Adultery Chudasi (चुदासी )

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adeswal
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Re: Adultery Chudasi (चुदासी )

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मैंने अब्दुल के मुँह के अंदर मेरी जीभ डाल दी जिसे वो चूसने लगा। मैं उत्तेजना की चरम सीमा पे पहुँच गई। मैंने फिर से अब्दुल के टेटुवे पकड़े, लेकिन इस बार मैंने उसे सहलाए नहीं दबाए और अब्दुल के लण्ड में से गरम-गरम वीर्य मेरी चूत में बहने लगा और उस गरम धार के अहसास से मैं भी झड़ने लगी। मैंने अब्दुल को मेरी बाहों में जकड़ लिया था और अब्दुल मेरी गर्दन में उसका मुंह दबाकर लंबी-लंबी सांसें ले रहा था।

थोड़ी देर बाद अब्दुल ने मुझसे अलग होकर- “मैं उस लड़के को जानता हूँ, जो तेरी फ्रेंड को प्यार करता है?"

मैं- “तुम लड़के को नहीं जानते लेकिन लड़की को जानते हो, क्योंकि लड़का नहीं लड़की मुस्लिम है...” मैंने कहा।

अब्दुल- “कोई बात नहीं, तुम उसका नाम बताओ और मैं कैसे मदद कर सकता हूँ वो बताओ?”

मैं- “तुझे लड़की के अब्बू को समझाना है, शादी के लिए राजी करना है.”

अब्दुल- “अच्छा, नाम क्या है लड़की का और किसकी बच्ची है ये बता?”

मैं- “खुशबू, तुम्हारी बेटी..” मैंने हिम्मत करके बोल दिया।


अब्दुल एक-दो पल मुझे देखता रहा और फिर उसका हाथ उठ गया और मेरे गाल पर उसके हाथ की छाप छोड़ता गया।

मैंने अब्दुल के सीने पर मुक्के मारते हुये कहा- “क्यों मारते हो मुझे? थोड़ी देर पहले तो लंबी-लंबी छोड़ रहे थे.."

अब्दुल- “तू झूठ बोल रही है, मेरी बेटी ऐसा नहीं कर सकती...”

मैं- “क्यों तेरी बेटी ऐसा क्यों नहीं कर सकती? क्या वो नार्मल नहीं है?"

अब्दुल- “चुप साली रंडी...”

मैं- “चुप के बच्चे, तेरी बेटी सिर्फ किसी से प्यार ही नहीं करती, वो उसके साथ भाग भी गई है...”

मेरी बात सुनकर अब्दुल की आँखों में खून उतर आया, उसने मेरी गर्दन को पकड़ा और उसे दबोचकर चिल्लाने लगा- “मादरचोद ज्यादा बक-बक किया ना तो टेटुवा दबा दूंगा, मैं अभी खुशबू से बात करता हूँ..” कहकर वो मुझे छोड़कर उसका मोबाइल लेने गया।


मैं- “थोड़ी देर पहले मुझे जो फोन आया था, वो खुशबू का ही था और मैं यहां उसी के लिए ही आई हूँ..” मैंने अब्दुल को सारी बात खुलकर बता दी। लेकिन मैं बात करते हुये खड़ी हो गई थी और बेड पर से नीचे उतर गई
थीं।
adeswal
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Re: Adultery Chudasi (चुदासी )

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मैं- “थोड़ी देर पहले मुझे जो फोन आया था, वो खुशबू का ही था और मैं यहां उसी के लिए ही आई हूँ..” मैंने अब्दुल को सारी बात खुलकर बता दी। लेकिन मैं बात करते हुये खड़ी हो गई थी और बेड पर से नीचे उतर गई
थीं।


अब्दुल- “क्या बोली तू मादरचोद? तूने मेरी बेटी को भागने में मदद की, ऐसे बदला लिया तेरी माँ की चुदाई का..." अब्दुल ने मेरी बात मान ली की उसकी बेटी भाग चुकी है, लेकिन वो बोलते-बोलते छलांगे भरता हुअ । मुझपर झपटा और मुझे दीवार पे धकेलकर फिर से मेरी गर्दन मरोड़ने लगा।


मैंने उसके पेट पर मुक्के मारते हुये जोरों से कहा- “अब्दुल एक बार पूरी बात सुन ले, बाद में जो करना है वो करना...”

अब्दुल- "कुछ नहीं सुनना, तुझे मारकर ही मुझे कुछ सकून मिलेगा.”

अब्दुल के हाथ की पकड़ मेरी गर्दन पर बढ़ रही थी, मैं खांसने लगी थी, मेरी आँखों में से पानी निकलने लगा था। मैंने कहा- “मेरी बात सुन ले अब्दुल, मारने वाले की अंतिम इच्छा तो कोई भी पूरी करता है...” मैंने खांसते हुये टूट-टूटकर शब्दों में कहा।

भगवान जाने अब्दुल के दिमाग में क्या आया और उसने मेरा गला छोड़ दिया और फिर मुझे खींचकर बेड की तरफ धक्का दे दिया। मैं गिरी पर बेड के ऊपर। मैंने मेरे गले को सहलाया और फिर खड़े होकर टेबल पर से बिसलेरी पानी की बोतल ली और पानी पिया।


अब्दुल- “जल्दी बोल कुतिया, मेरे पास वक़्त कम है। और सुन मैं तेरी ये बक-बक इसलिए सुनूंगा की तुझे बाद में ये भी बताना है की खुशबू किसके साथ और कहां भागी है?”

मैं- “तुम्हारी बेटी किसी अच्छे लड़के के साथ भागी हो तो? तुम्हें वो हिंदू है उसमें तो कोई प्राब्लम नहीं होनी चाहिए। तुमने थोड़ी देर पहले ये बात कही भी थी...”

अब्दुल- “सच में अच्छा लड़का हो तो वो हिंदू हो या मुस्लिम मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मैंने उसके लिए अच्छा लड़का ढूंढ़ लिया है...”


मैं- “कौन वो इमरान?”

अब्दुल- “हाँ उसका बेटा...”

मैं- “मुझे लगता है तुम्हारी कोई गलती हो रही है, तुम खुशबू की शादी इमरान से करा रहे हो, उसके बेटे से । नहीं..."

मेरी बात सुनकर अब्दुल फिर से भड़क उठा- “तू मुझे पागल समझती है क्या? मैं मेरी बेटी की शादी किसी बूढ़े से क्यों करूंगा?”

मैं- “तू नहीं करा रहा है। लेकिन मेरी एक बात याद रखना कि वो बूढ़ा कर रहा है तेरी बेटी से शादी...”

अब्दुल- “घुमा-घुमा के मत बोल, जो भी कहना है साफ-साफ कह दे...”

मैंने पर्स में से मेरा मोबाइल निकाला और उसमें खुशबू की क्लिप को शुरू करके मोबाइल अब्दुल को देखने को दिया।
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पहले तो अनिच्छा से अब्दुल ने मोबाइल को हाथ में लिया लेकिन बाद में जैसे-जैसे वो क्लिप देखता गया उसके चेहरे का रंग उतरता गया। क्लिप खतम होने के बाद उसने मोबाइल को मेरे हाथ में देकर वो उसके सिर पर हाथ रखकर लेट गया।


मैं- “इमरान तेरी बेटी की शादी उसके बेटे से इसलिए करवाना चाहता है की वो उसे जिंदगी भर भोग सके...”

अब्दुल- “मादरचोद, दोस्ती के नाम पे इतना बड़ा धोखा? भोसड़ी का जानता नहीं की अब्दुल को धोखा देने का मतलब मौत है...”

मैं- “मैं मेरी फ्रेंड के यहां से आ रही थी तभी मैंने खुशबू को एक होटेल में इमरान के साथ देखा। मैंने उस वक़्त क्लिप बनाई थी कि तेरे साथ सोना न पड़े इसलिए। लेकिन बाद में खुशबू से बात की तो मालूम पड़ा की पहली बार इमरान ने उसे जोर जबरदस्ती चोदा और बाद में ब्लैकमेल करता है। और साथ में खुशबू एक लड़के से प्यार भी करती है जो अच्छा है, वो भी मुझे मालूम पड़ा।

तुमने कभी खयाल ही नहीं रखा खुशबू का, पूरा दिन दूसरों । के घर की औरतों को चोदने के चक्कर में तुम्हारी बेटी किस हाल में है वो तूने कभी देखा ही नहीं। मैंने सोचा मैं तुम्हारे साथ एक बार न सोने के लिए ये क्लिप तुम्हें दिखाउँगी और हो सकता है तुम इर के; अब कौन सा । लड़का खुशबू से शादी करेगा ये डर; मारे इमरान के बेटे से खुशबू की शादी करा दोगे तो उस बिन माँ की बच्ची को पूरी जिंदगी इमरान के नीचे सोना पड़ेगा और मैंने तेरे नीचे लेटने का फैसला कर लिया। मैंने तुझे चार बजे इसलिए बुलाया क्योंकी खुशबू पाँच बजे भागने वाली थी। मैंने इस वक़्त मेरी माँ के लिए नहीं तेरी बेटी के लिए तुझसे चुदवाया है..."


मेरी बात खतम होते ही अब्दुल सिर्फ इतना ही बोला- “मैं साला कितना बड़ा चूतिया, जिसकी हवस से तू मेरी बेटी को बचाना चाहती थी, दोपहर को उसी के सहारे मैं मेरी बेटी को छोड़ आया। कुत्ते ने मेरी बेटी को आज भी नहीं छोड़ा होगा...”

* * * * * * * * * *


दूसरे दिन दोपहर को बारह बजे खाना खाते हुये मम्मी ने मुझे बताया- “बेटा, खुशबू की मंगनी वो सातवें माले वाले प्रेम से हुई है, और इस बात का सबको आश्चर्य हो रहा है, और सभी यही एक चर्चा कर रहे हैं की पहली बार हिंदू और मुस्लिम की शादी होगी, उन दोनों के परिवार वालों की मर्जी से...”


सच में अजूबे जैसी बात थी सबके लिए पर मेरे लिए नहीं, मुझे पिछले दिन ये बात हुई थी तब क्या-क्या हुवा
था वो सब याद आ गया।


अब्दुल को अपनी करनी पर अफसोस हुवा। उसके बाद मैंने उसकी और खुशबू की मोबाइल पे बात कराई। खुशबू से बात करते हुये अब्दुल मुझे ए.के-हंगल जैसा लग रहा था। वो मोबाइल पे बात करते हुये रो रहा था, सामने शायद खुशबू भी रो रही थी।


मुझे वो लोग क्या बोल रहे थे वो सुनाई नहीं दे रहा था और उसकी जगह ये गाना सुनाई दे रहा था- “बाबुल की दुवाएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले...”


अब्दुल- “निशा, निशा...” कहकर अब्दुल ने मुझे जगाया, और कहा- “चलो चलते हैं."


मैं- “क्या बात की खुशबू से तूने? उसे वापिस आने को कहा?” मैंने पूछा।


अब्दुल- “नहीं, वो जहां है वहीं उसे रहने दो...”


मैं- "क्यों?”

अब्दुल- “क्यों-क्यों, क्या कर रही हो? मैं उन लोगों को बुलाऊँगा तो दोनों को अलग करना पड़ेगा मुझे...”

मैं- “क्यों?” मैंने फिर से अगले सवाल जैसा ही सवाल किया।

अब्दुल- “बिरादरी के डर से, मैं उन्हें मेरी बिरादरी के सामने अपनी मर्जी से रजा नहीं दे सकता शादी की...”
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