बदनसीब रण्डी

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Re: बदनसीब रण्डी

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37


कोई मां नहीं चाहती कि उसकी औलाद उसे बुरा समझे पर यहां तो चिराग ने फुलवा को जिस्म के बाजार से बाहर लाया था। जब चिराग फुलवा को खींच कर ले जाने लगा तो फुलवा बिना किसी विरोध के उसके साथ जाने लगी।


रास्ते के मोड़ पर फुलवा ने बापू की गाड़ी को देखा।


फुलवा, “यह गाड़ी? तुम्हारे पास?”


चिराग, “अधिकारी सर ने मुझे बचपन से आप के बारे में बताया था। जब आप सजा खत्म होने पर मुझे लेने नहीं आईं तो मैं बहुत उदास हुआ। सर ने आप के बारे में पता लगाया।


कोई कालू सिपाही आप को जेल से ही अगवा कर चुका था। सर ने बहुत कोशिश की पर आप का कोई पता नहीं चला। कुछ दिन बाद एक डकैत ने कुबूल किया की वह राज नर्तकी की हवेली में खजाना ढूंढने गया था जब वहां सिपाही कालू भी पहुंचा। हाथापाई में सिपाही कालू मारा गया और फिर कोई भी उस जगह पर नहीं गया। सर की मदद से आप ने जेल में कमाए पैसों के साथ यह गाड़ी मुझे अपनी विरासत कह कर दी गई।“


फुलवा ने गाड़ी में बैठते हुए अंदर देखा। यह बात साफ थी की चिराग इसी गाड़ी में जी रहा था।


फुलवा, “चिराग, तुम गाड़ी में रहते हो? क्यों?”


चिराग, “आज क्या है, मां?”


फुलवा अपनी आंखे बंद कर, “मैं नहीं जानती बेटा। मैं पूरी जिंदगी एक कैद से दूसरे कैद में रही हूं। मुझे नहीं पता की आज क्या है।“


चिराग बात समझ कर मुस्कुराया, “आज मेरा 18 वा जन्मदिन है। मैने यह कभी नहीं माना की आप मर गईं हो। जब भी मुझे पता चलता की कहीं रंडियां बिक रही हैं तो मैं वहां आप को ढूंढता।“


फुलवा, “लेकिन अधिकारी साहब ने इसकी इजाज़त कैसे दी?”


चिराग, “अधिकारी सर 2 साल पहले गुजर गए। उन्होंने अपनी पूरी जायदाद हिजड़ों को पढ़ाने और उनकी सशक्तिकरण में काम करने वाली संस्था को दे दी। मुझे मेरी विरासत आप से मिली!”


फुलवा रोने लगी।


फुलवा ने चिराग को गले लगाकर, “मुझे माफ करना बेटा! मेरी बदनसीबी ने तुझे भी सड़क पर लाया। इस गरीबी के श्राप से तुझे भी भुगतना पड़ा!”


चिराग, “मां!!… उस बारे में…”


फुलवा, “हां!!… उस बारे में हमें कुछ करना होगा! क्या तुम मेरे साथ लखनऊ आओगे?”


चिराग, “लखनऊ?”


फुलवा, “हां, वहां तेरे बापू ने हमारे लिए विरासत छोड़ी थी!”


चिराग, “मेरे बापू ने? किसने? आप तो…”


फुलवा मुस्कुराकर, “रण्डी थी? हां पर तुम्हारा बापू मेरा बड़ा भाई था! मतलब तीन में से एक लेकिन फिर भी तुम उन की औलाद हो।“


उस रात मां बेटे ने सोने के बजाय जाग कर गाड़ी चलाते हुए बातें की। सुबह होते हुए गाड़ी लखनऊ पहुंची। फुलवा के कहने पर चिराग उसे लक्ष्मी एंपोरियम ले गया।


लखनऊ का बाजार 17 सालों में पूरी तरह बदल गया था पर लक्ष्मी एंपोरियम बिलकुल वैसा ही था। फुलवा और चिराग अपने मैले पुराने कपड़ों में जब वहां पहुंचे तो दरबान ने उन्हें रोक दिया।


फुलवा ने अपना नाम बताया और कहा की वह धनदास से मिलने आई है तो दरबान ने उन्हें अजीब नजर से देखते हुए अंदर सोफे पर बिठाया। फुलवा का नाम सुनकर एक कपड़े के दस्ताने पहना नौकर उन दोनों के लिए पानी के ग्लास लाया। पानी पीने के बाद नौकर ग्लास ले गया और दोनों को धनदास के कमरे में लाया गया।


फुलवा ने अंदर बैठे आदमी को देखा और चौंक गई।


फुलवा, “आप कौन हैं? आप धनदास नहीं हो!”


आदमी मुस्कुराया, “नहीं फुलवाजी। मैं धनदास नहीं हूं। धनदास आप से मिलने के कुछ ही देर बाद मर गया।“


फुलवा चौंक कर बैठ गई।


फुलवा चुपके से, “मर गया। वो बोले थे की रुकेंगे…”


आदमी, “क्या मतलब? धनदास ने क्या बोला था?”


फुलवा, “धनदासजी आप की जगह पर बैठे थे। बहुत उदास थे। उन्होंने कहा की वह आखरी सौदा ईमानदारी से करेंगे! जब मैंने उन से कहा की वह मेरे आखरी गवाह है और वह खुद को संभालें तो वह बहुत ज्यादा उदास हुए। कहने लगे कि आखरी सांस तक मेरा इंतजार करेंगे।“


फुलवा ने आदमी को देखा तो उसके चेहरे पर अजीब खुशी दिख रही थी।


फुलवा ने उठ कर हाथ जोड़ते हुए, “मैं चलती हूं। आप को तकलीफ देने के लिए माफी चाहती हूं!”


आदमी, “रुकिए! आप और कुछ पूछना नहीं चाहती? हिसाब नहीं मांगना चाहती?”


फुलवा, “जिसे अपनों ने लूटा हो वह दूसरों से क्या शिकवा करे?”


एक नौकर ने पर्ची लेकर अंदर आया और वह कागज आदमी को देकर रुक गया।


आदमी पर्ची पढ़ कर, “मेरी आज की सारी अपॉइंटमेंट रद्द कर दो और धनदास की गाड़ी बाहर लाओ। मेरे घर पर बता देना की मैं धनदास की गाड़ी लेकर जा रहा हूं।“


नौकर चला गया और आदमी ने फुलवा को बैठने को कहा। फुलवा का हाथ अपने हाथ में लेकर आदमी ने फुलवा की हथेली को सहलाया। फुलवा ने अपने हाथ को खींच लिया और आदमी हंस पड़ा।


आदमी, “मेरा नाम मोहन है और मैं लक्ष्मी एंपोरियम का मालिक हूं। आप हैं फुलवा और यह आप का बेटा चिराग!”


चिराग, “आप को मेरा नाम कैसे पता?”


मोहन, “हम आप दोनों को पिछले कई सालों से ढूंढ रहे थे। नीचे आप को पानी पिलाते हुए आप की उंगलियों के निशान लिए गए और अब उनके मिलान होने पर मैं आप को धनदास के बारे में बता सकता हूं।“


मोहन फुलवा और चिराग को बाहर ले जाते हुए अपने नौकरों को सूचनाएं दे रहा था। आखिर में तीनों बाहर निकले और एक सफेद गाड़ी में बैठे।


मोहन के बगल में चिराग बैठा और फुलवा पीछे बैठ गई।


मोहन, “आप को पहले धनदास का इतिहास बता दूं फिर आप को पता चल जायेगा की आप के साथ जो हुआ वह क्यों और कैसे हुआ!”

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धनदास का असली नाम नारायण था। वह गरीब घर में पला बढ़ा और अमीरी के सपने देखते हुए बचपन में ही काम करने लगा।


छोटे नारायण को लक्ष्मी एंपोरियम में झाड़ू पोंछा लगाने का काम मिला। वहां से 21 की उम्र में मैनेजर का सफर नारायण ने लगन और बेरहमी के जोर पर किया। जब लक्ष्मी एंपोरियम के मालिक को दिल का दौरा पड़ा तो उसे अपनी मंद बुद्धि बेटी लक्ष्मी के लिए चिंता होने लगी। 21 वर्ष के नारायण ने 33 वर्ष की मंद बुद्धि लक्ष्मी से मंदिर में शादी कर उसके पिता को खुश कर दिया। लक्ष्मी को समझ नही आता की उसका दोस्त उसे रोज रात को क्यों मारता है पर शादी के नौ महीनों बाद नारायण ने अपने बेटे को उसके नाना की गोद में रखा।


नाना ने खुश होकर अपना धंधा नारायण को दिया और कुछ ही दिनों बाद चल बसे। नारायण ने तुरंत लक्ष्मी को पागलखाने में भर्ती कराया और अपने बेटे को संभालने के लिए एक बांझ औरत को रखा। अब नारायण बिना डरे उस से अपने बेटे के साथ अपनी रात का भी खयाल रखवाता।


नारायण ने मुश्किल में फंसे लोगों से उनका सोना गिरवी रखवाया और सूत बढ़ाकर उसे ऐंठ लिया। इसी धन के लालच में लोगों ने उसका नाम धन का दास धनदास रख दिया।


धनदास इतना लोभी था की उसने अपने बेटे तक को नहीं छोड़ा। जब उसका बेटा 21 साल का हुआ तब वह धनदास के लक्ष्मी एंपोरियम में मैनेजर था और वहीं की कैशियर से प्यार करता था। लेकिन धनदास ने अपनी दौलत बढ़ाने के लिए अपने इकलौते बेटे की शादी मुत्थुस्वामी गोल्ड की वारिस के साथ तय कर दी।


मुत्थुस्वामी गोल्ड की वारिस एक बड़ी ही बदचलन लड़की थी जो कच्ची उम्र से ही बदनाम थी। अब 25 की उम्र में वह 4 माह पेट से थी और पिछले 3 गर्भपात की वजह से इस बार गर्भपात नही करा पाई थी। बाकी के नशे की आदत के साथ यह भी सुनाई दिया था की वह HIV से संक्रमित थी।


जब बेटे ने इन सारी बातों को बताते हुए शादी से इंकार किया तो धनदास ने उसे अंतिम चेतावनी दी। या तो वह इस लड़की से शादी कर अपनी प्रेमिका को अपनी रखैल बनाए या अपने प्रेमिका से शादी कर अपनी जायदाद से हाथ धो बैठे। उस शाम को धनदास के बेटे ने अपनी प्रेमिका से मंदिर में शादी कर ली और धनदास को छोड़ चला गया।


उसी रात धनदास के सर में तेज दर्द होने लगा और उसे अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने आधी रात को सोते हुए लोगों को जगाकर धनदास के दिमाग का xray किया।


डॉक्टर ने धनदास को बताया को उसके दिमाग में एक गहरी काली गांठ है। इसे निकालना मुमकिन नहीं है और इसे देख कर लगता है की धनदास अगले 3 महीने में अपने सारे अंग खो कर बड़ी ही दर्दनाक मौत मरेगा।


सुबह हो चुकी थी और डॉक्टर ने और जांच करने को कहा था। पर धनदास अपनी पूरी जिंदगी की कमाई लक्ष्मी एंपोरियम में चला आया। वह अपने ऑफिस में बैठ कर खुदकुशी करने जा रहा था जब अचानक एक भोली भाली लड़की उसे मिलने आई। इस लड़की ने बिना किसी डर के धूर्त धनदास पर भरोसा किया और अपनी पूरी कमाई उसे देकर चली गई।


धनदास नर्क की अग्नि में जलने का मन बना चुका था पर एक अच्छा काम करने की लालसा ने उसे रोक लिया। धनदास ने पूरा सोना बेचने के भाव में खरीद लिया। नौकरों ने यह बात देखी की धनदास अपना सारा पैसा सोने में बदल चुका था।


धनदास फिर वह पैसा लेकर अपने वकील के पास गया। वहां धनदास ने एक साझेदारी कंपनी के कागजात बनाए। उस कंपनी में फुलवा का हिस्सा डेढ़ करोड़ का था तो धनदास का एक रुपए का। धनदास फिर इस कंपनी के कागजात लेकर एक झोंपड़ी के दरवाजे पर पहुंचा।


दरवाजा खोलती नई दुल्हन ने धनदास को देखा और डर कर अपने दूल्हे को पुकारा।


धनदास, “मैं जानता हूं कि अब आप दोनों मेरी शक्ल तक देखना नहीं चाहते। पर सुना है की तुम्हें नौकरी की जरूरत है।“


दूल्हा, “मैं आप के साथ काम नहीं कर सकता! किसी और को ढूंढ लो!”


धनदास, “यह एक नई कंपनी है। इसकी मालकिन तुमसे अभी मिल नही सकती पर वह मालिक है, मैं नहीं। तुम यह कंपनी अपनी मर्जी से चलाओ। बस दिल से काम करो और तरक्की करो!”


दूल्हा शक करते हुए, “बस? कोई चाल नही? कोई हिस्सा नहीं? कोई देखरेख नही?”


धनदास दुल्हन की ओर देख कर, “तुम वफादार हो, ईमानदार हो और उसूलों पर चलने वाले हो। मुझे इस काम के लिए ऐसे ही इंसान की जरूरत है।“

**************

चिराग, “वह दूल्हा आप हो? धनदास का बेटा जो एक रात पहले घर छोड़ कर अपनी दुल्हन के साथ अलग हो गया था!”


मोहन मुस्कुराया, “हां! हमें विश्वास नहीं हो रहा था कि एक झोपड़ी में रहने वाला आदमी एक कंपनी का CEO है!”


मोहन आगे बताने लगा, “खैर डेढ़ करोड़ कोई ज्यादा बड़ी रकम नहीं है। मैने तुरंत जाकर एक बंद पड़ी पेपर मिल खरीद ली। मैने सोचा की रद्दी कागज से डिस्पोजेबल पेपर ग्लास और थाली एक अच्छा छोटा धंधा होगा। कंपनी को नाम देना था तो धनदास ने फुलवा के बारे में जानकारी इकट्ठा की। तभी हमें पता चला की उसका एक बेटा है जिसका नाम चिराग है। मैंने पेपर मिल का नाम नहीं बदला पर पेपर को नाम दिया Chirag Paper Products।“


चिराग चौंक गया। मोहन मुस्कुराया और फुलवा ने चिराग को चौंकने की वजह पूछी।


चिराग, “Chirag paper products एक काफी बड़ी कंपनी है।“


चिराग और फुलवा चौंक कर मोहन को देख रहे थे पर मोहन मुस्कुरा रहा था।


मोहन, “चिराग पेपर प्रोडक्ट्स को बेचने की बस शुरुवात हुई थी की सरकार ने प्लास्टिक ग्लास और थाली पर रोक लगा दी। बस इतना समझ लो की हमने इतनी बड़ी ऑर्डर का सपना भी नहीं देखा था।“


फुलवा और चिराग मुंह खुला छोड़ देखते रह गए पर मोहन मुस्कुराता रहा।


मोहन, “मैं एक नाकामयाब CEO होता अगर मैं इतने पर ही रुक जाता। अपनी कामयाबी को बेवक्त लोगों की नजरों में आने से रोकने के लिए मैंने एक होल्डिंग कंपनी बनाई जिस के जरिए मैंने बाकी कई और कंपनियां बनाई। और हां मैं काफी कामयाब रहा!”


चिराग, “कितने कामयाब हुए आप?”


मोहन फक्र से, “होल्डिंग कंपनी का नाम C कॉर्प है।“


चिराग दंग रह गया और फुलवा को कुछ समझ नहीं आया।


मोहन फुलवा को समझते हुए, “C कॉर्प इस देश की सबसे तेजी से बढ़ती कंपनी है। हम इसकी कामयाबी में आप को हिस्सा बनने के लिए तरस रहे थे। आप जब जेल से रिहा हुईं तब मैं इसी गाड़ी में आप को लेने आया था पर आप को कोई और अगवा कर चुका था।“


फुलवा, “मैंने इस गाड़ी को देखा था!”


मोहन, “चिराग, मेरी आप पर भी नज़र थी। आप के स्कूल के नंबर से मुझे बहुत उम्मीदें थी। पर अधिकारी साहब के अचानक गुजर जाने के बाद आप गायब हो गए! इसी वजह से आप दोनों को ऐसे देख कर मुझे आप दोनों पर शक करना पड़ा। आप नहीं जानते की पिछले 17 सालों में कितने लोगों ने फुलवा बनने की कोशिश की है। फुलवा जी मैंने आप की हथेली को सहलाया पर तब मैं आखिरी बार तसल्ली कर रहा था की आप ने नकली उंगलियों के निशान वाला दस्ताना नही पहना।“


मोहन ने गाड़ी एक अच्छे से घर के सामने रोकी।


मोहन, “अगर आप दोनों बुरा न मानो तो कुछ दिनों के लिए हम आप की पहचान को राज़ रखना चाहते हैं। चिराग, मैं इस कंपनी को तुम्हें सौंपने से पहले तुम्हें उसके लिए तयार करना चाहता हूं। यह कंपनी मेरी पहली औलाद है और अगर तुम इसे चलाने के लायक नही निकले तो मैं तुम्हें एक अच्छी आमदनी के साथ कोने में बिठाने से परहेज नहीं करूंगा।“


फुलवा घर में आते हुए, “मोहनजी आप ने नही बताया की आप के पिता कब गुजर गए।“


अंदर से रौबदार आवाज आई, “कौन कहता है की मैं मर गया? मैंने एक चुड़ैल से कर्जा लिया है, चुकाए बगैर नहीं मरूंगा!”

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39

धनदास हॉल में आया और फुलवा ने दौड़ कर उसे गले लगाया।


फुलवा रोते हुए धनदास को शुक्रिया अदा कर रही थी जब धनदास ने उसे रोका।


धनदास, “बेटी, मैं धनदास नहीं रहा। अब मैं नारायण हूं! और तुम ने धनदास को मार कर नारायण को बचाया।“


फुलवा, “मैंने? कैसे?”


नारायण, “जब तुम मुझे मिलने आई तब मैं खुदकुशी का मन बना चुका था। लेकिन जब तुमने मुझे अपना आखरी गवाह बनाया तब मैने तय किया कि मैं जीते जी नरक यातना सह लूंगा पर तुम्हें धोखा नहीं दूंगा।“


नारायण ने मुस्कुराकर सबको सोफे पर बिठाया।


नारायण, “जब मैंने अपना सारा पैसा सोने में बदल दिया तो यह बात फैल गई। सबको लगा की मुझे कोई छुपी हुई जानकारी मिली है। उस एक दिन में हमारा साल भर का सोना बिक गया।“


नारायण बैठ कर, “सब लोग मुझे फोन कर रहे थे और उन में मेरा डॉक्टर भी था। आखिर में वह रात को मुझे मिलने आया और बोला की xray machine में खराबी के कारण वह गांठ दिखी थी। मुझे बस मोहन के जाने से सर में दर्द था!”


नारायण उस दिन को याद कर हंसने लगा।


नारायण, “पर मेरे लिए उस दिन धनदास ने खुदकुशी कर ली थी और मैं मोहन के लिए नारायण बनना चाहता था।“


मोहन, “सुधरना इतना आसान नहीं था पर इन्होंने कर दिया।“


नारायण, “जिंदगी भर की आदतें आसानी से नहीं छूटती पर मैंने छोड़ी। लोगों को मदद की, लोगों की गालियां खा कर उनसे माफी मांगी!”


फुलवा, “अब लक्ष्मी एंपोरियम अपने बेटे को देकर यहां मेरा इंतजार कर रहे थे?”


नारायण, “अरे लक्ष्मी एंपोरियम तो मैने तुम्हारे लिए रखा है। मोहन C कॉर्प बना रहा था तब मैं इस देश का सबसे बड़ा सोने का व्यापारी बन गया। आज लक्ष्मी mining Australia और दक्षिण अमरीका में सोने की खदान चलाती है। जो पैसा पीछा करने पर भी धनदास को हासिल नहीं हुआ वह नारायण को बैठे बिठाए मिलता गया।“


मोहन के कंधे पर हाथ रख कर नारायण, “अब मैं सब इसे देकर अपने पापों का प्रायश्चित करता हूं। जब मोहन ने बताया की वह मेरी गाड़ी लेकर बाहर जा रहा है, मुझे पता चल गया कि तुम अपने घर आने को तैयार हो।“


नारायण, “यह तुम्हारा घर है! दो बेडरूम, भरा हुआ रसोईघर, बढ़िया हॉल और घर की चारों ओर एक छोटा सा बगीचा। तुम दोनों इस से काफी बड़ा घर ले सकते हो पर फिलहाल यहीं पर रहो! लोगों को हम बताएंगे कि आप दोनो पिछले 20 सालों से विदेश में थे और अब अपने देश लौटे हो!”


मोहन, “जैसा मैंने कहा था, चिराग तुम ने स्कूल में अच्छे नंबर लाए थे पर स्कूल छोड़ने के बाद तुम्हारा कोई पता नहीं था। इस कंपनी को मैं किसी ऐसे के हवाले नहीं करूंगा जो अपना दिमाग नहीं चला सकता!”


अगर मोहन चिराग को डराना चाहता था तो उसका पासा उल्टा पड़ गया। अब चिराग ने मुस्कुराते हुए अपनी गंदी सी पोटली में से एक बेहतरीन लैपटॉप निकाला।


चिराग, “मां, जब आप ने गरीबी के श्राप की बात की तब मैंने आप को कुछ बताने की कोशिश की थी पर आप ने मेरी बात काट दी। अगर मैं रंडियों की नीलामी में जाता था तो वहां आप को देख कर खरीदना पड़ता। आप के जेल में कमाए पैसों को मैं शेयर बाजार में पिछले कुछ सालों से लगा कर घुमा रहा हूं। मोहन जी बस इतना समझ लीजिए की अगर C कॉर्प एक फैमिली कंपनी नहीं होती तो मैं उसका शेयर होल्डर होता। अगर धनदासजी ने मां को धोखा दिया होता तो भी वह हम अपनी बाकी जिंदगी आराम से जी सकते हैं!”


मोहन और नारायण चिराग का पोर्टफोलियो देख कर उसकी तारीफ कर रहे थे जब फुलवा चकरा कर देख रही थी।


फुलवा, “जरा रुको!! यह सब झूठ है! यह मेरा वहम है! मैं पागल हो गई हूं!!”


चिराग, “क्या हुआ मां!!”


फुलवा, “कल सुबह मैं एक कोठे से नीलाम हो रही रण्डी थी। फिर दोपहर को मुझे आजादी मिली, शाम को मेरा बिछड़ा हुआ बेटा मिला! आज सुबह मुझे पता चलता है कि मैं करोड़ों की संपत्ति की मालकिन हूं क्योंकि मेरे नसीब ने मुझे कैद में रखते हुए धनवान बनाया। इतना अगर कम है तो मेरा 18 साल का बेटा अपने आप में धनवान है! क्या यह सच हो सकता है? नही!!… नही!!…”


चिराग ने फुलवा को गले लगाया।


चिराग, “मां, जब आप ने मुझे गंदे कपड़ों में गाड़ी में रहते हुए देखा तो आप को मुझ पर भरोसा था न? तो अब बस मेरे पास पैसे थोड़े ज्यादा हैं। लड़का तो मैं वही हूं!”


फुलवा को इस बात पर विश्वास हुआ और उसने चिराग की बाहों में समाते हुए अपने सर को हिलाकर हां कहा।


चिराग, “और आप को धनदास पर भरोसा था की वह आप को आप के पैसे लौटाएगा! इसी लिए आप को गरीबी के बारे में सोचते ही इनकी याद आई। अब इन्होंने 17 सालों में आप की अमानत को इस्तमाल कर उसके पीछे 1 शून्य जोड़ दिया है! (मोहन ने मुस्कुराते हुए इशारे से दो शून्य लगाने की बात मानी) तो इसमें बुरा क्या है?”


फुलवा चुपके से, “मुझे डर लग रहा है कि मेरी आंखें खुलेंगी और मैं कोठे पर किसी से चुधा रही हूंगी!”


नारायण, “बेटा ऐसा समझ लो की पिछले जन्म के पाप का हिसाब हो गया है और अब भविष्य में अपने अच्छे कर्मों के फल मिलने हैं!”


मोहन, “अब आप दोनों आराम कर लो। चिराग, कल सुबह 8 बजे मेरे घर हाजिर होना! तुम मेरे नए असिस्टेंट हो! मेरे साथ धंधा करना सीखो। तुम्हारा दाखला मैनेजमेंट कॉलेज में करा देता हूं। साथ साथ डिग्री भी ले लो। अगर मैं तुम पर भरोसा कर पाया तो शायद 10 साल बाद मेरी जगह ले सकते हो! शायद…”


नारायण ने बताया की बगल का बड़ा बंगला उनका घर था और कुछ दिनों तक खाना वहीं से आएगा। नारायण और फुलवा ने एक दूसरे का एहसान माना और नारायण मोहन के साथ अपने घर चला गया।


फुलवा ने अपने कमरे में देखा। वहां एक बड़ा बिस्तर था और बगल की अलमारी में ढेर सारे कपड़े थे। फुलवा के कमरे में ही नहाने का कमरा भी था। फुलवा ने नहाकर नए कपड़े पहने और बिस्तर पर लेट गई।


अचानक फुलवा का दिल भर आया और वह रोने लगी।


चिराग फुलवा के बगल में बैठ गया और उसकी पीठ पर हाथ घुमाकर रोने की वजह पूछने लगा।


फुलवा, “18 साल की थी जब बापू ने मेरी गांड़ मारी थी। उस मनहूस रात के बाद आज पहली बार मैं अकेली सोऊंगी!”


इसी तरह फुलवा सिसक सिसक कर सो गई और चिराग अपनी मां के बदन पर चादर डाल कर अपने कमरे में चला गया।

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चिराग ने रात भर फुलवा के कमरे से सिसकियां और आहें भरने की आवाज़ें सुनी। चिराग ने फुलवा को वक्त देकर नए हालत से जुड़ने का मौका देना सही समझा।


सुबह 6 बजे चिराग उठ कर बाहर आया तो फुलवा किचन की मेज से लगी कुर्सी पर बैठ कर चाय पी रही थी। फुलवा का भरा हुआ बदन satin की महीन परत ओढ़े अपना हर उठाव हर कसाव दिखा रहा था। चिराग अपने इन विचारों को रोक कर गले की खराश की आवाज कर अपने आने की खबर फुलवा को देने में कामयाब हुआ।


फुलवा मुस्कुराकर, “अरे बेटा, तुम उठ गए! आओ बैठो मैंने हमारे लिए चाय बनाई है।“


फुलवा ने अपनी कुर्सी पर चिराग को बिठाया और चाय गरम करने के लिए बर्तन गैस पर रखा। Satin gown के आगे का हिस्सा खुल गया और फुलवा के गले से नाभि तक का हिस्सा साफ दिखने लगा।



चिराग का गला सुख गया और उसके मुंह से कुछ अजीब आवाज निकली।


फुलवा अपने गाउन को सीधे करते हुए, “माफ करना बेटा! मुझे परिवार के साथ रहने का तजुर्बा नही!”


चिराग ने बात बदलते हुए, “मैं समझ सकता हूं! हम बिलकुल अलग तरह से जिए हैं। आप बताओ की आप कैसे रहती थीं?”




फुलवा ने चाय को कप में भरते हुए, “वैसे तो हम सब औरतें ही थी। इस लिए हम सब सिर्फ ब्लाउज और साया पहनती थी। रात 8 बजे का पहला ग्राहक हमारा ब्लाउज खोल कर साया उठाता। फिर सुबह 6 बजे हम ब्लाउज बंद कर साया गिरा देती। आम तौर पर बीस से पच्चीस ग्राहक मिलते थे। अगर किसी रात धंधा कम हुआ तो हमें सिर्फ दस ग्राहक मिलते। खास मौकों पर एक रात में चालीस से पैतालीस ग्राहक मिलते ही थे।“



चिराग, “दस से चालीस ग्राहक कितनी औरतों के लिए?”


फुलवा अपने सर को झुकाकर, “हर एक को!”


चिराग ने फुलवा के हाथ पर हाथ रखा और उसे धीरज बंधाया।


फुलवा ने पतली मुस्कुराहट से, “तो सुबह हम में कुछ करने की ताकत नहीं होती। सुबह 6 बजे कोठे का दरवाजा बंद होने के बाद हमें चाय मिलती। फिर हम सब एक साथ नहाती और सब को काम मिलते। नाश्ता बना, खाना पकाना, साफ सफाई करना।“


फुलवा ने नीचे की अलमारी में से कुछ बिस्कुट निकाले और उन्हे एक छोटी थाली में रखा। झुकते हुए फुलवा की गदराई गांड़ के मोहक दर्शन से चिराग की जवानी तड़प उठी।


फुलवा चिराग के सामने बैठ कर चाय बिस्कुट खाते हुए, “दिन भर के कामों के बाद शाम को हमें हल्का खाना मिलता। ग्राहकों को मोटी रंडियां पसंद नहीं आती। फिर हम सब नहाकर अपने बदन पर सुगंध लगाती और चटाई पर लेट जाती। रात को 8 बजे कोठे का दरवाजा खुलता और रंडीखाने में नया दिन शुरू होता।“


फुलवा ने चिराग को देख कर बहादुरी से मुस्कुराया, “मेरी बात छोड़ो, अपनी बताओ!”



चिराग, “अधिकारी सर ने मुझे कड़े अनुशासन में पला और बढ़ाया। रोज सुबह 5 बजे उठने के बाद एक घंटे की कसरत, फिर नाश्ता। नहा धोकर सुबह 7 बजे स्कूल जाना। स्कूल से लौटने के बाद स्कूल की पढ़ाई, घर की पढ़ाई। अधिकारी सर ने मुझे घर के काम भी करना सिखाया ताकि मैं किसी औरत का बोझ ना बनूं!”


फुलवा ने मुस्कुराकर चिराग के हाथ पर अपना हाथ रखा।


चिराग, “रात को 10 बजे बत्ती बंद कर सोना जरूरी था। अधिकारी सर के जाने के बाद भी मैने यही दिनचर्या रखी। बस अब स्कूल की जगह मैं सुबह 9 बजे से 4 बजे तक लैपटॉप पर काम करता हूं।“


फुलवा, “मेरा बेटा कितना अच्छा है!!”



फुलवा ने चिराग की बाजू को छू लिया और अचानक अपना हाथ पीछे खींच लिया।


फुलवा बात बदलते हुए, “चलो, तुम्हें 8 बजे तयार होकर मोहनजी से मिलना है! ऐसा ना हो की मां की बुरी संगत में एक दिन में बिगड़ जाओ!”


चिराग ने फुलवा का हाथ पकड़ कर उसे रोका।


चिराग, “मां, आप कोई बुरी संगत नहीं हो! आप मजबूर थी!!”


चिराग नाश्ता कर नहाने चला गया। फिर तयार होकर, फुलवा के पैर छू कर पौने आठ बजे मोहनजी से मिलने घर से चला गया। फुलवा अकेली बैठी तो उसका मन कई दिशाओं में भागने लगा।


फुलवा सोचने लगी की औरतें अपने खाली समय में क्या करती होंगी? क्या वह बार बार वही सफाई करती होंगी या आते जाते हर मर्द से चुधवाती होंगी?




दरवाजे पर दस्तक हुई और फुलवा जैसे सपने में से जाग गई।


दरवाजे में एक बेहद खूबसूरत औरत खड़ी थी। फुलवा ने उसे अंदर बुलाते हुए अपने कपड़े ठीक किए।


औरत, “जी, मेरा नाम सत्या है और मैं मोहनजी की पत्नी हूं। कल आप के आने की खबर मिली तो सोचा की आप से मिल लूं।“


फुलवा समझ गई कि यह औरत डरी हुई थी। उसे डर था की उसका प्यार उस से ऊब कर किसी पेशेवर औरत की बाहों में ना चला जाए। फुलवा ने सत्या की तारीफ करते हुए उसका डर भगाया और उस से दोस्ती भी की।



सत्या ने बताया की अमीर औरतें (अब फुलवा भी उनमें से एक थी) अपना वक्त काटने के लिए किट्टी पार्टी करती हैं जहां खाने के साथ शराब और जवान लड़के भी होते हैं। फुलवा ने इस सुझाव को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह अपने जिस्म की बिक्री से सिख कर अब दूसरे का जिस्म खरीदने जैसे घटिया हरकत नही कर सकती।


सत्या मुस्कुराई और बोली कि फिर फुलवा अपना वक्त समाज सेवा में लगाए। फुलवा इस बात पर सहमत हुई और दोनों नई सहेलियों ने कई घंटों तक बातें की।


सत्या ने फुलवा को नए फैशन के कपड़े पहनना, सही तरीके से खाना, चलना और बोलना सिखाया। फुलवा ने सत्या को मर्दों के बदन के वह राज़ बताए की सत्या का चेहरे शर्म से लाल और धड़कनें तेज हो गई।


शाम को जब चिराग घर लौट रहा था तब उसके मन में एक अजीब कशमकश थी। उसे मोहन के साथ अच्छा काम करने नाज़ था और अपनी बरसों बाद मिली मां को सब बताने की चाह भी थी। लेकिन साथ ही उसे अपनी मां को देख कर अपने अंदर बनते आकर्षण से डर लग रहा था। चिराग को डर था की वह गलती से अपनी मां को उसकी अतीत की यादों से जोड़ कर अपने से दूर कर देगा।


चिराग ने घर के आंगन में देखा और देखता रह गया। फुलवा पीले रंग की साड़ी पहन कर बागीचे के पौधों को देख रही थी। राह चलते दो लोग फुलवा को देख उसे अलग अलग बातों में अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे।


फुलवा नीचे पड़ा एक फूल उठाने के लिए झुकी और दोनों की आंखें मानो बाहर निकल आईं। चिराग के अंदर से एक जंगली जानवर गुर्राया और वह आगे बढ़ा।


फुलवा, “ओह, वो देखो! मेरा बेटा आ गया!”


दोनों मर्दों ने स्कूली बच्चे के लिए नीचे देखा और उन्हें चिराग के पैर नजर आए।


चिराग ने हक्क जताते हुए फुलवा को गले लगाकर, “मां, आप को ऐसे मेरा इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं थी। अब मैं स्कूल में नहीं, काम करने जाता हूं!”


फुलवा मुस्कुराकर, “बेटा ये अच्छे लोग मुझे बता रहे थे की यहां अच्छी फिल्में कहां लगती हैं। क्यों न हम इस हफ्ते एक फिल्म देख कर आएं?”


चिराग को अपनी मां की होशियारी पर हंसी और गुस्सा आ रहा था। हंसी इस लिए की उसने दोनों लट्टू मर्दों को सफाई से घुमाकर फेंक दिया। गुस्सा इस लिए की कहीं अंदर से एक मर्दाना जानवर अपनी मादा को बांटने के खिलाफ था।


चिराग ने फुलवा की हंसी से खिलखिलाती हुई आंखें देखी और उसके अंदर से एक गुर्राती हुई आवाज आई,

“मेरी!!!…”

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Masoom
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Re: बदनसीब रण्डी

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