Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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मैंने किया, बगैर लाग-लपेट के तमाम घटनाक्रम ज्यों का त्यों बयान कर दिया, सिवाय दो बातों के! पहली ये कि चौहान के वहां पहुंचने की बात मैं गोल कर गया। बावजूद इसके कि मेरा दिमाग बार-बार मुझे चेता रहा था कि पुलिस से चौहान की आमद छिपाकर मैं गलती कर रहा था। दूसरी बात वो तीन नाम थे, जिन्हें मकतूला ने फोन करके उनकी आवाज को कातिल की आवाज से मैच करने की कोशिश की थी और यूं अपनी जान गवां बैठी थी। कातिल उन तीनों में से भी कोई हो सकता था। लिहाजा चौथे सख्स का नाम न मालूम होने के बावजूद मैं अपनी इंवेस्टिगेशन आगे बढ़ा सकता था।
पुलिस की रूटीन कार्रवाई चलती रही और मैं ड्राइंगरूम में बैठा सिगरेट फूंकता रहा। क्यों? क्योंकि मुझे वहां से जाने की इजाजत नहीं थी। क्योंकि पुलिस कार्रवाई में दखलंदाज होने की इजाजत नहीं थी। फिर तकरीबन एक घंटा बाद मैं पुलिस पार्टी के साथ थाने पहुंचा जहां तफ्शील से मेरा बयान दर्ज करके मुझे छुट्टी दे दी गई।
साहबान पुलिस के बारे में कोई गलतफहमी ना पालें। मैं इतनी आसानी से आजाद कर दिया गया तो इसका मतलब ये हरगिज नहीं था कि आजकल हमारी पुलिस अपनी चिरपरिचित - लोगों को बेवजह हलकान करने वाला - अंदाज से बाज आ गई थी। अगर मेरे साथ वे लोग उस तरह पेश नहीं आते थे तो इसकी अहम वजह थी - उनका एसएचओ और एसीपी मुझे भाव देते थे, क्यों देते थे यह जांच का मुद्दा था।
थाने से निकलकर मैं सीधा मुकेश सैनी के फ्लैट पर पहुंचा। कालबेल के जवाब में उसने दरवाजा खोला, फिर जैसे ही उसकी निगाह मुझपर पड़ी उसने बुरा सा मुुंह बनाया। ना कोई हाय हैलो, ना उसने मुझे भीतर आने को कहा! उल्टा दरवाजे पर यूं डटकर खड़ा हो गया मानों मुझे भीतर ना आने देने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ हो।
‘‘लिहाजा मुझे अपना परिचय फिर से देना पड़ेगा।‘‘ प्रत्यक्षतः मैं बोला।
‘‘कोई जरूरत नहीं, मैं तुम्हें भूला नहीं हूं - वो बेरूखी से बोला - तुम वही सख्स हो जिसने कल अंकुर रोहिल्ला के बंगले पर मेरी खिंचाई करवाई थी।‘‘
‘‘तौबा! मैं भला ऐसा क्यों करता?‘‘
‘‘करते नहीं किया! कल तुम्हारी वजह से ही मेरी वहां उतनी फजीहत हुई थी।‘‘
‘‘क्या बात है भई अभी तो शाम भी नहीं ढली है, फिर भी घूंट लगाये बैठे हो।‘‘
‘‘बको मत! मैंने ड्रिंक नहीं किया है।‘‘
‘‘फिर इतना बेगानापन क्यों दिखा रहे हो।‘‘
‘‘तुम्हे मालूम है, क्यों दिखा रहा हूं। कल अगर तुमने ये कह दिया होता कि तुम मुझे जानते थे तो वो पुलिसवाला मुझे परेशान नहीं करता।‘‘
‘‘और क्या कहा था मैंने।‘‘
‘‘कहा तो वही था मगर कहने का अंदाज ऐसा था, जैसे जबरन वो शब्द तुम्हारे मुंह से निकले हों।‘‘
‘‘तुम शायद ये भूल रहे हो कि वहां ताजा-ताजा एक कत्ल होकर हटा था। यही क्या कम था जो मैंने उन्हें ये नहीं बता दिया कि तुम वो मुकेश सैनी हो जो सुनीता के कत्ल से पहले उसके फ्लैट में घुसते देखे गये थे।‘‘
‘‘तो बोल देते, वो क्या मुझे फांसी चढ़ा देते।‘‘
‘‘फांसी तो नहीं चढ़ा देते लेकिन इतनी आसानी से तो तुम्हें वहां से जाने भी नहीं देते। तुम ऐन कत्ल के वक्त मौकायेवारदात पर मौजूद थे, ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं होती अगर पुलिस तुम्हें पूछताछ के लिए हिरासत में लेती और हवालात में बंद करके भूल जाती।‘‘
‘‘उनके बाप का राज है!‘‘
‘‘है तो कुछ ऐसा ही, मगर उस बाबत मैं तुमसे बहश नहीं करूंगा।‘‘
‘‘क्या चाहते हो?‘‘
‘‘यू दरवाजे पर खड़े होकर तो कुछ नहीं चाहता, अगर भीतर आने दो तो कुछ बात बने।‘‘
‘‘और ना आने दूं तो!‘‘
‘‘तो ये कि मैं पुलिस को ना सिर्फ सुनीता के फ्लैट में तुम्हारी विजिट के बारे में बता दूंगा, बल्कि उन्हें ये भी बताऊंगा कि तुम मंदिरा चावला को पहले से जानते थे। लिहाजा तुम वो दूसरे सख्श होगे जो मंदिरा चावला और सुनीता गायकवाड़ दोनों को जानता था! देख लेना उसके बाद पुलिस की नजरे-इनायत तुमपर होकर रहेगी। तब यूं दरवाजे पर खड़ा करके उनका इंटरव्यू लेकर दिखाना तुम!‘‘
‘‘कौन कहता है कि मैं मंदिरा चावला को जानता था।‘‘
‘‘साथ ही मैं उन्हें ये भी बताऊंगा कि - मैं उसके सवाल को नजरअंदाज करके बोला - तुम वो इकलौते सख्श थे, जिसे रंजना चावला ने फोन करके ये बताया था कि मंदिरा का मोबाइल उसके हाथ लग गया था, जिसमें कातिल की आवाज रिकार्ड थी।‘‘
‘‘इसका क्या मतलब हुआ, अब क्या मुझे फोन करने के लिए लोगों को तुम्हारी इजाजत लेनी पड़ेगी!‘‘
‘‘नहीं मगर वो इकलौती बात पुलिस को ये सोचने पर मजबूर कर देगी कि कहीं कातिल तुम तो नहीं हो।‘‘
‘‘ऐसी क्या खास बात है उस फोन काल में?‘‘
‘‘मालूम तो होना चाहिए तुम्हे, आखिर इतने बड़े मास्टर माइंड ठहरे तुम! फिर भी अगर मेरे मुंह से सुनने को बेताब हो तो सुनो - ज्योंही तुम्हें पता लगा कि मंदिरा का मोबाइल बरामद हो गया है, जिसमें कातिल की आवाज रिकार्ड है - तुम्हारे होश फाख्ता हो गये। तुम जानते थे देर सबेर उस आवाज का मिलान तुम्हारी आवाज से जरूर किया जायेगा, जो कि यकीनन पहचान ली जायेगी। लिहाजा आनन-फानन में तुमने उसके कत्ल का फैसला कर डाला - आखिरकार तीन कत्ल तुम पहले ही कर चुके थे, लिहाजा हौसले की कोई कमी तो थी नहीं तुम्हारे भीतर। मोटरसाइकिल पर सवार होकर उसकी स्टडी के ऐन पीछे वाली गली तक पहुंचे। आगे पैदल ही गली में दाखिल होकर उस खिड़की तक पहुंचे जो कि गली में खुलती थी। तुम्हारा इरादा खिड़की के जरिए वहां का माहौल भांपना था। मगर जब तुम वहां पहंुचे तो इत्तेफाकन उसी वक्त रंजना भी स्टडी में पहुंच गई। जो कि तुम्हारे लिए सहूलियत वाली बात साबित हुई। वहां तुमने ना सिर्फ रंजना को गोली मार दी बल्कि एक गोली वहां चार्जिंग पर लगे मोबाइल पर भी चला दी, बिना ये जाने कि वो मोबाइल मंदिरा वाला मोबाइल था भी या नहीं।‘‘
‘‘क्या बकते हो, रंजना चावला का कत्ल हो गया?‘‘ उसने बुरी तरह चौंककर दिखाया। अगर ये उसका अभिनय था तो कमाल का अभिनय था।
‘‘क्यों भई खुद की निगाह में गोली किसी और को मारी थी क्या जो यूं चौंककर दिखा रहे हो जैसे तुम्हें कुछ पता ही नहीं।‘‘
‘‘मैं भला उसका कत्ल क्यों करूंगा।‘‘
‘‘बताया तो था, मोबाइल की रिकार्डिंग की वजह से, क्योंकि तब तक वो रिकार्डिंग सिर्फ रंजना ने ही सुनी थी। यही नहीं तुमसे बात करने के बाद बतौर कातिल वो तुम्हारी शिनाख्त कर चुकी थी।‘‘
‘‘अच्छा तो मैं तुम्हें इतना बड़ा गावदी लगता हूं कि मैंने बगैर मोबाइल की शिनाख्त किए गोली मारकर उसे तोड़ दिया। जबकि वो मोबाइल मंदिरा की बजाय रंजना का भी हो सकता था, किसी और का भी हो सकता था। यहां तक कि तुम्हारा भी हो सकता था - जिसकी बैटरी लो होने पर तुमने रंजना को चार्जिंग पर लगाने के लिए दिया हो सकता था। बावजूद इन सारी बातों के मैंने रंजना को गोली मारी, मोबाईल को तोड़ा और वहां से चलता बना! क्या कहने तुम्हारे।‘‘
उसकी बात सुनकर मेरे दिमाग में जैसे कोई घंटी सी बजी, उसे कैसे मालूम था कि रंजना के कत्ल के वक्त मैं वहां मौजूद था। सिर्फ एक ही सूरत में मालूम हो सकता था जब कि कत्ल के वक्त वो खुद भी वहां मौजूद रहा हो। मगर अपना रोशन खयाल मैंने उसपर जाहिर करने की फिलहाल कोई कोशिश नहीं की।
‘‘अब चुप क्यों हो गये। बोलती क्यों बंद हो गई तुम्हारी। या फिर तुम्हारी इन तमाम बातों का मतलब मैं ये लगाऊं कि तुम मुझे कत्ल के केस में लपेटने के लिए मरे जा रहे हो।‘‘
‘‘नहीं वो काम मेरे अख्तियार में नहीं है - कहकर मैं तनिक रूका फिर यहां भी वही चाल चली जो अंकुर रोहिल्ला बंगले पर चलकर कामयाब हो चुका था - मैं तो सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि ऐन कत्ल के वक्त में तुम वहां क्यों मंडरा रहे थे।‘‘
‘‘कौन कहता है?‘‘ वो दिलेरी से बोला।
‘‘सीसीटीवी की वो फुटेज कहती है जो गली के ऐन सामने सड़क के परली तरफ एक सिक्स टेन स्टोर में लगा हुआ है।‘‘
‘‘गुड! - वो संतुष्टि भरे लहजे में बोला - अगर सचमुच वहां कोई सीसीटीवी लगा हुआ है, तो समझ लो मुझे डरने की कोई जरूरत नहीं है।‘‘
सुनकर मैं केवल एक क्षण को सकपकाया, फिर खुद को संभालकर बोला, ‘‘गये क्यों थे तुम वहां?‘‘
‘‘था कोई निजी काम जिसके बारे में तुम्हें बताना मैं जरूरी नहीं समझता।‘‘
‘‘तो तुम्हें रंजना के कत्ल की पहले से खबर थी।‘‘
‘‘नहीं थी, बाई गॉड नहीं थी। लेकिन कत्ल के आस-पास के वक्त में मैं उस इलाके में मौजूद जरूर था।‘‘
‘‘तुम्हें क्या पता कि उसका कत्ल कब हुआ था।‘‘
‘‘नहीं पता।‘‘
‘‘फिर तुमने ये क्यों कहा कि तुम कत्ल के आस-पास के वक्त में वहां मौजूद थे।‘‘
‘‘भई तुम्ही ने तो कहा था कि वहां किसी सीसीटी फुटेज में तुमने मुझे देखा था।‘‘
‘‘हां मगर मैंने तुम्हें कत्ल का वक्त तो बताया ही नहीं था।‘‘
‘‘तो नहीं बताया होगा यार! - वो झुंझलाकर बोला - अब यहां से चलते फिरते नजर आओ, मुझे बहुत सारे काम निपटाने हैं।‘‘
कहकर उसने दरवाजा बंद करने की कोशिश की मगर मैं पहले ही दरवाजे में अपनी टांग अड़ा चुका था, ‘‘कल तक तो तुम्हारे पास वक्त का कोई तोड़ा नहीं था, आज क्या हो गया।‘‘
‘‘कुछ नहीं हुआ मेरे बाप!‘‘
कहकर वो दरवाजा खुला छोड,़ भीतर जाकर सोफे पर सिर पकड़कर बैठ गया। मगर मैंने भीतर दाखिल होने की कोई कोशिश नहीं की।
‘‘कम से कम इतना तो बता दो कि अगली बारी किसकी है।‘‘
जवाब में उसने एक बार सिर उठाकर आहत भाव से मेरी ओर देखा फिर दोबारा सिर थाम कर बैठ गया।
कोई बात तो यकीनन थी, जिसे वो छिपाने की कोशिश कर रहा था। और उस कोशिश में ना सिर्फ खुद कंफ्यूज हो रहा था बल्कि मुझे भी उलझाये दे रहा था।
आज का उसका व्यवहार मेरी समझ से एकदम परे था।
वहां और रूकने का कोई मतलब नहीं बनता था। मैं वापिस सीढ़ियां उतरने लगा।
‘‘सुनो!‘‘ - पीछे से उसकी आवाज आई - एक मिनट मेरी बात सुनकर जाओ, शायद तुम्हारे किसी काम आ जाए।‘‘
मैंने पलटकर उसकी ओर देखा, फिर सहमति में सिर हिलाता हुआ उसके फ्लैट में दाखिल हुआ, ‘‘क्या कहना चाहते हो।‘‘
‘‘देखो मैं मंदिरा चावला को नहीं जानता था।‘‘
‘‘उसके मोबाइल में तुम्हारा नंबर कॉल रिकार्ड में पड़ा हुआ था, रंजना ने वो नंबर डॉयल करके ही तुमसे बात की थी। वरना तुम खुद बताओ रंजना के पास तुम्हारा नंबर कहां से आता।‘‘
‘‘मैं नहीं जानता, कसम खाकर कहता हूं, नहीं जानता। उसका हाई सोशाइटी के लोगों में शुमार था। मेरी भला उस तक पहुंच क्योंकर मुमकिन हो सकती थी।‘‘
‘‘फिर भी तुम्हारा नंबर उसके मोबाइल में था।‘‘
‘‘हां मगर वो मेरे नाम से सेव नहीं था, लिहाजा कोई बड़ी बात नहीं थी कि वो गलती से किसी और का नंबर डॉयल करते वक्त एक अंक आगे पीछे मिला बैठी हो, जो कि इत्तेफाकन मेरा नंबर बन गया हो, तुम बोला क्या ऐसा हुआ नहीं हो सकता।‘‘
‘‘यूं तो हुआ हो सकता है।‘‘ मुझे स्वीकार करना पड़ा।
‘‘गुड अब सुनो मैं आज वहां क्यों गया था।‘‘
‘‘क्यों गये थे?‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

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‘‘मैंने ओलेक्स और क्विकर पर बतौर इंश्योरेंश एजेंट अपना विज्ञापन डाला हुआ है, जिसमें मेरा मोबाइल नंबर भी है। उस मोबाइल नंबर को देखकर किसी विपिन आहुजा ने मुझे फोन करके कहा कि वो कोई पॉलिशी कराना चाहता है, अगर मेरे पास टाईम हो तो मैं उससे आकर मिल लूं। जवाब में मैंने उसका नाम पता नोट किया और साकेत पहुंचा। मैं उसके बताये पते पर पहुंचने ही लगा था कि वहां मेरी नजर कार से उतरते तुमपर पड़ी - जो कि मेरी निगाहों में कोई बड़ी बात नहीं होती अगरचे कि कल मैं अंकुर रोहिल्ला के बंगले पर झमेले में ना फंस गया होता - तुम्हें वहां पहुंचा देखकर मेरे मन में कुछ खटक सा गया।‘‘
‘‘फिर क्या किया तुमने।‘‘
‘‘तब मैं बगैर रूके आगे बढ़ गया और कुछ दूर जाकर मैंने उस नंबर पर फोन किया जो कि किसी लैंडलाइन का था। यूं फोन करने पर मुझे पता चला कि वो नंबर ना सिर्फ किसी पीसीओ का था बल्कि वो कालकाजी के इलाके में लगा हुआ था। सुनकर मेरी क्या हालत हुई होगी इसका अंदाजा तुम खुद लगा सकते हो। मैं बिना एक पल की देरी किए वहां से वापिस लौट पड़ा। वापसी में जब मैं दोबारा उस मकान के सामने से गुजरा तो मुझे रांग साइड से आकर तभी वहां खड़ी होती एक बाइक दिखाई दी, जिसपर मेरी नजर पड़ी ही सिर्फ इसलिए क्योंकि वो रांग साइड से आ रहा था।‘‘
‘‘इसमें क्या खास बात है, ऐसा तो लोग बाग आम कर बैठते हैं। कभी जल्दी के चक्कर में तो कभी शार्टकट के चक्कर में।‘‘
‘‘खास बात ये है कि बाईक सवार ने उस मकान के सामने रूककर गौर से तुम्हारी कार देख रहा था।‘‘
‘‘कोई नई बात नहीं है! वो नये मॉडल की कार है, जिसे उत्सुकता वश लोग बाग देखने लग जाते हैं।‘‘
‘‘हां मगर वो कोई आम देखने वाला नहीं था। वो अंकुर रोहिल्ला का मैनेजर महीप शाह था।‘‘
‘‘क्या कह रहे हो।‘‘ मैं चौंक सा गया।
‘‘पूछ कर देखना उससे मुकर जाय तो बेशक मुझे बुला लेना।‘‘
‘‘आगे क्या किया उसने।‘‘
‘‘मालूम नहीं, तब वो कोई ऐसी बात तो थी नहीं जिसके मैं पीछे पड़ता, लिहाजा मैं वहां से चलता बना।‘‘
‘‘बाइक कौन सी थी?‘‘
‘‘बजाज पल्सर, दो सौ बीस सीसी, ब्लैक कलर की। नंबर मुझे ध्यान नहीं है।‘‘
‘‘और कुछ!‘‘
‘‘नहीं, बस इतना ही बताना था तुम्हे।‘‘
‘‘ठीक है, शुक्रिया।‘‘
वहां से बाहर निकलकर मैंने चौहान का फोन लगाया।
‘‘कहां हो?‘‘
‘‘हूं कहीं, तू अपनी बोल!‘‘
‘‘मंदिरा के फ्लैट के आस-पास कहीं मिलो मुझे, फुल वर्दी में, क्या समझे।‘‘
‘‘समझ गया, आधे घंटे में मैं वहां पहुुंच जाऊंगा, इंतजार मत करवाना। तू जानता है यूं सड़क पर खुले में घूमना मेरे लिए मुसीबत बन सकता है।‘‘
‘‘तुम चाहो तो मैं तुम्हें लेने आ जाऊं!‘‘
‘‘नहीं, यूं तो मैं पकड़ा गया तो तू भी खामखाह लपेटे में आ जायेगा। मैं पहुंच जाऊंगा ठीक आधे घंटे में।‘‘
‘‘ठीक है, मगर सावधान रहना, वहां तुम्हारे महकमे का कोई आदमी हो सकता है जो तुम्हें जानता-पहचानता होगा।‘‘
‘‘उंगली पकड़कर चलना मत सिखा यार!‘‘
वो झुंझलाकर बोला और कॉल डिस्कनैक्ट कर दिया।
आखिर पुलिस वाला था, हेकड़ी इतनी जल्दी स्वभाव से कैसे गायब हो सकती थी। यही वजह थी कि वो मुझसे यूं पेश आ रहा था जैसे वहां पहुंचकर मुझपर कोई एहसान कर रहा हो।
बहरहाल मैं बीस मिनट बाद ही उस इलाके में जा खड़ा हुआ। और मंदिरा चावला के फ्लैट से थोड़ा पहले कार साइड में लगाकर खड़ी कर दी। कार से बाहर निकलने की मैंने कोई कोशिश नहीं की। वक्तगुजारी के लिए मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और आस-पास के माहौल का जायजा लेने लगा।
कम से कम उस घड़ी वहां किसी पुलिस वाले के दर्शन मुझे नहीं हुए। वैसे भी मैं जिस अहम काम को अंजाम देना चाहता था उसमें गैरकानूनी जैसा कुछ नहीं था। पुलिस की चिंता मुझे सिर्फ चौहान की वजह से थी, जिसकी वहां मौजूदगी उसके लिए प्रॉब्लम बन सकती थी।
ठीक दस मिनट बाद, पैसेंजर साइड का दरवाजा खोलकर वो मेरे बगल में आ बैठा।
‘‘करना क्या है?‘‘
मैंने बताया।
‘‘हूं!‘‘ - उसने एक लंबी हुंकार भरी फिर बोला - ‘‘दुकान से खिड़की की दूरी बहुत ज्यादा है, मुझे नहीं लगता कि सीसीटीवी फुटेज में कुछ साफ-साफ दिखाई देगा।‘‘
‘‘हो सकता है ना दिखाई दे, मगर वहां हमें कोई नई बात दिखाई दे सकती है, जिसकी तरफ इस वक्त हमारा ध्यान नहीं जा रहा है।‘‘
‘‘ठीक है चल!‘‘
जवाब में मैंने कार आगे बढ़ा दी, यूं जब हम मंदिरा के फ्लैट के सामने से गुजरे तो वहां मंडराते रजनीश अग्रवाल की सूरत की एक झलक मुझे दिखाई दी।
देखकर मैं हैरान रह गया।
‘‘ये कौन है?‘‘ चौहान के मुंह से निकला।
जवाब में जब मैंने उसे रजनीश अग्रवाल और उसकी पिता की मौत की बाबत बताया तो वो हैरानी से मेरी शक्ल देखने लगा।
‘‘ये मकतूला के फ्लैट के बाहर क्या कर रहा है।‘‘
‘‘क्या पता?‘‘
‘‘तू गाड़ी वापिस घुमा मैं थामता हूं इस छोेकरे को।‘‘
‘‘थामना तो उसे पड़ेगा ही मगर इस वक्त ज्यादा जरूरी वो काम है जिसके लिए हम यहां पहुंचे हुए हैं।‘‘
वो खामोश रह गया।
अगले तेराहे से यू-टर्न लेकर मैं सिक्स टेन स्टोर के सामने पहुंचा। फिर हम दोनों कार से निकलकर स्टोर में दाखिल हो गये।
अब आगे की बागदौड़ चौहान ने संभालनी थी। वो काउंटर पर बैठे लड़के के पास पहुंचा।
‘‘नाम बोलो अपना!‘‘
सुनकर लड़का तनिक हड़बड़ाया।
‘‘क्या हो गया सर?‘‘
‘‘कुछ नहीं रूटीन इंक्वायरी है।‘‘ कहकर उसने एक अपनी जेब से एक छोटी सी डायरी और पैन निकाल लिया।
‘‘जी सरताज आलम!‘‘
‘‘कब से काम कर रहे हो यहां।‘‘
‘‘करीब एक साल से।‘‘
‘‘सामने वाले फ्लैट में आज एक लड़की की हत्या कर दी गई मालूम है।‘‘
‘‘जी मालूम है।‘‘
‘‘क्या जानते हो उस बारे में।‘‘
‘‘कुछ नहीं जानता साहब, मुझे तो पुलिस के वहां पहुंचने के बाद ही पता चला कि वहां कोई वारदात हो गयी है।‘‘
‘‘कोई संदिग्ध एक्टिविटीज देखी हो।‘‘
‘‘नहीं साहब! आप देख ही रहे हैं हमारे स्टोर से उस बंगले का सामने का पोशर्न दिखाई नहीं देता।‘‘
‘‘गली तो दिखाई देती है।‘‘
‘‘जी हां!‘‘
‘‘वहां कुछ ऐसा देखा हो जो तुम्हे अजीब लगा हो।‘‘
‘‘नहीं देखा साहब!‘‘
‘‘ठीक है मुझे पिछले तीन घंटों की सीसीटीवी फुटेज दिखाओ। इतना तो कर ही सकते हो।‘‘
‘‘जी कर सकता हूं!‘‘ कहकर उसने अपने सामने मौजूद एलईडी का फेस हमारी तरफ कर दिया और रिकार्डिंग को पीछे लेजाकर प्ले कर दिया।‘‘
मैं क्योंकि चार बजे रंजना से मिलने पहुंचा था इसलिए मैंने रिकार्डिंग को थोड़ा और आगे ले जाकर पौने चार से प्ले कर दिया। इसके बाद हम दोनों सांस रोके सीसीटीवी फुटेज पर निगाह टिकाये रहे। फुटेज कुछ खास क्लीयर नहीं थी, खासतौर से गली के भीतर का दृश्य तो एकदम धुंधला नजर आ रहा था।
उस वक्त रिकार्डिंग चार बजकर तीन मिनट का समय दिखा रही थी जब अचानक ही एक बाइक गली के मुहाने पर जा खड़ी हुई। मोटरसाइकिल सवार ने नीचे उतरने के बाद भी हैल्मेट उतारने की कोई कोशिश नहीं की। वैसे अगर वो हैल्मेट उतार भी देता तो इस फुटेज में उसे पहचान पाना आसान काम नहीं होता। यहां तक की जूम करने के बाद भी हम उसकी मोटरसाइकिल का नंबर तक नहीं देख पाये।
मोटरसाइकिल से उतरकर वो गली में दाखिल हो गया। उसने व्हाइट या क्रीम कलर की शर्ट पहन रखी थी। ये वैसी ही शर्ट थी जैसा आज मैंने गायकवाड़ को पहने देखा था जब वो रजनीश अग्रवाल से मिलने गया था। कद-काठी भी गायकवाड़ से मिलती-जुलती ही थी। अलबत्ता रिकार्डिंग क्लीयर ना होने के कारण यह बात मैं दो टूक ढंग से नहीं कह सकता था।
उस घड़ी पहली बार मैंने गायकवाड़ का तबोस्सुर कातिल के रूप में किया। पहली बार मैं ये सोचने को मजबूर हुआ कि कहीं सब किया धरा गायकवाड़ का तो नहीं? मगर कैसे, कैसे संभव था कि दुबई में बैठे-बैठे वो अपनी बीवी और मंदिरा को मौत के घाट उतार देता। कहीं उसकी दुबई से आमद में कोई झोल तो नहीं था। कैसे हो सकता था।
adeswal
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बहरहाल बाइक से उतरकर वो गली में काफी भीतर तक गया! उतना ही जितनी दूरी पर वो खिड़की थी जहां से गोली चलाई गई थी। फिर यूं लगा जैसे उसने खिड़की पर किसी ठोस चीज से वार किया हो। यकीनन उसने खिड़की का कांच तोड़ा था। फिर हमें उसके हाथ में थमी रिवाल्वर का एहसास हुआ। जिसके लगभग तुरंत बाद वो तेज कदमों से अपनी मोटरसाइकिल के पास पहुंचा और अगले ही पल मोटरसाइकिल ये जा वो जा हो गयी।
आगे की रिकार्डिंग में कोई खास बात नहीं दिखाई दी, तो हमनें रिवर्स कर के फुटेज को फिर, फिर और फिर देखा, इसके बाद स्टोर से बाहर निकल आए।
मैं अपनी कार फौरन उस इलाके से निकाल ले गया, और एमबी रोड पर पहुंचकर इग्नू की ओर जाने वाले रास्ते पर तनिक आगे जाकर कार रोकी फिर चौहान से मुखातिब हुआ, ‘‘क्या कहते हो, कोई घंटी बजी दिमाग में।‘‘
‘‘ना! मुझे नहीं लगता कि कभी मेरा पाला उस सख्स से पड़ा है, वरना बावजूद पुअर रिकार्डिंग क्वालिटी के उसके कद-काठी से तो कोई अंदाजा लगा ही लेता।‘‘
‘‘अब मैं तुम्हें एक नाम सुझाता हूं, विचार करना।‘‘
‘‘ठीक है।‘‘
‘‘मनोज गायकवाड़!‘‘
‘‘गोखले तेरा दिमाग तो नहीं हिल गया है। या तो तू ये कबूल कर कि सुनीता-मंदिरा का कातिल और अंकुर-रंजना का कातिल दो जुदा व्यक्ति हैं वरना गायकवाड़ का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दे। दुबई में बैठा कोई सख्स दिल्ली में भला किसी वारदात को अंजाम कैसे दे सकता है।‘‘
‘‘भाई भी दुबई में बैठकर मुंबई में फसाद करवा देता है।‘‘
‘‘तेरा मतलब है उसने शुरूआती दोनों हत्यायें किसी और से करवाई हो सकती हैं।‘‘
‘‘क्या ऐसा नहीं हो सकता।‘‘
‘‘तो फिर बाकी के कत्ल उसने खुद क्यों किये, और फिर ये मत भूल की यूं अगर उसने किसी के जरिए कत्ल करवाये होते तो उसकी गिनती सुनीता गायकवाड़ के कत्ल से आगे नहीं बढ़ती। जबकि पहला कत्ल मंदिरा का हुआ था ना कि सुनीता का।‘‘
वो ठीक कह रहा था, यूं तो कत्ल का ये सिलसिला आगे बढ़ना ही नहीं चाहिए था। क्या मुसीबत थी, मामला सुलझने की बजाय परत दर परत उलझता ही चला जा रहा था।
‘‘रजनीश अग्रवाल के बारे में क्या कहते हो, क्या फुटेज में दिखाई दे रहा व्यक्ति वो हो सकता है।‘‘
‘‘भई उस छोकरे की मैंने अभी बस एक झलक ही देखी थी मगर मोटे तौर पर गायकवाड़ और रजनीश की कद-काठी तकरीबन एक जैसी ही है। लिहाजा अगर वो गायकवाड़़ हो सकता है तो रजनीश भी हो सकता है और कोई काला चोर भी हो सकता है। देखो तो कम्बख्तों को इतना बड़ा स्टोर खोल कर बैठे हैं और सीसीटीवी ऐसा लगा रखा है जो डेढ़ सौ मीटर की पिक्चर भी सही ढंग से नहीं ले सकती।‘‘
उसकी झुंझलाहट पर मेरी हंसी छूट गई।
‘‘मैंने कोई जोक मारा!‘‘
‘‘उससे कम भी क्या था! जब काम नहीं होना होता है तो यूंही सौ अड़ंगे आते हैं! वरना तो आज ये केस सॉल्व हो ही गया था।‘‘
‘‘ठीक कहता है तू, मेरी किस्मत ही खराब है स्साली।‘‘
वैसे इस सीसीटीवी फुटेज से एक बड़ा फायदा तो तुम्हे होगा ही।‘‘
‘‘वो क्या?‘‘
‘‘तुम्हारा डिपार्टमेंट कम से कम रंजना के कत्ल के लिए तुम्हें जिम्मेदार नहीं ठहरायेगा।‘‘
‘‘गलत सोच रहा है तू, उल्टा होगा ये कि सीसीटी की फुटेज देखने से पहले ही उनके दिमाग में बतौर कातिल मेरा अक्स होगा लिहाजा उसमें दिखाई दे रहा कातिल उन्हें मुझसे मिलता-जुलता ही लगेगा। ऊपर से कातिल की हाइट देख, मुझे नहीं लगता कि वो मेरे से छोटा या बड़ा होगा।‘‘
‘‘मैंने सुना है कुछ ऐसी तकनीक भी होती है जिसके जरिए इस तरह की पुअर क्वालिटी वाली वीडियो को देखने-पहचानने लायक बना दिया जाता है।‘‘
‘‘होती है मगर उसमें कोई चमत्कार नहीं हो जाता, बस उन्नीस-बीस या बड़ी हद अठारह-बीस का अंतर पैदा किया जा सकता है, जिससे मौजूदा वीडियो में हत्यारा पहचाना जा सकेगा, इसकी मुझे कतई कोई उम्मीद नहीं है।‘‘
‘‘लिहाजा इतनी मशक्कत बेकार गई।‘‘
‘‘नहीं पूरी तरह बेकार तो नहीं गई, अब कम से कम हमें कातिल के कद-काठी का कोई अंदाजा तो हो ही गया है।‘‘
‘‘वो तो पहले से ही था।‘‘
‘‘तो समझ ले अब गारंटी हो गयी है। गोखले तू उस लड़के को, क्या नाम बताया था, हां रजनीश अग्रवाल को टटोल! जब से तूने उसके बाप की मौत वाली बात बताई है, मुझे वो कुछ खटकने सा लगा है।‘‘
‘‘वो काम अकेले मेरे बस का नहीं है, दोबारा मैंने उसके पीछे पड़ने की कोशिश की तो कोई बड़ी बात नहीं कि वो मुझे अपने घर में ही ना घुसने दे।‘‘
‘‘फिर कैसे बात बनेगी।‘‘
‘‘तुम्हें साथ चलना पड़ेगा।‘‘
‘‘चल!‘‘
‘‘कहां?‘‘
‘‘उसके घर और कहां?‘‘
‘‘क्या पता वो अभी घर ना पहुंचा हो।‘‘
‘‘देखने में क्या हर्ज है।‘‘
‘‘मेरे पास उसका मोबाइल नंबर है।‘‘
‘‘वो तू अपने पास रख संभालकर, अभी उसके घर चल।‘‘
हम दोनों देवली मोड़ रजनीश के घर पहुंचे, पता चला वो घर पर नहीं था।
‘‘अब!‘‘
‘‘वेट एंड वाच! स्साला कभी तो लौटेगा।‘‘
‘‘तुम तो एकदम फौजदारी के मूड में जान पड़ते हो।‘‘
‘‘और क्या करूं, जान सासत में जो फंसी हुई है।‘‘
जवाब में मैंने कुछ क्षण के लिए खामोशी अख्तियार कर ली।
‘‘एक बात कहूं!‘‘
‘‘चार कह रोका किसने है।‘‘
‘‘इसकी क्या गारंटी की गायकवाड़ सुनीता के कत्ल के बाद ही दुबई से वापिस लौटा था।‘‘
‘‘गारंटी है, क्योंकि पुलिस ने उसके मोबाइल पर नहीं बल्कि उसके दफ्तर की लैंडलाइन पर उससे बात की थी।‘‘
‘‘और यूं किया गया फोन सीधा गायकवाड़ ने ही रिसीव किया था नहीं।‘‘
‘‘तुझे खूब पता है कि ऐसा हुआ नहीं हो सकता, वो एक मल्टीनेशल कंपनी है। कॉल जरूर बोर्ड पर गई होगी जहां से ऑपरेटर ने वो कॉल आगे गायकवाड़ को ट्रांसफर कर दी होगी।‘‘
‘‘जिसके बारे में पुलिस ने जरूर दरयाफ्त किया होगा कि यूं ट्रांसफर की गई कॉल उसके दफ्तर के इंटरकॉम पर ही की गई थी ना कि उसके मोबाइल पर।‘‘
‘‘उसकी कोई जरूरत नहीं थी, इसलिए पहेलियां बुझाने की बजाय साफ-साफ बता कि कहना क्या चाहता है।‘‘
‘‘सुनो और समझने की कोशिश करो। आज टैक्नोलॉजी इतनी आगे पहुंच गई है कि किसी की कॉल को होल्ड कराकर किसी दूसरे के मोबाइल नंबर पर ट्रांसफर कर देना कोई बड़ी बात नहीं है, इतना तो तुम मानोगे ही।‘‘
‘‘मान लिया आगे बढ़!‘‘
‘‘फर्ज करो गायकवाड़ अपनी बीवी की हत्या वाले रोज या उससे एक रोज पहले दुबई से दिल्ली पहुंच चुका था। पीठ पीछे वो अपने ऑफिस के ऑपरेटर से ऐसी सेटिंग करके आया था कि अगर उसकी कोई कॉल आये तो उसे सीधा उसके मोबाइल पर ट्रांसफर कर दिया जाय, या क्या पता उसके ऑफिस में ऐसा कोई सिस्टम हो कि यूं आई किसी कॉल को सीधा वांछित व्यक्ति के मोबाइल पर ही ट्रांसफर कर दिया जाता हो! ऐसे में जब पुलिस ने उसे कॉल किया तो ऑपरेटर ने वो कॉल सीधा उसके मोबाइल पर ट्रांसफर कर दी। अब पुलिस की नॉलेज में तो उसने वो कॉल दुबई के अपने ऑफिस में रिसीव की थी, जबकि हकीकतन उसने वो कॉल दिल्ली में खड़े होकर रिसीव की थी। ऐसे में तुम्हारे महकमे को भला असलियत कैसे पता चल सकती थी। वो भी उस सूरत में जब बतौर कातिल तुम पहले से उनकी मुट्ठी में थे।‘‘
adeswal
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Re: Thriller खतरनाक साजिश

Post by adeswal »

मेरी बात सुनकर वो भौंचक्का सा मेरी शक्ल देखने लगा।
‘‘क्या हुआ?‘‘
‘‘तुझे मालूम है तू कितनी फसादी बात कह रहा है।‘‘
‘‘वही सही मगर हुआ तो हो सकता है ऐसा।‘‘
‘‘अगर ऐसा हुआ होगा तो उसका पता तो अभी भी चल सकता है, महज उसका पासपोर्ट देखकर ये जाना जा सकता है कि उसने दुबई से दिल्ली की फ्लाईट कब पकड़ी थी। हम इस बाबत सीधा उससे सवाल कर सकते हैं, उसे पासपोर्ट दिखाने की मांग कर सकते हैं।‘‘
‘‘और मान लो अगर वह इंकार दे तो!‘‘
‘‘तो क्या, वो अपने आप में शक उपजाऊ बात होगी, फिर कान को घुमाकर पकड़ेंगे। एयरपोर्ट से पता करेंगे कि वो दुबई से कब लौटा था, आखिर फ्लाईट्स, खासतौर से इंटरनेशनल फ्लाईट्स का सारा डाटा महफूज रखा जाता है।‘‘
‘‘तुम ऐसी कोई पड़ताल करवा सकते हो।‘‘
‘‘मेरी मौजूदा स्थिति को देखते हुए तो मुश्किल लगता है, फिर भी उम्मीद है कि किसी ना किसी के जरिए मैं वांछित जानकारी हांसिल कर लूंगा! लेकिन वो सब वक्तखाऊं काम होगा। पहले हम गायकवाड़ को ही ट्राई करते हैं। क्या पता वो पासपोर्ट दिखा ही दे और उससे ये साबित हो जाय कि वो कत्ल वाले दिन दुबई में ही था।‘‘
‘‘तुम्हारी बात अपनी जगह ठीक है मगर फर्ज करो अगर वो गुनहगार है, तो क्या फौरन समझ नहीं जाएगा कि हम किस फिराक में थे। फिर वो यूं गायब होगा कि हमें ढूंढे नहीं मिलेगा।‘‘
‘‘फिर क्या करें!‘‘
‘‘तुम अपने ढंग से कोशिश करते रहो, मैं खान साहब को इस बाबत विश्वास में लेने की कोशिश करता हूं। अगर वो मान गये तो गायकवाड़ की मजबूरी होगी कि वो अपना पासपोर्ट पेश करे, तब उसका टाल-मटौल वाला रवैया नहीं चलने वाला।‘‘
‘‘इस मामले में एसएचओ साहब तुम्हारी नहीं सुनने वाले। फिर जरा सोच के देख गोखले, अगर तेरी बात झूठी पड़ गयी तो तेरी कितनी किरकिरी होगी। कितना भाव देते हैं वो और एसीपी साहब तुझे! ऐसा होने की सूरत में कल को तुझे थाने से कोई मदद हासिल नहीं होने वाली। ना, मैं तुझे ऐसी सलाह नहीं देने वाला।‘‘
‘‘तुम उसकी टेंशन छोड़ो मैं कोई ना कोई रास्ता निकाल लूंगा, जिससे अगर गायकवाड़ पाक-साफ साबित भी हो जाय तो मुझपर कोई हर्फ नहीं आए! वो पहुंच रहा है।‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘रजनीश अपने घर के सामने पहुंच गया।‘‘
‘‘चल!‘‘ वो अपने साइड का दरवाजा खोलता हुआ बोला।
‘‘थोड़ा ठहरो! वे बेहद जल्दीबाजी में लग रहा है, क्या पता उल्टे पांव वापिस लौटे।‘‘
‘‘ना लौटा तो!‘‘
‘‘तो क्या, मिलना तो हमें उससे है ही।‘‘
उसने सहमति में सिर हिला दिया।
अगले दस मिनट यूंही गुजर गये।
‘‘मुझे तो अब वो बाहर आता नहीं दिखता।‘‘
‘‘ठीक है चलो।‘‘
हम दोनों कार से निकल कर सड़क पार करने लगे। यूं अभी हम बीच में ही थे कि तभी एक बैग कंधे पर टांगे रजनीश सीढ़ियों के दरवाजे से बाहर निकला। इसी दौरान सीधी उसकी निगाह सड़क पार कर रहे हम दोनों पर एक साथ पड़ी। जवाब उसने एक बड़ी ही अप्रत्याशित हरकत की, वो बैग फेंककर तेजी से एमबी रोड की विपरीत दिशा में भाग खड़ा हुआ।
एकदम से मेरी समझ में नहीं आया कि क्या हो गया था। मगर तब तक चौहान ने उसके पीछे दौड़ लगा दी थी।
‘‘गोखले कार लेकर आ, जल्दी कर।‘‘ वो दौड़ता हुआ चिल्लाकर बोला।
चौहान की तेज आवाज सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई। मैं फौरन कार की ओर लपका। कार का मुंह उसी दिशा में था इसलिए मुझे उनके करीब पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। करीब दो सौ मीटर दौड़ पाया था रजनीश जब अचानक चौहान ने चीते की तरह छलांग लगाकर उसे काबू में कर लिया। रजनीश ने उसके चंगुल से निकलने के लिए हाथ-पांव चलाए तो चौहान ने कसकर एक थप्पड़ उसकी कनपटी पर जड़ दिया। उसके बाद रजनीश अग्रवाल यूं शांत पड़ गया जैसे उसमें विरोध करने की शक्ति ही ना बची हो।
मैंने उन दोनों के बगल में कार रोकी तो चौहान ने उसे पिछली सीट पर धकेला और खुद भी उसके साथ सवार हो गया। मैंने तत्काल कार आगे बढ़ा दी।
‘‘अगर अपनी कोई हड्डी-वड्डी नहीं तुड़वाना चाहता तो चैन से बैठना! समझ गया?‘‘
रजनीश ने सिर हिलाकर हामी भरी, वो अभी भी अपनी कनपटी सहला रहा था।
इस दौरान चौहान ने अपनी रिवाल्वर निकाल कर हाथ में ले ली, ‘‘जानता है ये क्या है?‘‘
‘‘रिवाल्वर है।‘‘ वो मरे स्वर में बोला।
‘‘आगे किसी ब्रेकर पर, रेड लाइट पर, किसी मोड़ पर या फिर ट्रैफिक की वजह से ये कार धीमी हो सकती है, रूक सकती है! तू चाहे तो अपनी ओर का दरवाजा खोलकर भागने की कोशिश कर सकता है, मुझे तेरा एनकाउंटर करने में बहुत खुशी होगी, समझ गया।‘‘
‘‘समझ गया, मैं ऐसी कोई कोशिश नहीं करूंगा।‘‘
‘‘गुड! अब बता हमें देखकर भागा क्यों था?‘‘
‘‘मैं डर गया था मुझे लगा तुम मुझे गिरफ्तार करने आ रहे हो। पीछे घर में भी पता लगा था कि पुलिस मुझे ढूंढती हुई वहां पहुंची थी।‘‘
‘‘लिहाजा फरार होने जा रहा था।‘‘
उसने जवाब नहीं दिया। बस चुपचाप सिर झुका लिया।
‘‘क्यों फरार हो रहा था, क्या किया था तूने, क्यों तूं पुलिस से खौफ खा रहा है।‘‘
उसके मुंह से बोल नहीं फूटा।
जवाब में चौहान का हाथ फिर चला, ‘‘बहन....चो... मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूं, तेरी समझ में नहीं आ रहा।‘‘
‘‘मैंने कुछ नहीं किया।‘‘ वो लगभग रोता हुआ बोला।
‘‘क्यों सुनीता गायकवाड़ का कत्ल नहीं किया तूने?‘‘
‘‘कौन सुनीता गायकवाड़?‘‘
जवाब में चौहान फिर उसपर पिल पड़ा, ‘‘कमीने मैं तुझसे क्विज नहीं कर रहा, साफ-साफ जवाब दे वरना इस कार से तू जिंदा बाहर नहीं निकल पायेगा।‘‘
वो बात चौहान ने ऐसे कहरबरपे लहजे में कही थी कि सुनकर मेरा कलेजा दहल गया, रजनीश अग्रवाल की तो बात ही क्या थी।
‘‘मैं सच कहता हूं साहब! - वो मिमियाता हुआ बोला - मैं किसी सुनीता गायकवाड़ को नहीं जानता।‘‘
‘‘अभी दिन में तू जिस औरत के खसम से मिलकर हटा है, उसकी बीवी को तू नहीं जानता।‘‘
‘‘आप मनोज गायकवाड़ की बात कर रहे हो?‘‘
‘‘चल तेरी याद्दाश्त तो लौटी।‘‘
अब तक मैं खानपुर की रेड लाइट पर पहुंच चुका था, ‘‘आगे किधर चलूं।‘‘
‘‘तुगलकाबाद के खंडहरों में ले चल, वहीं निपटाता हूं स्साले को।‘‘
फिर वही खतरनाक लहजा!
‘‘साहब मैं बता तो रहा हूं सबकुछ!‘‘
‘‘सबकुछ कहां बता रहा है स्साले... मादर...चो... अभी तो तू हर बात से मुकर कर दिखा रहा है।‘‘
‘‘मैं सच कह रहा हूं, मैं उसकी बीवी को नहीं जानता, उससे भी आज पहली बार मिला था मैं।‘‘
‘‘क्यों मिला था।‘‘
‘‘वो...वो... क्या है कि उसे एक रिवाल्वर चाहिए थी।‘‘
‘‘तो तू इलीगल आर्म्स भी बेचता है।‘‘
‘‘मैं नहीं बेचता, मेरा एक जानने वाला है।‘‘
‘‘कौन नाम बोल उसका!‘‘
‘‘जीतेंद्र सिंह नाम है, हम सब उसे जीते कहते हैं।‘‘
‘‘देवली में ही रहता है वो।‘‘
‘‘नहीं! - इस बार जवाब मैंने दिया - ओखला फेज वन के इलाके में तेखंड नाम का एक गांव है, वहीं एक बिल्डिंग के दूसरे फ्लोर पर रहता है।‘‘
जवाब में दोनों ने चौंककर मेरी तरफ देखा, चौहान केवल एक क्षण को हकबकाया फिर उस बात को कैश करता हुआ बोला, ‘‘देखा हर बात की खबर रखते हैं हम लोग, इसलिए तेरा कुछ छिपाना सिवाय तेरी दुर्गति कराने के और कोई फायदा तुझे नहीं पहुंचाने वाला। अब कबूल कर कि वो तेखंड में ही रहता है।‘‘
‘‘वहीं रहता है।‘‘
‘‘तू हथियार मुहैया करा सकता है, इसकी खबर गायकवाड़ को कैसे लगी?‘‘
‘‘वो कहता था उसके किसी फ्रैंड ने उसे मेरा नाम बताया था।‘‘
‘‘फ्रैंड का नाम बोल!‘‘
‘‘उसने नहीं बताया! - फिर वो जल्दी से बोला - सच कहता हूं साहब उसने नाम नहीं बताया था उसका।‘‘
‘‘स्साले यूं किसी को परखे बिना कहीं इस तरह के धंधे होते हैं, बेवकूफ समझ रखा है मुझे।‘‘
‘‘उसने साबित किया था कि वो अभी कुछ दिनों पहले ही दुबई से लौटा था, लिहाजा वो कोई पुलिस का भेदिया या पुलिसवाला कैसे हो सकता था!‘‘
‘‘कैसे साबित किया था?‘‘
‘‘उसने अपना पासपोर्ट दिखाया था मुझे।‘‘
‘‘तारीख देखी थी तूने!‘‘ चौहान उत्सुक स्वर में बोला।
‘‘नहीं, पासपोर्ट में देखना क्या था, जब ये मेरी समझ में नहीं आया तो उसे उलटने-पलटने के बाद मैंने उसका पासपोर्ट वापिस कर दिया।‘‘
‘‘फिर भी तू कहता है कि उसने तेरी तसल्ली कराई थी।‘‘
‘‘मैंने सोचा जब वो इतने कांफिडेंस से पासपोर्ट दिखा रहा था तो सही बोल रहा होगा। उसे क्या खबर थी कि मुझे पासपोर्ट देखकर कुछ समझ में नहीं आने वाला था।‘‘
‘‘बस यही वजह थी उसे जीते का पता बताने की!‘‘
‘‘नहीं बात इतनी होती तो मैं उस सौदे से इंकार कर देता। मगर जब उसने पचास हजार की रिवाल्वर का एक लाख देना कबूल किया तो मैं लालच में आ गया।‘‘
‘‘कमीशन कितनी बटोरी।‘‘
‘‘पचास के ऊपर कस्टमर जितना भी देता है वो मेरी कमीशन होती है।‘‘
‘‘लिहाजा एक ही झटके में तूने पचास हजार कमा लिए।‘‘
उसने सिर झुका लिया।
‘‘गायकवाड़ ने रिवाल्वर खरीदने की वजह क्या बयान की।‘‘
‘‘वो बोलता था उसकी जान को खतरा था।‘‘
‘‘मंदिरा को क्यों मारा?‘‘
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