महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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"कुछ टैस्ट होंगे, उसके बाद भूत-प्रेत की योनि में प्रवेश।"
"लेकिन तुम तो जिन्न बनने को कह रहे...।"
“सीधे कोई भी जिन्न नहीं बन जाता। एक-एक सीढ़ी चढ़कर ऊपर आना पड़ता है। पहले भूत-प्रेत बनकर क्लासें पढ़नी पड़ती हैं। भूत-प्रेती के काम में माहिर होकर टैस्ट पास करना पड़ता है। पास होने के बाद लम्बी ट्रेनिंग लेनी पड़ती है और बूढ़े जिन्न सब कुछ सिखाते हैं। परंतु कोई-कोई ही सीख पाता... "
“लक्ष्मण।" सपन चड्ढा चीखा—“इस हरामी की बातें मत सुन। ये तो हमें जीते-जी ही जिन्न बना देगा। अभी हमारे खेलने-खाने के दिन हैं और ये कहता है कि हमारी मौत आ...”
इसी पल नाव की रफ्तार एकाएक कम होने लगी। "ये...ये तो धीमी होने लगी।” लक्ष्मण दास के होंठों से निकला।
"हम कहां पहुंच रहे हैं लक्ष्मण?" लक्ष्मण दास ने हड़बड़ाकर मोमो जिन्न से कहा।
"तुम्हें डर नहीं लग रहा?"
“जिन्न को कभी डर नहीं लगता।” मोमो जिन्न बोला। लक्ष्मण और सपन की नजरें घूमी।
नदी के दोनों तरफ घना जंगल दिखाई दे रहा था। सुनसान जगह थी वो। कोई भी इंसान नहीं दिखा।
"हम कहां आ गए हैं मोमो जिन्न?” सपन चड्ढा ने पूछा।
"मैं नहीं जानता।"
"बुरा वक्त आने पर तू तो खिसक जाएगा। हमारी जान नहीं बचेगी।" सपन चढ्डा ने मोमो जिन्न से कहा।
"मैं नहीं भागूंगा।"
“पक्का ?"
"जिन्न पर शक मत करो। जिन्न का विश्वास करना सीखो।"
“सपन।”
"हां"
"इसका भरोसा कभी मत करना। इसका भरोसा कर-कर के तो हम यहां तक आ पहुंचे हैं। पहले हमें यार कहता न थकता था और अब हमें नंगा करके घुमाने को कह रहा है। ये कमीना है धोखेबाज
___ “मैं तेरी बात से सहमत हूं। लेकिन अब हमारा क्या होगा?"
“महाकाली की पहाड़ी है ये। मुझे लगता है कि अब हम किसी बड़ी मुसीबत में फंसने जा रहे हैं।”

“कहीं ये जिन्न हमारी बलि देने के लिए तो हमें नहीं ले जा रहा?"
दोनों की नजरें मिलीं। फिर मोमो जिन्न को देखा। मोमो जिन्न को अपनी तरफ देखते पाकर, मुस्कराते पाया। “सपन।"
“पहले ये मुस्कराया न करता था। जबसे महाकाली की पहाड़ी में आया है, ये मुस्कराने लगा है।"
"रहस्य वाली बात है कोई।"
“पक्का ये हमारी बलि देगा। महाकाली को बलि देकर खुश करना चाहता है।"
“ये महाकाली वो महाकाली नहीं है।"
"वो महाकाली कौन-सी है?"
“वो तो भगवानों की श्रेणी में आती है। मां महाकाली। जिसे हमारी दुनिया के लोग पूजते हैं। ये तो इस दुनिया की महाकाली
“तभी तो हमारी बलि दी जाएगी। इस दुनिया की महाकाली हमारी बलि मांगती होगी। तभी हमें लाया गया है।"
मोमो जिन्न मुस्कराता हुआ इन्हें देखे जा रहा था।
"तुम हमारी बातें सुन रहे हो। कुछ कहते क्यों नहीं?” लक्ष्मण दास कह उठा।
"मेरी मुस्कान का रहस्य जानना चाहते हो?"
"ह...हां।"
"तो सुनो, पहले तुम इस तरह की बेवकूफी वाली बातें नहीं करते थे, इसलिए मैं मुस्कराता नहीं था।" ।
“तुम...तुम कहना चाहते हो कि हम बेवकूफ हैं।
"अवश्य । तुम लोग बेवकूफ ही हो। वरना बलि जैसी घटिया बातें करके मेरे जैसे सर्वश्रेष्ठ जिन्न की तौहीन नहीं करते। तुम दोनों ने ये कैसे सोच लिया कि जिन्न बलि देने जैसा घटिया काम करेगा।"
“तो....तो हमें यहां क्यों लाए हो?"
“जथूरा के सेवकों ने मुझे आदेश दिया तो मैंने ऐसा किया।" कश्ती किनारे पर जाकर ठहर गई।
"चलो।” कहकर मोमो जिन्न उठा और नाव से निकलकर किनारे पर पहुंच गया।
“चलना तो पड़ेगा सपन।” वे दोनों भी नाव से बाहर नदी के किनारे पर आ गए।

उसी पल नाव में हरकत हुई और वो पानी में सरकती हुई वापस जाने लगी।
"मोमो जिन्न! नाव जा रही है।” सपन चड्ढा कह उठा।
“जाने दो।”
"हमें वापस जाना हुआ तो कैसे जाएंगे?"
"तब दूसरा रास्ता खुद ही बन जाएगा वापसी के लिए।" दोनों की नजरें हर तरफ घूमी।।
घना-गहरा, दिल धड़का देने वाला जंगल था। हवा से पत्तियों का शोर खड़-खड़ पैदा कर रहा था।
चप्पी और गहरा सन्नाटा था यहां।
"ये कैसी जगह है?"
“यहां पर हम क्या करेंगे?"
“मैं भी नहीं जानता कि...।"
मोमो जिन्न कहते-कहते ठिठका। उसकी गर्दन एक तरफ झुक गई। आंखें बंद हो गईं।
फिर हौले-हौले मोमो जिन्न सिर हिलाने लगा।
“आ गया वायरलैस ।” सपन कड़वे स्वर में बोला।
"हम तो पागल हो गए हैं यहां आकर ।"
“अभी तो और होना है। अब पता नहीं ये जिन्न क्या बम फोड़ेगा।"
"चेहरा तो देख इसका। लगता है आंखें बंद करके जैसे तपस्या करके, ज्ञान पाने में लीन हो।"
"हरामी बोत है साला।”
“हमारा पीछा नहीं छोड़ता। हमें अपना गुलाम कहता है।"
"आंखें खुल गईं कमीने की।” मोमो जिन्न ने दोनों को देखते कहा।
"हमें थोड़ा-सा पूर्व की तरफ जाना है।"
"वहां क्या है?
“वहां हमें, तुम जैसे ही इंसान मिलेंगे।"
"हम जैसे?" मोमो जिन्न ने सिर हिलाया।
सपन चड्ढा ने मोमो जिन्न को देखा फिर लक्ष्मण दास से कहा।
"हमारे जैसे इंसानों को यहां पर क्या काम?"
"मेरे से क्या पूछ रहा है। मुझे क्या पता।"
“तुम उन इंसानों को जानते होंगे।” मोमो जिन्न ने कहा।

“ये बात है तो चलो। तुम्हारे अलावा कोई दूसरी सूरत तो देखने को मिलेगी।" लक्ष्मण दास ने कहा।
वे तीनों पूर्व दिशा की तरफ चल पड़े।
"सपन। वहां कौन होंगे, जिन्हें हम जानते हैं।”
"देवराज चौहान या मोना चौधरी ही होंगे।"
"फिर तो ठीक है। पहला मौका मिलते ही जिन्न से पीछा छुड़ाना है हमने।"
"मुझे मौका मिला तो गर्दन काट दूंगा इसकी।"
"सैंसर लगे हैं, सुन रहा है ये कमीना, हमारी बातें।"
तभी चलते-चलते मोमो जिन्न ने कहा।
"इंसानों की जात घटिया होती है, ये तो मैं पहले ही जानता हूं। इंसानों का कितना भी कर लिया जाए, ये एक दिन उसी की गर्दन काट देते हैं, जो इनकी सेवा करता है। इससे ज्यादा मतलबी जात मैंने दूसरी नहीं देखी।"
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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__ "तुमने हमें तंग कर रखा है, तभी हम तुम्हारी गर्दन काटने की सोच रहे हैं।" ___
"मैं तो तुम दोनों का बहुत खयाल रख रहा हूं वरना हम जिन्न तो गले में रस्सा डालकर खींचते हुए चलते हैं।"
“गले में रस्सा?" सपन चड्ढा हड़बड़ाया।
"तुम दोनों के साथ मैं ऐसा नहीं कर रहा।"
“यही कसर रह गई है, ये भी कर लो।” सपन चड्ढा ने कड़वे स्वर में कहा।
"मैं एक बार कुत्ता बना था।” मोमो जिन्न बोला।
“क्या?" लक्ष्मण दास कह उठा—“कुत्ता?" ।
“हां। जिन्न बनते समय मेरे इम्तिहान का वक्त आया तो, मैंने कहा कि इंसान बुरे नहीं होते तो उन्होंने मुझे सबक सिखाने के लिए कुत्ते का जन्म दिलवा दिया। कुत्ते के जन्म में मैं अपने मालिक का वफादार बनकर रहने लगा कई बार मालिक को मुसीबतों से बचाया। दस साल बाद जब मैं बूढ़ा हुआ तो मुझे घर से निकाल दिया गया। परंतु उस घर से मेरा मोह था। मैं घर के पास ही घूमता रहता। उसी मकान के गेट के बाहर ही दिन रात बैठा रहता। मालिक ने मुझे अपने घर से दूर भगाने की बहुत चेष्टा की, परंतु मेरा प्यार मुझे दूर नहीं जाने देता। फिर एक रात मैं उसी मकान के गेट के बाहर सोया हुआ था कि मालिक ने चुपके से चाकू से मेरी गर्दन काट दी। मैं मर गया।"
“अच्छा—फिर?"

-
“फिर जब मैं कुत्ते के शरीर से निकलकर वापस पहुंचा तो पुनः मेरी परीक्षा हुई। परीक्षा में वो ही सवाल सामने आया कि इंसानों
की जात के बारे में आपकी क्या राय है?"
"तुमने क्या जवाब दिया?" सपन चड्ढा ने पूछा।
“मैंने क्या जवाब दिया।" मोमो जिन्न मुस्करा पड़ा-“मैंने कहा, इस धरती पर, चींटे से लेकर हाथी तक—पशु से लेकर पक्षी तक, ऐसी कोई चीज जिसमें जीवन है, उन सबसे बुरे इंसान होते
___ “तुमने ऐसा कहा।”
___ “हां और मैं परीक्षा में पहले नम्बर पर पास हुआ। मुझे सर्वश्रेष्ठ जिन्न माना गया। अब तो तुम्हें समझ आ गया होगा कि हम जिन्न इंसानों को कैसी नजरों से देखते हैं।” मोमो जिन्न ने शांत स्वर में कहा।
तीनों तेजी से आगे बढ़े जा रहे थे।
"मैं तो पहले ही कहता था कि ये हरामी जिन्न है।” लक्ष्मण दास बोला— "इंसानों को बुरी निगाहों से देखता है। इसे ये नहीं मालूम कि इंसानों की जात, इस धरती पर सबसे सर्वश्रेष्ठ है।"
मोमो जिन्न मुस्कराया।
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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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Re: महाकाली--देवराज चौहान और मोना चौधरी सीरिज़

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“कमीना फिर मुस्कराता है।"
“तुम लोग मेरे से शिष्ट भाषा में बात करो। मुझे गुस्सा आ गया तो गले में रस्सी डालकर घसीटूंगा।"
"ये जीते जी हमारी बलि देगा।"
"इसकी नीयत में खोट है।"
“ये खुद भी खोटा है।” “चुप हो जाओ—वरना... "
“चुप हो जा लक्ष्मण। इसे गुस्सा आने वाला है।" ।
"मुझे थकान हो रही है।”
तभी मोमो जिन्न ठिठका और गर्दन टेड़ी करके, सिर हिलाने लगा। उसके बाद पुनः आगे बढ़ता कह उठा। ___
"हमें उस तरफ जाना है। वो जगह ज्यादा दूर नहीं है। नदी के किनारे पर ही वे हमें मिलेंगे।"
"पर वे हैं कौन? उनके बारे में कुछ तो बता दो।”
“पता चल जाएगा। जरा तेज चलो। तुम दोनों तो सुस्तों की तरह चल रहे हो।”
"ये तो हमें चला-चला के हमारी जान लेगा।"
"तेरे को लगता है कि ये हमारे साथ सच बोलता है।"

“पता नहीं।” लक्ष्मण दास ने गहरी सांस ली—“लेकिन यहां पर तो इसी का सहारा है।"
जल्दी ही नदी किनारे उन्हें एक जगह पर ठिठक जाना पड़ा। वहां जगमोहन, सोहनलाल और नानिया बेहोश पड़े थे।
"ये तो जगमोहन, सोहनलाल हैं।" लक्ष्मण दास के होंठों से निकला। ___
“ओह । कोई तो अपने जैसा मिला, वरना इस जिन्न के साथ रहकर तो हम अपनी जात भी भूलने लगे थे।"
“अब तो मानते हो कि मैंने सच कहा था, जिन्न झूठ नहीं बोलते।" मोमो जिन्न ने कहा।
“तुम तो अब तक हमसे झूठ ही बोले हो।"
"इन्हें क्या हुआ पड़ा है?"
“बेहोश हैं, होश में लाओ इन्हें।"
"ये युवती कौन है?" सपन चड्ढा ने पूछा।
“नानिया है। कालचक्र की रानी साहिबा।"
"खूबसूरत है। क्यों सपन।" लक्ष्मण दास ने धीमे स्वर में कहा। सपन चड्ढा के कुछ कहने से पहले ही मोमो जिन्न कह उठा।
“तुम इंसानी मर्दो की ये बड़ी समस्या है कि औरत देखी नहीं कि उसके गिर्द मंडराने लगे।" ___
“ये समस्या तो हम मर्दो के साथ चिपकी हुई है।” लक्ष्मण दास ने गहरी सांस ली।
"जिन्नों में तो मर्द-औरत नहीं होते?".
"नहीं। हम जिन्नों में वो समस्या होती ही नहीं, जो मर्दो में होती
__
_"फिर तुम इंसानी मर्दो की समस्या को नहीं समझ सकते। हम भी कई बार परेशान हो जाते हैं, इस समस्या का समाधान ढूंढते-ढूंढ़ते।
मोमो जिन्न कमर पर हाथ बांधे वहीं पर टहलने लगा।
बहुत पक्की बेहोशी थी तीनों की।
एक घंटा लग गया, उन्हें होश में लाने में। सपन-लक्ष्मण को बहुत मेहनत करनी पड़ी।
उन पर निगाह पड़ते ही जगमोहन के होंठों से निकला।
"तुम...लक्ष्मण दास-सपन...।" थके अंदाज में दोनों ने सिर हिलाया।
“तुम दोनों यहां कैसे?” सोहनलाल ने पूछा।

लक्ष्मण ने मोमो जिन्न की तरफ इशारा करके कहा।
“ये हमें पालतू कुत्तों की तरह घुमाए जा रहा है। फंसे पड़े हैं बुरी तरह।" ___
“अब तुम लोगों के मिल जाने से राहत मिली है कि दुनिया में इंसान भी बसते हैं।"
सपन चड्ढा ने नानिया को देखा और मस्करा पड़ा।
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“सोहनलाल।” नानिया कह उठी—“ये मुझे देखकर मुस्कराता है।"
"तेरा भाई है। बहन पर प्यार तो आएगा ही।"
“भाई।" सपन चड्ढा ने लक्ष्मण दास को देखा।
"ठीक ही तो कह रहा है सोहनलाल ।” लक्ष्मण दास ने जल्दी से कहा—“तेरी बहन तो है ये।" ___
“फिर तो तेरी भी होगी।” सपन चड्ढा ने चिढ़कर कहा। ___
“मेरा क्या है। मैं तो संसार को त्यागने की सोच रहा हूं। रिश्तों में मेरा कोई विश्वास नहीं।” ।
___ "त...त... " सपन चड्ढा ने कहना चाहा।
“चुप कर।" लक्ष्मण दास ने कहा फिर जगमोहन-सोहनलाल से बोला—“तुम लोग यहां कैसे?" ___
“हम...हम महाकाली की तिलिस्मी पहाड़ी के भीतर आ गए थे।" जगमोहन ने सोच-भरे स्वर में कहा— “उस वक्त हम जथूरा के पास जाने के लिए नदी पार कर रहे थे। मगरमच्छों ने हमें अपने जबड़ों में कस लिया। इसके साथ ही हम बेहोश हो गए। उसके बाद
अब होश में आया तो तुम लोगों को सामने पाया।"
“ये जगह कहां पर है?" सोहनलाल ने पूछा।
"हम तो इतना जानते हैं कि ये कालचक्र है। सब जगह एक जैसी है।" सपन चड्ढा ने कहा।
“तुम लोग यहां कैसे आ गए?"
“ये मोमो जिन्न ही हमें चक्कर घिन्नी की की तरह घुमाए जा रहा है। जिधर चाहता है हमारा स्टेयरिंग उधर ही मोड़ देता है। लगता है जब तक हमारी जान नहीं निकलेगी, ये हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा।" लक्ष्मण दास बोला। ___
"लेकिन तुम लोग महाकाली की मायावी पहाड़ी में आए क्यों?"
“बताया तो मोमो जिन्न खींचे जा रहा है हमें। कहता है देवा-मिन्नो को हमारी सहायता की जरूरत पड़ सकती है।” सपन चड्ढा ने लम्बी सांस लेकर कहा—“भला जिन्न से कोई पूछे कि हम देवराज चौहान की सहायता करने के लायक ही कहां हैं।"

"देवराज चौहान कहां है?"
"वो भी इसी तिलिस्मी पहाड़ी के भीतर है। सब ही भीतर हैं। हम जरा उनके पीछे रह गए। वरना उनके साथ ही होते।"
“मुझे बताओ, क्या हुआ था। देवराज चौहान से अलग हुए मुझे बहुत देर हो गई है।"
"जानता हूं। तुम्हें कालचक्र ने अपने में फंसा लिया था और तुम्हारी जगह मखानी, जगमोहन बन के आ गया।” (ये जानने के लिए पढ़ें राजा पॉकेट बुक्स से प्रकाशित अनिल मोहन का उपन्यास 'पोतेबाबा' ।)
“ओह ।” जगमोहन के होंठ भिंच गए। ___
“सब बातें बताओ।” सोहनलाल बोला—“हम इन बातों से अंजान हैं।”
लक्ष्मण दास और सपन चड्ढा ने सब कुछ बताया। जगमोहन, सोहनलाल जो नहीं जानते, वो अब जान चके थे।
"तो ये हआ देवराज चौहान-मोना चौधरी और बाकी सब के साथ।” जगमोहन सोच-भरे स्वर में कह उठा।
“तुम जानते हो कि जथूरा कहां पर कैद है?" सपन चड्ढा ने पूछा।
"नहीं। हमें इतना ही पता है कि वो पूर्व दिशा में कहीं पर है।"
“वो पक्का नहीं, बूंदी ने बताया था।” सोहनलाल बोला।
"बूंदी?" जगमोहन की नजरें घूमीं—“वो कहां है?" सोहनलाल और नानिया ने भी हर तरफ देखा। परंतु बूंदी कहीं न दिखा।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
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