हैविंग फन मॉम complete

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Jemsbond
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Re: हैविंग फन मॉम

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"हुं!" जवाब मे अभिमन्यु अपना मुंह तक खोलना पसंद नही करता, अपने गले के स्वर से बस इतना ही गुनगुनाकर वह अपनी माँ के चेहरे को देखने लगता है। उसे एकाएक अचरज तब हुआ जब हैरत से बड़ी होती जाती उसकी आँखों मे झांकते हुए वैशाली अपने बाएं की उंगलियों की मदद से अचानक अपनी मैक्सी के ऊपरी बटन को खोलने लगती है, पहले उसने एक बटन खोला तत्पश्चात दूसरे को खोलने लगी।

अभिमन्यु की घिग्घी बंधी देख वैशाली को कुछ संतोष हुआ, संतोष इसलिए नही कि उसे अपने बेटे की परेशानी, घबराहट, उसकी मायूसी से कोई अतिरिक्त खुशी मिल रही थी बल्कि इसलिए कि उसे प्रत्यक्ष प्रमाण मिल चुका कि उसके बेटे की नजरों मे उसकी इज्जत अब भी बरकरार थी, वह तो हालात का खेल था जो एक ही वक्त मे दोनो माँ-बेटे एकसाथ बेशर्म बन गए थै। अपनी मैक्सी के दूसरे बटन को खोलते समय वैशाली ने यह भी स्पष्ट देखा कि भले ही अभिमन्यु ने अत्यंत-तुरंत अपनी आँखें अपनी माँ से हटाकर विपरीत दिशा मे मोड़ दी थीं मगर उनकी किनोर से अब भी वह उसकी उंगलियों की हरकत पर ही गौर फरमा रहा था। मैक्सी के दूसरे बटन के खुलते ही वैशाली अपने उसी बाएं हाथ की उंगलियां हौले-हौले अपने मम्मों के ऊपरी फुलाव पर रगड़ते हुए पहले उन्हें अपनी मैक्सी और फिर सीधे अपनी ब्रा के दाहिने खोल के भीतर घुसेड़ देती है।

"तुम्हारी पॉकेटमनी" वैशाली बेटे का ध्यान अपनी ओर खींचते हुए बोली मगर अपना बाएं हाथ उसने अबतक अपनी ब्रा से बाहर नही निकाला था। दोनो माँ-बेटे की आँखें आपस मे जुड़ चुकी थीं और फिर कुछ ऐसा जताते हुए कि उसकी ब्रा बेहद तंग है, वह अजीब सा आड़ा-टेढ़ा मुंह बनाने लगती है।

"वो काफी दिनों से शॉपिंग नही की ना तो थोड़ा साइज इश्यू है" वैशाली अपनी हरकत के समर्थन मे बोली।

"मेरी कच्छियों का भी यही हाल है" मायूसी से उसने पिछले कथन मे जोड़ा।

"कोई बात नही मॉम और वैसे भी मुझे पॉकेटमनी नही चाहिए, मेरी पनिशमेंट अभी पूरी नही हुई" अपने ठीक सामने बैठी अपनी माँ को उसकी तंग ब्रा से जूझते देख अभिमन्यु हौले से बुदबुदाया। वैशाली की लाल ब्रा उसकी बेवजह की खींचा-तानी के कारण उसकी मैक्सी के खुले गले से आधी बाहर निकल आई थी और उसके गोल-मटोल मम्मों का प्रभावशाली ऊपरी उभार अभिमन्यु को तत्काल उत्तेजना से भरने लगा था। अपनी माँ की बोली मे आए खुलेपन से भी वह थोड़ा सकते मे था।

"बस हो गया। हाँ ये लो, पूरे सात हजार हैं" वैशाली नोटों के बंडल को बेटे की ओर बढ़ते हुए बोली मगर अपने पिछले कथन पर अटल अभिमन्यु फौरन ना के इशारे मे अपना सिर हिला देता है।

"पनिशमेंट जारी थी और जारी ही रहेगी, पॉकेटमनी तुम अपने पास रख सकते हो पर तुम्हारा घर से बाहर आना-जाना बंद ही रहेगा" वह रुपयों का बंडल टेबल पर उसके सामने रखते हुए बोली।

"थेंक्स मॉम, खाली जेब मुझे कैसा फील हो रहा था मैं ही जानता हूँ" अभिमन्यु अत्यंत तुरंत बंडल पर झपटते हुए बोला, बिन पैसों के एक जवान लड़के की कैसी हालत होती है स्वयं वैशाली को भी प्रत्यक्ष समझ आ गया। अपने दोनों हाथ कैंची के आकार मे ढा़ल वह उन्हें अपनी अधखुली छाती के इर्द-गिर्द लपेटकर बैठ गई थी, जिसका दबाव उसके पुष्ट मम्मों के निचले भाग पर हो रहा था। अकस्मात् उसके मम्मों का ऊपरी उभार पहले से अधिक नुमाइंदा हो गया, जिसके नतीजतन एसी की मनभावन ठंडक वह अपने तेजी से ऐंठते जा रहे निप्पलों पर भी साफ महसूस करने लगी थी।

"मुझे लगता है कि मुझे सुधा से माफी मांगनी चाहिए, आखिर यह कोई छोटी-मोटी बात नही कि तुमने बहाने से उसके घर जाकर जानबूझकर उसकी कच्छी को चुराया था" अपने बेटे की चोर नजरों को बरबस अपने अधनंगे मम्मों पर गड़ते देख वैशाली बोली।

"वह मम्मी ... वह, तुम उस बात को भूल क्यों नही जातीं, अबतक तो मिसिज मेहता भी उसे भूल ही चुकी होंगीं" आंतरिक शर्म से बेहाल अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, उसकी शर्माहट का एक मुख्य विषय यह भी था की अपनी माँ के मम्मों की सुंदरता को निहारने का इतना करीबी मौका उसे पहली बार प्राप्त हुआ था ऊपर से वैशाली का लगातार देशी भाषा प्रयोग उसे बेहद अटपटा-सा लग रहा था, रह-रहकर उसके संपूर्ण बदन मे फुरफुरी सी छूटती जा रही थी।

"तुम्हारी माँ होने के नाते भूल जाऊँ तो मैं वाकई उसे भूल चुकी हूँ और तुम्हें माफ भी कर दिया है मगर एक औरत होकर दूसरी औरत की बेज्जती कैसे सह लूं। तुम्हें पता नही मन्यु कि तुम्हारे बचाव मे मैंने उसे क्या-क्या गलत-शलत नही बोला, यह जानते हुए भी कि गलत वह नही मेरा अपना बेटा है" वैशाली एक लंबी आह भरते हुये बोली, अपना चेहरा नीचे को झुकाकर वह अपने मम्मों के अधनंगे ऊपरी उभार और उनके बीच की खुली दरार का स्वयं अवलोकन करने लगी। उस अत्यधिक कामुक माँ ने उस वक्त अपने बेटे को जैसे चौंका ही दिया जब अपने अंगप्रदर्शन को जानकर भी कोई विशेष महत्व दिए बगैर वह तत्काल अपना चेहरा ऊपर उठाकर पुनः उसकी आँखों मे झांकने लगती है।

"अगर तुम्हारी ही उम्र का कोई लड़का इस तरह की बेहूदगी से तुम्हारी अपनी माँ की कच्छी को चुरा ले जाए तब तुम्हारी माँ के दिल पर क्या बीतेगी, कभी सोचा है तुमने? फिर सुधा ने तो तुम्हारे और उसके अपने बच्चों की बीच कभी कोई फर्क नही किया" वैशाली ने शांत स्वर मे पूछा। अपनी माँ के कथन मे शामिल प्रश्न और उसमे उसका स्वयं का उदाहरण देना अभिमन्यु को स्पष्ट दर्शाता है कि वाकई अपने कथन को लेकर वह कितनी अधिक गंभीर थी। उसने सहसा निर्णय लिया कि वह अपनी माँ की अधनंगी छाती को अब और नही घूरेगा मगर पलभर भी नही बीत सका और दोबारा उसकी आँखें उसी उत्तेजक दृश्य पर वापस लौट आईं।

"तुम्हें उनसे माफी मांगने की कोई जरूरत नही, गलती मैंने की है तो माफी भी उनसे मैं ही मागूंगा" अभिमन्यु ने जवाब मे कहा, मानो अपनी बीती गलती और तात्कालिक गलती की वजह से खुद को लताड़ने का प्रयास कर रहा हो। स्वतः ही वह यह भी महसूस करता है कि उसकी सगी माँ के प्रति उसके मन-मस्तिष्क मे कितनी अधिक गंध भर चुकी है और जो वह चाहकर भी उस गंध को मिटा नही पाता। जहां संसार इस उदाहरण से पटा पड़ा है कि एक पुत्र का सही स्थान सदैव उसकी माँ के चरणों मे ही होता है और एक पुत्र वह स्वयं है जो अपनी माँ के चरण तो दूर, दिन-रात बस उसके नंगे बदन की ही वर्जित कल्पनाओं मे खोया रहता है।

"सॉरी आंटी! मैंने आपकी कच्छी चुराई और फिर भी आपसे माफी मिलने की चाहत लिए आपके पास आया हूँ। क्या यह कहोगे उससे? वाट इज रॉंग विद यू मन्यु। माला के साथ भी तुम जबरदस्ती कर रहे थे, जबकि तुम्हें अच्छे से पता है कि वह मोहल्ले के अॉलमोस्ट हर घर मे काम करती है। तुम्हें पता नही मगर उसने मुझे खुद बताया था कि तुम उसके साथ छेड़छाड़ करते हो, उसके प्राइवेट पार्ट्स को छूते हो और पैसे का लालच देकर तुमने उससे साथ सैक्स करने की डिमांड भी की थी। तुम्हारी माँ होकर भला मैं कबतब लोगों के गंदे-गंदे ताने सुनती रहूँगी? जबकि खोट मेरी परवरिश मे नही खुद तुममे है" कहने को तो वैशाली इतनी विस्फोटक बातें कह गई मगर फौरन कुर्सी खिसकाकर वह बेटे के नजदीक आ जाती है और सीधे उसने अभिमन्यु का चेहरा अपनी अधनंगी छाती से चिपका दिया।

"मैं तुम्हारी टीन एज को नेगलेक्ट नही कर रही, मुझे सचमुच पता है बेटा कि तुम जवानी के किस नाजुक दौर से गुजर रहे हो। तुम अपनी माँ को अपना बैस्ट फ्रैंड बनाना चाहते थे तो चलो, मैंने तुम्हारा प्रपोजल ऐकसेप्ट किया लेकिन तुम्हें भी मुझसे प्रॉमिज करना होगा कि तुम अपनी इस बैस्ट फ्रैंड से कुछ भी नही छुपाओगे। नाउ कमअॉन टेल मी द ट्रुथ, तुम्हारे दिल और दिमाग मे क्या चल रहा है?" वह प्यार से बेटे के बालों मे अपनी उंगलियां घुमाते हुए बोली। माना कि इस मार्मिक क्षण मे भावुकता उत्तेजना पर भारी थी मगर कहीं ना कहीं उनके शारीरिक सम्पर्क से दोनो माँ-बेटे रोमांचित भी थे। अपने मम्मों की गहरी घाटी के बीचोंबीच अपने बेटे की गर्म सांसों के अहसास मात्र से वैशाली का दिल जोरों से थड़कने लगा और साथ ही वह अपनी चूत की अंदरूनी गहराई मे एकाएक स्पन्दन शुरू होता महसूस करने लगती है। उनका यह शारीरिक सम्पर्क वह माँ तब झटके तोड़ने पर मजबूर हो गई जब अभिमन्यु की गीली जीभ का स्पर्श अचानक से वह अपने बाएं मम्मे के ऊपरी फूले उभार से होता पाती है।

"आई एम ... आई एम जस्ट क्यूरियस मॉम। जस्ट क्यूरियस, नथिंग एल्स" अभिमन्यु हकलाते हुए बोला, वह भी समझ गया था कि क्यों उसकी माँ ने एकदम से उसका चेहरा अपने मम्मो से दूर ढ़केला था। उसकी माँ की मैक्सी उसके बाएं कंधे से लगभग पूरी ही सरक चुकी थी और जिसके कारण उसकी लाल ब्रा का बायां स्ट्रैप भी अब स्पष्ट दिखने लगा था, यहां तक कि अगर आगामी समय मे वह थोडा--सा भी हिलती-डुलती तो उसकी ब्रा का सम्पूर्ण बाएं हिस्सा फौरन बेपर्दा हो जाना था।

"क्यूरियस अबाउट वाट? अबाउट दिस, हम्म?" अपने सगे जवान बेटे की बेशर्म आँखों को यूं खुलेआम अपने अधनंगे मम्मों गडी़ पाकर वैशाली बहुत उत्साहित थी, उसने बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपने दाएं हाथ से सीधे अपने अधनंगे मम्मों की ओर इशारा करते हुए पूछा।

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Re: हैविंग फन मॉम

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"मॉऽऽम!" अपनी माँ के प्रश्न और उसके दाएं हाथ के इशारे को समझ सहसा अभिमन्यु कुर्सी से उछल पड़ता है, इस पूरे वार्तालाप मे मानो पहली बार उसे शर्म महसूस हुई थी।

"अरे! अरे! अरे! नाउ वाट हैप्पन टू योर दोज वर्ड्स? वी बोथ आर अडल्ट मम्मी और अगर हम दोस्त बने तो हमारी शर्म खत्म हो जाएगी" वैशाली हँसते हुए बोली तो साथ मैं अभिमन्यु भी हँसने लगता है।

"तुम वाकई बहुत गंदे लड़के हो मन्यु पर क्या करूं, मेरे इकलौते बेटे हो तो मैं ठीक से तुम्हें डांट भी नही पाती" उसने पिछले कथन मे जोड़ा।

"आई नो मम्मी एण्ड देट्स वाए आई लव यू सो मच। उम्मऽऽ मुआऽऽ" अभिमन्यु ने फौरन उसकी ओर एक चुम्बन उछाल दिया।

"तो मैं सही हूँ, तुम्हारी क्युरीआसिटी औरतों के बदन से है" वैशाली ने अंधेरे मे तीर चलाते हुए कहा, हालांकि पूरी तरह से इसे अंधेरे मे तीर चलाना नही कहेंगे मगर उनके बीच चलते इस सामान्य से वार्तालाप को अब दूसरी दिशा मे मोड़ने हेतु उसे अभिमन्यु की भी सहमति की विशेष आवश्यकता थी। एक ऐसी सहमति जिसमे ना कोई शर्म हो, ना कोई हया हो महज सत्य ही सत्य हो।

"अब मैं बोलूंगा तो कहोगी मैं बेशर्म हूँ" अभिमन्यु दांत निकालते हुए कहता है। वह तो इस वक्त की प्रतीक्षा ना जाने कब से कर रहा था, जब उसकी माँ और वो दोनो ही खुलकर बातचीत कर सकते थे।

"जो लड़का किसी मजबूर कामवाली के साथ जबरदस्ती कर सकता है, अपनी माँ की बैस्ट फ्रैंड के घर से उसकी कच्छी चुरा सकता है और आज तो तुमने अपनी माँ की ही कच्छी चुरा ली। ऐसे बेशर्म को बेशर्म नही बोलूं को क्या शब्बाशी दूं" वैशाली का स्वर क्रोधित था मगर उसके भाव चहके हुए थे।

"मैं खुद को बिलकुल नही रोक पाता मम्मी, जब एक बेहद सैक्सी एण्ड हॉट एम आई एल एफ दिनभर मेरे करीब रहती है। जो मुझे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती है, मुझे खाना खिलाती है, मेरा ख्याल रखती है, मुझे कभी नही रोने देती, टाइम से पॉकेटमनी देती है, मेरे गंदे कपड़े धोती है, मेरे ...." वह आगे बोलता ही जाता यदि वैशाली बीच मैं उसे नही टोकती।

"बस बस, बहुत मक्खन लगा लिया तुमने और मैं कोई एम आई एल ...." इस बार अभिमन्यु अपनी माँ को बीच मे टोक देता है।

"मुझे बोलने दो मम्मी। जिसे पता है कि मैं चोरी छिपे उसे नहाते देखता हूँ, उसे मुट्ठ मारते हुए देखता हूँ। जिसे पता है कि मैं खुद उसके नाम की मुट्ठ मारता हूँ, जिसे पता है कि मैं पॉर्न देखता हूँ, जिसे पता है मैं वर्जिन नही। जो मेरी रग-रग से वाकिफ है मगर फिर भी मेरी हर छोटी-बड़ी गलती को हमेशा माफ कर देती है ....." अपने बेटे के अश्लील कथन को सुनकर अकस्मात् वैशाली का सम्पूर्ण बदन कांप उठा, चेहरे पर लहू उतर आया, कमर चरमरा गई, निप्पल ऐंठ गए, कामरस से भीगी कच्छी थरथराती चूत के मुख से बुरी तरह चिपक गई और तत्काल वह झटके से कुर्सी से उठकर खड़ी हो जाती है। अभिमन्यु अब भी बोले ही जा रहा था, उसका हर शब्द वैशाली के कानों मे पिघले शीशे सा घुसता महसूस हो रहा था।

"मुझे ...मुझे काम है" कहकर वह सीधे किचन की ओर दौड़ पड़ती है।

"मैंने सिर्फ फ्रेंडशिप का प्रपोजल नही रखा था मॉम और भी बहुत से प्रपोजल थे मेरे। तो क्या मैं उन्हें भी मंजूर समझूं?" दौड़ लगती अपनी माँ को देख अभिमन्यु ने जोर से चिल्लाते हुए पूछा और उसके प्रश्न को सुन वैशाली बिना पीछे मुड़े अपने दाएं हाथ से अपना माथा ठोकते हुए मुस्कुराकर किचन के भीतर घुस जाती है।

कुछ क्षणों तक किचन के बर्तनों की मिथ्या ध्वनि से खुद को व हॉल मे बैठे अभिमन्यु को भ्रमित करने का सफल अभिनय करती वैशाली जोरदार हंपाई लेती रही, अपने सगे जवान बेटे के मुंह से यूं खुल्लम-खुल्ला अपनी अश्लील प्रशंसा सुनना संसार की किस माँ को हंपाई से नही भरेगा? अपनी प्रशंसा पर प्रसन्न हो उठना तो स्त्री स्वभाव का पहला प्रमुख गुण है मगर प्रसन्न होने के साथ ही उसपर लजा भी जाना, यह अवश्य स्त्री विशेष की अत्यंत मर्यादित छवि को प्रदर्शित करता है। वैशाली उन चुनिंदा स्त्रियों मे से एक है जिसकी मर्यादित छवि के कारण उसकी लज्जा उसकी प्रसन्नता पर सदैव भारी पड़नी चाहिए और ऐसा वह प्रत्यक्ष महसूस कर भी रही थी।

"हाँ मुझे पता कि तुम अपनी माँ, अपनी सगी माँ, जिसने तुम्हें पैदा किया अपनी उसी सगी माँ के नाम की मुट्ठ मारते हो। तुम इतने बेशर्म कैसे हो सकते हो मन्यु? अपनी माँ के विषय मे सोच अपने लंड से खेलते हुए क्या तुम्हें जरा सी भी शर्म नही आती बेटा?" किचन की स्लैब पर अपने दोनो हाथ टिकाए खड़ी उस मर्यादित, संस्कारी माँ के अनैतिक बोल उस वक्त उसे और भी अधिक लज्जा से भर देते है जब चलचित्र की भांति चहुं ओर उसे मुट्ठ मारता हुआ उसका जवान बेटा अभिमन्यु ही नजर आने लगता है। माँ शब्द की रट लगाए जोरदार सिसकियां भरता हुआ वह अपने दोनो हाथों से अपने अत्यंत सुंदर व तने हुए लंड को तीव्रता से मुठिया रहा था जिसके काल्पनिक चित्रण मात्र ने कब वैशाली की लज्जा को उसकी कामुत्तेजना मे परिवर्तित कर दिया, वह नही जान सकी।

अपने आप वह स्लैब पर झुक गई, कपकपती टांगें फैलने लगीं, दायां हाथ बिना किसी अतिरिक्त रुकावट के टागों की जड़ से जोंक--सा चिपक गया, उंगलियां मैक्सी समेत कच्छी को चूतमुख पर बलपूर्वक घिसने लगीं, सूखा मुंह नमी तलाशने हेतु खुल गया, कमर धनुषाकर तन उठी, पैर के पंजे फर्श मे धंसने लगे और अंततः इन सभी लक्षणों से जोड़ से वैशाली को समझ आ गया कि जीवन मे दूसरी बार वह यूं खुलेआम मुट्ठ मारने लगी थी। अभिमन्यु हॉल मे है और किचन का दरवाजा भी खुला है, पुनः बेटे द्वारा रंगे हाथों पकड़े जाने का भय और उस भय से पैदा होता असीमित रोमांच जैसे तत्काल उस कामुक माँ को अधिकाधिक उत्साह से भरने लगा था।

"हाय रे बेशर्म, आखिरकार तुम अपनी माँ से भी तुम्हारे नाम की मुट्ठ मरवाने मे सफल हो गए। उफ्फ! आओ उन्ह! आओ मन्यु, खुद अपनी आँखों से देख लो। अब हमारे बीच कोई अंतर नही रहा, आहऽऽऽऽ! तुम्हारी माँ, उन्ह! तुम्हारी अपनी माँ भी तुम्हारी ही तरह बेशर्म, आह! सफा बेशर्म बन चुकी है मन्युऽऽ" अपने जबड़ों को भींच अपने स्वर दबाने की प्रयासरत वैशाली अगले ही क्षण स्खलन के चर्मोत्कर्ष को पाने लगती है, उसके पापी काल्पनिक चित्रण मे अभिमन्यु भी उसके साथ ही झड़ रहा था। अंतर बस इतना--सा कि वह स्वयं के स्खलन को महसूस भर कर सकती थी मगर बेटे के लंड के फूले हुए सुपाड़े से लगातार बाहर आती उसके वीर्य की लंबी-लंबी धारें वह स्पष्ट देख पा रही थी, मानो प्रत्यक्ष उसका बेटा उसके समक्ष ही स्खलित हो रहा हो।
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अपने कमरे के अटैच बाथरूम मे बंद शॉवर के नीचे खड़ा अभिमन्यु अब से कुछ वक्त पहले बीती घटना पर बड़ी गंभीरता से गौर कर रहा है। हालांकि अपनी माँ के किचन मे जाते ही वह भी फौरन कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया था, वह स्वयं वैशाली के पीछे जाना चाहता था मगर चाहकर भी अपना कदम आगे नही बढ़ा पाया और इसके ठीक उलट अपने कमरे के भीतर लौट आया था।

"तुम बदल गई हो मॉम, सचमुच बदल गई हो" अपने दाएं हाथ की मुट्ठी में कैद वह अपनी माँ की कच्छी को घूरते हुए बड़बड़ाया और फिर एकाएक मुट्ठी खोलने के पश्चात कच्छी को सीधे अपनी नाक से सटाकर बारम्बार गहरी-गहरी सांसे लेने लगता है।

"उफ्फऽऽ! कहीं मैं पागल ना हो जाऊँ" अपनी माँ के बदन की सच्ची मादकता से परिचित होकर अभिमन्यु चहक उठा था, कच्छी मे रची-बसी वैशाली के तन की सुगंध सूंघते हुए वह बाएं हाथ से अपने पत्थर समान कठोर लंड को तीव्रता से मुठियाने लगता है। बीते चार-पांच घंटो से उसकी जवानी लगातार उससे रहम की भीख मांग रही थी, अब वह चाहकर भी अपने शरीर के भीतर निरंतर उबल रहे लावे को और अधिक उपेक्षित नही कर सकता था।

"मैं जानता हूँ माँ कि यह गलत है, बिलकुल गलत है पर मैं तुम्हारे इल्जाम को झूठा साबित नही होने दूंगा, आई एम सॉरी मम्मी" अपनी इसी सोच के साथ कामलुलोप अभिमन्यु फौरन अपनी माँ की कच्छी को उत्तेजना की मार से थरथराते अपने लंड के इर्द-गिर्द लपेटकर, अत्यंत आक्रमकता से मुट्ठ मारना शुरू कर देता है। अपने सूख चुके होठों पर तेजी से जीभ फिरते हुए वह अपने बाएं हाथ से, गाढ़े वीर्य से लबालब भरे अपने टट्टों को भी सहलाने लगा था।

कहते हैं पाप करना और पाप मे भागीदार बनना, दोनो की एक सी सजा होती है। एक तरफ वैशाली है जो खुलेआम किचन के भीतर पाप करने मे व्यस्त थी और ठीक उसी वक्त दूसरी तरफ अभिमन्यु है जो एकांत मे बाथरूम के अंदर उसी पापी कृत्य मे लिप्त है, सबसे बड़ी समानता यह कि दोनो ही अबोध नही बल्कि पूर्ण समझदार पापी हैं। माँ-बेटे के लिए हाथ से मिलने वाला सुख नितांत अनूठा है मगर संभोग की तृप्ति महज हाथों से मिलने लगे तो कोई पापी ही क्यों बने?

"आहऽऽ! इतना मजा तो उस भैन की लौड़ी सुधा की कच्छी भी नही दे पाई थी जितना मजा तुम्हारी कच्छी दे रही है माँ। आई एम सॉरी मम्मी, ओह! आई एम सॉरी" कपकपाती टांगें बीच मे कहीं उसका साथ ना छोड़ दें इस कारण अभिमन्यु दीवार से टिक गया था, रह-रहकर उसकी सुर्ख आँखों मे उसकी माँ की लाल ब्रा के भीतर कैद उसके गोल-मटोल अधनंगे मम्मे घूमने लग जाते जिसके प्रभाव से उसका दायां हाथ और तेजी से उसके लंड को पीटने लगता।

"मैं लाऊँगा तुम्हारे लिए नई ब्रा और कच्छी, उन्ह! उन्ह! तुम उन्हें पहनोगी ना माँ? आहऽऽऽऽ पहनोगी माँ, तुम उन्हें जरुर आहऽऽऽऽऽऽ!" अभिमन्यु की नीच इच्छा के समर्थन मे तत्काल उसके बेहद सूजे बैंगनी रंगत के सुपाड़े ने गाढ़े वीर्य की लंबी-लंबी फुहार उगलनी शुरू कर दी और जो तीव्रता से सीधे सामने की दीवार से टकराने लगती हैं। उसकी आंखों के समक्ष जैसे पलभर को अंधेरा सा छा गया था, निचला धड़ एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली ऐंठन से जकड़ा हुआ और साथ ही लगातार लगते हर झटके पर उसके टट्टे पहले से कहीं अधिक मात्रा व गति से वीर्योत्सर्जन करने लगते। ग्लानिस्वरुप जो वह बार-बार अपनी माँ से माफी मांगे जा रहा था इस मनभावन स्खलन को पा लेने के उपरान्त धीरे-धीरे उसका तन और मन दोनो ही शांत होते जा रहे थे।

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Re: हैविंग फन मॉम

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"उफ्फ! तुम ...तुम जरूर उन्हें पहनोगी माँ" जोरदार हंपाई लेते हुए अभिमन्यु ने एक अंतिम नजर अपने अधसिकुड़े लंड और उसके घेरे पर लिपटी वैशाली की कच्छी पर डाली तो अपने आप उसके चेहरे पर पूर्व संतुष्टि के भाव उमड़ आते हैं। कच्छी की काली रंगत पर उसके सफेद वीर्य की बूंदे उसे चांद पर दाग समान नजर आती हैं जबकि असलियत मे चांद सफेद और उसपर लगा दाग काला होता है।

"हे हे ... हा हा ...हू हू" अपनी मूर्ख तुलना पर अजीब-अजीब आवाजों मे जोर से हँसता हुआ वह पागल अपने पूरी तरह से सिकुड़ चुके लंड को अपने उसी दाएं हाथ से गोल-गोल घुमते हुए फौरन नाचना शुरू कर देता है।

नहा-धोकर धुले कपड़े पहन अभिमन्यु बेझिझक सीधा वैशाली के कमरे के खुले दरवाजे के भीतर प्रवेश कर गया। बिस्तर की पुश्त से अपना सिर टिकाए लेटी उसकी माँ के माथे पर उसके दाएं हाथ की उलटी कलाई रखी देख, वह अपने चलायमान कदमों की गति मे परिवर्तन लाया और हौले-हौले कदमों से ठीक उसके बगल मे जाकर खड़ा हो जाता है। उसकी माँ ख्यालों मैं गुम थी, उसके ख्यालों की गहराई वह इस वजह से माप गया कि वह उसके बिस्तर के बेहद करीब खडा़ था और उसकी माँ को अबतक इसकी भनक तक नही लग पाई थी।

"मॉम! मैं थोडी़ देर को बाहर चला जाऊं, टाइम से लौट आऊँगा" अभिमन्यु ने ज्यों ही कहा वैशाली चौंकते हुए उठ बैठी, आखिर वह क्यों ना चौंकती? जिसके दिल मे चोर बसा हो उसका बात-बेबात चौंकना कोई विशेष बात नही और यह भी सत्य था कि चौंकने से पूर्व वह अपने बेटे के ही ख्यालों मे गुम थी।

"क ...क्यों?" वैशाली ने हकलाते हुए पूछा फिर एकाएक अपनी मैक्सी की अस्त-व्यस्त हालत को सुधारने मे अपनी हकलाट को छुपाने लगती है।

"कुछ नोट्स लेने हैं और बाइक मे पेट्रोल भी भरवाना था वर्ना कल कॉलेज टाइम से नही पहुँच पाऊंगा" अभिमन्यु ने बताया।

"कैसे नोट्स? और पेट्रोल के लिए तो मैं तुम्हें लगभग रोज ही पैसे देती हूँ। कहीं नही जाना, जाओ अपने कमरे मे वापस" वैशाली अपने दाएं हाथ की प्रथम उंगली का इशारा कमरे के खुले दरवाजे की ओर करते हुए क्रोधित स्वर मे बोली, अब चौंकाने की बारी उसके बेटे की थी। हालांकि यह उसका झूठ-मूठ का क्रोध था, वह अभिमन्यु को जताना चाहती थी कि भले ही उनके रिश्ते के बीच अमान्य--सा खुलापन आया था मगर इसका प्रभाव बेटे की सजा पर जरा सा भी नही पड़ा था।

"कम अॉम मम्मी, मैं कोई छोटा बच्चा नही जिसे तुम इस बुरी तरह डांटोगी" अपनी माँ की क्रोध पर अभिमन्यु के तेवर भी एकदम बदल गए और वह वैशाली को पुनः चौंका देता है।

"सॉरी माँ, रियली सॉरी। मैं तो बस हमारे लिए रिजर्वेशन करवाने जा रहा था" उसने पिछले कथन मे जोड़ा, इस बार उसका स्वर शांत था।

"कैसा रिजर्वेशन? हम कहाँ जा रहे हैं?" वैशाली ने तत्काल पूछा, यह तीसरी बार था जो वह लगातार चौंकी थी।

"आज मेरी तरफ से ट्रीट है, पिज्जा हट मे" अभिमन्यु मुस्कुराते हुए बोला और बिस्तर पर बैठ जाता है।

"ओह! पैसे मिले नही की बर्बादी शुरू" बात वैशाली की समझ मे आते ही वह भी मुस्कुरा उठी, जाने कितना अरसा बीत गया था जब वह आखिरी बार बाहर किसी रेस्तरां मे खाना खाने गई।

"मैं माणिकचंद जी के पैसों से तुम्हें ट्रीट नही दे रहा, मैं तुम्हारे ही पैसों को तुम्हारे साथ शेयर करना चाहता हूँ। मेरी पॉकेटमनी है पाँच हजार और तुमने लेट इंटरेस्ट लगाकर मुझे दिये सात हजार, तुम कितनी बड़ी मक्खीचूस हो मम्मी मैं अच्छे से जानता हूँ। यह एक्सट्रा दो हजार तुम्हारे जोड़े हुए पैसे हैं और जो पता नही तुमने मुझे क्यों दे दिए?" अभिमन्यु कुछ मजाक और कुछ प्यार मिश्रित स्वर मे बोला, जानना तो वह भी चाहता था कि हमेशा पाई-पाई जोड़ने वाली उसकी माँ ने अपने खुद के जोड़े हुए पैसे आखिर उसे क्यों दे दिए।

"इधर आओ, कान मे बताती हूँ" वैशाली प्रेमपूर्वक उसे अपने पास आने का इशारा करते हुए बोली तो फौरन अभिमन्यु अपना दायां अपनी माँ के करीब ले आता है।

"मेरे पति की बेज्जती, मेरे ही मुंह पर बेशर्म और मैं कंजूस। हम्म!" बेटे के कान मे कुछ कहने की बजाए वैशाली उसका कान मोरोड़ते हुए बोली।

"आहऽऽ मम्मी छोड़ोऽऽ" अभिमन्यु दर्द होने का नाटक करते हुए कराहा जबकि उसकी माँ ने उसका कान उतना ही मरोड़ा था जितना वह आराम से सह सकता था।

"सबकुछ तो तुम्हारा ही है मन्यु। यह घर, जायजाद, रुपया-पैसा सबकुछ तुम्हारा है बेटा" कहकर वैशाली उसके मरोड़े हुए कान को पटापट चूमने लगती है, उसकी उंगलियां हौले-हौले बेटे के बालों मे घूम रही थीं।

"और माँ तुम?" अभिमन्यु ने एकाएक अपना चेहरा मोड़ते हुए पूछा, जिसके नतीजतन उसकी माँ के होंठ उसके कान से फिसलते हुए उसके दाएं गाल और होंठों के अंत पर आकर ठहर जाते हैं। यह ना बेटे ने जानबूझकर किया था और ना ही उसकी माँ ने, तो उतने जल्दी दोनो संभल भी नही पाते।

"बोलो ना माँ, और तुम?" इसी बीच अभिमन्यु ने पुनः अपना प्रश्न दोहरा दिया, जिसे पूछते वक्त उसकी गरम सांस के झोंके सीधे वैशाली की नाक के बाएं नथुएे के भीतर प्रवेश कर जाते हैं।

"वीको वज्रदंती? मी टू" जाने क्यों और कैसे अकस्मात् वैशाली ने खुद को संभाला और अपना चेहरा बेटे के चेहरे से दूर ले जाते हुए बोली।

"हा हा हा हा" बेडरूम एकसाथ दोनो की खिलखिलाहट से गूंज उठता है।


"नौटंकी नही मॉम, प्लीज आन्सर मी ना" अभिमन्यु ने अपनी रुकाय ना रूकने वाली हँसी को जबरन रोकने की कोशिश करते हुए कहा, मानो जैसे कोई जिद पकड़ गया हो। कुछ देर तक तो वैशाली अपने पेट पर हाथ रखे जोरों से हँसती रही मगर जब अचानक ही उसके बेटे ने हँसना बंद कर दिया, वह स्वयं उसकी आँखों मे झांकने लगती है।

"जवाब दो माँ, और तुम?" अभिमन्यु का वही प्रश्न जारी था। अपना पेट पकड़ कर हँसने के कारण वैशाली की आँखें नम हो गई थी और उसके खुले बात तितर-बितर होने से उनकी कुछ लटें उसके चेहरे पर भी लटक आई थीं। अभिमन्यु को तो जैसे सांप सूंघ गया, वह अपलक बस अपनी माँ के अक्लपनीय सौन्दर्य को ही घूरने लगा था। उसकी माँ उसे सुंदरता की मूरत ही नही बल्कि साक्षात कामदेवी नजर आने लगी थी और ज्यों ही उसकी माँ ने अपने बालों की एक लंबी लट अपने चेहरे के बाएं भाग से हटाई, घबराकर वह झटके से अपना दायां हाथ सीधे अपने धड़कना भूल गए दिल पर रख देता है।

"मैं ...अम्मऽऽ" अपने बेटे की तात्कालिक स्थिति की प्रत्यक्ष गवाह वैशाली की अधेड़ आँखें बिन बोले ही सबकुछ समझ गई थीं और मुस्कुराकर वह भी अपना दायां हाथ अपने दिल पर रख लेती है।

"हाँ माँ तुम?" दिल मे उठे दर्द से बेहाल अभिमन्यु ने अब भी हार नही मानी थी, अत्यंत तुरंत पूछता है। अपने बेटे की उत्सुकता ने वैशाली को अंदर तक हिलाकर रख दिया था पर वह परिपक्व स्त्री अपने अंतर्मन का हाल अपने चेहरे पर कतई नही आने देती। एकपल को उसने सोचा क्यों ना बेटे को वही सुना दे जिसे सुनने को वह इतना बेकरार था मगर चाहकर भी वह खुद को तोड़ नही पाती।

"मैं हूँ अपने पति माणिकचंद जी की" कहकर एक बार फिर से वैशाली ने हँसना शुरू कर दिया और टूटे दिल के संतोष के साथ अभिमन्यु भी झूठी हँसी हँसने लगता है। उसकी माँ ने कुछ गलत कहाँ कहा, वह सचमुच अपने पति की ही तो थी और ऐसा सोचकर वह तेजी से बिस्तर से नीचे उतर जाता है।

"तुम तैयार रहना माँ, मैं घंटे भर मे आ जाऊंगा" कहकर अभिमन्यु बिना अपनी माँ के चेहरे को देखे उसके बेडरूम से बाहर निकल जाता है, वह जानता था कि यदि कुछ पल और वह वहाँ रुकता तो पक्का रो देता। शायद यही सोचकर वैशाली ने भी उसे नही रोका वर्ना उसका बेटा जरूर उसकी आखों से झर-झर बहने लगे आँसुओं को देख लेता।

घर के मुख्य द्वारा से बाहर निकलकर अभिमन्यु सीधे अपनी बाइक के पास पहुँचा और उसपर बैठ क्षणिक पलों तक कुछ सोचने-विचारने मे लगा रहता है, उसके दोनो हाथ उसकी सोच के साथ ही हिलने-डुलने लगे थे जैसे उसकी सोच से मूक वार्तालाप कर रहे हों।

"हम्म! यह मस्त रहेगा, बिलकुल ठीक। हाँ यही मस्त रहेगा" वह अचानक से बड़बडा़या और सहसा उसके मायूस चेहरे पर पुनः मुस्कान लौट आती है। तत्पश्चात उसने बाइक दौड़ा दी, यकीनन उसकी सोच पूरी हो चुकी थी।
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अपने बेडरूम के बिस्तर पर बैठी वैशाली काफी देर तक अपने आँसुऔं मे ड़ूबी रही, उसे इस बात पर रोना नही आ रहा था कि उसने अभिमन्यु की चाह को अपना समर्थन नही दिया था बल्कि वह इसलिए दुखी थी कि पलभर मे कैसे एक बेटा अपनी सगी माँ की ओर इतनी गम्भीरता से आकर्षित हो गया था? स्त्रियां तो ऐसे लघु आकर्षणों पर फूली नही समातीं, काश! कि वह सिर्फ एक स्त्री ही होती तो कितना अच्छा होता मगर स्त्री होने के साथ-साथ एक विवाहित माँ होने का भी गौरव उसे प्राप्त था और ऐसे मे उसका बेटा चाहे कितना भी अधिक उसकी ओर आकर्षित हो जाता, रहता तो वह एक पराया मर्द ही।

"माँ भी तुम्हारी है अभिमन्यु क्योंकि वह भी इस घर की जायजाद मे शामिल है और जिसके इकलौते वारिस तुम ही हो बेटा, सिर्फ तुम ही हो" खुद से ऐसा बारम्बार कहते हुए वैशाली तत्काल अपने आँसुओं के पोंछ लेती है, निश्चित उसके शब्दों से उसके ममतामयी दिल का वह बोझ कम होने लगा था कि जाने-अंजाने जीवन मे पहली बार उसने स्वयं अपने बेटे का दिल तोड़ा था।

चेहरे पर टूटी-फूटी मुस्कान लिए वैशाली फौरन बिस्तर से नीचे उतरी और सर्वप्रथम उसने घर के मुख्य द्वार को लॉक किया, फिर वापस अपने बेडरूम मे लौटकर सीधे अटैच बाथरूम के भीतर घुस जाती है। अभिमन्यु ने उसे तैयार रहने को कहा था और पिछला आधा घंटा वह अपनी सोच मे ही बिता चुकी थी। अच्छे से मुंह हाथ धोकर वह अपने वार्डरोब मे भरी पड़ी साड़ियों मे से अपनी सबसे पसंदीदा साड़ी का चुनाव करने लगती है और जल्द ही उसने उस मेहरुन रंगत की साड़ी को चुन लिया जिसे बीते मदर्स डे पर उसे उसकी बेटी अनुभा ने तोहफे मे दिया था।

"ओह हो! इस साड़ी का पेटीकोट तो मैच ही नही हो रहा और फिर पहनने को साफ-सुथरी कच्छी भी तो नही बची" वैशाली पेटीकोट का रंग साड़ी के रंग से हल्का पाकर मायूसी से बुदबुदाई, उसने सहसा गौर किया कि कैसे अब वह 'कच्छी' जैसे देशी शब्द का स्वतः ही उच्चारण करने लगी थी। शर्माते हुए पेटीकोट को बिस्तर पर फेंक उसने मैक्सी अपने गदराए बदन से अलग कर दी और ड्रेसिंग टेबल के सामने जाकर खडी़ हो जाती है।

जीवन मे दूसरी बार उसे अपने बदन मे एक अजीब-सा बदलाव नजर आ रहा था, ठीक वैसा बदलाव जैसा उसने अपनी बीती जवानी मे महसूस किया था जब वह अपने कुंवारेपन से मुक्त होने को पल-पल तड़पा करती थी। आज पुनः उसी तड़प से उसका सम्पूर्ण बदन टूट रहा है, उस तड़प के टूटने की प्रतीक्षा मे आज फिर उसका अंग-अंग बिन छुए ही फड़कने लगा है मानो किसी जवान, बलिष्ठ मर्द के नीचे दब जाने की उसकी इच्छा दोबारा जीवंत हो गई हो जिस इच्छा के तहत उसने कभी अपने भावी पति की कल्पना की थी।

कांच मे अपने अक्स को देख वह अपने बाएं हाथ की उंगलियां ब्रा के भीतर कैद अपने गोल-मटोल मम्मों के ऊपरी फुलाव पर घुमाने लगती है, उसे तत्काल वह क्षण याद आ गया जब डाइनिंग टेबल पर बैठा अभिमन्यु कितनी बेशर्मी के साथ उसके मम्मों के इसी फुलाव को खा जाने वाली नजरे घूरे जा रहा था।
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Re: हैविंग फन मॉम

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"माँ के मम्मों पर बेटे का हक नही होगा तो क्या किसी माणिकचंद का होगा?" खुद के ही सवाल पर वैशाली हँसने लगी, अपने दोनो हाथ पीठ पर ले जाकर उसने अपनी ब्रा का हुक खोल दिखा और उसे हाथों से बाहर निकाल बिस्तर पर उछाल देती है।

"ऐसे मत घूर बिच, अब तेरी ही बारी है" कांच मे देखते हुए वह अपने बदन पर बचे आखिरी वस्त्र, अपनी कच्छी से बोली और बड़ी अदा के साथ फौरन उसे सकराकर नीचे फर्श पर गिरने के लिए छोड़ दिया।

"बेशर्म निगोड़ी तू है मेरा मन्यु नही, मरोड़ना तुझे चाहिए उस बेचारे का कान नही। पूरे दिन से बह रही है, मेरी तीनो कच्छियों को गंदा कर डाला। अब क्या पहनूं पेटीकोट के नीचे? तेरे कारण आज पहली बार मुझे बिना कच्छी पहने घर की चौखट के बाहर कदम रखना पड़ेगा" अपने अश्लील कथन अनुसार ही वैशाली ने अपने दाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच दिनभर से निरंतर रिस रही अपनी चिपचिपी चूत के दोनो स्पंदनशील होंठ एकसाथ भींच लिए और सिसियाते हुए बलपूर्वक उन्हें मरोड़ने लगती है, मानो सत्यता मे ही उन्हें सजा दे रही हो। उसकी कामुक हँसी का तो कोई पारावार शेष ना था, किसी भयानक मनोविकार से ग्रस्त पागल की भांति लगातार खिखियाते हुए पूरे जोशो-खरोश से वह अपनी चूत के अत्यंत सुंदर मुख को तीव्रता से उमेठे जा रही थी।

"उन्ह! उन्ह! तेरी गलती भी नही मुनिया। उफ्फ! रो-रोकर तू ...तू तो बस अपनी स्वभाविक चाह जता रही है, गूंगी जो है ठहरी। उन्ह! बोल नही सकती ना कि तेरी एक मोटे और लंबे--से लंड से चुदने की इच्छा है मगर किसके लंड से? तेरा मालिक माणिचंद तो यहाँ है नही, फिर किसके? बोल! बोल! किसके?" जो विध्वंशक, पापी शब्द उस मर्यादित माँ ने अपने सम्पूर्ण बीते जीवन मे कभी अपने होंठों पर नही आने दिए थे, सहसा उनके एकाएक मुंह से बाहर आते ही वैशाली अपने बाएं हाथ के अंगूठे और प्रथम उंगली के बीच अपने वास्तविक होंठों भी कसकर जकड़ लेती है। यह सोचकर कि अब उसके स्त्री शरीर के वह दोनो मुख्य अंग उसने हर संभव तरह से दबा दिए हैं हमेशा जिनके ही कारण यह धरती अनगिनत बार लहुलुहान हुई थी, मगर मन का क्या? वह तो पूर्व स्वतंत्र है।

"आहऽऽ! अभिऽऽमन्युऽऽऽऽ" अपने चंचल मन के हाथों विवश सचमुच पापी बनने को उत्सुक, चुदाई की प्यासी वह अत्यंत कामलुलोप माँ दिन मे तीसरी बार अपने सगे बेटे के प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष स्मरण मात्र से ही स्खलित होने लगती है।

कहते हैं कि पहली बार कोई पापी कृत्य करने के उपरान्त मनुष्य ग्लानी भाव से तड़प उठता है, दूसरी बार मे उसकी ग्लानी कुछ कम हो जाती है और जब वह बारम्बार पाप करने का आदि हो जाए तब उसके भीतर किसी भी प्रकार की कोई ग्लानी शेष नही रहती। अपनी कच्छी से अपनी स्खलित चूत का गाढ़ा रस पोंछते हुए वैशाली का मन-मस्तिष्क बेहद शांत था बजाए इसके कि वह रोए, दुखी हो; वह पूर्णरूप से संतुष्ट, निश्चिंत बिलकुल मस्त मलंग थी।

धुली ब्रा, ब्लाउज और बिना कच्छी के पेटीकोट पहनकर वैशाली अपनी नई महरुन साड़ी भी पहन चुकी थी, पेटीकोट का हल्का रंग साड़ी को एक नया व काफी शानदार फेन्सी लुक दे रहा था। अपने प्राकृतिक सुंदर चेहरे के श्रृंगार के नाम पर अधिकतर वह काजल और मैचिंग लिपस्टिक का ही प्रयोग करती थी, अपनी अत्याकर्शक बड़ी-बड़ी आँखों मे काजल लगाकर उसने मूंगिया रंगत के अपने भरे हुए होंठ गहरे महरुन रंग की लिपस्टिक से रंग लिए। तत्पश्चात वार्डरोब के लॉकर से उसने अपने उन गहनों का बॉक्स बाहर निकाला जिन्हें उसने अपनी बेटी अनुभा की शादी मे स्वयं के लिए बनवाया था, खैर ज्यादा कुछ उस बॉक्स मे नही था, मणिक की आर्थिक हालत को देख एक जिम्मेदार पत्नी होने का फर्ज निभाते हुए उसने स्त्री मोह की मुख्य वस्तु का सिरे से त्याग कर दिया था। पूर्व से अपनी दायीं नाक के नथुए मे जड़ी लौंग की जगह उसने उसमे सोने का छल्ला पहन लिया, अपने कानों के टॉप्स बदलकर सोने की लटकनदार बालियां भी धारण कर लीं, शायद इसलिए क्योंकि यह छल्ला और बालियां अभिमन्यु के विशेष आग्रह पर उसने बनवाए थे। पूरी तरह से तैयार होकर एक नजर कांच मे खुद को निहारने के उपरान्त उसने अपनी मैक्सी व अन्य कपड़ो को यथोचित स्थान पर रख दिया और बेडरूम से बाहर निकल जाती है।

वैशाली को हॉल के सोफे पर बेठे-बैठे तयशुदा समय से पैंतालीस मिनट ज्यादा बीत चुके थे मगर अभिमन्यु अबतक नही लौटा था ना ही देरी होने के संबंध मे उसका कोई फोन आया था और वह खुद अपने बेटे को कॉल करना नही चाहती थी। वह नही चाहती थी कि अभिमन्यु अपनी माँ की बेसब्री का ज्ञाता हो जाए, वह जान ना ले कि उसकी माँ उसके साथ ट्रीट पर जाने के लिए मरी जा रही थी।

पैंतालीस मिनट से एक घंटा और होते-होते ढ़ाई घंटे बीत गए पर अभिमन्यु की वापसी के विषय मे उसे कुछ भी पता नही चल पाया था। पल-पल दीवार घड़ी को ताकती वैशाली की नम आँखें ना जाने कितनी बार बह जाने की कगार पर पहुँच चुकी थीं मगर एक आस कि उसका बेटा उसे ट्रीट पर जरूर ले जाएगा और कहीं आँसू बहकर उसकी आँख के काजल को धो ना दें, वह जरा भी नही रोई थी मगर उसका धैर्य अब जवाब देने लगा था। अपने बेटे की रश ड्राइविंग की जानकर वह माँ अकस्मात घड़ी से अपनी नजर हटाकर सामने की टेबल पर रखे अपने मोबाइल को घूरने लगी।

"तू तो ऐसे कर रही है जैसे यह कोई आम--सी ट्रीट नही बल्कि तेरी पहली डेट हो" अपनी सोच के समर्थन मे फीकी हँसी हँसते हुए वैशाली ने तत्काल कपड़े बदल लेने का निश्चय किया, चूंकि उसका दिल भी खट्टा हो चुका था और आगामी इंतजार उसकी सहनशक्ति से बाहर था मगर अपने बेडरूम मे जाने से पहले वह एकबार अभिमन्यु से बात अवश्य करना चाहती थी ताकि जान सके कि ऐसा कौन--सा जरूरी काम आन पड़ा था जो वह अपनी माँ से झूठ बोलकर घर से बाहर गया था। उसे यह चिंता भी थी कि कहीं वह किसी मुसीबत मे ना पड़ गया हो, उसने टेबल से अपना मोबाइल उठाया और बेटे का नम्बर डायल कर देती है।

"सॉरी! सॉरी! सॉरी! सॉरी! बस दो मिनट, बस दो मिनट" पहली ही घंटी मे कॉल पिक कर अभिमन्यु ने बिना हैलो बोले सीधे माफी मांगनी शुरू कर दी और फिर फौरन कॉल कट भी कर देता है। लगभग दस मिनट बाद घर की बैल बजी तो वैशाली झूठे क्रोध के साथ दरवाजे की ओर बढ़ गई, जबकि सत्य तो यह था की एकाएक उसका रोम-रोम खिल उठा था।

"मैं खाना बनाने जा रही हूँ" बेटे के हॉल मे प्रवेश करते ही वैशाली गुस्से से बोली और मुड़कर किचन की दिशा मे चलने लगी।

"मॉम मैं इस गिफ्ट की तलाश मे लेट हो गया। आई एम सॉरी, माफ कर दो प्लीज" अपनी माँ के क्रोध को समझ अभिमन्यु उसे रोकते हुए बोला।

"कैसा गिफ्ट? और किसके लिए?" क्षणिक समय भी नही बीता कि वैशाली ने झटके से पलटते हुए पूछा, अभिमन्यु भी तबतक उसके करीब आ चुका था।

"अ रोज फॉर द मोस्ट ब्यूटिफुल एण्ड केयरिंग मदर अॉफ दिस वर्ल्ड" वह तुरंत अपने घुटनों पर बैठते हुए बोला, अपने दोनो हाथों मे पकड़ा लाल गुलाब उसने अपनी माँ की ओर बढ़ा दिया था।

"इसकी ... तलाश मे तुम्हें पूरे साढ़े तीन घंटे लग गए?" वैशाली का नकली क्रोध जारी था, गुलाब को अपने हाथ मे लेने की बजाय वह अपने दोनो हाथ कैंची के आकार मे ढ़ालकर उन्हें अपनी अपनी छाती के ऊपर रखते हुए पूछती है।
"ऐसा है और नही भी मम्मी, गुलाब तुम्हारी टक्कर का मिल सके इसी कारण मुझे देरी हो गई। वैसे एक और गिफ्ट भी लिया है मैंने" अभिमन्यु बेहद शरारती अंदाज मे बोला, अपनी माँ के भीतर आए बदलाव को समझने मे अब वह काफी तेजी से परिपक्व होता जा रहा था।

"अपनी माँ की टक्कर का, हुंह! शर्म करो शर्म पाखंडी कहीं के" वैशाली तुनकते हुए बोली तभी सहसा उसकी नजर उसके बेटे के बगल से नीचे फर्श पर रखे पॉलीबैग पर पड़ी, जिसपर भूल से पहले उसने गौर नही कर पाया था।

"उसमें क्या है मन्यु?" उसने फौरन उत्सुकता से पूछा।

"लड़कियों की यही गंदी आदत मुझे बिलकुल अच्छी नही लगती मॉम, गिफ्ट मे भी हमेशा साइज को ही प्रिफ्रेंस देती है" अभिमन्यु मायूसी से भरते हुए बोला, वह जानबूझकर अपनी माँ को एक लड़की की संज्ञा देता है और जिसका प्रभाव भी उसने तुरंत देखा, उसकी माँ सचमुच किसी नवयुवती की भांति चहक उठी थी।

"तुम जैसे लफंगों को मैं अच्छी तरह से जानती हूँ जिन्हें बात-बात पर बात निकालना आता है। लाओ इसे मुझे दो और अगर तुम्हारी नौटंकी खत्म हो गई हो तो मैं अब जाऊँ किचन मे" वैशाली गुलाब को छीनते हुए बोली, खैर था तो यह उसका नाटक मात्र। जीवन मे पहली बार किसी मर्द ने उसे अपने घुटनो पर बैठते हुए गुलाब भेंट किया था और जिसके नतीजन भीतर ही भीतर उसकी प्रसन्नता का कोई पारावार शेष ना था। एकाएक वह गुलाब की सुगंध सूंघने के लिए उसे अपनी नाक के करीब ले जाने लगी मगर ज्यों ही अभिमन्यु से उसकी नजरें टकराईं, वह अपने हाथ को तीव्रता से वापस नीचे ले आती है।

"इतना इंतजार तो कभी मुझे तुम्हारे पापा ने भी नही करवाया और तुम्हारी चिंता से घिरी रही सो अलग" वह पिछले कथन मे जोड़ती है। अभिमन्यु को अपनी माँ के मुंह से जो विशेष बात सुनने की चाह थी, वह चाह अपने-आप वैशाली ने पूरी कर दी थी।

"चलो ठीक है, गुलाब के लिए शुक्रिया नही कहा तो कोई बात नही मगर यह दूसरा गिफ्ट मेरे दिल के बेहद करीब है मम्मी" पॉलीबैग को पकड़कर अभिमन्यु फर्श से खड़ा हो जाता है, उसने अपने प्यार भरे शब्दों से वैशाली की उत्सुकता को काफी अधिक बढ़ा दिया था।

"पहले तुम बेशर्म थे, फिर पाखंडी, लफंगे और अब आशिकाना अंदाज मे बात करने लगे हो, जरूर इस पॉलीबैग मे कुछ तो अजीब है" कहकर वैशाली पॉलढीबैग को घूरकर देखने लगी मगर उसका रंग गहरा नीला था तो वह कोई खास अनुमान नही लगा पाती है।

"खुद ही देख लो इसमे ऐसा क्या है मम्मी जो तुम्हारे बेटे के दिल के इतना करीब है" लगभग अपने पिछले कथन को ही पुनः दोहराते हुए अभिमन्यु पॉलीबैग अपनी माँ के सुपुर्द कर देता है और उसके हाथ से गुलाब खुद ने ले लिया। वैशाली पहले पॉलबैग को ऊपर से टटोलने लगी, उसके हल्के वजन से उसे अहसास हुआ जैसे उसके भीतर कोई वस्त्र था। साड़ी का विचार मन मे आते ही वह तत्काल उसे नकार देती है क्योंकि साडी़ पहनने वाली हर स्त्री को उसके विषय मे बारीक से बारीक जानकारी रहती है। फिर इसमे क्या हो सकता है? वह अपने ही सवाल पर थोड़ा झल्ला सी गई और अंततः पॉलीबैग का मुंह खोलकर उसके भीतर झांकने लगती है।

"नही! नही! नही! नही! यह नही, बिलकुल ...यह बिलकुल नही मन्यु" पॉलीबैग के भीतर झांकते ही वैशाली मानो उछल--सी पड़ती है और फौरन पॉलीबैग के खुले मुंह को उसने लगभग चीखते हुए बंद कर दिया था।

"तुमने दिन मे कहा था कि तुम्हारी ब्रा और क ...क्च ...कच्छियों को पहनने मे तुम्हें दिक्कत होती है, कुछ साइज इश्यू के बारे मे बताया था तुमने" अभिमन्यु पूरा साहस जुटाते हुए कहता है पर फिर भी 'कच्छी' शब्द का उच्चारण करने मे वह हल्का--सा हकला ही जाता है। चलो एक बात की तसल्ली तो उसे जरूर हुई थी कि उसकी माँ ने एकाएक उसे थप्पड़ नही मारा वर्ना संसार की ऐसी कौन सी माँ होगी जो बेटे द्वारा तोहफे मे दिए गए अंतर्वस्त्रों को हँसकर कबूल कर ले।

"उससे तुम्हें कोई मतलब नही होना चाहिए अभिमन्यु" वैशाली अपने पेट मे एकदम से उठनी शुरू हुई मरूढ़ को दबाते हुए बोली। वह सकते मे तो थी मगर जाने क्यों अंदरूनी तौर पर उसे जरा--सा भी क्रोध नही आ रहा था, कोई ग्लानी महसूस नही और ना ही भय, घबराहट या झिझक का कोई अतिरिक्त अहसास। यकीनन यह उसके लगातार तीन बार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपने ही सगे बेटे के बारे मे सोचते हुए मुट्ठ मारने का भीषण परिणाम था जो अनाचार की ओर तेजी से अग्रसित होती जा रही उस माँ के भीतर सिवाय शर्म मात्र के कोई अन्य भाव बिलकुल उत्पन्न नही हो रहा था।
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Re: हैविंग फन मॉम

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"अगर मेरा वाकई उससे कोई मतलब नही होता तो तुम मुझसे ऐसा झूठ कभी नही बोलती" अपनी माँ की ओर से मिले सकारात्मक संकेत को महसूस कर अभिमन्यु दुष्ट हँसी हँसते हुए बोला। जाने कितने अरसे बाद उसकी माँ ने अपनी नाक और कान मे अपने बेटे के सबसे पसंदीदा आभूषण पहने थे जिन पर से अपनी नजरें हटा पाना उसके बस से बाहर हो चला था।

"कैसा झूठ? म ...मैं क्यों बोलने लगी तुमसे झूठ" वैशाली हकलाते हुए पूछती है, जितनी हैरत उसे बेटे के इस अश्लील तोहफे पर नही हुई थी उससे कहीं अधिक वह उसके कथन को सुनकर चौंक पड़ी थी।

"मैं उसी साइज की ब्रा और कच्छी के तीन सेट खरीदकर लाया हूँ मॉम जिस साइज के फिलहाल तुम पहन रही हो। तुम्हें तो झूठ बोलना नही आता माँ" अभिमन्यु फौरन उसे आँख मारते हुए बोला, अब वह पूरी तरह से भय मुक्त हो चुका था।

"तुम जैसे बेशर्म लोगों की सबसे खास बात यही है मन्यु कि वह बात-बात पर बात पकड़ते हैं। अभी इसी वक्त जाओ और इन्हें वापस करके आओ, अपनी माँ को उसका बेटा इस तरह का गंदा तोहफा कभी नही दिया करता" अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वैशाली लाज से दोहरी होती हुई बोली और पॉलीबैग तुरंत बेटे की ओर बढ़ा देती है।

"मॉम अब ये रिटर्न नही होंगे, डायरेक्ट एनामोर के आउटलेट से लाया हूँ" अभिमन्यु ने बताया।

"एनामोर? इतनी ब्रांडेड कंपनी? कहीं तुमने सारे पैसे तो खर्च नही कर दिए? फिर पॉलीबैग क्यों बदला?" वैशाली ने एकसाथ कई सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा। वह इस महंगे ब्रांड से तब परिचित हुई थी जब अनुभा ने अपने ससुराल जाने से पहले अपने नये अंडरगारमेंट्स एनामोर से ही खरीदे थे, वह अपनी बेटी के साथ वहाँ मौजूद थी और मात्र चार सेट का कैश मेमो लगभग साढ़े आठ हजार का बना था वर्ना इससे पहले दोनो माँ-बेटी कोई भी सस्ते अंडरगारमेंट्स पहन लिया करती थीं जैसे मिडिल क्लास की हर औरत पहनती है।

"तुम्हें बिलीव नही होगा मम्मी, आउटलेट मे बाय टू गैट वन फ्री का अॉफर चल रहा था और उसमे भी थर्टीफाइव परसेंट अॉफ था। तीन सेट सिर्फ ट्वेंटी सेवन हंड्रेड मे, है ना कूल? और हाँ मैंने पॉलीबैग इसलिए बदला ताकि एकदम से तुम्हारी मार ना खा जाऊँ और फिर यह जालिम समाज, यह मल्टी वाले मुझे बेशर्म नही समझते जो मैं अपनी ही माँ के लिए ब्रा-कच्छी खरीदकर ले ले जा रहा था" कहते वक्त अभिमन्यु की शैतानी अदा देखने लायक थी, उसका अपने दांत बाहर निकालकर बेहूदगी से खिखियाना उसकी माँ को हया से गड़ा देता है। उसने एक नजर ऊपर से नीचे तक बेटे को देखा और पाया कि उसकी जींस के भीतर कैद उसका लंड पूरी कठोरता से तनकर खड़ा हो चुका था, जिसके नतीजतन उसकी जींस के ऊपर एक बड़े--से तम्बू का निर्माण हो गया था।

वैशाली क्षणभर मे कांप उठी, पहली बार प्रत्यक्ष वह अभिमन्यु के खड़े लंड को इतने नजदीक से देख रही थी। भले ही उसके बेटे का लंड अभी उसकी जींस के भीतर छुपा हुआ था मगर फिर भी अपने पूर्णविकसित आकार से उसने, अपने पति से तिरस्कृत चुदाई की इच्छुक उस कुंठित माँ को फौरन सिरहन से भर दिया था। दिन मे तीन बार स्खलित हो चुकने के बावजूद एकाएक वह अपनी चूत मे एक और नई तड़प महसूस करने को विवश हो जाती है। उसे अपनी खुद की स्थिति बहुत दयनीय नजर आने लगी जब वह चाहकर भी अपनी आश्चर्य से फट पड़ी आँखें अपने बेटे की जींस के तम्बू से हटा नही पाती।

"कुछ भी हो मन्यु तुम्हारी माँ होने के नाते मैं तुम्हारे इस तोहफे को नही ले सकती और रिटर्न यह होगा नही। अब एक ही रास्ता बचा है कि इसे मैं अपनी होनेवाली बहू के लिए संभालकर रख लूं, ताकि अभी नही तो कम से कम फ्यूचर मे इसका यूज हो जाए" एकसाथ लज्जा, गुस्सा, निराशा और अनियंत्रित कमुत्तेजना से अभिभूत वैशाली ने जैसे-तैसे अपने बेटे के तम्बू से चिपकी अपनी नीच नजरों को हटाते हुए कहा और तीव्रता से पलटकर अपने बेडरूम की ओर चल देती है।

"मॉम इफ मेरी वाइफ का बदन तुम्हारे बदन की तरह ... वह क्या कहते है? हाँ छरहरा नही हुआ तो" कहते हुए अभिमन्यु भी अपनी माँ के पीछे चलने लगता है।

"प्लीज मम्मी इकसेप्ट कर लो ना मेरे गिफ्ट को, कितने प्यार से लाया हूँ" वैशाली के उसे ध्यान ना देने के बावजूद वह बोलता रहा।

"रुको तो माँ, अच्छा हम इस सब्जेक्ट पर बैठकर बात करें?" उसने चलते-चलते पूछा, दोनो माँ-बेटे बेडरूम के अंदर प्रवेश कर चुके थे।

"मॉम आई रियली लव यू, बहुत प्यार करता हूँ तुमसे। मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है, पहली बार किसी लड़की को गिफ्ट दे रहा हूँ। अब इसमे मेरा क्या फॉल्ट की तुम मेरी माँ हो, मेरी फीलिंग्स को कम से कम ऐसे तो न तोड़ो। प्लीज मॉम प्लीज" अभिमन्यु बिस्तर के पास पहुँचकर रुक जाता है, वैशाली अपना वार्डरोब खोल चुकी थी मगर जाने क्यों वह पॉलीबैग शेल्फ मे रख नही पाती। अपने बेटे के मुंह से ऐसी मार्मिक बातें सुनना उसे अच्छा नही लगा था, यह अवश्य था कि खुद के लिए अभिमन्यु के प्यार को वह बरसों से देखती आ रही थी और अब से थोड़ी देर पहले उसने उसकी आँखों मे स्वयं के लिए एक मर्द रूपी प्यार भी साफ महसूस किया था जब वह उसके लगातार एक ही प्रश्न पर अटके रहने के उपरान्त उसे अपना सच्चा जवाब देने की वजह से रोने लगी थी।

"तुम झूठे हो मन्यु। अगर तुम्हारी गर्लफ्रेंड नही तो तुम वर्जिन क्यों नही हो?" बिना अपना चेहरा घुमाए वैशाली ने उससे पूछा, उसे मालूम था कि ऐसी उलझी परिस्थिति मे उसके बेटे की निजता को भंग करता उसका यह सवाल बिलकुल उचित नही ठहराया जा सकता मगर सत्य जानने की इच्छा के हाथों मजबूर वह पूछ ही लेती है।

"प्रॉस्टिटूट" अभिमन्यु हौले से फुसफुसाया, जवाब देते समय एकपल को भी उसने अपने जवाब की निकृष्टता पर विचार नही किया था।

"वॉट!" वैशाली चौंकते हुए अत्यंत तुरंत उसकी ओर पलट जाती है।

"मैं खुद को संभाल नही पा रहा था मम्मी और अगर मुझे किसी औरत के जिस्म का सहारा नही मिलता तो मानो या ना मानो, मैं पागल हो जाता। इसके बाद मैं कई बार उस गलत जगह पर गया और आगे भी खुद को रोक नही पाऊंगा" कहकर अभिमन्यु बिस्तर पर बैठ गहरी-गहरी सांसें लेने लगता है, उसका सिर शर्म से नीचे झुक गया था। अपने दूसरे पहलू को अपनी माँ के साथ सांझा करने के बाद उसे ऐसे विचार आने लगे थे कि काश अपने आप उसका दिल धड़कना बंद कर दे और वह अपने इस अजीब से पागलपन से पूरी तरह मुक्त हो जाए।

"ऐसे स्टाइलिश अंडरगारमेंट्स मैंने आज तक नही पहने मन्यु" वैशाली ने उसके करीब आते हुए कहा, पॉलीबैग भी उसके हाथ मे मौजूद था।

"तुम्हारे कन्फेशन पर हम जरूर बात करेंगे पर पहले यह बताओ कि कच्छी का कलर तुम सिलेक्ट करोगे या मैं करूँ?" उसने अभिमन्यु के कंधे को थपथपा कर पूछा, यह उसके बेटे की ईमानदारी का नतीजा था जो वह एकबार फिर से पिघल गई थी।

"बोलो जल्दी बोलो फिर तुम मुझे ट्रीट पर भी तो ले जाओगे और बिना कच्छी पहने मैं इस घर से बाहर जाऊंगी नही" अपने कथन को पूरा करते ही वह पॉलीबैग को बिस्तर पर उलट देती है।

"मैं मुंह धोकर आता हूँ, तुम हॉल मे तैयार मिलना माँ" अभिमन्यु बिस्तर से उठते हुए बोला, वह अपनी माँ अश्लील बातों से अकस्मात् झेंप सा गया था।

"पहले अपनी माँ के लिए कच्छी तो सिलेक्ट करो, माँ पेटीकोट के नीचे नंगी है मन्यु" वैशाली सीधे उसकी आँखों मे झांकते हुए बोली। वह बिस्तर के बिलकुल करीब आकर खड़ी हुई और अभिमन्यु के अचानक बिस्तर से उठकर खड़े हो जाने से दोनो माँ-बेटे का शरीर आमने-सामने से काफी हद तक चिपक गया था। दोनो एक-दूसरे की चढ़ी सांसों को अपने-अपने चेहरे पर साफ महसूस कर सकते थे, दोनो की छातियां ओर जांघें भी आपस मे सट गई थीं और ठीक उसी पल अपने बेटे के थरथराते तम्बू का स्पर्श अपनी नाभि पाकर वैशाली के मन मे एक ऐसा पापी ख्याल पनप जाता है जिसके पूरे हो जाने के पश्चात माँ-बेटे का आगामी भविष्य निश्चित ही बदल जाना था।


"अॉन योर नीज़ मन्यु, अभी" अपने जबड़े भींचकर ऐसा कहते हुए वैशाली अपने दोनो हाथ एकसाथ बेटे के कंधों पर रख उसे नीचे फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठने के लिए, अपने हाथों की क्रिया के साथ मौखिक दबाव भी देने लगती है। अभिमन्यु ठगा, मंत्रमुग्ध सा अपनी माँ के हाथों के हल्के दबाव से भी हौले-हौले नीचे बैठने लगता है, उसका चेहरा नीचे बैठने के दौरान उसकी माँ के शरीर से बिलकुल सट गया था और जिसके नतीजन जबतब उसके होंठ भी वैशाली की साड़ी व निर्वस्त्र बदन से रगड़ खाते जा रहे थे।

सर्वप्रथम उसके होंठों ने उसकी माँ के गोल-मटोल मम्मों के ऊपरी फूले फुलाव को छुआ और वहाँ से फिसलते हुए उसके होंठ माँ के ब्लाउज पर पहुँचे, फिर पुनः होठों को उसकी माँ की नंगी त्वचा को छू लेने का अवसर प्राप्त हुआ। वैशाली के चिकने गुदाज पेट ने तो जवान अभिमन्यु को जैसे पूरी तरह से अपने वश मे कर लिया था, वह एकाएक इतना अधिक भ्रमित हो गया कि उसे यह भी ख्याल नही रहा कि उसने अपनी माँ के नंगे पेट को चूमना भी शुरू कर दिया है। माँ की गोल गहरी नाभि को बारम्बार पटापट चूमने के उपरान्त उसके होंठों का स्पर्श दोबारा वैशाली की साड़ी से हुआ और फिर वहीं ठहरकर रह गया, यह उसकी माँ का वह वर्जित स्थान था जिसे या तो बचपन मे उसके नाना-नानी ने देखा था या शादी होने के बाद उसके पिता ने। अभिमन्यु अब पूरी तरह से फर्श पर बैठ चुका था और ज्यों ही वह अपने चेहरे को साड़ी के ऊपर से अपनी माँ की टांगों की जड़ पर दबाता है, वैशाली अपना निचला होंठ जोर से अपने दांतों के बीच फंसाकर अपनी सिसकी रोकने के असफल प्रयास से झूझने लगती है। उसकी टांगें तत्काल कुछ इस तरह से कपकपाने लगी थी मानो वह किसी चालू जनरेटर के ऊपर खड़ी हो, वह कैसे भी कर अपने बेटे के मुंह को अपनी चूत के ऊपर से हटाना चाहती थी वर्ना कुछ ही क्षणों मे उसका पतन हो जाना निश्चित था।
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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दिल से दिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
मगर आप जैसे दोस्त नसीब वालों को मिलते हैं!
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