चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़) complete

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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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"दोनो तरफ व्यवस्थित ढंग से चमन के नागरिक खड़े थे । दरवाजे के ठीक सामने--- दूर सिंहासन रखा हुआ था । वतन और फलवाली बूढी मां की जय जयकार से सारा चमन गूंज उठा ।


बैण्ड बन्द हो गए । शहनाइयां खामोश हो गई ।।




'वतन' बुढिया को सिंहासन के करीब ले गया । बोला-"बेठो दादी मां ! इस देश का राजा अपनी मां को सिंहासन पर बैठाकर , राज करेगा ।"


चौंक पडी बुढिया, बोली---"ये क्या कहता है बेटा ? यह गदी तो तेरी है ।"



" नहीं दादी मां ।" वतन ने कहा'---“गद्दी मां की है ---बेटा तो मां की सेवा करेगा ।"


" नहीं वतन---नहीँ मेरे बेटे !" खुशी के मारे रो पडी़ बुढिया ---" मुझे तो बस सिर्फ मेरेे पैसे दे दे ।।



” पैसे तो दूगा ही मा ।। " वतन बोला---" पहले बैठो तो सही यहां ।।"


खुशी से रोती हुई बुढिया को राजगद्दी पर बैठना ही पड़ा ।



फिर-बिकास एक थाली लाया । थाली में रोली थी, साथ ही चावल और एक हीरे-जड्रित सोने का मुकुट । वतन ने रोली में अंगूठा भिगोया, बोला----", गद्दी पर तुम बैठा करोगी मां ।। दुनिया चाहे यह जाने कि चमन का राजा वतन है, लेकिन हकीकत यही रहेगी कि यह गद्दी तुम्हारी है । तुम वतन की माँ हो, इस देश के राजा ,. की मां…इस देश की मां ।" कहते हुए बुढिया के माथे पर रोली लगा दी उसने ।



झर झर करके बुढिया की आंखों से खुशी के आसू बहते रहे । वतन ने माथे पर रोली पर चावल चिपका दिए ।


फिर ताज हाथ मैं लेकर कहने लगा----" यह मत समझना दादी मां, कि यह मुकुट मैं तुम्हें मुफ्त में, खैरात में या कोई एहसान करने के लिए दे रहा तू । यह तो उन नो सौ आठ सेर फलों की कीमत है जो तुमने मुझे उधार खिलाए हैं ।"

इतनी खुशी मिले तो इन्सान पर सहन नहीं होती । खुशी चरम सीमा का प्रतीक होता है फूट-फूटकर रोना । बुढिया रो पडी ।



वतन ने उसके सिर पर ताज रख दिया ।



फ़लबाली बुढिया की जय जयकार से वातावरण गूंज ऊठा ।।


बुढिया की आखों से आसूं झलक रहे थे ।




रोते रोते अचानक वह बोली -"‘वतन, मेरे बच्चे ! देख, मुझ पर यह खुशी सहन नहीं हो रही है । अब देख.....मैं देख रही हू कि तूं मेरे लिए स्वर्ग का दरबाजा खोल रहा है, अरे तू तो बुला रहा है मुझे ......अाई वेटे...मैं आ रही हूं ।"




" दादी मां...दादी मां !” कन्धों से पकडकर वतन उसे झंझोडता हुआ बोला---"क्या होगया तुम्हें होश में आओ ।"



और, वास्तव में फ़लबाली बुढिया अपनी सुधबुधु खो बैठी थी । उसकी आंखें अन्तरिक्ष में जम गई । वहीँ अन्तरिक्ष में निहारती, खोई-सी कह रही थी---"बेटे, तूने मेरे लिए स्वर्ग का दरवाजा खोल दिया----हां जाती हूं ।"




"मां…मां...!" बुढिया को बूरी तरह झंझोड़कर चीखता हुआ रो पडा वतन----"होश में आओ ...क्या कह रही हो तुम ?"



बुढिया हल्के से चौंकी, वतन के चेहरे को देखा, बोली-----" मैं जा रही हूं वतन ।"



" कहा मां ?” वतन तड़प उठा---" कहां ?"




"वहीँ, स्वर्ग में...” वतन का चेहरा देखती हुई वह बोली----"तु रोना नहीं...मुझे हाँ जाना है...”



" नहीं.मा, नहीं ।" रो पड़ा वतन----'"जिससे भी प्यार होगा, क्या वह मर जाएगा ? मां नहीं ! मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा ।"




"‘पागल !" बुढिया ने कहा--"'अरे मेरी तो उम्र ही मरने की है । वह तो उधार लेने के लिए जिन्दा थी मैं । उधार ले लिया---- अब मैं चलूं। तुझे कसम है मेरी----- वतन । याद रखना --- मेरी कसम् हैं---- मेरी लाश पर एक भी आंसू न बहे-न ही तेरा न तेरी प्रजा का । देख तेरे राजतिलक का सारा काम ठीक उसी तरह होना चाहिए , जिस तरह होता है ।"

"ऐसा मत कहो दादी मां, ऐसा मत कहो ।" तढ़पकर रो पड़ा वतन---"क्या मैं इतना बुरा हूं मां, कि जिससे भी मैं प्यार करूं, उसे ही खा जाऊं ? अपनी मा से प्यार किया था, वहन से प्यार किया था, पिता से प्यार किया था; उन सबको तो बचपन मे ही खा गया मैं । जब उन सबके बाद तुम्हीं से तो प्यार किया है मैंने, तो...तो क्या तुम्हें भी खा जाऊंगा मैं ?"




…“क्या वेवकुफ है रे तू जो मरती हुई मां की नहीं सुनता-अपनी हांके जा रहा है ।" उसी तरह खोई सी बुढिया ने कहा---"सुन...सुन...तू पापी से भी प्यार करेगा तो स्वर्ग में जाएगा...हां...हां भाई-आ रही हूं....अरे दो मिनट अपने बेटे से तो बात कर लूं। वतन...देख...स्वर्ग के देवता मुझे बुला रहे हैं । वेटे, ज्यादा वक्त नहीं है मेरे पासं...ध्यान से सुन…-अगर एक भी आसू बहा, तेरे राजतिलक के किसी भी काम में , मेरे जाने से कोई फर्क अाया तो सच कहती हूं --- -मेरी आत्मा हमेशा भटकती रहेगी।"



और उस बुढिया-के मुंह से निकले ये आखिरी शब्द थे ।



सिंहासन की पुश्त से सिर जा टकराया उसका । वह ठंडी हो गई-निश्चल ।।



अवाक-सा वतन अपने काले चश्मे में से उसे देखता रह गया ।




दरबार में सन्नाटा छा गया----मौत का सन्नाटा ।



"कोई रोएगा नहीं" वतन की इस गर्जना ने पूरे चमन को हिला डाला…'किसी भी आंख से कोई आंसु नहीं निकलेगा । आज वतन तुम्हारा राजा वना है । एक बार फिर आज वतन को की मरी है । जश्न मनाओ-शहनाइयाँ बजाओ ।"



जवाब. में सन्नाटा…वही मौत का ।



"सुना नहीं था तुमने ?" दर्द से भरी वतन की गुर्राहट--"मेरी मां ने अभी क्या कहा था---" बैण्ड बजाओ ।"



और-सब कुछ जैसे वेण्ड और शानाइयों की आवाज में दबकर रह गया ।

वड़ा अजीब जश्न मनाया जा रहा था ।


फ़लवाली बूढी़ मां की लाश को सीधी करके सिंहासन पर रख दिया गया था ।


उसी सिंहासन के बराबर में एक छोटे सिंहासन पर बैठ गया था वतन ।



देखने वाले हर पल उसके होंठों पर मुस्कान देख रहे थे । आखें तो उसकी कोई देख ही नहीं सकता था । हमेशा की तरह उसृकी आंखें काले चश्में के नीचे छुई थी ।



बैण्ड और शहनाइयां बज रहीं थी, चमन के नागरिक खूशी से नाच रहे थे--वतन का आदेश जो था । परन्तु वतन के आजाद होने का जश्न मनाते हर आदमी की आंखों में आंसू थे ।



मजाल थी किसी का एक भी आंसू आखों की सीमा को तोड़कर गालों तक अाता ।


फिर---वह वक्त अाया---जब राजतिलक, होने वाला था ।



सभी आवाजें थम गई तो वतन ने कहा-"मेरी इच्छा थी कि माथे पर सबसे पहला तिलक दादी मां लगाएं किन्तु... "



"अभी तो हम जिन्दे हैं बेटे ।" सबके साथ वतन भी चौंक पड़ा क्योंकि राजमहल में गूंजने बाली आवाज सिंगहीं के अलावा किसी की नहीं थी ।


हर निगाह दरवाजे की तरफ उठ गई ।


सिंगहीं चला अा रहा था । जो सिंगही को जानते थे, वे तो उसके भयावने चेहरे को देखते ही सहम गए । परन्तु इस दरबार में ज्यादातर लोग ऐसे थे जिन्होंने सिंगही का सिर्फ नाम सुना था, आज ही पहली वार देख रहे थे ।



देखने वालों के जिस्मों में झुरझुरी-सी दौढ़ गई ।
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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

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लोगों ने देखा…किसी मुर्दे जैसा चेहरा, चेहरे की हर हडडी उभरी हुई । गडृढों में धंसी छोटी-छोटी किन्तु बेहद चमकीली आखें । दोनों तरफ से होंठों पर झुकी मुंछें । दाढ़ी के ठोढ़ी पर कम बाल थे किन्तु वेहद लम्बे । सिर पर गिनती के ही बाल थे ।



… चेहरे की सम्पूर्ण खाल इस तरह झुलसी हुई थी मानो कि निचोढ़ने के लिए उमेठ हुआ कपडा ।



पतले-बेहद पतले होंठों पर मुस्कान थी ।




"‘गुरु अाप !" सिंगही को देखते ही श्रद्धापूर्वक वतन सिंहासन छोड़कर खड़ा हो गया ।।



-"अभी हम मरे नहीं हैं वतन बेटे ।" सिंगहीं की भयानक , आवाज राजमहल में सरसरा उठी ---" यह दूसरी बात थी कि राजा बनते ही तुम गुरू को भूल गए । "




" तुम उस वक्त तक एक पटृटा लिखवाकर आए हो चचा, जव तक साली ये दुनिया चलेगी ।" इससे पूर्व कि वतन कुछ जवाब दे, विज़य बोल पड़ा---"तुम साले नम्बर एक के बेशर्म 'भला मर कैसे सकते हो ?"



विजय को देखकर हल्के से मुस्कराया सिंगही, बोला---"बेटे तुम सबको मारने के बाद ही मरेंगे हम ।"




"मरने वाले हम भी नहीं हैं चचा ।"



इससे पहले कि सिंगही पुन: विजय के जवाब में कुछ कहता, वतन ने कहा…गुरु आओ, यह सिंहासन खाली , आपके लिए ।"

हल्के से मुस्कराया सिंगही कहने लगा----"उस सिंहासन पर बैठकर मुझें इस बूढी दादी मां की तरह मरना नहीं है ।। चमन का यह सिंहासन राजा के रूप में सिर्फ तुम्हें स्वीकार करता है कोई अन्य राजा बनना चाहेगा तो अंजाम तुम्हारी दादी मां जैसा होगा । हमें तो पता लगा था के अाज हमारा वतन चमन का राजा वनने जा रहा है, सोचा---शायद तुम्हें हमारे आशीर्वाद की जरूरत हो ।"



इस बीच सिंहासन की सीढियां तय करके वतन सिंगही के करीब अा गया था ।



पूर्ण श्रद्धा के साथ झुककर उसने सिंगहीं के चरण स्पर्श कर लिए । सिंगही ने प्यार से उसक सिर पर हाथ फेरा । उठाकर कलेजे से लगाया, बोला-"खुश रहो वतन ! मेरी तरफ से मुबारक हो कि आज तुम्हारी बचपन से संजोई इच्छा पूरी हुई ।"



'"आपके आशीर्वाद से ही यह संभव हो सका है, गुरु ।" वतन ने कहा----""गुरु अाप नाराज तो नहीं मुझसे ?"



"'क्यो ? किसलिए नाराज होना चाहिये मुझे ?"


“वो..हिचका वतन----"मैंने अापका अडडा नष्ट कर दिया । आपका अभियान बीच में ही असफल हो गया....."




" पगला !” सिंगही कह उठा…"इसमें नाराज़ होने जैसी क्या बात है ? मैं तो पहले ही जानता था कि तुम्हें हिंसा पसन्द नहीं, और अगर तुम्हें मेरे अभियान के बारे में भनक भी लगी तो तुम मेरा विरोध करोगे । इसीलिए तो वह सब कुछ तुमसे छूपाकर किया था । मगर, तुम वहां पहुच गए । जो हुअा वह मेरे लिए कोई नई बात नहीं । हां-इस बात की मुझे अपार खूशी है कि इस बार यह काम तुमने किया-----" मेरे शिष्य ... मेरे शागिर्द ने !”



" गुरू ।" वतन ने विनती-सी की----'' यह हिंसा छोड क्यों नहीं देते ...."




…"'वतन ।" उसकी बात बीच में ही काटकर सिगहीं ने कहा---" तुम अाज भी शागिर्द हो न मेरे ?"


" कैसी बात करते हैं गुरू ! हमेशा रहूगां । "



"हमारी एक वात मानोगे ?"



" अाप कहकर तो देखिए ।" वतन ने कहा---"'हां, किसी निर्दोष की हत्या का अादेश न देना ।"



"जाकर चुपचाप सिंहासन पर बैठ जाओ। सिंगही ने कहा…"इघर-उधर की बातों में समय जाया मत करों सं आज तुम्हारा राजतिलक होना है । हमें तो बुलाया नहीं तुमने, लेकिन हम खुद ही चले अाए । सोचा…शिष्य नालायक हो जाए तो गुरु को उसका अनुकरण करना नहीं चाहिए ।"

वतन कुछ नहीं बोला । चुपचाप गर्दन झुकाकर मुड़ा । आहिस्ता-अाहिस्ता चलता हुआ वह सिंहासन के नजदीक पहुंचा, फिर उस पर बैठ गया । इधर विजय सिंगही से कह रहा था---"चचा, हो तुम पूरे बेशर्म ।"




" मेरी नहीं वतन की बात करो विजय बेटे !"



सिंगही ने कहा---"बोलो, गलत तो नहीं कहा था हमने? है ना मेरा बतन----शेर का बच्चा ?"




"अवे जाओ चचा, तुम गधे के बच्चे भी नहीं !"



इधर विजय की बात पर सिंगही ने जैसे कोई ध्यान ही नहीं दिया । वह तो विकास को देख रहा था, बोला…"क्यों विजय बेटे ! आज तुम्हारा यह दुनिया का सबसे खतरनाक लड़का क्यों चुप है ?"




"‘ये सोचकर दादाजान' कि मुकद्दर भी ऊपर वाले ने क्या चीज बनाईं है !" विकास ने कहा----"वतन जैसे चन्द्रमा पर यह ग्रहण लगाया था कि उसके गुरु अाप हैं । सो लग गया उस पर गुरु, शुक्र मनाओ कि वतन आपकी इज्जत करता है ।”



-"'हा...हा...हा !" अचानक बहुत जोर से हस पड़ा सिंगही ।



ऐसी भयानक हंसी जैसे अचानक कब्र में दबा कोई मुर्दा खनखनाकर हंस पड़ा हो । चमन के नागरिकों के जिस्मों में आंतक की लहर दौड़ गई । रीढ की हडिडयां कांप उठी, फिर सिंगही की सर्द अवाज---" मान गए तुम कि मेरा वतन शेर का बच्चा है ।"



"प्यारे सिंगही ।" एकाएक अलफांसे बोला----"दुख है तुम अपने चेले को भी अपने नापाक ईरादों से सहमत न का सके ।"




"मुझे किसी को अपने ‘इरादों' से सहमत करने की जरूरत नहीं है मिस्टर अलफांसे !" सिगहीँ ने कहा-------"अपने इरादे का मैं अकेला ही काफी हूं । एक दिन मैं अकेला ही इस सारी दुनिया का, जिसमें तुम भी होगे-सम्राट बनकर दिखाऊँगा ।"



" कम से कम उस वक्त तक तो ऐसा हो नहीं सकता, जब तक कि अलफांसे जिन्दा है ।"




"'खैर ।" सिंगही ने वतन की तरफ देखते हुए कहा, जो उसके अादेश के मुताबिक सिंहासन पर जाकर बैठ गया था---"इस वक्त हम किसी से कोई बहस करने नहीं बल्कि अपने वतन` का राजतिलक करने आए है ।"

कहने के साथ ही सिंगही सिंहासन की तरफ बढ गया । सिंहासन के समीप ही एक स्टूल पर रोली और चावल की थाली रखी थी । करीब पहुंच कर सिंगही ने रोली में अंगुल डुबोया । वतन की तरफ देखकर वह मुस्कराया--- पहली बार---हां, देखने बालों के लिए शायद यह पहला ही मोका था जब सिगहीँ के होंठों पर ऐसी प्यारी मुस्कान उभरी थी । आंखों में चमक, खतरनाक नहीं, खुशी की चमक !



उसने टीका वतन के गोरे माथे पर लगाया, साथ ही बोला-"मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है बेटे । दुनिया कहती है, मैं भी मानता हू कि सिंगही ने किसी का सगा होकर नहीं रहा । मोका मिलते ही सबसे पहले मैं अपने साथियों को मारता हू। बेशक तुमसे मिलने से पहले सिंगही के पास सिर्फ दिमाग था, दिल नहीं, लेंकिन...लेकिन... तुम मिले तो मैंने जाना कि मेरे सीने में कहीं-न-कहीं दिल भी है । तुमसे मिलने से पहले सोचता था कि लोगों को एक दूसरे से प्यार क्यों हो जाता है ? तुमसे मिला तो जाना-प्यार मुझे भी हो गया है । मेने अपने ईलावा किसी के बारे में कभी यह नहीं सोचा कि वह ऊंचा 'उठे-कुछ बने, किंतु न जाने क्यों, दिल चाहता है कि तुम ऊंचे बनो ! मेरा आशीर्वाद तुम्हरे साथ है । इस छोटे से मुल्क की यह राजगद्दी तुम्हें मुबारक हो ।"


फिर…उसने रोली पर चावल भी चिपका दिए।


एक बार पुन: श्रद्धापूर्वक वतन ने झुककर' सिंगही के पैर छए ।


चरणों से उठाकर सिंगही ने उसे सीने से चिपका लिया ।।


" मेरा बच्चा होकर काम तो तुमने दुश्मनों वाला किया था वतन, गुस्सा , भी अाया था । सोचा था तुम्हें उस गुनाह की सजा दूं जो तुमने किया। मगर न 'जाने क्यों माफ कर दिया तुम्हें ।"



वतन को सिंहासन पर बैठाकर सिंगही नीचे उतर आया । फिर राजतिलक का दौर चला ।

अलफासे ने किया, विजय ने क्रिया, तो बोला---"याद है बेटे एक महीने के बाद ही राजा बने हो ।"


वतन धीमे से मुस्कराकर रह गया ।
पिचासनाथ के बाद विकास ने किया ।


अपोलो औंर धनुषटंकार के बाद, बागारोफ ने तिलक लगाते हुए कहा…"साले गुलाब की दुम, तुम शायद पहले मुजरिम हो, जो एक ऐसे आजाद देश का राजा बने हो जिसे धीरे-धीरे करके दुनिया के सभी राष्ट्र मान्यता दे रहे हैं ।"

"सब अाप, जैसे बुजुर्गों का आशिर्बाद है चचा !" वतन ने कहा था ।"


तिलक करने के खाद बागारोफ अभी सिंहासन से नीचे उतरा ही था ।




-"उपस्थित्त सज्जनों को प्रणाम !" दरबार में एक ऐसी आबाज गूंजी जैसे आचानक फुल साऊंड पर चलता हुअा रेडियों खराब हो गया हो !


अन्य सब तो चोंकें लेकिन जानकारों के मुंह से निकला--------टुम्बकटू..टुम्बकटू..!
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महाबली टुम्बकटू


मगर-दरबार में कहीँ नजर नहीं अा रहा था वह । सब इधर उधर देख रहे थे ।।।

पुन: वही आवाज गूंजी… " शुतरमुरग की औलादों की तरह इधर उधर क्या देख रहे हो सज्जनों , मैं यहां हूं । "



इस बार आवाज ने सबका ध्यान सिंहासन की तरफ खींच लिया । लोंगों ने देखा ---- सिंहासन के नीचे से किसी सांप की तरह बल खाकर रेंगता हुआ टुम्बकटू बाहर अा रहा था । वह कब बाहर आगया, यह कोई न देख सका । सबने देखा कि दरबार के बीचों बीच खडा यह उस गन्ने की तरह लहरा रहा था जो एक लम्बे-चौड़े खेत के बीच अकेला खड़ा किसी तेज तूफान का मुकाबला कर रहा हो ।





…'"अबे-तुम कहां से टपक पड़े मियां कार्टून ?" विजय ने कहा ।



" टपका नहीं प्यारे इकझकिए, बल्कि इस सिंहासन के नीचे अटका पड़ा था ।" टुम्बकटू की घरघराती आवाज----" बुजुर्ग मियां में इतना वज़न है कि निकलना चाहकर भी मैं निकल सका । सिंहासन से नीचे उतरे तो वजन कुछ क़म हुअा---मैं बाहर आ गया ।"

"'क्या बकता है वे चमार चोट्टी के ?" बागारोफ़ दहाड़ा----"अवे साले, हमें क्या हाथी का बाप समझ रखा है ?"

" हाथी का नहीं बुजुर्ग मियां, हथनी का ।"

ओंर-बागारोफ झपट पड़ा उस पर ।



किन्तु टुम्बकटू छलावा !!!!

उसके जिस्म को छू लेना ही एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने के वरावर था ।। वह भला बागारोफ के हाथ कब अाने बाला था ? नतीजा यह कि टुम्बकटू अागे और बागारोफ पीछे ! बागारोफ को उसने न जाने जितने चक्कर लगवा दिए ।



तब जबकि चमन के नागरिकों ने टुम्बकटू की आवाज सुनी थी, तो कांप उठे थे ।




मगर जब उसे देखा तो मुस्करा उठे ! मुस्कराते भी क्यों नहीं ?



दुनिया का सबसे बडा कार्टून जो उनके सामने था---किसी गन्ने जितना मोटा आदमी ! जिस्म पर एक कोट झूल रहा था ।




ऐसे जैसे किसी हैंगर पर झूल रहा हो । दुनिया का एक भी रंग ऐसा नहीं था जिसे उस में न देखा जा सके । चमन के साधारण नागरिकों के लिए यह एक नमूना ही था ।



दुम्बकटू चन्द्रमानव ! कहता है कि यह चन्द्रमा का सबसे मोटा-ताजा आदमी है, वेहद खतरनाक ! इतना कि जब यह विवाद उठा कि अन्तर्राष्टीय सीक्रेट सर्विस का चीफ कौन बने तो फैसला यह हुआ था कि जो टुम्बकटू की जांध से फिल्म निकाल लेगा वहीँ चीफ बनेगा ।

***** सीक्रेेट सर्विस का चीफ कौन चुना गया । उसे चुनने की क्या प्रक्रिया हईं ? और भी कई सबालों के जबाब के लिए पड़े-
सबसे बड़ा जासूस और चीते का दुश्मन' । ******


हां ऐसा ही खतरनाक था वह गन्ने जैसा व्यक्ति !


किन्तु इस वक्त तो चमन के साधारण नागरिकों को हंसा-हंसाकर लोट-पोट कर रखा था उसने । हंसते भी क्यों नहीं, समय ही ऐसा था । कुछ ही देर बाद बागारोफ की सांस फूल गई ।


एक जगह खड़ा होकर वह किसी हब्शी की तरह सांस लेने लगा ।।



उसके ठीक सामने गन्ने की तरह लहराता टुम्बकटू बड़े अदब से झुका हुआ कह रहा था----"आदाब अर्ज है, बुजुर्ग मियां सच कहता हूं आज अगर तुम मुझें पकड़ नहीं सकैं तो बच्चों की चाची का हवाई जहाज बना दूगा ।"


एक कदम भी भागना अब बागारोफ को जैसे असम्भव नजर जा रहा था ।




अपनी जगह पर खडा हुआ वह टुम्बकटू को उल्टी सीधी गालियां बकता रहा । उनकी झड़प से दरबार में मौजूद हर आदमी जैसे यह भूल गया कि वतन के पास ही वतन से ऊचे सिंहासन पर एक लाश बैठी है-फलबाली बूढ़ी मां की लाश ।

काफी देर बाद अलफांसे ने कहा---"मिस्टर टुम्बकटु यहाँ क्या करने अाए हो तुम ?"




"अबे बाह अन्तर्राष्टीय !" टुम्बकटू ने लहराकर कहा…"साले हमारी-तुम्हारी बिरादरी का एक भाई राजा बना है, ओर तुम कहते हो कि हम यहा क्यों अाए हैं ? अवे शुश होने अाये कि हमारे बिरादरी भाई अब ऐसे राजा बनने लगे हैं जिन्हें दुनिया के राष्ट्र मान्यता दें ।"



"मिस्टर कार्टून ।।" गुर्रा उठा अलफांसे---"वतन मुजरिम नहीं है ।"




"अजी कैसे नहीं है ?"





"मुझे भी शायद बच्चा समझ रखा है ?" कहने के साथ ही अलफासे संतुलित कदमों से उसकी तरफ बढ़ गया…“हम दोनों मुजरिम हैं अगर वतन को बिरादरी भाई कहा तो तुम्हारे इस . गोन्ने जैसे जिस्म को धुटने पर रखकर तोड़ दूंगा ।"



" ठहरो चचा ।।" इससे पहले कि टुम्बकटू कुछ बोलता, सिंहासन पर बैठे वतन ने कहा…"कार्टून चचा ने गलत नहीं कहा है । मुजरिम तो हूं ही मैं ! सच, खुद को मुजरिम मानता के लेकिन साथ ही यह दुआ भी करता हूं कि जहां भी जुल्म हो भगवान वहा मुझ जैसा एक मुजरिम जरूर पैदा कर दे ।"



अत्तफांसे ठिठका, वतन की तरफ पलटकर बोला -"कैंसी बातें कर रहे हो वतन ! तुम मुजरिम नहीं हो ?"




"आपके मानने और कहने से हकीकत नहीं बदल जाएगी चचा !" वतन ने कहा…"आवश्यक है कि महान सिंगही का चेला मुजरिम ही हो । बेशक अपने वतन को मैंने मुजरिमाना ढंग से ही आजाद क्रिया है । दुनिया की नजरों मैं मुजरिम हूं और सच--मुजरिम ही रहना चाहता हूं ।। हा, तो मिस्टर टुम्बकटू क्या चाहते आप, किस ,इरादे से यहा अाए हैं ?"



"एक ऐसे बिरादरी-भाई को मुबारकबाद देने जो जब एक आजाद मुल्क का राजा है ।" सिंहासन की तरफ़ बढते हुए टुम्बकटू ने कहा--" हम भी तुम्हारे राजतिलक में भाग लेने अाए हैं ।"


सिंहासन की सीढ़ियों पर चढ़कर वह वतन के करीब पहुंचा । लहराकर उसने अपना अंगूठा थाली में रखी रोली की तरफ बढाया ही था कि… अचानक, सब चौंक पड़े ।।

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प्रिंसेज जैकसन



ज्यादातर की तो चीखे निकल गयी । देखने वालों ने देखा--- एक लाल किरण टुम्बकटू के गन्ने जैसे जिस्म के चारों तरफ लिपट गई । टुम्बकटू के मुह से कोई आवाज भी नहीं निकल सकी कि उसका जिस्म हबा में उड़ता चला गया ।




" तुमसे पहले वतन का राजतिलक मैं करूगी मिस्टर कार्टून ।" हर व्यक्ति को ऐसा लगा जैसे उसके कानों में शहद' उंडेला जा रहा हो ।




" हाय मेरी स्वप्नसुन्दरी ।" टुम्बकटू का दिल यह नारा लगाने के लिए मचल उठा । परन्तु क्या करता ? मजबूर था बेचारा । किरण में कैद वह दरबार की गुम्दनुमा छत के करीब हवा में लटक रहा था । इस वक्त कुछ बोलना या अपने जिस्म के किसी अंग को हिलाना उसके बश में नहीं था ।





"हाए मम्मी, कहां हो तुम नारा विजय ने लगाया---" दर्शनअभिलाशियों को दर्शन तो दो ।"





" जरूर ।।" इस खनखनाती आवाज के साथ ही एक तेज़ झनाका हुआ । "


प्रिंसेज जैकसन की विशेषता न जानने वाले लोग दहल उठे । दरबार के एक कोने में अाग का शोला लपलपाया । चक्कर खाकर अाग का शोला हवा में गायब, दरबार में हर इन्सान की निगाह उधर ही जमी हुई थी । फिर देखने बालों ने देखा, तो देखते ही रह गए ।। विश्व की सर्वाधिक सुन्दऱी उनके सामने थी…प्रिंसेज जैकसन ! सोन्दर्यं को भी सजा वाली सुन्दरता । दूध जैसा गोरा रंग, ऐसा कंठ कि शराब का एक घूंट भरे तो गले के बाहर से ही अंदर की शराब चमके ! गोरे मस्तक पर झिलमिलाती एक काली बिंदिया । मस्तक पर मुकुट ।



लोग उसे ही रह गए---अपलक !



पलक मारना ही जैसे मूल गए थे ।



प्यारी-प्यारी चमकीली आखें सिंगही पर जमी, गुलाबी अधरों मैं कम्पन हुआ…"महामहिम को मेरा प्रणाम ।"



सिंगही ने गर्दन अकड़ाकर सिर झुकाया ।



अलफांसे की तरफ देखती हुई जैकसन बोली---" क्या मिस्टर अलफासे को मेरे आगमन की खुशी नहीं हुई ?"



‘"अंक्रल को खुशी क्यों नहीं होगी आण्टी ?"' अलफांसे से पहले विकास बोल पड़ा---" तुम आण्टी हो मेरी और ये अंकल, अब अाप खुद ही समझ सकती हैं कि आपका और इनका क्या रिश्ता है । इस रिश्ते में अगर किसी को किसी का इन्तजार भी हो तो सबके सामने नहीं कहा जाता ।"

बड़े ही आकर्षक ढ़ंग से मुस्कराई जैकसन, बोली ----" हम तो तैयार हैं तुम्हारे अंकल के साथ । इन्हें तैयार करो । "




" मुबारक हो लूमड़ भाई ।" विजय ने नारा लगाया ---" यानी कि भाई से तुम हमारे बाप वनने जा रहे हो ।"



अलफांसे मुस्करा कर रह गया ।।



" अपने हाथों से टीका वतन के मस्तक पर टीका लगाओ प्रिंसेज जैकसन ।" सिंगही ने कहा ---" मेरा बच्चा आज राजा बना है ।"



" जरूर महामहिम , इसीलिए तो यहां आने का कष्ट किया है ।"



कहने के साथ ही प्रिंसेज जैकसन सिंहासन की तरफ बड़ी ।



कुछ लोग प्रिंसेज जैकसन के सौंदर्य को आश्चर्य के साथ देख रहे थे ।


कुछ लोग हबा में लटके हुए टुम्बकटू को देखकर हंस रहे थे ।



वतन के करीब पहुंच कर प्रिंसेज जैकसन ने उसके मस्तक पर तिलक किया ।।



वतन ने झुक कर चरण स्पर्श किये ।



विजय ने कहा -"मम्मी । कार्टुन को तो उतारो । "



" जरूर ।" प्रिंसेज जैकसन ने कहा और एक झटके के साथ लाल किरण मुकुट मे समा गई ।



टुम्बकटू कलाबाजियां खाता हुआ फर्श पर पहुंचा ।


उसने भी मस्तक पर तिलक किया ।


इसके बाद -- चमन के हर नागरिक ने बतन को टिका किया ।।


राजतिलक के कार्यक्रम के बाद सिंगही, प्रिंसेज जैकसन , टुम्बकटू जिस तरह आये थे , उसी तरह चले गये ।।


यह कार्यक्रम रात के दो बजे समाप्त हुआ ।।



तीन बजे शुरू हुई बूढ़ी मां की शवयात्रा ।।


फिर सुबह के छः बजे थे जब दादी मां के जिस्म का दाह संस्कार किया गया ।।



तब वतन ने धोषणा की ---" आज शाम चार बजे हमारा राष्ट्र , राष्ट्र के दुश्मन को सजा देगा जिसने हमें बीस साल गुलाम बना के रखा । हम सब पर तरह तरह के जुल्म किये । मेरी अपील है आप सब राष्ट्रपति भवन पर शाम को एकत्रित हों । वह दुश्मन कौन है आप सब समझ गये होंगें - मैग्लीन । शाम चार बजे उससे उन जुल्मों का हिसाब लेंगें जो उसने हम पर किये ।
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बन्धन
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Jemsbond
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Re: चीख उठा हिमालय ( विजय-विकास सीरीज़)

Post by Jemsbond »

और इस वक्त दौपहर का एक बजा था ! राष्ट्रपति भवन के एक विशेष कक्ष में वतन, विकास, विजय, अलंफासे, पिशाचनाथ, बागारोफ, धनुषटकार और अपोलो मौजूद थे ।


विकास से मुखातिब होकर वतन ने पूछा था…"वया तुम बता सकते हो कि मैग्लीन को क्या सजा देनी चाहिए ।"



"प्यारे बटन !" विकास के कुछ जवाब देने से पहले ही विजय बोल पड़ा था…"इससे तरीका मत पूछो । ये तरीका तो बताएगा मार्के का, लेकिन पसन्द नहीं अाएगा ।"



"'क्यों भला ?" गम्भील स्वर में वतन ने पूछा…"तरीका अगर अच्छा होंगा तो मुझे पसन्द क्यों नहीं अाएगा ?"




"वटन वारे !" अपनी ही टुन्न में विजय ने कहा-----"' मामला यह है कि तुम दोनों हो बिल्कुल न्यारे, नहीं समझे न -खैर, हम समझाते हैं । बात यह है कि ये साला दिलजला पूरा हिंसावादी है । दुश्मन को चीर-फाढ़कर उसकी खाल में मिर्च भरने के अलावा यह कुछ नहीं जानता और एक तुम हो-बिलकुल इसके विपरीत यानी अहिंसावादी, हिसा से बेहद नफरत करने वाले, फिर भला इसका तरीका तुम्हरे दिमाग में कैसे फिट होगा ?"




-"चचा ।" वतन ने बिल्कुल शान्त और गम्भीर स्वर में जवाब दिया----" इतना तो इाप समझ ही गए हैं कि उन अहिंसा के पुजारियों में से नहीं हूं कि जिनके गाल पर अगर कोई एक थप्पड मारे तो दूसरा और तीसरा...चौथा अागे का दें । अहिंसा को सिर्फ इतना मृहत्व देता हूं कि एक गाल पर थप्पड़ खाकर दूसरा अागे कर दूगा लेकिन अगर तीसरी बार कोई वार करे तो महान सिंगहीँ के चरणों की कसम हाथ तोड़ डालूंगा उसके । आज के जुग में बह अहिंसा, जिस पर महात्मा गांधी चले थे, बुजदिली है । सीधा सा सिद्धान्त है कि जब तक अहिंसा से काम चले,चलाओ, लेकिन जब अहिंसा बुजदिली का रूप धारण करने लगे तो ईट का जवाब पत्थर से दो ।"



"कहने का मतलब यह हुआ वतन प्यारे कि तुम आधे अहिंसावादी हो ।" विजय वे कहा---"‘मगर प्यारे, बात कुछ जमी नहीं----या तो गान्धी ही बन जाओ या सुभाष---भगतसिंह ही । ये फिफ्टी-फिफ्टी बनने से वंया लाभ ?'"'




"चचा !" वतन का पुन: गम्भीर स्वर----"' साफ शब्दों में मेरे सिद्धान्त को तुम यूं समझ सकते हो कि पहले घी को सीधी उंगली से निकालने की कोशिश करो । न निकले तो-फौरन उंगली को टेढ़ी कर लो ।"




"कहने का मतलब यह कि मैग्लीन को तुम हिंसात्मक सजा भी देने के लिए तैयार हो?"



" मैग्लीन को सजा देने की एक तरकीब है मेरे पास ।" विकास ने कहा ।



" क्या ?"



जबाव में विकास ने उस सोफे के नीचे' से, जिस पर वह बैठा था, एक मुगदर निकाला । यह देखकर सब दंग रह गए कि यह मुगदर हडिडयों का वना हुआ था, "यह मुगदर तुम्हारी मां और वहन की हडिडयों का वना है, वतन ! आज सारे दिन की मेहनत के वाद मैं इसे वना पाया हूं । तुम्हारी माँ और वहन की हडिडयों के टुकडों को मैंने फेबीकॉल से जोड़ा है । मेरे दिमाग ने कहा है कि मैग्लीन एकमात्र सजा यह मुगदर ।"



हडिडयों के उस मुगदर को देख-कर वतन के मस्तक पर एक बल पड़ गया।



एक क्षण वह ठिठका और बिकास को देखता रहा, फिर भर्राया स्वर…‘बिकास तुमने मेरे दिल की बात कहीं है ।"



" अबे , मुगदर तो सजा है लेकिन इसका उपयोग कैसे होगा ?"




जवाब में विकास सबको बताने लगा कि इस मुगदर के जरिये मैग्लीन को किस किस्म की सजा दी जाएगी । सभी ने सुना और सहमत हो गये ।



ठीक चार बजे-विकास-विजय और अलफासे के घेरे में कैद अाया मैग्लीन ! उसे मैदान में लाया गया । वतन से हाथ जोडकर उसने माफी मागीं तो वतन ने जवाब दिया था’--"मुजरिम तो तुम चमन के नागरिकों के हो । माफ करने का अघिकार मुझे कहां ? "

चीख-चीखकर मैग्लीन ने चमन के नागरिकों से माफी चाही ।
किन्तु हर आंख में मैग्लीन के लिए नफरत थी । उसे किसी ने माफ नहीं किया । मैदान के ठीक बीच में उसे ले जाकर हाथियों के साथ बांध दिया गया । लम्बी रस्सी के बीच का कुछ भाग उसके बदन पर लिपटा हुआ था । एक सिरा मेैग्लीन के दाईं तरफ खडे ह्रथी में जिस्म में ’बंधा था तो दूसरा बाई तरफ खडे हाथी के जिस्म में ।।



पहले वतन ने जनता को खामोश होने का संकेत दिया ।



खामोशी के बीच उसकी आवाज गूंज उठी…"मेरे प्यारे देशवासियों ! यह मुजरिम जो इस वक्त हाथियों के बीच बंधा खड़ा है, मुझ अकेले या चमन के क्रिसी एक नागरिक का मुजरिम नहीं, बल्कि हम सबका मुजरिम है । हमारे देश को गुलाम बनाकर इसने हम सब पर जुल्म किये हैं । अत: हम सभी इसे सजा देने के बराबर हकदार हैं । इसे सजा देने के लिए मेरे दोस्त विकास ने यह हथियार बनाया है ।"



वतन हडिडयों के उस मुगदर को हवा में उठाकर सबको दिखाता हुआ बोला----"मेरी मां और वहन की अन्तिम निशानी यानी उनकी हडिडयों से वना है । इस कुत्ते की इससे ज्यादा बढकर क्या सजा हो सकती है कि यह मुगदर चमन के
हर निवासियों के हाथ में जाए और सभी एक-एक मुगदर इस हरामजादे 'के जिस्म पर मारे ।"


"नहीँ ।" चीख़कर रो पडा मैग्लीन ।


चारों तरफ से हंसी का एक फव्वारा छूट गया । वतन कह रहा था---"हर नागरिक को इस जुल्मी पर इस का सिर्फ एक बार करने का हक प्राप्त है । यह आपकी ताकत पर निर्भर है कि एक बार अाप कितना शक्तिशाली कर सकते हैं । सबसे पहला वार मैं स्वयं करूगा ।"



और…वतन मैग्लीन के नजदीक पहुचा ।



"वतन ! मुझे माफ कर दो बेटे... माफ कर दो बेटे ।" वतन के मस्तक पर वल पड गया, गुर्रायाृ-"मेरे पिता अगर वे गुनाह करते जो तूने किए है, तो इस मुगदर की कसम, उसे भी भयानक सजा देता मैं ।।" कहने के साथ ही बिजली की-सी गति से वतन का' हाथ चला और उसकी मां और बहन की हडिडयों से वनी मुगदर भड़ाक से मैग्लीन के चेहरे पर टकरायी ।


मैग्लीन उस जिन्दे पक्षी की तरह चीख पड़ा जो पर कटते ही अाग में जा गिरा हो ।



उसके चेहरे के विभिन्न भागों से खून के फव्वारे छूट पड़े ।। वतन ने मैग्लीन के चीखते हुए खून से लथपथ चेहरे को देखा , फिर घृना से थूक दिया उस पर बोला ---" एक आदमी सिर्फ एक मुगदर मारेगा तुझे , गिन सके तो गिनना । मुगदरों की गिनती से तुझे पता लगेगा कि तूने कितने आदमियों पर जुल्म किए हैं ।।"


कहने के बाद मुगदर वहीं जमीन पर रख दिया ।।

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