कैसे कैसे परिवार

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Masoom
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अगले दिन सुबह:

अगले दिन सभी एक एक करके अपने कमरों से निकलकर सुबह के नाश्ते के लिए डाइनिंग रूम में पहुँच गए. इस बार समर्थ शीला, शोनाली जॉय साथ बैठे थे. ये देखकर सबको सुखद आश्चर्य हुआ कि सागरिका ने निखिल के साथ बैठने का निश्चय किया. सुप्रिया नितिन और सुमति पार्थ के साथ बैठी थी. सिमरन ने बहुत अच्छा नाश्ता लगवाया था और सबने भरपूर खाया.

निखिल और सागरिका एक साथ बोले: “हमें कुछ कहना है.”
सबकी दृष्टि उनकी ओर केंद्रित हो गई.

निखिल ने पहल की: “हम दोनों की ये शादी से सहमति है. कल रात हमने काफी देर बात की और ये महसूस किया कि हमारी सोच लगभग हर विषय में मिलती है.”
सागरिका: “दूसरा ये कि हमने देखा कि हमारे परिवार कितनी सरलता से एक दूसरे के करीब आ गए. आज ऐसा लग ही नहीं रहा कि एक सप्ताह पहले हम लोग एक दूसरे को ठीक से जानते तक न थे, सिवाय इसके कि हम पडोसी थे.”
निखिल: “इसीलिए हमने ये सोचा है कि हम दोनों एक दूसरे और दोनों परिवारों के साथ बहुत खुश रहेंगे. और तो और हमारी जीवन पद्धति पर भी कोई आंच नहीं आएगी.”

ये सुनकर शीला ने उठकर सागरिका को गले लगा लिया और अपने गले का हार निकलकर उसे पहना दिया. उसका माथा चूमा और सागरिका ने उसके पांव छूकर आशीर्वाद लिया. फिर सागरिका ने समर्थ और सुप्रिया के पांव छुए. सुप्रिया ने भी उसे गले से लगाकर अपने हाथ का कंगन उसे पहनाया.

सुप्रिया: ”शोनाली और जॉय, आज से सागरिका हमारे घर की बेटी हुई. आप मंगनी और शादी की समय निश्चित करिये.”

ये सुनकर सुमति और शोनाली दोनों रोने लगीं. परन्तु उनके इन आँसुओं में ख़ुशी थी और किसी ने भी उन्हें चुप करने का प्रयास नहीं किया. पार्थ निखिल के पास जाकर उसके गले लग गया.
“अब हम केवल दोस्त नहीं है, जीजा जी.”
निखिल ने हंसकर अपने मित्र को उत्तर दिया, “अब संभल के रहना साले साहब.”

जॉय ने उठकर अपने कमरे से एक डिब्बा लाया और निखिल के हाथों में एक बेशकीमती आयातित घड़ी पहना दी. फिर उसे गले से लगाकर उसके माथे को चूम लिया.
“बेटा मुझे आज इतनी ख़ुशी मिली है, जिसका मैं वर्णन नहीं कर सकता.”

सिमरन ने भी सबको गले मिलकर बधाई दी और विश्वास दिलाया कि अगर उसकी कंपनी से केटरिंग कराई जाएगी तो वो अपनी पूरी श्रध्दा से उसे सफल करेगी.

सब लोग एक हंसी ख़ुशी के वातावरण में न जाने कितनी देर बातें ही करते रहे. फिर पार्थ ने समर्थ से पूछा कि क्या जो कल बात की थी वो अभी भी वैध है. समर्थ ने हामी भरकर कहा कि अब तो १०० गुना अधिक वैध है. पार्थ ने शोनाली की ओर देखकर उसे सिर हिलाकर स्वीकृति दी.

दोपहर के खाने के पहले दो चक्र शराब के चले, इस मौके का सबने जी भर के आनंद लिया.
भोजन के पश्चात् सभी लोग खेल कक्ष में चले गए. सभी बिना कुछ कहे बिना अपने वस्त्रों से अलग हुए और उन्हें अलमारी में टांग दिया.

तभी शोनाली और पार्थ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा.

पार्थ: “कल मैंने नानाजी से कुछ पूछा था जिसकी उन्होंने मुझे अनुमति दे दी थी. इसीलिए आज का विशेष आयोजन हमारे दोनों परिवारों की स्त्रियों के लिए है.”
शोनाली: “सुमति दीदी ने कल माँ जी से हुई बात मुझे बताई थी, जो मैंने पार्थ को बताई.”
शीला के होठों पर एक मुस्कराहट और आँखों में चमक आ गई.
“इसीलिए, आज मैंने अपने क्लब के ६ रोमियो को अपनी सेवा के लिए और भी बुलाया है. हमारे चारों पुरुष सहायक, जो हमारे रोमियो भी हैं उनके साथ होंगे. दोनों सहायिकाएं भी उपस्थित रहेंगी. अब चूँकि हम सब व्यस्त होंगे तो पूरे कार्यकर्म का निर्देशन सिमरन जी करेंगी.”

ये कहकर उसने दो बार ताली बजाई। एक ओर का दरवाजा खुला जिसमें से सिमरन नंग धडंग अंदर आयी. उसके दोनों ओर उनकी दोनों सहायिकाएं सोनल और आतिशी भी नंगी खड़ी हो गयीं.
उसके बाद दरवाजे से १० नंगे लड़कों ने प्रवेश किया. और वो सब सिमरन के पीछे एक व्यूह में खड़े हो गए.

पार्थ: “आज हम सब अपने परिवार की महिलाओं को एक साथ तीन पुरुषों से सम्भोग का सुख देंगे. पर इसमें कुछ नियम हैं जो हर स्त्री के स्वभाव के अनुरूप होंगे:

१. गाँड का रस मम्मी को ही अर्पित होगा.
२. नानी माँ को अंत में वीर्य से नहलाया जायेगा.
३. चूत मारने के बाद के रस का सेवन केवल सागरिका के लिए होगा.

शोनाली: “मेरे विचार में ये नियम सही हैं और अगर किसी को कोई आपत्ति है तो बता सकता है.”
समर्थ: “मुझे ये देखकर प्रसन्नता होती है कि तुम हर कार्य एक नियम के अनुसार करते हो. मुझे किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं है.”
अन्य सबने भी अपनी स्वीकृति दी.

"इसमें से पहले सागरिका और नितिन, सुमति दीदी और पापा जी साथ होंगे क्यूंकि उन्हें अभी तक एक दूसरे का साथ नहीं मिला है. बाकी सब एक म्यूजिकल चेयर से जीते जायेंगे.”

ये कहकर शोनाली ने पाँचों स्त्रियों को एक गोले में खड़ा कर दिया. अब पुरुष लोग एक गोले में आ गए. शोनाली के कहने पर सिमरन ने एक गाना बजा दिया और सब आदमी गोले में घूमने लगे. इसमें होना ये था कि गाना रुकने पर जो भी आदमी जिस स्त्री के सम्मुख होता वो उसका साथी बन जाता. इसमें सागरिका और सुमति को केवल दो लोगों को चुनना था. तीन बार में सबके साथी निश्चित हो गए.

शोनाली के हिस्से में निखिल +२ आये , सुप्रिया को पार्थ +जॉय +१ मिले और शीला को तीनों नए रोमियो. २ २ रोमियो सागरिका और सुमति को भी मिले. .
और एक सामूहिक चुदाई का नंगा खेल प्रारम्भ करने के लिए बीच में आ गए.

कुछ ही समय में कमरा नंगे शरीरों का एक अखाडा बन गया था. पांचों महिलाएं एक गोल चक्र में एक दूसरे को देखती हुई बैठ गयीं. जब एक बार महिलाओं ने अपने हिस्से के लंड को चूस चाट कर कड़ा कर लिया तो उन्हें जल्द से जल्द अपने काम पर लगने के लिए उत्साहित करने लगीं.

शीला इस समय तीन रोमियो के बीच में सैंडविच बनी हुई थी. एक लंड उसकी चूत में था, एक गाँड में और एक मुंह में. सबसे बड़ी बात की तीनो लंडों १०” से बड़े थे यानि उसके शरीर में ३०” लंड भरे हुए थे. और वो सब उसके द्वारा उत्साहित किये जाने के कारण एक गहराई और बेदर्दी से उसके छेदों को मथ रहे थे. एक लंड जब चूत में घुसता तो गाँड वाला बाहर निकलता और इसी लय ने उसके दोनों छेदों का मंथन कर रखा था. उसके मुंह का लंड पहले तो शीला की दया पर निर्भर था पर बाद में उसने भी शीला का सिर पकड़कर उसे अपनी गति से चोदना शुरू कर दिया था.

यही कुछ स्थिति बाकी औरतों की भी थी. इस समय प्रेम और प्यार नहीं बल्कि शरीर का सहवास हो रहा था, सिर्फ जिस्म की भूख मिटाई जा रही थी. सिमरन एक घडी से समय देख रही थी. उसने ३ मिनट पूरे होने पर “CHANGE” की आवाज़ दी. ये सुनकर सबने अपने लंड बाहर निकाल लिए. फिर गाँड मारने वाले आदमी ने अगली औरत के पास जाकर अपना लंड उसके मुंह में डाल दिया. जिसका लंड मुंह था वो नीचे लेट गया और चूत में लंड पेल दिया और जो चूत में था उसे गाँड में स्थान मिला.

(समझने के लिए: शीला की गाँड मारने वाले व्यक्ति ने अपने लंड को सुमति के मुंह में डाला. शीला की चूत मारने वाले ने गाँड में लंड डाला और सागरिका की गाँड मारने वाले ने अपना लंड शीला के मुंह में डाला.)

इसी प्रकार से हर 3 मिनट में सिमरन आवाज़ देती और हर आदमी अपने हिस्से का छेद बदल कर अगले निशान पर चला जाता. इस पूरे क्रम को पूरा करने में ४५ मिनट निकल गए और अब आदमियों से रुका नहीं जा रहा था. महिलाएं भी अब बदहवासी की ओर जा रही थीं. अंत में जो जहाँ से शुरू किया था वहीँ वापिस पहुँच चुका था. एक एक करके लंडो ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया और कुछ ही मिनटों में हर छेद पानी से लथपथ हो गया था. सागरिका अपने सामने आयी चूत से रस पिने लगी और सुमति गाँड. सब की साफ होने के बाद सब लोग निढाल पड़ गए.

सिमरन, सोनल और आतिशी ने गर्म पानी से गीले तौलिये लाये और सबके शरीर एक एक करके पोंछकर साफ किये. उसके बाद सबके लिए एक नया ड्रिंक बनाया और सबको दिया. अपना ड्रिंक पीते हुए सब यही सोच रहे थे कि क्या हम लोग विकृत तो नहीं हैं. दोपहर के लगभग तीन बज चुके थे और ५ बजे निकलना भी था तो यही तय किया कि अब अंतिम चरण का खेल शुरू किया जाये.

पर शीला ने अपनी मांग रख दी.

शीला: “देखो, ऐसा मौका बार बार नहीं आता, मैं अपनी एक इच्छा पूरी करना चाहती हूँ.”
समर्थ: “इतना खेलने के बाद अभी भी कुछ है जो बाकी है तुम्हारे मन में?”
शीला: “और क्या. मेरा मन एक साथ चार लंडों से चुदने का है. एक मुंह में, दो चूत और एक गाँड में.”
समर्थ: “इस उम्र में झेल पाओगी ये सब.”
शीला: “कोई नहीं, अगर झेल नहीं पायी तो कम से कम प्रयास करते हुए मरूंगी.”
समर्थ: “चुप कर. ऐसा क्यों बोलती है?”
शीला ने जॉय, पार्थ, निखिल और नितिन की ओर देखकर कहा, “करोगे इस बुढ़िया की इच्छा पूरी?”
जॉय: “अवश्य करेंगे, पर आप अपने आप को बूढ़ा समझना छोड़िये.”

ये कहकर चारों ने उसे घेर लिया.

घर के चारों पुरुषों ने उसे घेर कर लिटा दिया. सोनल और आतिशी आगे आयीं और सभी पुरुषों के लंड चूसकर अच्छे से खड़ा करने में लग गयीं. समर्थ बड़ी भूखी आँखों से दोनों को देख रहे थे.

शोनाली उनके पास गई, और धीरे से बोली, “आप का जब दिल करे बाबूजी, तब आप सोनम और आतिशी की मार लेना.”
समर्थ: “मुझे पता है कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी.”

इस समय सामने जॉय ने अपना स्थान जमीन पर बनाया और सबने मिलकर सँभालते हुए शीला को उसके लंड पर बैठाया. निशाना गाँड पर था और कुछ ही मेहनत से जॉय का पूरा लंड शीला की गाँड में बैठ गया. अब बारी पार्थ और नितिन की थी दो लंड शीला की चूत में डालने की. कुछ अचरज भरी कलाबाजियों के साथ ये भी संभव हो गया और अब शीला की चूत में दो लंड थे और एक उसकी गांड में था. निखिल ने आगे आकर अपना लंड शीला के मुंह में घुसा दिया.

और अब शुरू हुआ भीषण चुदाई का वीभत्स नाच. वैसे भी सबके लौड़े एक से बढ़कर एक थे और जिस लयबद्ध तरीके से वो चोद रहे थे उससे ये प्रतीत होता था कि ये उन्होंने पहले भी किया हुआ है. शीला के मुंह में अगर निखिल का लंड न होता तो शायद उसकी चीखें क्लब को हिला देतीं. कुछ ही समय में शीला के झड़ने का सिलसिला थमा तो सबने एक दूसरा आसन में आक्रमण चालू रखा. इसी तरह से अलट पलट कर चारों मिलकर शीला को एक गुड़िया की तरह चोद रहे थे. तभी एक धक्के में गलती से नितिन का लंड चूत से बाहर तो आया पर चूत में जाने की स्थान पर नितिन ने उसे निखिल के लंड के साथ जो उसकी नानी की गाँड में पहले ही डला हुआ था उसके साथ मिला दिया. अब शीला की गाँड में दो लंड थे और चूत में एक.

(नीचे मैंने इस पराक्रम के कुछ चित्र भी लगाए हैं.)

इस प्रकार से शीला मंथन यही कोई बीस मिनट चला होगा. जिसके अंत तक शीला चुद चुद कर और झड़ झड़ कर निर्जीव सी हो गई थी. उधर सभी महिलाओं ने बाकी के लंड भी चूसकर झड़ने की कगार पर ला दिए थे. जब चुड़क्कड़ चार झड़ने के करीब पहुंचे तो वो हट जाते. जैसे ही आखिरी आदमी ने अपना लंड शीला के मुंह से निकाला, सब उसके इर्द गिर्द घेरा बनाकर खड़े हो गए और मुठ मारने लगे. एक एक करके हर पुरुष ने अपना गाढ़ा सफ़ेद वीर्य शीला के चेहरे और शरीर पर गिरा दिया. जब सब हटे तो शीला का चूत से ऊपर का पूरा शरीर कामरस से पुता हुआ था. पर शीला निढाल पड़ी थी.

सागरिका और सुप्रिया ने छाती और पेट, शोनाली ने चेहरा और सुमति ने चूत और गांड को चाटकर अच्छे से साफ कर दिया. सब खड़े होकर शीला के भोगे हुए शरीर को देख रहे थे.

कुछ देर में शीला ने आंख खोली और सबको अपनी ओर देखता पाया.
शीला: ” आऊवोह, मैं जीवित हूँ? मैं तो समझी थी कि मैं मर चुकी हूँ और फ़रिश्ते मुझे चोद रहे हैं.”
सुप्रिया: “अरे मम्मी तुम पूरी जिन्दा हो पर हाँ, फ़रिश्ते अवश्य तुम्हें चोद रहे थे.”

समर्थ ने हाथ बढाकर शीला को खड़ा किया.
समर्थ: “तो कैसा रहा तुम्हारा ये अनुभव?”
शीला: “अद्भुत, अद्वितीय, अकल्पनीय. मैं तो समझी थी कि मैं स्वर्ग में हूँ. पर इन लड़कों ने मुझ बुढ़िया की हड्डियां हिला डालीं ” फिर रूककर, “मुझे उसका नाम बताओ जिसने मेरी गाँड में दूसरा लंड डाला था.”

सब सहम गए, फिर नितिन ने हाथ खड़ा किया. शीला आगे बढ़ी और उसे चूम लिया.
“तूने मुझे वो सुख दिया जिसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी.”

पार्थ ने तभी कहा, “अब हमारे निकलने का समय हो रहा है, तो सब लोग नहाकर तैयार हो जाओ.”

सब एक एक करके तैयार हो गए. पार्थ ने सिमरन को बुलाकर कहा, “आपका इनाम पक्का है. अगले महीने के दूसरे शनिवार को सारे रोमियो आपकी सेवा में होंगे.”

तैयार होकर सब बाहर आये और एक दूसरे की गले मिलकर फिर रिश्ते की बधाई दी और अपनी गाड़ियों में सवार होकर अपने घर के लिए निकल गए.


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अध्याय १०: पहला घर - अदिति और अजीत बजाज २

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काफी देर के बाद कैमरे में उसकी दादी दिखी. कुछ देर बाद वो कपड़े बदले हुए फिर दिखी. फिर कुछ देर बाद उनके कमरे में उसे अपने पापा दिखाई दिए. उन्होंने आकर दादी को बाँहों में भर लिया और चूमने लगे. दादी भी उनका पूरा साथ दे रही थी.

दादी: “अदिति सो गयी है क्या?”

पापा: “हाँ, उसकी दवाई से नींद आती है.”

दादी: “बस अब दो और सप्ताह की बात है, फिर वो पहले जैसी ठीक हो जाएगी.”

पापा: “हाँ, पर दवा पता नहीं कितने दिन और लेना पड़े. न जाने वो इतने दिन बिना चुदाई के कैसे रह पाई.”

दादी: “अरे मैं थी न, हाँ ये सच है की वो तुम्हारे लंड की अब बहुत प्यासी है.”

पापा: “और ये?” कहकर पापा ने दादी की चूत को दबाया.

दादी: "और ये भी. अब इसकी उतनी चुदाई नहीं होती जितनी ये चाहती है. २ सप्ताह बाद तो और भी कम हो जाएगी.”

पापा: “घर में अकेले मेरे ही पास लंड थोड़े ही है? जैसे मुझे सिखाया था, अब गौतम को भी सिखा दो चुदाई के सूत्र.”

दादी: “मैं तो तैयार हूँ, पर गौतम न जाने क्या सोचेगा.”

पापा: “वही जो मैंने २४ साल पहले सोचा था. जवान लड़का है, चुदाई के लिए मना करे ये हो नहीं सकता.”

दादी: “पर अदिति? उसे ये शायद अच्छा न लगे.”

पापा: “नहीं, मेरे विचार से उल्टा ही होगा. अदिति ऑपरेशन से पहले कई बार गौतम को चोदने के लिए कह चुकी है.”

दादी: “अच्छा!”

पापा: “हाँ और वो ये भी चाहती है की मैं अनन्या की सील खोलूं.”

ये सारी बातें सुनकर गौतम के तो होश ही उड़ गए. यहाँ वो दादी को फंसा कर चोदने का प्लान बना रहा था, वहां उसकी माँ पहले ही उससे चुदने का कार्यक्रम बनाये हुए है. और अगर पापा अनन्या को चोद लेंगे तो हो सकता है कि उसका भी नंबर लग जाये.

उसने अपना ध्यान सामने चल रहे वीडियो पर लौटाया. अब तक उसके दादी और पापा नंगे हो चुके थे और एक दूसरे को चूमते हुए बिस्तर की ओर बढ़ रहे थे. बिस्तर पर जाकर दादी लेट गई और अपने पांव फैला लिए. अजीत ने अपना मुंह दादी की जांघों में डाल दिया. अब वीडियो पर इससे अधिक देखना संभव नहीं था. पर यही कुछ ५-७ मिनट बाद उसने दादी को कांपते हुए देखा और उसके बाद अजीत ने अपना सर जांघों के बीच से निकाल लिया. फिर अजीत ने अपना लंड शालिनी के मुंह के पास लाकर हिलाना शुरू किया. शालिनी ने उसके लंड को अपने मुंह में लिया और कोई ४-५ मिनट तक चूसा. उसके बाद अजीत ने अपने लंड को शालिनी की चूत में डाल दिया और दोनों चुदाई करने लगे.

अपनी दादी को इस तरह चुदते देखकर गौतम ने अपना लंड निकाला और मुठ मारने लगा. उसने सोचा कि जब उसकी दादी और माँ दोनों उससे चुदवाने को तत्पर हैं. अभी मम्मी को ठीक होने में समय है तो दादी पर ही पहले हमला किया जाये. उसने फिर ये वीडियो फॉरवर्ड किया और अगले दिन सुबह उसने राधा को दादी को मौखिक सहवास करते हुए देखा. तो उसका शक सही था. राधा पर भी वो हाथ साफ कर सकेगा या नहीं इस पर उसे शंका थी. उसने जब दोपहर के वीडियो में अपनी माँ और दादी को फिर मौखिक सम्भोग में लिप्त देखा तो उसने निर्णय कर लिया की वो अगले एक दो दिन में ही किसी प्रकार दादी की चुदाई कर ही लेगा.

यही सोचते हुए उसने वीडियो बंद किया और नींद में चला गया.

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अनन्या इस समय अपने मित्रों के साथ शहर के बाहर एक फार्म हाउस में थी. उसकी सहेली नताशा और उसके बॉयफ्रैंड्स जय और परम यहाँ थोड़ी मस्ती के लिए आये थे. अनन्या ने अभी तक किसी के साथ सेक्स नहीं किया था पर उसने हाथ से परम को कई बार झाड़ा था. परम जानता था कि अनन्या इससे अधिक नहीं करेगी, इसीलिए वो भी उस पर अधिक दबाव नहीं डालता था. अनन्या और परम दोनों अपने संबंधों के प्रति गंभीर भी नहीं थे और परम इसी कारण दूसरी लड़कियों से अपने सेक्स की भरपाई करता था. अनन्या को भी इसमें कोई आपत्ति नहीं थी. उसने अपना कौमार्य एक विशेष व्यक्ति के लिए संभाला हुआ था. और उसे विश्वास था कि एक दिन वही उसकी सील तोड़ेगा.

नताशा जय और परम दोनों से चुदवाती थी. और दोनों को ये बात पता थी. वैसे तो वो अकेले उनके साथ आना चाहती थी पर उसकी माँ इसकी अनुमति नहीं देने वाली थी. अनन्या के कारण उसे आने अनुमति मिली थी, पर उसकी माँ नहीं जानती थी कि बेटी और दो लड़कों के साथ जा रही थी और उसके मंतव्य ठीक नहीं थे. और ये इस समय दिखाई भी दे रहा था. चारों मित्र अपने हाथ में बियर लिए हुए थे. अनन्या एक कुर्सी पर बैठ कर अपनी बियर पी रही थी. कुछ ही देर पहले परम और उसने हस्त सम्भोग किया था, परम ने उसकी चूत बहुत अच्छे तरह से चाटकर उसको संतुष्ट किया था. पर उसे लग रहा था कि उसकी जवानी की आग बुझाने के लिए उसे ही पहला कदम लेना होगा. प्रश्न ये था कि अपने कौमार्य के उपहार को जीतने वाले से कैसे बताया जाये.

शाम को घर लौटते हुए उसने किसी प्रकार से उस व्यक्ति से इस पर बात करने का मन बना लिया. वैसे भी नताशा जय और परम को सम्भोग में संलग्न देखकर उसकी वासना जागृत हो गई थी. कब और कैसे की उधेड़बुन में वो अपने घर पहुँच गई. अगले दिन उसकी दादी का ६३वां जन्मदिन था.

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शालिनी का ६३वां जन्मदिन:

आज शालिनी का ६३वां जन्मदिन था. घर में ही एक छोटा सा आयोजन रखा गया था. शालिनी की चार सहेलियों को भी बुलाया था. शाम सात बजे पार्टी शुरू हुई थी. शराब और खाने में सब लोग व्यस्त थे. शालिनी को सबने अपनी ओर से उपहार दिए. उसने सबका धन्यवाद भी किया. तभी अनन्या और गौतम उसके पास आये और उसे गले लगकर उसके जन्मदिन की बधाई दी. अनन्या फिर चली गई, पर गौतम रुका रहा.

गौतम: “दादी, आपको मेरी ओर से लाखों बधाइयाँ. अगर आप बताओ नहीं तो कोई कह नहीं सकता कि आप ६३ साल की हो गई हो.”

शालिनी: “उसका कारण तुम सब हो, मुझे जितनी आनंद और सुख तुम सबने दिया है, उसके कारण मुझे अपनी आयु और अकेलेपन का आभास नहीं होता.”

गौतम: “दादी, मैं तो आपको और भी सुख देना चाहता हूँ.” उसकी इस बात में एक भिन्न ही अर्थ छुपा था.

दादी: “सच कहूँ तो मुझे तुमसे अपने इस जन्मदिन पर कुछ अलग उपहार चाहिए, ऐसा उपहार जो जब तक हम चाहें एक दूसरे को दे सकें.”

गौतम समझ गया कि दादी का संकेत किस ओर है. पर उसने निर्बोध भाव से पूछा, “क्या दादी?”

शालिनी ने अपनी सहेलियों की ओर देखा तो वो अपने आप में व्यस्त थीं. पर अदिति की ऑंखें उन पर थीं. अदिति ने हल्के से सिर हिलाकर अपनी ओर से हरी झंडी दिखा दी. शालिनी ने अपने दाएं हाथ से गौतम की पैंट के ऊपर से ही उसके लंड को पकड़कर दबाते हुए कहा.

शालिनी: “मुझे तेरा लंड चाहिए. बोल देगा?”

गौतम: “दादी!!! मम्मी और पापा क्या कहेंगे?”

शालिनी: “उनकी इसमें अनुमति है. बस तुझे अपना मन बनाना है. अगर सच में तू मुझे उपहार देना चाहता है तो आज की रात मेरे साथ रह कर मुझे जी भर कर चोदना। क्या कहता है?”

गौतम: “दादी, मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ. आपके मांगे हुए उपहार से कैसे मना कर सकता हूँ.”

शालिनी: “तो पार्टी के बाद मेरे कमरे में आ जाना.”

उधर अदिति और अनन्या बात कर रहे थे.

अनन्या: “मम्मी, मुझे तुमसे कुछ पूछना है और कुछ मांगना भी है.”

अदिति: ”हाँ बोल.”

अनन्या: “यहाँ नहीं, थोड़ा आपके कमरे में चलें?”

अदिति ने अजीत को बताया और अनन्या के साथ अपने कमरे में आ गई.

अनन्या ने दरवाज़ा बंद किया,”मम्मी इससे पहले की मेरा साहस टूटे मैं एक बार में अपनी बात कह देती हूँ. मैं अभी भी कुंवारी हूँ. पर मुझे सेक्स की अब बहुत इच्छा रहती है. मैं चाहती हूँ कि एक विशेष व्यक्ति मेरे कौमार्य को भंग करे. और इसके लिए मुझे आपकी अनुमति और स्वीकृति दोनों चाहिए.”

अदिति: “मुझे गर्व है कि इस युग में भी तुमने अपना कौमार्य बचाकर रखा है. ये भी सच है कि तुम्हारी आयु सेक्स का सुख लेने की हो चुकी है. तो जो भी वो व्यक्ति है जिससे तुम इसे भंग करवाने की इच्छुक हो, तुम्हें उसे ये बात किसी माध्यम से बतानी चाहिए.”

अदिति का ये बात कहते हुए दिल टूट रहा था क्योंकि उसने अजीत को इस कार्य के लिए चुना हुआ था.

अनन्या: “मैं चाहती हूँ कि आप इसमें मेरी माध्यम बनें.”

अदिति अब अपने पति और बेटी की परस्पर विरोधी इच्छाओं के बीच फंस गई थी.

अदिति: “मैं तुम्हारी कैसे सहायता कर सकती हूँ?”

अनन्या: “क्योंकि वो विशेष व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि आपके पति और मेरे पापा हैं.”

अदिति का सिर घूम गया. वो धप्प से सोफे पर बैठ गई. फिर वो जोर जोर से हंसने लगी.

अनन्या: “मम्मी, क्या हुआ. ऐसे क्यों हंस रही हो?”

अदिति: ”मुझे इस बात की चिंता थी कि तुमने किसे चुना था क्योंकि मैंने भी किसी को चुना हुआ था इस शुभ कार्य के लिए.”

अनन्या: “तो हंस क्यों रही हो?”

अदिति: “क्योंकि मैंने जिसे चुना था वो भी तेरे पापा ही हैं.”

ये कहकर अदिति ने उठकर अनन्या को गले से लगा लिया.

अदिति: “आज पार्टी के बाद हमारे कमरे में आ जाना. शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए.”

ये कहकर उसने अनन्या का हाथ लिया और दोनों पार्टी में लौट गए.

************

शालिनी का कमरा:

पार्टी समाप्त होने के बाद शालिनी अपने कमरे में चली गई और कुछ ही देर में गौतम कपडे बदल कर आ गया. शालिनी उससे अपने कपड़े उतारकर लेटने के लिए कहती है और बाथरूम में घुस जाती है. गौतम कमरे में बिस्तर पर लेट गया. कमरे में रोशनी खिली हुई थी. वो इस समय नंगा था और उसके जवान कसरती शरीर पर उसका शानदार खड़ा हुआ लंड बहुत बड़ा और कड़ा लग रहा था. लगभग २२ साल की आयु में इसका भरपूर आनंद लिया और दिया था. पर आज कुछ विशेष था.

वो बाथरूम से उसकी दादी के निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था. उन्होने अभी थोड़ी देर पहले टब में गर्म पानी से नहाया था. तभी बाथरूम का दरवाज़ा खुला और दो सुंदर पैर बाहर आए. बाहर आने वाली भीगी हुई स्त्री दिखने में कोई ४२-४३ वर्ष की रही होगी, पर गौतम जानता था कि वो ६३ वर्ष की थी. आज उनका जन्मदिन जो था. पर उन्होंने स्वयं को इस तरह से संभाल कर रखा था कि आयु उन पर हावी नहीं हुई थी. बाहर आकर उन्होंने कमरे की लाइट बंद कर दी. बाहर से चाँदनी रात की रोशनी कमरे को भिगोने लगी. वो खिड़की से बाहर देख रही थी और उनका शरीर चाँदनी में और भी ज़्यादा लुभावना लग रहा था. उसके स्तन तने हुए थे, लंबे बाल लगभग नितंबो को छू रहे थे.

गौतम की आँखें उन सुडोल नितंबों को ताक रही थीं, आयु का प्रभाव होते हुए भी वो बेहद आकर्षक थे. उन्होंने पलट कर गौतम की ओर देखा. उसकी आँखों में निमंत्रण था, और होठों पर एक मुस्कुराहट. उसका पहले से खड़ा लंड और अकड़ गया और वो बिस्तर से उठकर उसकी ओर बढ़ा. वो इस स्त्री के रोम रोम से प्यार करना चाहता था, वो उसे अपना बनाना चाहता था. वो उसे दिल भर कर चोदना चाहता था. गौतम उसके पीछे जाकर उन से चिपक गया. उसका लंड उन नितंबो में चुभने लगा था और उसका सीना पीठ पर सट गया. उसने अपनी बाहें कमर में डालकर उन्हें अपनी ओर खींचा.

उन के होठों से वो गर्दन और कानों के चुंबन लेते हुए उसने भर्राई हुई आवाज़ में कहा,"आइ लव यू, दादी."

"वैसे ही जैसे में चाहती हूँ कि तुम मुझे प्यार करो?" दादी ने पूछा, उनकी आँखों में निमंत्रण था और होंठ कंपकपा रहे थे.

“जैसा आप चाहती हो. और जैसा आप पापा से करती हो.” गौतम ने उत्तर दिया.

शालिनी एक पल के लिया ठिठक गई, फिर बोली, “हम्म्म, तुझे मेरे और अजीत के बारे में कैसे पता?”

गौतम: “कुछ दिन पहले आप दोनों को इस कमरे में आते हुए देखा था.”

शालिनी: “तो क्या, किसी बात के लिए आये होंगे.”

गौतम: “ऐसी क्या बात थी जिसके लिए नंगे आना पड़ा, और कपडे हाथ में लेकर?”

शालिनी समझ गई कि गौतम संभवतः सब कुछ जान चुका है.

शालिनी: “और क्या देखा?”

गौतम: “यही कि राधा आपके पास सुबह और मम्मी दोपहर को आती हैं. क्यों मैं सही समझ रहा हूँ न?”

शालिनी: “इसीलिए तू कुछ दिन काम पर नहीं गया था न ताकने के लिए कि मैं क्या करती हूँ.”

गौतम: “सही पकड़े हैं.”

शालिनी अब मुड़ी और दोनों एक दूसरे के सामने आ गए. उसके होंठ चूमते हुए बोली: “जब पकड़ी हूँ तो सजा भी दूंगी.”

गौतम: “दादी, मुझसे उपहार लेकर मुझे सजा दोगी ?”

शालिनी: “अजीत ने कहा है मैं तुझे वो सब सिखाऊं जो मैंने उसे बरसों पहले सिखाया था.”

गौतम: “तो देर किस बात की है?”

शालिनी ने गौतम का हाथ लेकर उसे बिस्तर पर खींचा। फिर उसने लेट कर अपने पांव फैलाकर गौतम को बुलाया.

शालिनी: “अगर किसी स्त्री को संतुष्ट करना है तो उसका सबसे पहला और सरल उपाय है उसकी चूत से प्यार करना. अगर किसी भी स्त्री को तुम अपने मुंह से संतुष्ट कर दोगे तो वो तुम्हें सदैव याद रखेगी और दोबारा तुमसे मिलना चाहेगी. तो मेरे प्यारे बच्चे अब अपनी दादी की चूत को ऐसे प्यार करो जैसे कि स्वर्ग का द्वार है.”

गौतम: “ये स्वर्ग का द्वार है, इसे समझने में मुझे कोई कठिनाई नहीं है.”

ये कहते हुए गौतम ने अपना मुंह दादी की चूत में लगाया और उसे चाटने लगा. अब ये कहना कि ये उसकी पहली चूत थी जिसे वो ये सुख दे रहा था गलत होगा. वो पिछले तीन सालों में कई चूतों का रस पी चुका था. और उसको सिखाने वाली उसकी आयु की लड़कियां ही नहीं, बल्कि कुछ मध्यम आयु की विवाहित स्त्रियाँ भी थीं. उन सब ने मिलकर उसे इस कला में बहुत पारंगत कर दिया था. और आज उसे उस कला को अपनी चहेती दादी पर प्रयोग करने का अवसर मिला था. गौतम उन्हें ये दिखाना चाहता था कि वो उन्हें हर प्रकार से संतुष्ट कर सकता है..

शालिनी भी गौतम के उपक्रम से ये समझ गई कि जिसे वो सिखाना चाहती है, वो पहले ही प्रशिक्षित है. पर उसने इस समय कुछ भी कहना उचित नहीं समझा बल्कि इसका पूर्ण आनंद लेने का निश्चय किया. प्रश्नोत्तर बाद में किये जा सकते थे. शालिनी ने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और गौतम को समर्पित कर दिया. गौतम ने उसके इस बदले हुए भाव को समझ लिया. अब दादी उसके वश में होंगी.

शालिनी के मुंह से आनंद की सीतकारें निकल रही थीं. अपने प्यारे पोते को अपनी जांघों के बीच अपनी चूत पर जादू करता जो अनुभव कर रही थी. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी और अभी तो केवल आरम्भ था. गौतम के अधक प्रयास उसे एक नयी स्वर्णिम ऊंचाइयों पर ले जा रहे थे. उन्होंने ये समझ लिया कि वो स्वयं गौतम को इससे श्रेष्ठ ज्ञान नहीं दे सकती थी.

गौतम न केवल अपनी जीभ बल्कि उँगलियों का भी बहुत ही सुन्दर उपयोग कर रहा था. उसकी जीभ अब शालिनी की चूत की गहराइयों में जाकर उसके अंदर की संवेदनशील नसों को छेड़ रही थी. साथ ही उसकी दो उँगलियाँ शालिनी के भगनासे पर ही थीं और कभी रगड़कर, तो कभी मसलकर वो अपनी दादी को वासना की ऊंचाई से नीचे नहीं उतरने दे रहा था. शालिनी ने अपनी गांड उठाई जिससे गौतम को कुछ सुगमता हो. परन्तु गौतम ने इसका अलग ही उपयोग किया. उसने अपने बाएँ हाथ को उसकी उठे नितम्बों के नीचे लगाया और बहुत ही हल्के हल्के उसकी गांड के छेद को सहलाने लगा. पर उसे इस हाथ से बहुत अच्छे से ये छेड़छाड़ करने में समस्या लगी. तो उसने दाएँ हाथ को नीचे लगाकर बाएँ हाथ से ऊपर का पराक्रम अबाधित रखा. अब चूँकि उसकी दाएँ हाथ की उँगलियाँ रस से गीली थी, तो शालिनी की गांड के भूरे सितारे पर उसकी सहलाने की गति भी बढ़ गयी.

शालिनी: “बेटा, मैं तो गयी.” कहते हुए शालिनी पूरी तरह से भरभरा कर झड़ने लगी. यही वो अवसर था जब गौतम ने अपनी बीच वाली उंगली को शालिनी की गांड में उतार दिया और उसे गोल गोल घुमाने लगा. अभी शालिनी का झड़ना समाप्त भी नहीं हुआ था कि इस अनायास आक्रमण ने उसे एक बार फिर रोमांच की ऊंचाई पर भेज दिया. और फिर वो एक झटके से उससे उतरी और उसकी चूत ने एक फव्वारा छोड़ा जिससे गौतम का सारा चेहरा भीग गया. पर गौतम कहाँ रुकने वाला था. उसने शालिनी के भगनासे को जोर से दबाया और गांड में उंगली से मैथुन करने लगा. शालिनी को अब कुछ भी बूझ नहीं रहा था. वो आनंद की इस पराकाष्ठा से आज तक अनिभिज्ञ थी. उसके तन और मन इस समय ऐसी लहरों में बह रहे थे जिसका उसने कभी अनुभव नहीं किया था.

अंततः उसका शरीर ढीला पड़ गया. अब उसमे कुछ शेष नहीं था. गौतम ने ये समझा और धीरे से गांड में से उंगली बाहर निकली और उसकी चूत पर एक गहरा चुम्बन लेते हुए शालिनी की जांघों से अलग हो गया.

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Re: कैसे कैसे परिवार

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अदिति का कमरा:

पार्टी समाप्त होने ही अदिति अनन्या को अपने साथ ही लेकर अपने कमरे में चली आयी. उसने अजीत को ये बता दिया था कि अनन्या की भी वही इच्छा है जो उस दोनों की है. अजीत ये सुनकर बहुत प्रसन्न हो गया था. अजीत कमरे में पहले ही आ चुका था और अभी बाथरूम में था. अदिति ने अनन्या को अपने पास बैठाया और उसे समझाया कि पहली बार सम्भोग में कुछ दर्द होने की सम्भावना रहती है, परन्तु उसके बाद जीवन के असीमित आनंद का द्वार खुल जाता है.

उसने ये जानने का प्रयास किया कि क्या अनन्या घर के बाहर भी किसी से सम्बन्ध बनाना चाहती है. अनन्या ने कहा कि अभी उसने इस बारे में अधिक विचार नहीं किया है. हालाँकि उसके साथ की अधिकतर लड़कियाँ अपने बॉयफ्रेंड के साथ ये सुख लेती हैं, पर कुछ हैं जो उसकी ही तरह सोचती हैं और अपने को संजो के रखे हैं. इतने में अजीत बाथरूम से बाहर आया, उसने केवल एक तौलिया ही अपनी कमर के नीचे बांधा हुआ था और उसका धड़ नंगा था. और उसने माँ बेटी को बातें करते हुए देखा. अनन्या ने उसकी ओर देखा तो उसने अपनी ऑंखें झुका लीं. अदिति ने उसकी ठुड्डी पकड़कर उसका चेहरा ऊपर किया.

अदिति: “बेटी, ये वो खेल है जिसमें शर्म नहीं होनी चाहिए. बाकी समय तुम चाहे जितना भी शर्म और आदर रखो, पर जब भी चुदाई का समय हो तो उन सबको हटाकर केवल इसकी ओर ही ध्यान रखो. अगर कुछ भी और सोचोगी तो इस सुख से वंचित रह जाओगी.”

अनन्या ने स्वीकृति में सिर हिलाया। अदिति उसे अपने साथ बाथरूम में ले गई और उससे नहाकर आने के लिए कहा. फिर उसने अजीत को समझाया कि उसे बहुत प्यार और संयम से अनन्या का कौमार्य भंग करना है.

अदिति: “अनन्या अभी कली है, मेरे, माँ जी या मोनिका के जैसी नहीं है कि तुम एक बार में चढ़ाई कर दो.”

अजीत: “तुम शायद अपना पहला संसर्ग भूल रही हो, मैंने तुम्हें जिस तरह से पहली बार चोदा था, उस समय को याद करो.”

अदिति: “हाँ. बस वैसे ही.”

इतने में अनन्या बाहर आ गई, अब कोई और कपडा तो उसके पास था नहीं तो उसने अपने आप को एक तौलिये से ही लपेट रखा था. अजीत का लंड ये देखते ही फनफना गया. अदिति ने उसकी जांघ हल्के से थपथपाई और स्वयं स्नान के लिए चली गई. अजीत ने बार से तीन पेग बनाये और एक अनन्या को थमा दिया. अनन्या हालाँकि पार्टी में भी पी चुकी थी पर न जाने आज उसपर कोई नशा नहीं चढ़ा था. उसने तीन चार घूँट में ही अपना पेग समाप्त किया और एक और बना लिया. अदिति तब तक बाहर आ चुकी थी और वो भी केवल तौलिया ही लपेटे थी. उसने देख लिया कि अनन्या दूसरा पेग बना रही है. वो उसके पास गई और उसे समझाया कि पहली बार का सुख शराब के नशे में नहीं लेना चाहिए, अन्यथा उसे जीवन का पहला अनुभव उस प्रकार से याद नहीं रहेगा जैसा रहना चाहिए.

अनन्या ने माँ की बात को समझा और अपने पेग को चुस्कियों में पीना शुरू किया. अजीत और अदिति भी यही कर रहे थे.

अजीत: “अगर तुम्हें इसमें जरा सा भी संकोच है तो कोई आवश्यक नहीं कि हम ये करें.”

अनन्या ये सुनकर चौंक गई.

अनन्या: “नहीं, पापा. ये मेरा बहुत पहले का प्रण है. और मुझे नहीं लगता कि आज से कोई अच्छा समय आएगा. मम्मी ने मुझे बहुत कुछ समझाया है. मैं चाहती हूँ कि आज मुझे एक कली से फूल बना दें.”

ये कहती हुई वो आगे बढ़ी और अजीत के पास आकर उसने उसे चूम लिया. अजीत ने अपना ग्लास अदिति को दिया और अनन्या को अपनी बाँहों में लेकर चुम्बनों की बौछार कर दी. और इसी के साथ उसने अनन्या के शरीर से तौलिया खींच कर अलग कर दिया. अदिति की एक सिसकारी निकल गई. उसने कभी सोचा भी न था कि अनन्या निर्वस्त्र कितनी सुन्दर लगती होगी. उसके नंगे शरीर को देखकर अदिति की चूत भी पनिया गई. उधर बाप बेटी के चूमा चाटी में न जाने कब अजीत का तौलिया भी गिर गया. अनन्या ने जब अपनी नाभि पर कुछ चुभता हुआ पाया तो नीचे देखा. उसकी आंखे अपने पिता के लंड को देखकर फ़ैल गयीं. जय और परम जो अपने आपको बड़े महारथी समझते थे उसके पिता के आगे गौण ही थे. न जाने उसके मन में कहाँ से ये विचार आया कि अगर नताशा एक बार पापा का लंड झेल लेगी तो जो मुझे उलाहने देती है,उसकी बोलती ही बंद हो जाएगी. यही सोचते हुए उसने अजीत के तने हुए लंड को अपने हाथ में ले लिया.

************

शालिनी का कमरा:


शालिनी अपनी साँसों को संभल रही थी. उसने मौखिक सम्भोग से कभी भी इतना आनंद नहीं पाया था.

शालिनी: “कहाँ से सीखा तूने ये सब.”

गौतम: “अरे दादी आप आम खाओ, गुठलियाँ न गिनो. क्या आपको अच्छा लगा?”

शालिनी: “अच्छा? ऐसा अनुभव मैंने जीवन में कभी भी नहीं लिया है.”

गौतम: “दादी, बात ये है कि मैं आपसे असीम प्रेम करता हूँ. ये सुख आपको इस कारण मिला, न कि मेरे कहीं से सीख कर आने से.” गौतम ने बात बनाते हुए कहा.

शालिनी समझ गई कि ये बताने वाला नहीं है. उसने अपने हाथ में गौतम का लंड पकड़ा और हल्के से सहलाते हुए पूछा.

शालिनी: “और इसका कैसे प्रयोग करते हैं वो भी तुझे भली भांति आता ही होगा.”

गौतम: “कुछ कुछ. पर जैसे आप सिखाओगी मैं वैसा ही करूँगा.”

शालिनी: “ह्म्म्मम्म, मेरा मन अब तेरे इस लंड को चूसने का है और फिर मैं चाहूंगी कि तू मुझे अच्छे से चोदे.”

गौतम: “दादी, आप जो चाहे वैसा करो.”

शालिनी: “चल सामने आकर खड़ा हो जा, जरा चूस कर देखूं तेरे लंड को कैसा स्वाद है.”

गौतम शालिनी के सामने जा खड़ा हुआ और शालिनी ने बिना समय नष्ट किये हुए उसके लंड को अपने मुंह में ले लिया. उसने ये प्रण किया कि जितना आनंद गौतम ने उसे दिया है, उससे अधिक वो उसे लौटाएगी. और गौतम ने जाना कि उसकी दादी क्या बला है. उसके लंड के टोपे, लम्बाई, चौड़ाई और अंडकोष हर स्थान पर मानो शालिनी के मुंह और हाथ एक ही समय चल रहे थे. वो लंड को अपने गले तक ले जाती और वहां उसके लंड को दबाती थी. गौतम अब तक जिन भी स्त्रियों के साथ संभोगरत हुआ था सबकी लंड चूसने की विभिन्न शैलियाँ थीं. पर आज वो उन सबके समावेश से बनी एक शैली को अनुभव कर रहा था. और ये कहना गलत नहीं होगा कि उसकी दादी उन सब बाकी स्त्रियों से कोसों आगे थीं.

शालिनी ने कुछ ही समय में गौतम को चरम पर ले आया. पर यहाँ उसने अपनी उँगलियों से कुछ ऐसा किया कि गौतम ले लंड में उफनता हुआ उबाल मानो शांत हो गया. यही क्रिया जब शालिनी ने तीसरी बार दोहराई तो गौतम से रहा नहीं गया.

गौतम: “दादी, अब और मत सताओ, मुझे झड़ जाने दो, प्लीज.”

शालिनी ने अपने पैतरे बदले और कुछ ही सेकण्ड में गौतम का ज्वालामुखी फूट पड़ा और अपना लावा शालिनी के मुंह में गिराने लगा. शालिनी ने उसके इस लावे को पूरा पी लिया. गौतम असमंजस में था क्यूंकि अभी तक कोई भी स्त्री उसका पूरा पानी नहीं पी पाई थी. शालिनी ने पूरा गटकने के बाद गौतम की ओर मुस्कुरा कर देखा.

“क्यों बेटा, कैसा लगा.”

“दादी आप सच में विलक्षण हो.”

“अब कितनी देर लगेगी तेरा फिर से खड़ा होने में?”

“बस समझो कुछ ही मिनट.”

“हूउउउनंनन, अब मेरी चूत कुलबुला रही है. अब जैसे ही तेरा लंड खड़ा हो जाये इसकी भी प्यास बुझा देना.”

“अवश्य दादी।”

अब जवान लड़के की लंड को खड़े होने में अधिक समय तो लगता नहीं, वो भी तब, जब उसके सपनों की अप्सरा उसके सामने निर्वस्त्र पड़ी हो. और जैसे ही गौतम को लगा कि अब वो दादी की चुदाई कर सकता है, उसने आगे बढ़कर अपने लंड को शालिनी के मुंह के पास लगा दिया.

गौतम: “दादी, थोड़ा इसे प्यार करो जिससे ये भी आपको उतना ही लौटा सके.”

शालिनी: “मुझे विश्वास है कि ये कई गुना लौटाने वाला है.”

ये कहते हुए शालिनी ने लंड मुंह में लेकर कुछ देर चूसा जिससे वो अच्छे से गीला भी हो जाये और अच्छा कड़क हो जाये जिससे वो उसकी चूत के पेंच ढीले कर सके. फिर गौतम ने अपना स्थान उस द्वार के समक्ष लिया जहाँ से कई वर्ष पहले उसके पिता ने संसार में कदम रखा था.

गौतम: “दादी, कैसी चुदाई पसंद करोगी, प्यार से या धुआंधार।”

शालिनी: “ये वाली तो धुआंधार होनी चाहिए, बाद में एक बार प्यार से भी चोदना। पर इस बार कोई दया नहीं दिखाना।”

गौतम ने ये सुनकर अपने लंड को दादी की चूत के ऊपर रखकर उसे उसकी लकीरों पर घिसा और जब लगा कि उसकी पंखुड़ियाँ खुल गयी है तो धीरे से अपने सुपाड़े को चूत में बैठाया. शालिनी साँस रोके उसके इस उपक्रम को देख रही थी. और जब गौतम को लगा कि उसका लंड अच्छे से बैठा है तो उसने दबाव बनाया और लंड को कोई ३-४ इंच तक अंदर धकेल दिया. शालिनी अब भी कामुक और प्रेम भरी आँखों से उसे ताक रही थी. अचानक उसके चेहरे के भाव आश्चर्य और कुछ दर्द के मिले जुले भावों में बदल गए. गौतम ने एक लम्बे और शक्तिशाली झटके से अपना शेष लंड उसकी चूत में जो उतार दिया था.

गौतम अब ठहरने वाला नहीं था. उसे उसकी दादी ने हरी झंडी दिखा दी थी और अगर अब उसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार की इच्छा भी थी तो तीर धनुष से छूट चुका था. गौतम अपने लंड की पूरी लम्बाई का प्रयोग कर रहा था. उसकी गोलाई अच्छी होने से शालिनी की बूढी और खुली चूत को भी बहुत सट के जा रहा था. कुछ लोग शालिनी की चूत भोसड़ा कहते, पर उनके लंड गौतम जैसे नहीं थे. और ये भी था कि पिछले ३ सालों में उसकी चुदाई कम और चुसाई ज्यादा हुई थी. शालिनी अब इस पलंगतोड़ चुदाई से विचलित नहीं थी, पर उसकी बूढी हड्डियां इन धक्कों से चरमरा रही थीं. उसने गौतम के सीने पर हाथ रखकर उसकी गति कम करने का प्रयास किया.

पर ये असंभव था. गौतम ही स्वयं को रोकने में असमर्थ था. शालिनी की चूत भी उसके शरीर का साथ नहीं दे रही थी और लगातार पानी छोड़ रही थी. इसके कारण घर्षण कम हो गया और गौतम का लंड अब और सरलता से गंतव्य को भेदने में जुट गया. अंततः शालिनी ने भी अपनी चूत की गुहार सुनी और आनंद के झोंकों में बहने लगी.

शालिनी: “क्या राक्षस की तरह चोद रहा है. दादी हूँ मैं तेरी, थोड़ी तो दया कर.”

गौतम: “दादी मैंने आपसे पूछा ही था, आपने ने ही ऐसे चुदने की इच्छा की थी. और आपकी चूत तो इतना पानी छोड़ रही है जैसे नदी हो.”

शालिनी, अपनी कमर को अब उठाकर गौतम की चुदाई में लिप्त हो गई.

शालिनी: “बात मेरी चूत की नहीं. सच कहूं तो मेरी जो इच्छा थी वही पूरी हो रही है और बहुत आनंद आ रहा है. बात मेरी इन बूढी हड्डियों की है, जो इस उम्र में ऐसे व्यायाम की अभ्यस्त नहीं हैं.”

गौतम ने ये सुनकर अपनी गति धीमी कर ली और शालिनी के होंठ चूमकर बोला, “अरे दादी, एक बार ये हड्डियां खुल गयीं तो फिर आपको हर दिन ऐसी ही चुदाई चाहिए होगी. और जकड़ी हुई हड्डियों को खोलने के लिए ऐसी ही चुदाई करते हैं.”

गौतम ने फिर अपनी गति बढ़ा दी. शालिनी अब इतना झड़ चुकी थी कि उसकी चूत अब जैसे सूखने लगी. गौतम का लंड भी अब इस बढ़ते हुए घर्षण को पहचान गया और कुछ ४ मिनट की चुदाई के बाद अपना माल छोड़ने को उत्सुक हो उठा.

गौतम: “दादी, कहाँ निकालूँ?”

दादी “मेरे मुंह में छोड़. पता तो चले की अपने बाप से कितना मिलता है तेरा स्वाद.”

गौतम ने धक्के हल्के किया और फिर अपने लंड को बाहर निकला और शालिनी के मुंह पर लगा दिया. शालिनी ने उसे अपने मुंह में लेकर पूरी शक्ति से चूसना प्रारम्भ कर दिया. और बस कुछ क्षणों में गौतम के अपना लावा उसके मुंह में भर दिया. पूरा पानी शालिनी ने फिर से पी लिया. गौतम आकर दादी के साथ लेट गया.

गौतम: “दादी, पहले भी तो तुमने मेरे रस का स्वाद लिया था तब तो पता लग गया होगा की मेरे और पापा के स्वाद का अंतर. फिर अब ऐसा क्यों?”

शालिनी: “वो पहले का स्वाद था और ये बाद का. तू नहीं समझेगा इसका अंतर. अपनी माँ से पूछना कभी. या अनन्या से.”

गौतम चौंक कर: “अनन्या से?”

शालिनी उसके होंठ चूमकर और सीने पर अपना सिर रखकर बोली, “हाँ. जैसे तू आज मेरे बिस्तर में है, वैसे ही अनन्या तेरे पापा के बिस्तर में है. तेरी माँ आज उसके कौमार्य का भोग अपने पति को लगा रही है.”

गौतम: “वाओ!”

********************

अदिति का कमरा:


अजीत ने अनन्या को बिस्तर पर लिटाया और अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच डाल दिया. चारों ओर उसे चूमते हुए उसने एक लम्बी साँस ली और अनन्या की अब तक अक्षत योनि की महक ली. आज के बाद ये असंभव हो जायेगा. उसने चेहरा उठाकर अदिति को बुलाया.

अजीत: “लो अपनी बेटी की कुंवारी चूत की सुगंध ले लो. और चाहो तो स्वाद भी चख लो. आज के बाद ये ऐसी न रहेगी.”

अदिति आगे झुकी और उसने भी एक साँस में अपनी बेटी की सुगंध भर ली. फिर उसने उसकी चूत पर अपनी जीभ से चाटा और पंखुड़ियां खोलकर अपनी जीभ अंदर डालकर अंदर का स्वाद चखा. फिर वो हट गई.

अदिति: “आज ये तुम्हारी ही है. पर मुझे ये अवसर देने के लिए धन्यवाद.”

अजीत ने अब अपने मुंह और जीभ से अनन्या की संकरी चूत को प्यार करना प्रारम्भ किया. और कुछ ही समय में अनन्या बिस्तर पर कसमसा रही थी. अजीत की जीभ उसकी चूत के हर कोने को खंगाल रही थी. अब उसके कॉलेज वाले दोस्त उसे बचकाना लग रहे थे. अजीत का पारखी और अनुभवी मौखिक आक्रमण उसके जीवन का प्रथम जीवंत सेक्स का अनुभव था. यही कारण है कि पूरी सृष्टि इस एक कार्य के लिए पागल है. अनन्या की कमसिन चूत अब पानी बहा रही थी और अजीत उसके बहाव में गोते लगते हुए उस जल से अपनी प्यास बुझा रहा था. एक ओर अदिति भी अपने तौलिये को फेंककर अपनी चूत को बाहर से मसल रही थी.

अचानक अनन्या का शरीर अकड़ गया और उसके कूल्हे और पैर कांपने लगे. उसकी चूत से एक लम्बी धार निकली जो अजीत के मुंह में समा गई. आज उसका पहला स्त्राव हुआ था. और फिर उसका शरीर ढीला पड़ गया.

*********************

शालिनी का कमरा:


गौतम: “दादी, क्या मुझे भी अनन्या?”

शालिनी: “बच्चू, पहले मुझे और अपनी माँ को ही संभाल ले, ज्यादा लालच में न पड़। “

गौतम: “अरे दादी, मैं तो इसीलिए पूछ रहा था कि बाहर की गतिविधियाँ बंद करने की आवश्यकता तो नहीं. जब घर में ही…”

शालिनी: “बात तो तेरी सही है, कुछ दिन ठहर के देख.”

गौतम: “और राधा?”

शालिनी: “हम्म्म लगता है तू घर की किसी औरत को छोड़ने वाला नहीं. चल मैं उससे बात करुँगी. परन्तु उसके विषय में विश्वास के साथ नहीं कह सकती. क्योंकि किसी ने इस ओर कोई प्रयास नहीं किया. पता नहीं अब तक अनन्या का कौमार्य टूटा भी होगा या नहीं.”

इसी उधेड़बुन में दादी और पोता सोचते हुए निद्रामग्न हो गए.

************

अदिति का कमरा:


और अब समय था अनन्या के कौमार्य के विच्छेदन का. अदिति ने बाथरूम में जाकर वहां से एक वेसलीन की शीशी लाई। पहले उसने अजीत के लंड को मुंह में लेकर अच्छे से चूसा और चाटकर कुछ हद तक गीला किया. पर एक कुँवारी चूत के लिए और चिकनाई की आवश्यकता तो समझते हुए, वेसलीन लगाकर उसे पर मला. फिर थोड़ी वेसलीन और लगाई और अजीत से कहा कि वो अपने लंड पर स्वयं ही मले.

फिर उसने अनन्या की कच्ची चूत पर वेसलीन लगाई और उसे एक ऊँगली से उसके अंदर भी मला। इतने में ही अनन्या एक बार झड़ गई. वो बहुत उत्सुक थी और रुक न पाई. अदिति ने उसके छोड़े हुए पानी और वेसलीन से उसकी चूत के अंदर अच्छे से मालिश की. जब उसे लगा कि अब वो अगले पड़ाव के लिए तैयार है, तो वो उठी और अजीत की ओर मुड़ी।

अदिति: “आपकी बेटी अब फूल बनने के लिए उत्सुक है. आइये और इसको अपने जीवन का वो सुख दीजिये, जिससे वो अभी तक अनिभिज्ञ रही है.”

अजीत ने अपने तने हुए लंड को अनन्या की चूत के ऊपर रगड़ा जिस कारण अनन्या कुनमुमनाने लगी.

अजीत हँसते हुए बोला, “कुछ ज्यादा ही बेचैन हो रही हो.”

अदिति बोल पड़ी, “क्यों न हो, उसका सपना जो पूरा होने जा रहा है. चलिए और आगे बढिये.”

अजीत ने अपने लंड को अनन्या की चूत में फंसाया और हल्के दबाव के साथ उसकी चूत की कोमल पंखुड़ियों को चीरते हुए सुपाड़े को अंदर प्रविष्ट कर दिया. अनन्या सिहर उठी. इतने दिनों का उसका सपना आज पूरा जो होने जा रहा था.

“पापा, थोड़ा जल्दी करो न, प्लीज.”

“नहीं बेटी, उसमें तुम्हे दर्द होगा. मैं जानता हूँ मुझे क्या करना है.” अजीत बोलते हुए अपने लंड को दबाते हुए अंदर धकेल रहा था.

एक घोंघे की गति से बढ़ाते हुए कुछ समय में लगभग ५ इंच लंड अनन्या की मखमली चूत में समा चुका था. अनन्या को अभी तक किसी प्रकार का दर्द नहीं हुआ था. अजीत ने अदिति को देखा और अदिति ने वस्तुस्थिति भांपते हुए अनन्या के पास बैठकर उसके हाथ अपने हाथों में ले किये और उन्हें सहलाने लगी. अनन्या समझ गई कि अब सच का सामना होने वाला है. उसने अपने मन को पक्का किया और अपने पापा को आँखों से संकेत किया कि वो आगे बढ़ें.

इस बार अजीत ने अपने लंड को बाहर खींचा और इस बार थोड़ा तेजी से अंदर बढ़ाया. पर लंड पिछली गहराई पर ही रुक गया, उसे अनन्या के कौमार्य की झिल्ली रोक रही थी. अजीत ने उसी क्रम को दोहराते हुए हर बार अपनी गति को बढ़ाते हुए लंड को अंदर और फिर बाहर किया. और फिर एक बार ही अचानक उसने एक तगड़ा धक्का लगाया, और अनन्या का शरीर अकड़ गया. उसने अदिति के हाथ को जोर से अपने हाथ में दबाया। इसके पैर छटपटाने लगे और आँखों में आँसू आ गए. उसकी सील टूट चुकी थी, उसके पापा का लंड अपने अंतिम अवरोध को तोड़कर आगे बढ़ चुका था.

अदिति उसके हाथ और माथे को सहला रही थी. अजीत रुका हुआ था और उसने झुककर अनन्या के होंठ चूमे और बाप बेटी एक दूसरे को चूमने लगे. जब अजीत को लगा कि समय सही है, उसने अपने लंड की चहलकदमी आरम्भ कर दी. अब उसका लंड अनन्या की चूत में हर बार थोड़ा बढ़ कर जा रहा था. कुछ ही समय में लंड की पूरी लम्बाई अनन्या की गहराई नाप रही थी. अनन्या को भी अब दर्द के स्थान पर एक नई संवेदना का अनुभव हो रहा था. ये हर उस अनुभव से अलग था जो उसने अपने जीवन में किये थे. कुछ अलग, कुछ मीठा सा. उसे लगा जैसे उसके शरीर की सभी कोशिकाएं उसके इस अंग में समा गई थी.

उसकी नई खुली चूत अब पानी से भरने लगी थी. अजीत के धक्कों से अब छप छप की ध्वनि आने लगी थी. अदिति ने अजीत की ओर प्रेम भरी आँखों से देखा और उसके होंठ चूम लिए. फिर उसने मुड़कर अपनी बेटी के होंठों पर अपने होंठ रखे. माँ बेटी एक प्रगाढ़ चुम्बन में लीन हो गए. अजीत अब आसानी से अपने लंड को अनन्या की चूत में पेल रहा थे, चूत से छूटता रस उसके प्रयास को सरल बना रहा था. पर इतने संकरे रास्ते के कारण अब उसका अधिक देर तक ठहरना संभव नहीं था. उसने अदिति को संकेत किया कि वो झड़ने वाला है.

अदिति ने अनन्या को बताया तो अनन्या ने कहा कि अंदर ही छोड़ो, वो गोली ले लेगी पर बाहर नहीं निकालें. ये सुनकर अजीत के लंड ने अपनी पिचकारी खाली करना शुरू कर दी और कुछ ही क्षणों में अनन्या की चूत में अपना पूरा रस डालकर अलग हो गया.

अदिति: “कैसी लगी मेरी बेटी को अपनी पहली चुदाई?”

अनन्या : “मम्मी, मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे मैं बादलों में तैर रही हूँ. इतना मजा आता है चुदाई में? मुझे नहीं लगता कि अब मैं एक दिन भी इसके बिना रह पाऊंगी.”

अदिति: “मुझे ख़ुशी है कि तुझे इतना आनंद आया. ला अब मैं तेरी चूत साफ कर दूँ.”

ये कहते हुए अदिति ने अनन्य की जांघों को फैलाया और झुककर उसकी चूत में अपना मुंह लगाकर चाटने लगी. अपनी बेटी और पति के इस मिश्रित रास को भोग लगाकर उसका मन उल्लास से भर गया. उसके अच्छे से चाटकर अनन्या की चूत को साफ कर दिया. फिर उसके फैले हुए पांवों के बीच खिली हुई पाव के सामान फूली हुई लाल गुलाबी चूत को देखकर अजीत और अदिति ने एक दूसरे को एक संतोष भाव से देखा.

अदिति ने अनन्या को आज उनके ही साथ सोने का आमंत्रण दिया और तीनों नंगे ही एक दूसरे की बाहों में सो गए. आज घर में सब सो रहे थे और सब अपने सपनों में एक ही दृश्य की कल्पना कर रहे थे. और वो था उन्मुक्त सेक्स का वातावरण। जीवन के नए आनंद के द्वार खुल चुके थे.

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