Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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kunal
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

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मेजर कपूर ने ज्योति से पूछा, “ज्योतिजी क्या आप के पति यहाँ नहीं है?”

ज्योति ने सुनीलजी को दिखाते हुए कहा, “कपूर साहब! वह सबसे खूबसूरत महिला जिनके साथ डांस कर रही है वह मेरे पति हैं।”

कपूर साहब बोल पड़े, “अरे वह तो मिसिस जसवंत सिंह है।”

ज्योति ने कहा, “कमाल है साहब, आप अपने आप उन्हें मिसिस जसवंत सिंह क्यों कह रहे हैं?”हाँ वही ज्योतिजी हैं। देखा आपने वह कितना करीबी से मेरे पति के साथ डांस कर रहीं हैं?”

कपूर साहब ने कहा, “तो फिर आपको किसने रोका है? आप भी तो मेरे साथ एकदम करीबी से डांस कर सकती हैं।”

ज्योति ने अपनी आँख नचाते हुए पूछा, “अच्छा? क्या आप की पत्नी बुरा तो नहीं मानेगी?”

कपूर साहब ने कहा, “भाई अगर आपके पति बुरा नहीं मानेंगे तो मेरी पत्नी क्यों बुरा मानेंगी? वह तो खुद ही उन साहब की बाँहों में चिपक कर डांस कर रही है।”

ज्योति ने कहा, “ठीक है फिर तो।” बस इतना बोल कर ज्योति चुप हो गयी। कपूर साहब को तो जैसे खुला लाइसेंस ही मिल गया हो वैसे वह ज्योति को अपनी बाँहों में दबाकर बड़ी उत्कटता से अपनी जाँघों से ज्योति की जांघें रगड़ते हुए डांस करना शुरू किया।

संगीत में चंद मिनटों का ब्रेक हुआ। मेजर कपूर और ज्योति अलग हुए। मेजर कपूर फ़ौरन व्हिस्की के दो गिलास ले आये और ज्योति को एक थमाते हुए बोले, “देखिये मोहतरमा, मैं सरहद पर तैनात हूँ। कल ही सरहद से आया हूँ।

अगले हफ्ते फिर सरहद पर लौटना है। जिस तरह से सरहद पर लड़ाई छिड़ने का माहौल है, पता नहीं कल ही बुलावा आ जाये। और फिर पता नहीं मैं अपने पाँव से चलके आऊं या फिर दूसरों के कंधों पर। पता नहीं फिर हम मिल पाएं भी या नहीं। तो क्यों हम दोनों अकेले ही इस समाँ को एन्जॉय ना करें? कहते हैं ना की “कल हो ना हो”

ज्योति को याद आया की सुनीलजी ने अपनी पत्नी ज्योति को भी यह शब्द कहे थे। ज्योति सोच रही थी की इन शब्दों में कितनी सच्चाई थी। उसने खुद कई सगे और सम्बन्धियों की लाशें खुद देखीं थीं। उसे अपने पिता की याद आ गयी। ज्योति ने भगवान् का शुक्र किया की उसके पिता जख्मी तो हुए थे, पर उनको अपनी जान नहीं गँवानी पड़ी थी।

ज्योति ने एक ही झटके में व्हिस्की का गिलास खाली कर दिया। यहाँ ज्योति के व्यक्तित्व के बारे में एक बात कहनी जरुरी है। वैसे तो ज्योति एक साधारण सी भारतीय नारी ही थी। वह थोड़ी सी वाचाल, बुद्धि की कुशाग्र, शर्मीली, चंचल, चुलबुली और एक पतिव्रता नारी थी।

पर जब उसे शराब का नशा चढ़ जाता था तब ज्योति की हरकतें कुछ अजीबोगरीब हो जाती थीं। ज्योति को जानने वाला यह मान ही नहीं सकता था की वह ज्योति थी। उसके हावभाव, उसकी वाचा, उसके चलने एवं बोलने का ढंग एकदम ही बदल जाता था। यह कहना मुश्किल था की वह असल में ज्योति ही थी।

सुनीलजी को ऐसा अनुभव दो बार हुआ। एक बार ऐसा हुआ की पार्टी में दोस्तों के आग्रह से ज्योति ने कुछ ज्यादा ही पी ली। पिने के कुछ देर तक तो ज्योति बैठी सबकी बातें सुनती रही। फिर जब उसे नशे का शुरूर चढ़ने लगा तब ज्योति ने सुनीलजी के एक दोस्त का हाथ पकड़ कर उस आदमी को सुनील समझ कर उसे चिपक कर उसे सबके सुनते हुए जल्दी से घर चलने का आग्रह करने लगी।

वह जोर जोर से यही बोलती रही की “पार्टी में आने से पहले तो तुम मुझे बार बार कहते थे की आज रात को बिस्तर में सोने के बाद खूब मौज करेंगे? तो चलो ना, अब पार्टी में देर क्यों कर रहे हो? आज तो मेरा भी बड़ा मन कर रहा है। चलो जल्दी करो, कहीं तुम्हारा मूड (??!!) ढीला ना पड़ जाए!” वह सुनीलजी का दोस्त बेचारा समझ ही नहीं पाया की वह रोये या हँसे?

दूसरी बार ज्योति ने दो पेग व्हिस्की के लगाए तब अचानक ही वह योद्धांगिनी बन गयी और वहाँ खड़े हुए सब को चुनौती देने लगी की यदि उसके हाथ में ३०३ का राइफल होता तो वह युद्ध में जाकर दुश्मनों के दाँत खट्टे कर देती। और फिर वह वहाँ खडे हुए लोगों को ऐसे आदेश देने लगी जैसे वह सब लोग फ़ौज की कोई टुकड़ी हो और ज्योति को सेना के जवानों की टुकड़ी का लीडर बनाया गया हो। ज्योति चाहती थी की उस का कमांड सुनकर वहाँ खडे लोग परेड शुरू करें। वह “लेफ्ट, राइट, आगे बढ़ो, पीछे मूड़” इत्यादि कमांड देने लगी थी।

जब वह लोग उलझन में खड़े देखते रहे तब ज्योति ने उन लोगों को ऐसा झाड़ना शुरू किया की, “शर्म नहीं आती, आप सब जवानों को? तनख्वाह फ़ौज से लेते हो और हुक्म का पालन नहीं करते?” इत्यादि।

बड़ी मुश्किल से सुनीलजी ने सबसे माफ़ी मांगीं और ज्योति को समझा बुझा कर घर ले आये। सुनीलजी ने ज्योति को एक बार एक विशेषज्ञ साइक्याट्रिस्ट को दिखाया तो उन्होंने कुछ टेस्ट करने के बाद कहा था, “चिंता की कोई बात नहीं है। ज्योति की नशा हजम करने की क्षमता दूसरे लोगों से काफी कम है। बस ज्योति को शराब से दूर रखा जाय तो कोई दिक्कत नहीं है।

जैसे ही वह ज्यादा नशीली शराब जैसे व्हिस्की, रम, वोदका आदि थोड़ी सी ज्यादा पी लेती हैं तो उनका मन चंचल हो उठता है। जब तक उनपर नशे का शुरुर छाया रहता है तब तक वह उस समय उनके मन में चल रही इच्छा को अपने सामने ही फलीभूत होते हुए देखती है। मतलब वह यातो अपने को कोई और समझ लेती है या फिर किसी और को अपने मन पसंद किरदार में देखने लगती है।

अगर उस समय ज्योति के मन में शाहरूख खानके बारे में विचार होते हैं तो वह किसी भी व्यक्ति को शाहरूख खान समझ लेती है और उससे उसी तरह पेश आती है। उस समय यदि उसका मन कोई फिल्म में एक्टिंग करने का होता है वह खुद को एक्टर समझ लेती है और एक्टिंग करने लग जाती है।

नशा उतरते ही वह फिर अपनी मूल भूमिका में आ जाती है। उसे पता तो चलता है की उसने कुछ गड़बड़ की थी। पर उसे याद नहीं रहता की उसने क्या किया था। तब फिर उसे अफ़सोस होने लगता है और वह अपने किये कराये के लिए माफ़ी मांगने लग जाती है और उस समय उसे सम्हालने वाले पर काफी एहसान मंद हो जाती है।“

साइक्याट्रिस्ट की राय जान कर सुनीलजी की जान में जान आयी। इसी लिए सुनीलजी ख़ास ध्यान रखते थे की ज्योति को कोई ज्यादा मद्य पेय (व्हिस्की, रम, वोदका आदि) ना दे। जब कोई ज्यादा आग्रह करता तो ज्योति को सुनीलजी थोड़ा सा बियर पिने देते, पर बस एकाद घूँट अंदर जाते ही सुनीलजी उसका ग्लास छीन लेते इस डर से की कहीं उसको चढ़ ना जाए और वह कोई नया ही बवंडर खड़ा ना करदे।

पर उस दिन शाम उस समय सुनीलजी कहीं आगे पीछे हो गए और नीतू, कुमार साहब बगैरह लोगों ने मिलकर ज्योति को व्हिस्की पिला ही दी।

नशे का सुरूर ज्योति पर छा रहा था। सेना के जवानों की शूरवीरता और बलिदान की वह कायल थी। वह खुद भी देश के लिए बलिदान करने के लिए पूरी तरह तैयार थी। शराब का नशा चढ़ते ही ज्योति के दिमाग में जैसे कोई बवंडर सा उठ खड़ा हुआ। उसको अपने सामने मेजर कपूर नहीं, कर्नल जसवंत सिंह (सुनीलजी) दिखाई देने लगे। वह सुनीलजी, जो देश के लिए अपनी जान देने के लिए सदैव तैयार रहते थे। वह सुनीलजी जिन्होंने ज्योति के लिए क्या कुछ नहीं किया?
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जब कपूर साहब ने ज्योति से कहा की वह देश के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार थे तो ज्योति सोचने लगी, “जब सुनीलजी देश के लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार थे तो भला ऐसे जाँबाज़ के लिए देशवासियों का भी कर्तव्य बनता है की वह उनके लिए अपना सबकुछ कुर्बान करदें। अगर उनकी इच्छा सेक्स करने की हो तो क्या ज्योति को उनकी इच्छा पूरी नहीं करनी चाहिए?”

ज्योति ने कपूर साहब से कहा, “सुनीलजी, आप मेरे पति की चिंता मत करिये। आप मेरे वचन की भी चिंता मत करिये। जब आप देश के लिए अपनी जान तक का बलिदान करने के लिए तैयार हैं तो मैं आपको आगे बढ़ने से रोकूंगी नहीं। चलिए मैं तैयार हूँ। पर यहां नहीं। यहां सब देखेंगे। बोलिये कहाँ चलें?”

कपूर साहब ज्योति को देखते ही रहे। इनकी समझ में नहीं आया की यह सुनीलजी कौन थे और ज्योति कौनसे वचन की बात कर रही थी? ज्योति उन्हें सुनीलजी कह कर क्यों बुला रही थी? पर फिर उन्होंने सोचा, “क्या फर्क पड़ता है? सुनीलजी बनके ही सही, अगर इतनी खूबसूरत मोहतरमा को चोदने का मौक़ा मिल जाता है तो क्यों छोड़ा जाये, जब वह खुद सामने चलकर आमंत्रण दे रही थी?”

कपूर सर ने कहा, “मुझे कोई चिंता नहीं। आइये हम फिर इस भीड़ से कहीं दूर जाएँ जहां सिर्फ हम दोनों ही हों। और फिर हम दोनों एक दूसरे में खो जाएँ।” यह कह मेजर साहब ने ज्योति का हाथ पकड़ा और उसे थोड़ी दूर ले चले।

ज्योति ने भी उतने जोश और प्यारसे जवाब दिया, “सुनीलजी, मैं आप को प्यार करने ले लिए ही तो हूँ और रहूंगी। आपको मुझे पूछने की जरुरत नहीं।” ज्योति नशे में झूमती हुई मेजर साहब के पीछे पीछे चलती बनी।

कपूर साहब के तो यह सुनकर वारे न्यारे हो गए। उन्होंने हाथ बढ़ाकर ज्योति के टॉप के बटन खोलने शुरू किये। ज्योति भी कपूर साहब की जाँघों के बिच में हाथ डालने वाली ही थी की अचानक नजदीक में ही कपूर साहब को “ज्योति ज्योति” की पुकार सुनाई दी।

वोह आवाज सुनीलजी की थी। उनकी आवाज सुनकर कपूर साहब जैसे ज़मीन में गाड़ दिए गए हों, ऐसे थम गए। ज्योति अँधेरे में इधर उधर देखने लगी की कौन उसे आवाज दे रहा था। कुछ ही देर में सुनीलजी ज्योति और कपूर साहब के सामने हाजिर हुए।

इतने घने अँधेरे में भी सितारोँ की हलकी रौशनी में अपने पति को देखते ही ज्योति झेंप सी गयी और भाग कर उनकी बाँहों में आ गयी और बोली, “सुनील देखिये ना! सुनीलजी मुझसे कुछ प्यारी सी बातें कर रहे थे। वह मुझसे प्यार करना चाहते हैं। क्या मैं उनसे प्यार कर सकती हूँ? तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं है ना?”

सुनीलजी अपनी पत्नी ज्योति को हक्केबक्के देखते ही रह गए। जब उन्होंने कपूर साहब को देखा तो सुनीलजी कुछ ना बोल सके। वह समझ गए की कपूर साहब ज्योति को फुसला कर वहाँ ले आये थे और नशे में धुत्त ज्योति, कपूर साहब को सुनीलजी समझ कर कपूर साहब के साथ वहाँ आयी थी। सुनीलजी किसको क्या कहे?

सुनीलजी को वहाँ देखकर कपूर साहब शर्मिन्दा हो कर सिर्फ “आई ऍम सॉरी” कह कर वहाँ से चलते बने और कुछ ही देर में अँधेरे में ओझल हो गए। सुनीलजी ने प्यार से ज्योति को गले लगाया और कहा, “डार्लिंग, अभी वापस चलते हैं, फिर अपने कमरे में पहुँच कर बात करते हैं।”

सुनीलजी ने अपनी पत्नी ज्योति को प्यार से पकड़ कर अपने साथ ले लिया और कैंटीन की और चल पड़े। कैंटीन में पहुंचकर उन्होंने ज्योति और अपने लिए डिनर मंगवाया और ज्योति को अपने हाथों से खिलाकर ज्योति को प्यार से वैसे ही बच्चे की तरह पकड़ कर अपने स्युईट की और चल दिए।

रास्ते में ज्योति ने अपने पति का हाथ थाम कर उनसे नजरें मिलाकर पूछा, “सुनील, आप बताइये ना, क्या मैंने शराब के नशे में कुछ उलटिपुलटि हरकत तो नहीं की?”

सुनीलजी ने अपनी पत्नी की और प्यारसे देख कर ज्योति के बालों में अपने होँठ से चुम्बन करते हुए कहा, “नहीं डार्लिंग, कुछ नहीं हुआ। तुम थकी हुई हो। थोड़ा आराम करोगी तो सब ठीक हो जाएगा।”

ज्योति अपने पति की बात सुनकर चुपचाप एक शरारत करते हुए पकडे जाने वाले बच्चे की तरह उनके साथ अपने कमरे में जा पहुंची। वहाँ पहुँचते ही ज्योति भाग कर पलंग पर लेट ने लगी पर सुनीलजी ने ज्योति को प्यार से बिठाकर उसका स्कर्ट और टॉप निकाल फेंका।

सिर्फ ब्रा और पेंटी पहने लेटी हुई अपनी खूबसूरत बीबी को कुछ समय तक सुनीलजी देखते ही रहे फिर उसे उसका नाइट गाउन पहनाने लगे। ज्योति ने जब अपने पति को कपडे बदलते हुए पाया तो उसने उठकर अपने आप अपना नाइट गाउन पहन लिया और अपने बदन को इधर उधर करते हुए अपनी ब्रा और पेंटी निकाल फेंकी और लेट गयी।

कोने में जल रही सिगड़ी से दोनों कमरों में काफी आरामदायक तापमान था। सुनीलजी ने देखा की ज्योतिकुछ ही मिनटों में गहरी नींद सो गयी। सुनीलजी अपनी पत्नी को बिस्तर पर बेहोश सी लेटी हुई देख रहे थे। उसका गाउन पलंग पर फैला हुआ उसकी जाँघों के ऊपर तक आ गया था।

ज्योति की नंगी माँसल जाँघों को देख कर सुनील का लण्ड खड़ा हो गया था। वह बेहाल लेटी हुई अपनी बीबी को देख रहे थे की कुछ ही पलों में सुनीलजी को अपनी पत्नी ज्योति के खर्राटे सुनाई देने लगे।

सुनीलजी पलंग के पास से हट कर खिड़की के पास खड़े हो कर सोचते हुए अँधेरे में दूर दूर जंगल की और सितारों की रौशनी में देख रहे थे तब उन्हें भौंकते और रोते हुए भेड़ियों की आवाज सुनाई दी। उन्होंने कई बार शहर में भौंकते हुए कुत्तों की आवाज सुनी थी पर यह आवाज काफी डरावनी और अलग थी। सुनीलजी की समझ में यह नहीं आ रहा था की यह कैसी आवाज थी।

तब सुनीलजी ने सुनीलजी का हाथ अपने काँधों पर महसूस किया। सुनीलजी और ज्योति अपने कमरे में आ चुके थे। ज्योतिजी कपडे बदल ने के लिए वाशरूम में गयी थी।

सुनीलजी को खिड़की के पास खड़ा देख कर सुनीलजी वहाँ पहुँच गए और उन के पीछे खड़े होकर सुनीलजी ने कहा, “यह जो आवाज आप सुन रहे हो ना, वह क्या है जानते हो? यह कोई साधारण जंगली भेड़िये की आवाज नहीं। यह आवाज सेना के तैयार किये गए ख़ास भयानक नस्ल के कुत्तों की आवाज है।“

सुनीलजी ने थोड़ा थम कर फिर बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “सेना में इन कुत्तों को खास तालीम दी जाती है। इनका इस्तेमाल ख़ास कर दुश्मनों के बंदी सिपाही जब कैद से भाग जाते हैं तब उनको पकड़ ने के लिए किया जाता है। उनको अंग्रेजी में “हाऊण्ड” कहते हैं।

यह कुत्ते “हाऊण्ड”, जानलेवा होते हैं। इनसे बचना लगभग नामुमकिन होता है। कैद से भागे हुए कैदी सिपाही के कपडे या जूते इन्हें सुँघाये जाते हैं। अगर कैदी को मार देना है तो इन हाउण्ड को कैदियों के पीछे खुल्ला छोड़ दिया जाता है। हाउण्ड उन कैदियों को कुछ ही समय में जंगल में से ढूंढ निकालते हैं और उनको चीरफाड़ कर खा जाते हैं।

अगर क़ैदियों को ज़िंदा पकड़ना होता है तो सेना के जवान इन हाउण्ड को रस्सी में बाँध कर उनके पीछे दौड़ते रहते हैं। यह हाउण्ड कैदी की गंध सूंघते सूंघते उनको जल्द ही पकड़ लेते हैं।“

सुनीलजी ने बड़ी गंभीरता से कहा, “सुनीलजी मेरी समझ में यह नहीं आता की यह हाउण्ड किसके हैं। हमारी सेना ने तो इस एरिया में कोई हाउण्ड नहीं रखे। तो मुमकिन है की यह दुश्मनों के हाउण्ड हैं। अगर ऐसा है तो हमारी सीमा में दुश्मनों के यह हाउण्ड कैसे पहुंचे? मुझे डर है की जल्द ही कुछ भयानक घटना घटने वाली है।”

सुनीलजी की बात सुनकर सुनीलजी चौंक गए। सुनीलजी ने पूछा, “सुनीलजी कहीं ऐसा तो नहीं की हमारी सेना के कुछ जवानों को दुश्मन ने कैदी बना लिया हो?”

सुनीलजी ने अपने हाथ अपनी स्टाइल में झकझोरते हुए कहा, “ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। यही तो सोचनेवाली बात है। कुछ ना कुछ तो खिचड़ी पक रही है, और वह क्या है हमें नहीं पता।”

सुनीलजी ने घूमकर सुनीलजी का हाथ थामकर कहा, “सुनीलजी, आप बहुत ज्यादा सोचते हो। भला दुश्मन के सिपाहियों की इतनी हिम्मत कहाँ की हमारी सीमा में घुस कर ऐसी हरकत करें? क्या यह नहीं हो सकता की हम अपना दिमाग बेकार ही खपा रहे हों और वास्तव में यह आवाज जंगली भेड़ियों की ही हो?”

सुनीलजी ने हार मानते हुए कहा, “पता नहीं। हो भी सकता है।”

सुनीलजी ने सुनीलजी की नजरों से नजर मिलाते हुए पलंग में लेटी हुई अपनी बीबी ज्योति की और इशारा करते हुए कहा, “फिलहाल तो मुझे ज्योति के खर्राटों की दहाड़ का मुकाबला करना है। पता नहीं आपने उस पर क्या वशीकरण मन्त्र किया है की वह आपकी ही बात करती रहती है।”

सुनीलजी की बात सुनकर सुनीलजी को जब सकते में आते हुए देखा तो सुनीलजी मुस्कुराये और फिर से सुनीलजी का हाथ थाम कर अपने पलंग के पास ले गए जहां ज्योति जैसे घोड़े बेचकर बेहाल सी गहरी नींद सो रही थी। अपनी आवाज में कुछ गंभीरता लाते हुए सुनीलजी ने कहा, “सुनीलजी मैं आपसे एक बात पूछना चाहता हूँ। क्या आप बुरा तो नहीं मानेंगे?”

बड़ी मुश्किल से ज्योति की माँसल जाँघों पर से अपनी नजर हटाकर सुनीलजी ने आश्चर्य भरी निगाहों से सुनीलजी की और देखा। अपना सर हिलाते हुए सुनीलजी ने बिना कुछ बोले यह इशारा किया की वह बुरा नहीं मानेंगे। सुनीलजी बोले,”सुनीलजी, क्या आप अब मुझे और ज्योति को अपना अंतरंग साथी नहीं मानते?”

सुनीलजी ने जवाब दिया, “हाँ मैं और ज्योति आप दोनों को अपना घनिष्ठ अंतरंग साथी मानते हैं। इसमें पूछने वाली बात क्या है?”

सुनीलजी ने कहा, “तब फिर क्या हम दोनों पति पत्नी की जोड़ियों में कोई पर्दा होना चाहिए?”

सुनीलजी ने फ़ौरन कहा, “बिलकुल नहीं होना चाहिए। पर आप यह क्यों पूछ रहे हैं?”

सुनीलजी ने कहा, “मैं भी यही मानता हूँ। पर मैं यहां यह कहना चाहता हूँ की कुछ बातें इतनी नाजुक होती हैं, की उन्हें कहा नहीं जाना चाहिए। हम लोगों को उन्हें बिना कहे ही समझ जाना चाहिए। मैं हम दोनों पति पत्नियों के बिच के संबंधों की बात कर रहा हूँ। मैं चाहता हूँ की हम दोनों जोड़ियों के बिच किसी भी तरह का कोई भी परायापन ना रहे…

अगर हम सब एकदूसरे के घनिष्ठ अंतरंग हैं तो फिर खास कर अपने पति या अपनी पत्नी के प्रति एक दूसरे के पति या पत्नी से सम्बन्ध के बारे में किसी भी तरह का मालिकाना भाव ना रक्खें। मुझे यह कहने, सुनने या महसूस करने में कोई परेशानी या झिझक ना हो की ज्योति आपसे बेतहाशा प्यार करती है और आपको भी वैसे ही ज्योतिजी के बारे में हो।”
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सुनीलजी ने सुनीलजी का हाथ थामते हुए कहा, “बिलकुल! मेरी और ज्योति की तो इस बारे में पहले से ही यह सहमति रही है।

फिर सुनील की और प्यार से देखते हुए सुनीलजी बोले, “सुनीलजी, आप चिंता ना करें। आप और ज्योति के बिच के भाव, इच्छा और सम्बन्ध को मैं अच्छी तरह जानता और समझता हूँ। मेरे मन में आप और ज्योति को लेकर किसी भी तरह की कोई दुर्भावना नहीं है। आप दोनों मेरे अपने हो और हमेशा रहोगे। आप दोनों के बिच के कोई भी और किसी भी तरह के सम्बन्ध से मुझको कोई भी आपत्ति नहीं है ना होगी।”

पलंग पर मदहोश लेटी हुई ज्योति की और देखते हुए अपनी आवाज में अफ़सोस ना आये यह कोशिश करते हुए सुनीलजी ने कहा, “जहां तक मेरा और ज्योति के सम्बन्ध का सवाल है, तो मैं यही कहूंगा की ज्योति की अपनी कुछ मजबूरियां हैं। मैं भी ज्योति से बेतहाशा प्यार करता हूँ। मैं ज्योति की बड़ी इज्जत करता हूँ और साथ साथ में उसकी मजबुरोयों की भी बड़ी इज्जत करता हूँ।”

यह कह कर सुनीलजी बिना कुछ और बोले अपने मायूस चेहरे को सुनीलजी की नज़रों से छुपाते हुए, बिच वाले खुले किवाड़ से अपने पलंग पर जा पहुंचे जहां ज्योति ने अपनी बाँहें फैलाकर उनको अपने आहोश में ले लिया। दोनों पति पत्नी एक दूसरे से लिपट गए।

सुनील जी हैरान से देख रहे थे की उनकी निगाहों की परवाह किये बगैर सुनीलजी ज्योति को पलंग पर लिटा कर उसके ऊपर चढ़ गए और ज्योति के गाउन के ऊपर से ही ज्योति के बड़े मम्मों को दबाने लगे।


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दोनों कमरे पूरी तरह प्रकाशित थे। सुनील ज्योति और सुनीलजी को अच्छी तरह प्यार करते हुए देख सकते थे। सुनीलजी ने ज्योति के कानों में कुछ कहा। यह सुनकर ज्योति कुछ मुस्कुरायी और उसने शरारत भरी नज़रों से सुनील की और अपना सर घुमा कर देखा।

फिर अपनी हथेली को किस कर ज्योति ने एक फूंक मार कर जैसे उस किस को सुनीलजी की दिशा में फेंकने का इशारा किया और अपने पति सुनीलजी के निचे लेटी हुई ज्योति अपने पति सुनीलजी के पयजामे में हाथ डाल कर उनका लण्ड एक हाथ में पकड़ उसे सहलाने लगी।

ज्योति के साथ दिन में हुए कई निजी सम्पर्कों की वजह से सुनीलजी काफी उत्तेजित थे। ज्योति का हाथ लगते ही सुनीलजी का लण्ड खड़ा होने लगा। ज्योति के थोड़े से हिलाने पर ही उसने अपना पूरा लंबा और मोटा आकार धारण कर लिया।

ज्योति ने फ़टाफ़ट सुनीलजी के पाजामे का नाडा खोला और अपने पति के लण्ड को आज़ाद कर उस को लण्ड प्यार से हिलाने और सहलाने लगी। सुनीलजी ने सुनीलजी की नज़रों के परवाह किए बगैर ज्योति के छाती के आगे वाली ज़िप खोल दी और ज्योति ने उन्मत्त स्तनोँ को दोनों हाथों की हथेलियाँ फैलाकर उनसे खेलने लगे।

सुनीलजी और उनकी बीबी ज्योति की उनके पलंग पर हो रही प्रेमक्रीड़ा देख कर सुनीलजी का लण्ड भी उनके पाजामे में फुंफकारने लगा। उन्हीने भी ज्योति की छाती वाली ज़िप खोल कर ज्योति के उन्मत्त स्तनोँ को अपने बंधन से आजाद किया और अपने हाथों की हथेलियों में लेकर वह भी उन से खेलने लगे।

अपने पति की हरकतें महसूस कर ज्योति नींद में से जाग गयी। जागते ही उसे समझ में आया की शराब पीने के बाद उसने कुछ गलत हरकत की थी। उसे धुंधला सा मेजर कपूर साहब का चेहरा याद आ रहा था पर आगे कुछ नहीं याद आ रहा था।

ज्योति अपने आप दोषी महसूस कर रही थी। उसे यह तो समझ में आ रहा था की कहीं ना कहीं उसने मेजर कपूर के साथ ऐसा कुछ किया था जिससे उसकी अपनी और उसके पति सुनीलजी की इज्जत को उसने ठेस पहुंचाई थी। अगर सुनीलजी वहाँ सही समय पर नहीं पहुँचते तो पता नहीं शायद मेजर कपूर ज्योति को चोद ही देते और शायद इसके लिए ज्योति ने खुद सहमति दिखाई होगी क्यूंकि वरना इतने लोगों के सामने उनकी क्या हिम्मत की वह ज्योति पर जबरदस्ती कर सके?

ज्योति अपने पति सुनीलजी की दोषी भी थी और साथ साथ में आभारी भी थी क्यूंकि उन्होंने ज्योति को उस बदनामी और अपराध से बचा लिया. और फिर ज्योति का वचन भी ना टूटा। ज्योति ने तय किया की उसको इसके लिए अपने पति को कुछ पारितोषिक (उपहार) तो देना ही चाहिए। भला एक खूबसूरत पत्नी अपने पति से अगर दिल खोल कर बढ़िया चुदाई करवाए तो उससे कोई भी पति के लिए और बढ़िया पारितोषिक क्या हो सकता है?

पर इस में एक और मुश्किल थी। सुनीलजी के और उनके कमरे के बिच वाला किवाड़ खुला जो था उपर से कमरे की बत्तियां भी जल रहीं थीं। ऐसे में अगर वह स्वच्छंद चुदाई करवाना चाहे तो ख़ास करके उन्हें चुदाई करते हुए नंगी देख सकते हैं। यह सच था की ज्योति सुनीलजी के सामने आधी से भी ज्यादा नंगी तो हुई ही थी, पर पूरी तरह से नंगी होना और चुदाई करवाते हुए किसी को दिखाना एक अलग बात थी।

हालांकि जब ज्योति यह सब सोच रही थी तब ज्योतिजी अपने पति सुनीलजी से काफी कुछ सेक्स की अठखेलियां कर रही थी। ज्योति ने एक बार उन दोनों को नंगी हरकतें करते हुए देखा भी। पर उसने फिर अपनी आँखें फिरा लीं और उनकी हरकतों को अनदेखा कर दिया। ज्योति ने अपने पति को अपने पास खींचा और बोली, “हाय राम! इन्हें तो देखो! कैसे खुल्लम खुल्ला बेशर्मी से एक दूसरे से मस्ती कर रहे हैं?”

फिर कुछ बेफिक्री की अदा दिखाते हुए ज्योति ने कहा, “वैसे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें जो करना है वह करे! आखिर वह पति पत्नी जो हैं? पर मैं ऐसा आपके साथ खुल्लमखुल्ला नहीं कर सकती और कम से कम सुनीलजी के सामने तो बिलकुल नहीं। ”

सुनीलजी ने ज्योति को अपनी बाँहों में खींचते हुए कहा, “अरे यार तुम ना? बेकार की इन चक्करों में पड़ी रहती हो। आ जाओ चलो खुल्लमखुल्ला ना सही, चद्दर के निचे तो करने दोगी लोगी ना? इनको देख कर तो मेरा लण्ड भी खड़ा हो रहा है। क्या तुम मेरा इलाज नहीं करोगी?”

ज्योति ने अपने पति सुनीलजी से कहा, “हे भगवान्! मैं क्यों नहीं करुँगी? मैं जानती हूँ की ट्रैन में मैं आपको अच्छी तरह से आनंद दे नहीं पायी। हमेशा कोई उठ जाएगा, कोई देख लेगा यह डर रहता था। पर आज मौक़ा है। मेरा भी मन आप से जबरदस्त करवाने का है। पर आपने तो यहां मेरे लिए इस किवाड़ को खुला रख कर एक मुसीबत ही खड़ी कर दी है। अब मैं आपसे कैसे खुल्लमखुल्ला करवा सकती हूँ? क्या हम यह किवाड़ बंद नहीं कर सकते?”

सुनीलजी ने अपनी बीबी की और देखा और उसे अपनी बाँहों में ले कर उसके गाउन में हाथ डालकर उसकी चूँचियों को मसलते हुए कहा, “जानेमन, हमने सब मिलकर यह तय किया था की हम दोनों कपल एक दूसरे के बिच पर्दा नहीं रखेंगे। तुमने यह वचन ज्योतिजी को भी दिया था।“

ज्योति अपने पतिकी बात सुनकर चुप हो गयी। फिर उसने अपने पति के कान में मुंह डाल कर धीरे से कहा, “ठीक है, पर लाइट तो बंद करो?”

सुनीलजी ने कहा, “देखो तुमने कहा तो मैं मान गया की चलो चद्दर के निचे चोदेंगे। अब तुम कह रही हो लाइट बंद करो! तुम्हारी शर्तें तो हर पल बढ़ती ही जाती हैं। लगता है तुम्हें चुदवाने का मूड़ नहीं है। अगर ऐसा है तो साफ़ साफ़ कहो। मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहता। पर अगर लाइट बंद करने मैं गया तो वह जो तुम्हारा आर्मी वाला आशिक है ना? वह दहाड़ने लगेगा! अगर फिर भी तुम्हें लाइट बंद करनी ही हो तो तुम उठो, मैं तो नहीं जाऊंगा। तुम्ही खड़ी हो कर जाओ और जाकर खुद ही लाइट बंद करो। फिर अगर सुनीलजी गुस्सा होंगे तो मुझे मत कहना।”

ज्योति सोच में पड़ गयी। सुनीलजी को बात तो सही थी। एक बार पहले भी तो ज्योति सुनीलजी से झाड़ खा चुकी थी जब ज्योति स्विमिंग कॉस्च्यूम में सुनीलजी के सामने जाने में हिचकिचा रही थी।

कुछ सोच कर ज्योति ने कहा, “चलो ठीक है। आखिर वह मियाँ बीबी हैं तो हम भी तो मियाँ बीबी ही है ना? अगर हम एक दूसरे से सेक्स करते हैं तो कौनसी नयी बात है? हर मियाँ बीबी रात को सेक्स तो करते ही है ना?”

सुनीलजी ने ज्योति के मुंह पर हाथ रख कर कहा, “डार्लिंग! हम यहां घूमने आये हैं। अगर तुम घुमा फिरा कर ना बोलो औरअगर चुदाई की ही बात करती हो तो बोलो चुदाई करवानी है! अगर ऐसा बोलोगी तो कौनसा पहाड़ टूट पड़ने वाला है? खुल्लम खुल्ला बोलो तो चोदने का और मजा आता है।”

ज्योति ने अपनी ही लाक्षणिक अदा में अपने पति को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करती मुद्रा में कहा, “अच्छा मेरे पतिदेव, मैं हारी और तुम जीते। ठीक है भाई। चलो अब मैं सेक्स नहीं चुदाई ही कहूँगी, बस? खुश? तो चलो, पर फिर मेरी चुदाई करने के लिए तैयार हो जाओ।”

सुनीलजी ने अपना खड़ा लण्ड अपनी बीबी के हाथों में देते हुए कहा, “मैं तो कब का तैयार हूँ यह देखो।”

ज्योति ने अपने पति का लण्ड सहलाते हुए कहा, “हाँ भाई, यह तो बिलकुल लोहे की छड़ की तरह खड़ा है! और अपना रस भी खूब निकाल रहा है!” फिर थोड़ी धीमी आवाज में ज्योति ने अपने पति के कानों में अपना मुंह डाल कर फुफुसाते हुए पूछा, “सच सच बताना, क्या ज्योति दीदी ने आज नहाते हुए अंगूठा दिखा क्या? उन्हें चोदने का मौक़ा नहीं मिला क्या?”

अपनी बीबी ज्योति की बात सुन कर सुनीलजी थोड़ा सा झेंप गए और बोले, “देखो डार्लिंग! सच कहूं? आज अगर मैं दस बार भी चोदुँगा ना? तो भी मेरा लण्ड ऐसा ही खड़ा रहेगा क्यूंकि चुदाई का मौसम है। मैं तो इस कैंप में आने के लिए इसी लिए तैयार हुआ था की यहां आते ही हम सब मिलकर खूब चुदाई करेंगे। शायद सुनीलजी के मन में यह बात नहीं हो तो कह नहीं सकता। पर उन दोनों को अभी चुदाई की तैयारी करते हुए देख कर ऐसा तो नहीं लगता। और तुम यह मत कहना की तुम्हें पता नहीं था।”
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kunal
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Re: Erotica साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन complete

Post by kunal »

ज्योति समझ गयी की उसके पति ने भले ही सीधासाधा ना माना हो की उन्होंने ज्योतिजी को चोदा था। पर इधर उधर बात घुमाते हुए यह कबूल कर ही लिया की उन्होंने ज्योतिजी की चुदाई उस वाटर फॉल के निचे जरूर ही की थी। पर बीबी जो थी! पति ने अगर ज्योतिजी की चुदाई की तो वह जरूर उनसे कबूल करवाना चाहेगी।

ज्योति ने कहा, “तो फिर तुम भी खुल्लमखुल्ला यह क्यों कबूल नहीं कर लेते हो की तुमने उस वाटर फॉल के निचे दीदी को अच्छी तरह से चोदा था?”

सुनीलजी की बोलती बंद हो गयी। अब वह झूठ तो बोल नहीं सकते थे। उनकी उलझन देख कर ज्योति मुस्कराई और बोली, “चलो, छोडो भी, मुझे झूठ सुनना अच्छा नहीं लगेगा और सच बोलने की आपमें हिम्मत नहीं है। तो मैं कह देती हूँ की आज तुमने उस वाटर फॉल के निचे दीदी को खूब अच्छी तरह से चोदा था। अगर मेरी बात सही है तो तुम्हें कुछ बोलने की जरुरत नहीं है। और अगर मेरी बात गलत है तो तुम मना करो।”

सुनीलजी के चेहरे पर यह सुनकर हवाइयाँ उड़ने लगीं। वह चुप रहे। तब ज्योति ने मुस्कराते हुए कहा, “आपका स्टैमिना मानना पडेगा मेरे पतिदेव! ज्योतिजी को आज ही चंद घंटों पहले इतना चोदने के बाद भी अगर तुम्हारा लण्ड ऐसा तैयार है तो भाई मेरे खसम का जवाब नहीं।” फिर अपने पति का लण्ड हिलाते हुए ज्योति ने अंग्रेजी झाड़ते हुए कहा, आई एम् प्राउड ऑफ़ यू डिअर हस्बैंड!”

सुनीलजी धीरे धीरे बीबी की बात सुनकर थोड़ा सम्हले और चद्दर से अपने आपको ढकने की परवाह ना करते हुए वह ज्योति के ऊपर चढ़ कर ज्योति को अपनी बाँहों में लेकर अपना मुंह ज्योति के मुंह से सटाकर अपनी बीबी को गहरा चुम्बन करने लगे।

दोनों हाथों से ज्योति की मदमस्त चूँचियों को कुछ देर तक मसलते रहे और फिर बोले, “देखो डार्लिंग! अब हम दोनों कपल मित्रता से कहीं आगे बढ़ चुके हैं। क्या यह सब हमने जानबूझ कर नहीं किया है? तुम क्या यह मानती हो की नहीं?

आज स्विमिंग करते हुए जो हुआ वह तो होना ही था। मैं तो कहता हूँ, तुम भी क्यों बेचारे सुनीलजी को तड़पा रही हो? क्या फरक पड़ता है? मैं जानता हूँ और तुम भी जानती हो की वह तुम्हें चोदने के लिए कितने बेताब हैं। हमें कौन देखेगा की हमने क्या किया?

अगर तुम यह सोच रही हो की कहीं आगे चलकर कभी हम दोनों के बिच कोई रंजिश हो जाए तो कहीं मैं तुमपर तुम्हें सुनीलजी से चुदवाने के बारे में ताना मारूंगा तो भरोसा रखो की ऐसा कभी भी नहीं होगा। इस बात का मुझ पर पूरा भरोसा रखो। मैं कभी भी यह ताना नहीं मारूंगा। बोलो क्या इसी लिए तुम अड़ी हुई हो?”

ज्योति ने अपना सर हिलाते हुए कहा, “डार्लिंग! तुमतो बात का बतंगड़ बना रहे हो। ना भाई ना, ऐसी कोई बात नहीं है। मुझे मेरे लम्पट पति पर पूरा भरोसा है। मैं जानती हूँ की तुम ऐसा कुछ भी बोलोगे नहीं। तुम बोल कैसे सकते हो? जब तुम खुद ही मेरे सामने किसी और की बीबी को चोदते हो तब? और अगर तुमने कहीं गलती से भी ऐसा उल्टापुल्टा बोल दिया ना? तो मैं उसी वक्त तुम्हारा घर छोड़ कर चली जाउंगी। बात वह नहीं है।”

सुनीलजी ने पूछा, “तब बात क्या है डार्लिंग? बोलो ना? क्या तुम माँ के दिए हुए वचन से चिंतित हो? तो फिर माफ़ करना, पर तुम्हारी माँ कहाँ यहां आकर देखने वाली है की तुमने उसका वचन रखा या तोड़ा?”

अपने पति की बात सुनकर ज्योति अपने पति से एकदम अलग हो गयी। और कुछ रंजिश और कुछ गुस्से में बोली, “देखो डार्लिंग! मैं एक बात साफ़ कर देती हूँ। आपने और सुनीलजी ने अगर मिलकर बीबी बदल कर चोदने की बात को अगर एग्री किया है तो बोलो। तुमने मुझे पहले से ही कहा था की ऐसी बात नहीं है…

मैंने भी आपको पहले से ही कहा था की मैं कोई नैतिकता की देवी नहीं हूँ। शादी से पहले मैंने चुदवाया तो नहीं था पर जवानी के जोश में दो लड़कों का लंड जरूर हिलाया था और उनका माल निकाला भी था। मैं तुम्हें इसके बारे में बता चुकी हूँ। मैंने तुम्हें यह भी बताया था की सुनीलजीने उस सिनेमा हॉल में अपना लण्ड मुझसे छुवाया था और उन्होंने मेरी ब्रेअस्ट्स दबायी भी थीं…

आज झरने में स्विमिंग सीखते हुए जब मैं डूबने लगी थी तब अफरातफरी में आज फिर उनका लण्ड मेरे हाथों में आ गया था। उन्होंने जाने अनजाने में मेरी ब्रेअस्ट्स भी दबायी थीं। बल्कि कुछ पल के लिए तो मैं भी अपना होशो हवास खो बैठी थी पर उन्होंने मुझे सम्हाला और कहा की वह मेरी माँ का दिया हुआ वचन मुझे तोड़ने नहीं देंगे। वह एक सच्चे दिलके मालिक है और मैं भी एक राजपूतानी हूँ। मैंने तुम्हें साफ़ कर बता दिया है और अब हम इस के बारे में बात ना करें तो ही अच्छा है।”

.......................

ज्योति ने अपने पति को झाड़ तो दिया पर उनकी बातें सुनकर वह बहुत गरम हो गयी थी। उसकी चूत में से रस चू ने लगा था। वह सुनीलजी से तो चुदवा नहीं सकती थी पर अपने पति से जरूर चुदवा सकती थी। पति की उकसाने वाली बातें सुनकर उसकी चुदवाने की इच्छा तेज हो गयी। सुनीलजी तो अपना लोहे की छड़ जैसा लण्ड लेकर तैयार ही थे।

तब अचानक ही ज्योति को ज्योतिजी के कराहने की आवाज सुनाई दी। ज्योति ने ना चाहते हुए भी सुनीलजी और ज्योति के कमरे की और मुड़कर देखा तो पाया की सुनीलजी दोनों घुटनों पर बैठ कर अपनी बीबी ज्योतिजी पर सवार हुए थे और अपना मोटा लंबा लौड़ा बेचारी ज्योतिजीकी छोटी सी चूत में पेले जा रहे थे।

ज्योति सुनीलजी और ज्योतिजी की चुदाई देखती ही रह गयी। चाहते हुए भी वह अपनी नजर वहाँ से हटा नहीं सकी। सुनीलजी का जोश और सुनीलजी के चिकने प्रकाश में चमकते हुए लण्ड को ज्योतिजी की रस से लथपथ चूत में से अंदर बहार होते हुए देख ज्योति पर जैसे कोई तांत्रिक सम्मोहिनी का वशीकरण किया गया हो वैसे ज्योति एकटक ज्योतिजी और सुनीलजी की खुल्लमखुल्ला चुदाई देखने लगी। वह भूल गयी की उसका पति का फुला हुआ चिकना लण्ड उसकी हथेली में फर्राटे मार रहा था।

वैसे तो सुनीलजी ने चुदाई के कुछ अश्लील वीडियोस ज्योति को दिखाए थे। पर यह पहली बार था की ज्योति कोई मर्द और औरत लाइव चुदाई देख रही थी। उन वीडियो को देख कर ज्योति को इतनी उत्तेजना महसूस नहीं हुई थी जितनी उस समय उसकी दीदी की ज्योति के अपने गुरु और प्रेमी सुनीलजी को चोदते हुए देख कर हो रही थी। ज्योति का रोम रोम रोमांच से इस ज़िंदा प्रत्यक्ष साकार चुदाई देख कर कम्पन महसूस कर रहा था।

ज्योति ने महसूस किया की ज्योतिजी की छोटीसी चूत में जब सुनीलजी अपना घड़े जैसा लण्ड घुसाते थे तो बेचारी छोटीसी जयोतिजी का पूरा बदन काँप उठता था।

ज्योति को सुनीलजी और ज्योतिजी की चुदाई को मन्त्र मुग्ध हो कर देखते हुए जब सुनीलजी ने देखा तो ज्योति को हिलाकर बोले, “तुम तो अपनी चुदाई उनको दिखाना नहीं चाहती थी, पर अब उनको चोदते हुए इतने ध्यान से देखने में तुम्हे कोई परहेज क्यों नहीं है? अरे भाई अगर तुम उनकी चुदाई देख सकती हो तो वह तुम्हारी चुदाई क्यों नहीं देख सकते? यह कहाँ का न्याय है?”

ज्योति ने जबरन अपनी नजरें सुनीलजी के लण्ड पर से हटायीं और अपने पति की और देख कर मुस्करायी और बोली, “तुम मर्द लोग बड़े ही बेशर्म हो। देखो तो; ना तो तुम्हें सुनीलजी और दीदी की चुदाई देखने में कोई लज्जा आ रही है और ना तो सुनीलजी को अपनी बीबी को हमारे सामने चोदने में कोई हिचकिचाहट महसूस हो रही है।”

सुनीलजी ने कहा, “डार्लिंग, एक बात बताओ। क्या हम सब नहीं जानते की हर मर्द लगभग हर रात को अपनी बीबी को चोदता है? क्या हर औरत अपने मर्द से रात को चुदवाती नहीं है? जब यह सब साफ़ साफ़ सब जानते हैं तो फिर अपनों के सामने ही अगर हम अपनी अपनी बीबी को चोदे तो यह बताओ की तुम्हें क्या हर्ज है? तुम्ही ने तो कबूल किया था की तुम तुम्हारी दीदी और सुनीलजी से कोई पर्दा नहीं करोगी। तुम ने ज्योतिजी से यह वादा भी किया था की तुम सुनीलजी अगर तुम्हारा बदन छुएंगे तो कोई विरोध नहीं करोगी। तब अगर यह मियाँ बीबी चुदाई करते हैं तो तुम्हें क्यों आपत्ति हो रही है?”

ज्योति की नजर फिर बरबस सुनीलजी और ज्योतिजी की चुदाई की और चली गयी। इस बार ज्योति ने देखा की सुनीलजी ने भी ज्योति की और देखा। ज्योति को समझ नहीं आ रहा था की वह गुस्साए या मुस्काये। सुनीलजी ने अपनी बीबी की चूत में लण्ड पेलते हुए ही ज्योति की और देखा और बड़ी ही सादगी से मुस्कराये।

ज्योति को शक हुआ की शायद उनकी मुस्कान में कुछ रंजिश की झलक भी दिख रही थी। ज्योति यह जानती थी की उस समय कहीं ना कहीं सुनीलजी के मन में यह भाव भी हो सकता है की काश वह उस समय उनकीअपनी बीबी ज्योति को नहीं बल्कि सुनीलजी की बीबी ज्योति को चोद रहे होते। यह सोचते ही ज्योति काँप उठी।

सुनीलजी के लण्ड को ज्योतिजी की छोटी सी चूत में घुसते समय हर एक बार ज्योति जी की जो कराहट उनके मुंह से निकल जाती थी उससे ज्योति को अच्छा खासा अंदाज हो रहा था की ज्योतिजी चुदाई के आनंद के साथ साथ काफी मीठा दर्द भी बर्दाश्त कर रही होंगी। वह दर्द कैसा होगा? यह तो जब ज्योति सुनीलजी से चुदवायेगी तब ही उसे पता लगेगा। ज्योति अब यह अच्छी तरह जान गयी थी की वह इस जनम में तो नहीं होगा।

ज्योतिजी भी अपने पति का घोड़े जैसा लण्ड लेकर काफी उत्तेजित लग रहीं थीं। अपने पति के साथ साथ ज्योति ज्योतिजी का स्टैमिना देख कर भी हैरान रह गयी। ज्योतिजी ने सुनीलजी से उस दोपहर चुदवाया था यह तो स्थापित हो चुका था। और ज्योति यह भी जानती थी की उसके पति कैसी जबरदस्त चुदाई करते हैं। जब वह चोदते हैं तो औरत की जान निकाल लेते हैं।

ज्योति को इसका पूरा अनुभव था। ज्योति यह भी जानती थी की ज्योतिजी की चूत का द्वार एकदम छोटा था। सुनीलजी से चुदवाने के बाद अगर वह सुनीलजी के इतने मोटे लण्ड से चुदवा रही थी तो मानना पडेगा की ज्योतिजी की दर्द सहन करने की क्षमता बहुत ज्यादा थी।

ज्योति ने अपने मन ही मन में गहराई से सोचने लगी। आखिर उसके पति सुनीलजी की बात तो सही थी। हर औरत अपने मर्द से चुदवाती तो है ही। हर मर्द भी लगभग हर रात को अपनी बीबी को चोदता ही है। यह तो पूरी दुनिया जानती है, चाहे वह इस बात को किसी से ना कहे। सुनीलजी भी जानते थे की सुनीलजी ज्योति को कैसे चोदते थे। बल्कि उस रात ट्रैन में तो जरूर सुनीलजी ने ज्योति और सुनील की चुदाई कम्बल के अंदर होती हुई देखि भले ना हो पर महसूस तो जरूर की होगी।

जब उस समय सुनीलजी और ज्योतिजी की चुदाई ज्योति बड़ी ही बेशर्मी से खुद देख रही थी तो उसे कोई अधिकार नहीं था की वह सुनीलजी और ज्योतिजी से अपनी चुदाई छुपाये। क्या उन दोनों को भी ज्योति की चुदाई देखने का अधिकार नहीं है? ज्योति के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था।

ज्योति ने आखिर में हार कर अपने पति के कानों में बोला, “सुनीलजी, आपसे ना? बहस करना बेकार है। देखिये मैं आपकी बीबी हूँ। मेरी लाज की रक्षा करना आपका कर्तव्य है। अगर आप ही मेरी इज्जत नीलाम करोगे तो फिर मैं कहाँ जाउंगी?”

सुनीलजी अपने मन में ही मुस्काये। उनको महसूस हुआ की उस रात पहेली बार उनकी बीबी ज्योति चुदाई के मामले में उनके साथ एक कदम और चलने के लिए मानसिक रूप से तैयार हुई थी।

सुनीलजी ने एक चद्दर ज्योति पर डाल दी और उसका गाउन निकाल दिया और बोले, “क्या तुम्हें कभी भी ऐसा लगा की सुनीलजी, मैं और ज्योतिजी हम तीनों में से कोई भी तुम्हारी इज्जत नहीं करता? क्या तुम्हें ऐसा शक है की अगर मैं तुम्हें चोदुँगा तो तुम्हारी इज्जत हम तीनों की नजर में कम हो जायेगी? अरे भाई, हम पति पत्नी हैं। अगर हम चुदाई करती हैं तो तुम्हारी इज्जत कैसे कम होगी?”

ज्योति ने अपने पति की बात का कोई जवाब नहीं दिय। ज्योति समझ गयी थी की उसके पति उसको तर्क में तो जितने नहीं देंगे। ज्योति खुद सुनीलजी और ज्योतिजी की चुदाई देख कर काफी उत्तेजित हो गयी थी। उनकी खुल्लम खुली चुदाई देखकर उसकी हिचकिचाहट कुछ तो कम हुई ही थी, पर फिर भी जब तक सुनीलजी ज्यादा आग्रह नहीं करंगे तो भला वह कैसे मान सकती है? आखिर वह एक मानिनी भी तो है? उसको दिखावा करना पडेगा की वह तो राजी नहीं थी, पर पति की जिद के आगे वह करे भी तो क्या करे?

ज्योति इस उलझन में थी की तब अचानक ही उन्हें सुनीलजी की हाँफती हुए आवाज सुनाई दी। वह बोले, “सुनीलजी और ज्योति, अब ज्यादा बातचीत किये बिना जो करना है जल्दी करो। कल जल्दी सुबह चार बजे ही उठ कर पांच बजे मैदान पर पहुँचना है।”

ज्योति ने सुनीलजी के पलंग की और देखा तो पाया की सुनीलजी पूरी तरह जोशो खरोश से ज्योतिजी को चोद रहे थे और शायद उनका मामला अब लास्ट स्टेज पर पहुंचा हुआ था। सुनीलजी कस कस के ज्योतिजी की चूत में अपना लण्ड पेले जा रहे थे। पुरे कमरे में उनकी चुदाई की “फच्च, फच्च” की आवाज गूंज रही थी।

जैसे ही सुनीलजी का लण्ड पूरा ज्योतिजी की चूत में घुस जाता था और उनका अंडकोष ज्योतिजी की गांड पर फटाक फटाक थपेड़ मार रहा था, तो उस थपेड़ की “फच्च फच्च” आवाज के साथ ज्योतिजी की एक कराहट और सुनीलजी का “उम्फ… उम्फ…” की आवाज भी उस आवाज में शामिल होजाती थी।

उनकी चुदाई की तीव्रता के कारण उनका पलंग इतना सॉलिड होते हुए भी हिल रहा था। ज्योति ने देखा की ज्योतिजी की खूबसूरत चूँचियाँ सुनीलजी के धक्के के कारण ऐसी हिल रहीं थीं जैसे तेज हवा में पत्ते हिल रहे हों।
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