कविता- तो फिर देखो लेकिन औरत देखने की नहीं महसूस करने की चीज़ है। आओ हमारे पास और महसूस करो हमको। कविता ने इठलाते हुए कहा।
जय उसके करीब गया और कविता की नंगी पीठ को ऊपर से सहलाते हुए उसकी कमर तक हाथ फेरा। उसकी पीठ पर जो तिल थे, उसे चूमा और एक हाथ कविता की गांड पर दूसरे से कविता की बांयी चूची को थाम लिया। जय ने इसे पहले भी महसूस किया था, पर आज कविता मन से उसका साथ दे रही थी। उसने उसकी गाँड़ और चूची दोनों को खूब मसला। उसके निप्पल को जब वो छेड़ रहा था, तो कविता सीत्कार उठती, इससस्स….........
कविता को पीछे से जकड़े हुए उसने अपना लौड़ा उसकी गाँड़ पर रगड़ने लगा। कविता को अपनी गाँड़ पर अपने छोटे भाई का चुभता लौड़ा बहुत मस्त लग रहा था। उसका एक हाथ उसके लौड़े को अंडरवियर के ऊपर से ही महसूस करने लगा। जय ने कविता को झटके से अपनी ओर घुमा लिया।कविता की गाँड़ की दरार में उसने उंगलिया घुसा दिया। और इधर कविता के अंगूर समान निप्पल्स को मुंह मे रखके चूसने लगा। कविता को अपनी चुचियों को चुसवाने में बड़ा मजा आ रहा था। वो अपनी चूची को उठाके जय के मुंह मे देने लगी। जय उसकी चुचियों को पूरा आनंद से चूस रहा था। कविता- आआआ......... आआहह...... भा...भाई .....चूस.....सो.....। ऊफ़्फ़फ़फ़...... आआहह.... खूब चूसो। बहुततत..... अच्छा लग रहा है।
जय ने उसके आनंद को बनाये रखा, और खूब चूसा। कविता के बुर से पानी लगातार बह रहा था। जय ने उसकी दोनों चुचियों को खूब चूसा। कविता जय के लण्ड को सहला रही थी।
जय ने अपना अंडरवियर उतारना चाहा तो कविता ने उसे रोक दिया। और खुद ही सिंक के पास फर्श पर घुटनो के बल बैठ गयी। जय के लण्ड को अंडरवियर के ऊपर से ही चाटने लगी। उसके लण्ड की खुसबू सूंघ रही थी। जय का अंडरवियर कविता ने गीला कर दिया अपने थूक से।फिर उसने जय के लण्ड को बाहर निकाला अंडरवियर से। जय ने अंडरवियर को फिर निकाल दिया। कविता ने जय के लण्ड को अपने चेहरे पर लगाके उसके साइज को नापा, लगभग पूरा चेहरा की लंबाई कवर हो गया। कविता हंस रही थी, बोली- हमारे चेहरे के बराबर है, तुम्हारा लण्ड।
जय- यही कल रात तुम्हारी चुदाई किया था। और ज़ोर से हंसा। अब खूब चुदोगी इससे।
जय के लण्ड को कविता ने अपने मुंह मे भर लिया। जय का लण्ड चुसाने का ये पहला अनुभव था। कविता ने बिल्कुल वैसे ही चूसना शुरू किया जैसे ब्लू फिल्मों में करते हैं। कविता ने उसके लण्ड को पूरा थूक से नहला दिया। उसका थूक जय के लण्ड से धागों की तरह लटका हुआ था। वो पूरा मन लगाके लण्ड को चाट रही थी।कभी लण्ड के सुपाडे को जीभ से रगड़ती, और चूसने लगती। लण्ड के छेद को जीभ से छेड़ती। फिर लण्ड पर थूककर अपने हाथों से मलती। और फिर लण्ड को मुंह मे भरकर चूसने लगती। कविता चूसते हुए बोली- भाई तुम्हारा लण्ड बहुत मस्त है। एक दम कड़क है, आहहहहह.... हहदहम्ममम्म.... चप..... चप..... उम्म......।
जय कुछ नहीं बोल पा रहा था, उसके मुंह से केवल आआहहहहहहहह…........ऊफ़्फ़फ़फ़...... ओह्हहहहहह...... तुममम्म...... कमाल की लण्डचुस्सकर हो कविताताता.... जानू।
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- Rakeshsingh1999
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Re: क्या.......ये गलत है?
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हाय रे ज़ालिम....(Complete)..माँ बेटी की मज़बूरी(Complete)परिवार(दि फैमिली) Completeपापा की दुलारी जवान बेटियाँ(Complete)....परिवार की लाड़ली(complete)....दीदी से सेटिंग(Complete)...
नाना ने बनाया दीवाना(Complete)...तीन बेटियाँ (complete) -----मेरे गाँव की नदी(complete)....,मेरी कमसिन भांजी और बेटी -1(complete) मेरी कमसिन भांजी और बेटी-2 (complete)-----पापा तुम गंदे हो(complete).......माँ की अधूरी इच्छा(Complete.....मेरी बहु की मस्त जवानी(Complete)....ठरकी अंकल(Complete)
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Re: क्या.......ये गलत है?
कविता ने फिर जय के लण्ड को पूरा मुंह मे घुसा लिया। और जय को देखती रही। मुंह मे लण्ड होने की वजह से उसके गाल फूल गए थे। और वो तिरछी नज़रो से जय को देख रही थी। कुछ देर वैसे रुकने के बाद उसको उबकाई आयी और पूरा लण्ड बाहर आ गया। लौड़ा पूरा थूक से सन चुका था। कविता की आंखों में इस वजह से आंसू थे और हांफ रही थी। कविता ने जय को देखा और कहा इसे गैगिंग कहते हैं भाई। हम ये खीड़े के साथ किए थे, आज लण्ड के साथ कि हूँ।
जय ने जोश में कहा- हाँ, पता है हमको, हम भी इसका फैन हैं, तुम बहुत मस्त कर रही हो, बिल्कुल ब्लू फिल्म की रंडियों की तरह। सॉरी गाली दी।
कविता- चुदाई का मज़ा तो गालियों के साथ ही आता है। हमको कोई एतराज़ नहीं है, जो मन चाहे गाली दो। बोलके कविता ने फिर लण्ड मुंह मे ले लिया।
जय- क्या बात है मेरे मुंह की बात छीन ली, आजसे तू हमारी रंडी है कविता दीदी। दीदी से रंडी बन गयी है।
कविता फिर लण्ड चूस रही थी, तब जय ने उसके बालों का गुच्छा बनाके कसके पकड़ लिया, जिससे उसके बाल हल्के खींच रहे थे। तब उसने लण्ड को बाहर निकाल लिया, कविता का मुंह खुला था, जय ने उसके खुले मुंह मे थूक की गेंद बनाके गिराया, जो सीधा उसके मुंह मे गिरा। कविता वो जय को दिखाके पी गयी, और बोली- और थूको , प्लीज और दो, मुंह खोल दी। जय ने फिर वैसे ही किया। इस बार भी कविता ने वही किया।
कविता तुम कितनी बड़ी रंडी हो, हमको विश्वास नहीं हो रहा है कि हमारी शरीफ दीदी के अंदर इतनी बड़ी रंडी रहती है। जय बोलकर अपना लण्ड कविता के मुंह पर रगड़ने लगा। उसके पूरे चेहरे को अपने लण्ड पर लगे थूक से भिगो दिया। कविता को ये बहुत ही उत्तेजक लग रहा था। कुछ देर उसके चेहरे पर ऐसा करने के बाद। उसने कविता को बालों से पकड़कर किचन की दीवार से लगा दिया, जिससे वो पीछे पूरी तरह से चिपक गयी, अब वो और पीछे नहीं जा सकती थी। जय ने कविता के मुंह मे लौड़ा डाल दिया। कविता का मुंह पूरा उसके लौड़े से भर गया। कविता के मुंह को जय बेरहमी से चोदने लगा। जय ठोकर मारता तो उसका आंड कविता के ठुड्ढी और होंठों से टकरा जाते थे। कविता की आंखें बिना पालक झपकाए जय की आंखों को निहार रही थी। गर्मी की वजह से दोनों पसीना पसीना हो चुके थे। पर कोई रुकने का नाम नही ले रहा था। जय लौड़ा निकालता और उसपर लगा थूक कविता के चेहरे पर मल देता। कविता के मुंह से थूक के धागे बन बनके फर्श पर गिर रहे थे। जय- क्यों कविता रंडी दीदी मज़ा आ रहा है, चुदाई में।
कविता सिर्फ हल्का सर हिलाके गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ......... गों गों गों गों करके जवाब दे रही थी।
फिर जय ने कविता को बालों से पकड़े हुए ही उठाया और उसे पकड़के किचन से बाहर ले आया। जय कामुकता से बोला- क्या मस्त रंडी छुपी थी इस घर में और मैं ब्लू फिल्में देखता था। सच मे लड़की में त्रियाचरित्र के गुण होते ही है। साली ऊपर से ढोंग रचती है पवित्र होने का और अंदर से उतनी बड़ी रांड के गुण छुपाये रहती है।
जय ने जोश में कहा- हाँ, पता है हमको, हम भी इसका फैन हैं, तुम बहुत मस्त कर रही हो, बिल्कुल ब्लू फिल्म की रंडियों की तरह। सॉरी गाली दी।
कविता- चुदाई का मज़ा तो गालियों के साथ ही आता है। हमको कोई एतराज़ नहीं है, जो मन चाहे गाली दो। बोलके कविता ने फिर लण्ड मुंह मे ले लिया।
जय- क्या बात है मेरे मुंह की बात छीन ली, आजसे तू हमारी रंडी है कविता दीदी। दीदी से रंडी बन गयी है।
कविता फिर लण्ड चूस रही थी, तब जय ने उसके बालों का गुच्छा बनाके कसके पकड़ लिया, जिससे उसके बाल हल्के खींच रहे थे। तब उसने लण्ड को बाहर निकाल लिया, कविता का मुंह खुला था, जय ने उसके खुले मुंह मे थूक की गेंद बनाके गिराया, जो सीधा उसके मुंह मे गिरा। कविता वो जय को दिखाके पी गयी, और बोली- और थूको , प्लीज और दो, मुंह खोल दी। जय ने फिर वैसे ही किया। इस बार भी कविता ने वही किया।
कविता तुम कितनी बड़ी रंडी हो, हमको विश्वास नहीं हो रहा है कि हमारी शरीफ दीदी के अंदर इतनी बड़ी रंडी रहती है। जय बोलकर अपना लण्ड कविता के मुंह पर रगड़ने लगा। उसके पूरे चेहरे को अपने लण्ड पर लगे थूक से भिगो दिया। कविता को ये बहुत ही उत्तेजक लग रहा था। कुछ देर उसके चेहरे पर ऐसा करने के बाद। उसने कविता को बालों से पकड़कर किचन की दीवार से लगा दिया, जिससे वो पीछे पूरी तरह से चिपक गयी, अब वो और पीछे नहीं जा सकती थी। जय ने कविता के मुंह मे लौड़ा डाल दिया। कविता का मुंह पूरा उसके लौड़े से भर गया। कविता के मुंह को जय बेरहमी से चोदने लगा। जय ठोकर मारता तो उसका आंड कविता के ठुड्ढी और होंठों से टकरा जाते थे। कविता की आंखें बिना पालक झपकाए जय की आंखों को निहार रही थी। गर्मी की वजह से दोनों पसीना पसीना हो चुके थे। पर कोई रुकने का नाम नही ले रहा था। जय लौड़ा निकालता और उसपर लगा थूक कविता के चेहरे पर मल देता। कविता के मुंह से थूक के धागे बन बनके फर्श पर गिर रहे थे। जय- क्यों कविता रंडी दीदी मज़ा आ रहा है, चुदाई में।
कविता सिर्फ हल्का सर हिलाके गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ......... गों गों गों गों करके जवाब दे रही थी।
फिर जय ने कविता को बालों से पकड़े हुए ही उठाया और उसे पकड़के किचन से बाहर ले आया। जय कामुकता से बोला- क्या मस्त रंडी छुपी थी इस घर में और मैं ब्लू फिल्में देखता था। सच मे लड़की में त्रियाचरित्र के गुण होते ही है। साली ऊपर से ढोंग रचती है पवित्र होने का और अंदर से उतनी बड़ी रांड के गुण छुपाये रहती है।
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- Rakeshsingh1999
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Re: क्या.......ये गलत है?
कविता कुछ सोची ये सुनके और हसने लगी, क्या बात बोला तुमने, एक दम सच।
जय कविता को अपने कमरे में ले गया। और उसको बिस्तर पर धकेल दिया।
कविता- अब क्या करोगे हमारे राजा भैया? वो मुस्कुराते हुए कामुकता से बोली। जय- तुम्हारी बुर का स्वाद चखना है। चल अपना पैर फैलाकर बुर को खोल।
कविता- वाह, तुम बुर को चुसोगे, आ जाओ। इस बुर को जूठा कर दो, अभी तक किसीने नहीं चूसा है इसको।
जय ने कविता की टांगों के बीच जगह बनाई और बैठ गया। आज तो दिन में सब खुल्लम खुल्ला हो रहा था। उसने बुर के करीब आके उसको पहले सूँघा। सूंघने से उसमे बुर की सौंधी सी खुसबू आ रही थी। कविता की बुर गीली हो चुकी थी। उसमें से लसलसा पदार्थ बह रहा था, जो कि बुर को चिकना बना रही थी। बुर की दोनों फाँक को कविता ने अलग कर रखा था। अंदर सब गुलाबी गुलाबी था। फैलाने से बुर की छेद हल्की दिखाई दे रही थी। उसने बुर के ऊपर थूक दिया और उसपर खूब माल दिया। उसने करीब 5 6 बार थूका। फिर बुर की चुसाई में लग गया। उसने जीभ से बुर की लंबी चिराई को सहलाना शुरू किया। और अपनी दांयी हाथ की मध्य उंगली उसकी बुर में घुसा दी।
कविता चिहुंक उठी। ऊफ़्फ़फ़फ़ ऊफ़्फ़फ़फ़,............ आआहह, ऊईईईई, आआहह.... आऊऊऊऊऊ। जय बहुत अच्छा लग रहा है। आआहह उसके हाथ जय के सर के पीछे थे, जो जय को बुर की तरफ लगातार धकेल रहे थे।
जय तो कविता की रसीली बुर चूसने में तल्लीन था। जय के मुंह से केवल लप लप लप लप लप .......लुप लुप लुप...... सुनाई दे रहा था।
कविता कामुकता से लबरेज़ अब बकते जा रही थी- जय और चूसो खूब .... आआहह ऐसे ही.....ऊफ़्फ़फ़फ़..... ऊउईईई।जय की उंगलियां उसके बुर की गहराई में उतार रही थी। जय कभी उसके बुर के दाने को चूसता, कभी दांतो से हल्का काट लेता। ऐसा करके वो कविता को चरम सुख की ओर ले जा रहा था। वो बुर को पूरा मुंह मे भरके लपलपाती जीभ से चाट रहा था। तभी कविता ने उसके सर को अपनी जांघों के बीच जकड़ लिया, और दोनों हाथों से उसके सर को बुर पर धकेलने लगी। एक चीख आईईईईईईईईई, के साथ, वो फिर निढाल हो गयी।
कविता ने अपने भाई को अपने बांहों में भर लिया । जय ने बोला- बिना लण्ड लिए ही झड़ गयी।
कविता- उसका टाइम भी आएगा भाई, सब्र करो। हम रात के लिए कुछ तो बचाके रखे।
जय- फिर इसे कैसे मनाऐं ? लण्ड की ओर इशारा करके बोला।
कविता- इसका पूरा रस बचाके रखो। अब से वो हमारा है। रात को इसको हम मनाएंगे। जय के लण्ड और आंड को सहलाते हुए बोली। उसके माथे को चूमी और उसका सर अपनी चुचियों में छुपा लिया।
जय कविता को अपने कमरे में ले गया। और उसको बिस्तर पर धकेल दिया।
कविता- अब क्या करोगे हमारे राजा भैया? वो मुस्कुराते हुए कामुकता से बोली। जय- तुम्हारी बुर का स्वाद चखना है। चल अपना पैर फैलाकर बुर को खोल।
कविता- वाह, तुम बुर को चुसोगे, आ जाओ। इस बुर को जूठा कर दो, अभी तक किसीने नहीं चूसा है इसको।
जय ने कविता की टांगों के बीच जगह बनाई और बैठ गया। आज तो दिन में सब खुल्लम खुल्ला हो रहा था। उसने बुर के करीब आके उसको पहले सूँघा। सूंघने से उसमे बुर की सौंधी सी खुसबू आ रही थी। कविता की बुर गीली हो चुकी थी। उसमें से लसलसा पदार्थ बह रहा था, जो कि बुर को चिकना बना रही थी। बुर की दोनों फाँक को कविता ने अलग कर रखा था। अंदर सब गुलाबी गुलाबी था। फैलाने से बुर की छेद हल्की दिखाई दे रही थी। उसने बुर के ऊपर थूक दिया और उसपर खूब माल दिया। उसने करीब 5 6 बार थूका। फिर बुर की चुसाई में लग गया। उसने जीभ से बुर की लंबी चिराई को सहलाना शुरू किया। और अपनी दांयी हाथ की मध्य उंगली उसकी बुर में घुसा दी।
कविता चिहुंक उठी। ऊफ़्फ़फ़फ़ ऊफ़्फ़फ़फ़,............ आआहह, ऊईईईई, आआहह.... आऊऊऊऊऊ। जय बहुत अच्छा लग रहा है। आआहह उसके हाथ जय के सर के पीछे थे, जो जय को बुर की तरफ लगातार धकेल रहे थे।
जय तो कविता की रसीली बुर चूसने में तल्लीन था। जय के मुंह से केवल लप लप लप लप लप .......लुप लुप लुप...... सुनाई दे रहा था।
कविता कामुकता से लबरेज़ अब बकते जा रही थी- जय और चूसो खूब .... आआहह ऐसे ही.....ऊफ़्फ़फ़फ़..... ऊउईईई।जय की उंगलियां उसके बुर की गहराई में उतार रही थी। जय कभी उसके बुर के दाने को चूसता, कभी दांतो से हल्का काट लेता। ऐसा करके वो कविता को चरम सुख की ओर ले जा रहा था। वो बुर को पूरा मुंह मे भरके लपलपाती जीभ से चाट रहा था। तभी कविता ने उसके सर को अपनी जांघों के बीच जकड़ लिया, और दोनों हाथों से उसके सर को बुर पर धकेलने लगी। एक चीख आईईईईईईईईई, के साथ, वो फिर निढाल हो गयी।
कविता ने अपने भाई को अपने बांहों में भर लिया । जय ने बोला- बिना लण्ड लिए ही झड़ गयी।
कविता- उसका टाइम भी आएगा भाई, सब्र करो। हम रात के लिए कुछ तो बचाके रखे।
जय- फिर इसे कैसे मनाऐं ? लण्ड की ओर इशारा करके बोला।
कविता- इसका पूरा रस बचाके रखो। अब से वो हमारा है। रात को इसको हम मनाएंगे। जय के लण्ड और आंड को सहलाते हुए बोली। उसके माथे को चूमी और उसका सर अपनी चुचियों में छुपा लिया।
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Re: क्या.......ये गलत है?
Kahani jaari rahegi.thanks
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Re: क्या.......ये गलत है?
मेरी नशीली चितवन Running.....मेरी कामुकता का सफ़र Running.....गहरी साजिश Running.....काली घटा/ गुलशन नन्दा ..... तब से अब तक और आगे .....Chudasi (चुदासी ) ....पनौती (थ्रिलर) .....आशा (सामाजिक उपन्यास)complete .....लज़्ज़त का एहसास (मिसेस नादिरा ) चुदने को बेताब पड़ोसन .....आशा...(एक ड्रीमलेडी ).....Tu Hi Tu