एक अधूरी प्यास- 2

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rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

शुभम रुचि को उसके मायके छोड़ कर अपने घर आ चुका था। साथ में एक अद्भुत और अमिट एहसास लेकर लौटा था.... उसे भरोसा तो नहीं था कि उसका यह सफर बेहद रोमांच से भरा होगा बड़की इतना भी रोमांच नहीं हुआ लेकिन जो कुछ भी बाथरूम में उसके साथ हुआ था यह सब किसी रोमांच से कम नहीं था और शुभम जैसे लड़के के लिए तो सही मायने में इसी तरह के वाक्ये को ही रोमांच कहते हैं.... वह कभी सोचा भी नहीं था कि रुचि को इस तरह से अपने लंड के दर्शन करा पाएगा हालांकि उसके मन में हमेशा यही बात चलती रहती थी कि वह अपनी मर्दाना ताकत का प्रदर्शन रुचि के आंखों के सामने करें ताकि रुचि पूरी तरह से उसके अधीन हो जाए उसकी दीवानी हो जाए.... और ऐसा हुआ भी था वैसे तो रुचि की शादी को 3 साल गुजर गए थे लेकिन अभी भी उसकी गोद हरि नहीं हो पाई थी इसलिए ऐसा कहना भी ठीक था कि हाथों की मेहंदी का रंग छुटा भी नहीं था कि उसके जेहन में उसके दिलो-दिमाग पर किसी पराए मर्द की छाया पड़ने लगी थी । और वह पराया मर्द कोई और नहीं बल्कि उसका ही पड़ोसी शुभम था। शुभम के साथ वैसे भी वह एकदम साहजिक अनुभव करती थी....
बाथरूम वाले हादसे के बाद से रूचि पूरी तरह से शुभम के आकर्षण में बस गई थी खास करके उसके मजबूत तगड़े लंबे खड़े लंड के आकर्षण में वह अपने मन को पूरी तरह से जोड़ चुकी थी।

शुभम रुचि के मायके से आने के बाद जानबूझकर दो दिन तक सरला से मिलने नहीं गया था क्योंकि वह देखना चाहता था कि वाकई में सरला उसके आकर्षण में बंध चुकी है या नहीं और जैसा कि वह मन में सोच रहा था वैसा ही हुआ था सरला शुभम को 2 दिन से ना देखने की वजह से काफी व्याकुल नजर आ रही थी।और शुभम उसकी क्या कविता को दूर करने का उपाय मन में सोच रखा था और उसी प्लान के मुताबिक वह शाम को सूरज ढलने के समय छत पर पहुंच गया और अपनी टीशर्ट निकाल कर अपनी कमर के ऊपर के अंग को पूरी तरह से निर्वस्त्र कर दिया साथ ही वह एकदम स्किन टाइट लोअर पहन लिया जिसमें उसके आगे का भाग उत्थान स्थिति में ना होने के बावजूद भी काफी गोल नजर आ रहा था । यह शुभम की सोची समझी साजिश थी वह जानबूझकर अपनी स्थिति को इस तरह से कर रहा था कि सरला उसे इस अवस्था में देखकर मंत्रमुग्ध हो जाए क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि औरतों की कमजोर कड़ी मर्दों की मर्दाना ताकत उन की जोड़ी मजबूत छाती और कसरती बदन होता है.... और शुभम को अपनी मजबूत बजाओ पर विश्वास था कि वह अपने अंग प्रदर्शन के जरिए सरला की टांगों के बीच हलचल पैदा करने में कामयाब हो जाएगा... वह अपनी तरफ से पूरी तैयारी कर चुका था ।।।

शाम चलने वाली थी और वह छत पर अपनी पूरी तैयारी के साथ दोनों हाथों में वजनदार डंबल लेकर उससे कसरत करना शुरू कर दिया वह जानता था कि शाम को सरला जरूर छत पर सूखे हुए कपड़े लेने आएगी और तब वह अपने अंग का प्रदर्शन करके उसके तन बदन को झकझोर के रख देगा... वह कसरत करना शुरू कर दिया था और कुछ ही मिनट में उसकी छाती पर पसीने की बूंदें उपसने लगी जो कि मोती के दाने की तरह चमक रही थी... कसरत करते हुए भी उसका दिल जोरों से धड़क रहा था संध्या बेला की शीतल पवन में भी उसके बदन से पसीना टपक रहा था... वह जानता था कि सरला जैसी उम्रदराज औरत को अपने जाल में फंसना इतना आसान नहीं था इसलिए वह कोई भी कसर बाकी रखना नहीं चाहता था और वह यह भी जानता था कि वह घर में बिल्कुल अकेले हैं और यही सही मौका है उसके घर के दरवाजे खोल कर उसकी टांगों के बीच जगह बनाने के लिए ... और इस कार्य में वह माहिर भी था.... लेकिन फिर भी किसी भी प्रकार की ढील बर्तना नहीं चाहता था....

बार-बार कसरत करते हुए उसकी नजर छत पर चली जा रही थी जहां से सरला आने वाली थी वह मन ही मन में गुदगुदा भी रहा था कि ना जाने कब आएगी.... लेकिन थोड़ी ही देर में उसकी प्रतीक्षा की घड़ी खत्म होने लगी उसकी प्यासी आंखों को सावन भादो की फुहार का आभास होने लगा उसे सीढ़ियों पर सरला के कदमों की आहट महसूस होने लगी और वह पूरी शिद्दत से कसरत करने में जुट गया थोड़ी ही देर में उसकी आंखों के सामने सरला नजर आई... कामवासना भी बेहद अजीब चीज होती है जोकि सरला जैसी उम्रदराज औरत होने के बावजूद भी शुभम के तन बदन में इस समय सरला आग लगा रही थी जवानी के शोले भड़का रही थी... वह चोर नजरों से सरला की तरफ देख रहा था जो की छत पर नजर आने के साथ ही उसकी नजर शुभम पर पड़ी थी लेकिन वह उससे नजरें चुरा कर वापस अपने कसरत कार्य में लग गया वह जानबूझकर सरला को नजरअंदाज कर रहा था और यह बात सरला भी नोटिस कर रही थी वह दूर से ही शुभम को इस तरह से कसरत करता हुआ देखकर और खास करके उसकी नंगी चोड़ी छातियों को देखकर मदहोश होने लगी... उसके अर्ध नग्न बदन को देखा कर वह ठंडि आहहहह भरने लगी..... उसने अभी तक शुभम को इस अवस्था में नहीं देखी थी उसे इस बात का आभास बहुत जल्द हो गया कि कपड़ों के अंदर शुभम और भी ज्यादा गठीला और सेक्सी लगता है। उसकी नंगी छातियों पर उभर रहे पसीने की बूंदों को देखकर उसकी टांगों के बीच की पतली दरार नम होने लगी।

ससससससहहहहहह .... आहहहहहहह ..... यह मुझे क्या हो रहा है यह मैं क्या सोच रही हूं और उसे देख कर मेरे बदन में इस तरह के बदलाव क्यों आने लगते हैं ।(सरला ठंडि आहहहह भरते हुए अपने आप से ही बातें करते हुए बोली.... सरला को अपनी सोच और कल्पना पर पछतावा भी होता था वह अपने आप को मन ही मन भला बुरा भी कहती थी लेकिन शुभम जैसे नौजवान लड़के को अपनी आंखों के सामने देखते ही उसे ना जाने क्या हो जाता था वह एकदम मंत्रमुग्ध हो जाती थी।ना जाने उसे ऐसा क्यों लगने लग रहा था कि वह दौड़ कर जाए और उसे अपने सीने से लगा ले अपनी बड़ी-बड़ी चुचियों को उसकी नंगी छाती पर रगड़ कर अपने प्यासे पन का अहसास उसे कराएं... लेकिन ऐसा करने की हिम्मत उसने बिल्कुल भी नहीं थी उसे भी जमाने का डर था अपनी इज्जत का डर था घर के मान मर्यादा का डर था लेकिन मन के किसी कोने में यह सब को छोड़कर मर्यादा के सारे बंधन तोड़ कर रिश्तेदारी रिश्ते नाते के वास्ते से दूर होकर उसका दिल यही कहता था कि एक बार फिर से शुभम की बाहों में जाकर जिंदगी का मजा ले ले... और यही सोचकर वह अपने कदम धीरे-धीरे आगे बढ़ा रही थी....
वह रस्सी कोई खास से पकड़कर शुभम की तरफ भी देख रही थी वह मन ही मन सोच रही थी कि ना जाने कैसी कशिश कैसी प्यास है जो ना चाहते हुए भी उसकी तरफ बढ़ती चली जा रही है.... एक तरह से वह शुभम के ख्यालों में खोई रहती थी.... बड़े प्यार से देख रही थी कि शुभम कैसे अपनी कट के लिए बदन को इस तरह से मेहनत करके और ज्यादा गठीला और आकर्षक बना रहा है..... शुभम के चेहरे पर आई मासूमियत को देखकर वह अपने आपको पिघलता हुआ महसूस करने लगी उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि उसकी टांगों के बीच कोई गर्म लावा धीरे-धीरे पिघल कर बाहर आ रहा है। वह शुभम की कल्पना में खोने लगी पल भर में ही उसे ऐसा एहसास होने लगा कि वह अपने घर के अपने कमरे में और अपने ही बिस्तर पर घुटनों के बल बैठकर अपनी बड़ी बड़ी गांड को हवा में किसी दौर की तरह उठाई हुई है और उसके पीछे एक बहादुर सैनिक की तरह शुभम एकदम नग्न अवस्था में खड़ा है और अपने मजबूत लंबे तगड़े लंड को किसी मशाल की तरह हाथ में लेकर लहराते हुए उस तोप के गुलाबी छेद के माफिक मुहाने पर लगा कर तोप को दाग रहा है। सरला की कल्पनाओं का घोड़ा इतनी तेज गति से दौड़ रहा था कि वह चाहकर भी अपने घोड़ों पर काबू कर नहीं पा रही थी। वह शुभम के व्यक्तित्व से इतना ज्यादा प्रभावित हो चुकी थी कि वह कल्पना करते हुए मदहोश होने लगी दूसरी तरफ से बमों से तिरछी नजरों से देख ले रहा था लेकिन जानबूझकर उसे नजरअंदाज कर रहा था और सरला मस्त होती जा रही थी वह कल्पना में अपनी दोनों टांगों को पिलाई अपनी मदमस्त घाटकोपर उठाएं शुभम के द्वारा उसके मोटे तगड़े लंड से चुदने का आनंद लूट रही थी.... उसे ऐसा साफ सा महसूस हो रहा था कि जैसे शुभम वास्तव में उसकी कमर को थाम कर अपने मोटे तगड़े लंड को उसकी बुर की गुलाबी पत्तियों के बीचो-बीच अंदर की तरफ धकेल रहा है और उसका लंड धीरे-धीरे करके उसकी बुर की गहराई नापना शुरू कर दिया.... और जैसे ही शुभम उसे चोदने की शुरुआत करते हुए पहला करारा झटका मारा वैसे ही सरला लड़खड़ा कर गिरते-गिरते बची तब जाकर वह अपनी कल्पना से बाहर आए और अपने इस कल्पना के बारे में सोच कर ही उसके होठों पर हंसी आ गई लेकिन उसे साफ महसूस हो रहा था कि उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी....
लेकिन अपनी इस कल्पना को लेकर उसे किसी भी तरह का अपराध बोध और अफसोस नहीं हो रहा था...बल्कि पल भर के लिए इस कल्पना की वजह से उसके तन बदन में एक अद्भुत एक अजीब सा अहसास का रोमांच फैला हुआ था... शुभम के साथ केवल संभोग मात्र की कल्पना करके ही वह एकदम मस्त हो गई थी और वह यह सोच कर तो वह साथ में आसमान में उड़ने लगी थी कि अगर उसकी कल्पना वास्तविकता का रूप लेने तब क्या होगा यही सोचकर वह रोमांचित हुए जा रही थी....
वह धीरे-धीरे रस्सी पर से सूखे कपड़े को उतारने लगी.... वह शुभम की तरफ ही देख रही थी जो कि अभी भी आपने कसरत करने में मस्त था उससे रहा नहीं गया तो वह खुद ही बोली ।




शुभम और शुभम क्या बात है मैं कब से आई हूं तू मेरी तरफ ध्यान ही नहीं दे रहा। (रस्सी पर से सूखे हुए कपड़ों को उतारते हुए बोली।)


माफी चाहूंगा चाची मैं आपसे मुलाकात नहीं कर पाया.... और अभी तो मुझे पता ही नहीं चला कि आप कब छत पर आ गई...(शुभम डंबल को नीचे रखते हुए बोला... वह पूरी तैयारी में था वह डंबल को नीचे रख कर एक बारअपनी स्थिति का जायजा लेते हुए अपनी नजर को पर से नीचे की तरफ घुमाया तो टांगों के बीच की स्थिति कुछ मादक जान पड़ रही थी क्योंकि वहां हल्के हल्के तंबू बनना शुरू हो गया था। और वह अपनी मर्दानगी का जलवा बिखेरने के लिए धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए सरला की तरफ जाने लगा और शुभम को इस तरह से अपनी तरफ आता देखकर उसके दिल में कुछ कुछ होने लगा।)

तू रुचि बहू को उसके मायके छोड़ कर आने के बाद भी मुझसे मुलाकात नहीं किया मुझे यह भी नहीं बताया कि वहां सब कुछ कैसा है....


वही तो बता रहा हूं चाची की वहां में आराम से रुचि भाभी को छोड़ कर आ गया हूं और उनके पिताजी की तबीयत सही है मतलब बीमार है लेकिन ज्यादा बीमार नहीं है इसलिए घबराने वाली कोई बात नहीं है...... (इतना कहते हुए शुभम रस्सी के दूसरे छोर पर दीवार का सहारा लेकर खड़ा हो गया। उसे इस बात का अच्छी तरह से एहसास था कि सरला चोर नजरों से उसकी नंगी जातियों को देख ले रही थी और कभी-कभी उसकी नजर टांगों के बीच भी चली जा रही थी जहां पर अभी कुछ खास तंबू बना हुआ नहीं था लेकिन शायद अच्छे खासे तंबू की उम्मीद सरला को थी ।)

चल अच्छा हुआ शुभम कि तू उसको उसके मायके छोड़ आया वरना मुझे लेकर जाना पड़ता सच कहूं तो तेरी वजह से मुझे बहुत आराम मिल जाता है।

चाची जी इसमें तकल्लुफ वाली कोई बात नहीं है। आखिर में पहले भी कहा हूं कि मैं आपकी सेवा में हमेशा हाजिर हुं।(शुभम अपनी बातों के जादू में सरला को पूरी तरह से उलझाने लगा।)


तेरे जैसा लड़का मिलता कहां है आज के जमाने में। जो बिना किसी रिश्ते के इतनी मदद कर सके।

चाची कैसी बात कर रही हो अरे मैं आपको चाची कहता हूं रुचि भाभी को भाभी कहता हूं यह सब रिश्ता तो है.... हां अगर आप यह सब रिश्तेदारी नहीं समझती तो बात कुछ और है।

नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है मुझे मालूम नहीं था कि तू इतना अच्छा लड़का है तेरी संस्कार इतने अच्छे है...

वैसे चाची आपको तकलीफ होती होगी ना अकेले घर का सारा काम करने में। (शुभम इस बहाने से सरला के मन में क्या चल रहा है इस बात की टोह लेने के लिए बोला।)

हां सही कह रहा है तू तकलीफ तो होती है लेकिन क्या करें करना तो पड़ता है ना। (सरला सूखे हुए कपड़ों को पकड़े हुए ही बोली..)

लेकिन जा चीज में एक फायदा है आप घर का सारा काम खुद करती है जो कि आपके शरीर के लिए बहुत ही अच्छा है। (अब शुभम अपना अगला पासा फेंकते हुए बोला जो कि जानता था कि अब सरला को उसका यह फेंका हुआ पासा चारों खाने चित कर देगा...)


क्या बेवजह की बातें कर रहा है मैं काम कर रही हूं और अच्छा है। (सरला शंका जताते हुए बोली)

चाचा जी मैं सच कह रहा हूं यह आपके शरीर के लिए बेहद जरूरी है और बहुत ही अच्छा है।

कैसे?

अच्छा आप सही सही बताओ कि आपकी उम्र कितनी है....

यह कैसा सवाल है....



आप बताइए तो सही आपकी उम्र कितनी है तब मैं बताता हूं.....


हम्मम.... वैसे तो सच कहूं तो तुम्हारी मम्मी से 3 चार साल बड़ी हुं....(वैसे औरतों की हमेशा से यही आदत रही है कि वह हम लोग कभी भी अपनी सही उम्र नहीं बताती और उसी तरह से सरला ने भी यही की थी.)


लेकिन मैं सच कहूं तो चाची आप अभी 35 की लगती हो।
( इतना सुनते ही सरला के मुखारविंद ऊपर शर्म की लाली मचाने लगी और वह मंद मंद मुस्कुराने लगी क्योंकि शुभम की यह बात उसे बहुत अच्छी लगी थी।)

चल तू अब बातें मत बना मैं जानती हूं तू झूठ कह रहा है।


चाची शायद आप एक बात बोल रही हैं कि मैं एक लड़का हूं मतलब एक मर्द एक मर्द के नजरिए से बता रहा हूं कि हम लोगों को क्या अच्छा लगता है।


तू तो ऐसे बोल रहा है जैसे औरतों के बारे में तुझे सब कुछ पता है।

मैं कुछ ज्यादा तो नहीं कहूंगा चाची लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि हम लोगों को क्या अच्छा लगता है यह सिर्फ हम लोग ही जानते हैं। (इतना कहने के साथ शुभम रस्सी पर से सूखे हुए कपड़े उतार कर धीरे धीरे सरला को थमाने लगा)

तो तू क्या जानता है औरतों के बारे में....(सरला शर्म के मारे शुभम से नजरें चुराते हुए बोली)

ज्यादा कुछ तो नहीं जानता लेकिन चाची में इतना जरूर जानता हूं कि हम लोगों को आप जैसी औरत ही सबसे ज्यादा खूबसूरत लगती हैं।....(शुभम रस्सी पर से सूखे कपड़े उतार कर सरला को थमाते हुए बोला।)

क्या तुम सच कह रहा है क्या तुझे और तेरी उम्र के सारे छोकरो को मेरी जैसी औरत अच्छी लगती है...(शुभम के हाथों से कपड़े थाम ते हुए बोली..)

हां चाची में एकदम सही कह रहा हूं तुम्हारी जैसी ही औरत हम जैसे लड़कों की पहली पसंद होती है।


लेकिन ऐसा क्यों ... लड़कियां भी तो है एक से एक खूबसूरत..(सरला शंका जताते हुए बोली...)



यह सब तो मैं नहीं जानता चाचा लेकिन इतना जरुर जानता हूं कि जो कुछ भी मैं कहा वह सत प्रतिशत सही है।


चल तू कहता है तो सही होगा मुझे तुझ पर विश्वास है। लेकिन क्या मैं तुझे अच्छी लगती हुं? (सरला शुभम के ऊपर सीधा सवाल दाग दी शुभम को बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि सरला इस तरह के सवाल करेगी लेकिन जैसे वह भी पूरी तरह से हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार था इसलिए सरला की बात सुनते ही बोला ।)

बहुत अच्छी लगती हो चाची....आप मुझे बहुत खूबसूरत लगती हो बहुत सुंदर लगती हो सच कहूं तुम मैंने आज तक आपके जैसी इस उम्र में इतनी खूबसूरत औरत नहीं देखा हूं.....(शुभम के मुंह से अपनी इस तरह की तारीफ सुनकर वह खुशी से गदगद हुए जा रहे थे उसके चेहरे के बदलते भाव देखकर शुभम को उम्मीद होने लगी कि पंछी जाल में फंसने लगा है उसका दाना सही जगह पर गिर रहा है सरला एक जवान लड़के के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ सुनकर फूली नहीं समा रही थी उसके शरीर में उत्तेजना का असर बड़ी तेजी से हो रहा था उसे अपनी टांगों के बीच की पतली दरार से नमकीन रस बहता हुआ साफ महसूस हो रहा था यह सब उसे सातवें आसमान पर उड़ाए लिए चले जा रहा था.....)


मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि तू मेरी तारीफ कर रहा है।


यह तो आपका बड़प्पन है चाची वरना मैं सही कहूं तो आते-जाते मेरी उम्र के सारे लड़के बस आप ही को देखते रहते हैं....

लेकिन मैंने तो कभी भी इस तरह की कोई भी हरकत महसूस नहीं की।


कैसे करोगी चाची आपने कभी इस बारे में ध्यान ही नहीं दी...मेरी बात का यकीन ना हो तो रास्ते पर चलते समय अपने चारों बाजू नजर घुमा कर देखना कि किसकी नजर आपके ऊपर टिकी रहती हैं....
(शुभम ने अपनी है बात पक्के तौर पर डंके की चोट पर कहा था क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि सरला चाची की गांड बहुत बड़ी-बड़ी और गोल गोल है और जब वो चलती है तो एक मदमस्त हिल्टन उनके बड़े-बड़े नितंबों में होती है और यही वजह है कि जवान हो या बुरे सब की नजर इस तरह की औरतों पे पड़ती रहती है। उसकी खुद की नजर सरला के पिछवाड़े पर हमेशा टिकी रहती है।सरला तो एक जवान लड़के के मुंह से इस तरह की बातें सुनकर पूरी तरह से उत्तेजना में सरोवर होने लगी उसके चेहरे पर छाई नानी मां साफ बयां कर रही थी कि इस समय उसकी टांगों के बीच हलचल मची हुई है। सरला मारे शर्म के पानी पानी हुई जा रही थी। और पति उत्तेजक बदला शुभम के बदन में भी हो रहा था क्योंकि उसके लोअर में अच्छा-खासा तंबू बन चुका था जिस पर सरला की चोर नजर बार-बार चली जा रही थी और उस जगह को देखकर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था। शुभम की बातें सुनकर सरला शर्म के मारे एकदम चुप्पी साध ली थी .... उसके मुंह से एक भी शब्द फूट नहीं रहे थे.... शुभम जोकि कई औरतों की संगत में आ चुका था इसलिए सरला के चेहरे पर बदलते भाव को वाशी तरह से समझ रहा था शुभम की प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना था उसका मन हर्षोल्लास में उत्तेजित हुआ जा रहा था वह चाहता तो इसी समय सरला को अपनी बाहों में लेकर उसके गुलाबी होठों का चुंबन कर सकता था और इससे ज्यादा भी आगे बढ़कर वह शायद सरला से संभोग सुख भी हो सकता था लेकिन शायद यह उचित समय नहीं था इसलिए वह अपने आप पर सब्र करके रुक गया सरला की हालत खराब हो जा रहे थे वहां अपनी नजरें शुभम से बचा रही थी...वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि उम्र के इस पड़ाव पर आकर एक जवान लड़का उसकी इस तरह की तारीफ करेगा जबकि वह लड़का उसके ही लड़के की उम्र का था.... लेकिन जो कुछ भी हो रहा था उसी से सरला को किसी भी प्रकार का एतराज नहीं था बल्कि उसे तो यह सब बातों का एहसास ही किसी और दुनिया में लिए जा रहा था उसे सब कुछ अच्छा लग रहा था।
सरला के साथ-साथ शुभम की सांसो की गति तेज होती जा रही थी....
शुभम सरला की तरफ देखते हुए रस्सी पर से सूखे हुए कपड़े उतारकर सरला को थमाते जा रहा था ।
और कपड़ों को उतारते समय उसके मन में उम्मीद बनी हुई थी कि जिस तरह से वार रूचि किस तरह से मदद करते हुए उसकी ब्रा और पेंटी तक पहुंच गया था अगर किस्मत अच्छी हुई तो आज उसके हाथों सरला की भी ब्रा और पेंटी हाथ लग जाएगी इसी उम्मीद में वह कपड़े उतारता जा रहा था। ...
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

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सरला एकदम शर्मसार हुए जा रही थी क्योंकि बार-बार उसकी नजरें शुभम के तने हुए तंबू पर चली जा रही थी ... और उस तंबू की ऊंचाई को देखकर उसकी टांगों के बीच की हलचल बढ़ती जा रही थी उसकी जांघों में थरथराहट पैदा हो रही थी। क्योंकि अनजाने में ही उसके हाथ में आए शुभम के लंड की वजह से इतना तो समझ ही गई थी कि शुभम के टांगों के बीच का हथियार एकदम दमदार है। उसके लोहार में तने हुए लंड की कल्पना ही उसकी बुर को पूरी तरह से पनिया रही थी।
कुछ पल के लिए दोनों के बीच किसी भी प्रकार की वार्तालाप नहीं हो रही थी दूर आसमान में सूरज अपनी लालिमा लिए जमीन में समाने के लिए तैयार था छत पर अंधेरा होने लगा था लेकिन इतना भी अंधेरा नहीं था कि सरला कुछ देख ना पाए एक तो कमर के ऊपर का शुभम का नौजवान नंगा बदन और ऊपर से लोअर में तना हुआ उसका तंबू अजीब सा हलचल मचाए हुए था....
शुभम इसी उम्मीद में रस्सी पर से कपड़े उतारे जा रहा था कि सरला की ब्रा पेंटी उसके हाथ लग जाएगी और जैसा कि उसे उम्मीद थी ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी मनोकामना पूरी होने लगी और जैसे ही वह साड़ी को रस्सी पर से उतारा उसके नीचे सूखने के लिए रखी हुई ब्रा और पेंटी नीचे गिर गई और शुभम तुरंत नीचे की तरफ लपक कर सरला की ब्रा और पेंटी उठा लिया।


उसके हाथों में सरला की ब्रा और पेंटी आ गई थी जिसे वह अपने हाथों में लेकर एक पल के लिए उसे चारों तरफ घुमा कर देखने लगा सरला यह देखकर एकदम शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी क्योंकि उसकी ब्रा और पेंटी एक नौजवान लड़की के हाथ लग गई थी जिसे वह चारों तरफ से देख रहा था एक अजीब सी उत्सुकता और उत्तेजना का अनुभव सरला को हो रहा था उसके दिल की धड़कने बढ़ने लगी थी साथ ही उसके छातियों का घेराव सांसो की गति के साथ ऊपर नीचे हो रहा था ।उत्तेजना के मारे सरला का गला सूखता जा रहा था और यही हाल शुभम का भी हो रहा था उसका सपना उसकी उम्मीद सच हो गई थी उसकी हाथों में सरला की ब्रा और पेंटी आ गई थी जिसे हाथों में लेकर वह काफी उत्साहित और उत्तेजित नजर आ रहा था जिसका हलचल उसे अपनी टांगों के बीच बराबर हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि जवानी से भरी सरला की ब्रा और पेंटी को देखकर उसके नौजवान मर्दाना लंड ने सरला की जवानी रूपी ब्रा और पेंटी को सलामी भरी हो इस तरह से ऊपर नीचे होने लगा.... शुभम को तो समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे और कैसे उसकी ब्रा और पेंटी को उसके हाथों में थमाए उसके मुंह से शब्द नहीं फूट रहे थे... फिर भी हिम्मत दिखाते हुए वह सरला से बोला।

चचचचच.... चाची यह आपके हैं....? (शुभम हकलाते हुए बोला।)


सरला छठ से शुभम के यहां तो से अपनी ब्रा और पेंटी ले ली और शर्मा कर मुस्कुराते हुए बोली।


नहीं तो और किसके होंगे मेरे ही हैं....(इतना कहते-कहते उसका गला सूखने लगा....)


लेकिन चाची आप बुरा ना माने तो एक बात कहूं।

बोल ......( सरला शर्म के मारे दूसरी तरफ मुंह करके बोली)

चाची आप की पेंटी में छेद हो गया है। (शुभम सोचे समझे बिना हिम्मत दिखाते हुए एकदम बेशर्म बनकर धड़ाक से बोल दिया....सरला तो यह सुनकर एकदम शर्म से पानी पानी हो गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहें लेकिन जिंदगी में पहली बार उसे इस तरह से किसी ने उसकी पेंटिंग में पड़े छेद के बारे में खुले शब्दों में बोला था और ऐसे भी कोई बोल कहां पाता जब कोई देखेगा तभी ना कहेगा .... और देखने वाला कौन था उसका पति जो कि इस समय दुनिया में नहीं था उसे उम्मीद नहीं थी कि कल का छोकरा उसकी पेंटी के बारे में इतनी बड़ी बात और वह भी एकदम बेझिझक बोल जाएगा.... लेकिन उसकी बात सुनकर पल भर में ही सरला की उत्तेजना बढ़ गई... उसकी जांघों के बीच हरदम आउट होने लगी उत्तेजना का इतना जबरदस्त अनुभव उसने आज तक नहीं की थी उसे अपनी पेंटी पूरी तरह से गीली होती हुई महसूस होने लगी... अपने आप को संभालते हुए वह शुभम के सवाल का जवाब देते हुए बोली...


हां मेरी पेंटिं में छेद है लेकिन क्या करूं मैं कभी बाजार खरीदने गई अगर ऐसा है तो तो क्यों खरीद कर नहीं ले कर दे देता....(सरला शुभम से यह बात नजरें चुराकर लेकिन मंद मंद मुस्कुराते हुए बोली...)


मै खरीद कर ला तो दू लेकिन मुझे साइज नहीं मालुम....(शुभम बड़ी मासूमियत के साथ बोला..)


तुझे तो औरतों के बारे में सब कुछ पता है तो मेरी साइज के बारे में भी तुझे पता ही होगा लाकर दे दे (इतना कहकर वो वहां से मुस्कुराते हुए नीचे चली गई। शुभम तो सरला की यह बात सुनकर एकदम से गनगना गया... वहअपने खड़े लंड को लोगों के ऊपर से ही मचलता हुआ सरला को गांड मटका कर जाते हुए देखता रह गया उसकी मुस्कुराहट देखकर इतना तो समझ गया था कि जो कुछ भी वह बोला था इसे सरला को जरा भी बुरा नहीं लगा था बल्कि जिस तरह से वह बातें कर रही थी वह साफ समझ गया था कि उसकी बातें सरला को अच्छी लगी थी।।
शुभम का काम बन चुका था और वह वापस अपनी छत पर आ गया।

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शुभम को खुद पर भरोसा नहीं हो रहा था कि उसने इतनी बेशर्मी भरी बातें सीधे-सीधे सरला से कह दी थी उसे अपनी हिम्मत पर भरोसा नहीं हो रहा था लेकिन जो कुछ भी उसने कर दिया था उससे उसे बहुत हिम्मत मिल रही थी उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे अब उसकी मंजिल दूर नहीं है या यूं कह लो कि अब उसे अपनी मंजिल साफ साफ नजर आ रही थी जो कि सरला की मदमस्त मोटी मोटी टांगों से होकर गुजरती थी और टांगों के बीच जाकर खत्म हो जाती थी ढेर सारी औरतों को भोग चुका शुभम सरला के बारे में सोच कर मस्त हो जा रहा था उसे यकीन हो गया था कि जिस तरह से वह इतनी गंदी और भद्दी बात पर सरला मुस्कुरा कर गई थी और उसे खुद नई पैंटी और ब्रा खरीद कर लाने के लिए बोल कर गई थी इससे साफ जाहिर था कि आप शुभम का काम बन चुका था उसके हाथों एक नई चिड़िया हाथ लग चुकी थी भले ही वह उम्र दराज थी लेकिन शुभम की आंखों मैं तो हमेशा औरतों की बड़ी-बड़ी गांड और बड़े बड़े दूध ही बसे होते हैं जोकि सरला के पास अखुट भंडार था। सरला जिस तरह से अपनी गांड मटका कर गई थी.. शुभम को लगने लगा था कि सरला खुद अपनी मदमस्त गांड उसकी गोद में पसार देगी... शुभम के दिल पर छुरिया चल रही थी अपने आप को संभाल नहीं पा रहा था उसके लोअर में गदर मचा हुआ था जिसे शांत करना बेहद जरूरी थोड़ी सी बात तुरंत टी-शर्ट पहन कर अपने कमरे में गया और सरला के बारे में कल्पना करते हुए अपनी मोटी तगड़े लंड को हिलाना शुरू कर दिया और तब तक हीलाता रहा जब तक कि सरला के नाम का पानी निकल नहीं गया..... ।
और यही हाल सरला का भी था उम्र के इस पड़ाव पर आकर जिस तरह से वह अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव कर रही थी वह उसके लिए काबिले तारीफ थे क्योंकि वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि उसके बदन में इस तरह का बदलाव होगा शुभम की बेधड़क बात और वह भी उसकी पैंटी में छेद के बारे में उस बात को याद करके ही सरला पूरी तरह से कामोत्तेजना के सागर में डूबती चली जा रही थी बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके लोअर में तना हुआ तंबू नजर आ रहा था। उसके दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी बार-बार उसकी उत्सुकता लोअर के अंदर के हथियार को देखने के लिए बढ़ती जा रही थी लेकिन उस के नसीब में ना जाने वह दिन कब आएगा जब वह अपने हाथों से शुभम के मोटे तगड़े लंड को हाथ में लेकर हीलाएगी और उसे अपने हाथ में लेकर ही अपनी बुर का रास्ता दिखाएंगी यह सब सोचकर ही उसके बदन में अंगड़ाइयां उठ रही थी.... उत्तेजना और कल्पना के सागर में डूबते हुए उसका बदन पसीने से तरबतर हो चुका था वह बिस्तर पर अपनी साड़ी को कमर तक करके एक बार फिर से अपनी बुर में अपनी दोनों उंगली डालकर अपनी गर्मी को शांत करने की कोशिश कर रही थी। और कुछ देर में वह अपनी पुर का पानी निकाल कर एकदम शांत हो गई....

सरला ने बात ही बात में शुभम को एक अद्भुत काम में डाल दी थी जो कि आज तक शुभम ने उस काम को अंजाम नहीं दिया था लेकिन कभी ना कभी तो यह काम करना ही था ... इसलिए सरला के द्वारा दिया हुआ यह चैलेंज मानकर वह दुसरे दिन ही नहा धोकर तैयार हो गया और बाजार निकल गया वह इस काम में देरी नहीं करना चाहता था। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था किस काम में ढील देने का मतलब है कि अपनी मंजिल से दूर होना इसलिए वह जल्द से जल्द अपनी मंजिल को पा लेना चाहता था इसलिए मौके की नजाकत को समझते हुए वह बाजार पहुंच गया और अच्छी सी दुकान देख कर उस में प्रवेश कर गया... काउंटर पर बहुत ही खूबसूरत लेडी बेठी हुई थी... पहले तो शुभम बहुत ही अच्छा रहा था क्योंकि उसका यह पहला अनुभव था किसी लेडीस के लिए ब्रा पेंटी खरीदने का। इसलिए उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और वैसे भी काउंटर पर लेडी बैठी होने की वजह से उसे अंदर ही अंदर घबराहट हो रही थी लेकिन उसके लिए एक अच्छी बात थी कि उस काउंटर पर कोई और नहीं था और वह काउंटर औरतों के अंतर्वस्त्र का ही था इसलिए वह थोड़ी हिम्मत दिखाते हुए कि जो भी होगा देखा जाएगा इतना सोच कर वह उस काउंटर की ओर आगे बढ़ गया.... काउंटर पर पहुंचकर भाई इधर उधर देखने लगा जबकि वह औरतों के अंतर्वस्त्र का काउंटर था इसलिए काउंटर से बनने वाली वह लेडी उसे शंका की नजर से घूरने लगी क्योंकि वह काफी बार इस तरह का अनुभव कर चुकी है कि बेवजह इस तरह के लड़के आते थे और औरतों की ब्रा पेंटी के नाम के बारे में भाव के बारे में पूछ कर वहां से रफूचक्कर हो जाते थे इसलिए वह सोचे कि शायद यह भी इसी तरह का ही लड़का है इसलिए वो खुद बोली।

आपको क्या चाहिए....? (एक सेल्समैन होने के नाते वह काफी इज्जत से शुभम से बोली)

जी ... जी......


यह जीजी क्या लगा रखे हो क्या चाहिए यह बताओ... (इस बार हुआ लेडी थोड़े सख्त स्वर में बोली)


जी मुझे मेरे भाभी के लिए ब्रा और पेंटी चाहिए.. (शुभम की बात सुनते ही वह काउंटर वाली लेडी शुभम को ऊपर से नीचे तक संकास्पद नजरों से देखी...) वह क्या है ना गांव से नई नई आई है ना इसलिए वह बाजार नहीं आती इसलिए मुझे लेकर जाना पड़ रहा है। अगर आप मेरी मदद कर देती तो....(इतना कहकर वह उस लेडी की तरफ आशा भरी नजरों से देखने लगा वह काउंटर वाली लेडी भी बात को समझते हुए मुस्कुरा कर बोली...)

जी कोई बात नहीं मैं आपकी हर तरह से मदद करने के लिए तैयार हूं आप साइज बताइए।

जी साइज तो मुझे नहीं मालूम....


देखिए जब आपको शाईज नहीं मालूम तो आप कैसे खरीदेंगे....


जी अगर आप मदद कर देती तो....


लेकिन इसमें मैं कैसे मदद कर सकुगी... साइज के बारे में पता होता तो जरूर मदद कर सकती..... अच्छा एक काम करिए सामने कुछ औरतें खड़ी है उन्होंने तो को देखकर आप मुझे बताइए कि आपकी भाभी का साइज किसकी तरह है तो मैं आपकी जरूर मदद कर सकती हुं।



उसकी बात सुनते ही शुभम दुकान में चारों तरफ नजर घुमाकर सरला के कद काठी वाली औरत को ढूंढने लगा और जल्द ही उसकी तलाश खत्म हो गए सामने की साड़ी के काउंटर पर एक औरत खड़ी थी जो कि एकदम सरला के कद काठी की थी उसके नितंबों का घेराव भी सरला की तरह ही था इसलिए उसकी ओर उंगली दिखाते हुए शुभम बोला।



वह देखिए वह पीली साड़ी वाली आंटी खड़ी है ना बिलकुल वैसी है मेरी भाभी की कद काठी है ।

(उस औरत को देखते ही काउंटर वाले लेडी समझ गई कि कौन सा साइज चाहिए इसलिए वह तुरंत अच्छी कंपनी का और एकदम आरामदायक ब्रा और पेंटी की सीरीज निकाल कर रख दी।)

यह लीजिए पसंद कर लीजिए आपको जो अच्छी लगती है यह सबसे अच्छी किस्म की ब्रा और पेंटी है ।
(शुभम काउंटर पर रखी हुई प्रॉपर्टी की कुछ सीरीज में से अच्छे कलर की सीरीज देखकर उसे पसंद करने लगा और उनमें से लाल रंग की ब्रा और पेंटी निकालकर दूसरी तरफ रखते हुए बोला।)

यह अच्छी लग रही है अच्छा आप बुरा ना मानो तो एक आप अपनी तरफ से पसंद कर सकती हैं जो वाकई में खूब अच्छी हो...

क्यों नहीं.... ( और इतना कहने के साथ है यह वह लेडी उसमें से एक आसमानी रंग की जालीदार ब्रा और पेंटी निकालकर साइड में रख दी और बोली।)


यह बहुत ही अच्छी लगेगी आपकी भाभी पर...(वह मुस्कुराते हुए बोली उसकी बातों में आत्मविश्वास झलक रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अच्छी तरह से जानती हो कि अगर उसकी भाभी यह पहनेगी तो वह जरुर देखेगा और वह अच्छी तरह से जानती थी कि अधिकतर लड़के केवल औरतों कि टांगों के बीच पहुंचने के लिए ही उन्हें इस तरह के कपड़े खरीद कर देते रहते हैं।)

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद बस आप इतना कीजिए कि इसे गिफ्ट की तरह पैक कर दीजिए....
(शुभम की यह बात सुनते ही क्वालिटी समझ गई कि मामला कुछ और है वह केवल मुस्कुरा कर उसे गिफ्ट की तरफ एक करने लगी और उसे पैक करने के बाद बिल के साथ उसे शुभम को थमा दी जिसका भुगतान करके वह खुशी-खुशी दुकान से बाहर निकल गया...शुभम काफी खुश नजर आ रहा था क्योंकि जिंदगी में आज पहली बार उसने ऐसा काम किया था जिसके बारे में उसने अभी तक कल्पना तक नहीं किया था औरतों के अंतर्वस्त्र खरीदने का यह उसका पहला अनुभव था और यह अनुभव बेहद रोमांच से भरा हुआ था... आखिरकार वह सरला के लिए ब्रा और पेंटी खरीद चुका था और वह भी 2 जोड़ी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे सरला को यह गिफ्ट का पैकेट थमाए क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि इसे घर पर लेकर जा नहीं सकता था इसलिए दुकान से निकल कर सीधे सरला की घर पर पहुंच गया और होर्न बजाकर
सरला को बाहर आने का इशारा किया सरला को यह नहीं मालूम था कि बाहर घर के कौन होरन बजा रहा है वह सिर्फ देखने के लिए आई थी ईतना होर्न कौन बजा रहा है जब वह अपने दरवाजे पर शुभम खड़ा है तो वह एकदम खुश हो गई वह कुछ कह पाती इससे पहले ही शुभम उसके हाथ में गिफ्ट वाला पैकेट हम आकर अपने घर की तरफ गाड़ी घुमा दिया वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही शुभम अपने घर में जा चुका था साला समझ नहीं पा रही थी आखिरकार यह गिफ्ट क्यों...? और इस गिफ्ट में क्या हो सकता है उसके मन में उथल-पुथल चल रही थी एक पल के लिए तो उसका मन आशंका से भर गया कि कहीं कल वाली बात मान कर शुभम ने उसके लिए ब्रा पेंटी तो नहीं खरीद कर लाया...यह ख्याल उसके मन में आते ही उसके बदन में पल भर में उत्तेजना की लहर दौड़ गई और वह उस गिफ्ट वाले पैकेट को लेकर अपने कमरे में चली गई.....

दूसरी तरफ शुभम ब्रा पेंटी वाला गिफ्ट का पैकेट सरला को पकड़ा कर पूरी तरह से रोमांच से भरा हुआ था उसके तन बदन में उत्तेजना चिकोटी काट रही थी... शुभम बेशर्मी की सारी हदें एक के बाद एक बार करता हुआ आगे बढ़ रहा था अपनी मां से भी बड़ी उम्र की औरत को वह उसके अंतर्वस्त्र खरीद कर उसे गिफ्ट किया था इसका क्या असर होने वाला था शायद इसका आभास शुभम को पहले से ही हो गया था जिसको सरला की मुस्कुराहट बयां करती थी।

mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

शुभम अपनी उंगली में अपनी बाइक का छल्ला ना चाहते हुए और सीटी बजाते हैं घर में प्रवेश किया..
शुभम काफी उत्साहित नजर आ रहा था अंदर ही अंदर वह बहुत प्रसन्नता क्योंकि उसने आज बहुत बड़ा काम कर दिया था और इस बात की किसी को कानो कान खबर तक नहीं पडी थी.... तभी सामने से सीढ़ियों पर से उतरती हुई निर्मला उसे खुश देखकर बोली।

क्या बात है शुभम आज बहुत खुश नजर आ रहा है... और यह सुबह-सुबह आज कहां चला गया था.... कहीं किसी लड़की का तो चक्कर नहीं है ना....?(निर्मला सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए बोली... शुभम अपनी मां को भी देख रहा था जो इस समय नहा कर बाहर आई थी और अभी भी उसके बाल एकदम गीले थे । आसमानी रंग की जालीदार साड़ी में कयामत लग रही थी वह अपनी मां को देखकर इतना तो निश्चित तौर पर कह सकता था कि दुनिया में उसके जैसी कोई भी दूसरी खूबसूरत औरत नहीं है...


क्या बात कर रही हो मम्मी मैं भला किसी लड़की के चक्कर में क्यों पड़ लूंगा जब घर में ही इतनी खूबसूरत और हसीन औरत है....


लेकिन मुझे मर्दों का कोई भरोसा नहीं लगता...


लेकिन मेरा भरोसा तुम्हें करना होगा मम्मी क्योंकि मेरी जिंदगी में तुम ही एक औरत हो बाकी कोई नहीं और वैसे भी मुझे किसी दूसरी औरत या लड़की में इंटरेस्ट नहीं है क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानता हूं बाकी सभी औरतें तुम्हारी तरह खूबसूरत नहीं है....
(अपने बेटे की चिकनी चुपड़ी बातें सुनकर वह मुस्कुराते हुए किचन के अंदर प्रवेश कर गई और पीछे पीछे अपनी मां की मदमस्त मटकती हुई गांड देखकर वह भी रसोई घर में घुस गया। रसोई घर में पहुंचते ही निर्मला अपनी मादक अदाओं का जलवा बिखेरते हुए तुरंत किचन का फ्लोर पकड़ कर तुरंत शुभम की तरफ घूम गई और अपनी भारी भरकम चुचियों को लगभग शुभम की तरफ परोसते हुए बोली....)

अब तु किचन में क्या करने आ रहा है..?


मुझे भूख लगी है मम्मी इसलिए तो किचन में आया हूं.....( शुभम अपनी मां की बड़ी-बड़ी गदराई चुचियों को घूरता हुआ बोला)


अभी नाश्ता तैयार नहीं है बाहर जाकर इंतजार कर अभी समय लगेगा ....(निर्मला जानबूझकर अपनी दोनों फुटबॉल जैसी चुचियों को शुभम की आंखों के सामने नचाते हुए बोली एक तरह से शुभम को उकसाने वाला कार्य था वह जानबूझकर ऐसा कर रही थी ताकि शुभम उससे मस्ती करें और शुभम भी अपनी मां की यह मादक अदा देकर एकदम से मस्ती के सागर में डूबने के लिए तैयार हो गया और वैसे भी सरला की वजह से वह काफी अंदर ही अंदर उत्तेजित था।


अगर नाश्ता तैयार नहीं है तो मुझे दूध ही पिला दो (शुभम तुरंत अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर ब्लाउज के ऊपर से अपनी मां की मदमस्त दशहरी आम को पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया)

आहहहहहहह .... क्या कर रहा है बड़ा बदमाश हो गया है तू.....(शुभम के दोनों हाथ को अपनी चुचियों पर से हटाते हुए बोली. )


जब ऐसी मदमस्त जवान औरत अपने हुस्न के जलवे दिखाए तो मेरे जैसा कोई भी जवान लड़का बदमाशी करने पर उतारू हो जाएगा....(शुभम वापस अपने दोनों हाथ को अपनी मां की दशहरी आम पर रखते हुए बोला.. ।)


तू पक्का मादरचोद हो गया है.... मुझे अपने सामने देखा नहीं की नोचने खसोटने के लिए तैयार हो जाता है....


मेरी जान मुझे मादरचोद बनाई भी तो तू ही है....


अच्छा यह बात है तो क्या मैंने तुझे कही थी कि आप मेरे ऊपर चढ़ जा.... (निर्मला जानबूझकर अपने बेटे की तरफ पीठ करके खड़ी हो गई क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि उसके बेटे की सबसे बड़ी कमजोरी उसके भारी-भरकम मदमस्त गांड थी... और उसे पूरा विश्वास था कि उसकी मदमस्त मांग को देखकर शुभम पूरी तरह से औकात में आ जाएगा ....और उसका यह सोचना उसका आत्मविश्वास सच साबित हुआ शुभम अपनी मां की मदमस्त बड़ी बड़ी गांड देखा कर पूरी तरह से अपनी वासना क्या दिन हो गया और आगे बढ़कर अपने दोनों हथेली को साड़ी के ऊपर से अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड पर रखकर ऊसे दबाते हुए बोला.....


ससससससहहहहहह ....आहहहहहहह ..... मादरचोद जब जानबूझकर ऐसी अपनी बड़ी बड़ी गांड मुझे दिखाएगी तो मैं क्या कोई भी होगा वह चढ़ ही जाएगा ना....(शुभम उत्तेजना में आकर जोर जोर से अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड दबाते हुए बोला शुभम को इस तरह से अपनी मत मस्त गांड से खेलता हुआ देखकर निर्मला एकदम उत्तेजित होने लगी उसके गोरे गोरे गाल उत्तेजना के मारे लाल टमाटर की तरह हो गए....)


तो क्या तू मेरी बड़ी बड़ी गांड की वजह से मादरचोद बन गया।


हाय मेरी जान तेरी बड़ी बड़ी गांड की वजह से ही मैं मादरचोद कर गया तेरी गांड देखकर ना जाने मुझे क्या हो जाता था और ना चाहते हुए भी मुझे तेरी गांड में लंड डालना पड़ा।.....


चल हट मुझे अपना काम करने दे....(निर्मला शुभम को पीछे की तरफ झटकते हुए बोली... हालांकि वह ऐसा नहीं चाहती थी लेकिन उसे अपने बेटे की इस तरह की जोर-जबर्दस्ती अच्छी लग रही थी.... अपनी मां की गदराई गांड से खेलकर शुभम पूरी तरह से उत्तेजित होने लगा था ... वह इस बार फिर से अपनी मां को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया और अपने दोनों हाथ आगे करके अपनी मां के दोनों कबूतरों को ब्लाउज के ऊपर से ही दबोच कर उन्हें पुचकारने लगा....(अपने बेटे की इस हरकत की वजह से ही निर्मल आपने हाथ को पीछे की तरफ लाकर उसे हटाने की कोशिश करते हुए बोली)

हटना क्या कर रहा है मुझे अपना काम करने दे नाश्ता तैयार करने दे....


नहीं मुझे तो आज तेरा दूध पीना है...(इतना कहते हुए शुभम अपनी मां के बदन से एकदम से सट गया और निर्मला के पिछवाड़े पर अपना तना हुआ तंबू रगड़ना शुरू कर दिया... अब क्या था निर्मला तो मस्ती के सागर में गोते लगाने लगी आगे से चूची से खेल रहा था और पीछे से ने लंड को गांड पर रगड़ कर गर्माहट दे रहा था....)


मैंने तो सुबह में ताजा तैयार कर देती हूं मुझे दूध नहीं पिलाना....

लेकिन मुझे तो बस तेरा दूध ही पीना है यह बड़ी बड़ी चूची किस दिन काम आएगी ( इतना कहते हुए शुभम अपनी मां के ब्लाउज के बटन खोलने लगा.... वह पूरी तरह से उत्तेजना में सराबोर हो चुका था... सरला के साथ जिस तरह का व्यवहार उसका होता जा रहा था उसे देखते हुए वह पहले से ही काफी कामोत्तेजना का अनुभव कर रहा था और घर पर आकर अपनी मा कामादक स्वरूप देखकर पूरी तरह से पागल हो गया और देखते ही देखते वह अपनी मां के ब्लाउज के सारे बटन खोल दिया यूं तो निर्मला उसे रोकने की बहुत कोशिश कर रही थी लेकिन अंदर ही अंदर वह उसे उत्साहित भी कर रही थी उसे अच्छा लग रहा था उसके साथ इस तरह से उसका बेटा जबरदस्ती कर रहा था वह एक अजीब सी उत्तेजना का अनुभव कर रही थी...निर्मला अपने बेटे की हर हरकत का भरपूर आनंद लेते हुए सिसकारी ले रही थी शुभम अपनी मां के दोनों दशहरी आम को अपने दोनों हाथ से दबाकर उनका रौशनी छोड़ने में लगा हुआ था और पीछे से अपने तंबू को बार-बार अपनी मां की गांड पर साड़ी के ऊपर से ही रगड़ रहा था जिससे दोनों को ही दुगना आनंद की प्राप्ति हो रही थी। रसोई घर में अद्भुत और कामोत्तेजना से भरपूर दृश्य रचा जा रहा था।


नहीं रहने दे आज तो छोड़ दे मादरचोद रोज तो तू पीता है मेरा दुध....


साली रंडी पहले अपने दूध दिखाती है और जब उस से खेलने लगो तो बातें बनाती है....

भोसड़ी वाले तुझे किसने कहा था कि तू मेरे दूध से खेल।


तो मादर चोद अपने दूध हिला हिला के क्यों मुझे दिखा रही थी....(शुभम लगातार अपनी मां की चुचियों को आपस में मसलते हुए बोला ।।)


मुझे क्या मालूम था मादरचोद की औलाद कि तू मेरी चूची देख कर पागल हो जाएगा....


साली तू यह कह रही है तुझे तो पता होना चाहिए था कि मैं कितना सीधा साधा लड़का था बस तेरी बड़ी-बड़ी चूचियां और मटकती गांड देखकर ही मैं मादरचोद हो गया.....


अच्छा हुआ भोसड़ी वाले तुम मादरचोद हो गया वरना तेरे बाप ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा था तो उसके पास इतना छोटा सा लंड था कि मेरी बुर के अंदर पूरा घुसता भी नहीं था।


तभी तो साले तुझे मेरे गधे जैसे लगा से मजा आ रहा है जो कि तेरी बुर की पूरी गहराई नाप कर बाहर आता है.....


लेकिन मादरचोद मुझे अभी छोड़ दे मुझे नाश्ता बनाने दे मुझे देर हो रही है....


अब मै तेरी एक बात नहीं सुनने वाला तूने अपनी हरकतों की वजह से मेरे लंड को खड़ा कर दि है अब ईसे शांत अभी तू ही करेगी....


अभी रहने दे शुभम बाद में कर लेना मुझे बहुत देर हो रही है...(यह बात निर्मला ऊपरी मन से बोली थी अंदर से तो यही चाहती थी कि जो कार्य करने की शुरुआत उसका बेटा कर चुका है उसे अंजाम तक पहुंचाकर ही दम ले क्योंकि उसकी हरकतों की वजह से निर्मला के तन बदन में वासना की और चिंगारी भड़क रही थी जो दो-चार दिन से एकदम अंदर ही अंदर दबी हुई थी वह पूरी तरह से चुदवाती हो चुकी थी क्योंकि दो-तीन दिन से शुभम ने उसकी चुदाई नहीं किया था और निर्मला की आदत बन चुकी थी कि जब तक हुआ अपने बेटे का लंड अपने दिल की गहराई के अंदर में सूचना कर ले तब तक उसे चैन नहीं मिलता था..... अपनी मां की बात सुनकर वह पूरी तरह से जोश में आ गया था शुभम भी यह बात अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां को इस तरह से गंदी बातें करना बहुत अच्छा लगता था खासकर के गालियों के साथ... और यह सब शुभम को भी काफी उत्साहित और कामोत्तेजना से भर देता था दोनों पूरी तरह से मस्त हो चुके थे वह अच्छी तरह से जानता था कि वह जानबूझकर उसे रोकने की कोशिश कर रही है क्योंकि इतने साल में शुभम अपनी मां की हरकत को पहचान गया था उसकी रग रग से वाकिफ हो गया था वह चित्र से जानता था कि उसकी मां को इस समय मोटे तगड़े लंड की जरूरत है इसलिए तो वह किचन में आकर उसे उकसा रही थी... इसलिए शुभम एक झटके से अपनी मां के कंधे को पकड़ कर उसे अपनी तरफ घुमा लिया और अपनी मां की नंगी चूचियों पर मूह रखकर उस पर टूट पड़ा कभी दाएं चूची को मुंह में लेकर पीता तो कभी बांए चुची को.... वह अपनी मां के दशहरी आम का भरपूर मजा लूट रहा था निर्मला पूरी तरह से चुदवासी हो गई थी... रसोई घर में निर्मला की गरम सिसकारी गूंजने लगी वह पूरी तरह से मतवाली हुए जा रही थी.. वह उत्तेजना बस नीचे की तरफ हाथ ले जाकर एक हाथ की मदद से शुभम के पेंट के बटन खोलने लगी और अगले ही पल शुभम के लंड को हाथ में लेकर उसे हिलाते हुए बोली....

जल्दी कर सुभम मुझे देर हो रही है नाश्ता तैयार करना है...

मादरचोद मुझे मालूम है तुझे किस चीज की भूख लगी है मैं जानता हूं कि तू मेरे लंड को अपनी बुर में लेना चाहती है.... तू चिंता मत कर मुझे भी इसी चीज की भूख है तो मेरे लंड की भूखी है मैं तेरी बुर का भूखा हूं...जब तक तेरी रसीली बुर मैं अपना लंड नहीं डाल देता तब तक मुझे चैन नहीं मिलता...
(इतना कहते हुए शुभम लगातार अपनी मां की चुचियों से खेलता रहा कुछ देर तक यूं ही मदमस्त दशहरी आम का रस पीने के बाद वह एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर अपनी मां की साड़ी को ऊपर तक उठाने लगा और तब तक उठाते रहा जब तक कि उसकी साड़ी कमर तक नहीं आ गई.... साड़ी कमर तक आते ही शुभम ने जब अपनी हथेली से
अपनी मां के टांगों के बीच की उस मखमली जगह को टटोला तो उसे इस बात का अहसास हुआ कि उसकी मां ने पेंटी तो पहनी ही नहीं थी .... इस बात का आभास होते ही शुभम की आंखों में चमक आ गई... और वह अपनी मां की बुर को अपनी हथेली में दबोचते हुए बोला......


आहहहहहहह .... मेरी रानी लगता है कि पूरी तैयारी के साथ आई थी तभी तो आज चड्डी नहीं पहनी है....


क्या करूं मेरा तो मन कर रहा था कि आज बिना कपड़े के नंगी होकर घूमु.....


सससहहहहहहह.... तेरी यही अदा का तो मैं दीवाना हूं मेरी जान.....(इतना कहते हुए शुभम अपनी मां की मखमली बुर को जोर जोर से रगड़ रहा था उसमें से मदन रस का रिसाव लगातार हो रहा था जिसे उसकी हथेली पूरी तरह से गीली होने लगी थी और निर्मला को अपने बेटे की इस तरह की गंदी बातें सुनकर बहुत ही ज्यादा मजा आ रहा था उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी वह एक पल भी सब्र करने लायक नहीं थी उसकी बुर मोटे तगड़े लंड के लिए तड़प रही थी... और शुभम अपनी मां की तड़प दूर करने के लिए एक हाथ से उसकी टांग पकड़ कर उसे किसी वृक्ष के तने की तरह अपनी कमर पर लपेट लिया.... अब शुभम का मोटा तगड़ा लंड निर्मला की रसीली बुर पर ठोकर मारने लगी....
दोनों मां बेटी के सब्र का बांध टूट रहा था दोनों उतावले हो चुके थे एक दूसरे में समाने के लिए शुभम तुरंत एक हाथ से अपने मोटी तगड़ी लंड को पकड़ कर उसे अपनी मां की रसीली बुर पर ऊपर नीचे करके रगड़ना शुरु कर दिया... शुभम की इस हरकत की वजह से निर्मला और ज्यादा गरमाने लगी... उसके मुख से लगातार सिसकारी की आवाज निकलने लगी...

ससससससहहहहहह..... सुभम मेरे राजा मुझे इतना क्यों तड़पा रहा है.... डाल दे जल्दी मेरी बुर में (इतना कहने के साथ ही निर्मला खुद अपने बेटे के लंड को पकड़ कर उसे अपनी गुलाबी बुर् के गुलाबी पत्तियों के मुहाने पर रखकर उसे छेद में डालने के लिए उकसाने लगी।... अपनी मां को खुद इस तरह से अपनी पुर का रास्ता दिखाते हुए पाकर शुभम पूरी तरह से उत्तेजना में सरोवर हो गया और दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड थामकर एक करारा झटका मारा ... और उसका मोटा तगड़ा लंड बुर के बीच की सारी अड़चनों को दूर करता हुआ सीधे जाकर बच्चेदानी से टकरा गया... इस करारे झटके की वजह से निर्मला के मुंह से हल्की आह निकल गई.


आहहहहहहहह ...... सुभम .....


लेकिन शुभम कहां रुकने वाला था घर में आने से पहले उसे इस बात की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी कि उसे इस तरह का जबरदस्त चुदाई करने का मौका मिल जाएगा और वह भी रसोई घर में वैसे भी उसकी और उसकी मां की सबसे अत्यधिक रुचिकर जगह रसोई घर ही था ना जाने क्यों रसोई घर में आकर दोनों अपने काबू में नहीं रहते थे और मौका मिलते ही इस तरह से चुदाई का आनंद उठाते थे उसी तरह से आज भी दोनों को मौका मिल गया था और इस मौके का दोनों ने भरपूर लाभ उठाते हुए चुदाई का आनंद लूट रहे थे शुभम तो अपनी मां की मदमस्त गांड पकड़कर धक्के पर धक्के पी रहा था।
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

निर्मला अपने बेटे की हर धक्के के साथ गर्म सिसकारी की आवाज निकाल रही थी जिससे शुभम का जोश बढ़ता जा रहा था उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी अपनी मां को चोदते समय उसके जेहन में ख्याल अवश्य रहा था कि वह चाहे जहां भी किसी भी औरत के साथ मुंह मार ले लेकिन जो शब्द जो आनंद की अनुभूति जो तृप्ति का अहसास उसे अपनी मां के साथ चुदाई करने में आता है वैसा अहसास उसे किसी के साथ भी नहीं आता। इसी बात का एहसास लिए वह धक्के पर धक्के मार रहा था.... दोनों मजे लूट रहे थे रसोईघर में चप चप की आवाज के साथ साथ निर्मला की मादक सिसकारियां गुंज रही थी.... शुभम का मोटा तगड़ा लंड किसी मुसल की तरह ओखलीनुमा बुर में बार-बार बज रहा था। निर्मला की मखमली बुर मोटे तगड़े लंड को अंदर लेने की वजह से काफी फैल चुकी थी जिसका आकार एकदम जीरो की शेप में हो गया था।शुभम का मोटा तगड़ा लैंड इतना ज्यादा लंबा था कि हर धक्के के साथ निर्मला को अपने बच्चेदानी पर उसकी ठोकर का एहसास बराबर होता था यह एहसास वही था जो एक औरत को संभोग सुख की तृप्ति का अहसास दिलाता था जो कि इस समय निर्मला बराबर महसूस कर रही थी।
शुभम अपनी कमर की रफ्तार बिल्कुल भी कम नहीं कर रहा था एक ही रफ्तार में अपनी मां की चुदाई कर रहा था और यही बात निर्मला को बहुत ही अच्छी लग रही थी कि एक ही रफ्तार में शुभम का मोटा तगड़ा लंड उसकी बुर की गहराई नाश्ता हुआ बाहर आता है और उसी स्पीड से फिर अंदर की तरफ चला जाता है इस तरह की रगड़ से वह पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी।....
वैसे भी निर्मला रसोई घर में चुदाई का भरपूर मजा लेती थी। सुभम लगातार अपनी मां की मदमस्त गांड था मैं जोरदार धक्के पर धक्के लगा रहा था...
दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे निर्मला की सिसकारी की आवाज बढ़ती जा रही थी सांसो की गति लगातार किसी रेल के इंजन की तरह चल रही थी शुभम भी हांफ रहा था... दोनों चरमोत्कर्ष की तरफ अग्रसर हुए जा रहे थे ऐसा लग रहा था कि दोनों अपनी मंजिल के बेहद करीब थे क्योंकि दोनों इस चरमोत्कर्ष के अंतिम क्षण में चुदाई का भरपूर आनंद लूट रहे थे और थोड़ी ही देर में निर्मला अपने बेटे को अपनी बाहों में भर कर अपना मदन र छोड़ने लगे और कुछ धक्कों के बाद शुभम भी झड़ गया...

एक बार फिर से दोनों बासना माई खेल खेलकर तृप्त हो चुके थे दोनों अपने अपने कपड़े दुरुस्त करके वापस अपने काम में लग गए थे दूसरी तरफ सरला को समझ में नहीं आ रहा था कि शुभम ने उसे यह गिफ्ट का पैकेट क्यों देकर गया और इस गिफ्ट के पैकेट में है क्या लेकिन उसका मन आशंका से भर जाता था कि कहीं शुभम ने ब्रा पेंटी खरीद कर उसे गिफ्ट तो नहीं कर दिया.... इस बात का ख्याल मन में आते ही उसकी दिल की धड़कन तेज रफ्तार से चलने लगती थी उसकी टांगों के बीच हलचल होना शुरू हो गई थी। वह धड़कते दिल के साथ शुभम के द्वारा दिए गए गिफ्ट के पैकेट को खोलने लगी।

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सरला का दिल जोरों से धड़क रहा था वह अपने कमरे में अपने बिस्तर पर शुभम के दिए हुए गिफ्ट के पैकेट को हाथों में लेकर इधर-उधर घुमाते हुए उसे देख रही थी। वैसे भी सरला अब 2 दिन से लेट में ही उठती थी क्योंकि वैसे भी घर पर कुछ ज्यादा काम नहीं रहता था इसलिए वह आराम ही करती थी... उसके दिल की धड़कन बहुत तेजी से चल रही थी मन में अजीब अजीब से ख्याल आ रहे थे ... उसका मन उत्सुकता से घिरा हुआ था... उसे पक्का यकीन तो नहीं था कि शुभम ने उसे गिफ्ट के पैकेट में क्या दे कर के आए लेकिन उसकी अंतरात्मा बार-बार उसे कह रही थी कि उसके अंदर ब्रा और पेंटी है क्योंकि जिस हिम्मत के साथ वह अपने हाथों में उसकी ब्रा पेंटी लेकर उसे पेंटी के छेद के बारे में बोला था उसकी हिम्मत को देखते हुए उसे अंदर ही अंदर ना जाने क्यों विश्वास हो रहा था कि हो ना हो सुभम उसके लिए ब्रा और पैंटी ही लाया है.... लेकिन फिर उसके मन में यह ख्याल आता था कि ऐसा तो शुभमबिल्कुल भी नहीं है .. जहां तक कुछ दिनों में वह शुभम के बारे में जानती थी उसे ऐसा लगता था कि जिस तरह का वह सोच रही है ऐसा बिल्कुल भी नहीं है वह गिफ्ट में एक औरत के अंतर्वस्त्र को नहीं दे सकता.... लेकिन फिर भी ऐसा मन में ख्याल आते हैं ना जाने क्यों अपने इस ख्याल को वह खुद ही झूठ लाने की कोशिश कर दी थी क्योंकि अंदर ही अंदर वह यही चाहती थी कि शुभम उसे ब्रा और पेंटी ही गिफ्ट में पैक करके दिया हो।
अपनी ख्याल और भावनाओं पर उसे बिल्कुल भी सब्र और विश्वास नहीं हो रहा था अपने दिल की धड़कनों को दुरुस्त करते हुए वह गिफ्ट वाले पैकेट को खोलना शुरू कर दी.... दिल की धड़कन बड़ी तेजी से चल रही थी मानो बेलगाम घोड़ा दौड़ रहा हूं और उसके टापो की आवाज पूरे बदन में गूंज रही हो.... उत्तेजना के मारे सरला का गला सूखते जा रहा था टांगों के बीच मुलायम अंग पर उत्तेजना अपना असर दिखा रहा था.... उम्र के इस पड़ाव पर आकर सरला इतनी ज्यादा उत्तेजना का अनुभव पहली बार कर रही थी उसे तो बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसके बदन में इस तरह के बदलाव आएंगे और वह भी इस उम्र में लेकिन अपनी इस बदलाव की वजह से वह काफी खुश और उत्तेजित नजर आ रही थी। धीरे-धीरे सर गाने पैकेट के ऊपर वाला रेपर खोलकर उसे फेंक दी... चेहरा सुर्ख लाल होने लगा था शर्म की लालीमा पूरे चेहरे पर छाने लगी थी बानो दूर आसमान में सूरज अपनी रंग बिरंगी लालिमा लिए नीचे जमीन में धंसता चला जा रहा हो... आखिरकार सब्र की घड़ी खत्म हो गई उसका मन जो कह रहा था वही हुआ गिफ्ट वाला पैकेट खुल चुका था और सरला पैकेट के अंदर अपने लिए लाए गए अंतर्वस्त्र को देखकर पूरी तरह से उत्तेजना में भर गई उसे साफ महसूस हो रहा था कि उसकी बुर कचोरी की तरह फूल चुकी है और जिस तरह से कचोरी में बीच में से तोड़कर उसमें चटनी डाली जाती है उसी तरह से सरला की बुर में से जो की कचोरी जैसी फूली हुई थी उसमें से मदन रस की चटनी बाहर निकल रही थी वह पूरी तरह से काम होते जना में सरोवर हो चुकी थी वह पैकेट में से अपने लिए लाए गए अंतर्वस्त्र को हाथ में उठा कर इधर-उधर करके देखने लगी उसके चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी और खुशी से ज्यादा उसके चेहरे पर उत्तेजना के असर नजर आ रहे थे...
शुभम की हिम्मत देखकर ना जाने क्यों शुभम पर उसे गर्व होने लगा...वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि उसके बेटे की उम्र का लड़का उसके लिए बेझिझक ब्रा और पेंटी लेकर आएगा... वह घर में पूरी तरह से अकेली थी इसलिए अपने लिए लाई गई ब्रा पेंटी को पैकेट में से निकालकर वह अपने दोनों हाथों में लेकर उसे घुमाते हुए देखने लगी वह काफी खुश नजर आ रही थी क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि इस तरह का गिफ्ट बरसों के बाद उसे मिला था।ब्रा और पेंटी की दोनों जोड़ियां उसे बेहद जच रही थी वह काफी उत्साहित नजर आ रही थी।
लेकिन उससे भी ज्यादा वह काफी कामोत्तेजना में डूबती हुई नजर आ रही थी उसे साफ महसूस हो रहा था कि उसकी फटी हुई पैंटी उसकी बुर से निकले मदन रस में पूरी तरह से गीली हो रही थी....
अपनी बुर का रिसाव उसे खुद बेचैन बना रहा था वह अपना हाथ कपड़े के ऊपर से अपनी बुर पर रखकर अपने गीले पन का जायजा ले रही थी....
वह शुभम को मन ही मन धन्यवाद देकर घर के काम में जुट गई वह काफी उत्साहित ही नहाने के लिए क्योंकि आज बरसों के बाद वह अपने बदन पर नई ब्रा और पेंटी पहनने वाली थी और वह भी उस ब्रा पेंटी को जिसे शुभम ने उसके लिए गिफ्ट के तरीके से ले आया था। एक उम्रदराज औरत के लिए इसे ज्यादा सुख की बात क्या हो सकती है कि उसके बेटे की उम्र का लड़का उसका दीवाना हो गया है...और जिसकी दीवानगी मे वह खुद को पिघलता हुआ महसूस कर रही है.... वह जल्दी जल्दी घर के काम निपटाने मैं लग गई लेकिन फिर भी आज उसे घर की सफाई करनी थी इसलिए थोड़ा समय हो गया.... लेकिन फिर भी घर की सफाई नहीं हो पा रही थी आखिरकार अकेले वह कितना साफ सफाई कर पाती एक तो उसे शुभम के द्वारा लाई गई ब्रा पेंटी पहन कर महसूस करना था कि वह कैसी है लग रही है और ऊपर से यह घर का काम.....
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