कैसे कैसे परिवार

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लगभग २० मिनट में मोहन घर पहुँच गया. उसने देखा कि मेहुल बहुत उत्तेजित अवस्था में था. उसने एक गहरी श्वास ली और स्वयं को संयत किया. ये दिन तो आना ही था, पर उन्होंने इसे किसी और समय और प्रकार में इसकी योजना की थी, जो अब व्यर्थ हो चुकी थी. उसकी ऑंखें स्मिता से मिलीं तो स्मिता ने अपना फोन निकला और विक्रम को एक मिस कॉल दे दिया. ये संकेत था नीचे आने का. विक्रम, श्रेया और स्नेहा नीचे आये, विक्रम ने स्नेहा को चले जाने के लिए पहले ही कह दिया था. इसीलिए स्नेहा सीधे बाहर जाने लगी. पर उसे अपने ऊपर मेहुल की ऑंखें गढ़ती हुई लग रही थीं.

"मेहुल, बेटा हम तुम्हारे २०वें जन्मदिन की प्रतीक्षा कर रहे थे कुछ बताने के लिए. पर शायद वो समय आज ही आ गया है." विक्रम ने कहा.

"पापा, ऐसा क्या है जिसे आप मुझे पहले नहीं बता सकते थे. और जो अभी आप लोग कर रहे थे, ये कैसे संभव है? और मोहन दादा भी ऐसा नहीं लगता कि इससे विचलित है."

"नहीं. हम ये पहले नहीं बता सकते थे. हमारा परिवार और हमारी जैसे सोच वाले परिवार एक विशिष्ट समुदाय के सदस्य हैं. और उसमे प्रवेश के लिए २० साल का होना अनिवार्य है." विक्रम ने उत्तर दिया.

"कैसा समुदाय? मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा."

"हम सब एक ऐसे समुदाय के सदस्य हैं जिसमे अपने परिवार वालों के साथ हम अपार प्रेम करते हैं. और यह हर रूप में होता है, मानसिक, सामाजिक और शारीरिक." मोहन ने बताया.

मेहुल का सिर घूम गया. "मैं कुछ समझा नहीं."

"इसका मतलब ये है की हम सब एक दूसरे के साथ सम्भोग करते हैं."

"यानि आप मम्मी....."

"हाँ और महक भी. श्रेया का परिवार भी उसका हिस्सा है और हमारी शादी भी उनकी सम्मति से हुई है. और अगले महीने जब तुम २० वर्ष के होंगे तो तुम भी उसमे सम्मिलित हो सकोगे. "

"क्या मतलब, फिर मैं मम्मी के साथ."

"हाँ, मम्मी, महक, श्रेया, स्नेहा और उनकी माँ सबके साथ तुम सम्भोग कर सकते हो."

मेहुल अब सकते में था. वो हमेशा अपनी माँ को केवल माँ नहीं बल्कि एक स्त्री के रूप में भी देखता था. और स्नेहा पर तो वो लट्टू था. अगर वो इस प्रस्ताव को मान लेगा तो न सिर्फ ये दोनों बल्कि उसकी भाभी, बहन और श्रेया की माँ भी उसके बिस्तर में होंगी. उसका मन प्रफुल्लित हो गया.


"तो क्या मुझे इस सब के लिए अगले महीने की प्रतीक्षा करनी होगी?"

"नहीं मेहुल, अपने घर और मोहन की ससुराल में तो तुम चाहो तो आज से ही सम्मिलित हो सकते हो. पर शेष सदस्यों से भेंट के लिए रुकना होगा." ये महक थी जो आ चुकी थी और सारी बातें सुन चुकी थी. "मेरे विचार से इस एक महीने के लिए हम चारों ही तुम्हारे लिए पर्याप्त होंगे."

"मुझे पहले मम्मी चाहिए।"

सबने एक चैन की सांस ली और हंस दिए. जितना कठिन उन्होंने सोचा था उससे कहीं सहज रहा था.

"आपने सुना. आज मैं मेहुल के साथ सोऊंगी. आप अकेले ही रहेंगे."

"ओह, यू डोंट वरी डियर. मुझे विश्वास है कि महक आज अपने पापा को अपने प्यार से ओतप्रोत कर देगी."

"पूर्ण रूप से" महक ने हँस के कहा.

"तो चलो इस बात पर एक पार्टी हो जाये. श्रेया व्हिस्की की बोतल और सब सामान ले आओ." विक्रम ने श्रेया को आदेश दिया.

"ओके, पापा."

और एक पार्टी आरम्भ हुई.

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स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

स्मिता ने मेहुल का हाथ पकड़ा और उसे अपने कमरे में ले गई. कमरे में जाकर उसने मेहुल को बिस्तर पर बैठा दिया.

"क्या तुम्हें कोई असहजता लग रही है?" स्मिता ने प्यार से पूछा.

मेहुल ने सिर हिलाया.

"चिंता न करो, मोहन की भी यही स्थिति थी, पर एक बार जब उसने चढ़ाई की मेरे ऊपर, तो रात भर रौंदा था मुझे. सारे छेद भर दिए थे." स्मिता ने अर्थपूर्ण ढंग से समझाया.

मेहुल के दिमाग की बत्ती जल उठी जब उसने सारे छेद सुना. क्या मम्मी का मतलब..?

"सारे छेद, यानि?"

"यानि मेरा मुंह, चूत और गांड. आज तुम्हें ये तीनों को अपने रस से भरना होगा."

"आ आ आप गांड भी मरवाती हो?"

"बिलकुल. और तुम्हारे जैसे जवान लड़कों को तो मैं बिना गांड मारे हुए छोड़ती ही नहीं." स्मिता ने हँसते हुए बताया.

"क्या तुमने कभी किसी को चोदा है."

धीरे धीरे अब मेहुल को अपना आत्मविश्वास को लौटता हुआ अनुभव कर रहा था. उसे ये समझ आ गया था कि उसका परिवार कोई आम परिवार नहीं है और इसमें हर संभव सेक्स क्रीड़ा होती है.

"हाँ, कईयों को."

"गर्लफ्रेंड्स?"

"नहीं, टीचर्स और फ्रेंड्स की मम्मियों को."

"अपने उम्र की कोई लड़की?"

"कुछ, क्योंकि एक बार में वो शादी की बात शुरू कर देती हैं."

"स्मार्ट, वैरी स्मार्ट. अभी खेलने के दिन हैं, बंधने के नहीं."

"वही."

"कितनी औरतों को चोद चुके हो?"

"बारह औरतें और तीन लड़कियाँ."

अब आश्चर्यचकित होने की बारी स्मिता की थी. "बारह औरतें?"

"हाँ, और आज का मिलकर तेरह हो जाएँगी." मेहुल ने बताया, "वैसे वो बारह की बारह आज भी मुझसे चुदवाती हैं. मैं इसलिए कालेज से ३ बजे घर नहीं आ पाता क्योंकि उनमें से किसी एक के बिस्तर में उसे रगड़ रहा होता हूँ."


"तो फिर आज क्यों जल्दी आये?"

"भाग्य. आज उन सबसे ज्यादा आकर्षक और प्यारी महिला को मेरी झोली में गिरना था."

मेहुल का ये विश्वास देखकर स्मिता विस्मित थी. ऐसा क्या था मेहुल में जो उसे अधिक आयु की महिलाएं पसंद करती हैं. मेहुल भी अब अपने उस रूप में आ रहा था जिसके लिए महिलाएं उस पर लट्टू थीं. उसका ४ घंटे पहले का आश्चर्य अब एक अवसर में बदल चुका था. उसे ये जानकर बहुत प्रसन्नता थी की न केवल अपनी माँ, बल्कि उनके चुदाई समूह की और औरतें भी उसके बिस्तर की शोभा बढ़ाएंगी. इसीलिए वो अब पूरे फ़्लर्ट की शैली में आ चुका था. वो आज अपनी माँ को ये दिखाना चाहता था कि वो उसे ही नहीं बल्कि औरों को भी पूरी संतुष्टि दे सकता है.

"कैसे?" स्मिता अभी भी अचरज में थी, "मुझे बताओ सब."

"क्या?"

"यही कि तुम इतनी जल्दी एक शर्मीले और शांत लड़के से इतने अनुभवी चुड़क्कड़ कैसे बन गए कि इतनी औरतें तुम्हें चाहती हैं."

"एक आयु के बाद स्त्रियाँ ऐसे भोले भाले लड़कों को सेक्स में दीक्षित करना चाहती है जिससे उनका मनोबल और अपने ऊपर विश्वास बढ़ता है कि वो अभी भी आकर्षक हैं." मेहुल एक कुटिल मुस्कान के साथ बोला।

"पर उन्हें ये नहीं पता होता की इस भोले चेहरे के पीछे सेक्स में निपुण एक आदमी छुपा है." स्मिता ने बात समझते हुआ कहा.

"हाँ और ३-४ मिलन के बाद उन्हें ये लगता है की मैं उनके द्वारा सिखाये हुए पाठ पर ही अनुशरण कर रहा हूँ."

"बेचारी भोली औरतें." स्मिता ने हैरत में सिर हिलाया. "तुमने किस आयु की औरतों को चोदा है?

"लड़कियों को छोड़ दें तो करीब ३० साल से ६५ साल तक की."

"६५? वो कैसे? कौन?"

"हमारी प्रिंसिपल की माँ."

"तुमने अपने प्रिंसिपल की माँ तक को चोद दिया!" स्मिता ने आश्चर्य से कहा.

"क्या करता, जब मैं उनके घर में अपनी प्रिंसिपल की गांड मार रहा था तो वो पता नहीं कैसे अंदर आ गयी कमरे में. और जाने का नाम ही नहीं ली. आखिर में मुझे उसके तीनों छेद पैक करने पड़े. पर अब सप्ताह में एक बार दोनों बुलाती है और साथ में चुदवाती है."

"तुम कौन हो? मेरा सीधा सादा बेटा कहाँ गया."

मेहुल ने एकदम से अपना भाव बदला और वही घबराया और परेशान लड़का दिखने लगा जिसे सब जानते थे.


"पर मम्मी हम ये सब बातें करने तो यहाँ आये नहीं है. आप तो मुझे सेक्स का ज्ञान देने के लिए आमंत्रित की थीं न?"

"जो इतनी औरतों को चोद चुका हो उसे ज्ञान देने की नहीं उससे सुख लेने की आवश्यकता है."

मेहुल ने अपनी माँ का हाथ पकड़कर उसे खड़ा किया और उसके रसीले होंठ चूमने लगा. स्मिता का शरीर वासना से थरथरा उठा और वो भी इस चुम्बन में पूरा साथ देने लगी. मेहुल ने पीछे करते हुए स्मिता के ब्लाउज और ब्रा के हुक खोल दिए. फिर उसने होंठों को छोड़कर गर्दन को चूमते और चाटते हुए स्मिता के पीछे गया और उसके कानों को चूमते हुए उसका ब्लाउज और ब्रा अलग कर दी. अपने हाथ आगे करते हुए स्मिता के दोनों मम्मों की घुंडिया अपनी उँगलियों में लेकर हल्के से मसलने लगा. उसके चुंबन बिना रुके स्मिता के कान, गर्दन और पीठ को तर कर रहे थे. स्मिता ये जान गई की आज उसका सामना सेक्स में निपुण एक ऐसे खिलाडी से है जो उसके रोम रोम को पुलकित कर देगा. मेहुल अब अपने हाथों से उसके दोनों मम्मों को दबा रहा था, या यूँ समझो की मसल रहा था, और उसकी उंगलिया घुंडियों को मसल रही थीं.

"कैसा लग रहा है, मम्मी। "

"ब ब ब बहुत अच्छा"

मेहुल यूँ ही स्मिता को चूमते हुए अपने हाथ को हटाता है और उसकी साड़ी को एक हाथ से उसके शरीर से उतारने लगता है और कुछ ही पलों में साड़ी कालीन पर गिर जाती है. पर मेहुल का हाथ ठहरता नहीं और वो पेटीकोट का नाड़ा खोल देता है और पेटीकोट भी लहरा कर स्मिता का शरीर छोड़ देता है. स्मिता ने पैंटी नहीं पहनी थी और वो पेटीकोट के गिरते ही नंगी हो गई. दो पल के लिए मेहुल अपने दोनों हाथ मुक्त करता है और अपनी टी-शर्ट, शॉर्ट्स उतार फेंकता है. वो और अंडरवियर में अपने शरीर को स्मिता के शरीर के पीछे पूरा मिला देता है. स्मिता को अपनी गांड में कुछ चुभता हुआ प्रतीत होता है तो वो समझ जाती है कि मेहुल ने अपने कपडे उतार दिए हैं. वो उसके देखने के लिए लालायित हो जाती है और घूम जाती है.

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श्रेया का शयनकक्ष: श्रेया और विक्रम

"पापा जी, मुझे मेहुल भैया के लिए बहुत डर लग रहा है. वो इतने सीधे हैं कि कहीं कुछ उल्टा सीधा न कर बैठें."

"चिंता तो मुझे भी है, श्रेया, पर मोहन भी शीशे में उतर गया था. मुझे स्मिता पर विश्वास है कि वो सब अच्छे से संभाल लेगी. दूसरा तुम ने ही देखा की मेहुल ने उसका ही नाम लिया था."

"आप बाथरूम से आईये तब तक मैं स्नेहा और मम्मी से बात कर लेती हूँ." कहते हुए वो अपनी माँ को कॉल लगाती है.

"हेलो मम्मी, स्नेहा पहुँच गयी न?"

“------”

"आज मेहुल को हमने अपना खेल दिखा दिया. अभी मम्मी जी उसे अपने कमरे में समझाने के लिए ले गई हैं."

“------”

"आप तो मम्मी जी को जानती हो, उनका तीर कभी नहीं चूकता।"

“------”

"अरे आपका भी नंबर आएगा, शीघ्र. पहले हम तो निपट लें. पर वो स्नेहा को जरूर चोदेगा, बहुत आगे पीछे घूमता है उसके."

“------”

"जी. आज तो मैं पापाजी के साथ हूँ. महक है, मोहन के साथ. और आप?"

“------”

"चलो आप भी इन्जॉय करो, गुड नाईट."

इतने में विक्रम बाथरूम से बाहर आ गया, एकदम नंगे और श्रेया अंदर घुस गयी और नहाकर कुछ ही मिनटों में नंगी ही बाहर आ गई. विक्रम बिस्तर पर लेटा था और उसका लंड सीधे पंखे को देख रहा था. श्रेया ने अपनी चूत को विक्रम के मुंह पर रखा और झुककर उसका लंड चूसने लगी.

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(^%$^-1rs((7)
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मोहन का शयनकक्ष: महक और मोहन


"कल पता लगेगा कि मेहुल माना कि नहीं. हालाँकि वो इतना दब्बू है कि मम्मी के कहने पर मानेगा अवश्य." महक ने अपने विचार रखे.

"तुम ये क्यों सोचती हो कि वो दब्बू है. मेरी समझ से वो बहुत संयम में रहता है. वो कभी कॉलेज बंद होने पर सीधे घर नहीं आता। २ -३ घंटे कहाँ रहता है, पता नहीं. दब्बू या डरपोक लोग ऐसा नहीं कर सकते. मुझे तो लगता है की वो हम सबसे कुछ छुपा रहा है. मैंने इसीलिए नहीं पूछा ताकि उसे झूठ न बोलना पड़े मुझसे."

"चलो, ये भी कल पता चल जायेगा. मम्मी राज उगलवाने की विशेषज्ञ है. उन्हें तो किसी खुफ़िआ जाँच एजेंसी में होना चाहिए था."

महक अपने कपडे उतार कर बिस्तर पर लेट गई और अपने दोनों पाँव फैला दिए.

"आइये, आपकी स्वीट डिश (मिठाई) परोसी हुई है. सीधे चाट लीजिये."

मोहन ने भी देर न की और कपडे उतार कर महक की चूत में अपने मुंह से पिल गया.

**********

गौड़ा परिवार के घर:


"श्रेया का फोन था. स्मिता मेहुल का आज उद्घाटन कर रही है. इतना सीधा लड़का है, पता नहीं उसे आघात न पहुंचे."

"उसे घर किसने भेजा था जल्दी, वैसे तो वो ६ बजे के पहले नहीं जाता है?"

"स्नेहा ने, उसे बोली थी कि वो उधर जा रही है. बाकी उसने भाग्य के हाथ में छोड़ दिया था."

"वही तरीका जो मोहन और मेरे लिए काम आया था. पर हम दोनों फिर भी थोड़े तेज हैं. मेहुल सच में बहुत सीधा है."

"अब कल ही पता चलेगा कि क्या हुआ. मुझे नहीं लगता मेहुल कल कॉलेज जाने की स्थिति में होगा."

इस समय सब लोग बैठक में बातें कर रहे थे. स्नेहा अविरल की गोद में थी, और विवेक का सिर अपनी माँ की गोद में.

"चलो सोते हैं, कल शायद श्रेया के घर जाना होगा. सब कुछ ठीक ठाक रहे और मेहुल कहीं कुछ उल्टा न कर बैठे."

ये कहकर सब अपने कमरों में चले गए.

**********

स्मिता का शयनकक्ष: स्मिता और मेहुल

जब परिवार के सब लोग इस चिंता में डूबे थे कि मेहुल पर कोई विपरीत असर न हो, बाकी लोगों की धारणा के विपरीत, यहाँ मेहुल ही इस अभियान को नियंत्रित कर रहा था.

स्मिता जब मेहुल की ओर मुड़ी तो उसे विश्वास था कि मेहुल भी उसकी ही तरह निर्वस्त्र होगा. पर उसे ये देखकर अचरज हुआ कि अभी भी मेहुल अंडरवियर पहने हुए था. वो अपना हाथ नीचे बढ़ाती इससे पहले ही मेहुल ने उसके हाथ अपने कन्धों पर रखे और एक गहरा चुम्बन लेने लगा. स्मिता फिर से लहरा उठी. चूमते हुए ही मेहुल ने स्मिता को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी आँखों से आरम्भ करते हुए, एक एक इंच शरीर को चूमते और चाटते हुए नीचे की ओर अग्रसर हुआ. स्मिता ने ऐसा उत्तेजक और मादक प्रेम कभी भी अनुभव नहीं किया था. अंततः मेहुल उसकी जांघों के जोड़ पर पहुंच गया जहाँ एक अमूल्य निधि उसको देख रही थी. उसने अपनी जीभ से उस गुफा के चारों और चाटकर उसे चमका दिया.

स्मिता अब वासना से तड़प रही थी और उसकी चूत से पानी की धार बह रही थी. मेहुल बहुत प्रेम और संयम से हर एक बूँद को चाट रहा था. तभी उसने स्मिता के भगनासे को दो उँगलियों के बीच में लेकर दबाया और अंगूठे से उसके ऊपर के पतले हल्के छेद को रगड़ने लगा. स्मिता को जैसे ४४० वोल्ट का करेंट लगा. उसका पूरा शरीर बिस्तर से एक फुट ऊपर उछल गया और उसकी चूत से एक फुहार निकली जिसने मेहुल के पूरे चेहरे को सरोबार कर दिया.

"हम्म्म्म, मॉमा लव्स इट. क्यों माँ तुम्हें मज़ा आया? कभी छोड़ी है ऐसी धार पहले." मेहुल ने अपने चेहरे पर लगे स्मिता के रस को हाथों से पोंछते हुए पूछा.

"न न न नहीं. ऐसा कभी नहीं हुआ, तू तो जादूगर है रे."

"लो अपने पानी का स्वाद लो", कहते हुए मेहुल ने अपनी कामरस से सनी उँगलियाँ स्मिता के मुंह में डाल दीं। स्मिता ने उसकी ओर कामुक आँखों से देखते हुए उँगलियाँ चूस कर साफ कर दीं. फिर मेहुल स्मिता के बगल में लेट गया और अपने एक हाथ से उसकी चूत को सहलाते हुए उसके होंठों का रस पीने में जुट गया. फिर उसने अपना बायाँ हाथ स्मिता की गर्दन के नीचे से निकालकर उसके बाएँ स्तन को भींचने लगा. दायाँ हाथ चूत में व्यस्त था.

स्मिता ने अपना मुंह मोड़कर मेहुल के होंठ चूम लिए. कामातुर माँ अब अपने बेटे के हाथों में एक खिलौना थी, एक ऐसा बेटा जो बाहर से जो दिखता था अंदर से बिल्कुल अलग था.


"सब ये सोच रहे होंगे कि आज मैं तेरा उद्घाटन करूंगी क्योंकि तू सेक्स से अनिभिज्ञ होगा. उन्हें बहुत आश्चर्य होगा ये जानकर कि तू इतना बड़ा खिलाड़ी है. तूने मुझे बिना अपने लंड को छुए बिना ही इतना आनंद दिया है कि मैं वर्णन नहीं कर सकती. पर तू अभी तक अंडरवियर क्यों पहने है."

"वो भी उतार दूंगा मेरी प्यारी मम्मी. मैं तुम्हे वो सुख देना चाहता हूँ जो आपने स्वप्न में भी नहीं अनुभव किया होगा. पर मेरी एक विनती है आपसे. हमारे बीच जो भी होगा, पर आप अभी किसी को बताना मत. मैं चाहता हूँ कि सब यही सोचते रहें कि मैं अनाड़ी हूँ. जब तक मैं परिवार की सभी महिलाओं को नहीं चोद लेता, जैसा कि मुझसे अपेक्षित है, आप कुछ नहीं कहोगी."

स्मिता इस समय हर शर्त पर सहमत थी. मेहुल की तीन उँगलियाँ उसकी चूत में अंदर बाहर हो रही थीं, और उसे अपनी चूत की आग बुझानी थी. पर मेहुल था कि इतना धीरे चल रहा था की उसे रुकना भारी लग रहा था.

"मेहुल, क्या अब तुम मुझे चोदोगे। मैं जली जा रही हूँ. मेरी आग को शांत कर दो बेटा। "

"हम्म्म्म, मम्मी तुमने तो कहा था कि दीक्षा में तुम मुझे अपने तीनों छेद समर्पित करोगी."

"हाँ, अवश्य. हमारा यही नियम है. इससे न सिर्फ दीक्षार्थी को सेक्स का पूरा अनुभव होता है, बल्कि ये भी पता लगता है कि उसकी ठहरने की क्षमता कितनी है और वो कितनी बार लड़ाई में खेल सकता है. क्योंकि उसे हमारे समुदाय की अन्य स्त्रियों को भी संतुष्ट करना होता है. और हम मानक से नीचे के खिलाड़ी को अतिरिक्त परीक्षण देते हैं.

"और आप लोग तीन बार को एक मानक मानते हो." मेहुल ने मुस्कराते हुए पूछा.

"हाँ, क्यों तू कितने बार चोद लेता है."

"ज्यादा नहीं, बस यूँ समझो की तीन स्त्रियों को तो पूरा अनुभव दे ही सकता हूँ."

"क्या!" स्मिता की ऑंखें फटी की फटी रह गयीं.

"अरे छोड़ो ये सब मम्मी, अब आपके पहले छेद का समय है. और मैं चाहूंगा कि आप मुंह से मेरे लंड को शांत करो."

स्मिता की आँखों में चमक आ गई. उसने मेहुल से अंडरवियर उतारने को कहा. मेहुल जानता था कि ये उसके लिए एक सरप्राइस होना चाहिए.

"नहीं मम्मी, ये शुभ कार्य तो आपको अपने ही हाथों से संपन्न करना होगा. आखिर मैं आपका शिष्य जो हूँ."

ये कहकर मेहुल बिस्तर के उस ओर खड़ा हो गया जहाँ स्मिता लेटी थी. स्मिता बैठ गई और उसने मेहुल का अंडरवियर उतार दिया.

"ओ गॉड! ये क्या है?" उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव थे. "क्या है ये?"

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