोड़कर बेशर्म होकर बोली- “भाईजी बस किसी को पता ना चल जाए."
रंधावा एक पेग पीकर बोला- “तू फिकर ना कर सतबीर अपना ही आदमी है। ये किसी को कुछ नहीं बताएगा।
और तो और इसी ने तेरा सारा काम किया है..."
सुखजीत ये सुनकर अपने अंदर की आग बाहर निकाल देती है, और सतबीर के सिर को पकड़कर वो अपनी चूचियों में दबा देती है। सतबीर भी सुखजीत की ये हरकत देखकर गरम हो जाता है। सतबीर भी अब जोर-जोर से अपना मुँह सुखजीत की चूचियों में दबाता है। सुखजीत भी अपने आँखें बंद करके पूरे मजे ले रही थी।
रंधावा फिर से बोलता है- “सतबीर जा ले जा इस रंडी को रूम में और जो करना है वो कर ले इसके साथ...”
सतबीर जोर से सुखजीत की चूचियां मसलता है और बोला- "इसकी चूत मारने की तो मैं उस दिन से सोच रहा था, जिस दिन मैंने इसे पहली बार आफिस में गाण्ड मटकाते देखा था। आज बहनचोद मेरा ये सपना पूरा हो गया है..”
सतबीर अपने होंठ सुखजीत के होंठों में डालकर उसको ऐसे ही अपनी गोद में उठाकर उसे सीधा रूम में ले जाता है। रूम में आते ही सतबीर सुखजीत को नीचे उतारता है, और उसके होंठों को चूसते हुए उसके चूतरों को जोर
जोर से मसलता है।
सुखजीत भी अब पूरी गरम हो जाती है, और वो भी सतबीर का पूरा साथ देते हुए अपने हाथ से उसका लण्ड पकड़ लेती है। सतबीर एक बार सुखजीत के ऊपर वाले होंठ को जमकर चूसता है। और फिर उसका सूट उतार देता है। अंदर सुखजीत ने पिंक कलर की सेक्सी ब्रा डाली हुई थी, जिसे देखते ही सतबीर के मुँह से निकाला।
सतबीर- “हाए ओये रब्बा... मुझे नहीं पता था, की हरपाल की वाइफ अंदर से गुलाबी है...”
सतबीर की ये बात सुनकर वो शर्मा जाती है। फिर सतबीर धीरे-धीरे सुखजीत के सारे कपड़े निकालकर उसे नंगी कर देता है। सतबीर के सामने सुखजीत पूरी नंगी होकर शर्माने लगती है। सतबीर का लण्ड अब पूरा खड़ा हो गया था, क्योंकी उसके सामने सुखजीत जैसी जवान जट्टी बिना कपड़ों के लेटी हुई थी। फिर सतबीर भी अपने कपड़े निकालकर नंगा हो गया।

सतबीर का लंबा काला लण्ड देखकर सुखजीत के मुँह पर स्माइल आ गई। फिर सतबीर अपना लण्ड सुखजीत के होंठों पर लगा देता है। सुखजीत सतबीर के लण्ड की खुश्बू से मदहोश होने लगती है। फिर वो सतबीर का लण्ड धीरे-धीरे अपने मुँह में लेने लगती है। सतबीर भी एक बार अपना पूरा लण्ड सुखजीत के मुँह में डाल देता है। फिर सुखजीत उसका लण्ड अपने मुँह से बाहर निकलती है, और अपनी जीभ बाहर निकालकर वो सतबीर के
लण्ड को अपनी जीभ से चाटने लगती है।
सतबीर ने आज से पहले सुखजीत जैसी कमाल की खूबसूरत और इतनी गरम औरत नहीं देखी थी, और ना ही कभी इतनी गरम औरत को अपने नीचे लेटाया था। इसलिए वो सुखजीत की गरमी को देखकर पागल हो रहा था। सतबीर से अब कंट्रोल करना मुश्किल हो रहा था। सतबीर ने सुखजीत का सिर पकड़ा और वो जोर-जोर से सुखजीत का मुँह चोदने लगा।
सुखजीत भी सतबीर का लण्ड जोर-जोर से लालिपोप की तरह चूस रही थी। पर सतबीर सुखजीत की इतनी गर्मी को झेल नहीं पा रहा था। इसलिए उसने सुखजीत के मुँह से अपना लण्ड बाहर निकाला, और उसने सुखजीत को बेड पर सीधा लेटा दिया। उसने सुखजीत की दोनों टाँगें ऊपर उठाकर खोल दी, और अपने लण्ड को सुखजीत की रस से भारी चूत पर जोर-जोर से रगड़ने लगा।
सुखजीत ऐसा करने से मचलने लगी और बोली- “आहह... आऽs भाईजी अब डाल भी दो अंदर...”

सतबीर लण्ड अंदर नहीं डालता, बल्कि वो और जोर से सुखजीत की रस से भीगी हुई चूत पर लण्ड रगड़कर बोला- “साली तूने बहुत आग लगा रखी थी मेरे लण्ड को इतने दिनों से..."
सुखजीत- “फिर भाईजी, आज आपके नीचे मैं लेट भी तो गई हूँ ना... अब डाल दो अपना लण्ड मेरी चूत में..."
सतबीर का ये सुनते ही दिमाग खराब हो जाता है, और वो एक जोर से धक्का मारकर अपना पूरा लण्ड सुखजीत की चूत में डाल देता है। सतबीर का लण्ड सुखजीत की चूत की चीरता हुआ पूरा अंदर चला जाता है। और सुखजीत के मुँह से आह्ह... आहह... की आवाज निकलती है। फिर वो जोर-जोर से धक्के मारने लगता है, और सुखजीत भी नीचे से अपनी गाण्ड उठा-उठाकर सतबीर के हर धक्के का पूरा जमकर जवाब देती है।
पर सतबीर का लण्ड भी सुखजीत जैसी गरम औरत की गरमी नहीं झेल पाया, और करीब 10 मिनट की चुदाई के अंदर ही सतबीर के लण्ड ने अपना पानी छोड़ दिया।
*****
*****
* * * * * * * * * *
rajan
Expert Member
Posts: 3302
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post by rajan »

कड़ी_68

सतबीर के फ्री होने के बाद वो सुखजीत के नंगे जिश्म से अलग हो जाता है। और सतबीर अपने कपड़े डालकर बाहर आ जाता है। बाहर आता देखकर रंधावा सतबीर की तरफ देखते हुए बोला।

रंधावा- “हाँ भाई, फिर कैसी लगी जट्टी?"

सतबीर- भाई आग है पूरी आग, सच में बहुत ही ज्यादा मस्त है।

रंधावा अपनी मूछों को ताव देते हुए बोला- “चल अब मैं भी हाथ सेंक कर आता हूँ, इस आग में..."

रंधावा अंदर चला जाता है, अंदर सुखजीत पूरी नंगी लंबी लेटी होती है। सुखजीत का नंगा जिश्म देखकर रंधावा मस्त हो जाता है। सुखजीत रंधावा को देखकर हँसती है। इस टाइम सुखजीत की हालत एक बाजार की गश्ती जैसी थी, जिसके साथ दो बंदे पूरी रात चोदने में लगे हुए थे। सुखजीत भी अब पूरी खुली होती है, वो रंधावा के सामने नंगी लेटी हुई, जरा सी भी शर्म नहीं करती।
रंधावा अपनी शर्ट के बटन खोलता है, और अपनी पैंट को ढीली करके वो सुखजीत के ऊपर आ जाता है। फिर वो उसके होंठों को चूसने लगता है। सुखजीत भी गरमी की वजह से उसका पूरा साथ दे रही होती है। सुखजीत की चूत अब फिर से अपना पानी निकालने लगती है।
रंधावा सुखजीत की चूचियों पर दाँत मारकर बोला- "आज अच्छे से एहसान उतार अपने पति की तरक्की का..."

सुखजीत- “आहह... आss एहसान उतारने के लिए तो आई हूँ मैं भाईजी। जो भी आपने करना है कर लो, ये जट्टी आपके नीचे लेटी हुई है...” कहकर सुखजीत रंधावा से लिपट जाती है।


रंधावा का लण्ड भी अब पूरा खड़ा हो जाता है। रंधावा अब बेड के किनारे पर जाकर खड़ा हो जाता है, और सुखजीत की दोनों टाँगें अपने कंधों पर रख लेता है। रंधावा ने हाथ से सुखजीत के चूतड़ों को पकड़ा हुआ था,
और दूसरे हाथ से अपनी पैंट को उतार देता है। पैंट उतारकर वो अपना खड़ा हुआ लण्ड बाहर निकाल लेता है।

सुखजीत रंधावा के लंबे लण्ड को देखकर हैरान हो जाती है। क्योंकी उसने आज से पहले इतना बड़ा लण्ड कभी भी नहीं लिया था। फिर रंधावा सुखजीत की चूत में अपना लण्ड रगड़ने लगता है, और अचानक ही वो अपना पूरा 9” इंच का लण्ड सुखजीत की चूत में उतार देता है। सुखजीत के मुँह से हल्की सी चीख निकलती है, और वो अपने दोनों हाथों से बेड की चादर को कस लेती है।


रंधावा अभी भी धीरे-धीरे सुखजीत को चोद रहा होता है। पर तभी रंधावा सुखजीत को कसकर पकड़ता है, और अपनी पूरी ताकत लगाकर वो एक जोरदार धक्का मारता है। जिससे रंधावा का लण्ड अबकी बार सीधा सुखजीत की बच्चेदानी पर जाकर लगता है, जिससे सुखजीत चिल्लाते हुए बोली।

सुखजीत- “आहह... आहह... हाई मर गई मैं..."

पर रंधावा सुखजीत पर जरा भी दया नहीं करता, वो पूरे जोश से सुखजीत की चूत को चोदने में लगा हुआ था। सुखजीत को भी अब रंधावा के लण्ड से चुदने का मजा आ रहा था। इसलिए वो रंधावा के हर धक्के का जवाब अपनी गाण्ड को हिलाकर दे रही थी। इसी तरह करीब 20 मिनट लगातार चुदाई के बाद अपना लण्ड बाहर निकाल लेता है।
फिर वो सुखजीत का हाथ पकड़कर उसे खींचकर खड़ा कर देता है। सुखजीत इससे पहले कुछ समझ पाती, वो सुखजीत को दीवार से लगा देता है। सुखजीत का मुँह दीवार की साइड होता है, और उसके दोनों हाथ भी दीवार से लगे हुए होते हैं।

सुखजीत- भाईजी ये आप क्या कर रहे हो?

रंधावा कुछ नहीं बोलता, और अपनी दो उंगलियां सुखजीत की चूत में डालकर अपनी उंगलियों को गीली कर देता है। और फिर सुखजीत के चूतरों पर एक जोरदार थप्पड़ मारकर, रंधावा अपनी गीली उंगलियां सुखजीत की गाण्ड की छेद पर रगड़ने लगता है। रंधावा सुखजीत की गाण्ड के छेद को गीला कर रहा होता है। सुखजीत को समझते देर नहीं लगती, की अब आगे उसके साथ क्या होने वाला है।
कुछ पलो में सुखजीत की गाण्ड के छेद गीला हो जाता है। फिर रंधावा सुखजीत के चूतरों को खोलकर अपने लण्ड को उसकी गाण्ड के छेद पर लगाता है। इससे सुखजीत एकदम से चौंक जाती है, और वो पीछे होने लगती है। पर रंधावा उसे कसकर पकड़े हुए थे, जिस वजह से वो चाहकर भी हिल नहीं पा रही थी। अब सुखजीत की गाण्ड में रंधावा के लण्ड का टोपा फँस चुका था।

सुखजीत दर्द से तड़पते हुए बोली- “हाई मर गई मैं प्लीज़्ज़... भाईजी ऐसा ना करो..”

रंधावा थोड़ा सा लण्ड अंदर डालकर सुखजीत के चूतरों पर थप्पड़ मारते हुए बोला- “चुप कर बहनचोद कुट्टी साली गश्ती कहीं की। बहन की लौड़ी तू बड़ा अपनी गाण्ड हिला-हिलाकर चलती थी ना। अब देख आज तेरी गाण्ड मैं कैसे फाड़ता हूँ... और रंधावा किसी को इतनी आसानी से छोड़ता नहीं समझी...”
इतने कहते ही रंधावा अपने लण्ड पर पूरा जोर डालता है, और फिर उसका लण्ड सुखजीत की टाइट गाण्ड को चीरता हुआ पूरा अंदर चला जाता है।


सुखजीत के साँस रुक जाती है और वो गुस्से में बोली- “हाए भाईजी... मैं मर गई आह्ह... आss निकालो प्लीज़्ज़... प्लीज़्ज़... वर्ना मैं इस दर्द से ही मर जाऊँगी.."
सुखजीत घोड़ी बनने की पूरी कोशिश करती है, पर रंधावा उसे जरा सा भी हिलने नहीं देता। और ऊपर से वो अपना पूरा लण्ड उसकी गाण्ड में से निकालकर एक बार फिर से बहुत जोर से धक्का मारता है। और उसके जोरदार धक्के से फिर से उसका
सका लण्ड सुखजीत की गाण्ड को फड़ता हुआ अंदर चला जाता है।

सुखजीत की हालत ऐसी हो जाती है, जैसे किसी मछली को पानी से निकाल दिया हो। सुखजीत के मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी, और उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। पर रंधावा पर इस बात का कोई असर नहीं पड़ रहा था। वो बिना रुके हुए पूरी ताकत से अपना लण्ड सुखजीत की गाण्ड में अंदर-बाहर कर रहा था।
सुखजीत बस बेहोश होने वाली थी। रंधावा लगातार सुखजीत की गाण्ड को खड़ी करके चोदे जा रहा था। करीब 30 मिनट की चुदाई के बाद रंधावा अपने लण्ड का सारा पानी सुखजीत की गाण्ड के अंदर ही निकाल देता है। रंधावा अब सुखजीत को छोड़ देता है।
सुखजीत एक बार तो नीचे जमीन पर गिरने वाली होती है। पर वो अपने आपको संभालते हुए बेड पर गिर जाती है। सुखजीत की गाण्ड में से रंधावा के लण्ड का पानी निकल रहा था। फिर रंधावा बाहर निकल जाता है।

सतबीर ने रंधावा को बाहर आते देखके बोला- “भाई पूरा एक घंटा तू अंदर रहा क्या बात है?"

रंधावा- भाई तुझे पता ही है रंधावा गाण्ड मारने का शौकीन है। आज तक मैं बिना गाण्ड मारे रह सका हूँ।

सतबीर- हाए जरा मैं भी देखकर आऊँ, कैसी फटी पड़ी हुई है गाण्ड साली की।

सतबीर ये कहकर अंदर चला जाता है। सुखजीत बेड पर बिना कोई सुध बुध के उल्टी लेटी हुई थी। सुखजीत के खड़े चूतर देखकर सतबीर का लण्ड एक बार फिर से खड़ा हो जाता है। सतबीर देर ना करते हुए अपने सारे कपड़े निकालकर अपना लण्ड बाहर निकालता है।
सतबीर सुखजीत के ऊपर लेट जाता है, और अपना लण्ड उसकी गाण्ड पर सेट करके वो भी उसकी गाण्ड को मारने लगता है। सुखजीत को कुछ भी पता नहीं होता, की उसके साथ अब क्या हो रहा है? वो वैसे ही बेसुध होकर अपनी गाण्ड की चुदाई करवा रही थी। थोड़ी देर बाद सतबीर अपने लण्ड का सारा पानी सुखजीत की कमर ऊपर निकल देता है।
ऐसे ही सुबह के 4:00 बजे तक रंधावा और सतबीर बेहोश हुई सुखजीत को खूब अच्छे से चोदते हैं। वो कभी उसका मुँह तो कभी उसकी चूत, तो कभी गाण्ड में लण्ड डालकर सुखजीत को काफी जमकर चोदते हैं।
4:00 बजे सुखजीत को होश आता है, और उसकी नींद खुलती है। वो देखती है की वो बेड पर पूरी नंगी लेटी हुई थी। उसके दोनों ओर रंधावा और सतबीर नंगे लेटे हुए थे। उसके पूरे जिश्म पर लण्ड का पानी-पानी हो रखा था। तभी सुखजीत की नजर घड़ी पर पड़ती है। वो टाइम देखकर एकदम उठने वाली होती है, पर उसकी फटी हुई गाण्ड का दर्द उसे उठने नहीं देता।
फिर सुखजीत काफी हिम्मत करके उठती है, और वो अपने कपड़े ढूँढकर बहुत मुश्किल से डालती है। फिर
सुखजीत सीधा बाहर जाकर कार के पास जाती है, कार में वो भईया सोया हुआ होता है।
सुखजीत उसे उठाते हुए बोली- “ओये उठ अब..."
भईया- क्या है सोने दो मुझे।
सुखजीत- “ओ कंजर उठ.. मुझे घर छोड़कर आ अभी..."
फिर वो एकदम से उठता है और सुखजीत को देखकर हँसते हुए बोला- “बीबी जी काम हो गया आपका पूरा?"
सुखजीत- तू चुप कर, और मुझे घर छोड़कर आ।
फिर वो भईया कार स्टार्ट करता है, और सुखजीत कार में बैठ जाती है। करीब 30 मिनट में भईया सुखजीत को घर के बाहर उतार देता है। सुखजीत कार का दरवाजा खोलने ही लगती है। तभी वो भईया सुखजीत की चूचियों को मसल देता है, और अपने दूसरे हाथ से चूत और चूतड़ों को भी मसल देता है। सुखजीत पर एकदम हुए अचानक हमले से वो विचल जाती है। और वो एकदम भईया को धक्का मारकर बोली।
rajan
Expert Member
Posts: 3302
Joined: 18 Aug 2018 23:10

Re: Adultery Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा )

Post by rajan »

सुखजीत- “ये... दूर हो कंजर..” और सुखजीत कार से बाहर निकल जाती है।

सुखजीत अपने चूतर आज कुछ ज्यादा ही बाहर निकालकर चल रही थी। क्योंकी उसकी गाण्ड अभी तक बहुत दर्द कर रही थी।
भईया ये देखकर कार का शीशा खोलकर बोला- “वाह क्या बात है बीबी जी, गाण्ड मरवा-मरवा कर बाहर निकल लिए आपने तो?"
सुखजीत ये सुनकर उसकी तरफ देखकर गुस्से बोली- “ओ कुते चल निकल यहाँ से...” फिर सुखजीत धीरे से गेट खोलकर घर के अंदर जाती है।
उससे चला भी नहीं जा रहा था, वो सबको देखती है की सब वैसे ही सोए हुए थे। फिर वो अपने रूम में आकर अपने कपड़े चेंज करती है। और फिर वो बेड पर उल्टी लेटकर अपनी रात की चुदाई के बारे में सोचते हुए सो जाती है।
सुबह के 8:00 बजे जाते है, आज रीत का एग्जाम होता है। इसलिए वो टाइम से तैयार होकर एग्जाम देने के लिए घर से निकल जाती है। हरपाल भी तैयार हो जाता है। जब वो सुखजीत को नाश्ता के लिए उठाता है। तो सुखजीत अपनी तबीयत खराब होने का बहाना लगा देती है। और वो शीला को कहकर हरपाल का नाश्ता तैयार करवा देती है।
सोनू के दिमाग में दीप की भाभी कंवल अभी तक असर कर रही होती है। सोनू कालेज के बहाने से दीप के घर की ओर निकल जाता है। थोड़ी ही देर में सोनू दी के घर पहुँच जाता है। वहां उसके घर में पूरी तैयारियां चल रही होती हैं। आज दीप के घर अखंडपाठ रखा हुआ था। सोनू जाकर दीप के मम्मी पापा को मिलता है, वो उनसे दीप के बारे में पूछता है।
पर दीप कुछ सामान लेने के लिए बाहर गया हुआ था। सोनू बाहर जाकर बैठ जाता है, और दीप के आने का इंतेजार करने लगता है। सोनू की नजर बार-बार ऊपर वाले रूम पर जा रही थी। जहाँ पर कंवल का रूम होता है। सोनू की आँखें कंवल को ढूँढ़ रही थी। इतने में दीप की मम्मी सोनू को बोलती है।
मम्मी - “बेटा ये लाउड स्पीकर की तार जरा ऊपर लगाकर आ जा..."
सोनू ये सुनकर खुश हो जाता है, क्योंकी ऐसे उसका काम आसान हो गया था कंवल के दर्शन करने का। सोन् ऊपर जाता है, पर कंवल के रूम का दरवाजा बंद हो जाता है। पर साइड वाली खिड़की खुली होती है। जब सोनू अंदर देखता है, तो कंवल शीशे के सामने खड़ी होकर तैयार हो रही थी।
सोनू की आँखें कंवल की मोटी-मोटी चूचियों पर जाती हैं। उसकी चूचियां बाहर निकलने वाली हो रही थीं। कंवल ने चुन्नी नहीं ली हुई थी। इसलिए उसकी ब्रा का डिजाइन भी कमीज के ऊपर से ही नजर आ रहा था। सोनू का लण्ड अब झटके मारने लगता है। अचानक से कंवल सोनू को देख लेती है। आँखों से आँखें टकराती है, सोनू मुश्कुराते हुए आँख मार देता है। कंवल भी अपने गुलाबी होंठ जो आज लिपस्टिक से और भी सेक्सी लग रहे थे, पर जीभ फेर कर शर्मा जाती है। और अपनी चुन्नी लेकर अपना दरवाजा खोलकर वहां से निकल जाती है।

जाती-जाती कंवल जब सीढ़ियों से नीचे उतर रही होती है, तो सोनू उसके हिलते चूतरों को देखकर अपना लण्ड मसलने लगता है। कंवल के जाने के बाद सोन छत पर लाउड स्पीकर फिट कर देता है। और तभी दीप घर वापिस आ जाता है। दीप सोनू को देखकर खुश हो जाता है।
-1
दीप- क्या बात सोनू, रिंकू कहां है?
सोनू- पता नहीं यार, मैं आज कालेज नहीं गया, मैं सीधा यहीं पर आ गया।
दीप- चल अच्छी बात है अगर आ गया है तो। अब आज तू यहीं पर रहियी आज अखंडपाठ है। मैं तेरे घर पर बात कर लूँगा।
सोनू किचेन की खिड़की में से दिखती कंवल को देखकर बोला- "ठीक है भाई...”
फिर वो दोनों घर के काम करने लगते हैं। सोन कंवल को देखने का कोई भी मोका नहीं छोड़ता। कंवल भी
सबकी आँखों से बचते हुए सोनू के साथ नैन मटक्का कर रही होती है।
* * * * * * * * * *
Post Reply