" हैरी......!" जैकी ने भावुकता में भरकर जोर से उसे पुकारा---" मेरे बेटे!” --"म्याऊं-म्याऊं. !" हैरी के मुख से निकला और साथ ही वह सहमकर पीछे हट गया ।
" हैरी...हैऱी !" जैकी जैसे पागल होकर चीख उठा------" क्या हुआ हैरी?"
पुन: हैरी के मुख से बिल्ली की भाति ' म्याऊ-म्याऊ' निकला और इस बार सहमकर वह पलंग के नीचे घुस गया । जूलिया जैकी से लिपटी बुरी तरह सिसंक रही थ्री । जैकी ने म्याऊं-म्याऊ' करते हैरी के गले में एक टिन की प्लेट लटकी हुई थी, जिस पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था ।
किसी समय ये मेरा दोस्त रह चुका है लेकिन अब दुश्मन है क्योकि इस वारं यह मुझसे टकराना चाहता था । अब जरा इसे देख लो, ये बिल्ली बिकास से टकराएगी-बेवकूफ ।
विनाशदूत विकास ।
जैकी की आंखें लाल होती चली गईं, जैसे अंगारे दहकते चले जाएं । उसका दिल विकास के प्रति घृणा से भर गया । सारा जिस्म मे तनाव आ गया । क्रोध से कांप उठा ।
वह बुदबुदा उठा…"बिकास । जैकी तुम्हें पाताल में भी जिंदा नहीँ छोड़ेगा ।”
चौंककर जूलिया ने जैकी की ओर देखा । अपने पते की भाव-भंगिमा देखकर जूलिया काप उठी ।
जैकी के आंखों में लहू था । दृष्टि शून्य में टिकी हुई थी ।
बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी complete
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
विकास की वापसी
विकास के आंख दबाते ही बिजय चोंक पडा । एक वार उसने अलफांसे की और देखा बोला-----" प्यारे लूमड खां ।। ये साला चेला तो गुरु वन गया । क्यो प्यारे दिलजले! तुम यहां अलादीन के चिराग की भांति कैसे पैदा हो गए?”
“बाईं दी वे गुरू! " विकास मोहकता के साथ बोला……"मगल का सम्राट आपका बच्चा है । जानता है कि गुरु लोग कहां जा सकते हैं !"
…“तो प्यारे, अब हमं यहां आ गए !" बिजय ने कहा-----"अब तक तुमने जो किया है, वह इतना हो चुका है कि अगर मैं तुम्हारा क्रिया क्रम कर दूं तो.... तो दुनिया हमें पुष्पहार पहनाएगी ।"
“गलत गुरू !" विकास ने उसी संयमता के साथ कहा… जो काम आप कर नहीं सकते वह कहने से क्या लाभ?"
"क्या कहा वे।” बिजय एकदम अपनी दोनो बांहे चढाता हुआ बोला----- " साले गुरू लोगों से टकराता है यानी कि आखें दिखाता हैं! बेटा कैलेंडर बनाकर दीवार पर चिपका दूगा ।”
अलफासे आश्चर्यजनक रूप से शात था । अशरफ भी खडा हो चुका था । वह आश्चर्य के साथ बिकास को देख रहा था ।
“अरे आप तो बुरा मान गए गुरू !" विकास गिरगिट की तरह एकदम रग बदलता हुआ बोला-" मैं तो मजाक कर रहा था ! असंल बात तो यह है कि आपको लेने आया हूं !"
……“जो तुम कह रहे हो बेटा दिलजले, वह कभी नहीं कर सकते ।" कहते हुए विजय ने कमाल कर दिया । विकास तो विकास, अशरफ और अलफांसे तक कुछ न समझ सके ।
इतनी अधिक फुर्ती से विजय ने विकास के जबड़े पर घूंसा मारा था , वैसी फुर्ती किसी ने नही देखी थी. हालांकि विकास अपनी तरफ़ से वेहद सतर्क था, लेकिन विजय भी आखिर उसका गुरु था ।। एक ही घूसे में विकास फिरकनी की तरह घूम गया और धड़ाम से गिरा ।
विजय जानता था कि लड़का भी पहुंचा हुआ है, इसलिए तेजी से झपटा,लेकिन...।
बीच में आ गया अलफांसे!
जैसे ही विजय विकास पर झपटा, अलफांसे के बूट की जोरदार ठोकर उसके चेहरे पर पड़ी ।
विजय के कंठ से एक चीख निकल गई और वह तुरंत दूसरी ओर पलट गया । विजय को सोचने का मौका ही नहीं मिला, लेकिन अशरफ अलफांसे की विचित्र हरकत पऱ अवश्य अवाक रह गया ।
विद्युत गति विजय झुंझलाकर खडा हो गया था लेकिन अलफांसे विजय और विकास के बीच कूल्हों परे हाथ रखे खडा था । उसकी पीठ विकास की ओर थी और वह बिजय घूर रह्य था ।
" अरे बेटे लूमडखान । ये क्या गिरगट की तरह रग बदल रहे हो?”
.…" अगर इस बार विकास पर हाथ उठाया जासूस बेटे तो तोडकर जेब में रख दूगा ।" अलफांसे गुर्राया-‘लडका जो कर रहा ठीक कर रहा है ।"
.……"देखा प्यारे झानझरोखे ।" विजय ने अशरंफ़ की ओर देखकर भटियारिन की भाति हाथ नचाकर कहा-"इस साले लूमड को अपने साथ रखना भी जुर्म है । हमारा नाम भी विजय दी ग्रेट है । तुम्हारे भी कस-बल ढीले करने पड़ेगे ।" कहता हुआ विजय वास्तव में अपने आपको विकास और अलफांसे से टकराने के लिए तैयार करने लगा ।
" तुम्हारी बुद्धि को जंग लग गया है जासूस प्यारे ।" अलफांसे सतर्क होकर बोला--" अब विकास पूरी तरह अपराधी वन चुका है, जबकि शुरू से हमारा उद्देश्य यह था कि अपराधी न बने । हम इसे वापस लेने आए थे लेकिन हम हार गए । हमारे यहां पहुंचने से पहले ही यह इतना आगे निकल गया है कि अब इसका लौटना एकदम असंभव है ।
अब इसका लौटना एकदम असंभव है । यह अपराधी बन चुका है । विश्व इसे माफ़ नहीं करेगा । फिर क्यों न इसे अपने उद्देश्य में सफल हो जाने दे? जव यह अपराधी बन ही गया तो इसे अपना कार्य पूरां करने दो । अमेरिका विश्व, के अन्य देशो का, नासूर है । खत्म हो जाने दो उसे !”
“बेटा लूमढ़, क्या तुम्हारी बुद्धि उलट गई है?"
"अब कुछ नहीं होगा विजय, अलफांसे दृढ़ स्वर में बोला…"मैं विकास के-साथ हूं ।"
तभी-एक अन्य आश्चर्य हुआ । अचानक विकास की एक जोरदार ठोकर अलफांसे की पीठ पर पडी ।
अलफांसे को विकास से इस अजीब हरकत की उम्मीद नहीं थी, इसलिए वह स्वयं को -संभाल नहीं सका और वेग के साथ सीधा विजय से जाकर टकराया, तभी पीछे से बिकास बोला---"क्षमा करना गुरु! बच्चा ,गुरु लोगों की नस-नस पहचानता है ।"
" क्या मतलब?" अलफांसे ने चौंकने का अभिनय किया ।
"मतलब को हाजमे की गोली खिलाओ प्यारे लूमड़खान ।" बीच में टपका विजय-" हम दोनों ने ऐसा चेला तैयार किया है कि एक दिन ये हमें गंजा करके एक-दूसरे की चुटिया बांध देगा । गुरु लोगों की चाल को भी समझ गया ।"
" क्षमा करना गुरु! वास्तव में मैं आपकी चाल समझ गया था ।" विकास ने कहा-"आप लोग ऐसा प्रदर्शित कर रहे थे जैसे एक-दूसरे से झगड़ा कर रहे हो जबकि अलफांसे गुरु आप मेरे बनकर मेरा ही बंटाधार करने पर तुले हुए थे ।"
विजय और अलफांसे ने चमत्कृत-सी निगाहों से विकास को देखा ।
अशरफ की तो जैसे खोपड्री ही में चकरा रही थी । उसने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि विजय और अलफासे एक योजना-के अंतर्गत एक…दुसरे से लड़े । इससे भी यह एक बार पुन: विकास से बेहद प्रभावित हुआ ।
यह लड़का गुरु लोगों की साजिश में नहीं आया था ।
" विकास !" अलफांसे गुर्रा उठा-" माना कि तुम बेहद चालाक हो लेकिन तुम अपनी शक्ति के सामने गुरु का आदर करना भी भूल गए हो । याद रखो, अब मंगल पर अलफांसे आ चुका है और जब तक मैं नहीं चाहूगा विकास, तुम कुछ कर नहीं सकोगे । हमने इसलिए ही ट्रेड नहीं किया था कि उस शक्ति को गलत कार्यों में प्रयोग करो ।। माना कि आज तुम शक्तिशाली हो गए हो । यह भी माना क्रि इस समय तुम मंगल-सम्राट हो । यह भी माना कि विश्व के खूंखारतम अपराधी तुम्हारे नाम से कांपते हैं ।
यह माना कि विदेशी जासूसों के दिमाग पर तुम्हारा भूत सवार है ।। और यह भी मानता हू विकास र्कि वास्तव में तुम उन सबसे शक्तिशाली भी हो लेकिन हमसे टकराने की कोशिश मत करो विकास घाटे में रहोगे! तुम जो हो, हमारी बदौलत.. .हम तुम्हारे गुरु हैं । तुम्हें दांव हमने सिखाए, ट्रेंड हमने किया लेकिन याद रखो, बिल्ली अगर शेर को सारे दांव सिखा देती तो बिल्ली को गुरु कोई नहीं कहता !"
" आपके सोचने का ढंग जरा गलत है क्राइमर अंकल! " विकास ने कहा-"मैंने कभी कोशिश नहीं की थी कि आप लोगों से टकराऊं. . .क्यो विजय गुरु, तुम बोलो! क्या मैने कभी तुमसे टकराने की कोशिश की है? सबसे पहले मैं आपको यह बताने गया था कि भारत मे सी.आई.एं. का जाल है । वहां भी मैं नहीं गुरू आप ही टकराए । तुम भी सुनो अलफांसे गुरू; कान खेलकर सुनो! जब हमारे दोनों दलो के मोण्टोफो और सर्जिबेण्टा मिले तो तब कौन टकराया था? किसने पहले साजिश की थी? नहीं गुरु मै नहीं था, वो आप थे । आप गुरु लोगों से टकराना नहीं चाहता था इसीलिए लंबू अंक्ल को आपको गिरफ्तार करने के लिए भेजा था ।
आपको हेडक्वार्टर पर न रखकर जाम्बू के अड्डे पर रखा ताकि¸.मैं सामने ही न पडू लेकिन आपने मुझे फिर सामने आने पर विवश कर दिया । नहीं गुरु, नहीं । मैं कभी नहीं टकराया. . .मैं आपकी इज्जतं करता हूं, और करता रहूगा ।"
" बेटा लूमड़खान ।" विजय बोला--------" ये तो भाषण देने में ही आगे निकल गया ।"
--'"अगर तुम हमेँ गुरु मानते हो विकास तो वापस चलो !" अलफांसे ने कहा।
" क्षमा करना गुरु!"' बिकास बोला ---- “पहले ही आपके चरणों की-कसम खा चुका हूं कि भारत से सी.आई.ए. का नाम् मिटाकर ही दम लुगां । बैसे भी अब मेरे लोटने से क्या लाभ? भारत में रहकर भारत का जासूस तो नहीं बन सकता । विजय गुरु, आपके सपने मैं साकार कर ही नहीं सकता, फिर वापस लौटने से लाभ क्या?"
"अबे बेटा दिलजले ! यानी कि फिर बदमाशी ? अबे तब तो कह रहा था कि तेरे पास कोई ऐसा प्वाइंट है जिसके बूते पर तू भारत. में दनदनाएगा और यू.एन.ओ .तेरा कुछ नही बिगाड सकेगी?"
"बो तो है गुरु, लेकिन क्यों न उसे तभी प्रयोग किया जाए, जब मैं अमेरिका को पूरी तरह मजा चखा दूं? अब मंजिल अघिक दूर नहीं गुरु! अब वापस लौटना एकदम असंभव है ।"
" इस तरह नहीं मानेगा लूमड़ भाई!" विजय ने अलफांसे सें कहा ।
"तो आज साले के कान पकड़कर मुर्गा बना दो, तब मानेगा ।'" अलफांसे भी ताव खा गया ।
दोनो तेयार होने लगे, तभी सतर्कता के साथ पीछे हटाता हुआ विकास बोला…“देखो गुरु, अब आप विवश कर रहे हैं ।"
विकास के आंख दबाते ही बिजय चोंक पडा । एक वार उसने अलफांसे की और देखा बोला-----" प्यारे लूमड खां ।। ये साला चेला तो गुरु वन गया । क्यो प्यारे दिलजले! तुम यहां अलादीन के चिराग की भांति कैसे पैदा हो गए?”
“बाईं दी वे गुरू! " विकास मोहकता के साथ बोला……"मगल का सम्राट आपका बच्चा है । जानता है कि गुरु लोग कहां जा सकते हैं !"
…“तो प्यारे, अब हमं यहां आ गए !" बिजय ने कहा-----"अब तक तुमने जो किया है, वह इतना हो चुका है कि अगर मैं तुम्हारा क्रिया क्रम कर दूं तो.... तो दुनिया हमें पुष्पहार पहनाएगी ।"
“गलत गुरू !" विकास ने उसी संयमता के साथ कहा… जो काम आप कर नहीं सकते वह कहने से क्या लाभ?"
"क्या कहा वे।” बिजय एकदम अपनी दोनो बांहे चढाता हुआ बोला----- " साले गुरू लोगों से टकराता है यानी कि आखें दिखाता हैं! बेटा कैलेंडर बनाकर दीवार पर चिपका दूगा ।”
अलफासे आश्चर्यजनक रूप से शात था । अशरफ भी खडा हो चुका था । वह आश्चर्य के साथ बिकास को देख रहा था ।
“अरे आप तो बुरा मान गए गुरू !" विकास गिरगिट की तरह एकदम रग बदलता हुआ बोला-" मैं तो मजाक कर रहा था ! असंल बात तो यह है कि आपको लेने आया हूं !"
……“जो तुम कह रहे हो बेटा दिलजले, वह कभी नहीं कर सकते ।" कहते हुए विजय ने कमाल कर दिया । विकास तो विकास, अशरफ और अलफांसे तक कुछ न समझ सके ।
इतनी अधिक फुर्ती से विजय ने विकास के जबड़े पर घूंसा मारा था , वैसी फुर्ती किसी ने नही देखी थी. हालांकि विकास अपनी तरफ़ से वेहद सतर्क था, लेकिन विजय भी आखिर उसका गुरु था ।। एक ही घूसे में विकास फिरकनी की तरह घूम गया और धड़ाम से गिरा ।
विजय जानता था कि लड़का भी पहुंचा हुआ है, इसलिए तेजी से झपटा,लेकिन...।
बीच में आ गया अलफांसे!
जैसे ही विजय विकास पर झपटा, अलफांसे के बूट की जोरदार ठोकर उसके चेहरे पर पड़ी ।
विजय के कंठ से एक चीख निकल गई और वह तुरंत दूसरी ओर पलट गया । विजय को सोचने का मौका ही नहीं मिला, लेकिन अशरफ अलफांसे की विचित्र हरकत पऱ अवश्य अवाक रह गया ।
विद्युत गति विजय झुंझलाकर खडा हो गया था लेकिन अलफांसे विजय और विकास के बीच कूल्हों परे हाथ रखे खडा था । उसकी पीठ विकास की ओर थी और वह बिजय घूर रह्य था ।
" अरे बेटे लूमडखान । ये क्या गिरगट की तरह रग बदल रहे हो?”
.…" अगर इस बार विकास पर हाथ उठाया जासूस बेटे तो तोडकर जेब में रख दूगा ।" अलफांसे गुर्राया-‘लडका जो कर रहा ठीक कर रहा है ।"
.……"देखा प्यारे झानझरोखे ।" विजय ने अशरंफ़ की ओर देखकर भटियारिन की भाति हाथ नचाकर कहा-"इस साले लूमड को अपने साथ रखना भी जुर्म है । हमारा नाम भी विजय दी ग्रेट है । तुम्हारे भी कस-बल ढीले करने पड़ेगे ।" कहता हुआ विजय वास्तव में अपने आपको विकास और अलफांसे से टकराने के लिए तैयार करने लगा ।
" तुम्हारी बुद्धि को जंग लग गया है जासूस प्यारे ।" अलफांसे सतर्क होकर बोला--" अब विकास पूरी तरह अपराधी वन चुका है, जबकि शुरू से हमारा उद्देश्य यह था कि अपराधी न बने । हम इसे वापस लेने आए थे लेकिन हम हार गए । हमारे यहां पहुंचने से पहले ही यह इतना आगे निकल गया है कि अब इसका लौटना एकदम असंभव है ।
अब इसका लौटना एकदम असंभव है । यह अपराधी बन चुका है । विश्व इसे माफ़ नहीं करेगा । फिर क्यों न इसे अपने उद्देश्य में सफल हो जाने दे? जव यह अपराधी बन ही गया तो इसे अपना कार्य पूरां करने दो । अमेरिका विश्व, के अन्य देशो का, नासूर है । खत्म हो जाने दो उसे !”
“बेटा लूमढ़, क्या तुम्हारी बुद्धि उलट गई है?"
"अब कुछ नहीं होगा विजय, अलफांसे दृढ़ स्वर में बोला…"मैं विकास के-साथ हूं ।"
तभी-एक अन्य आश्चर्य हुआ । अचानक विकास की एक जोरदार ठोकर अलफांसे की पीठ पर पडी ।
अलफांसे को विकास से इस अजीब हरकत की उम्मीद नहीं थी, इसलिए वह स्वयं को -संभाल नहीं सका और वेग के साथ सीधा विजय से जाकर टकराया, तभी पीछे से बिकास बोला---"क्षमा करना गुरु! बच्चा ,गुरु लोगों की नस-नस पहचानता है ।"
" क्या मतलब?" अलफांसे ने चौंकने का अभिनय किया ।
"मतलब को हाजमे की गोली खिलाओ प्यारे लूमड़खान ।" बीच में टपका विजय-" हम दोनों ने ऐसा चेला तैयार किया है कि एक दिन ये हमें गंजा करके एक-दूसरे की चुटिया बांध देगा । गुरु लोगों की चाल को भी समझ गया ।"
" क्षमा करना गुरु! वास्तव में मैं आपकी चाल समझ गया था ।" विकास ने कहा-"आप लोग ऐसा प्रदर्शित कर रहे थे जैसे एक-दूसरे से झगड़ा कर रहे हो जबकि अलफांसे गुरु आप मेरे बनकर मेरा ही बंटाधार करने पर तुले हुए थे ।"
विजय और अलफांसे ने चमत्कृत-सी निगाहों से विकास को देखा ।
अशरफ की तो जैसे खोपड्री ही में चकरा रही थी । उसने तो स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि विजय और अलफासे एक योजना-के अंतर्गत एक…दुसरे से लड़े । इससे भी यह एक बार पुन: विकास से बेहद प्रभावित हुआ ।
यह लड़का गुरु लोगों की साजिश में नहीं आया था ।
" विकास !" अलफांसे गुर्रा उठा-" माना कि तुम बेहद चालाक हो लेकिन तुम अपनी शक्ति के सामने गुरु का आदर करना भी भूल गए हो । याद रखो, अब मंगल पर अलफांसे आ चुका है और जब तक मैं नहीं चाहूगा विकास, तुम कुछ कर नहीं सकोगे । हमने इसलिए ही ट्रेड नहीं किया था कि उस शक्ति को गलत कार्यों में प्रयोग करो ।। माना कि आज तुम शक्तिशाली हो गए हो । यह भी माना क्रि इस समय तुम मंगल-सम्राट हो । यह भी माना कि विश्व के खूंखारतम अपराधी तुम्हारे नाम से कांपते हैं ।
यह माना कि विदेशी जासूसों के दिमाग पर तुम्हारा भूत सवार है ।। और यह भी मानता हू विकास र्कि वास्तव में तुम उन सबसे शक्तिशाली भी हो लेकिन हमसे टकराने की कोशिश मत करो विकास घाटे में रहोगे! तुम जो हो, हमारी बदौलत.. .हम तुम्हारे गुरु हैं । तुम्हें दांव हमने सिखाए, ट्रेंड हमने किया लेकिन याद रखो, बिल्ली अगर शेर को सारे दांव सिखा देती तो बिल्ली को गुरु कोई नहीं कहता !"
" आपके सोचने का ढंग जरा गलत है क्राइमर अंकल! " विकास ने कहा-"मैंने कभी कोशिश नहीं की थी कि आप लोगों से टकराऊं. . .क्यो विजय गुरु, तुम बोलो! क्या मैने कभी तुमसे टकराने की कोशिश की है? सबसे पहले मैं आपको यह बताने गया था कि भारत मे सी.आई.एं. का जाल है । वहां भी मैं नहीं गुरू आप ही टकराए । तुम भी सुनो अलफांसे गुरू; कान खेलकर सुनो! जब हमारे दोनों दलो के मोण्टोफो और सर्जिबेण्टा मिले तो तब कौन टकराया था? किसने पहले साजिश की थी? नहीं गुरु मै नहीं था, वो आप थे । आप गुरु लोगों से टकराना नहीं चाहता था इसीलिए लंबू अंक्ल को आपको गिरफ्तार करने के लिए भेजा था ।
आपको हेडक्वार्टर पर न रखकर जाम्बू के अड्डे पर रखा ताकि¸.मैं सामने ही न पडू लेकिन आपने मुझे फिर सामने आने पर विवश कर दिया । नहीं गुरु, नहीं । मैं कभी नहीं टकराया. . .मैं आपकी इज्जतं करता हूं, और करता रहूगा ।"
" बेटा लूमड़खान ।" विजय बोला--------" ये तो भाषण देने में ही आगे निकल गया ।"
--'"अगर तुम हमेँ गुरु मानते हो विकास तो वापस चलो !" अलफांसे ने कहा।
" क्षमा करना गुरु!"' बिकास बोला ---- “पहले ही आपके चरणों की-कसम खा चुका हूं कि भारत से सी.आई.ए. का नाम् मिटाकर ही दम लुगां । बैसे भी अब मेरे लोटने से क्या लाभ? भारत में रहकर भारत का जासूस तो नहीं बन सकता । विजय गुरु, आपके सपने मैं साकार कर ही नहीं सकता, फिर वापस लौटने से लाभ क्या?"
"अबे बेटा दिलजले ! यानी कि फिर बदमाशी ? अबे तब तो कह रहा था कि तेरे पास कोई ऐसा प्वाइंट है जिसके बूते पर तू भारत. में दनदनाएगा और यू.एन.ओ .तेरा कुछ नही बिगाड सकेगी?"
"बो तो है गुरु, लेकिन क्यों न उसे तभी प्रयोग किया जाए, जब मैं अमेरिका को पूरी तरह मजा चखा दूं? अब मंजिल अघिक दूर नहीं गुरु! अब वापस लौटना एकदम असंभव है ।"
" इस तरह नहीं मानेगा लूमड़ भाई!" विजय ने अलफांसे सें कहा ।
"तो आज साले के कान पकड़कर मुर्गा बना दो, तब मानेगा ।'" अलफांसे भी ताव खा गया ।
दोनो तेयार होने लगे, तभी सतर्कता के साथ पीछे हटाता हुआ विकास बोला…“देखो गुरु, अब आप विवश कर रहे हैं ।"
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
"अब तो बेटा, तुझे फिनिश कर देगे ।" कहता हुआ विजय अलफांसे के साथ आगे बढा ।
तभी विकास ने उसी अंधेरे में जंप लगा दी जिसमें से वह प्रकट हुआ था । उसके पीछे तेजी के साथ विजय 'भी झपटा । कुछ सोचकर अलफांसे ने जंप नहीं लगाई । तभी अंधेरे में से एक ऐसी आवाज आई जैसे किसी ने किसी को जोरदार चपत मारी हो ।
अगले ही पल…"अवे-अबे' करता हुआ विजय अंधकार से बाहर प्रकाश में आगिरा।
उसी क्षण-अंधेरे मैं से विकास के स्थान पर प्रकट हुआ टुम्बकटू।
"आदाब अर्ज है प्यारे महान क्राइमर ।" गन्ने की तरह लचककर बडे अदब के साथ टुम्बकटू ने अलफांसे को नए संबोधन के साथ सलाम किया ।
अलफांसे तो उस कार्दूंन को देखता रह गया लेकिन विजय तुरत संभलकर बोला ।
"ओह तो प्यारे टुम्बकटू जी हैं।"
" है तो सही महाराज, अगर तुम रहने दो ।" टुम्बकटू उसी प्रकार इज्जत के साथ बोला…"बैसे आप लोगों की बडी गलत बात है कि आप दो संड-मुस्टड होकर एक नादान बालक की ओर एक साथ ही बढते हो ।"
" 'क्यो प्यारे, तुम क्या हिमायती हो उसके?" बिजय बोला ।
" जाहिर है !" उसने सलाई-सी बांहें झटककर कहा !
" तुम ये भूल गए टुम्बकटू वेटे कि हम भी यहीँ खड़े हैं?" कहता हुआ अलफांसे उसकी ओर बढा ।
"ओ भाई, अबे ओ भाई साहब ।" टुम्बकटू ने एकदम हाथ जोड़ दिए---" भाई, तुम तो महान क्राइमर हो । तुमसे डर लगता है ! कहीं तुम मेरा बोरिया-बिस्तर बंद करके चांद पर न पहुंचा दो ।"
लेकिन अलफांसे नहीं रुंका ।
तभी टुम्बकृटू तेजी से बोला---" अबे पकडो इसे---मुझे मार डालेगा ? बड़ा खतरनाक आदमी है !"
उसका यह कहना था कि जाम्बू के अनेक उल्टे साथी उसके चारों से प्रकट हुए ।
वे सभी शब्दों से लेस थे । विजय, अलफांसे और अशरफ को जिस्म का कोई अंग तक हिलाने का अवसर नहीं मिला ।
पूजा बेहद बेचैन थी । प्रत्येक पल उसकी इच्छा विकास से मिलने की हो रही थी । वह सोचती रही थी कि मंगल पर पहुंचते ही वह बिकास से मिलेगी लेकिन् विकास?
उफ, उस लडके के पास तो दिल नाम की जैसे कोई चीज ही नहीं थी! पूजा ने सोचा, कैसा दिल है इस बेदर्द के पास? मिलना तो,दूर रहा---सामने तक नहीं आया । सबके साथ उसे भी कैद का लिया ।
हल्की-सी आहट होती तो वह तुरंत सोचती------"बिकास आ गया । उसका देवता-उसका स्वामी ।
लेकिन ।
विकास के स्थान पर किसी अन्य को पार वह निराश हो जाती । उसके सीने में बडा तीखा-सा दर्द उठता । पूना कराहकर रह जाती ।
लेकिन करती क्या?
इस कैद से निकलने का कोई रास्ता उस भोली-भाली मासूम को नज़र नही आया था । उसे यह भी नहीं पता था कि बह अगर यहां से निकल भी गई तो जाएगी कहां?
तभी कमरे के. बाहर हल्की सी आहट हुई और पूजा सतर्क हो गई । दरवाजा खुला-ओर..॥॥
धक्क से रह गया पूजा का दिल ।
दिल की धडकने भी धीमी हो गई।
कमरे के द्वार पर चंद्रमा उदय हुआ था ।
उसका विकास, पूजा की रग रग में बसा हुआ विकास ।
प्यारा-प्यारा मुखड़ा, गुलाबी होठ, गोरा मस्तक । उस पर एक ताज चमकता हुआ । लंवा…खूब लंबा ।
वह पूजा की ओर देख रहा था । उसकी वडी-वडी आंखों में चमक थी-प्यार-भऱी एक मीठी चमक ।
होंठों पर मधुर मुस्कान ।
पूजा बिकास को देखती ही रह गई ।
दोनों नेत्र एक-दूसरे में डूब गए ।
पूजा को जेसे सुध ही नहीं रही।
विकास अकेला था । आगे बढता हुआ बोला-----"कैसी हो पुजा ? "
पूजा के विवेक को एक झटका लगा ।
उसने बोलना चाहा लेकिन एक शब्द भी मुह से नहीं निकला । जीभ जैसे तालू से चिपककर रह गई ।
तब तक बिकास उसके समीप पहुच गया था ।
वह पुन: बोला-----"सुना नहीं पूजा, कैसी हो?"
" कैद कराने वाले, कैदी से हाल पूछ रहे हो!" वडे धीमे से, साहस करके पूजा ने कहा--------" हमें तो देवता की कैद भी मंजूर है , लेकिन उसका दूर रहना नहीं । जिसकी केद में रहे, उसके पास तो रहैं ।
विकास पूजा को देखता रह गया ।
दबी जुबान से उसने यह सब कहा था लेकिन फिर भी उसके नेत्र नीर भर गए थे ।
विकास के दिल ने पिघल जाना चाहा परंतु उस पर काबू करके वह बोला
" नाराज क्यों होती हो पूजा! मैंने तो पहले ही कहा था कि विकास ने अपना जीवन भारत मां को अर्पण कर दिया है । तुम्हारे लिए मेरे पास कुछ भी नहीं ।"
विकास के शब्द विष-तीरं की भाति पूजा के सीने को वेध गऐ परंतु फिर भी साहस करके वह बोली-" ये क्यो भूल जाते हो… विकास कि किसी ने अपना जीवन तुम्हें अर्पण कर दिया है?”
“पूजा! तुम पत्थर से सिर टकरा रही हो ।"
-"पहले भी कई बार सुन चुकी हूं ।" पूजा ने स्पष्ट स्वर में कहा---" तुम पत्थर सही विकास, तुम बेदर्द सही, लेकिन प्यार करने वालों को यही मंजूर होगा कि पत्थर के सनम से टकरा-टकराकर अपना अंत कर ले ।”
विकास निरूत्तर-सा हो गया ।
पूजा की दीवानगी के सामने वह कुछ बोल न सका ।
"तुम मुझसे चाहती क्या हो?" उसने विषय को थ्रोड़ा मोड़ दिया ।
" केवल तुम्हारा साथ है !"
"केवल साथ?" विकास ने कहा-----" या अपने प्रति मुझसे भी वही भावना जो मेरे प्रति तुम्हारी है?”
तभी विकास ने उसी अंधेरे में जंप लगा दी जिसमें से वह प्रकट हुआ था । उसके पीछे तेजी के साथ विजय 'भी झपटा । कुछ सोचकर अलफांसे ने जंप नहीं लगाई । तभी अंधेरे में से एक ऐसी आवाज आई जैसे किसी ने किसी को जोरदार चपत मारी हो ।
अगले ही पल…"अवे-अबे' करता हुआ विजय अंधकार से बाहर प्रकाश में आगिरा।
उसी क्षण-अंधेरे मैं से विकास के स्थान पर प्रकट हुआ टुम्बकटू।
"आदाब अर्ज है प्यारे महान क्राइमर ।" गन्ने की तरह लचककर बडे अदब के साथ टुम्बकटू ने अलफांसे को नए संबोधन के साथ सलाम किया ।
अलफांसे तो उस कार्दूंन को देखता रह गया लेकिन विजय तुरत संभलकर बोला ।
"ओह तो प्यारे टुम्बकटू जी हैं।"
" है तो सही महाराज, अगर तुम रहने दो ।" टुम्बकटू उसी प्रकार इज्जत के साथ बोला…"बैसे आप लोगों की बडी गलत बात है कि आप दो संड-मुस्टड होकर एक नादान बालक की ओर एक साथ ही बढते हो ।"
" 'क्यो प्यारे, तुम क्या हिमायती हो उसके?" बिजय बोला ।
" जाहिर है !" उसने सलाई-सी बांहें झटककर कहा !
" तुम ये भूल गए टुम्बकटू वेटे कि हम भी यहीँ खड़े हैं?" कहता हुआ अलफांसे उसकी ओर बढा ।
"ओ भाई, अबे ओ भाई साहब ।" टुम्बकटू ने एकदम हाथ जोड़ दिए---" भाई, तुम तो महान क्राइमर हो । तुमसे डर लगता है ! कहीं तुम मेरा बोरिया-बिस्तर बंद करके चांद पर न पहुंचा दो ।"
लेकिन अलफांसे नहीं रुंका ।
तभी टुम्बकृटू तेजी से बोला---" अबे पकडो इसे---मुझे मार डालेगा ? बड़ा खतरनाक आदमी है !"
उसका यह कहना था कि जाम्बू के अनेक उल्टे साथी उसके चारों से प्रकट हुए ।
वे सभी शब्दों से लेस थे । विजय, अलफांसे और अशरफ को जिस्म का कोई अंग तक हिलाने का अवसर नहीं मिला ।
पूजा बेहद बेचैन थी । प्रत्येक पल उसकी इच्छा विकास से मिलने की हो रही थी । वह सोचती रही थी कि मंगल पर पहुंचते ही वह बिकास से मिलेगी लेकिन् विकास?
उफ, उस लडके के पास तो दिल नाम की जैसे कोई चीज ही नहीं थी! पूजा ने सोचा, कैसा दिल है इस बेदर्द के पास? मिलना तो,दूर रहा---सामने तक नहीं आया । सबके साथ उसे भी कैद का लिया ।
हल्की-सी आहट होती तो वह तुरंत सोचती------"बिकास आ गया । उसका देवता-उसका स्वामी ।
लेकिन ।
विकास के स्थान पर किसी अन्य को पार वह निराश हो जाती । उसके सीने में बडा तीखा-सा दर्द उठता । पूना कराहकर रह जाती ।
लेकिन करती क्या?
इस कैद से निकलने का कोई रास्ता उस भोली-भाली मासूम को नज़र नही आया था । उसे यह भी नहीं पता था कि बह अगर यहां से निकल भी गई तो जाएगी कहां?
तभी कमरे के. बाहर हल्की सी आहट हुई और पूजा सतर्क हो गई । दरवाजा खुला-ओर..॥॥
धक्क से रह गया पूजा का दिल ।
दिल की धडकने भी धीमी हो गई।
कमरे के द्वार पर चंद्रमा उदय हुआ था ।
उसका विकास, पूजा की रग रग में बसा हुआ विकास ।
प्यारा-प्यारा मुखड़ा, गुलाबी होठ, गोरा मस्तक । उस पर एक ताज चमकता हुआ । लंवा…खूब लंबा ।
वह पूजा की ओर देख रहा था । उसकी वडी-वडी आंखों में चमक थी-प्यार-भऱी एक मीठी चमक ।
होंठों पर मधुर मुस्कान ।
पूजा बिकास को देखती ही रह गई ।
दोनों नेत्र एक-दूसरे में डूब गए ।
पूजा को जेसे सुध ही नहीं रही।
विकास अकेला था । आगे बढता हुआ बोला-----"कैसी हो पुजा ? "
पूजा के विवेक को एक झटका लगा ।
उसने बोलना चाहा लेकिन एक शब्द भी मुह से नहीं निकला । जीभ जैसे तालू से चिपककर रह गई ।
तब तक बिकास उसके समीप पहुच गया था ।
वह पुन: बोला-----"सुना नहीं पूजा, कैसी हो?"
" कैद कराने वाले, कैदी से हाल पूछ रहे हो!" वडे धीमे से, साहस करके पूजा ने कहा--------" हमें तो देवता की कैद भी मंजूर है , लेकिन उसका दूर रहना नहीं । जिसकी केद में रहे, उसके पास तो रहैं ।
विकास पूजा को देखता रह गया ।
दबी जुबान से उसने यह सब कहा था लेकिन फिर भी उसके नेत्र नीर भर गए थे ।
विकास के दिल ने पिघल जाना चाहा परंतु उस पर काबू करके वह बोला
" नाराज क्यों होती हो पूजा! मैंने तो पहले ही कहा था कि विकास ने अपना जीवन भारत मां को अर्पण कर दिया है । तुम्हारे लिए मेरे पास कुछ भी नहीं ।"
विकास के शब्द विष-तीरं की भाति पूजा के सीने को वेध गऐ परंतु फिर भी साहस करके वह बोली-" ये क्यो भूल जाते हो… विकास कि किसी ने अपना जीवन तुम्हें अर्पण कर दिया है?”
“पूजा! तुम पत्थर से सिर टकरा रही हो ।"
-"पहले भी कई बार सुन चुकी हूं ।" पूजा ने स्पष्ट स्वर में कहा---" तुम पत्थर सही विकास, तुम बेदर्द सही, लेकिन प्यार करने वालों को यही मंजूर होगा कि पत्थर के सनम से टकरा-टकराकर अपना अंत कर ले ।”
विकास निरूत्तर-सा हो गया ।
पूजा की दीवानगी के सामने वह कुछ बोल न सका ।
"तुम मुझसे चाहती क्या हो?" उसने विषय को थ्रोड़ा मोड़ दिया ।
" केवल तुम्हारा साथ है !"
"केवल साथ?" विकास ने कहा-----" या अपने प्रति मुझसे भी वही भावना जो मेरे प्रति तुम्हारी है?”
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
- kunal
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
" मैंने तुम्हें समझ लिया है विकास, लेकिन तुम पूजा को नहीं समझे । तुम समझे कि पूजा प्यार के लिए गिडगिडाएगी-नही । अगर पैने अपने प्यार के बदले में प्यार मांगा तो मैरे निस्वार्थ प्रेम का महत्व ही क्या? तुम नहीं जानते विकास, मैं तुमसे प्यार करती हूं-तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं । तुम पत्थर हो, सचमुच पत्थर हो। प्यार क्या होता है क्या समझोगे ? तुम तो यह भी नही सोच सकते कि उस समय किसी के दिल पर क्या बीती होगी, जब एक
जल्लाद जल्लाद अपने चरणो में चढे फूल को अपने गुरु के पास सर्जिबेण्टा में छोड़ गया था । तुम्हें तो यह भी नहीं पता कि तुमसे दूर मैं किस हाल में रही? तुम तो यह भी नहीं जानते कि पूजा तुम्हारे लिए कितनी बेचैन थी? . .तुम तो बेदर्द हो ना पत्थर दिल हो! नहीं जानते ! अगर जानते होते तो मुझे यहां. इस तरह कैद ऩ करते ।" कहते-कहते पूजा सिसक पडी । "
“पूजा!” विकास ने कुछ कहना चाह्य मगर` पूजा कहती ही गई ।
"मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? ,मैं तो तुम्हारे रास्ते का रोडा भी नहीं थी । तुम्हें पाने के लिए तुम्हारे कंघे…से कंधा मिलाती, मै आगे बड्री थी । फिर फिर तुमने अपने विरोधियों के साथ यहाँ कैद क्यो है किया? ........क्यों बिकास? क्या जुर्म था मेरा? क्या यह कि मै तुमसे प्यार करती हू? तुम मुझें साथ रखो विकास! तुम्हारी कसम, कभी तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगी' । तुम पर मैं अपनी जान न्यौछावर कर दूगीं । तुम मुझे साथ रखो ।” कहती-कहती पूजा बुरी तरह रो पडी ।
विकासं स्वयं को संभाल न सका । उसे पूजा के त्याग याद आ गए---यह वो मासूम लडकी है जिसने यह जानते ही कि उसका भाई देश का गद्दार है --उसे मार दिया । उसके साथ रही, उंसकी सहायता की और बदले में उसने इस मासूम को क्या दिया? केवल दुख, जुदाई.....! विकास जैसे लड़के का दिल भी कराह उठा ।
उसने सोचा---अपने और बलिदानों के बदले उससे क्या मांग रही है----केवल उसका साथ!
अगर वह पूजा को ठुकरा देता है तो अन्याय होगा । नारी का सबसे महान रूप तभी सामने आताहै, जव वह किसी को अपने दिल का देवता मानकर त्याग करने लगती है । नारी बलिदान की मुर्ती है और नारी का यही रूप सबसे महान है । फिर. . फिर वह पूजा को क्यों ठुकराए? अपने ही तर्को से विकास पराजित होगया।"
वह स्वयं को न संभाल सका पूजा के दोनों कंधों पर हाथ रखकर प्यार से बोला - "रोओ मत पूजा---मुझे माफ कर दो?"
चौककर पूजा ने अपना मुखडा ऊपर उठाया--विकास को देखा ।
उसे विकास से इस प्रकार के शब्दों की उम्मीद नहीं थी । आंसुओं से भीगी आंखों से वह एक पल विकास को देखती रही, फिर धीरे से बोती------" साथ रखोगे न-अकेली तो नहीँ छोडोगे ?"
" नही , अकेली नहीं छोडूंगा । तुम मेरे साथ रहोगी ।"
" विकास ..!"-भावावेंश पूजा विकास से लिपट गई ।
विकास भी विरोध न कर सका । उसने पूजा को नन्ही-मुनी-सी गुडिया की तरह बांहों में समेट लिया । "
पूजा विकास के सीने में मुंह छुपाकर रो पडी ।
बिकास को पता नहीं थाकि ऐसे अवसरों पर कहा क्या जाता है, इसलिए वह कुछ बोला नहीं, केवल पूजा के बालों पर प्यार-भरा हाथ फेरता रहा । लगभग पंद्रह मिनट पश्चात सामान्य अवस्था में आया ।
तब विकास बोला ।
" मेरे साथथ आओ, तुम्हें एक खेल दिखाता हूं ।"
पूजा चुपचाप उसके साथ चल दी । विकास की अनुपस्थिति में वह विकास से कहने के लिए जाने क्या-क्या सोचती थी लेकिन सामने आते ही उसके मुंह से शब्द भी नहीं फूटा ।
अपनी ही भावनाओं में गुम यह विकास साथ बाहर आ गई । विकास उसे एक हांल में ले गया ।
पूजा ने देखा------हाॅल में एक तरफ़ सुभ्रांत उसके तीनों सहयोगी बैठे थे । उनके बीच सामने एक पत्थर पर सूट पहंने धनुषटंकार बैठा था । बड़े आराम से उसने पैर फैला रखे थे । होंठों के बीच एक मोटा सिंगार दबा हुआ था और दाएं हाथ में एक रिवाॅल्बर था ।
बड़ा अजीब सा दृश्य था ।
धनुषटंकार के सामने बैठे चारों आदमियों के सिरों पर चार पत्थर रखे थे । पत्थर हल्के-से थे ।
सुभ्रांत और उसके सहयोगियों के चेहरे पीले पडे हुए थे । पूजा और विकास की तरफ धनुषटंकार की पीठ थी ।
" यह क्या नाटकबाजी है धनुषटंकार ।।" पीछे से विकास ने कहा ।
पलक झपकते ही एक जंप के साथ बंदर घूम गया । बिकास के साथ पूजा को देखकर उसकी आंखो में एक चमक आई और इससे पूर्व कि कोई कुछ समझ सके, धनुषटंकार ने होंठों से सिगार गिरा दिया
और झपटकर न केवल पूजा के गले में बाहे डालकर उसकी छाती झूल गया बल्कि दनादन पांच-सात चुबन् उसके गाल पर अंकित कर दिए।
पूजा झेंपकर रहे गई ।
विकास मुस्कराता हुआ बोला----" मेरी बात का जंवाब दो” ।
धनुषटंकार ने डायरी पर यूं लिखा…" गुरु, अब मेरै निशाने, का कमाल देखना !"
इधर विकास ने पढ़ा और उधर धनुष्टंकार ने पुन: सिगार होंठों में दबाकर एक कश लिया ।
उसके दाएं हाथ में रिवॉत्वर था उन चारों के ठीक सामने दो पैरों पर खड़े होकर उसने मुंह से धुएं का एकं छला निकाला ।
अभी तक विकास भी समझ नहीं आ पाया था कि धनुषटंकार क्या दिखाना चाहता है?
उस समय अन्य किसी की तो बात ही दूर,खुद विकास चमत्कृत रह गया, जब धनुषटंकार ने रिवॉल्वर का ट्रेगर दबाया ।
कमाल यह था कि गोली धुएं के छल्ले के बीच से निकली और सीधी सुभ्रांत के सिर पर रखे पत्थर से टकराई ।
सनसनाता हुआ पत्थर पीछे जा गिरा । इससे भी अधिक कमाल यह था कि धुएं का वह छल्ला ब्लाऊ केवल धीरे से कंपकंपाकर रह गया, टूटा नहीं ।
उस समय तो विकास हैरान गया , ज़ब उसी छल्ले मे से तीन गोलिया बिना उसे तोड़े निकली सहयोगियों के सिरों पर रखे पत्थर दूर जा गिरे । वास्तव में धनुषटंकार की यह कला हैरत अंगेज थी ।
इस समय वह बड़े आराम से रिवॉल्वर की नाल से निकलने वाले धुएं में फूक मारकर उसे उडा रहा था ।
पूजा भी अवाक-सी धनुषटंकार को देखती रह गई ।
“अब तुम्हें एक कमाल मैं दिखाता हूं धनुषटंकार ।" कहते हुए विकास ने अपना रिवाल्वर निकाल लिया ।
पूजा कांप उठी । उसे लगा कि एक वार फिर उसे विकास का जल्लादी रूप देखना पडेगा ।
विकास ने पूजा की और देखा तक नही और रिवाॅल्वर सीधा करके बेहिचक फायर कर दिया । पलक झपकते ही सुभ्रांत के एक सहयोगी भारद्वाज का भेजा बाहर आ गया ।
गोली उसकी कापटी पर लगी थी । सिर, तरबूज की तरह फट गया था ।
कुछ समझना तो दूर, वह चीख तक न सका और जीवन से रूठकर मौत से जा, मिला । "
सब…अवाक्-से रह गए ।
सुभ्रांत तो अपने इस सहयोगी की मौत पर ठगा-सा रह गया ।
एक पल तक बह बोल ही नहीं सका, फिर एकदम पागलों की भांति चीख पड़ा------" ये तुमने क्या किया? वो ..वो मेरा सहयोगी था । में तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा !" कहने के साथ ही बह विकास पर झयटा लेकिन...।"
विकास ने तेजी के साथ अपना स्थान छोड दिया, सुभ्रांत पत्थरों पर जाकर गिरा । पीछे से विकास बोला ।
" होश में रहो प्रोफेसर, दिमाग से सोचो ।" इस समय विकस का स्वर बड़ा कठोर हो गया था…..."सोचो कि चारों से से. मैंने भारद्वाज को ही की चुना? मेरी गोली का निशाना बही क्यो वना!"
“तुम. . .तुम पागल हो?" सुभ्रांत चीख पड़ा-तुम पर हत्या करने का जुनुन सवार है । एक दिन तुम खुद को भी अपनी, गोली-का निशांना वना लोगे । वह मेरा महत्वपूर्ण सहयोगी था !"
"तुम गलत सोच रहे हो प्रोफेसर?" विकास ने कहा-" विकास पर कोई जुनुन सवार नहीं है । हां बचपन से ही देश के गद्दारों को सजा देने,का जुनून जरूर सवार है । माना कि वह तुम्हारे कार्य में एक अच्छा सहयोगी था लेकिन वो देश का गद्दाऱ था ।"
"'यहं गलत है.....झूठा आरोप है ।" सुभ्रांत चीख पड़ा ।--"खुद की गलती छुपाने के लिए तुम झूठ बक रहे हो !"
“झूठा जारोप है तो जरा सोचो, जिस रियाल्बो को तुम इतने गुप्त ढंग से बना रहे थे, वह प्रिंसेज जैक्सन ने कैसे बना लिया? तुम्हारे रियाब्लो का फार्मूला कहाँ से लीक हुआ ?"
सुभ्रांत के दिमाग को एक झटका-सा लगा, वह बोला---"मतलब?"
" मतलब भारद्वाज तुम्हारा सहयोगी होने के साथ साथ देश का गद्दार भी था । ये प्रिसेज जैक्सन का एजेंट था और तुम्हारे कार्यों की रिपोर्ट मर्डरलेड पहुंचाता था !"
अविश्वास भरे स्वर में सुभ्रांत ने धीमे स्वर में कहा.----.“तुम्हें कैसे पता लगा कि भारद्वाज गद्दार है?”
"रियाब्लो में मैंने इसे जैक्सन से बातें करते हुए देख लिया था !" उसकर यह जवाब सुनकर सुभ्रांत ने भारद्वाज की पडी हुई लाश को देखा, उसकी आंखों अब भी अविश्वास था ।।
जल्लाद जल्लाद अपने चरणो में चढे फूल को अपने गुरु के पास सर्जिबेण्टा में छोड़ गया था । तुम्हें तो यह भी नहीं पता कि तुमसे दूर मैं किस हाल में रही? तुम तो यह भी नहीं जानते कि पूजा तुम्हारे लिए कितनी बेचैन थी? . .तुम तो बेदर्द हो ना पत्थर दिल हो! नहीं जानते ! अगर जानते होते तो मुझे यहां. इस तरह कैद ऩ करते ।" कहते-कहते पूजा सिसक पडी । "
“पूजा!” विकास ने कुछ कहना चाह्य मगर` पूजा कहती ही गई ।
"मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? ,मैं तो तुम्हारे रास्ते का रोडा भी नहीं थी । तुम्हें पाने के लिए तुम्हारे कंघे…से कंधा मिलाती, मै आगे बड्री थी । फिर फिर तुमने अपने विरोधियों के साथ यहाँ कैद क्यो है किया? ........क्यों बिकास? क्या जुर्म था मेरा? क्या यह कि मै तुमसे प्यार करती हू? तुम मुझें साथ रखो विकास! तुम्हारी कसम, कभी तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगी' । तुम पर मैं अपनी जान न्यौछावर कर दूगीं । तुम मुझे साथ रखो ।” कहती-कहती पूजा बुरी तरह रो पडी ।
विकासं स्वयं को संभाल न सका । उसे पूजा के त्याग याद आ गए---यह वो मासूम लडकी है जिसने यह जानते ही कि उसका भाई देश का गद्दार है --उसे मार दिया । उसके साथ रही, उंसकी सहायता की और बदले में उसने इस मासूम को क्या दिया? केवल दुख, जुदाई.....! विकास जैसे लड़के का दिल भी कराह उठा ।
उसने सोचा---अपने और बलिदानों के बदले उससे क्या मांग रही है----केवल उसका साथ!
अगर वह पूजा को ठुकरा देता है तो अन्याय होगा । नारी का सबसे महान रूप तभी सामने आताहै, जव वह किसी को अपने दिल का देवता मानकर त्याग करने लगती है । नारी बलिदान की मुर्ती है और नारी का यही रूप सबसे महान है । फिर. . फिर वह पूजा को क्यों ठुकराए? अपने ही तर्को से विकास पराजित होगया।"
वह स्वयं को न संभाल सका पूजा के दोनों कंधों पर हाथ रखकर प्यार से बोला - "रोओ मत पूजा---मुझे माफ कर दो?"
चौककर पूजा ने अपना मुखडा ऊपर उठाया--विकास को देखा ।
उसे विकास से इस प्रकार के शब्दों की उम्मीद नहीं थी । आंसुओं से भीगी आंखों से वह एक पल विकास को देखती रही, फिर धीरे से बोती------" साथ रखोगे न-अकेली तो नहीँ छोडोगे ?"
" नही , अकेली नहीं छोडूंगा । तुम मेरे साथ रहोगी ।"
" विकास ..!"-भावावेंश पूजा विकास से लिपट गई ।
विकास भी विरोध न कर सका । उसने पूजा को नन्ही-मुनी-सी गुडिया की तरह बांहों में समेट लिया । "
पूजा विकास के सीने में मुंह छुपाकर रो पडी ।
बिकास को पता नहीं थाकि ऐसे अवसरों पर कहा क्या जाता है, इसलिए वह कुछ बोला नहीं, केवल पूजा के बालों पर प्यार-भरा हाथ फेरता रहा । लगभग पंद्रह मिनट पश्चात सामान्य अवस्था में आया ।
तब विकास बोला ।
" मेरे साथथ आओ, तुम्हें एक खेल दिखाता हूं ।"
पूजा चुपचाप उसके साथ चल दी । विकास की अनुपस्थिति में वह विकास से कहने के लिए जाने क्या-क्या सोचती थी लेकिन सामने आते ही उसके मुंह से शब्द भी नहीं फूटा ।
अपनी ही भावनाओं में गुम यह विकास साथ बाहर आ गई । विकास उसे एक हांल में ले गया ।
पूजा ने देखा------हाॅल में एक तरफ़ सुभ्रांत उसके तीनों सहयोगी बैठे थे । उनके बीच सामने एक पत्थर पर सूट पहंने धनुषटंकार बैठा था । बड़े आराम से उसने पैर फैला रखे थे । होंठों के बीच एक मोटा सिंगार दबा हुआ था और दाएं हाथ में एक रिवाॅल्बर था ।
बड़ा अजीब सा दृश्य था ।
धनुषटंकार के सामने बैठे चारों आदमियों के सिरों पर चार पत्थर रखे थे । पत्थर हल्के-से थे ।
सुभ्रांत और उसके सहयोगियों के चेहरे पीले पडे हुए थे । पूजा और विकास की तरफ धनुषटंकार की पीठ थी ।
" यह क्या नाटकबाजी है धनुषटंकार ।।" पीछे से विकास ने कहा ।
पलक झपकते ही एक जंप के साथ बंदर घूम गया । बिकास के साथ पूजा को देखकर उसकी आंखो में एक चमक आई और इससे पूर्व कि कोई कुछ समझ सके, धनुषटंकार ने होंठों से सिगार गिरा दिया
और झपटकर न केवल पूजा के गले में बाहे डालकर उसकी छाती झूल गया बल्कि दनादन पांच-सात चुबन् उसके गाल पर अंकित कर दिए।
पूजा झेंपकर रहे गई ।
विकास मुस्कराता हुआ बोला----" मेरी बात का जंवाब दो” ।
धनुषटंकार ने डायरी पर यूं लिखा…" गुरु, अब मेरै निशाने, का कमाल देखना !"
इधर विकास ने पढ़ा और उधर धनुष्टंकार ने पुन: सिगार होंठों में दबाकर एक कश लिया ।
उसके दाएं हाथ में रिवॉत्वर था उन चारों के ठीक सामने दो पैरों पर खड़े होकर उसने मुंह से धुएं का एकं छला निकाला ।
अभी तक विकास भी समझ नहीं आ पाया था कि धनुषटंकार क्या दिखाना चाहता है?
उस समय अन्य किसी की तो बात ही दूर,खुद विकास चमत्कृत रह गया, जब धनुषटंकार ने रिवॉल्वर का ट्रेगर दबाया ।
कमाल यह था कि गोली धुएं के छल्ले के बीच से निकली और सीधी सुभ्रांत के सिर पर रखे पत्थर से टकराई ।
सनसनाता हुआ पत्थर पीछे जा गिरा । इससे भी अधिक कमाल यह था कि धुएं का वह छल्ला ब्लाऊ केवल धीरे से कंपकंपाकर रह गया, टूटा नहीं ।
उस समय तो विकास हैरान गया , ज़ब उसी छल्ले मे से तीन गोलिया बिना उसे तोड़े निकली सहयोगियों के सिरों पर रखे पत्थर दूर जा गिरे । वास्तव में धनुषटंकार की यह कला हैरत अंगेज थी ।
इस समय वह बड़े आराम से रिवॉल्वर की नाल से निकलने वाले धुएं में फूक मारकर उसे उडा रहा था ।
पूजा भी अवाक-सी धनुषटंकार को देखती रह गई ।
“अब तुम्हें एक कमाल मैं दिखाता हूं धनुषटंकार ।" कहते हुए विकास ने अपना रिवाल्वर निकाल लिया ।
पूजा कांप उठी । उसे लगा कि एक वार फिर उसे विकास का जल्लादी रूप देखना पडेगा ।
विकास ने पूजा की और देखा तक नही और रिवाॅल्वर सीधा करके बेहिचक फायर कर दिया । पलक झपकते ही सुभ्रांत के एक सहयोगी भारद्वाज का भेजा बाहर आ गया ।
गोली उसकी कापटी पर लगी थी । सिर, तरबूज की तरह फट गया था ।
कुछ समझना तो दूर, वह चीख तक न सका और जीवन से रूठकर मौत से जा, मिला । "
सब…अवाक्-से रह गए ।
सुभ्रांत तो अपने इस सहयोगी की मौत पर ठगा-सा रह गया ।
एक पल तक बह बोल ही नहीं सका, फिर एकदम पागलों की भांति चीख पड़ा------" ये तुमने क्या किया? वो ..वो मेरा सहयोगी था । में तुम्हें जिंदा नहीं छोडूंगा !" कहने के साथ ही बह विकास पर झयटा लेकिन...।"
विकास ने तेजी के साथ अपना स्थान छोड दिया, सुभ्रांत पत्थरों पर जाकर गिरा । पीछे से विकास बोला ।
" होश में रहो प्रोफेसर, दिमाग से सोचो ।" इस समय विकस का स्वर बड़ा कठोर हो गया था…..."सोचो कि चारों से से. मैंने भारद्वाज को ही की चुना? मेरी गोली का निशाना बही क्यो वना!"
“तुम. . .तुम पागल हो?" सुभ्रांत चीख पड़ा-तुम पर हत्या करने का जुनुन सवार है । एक दिन तुम खुद को भी अपनी, गोली-का निशांना वना लोगे । वह मेरा महत्वपूर्ण सहयोगी था !"
"तुम गलत सोच रहे हो प्रोफेसर?" विकास ने कहा-" विकास पर कोई जुनुन सवार नहीं है । हां बचपन से ही देश के गद्दारों को सजा देने,का जुनून जरूर सवार है । माना कि वह तुम्हारे कार्य में एक अच्छा सहयोगी था लेकिन वो देश का गद्दाऱ था ।"
"'यहं गलत है.....झूठा आरोप है ।" सुभ्रांत चीख पड़ा ।--"खुद की गलती छुपाने के लिए तुम झूठ बक रहे हो !"
“झूठा जारोप है तो जरा सोचो, जिस रियाल्बो को तुम इतने गुप्त ढंग से बना रहे थे, वह प्रिंसेज जैक्सन ने कैसे बना लिया? तुम्हारे रियाब्लो का फार्मूला कहाँ से लीक हुआ ?"
सुभ्रांत के दिमाग को एक झटका-सा लगा, वह बोला---"मतलब?"
" मतलब भारद्वाज तुम्हारा सहयोगी होने के साथ साथ देश का गद्दार भी था । ये प्रिसेज जैक्सन का एजेंट था और तुम्हारे कार्यों की रिपोर्ट मर्डरलेड पहुंचाता था !"
अविश्वास भरे स्वर में सुभ्रांत ने धीमे स्वर में कहा.----.“तुम्हें कैसे पता लगा कि भारद्वाज गद्दार है?”
"रियाब्लो में मैंने इसे जैक्सन से बातें करते हुए देख लिया था !" उसकर यह जवाब सुनकर सुभ्रांत ने भारद्वाज की पडी हुई लाश को देखा, उसकी आंखों अब भी अविश्वास था ।।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!
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Re: बिनाश दूत बिकास-विकास की वापसी
पूजा सोच रही थी-विकास तो आदमी को आदमी न समझकर गाजर-मूली समझता है ।
" लेकिन इस तरह तुमने इसे एकदम इतनी भयानक मौत......." सुभ्रांत ने कछ कहना चाहां ।
"मेरे पास इस भी भयानक मौत है प्रोफेसर! " गुर्रा उठा विकास-"जिस दिन वह देख लोगे कि देश के गद्दारों को विकास क्या सजा देता है, तुम्हाऱी रूह फना हो जाएगी !"
"वेटे धनुषटंकार इस लाश को छोडकर सबको हैडक्वार्टर ले चलो । इन्हें कमाल दिखाएंगे ।"
विकास ने आदेश दिया और फिर पूजा को नम्र स्वर में बोला-" आओं पूजा !"
यंत्रचालित-सी पूजा उसके साथ चल दी ।
उस कक्ष मे सभी उपस्थित थे ।
विकास,पूजा , धनुषटंकार टुम्बकटू एक तरफ बैठे थे ।
विजय,अलफासे, अशरफ, सुभ्रांत और उसके सहयोगियों को एक स्क्रीन के सामने बैठा दिया गया था ।
उनके सामने सशस्त्र उल्टे लोग खड़े थे जिन्हें खुद विकास ने आदेश दिए थे कि अगर उनमे से कोई भी गलत हरकत करे तो उसे तुरंत ईश्वरपुरी का टिकट थमा दिया जाए ।
प्रिंसेज जैक्सन स्कीन के समीप एक स्टूल पर बैठी थी । धनुषटंक्रार टुम्बकटू अपनी अपनी सिगरेट फूंक रहे थे ।
यह दूसरी वात है अकेला धनुषटकार मुह से धुएं के छल्ले बना रहाथा । कक्ष मे अभी तक सन्नाटा था।
“क्यों प्यारे दिलजले सबको यहां एकत्र करके किसी की सगाई चढानी है?” सन्नाटा तोडने का श्रेय विजय ने पाया ।
"बच्चा गुरू लोगों को अपनी सफलता का छोटा-सा नमूना दिखाना चाहता है ।" बिकास ने कहा-----"अमेरिका के लोगों को म्याऊ म्याऊं करते हुए तो आप लोगों ने देख ही लिया है । अब जरा यह भी देखो गुरु कि उनका दम किस तरह निकलता है । यानी मेरा ,प्रतिशोध......!"
"तुम कहना क्या चाहते हो?" प्रश्न अलफासे ने किया । "
"मेरी क्या बिसात है गुरु कि आप लोगों के सामने कुछ कहूं । लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि आप लोगों को यह जानकर खुशी होगी कि धनुषटंकार अंकल के साथ-साथ अव जैक्सन आटी ने भी मुझे सहयोग देना स्वीकार कर लिया है ।"
" ये सब अपराधी है बेटे छग्गन लाल, तुम्हें बर्बाद कर देंगे !" विजय ने कहा ।
"आप भूल रहे हैं गुरु कि आपका बच्चा खुद एक अपराधी है” । विकास ने कहा------"अब तो वो करूगां गुरु जो सोचा है । आप मेरे गुरु है लेकिन आपने मेरा साथ छोड़ दिया । अपने बच्चे के दिल से पूछो विजय गुरू ,आपकी बेवफाई ने मुझे पागल कर दिया और तुम भी सुनो अंलफासे गुरु, कान खोल कर सुनो! आपको कितने दिल से पुकारा था । मुझें विश्वास था गुरु कि मेरे अभियान में तुम मेरा साथ दोगे, लेकिन आपने भी अपने बच्चे के दिल को ठेस पहुचाई । आप भी मुझे नहीं समझे गुरु! आपने सोचा कि अगर आप साथ नहीं देगे तो विकास का अभियान पूरा नहीं होगा । लेकिन नहीं गुरू सुनो! दोनो सुनो, विकास डंके की चोट पर कहता है कि वह भारत से भी आई ए. का जाल हटाकर रहेगा वरना अमेरिका को तबाह कर देगा । आपने गद्दारी कर दी तो क्या हुआ?
लंवू अकंल, जैक्सन आंटी धनुषटंकार मेरे साथ है । आपकी तो मैं इज्जत करता हूं गुर्रु मानता हूं तब भी आपने अमेरिका से टकराने के लिए न केवल अकेला छोड़ दिया बल्कि रास्ते मे आप रोड़ा भी अटकाते रहे । लेकिन इसे देखो गुरु, आप जानते है, इसका नाम पूजा है । यह क्यो है मेरे साथ? क्योंकि इसने बिशन मल्होत्रा जैसे भाई का खून कर दिया? क्यों गुरु? क्या स्वार्थ था इसका? वफा सीखनी है तो इससे सीखे । मैरे कदम , गलत् हो या ठीक,यह मेरे साथ है । आप लोग दूर रहकर हमेशा मुझें हराने की सोचते रहे । हमेशा मेरा बुरा चाहा न ।"
“वाह बेटे, ।" विजय बोला…"गलती तुम्हारी नहीं, लड़की चीज ही ऐसी होती है । दो दिन से मिली है और गुरू लोगों से ज्यादा प्यारी हो गई अब तुम्हारा अंत निश्चित है विकास याद करो, तुमसे एक बार कहा था कि लड़की के चक्कर में न पड़ना और जिस दिन पड़ गए, यह तुम्हारी जिंदगी का अंतिम दिन होगा ।"
"मुझे अंत की परवाहं नहीं है!"
"पूजा ने तुम पर डोरे डाले बेटे और तुम डोरों मे र्फस गए !" विजय ने कहा-" तुम्हारा अंतिम समय आ गया है । सुनो विकास, सुनो आज तुम्हारा गुरु कहता है कि पूजा ही तुम्हारे अंत का करण होगी !"
" आज नहीं तो कल अंत हो सकता है गुरू !" विकास ने कहा…“लेकिन यह दावा है कि मेरा अंत अमेरिका के अंत से पहले नहीं होगा । खेर, लगता है मैं विषय से भटक गया हूं। मेने आप लोगों को एक छोटा-सा खेल दिखाने के लिए याद किया था !"
“क्या दिखाना चाहते हो?" प्रश्न अलफांसे ने किया ।
"आंटी स्क्रीन ओन कर दो ।" विकास ने जैक्सन को आदेश दिया ।
जैक्सन ने विना कोई शब्द कहे स्क्रीन आन कर दी । कुछ देर तक गड़बड्री सी होती रही, फिर उस पर एक शहर की साफ-सुथरी सड़क का स्पष्ट दृश्य उंभर आया । सड़क पर लोगों का आवागमन था ।
सबकी दृष्टि स्कीन पर ही जमी हुई थी ।
"जहा तक मेरा अनुमान है गुरु, आप लोग इसे शहर को पहचान गए होंगे !" विकास बोला-------" अगर नहीं पहचाने तो मै बताऊं! यह अमेरिका का एक छोटा-सा नगर र्कोंसर है । तक्लीफ तो आपको होगी गुरू ।" विकासं ने कहा…"ज़रा देखते तो जाओ ।" कहने के साथ ही विकास ने हाथ फैला दिया ।
धनुषटंकार ने माइक जैसा एक यंत्र उसे थमा दिया । उसके समीप मुंह ले जाकर विकास बोला-“हैलो प्रोफेसंर तुंग तुम अपनी स्क्रीन पर कोसर देख रहे हो न?”
"हां महामहिम! " दूसरी ओर से तुंगलामा की आवाज आई---" बखूबी देख रहा हूं !"
"सब काम तैयार है?" विकास ने प्रश्न किया ।
"केवल आपके आदेश की देर है महामहिम । , दुसरी ओर से तुंगलामा बोला-----" आप आदेश दे तो कोंसर पंद्रह मिनट मे कब्रिस्तान बन सकता है । क्या आपके सारे मेहमान वहां पहुच गए है महामहिम?"
"सब आ गए हैं तुंग, तुम अपना काम शुरू करो ।"
"ओके महामहिम ।" दूसरी ओर से तुंगलामा का सम्मानित स्वर उभरा ।।
इसके बाद विकास ने माइक वापस धनुष्टंकार को थमा दिया । विजय इत्यादि की ओर उन्मुख होकर बोला ।
" अब जरा आप स्क्रीन पर होने वाला तमाशा ध्यान से देंखें !" कहते समय उसने दृष्टि विजय पर जमा दी और कठोर स्वर में' गुर्राया-" एक बात कान खोलकर सुन लो गुरु. वह यब कि स्क्रीन के दृश्य को देखकर किसी प्रकार की गलत हरकते करने की चेष्टा मत करना वरना वह आपकी असफल चेष्टा होगी क्यों कि आपके चारों और खड़े हुए गुलामो को आपके बच्चे के आदेश प्राप्त हैं कि आपकी किसी भी गलत हरकत पर आपातकालीन मोर्चा खडा कर दे ।"
विजय ने एक बार विकास की घूरा, फिर इस प्रकार मुस्कराया जैसे कोई बुजुर्ग किसी बच्चे की बचकानी हरकत पर मुस्कराएं ।
बोला----"तुमसे नालायक शिष्य सारी दुनिया में नहीं होगा !"
“घन्यवाद ॥" विकास ने भी की आराम से `मुस्कराकर कहा-" अब आप लोग ध्यान से स्क्रीन पर देखे ।"
बिजय, अलफासे इत्यादि सबकी दृष्टि स्क्रीन पर जम गई उनके देखते-ही-देखते स्क्रीन के दृश्य में परिवर्तन होने लगा ।
जहां स्कीन पर दिन जैसा प्रकाश था, वहां धीरे धीरे अंधेरा होने लगा । देखते-हि-देखते पूरे शहर मे अंधेरा छा गया । लाइटों से विहीन शहर स्क्रीन पर चमकने लगा । स्क्रीन पऱ वे बौखलाए हुए भयभीत और आतंकित लोगों को स्पष्ट देखते रहे थे । शहर में भगदड-सी गई थी । सबकी दुष्टि प्रत्येक पल स्क्रीन पर जमी हुई थी । पूजा का दिल बड़ी तेजी से धडक रहा था ।
. …"स्क्रीन पर नजर आने वाले इसलिए घबरा रहे है गुरु क्योकि उन्हें पता है कि क्या होने वाला है लेकिन क्या करें? जो होने वाला है, उसे वे तो क्या, पूरी अमेरिकन सरकार भी नहीं रोक सकती पूरा विश्व, भी नहीं रोक सकता ।"
" तुम कहना क्या चाहते हो विकास?" अलफांसे ने गंभीर स्वर में प्रश्न किया । .
" आप देख रहे हैं कि केवल दस मिनट मे वहां रात हो गई है ।" विकास ने कहा----- "केवल पाच मिनट और देखिए फिर आपको खुद ही मालूम हो जाएगा कि मैं क्या करना चाहता हूं !"
…"मुझे लगता तुम पागल हो गए हो ।" अलफांसे गुर्राया ।
"आंटी!" विकास जैक्सन से बोला------" जरा गुरु लोगों को दिखा दो कि अचानक दस मिनट में अमेरिका के इस शहर में यह रात अचानक क्यों हो गई ।"
हालांकि जैक्सन के दिमाग मेँ एक तीव्र तूफान था । वह ऐसा अवसर तलाश कर रही थी, जब वह विकास का तख्ता पलट सके लेकिन इस समय तो वह विवश थी । उसने एक बटन दबा दिया ।
स्कीन पर उपस्थित दृश्य भी घूमता चला गया स्कीन पर घने काले रंग का धुआं नजर आया ।
यह धुआं एकत्र होकर बादलों जैसा लग रहा था ।
" लेकिन इस तरह तुमने इसे एकदम इतनी भयानक मौत......." सुभ्रांत ने कछ कहना चाहां ।
"मेरे पास इस भी भयानक मौत है प्रोफेसर! " गुर्रा उठा विकास-"जिस दिन वह देख लोगे कि देश के गद्दारों को विकास क्या सजा देता है, तुम्हाऱी रूह फना हो जाएगी !"
"वेटे धनुषटंकार इस लाश को छोडकर सबको हैडक्वार्टर ले चलो । इन्हें कमाल दिखाएंगे ।"
विकास ने आदेश दिया और फिर पूजा को नम्र स्वर में बोला-" आओं पूजा !"
यंत्रचालित-सी पूजा उसके साथ चल दी ।
उस कक्ष मे सभी उपस्थित थे ।
विकास,पूजा , धनुषटंकार टुम्बकटू एक तरफ बैठे थे ।
विजय,अलफासे, अशरफ, सुभ्रांत और उसके सहयोगियों को एक स्क्रीन के सामने बैठा दिया गया था ।
उनके सामने सशस्त्र उल्टे लोग खड़े थे जिन्हें खुद विकास ने आदेश दिए थे कि अगर उनमे से कोई भी गलत हरकत करे तो उसे तुरंत ईश्वरपुरी का टिकट थमा दिया जाए ।
प्रिंसेज जैक्सन स्कीन के समीप एक स्टूल पर बैठी थी । धनुषटंक्रार टुम्बकटू अपनी अपनी सिगरेट फूंक रहे थे ।
यह दूसरी वात है अकेला धनुषटकार मुह से धुएं के छल्ले बना रहाथा । कक्ष मे अभी तक सन्नाटा था।
“क्यों प्यारे दिलजले सबको यहां एकत्र करके किसी की सगाई चढानी है?” सन्नाटा तोडने का श्रेय विजय ने पाया ।
"बच्चा गुरू लोगों को अपनी सफलता का छोटा-सा नमूना दिखाना चाहता है ।" बिकास ने कहा-----"अमेरिका के लोगों को म्याऊ म्याऊं करते हुए तो आप लोगों ने देख ही लिया है । अब जरा यह भी देखो गुरु कि उनका दम किस तरह निकलता है । यानी मेरा ,प्रतिशोध......!"
"तुम कहना क्या चाहते हो?" प्रश्न अलफासे ने किया । "
"मेरी क्या बिसात है गुरु कि आप लोगों के सामने कुछ कहूं । लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि आप लोगों को यह जानकर खुशी होगी कि धनुषटंकार अंकल के साथ-साथ अव जैक्सन आटी ने भी मुझे सहयोग देना स्वीकार कर लिया है ।"
" ये सब अपराधी है बेटे छग्गन लाल, तुम्हें बर्बाद कर देंगे !" विजय ने कहा ।
"आप भूल रहे हैं गुरु कि आपका बच्चा खुद एक अपराधी है” । विकास ने कहा------"अब तो वो करूगां गुरु जो सोचा है । आप मेरे गुरु है लेकिन आपने मेरा साथ छोड़ दिया । अपने बच्चे के दिल से पूछो विजय गुरू ,आपकी बेवफाई ने मुझे पागल कर दिया और तुम भी सुनो अंलफासे गुरु, कान खोल कर सुनो! आपको कितने दिल से पुकारा था । मुझें विश्वास था गुरु कि मेरे अभियान में तुम मेरा साथ दोगे, लेकिन आपने भी अपने बच्चे के दिल को ठेस पहुचाई । आप भी मुझे नहीं समझे गुरु! आपने सोचा कि अगर आप साथ नहीं देगे तो विकास का अभियान पूरा नहीं होगा । लेकिन नहीं गुरू सुनो! दोनो सुनो, विकास डंके की चोट पर कहता है कि वह भारत से भी आई ए. का जाल हटाकर रहेगा वरना अमेरिका को तबाह कर देगा । आपने गद्दारी कर दी तो क्या हुआ?
लंवू अकंल, जैक्सन आंटी धनुषटंकार मेरे साथ है । आपकी तो मैं इज्जत करता हूं गुर्रु मानता हूं तब भी आपने अमेरिका से टकराने के लिए न केवल अकेला छोड़ दिया बल्कि रास्ते मे आप रोड़ा भी अटकाते रहे । लेकिन इसे देखो गुरु, आप जानते है, इसका नाम पूजा है । यह क्यो है मेरे साथ? क्योंकि इसने बिशन मल्होत्रा जैसे भाई का खून कर दिया? क्यों गुरु? क्या स्वार्थ था इसका? वफा सीखनी है तो इससे सीखे । मैरे कदम , गलत् हो या ठीक,यह मेरे साथ है । आप लोग दूर रहकर हमेशा मुझें हराने की सोचते रहे । हमेशा मेरा बुरा चाहा न ।"
“वाह बेटे, ।" विजय बोला…"गलती तुम्हारी नहीं, लड़की चीज ही ऐसी होती है । दो दिन से मिली है और गुरू लोगों से ज्यादा प्यारी हो गई अब तुम्हारा अंत निश्चित है विकास याद करो, तुमसे एक बार कहा था कि लड़की के चक्कर में न पड़ना और जिस दिन पड़ गए, यह तुम्हारी जिंदगी का अंतिम दिन होगा ।"
"मुझे अंत की परवाहं नहीं है!"
"पूजा ने तुम पर डोरे डाले बेटे और तुम डोरों मे र्फस गए !" विजय ने कहा-" तुम्हारा अंतिम समय आ गया है । सुनो विकास, सुनो आज तुम्हारा गुरु कहता है कि पूजा ही तुम्हारे अंत का करण होगी !"
" आज नहीं तो कल अंत हो सकता है गुरू !" विकास ने कहा…“लेकिन यह दावा है कि मेरा अंत अमेरिका के अंत से पहले नहीं होगा । खेर, लगता है मैं विषय से भटक गया हूं। मेने आप लोगों को एक छोटा-सा खेल दिखाने के लिए याद किया था !"
“क्या दिखाना चाहते हो?" प्रश्न अलफांसे ने किया ।
"आंटी स्क्रीन ओन कर दो ।" विकास ने जैक्सन को आदेश दिया ।
जैक्सन ने विना कोई शब्द कहे स्क्रीन आन कर दी । कुछ देर तक गड़बड्री सी होती रही, फिर उस पर एक शहर की साफ-सुथरी सड़क का स्पष्ट दृश्य उंभर आया । सड़क पर लोगों का आवागमन था ।
सबकी दृष्टि स्कीन पर ही जमी हुई थी ।
"जहा तक मेरा अनुमान है गुरु, आप लोग इसे शहर को पहचान गए होंगे !" विकास बोला-------" अगर नहीं पहचाने तो मै बताऊं! यह अमेरिका का एक छोटा-सा नगर र्कोंसर है । तक्लीफ तो आपको होगी गुरू ।" विकासं ने कहा…"ज़रा देखते तो जाओ ।" कहने के साथ ही विकास ने हाथ फैला दिया ।
धनुषटंकार ने माइक जैसा एक यंत्र उसे थमा दिया । उसके समीप मुंह ले जाकर विकास बोला-“हैलो प्रोफेसंर तुंग तुम अपनी स्क्रीन पर कोसर देख रहे हो न?”
"हां महामहिम! " दूसरी ओर से तुंगलामा की आवाज आई---" बखूबी देख रहा हूं !"
"सब काम तैयार है?" विकास ने प्रश्न किया ।
"केवल आपके आदेश की देर है महामहिम । , दुसरी ओर से तुंगलामा बोला-----" आप आदेश दे तो कोंसर पंद्रह मिनट मे कब्रिस्तान बन सकता है । क्या आपके सारे मेहमान वहां पहुच गए है महामहिम?"
"सब आ गए हैं तुंग, तुम अपना काम शुरू करो ।"
"ओके महामहिम ।" दूसरी ओर से तुंगलामा का सम्मानित स्वर उभरा ।।
इसके बाद विकास ने माइक वापस धनुष्टंकार को थमा दिया । विजय इत्यादि की ओर उन्मुख होकर बोला ।
" अब जरा आप स्क्रीन पर होने वाला तमाशा ध्यान से देंखें !" कहते समय उसने दृष्टि विजय पर जमा दी और कठोर स्वर में' गुर्राया-" एक बात कान खोलकर सुन लो गुरु. वह यब कि स्क्रीन के दृश्य को देखकर किसी प्रकार की गलत हरकते करने की चेष्टा मत करना वरना वह आपकी असफल चेष्टा होगी क्यों कि आपके चारों और खड़े हुए गुलामो को आपके बच्चे के आदेश प्राप्त हैं कि आपकी किसी भी गलत हरकत पर आपातकालीन मोर्चा खडा कर दे ।"
विजय ने एक बार विकास की घूरा, फिर इस प्रकार मुस्कराया जैसे कोई बुजुर्ग किसी बच्चे की बचकानी हरकत पर मुस्कराएं ।
बोला----"तुमसे नालायक शिष्य सारी दुनिया में नहीं होगा !"
“घन्यवाद ॥" विकास ने भी की आराम से `मुस्कराकर कहा-" अब आप लोग ध्यान से स्क्रीन पर देखे ।"
बिजय, अलफासे इत्यादि सबकी दृष्टि स्क्रीन पर जम गई उनके देखते-ही-देखते स्क्रीन के दृश्य में परिवर्तन होने लगा ।
जहां स्कीन पर दिन जैसा प्रकाश था, वहां धीरे धीरे अंधेरा होने लगा । देखते-हि-देखते पूरे शहर मे अंधेरा छा गया । लाइटों से विहीन शहर स्क्रीन पर चमकने लगा । स्क्रीन पऱ वे बौखलाए हुए भयभीत और आतंकित लोगों को स्पष्ट देखते रहे थे । शहर में भगदड-सी गई थी । सबकी दुष्टि प्रत्येक पल स्क्रीन पर जमी हुई थी । पूजा का दिल बड़ी तेजी से धडक रहा था ।
. …"स्क्रीन पर नजर आने वाले इसलिए घबरा रहे है गुरु क्योकि उन्हें पता है कि क्या होने वाला है लेकिन क्या करें? जो होने वाला है, उसे वे तो क्या, पूरी अमेरिकन सरकार भी नहीं रोक सकती पूरा विश्व, भी नहीं रोक सकता ।"
" तुम कहना क्या चाहते हो विकास?" अलफांसे ने गंभीर स्वर में प्रश्न किया । .
" आप देख रहे हैं कि केवल दस मिनट मे वहां रात हो गई है ।" विकास ने कहा----- "केवल पाच मिनट और देखिए फिर आपको खुद ही मालूम हो जाएगा कि मैं क्या करना चाहता हूं !"
…"मुझे लगता तुम पागल हो गए हो ।" अलफांसे गुर्राया ।
"आंटी!" विकास जैक्सन से बोला------" जरा गुरु लोगों को दिखा दो कि अचानक दस मिनट में अमेरिका के इस शहर में यह रात अचानक क्यों हो गई ।"
हालांकि जैक्सन के दिमाग मेँ एक तीव्र तूफान था । वह ऐसा अवसर तलाश कर रही थी, जब वह विकास का तख्ता पलट सके लेकिन इस समय तो वह विवश थी । उसने एक बटन दबा दिया ।
स्कीन पर उपस्थित दृश्य भी घूमता चला गया स्कीन पर घने काले रंग का धुआं नजर आया ।
यह धुआं एकत्र होकर बादलों जैसा लग रहा था ।
फूफी और उसकी बेटी से शादी.......Thriller वासना का भंवर .......Thriller हिसक.......मुझे लगी लगन लंड की.......बीबी की चाहत.......ऋतू दीदी.......साहस रोमांच और उत्तेजना के वो दिन!