Romance फिर बाजी पाजेब

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rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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राजेश ने अपना संदूक खोलकर सुनीता को फोटो दिखाया तो सुनीता सन्नाटे में रह गई।"
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"अशोक के आने से पहले मैं सचमुच शैतान का दूसरा रूप था...मगर अब मेरी आंखें खुल गई हैं-अगर तुम मुझ पर भरोसा करती हो तो मैं इस बंगले को बचाऊंगा..स्कूल भी बनाने में मदद करूंगा।"

"राजेश...!"
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"आगे कुछ मत कहना सुनीता..मैं समझ गया...मुझ पर से तुम्हारा विश्वास उठ गया है इसलिए मैं चुपके से ही रात में निकल जाऊंगा। मांजी को मत बताना, नहीं तो उनका विश्वास हर गरीब पर से उठ जाएगा। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि जब तक इस बंगले का स्कूल न बनेगा किसी की बुरी नजर इधर नहीं उठने दूंगा।"

"राजेश...!"

अचानक सुनीता रोकर राजेश से लिपट गई। राजेश उसकी पीठ थपकने लगा...उसकी आंखों में ज्वाला धधक रही थी-फिर उसने कहा-"एक काम करोगी सुनीता?"

"बोलो।"

राजेश ने उसके कंधे पकड़ लिए।

प्रेम ने दरवाजे पर दस्तक की आवाज सुनकर
दरवाजा खोला और राजेश को देखकर मुस्कराकर पीछे हटता हुआ बोला
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"आओ राजेश, मैं तुम्हारी ही राह देख रहा था।"

राजेश ने अंदर आकर ब्रीफकेस रखा और बोला-"वह काम करके लाया हूं प्रेम साहब कि आप मुझे कंधों पर उठा लेंगे।"

"बोलो तो सही।"

राजेश ने ब्रीफकेस खोलकर उसमें से कागजात की फाइल निकालकर प्रेम की ओर बढ़ाकर कहा
"यह देखिए।

"यह क्या है?"

"मास्टर जी के बंगले के कागजात की फाइल।"

"हाट !" प्रेम ने जल्दी से फाइल खोलकर देखी और उछल पड़ा-“अरे ! यह बंगला तो तुम्हारे नाम हो गया है?"

"इसको कहते हैं मुहब्बत का जादू...वह जो सिर चढ़कर बोले।"

"क्या मतलब?"

"सुनीता अब बुरी तरह मेरी मुहब्बत के जाल में फंस चुकी है-मैंने उससे मंदिर में शादी कर ली-फिर उसे समझाया कि इस बंगले की जगह स्कूल बनने से तुम्हें क्या मिलेगा? हमें जिन्दगी गुजारनी है-हम देवता नहीं इंसान हैं, कल हमारे बच्चे होंगे-हमें बुरा-भला कहेंगे।"

"खूब...!"

"सुनीता को मैंने ऐसे सब्जबाग दिखाए कि वह बुढ़िया के जाल से निकल आई।"

"फिर अब क्या प्लान है?"

"पहले मुझे रकम चाहिए...बिल्डिंग और शॉपिंग सेंटर बनाने के लिए।

"फिर ?"

"फिर हम दोनों मिलकर सेठ दौलतराम की दौलत झाड़ेंगे।"

अचानक ही एक तरफ से शक्ति रिवाल्वर लेकर निकल आया तो राजेश ने कहा-"इसका मतलब?"

"अबे गधे! हम बाप-बेटे गधे हैं कि बंगला भी तेरे नाम और जो रकम डैडी ने दस बरस से अब तक सेठ को ब्लैकमेल करके बनाई है, वह भी तेरे नाम ।"

"क्या चाहते हो तुम?"

प्रेम ने एक फाइल निकालकर सामन डाल दी।

"इन कागजात पर हस्ताक्षर करो।" उसने कहा।

"क्या है इनमें?"

"मास्टर जी का बंगला तुमने हमें बेच दिया है।"

"कितने में?"

"पांच लाख में।"

"हाट ? अब तो वह एक करोड़ का है।"

"पर तुमने मेरी ही स्कीम पर काम किया है-रकम दिमाग से मिलती है-हाथों की मेहनत से नहीं ।"

"इसका मतलब है...वह दस लाख जो मास्टर जी के नाम से बैंक से निकाले गए थे..?"

"वह भी चैक मैंने कैश कराया था..न कराता तो मास्टर जी और सेठ जी एक-दूसरे के दुश्मन कैसे बनते और मैं मास्टर जी का खून सेठजी के हाथों कैसे करवाता? फिर किस आरोप में कैलाशनाथ को जेल होती ।"

"ओहो ! तो यह सब तुम्हीं ने जाल बिछाया था, अपने पिता का बदला लेने के लिए।"

प्रेम ने फिर ठहाका लगाया-"कौन पिता ? किसका पिता? हर बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है. इसी तरह हर बड़ा दिमाग छोटे दिमाग को नाकारा कर देता है जिसके पास दिमाग है...वही बड़ा बनने का असल हकदार है-सेठ, मास्टर जी या तुम जैसे मूर्ख नहीं-जिन्हें मैं उंगलियों पर नचा सकता हूं।"

"ऐसा है तो प्रेम साहब! अब आप नाचिए।"
rajan
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"क्या मतलब?"

"वह देखिए।"

अचानक दरवाजा खुला और सुनीता के साथ स्थानीय डी.सी.पी., एक सी. आई. डी. सुपरिन्टेंडेंट कुछ पुलिस फोर्स के साथ अंदर आ धमके-प्रेम और शक्ति के चेहरे पीले पड़ गए। एक एस. आई. ने शक्ति के हाथ से रिवाल्वर छीन लिया था।

"क्या ! प्रेम और उसका बेटा गिरफ्तार हो गए?"

"जी हां...सेठजी ।"

"क्या आरोप लगवाया उन पर ?"

"आरोप नहीं लगवाया, सेठजी...उन्होंने अपराध किया था उन्होंने वह चैक कैश करवा लिया था जो आपने मास्टर जी को दिया था।"

"क्या ! दस लाख रूपयों का चैक?"
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"जी हां, सेठजी।"

"ओ गॉड!"

"इसके अलावा उन लोगों ने रिवाल्वर भी तान लिया था मुझ पर – मास्टर जी के बंगले के कागजात अपने नाम करना चाहते थे।"

"ओहो!"
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“अब आपकी वह रकम भी मिल जाएगी जो प्रेम ने आपको ब्लैकमेल करके आपसे हासिल कर ली थी।"

“वेरी गुड ! मगर तुम्हारे पास उस बंगले के कागजात कहां से आ गए?"

"सेठ जी! मेरी और सुनीता की शादी सचमुच हो गई है और विद्यादेवी ने वह बंगला मेरे नाम कर दिया है।"

"वेरी नाइस...तुमने हमारे सपने को सच कर दिया है।"

“सेठ जी! क्षमा कीजिए...आपके लिए कुछ बुरी खबरें भी हैं।

"वह क्या?"

"पुलिस को यह भी मालूम हो गया है कि मास्टर जी का खून आपके हाथों हुआ है।"

"क्या बकते हो?"

"मुझे खेद है-सच्चाई यही थी न।"

"क्या तुम भूल गए कि इस तरह सजा तुम्हारे पिता को भी मिलेगी। किसी दूसरे का अपराध अपने सिर लेकर उसने असली अपराधी को सजा से बचाने का अपराध करके कानून को धोखा दिया है।"

"सजा तो उन्हें मिलनी ही चाहिए, सेठजी , जो गलती करता है उसका परिणाम उसे भुगतना ही है।"

अचानक सेठ दौलतराम आपे से बाहर हो गए-गुस्से से बोले-"नमकहराम ! बंगले का मालिक बनते ही तेरी नीयत में खोट आ गई। भूल गया, तेरे को किसलिए भेजा था?"

"सेठजी! तब मैं केवल आपके आपके ड्राइवर का बेटा होकर आपके दिए सर्वेन्ट क्वार्टर में पला नासमझ लड़का था.एक नौकर का बेटा.मैंने बाहर की दुनिया नहीं देखी थी।"

"तू, इस कमरे से बाहर की दुनिया अब नहीं देखेगा।"

"मुझे अपनी मौत का न डर है, न दुःख...लेकिन आपके हाथ एक और खून से रंग जाएं, वह भी जान-बूझकर तो मेरी आत्मा दुःखी होगी, क्योंकि मास्टर जी का खून आपके हाथों हुआ है और आपकी जान बचाने के लिए मेरे बाबूजी ने आपकी जान बचाने के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया है।"
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"नमकहराम, कुत्ते...तेरी लाश का भी हम पता लगने रहीं देंगे।"

“सेठजी, भगवान के लिए गुस्से में आकर अपने होश मत खोइए। मास्टर जी के खून की सजा आपको कम से कम मिलेगी।"

"मगर हम तुम्हें जिन्दा नहीं छोड़ेंगे।"

अचानक दरवाजा खुला और जगमोहन अंदर आकर बोला-"डैडी! राजेश को मारने से पहले आपको मेरा खून करना पड़ेगा।"

"जगमोहन, चला जा यहां से।"

"नहीं डैडी, मै और राजेश एक आत्मा और दो शरीर हैं।"

"अरे! तू नहीं जानता यह कितना बड़ा नमकहराम और धोखेबाज, बेशर्म है।"

"मैं सब कुछ जान चुका हूं डैडी।"

अचानक ही दरवाजे से पारो भी अंदर आ गई और बोली-“और मैं भी सब कुछ जान चुकी हूं।"

“पारो...तुम...!"

"अगर आपने ऐसे ही हथकंडों से दौलत कमाने का फैसला किया है तो हमें नहीं चाहिए यह दौलत।"

"पारो..!"

"जरा सोचिए. इस समय हमारे पास जितनी दौलत है क्या वह कम है...अगर आप कुछ न करें तो सात पुश्तों तक यह दौलत खत्म नहीं होगी-तो फिर गरीबों का हक मारकर और दौलत कमाने की जरूरत ही क्या?"

"डैडी!" जगमोहन बोला-" आप जिस बंगले पर कब्जा करना चाहते हैं, वह बंगला अगर एक अच्छा स्कूल बन जाए तो कितने गरीब बच्चों का भविष्य बन सकता है। हमारे देश की मुख्य समस्या क्या है? अज्ञान और गरीबी..इन दोनों का चोली-दामन का साथ है।"

"बहुत बोलना आ गया है तुझे।"

"यह भी मेरे दोस्त राजेश की देन है डैडी-जिसने मुझे सिखाया है-इंसानियत, ईमानदारी और शराफत क्या होती है। बेईमानी से जोड़ा हुआ धन इंसान को ले डूबता है।"
rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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"जगमोहन !"

"डैडी! यह धन किसलिए कमा रहे हैं...आपने लिए या हम सबके लिए? मैं आपका अकेला बेटा हूं...मुझे कितनी दौलत चाहिए जीने के.लिए...अगर आपने नहीं माना तो मैं और मां यह सब धन-दौलत...ठाट-बाट छोड़कर चले जाएंगे।"

पारो ने कहा
"मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूं...आप अपने आपको कानून के हवाले कर दें।

सेठ दौलतराम के चेहरे पर एक भूचाल-सा नजर आया...और...धीरे-धीरे उनका रिवाल्वर वाला हाथ नीचे झुकता चला गया..और राजेश पुलिस को फोन करने लगा।

कोर्ट के सन्नाटे में खचाखच भरी कोर्ट में जज ने फैसला सुनाया। अपराधियों के कटघरे में सेठ दौलतराम खड़े थे और पीछे कैदी के भेष में कैलाशनाथ।

जज ने कहा -अपराधी दौलतराम के स्वयं हलफिया दिए बयान और गवाहों के बयानों के अनुसार उन्होंने अपने बचाव में किए मास्टर देवीदयाल के खून के लिए अदालत अपराधी दौलतराम को दस साल कैद-बा-मशक्कत की सजा सुनाती है।

पूर्व कैदी कैलाशनाथ जो अपराधी सेठ दौलतराम का ड्राइवर था और खानदानी वफादार नौकर भी...उसने अपनी वफादारी का हक निभाते हुए अपनी खुशी से सेठ दौलतराम का अपराध अपने सिर ले लिया था अदालत उस अपराधी कैलाशनाथ के वफादारी आत्मा बलिदान के भावों का आदर करती है...बहरहाल, वह भी काननी अपराध था और उसे बारह बरस की कैद-बा–मशक्कत की सजा दी गई थी जिसमें दस बरस सजा के उसने जेल में बिना शिकायत या उजरदारी गुजार दिए हैं, अदालत उसकी बाकी सजा माफ करती है।"

कैलाशनाथ की आंखें छलक पड़ी...जब कैलाश और दौलतराम आमने-सामने हुए तो सेठ दौलतराम ने कहा

"कैलाश! तुमने जो कुछ मेरे लिए किया है उसके बदले में मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता , मगर मैं तुम्हें अपनी जगह अपने सारे कारोबार का इंचार्ज बनाता हूं।"

"मालिक!" कैलाश रो पड़ा।

फिर सेठ ने राजेश से कहा-"बेटे ! नेकी और सच्चाई के साथ ही मानवता और सहानुभूति का रास्ता जो तुमने मुझे दिखाया है...मैं उसका इनाम तुम्हें यह देता हूं कि मास्टर जी के बंगले का सारा खर्चा हमारी कम्पनी देगी और तुम अपनी देखभाल में वहां स्कूल को बनवाओंगे...और चाहता हूं कि स्कूल की स्थापना पर स्कूल के प्रांगढ़ मे मास्टर देवीदयाल जी की बढ़िया कलाकार से बनवाई पत्थर की मूर्ति स्थापित की जाए।"

“सेठ जी!" राजेश की आंखें छलक पड़ी।

"बड़ी मां का ध्यान रखना...और जगमोहन को सगा छोटा भाई समझना।"

कोर्ट में इस आखिरी दृश्य पर बहुत लोगों की आंखें भीग रही थीं।

जगमोहन अपने बैडरूम में दाखिल हुआ तो सुहाग कक्ष दुल्हन के समान सजा हुआ था। अनीता ने चूंघट उठाकर कहा
"आप तो सुनीता से प्यार करते थे, फिर मेरे साथ शादी क्यों कर ली आपने?"

जगमोहन ने होंठों पर उंगली रखकर कहा

"हिश्त ! राजेश और सुनीता का बैडरूम दूर नहीं...कहीं वह न सुन लें। मैंने सुनीता को सौगंध दे दी है कि वह राजेश को कुछ न बताए...अच्छा हुआ जो सुनीता और अनीता नमों का चक्कर पड़ गया-वरना मेरा दोस्त मेरे लिए अपने प्यार की बलि दे देता।"

"मगर तुमने भी तो अपने प्यार की बलि दे दी।"

"अरे तुम क्या सुनीता से कम सुन्दर हो-वैसे क्लास में भी सिर्फ तुम ही एक स्टूडेंट थीं जिसने कभी मेरा मजाक नहीं उड़ाया था...न मेरे सीधेपर का फायदा उठाया।"

अनीता उसके कंधे से लग गई।

राजेश ने सुनीता का चूंघट उठाया तो सुनीता की पलकें झुक गईं पाजेबें छनक गईं-राजेश ने कहा
"विश्वास नहीं होता कि मैंने तुम्हें पा लिया है।"
rajan
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Re: Romance फिर बाजी पाजेब

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राजेश ने सुनीता का चूंघट उठाया तो सुनीता की पलकें झुक गईं पाजेबें छनक गईं-राजेश ने कहा
"विश्वास नहीं होता कि मैंने तुम्हें पा लिया है।"

फिर सेठजी की कम्पनी के सहयोग से राजेश ने देवीदयाल जी के बंगले पर भव्य स्कूल का निर्माण करा दिया और उसके प्रांगण में देवीदयाल जी की भव्य प्रतिमा भी स्थापित करा दी।

फिर कैलाशनाथ के सान्निध्य में राजेश की अगवाई में जगमोहन ने कम्पनी का सारा काम संभाल लिया ।
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