Thriller मिशन

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josef
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Re: Thriller मिशन

Post by josef »

नाश्ता करने के बाद राज गुरु ओसाका से मिलने उसके कमरे में पहुँचा।
“सुप्रभात बंधु!” ओसाका ने अपने कमरे में उसका स्वागत किया। “आशा करता हूँ हमारे आश्रम में आपका पूरा ख्याल रखा जा रहा होगा ?”
“बिल्कुल गुरुजी! मैं आपसे मिलने को आतुर था। मैं आपको बताना चाहता था कि आपके आश्रम और आश्रम के लोगों को देख कर मैं अभिभूत हूँ। मेरे जैसा नास्तिक भी भगवान में विश्वास करने का जी रखने लगा है। जब मैं आप लोगों को देखता हूँ– आप लोगों के चेहरे से ही किसी सुलझे हुए मन वाला व्यक्तित्व झलकता है जबकि मेरे जैसे इंसान के मन में हमेशा एक अंतर्द्वंद्व सा उमड़ता रहता है।”
“तुम जिस फील्ड में हो वहाँ पर हम लोगों की तरह शांत रहना मुश्किल है।”
“आप जानते हैं मैं किस फील्ड में हूँ ?” राज चौंका।
“अपनी तारीफ खुद नहीं करना चाहता लेकिन अपने जीवन काल में हर तरह के लोगों से मिला हूँ। हाव-भाव, शारीरिक बनावट और कई विशेषताओं से पता चल जाता है।”
“क्या है मेरा फील्ड ?” राज ने जिज्ञासावश पूछा।
“पुलिस या सुरक्षा बल सम्बंधित...”
“कमाल है।” राज ने हाथ जोड़े। “फिलहाल में भटक रहा हूँ, अपने माथे पर लगे कलंक को मिटाने। आप सही समझे मैं अपने देश का एक सैनिक ही हूँ जिसने एक देश के दुश्मन को मारा लेकिन मुझे अब इसी बात की सजा मिल रही है और अब मुझे साबित करना है कि वह दुश्मन वाकई दुश्मन था।”
“मैं समझ सकता हूँ। आजकल ये आम समस्या है, खासकर उन लोगों के लिये जो जिम्मेदारी और ईमानदारी से अपना काम करते हैं। अक्सर उनके ईमान पर ही प्रश्न उठाये जाते हैं और ऐसे लोग इस तरह के इल्जाम सह नहीं पाते।”
“आपने ठीक मेरे मन को पढ़ लिया।”
“तुम सही राह पर हो। सच्चे लोगों को इन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ईमानदार लोगों को ही अपनी ईमानदारी साबित करनी पड़ती है। अधिकतर इंसान तो वैसे भी आजकल दुनिया में ईमानदारी का सिर्फ ढोंग करते नज़र आते हैं। तुम जरूर सफल होगे। पर ईश्वर में विश्वास जरूर रखो। नास्तिक होना आसान है, ठीक उसी तरह जैसे जिस चीज़ का वजूद आप जब तक देख समझ न लो उसे नकार दो, पर अगर विश्वास करो तो दुनिया में ऐसी कई आलौकिक शक्तियां हैं जिनका वजूद है और वह किसी के नकारने से झुठलाया नहीं जा सकता। मन में ईश्वर के लिये भाव रखना हमेशा आपको बल देता है। मैं यह नहीं कहता तुम किसी ख़ास तरह के ईश्वर में ही विश्वास करो, किसी की पूजा करो, पर ईश्वर के वजूद को ज़रूर मानो– भले ही किसी कॉस्मिक एनर्जी की तरह। ईश्वर को मानना खुद को मानने जैसा है। अगर आप ईश्वर को नहीं मानते तो शायद आप ये मानते हैं कि आपकी इस दुनिया में उपस्थिति भी मात्र एक कोइंसिडेंस है, जबकि ऐसा होना सम्भव नहीं।”
राज आश्चर्य से ओसाका को देख रहा था। उसके चेहरे पर परमानंद और संतुष्टि के भाव आ गए।
फिर अचानक गुरु शांति के साथ आँखें बंद कर के मुस्कुराने लगे। राज समझ गया ये अब मुलाकात की समाप्ति का इशारा था। वह हाथ जोड़कर कमरे से बाहर निकला।
आश्रम के आँगन में पहुँचकर उसने एक मोतिर को बाल कटवाते हुए देखा। वह उसके पास पहुँचा और नाई से बोला, “अगला नंबर मेरा।”
उसने पहले तो आश्चर्य से राज को देखा, फिर मुस्कुराया। जब राज का नंबर आया वह कुर्सी पर बैठा और उसने कहा, “सब हटा दो।”
नाई रुक गया। उसने राज से दो बार इशारों में पूछा कि वाकई उसे सिर के बाल कटवाने थे या सिर्फ दाढ़ी-मूंछ। राज ने इशारे से इस बात की पुष्टि की कि उसको सर से लेकर ठोड़ी तक सभी बाल हटाने थे। फिर वैसा ही हुआ। दस मिनट बाद जब राज ने शीशा देखा तो उसका पूरा सर और चेहरा सफाचट था। उसकी उम्र अचानक ही दस साल कम लगने लगी थी और उसके चेहरे पर जो चतुर-चालाक भाव दिखाई देते थे उनकी जगह अब विद्वानों जैसे भाव ने ले ली थी।
दोपहर के वक्त बाकी मोतिरों की तरह राज ने भगवे वस्त्र धारण किये और आश्रम से बाहर निकल आया। बाहर कोई भी उस पर ध्यान नहीं दे रहा था क्योंकि मैक्लोडगंज की सड़कों पर इसी तरह के भगवे वस्त्र पहने विभन्न आश्रमों के शिष्य दिखाई देते थे और यही राज चाहता था।
वह पैदल चलता चला गया और फिर उसने कुछ लोगों से गुरु सुज़ुकी के आश्रम का पता मालूम किया और फिर एक रिक्शा कर के वहाँ पहुँच गया।
आश्रम हमेशा सभी के लिये खुला रहता था और भगवे वस्त्र पहने शिष्यों पर वहाँ आने के लिये कोई रोक-टोक नहीं थी। राज बेधड़क अंदर चला गया। अंदर एक खुले मैदान में पूजा चल रही थी। सुज़ुकी कोई पाठ पढ़ रहा था। वह वहाँ बैठ गया। पूजा खत्म होने तक वह बैठा रहा और उस आश्रम का जायजा लेता रहा। आश्रम कई मामलों में ओसाका के आश्रम से अलग था। क्षेत्र काफी बड़ा था। अंदर जो खुला मैदान था उसमे जगह-जगह मिटटी खुदी हुई थी- ऐसा लग रहा था जैसे वहाँ मल्लयुद्ध आदि होता हो। आश्रम के शिष्य विभिन्न प्रकार के थे– यानि कुछ तो सामान्य दिख रहे थे पर कई हट्टे-कट्टे चेहरे पर सख्ती लिए थे। वहाँ की शिष्याएं कुछ ख़ास अलग नहीं थीं, हालाँकि जवान के मुकाबले वृद्ध महिलायें ज्यादा थीं।
पूजा के बाद आश्रम के हट्टे-कट्टे शिष्यों की टीम खास तौर पर यह पुष्टि करने लगी कि बाहर के सभी लोग वहाँ से निकले कि नहीं। वहाँ रुकने का फ़िलहाल राज का कोई इरादा नहीं था। वह भी बाहर निकल आया।
पर मंदिर के मुख्य दरवाजे से बाहर निकलते हुए उसने मैदान के एक कोने में कुछ लोगों को खुदी हुई मिट्टी की तरफ बढ़ते हुए देखा। उनकी सेहत और पोशाक को देखकर पता चल रहा था कि वह मल्लयुद्ध करने जा रहे हैं।
राज की तेज नजरों से जरा भी चूक नहीं हुई जब उसने उनमे एक नाटे, बलिष्ठ युवक को तुरंत पहचान लिया।
वह कोई और नहीं बल्कि निक था। बाहर निकलते हुए राज के चेहरे पर मुस्कान थी।
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josef
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Re: Thriller मिशन

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अगले दिन सुबह ग्यारह बजे सुरेश दिल्ली से वापस आ गया। ज़ाहिद गेस्ट हाउस की कैंटीन में नाश्ता कर रहा था। सुरेश अपना सामान कमरे में रख कर सीधे कैंटीन में पहुँचा। ज़ाहिद कोने में अकेला बैठा था और ब्रेड आमलेट खा रहा था। सुरेश उसके सामने आकर बैठ गया।
“वीज़ा का काम हो गया ?” ज़ाहिद ने पूछा।
“हां! अगले थर्सडे तक हाथ में आ जाना चाहिए। पोडगोरिका के लिये संडे की फ्लाइट की टिकट भी बुक करा दी हैं।”
“कंचन कब जा रही है ?”
“संडे को, उसकी फ्लाईट पता लगने पर उसी में बुकिंग की है। इस तरह वहाँ विक्रम को ढूंढने में ज्यादा दिक्कत नहीं आयेगी।”
ज़ाहिद ने सहमति में सिर हिलाया।
“कुछ खाओगे ?”
“नहीं! नाश्ता हो गया था। सिर्फ चाय लेता हूँ।” कहकर सुरेश ने वेटर को इशारा किया। वह दो गिलास में चाय ले आया।
ज़ाहिद ने इधर-उधर देखा और फिर आगे झुक कर कहा- “ राज का पता चल गया है।”
सुरेश ने चाय का गिलास उठाया ही था पर तुरंत मेज पर वापस रखकर बोला, “कहां है वो ?”
“यही!”
“क्या मतलब ?”
“इसी शहर में।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?” सुरेश बुरी तरह से हैरान था।
“हो गया है।”
“क्या यह कंफर्म खबर है ?”
“99% तो कंफर्म ही समझो।”
“99%! यानि ?”
“फेस टू फेस तो अभी नहीं दिखाई दिया पर उसने अपना ईमेल इसी शहर के आईपी ऐड्रेस से एक्सेस किया है।”
“ओह!” सुरेश के मुंह से निकला। उसने चाय की चुस्की ली। “तो फिर हम किस बात का इंतजार कर रहे हैं ?”
“सुरेश! तुम भी जानते हो और मैं भी यही मानता हूँ कि राज को पकड़ने से ज्यादा जरूरी है इस वक्त रमन आहूजा और उसके प्लान के बारे में और खोजबीन करना और दोनों के तार हमें और राज को भी मैक्लोडगंज लेकर आए हैं। इसका मतलब हम सभी सही दिशा में हैं। यह सब आइडियल सिनेरियो में हमारे कंट्रोल में होता लेकिन...”
“लेकिन क्या ?”
“चीफ का फोन आया था। लियोन भारत पर दबाव डाल रहा है। अगले हफ्ते मंडे तक उसे पूरी रिपोर्ट चाहिए, जिससे कि यह साबित हो सके कि रमन आहूजा आतंकवादी था। ऐसा न होने पर राज को अरेस्ट करके रखना होगा और उनकी टीम आकर उसे इन्टेरोगेट करेगी और आगे इन्वेस्टिगेशन करेगी।”
सुरेश के मुंह से निकला- “अभी तक कोई सबूत तो मिला नहीं है।”
“हां! पर हम सही दिशा में बढ़ रहे हैं। अब हमें सबसे पहले ओसाका के आश्रम पर छापा डालना है।”
“वहाँ क्या है ?”
“वहाँ दो चीज़ें हैं- पहला राज, जिसे हमें अरेस्ट करना है। दूसरा गुरु ओसाका जो कि रमन आहूजा के प्लान में शामिल था।”
“व्हाट ? धर्मगुरु ओसाका इस प्लान में शामिल था और राज उसके आश्रम में! अगर ऐसा है तो मुझे यकीन है कि राज को भी उस पर शक हुआ होगा और इसीलिये उसके आश्रम में रूका होगा। शायद कुछ जानकारी निकालना चाह रहा होगा।”
“ऐसा हो सकता है। पर अब जो भी हो हमें राज को अरेस्ट करना ही होगा और उसके पास जो भी इंफॉर्मेशन है वह लेकर आगे की इन्वेस्टिगेशन बढ़ानी होगी। क्योंकि मंडे तक का समय काफी नहीं है। हमें यह भी नहीं पता है कि सबूत मिलेंगे भी कि नहीं। मिलेंगे भी तो कब मिलेंगे। इसलिये राज को तो पकड़ के रखना ही पड़ेगा वरना सीबीआई, सीक्रेट सर्विस और हमारे देश के लिये भारी मुसीबत हो जाएगी। उसे पकड़ने के बाद एक तसल्ली रहेगी और बाद में भी हम इन्वेस्टिगेशन कर सकते हैं।”
“तुम ठीक कह रहे हो। आखिर हम भी यही चाहते हैं कि राज को बेकसूर साबित किया जाए। उसको शुरू से ही समझना चाहिए था। हम लोग मिलकर काम करते तो शायद अब तक बहुत कुछ पता चल चुका होता।”
“वो तो सच है कि उसने काफी नादानी दिखाई पर ठीक है, जो हुआ सो हुआ।”
“तो अब क्या करना है ?”
ज़ाहिद उठ खड़ा हुआ। “वहीं के लिये निकलना है।”
“पर यह कैसे पता चला कि ओसाका आहूजा के साथ मिला था ?”
“चलो रास्ते में बताता हूँ।” फिर वह दोनों कैंटीन से सीधे बाहर निकले।
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josef
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Re: Thriller मिशन

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ज़ाहिद और सुरेश ओसाका के आश्रम के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश होते चले गए। मुख्य द्वार के द्वारपाल उन्हें रोकने की कोशिश भी न कर सके क्योंकि वह तेजी से अंदर चलते चले गए और सीधे आश्रम के प्रांगण में पहुँचकर ही रुके। उन्हें चारों तरफ अपने कार्यों में व्यस्त मोतिर और मोतिरी दिखाई दिए। सभी चौंककर उनकी तरफ देखने लगे।
द्वारपाल दौड़कर उनके पास पहुँचे। उनमें से कुछ जो हिंदी जानते थे। वह बोले, “आपको यहाँ किस से काम है ? कौन है आप लोग यहाँ इस तरह बिना पूछे अंदर आना मना है।”
ज़ाहिद और सुरेश ने तुरंत अपने आईडी कार्ड दिखाये।
“हम सीक्रेट सर्विस से हैं।” ज़ाहिद बोला, “हमें गुरु ओसाका से मिलना है।”
“पर वह इस वक्त पूजा में लीन हैं।”
“उनकी पूजा बाद में भी हो सकती है।” सुरेश सख्त स्वर में बोला, “मामला बेहद गंभीर है। उनसे कहिए तुरंत हम से मिले।”
द्वारपालों के पसीने छूटने लगे। उनमें से दो भागकर ओसाका के कमरे की तरफ गए।
कुछ देर में ओसाका कमरे से बाहर निकला और हाथ फैलाकर उनका स्वागत करने लगा और इशारे से उन्हें अपने कमरे में बुलाने लगा।
“आप लोग कृपया यहाँ आ जाएँ।” उसने अपने शिष्यों की तरफ हाथ उठा कर इशारा किया। “चिंता की कोई बात नहीं है। आप सभी अपने काम में लगे रहें। हम सीक्रेट सर्विस वालों से बात कर लेंगे।”
ज़ाहिद और सुरेश तेज कदमों से ओसाका के कमरे में पहुँचे।
“गुरु ओसाका!” अन्दर आते ही ज़ाहिद बोला, “आपको हमारे साथ अभी दिल्ली चलना होगा।”
“दिल्ली! पर क्यों ? मेरा वहाँ क्या काम ?”
“बाकी बातें वहीं पर होंगी। फिलहाल आपको पूछताछ के लिये ले जाया जा रहा है।”
ओसाका चिंतित मुद्रा में शून्य में देखने लगा। “क्या जानना चाहते हैं ? किस बारे में जानना चाहते हैं ? आपको जो पूछताछ करनी है आप यहीं करिए। मैं सबकुछ बताने के लिये तैयार हूँ।”
तभी दरवाजे के पट तेज आवाज के साथ खुले।
चौखट पर भगवे वस्त्रों में एक लंबा शिष्य दिखाई दिया। वह सिर झुका कर तेज नजरों से ज़ाहिद और सुरेश की तरफ देख रहा था। उसके चेहरे पर गुस्सा था। ज़ाहिद और सुरेश ने उसकी तरफ देखा। उन्हें दो पल लगे पर फिर वह उसे पहचान गए।
वह राज था– एक नये अवतार में। ओसाका के शिष्य के अवतार में।
“तुम लोग यहाँ क्या कर रहे हो ?” राज ने वहीं खड़े-खड़े सवाल दागा।
ज़ाहिद उसकी तरफ पलटा। “अरे, यह सवाल तो हमें तुमसे पूछना चाहिये। कब से गायब हो। आखिर तुम्हें भागने की क्या जरूरत थी ?”
“मेरे आम!” सुरेश बोला, “यह क्या हुलिया बना रखा है ? तू यहाँ आकर साधू बन गया क्या ? हमें तो लगा आहूजा के खिलाफ इन्वेस्टिगेशन कर रहा होगा।”
“मैं एक मुक्त इंसान हूँ। मेरे जो मन में आएगा मैं वही करूंगा।”
“अरे! ऐसे क्यों बात कर रहा है तू हम लोगों से ?” सुरेश बोला, “हमने तेरे लिये कभी गलत नहीं सोचा। तुझे पकड़ने का इरादा लियोन के दबाव के कारण चीफ के ऊपर आया था। फिर भी हम लोग हमेशा तेरी साइड लेकर बात कर रहे थे।”
“जानकर अच्छा लगा पर फिलहाल जिस तरह से तुम यहाँ मेरे गुरु ओसाका से बात कर रहे हो– उस बारे में क्या कहना चाहोगे ? क्या तुम लोग मुझे ढूंढते हुए यहाँ पहुँचे हो ?”
“एक पंथ दो काज।” ज़ाहिद बोला, “मेन वजह तो तुम्हारे गुरु हैं और वैसे तुम इन्हें अपना गुरु बोलना बंद करो, वही तुम्हारे लिये अच्छा होगा। इनको दिल्ली ले चलते हैं–सारा मामला साफ हो जाएगा और राज! मेरे ख्याल से तुम्हारे ऊपर जो वारंट इश्यू होने वाला है वह भी कैंसिल हो जायेगा।”
“तुम इन्हें किस इल्जाम में ले जाना चाहते हो ?”
“इल्जाम तो फिलहाल कुछ नहीं है पर हमें पूछताछ करनी है क्योंकि इतना तो हमें पता चल गया है कि इनका लिंक ऐसी जगहों पर है जहां आमतौर पर किसी धर्मगुरु का नहीं होता।”
“क्या कोई सबूत है तुम्हारे पास ?”
“नहीं! फिलहाल तो कोई सबूत नहीं है।”
“फिर तुम इन्हें नहीं ले जा सकते और न ही मुझे।” राज निर्णायक भाव के साथ बोला, “मेरे ख्याल से अब तुम लोगों को यहाँ से चले जाना चाहिये। सीक्रेट सर्विस का यहाँ अब कोई काम नहीं।”
सुरेश बोला, “देख रहा हूँ– तुम्हारा राग एकदम बदल गया है। चार दिन इस आश्रम में क्या रह लिये पूरी थिंकिंग ही बदल गई।”
“तुमने खुद क्या सीक्रेट सर्विस में सिर्फ सबूत के बल पर काम किया है ?” ज़ाहिद चुनौतिपूर्ण स्वर में बोला, “शक होते ही तुमने भी लोगों पर हाथ डाला है कि नहीं ? राज! यह तो तुम्हारी फितरत में हमेशा से रहा है।”
“...रहा था। मैं सीक्रेट सर्विस छोड़ चुका हूँ।”
“चीफ ने ऐसा कुछ बताया तो नहीं कि तुमने कोई रेजिग्नेशन लेटर दिया हो। न ही तुम्हें निकाला गया है तो टेक्निकली तुम अभी भी सीक्रेट सर्विस में हो।”
“सीक्रेट सर्विस अपने ही एजेंट को पकड़ने का हुकुम नहीं देती और अगर देती है तो ऐसी जगह मुझे काम नहीं करना।”
“अरे, मेरे आम!” सुरेश उसे समझाने की भरकस कोशिश करते हुए बोला, “यह सब अपना अंदर का मामला है। यहाँ क्यों डिस्कस करना ? आराम से बैठ कर सुलझा लेंगे। तेरे ऊपर कोई खतरा नहीं।”
“मुझे सब पता है। मैं तुम लोगों के साथ ही काम करता था। यहाँ तुम कुछ भी बोलोगे और वहाँ जाकर मुझे फंसा दोगे और गुरु ओसाका को भी फालतू के पचड़े में फंसाओगे।”
“तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे सीक्रेट सर्विस बेईमानी से काम करती है। भले ही हमने कई दांव-पेच खेले हो पर अंत में हमारी अरेस्ट सबूतों के बेसिस पर ही होती रही है।”
“तो जाओ– सबूत लेकर आओ और हमें अरेस्ट करो।” कहकर राज भारी कदमों से चलते हुए अंदर आया और फिर गुरु ओसाका और ज़ाहिद-सुरेश के बीच आकर खड़ा हो गया।
ज़ाहिद का पारा चढ़ने लगा था। उसने जबड़ा सख्ती के साथ भींच रखा था। सुरेश अभी भी राज को समझाने के मूड में था पर तभी ज़ाहिद के मुख से जैसे अंगारे निकले-
“ राज! तुम और ओसाका दोनों अभी हमारे साथ चलोगे।”
“नहीं चलेंगे।” राज भी पूरी जिद के साथ बोला।
“नहीं चलोगे ? अपनी मर्जी से नहीं चलोगे ? ठीक है! हम तुम्हें जबरदस्ती ले चलेंगे।”
कहकर ज़ाहिद ने आगे बढ़कर राज की कलाई थाम ली। राज ने अचानक ही दूसरे हाथ से ज़ाहिद की कलाई पकड़ी और उछलकर उसे एक तरफ गिरा दिया।
ज़ाहिद जमीन पर गिर गया और आश्चर्य से राज को देखने लगा।
“क्या देख रहे हो ? ताज्जुब हो रहा है ? तुम क्या समझते थे- राज तुम से कमजोर है ? सबसे ताकतवर तुम ही हो। तुम आर्मी के दांव-पेंच जानते हो तो मेरी भी सीक्रेट सर्विस में ट्रेनिंग हुई है। मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट हूँ। तुम भूल गए क्योंकि यह कला कभी तुम पर नहीं आजमाई इसलिये तुमने कभी सोचा नहीं मेरी ताकत के बारे में।”
ज़ाहिद मुस्कराते हुए उठा।
“मानना पड़ेगा। कभी सोचा भी नहीं था कि तुम मुझ पर हाथ उठाओगे और मुझे उसका जवाब देना पड़ेगा...” कहते हुए अचानक ही ज़ाहिद राज पर तेजी से झपटा। राज ने चालाकी से एक तरफ हटना चाहा पर ज़ाहिद ने भी उसी हिसाब से दिशा बदली और फिर राज को अपने आगोश में लिये कमरे के दूसरे कोने की तरफ तेजी से बढ़ा। उसने राज की पीठ कमरे की लकड़ी की दीवार से भिड़ा दी।
जोरदार आवाज हुई। ऐसा लगा जैसे दीवार चटक गई हो। ज़ाहिद ने राज को लगभग हवा में उड़ाते हुए दीवार पर पटका था। ठोकर जबरदस्त हुई थी और इसके कारण राज की पीठ पर बुलेट के घाव में अत्यंत पीड़ा उभरने लगी थी।
इस एक ही वार से राज को अपना आधा दम निकलता हुआ लगा।
ज़ाहिद पीछे हटा और एक बार फिर गुस्से से उफनते हुए राज को रौंदने के लिये उसकी तरफ दौड़ा। एन मौके पर राज एक तरफ हट गया।
ज़ाहिद का सर दीवार में भिड़ गया। वह एक तरफ गिर गया।
दूसरी तरफ राज गिरा पड़ा कराह रहा था। कुछ पल दोनों खुद को संयमित करते रहे फिर दोनों धीरे-धीरे उठने की कोशिश करने लगे।
ओसाका किंकर्तव्यविमूढ़ अवस्था में खड़ा उन्हें देख रहा था।
सुरेश कुछ बोल रहा था पर शायद ज़ाहिद और राज को कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था। अपने पैरों पर खड़े होते ही राज ने एक घूँसा ज़ाहिद के पेट में मार दिया। ज़ाहिद के पत्थर जैसे ठोस एब्स पर उसका कुछ असर नहीं हुआ।
उसने खा जाने वाली नजरों से राज को देखा और अपना घूँसा उसके मुंह की तरफ घुमाया। शर्तिया अगर वह घूँसा राज के मुंह पर पड़ता तो उसके एक-दो दांत बाहर आने निश्चित्त थे। पर राज ने फुर्ती से खुद को झुकाया और गोल घूम कर मार्शल आर्ट स्टाइल में एक किक ज़ाहिद के घुटने पर दे मारी।
यह वार कमाल का था। ज़ाहिद घुटनों के बल बैठ गया। चोट सीधे हड्डियों के जोड़ पर जो लगी थी।
“दोस्त के साथ लड़ने में यही फायदे और नुकसान हैं।” राज बोला, “हमें एक दूसरे की कमजोरियां अच्छे से पता हैं।”
“ राज अभी भी रुक जा। यह तमाशा बंद कर दे।” ज़ाहिद हिंसक ढंग से गुर्राते हुए बोला, “वरना मैं तुझे जान से मार दूंगा।”
ज़ाहिद के चेहरे से लग रहा था कि अब उसके क्रोध की अति हो गई है और वह अब कुछ भी कर सकता था।
“जान से मारेगा ?” राज ने दांत चबाये। “अपने आप को समझता क्या...” कहते हुए राज ज़ाहिद पर झपटा। राज ने सीधे उसका गला पकड़ लिया। उसके दोनों हाथों में भी ज़ाहिद का गला पूरी तरह पकड़ में नहीं आ पा रहा था। हालांकि राज की पकड़ बेहद मजबूत थी। किसी शिकंजे की तरह उसने उसे जकड़ रखा था।
ज़ाहिद खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा था पर न जाने राज में इतनी ताकत कहां से आ गई थी। ज़ाहिद का चेहरा लाल होने लगा और फिर अचानक ही उसने हिम्मत बटोरी और घुटने से राज के पेट में प्रहार किया। राज की पकड़ छूट गई।
ज़ाहिद गुस्से से पागल हो गया था। उसकी हालत किसी बिगड़ैल सांड जैसी थी। उसने ओसाका की पूजा की कुर्सी उठाई और राज पर फेंक दी। राज एक तरफ हट गया।
इस बार राज अपना मार्शल आर्ट का पूरा जलाल दिखाने के मूड में था। वह एक पैर पर उछला और तेजी से हवा में घूमने लगा। घूमते-घूमते ही उसकी किक ज़ाहिद पर पड़ी। ज़ाहिद दूसरी तरफ जा गिरा।
“मुझे अरेस्ट करेगा ? मैं अपराधी हूँ ? साले! मैंने हमेशा अपने देश के लिये ईमानदारी से सेवा की है। तू मुझे अरेस्ट करेगा!” बड़बड़ाते हुए वह ज़ाहिद की तरफ बढ़ रहा था कि अचानक ही ज़ाहिद ने उछलकर राज पर कोहनी से वार किया जो उसके सीने पर लगा। राज पीछे गिरा और ओसाका की मेज से जा टकराया।
इस बार ज़ाहिद ने जेब से पिस्टल निकाला और राज की तरफ तान दिया। तभी सुरेश दौड़ता हुआ आया और राज के सामने खड़ा हो गया।
“डोंट शूट!” सुरेश चीखा- “ज़ाहिद! तुम होश में आओ। क्या कर रहे हो ? हमें यह मसला सुलझाना है और उलझाना नहीं। होश में आओ। अगर राज जुनूनी हो गया है तो इसका मतलब यह नहीं कि तुम भी होश खो बैठो।”
ज़ाहिद जोर-जोर से हांफ रहा था और खा जाने वाली नजरों से राज को देख रहा था। फिर जैसे वह खुद को संयमित करने लगा। उसने अपने कस-बल ढीले छोड़ दिए। सुरेश ने राज को उठाया जो कि भारी पीड़ा में था क्योंकि बुलेट का जख्म इस बार मेज के कोने से टकराया था और फिर से ब्लीडिंग शुरू हो गई थी।
राज लड़खड़ाते हुए उठ खड़ा हुआ।
“तू यही चाहता है न हम कायदे से सबूत सहित तेरे गुरु को अटेस्ट करें ?” सुरेश बोला, “तो ऐसा ही होगा। अब हम सबूत के साथ आएंगे पर राज यह जान ले सिर्फ मंडे तक का समय है। इस बीच अगर रमन आहूजा आतंकवादी साबित न हुआ तो फिर तेरे नाम का भी अरेस्ट वारंट निकल जाएगा।”
“क्या बोल रहे हो सुरेश ?” ज़ाहिद ने उसे झिड़का- “अभी से ऑर्डर है राज को पकड़ने का...”
“पकड़ने का है न अरेस्ट करने का तो नहीं है न। ऑफीशियली होम मिनिस्टर मंडे ही बोलेगा जब रिपोर्ट नहीं आएगी कि राज को अरेस्ट करो। अगर लियोन को बात करनी है तो हम उसी वक्त राज को अरेस्ट करेंगे।”
“तुम मजाक कर रहे हो ?” ज़ाहिद बोला, “इतने दिनों से भाग रहा है। आज छोड़ दिया तो दोबारा हमें मिलेगा भी कि नहीं इसकी क्या गारंटी है ?”
सुरेश राज की तरफ पलटा। “मेरे आम! मैं तुझ पर खुद से ज्यादा भरोसा करता हूँ। मैं जानता हूँ– तू इन्वेस्टिगेशन कर रहा होगा। हम भी कर रहे हैं। क्या मंडे से पहले कुछ हो सकता है ?”
इस बार राज दृढ़ स्वर में बोला, “मुझे नहीं पता क्या हो सकता है पर अगर मंडे से पहले मैं यह साबित नहीं कर सका तो मैं खुद तुम लोगों के पास चल कर आऊंगा। तुम लोग मुझे अरेस्ट कर लेना।”
“लो ठीक है न ?” सुरेश ज़ाहिद की तरफ पलटा। “हो गया फैसला ?”
“यह कोई खेल नहीं है।” ज़ाहिद बोला, “जो भी हो हमें ओसाका को तो ले चलना ही होगा।”
राज बोला, “इनके खिलाफ ऐसे सबूत प्रस्तुत करो जिससे इनकी अरेस्ट जस्टिफाई हो सके। है कोई ऐसा सबूत ? दिखाओ मुझे।”
ज़ाहिद निरुत्तर हो गया।
“ठीक है ज़ाहिद!” सुरेश बोला, “ राज सही कह रहा है। आखिर हम सीक्रेट सर्विस से हैं। सबूत जुटाना हमारे लिये बहुत बड़ी बात नहीं है। हमें लिंक तो मिल ही गया है। अब हम इन दोनों को अरेस्ट करने ही वापस आएंगे।”
ज़ाहिद बेमन से उठा और खा जाने वाली नजरों से राज और ओसाका की तरह दिखने लगा। फिर राज की तरफ उंगली दिखा कर बोला, “अगर तुम फिर से गायब हुए तो मैं मान लूंगा तुम एक कायर इंसान हो जिसे जीवन की मुश्किलें झेलना नहीं आता।”
“हां! यही समझ लेना। जीवन की सारी मुश्किलें तो तुम्हीं ने झेली है न।” राज पलट कर बोला।
“अब बस करो तुम दोनों।” सुरेश पहली बार गुस्से से चीखा, “अब सभी लोग अपना-अपना काम करेंगे। हम लोग जा रहे हैं राज।”
फिर सुरेश ज़ाहिद के पास पहुँचा और ध्यान से उसकी आँखों में देखने लगा। ज़ाहिद ने जाने से पहले कड़ी नज़रों से एक बार राज और ओसाका को देखा फिर वे दोनों वहाँ से निकल गए।
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josef
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कमरे में ओसाका, आरती, राज और वैध मौजूद थे। राज पेट के बल बिस्तर पर लेटा था। वैध उसके बुलेट के जख्म पर लेप लगा रहा था। आरती एक तरफ गंभीर मुद्रा में खड़ी थी। उसने अपने सिर से हुड हटा ली थी। उसके बाल इस वक्त जूड़े में बंधे हुए थे। उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थी। ओसाका कुर्सी पर बैठा हुआ था और राज की तरफ देख रहा था।
“मुझे यकीन नहीं होता तुमने अपने ही साथियों पर हाथ उठाया।” आरती बोली।
“वह मेरे साथी नहीं है। ऐसी संस्था से मेरा कोई लेना-देना नहीं जो आपने ही जासूसों को सपोर्ट नहीं करती। सरकारी दबाव में आकर उन्हें ही अरेस्ट करने के लिये तैयार हो जाती है। आप ही बताइए गुरु ओसाका! यह कौन सी बात होती है कि कोई दूसरा देश दबाव डालेगा और जैसा बोले आप वैसा करते जाओ। क्या आपके पास रीढ़ की हड्डी नहीं है ? क्या आप जवाब नहीं दे सकते कि भाड़ में जाओ। ये हमारा जासूस है और हमारे देश की भूमि पर हुई घटना हमारा मसला है। तुम्हारा इससे कोई लेना-देना नहीं।”
“तुम्हारा गुस्सा जायज है, राज! पर एक देश के दूसरे देश के साथ के रिश्ते डिप्लोमेटिक टाइप होते हैं जिन्हें मद्देनज़र रखते हुए कुछ सख्त फैसले करने पड़ते हैं। लेकिन ये वाकई अफसोसजनक है कि देश अपने ही जासूसों की रक्षा नहीं कर पा रहा। आए दिन अक्सर ऐसा ही होता है। देश के जासूस दूसरे देश में पकड़े जाते हैं और फिर देश उन्हें अपने देश का मानने से ही इंकार कर देता है।”
“एकदम सही उदाहरण दिया आपने।” राज रोष भरे स्वर में बोला, “यही होता आया है और आज भी यही हो रहा है। जासूस ने अपना कर्तव्य निभाया, देश के लिये काम किया और जब वक्त आया कि देश उसके लिये कुछ करे तो उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिये। जिस डोर के सहारे वह बंधा था– उसे ही काट दिया। मगरमच्छों के बीच खुला छोड़ दिया।”
कहकर वह चुप हो गया। कुछ देर कमरे में शांति छाई रही, जिसे फिर राज ने ही तोड़ा– “पर कुछ भी हो जाए गुरु ओसाका! मैं उन लोगों को आप पर कोई झूठा इल्जाम नहीं लगाने दूंगा। मेरी आपसे सिर्फ एक गुजारिश है कि अगर आपको कुछ पता है तो मुझसे न छुपाएँ।”
ओसाका चुप था। वह शून्य में घूर रहा था।
“मैं जानना चाहता हूँ उन लोगों को आप पर शक हुआ भी तो कैसे ?”
“यह बात तुम अपने दोस्तों से ही क्यों नहीं पूछते ? गुरु ओसाका से यह सब पूछने का क्या मतलब है ?” आरती गुस्से से बोली।
“मैं कोई इल्जाम नहीं लगा रहा हूँ, दीपिका।” राज समझाने वाले भाव के साथ बोला, “मैं यह समझना चाहता हूँ कि उनके दिमाग में इनके खिलाफ शक का कीड़ा किसने डाला ?”
“हम अच्छी तरह से जानते हैं।” ओसाका बोला, “यह काम सुज़ुकी के अलावा और किसी का नहीं हो सकता।”
“जी गुरु जी! आपने सही कहा।” वैध भी पट्टी बनाते हुए बोला, “यह सुज़ुकी बहुत ही धूर्त है। किसी को भी अपनी बातों में ले आता है। इन जासूसों को भी उसी ने आप के खिलाफ भड़काया होगा।”
“भड़काने से क्या होता है ?” राज बोला, “ज़ाहिद या सीक्रेट सर्विस का कोई भी एजेंट आप पर तब तक हाथ नहीं डाल सकता जब तक आपके खिलाफ कोई सबूत न मिले।”
“इसी बात की तो चिंता है हमें।” ओसाका बोला।
“क्या मतलब ?”
“मतलब यह है कि सीनो सरकार...”
“गुरु जी! पर आप यह सब क्यों बोल रहे हैं ?” वैध ने उसे रोकने की कोशिश की।
“बोलने दो हमें। अब राज से यह सब बातें छुपा कर क्या फायदा ? किसी का फायदा नहीं है। ज़ाहिद और सुरेश को भी मैं यही बातें बताता पर मौका ही नहीं मिला।”
“मतलब ?” राज रहस्य से बेचैन हो रहा था।
“दरअसल आज से कुछ साल पहले हमारी एक गुप्त मीटिंग हुई थी सीनो के नये प्राइम मिनिस्टर के साथ।”
“नये प्राइम मिनिस्टर! मतलब जो छह साल से प्राइम मिनिस्टर है वहीं ?” राज ने पूछा।
“हां वहीं!”
“पर वह तो ऑफिशियली भारत दौरे पर आए थे।”
“तुम सही कह रहे हो। उस दौरे पर पहली बार किसी सीनो पीएम ने भारत की शरण में रह रहे ओसाई धर्मगुरुओं से मिलने की इच्छा जताई थी। हमारी ऑफिशियल मीटिंग हुई और उसके बाद हम दोनों के साथ अलग से एक अनऑफिशियल मीटिंग रखी गई। मैंने उस मीटिंग में यह सोच कर भाग लिया कि शायद शांति को लेकर कोई अच्छा कदम होगा। जब बात शुरू हुई तो उन्होंने यही कहा कि पुरानी बातें भुला दी जाएँ और एक नई शुरुआत हो। प्राइम मिनिस्टर सीनो में हम सभी धर्म गुरुओं पर लगे सभी तरह के बैन हटाना चाहते थे। वह हमारे फैलाए धर्म को वापस सीनो में लाना कहते थे और इसके लिये उनको हमारा सपोर्ट चाहिए था।”
“कैसा सपोर्ट ?”
“भारत के खिलाफ जासूसी में सपोर्ट। भारत के खिलाफ मिशन में साथ देने का सपोर्ट। सीनो अपना बॉर्डर भारत के अंदर बढ़ाना चाहता था। यह सब सुनकर मेरा माथा ठनक गया। मैं तुरंत उस मीटिंग से उठ गया। सुज़ुकी भी उठ गया। हम दोनों ने ही उसे बोला कि वह हम लोगों को क्या समझते हैं ? हम लोग शांति के दूत हैं और अपने ही रक्षक देश को धोखा नहीं दे सकते। इस तरह वह मीटिंग खत्म हुई लेकिन उसके बाद सुज़ुकी की अकेले में प्राइम मिनिस्टर के साथ बात हुई और वहाँ सब उल्टी बात हुई। उसने हमारे सामने दिखावा किया पर प्राइम मिनिस्टर के मिशन में शामिल हो गया। सुज़ुकी को नये ख्वाब जो दिख रहे थे सीनो में दोबारा एंट्री, अपना धर्म फैलाने का मौका और भारत में जो भी नई टेरिटरी सीनो के अधिकार में आने वाली थी वहाँ भी सुज़ुकी ही धर्मगुरु स्थापित किया जाता इसलिये सुज़ुकी ने प्राइम मिनिस्टर की साजिश में शामिल होना स्वीकार कर लिया।”
राज का मुंह खुला हुआ था वह एकटक ओसाका को देखे जा रहा था।
“आप जानते हैं आप ने कितनी बड़ी बात कह दी।”
“जानता हूँ और यह भी जानता हूँ कि सुज़ुकी के पास गुप्त मीटिंग के कुछ रिकॉर्डिंग और सबूत मौजूद हैं और वह उनको इस तरह पेश कर सकता है जिससे सिर्फ यह साबित होता है कि मैं कैसे प्राइम मिनिस्टर से मिलने गया और उन्होंने क्या प्रलोभन दिया। उसके आगे की रिकॉर्डिंग वह नहीं सुनाएगा क्योंकि इतने में ही मेरे ऊपर शक करने के लिये पर्याप्त मटीरियल मिल जाएगा क्योंकि आगे जो कुछ साजिश चल रही है उससे फिर मुझ से कनेक्शन आराम से जोड़ा जा सकता है।”
“पर आपको क्या पता उसने ऐसी कोई रिकॉर्डिंग की है और वह इस तरह से आपको ब्लैकमेल करेगा ?”
“मुझे पता है क्योंकि वह पहले भी ऐसा कर चुका है।”
“ओह!”
“मैं बकायदा वह रिकॉर्डिंग सुन चुका हूँ।”
“तो उसके बदले में आपने क्या किया ?”
“मैं चुप रहा।” ओसाका आत्मग्लानि भरे स्वर में बोला, “यही मेरा सबसे बड़ा अपराध है। मैं चुप रहा। भारत के खिलाफ हो रही साजिश में उसकी भागीदारी के बारे में जानते हुए भी मैं चुप रहा।”
राज जैसे सकते की हालत में आ गया था पर उसका दिमाग तेजी से दौड़ रहा था– मानों हवा में उड़ रहा हो। उसे पुरानी सभी घटनाएं याद आने लगी।
“तो क्या खलीली का पूरा प्लान सीनो द्वारा स्पॉन्सर किया गया था ?” उसके मुंह से निकला।
“ऐसा ही लगता है। कोई सबूत तो नहीं है पर हमें यकीन है सीनो के सपोर्ट के बिना यह मुमकिन नहीं।”
“क्या आपके पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे सुज़ुकी पकड़ा जा सके ?”
“बदकिस्मती से हमने कभी सुज़ुकी की भांति चालाकी नहीं सीखी।”
“कोई बात नहीं। सबूत तो जैसा कि हम लोग भी लड़ते वक़्त बोल रहे थे– जोड़े जा सकते हैं। फिलहाल एक लीड तो मिला है।”
“हाँ! जहां तक हमें मालूम है उनके शिष्य निक की बहुत पहले से इस प्लानिंग में हिस्सेदारी है और उसका किसी बड़े मिनिस्टर के साथ गठबंधन भी था।”
“यानि कोई इन्डियन मिनिस्टर भी इस प्लान में शामिल था ?”
“इसकी संभावना बहुत अधिक है और जहां तक मुझे पता है खलीली के प्लान फेल होने के बावजूद यह लोग अभी किसी प्लान बी पर काम कर रहे हैं।”
राज उठ खड़ा हुआ उसने अपनी शर्ट पहनी और फिर ओसाका गुरु के सामने बैठ गया।
“मेरे ख्याल से ज़ाहिद और सुरेश को आप के खिलाफ रिकॉर्डिंग वाला सबूत मिल ही जाएगा।”
“कोई बात नहीं! हमने कोई गलत काम नहीं किया है। उन्हें हमें अरेस्ट करने दो– पूछताछ में हम सब बता देंगे। अब जब पानी गले तक आ गया है तो हमें चिंता नहीं। भले ही हमारे देश की बदनामी हो– हम सब सच बोल देंगे।”
“अब सच तो मुझे पता चल ही गया है। आप दुबारा बोलने के लिये क्यों फंसते हो ? मेरे ख्याल से आप को भारत छोड़ देना चाहिए।”
“क्या बोल रहे हो राज! हम भारत छोड़कर कहां जाएंगे ? सीनो छोड़ने के बाद अब यही हमारा घर है।”
“हमेशा के लिये छोड़ने के लिये नहीं कह रहा हूँ। कुछ समय के लिये चले जाइए। एक बार सुज़ुकी हाथ में आ जाएगा तब मामला रफा-दफा हो जाएगा।”
“पर हम क्यों भागे ? हमने क्या किया है ?”
“आप सीनो से भी तो भागे थे। वहाँ भी तो आपने कोई गलत काम नहीं किया था।”
ओसाका निरुत्तर हो गया।
आरती चहलकदमी करते हुए बोली, “ राज ठीक कह रहा है गुरु जी। इन हालात में अभी आप को चले जाना चाहिए वरना सीक्रेट सर्विस का तो ठीक है यहाँ पर इंटरपोल वगैरह का भी इंवॉल्वमेंट है। वे लोग किसी के भी पीछे हाथ धोकर पड़ जाते हैं।”
“पर अगर मैं यहाँ से भाग जाऊंगा तो... तो हर कोई यही कहेगा कि मैं ही गलत था।”
“वह तो आप के रहते हुए भी लोग यही कहेंगे। अब आप ज्यादा मत सोचिए।” राज बोला, “आप सुबह की फ्लाइट से कहीं मलेशिया, सिंगापुर, वगैरह किसी ऐसी जगह निकल जाइए जहाँ कोई सीनो धर्म का प्रोग्राम होने वाला हो या न भी हो तो आप करा सकते हैं। तो कहने को भी हो जायेगा कि आप धार्मिक काम के लिये गये। जब सब ठीक हो जाएगा तब आप वापस आ जाना।”
ओसाका ने तनावयुक्त ढंग से पहलू बदला। वह कभी आरती और कभी राज की तरफ देख रहा था।
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