चलते पुर्जे ( विजय विकास सीरीज़ )

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Jemsbond
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Re: चलते पुर्जे

Post by Jemsbond »

Excellent update , waiting for next update

😠 😡 😡 😡 😡 😡
प्यास बुझाई नौकर से Running....कीमत वसूल Running....3-महाकाली ....1-- जथूराcomplete ....2-पोतेबाबाcomplete
बन्धन
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तुफानो में साहिल बड़ी मुश्किल से मिलते हैं!
यूँ तो मिल जाता है हर कोई!
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rajaarkey
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Re: चलते पुर्जे

Post by rajaarkey »

साथ बने रहने के लिए शुक्रिया दोस्तो 😆
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rajaarkey
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Re: चलते पुर्जे

Post by rajaarkey »

"नहीं जावेद ।" गिरधर ने कहा था… "तू वहां नहीं जाएगा ।”



"ऐसा हो ही नहीं सकता चाचा ।"' जावेद गुरांया था-"उस हरामजादे ने चाचूको मार डालने की धमकी दी है ।'"


"समझने की कोशिश कर, वो सिर्फ धमकी है जबकि अगर तूएक बार उनके कब्जे में आ गए तो वे तुझे जिंदा. ..


"मुझे अपनी परवाह नहीं हैं ।”


आरती बोली…"हमेँ तो है ।"


"तूचुप रह । "


"तूहमेशा मुझे यह सेंटेंस बोलकर चुप नहीं कर सकता । " इस बार आरती बिफर गई थी-“ऐसा कैसे हो सकता है कि हम तुझे सुसाइड करने के लिए वहां जाने दें !"


“वहाँ जाने को सुसाइड करना कैसे कह सकते हैँ ?'


"वहा जाना सुसाइड करना ही होगा जावेद ।"' पुन: गिरधर कह उठा…"सोच तो सही बेटे, वे तुझे क्यों बुला रहे हैं ?'


"मैँ सब समझता हूं ।"


आरती चिल्लाइ-"क्या समझता हे तू?”


"यह . कि उन्हें जावेद चाहिए-जिंदा या मुर्दा । इंडियन जासूस ने इसी मकसद से पाकिस्तान की धरती पर कदम रखा है । नौशाद चाचूको अपने साथ इसीलिए लाया हे ।"'


"यह सब समझता है तो...


"मुझे आपसे भी वडी लफ्ज दोहराने होंगे जो फोन पर चाचू से कहे ये । यह कि…जावेद वो हलवा नहीं है जिसे कोई इंडियन जासूस जीभ पर रखे ओर हज्म कर जाए । अपना इरादा पूरा करने के लिए उसे लोहे के चने चबाने होंगे । आप देखना-मैं चावू क्रो उनके चंगुल से निकाल लाऊंगा ओर वे मेरा बाल तक बांका न कर सकेंगे । जो भी मेरा रास्ता रोकने की कोशिश करेगा, मेरी गोलियां उसे धराशायी कर देंगी, वह चाहे इंडियन जासूस हो या पाकिस्तानी ।"


"मै यह कहना चाहती हू जावेद कि...


"कुछ मत कह आरती.. कुछ भी मत कह । कोइ फायदा नहीं होगा ।'" उसे बीच में ही रोककर जावेद ने निर्णायक लहजे में कहा था…"मैें रुकने वाला नहीं हू..क्योंकि चाचू की जान को दांव पर नहीं लगा सकता । मैं उनसे वहुत प्यार करता हू ।"'


इस बार आरती तो आरती, गिरधर भी कुछ न बोल सका । दोनों जावेद के चेहरे को देखते रह गए थे ।



उस चेहरे को, जो किसी भटटी की मानिंद दहक रहा था । दृढता केॅ वेसे लक्षण उसके चेहरे पर पहले कभी नहीं देखे गए थे । गिरधर को यह समझते देर न लगी कि उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती तो बोला…"तो फिर ठीक हे । मैं भी तेरे साथ चलूँगा ।"


"अ-आप !" जावेद सकपकाया-"आप क्या करेंगे?"


"वही, जो तू करेगा । "


"ये कैसी बेवकूफी है भला”


"ये बेवकूफी नहीं गधे, सावधानी है । तेरी ये बात मेरी समझ में आ गई है कि नौशाद भाई को उस कसाई के चंगुल में नहीं छोडा जा सकता । उन्हें निकालकर लाना ही होगा ।”


"पर उसमें तुम क्या करोगे ?'


"कहा न ! वही, जो तू करेगा । "


"चाचा, बात को समझने की कोशिश करो ।” जावेद ने सचमुच उसे समझाने वाले लहजे में कहा था…“वहां उनके और मेरे नहीं बल्कि हमारे रिबाल्वरों कै बीच जंग होगी । मैं उनका मुकावला शायद इसलिए कर सकूंगा क्योंकि पुलिस की ट्रेनिंग लेते वक्त यहीँ सब सीखा था परंतु तुम...गोली चलाना तो दूर, मेरे ख्याल से तो तुमने कभी रिवाल्वर को हाथ में लेकर भी न देखा होगा । "


"अपनी हाकी है मेरे पास ।” कहने कै साथ उसने कमरे कै कौने मेँ रखी हाकी उठा ली थी ।


जावेद कें होठों पर ऐसी मुस्कान दौडी जैसी किसी बुजुर्ग कै होठों पर बच्चे को जिद करते देखकर उभरती हे । बोला…"जहां गोलिया' चलने की संभावना हो वहा' हाकी का क्या वजूद होगा चाचा ?""



"ये हाकी यूंही मेरे साथ नहीं रहती बच्चू। जवानी मेँ जब मैं इसे अपने चारों तरफ घुमाया करता था तो इतनी तेजी से घूमती थी कि किसी भी तरफ से चलाई गइ गोली मेरे जिस्म तक नहीं पहुच सकती थी । उसे हर हाल मेँ मेरे चारों तरफ घूमने वाली हॉकी पर ही लगना होता था । तुझे शायद यकीन नहीं आएगा कि…गोली की रफ्तार से तेज रफ्तार होती थी मेरी हाकी की ।"


"वो सब ठीक है चाचा, लेकिन. ..


"कोइ लेकिन वेकिन नहीं ।" गिरधर ने उसे बोलने ही जो नहीं दिया…"'चल, तेरी बात बडी की । कुछ नहीं हो सकेगा मेरी हाकी से मगर तुझे ये बात समझनी पड़ेगी कि एक से भले दो होते हें ।"


आरती तपाक से बोली'-"'और दो से भले तीन ।”


"नहीं आरती । " गिरधर बोला…"तूनहीं जाएगी ।"


"क्यों पापा?”


“आरृगुंमेंटस नहीं. . .बस मैंने कह दिया, इसलिए । ” गिरधर ने भी निर्णायक लहजे में कहा था… "तूयहीं हमारा इंतजार करेगी । "


"चाकूगर्म करके ।" जावेद बीला ।


"मतलब ? "


"जब लौटें, जाने किसे गोली लगी हो ! " उसने शरारती अंदाज में आंख मारी थी"'गोली निकालने वाला भी तो कोई चाहिए ! ”


आरती भुनभुनाकर उसकी तरफ देखती रह गई ।



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rajaarkey
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Re: चलते पुर्जे

Post by rajaarkey »

अपनी प्लार्निग के मुताबितक जावेद और गिरधर उस वक्त हजरत निजाम के किले पर पहुंच गए थे जब अंधेरे ने वातावरण को अपने आगोश में लेना शुरू किया ही था ।


गिरधर की हाकी उसके हाथों में मोजूद थी।


वे टूटे हुए एक ऐसे वुर्ज के पीछे छुपे हुए थे जहा' से टूटे फूटे गेट नंबर चार पर नजर रखी जा सकती थी ।


वक्त के थपेडों ने हजरत निजाम के किले क्रो आज भले ही खंडहर में बदल दिया हो मगर उसे देखकर कोई भी आसानी से अंदाजा लगा सकता था कि किसी ज़माने में वह करांची की शान रहा होगा ।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमी लोग आज भी उसे देखने आते थे । वैसे भी, खंडहर में बदल जाने के बावजूद उसके बहुत दालान, बुर्ज, कमरे, और किले के चारों तरफ खुदी बागडी इस हद तक सुरक्षित थीं कि लोग उन्हें देखकर रोमांचित होते ।


बागडियों में आज भी पानी भरा जाता था क्योंकि दिन कै समय भाट लोग सैलानियों को किले की दीवारों पर से बागडियों में भरे पानी में कूदने का खेल दिखाते थे ।


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किले के एक तरफ करांची शहर था, दूसरी तरफ समुद्र । जावेद और गिरधर ने वड़े धैर्य से बिजय आर नौशाद का इंतजार किया लेकिन उन्हें ग्यारह बजे तक इंतजार न करना पड़ा । उस वक्त पोने ग्यारह ही बजे थे जब गेट नंबर चार के नजदीक बने एक बड़े से चबूतरे पर दो परछाइयां नज़र आईं । जावेद के मुंह से निकला-"वे आ गए ।"'


“क्या ज़रूरी हे कि वे ही हों ?" गिरधर सतर्क लहजे में बोला ।


"इतनी रात को और कौन आएगा ?"


“मेरा मतलब हे…उनमें से एक तो निश्चत रूप से बिजय होगा मगर दूसरे नौशाद भाई ही हों, ये ज़रूरी नहीं है । मुमकिन है वे हमें धोखा देने की कोशिश कर रहे हों । नौशाद भाइ क्रो लाए ही न हों ।'"


गगन पर वर्योंके अस्सी परसेंट चांद नजर आ रहा था इसलिए वातावरण में चांदनी बिखरी पडी थी लेकिन वह इतनी ज्यादा न थी कि इतनी दूर से उन्हें पहचाना जा सकता ।


"इसकी तस्दीक तो वहां जाकर ही हो सकती है ।”


जावेद ने क्योकि ठीक कहा था इसलिए गिरधर कुछ बोला नहीं, खामोशी कें साथ परछाईंयों क्रो देखता रहा । कुछ देर बाद जावेद ने कहा…"मेँ जा रहा हू चाचा ।'"


"मेरा दिल गवाही नहीं दे रहा बेटे ।”


"किस बात के लिए ?"


"कि तू अकेला वहां जाए । "


"दोनाें के जाने से वेहतर तो मेरा अकेले ही जाना है चाचा, वहां जो भी होने वाला है, तुम यहां से उस पर नजर रखोगे । जरुरत पडी तो मेरी मदद करागे । इसके विपरीत अगर दोनों वहा पहुच गए तो वक्त से पहले पता लग जाएगा कि उन्हें अकेले जावेद से नहीं बल्कि दो लोगों से निपटना हे । यह हमारे फेवर में नहीं होगा ।”


"वात तो ठीक हे तेरी ।"


"तो मैँ चलता हू ।"


"चौकस रहना बेटे ।” जाने क्यों गिरधर की आवाज़ कांपती चली गईं…"हालांकि हमने किसी को देखा नहीँ है लेकिन फिर भी, हो सकता है उनके आदमी किले में उसी तरह छुपे हों जिस तरह मैं यहा छुपा हू । मैं अकेला हूजबकि वे अनेक हो सकते हैँ और उन अनेकों से निपटना हम दो के लिए मुश्किल हो सकता हे ।"


"इस सब पर हमने पहले ही बिचार कर लिया है चाचा, मत भूलो कि घिरने पर हमेँ समुद्र में कूद जाना है ।"



"में कुछ नहीं भूला हू । तुम भी मत भूलना कि तेरी जान सबसे ज्यादा कीमती है । नौशाद भाइ की जान से भी और मेरी जान से भी । फोन पर नोशाद भाई…ने भी यही कहा था कि...


"डरो मत चाचा । '" जावेद ने गिरधर का कंधा थपथपाते हुए उसे सांत्वना देने वाले अंदाज में कहा… "अभी हाजी गल्ला जिंदा है और उसे मोत के घाट उतारने से पहले मैं नहीं मर सकता ।”


कुछ कहने के लिए गिरधर ने मुंह खोला जरूर पर जजवात्तों की ज्यादती के कारण उससे आवाज न निकल सकी जबकि जावेद उस रास्ते की तरफ बढ चुका था । अंतत: उसे गेट नंबर चार कें करीब ले जाने वाला था । जावेद को थोड़ा चक्कर जरूर पड़ा परंतु गेट नंबर चार तक पहुंचते पहुंचते उसने अपनी पोजीशन ऐसी वना ली कि दोनों परछाइयों के पीछे जा पहुंचा ।


अब वह एक थम्ब के पीछे छुपा हुआ था-उनकै इतना नज़दीक कि शक्ल देखने का मौका मिलता तो पहचान सकता था, मगर पीठ दीख रही होने कै कारण ऐसा संभव न हो सका ।


उस वक्त वह दिमाग पर जोर डालकर यह सोचने की कोशिश कर रहा था कि बगैर खुद को प्रकट किए कैसे पता लगाए कि उनमें से एक नौशाद अंसारी हे या नहीं कि कानों मेंवह आवाज पडी जिसे टीबी और फोन पर सुना था, उसने कहा था…"ग्यारह बज गए हैं लकिन वह अभी तक नहीं आया ।”


"मैं तभी से दुआ कर रहा हूं कि वह न आए । '" इस आवाज़ को सुनते ही जावेद की रग रग में रोमांच की लहरें दोढ़ गई क्योकि अपने चाचा की आवाज उसने साफ पहचानी थी…"क्योकि मुझे मालूम हे कि उसे जिंदा नहीं छोडोगे ।"


"ऐसा नहीं हे मंत्री महोदय, मै वो कसाई थोडी हूं जो यहां जावेद नाम के बकरे को हलाल करने आया हू! मैरी कोशिश उसे गिरफ्तार करना होगी । अच्छा होगा कि वह खुद को मेरे हवाले कर दे ।'"


"में सब जान चुका हू । उसे गिरफ्तार करके पाकिस्तान के हवाले करने के मिशन पर यहां आए हो । उसमें कामयाब हो गए तो पाकिस्तान क्या जिंदा छोड देगा ?”


"खुद को इंडियन सीक्रेेट एजेंट बताकर उसने मुकम्मल दुनिया में भारत क्रो बदनाम किया हे । इसकी सजा तो उसे भोगनी होगीं । ”



"समझने की कोशिश करो मिस्टर बिजय, उस वक्त तक मैं भी उसके खिलाफ़ था जब तक यह मालूम था कि वह आतंकी है मगर उसने कहा कि…ऐसा नहीं हे ।"


"कोइ मुजरिम खुद को मुजरिम नहीं कहता ।”



“पाकिस्तान के हवाले करने से पहले हमें उसका वर्जन सुनना तो चाहिए । जानना तो चाहिए कि यहां उसके साथ क्या हुआ??"


जावेद कै दिमाग की उलझन दूर हो चुकी थी । अब उनकी वातों से उसे ज्यादा सरोकार न था इसलिए जेब से रिवाल्वर निकाला ।


दांतों पर दांत जमाए और दबे पांव परछाईंयों की तरफ बढा ।


अब वह अपनी 'शिकार' परछाई के वारे में पूरी तरह स्पष्ट था ।


उस वक्त विजय की परछाई से चार कदम दूर था जिस वक्त शायद बिजय को अपने पीछे किसी कै होने का एहसास हुआ ।


इधर बिजय तेजी से घूमा । उधर से जावेद झपटा और रिवाल्वर क्री नाल उसकी कनपटी पर रखता गुर्राया-"ज़रा भी चालाकी की तो मेरी गोली तुम्हारा भेजा उडा देगी ।"


“ अमां मियां, पीछे से कैसे प्रकट हो गए तुम ! "" बिजय के मुंह से निकला… "हमने तो सुना था शेर की तरह हमेशा अपने शिकार पर सामने से वार करते हो !"



"अघेड़ आदमी की ढाल के पीछे छुपे शख्स को सामने वाले से शेर जैसे व्यवहार की उम्मीद नहीँ करनी चाहिए ।" जावेद ने सपाट लहजे में कहा था…"आओ चाचू मेरी पीठ के पीछे आ जाओ ।"


नौशाद अंसारी ने वेसा ही किया ।


विजय पर नजरें गड़ाए जावेद ने नौशाद से पूछा…"इसने तुम्हारे साथ कोई ज्यादती तो नहीँ की चाचू? ”


"नहीं बेटे, इसने कोई ज्यादती नहीं की । ज्यादती तो नुसरत तुगलक और हाजी गल्ला ने की थी । इसने तो मुझे उनकी कैद से निकाला हे पर ये तुम्हें गिरफ्तार करके पाकिस्तान को सौंपने के मिशन पर यहां आया है ओर पाकिस्तान तुम्हें..


"मुझे मालूम है पाकिस्तान मेरा क्या करेगा मगर उसके मंसूबे सिर्फ मंसूबे रह जाएंगे।। हकीकत में कभी नहीं बदलेंगे वे । भले ही इंडियन जासूस क्री जगह सीआइए क्रो मदद कै लिए बुला तें ।”



विजय ने उसे उक्साने वाले अंदाज़ में कहा…"सामने वाले क्रो रिवाल्वर की धार पर रखकर तो कोई भी र्डीगें मार सकता हे प्यारे, बात तो तब है जब बराबरी के स्तर पर अखाडे में उतरा जाए ।" जावेद ने दात्तों पर दांत जमाकर कहा…"इस वक्त मेरा मकसद चाचूको तुम्हारे चंगुल से निकालकर ले जाना है पर फिक्र मत करो, तुम्हारी इस चुनौती का जवाब भी मै जल्दी ही... धांय ! जाने किस दिशा से एक गोली चली । गोली चलाने वाले का निशाना इतना सधा हुआ था कि वह सीधी जावेद के हाथ में दबे रिवाल्वर पर लगी थी ।


परिणाम स्वरूप-रिवाल्वर दूर जा गिरा ।


जावेद का हाथ झनझनाता रह गया था और अभी वह कुछ समझ भी न पाया था कि विजय का जोरदार घूंसा जबड़े पर पड़ा ।


एक चीख के साथ वह भी रिवाल्वर की तरह दूर जा गिरा मगर पलक भी नहीँ झपकी थी कि वापस खडा हो गया ।


भन्नाए हुए अंदाज में वह बिजय पर जम्प लगाने ही वाला था कि गेट नंबर चार की बेक से अलफांसे बाहर आया ।


उसके हाथ में मोजूद रिवाल्वर की नाल से अभी तक धुवां निकल रहा था ।


अलफांसे के मुहं से निकले इन शब्दों ने जावेद को जहां का तहा ठिठका दिया था…"जरा भी हरकत की तो अगली गोली तुम्हारा भेजा उड़ा देगी जावेद ।"


पलक झपकते ही हालात बदल गए थे । नौशाद अंसारी गिढ़गिड़ाया था…""नहीँ, मारना नहीं जावेद क्रो । इससे बेहतर तो ये है कि इसे गिरफ्तार कर लो ।"


जावेद कसमसा भले ही चाहे जितना रहा हो मगर इस वक्त कर कुछ नहीं सकता था ।


गिरधर की तरफ से भी मदद की कोइ उम्मीद न थी क्योंकि हाकी से भला क्या किया जा सकता था ।


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