Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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Sexi Rebel
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Re: Horror अनहानी ( एक प्रेत गाथा )

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कब्रिस्तान का 'गौरकन-पोखर जो इस वक्त एक कब्र के गिर्द लगे पौधों में पानी दे रहा था...गाड़ी क हान्न सुनकर चौंका। वो जानता था कि इधर आने वाले गाड़ी मालिक की ही हो सकती है। वह फौरन गेट की तरफ भागा और जल्दी से गेट के दोनों पट् खोल दिये।

समीर को गेट खुलने का इन्तजार नहीं करना पड़ा। वह गाड़ी को कब्रिस्तान में लेता चला गया, फिर जब वह इंजन बन्द करके उतरा तो गौरकन (कब्र खोदने वाला) पोखर, हाथ बांधे उसके सामने खड़ा था।

समीर राय को देखकर, पोखर की सिट्टी-पिट्ट गुम हो गई थी। वो अन्दर-ही-अन्दर कांप रहा था।

समीर ने एक भरपूर निगाह, हाथ बांधे खड़े पोखर को देखा, फिर नर्म लहजे में पूछा-"पोखर .....! मालकिन कहां है?"

"वो.....उस तरफ, मालिक | पोखर ने अपनी कंपकंपाती आवाज पर काबू पाते, एक कोने की तरफ इशारा किया।

समीर उस तरफ बढ़ गया। पोखर, हाथ बांधे व सिर झुकाये उसके पीछे था।

कब्रों के लिए न दिखने वाला हिस्सा चुना गया था। कबें पेड़ों की आड़ में थी....दूर से देखने पर नजर न आती थीं। कर्को पक्की हो चुकी थीं। उन्हें सफेद पत्थर से बनाया गया था।

कब्रों को देखकर समीर अधीर हो उठा। उसने बड़ी बेताबी के साथ नमीरा और अपनी बच्ची की कब्र के गिर्द एक चक्कर लगाया। जब्त का बन्द टूट चुका था...वह प्रयत्नोपरान्त भी अपने बहते आंसुओं को न रोक सका।


वह कुछ देर यूं ही खामोश खड़ा आंसू बहाता रहा। उसकी नजरें कभी अपनी बीवी नमीरा की कब्र पर टिक्ती..और कम अपनी मासूम बच्ची की कब्र पर | आंसुओं से भरी आंखों के सामने कभी कळ धुंधला जाती....कभी साफ दिखाई देने लगतीं।

फिर समीर ने रुमाल से अपने आंसू पोंछे वे 'फातह पढ़ने के लिए हाथ उठाए। अभी उसने 'फातह पढ़नी शुरू ही की थी कि अचानक उसके कानों से उस रहस्यमय मलंग की आवाज टकराने लगी। उसके बोल.....कानों में गूंजने लगे। उस 'फातह पढ़नी मुश्किल हो गई।

'फातह पढ़ने के बाद...एक दूसरा ख्याल समीर के दिमाग में कौंधा और अपने इस ख्याल पर उसने फौरन ही अमल करने की भी ठान ली। उसेन एक नजर पोखर पर डाली....वो बदस्तूर हाथ बांधे और सिर झुकाये खड़ा था। समीर को हटता देखकर वो फौरन एक तरफ हो गया। समीर उसके पास से गुजरता हुआ बोला
"आओ, पोखर!"

"जी, मालिक...!" वो बड़े आदर से उसके पीछे हो लिया।

रास्ते में समीर ने उससे कोई बात नहीं की। वह इत्मीनान से गाड़ी में आकर बैठा.गाड़ी स्टार्ट की और सामने खड़े पोखर को अपने निकट आने का इशारा किया।

वो भागकर खिड़की के सामने आ गया-"जी मालिक.....हुक्म.?"

"आओ, गाड़ी में बैठो..।" समीर ने कोमल स्वर में कहा।

"जी, मालिक...!" पोखर के मुंह के निकला, लेकिन वह अपनी जगह से हिला तक नहीं। वो तो जैसे पत्थर हो गया था।

___ उसका पत्थर का होना स्वाभाविक था। किसी जागीरदार ने अपने मुलाजिक को, वह भी एक 'गौरकन' को अपनी गाड़ी में अपने साथ बैठने की पेशकश न की होगी। ये तो वे लोग थे, जो खुद को खुदा समझते थे । इन हुक्मरानों से कोई नौकर ऐसा आशा कर भी कैसे सकता था? वह यह तो सोच सकता था कि 'मालिक उस गाड़ी के नीचे कुचलकर गुजर सकते हैं। लेकिन उस यह तवक्कों हरगिज नहीं हो सकती थी कि कोई मालिक उसे अपनी गाड़ी में साथ बैठने का निमंत्रण दे।

"पोखर, आओ.... | मेरे पास वक्त कम है।" समीर संजीदा लहजे में बोला।

"जी, मालिका...!" वो डरते-डरते पिछला दरवाजा खोलकर बैठने लगा।

"नहीं, पोखर....! इधर आओ।" समीर ने उसे अपेन साथ अगली सीट पर बैठने का ईशारा किया।

पोखर को अपेन कानों पर यकीन न आ रहा था। मालिक उसे अपने बराबर बैठने के लिए कह रहा था। उसका हुक्म न मानना भी खुद को मुसीबत में डालने वाली बात थी।
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