भरोसे की कसौटी

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josef
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भरोसे की कसौटी

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भरोसे की कसौटी

ट्रिन ट्रिन ... ट्रिन ट्रिन.... ट्रिन.. ट्रिन... | लैंडलाइन फोन की घंटी बज रही थी | मैं ऊपर अपने कमरे में सो रहा था | फोन था तो नीचे पर सुबह के टाइम इसकी आवाज़ कुछ ज़्यादा ही ज़ोरों से आ रही थी | मैंने अपने ऊपर अपना दूसरा तकिया बिल्कुल अपने कान के ऊपर रख लिया | आवाज़ फिर भी आ रही थी पर इस बार थोड़ी कम थी | कुछ सेकंड्स में ही फोन की आवाज़ आनी बंद हो गयी | मैं अपने धुन में सोया रहा | कितना समय बीता पता नहीं, दरवाज़े पर दस्तक हो रही थी – ‘ठक ठक ठक ठक’ | मैंने अनसुना सा किया पर दस्तक थमने का नाम ही नहीं ले रही थी | झुँझला कर मैं उठा और जा कर दरवाज़ा खोला | सामने चाची खड़ी थी | मुस्कुराती हुई | थोड़ा मज़ाकिया गुस्सा दिखाते हुए अपने दोनों हाथ अपने कमर के दोनों तरफ़ रख कर थोड़ी तीखी अंदाज़ में बोली, “अभयsss….! ये क्या है? सुबह के सवा आठ बज रहे हैं | अभी तक सो रहे हो ?” मेरी आँखों में अभी भी नींद तैर रही थी, थोड़ा अनसुना सा करते हुए नखरे दिखाते हुए कहा, “ओफ्फ्फ़हो चाची... प्लीज़ .. सोने दो ना | अभी उठने का मन नहीं है और वैसे भी आज सन्डे है | कौन भला सन्डे को जल्दी उठता है ? और अगर उठता भी है तो मैं क्यूँ उठूँ ? क्या करूँगा इतनी जल्दी उठ कर?” मैंने एक सांस में ही कह दिया | चाची आश्चर्य से आँखें गोल बड़ी बड़ी करती हुई अपने होंठों पर हाथ रखते हुए बोली, “हाय राम..! देखो तो, लड़का कैसे बहस कर रहा है ? अरे पगले, कोई नहीं उठेगा तो इसका मतलब की तू भी नहीं उठेगा? चल जल्दी नीचे चल... नाश्ता तैयार है .. गर्म है.. जल्दी चल के खा ले... मुझे और भी बहुत काम है |”

इतना कह कर चाची मुझे साइड कर मेरे बिस्तर के पास चली गयी और मेरे बिस्तर को ठीक करने लगी | तकिया ठीक की, ओढने वाले चादर को समेट कर रखी और फिर बिस्तर पर बिछे चादर को हाथों से झटके दे कर उसे भी ठीक करने लगी | बिस्तर पर बीछे चादर को ठीक करते समय उनको थोड़ा आगे की ओर झुकना पड़ा और इससे उनके गोल सुडोल नितम्ब पीछे यानि के मेरी तरफ ऊपर हो के निकल आये | मैं तो चाची को देखे ही जा रहा था और अब तो नितम्बों के इस तरह से निकल आने से मैं इस सुन्दर दृश्य को देखकर मोहित हो उठा था | चाची हमेशा से ही मुझे बड़ी प्यारी लगती थी | हिरण के छोटे बच्चे के तरह उनके काली, बड़ी और चमकीली आँखें, मोतियों जैसे सजीले दांत, सुरीली मनमोहक गले की आवाज़.. आँखों के ऊपर धनुषाकार काली आई ब्रो तो अपनी अलग ही अंदाज़ दर्शाती थी.. और ये सब अपनी तरफ़ सबको बरबस ही खींच लेती थी | लाली मिश्रित उनके गाल, जब वो हँसती या मुस्कुराती तो गालों के उपरी हिस्से और ऊपर की तरफ़ होते हुए उनके गालों के साइड एक हल्का सा डिंपल बना देता था | रंग की बात करूँ तो चाची सांवली तो नहीं थी पर बहुत गोरी भी नहीं थी, मीडियम रंग था | साफ़ रंग | देहयष्टि अर्थार्त फिगर की बात करूँ तो उनकी फिगर थी प्रायः 36dd-32-36 | उनके वक्षों को लेकर मैं गलत भी हो सकता हूँ .. हो सकता है वो 36dd ना हो कर 38 हो | खैर, जो भी हो.. थे तो काफ़ी बड़े बड़े.. | किसी भी पुरुष का सिर घूमा दे | यहाँ तक की मैंने तो आस पड़ोस की कई औरतों को भी चाची की फिगर को ले कर इर्ष्या करते देखा है |
josef
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Re: भरोसे की कसौटी

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चाची मुझे बहुत प्यार करती थी | बहुत ख्याल रखती थी | हम दोनों आपस में कभी कभी ऐसे बात करते थे जैसे मानो हम चाची भतीजा ना हो कर देवर भाभी हो या दो दोस्त ... (या दो प्रेमी) | मम्मी पापा को दूसरे शहर में छोड़ चाचा चाची के साथ रहते हुए मुझे यही कोई दो बरस हो गए थे | और इतने ही वर्षों में मैं और चाची आपस में बहुत घनिष्ट हो गए थे | मैं चौबीस का और चाची शायद सैंतीस या अड़तीस की | कम आयु में ही विवाह हो गया था चाची का | दो बच्चे हैं | उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए चाचा चाची ने दिल पर पत्थर रखते हुए बच्चों को बोर्डिंग स्कूल भेज दिया था | समय समय पर मिलने जाते थे | कभी कभी छुट्टियों में उन्हें अपने यहाँ ले कर भी आते थे |
“कुछ देर पहले तुम्हारी मम्मी का फोन आया था.. मैंने कह दिया की ऊपर अपने कमरे में पढ़ाई कर रहा है... डिस्टर्ब करने से मना किया है... | बाद में बात करेगा..| आज बचा लिए तुझे.. नहीं तो अच्छी खासी डांट पड़ती तुझे |”

“ओह्ह.. थैंक यू चाची...|” कहते हुए मैं ख़ुशी से झूमते हुए चाची को पीछे से गले लगाया.. पकड़ते ही मेरा थोड़ा खड़ा हुआ लंड चाची की गदराई गांड से टकरा गई | चाची को भी ज़रूर अपने पिछवाड़े में कुछ चुभता हुआ सा लगा होगा तभी तो उन्होंने झटके से खुद को आज़ाद करते हुए शरमाते हुए कहा, “अच्छा अच्छा ठीक है... चलो जाओ अब... जल्दी से ब्रश कर लो |”

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“और कुछ लोगे, अभय?” चाची ने पूछा |
विचारों के भंवर से बाहर निकला मैं | ब्रश करके नाश्ते में बैठ गया था | चाची भी मेरे साथ ही बैठ गयी थी नाश्ता करने |
“नहीं चाची.. अब और नहीं |” पेट पर हाथ रखते हुए मैंने कहा | चाची मुस्कुरा दी | पर न जाने क्यूँ उनकी यह मुस्कराहट कुछ फीकी सी लगी | ऐसा लगा की चाची बात तो ठीक ही कर रही है, हाव भाव भी ठीक है पर शायद दिमागी रूप से वो कहीं और ही भटकी हुई हैं | उनका खाने को लेकर खेलना, थोड़ा थोड़ा मुँह में लेना इत्यादि सब जैसे बड़ा अजीब सा लग रहा था | अपने ख्यालों में इतनी खोयी हुई थी की उनको इस बात का पता तक नहीं चला की उनका आँचल उनके सीने पर से हट चूका है और परिणामस्वरुप करीब 5 इंच का लम्बा सा उनका क्लीवेज मेरे सामने दृश्यमान हो रहा था और साथ ही उनके बड़े गोल सूडोल दाएँ चूची का उपरी हिस्सा काफ़ी हद तक दिख रहा था |
“क्या बात है चाची, कोई परेशानी है?” मैंने पूछा |

“अंह ... ओह्ह ... न..नहीं अभय... कुछ नहीं... बस थोड़ी थकी हुई हूँ ..|” चाची ने अनमना सा जवाब दिया | जवाब सुन कर ही लगा जैसे कुछ तो बात है जो वो मुझसे शेयर नहीं करना चाहती | मैंने भी बात को आगे नहीं बढ़ाने का सोचा और चाची के दाएँ हाथ पर अपना बाँया हाथ रखते हुए बड़े प्यार से धीमी आवाज़ में कहा, “ओके चाची... पर चाची... कभी भी कोई भी प्रॉब्लम हो तो मुझे ज़रूर याद करना, ठीक है ?” मेरी आवाज़ में मिठास थी | चाची मुस्कुरा कर मेरी तरफ़ देखी पर उस वक़्त में मेरी नज़र कहीं और थी | मेरी नज़रों को फॉलो करते हुए चाची ने अपनी तरफ़ देखा और अपने सीने पर से पल्लू को हटा हुआ देख कर चौंक उठी, “हाय राम ,.. छि ...|” कहते हुए झट से अपने सीने को ढक लिया और हँसते हुए झूठे गुस्से से मेरे हाथ पर हल्का सा चपत लगाते हुए बोली, “बड़ा बदमाश होने लगा है तू आज कल |” चोरी पकड़े जाने से मैं झेंप गया और जल्दी जल्दी नाश्ता खत्म करने लगा | तभी टेलीफोन की घंटी फिर बजी, चाची उठ कर गयी और रिसीव किया, “हेलो...”
“जी.. बोल रही हूँ...|”
“हाँ जी.. हाँ जी...|”
“क्या...पर...परर....|”
“हम्म.. हम्म....|”

इसी तरह ‘हम्म हम्म’ कर के चाची दूसरी तरफ से आने वाली आवाज़ का जवाब देती रही | मैं खाने में मग्न था, सिर्फ एक बार चाची की तरफ नज़र गई.. देखा की उनके चेहरे की हवाईयाँ उड़ी हुई है | मैं कुछ समझा नहीं | मुझे अपनी ओर देखते हुए चाची सामने की ओर मुड़ गई | थोड़ी देर बाद फ़ोन क्रेडल पर रख कर मेरे पास आ कर बैठ गई | मैंने गौर से देखा उन्हें.. बहुत चिंतित दिख रही थी | नज़रें झुकी हुई थी | मुझसे रहा नहीं गया | पूछा, “क्या हुआ चाची... किसका फोन था?”
“कुछ खास नहीं... मेरे एक अपने का तबियत बहुत ख़राब है, इसलिए मन थोड़ा घबरा रहा है |” काँपते आवाज़ में बोलीं ... बोलते हुए मेरी तरफ एक सेकंड के लिए देखा था उन्होंने | उनकी आँखें किनारों से हलकी भीगी हुई थी | मेरा मन बहुत किया की आगे कुछ पूछूँ पर ना जाने क्यूँ मैं चुप रहा | दोनों अपने प्लेट्स की तरफ़ देख रहे थे |
josef
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दो-तीन दिन बीत होंगे | एक रात को सब खा पी कर सोये थे | अचानक से मेरी नींद खुली | “खट्ट” की आवाज़ के साथ टेबल लैंप ऑन किया मैंने | मुझे देर रात लाइट बल्ब जलाना अच्छा नहीं लगता था | इसलिए अपने लिए एक टेबल लैंप रखा था | नींद क्यूँ टूटी, पता नहीं पर नींद टूटने के साथ ही मुझे ज़ोरों से एक सिगरेट सुलगाने की तलब होने लगी | पर साथ ही प्यास भी लगा था और संयोग देखिये, आज मैंने अपना पानी का जग भी नहीं भरा था | सो पानी लेने के लिए मुझे नीचे किचेन में जाने के लिए अपने कमरे से खाली जग लिए निकलना पड़ा | सुस्त मन से मैं सीढ़ियों से नीचे उतर ही रहा था की मुझे जैसे किसी के कुछ कहने/ बोलने की आवाजें सुनाई दी | मैं चौकन्ना हो गया | आश्चर्य तो हो ही रहा था की इतनी रात गए भला कौन हो सकता है? मैं धीमे और सधे क़दमों से नीचे उतरने लगा | कुछ नीचे उतरने पर सीढ़ियों पर ही एक जगह मैं रुक गया | आवाज़ अब थोड़ा स्पष्ट सुनाई दे रही थी | थोड़ा और ध्यान लगा कर सुनने की कोशिश की मैंने | दुबारा चौंका.. क्यूंकि जो आवाजें आ रही थीं वो किसी महिला की थी और शत प्रतिशत मेरी चाची की आवाज़ थी | मैं जल्दी पर पूरी सावधानी से तीन चार सीढ़ियाँ और उतरा | अब आवाज़ काफ़ी सही आ रही थी | सुन कर ऐसा लग रहा था जैसे की किसी से बहुत विनती, मिन्नतें कर रही है चाची पर दूसरे किसी की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी और ज़रा और गौर करने पर पाया की नीचे जहाँ से आवाजें आ रही थी, वहीँ आस पास ही कहीं पर टेलीफोन रखा होता है | इसका सीधा मतलब ये है की ज़रूर चाची किसी से फ़ोन पर बात कर रही है ......
“नहीं.. प्लीज़.... ऐसे क्यूँ कह रहे हैं आप ? मैं सच कह रही हूँ.. मैंने किसी को कुछ नहीं बताया है... प्लीज़ यकीं कीजिये आप मेरा...| प्लीज़ एक अबला नारी पर तरस खाइए.. मैं शादी शुदा हूँ .. मेरा एक परिवार भी है | मैंने तो कुछ सुना ही नहीं था जो मैं किसी को बताउंगी ... प्लीज़.. प्लीज़... प्लीज़... विश्वास कीजिये.. प्लीज़ ऐसा मत कहिये.. कुछ मत कीजिए .. आपको आपके भगवान की कसम....|”


चाची का इतना कहना था की शायद दूसरी तरफ़ से कोई गुस्से से बहुत जोर से चीखा था, रात के सन्नाटे में फ़ोन के दूसरी तरफ़ की आवाज़ भी कुछ कुछ सुनाई दे रही थी | कुछ समझ में तो नहीं आ रहा था पर इतना तय था की कोई बहुत गालियों के साथ चाची को डांट रहा था और उनपर चीख भी रहा था | मैंने ऊपर से झांक कर देखने की कोशिश की | देखा चाची सहमी हुई सी कानों से फ़ोन को लगाए चुप चाप खड़ी थी | चाची को सहमे हुए से देखने से कहीं ज़्यादा जिस बात ने मुझे हैरत में डाला वो यह था की चाची सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी ! साड़ी नहीं थी उनपर ! आश्चर्य से उन्हें देखने लगा पर कुछ ही सेकंड्स में मेरे आश्चर्य का स्थान दिलचस्पी और ‘लस्ट’ ने ले लिया क्योंकि बिना साड़ी के चाची को ऊपर से देखने पर उनके सुडोल एवं उन्नत चूचियों के ऊपरी हिस्से और उनके बीच की गहरी घाटी एक अत्यंत ही लावण्यमय दृश्य का निर्माण कर रहे थे | सहमी हुई चाची के हरेक गहरे और लम्बे साँस के साथ उनके वक्षों का एक रिदम में ऊपर नीचे होना पूरे दृश्य में चार चाँद लगा रहे थे | चूचियां भी ऐसे जो नीचे पेट पर नज़र को जाने ही नहीं दे रहे थे | चूचियों के कारण पेट दिख ही नहीं रहा था चाची का | मैंने पीछे नज़र डाला ... उनके गदराये सुडोल उठे हुए गांड पेटीकोट में बड़े प्यारे और मादक से लग रहे थे | जी तो कर रहा था की अभी जा कर जोर से एक चांटा मारूं उनके गांड पर | पर खुद को नियंत्रित किया मैंने |
मन ही मन सोचा, “ज़रूर चाचा चाची में पति पत्नी वाला खेल चल रहा था और बीच में ये फ़ोन आ गया या फिर खेल खत्म कर के रेस्ट ले रहे थे.. तभी फ़ोन आया |” मुझे दूसरा वाला ऑप्शन ज़्यादा सही लगा | बच्चे बाहर हैं इसलिए पूरे रूम में मस्ती करते हैं ... अगर मैं भी नहीं होता तब शायद पूरे घर में मस्ती करते घूमते.. शायद नंगे..!
“अच्छा.. ठीक है ... माफ़ कीजिये.. गलती हो गई .. अब नहीं बोलूँगी ... पर प्लीज़ मेरे परिवार को कुछ मत कीजिए .... मैं हाथ जोड़ती हूँ | आपको आपके ऊपरवाले का वास्ता..|” चाची गिड़गिड़ायी...


दूसरी तरफ़ से फिर कोई आवाज़ आई... जैसे की कोई कुछ निर्देश दे रहा हो या कुछ पूछ रहा हो....
“आपको आपके अल्लाह का वास्ता..|” चाची बहुत ही सहमी और धीमे आवाज़ में बोली |
मैं चौंका | अरे!! ये क्या बोल रही है चाची??!!.... किससे बात कर रही है और ऐसा क्यूँ बोल रही है?
“हाँ.. हम्म .. पर... पर... प्लीज़... नहीं.... ..... ...... ओके... ठीक... ठीक है... नौ बजे जाते हैं वो.. साढ़े नौ...??... पर क्यूँ... पर... ओके ... ठीक है... |” इसी तरह कुछ देर तक बात कर चाची ने फ़ोन वापस क्रेडल पर रख दिया और एक तरफ़ चली गयी..| मैं हतप्रभ सा पूरी बात समझने का पूरा प्रयास करने लगा | चाची किससे इतनी विनती कर रही थी? कौन था दूसरी तरफ़ ..? और नौ बजे और साढ़े नौ बजे का क्या चक्कर है? थोड़ा दिमाग दौड़ाने पर याद आया की रोज़ सुबह नौ बजे तो चाचा ऑफिस के लिए निकलते हैं पर ये साढ़े नौ बजे का क्या मामला है ?
josef
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Re: भरोसे की कसौटी

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पानी ले कर अपने कमरे में आया..| पानी पीया | फिर छत पर बहुत देर तक बैठा बैठा, अभी थोड़ी देर पहले घटी पूरे घटनाक्रम के बारे में सोचता रहा | रह रह के चाची का वो परम सुन्दर एवं अद्भुत आकर्षणयुक्त अर्ध नग्न शरीर का ख्याल जेहन में आ रहा था और हर बार न चाहते हुए भी मेरा हाथ मेरे जननांग तक चला जाता और फिर तेज़ी से सर को हिला कर इन विचारों को दिमाग से निकालने की कोशिश करता और ये सोचता की आखिर चाची कहीं किसी मुसीबत में तो नहीं?? ऐसे करते करते करीब पांच सिगरेट ख़त्म कर चूका था | कुछ समझ नहीं आ रहा था | अंत में ये ठीक किया की जैसा चल रहा है.. चलने देता हूँ... जब बहुत ज़रूरत होगी तब बीच में टांग अड़ाऊँगा |

अगले दिन सुबह सब नार्मल लग रहा था | चाची भी काफ़ी नॉर्मल बिहेव कर रही थी | उन्हें देख कर लग ही नहीं रहा था की कल रात को कुछ हुआ था | हम सबने मिलकर नाश्ता किया | चाचा नाश्ता ख़त्म कर ठीक नौ बजते ही ऑफिस के लिए निकल गए | मैं सोफे पर बैठा पेपर पढ़ रहा था की तबही चाची ने कहा, “अभय .. मुझे कुछ काम है.. इसलिए मुझे निकलना होगा .. आने में लेट होगा.. शायद ग्यारह या बारह बज जाये आते आते... तुम चिंता मत करना .. खाना बना कर रखा हुआ है .. ठीक टाइम पर खा लेना.. ओके? और हाँ.. किसी का फ़ोन आये तो कहना की चाची किसी सहेली से मिलने गयी है.. आ कर बात कर लेगी... ठीक है?” एक ही सांस में पूरी बात कह गयी चाची | मैंने जवाब में सिर्फ गर्दन हिलाया..| मैं सोचा, ‘यार... इसका मतलब साढ़े नौ बजे वाली बात इनका घर से निकलने का था.. शायद अपने कहे गए टाइम तक ये वापस आ भी जाये पर ये ऐसा क्यूँ कह रही है की कोई फ़ोन करे तो कहना की चाची किसी सहेली से मिलने गई है... पता नहीं क्यों मुझे ये झूठ सा लग रहा है |’

चाची नहा धो कर अच्छे से तैयार हो कर ड्राइंग रूम में आई | मैं वहीँ था | चाची को देख कर मैं तो सीटी मारते मारते रह गया | आसमानी रंग की साड़ी ब्लाउज में क़यामत लग रही थी चाची..| आई ब्रो बहुत करीने से ठीक किया था उन्होंने | चेहरे पर हल्का पाउडर भी लगा था | एक मीठी भीनी भीनी से खुशबू वाली परफ्यूम लगाया था उन्होंने | सीने पर साड़ी का सिर्फ एक प्लेट था.... हल्का रंग और पारदर्शी होने के कारण उनका क्लीवेज भी दिख रहा था जोकि ब्लाउज के बीच से करीब दो इंच निकला हुआ था | उनका सोने का मंगलसूत्र का अगला सिरा ठीक उसी क्लीवेज के शुरुआत में जा कर लगा हुआ था | दृश्य तो वाकई में सिडकटिव था |

मुझे दरवाज़ा अच्छे से लगा लेने और समय पर खा लेने जैसे कुछ निर्देश दे कर वो बाहर चली गई | मैं चाची की सुन्दरता में खोया खोया सा हो कर वापस उसी सोफ़े में आ कर धम्म से बैठा | चाची के अंग अंग की खूबसूरती में मैं गोते लगा रहा था | किसी स्वप्नसुंदरी से कम नहीं थी वो | सोचते सोचते ना जाने कितना समय निकल गया | मैं अपने पेंट के ऊपर से ही लंड को सहलाता रहा | काफ़ी देर बाद उठा और जा कर नहा लिया.. दोपहर के खाने का टाइम तो नहीं हुआ था पर पता नहीं क्यों भूख लग गयी थी ? साढ़े बारह बज रहे थे | चाची को याद करते करते खाना खाया और जा के सो गया |


टिंग टंग टिंग टोंग टिंग टोंग टिंग टोंग...
घर की घंटी बज रही थी | जल्दी बिस्तर से उठकर मेन डोर की ओर गया | जाते समय अपने रूम के वाल क्लोक पर एक सरसरी सी नज़र डाली मैंने.. तीन बज रहे थे ! कोई प्रतिक्रिया करने का समय नहीं था | डोर बेल लगातार बजा जा रहा था | जल्दी से दरवाज़ा खोला मैंने | देखा सामने चाची थी | आँखें थकी थकी सी... चेहरे पर भी थकान की मार थी | चेहरे पर हल्का पीलापन ... मेकअप ख़राब | सामने के बाल बेतरतीब | साड़ी भी कुछ अजीब सा लग रहा था | ब्लाउज के बाँह वाले हिस्से को देखा... उसपे भी सिलवटें थीं... चाची बिना कुछ बोले एक हलकी सी मुस्कान दे कर अन्दर चली गयी | मैं पीछे से उन्हें जाते हुए देखता रहा | दो बातें मुझे अजीब लगीं ... एक तो चाची का थोड़ा लंगड़ा कर चलना और दूसरा उनके गदराई साफ़ पीठ पर २-३ नाखूनों के दाग | मेरा सिर चकराया | चाची के साथ ये क्या हो रहा है ? कहीं वही तो नहीं जो मैं सोच रहा हूँ ?!


मैं काफ़ी परेशान सा था | पता नहीं मुझे परेशान होना चाहिए था या नहीं पर जिनके साथ मैं रहता हूँ, खाना पीना, उठाना बैठना लगा रहता है... उनके प्रति थोड़ा बहुत चिंतित होना लाज़िमी है | सवालों के उधेड़बुन में फंसा था | क्या करूँ या क्या करना चाहिए... कुछ समझ नहीं आ रहा था | बात कुछ इस तरह से भी नहीं थी की मैं सीधे जा कर चाची से कुछ पूछ सकूँ | कहीं न कहीं मुझे खुद के बेदाग़ रहने की भी फ़िक्र थी ... कहीं मैं ऐसा कुछ न कर दूं जिससे चाची को यह लगे की मैं चोरी छिपे उनकी जासूसी कर रहा हूँ या उनपर नज़र रखता हूँ | बहुत दिमागी पेंचें लगाने का बाद भी जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने ये सब चिंताएं छोड़ अपने काम पे ध्यान देने का निर्णय लिया और व्यस्त हो गया | जॉब मिल नहीं रही थी इसलिए मैंने अपना खर्चा निकालने के लिए इसी घर के एक अलग बने कमरे में ट्यूशन (कोचिंग करने) पढ़ाने लगा था | कुछ महीनो में ही कोचिंग जम गया गया था और अच्छे पैसे भी आने लगे थे | कभी कभी उन पैसों से चाची के लिए कोई कीमती साड़ी और चाचा के लिए एक अच्छी ब्रांडेड शर्ट खरीद कर ला देता | चाची को कपड़ो का बहुत शौक था इसलिए जब भी कोई कीमती साड़ी उन्हें लाकर देता तो वो मना तो करतीं पर साथ ही बड़ी खुश भी होती |

खैर, बहुत देर बाद चाची निकली.. अब भी थोड़ा लंगड़ा रही थीं, मैंने पूछना चाहा पर पता नहीं क्यों... चुप ही रहा | मुझे सामने देख कर चाची ने इधर उधर की बातें कीं | अपने लिए थोड़ा सा खाना निकाला उन्होंने | मेरे पूछने पर बताया की वो बाहर से ही खा कर आई है | अपनी किसी सहेली का नाम भी बताया उन्होंने | ठीक से खाया नहीं जा रहा था उनसे | बोलते समय आवाज़ काँप रही थी उनकी | आँखों में भी बहुत रूआंसापन था | मैं अन्दर ही अन्दर कन्फर्म हो गया था की यार कहीं न कहीं , कुछ न कुछ गड़बड़ है और मुझे इस गड़बड़ का कारण या जड़ का पता करना पड़ेगा | कहीं ऐसा ना हो की समय हाथ से यूँ ही निकल जाए और कोई बड़ा और गंभीर काण्ड हो जाए | सोचते सोचते मेरी नज़र उनके कंधे और ऊपरी सीने पर गई | दोबारा चौंकने की बारी थी | चाची के कंधे पर हलके नीले निशान थे और सीने के ऊपरी हिस्से पर के निशान थोड़ी लालिमा लिए हुए थे | समझते देर न लगी की चाची पर किसी चीज़ का बहुत ही प्रेशर पड़ा है | ये भी सुना है की अक्सर मार पड़ने से भी शरीर के हिस्सों पे नीले दाग पड़ जाते हैं | इसका मतलब हो सकता है कि चाची को किसी ने मारा भी हो? सोचते ही मैं सिहर उठा, रूह काँप गई मेरी | मेरी सुन्दर, मासूम सी चाची पर कौन ऐसी दरिंदगी कर सकता है भला और क्यों? चाची खा पी कर अपने कमरे में चली गई आराम करने और इधर मैं अपने सवालों और ख्यालों के जाल में फंसा रहा |

रात हुई | चाची ने काफ़ी नार्मल बिहेव किया चाचा के सामने | तब तक काफ़ी ठीक भी हो गई थी | मैंने भी रोज़ के जैसा ही बर्ताव किया | ठीक टाइम पर खाए पीये और सो गए; मुझे छोड़ के ! मैं देर रात तक जागता रहा | कश पे कश लगाता रहा और सिगरेट पे सिगरेट ख़त्म करता रहा | जितना सोचता उतना उलझता | एक पॉइंट पे आ कर मुझे ये भी लगने लगा की जो भी संकट या गड़बड़ है, इसमें शायद कहीं न कहीं चाची का खुद का कोई योगदान है , अब चाहे वो जाने हो या अनजाने में | मैंने तय किया की मैं अब से जितना हो सकेगा, चाची की हरेक गतिविधि पर नज़र रखूँगा |

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josef
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Re: भरोसे की कसौटी

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अगले दिन सुबह....

हमेशा की तरह चाचा ऑफिस चले गए | चाची घर के काम निपटा रही थी | मैं सुबह के एक बैच को पढ़ा चूका था और दूसरे बैच को कोई बहाना बना कर छुट्टी दे दिया | एक छोटा सा लेकिन ज़रूरी काम था मुझे | सो मैं नहा धो कर, नाश्ता कर के चाची को बाय बोल कर घर से निकल गया | कोई आधे घंटे के करीब लगा मुझे मेरा काम ख़त्म करने में | पर सच कहूं तो काम कम्पलीट नहीं हुआ था, थोड़ा बाकि रह गया था जोकि फिर कभी पूरा हो सकता था | मैं घर की ओर लौट आ रहा था | घर के पास पहुँचने पर देखा की एक लड़का बड़ी तेज़ी से हमारे घर के बगल वाली गली में घुसा | मैं चौंका और संदेह भी हुआ | मैं भी जल्दी से पर बिना आवाज़ किये उस लड़के के पीछे पीछे गली में घुसा | गली बहुत संकरा सा था | एक बार में एक ही आदमी जा सकता था .. गली के दोनों और ऊँचे ऊँचे दीवारें हैं | और वो गली हमारे ही बाउंड्री में आता है | चाची इसका इस्तेमाल बचे खुचे छोटे मोटे कूड़ा करकट फेंकने के लिए करती थी | उस गली में एक दरवाज़ा भी था जो हमारे घर के पिछवाड़े वाले दरवाज़े से सटा था | मैं जल्दी से गली में घुसा तो ज़रूर था पर क्या देखता हूँ की उस लड़के का कहीं कुछ अता पता नहीं है | गली का दरवाज़ा भी लगा हुआ था |

मैंने और टाइम ना वेस्ट करते हुए जल्दी से पल्टा और घर के मैं डोर पे पहुँचा | डोर बेल बजाना चाहा पर वो बजी नहीं | शायद बिजली नहीं थी | फिर मैंने दरवाज़ा खटखटाया और काफ़ी देर तक खटखटाया | पर चाची ने दरवाज़ा नहीं खोला... मैं डर गया | कहीं कोई अनहोनी ना हो गयी हो | जब और कुछ सूझा नहीं तो मैं फिर से गली में घुसा और दरवाज़े तक गया | दरवाज़ा बंद था पर पुराना होने के कारण उसमें दरारें पड़ गई थीं और उन दरारों से दरवाज़े के दूसरी तरफ़ बहुत हद तक देखा जा सकता था | मैं बिल्कुल करीब जा कर दरवाज़े से कान लगाया | आवाजें आ रही थीं | एक तो चाची की थी पर दूसरा किसी लड़के का !! कहीं ये वही लड़का तो नहीं जिसे मैंने कुछ देर पहले गली में घुसते देखा था ? क्या वो चाची को जानता है? क्या वो उनके जान पहचान का है? अगर हाँ तो फिर उसे इस तरह से यहाँ आने की क्या ज़रूरत थी? वो मेन डोर से भी तो आ सकता था | पर ऐसे क्यों?
ज़्यादा देर न करते हुए मैं दरवाज़े पर पड़ी उन दरारों से अन्दर झाँकने लगा....... और जो देखा उससे सन्न रह गया | चाची तो लगभग पूरी दिख रही थी पर वो लड़का नहीं दिख रहा था..| सिर्फ़ उसका हाथ दिख रहा था.... औ...और ... उसका एक हाथ ... दायाँ हाथ चाची के बाएँ चूची पर था !! और बड़े प्यार से सहला रहा था | ये तो थी ही चौंकने वाली बात पर इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली बात ये थी की इस समय चाची के बदन पर साड़ी नहीं थी | पूरी की पूरी साड़ी उनके पैरों के पास थी... ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने या फिर चाची ने ही खड़े खड़े साड़ी खोली और हाथ से ऐसे ही छोड़ दी | साड़ी गोल हो कर उनके पैरों के इर्द गिर्द फैली हुई थी ! लड़का प्यार से उनके बाएँ चूची को दबाता और अचानक से एक बार के लिए पूरी चूची को जोर से दाब देता | और चाची दर्द से ‘आह्ह...’ कर के कराह देती |
“माफ़ कीजिएगा मैडम.. हमको ये करना पड़ रहा है... उन लोगों को हर बात की खबर रहती है ... अगर ऐसा नहीं किया तो वे लोग मुझे नहीं छोड़ेंगे..|” लडके ने कहा | जवाब में चाची ने सिर्फ “ह्म्म्म” कहा |

“पर एक बात बोले मैडम... बुरा मत मानिएगा ... इस उम्र में भी अच्छा मेन्टेन किया है आपने खुद को |..... ही ही ...|” बोल कर लड़का हँसा |
मैंने चाची के चेहरे की ओर देखा... दर्द और टेंशन से उनके चेहरे पर पसीने की बूँदें छलक आई थीं |
चाची – “जल्दी करो.. वो किसी भी टाइम आ जाएगा | अगर देख लिया तो मैं बर्बाद हो जाउंगी |”
लड़का – “अरे टेंशन क्यों लेती हो मैडम.. वे लोग उसका भी कोई इंतज़ाम कर देंगे |” बड़ी लापरवाही से कहा उसने |
लड़का – “ओह्हो मैडम... ये क्या... आपको जैसा करने कहा गया था आपने वैसा नहीं किया?”
चाची – “क्या करने..ओह्ह.. ह..हाँ... भूल गयी थी... मैं अभी आई |”
बोल कर चाची अन्दर जाने के लिए जैसे ही मुड़ी .. लड़के ने उसका हाथ पकड़ लिया... | बोला,
“अरे कहाँ चलीं मैडम जी... अन्दर नहीं जाना है |”
चाची (हैरानी से) – “तो फ़िर ?”
लड़का – “यहीं कीजिये |” लड़के के आवाज़ में कुटिलता और सफलता का अद्भुत मिश्रण था |
चाची (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) – “क्याsss… क्या.. बक रहे हो तुम..? दिमाग ख़राब है क्या तुम्हारा? इतना हो रहा है..वो काफ़ी नहीं है क्या? उसपे भी अब ये... कैसे करुँगी मैं?”
लड़का (आवाज़ में बेचारगी लाते हुए) – “वो तो आप जानिए मैडम जी.. मैं तो वही कह रहा हूँ जो उन लोगों ने तय किया था ... और उनसे कुछ भी छिपता नहीं है... आगे आप जानिए |”

मैंने देखा, चाची सोच में पड़ गयी है... किसी उधेरबुन में थीं ... पर जल्द ही कुछ फैसला किया उन्होंने मानो | लडके के पास आ कर थोड़ा दूर हट कर लडके के तरफ़ पीठ कर के उल्टा खड़ी हो गई | उससे आगे का दिख नहीं रहा था | सिर्फ चूड़ियों की खन खन और छन छन की आवाज़ आ रही थी |
ऐसा लगा जैसे की लडके ने पैंट के ऊपर से अपने लंड को पकड़ कर मसलने लगा |
लड़का (धीमे आवाज़ में) – “उफ्फ्फ़ ... क्या पीठ है यार....इतना साफ़... बेदाग ....उफ्फ्फ्फ़.. क्या माल है....! काश के कभी एक बार मिल जाए...|”
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