आजाद पंछी जम के चूस complete

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josef
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आजाद पंछी जम के चूस complete

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. आजाद पंछी जम के चूस.


.शहर के पाश कॉलोनी में शांति कुंज के नाम से एक बड़ा सा मकान है दो मंजिला मकान है। जिसमे तीन लोगो की फैमिली रहती है।
रवि सिंह----- उम्र 39 साल, शहर की मैन बाजार में कपड़े का व्यवसायी। तन्दरुस्त 5'6 इंच, और एक माचो मैन जिसका सपना हर एक महिला देखे।
आरती-----उम्र 37साल, रवि की पत्नी, एक जबरदस्त फिगर की मालकिन,( रंग गोरा, पतले पतले होंठ,मोटे मोटे बॉब्स,बाहर को उभरी हुई गांड जिसको देख कर हर कोई पाना चाहता है) एक घेरलू औरत है रवि की नजर में , बाकी जो ये है आगे कहानी में देखते है।
सोनल-----18 उम्र रवि और आरती की इकलौती संतान। अभी गर्ल्स स्कूल में 12th में पढ़ती है। अपने पिता और माता से बिल्कुल अलग। अभी अभी जवान हुई है। चुचिया बाहर आने की बेताब , सुडौल गांड, और साधारण चेहरे की मालकिन। अभी तक लड़को के संपर्क से अनजान। बिलकुल चुपचुप सी, छुईमुई सी। जिसको देख कर सायद ही कोई सेक्स करना चाहे।
रामु---- 58 साल घर का नॉकर पिछले 25 सालों से । रवि के पिताजी का रखा हुआ।
जया--- 53 साल रामु की पत्नी। रामु के साथ घर का काम करती है।
मोनिका--- 24 साल रामु और जया की बेटी। एक सेक्स की आग में जल रही लड़की। दो साल पहले विवाह हुआ था लेकिन शादी के एक साल बाद ही पति की मौत हो गयी, जहरीली शराब के पीने के कारण। तब से अपने माँ- बाप के साथ रहती है और अपनी माँ का हाथ बढ़ाती है घर के कामो में।
रात के 10 बजे है, आधा घणटे पहले रवि अपनी दुकान से वापिश आया है। और फ्रेश होकर खाना खा कर बैडरूम में बेड पर आज की दुकान की सैल परचेस
अपने लैपटॉप पर चढ़ा रहा था। तभी आरती एक छोटी सी सेक्सी सी मैक्सी पहनकर बाहर आती है बाथरूम से। आरती सेक्स की देवी लग रही थी। आज आरती का मूड सेक्स का था। रवि वैसे तो सेक्स में काफी अच्छा था लकीन कुछ समय से आरती के साथ उसका इंटरेस्ट कम हो गया था। महिने में एक दो बार ही आरती को खुश करने या अपना मूड बनने पर चुदाई करता था।
आरती को लगता था कि रवि अब काम की थकान की वजह से चुदाई नही करता। इसलिये वही कभी कभी पहल करती है। लेकिन आरती के जीवन में कुछ खालीपन था जो वो खुद भी नहीं समझ पाती थी की क्या?सबकुछ होते हुए भी उसकी आखें कुछ तलाशती रहती थीं। क्या?पता नहीं?पर हाँ कुछ तो था जो वो ढूँढ़ती थी। कई बार अकेले में आरती बिलकुल खाली बैठी शून्य को निहारती रहती, पर ढूँढ़ कुछ ना पाती।
आज आरती का यह रूप देखकर रवि हैरान था, ये मैक्सी रवि काफी समय पहले लेकर आया था लेकिन आरती ने एक बार पहन कर फिर कभी यूज़ नही की। लेकिन आज आरती ने खुद इसको पहना था और बिना ब्रा और पैंटी के।
आज आरती का पूरा शरीर जल रहा था। वो जाने क्यों आज बहुत उत्तेजित थी। रवि के साथ लिपट-ते ही आरती पूरे जोश के साथ रवि का साथ देने लगी। रवि को भी आरती का इस तरह से उसका साथ देना कुछ आजीब सा लगा पर वो तो उसका पति ही था उसे यह पसंद था। पर आरती हमेशा से ही कुछ झिझक ही लिए हुए उसका साथ देती थी। पर आज का अनुभब कुछ अलग सा था। रवि आरती को उठाकर बिस्तर पर ले गया और जल्दी से आरती को कपड़ों से आजाद करने लगा।

रवि भी आज पूरे जोश में था। पर आरती कुछ ज्यादा ही जोश में थी। वो आज लगता था कि रवि को खा जाएगी। उसके होंठ रवि के होंठों को छोड़ ही नही रहे थे और वो अपने मुख में लिए जम के चूस रही थी। कभी ऊपर के तो कभी नीचे के होंठ आरती की जीब और होंठों के बीच पिस रहे थे। रवि भी आरती के शरीर पर टूट पड़ा था। जहां भी हाथ जाता कसकर दबाता था। और जितना जोर उसमें था उसका वो इस्तेमाल कर रहा था। रवि के हाथ आरति की जाँघो के बीच में पहुँच गये थे। और अपनी उंगलियों से वो आरती की योनि को टटोल रहा था। आरती पूरी तरह से तैयार थी। उसकी योनि पूरी तरह से गीली थी। बस जरूरत थी तो रवि के आगे बढ़ने की। रवि ने अपने होंठों को आरती से छुड़ा कर अपने होंठों को आरती की चूचियां पर रख दिया और खूब जोर-जोर से चूसने लगा। आरती धनुष की तरह ऊपर की ओर हो गई।

और अपने हाथों का दबाब पूरे जोर से उसने रवि के सिर पर कर दिया रवि का पूरा चेहरा उसके चूचियां से धक गया था उसको सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। पर किसी तरह से उसने अपनी नाक में थोड़ा सा हवा भरा और फिर जुट गया वो आरती की चूचियां पर। आरती जो कि बस इंतेजर में थी कि रवि उसपर छा जाए। किसी भी तरह से बस उसके शरीर को खा जाए। और। उसके अंदर उठ रही ज्वार को शांत कर्दे। रवि भी कहाँ देर करने वाला था। झट से अपने को आरती की गिरफ़्त से आजाद किया और अपने को आरती की जाँघो के बीच में पोजीशन किया और। धम्म से लण्ड चुत के अंदर।

आआआआआह्ह। आरती के मुख से एक जबरदस्त। आहह निकली।
और रवि से चिपक गई। और फिर अपने होंठों को रवि के होंठों से जोड़ दिया। और अपनी सांसें भी रवि के मुख के अंदर ही छोड़ने लगी। रवि आवेश में तो था ही। पूरे जोश के साथ। आरती की चुत के अंदर-बाहर हो रहा था। आज उसने कोई भी रहम या। ढील नहीं दी थी। बस किसी जंगली की तरह से वो आरती पर टूट पड़ा था। पता नही क्यों रवि को आज आरती का जोश पूरी तरह से नया लग रहा था। वो अपने को नहीं संभाल पा रही थी। उसने कभी भी आरती से इस तरह से संभोग करने की नहीं सोची थी। वो उसकी पत्नी थी। सुंदर और पढ़ी लिखी। वो भी एक अच्छे घर का लड़का था। संस्कारी और अच्छे घर का। उसने हमेशा ही अपनी पत्नी को एक पत्नी की तरह ही प्यार किया था किसी। जंगली वा फिर हबसी की तरह नहीं। आरती नाम के अनुरूप ही सुंदर और नाजुक थी। उसने बड़े ही संभाल कर ही उसे इस्तेमाल किया था। पर आज आरती के जोश को देखकर वो भी। जंगली बन गया था। अपने को रोक नहीं पाया था।

धीरे-धीरे दोनों का जोश ठंडा हुआ तो दोनों बिस्तर पर चित लेटके। जोर-जोर से अपने साँसे। छोड़ने लगे और। किसी तरह अपनी सांसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगे। दोनों थोड़ा सा संभले तो एक दूसरे की ओर देखकर मुस्कुराए। रवि आरती की ओर देखता ही रहा । आज ना तो उसने अपने को ढँकने की कोशिश की और नहीं अपने को छुपाने की। वो अब भी बिस्तर पर वैसे ही पड़ी हुई थी। जैसा उसने छोड़ा था। बल्कि उसके होंठों पर मुश्कान ऐसी थी की जैसे आज उसको बहुत मजा आया हो। रवि ने पलटकर आरती को अपनी बाहों में भर लिया और।
रवि- क्या बात है। आज कुछ खास बात है क्या।

आरती- उउउहह। हूँ। नही।

रवि- फिर। आज कुछ बदली हुई सी लगी।

आरती- अच्छा वो कैसे।

रवि- नहीं बस यूही कोई फिल्म वग़ैरह देखा था क्या।

आरती- नहीं तो। क्यों।

रवि- नहीं। आज कुछ ज्यादा ही मजा कर रही थी। इसलिए।

और हँसते हुए। उठ गया और। बाथरूम की ओर चला गया।

आरती वैसे ही बिस्तर पर बिल्कुल नंगी ही लेटी रही। और अपने और रवि के बारे में सोचने लगी। कि

रवि को भी आज उसमें चेंज दिखा है। क्या चेंज। आज का सेक्स तो मजेदार था। बस ऐसा ही होता रहे। तो क्या बात है। आज रवि ने भी पूरा साथ दिया था। आरती का।

इतने में उसके ऊपर चादर गिर पड़ी और वो अपने सोच से बाहर आ गई

रवि- चलो सो जाओ।

आरती रवि की ओर देख रही थी। क्यों उसने उसे ढक दिया। क्या वो उसे इस तरह नहीं देखना चाहता क्या वो सुंदर नहीं है। क्या वो बस सेक्स के खेल के समय ही उसे नंगा देखना चाहता है। और बाकी समय बस ढँक कर रहे वो। क्यों क्यों नहीं चाहता रवि उसे नंगा देखना। क्यों नहीं वो चादर को खींचकर गिरा देता है। और फिर उसपर चढ़ जाता है। क्यों नहीं करता वो यह सब। क्या उसका मन भर गया है।
जो हमेशा अपने पति के पीछे-पीछे घूमती रहती थी या फिर उनके आने और उठने का इंतजार करती रहती थी वो अब आजाद पंछी की तरह आकाश में उड़ना चाहती थी और बहुत खूल कर जीना चाहती थी उसके तन और मन की पूर्ति को देखकर ऐसा नहीं लगता था कि अभी-अभी कुछ देर पहले जो भी वो की थी उससे उसे कोई थकान भी नही हुई है वह फिर से चाहती थी करना।
रवि लेटेते ही सो गया। लकीन आरती की आंखों में कुछ चल रहा था। आज जो उसने दिन में देखा था वो उसको याद आ रहा था जिसके कारण आरती आज पहली बार बेकाबू हुई थी।
josef
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Re: आजाद पंछी जम के चूस

Post by josef »

आरती धीरे से उठी और चाददर लपेट कर ही बाथरूम की ओर चल दी। लेकिन अंदर जाने से पहले जब पलट कर देखा तो रवि के खराटे शुरु हो गए थे। आरती चुपचाप बाथरूम में घुस गई और। अपने को साफ करने के बाद जब वो बाहर आई तो रवि गहरी नींद सो चुका था। वो अब भी चादर लपेटे हुई थी। और बिस्तर के कोने में आकर बैठ गई थी। सामने ड्रेसिंग टेबल पर कोने से उसकी छवि दिख रही थी। बाल उलझे हुए थे। पर चेहरे पर मायूसी थी। आरती के।

ज्यादा ना सोचते हुए आरती अपनी जगह पर खड़ी हुई और सोचने लगी क्या वो सेक्सी दिखती है। वैसे आज तक रवि ने तो उसे नहीं कहा था। वो तो हमेशा ही उसके पीछे पड़ा रहता था। पर आज तक उसने कभी भी आरती को सेक्सी नहीं कहा था। न हीं उसने खुद अपने पूरे जीवन काल में ही अपने को इस नजरिए से ही देखा था। पर आज बात कुछ आलग थी। आज ना जाने क्यों। आरती को अपने आपको मिरर में देखने में बड़ा ही मजा आ रहा था। वो अपने पूरे शरीर को एक बड़े ही नाटकीय तरीके से कपड़ों के बिना ऊपर से देख रही थी। और हर उभार और गहराई में अपनी उंगलियों को चला रही थी। वो कुछ सोचते हुए अपने चद्दर को उतार कर फेक दिया और न्नगी मिरर के सामने खड़ी होकर देखती रही। उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी। जब उसकी नजर अपने उभारों पर गई। तो वो और भी खुश हो गई। उसने आज तक कभी भी इतने गौर से अपने को नहीं देखा था। शायद साड़ी के बाद जब भी नहाती थी या फिर रवि कभी तारीफ करता था तो शायद उसने कभी देखा हो पर आज जब उसकी नजर अपने उभारों पर पड़ी तो वो दंग रह गई। साड़ी के बिना वो कुछ और भी ज्यादा गोल और उभर गये थे। शेप और साइज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता था कि करीब 25% हिस्सा उसका ब्लाउज से बाहर की ओर रहता था और 75% जो कि अंदर रहता था। एक बहुत ही आकर्षक और सेक्सी महिला के लिए काफी था। आरती अपने को फिर से मिरर में देखने लगी। पतली सी कमर और फिर लंबी लंबी टांगों के बीच में फँसी हुई उसकी चुत। गजब का लग रहा था। देखते-देखते कामया धीरे-धीरे अपने शरीर पर अपना हाथ घुमाने लगी। पूरे शरीर पर। चुचियो और चुत पर। आआह्ह। क्या सुकून है। उसके शरीर को। कितना अच्छा लग रहा था। अचानक ही उसे दिन के उसके कठोर हाथ याद आ गये। और वो और भी बिचलित हो उठी। ना चाहते हुए भी उसके हाथों की उंगलियां। उसकी योनि की ओर बढ़ चली और धीरे धीरे वो अपने योनि को सहलाने लगी। एक हाथ से वो अपनी चूचियां को धीरे से दबा रही थी। और दूसरे हाथ से अपने योनि पर। उसकी सांसें तेज हो चली थी। खड़े हो पाना दूभर हो गया था। टाँगें कंपकपाने लगी थी। मुख से। सस्शह। और। आअह्ह। की आवाजें अब थोड़ी सी तेज हो गई थी। शायद उसे सहारे की जरूरत है। नहीं तो वो गिर जाएगी। वो हल्के से घूमकर बिस्तर की ओर बढ़ी ही थी कि अचानक उसे कमरे की खिड़की पर दो जोड़ी आंखे दिखी।
josef
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Re: आजाद पंछी जम के चूस

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वो आंखे उसे देखते ही वहा से हट गई। कौन हो सकताहै इस वक़्त न्नगी होने कर कारण जा भी नही सकती थी बाहर।
ज्यादा ना सोचते हुए। आरती भी धम्म से अपनी जगह पर गिर पड़ी और। कंबल के अंदर बिना कपड़े के ही घुस गई। और सोने की चेष्टा करने लगी। न जाने कब वो सो गई और सुबह भी हो गई।
उठते ही आरती ने बगल में देखा। रवि उठ चुका था। शायद बाथरूम में था। वो बिना हीले ही लेटी रही। पर बाथरूम से ना तो कुछ आवाज ही आ रही थी। ना ही पूरे कमरे से। वो झट से उठी और घड़ी की ओर देखा।
बाप रे 8:30 हो चुके है। रवि तो शायद नीचे होगा।

जल्दी से आरती बाथरूम में घुस गई और। फ्रेश होकर नीचे आ गई। उसकी लाडली सोनल और रवि बाहर गार्डन में बैठे थे। चाय बिस्कट रखा था। टेबल पर। आरती की आहट सुनते ही दोनो पलटे

रवि- क्या बात है। आज तुम्हारी नींद ही नहीं खुली।

आरति-- जी।
रवि -और क्या। सोया कर । कौन सा तुझे। जल्दी उठकर घर का काम करना है। आराम किया कर और खूब घुमा फिरा कर और। मस्ती में रह। तंज कसा रवि ने

सोनल---क्या पापा औरक्या करेगी घर पर मम्मी। बोर भी तो हो जाती है। रामु दादा और जय दादी काम कर लेती है सभी। फिर मम्मी उठ कर क्या करेगी।क्यों ना कुछ दिनों के लिए हम नाना के घर हो आते है।



इतने में रवि की चाय खतम हो गई और वो उठ गया।
रवि- चलो। में तो चला तैयार होने। और सोनल तुम्हे नही तैयार होना, आज स्कूल नही जाना क्या।

सोनल- हाँ… हाँ… आ जाऊँगी पापा। अभी रेडी होती हूं।

रवि के जाने के बाद आरती भी उठकर जल्दी से रवि के पीछे भागी। यह तो उसका रोज का काम था। जब तक रवि शोरुम नहीं चला जाता था। उसके पीछे-पीछे घूमती रहती थी। और चले जाने के बाद कुछ नहीं बस इधर-उधर फालतू काम के बिजी।

रवि अपने कमरे में पहुँचकर नहाने को तैयार था। एक तौलिया पहनकर कमरे में घूम रहा था। जैसे ही आरती कमरे में पहुँची। वो मुश्कुराते हुए। आरती से पूछा।
कामेश- क्यों अपने पापा मम्मी के घर जाना है क्या। थोड़े दिनों के लिए।

आरती- क्यों। पीछा छुड़ाना चाहते हो।
और अपने बिस्तर के कोने पर बैठ गई।

रवि- अरे नहीं यार। वो तो बस मैंने ऐसे ही पूछ लिया। पति हूँ ना तुम्हारा। और सोनल भी कह रही थी। इसलिए नहीं तो हम कहा जी पाएँगे आपके बिना।
और कहते हुए। वो खूब जोर से खिलखिलाते हुए हँसते हुए बाथरूम की ओर चल दिया।

आरती- थोड़ा रुकिये ना। बाद में नहा लेना।

रवि- क्यों। कुछ काम है। क्या।

आरती- हाँ… (और एक मादक सी मुश्कुराहट अपने होंठों पर लाते हुए कहा।)

रवि भी अपनी बीवी की ओर मुड़ा और उसके करीब आ गया। आरती बिस्तर पर अब भी बैठी थी। और रवि की कमर तक आ रही थी। उसने अपने दोनों हाथों से रवि की कमर को जकड़ लिया और अपने गाल को रवि के पेट पर घिसने लगी। और अपने होंठों से किस भी करने लगी।

रवि ने अपने दोनों हाथों से आरती का चेहरे को पकड़कर ऊपर की ओर उठाया। और आरती की आखों में देखने लगा। आरती की आखों में सेक्स की भूख उसे साफ दिखाई दे रही थी। लेकिन अभी टाइम नहीं था। वो। अपने शो रूम के लिए लेट नहीं होना चाहता था।

रवि- रात को। अभी नहीं। तैयार रहना। ठीक है।
और कहते हुए नीचे जुका और। अपने होंठ को आरती के होंठों पर रखकर चूमने लगा। आरती भी कहाँ पीछे हटने वाली थी। बस झट से रवि को पकड़कर बिस्तर पर गिरा लिया। और अपनी दोनों जाँघो को रवि के दोनों ओर से रख लिया। अब रवि आरती की गिरफ़्त में था। दोनों एक दूसरे में गुत्थम गुत्था कर रहे थे। आरती तो जैसे पागल हो गई थी। उसने कस पर रवि के होंठों को अपने होंठों से दबा रखा था। और जोर-जोर से चूस रही थी। और अपने हाथों से रवि के सिर को पकड़कर अपने और अंदर घुसा लेना चाहती थी। रवी भी आवेश में आने लगा था, । पर दुकान जाने की चिंता उसके दिलोदिमाग़ पर हावी थी थोड़ी सी ताकत लगाकर उसने अपने को आरती के होंठों से अपने को छुड़ाया और झुके हुए ही आरती के कानों में कहा।
रवि- बाकी रात को।
और हँसते हुए आरती को बिस्तर पर लेटा हुआ छोड़ कर ही उठ गया। उठते हुए उसकी टावल भी। खुल गया था। पर चिंता की कोई बात नहीं। वो तौलिया को अपने हाथों में लिए ही। जल्दी से बाथरूम में घुस गया।

आरती रवि को बाथरूम में जाते हुए देखती रही। उसकी नजर भी रवि के लिंग पर गई थी। जो कि सेमी रिजिड पोजीशन में था वो जानती थी कि थोड़ी देर के बाद वो तैयार हो जाता। और आरती की मन की मुराद पूरी हो जाती। पर रवि के ऊपर तो दुकान का भूत सवार था। वो कुछ भी हो जाए उसमें देरी पसंद नहीं करता था। वो भी चुपचाप उठी और रवि का इंतेजार करने लगी। रवि को बहुत टाइम लगता था बाथरूम में। शेव करके। और नहाने में। फिर भी आरती के पास कोई काम तो था नहीं। इसलिए। वो भी उठकर रवि के ड्रेस निकालने लगी। और बेड में बैठकर इंतजार करने लगी। रवि के बाहर आते ही वो झट से उसकी ओर मुखातिब हुई। और।
आरती- आज जल्दी आ जाना शो रूम से। (थोड़ा गुस्से में कहा कामया ने।)

रवि- क्यों। कोई खास्स है क्या। (थोड़ा चुटकी लेते हुए रवि ने कहा)

आरती- अगर काम ना हो तो क्या शोरुम में ही पड़े रहोगे।

रवि- हाँ… हाँ… हाँ… अरे बाप रे। क्या हुआ है तुम्हें। कुछ नाराज सी लग रही हो।

आरती- आपको क्या। मेरी नाराजगी से। आपके लिए तो बस अपनी दुकान। मेरे लिए तो टाइम ही नहीं है।


रवि- अरे नहीं यार। मैं तो तुम्हारा ही हूँ। बोलो क्या करना है।

आरती- जल्दी आना कही घूमने चलेंगे।

रवि- कहाँ

आरती- अरे कही भी बस रास्ते रास्ते में। और फिर बाहर ही डिनर करेंगे।

रवि- ठीक है। पर जल्दी तो में नहीं आ पाऊँगा। हाँ… घूमने और डिनर की बात पक्की है। उसमें कोई दिक्कत नहीं।

आरती- अरे थोड़ा जल्दी आओगे तो टाइम भी तो ज्यादा मिलेगा।

रवि- तुम भी। आरती। कौन कहता है अपने को कि जल्दी आ जाना या फिर देर तक बाहर नहीं रहना। क्या फरक पड़ता है। अपने को। रात भर बाहर भी घूमते रहेंगे तो भी सोनल अब बच्ची तो है नही कि घर पर अकली नही रह सकती।

आरती भी कुछ नहीं कह पाई। बात बिल्कुल सच थी कि घर से कोई भी बंदिश नहीं थी आरती और रवि के ऊपर लेकिन आरती चाहती थी कि रवि जल्दी आए तो वो उसके साथ कुछ सेक्स का खेल भी खेल लेती और फिर बाहर घूमते फिरते और फिर रात को तो होना ही था।

आरती भी चुप हो गई। और रवि को तैयार होने में मदद करने लगी। तभी

रवि- अच्छा एक बात बताओ तुम अगर घर में बोर हो जाती हो तो कही घूम फिर क्यों नहीं आती।

आरती- कहाँ जाऊ

रवि- अरे बाबा। कही भी। कुछ शापिंग कर लो कुछ दोस्तों से मिल-लो। ऐसे ही किसी माल में घूम आओ या फिर। कुछ भी तो कर सकती हो पूरे दिन। हाँ…

आरती- मेरा मन नहीं करता अकेले। और कोई साथ देने वाला नहीं हो तो अकेले क्या अच्छा लगता है।

रवि- अरे अकेले कहाँ कहो तो। आज से जया काकी से कह दूँगा मेरे जाने के बाद वो तुम्हें घुमा फिरा कर ले आएगी।

आरती- नहीं।

रवि- अरे एक बार निकलो तो सही। सब अच्छा लगेगा। ठीक है।

आरती- अरे नहीं। मुझे नहीं जाना। बस। काकी के साथ । नहीं। हाँ यह आलग बात थी कि मुझे गाड़ी चलानी आती होती तो में अकेली जा सकती थी।

रवि- अरे वाह तुमने तो। एक नई बात। खोल दी। अरे हाँ…

आरती- क्या।

रवि- अरे तुम एक काम क्यों नहीं करती। तुम गाड़ी चलाना सीख क्यों नहीं लेती। घर में 2 गाड़ी है। एक तो घर में रखे रखे धूल खा रही है। छोटी भी है। तुम चलाओ ना उसे।

रवि के घर में 2 गाड़ी थी। नई गाड़ी लेने के बाद आल्टो गाड़ी जो कि अब वैसे ही खड़ी थी घर मे।

आरती- क्या यार तुम भी। कौन सिखाएगा मुझे गाड़ी। आपके पास तो टाइम नहीं है।

रवि- अरे क्यों। अपने मनोज अंकल है ना उनका कार ड्राइविंग स्कूल तो है ही। मैं आज ही उन्हें कह देता हूँ। तुम्हें गाड़ी सीखा देगे।

और एकदम से खुश होकर आरती ने रवि के गालों को और फिर होंठों को चूम लिया।
रवि- और जब तुम गाड़ी चलाना सीख जाओगी। तो मैं पास में बैठा रहूँगा और तुम गाड़ी चलाना

आरती- क्यों।

रवि- और क्या। फिर हम तुम्हारे इधर-उधर हाथ लगाएँगे। और बहुत कुछ करेंगे। बड़ा मजा आएगा। ही। ही। ही।

आरती- धात। जब गाड़ी चलाउन्गी तब। छेड़छाड़ करेंगे। घर पर क्यों नहीं।

रवि- अरे तुम्हें पता नहीं। गाड़ी में छेड़ छाड़ में बड़ा मजा आता है। चलो यह बात पक्की रही। कि तुम। अब गाड़ी चलाना सीख लो। जल्दी से।

आरती- नहीं अभी नहीं। मुझे सोनल से पूछना है। इसके बाद। कल बताउन्गी ठीक है। और दोनों। नीचे आ गये डाइनिंग टेबल पर रवि का नाश्ता तैयार था। रामु काका का काम बिल्कुल टाइम से बँधा हुआ था। कोई भी देर नहीं होती थी। आरती आते ही रवि के लिए प्लेट तैयार करने लगी। जया काकी और मोनिका रसोई घर मे थी। सोनल का नास्ता तैयार कर रही थी।

रवि ने जल्दी से नाश्ता किया और घर के बाहर की ओर चल दिये बाहर रामु काका गाड़ी को सॉफ सूफ करके चमका कर रखते थे। रवि खुद ड्राइव करता था।

रवि के जाने के बाद आरती भी अपने कमरे में चली आई और कमरे को ठीक ठाक करने लगी। दिमाग में अब भी रवि की बात घूम रही थी। ड्राइविंग सीखने की। कितना मजा आएगा। अगर उसे ड्राइविंग आ गई तो। कही भी आ जा सकती है। और फिर रवि से कहकर नई गाड़ी भी खरीद सकती है। वाह मजा आ जाएगा यह बात उसके दिमाग में पहले क्यों नहीं आई। और जल्दी से अपने काम में लग गई। नहा धो कर जल्दी से तैयार होने लगी। वारड्रोब से चूड़ीदार निकाला और पहन लिया वाइट और रेड कॉंबिनेशन था। बिल्कुल टाइट फिटिंग का था। मस्त फिगर दिख रहा था। उसमें उसका।

तैयार होने के बाद जब उसने अपने को मिरर में देखा। गजब की दिख रही थी। होंठों पर एक खूबसूरत सी मुश्कान लिए। उसने अपने ऊपर चुन्नी डाली और। मटकती हुई नीचे जाने लगी। सीढ़ी के ऊपर से डाइनिंग स्पेस का हिस्सा दिख रहा था। वहां रामु काका। टेबल पर खाने का समान सजा रहे थे। उनका ध्यान पूरी तरह से। टेबल की ओर ही था। और कही नहीं। सोनल अभी तक टेबल पर नहीं आई थी। आरती थोड़ा सा अपनी जगह पर रुक गई। उसे कल की बात याद आ गई रामु काका की नजर और हाथों का सपर्श उसके जेहन में अचानक ही हलचल मचा दे रहा था।
उसे कल दोपहर की बात याद आने लगी । जया काकी को मैले कपड़े निकाल कर वाशिंग मशीन में वाशिंग के लिए दे कर बाहर गार्डन में आ गयी थी। ऐसे ही घूमते घूमते वो रामु काका के सर्वेंट क्वाटर के पास आ गयी।
तभी आरती को कुछ सिकारियो की आवाज आई। उसके कान खड़े हो गए ये आवाजे इस समय क्वाटर रूम से आ रही थी। वो दबे पांव क्वाटर की खिड़की के पास पहुची तो उसकी आंखें फटी रह गयी।
उसने अपने जीवन मे जो सोच भी नही सकति थी वो नजारा उनके सामने था।
मोनिका और उसके बापू रामु काका दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए थे।
मोनिका ने उस समय पेटीकोट के नीचे कुछ नहीं पहना था और रामु काका उसके बूब्स के खड़े निप्पल को अपनी मुठ्ठी में भरकर दबा रहे थे और साथ ही वो उसके दोनों बूब्स को भी मसल रहे थे. उस वजह से मोनिका मस्ती से भरी मज़ा ले रही थी. तभी रामु काका ने उससे पूछा, क्यों बेटी तुमको अच्छा लग रहा है? तो उसने कहा कि हाँ पापा मुझे बहुत मज़ा आ रहा है और रामु काका कहने लगे कि तुम इसी तरह कुछ देर बैठो, क्योंकि आज में तुमको शादी वाला पूरा मज़ा देता हूँ क्योंकि अभी तुम जवान हो और तुम यह मज़े लेने के लायक भी हो , आज मैं तुमको बहुत मज़े दूंगा. तुम अब प्यासी मत रहा करो। जब तक दोबारा तुमारा विवाह नही होता मैं ही तुमको खुश किया करुगा। रामु काका उसके खड़े बूब्स को निचोड़कर बोले, तो मोनिका एकदम उतावली होकर बोली उफ्फ्फ हाए पापा ऊहह्ह्ह सीईईईईइ इस तरह तो मुझे और भी अच्छा लगता है जब तुम कपड़े उतारकर नंगी होकर मज़ा लोगी तब और भी ज़्यादा मज़ा आएगा, वाह तुम्हारे बूब्स बड़े मस्त है.
आरती बाहर खड़ी हैरान और परेशान थी इन बाप बेटी की रास लीला देख कर ।
फिर मोनिका ने रामु काका से पूछा कि मेरे बूब्स इतने छोटे क्यों है? मा के तो बहुत बड़े है? वो कहने लगे कि तुम घबराओ मत बेटी तुम्हारे बूब्स को भी में तुम्हारी मा की तरह बड़ा कर दूँगा. बेटी तुम अपने पूरे कपड़े उतारकर नंगी होकर बैठो तब बड़ा मज़ा आएगा. फिर जब तक तुम्हारी दोबारा शादी नहीं होती तब में ही तुमको शादी वाला मज़ा दूँगा और तुम्हारे साथ में ही सुहागरात मनाऊंगा तुम्हारे बूब्स बहुत टाइट है और रामु काका पेटीकोट अंदर अपना एक हाथ डालकर उसके दोनों को बूब्स को दबातें हुए बोले कि बेटी अब तुम नंगी हो जाओ.

उसके बाद मोनिका अपने पूरे कपड़े उतारकर नंगी होकर रांड की तरह अपने दोनों पैरों को फैलाकर उस कुर्सी पर बैठ गयी. मोनिका के छोटे छोटे बूब्स तने हुए थे और उसको ज़रा सी भी शरम नहीं आ रही थी.

वहा आरती की दोनों गोरी जाँघो के बीच चूत पानी से लबालब भर गई थी

और उधर रामु काका मोनिका की गदराई हुई चूत को बहुत गौर से देख रहे थे. चूत का वो गुलाबी छेद बड़ा मस्त था, अब रामु काका अपने एक हाथ से गुलाबी कली को सहलाते हुए बोले हे राम बेटी तुम्हारी तो अभी जवान पड़ी है.

फिर उन्होंने मोनिका की चूत को ज़ोर से दबा दिया और काका के हाथ से मोनिका चूत के दबाए जाने पर में एकदम सनसना गयी और में मस्ती से भरी अपनी चूत को देख रही थी. तभी काका ने अपने अंगूठे को क्रीम से चुपड़कर मेरी चूत में डाल दिया. वो मोनिका की चूत को क्रीम से चिकनी कर रहे थे.

उधर अंगूठा अंदर जाते ही इधर आरती का बदन कांप गया और उसका हाथ अपने आप उसकी चुत पर चला गया और चुत को रगडने लगा।

तभी काका ने मोनिका की चूत से उनका अंगूठा बाहर किया तो वो उस पर लगे चूत के रस को देखकर बोले कि बेटी यह क्या है? क्या तुमने अच्छे से चुदवाकर मज़ा नही लिया है?

अब आरती काका के अनुभव को देखकर एकदम दंग रह गयी

अब जब काका ने मोनिका को चूत को फैलाने के लिए कहा तो उसने तुरंत अपने दोनों हाथ से अपनी चूत की दरार को फैलाकर पूरा खोल दिया. अब रामु काका अपने घुटनों के बल नीचे बैठ गये और वो उसकी रोयेदार चूत पर अपने होंठो को रख चूमने लगे.

आरती के लिए ये सब नया था शादी के इतने साल बाद भी रवि ने कभी उस्की चुत को नही चूमा था। वो आंखे फाडे सब देख रही थी।

फिर काका के पहली बार चूमने पर मोनिका कांप गयी. फिर दो चार बार चूमने के बाद काका ने अपनी जीभ को चूत के चारों तरफ चलाते हुए उन्होंने अब चूत को चाटना शुरू कर दिया और वो हल्के हल्के बाल भी चाट रहे थे, जिसकी वजह से मोनिका को ग़ज़ब का मज़ा आ रहा था. अब रामु काका चूत को चाटते हुए चूत का दाना भी चाट रहे थे मोनिका उस वजह से बड़ी मस्त थी

और रवि तो बस आरती को जल्दी से चोदकर सो जाता था न उसने कभी ज्यादा बूब्स दबाए थे जिसकी वजह से कुछ मज़ा और जोश नहीं आता था


, लेकिन यहा रामु काका तो एकदम चालाक समझदार खिलाड़ी की तरह मोनिका को वो पूरा मज़ा दे रहे थे और उन्होंने चूत के बाहर से चाट चाटकर पूरा गीला कर दिया था.

अब रामु काका ने अपनी जीभ को गुलाबी चूत के छेद में डाल दिया और जब उनकी जीभ चूत के छेद में गयी तो मोनिका की हालत पहले से ज्यादा खराब हो गयी और वो अब उस मस्ती से तड़प उठी
कुछ देर बाद रामु काका चूत को चाटकर अलग हुए और अब उन्होंने अपने खड़े लंड को चूत पर लगा दिया वो अपने लंड से आपनी बेटी की चूत को रगड़ने लगे थे.

कुछ देर पहले चूत की चटाई के बाद अब उनके लंड की रगड़ाई ने आरती को बिल्कुल पागल बना दिया था और वो अपने उतावलेपन से चुत को जोर जोर से रगडने लगी।

उधर मोनिका रामु काका से कहने लगी ,उफ्फ्फ्फ़ प्लीज बापू अब आप चोद भी दो मेरी चूत को आअहह ऊऊहह.

फिर रामु काका ने तड़पती हुई उस आवाज़ पर मोनिका के बूब्स को उसी समय ज़ोर से कसकर पकड़कर अपनी कमर को थोड़ा सा ऊपर उठाकर धक्का मार दिया. फिर एक करारा धक्का लगने पर रामु काका का आधा लंड मोनिका की चूत में चला गया और काका का मोटा और लंबा लंड मोनिका की छोटी सी चूत को ककड़ी की तरह चीरकर अंदर घुसा था और लंड के आधा अंदर जाते ही में दर्द से तड़पकर उनसे बोली आअहह्ह्ह ऊऊईईईई स्सीईईइ माँ में मर गयी बापू, प्लीज धीरे धीरे बापू आपका बहुत मोटा है उफ्फ्फ्फ़ बापू मेरी चूत इससे अब पूरी तरह से फट गयी है, मुझे बहुत अजीब सा दर्द हो रहा है, में मर जाउंगी प्लीज.

रामु काका का वो मोटा और लंबा लंड उसकी चूत में एकदम कसा हुआ था. मोनिका के उस दर्द और करहाने की वजह से काका ने उसी समय धक्के मारना बंद कर दिया और उन्होंने उसके बूब्स को मसलना शुरू किया. अब उसे कुछ देर बाद दोबारा थोड़ा सा मज़ा आने लगा था. फिर करीब 6-7 मिनट बाद उसका वो दर्द एकदम खत्म हो गया था और अब रामु काका अपने लंड को उसकी चूत में बिना रुके लगातार धक्के लगा रहे थे जिसकी वजह से धीरे धीरे काका का पूरा लंड उसकी चूत को चीरता फाड़ता हुआ अंदर घुस गया, लेकिन वो दोबारा उस दर्द से छटपटाने लगी थी

और आरती को ऐसा लगा जैसे किसी ने मोनिका की चूत में चाकू घुसाया है जिसने उस्की चूत के सभी जगह से छीलकर दर्द जलन पैदा कर दी थी और जिसको अब सहना उसके लिए बहुत मुश्किल था.

अब अपनी कमर को झटकते हुए मोनिका बोली उफ्फ्फ्फ़ आह्ह्ह्ह बापू आज मेरी फट गयी है, प्लीज अब इसको बाहर निकालो मुझे नहीं चुदवाना.

फिर रामु काका अपना लंड डालते हुए उसके गाल चाट रहे थे और वो उनके गाल चाटते हुए उससे बोले कि बेटी रो मत, अब तो पूरा चला गया, हर लड़की को पहली बार मोटा लण्ड लेने में दर्द होता है, लेकिन फिर मज़ा भी उसको उतना ही आता है. कुछ देर के बाद उसका करहाना अब बंद हुआ तो रामु काका ने धीरे धीरे धक्के देकर चोदने लगे. रामु काका का लंड कस कसकर उसकी चूत के अंदर आ जा रहा था और अब सच में उसे मज़ा आ रहा था. अब जब भी काका ऊपर से धक्का लगाते तो वो भी नीचे से अपनी गांड को उछालने लगती और मोनिका कहती है, "उसका पति तो मुझे केवल ऊपर से रगड़कर चोदकर चला गया , मेरी असली चुदाई तो अब मेरे बापू कर रहे है" फिर देखते ही देखते रामू काका ने अपना पूरा लंड उसकी चूत के अंदर तक डाल दिया था.

फिर आरती ने महसूस किया कि रामु काका का लंड तो रवि के लंड से बहुत दमदार और मज़ेदार था.

तभी रामु काका ने उससे पूछा क्यों बेटी अब तुम्हे दर्द तो नहीं हो रहा है ना? तो मोनिका ने उनसे कहा कि नहीं बापू अब तो मुझे बहुत मज़ा आ रहा है आह्ह्हहह बापू और ज़ोर ज़ोर से आप मुझे धक्के देकर चोदो और
रामु काका इसी तरह करीब बीस मिनट तक लगातार धक्के देकर मोनिका को चोदते रहे और फिर बीस मिनट के बाद रामू काका के लंड से गरम गरम मलाईदार पानी मोनिका की चूत में गिरने एक एक बूंद टपकने लगी,

जिसको बाहर आरती भी बहुत अच्छी तरह से महसूस कर रही थी और खुद भी एक हल्की सी चीख के साथ झड़ गयी। और उसकी चीख रामु और मोनिका ने सुन ली। दोनो ने एक साथ खिड़की की तरफ देखा। दोनो आरती को देख कर सकपका गए और एक दम से अलग होकर अपने कपड़े पहनने लगे।
आरती भी जान गई कि वो पकड़ी गई है और जैसे तैसे खुदको संभाला और घर की तरफ मुड़ कर दौड़ लगाई।
इसलिए अचानक उसका पाव मुड़ा और वो गिर गयी।
josef
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Re: आजाद पंछी जम के चूस

Post by josef »

आरती का पैर गार्डन के खड्डे में लचक खाकर मुड़ गया। दर्द के मारे आरती की हालत खराब हो गई।

वो वहीं नीचे, जमीन में बैठ गई और जोर से जया को आवाज लगाई- “जया काकी, जल्दी आओ…”

जया काकी दौड़ती हुई आयी और आरती को जमीन पर बैठा देखकर पूछा- क्या हुआ बहू रानी?

आरती- “उउउफफ्फ़…”और आरती अपनी एड़ी पकड़कर जया काकी की ओर देखने लगी।

जया जल्दी से कामया के पास जमीन पर ही बैठ गयी और नीचे झुक कर वो आरती की एड़ी को देखने लगी।

आरती- “अरे काकी देख क्या रही हो? कुछ करो, बहुत दर्द हो रहा है…”

जया- पैर मुड़ गया क्या?

आरती- “अरे हाँ… ना… प्लीज काकी, बहुत दर्द हो रहा है…”

जया जो की आरती के पैर के पास बैठी थी कुछ कर पाती तब तक रामु काका वहा आ गए और उन्होंने ने जया का हाथ पकड़कर हिला दिया, औरकहा- क्या सोच रही हो, कुछ करो गी या मदद करू?

जया- “नहीं नहीं, मैं कुछ करती हूँ,रुकिये। आप इन्हें उठाइये और वहां चेयर पर बैठाइए

आरती- “क्या काका… थोड़ा सपोर्ट तो दो…”

दर्द में आरती थोड़ी देर का मंजर भूल गयी थी कि वो क्या देख कर आ रही थी।

रामु थोड़ा सा आगे बढ़ा और आरती के बाजू को पकड़कर उठाया और थोड़ा सा सहारा देकर डाइनिंग चेयर तक ले जाने लगा। आरती का दर्द अब भी वैसा ही था। लेकिन बड़ी मुश्किल से वो रामु काका का सहारा लिए चेयर तक पहुँची और धम्म से चेयर पर बैठ गई। उसके पैरों का दर्द अब भी वैसा ही था। वो चाहकर भी दर्द को सहन नहीं कर पा रही थी, और बड़ी ही दयनीय नजरों से रामु काका की ओर देख रही थी।

रामु काका भी कुछ करने की स्थिति में नहीं था। जिसने आज तक आरती को नजरें उठाकर नहीं देखा था, वो आज आरती की बाहें पकड़कर चेयर तक लाया था। कितना नरम था आरती का शरीर, कितना मुलायम और कितना चिकना। रामु काका ने आज तक इतना मुलायम, चिकनी और नरम चीज नहीं छुआ था। रामु अपने में गुम था की उसे आरती की आवाज सुनाई दी।

आरती- “क्या काका, क्या सोच रहे हो?”और आरती ने अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर कर दिया और रामु की ओर देखते हुए अपने एड़ी की ओर देखने लगी।

रामु अब भी आरती के पास नीचे जमीन पर बैठा हुआ आरती की चिकनी टांगों की ओर देख रहा था। इतनी गोरी है बहू रानी और कितनी मुलायम। रामु अपने को रोक ना पाया, उसने अपने हाथों को बढ़ाकर आरती के पैरों को पकड़ ही लिया और अपने हाथों से उसकी एड़ी को धीरे-धीरे दबाने लगा। और हल्के हाथों से उसकी एड़ी के ऊपर तक ले जाता, और फिर नीचे की ओर ले आता था। और जोर लगाकर एड़ी को ठीक करने की कोशिश करने लगा।

रामु एक अच्छा मालिश करने वाला था उसे पता था की मोच का इलाज कैसे होता है? वो यह भी जानता था की आरती को कहां चोट लगी है, और कहां दबाने से ठीक होगा। पर वो तो अपने हाथों में बहू रानी की सुंदर टांगों में इतना खोया हुआ था की उसे यह तक पता नहीं चला की वो क्या कर रहा था? रामू अपने आप में खोया हुआ आरती के पैरों की मालिश कर रहा था और कभी-कभी जोर लगाकर आरती की एड़ी में लगी मोच को ठीक कर रहा था।

कुछ देर में ही आरती को आराम मिल गया और वो बिल्कुल दर्द मुक्त हो गई। उसे जो शांती मिली, उसकी कोई मिशाल नहीं थी। जो दर्द उसकी जान लेने को था अब बिल्कुल गायब था।

इतने में डोर से आवाज आई--- मम्मी,“क्या हुआ मम्मी?”

आरती- सोनल बेटा, कुछ नहीं गार्डन में घूमते हुए जरा एड़ी में मोच आ गई थी।

सोनल- “अरे…मम्मी कहीं ज्यादा चोट तो नहीं आई?” तब तक सोनल भी डाइनिंग रूम में दाखिल हो गई और आरती को देखा की वो चेयर पर बैठी है और रामु काका उसकी एड़ी को धीरे-धीरे दबाकर मालिश कर रहा था।

सोनल ने आरती से कहा- “जरा देखकर चलाकरो मम्मी। काका अब कैसी है मौच मम्मी की।

रामु- बिटिया, अब बहू रानी ठीक है
कहते हुए उसने आरती के एडी को छोडते हुए धीरे से नीचे रख दिया और चला गया उसने नजर उठाकर भी आरती की और नहीं देखा
लेकिन रामु के शरीर में एक आजीब तरह की हलचल मच गई थी। आज पता नहीं उसके मन उसके काबू में नहीं था। रवि और आरती की शादी के इतने दिन बाद आज पता नहीं रामु जाने क्यों कुछ बिचालित था। बहू रानी के मोच के कारण जो भी उसने आज किया उसके मन में एक ग्लानि सी थी । क्यों उसका मन बहू के टांगों को देखकर इतना बिचलित हो गया था उसे नहीं मालूम लेकिन जब वो वापस किचेन में आया तो उसका मन कुछ भी नहीं करने को हो रहा था। उसके जेहन में बहू के एड़ी और घुटने तक के टाँगें घूम रही थी कितना गोरा रंग था बहू का। और कितना सुडोल था और कितना नरम और कोमल था उसका शरीर।
सोचते हुए वो ना जाने क्या करता जा रहा था। इतने में
सोनल की आवाज आयी।

सोनल- रामु काका जरा हल्दी और दूध ला दो मम्मी को कही दर्द ना बढ़ जाए।
रामु काका- जी। बिटिया। अभी लाया।
और रामु फिर से वास्तविकता में लाट आया। और दूध और हल्दी मिलाकर वापस डाइनिंग रूम में आया। सोनल और आरती वही बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे। रामु के अंदर आते ही आरती ने नजर उठाकर रामु की ओर देखा पर रामू तो नजर झुकाए हुए डाइनिंग टेबल पर दूध का ग्लास रखकर वापस किचेन की तरफ चल दिया।

आरती- रामु काका थैंक्स

रामू- जी। अरे इसमें क्या में तो इस घर का नौकर हूँ। थैंक्स क्यों बहू जी

कामया- अरे आपको क्या बताऊ कितना दर्द हो रहा था। लेकिन आप तो कमाल के हो फट से ठीक कर दिया।
और कहती हुई वो रामू की ओर बढ़ी और अपना हाथ बढ़ा कर रामु की ओर किया और आखें उसकी। रामु की ओर ही थी। रामू कुछ नहीं समझ पाया पर हाथ आगे करके आरती क्या चाहती है

आरती- अरे हाथ मिलाकर थैंक्स करते है।

और एक मदहोश करने वाली हँसी पूरे डाइनिंग रूम में गूँज उठी। सोनल भी वही बैठी हुई मुश्कुरा रही थी उनके चेहरे पर भी कोई सिकन नहीं थी की मम्मी नोकर से हाथ मिलाना चाहती थी। बड़े ही डरते हुए उसने अपना हाथ आगे किया और धीरे से आरती की हथेली को थाम लिया। आरती ने भी झट से रामु काका के हथेली को कसकर अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया और मुश्कुराते हुए जोर से हिलाने लगी और थैंक्स कहा। रामू काका जो की अब तक किसी सपने में ही था और भी गहरे सपने में उतरते हुए उसे दूर बहुत दूर से कुछ थैंक्स जैसा सुनाई दिया।
उसके हाथों में अब भी आरती की नाजुक हथेली थी जो की उसे किसी रूई की तरह लग रही थी और उसकी पतली पतली उंगलियां जो की उसके मोटे और पत्थर जैसी हथेली से रगड़ खा रही थी उसे किसी स्वप्न्लोक में ले जा रही थी रामू की नज़र आरती की हथेली से ऊपर उठी तो उसकी नजर आरती की दाई चूचि पर टिक गई जो की उसकी महीन लाइट ब्लू कलर की साड़ी के बाहर आ गई थी और डार्क ब्लू कलर के लो कट ब्लाउज से बहुत सा हिस्सा बाहर की ओर दिख रहा था आरती अब भी रामू का हाथ पकड़े हुए हँसते हुए रामु को थैंक्स कहकर सोनल की ओर देख रही थी और अपने दोनों नाजुक हथेली से रामू की हथेली को सहला रही थी।

आरती- अरे हमें तो पता ही नहीं था आप तो जादूगर निकले

रामू अपनी नजर आरती के उभारों पर ही जमाए हुए। उसकी सुंदरता को अपने अंदर उतार रहा था और अपनी ही दुनियां में सोचते हुए घूम रहा था।
तभी आरती की नजर रामू काका की नजरसे टकराई और उसकी नजर का पीछा करती हुई जब उसने देखा की रामु की नजर कहाँ है तो वो। अबाक रह गई उसके शरीर में एक अजीब सी सनसनी फेल गई वो रामू चाचा की ओर देखते हुए जब सोनल की ओर देखा तो पाया की सोनल उठकर अपने कमरे की ओर जा रही थी। आरती का हाथ अब भी रामू के हाथ में ही था। आरती रामू की हथेली की कठोरता को अपनी हथेली पर महसूस कर पा रही थी उसकी नजर जब रामू की हथेली के ऊपर उसके हाथ की ओर गई तो वो और भी सन्न रह गई मजबूत और कठोर और बहुत से सफेद और काले बालों का समूह था वो। देखते ही पता चलता था कि कितना मजबूत और शक्ति शाली है रामू का शरीर। आरती के पूरे शरीर में एक उत्तेजना की लहर दौड़ गई जो कि अब तक उसके जीवन काल में नहीं उठ पाई थी ना ही उसे इतनी उत्तेजना अपने पति के साथ कभी महसूस हुए थी और नही कभी उसके इतनी जीवन में। ना जाने क्या सोचते हुए आरती ने कहा
कहाँ खो गये काका। और धीरे से अपना हाथ रामू के हाथ से अलग कर लिया।

रामु जैसे नींद से जागा था झट से आरती का हाथ छोड़ कर नीचे चेहरा करते हुए।
रामू- अरे बहू रानी हम तो सेवक है। आपके हुकुम पर कुछ भी कर सकते है इस घर का नमक खाया है।
और सिर नीचे झुकाए हुए तेज गति से किचेन की ओर मुड़ गया मुड़ते हुए उसने एक बार फिर अपनी नजर आरती के उभारों पर डाली और मुड़कर चला गया। आरती रामु को जाते हुए देखती रही ना जाने क्यों। वो चाह कर भी रामू की नजर को भूल नहीं पा रही थी। उसकी नजर में जो भूख आरती ने देखी थी। वो आज तक आरती ने किसी पुरुष के नजर में नहीं देखी थी। ना ही वो भूख उसने कभी अपने पति की ही नज़रों में देखी थी। जाने क्यों आरती के शरीर में एक सनसनी सी फेल गई। उसके पूरे शरीर में सिहरन सी रेंगने लगी थी। उसके शरीर में अजीब सी ऐंठन सी होने लगी थी। अपने आपको भूलने के लिए।

उसने अपने सिर को एक झटका दिया और
मुड़कर वापिश हकीकत में लौट आयी जहाँ रामू काका सोनल का नास्ता लगा रहे थे लेकिन आरती शून्य की ओर एकटक देखती रही। रामु काका फिर से उसके जेहन पर छा गये थे। वो अब भी वही अपनी पुरानी धोती और एक फाटूआ पहने हुए थे। (फाटूआ एक हाफ बनियान की तरह होता है। जो कि पुराने लोग पहना करते थे)

वो खड़े-खड़े रामु काका के बाजू को ध्यान से देख रही थी। कितने बाल थे। उनके हाथों में। किसी भालू की तरह। और कितने काले भी। भद्दे से दिखते थे। पर खाना बहुत अच्छा बनाते थे। इतने में आरती के आने की आहट सुनकर रामु जल्दी से किचेन की ओर भागा और जाते जाते। सीडियो की तरफ भी देखता गया सीढ़ी पर कोने में आरती खड़ी थी। नजर पड़ी और चला गया उसकी नजर में ऐसा लगा कि उसे किसी का इंतजार था। शायद आरती का। आरती के दिमाग़ में यह बात आते ही वो सनसना गई। पति की आधी छोड़ी हुई उत्तेजना उसके अंदर फिर से जाग उठी। वो वहीं खड़ी हुई रामु काका को किचेन में जाते हुए। देखती रही। आरती के पीछे-पीछे सोनल भी डाइनिंग रूम में आ गई थी।

आरती ने भी अपने को संभाला और। एक लंबी सी सांस छोड़ने के बाद वो भी जल्दी से नीचे की ओर चल पड़ी। सोनल टेबल पर बैठ गयी थी। आरती जाकर सोनल को खाना लगाने लगी। और इधर-उधर की बातें करते हुए सोनल खाना खाने लगी। आरती अब भी खड़ी हुई। सोनल के प्लेट का ध्यान रख रही थी। सोनल खाना खाने में मस्त थीं। और आरती खिलाने में। खड़े-खड़े सोनल को कुछ देने के लिए। जब उसने थोड़ी सी नजर घुमाई तो उसे। किचेन का दरवाजा हल्के से नजर आया। तो रामू काका के पैरों पर नजर पड़ी। तो इसका मतलब रामू काका किचेन से छुप कर आरती को पीछे से देख रहे है।
आरती अचानक ही सचेत हो गई। खुद तो टेबल पर सोनल को खाना परोस रही थी। पर दिमाग और पूरा शरीर कही और था। उसके शरीर में चीटियाँ सी दौड़ रही थी। पता नहीं क्यों। पूरे शरीर सनसनी सी दौड़ गई थी आरती के। उसके मन में जाने क्यों। एक अजीब सी हलचल सी मच रही थी। टाँगें। अपनी जगह पर नहीं टिक रही थी। ना चाहते हुए भी वो बार-बारइधर-उधर हो रही थी। एक जगह खड़े होना उसके लिए दुश्वार हो गया था। अपनी चुन्नी को ठीक करते समय भी उसका ध्यान इस बात पर था कि रामू काका पीछे से उसे देख रहे है। या नहीं। पता नहीं क्यों। उसे इस तरह का। काका का छुप कर देखना। अच्छा लग रहा था। उसके मन को पुलकित कर रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ रही थी।

आरती का ध्यान अब पूरी तरह से। अपने पीछे खड़े काका पर था। नजर सामने पर ध्यान पीछे था। उसने अपनी चुन्नी को पीछे से हटाकर दोनों हाथों से पकड़ कर अपने सामने की ओर हाथों पर लपेट लिया और खड़ी होकर। सोनल को खाते हुए देखती रही। पीछे से चुन्नी हटने की वजह से। उसकी पीठ और कमर और नीचे नितंब बिल्कुल साफ-साफ शेप को उभार देते हुए दिख रहे थे। आरती जानती थी कि वो क्या कर रही है। (एक कहावत है। कि औरत को अपनी सुंदरता को दिखाना आता है। कैसे और कहाँ यह उसपर डिपेंड करता है।)। वो जानती थी कि काका अब उसके शरीर को पीछे से अच्छे से देख सकते है। वो जान बूझ कर थोड़ा सा झुक कर सोनल को खाने को देती थी। और थोड़ा सा मटकती हुई वापस खड़ी हो जाया करती थी। उसके पैर अब भी एक जगह नहीं टिक रहे थे।

इतने में सोनल का खाना हो गया तो
सोनल- अरे । मम्मी आप भी खा लो। कब तक खड़ी रहोगी। चलो बैठ जाओ।

आरती- नही सोनल अभी भूख नही है मैं थोड़ी देर से खा लूँगी।

सोनल--ठीक है मम्मी,

और बीच में ही बात अधूरी छोड़ कर सोनल भी खाने के टेबल से उठ गई और वाश बेसिन में हाथ दो कर। मूडी तब तक आरती उसका बेग तैयार करके उसके रूम से ले आयी। और सोनल को लेकर बाहर तक छोड़ने आयी।
सोनल स्कूल बस से स्कूल जाती थी।
आरती रवि और सोनल के साथ नास्ता कर लेती थी पर आज उसने जान बूझ कर अपने को रोक लिया था। वो देखना चाहती थी। कि जो वो सोच रही थी। क्या वो वाकई सच है या फिर सिर्फ़ उसकी कल्पना मात्र था। वो अंदर आते ही दौड़ कर अपने कमरे की ओर चली गई।

रामु जब तक डाइनिंग रूम में आता तब तक आरती अपने कमरे में जा चुकी थी। रामु खड़ा-खड़ा सोचने लगा कि क्या बात है आज बहू ने साहब के साथ क्यों नहीं खाया। और टेबल से झूठे प्लेट और ग्लास उठाने लगा। पर भीतर जो कुछ चल रहा था। वो सिर्फ रामू ही जानता था। उसकी नजर बार-बार सीढ़ियो की ओर चली जाती थी। कि शायद बहू उतर रही है। पर। जब तक वो रूम में रहा तब तक आरती नहीं उतरी

रामू सोच रहा था कि जल्दी से आरती खाना खा ले। तो वो आगे का काम निबटाए और क्वाटर में जाकर मोनिका के कुछ मस्ती कर पाए पर पता नहीं आरती को क्या हो गया था। लेकिन वो तो सिर्फ़ एक नौकर था। उसे तो मालिको का ध्यान ही रखना है। चाहे जो भी हो। यह तो उसका काम है। सोचकर। वो प्लेट और ग्लास धोने लगा। रामू अपने काम में मगन था कि किचेन में अचानक ही बहुत ही तेज सी खुशबू फेल गई थी। उसने पलटकर देखा आरती खड़ी थी किचेन के दरवाजे पर।

रामु आरती को देखता रह गया। जो चूड़ीदार वो पहेने हुए थी वो चेंज कर आई थी। एक महीन सी लाइट ईलोव कलर की साड़ी पहने हुए थी और साथ में वैसा ही स्लीव्ले ब्लाउस। एक पतली सी लाइन सी दिख रही थी। साड़ी जिसने उसकी चूचियां के उपर से उसके ब्लाउज को ढाका हुआ था। बाल खुले हुए थे। और होंठों पर गहरे रंग का लिपस्टिक्स था। और आखों में और होंठों में एक मादक मुस्कान लिए आरती किचेन के दरवाजे पर। एक रति की तरह खड़ी थी।

रामू सबकुछ भूलकर सिर्फ़ आरती के रूप का रसपान कर रहा था उसने आज तक आरती को इतने पास से या फिर इतने गौर से कभी नहीं देखा था किसी अप्सरा जैसा बदन था उसका उतनी ही गोरी और सुडोल क्या फिगर है और कितनी सुंदर जैसे हाथ लगाओ तो काली पड़ जाए वो अपनी सोच में डूबा था कि उसे आरती की खिलखिलाती हुई हँसी सुनाई दी

आरती- अरे भीमा रामू काका खाना लगा दो भूख लगी है और नल बंद करो सब पानी बह जाएगा और हँसती हुई पलटकर डाइनिंग रूम की ओर चल दी। रामू आरती को जाते हुए देखता रहा पता नहीं क्यों आज उसके मन में कोई डर नहीं था कि कल जो आरती ने देखा था उसके बाद उसका क्या होना था। लेकिन आज आरती के व्यव्हार को देख कर रामु को कुछ कुछ समझ आ रहा था। जो इज़्ज़त वो इस घर के लोगों को देता था वो कहाँ गायब हो गई थी उसके मन से पता नहीं वो कभी भी घर के लोगों की तरफ देखना तो दूर आखें मिलाकर भी बात नहीं करता था पर जाने क्यों वो आज बिंदास आरती को सीधे देख भी रहा था और उसकी मादकता का रसपान भी कर रहा था जाते हुए आरती की पीठ थी रामू की ओर जो कि लगभग आधे से ज्यादा खुली हुई थी शायद सिर्फ़ ब्रा के लाइन में ही थी या शायद ब्रा ही नहीं पहना होगा पता नहीं लेकिन महीन सी ब्लाउज के अंदर से उसका रंग साफ दिख रहा था गोरा और चमकीला सा और नाजुक और गदराया सा बदन वैसे ही हिलते हुए नितंब जो कि एक दूसरे से रगड़ खा रही थी और साड़ी को अपने साथ ही आगे पीछे की ओर ले जा रही थी

रामु खड़ा-खड़ा आरती को किचेन के दरवाजे पर से ओझल होते देखता रहा और किसी बुत की तरह खड़ा हुआ प्लेट हाथ में लिए शून्य की ओर देख रहा था तभी उसे आरती की आवाज़ सुनाई दी

आरती- काका खाना तो लगा दो

रामू झट से प्लेट सिंक पर छोड़ नल बंद कर लगभग दौड़ते हुए डाइनिंग रूम में पहुँच गया जैसे कि देर हो गई तो शायद आरती उसके नजर से फिर से दूर ना हो जाए वो आरती को और भी देखना चाहता था मन भरकर उसके नाजुक बदन को उसके खुशबू को वो अपनी सांसों में बसा लेना चाहता था झट से वो डाइनिंग रूम में पहुँच गया

रामु- जी बहू अभी देता हूँ

और कहते हुए वो आरती को प्लेट लगाने लगा आरती का पूरा ध्यान टेबल पर था वो रामु के हाथों की ओर देख रही थी बालों से भरा हुआ मजबूत और कठोर हाथ प्लेट लगाते हुए उसके मांसपेशियों में हल्का सा खिचाव भी हो रहा था उससे उसकी ताकत का अंदाज़ा लगाया जा सकता था आरती के जेहन में कल की बात घूम गई जब रामू काका मोनिका के बूब्स दबा रहै थे और जब उसके पैरों की मालिश की थी कितने मजबूत और कठोर हाथ थे और रामु जो कि आरती से थोड़ा सा दूर खड़ा था प्लेट और कटोरी, चम्मच को आगे कर फिर खड़ा हो गया हाथ बाँध कर पर आरती कहाँ मानने वाली थी आज कुछ प्लॅनिंग थी उसके मन में शायद

आरती- अरे काका परोश दीजीएना प्लीज और बड़ी इठलाती हुई दोनों हाथो को टेबल पर रखकर बड़ी ही अदा से रामू की ओर देखा रामू जो कि बस इंतजार में ही था कि आगे क्या करे तुरंत आर्डर मिलते ही खुश हो गया वो थोड़ा सा आगे बढ़ कर आरती के करीब खड़ा हो गया और सब्जी और फिर पराठा और फिर सलाद और फिर दाल और चपाती पर उसकी आँखे आरती पर थी उसकी बातों पर थी उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू पर थी नजरें ऊपर से उसके उभारों पर थी जो की लगभग आधे बाहर थे ब्लाउज से

सफेद गोल गोल से मखमल जैसे या फिर रूई के गोले से ब्लाउज का कपड़ा भी इतना महीन था कि अंदर से ब्रा की लाइनिंग भी दिख रही थी रामू अपने में ही खोया आरती के नजदीक खड़ा खड़ा यह सब देख रहा था और आरती बैठी हुई कुछ कहते हुए अपना खाना खा रही थी आरती को भी पता था कि काका की नजर कहाँ है पर वो तो चाहती भी यही थी उसके शरीर में उत्तेजना की जो ल़हेर उठ रही थी वो आज तक शादी के बाद रवि के साथ नहीं उठी थी वो अपने को किसी तरह से रोके हुए बस मजे ले रही थी वो जानती थी कि वो खूबसूरत है पर वो जो सेक्सी दिखती है यह वो साबित करना चाहती थी शायद अपने को ही

पर क्यों क्या मिलेगा उसे यह सब करके पर फिर भी वो अपने को रोक नहीं पाई थी जब से उसे रामू काका और मोनिका की चुदाई की नजर लगी थी वो काम अग्नि में जल उठी थी तभी तो कल रात को रवि के साथ एक वाइल्ड सेक्स का मजा लिया था पर वो मजा नहीं आया था पर हाँ… रवि उतेजित तो था रोज से ज्यादा पर उसने कहा नहीं आरति को कि वो सेक्सी थी आरती तो चाहती थी कि रवी उसे देखकर रह ना पाए और उसे पर टूट पड़े उसे निचोड़ कर रख दे बड़ी ही बेदर्दी से उसे प्यार करे वो तो पूरा साथ देने को तैयार थी पर रवि ऐसा क्यों नहीं करता वो तो उसकी पत्नी थी वो तो कुछ भी कर सकता है उसके साथ पर क्यों वो हमेशा एग्ज़िक्युटिव स्टाइल में रहता है क्यों नहीं सेक्स के समय भूखा दरिन्दा बन जाता क्यों नहीं है उसमें इतनी समझ उसके देखने का तरीका भी वैसा नहीं है कि वो खुद ही उसके पास भागी चली जाए बस जब देखो तब बस पति ही बने रहते है कभी-कभी प्रेमी भी तो बन सकता है वो .

लेकिन रामू काका की नज़रों में उसे वो भूख दिखी जो कि उसे अपने पति में चाहिए थी रामू काका की लालायत नज़रों ने आरती के अंदर एक ऐसी आग भड़का दी थी कि आरती एक शुशील और पढ़ी लिखी बड़े घर की बहू आज डाइनिंग टेबल पर अपने ही नौकर को लुभाने की चाले चल रही थी आरती जानती थी कि रामू काका की नजर कहाँ है और वो आज क्यों इस तरह से खुलकर उसकी ओर देख और बोल पा रहे है वो रामू काका को और भी उकसाने के मूड में थी वो चाहती थी कि काका अपना आपा खो दे और उस पर टूट पड़े इसलिए वो हर वो कदम उठा लेना चाहती थी वो

जान बूझ कर अपनी साड़ी का पल्लू और भी ढीला कर दिया ताकि रामु को ऊपर से उसकी गोलाइयो का पूरा लुफ्त ले सके और उनके अंदर उठने वाली आग को वो आज भड़काना चाहती थी

आरती के इस तरह से बैठे रहने से, रामू ना कुछ कह पा रहा था और नहीं कुछ सोच पा रहा था वो तो बस मूक दर्शक बनकर आरती के शरीर को देख रहा था ओर अपने बूढ़े हुए शरीर में उठ रही उत्तेजना के लहर को छुपाने की कोशिश कर रहा था वो चाह कर भी अपनी नजर आरती की चुचियों पर से नहीं हटा पा रहा था और ना ही उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू से दूर जा पा रहा था वो किसी स्टॅच्यू की तरह खड़ा हुआ अपने हाथ टेबल पर रखे हुए थोड़ा सा आगे की ओर झुका हुआ


आरती की ओर एकटक टकटकी लगाए हुए देख रहा था और अपने गले के नीचे थूक को निगलता जा रहा था उसका गला सुख रहा था उसने इस जनम में भी कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की थी कि उसके आरती जैसी औरत, एक बड़े घर की बहू इस तरह से अपना यौवन देखने की छूट देगी और वो इस तरह से उसके पास खड़ा हुआ इस यौवन का लुफ्त उठा सकता था देखना तो दूर आज तक उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था नजर उठाकर देखना तो दूर नजर जमीन से ऊपर तक नहीं उठी थी उसने कभी और आज तो जैसे जन्नत के सफर में था वो एक अप्सरा उसके सामने बैठी थी वो उसके आधे खुले हुए चूचों को मन भर के देख रहा था

रामु उसकी खुशबू सूंघ सकता था और शायद हाथ भी लगा सकता था पर हिम्मत नहीं हो रही थी तभी आरती की आवाज उसके कानों में टकराई

आरती- अरे काका क्या कर रहे हो परांठा खतम हो गया

रामू- जी जी यह लो।

और जब तक वो हाथ बढ़ा कर परान्ठा आरती की प्लेट में रखता तब तक आरती का हाथ भी उसके हाथों से टकराया और आरती उसके हाथों से अपना परान्ठा लेकर खाने लगी उसका पल्लू अब थोड़ा और भी खुल गया था उसके ब्लाउज में छुपे हुए चुचे उसको पूरी तरह से दिख रहे थे नीचे तक उसके पेट और जहां से साड़ी बाँधी थी वहां तक रामू काका की उत्तेजना में यह हालत थी कि अगर घर में जया नहीं होती तो शायद आज वो आरती का रेप ही कर देता पर नौकर था इसलिए चुपचाप प्रसाद में जो कुछ मिल रहा था उसी में खुश हो रहा था।
josef
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Re: आजाद पंछी जम के चूस

Post by josef »

वो चुपचाप आरति को निहार रहा था आरती कुछ कहती हुई खाना भी खा रही थी पर उसका ध्यान आरती की बातों पर बिल्कुल नहीं था


हाँ ध्यान था तो बस उसके ब्लाउज पर और उसके अंदर से दिख रहे चिकने और गुलाबी रंग के शरीर का वो हिस्सा जहां वो शायद कभी भी ना पहुँच सके वो खड़ा-खड़ा बस सोच ही सकता था और उसे बस वो इस अप्सरा की खुशबू को अपने जेहन में समेट सकता था इसी तरह कब समय खतम हो गया पता भी नहीं चला पता चला तब जब आरती ने उठते हुए कहा
आरती- बस हो गया काका

रामु- जी जी

और अपनी नजर फिर से नीचे की और झुक कर हाथ बाँधे खड़ा हो गया आरती उठी और वाशबेसिन पर गई और झुक कर हाथ मुँह धोने लगी झुकने से उसके शरीर में बँधी साड़ी उसके नितंबों पर कस गया जिससे कि उसकी नितंबों का शेप और भी सुडोल और उभरा हुआ दिखने लगा रामु पीछे खड़ा हुआ मंत्र मुग्ध सा आरती को देखता रहा और सिर्फ़ देखता रहा आरती हाथ धो कर पलटी तब भी रामु वैसे ही खड़ा था उसकी आखें पथरा गई थी मुख सुख गया था और हाथ पाँव जमीन में धस्स गये थे पर सांसें चल रही थी या नहीं पता नहीं पर वो खड़ा था आरती की ओर देखता हुआ आरती जब पलटी तो उसकी साड़ी उसके ब्लाउज के ऊपर नहीं थी कंधे पर शायद पिन के कारण टिकी हुई थी और कमर पर से जहां से मुड़कर कंधे तक आई थी वहाँ पर ठीक ठाक थी पर जहां ढकना था वहां से गायब थी और उसका पूरा यौवन या फिर कहिए चूचियां जो कि किसी पहाड़ के चोटी की तरह सामने की ओर उठे हुए रामु काका की ओर देख रही थी रामु अपनी नजर को झुका नहीं पाया वो बस खड़ा हुआ आरती की ओर देखता ही रहा और बस देखता ही जा रहा था आरती ने भी रामू की ओर जरा सा देखा और मुड़कर सीढ़ी की ओर चल दी अपने कमरे की ओर जाने के लिए उसने भी अपनी साड़ी को ठीक नहीं किया था क्यों रामू सोचने लगा शायद ध्यान नहीं होगा या फिर नींद आ रही होगी या फिर बड़े लोग है सोच भी नहीं सकते कि नौकर लोग की इतनी हिम्मत तो हो ही नहीं सकती या फिर कुछ और आज आरती को हुआ क्या है या फिर मुझे ही कुछ हो गया है


पीछे से आरती का मटकता हुआ शरीर किसी साप की तरह बलखाती हुई चाल की तरह से लग रहा था जैसे-जैसे वो एक-एक कदम आगे की ओर बढ़ाती थी उसका दिल मुँह पर आ जाता वो आज खुलकर आरती के हुश्न का लुफ्त लेरहा था उसको रोकने वाला कोई नहीं था घर पर जया बाहर कपड़े धो रही थी और मोनिका क्वाटर में थी। आरती अपने कमरे की ओर जा रही थी और चली गई सब शून्य हो गया खाली हो गया कुछ भी नहीं था सिवाए रामू के जो कि डाइनिंग टेबल के पास कुछ झुटे प्लेट के पास सीढ़ी की ओर देखता हुआ मंत्र मुग्ध सा खड़ा था सांसें भी चल रही थी कि नहीं पता नहीं रामू की नजर शून्य से उठकर वापस डाइनिंग टेबल पर आई तो कुछ झुटे प्लेट ग्लास पर आके अटक गई आरती की जगह खाली थी पर उसकी खुशबू अब भी डाइनिंग रूम में फेली हुई थी


पता नहीं या फिर सिर्फ़ रामु के जेहन में थी रामू शांत और थका हुआ सा अपने काम में लग गया धीरे-धीरे उसने प्लेट और झुटे बर्तन उठाए और किचेन की ओर मुड़ गया पर अपनी नजर को सीढ़ियो की ओर जाने से नहीं रोक पाया था शायद फिर से आरती दिख जाए पर वहाँ तो बस खाली था कुछ भी नहीं था सिर्फ़ सन्नाटा था मन मारकर रामु किचेन में चला गया
ओर उधर आरती भी जब अपने कमरे में पहुँची तो पहले अपने आपको उसने मिरर में देखा साड़ी तो क्या बस नाम मात्र की साड़ी पहने थी वो पूरा पल्लू ढीला था और उसकी चुचियों से हटा हुआ था दोनों चूचियां बिल्कुल साफ-साफ ब्लाउज में से दिख रहा था क्लीवेज तो और भी साफ था आधे खुले गले से उसके चूचियां लगभग पूरी ही दिख रही थी वो नहीं जानती थी कि उसके इस तरह से बैठने से रामु काका पर क्या असर हुआ था पर हाँ… कल के बाद से वो बस अंदाज़ा ही लगा सकती थी कि आज काका ने उसे जी भरकर देखा होगा वो तो अपनी नजर उठाकर नहीं देख पाई थी पर हाँ… देखा तो होगा और यह सोचते ही आरती एक बार फिर गरम होने लगी थी उसकी जाँघो के बीच में हलचल मच गई थी निपल्स कड़े होने लगे थे वो दौड़ कर बाथरूम में घुस गई और अपने को किसी तरह से शांत करके बाहर आई
आरती धम्म से बिस्तर पर अपनी साड़ी उतारकर लेट गई सोचते हुए पता नहीं कब वो सो गई शाम को फिर से वही पति का इंतजार।
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