कैसे कैसे परिवार

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Masoom
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अध्याय ७: सातवां घर - वर्षा और समीर नायक १


आज राहुल, जयंत और कुसुम अपने खेतों के दौरे से लौट रहे थे. जब भी दोनों सप्ताह के लिए जाते थे कुसुम भी लगभग साथ चली ही जाती थी. घर में उस समय काम कम होता था जिसे बाक़ी तीनों महिलाएं अच्छे से संभाल लेती थीं. कुसुम की एक पहचान की औरत इन दिनों आती थी और इसके लिए उसे अच्छा पैसा भी मिल जाता था. सभी लोग बैठे हुए बातें कर रहे थे, शाम के ५ बजे थे और तीनों किसी भी समय आ सकते थे. तभी एक गाड़ी की आवाज़ आयी और फिर कार के दरवाजे के खुलने और बंद करने की. जयंत ने ड्राइवर से सामान अंदर लाने को कहा और तीनों अंदर प्रविष्ट हुए.

"आ गए तुम लोग, बहुत प्रतीक्षा कराई. हम तो २ बजे से राह देख रहे हैं." वर्षा ने कहा.

"हाँ माँ, हम लोग बीच में थोड़ा रुक गए थे, इसलिये देर हो गई. पर अभी तो ५ ही बजा है."

"जाओ तुम लोग नहा धो के कपड़े बदलो मैं तुम लोगों के लिए खाने को कुछ लगाती हूँ." सुलभा ने कहा और रसोई की ओर बढ़ गई.

"माँ जी, आप रहने दो, मैं हूँ न, मैं कर लूंगी." कुसुम ने आग्रह किया.

"अरे तू खुद भी तो थकी होगी. वैसे भी सप्ताह भर संतोष ने खूब रगड़ा होगा तुझे. जा तू भी तैयार हो जा. कल से कर लेना काम."

"अरे संतोष ने क्या रगड़ा होगा, इसे तो हम हर दिन यहाँ रगड़ते हैं तब तो नहीं थकती है." समीर ने हँसते हुए कहा.

"बाबू जी. आप बहुत गंदे हो." कुसुम ने मुंह बनाया पर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी.

"तुझे आज रात बताएँगे कि हम कितने गंदे हैं." पवन ने भी हँसते हुए अपनी इच्छा प्रकट की.

कुसुम शर्मा के भाग गई और सब लोग हंसने लगे. कुछ ही देर में सभी आ गए.

"और राहुल और जयंत, खेतों के क्या हाल हैं?" समीर ने पूछा.

"पिताजी, इस बार फिर अच्छी फसल होगी. बाजार में दाम भी अच्छे मिलने की आशा है. इस बार हमने अपनी ६०% फसल का अनुबंध एक विदेशी कंपनी से कर लिया है. २५% का अगले दौरे में कर लेंगे. शेष खुले बाजार में बेचेंगे." राहुल ने बताया.

"हाँ ये ठीक रहेगा. कामगारों से कोई परेशानी तो नहीं है?"

"नहीं, संतोष ने सब अच्छे से संभाल रखा है. हर प्रकार से."

समीर ने अपनी ऑंखें टेढ़ी कीं तो राहुल ने समझाया, "उसने दो औरतों को पटाया हुआ है, और दोनों बिलकुल चटक माल हैं."

"तुमने कैसे जाना?"

"परसों दोनों के ले आया था गेस्ट हाउस में, बहुत एन्जॉय किया."

"राहुल, पर ये समझो कि इस प्रकार से कामगारों के साथ करना ठीक नहीं है. आगे से इस बात का ध्यान रखना. संतोष और कुसुम हमारे घर वाले हैं, पर ये तुम लोगों ने ठीक नहीं किया."

"ठीक है पापा, आगे से नहीं होगा. पर हफ्ते भर बिना चुदाई के रहना मुश्किल होता है."

"तो अंजलि को ले जाया करो, या अपनी दोनों मम्मियों को ले जाओ. पर ऐसा मुझे दोबारा नहीं सुनना है."

"तेरे पापा ठीक कह रहे हैं. जिसे चाहे उसे साथ ले जाओ. साथ भी रहेगा." वर्षा ने समर्थन किया.

"ओके पापा, मम्मी, अगली बार से ऐसा ही करेंगे. इस बार जयंत अंजलि को ले जायेगा. और मेरे साथ आप दोनों में से कोई चलना."

तभी कुसुम भी आ गई और रसोई में जाने लगी.

"अरे रहने दे आज, बोला न. सुलभा कर रही है. आ मेरे पास बैठ यहाँ." वर्षा ने उसे अपने पास बुलाया. "अंजलि तुम थोड़ा अपनी सासू माँ की सहायता करो और सबके लिए ड्रिंक्स बना दो."

"ओके, मॉम." अंजलि ने रसोई की ओर चल दी.

अंजलि रसोई में पहुँच कर सुलभा का हाथ बटाने लगी.

"अंजलि बिटिया, एक बात बोलूं?"

"जी माँ जी."

"आज राहुल को वर्षा के पास रहने दे, वो कह रही थी कि उसकी गांड में कीड़े चल रहे हैं जो सिर्फ राहुल ही निकाल सकता है. वो खुद तो तुझे कहेगी नहीं, सप्ताह भर बाद जो आया है. अगर तुझे ठीक लगे तो अपनी ओर से कह देना."

"ठीक है, माँ जी. मैं जयंत के पास रह लूंगी. बहुत दिन हुए भैया से अच्छे से मिलन नहीं हुआ है. और आपका क्या प्लान है?" अंजलि ने चुटकी ली.

"तेरे ससुर जी और पापा कह रहे थे कुछ. शायद कुसुम को भी बुला लें. पता नहीं, जैसे इनका मन में होगा, सो मेरे लिए ठीक है."

"हम्म्म, अगर पापा रहेंगे तो आपकी गांड की खैर नहीं." कहकर अंजलि ने उनकी गांड पर एक चपत लगाई और ग्लास की ट्रे लेकर बार की ओर चली गई.

सुलभा ने अपनी गांड को हलके से सहलाया, "कहीं दोनों न चढ़ जाएँ इस बुढ़िया पर. पर सच कहूँ तो आज मेरी ज्यादा शक्ति नहीं है. इनकी इच्छा के लिए एक बार कर लूंगी."

फिर उसने खाने का सामान एक ट्रे में लगाया और बैठक में आ गई. उधर अंजलि ने स्कॉच की बोतल, बर्फ और सोडा लिया और बीच टेबल पर रखकर सबके लिए पेग बनाने लगी. पहले अपने ससुर, फिर पिता को पेग दिए. फिर सास को दिया. अपनी माँ को पेग देते हुए कहा, "मम्मी आज मैं जयंत भैया के साथ सो जाऊं? बहुत दिन से हम लोगों की बात ही नहीं होती. आप अगर चाहो तो राहुल के साथ सो जाना. ठीक है?"

वर्षा का चेहरा खिल गया. "ठीक है, जैसे तेरी इच्छा। अब बात ही तो करोगे न?" उसकी हंसी छूट गई.

यूँ ही ड्रिंक लेते लेते बहुत समय हो गया. सुलभा ने सबको खाने के लिए बुलाया और सब खाना खाते हुए बातें करते रहे.

"भाईसाहब अब कोई अच्छी सी लड़की देखकर जयंत की भी शादी दीजिये." सुलभा ने समीर से कहा.

"हमारे परिवार में उसे दुविधा न हो और न हमें उससे, ये देखना बहुत आवश्यक है." समीर ने उत्तर दिया.

"ये बात तो सही है, फिर भी ढूंढने में क्या समस्या है?"

"मेरे लिए पहले ही कोई कमी है जो मुझे शादी करके एक और लड़की दिला रहे हो?" जयंत ने मजाक में बोला।

"हम सब तुम्हारे अकेले के लिए थोड़े ही सोच रहे हैं." अंजलि ने उसे छेड़ा, "यहाँ और भी पुरुष हैं, जिनके लिए ये सोचा जा रहा है."

सब हंसने लगे.

"चलो अब देर हो रही है. तुम जयंत से बात करने के लिए उसके साथ रहो." समीर ने कहा. "आइये समधन जी, आज आपकी थोड़ी सेवा कर दें."

समीर ने सुलभा का हाथ लिया और उसे खड़ा करते हुए, सुलभा के कमरे की ओर चल पड़ा. देखा देखी अंजलि ने जयंत के साथ अपने कमरे की ओर प्रस्थान किया. और वर्षा को राहुल हाथ पकड़कर वर्षा के कमरे की ओर ले गया.

"हम दोनों ही बचे हैं, कुसुम. क्या करें?" पवन ने पूछा.

"हम भी बाबूजी के साथ ही चलते हैं."

"ठीक है, चलो."

ये कहकर दोनों सुलभा और पवन के कमरे की ओर बढ़ गए.


वर्षा और राहुल:

"जी, मम्मी जी, क्या प्लान है."

"तुम्हारी शॉर्ट्स बहुत टाइट लग रहे हैं, क्या बात है."

"आपको देखकर ये हाल हुआ है. मुझे निकाल ही देना चाहिए, क्यूंकि अब कष्ट हो रहा है. आप सहायता करेंगी?"

वर्षा ने राहुल की टी-शर्ट उतार कर एक तरफ रख दी. और फिर शॉर्ट्स को खोलकर नीचे सरका दिया। राहुल ने अपने पावों को उठाकर उन्हें अलग किया. अब वो वर्षा के सामने नंगा खड़ा हुआ था. वर्षा ठगी सी उसके तने हुए लंड को देख रही थी.

"क्या हुआ माँ जी?"

"मुझे विश्वास नहीं होता की कोई लंड इतना बड़ा हो सकता है."

"अपने पहली बार तो नहीं देखा है."

"हाँ पर ये सच में बहुत अविश्वसनीय है." ये कहते हुए वर्षा उसे हाथ में लेकर सहलाने लगी. "मुझे याद है जब तुम अंजलि का हाथ मांगने आए थे. उस दिन भी तुम्हारा अजगर पैंट में दिख रहा था. तभी मैंने अंजलि से पूछकर तुम्हारी परीक्षा के लिया कहा था. अंजलि ने कहा था कि ये फेल जो जाये हो ही नहीं सकता."

"बात तो सही कही थी उसने. पापा के शुक्राणु का प्रभाव है."

"हाँ, पवन के बराबर ही हो तुम."

राहुल ने वर्षा को अपनी बाँहों में ले लिया, और उसे चूमने लगा. वर्षा भी उसका साथ दे रही थी. दोनों एक दूसरे के होंठ जैसे खा जाना चाहते थे. राहुल ने पीछे हाथ बढाकर वर्षा के ब्लॉउस के बटन खोले दिए और चूमते हुए ही उसका ब्लाउज निकाल दिया. उसके इस कृत्य से ये साफ था कि वो इस खेल का पारंगत खिलाडी है. फिर उसने नीचे से साड़ी खोली और वर्षा के शरीर से अलग कर दी. वर्षा ब्रा और पेटीकोट में बहुत लुभावनी लग रही थी. राहुल ने उसके पेटीकोट का नाड़ा खोला और वो भी धरती पर ढेर हो गया.

"आप सुंदरता की देवी हो. सच मैं अंजलि ने आप से ही अपनी सुंदरता पाई है." ये कहकर राहुल ने ब्रा के हुक खोले और उसे भी वर्षा के शरीर से अलग कर दिया. फिर वो घुटनों के बल बैठ गया और वर्षा की पैंटी को हलके से सरकाते हुए निकाल दिया. अब सास और दामाद एक दूसरे के सामने नंगे खड़े हुए थे. वर्षा एकटक राहुल के लंड को ताक रही थी.

"क्या माँ जी, क्या मेरा लंड सुपर लंड है"

"सच में तुम्हारा लंड बहुत बड़ा है. हाँ, ये सुपर लंड ही है, तुम्हारे पिता की श्रेणी का."

राहुल ने वर्षा के कंधे पर हाथ रखकर उसे धीमे से दबाया, "मम्मी जी, आपको मोटे और बड़े लंड अच्छे लगते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है. आइये, और अब अपने सुन्दर मुंह से इसकी प्रशंसा कीजिये."

वर्षा घुटनों के बल बैठ गई. उसे राहुल का ये स्वभाव अच्छा लगता था. वो चुदाई के समय उसे अपनी दासी के समान उपयोग करता था. पर चुदाई के बाद वो उसे पूरा आदर देता था. वर्षा ने उसके लंड को मुंह में लेकर चूसना शुरू किया. पर जैसा राहुल का स्वभाव था, उसने वर्षा के सिर के पीछे हाथ रखा और अपने लंड से उसके मुंह को चोदने लगा. वो ८-१० बार अंदर बाहर करता फिर उसका चेहरा पूरा अपने लंड पर दबा देता. इससे उसका लंड वर्षा के गले तक चला जाता था. कुछ पल रूककर वो दोबारा चोदने लगता. जब लंड गले तक जाता तो वर्षा की साँस रुक जाती और आंखों में आंसू आ जाते. ये सिलसिला कुछ ६ -७ मिनट तक चला. फिर एक बार पूरा सिर दबाकर राहुल ने वर्षा को छोड़ा और अपना लंड बाहर निकाल लिया.

"मुझे आपकी चूत का रस पीना है, मम्मी जी."

वर्षा बिस्तर पर लेट गई और एक तकिया अपनी गांड के नीचे लगाकर उसे उठा दिया. राहुल उसके सामने झुक कर चूत की फांकों को फैलाकर, वर्षा की चूत अपनी जीभ से चारों ओर चाटने लगा.

"उई माँ." वर्षा फुसफुसाई.

राहुल के अनुभवी मुंह के प्रभाव से वर्षा ज्यादा देर रुक नहीं पाई और उसने राहुल के मुंह में अपना पानी छोड़ दिया. वैसे भी जब अंजलि ने उसे राहुल के साथ सोने के लिए कहा था उसकी चूत पानी छोड़ रही थी. राहुल ने बेझिझक उसका सेवन किया और चूत पर अपना आक्रमण चलने दिया.

"राहुल, अब बस करो प्लीज. मेरी चूत बहुत संवेदनशील हो गई है. अब देर न करो और चोदो मुझे. तुम्हारे बड़े लंड के लिए ये इतने दिन से व्याकुल है."

"क्यों माँ जी, क्या पापा ने आपको नहीं चोदा इतने दिनों."

"चोदे क्यों नहीं, हर दिन ही चोदते थे, पर तेरी बात अलग है. तू मेरा दामाद है, मेरी बेटी का पति."

राहुल ने अपने लंड को वर्षा की चूत पर रखा.

"राहुल, मेरी चूत ज्यादा देर मत चोदना. आज तुझसे अपनी गांड मरवाने का बहुत मन है."

"अरे माँ जी, आप क्यों इतना सोचती हो. आपकी चूत भी अच्छे से चुदेगी और आपकी इच्छा के अनुसार आपकी गांड का भी भुर्ता बनाऊंगा."

ये कहते हुए राहुल ने एक नपा हुआ धक्का लगाया और वर्षा की खेली खिलाई चूत में एक ही बार में पूरा लंड ठोक दिया. वर्षा का शरीर अकड़ गया. राहुल अपना पूरा खम्बा डाल कर रुक गया जिससे वर्षा को पूरी गहराई भरने की अनुभूति हो सके. राहुल झुककर वर्षा के होंठ चूसने और मम्मे दबाने लगा. वर्षा उसका पूरे मन से साथ दे रही थी.

उसके बाद राहुल ने वर्षा की चूत में अपने लंड से उठक बैठक शुरू की. और शीघ्र ही एक अच्छी गति पकड़ ली. वर्षा अब आनंद की ऊँचाइयाँ छू रही थी. राहुल का जवान और तगड़ा लंड उसकी चूत की वो गहराइयाँ छू रहा था जो मानो अछूती थीं. वो मन ही मन अपने आपको धन्य मान रही थी कि उसकी बेटी ने ऐसा तगड़ा सांड अपने पति के रूप में चुना था. वो लगातार झड़ रही थी और उसकी मुंह से निशब्द चीखें निकल रही थीं.
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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अंजलि और जयंत:


दोनों भाई और बहन एक दूसरे का हाथ थामे हुए अंजलि के कमरे में आ गए.

"वैसे विवाह का आईडिया बुरा नहीं है. तुम्हे इस बारे में गंभीरता से विचार करना चाहिए."

"पर हमारे परिवार में स्थापित भी होनी चाहिए. मुझे नहीं लगता कि हम लोग अपना रहने के ढंग बदलने वाले हैं. और अगर बात बाहर चली गई तो बहुत समस्या हो जाएगी."

"वो ठीक है, पर अगर तुम हाँ करोगे तो हम इन्हीं मापदंडों पर ढूंढेगे. देर सवेर कोई सही लड़की मिल ही जाएगी."

"हम्म्म, वैसे विचार बुरा नहीं है. हर रोज मुझे अकेले सोना पड़ता है. कम से कम एक स्थायित्व तो आएगा. ठीक है. मुझे स्वीकार है."

"मेरा प्यारा भाई." कहकर अंजलि ने जयंत के होठों को चूमा. “पूरा परिवार इस समाचार से प्रसन्न हो जायेगा. मैं थोड़ा बाथरूम से आती हूँ, तब तक तुम २ पेग बना लो."

जयंत ने कमरे के बार से दो पेग बनाये और अपने कपड़े उतारने लगा और सिर्फ अंडरवियर पहन कर सोफे पर बैठ गया. कुछ ही देर में अंजलि एक तौलिया लपेटकर बाहर आ गयी. जयंत ने कपड़े उठाये और बाथरूम में घुस गया. मुंह हाथ धोकर वो भी एक तौलिया लपेटकर बाहर निकला और सोफे पर बैठ कर अपने पेग की चुस्कियाँ लेने लगा.

"पर ये बात तुम्हारी सास ने क्यों उठाई?"

"पता नहीं, शायद उनके मन में कोई लड़की होगी. जब तुमने न किया था तो उनका चेहरा उतर गया था."

"हाँ ये हो सकता है. और इस सप्ताह तुम लोगों ने क्या किया?"

"अरे इस बार तो पता नहीं क्या बात थी, दोनों पापा और ससुरजी मेरे पास फटके ही नहीं. एक दिन मम्मी के साथ सोते और अगले दिन सासू माँ के साथ. सच में मेरी तो चूत इतनी प्यासी है कि क्या बताऊँ. मैंने सोचा था कि तुम और राहुल को आज एक साथ चोदूगी, पर सासु माँ ने किचन में कहा कि मम्मी को राहुल से अपनी गांड की खुजली मिटानी है. अब मैं क्या करती. अच्छा हुआ तुम्हे किसी ने नहीं हथियाया नहीं तो मैं आज भी प्यासी ही रह जाती."

"मेरे रहते हुए तुम प्यासी रहो, ये कैसे हो सकता है. पर मम्मी को अब राहुल कुछ ज्यादा ही नहीं भाने लगा है?" जयंत ने कहा.

"मम्मी को अब राहुल या ससुरजी से गांड मरवाये बिना अब चैन नहीं आता. कल देख लेना रात में हमारे कमरे में आ जाएँगी."

जयंत ने अपना ग्लास समाप्त किया और अंजलि के पांवो में जाकर बैठ गया. फिर उसके तौलिये को एक ओर करके उसकी चूत पर एक चुम्मा लिया और अपनी जीभ उसकी दरार पर फिराई.

"उई आह." अंजलि ने सीत्कार ली.

"प्यासी तो है." ये कहकर जयंत उसकी चूत पर टूट पड़ा और कभी प्यार कभी आक्रोश से चूमने और चाटने लगा.

जयंत के लगातार और अनुभवी मौखिक सम्भोग और उसकी सप्ताह भर का सेक्स से व्रत के प्रभाव से अंजलि झड़ चुकी थी और अब वो निढाल सी पड़ी थी.

"क्या हुआ अंजलि."

"ये लोग ऐसा क्यों किये? सप्ताह भर के लिए मुझसे दूर रहे. और आने पर राहुल को भी अलग कर दिया. भला हो तुम्हारा, नहीं तो मैं आज भी प्यासी रह जाती."

"अरे अंजलि, मुझे नहीं लगता की उन्होंने ऐसा तुम्हे सताने के लिए किया होगा. तुम भी जा सकती थीं न अगर मन था. हमारे घर में कोई रोक टोक तो है नहीं."

"ज्यादा उनका पक्ष मत लो. अब मुझे चोद दो जल्दी." अंजलि ने आग्रह किया. "पर शायद तुम सच ही कह रहे हो. हम में से कोई ऐसा नहीं सोचता."

जयंत ने अपने लंड को अंजलि की चूत के मुंहाने रखा और रगड़ने लगा.

"यार, अब तू ये सब खेल बंद कर, और पेल अपना लौड़ा अंदर." अंजलि ने गुस्से से कहा.

"ओके, बेबी." ये कहकर एक ही झटके में जयंत ने पूरा लंड अंजलि की प्यासी चूत में उतार दिया.

"उफ्फ्फ" अंजलि ने एक संतुष्टि भरी आह भरी. वो आँखें बंद करके इस आनंद की अनुभूति कर रही थी.

जयंत एक धीमी और स्थिर गति से अंजलि को बहुत प्यार से चोद रहा था. वो आगे झुका और अंजलि के होंठ चूमने लगा. अंजलि भी उसका पूरा साथ दे रही थी. फिर जयंत उसके मम्मों के चूसने और चाटते हुए उसी गति से चोदने में लगा रहा. अंजलि को अपनी चूत में एक उबाल का अहसास हुआ.

"दादा, मेरा होने वाला है."

ये सुनकर जयंत ने अपना परिश्रम बढ़ा दिया और उसकी चूचियों को दबाने और हलके हलके से चबाने और काटने लगा. अंजलि का शरीर थरथराने लगा और वो फिर से झड़ गई. इससे जयंत के लिए घर्षण काम हो गया और उसका लंड अब और तेजी से अंदर की यात्रा करने लगा.

"रुको" अंजलि ने उसे हटने का इशारा किया. जयंत के लंड निकलने पर अंजलि ने बिस्तर के कपडे से अपनी चूत को पोंछ दिया।

"अब करो. तुम्हें इतनी गीली चूत में क्या मजा आ रहा होगा."

जयंत दोबारा अपने काम में लग गया पर इस बार उसके धक्के लम्बे और अधिक शक्तिशाली थे. उसके इन धक्कों के कारण बिस्तर इस समय बुरी तरह हिल रहा था। अंजलि को भी अब बहुत आनंद आ रहा था. वो अपनी गांड उछाल उछाल कर जयंत के धक्कों का प्रतिउत्तर दे रही थी. इस समय कामक्रीड़ा का वीभत्स नृत्य अपनी चरम सीमा पर था. दोनों को इसकी बिलकुल भी चिंता नहीं थी की ये सामाजिक विश्वासों के विरुद्ध है.

अंजलि का इतने दिनों का उपवास और जयंत की यात्रा की थकान अब दोनों पर हावी हो रही थी. दोनों अब अपने रतिक्षण के निकट पहुंच गए थे. जयंत ने अपनी गति बढ़ाते हुए बताया कि वो अब झड़ने वाला है, तो अंजलि ने उसे इशारा किया कि उसके चेहरे पर अपना कामरस डाले। जयंत ने अपना लंड बाहर खींचा और अंजलि के चेहरे के करीब कर दिया. अंजलि ने बड़े प्यार से उसे अपने मुंह में लिया और चूसने लगी. जैसे ही उसे ये लगा की जयंत का होने वाला है उसने अपने मुंह से निकल कर अपने चेहरे की ओर साध दिया और ऑंखें बंद कर लीं।

जयंत की पिचकारियाँ उसके सुन्दर चेहरे को गाढ़े सफ़ेद रस से सींच रही थीं. जब जयंत का प्रवाह समाप्त हुआ तो अंजलि ने एक बार उसके लंड को मुंह में लेकर चूसा और छोड़ दिया. फिर उसने वीर्य को अपने चेहरे पर मला और कुछ कतरे अपनी उँगलियों से बटोर कर अपने मुंह में डाल लिए और पी गई.

"पता नहीं राहुल क्या कर रहा होगा. अब तक मम्मी की गांड मारी भी होगी या नहीं? चाहे वो कितना भी थका हो, पर चुदाई में कमी नहीं रखता."

"मारी नहीं होगी तो मार लेगा. तुम्हें क्यों मम्मी की गांड की इतनी चिंता हो रही है. चलो एक एक पेग और लेते हैं और फिर सोते है."

ये कहकर जयंत बार की ओर बढ़ गया.


समीर, सुलभा, पवन और कुसुम:


जब पवन और कुसुम कमरे में अंदर गए तो वहां कार्यक्रम आरम्भ हो चुका था. समीर सोफे पर बैठा था और उसका पायजामा गायब था. उसका लंड इस समय सुलभा के मुंह में था और सुलभा ने अभी केवल साड़ी ही उतारी थी जो एक ओर पड़ी थी. ब्लाउज और पेटीकोट में इस समय उसका गदराया शरीर एक लुभावनी रंगभूमि का दर्शन करा रहा था.

"हम यहाँ रहें या जाएँ?" पवन ने समीर से पूछा.

"अब जब आ ही गए हो तो जाना क्यों?"

ये सुनकर कुसुम अपनी साड़ी उतारने लगी. और पवन ने भी अपने कपड़े निकलने में कोई संकोच नहीं किया. पल भर में ही कुसुम ने अपने कपड़े निकाल दिए और नंगी ही खड़ी हो गई. उसे कोई शर्म नहीं थी कि इस समय कमरे में तीन लोग और थे. यहाँ लज्जा के लिए कोई स्थान नहीं था, क्यूंकि अन्य सब भी काम क्रीड़ा में मग्न थे. पवन का लंड इस समय अपने पूरे रोब में था. उसका शरीर इस आयु में भी बहुत गठा हुआ था. सालों की मेहनत का फल था. और इस सबमे सबसे ज्यादा शक्तिशाली अगर कोई अंग था तो वो था उसका लंड, जो उसे एक उत्कृष्ट बीज के कारण प्राप्त था, जिसे उसने आगे अपने पुत्र राहुल को प्रदान किया था. कुसुम वहीँ अपने घुटनों के बल बैठ गई और पवन के लंड को अपने मुंह में ले लिया और उसे बड़े ही प्रेम और आसक्ति से चूसने लगी.

"बाबूजी, आपका लंड इतना बड़ा है की आसानी से मुंह में नहीं जाता है, पर मुझे इसे चूसना बहुत पसंद है." कुसुम बोली.

"मुझे भी तेरी चूत का स्वाद बहुत अच्छा लगता है, चल बिस्तर पर चलते है, मैं तेरी चूत का स्वाद लूँगा और तू मेरे लंड का."

पवन कुसुम के साथ बिस्तर पर गया और लेट गया, कुसुम आकर उसके ऊपर चढ़ गई और अपनी चूत उसके मुंह पर रख दी. और झुककर पवन का लंड मुंह में लेकर चूसने लगी. पवन अपनी जीभ से कुसुम की चूत कुरेद रहा था और उसके चारों और चाट रहा था. कुसुम इस समय स्वर्ग में थी. वो अपनी क्षमता के अनुसार पवन के विशालकाय लौड़े को अपने मुंह में ले रही थी. पवन ने कुसुम की गांड पर हाथ रखकर उसकी चूत को अपने मुंह की ओर खींचा और अपने मुंह से जोर जोर से चूसने लगा.

"बाबूजी!!!!!!" कहते हुए कुसुम झड़ गई. अब पवन के मुंह में उसका सारा पानी चला गया, जिसे पवन ने बड़े प्रेम से पी लिया. कुसुम हांफते हुए उसके बगल में लेट गई.

"लो, कुसुम का तो इन्होनें एक बार निकाल भी दिया पानी." सुलभा बोली.

"अरे समधन जी, आप क्यों निराश हो रही हो. चलो बिस्तर पर."

सुलभा बिस्तर पर आकर पवन के पास लेट गई. पवन ने उसका हाथ थम कर उसे बड़ी प्रेम भरी आँखों से देखा. सुलभा ने उसके होंठ पवन के होंठों पर रखे और एक गहरा चुम्बन लिया. उसे पवन के मुंह से कुसुम की चूत का स्वाद आया. और पवन को सुलभा के मुंह से समीर के लंड का स्वाद. पर अब इन सब भावनाओं को एक परे धकेला जा चुका था. सामूहिक सम्भोग में इस प्रकार होना स्वाभाविक था.

"बहुत मीठी है कुसुम की चूत, है न."

"सच में."

तब तक समीर आ गया और उसने सुलभा को उठाया और उसका ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा और पैंटी निकाल कर नंगा कर दिया. फिर उसने सुलभा की दोनों टांगे फैलायीं और अपने मुंह को उसकी चूत पर लगाकर आनन फानन चाटने लगा. इस समय उस डबल किंग साइज बिस्तर पर चार नंगे बदन एक दूसरे से लिपटे हुए थे.

कुसुम पवन के होंठ का रस पी रही थी और अपने एक हाथ से उसके लंड हो सहला रही थी. सुलभा का एक हाथ अब कुसुम की चूची पर था क्योंकि उसने अपना स्थान बदल लिया था और वो सुलभा की ओर आ चुकी थी. इससे उसका दांयां हाथ मुक्त हो गया था जिससे वो पवन के लंड को सहला रही थी. समीर ने सुलभा की चूत पर अपना आक्रमण निरंतर बनाये हुए था. वो सुलभा की चूत से लेकर उसकी गांड तक एक लकीर में चाट रहा था. उसकी एक उंगली सुलभा की चूत में अंदर बाहर हो रही थी. जब वो सुलभा की गांड के छेद को चाटता था तो उसकी ऊँगली सुलभा की चूत के अंदर खेलती. और जब वो सुलभा की चूत पर हमला करता तो वही उंगली सुलभा की गांड के अंदर यात्रा करती.

सच ये था की समीर मौखिक सम्भोग का विशेषज्ञ था. रुक रुक कर वो अपने दोनों हाथों से चूत की फांके खोलकर अपनी जीभ से अंदर का भ्रमण करता, और फिर यही क्रिया वो सुलभा की मखमली गांड के साथ भी करता. ये कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि सुलभा इस निरंतर आनंद से अनुभूत होकर २ बार झड़ चुकी थी, पर सुलभा की विनतियों की अपेखा करते हुए समीर ने उसे अभी भी छोड़ा नहीं था. समीर अपने साथ सम्भोग करती स्त्री को तब तक मौखिक सुख देता जब तक वो ये नहीं जान लेता कि अब वो स्त्री अब उसे अपने साथ किसी भी प्रकार का व्यव्हार करने से रोक नहीं पायेगी. इसके विपरीत वो स्त्री इतनी विकृत सम्भोग कि आशा करती की समीर भी कई बार चकित रह जाता.

और इस समय सुलभा उस अवस्था में पहुँच चुकी थी. जैसे ही सुलभा ने तीसरी बार अपना रस छोड़ा, समीर ने उससे प्रश्न किया, "तो समधन जी, क्या इच्छा है आपकी आज."

"आज कुछ खास नहीं. आज दिन भर काम और प्रतीक्षा करते करते थक गई हूँ. बस एक बाद अच्छे से चोद दीजिये. फिर मैं सोना चाहूंगी."

ये सुनकर समीर ने अपना लंड सुलभा की चूत पर रखा और बड़े प्यार से अंदर डालकर उसे चोदने लगा. अगर सुलभा ने बताया न होता कि वो थकी है तो समीर उसकी अच्छी मरम्मत करने के मन बनाये था. पर उसे प्यार करना भी उतने ही अच्छे से आता था और अब वो अपनी उसी कला का बखूबी प्रदर्शन कर रहा था. वो अपने लंड को चलते हुए जितना संभव हो सकता था उतना सुलभा के शरीर को चूम रहा थे. उसके कानों, गालों और गर्दन पर उसने चुम्बनों की झड़ी लगा दी थी. रह रह कर वो उन्हें चाटता और अपने होठों से बिना दाँत उपयोग किये हुए हलके से काटता। यही वो उसकी चूचियों के साथ भी कर रहा था और अपने लंड से उसकी चूत की चुदाई भी.

उनके बगल में ही कुसुम अब पवन के लंड पर सवार उठक बैठक कर रही थी. इस आसन में पवन का विशाल लंड कुसुम की उन गहराइयों को छू रहा था जहाँ अब तक कुछ ही पहुँच पाए थे. उसने अपने शरीर को इस अभ्यास में आगे झुकाया हुआ था और पवन के शक्तिशाली हाथ उसके दोनों मम्मों को बेरहमी से मसल रहे थे. पर अब कुसुम की गति धीमी पड़ गई थी. सफर की थकान और शराब के प्रभाव से उसका शरीर उत्तर देने लगा था. उसके ३ बार झड़ने के कारण भी ये संभव था. उसकी ये अवस्था देखकर पवन ने उसकी कमर को पकड़ा और उसे पलटा कर नीचे लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया. ये पवन के बलशाली व्यक्तित्व का ही प्रभाव था की इस काम में उसका लंड कुसुम की चूत से बाहर नहीं आया. पर कुसुम को जहाँ इसमें थोड़ा आराम मिला वहीँ उसे ये भी आभास हो गया कि अब उसकी चूत की असली कुटाई होगी. अभी तक उसके ऊपर रहने के कारण वो नियंत्रित कर रही थी.

"समीर, ये दोनों आज काफी थकी है. चलो अब इनको दबा के पेलें और फिर आराम करने दें."

"ठीक है पवन. १, २, ३, गो. "

बस फिर क्या था दोनों समधियों ने अपनी गति बढ़ा दी और पूरी गहराई तक लम्बे और ताकतवर धक्के लगाने लगे. सुलभा तेजी के साथ झड़ गई और वहीँ निढाल हो गई. यही उसके साथ लेटी कुसुम का भी हुआ. दोनों समधियों ने लगभग ७-८ मिनट और चोदा और फिर अपने अपने पानी से दोनों चूतों को सरोबार कर दिया. दोनों बाजू में लेट कर सुस्ताने लगे. फिर समीर उठा और कुसुम को उठाने ही वाला था तो देखा कि वो सो चुकी है.

उसने अपने लिए एक पेग बनाया और सोच में डूब गया. उसका ध्यान अब उस समय पर गया जहाँ से ये सब प्रारम्भ हुआ था.
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वर्षा और राहुल:


राहुल ने वर्षा को कुतिया का आसन ग्रहण करने के लिए कहा. वर्षा अपने घुटनों के बल बैठकर आगे झुक गई और अपना मुंह तकिया में गाढ़ दिया. राहुल ने अपना लौड़ा वापिस वर्षा की चूत में डाला और भयंकर गति से धक्के लगाने लगा. वर्षा की चूत में से फच्च फच्च की आवाज़ आ रही थी. उसने अपनी चीखें तकिया में दबा रखी थीं. परन्तु राहुल को मन में कोई दया भावना नहीं थी, क्योंकि वो जानता था कि उसकी सास को उससे ऐसी ही चुदाई की इच्छा रहती है. प्यार से चोदने के लिए तो उसके पति और बेटा ही पर्याप्त है.

पर जब भी उसे कठोर और निर्दयी चुदाई की इच्छा होती तो वो हमेशा राहुल और उसके पिता पवन की शरण में ही आती थी. हफ्ते में एक बार तो बाप या बेटे में से कोई एक तो उसकी सेवा करता ही था. और जब उसे ज्यादा ही चुदास चढ़ती तो बाप बेटा दोनों ही जुगलबंदी करते. परन्तु ऐसा कम ही होता था, क्योंकि राहुल और पवन जब एक साथ होते तो कभी कभार उनकी चुदाई एक वीभत्स रूप ले लेती थी जो किसी भी स्त्री के लिए झेलना वीरता का कार्य होता है.

पर इस समय वर्षा अपने आपे में नहीं थी. राहुल ने उस पर ऐसी चढ़ाई की थी कि उसका रोम रोम चीख रहा था. पर अभी खेल का आखिरी पड़ाव शेष था. जिसके कारण ही उसने सुलभा से राहुल द्वारा गांड मरवाने की इच्छा जताई थी.

"माँ जी, आपकी चूत अब बहुत बह रही है, मेरे ख्याल से अब आपकी गांड का नंबर लगा दिया जाये. खुजली तो आपको वहीँ हो रही है न." राहुल ने अपनी ऊँगली को चूत के रस से भिगो कर वर्षा की गांड में डालते हुए सवाल किया.

"हाँ बेटा, मार दे मेरी गांड. पता नहीं कब से तेरे लौड़े के लिए खुजला रही है."

राहुल ने वर्षा की चूत के नीचे से उसका बहता हुआ पानी इकठ्ठा किया और उसकी गांड के छेद पर मला, फिर यही कार्य उसने दोबारा किया और इस बार उसने गांड के अंदर की मालिश की. फिर वो उठा और टेबल से वेसलीन की ट्यूब उठाई. अपने बाएं हाथ के अंगूठे और एक ऊँगली से गांड के छेद को खोला और ट्यूब से वेसलीन डालकर लबालब भर दिया. फिर उसने ट्यूब फेंक दी और गांड के छेद को बंद किया. थोड़ी वेसलीन पिचक कर बाहर निकल आयी जिसे अपने लंड पर मल लिया. फिर उसने दो उँगलियों से गांड के अंदर की अच्छी तरह से मालिश की.

अब वर्षा की गांड उसके लौड़े के लिए तैयार थी.

"माँ जी, कैसे मरवानी है? प्यार से या..."

"फाड़ दे." वर्षा ने राहुल की बात पूरी भी न होने दी.

"पहले कहतीं हो बिना वेसलीन लगाए फाड़ता, पर जैसी आपकी इच्छा." ये कहकर राहुल ने अपना लंड वर्षा की गांड पर लगाया और धीरे से अपने लंड के टोपे को गांड में डाला. जब गांड की झिल्ली से उसका टोपा अंदर चला गया तब उसने एक तगड़ा धक्का मारा. धक्का इतना तेज था की बिस्तर हिल गया और वर्षा का शरीर आगे की ओर ढकल गया. अगर राहुल ने उसकी कमर जोर से न पकड़ी होती तो वर्षा धराशायी हो गई होती. परन्तु वर्षा का चेहरा तकिये में और अंदर तक गढ़ गया. पर राहुल के लंड ने अपना लक्ष्य पा लिया था. इस समय उसका पूरा लंड वर्षा की गांड में जड़ समेत गढ़ा हुआ था.

राहुल कुछ समय के लिए रुका, जिससे की वर्षा को अपनी गांड के पूरा भरा होने का आनंद आये। फिर उसने अपने लंड से उसकी मुलायम और मखमली गांड की चुदाई शुरू की. हलके छोटे धक्कों से शुरू करके राहुल थोड़ी ही देर में अपने पूरे लंड से वर्षा की गांड का बंटाधार कर रहा था. देखने वाले इस समय वर्षा पर दया करते, पर राहुल में ऐसी कोई भावना नहीं थी. उसकी सास ने खुद अपनी गांड की सर्वनाश की इच्छा जताई थी और वो किसी भी चुनौती से डरने वाला नहीं था. वर्षा का चेहरा तकिये में गढ़ा हुआ था, इस समय उसे इतनी पीड़ा मिश्रित आनंद आ रहा था कि वो अपने सुध खो बैठी थी. उसका सिर आनंद की अधिकता से चक्कर खा रहा था. उसके शरीर का सारा लहू उसकी गांड की और ही बह रहा था.

राहुल ने एक हाथ से उसकी पीठ और एक हाथ से उसके सिर को दबाया और भयावने रूप से उसकी गांड में अपने पूरे विशाल लंड से पिलाई करने लगा. वर्षा इस समय पीड़ा और आनंद के परस्पर विरोधी भावों में खोई हुई थी. जब लंड अंदर जाता तो उसे पीड़ा का संवेदन होता और बाहर निकलने पर आनंद का. पर इनके बीच का समय इतना क्षणिक था की वो एक ऐसी लहर पर सवार थी जिसका हर पल एक नए सुख की अनुभूति करा रहा था. राहुल अब अपनी शक्ति के अनुसार उसकी गांड मार रहा था. फिर उसने वर्षा के बाल पकडे और उसे घोड़ी के आसन में ले आया. एक हाथ से पीठ दबाये, एक हाथ से बाल पकड़कर वो अपने लंड से गांड में लम्बे, गहरे और शक्तिशाली धक्के मार रहा था.

"मर गई मैं. अब बस कर दुष्ट. मेरी गांड फट गई पूरी. अब छोड़ दे, राक्षस."

राहुल ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि अब वो भी अपने स्खलन के निकट था. उसने धक्कों की गति कम की फिर जैसे ही उसे लगा कि उसका पानी छूटने वाला है, उसने पड़े सावधानी से अपना लंड वर्षा की गांड से बाहर निकाला। उसने बड़े प्रेम से वर्षा की गांड के खुले छेद को देखा, जिसका अंदरूनी भाग लाल चुका था और मानो बाहर आने के लिए छटपटा था. राहुल मुस्कुराया, यही दृश्य उसे अत्यंत सुख देता था, जब वो अपने लंड के प्रताप से क्षत विक्षत गांड को देखता था. इस समय वो छेद इतना चौड़ा था कि उसमें ४ इंच गोलाई कोई भी वस्तु बना रोक टोक के जा सकती थी.

वो उठकर वर्षा के सामने गया और अपने वीर्य और वर्षा की गांड के रस से सना लंड वर्षा के मुंह में डालकर उसके मुंह को बेरहमी से चोदने लगा. २-३ मिनट में उसका लंड अपना पानी वर्षा के मुंह में वृष्टि करने लगा. जब उसने अपनी टंकी खाली कर दी तो एक झटके से वर्षा का मुंह अपने लंड से अलग कर दिया. वर्षा इस समय गहरी सांसे ले रही थी. उसके मुंह से राहुल का वीर्य जो उसके पेट में न जा पाया था बाहर निकल रहा था. राहुल ने अपने लंड से ही उस वीर्य को वर्षा के चेहरे पर मल दिया. फिर गहरी सांसे लेता हुआ वो सामने पड़े सोफे गया.

वर्षा अब उलटी ही लेती हुई अपनी सांसों की संयत कर रही थी. राहुल ने उठकर दो एक्स्ट्रा लार्ज पेग बनाये। वो फिर वर्षा के पास गया और उसे बड़े प्रेम से उठाकर सोफे पर बैठा दिया और उसे उसका पेग दे दिया. वर्षा ने दो ही घूँट में वो पेग ख़त्म कर दिया और राहुल से एक और बनाने को कहा. राहुल ने भी अपना पेग समाप्त किया और दोनों के लिए नए पेग बना लाया.

"जानते हो, मैं कभी कभी सोचती हूँ कि तुमसे ऐसी चुदाई के लिए न कहूँ, तुम हड्डियाँ हिला देते हो. पर कुछ ही दिन में मेरा ये संयम टूट जाता है. शरीर ऐसी ही चुदाई में लिए लालायित हो जाता है."

"माँ जी, इतना मत सोचा करिये. जीवन में जिस भी क्रिया में आपको सुख मिलता हो करिये."

"तुम सच में बहुत अच्छे हो, मेरी बेटी बड़ी भाग्यशाली है जिसे तुम्हारे जैसा पति मिला."

"हम भी माँ जी, जिसे आप लोगों जैसा परिवार मिला."

*****
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उधर पास के एक कमरे में अंजलि की नींद एक चीख सुनकर खुल गई थी. ये चीख उसकी माँ की थी.

वो मन ही मन मुस्कुराई, "चलो माँ ने अपनी गांड की खुजली मिटा ही ली." और ये सोचते हुए वो जयंत से सट कर दोबारा सो गई.


बेंगलुरू का एक घर:

कमलेश अपनी सेमेस्टर समाप्ति की अंतिम क्लास करने के बाद ४ बजे घर पहुंचा. आज वो अपनी बहन काम्या के साथ संभ्रांत नगर जाने वाला था, रात १० बजे की ट्रेन से. काम्या की छुट्टी २ बजे ही हो गई थी और वो घर आ गई थी सामान लगाने के लिए. अब ६ सप्ताह का अवकाश था और फिर उनका अंतिम सेमेस्टर शुरू होना था. दोनों भाई बहन को अच्छी नौकरी मिल गई थी. काम्या को तो उनके ही शहर में मिली थी, पर कमलेश को कोई १०० किमी दूर दूसरे शहर में. पर वो भी अपने ही शहर के लिए प्रयास कर रहा था.

उसने अपने घर का दरवाजा खोला तो शयनकक्ष से कुछ आहों और सीत्कार के साथ थप थप की ध्वनि सुनाई पड़ी. कमलेश के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई. घर को लॉक करने के बाद वो सोच में पड़ गया. लगता है काम्या अपने बॉयफ्रेंड को साथ ले आयी थी. सामान्य रूप से वो ऐसे समय में बाहर चला जाता था कुछ समय के लिए, पर उसे बाथरूम जाना अति आवश्यक लग रहा था. इसीलिए उसने दबे पांव कमरे में प्रवेश किया और बाथरूम की ओर जाने लगा.

उसने एक चोर भरी आंख से बिस्तर की और देखा तो उसे आश्चर्य हुआ. ये काम्या का बॉयफ्रेंड नहीं था. एक अधेड़ उम्र का आदमी इस समय काम्या को चोद रहा था. कमलेश बाथरूम में गया और अपना काम समाप्त करने के बाद उसने अपने कपडे उतार कर खूंटी पर टांग दिए. फिर एक छोटा सा स्नान किया और वैसे ही नंगा कमरे में चला आया. उस आदमी ने कमलेश को देखा और मुस्कुरा दिया. कमलेश ने अपने लंड को काम्या के मुंह से लगाया और काम्या ने निसंकोच उसे एक प्यार भरी दृष्टि से देखते हुए लंड को अपने मुंह में निगल लिया.

“आप कब आये, पापा?” कमलेश ने उस आदमी से पूछा.

“बस ये समझो कि काम्या और मैं एक साथ ही पहुंचे थे घर.” उस आदमी ने अपनी चुदाई के क्रम को बिना तोड़े हुए उत्तर दिया.

“पहले क्यों नहीं बताया. हम तो आज घर जा रहे थे रात को. पता होता तो एक दिन और रुक जाते.” कमलेश अपने लंड को काम्या के मुंह में चलाते हुए बोला।

“ऐसे ही कार्यक्रम बन गया. अब दो सप्ताह कोई काम नहीं है खेतों में. मैंने भाईसाहब से कल बात की तो उन्होंने घर आने के लिए कहा. कुछ समझौते २ सप्ताह बाद ही होने हैं. और भाईसाहब चाहते हैं की सुपरवाइसर पर कुछ जिम्मेदारी छोड़ी जाये हर काम मैं ही न करूँ।”

“आप दोनों मेरी चुदाई कर रहे हो या अपनी मीटिंग? पापा, आपने तो बहुत ही धीमा कर दिया सब कुछ.” काम्या कुछ गुस्से से बोल पड़ी.

“बस एक बात और, मैं गाड़ी और ड्राइवर दोनों लाया हूँ, हम लोग खाने के बाद निकलेंगे, साथ में.”

ये कहकर सब लोग चुदाई में व्यस्त हो गए.

७ बजे वे सब घर बंद करके निकल पड़े. पास ही के एक रेस्त्रां में खाना खाने के बाद वो संभ्रांत नगर के लिए चल पड़े. रात के २ बजे तक पहुँचने का अनुमान था. रास्ता बहुत अच्छा था और १० बजे के लगभग कमलेश और काम्या सो गए. संतोष ड्राइवर के साथ बैठा हुआ बात करता रहा. यात्रा बहुत शांति से निकल गयी और रात के २.३० बजे, वे सब घर पहुँच गए.

वहां पहुंचकर संतोष ने ड्राइवर को एक बोतल शराब की दी और काफी सारा चिकन वगैरह जो उन्होंने बीच में रूककर लिया था. बचे हुए खाने को, जो अभी भी बहुत था, लेकर वे सब घर के अपने हिस्से में चले गए. कमलेश ने सामान निकाला और साथ में अंदर चला गया. कुसुम बहुत देर से प्रतीक्षा कर रही थी. अपने बच्चों को देखकर माँ की आँखों में आंसू आ गए. दोनों बच्चे अपनी माँ के गले से लग गए. और सब अंदर चले गए.

क्रमशः........................
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अध्याय ९: मिश्रण - दिंची क्लब और दो परिवार


दिंची क्लब: पहला साक्षात्कार (Interview) :- पुरुष आवेदक.


एक सुन्दर मध्यम उम्र की सहायिका ने रोमियो के नए आवेदक को कमरे में ले जाकर कपड़े उतार कर गाउन पहनने को कहा. निखिल ने निसंकोच वहीँ अपने कपड़े उतारे और गाउन पहन लिया. सहायिका जिसका नाम सोनम था, ने निखिल के मुरझाये लंड को देखकर अपने सूखे होंठों पर जीभ चलाई. पर वो जानती थी कि आज उसका दिन नहीं है. वो अपनी भावनाएं मन में दबाकर कमरे से चली गई. कुछ ही समय पश्चात् शोनाली ने कमरे में प्रवेश किया. उसने भी वही गाउन पहना हुआ था.

"नमस्ते, मैडम! " निखिल ने उसका अभिवादन किया.

"नमस्ते रोमियो, ये अचरज का विषय है न कि हम यहाँ मिल रहे हैं. पर जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है.”

तभी सोनम ने कमरे में फिर प्रवेश किया. उसके हाथ में एक फीता था.

"हमें पहले औपचारिकता पूरी करनी होगी. सोनम, प्लीज इनके लंड को चूसकर खड़ा करो और उसका नाप लो."

सोनम की आँखों में चमक आ गई. उसने हाथ पकड़कर आवेदक को सोफे पर बैठाया और उसके गाउन को साइड में करते हुए बिना देरी किये हुए उसका लंड अपने मुंह में ले लिया. वो अपने भाग्य को धन्य कर रही थी, क्योंकि अधिकतर उसे मात्र देखने और नापने के लिए ही बुलाया जाता था. पर लगता है, आज शोनाली बहुत अच्छे मूड में है. वो लंड चूसने में पारंगत थी और चाट चाट कर और चूस चूस कर कुछ ही देर में निखिल के लंड को अपने प्रताप में ले आयी.

"शोनाली, ये तैयार है."

"ठीक है नापो."

"हम्म्म, 11.२ इंच लम्बाई।"

"३ इंच गोलाई।"

"शोनाली, ये मापदंड पर खरा है."

"ओके, सोनम. तुम रिकॉर्ड के लिए फोटो लो, और प्रविष्टि कर लो. ये अत्यंत लोकप्रिय होने वाला है."

सोनम अपना कार्य संपन्न करके चली गई. आवेदक खड़ा हो गया पर उसका लंड गाउन के बाहर अभी भी तन्नाया हुआ था. शोनाली ने उसे बाँहों में लेकर एक गहरा चुम्बन लिया.

"मुझे तो पता भी नहीं था कि तुम इतना बड़ा लंड लिया घूमते हो."

"हाँ,, इस विषय में हम दोनों भाई बहुत धनी हैं."

"तो क्या तुम्हारा भाई भी? वो छोटू भी?"

"बिल्कुल "

"हम्म्म्म शायद उसे भी सदस्य बनाया जा सकता है. पर वो बाद में. हम अपना इंटरव्यू शुरू करते हैं."

"पहली बात ये कि ये क्लब हमारी महिला सदस्यों के सुख और आनंद के लिए है. तुम्हारा दायित्व होगा कि जिस सदस्या ने तुम्हें चुना हो, उसे पूर्ण रूप से प्रसन्न करना. कुछ की विशेष रुचियाँ रहती हैं, परन्तु मुझे विश्वास है कि इसमें तुम्हें भी आनंद आएगा। पर पहले उनकी इच्छा पूरी करना तुम्हारा दायित्व है."

"जी"

"और उन सब से पहले तुम्हें मुझे संतुष्ट करना होगा।" शोनाली ने अर्थ भरी मुस्कान से कहा, “क्योंकि मैं इस साक्षात्कार में ये सुनिश्चित करुँगी कि न केवल तुम्हें एक शक्तिशाली लंड प्राप्त है, बल्कि तुम इसके उपयोग में भी पारंगत हो.”

निखिल उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया. फिर उसने शोनाली का एक पांव उठाया और उसकी सैंडल निकाल दी. यही उसने दूसरे पांव के साथ किया. उसने शोनाली को सोफे पर बैठने का इशारा किया. फिर शोनाली के एक पैर को चूमने और चाटने लगा.

"ओह" शोनाली के मुंह से निकला.

"आपकी सेवा में निखिल प्रस्तुत है, देवी."

निखिल कुछ देर यूँ ही दोनों पांवों को चूमता और चाटता रहा. फिर वो खड़ा हो गया और शोनाली का हाथ पकड़कर उसे भी खड़ा कर दिया. उसने शोनाली का गाउन खोला और निकाल दिया. फिर दोबारा शोनाली को सोफे पर बैठा दिया और उसके पाँव फैलाकर अपने हाथ से उसकी चूत को सहलाने लगा. शोनाली एक तन्द्रा में आ गई. उसके बाद निखिल ने अपना मुंह उसकी एकदम चिकनी चूत पर लगाया और उसे चाटने लगा. उसने अपनी एक उंगली उसकी चूत में डालकर उसे हलके हलके से चोदने लगा. साथ ही अपने मुंह से उसे चाटता जा रहा थे. फिर उसने अपने होंठों से भग्नासे को दबाया और मसलने लगा. शोनाली बेकाबू होकर झड़ने लगी. निखिल ने अपनी उंगली निकली और अपनी जीभ अंदर डाल दी और सडप सडप कर पानी पीने लगा.

"ओह माँ. क्या जादू है मेरी जीभ में. कहाँ से ट्यूशन ली है जो इस उम्र में इतना निपुण हो गया."

"कहीं नहीं आंटी , बस समझो होम ट्यूशन है."

"तू सुप्रिया को चोदता है?" शोनाली से आश्चर्य से पूछा.

"और नितिन भी. और हम दोनों नानी को भी चोदते हैं."

"ओह. शीलाजी तो अब ६५ की होगी ही. उसे भी तुमने नहीं बख्शा।"

"हम कौन हैं बख्शने वाले, उल्टा उन्होंने ने हमें प्रशिक्षित किया है."

ये सब बातें करते समय निखिल अपनी २ उंगलियां शोनाली की चूत में चला रहा था.

"और तेरे नाना?

"वो मां और मौसी को चोदते हैं."

"सुरेखा तो ऐसी नहीं लगती."

"अभी पिछले हफ्ते ही उनका उद्घाटन किया है. हम दोनों भाइयों को अभी तक अवसर नहीं मिला है. आंटी, आप मेरा लंड चूसोगी, प्लीज?"

"नेकी और पूछ पूछ. ला इधर ला" शोनाली ने उतावली होकर कहा.

निखिल खड़ा हो गया और अपना गाउन उतार फेंका. शोनाली सोफे पर आगे हुई और थोड़ी देर लंड को सहलाते हुए गपाक से में अपने मुंह में ले ली. पहले तो वो हल्के हलके से चूसी फिर भूखी शेरनी की तरह उसे चूमने और चाटने लगी. थोड़ी ही देर में निखिल का लंड लोहे की रॉड जैसा तन गया.

"चलो बिस्तर पर चलते है,"

दोनों बिस्तर की ओर बढे. वहां शोनाली ने एक तकिया अपनी गांड के नीचे लगाई और एक सिर के नीचे और पैर फैला दिए.

"आ जा मेरे घुड़सवार, चढ़ जा घोड़ी पर और दिखा कितना दम है तुझमें. मुझे ताबड़तोड़ और गहरी चुदाई पसंद है. है तेरे बस की?" शोनाली ने उसे उकसाते हुए कहा.

"मैं अपनी पूरी चेष्टा करूंगा. पर अभी तक किसी ने कमी नहीं निकाली. पर आप मुझे बीच में टोकना नहीं."

"अरे तेरे जैसे लौड़े दिन में तीन बार खाती हूँ. मैं क्यों टोकूंगी तुझे?"

निखिल ने अपना स्थान लिया, शोनाली की चूत पर अपने लंड को लगाकर, उसके दोनों मम्मों को हाथ में ले लिया.

"चलो आंटी, यात्रा पर चलते हैं."

कहते हुए उसने एक लम्बा शॉट मारा. धक्का इतना शक्तिशाली था कि पलंग हिल गया. और पूरा ११ इंच का मूसल एक ही बार में अंदर चला गया. शोनाली की तो आँखें बाहर आ गयीं और साँस रुक गयी. उसे लगा कि किसी ने उसकी चूत को चाकू से चीर दिया हो.

"अबे भोसड़ी के, कोई एक बार में पेलता है ऐसा मूसल."

"पर आंटी आप ही तो बोलीं थीं की आपको ऐसी चुदाई पसंद है और ऐसे लौड़े आप दिन में तीन बार लेती हैं. और मैं आज आपका सेवक हूँ. अपने जैसा चाहा था उसे पूरा किये बिना अब मैं नहीं रुकूंगा."

कहकर निखिल ने अपना पूरा लंड निकला और दोबारा उसी तेजी से पेल दिया. और फिर ये क्रम बिना रुके चलित हो गया. शोनाली संभल ही नहीं पा रही थी. गहरे, लम्बे और तेज धक्कों के आगे वो बेबस थी. पर उसकी चूत इस पर अनुकूल प्रतिक्रिया कर रही थी. उसका पानी छूटने लगा था. इससे हुआ ये कि निखिल के भीषण धक्के थोड़े आसान हो गए झेलने में.

"तू अपनी नानी को भी ऐसे ही चोदता है क्या, इस बेदर्दी से."

"अरे उन्हें तो हम तीनों को एक साथ चोदना पड़ता है. उनकी आयु पर मत जाओ वो आपके जैसी स्त्रियों को पानी पिला दे."

"देखती हूँ."

निखिल के धक्के अब असहज और भयावने हो रहे थे. पर अब शोनाली ने खेल समझ लिया था और पूरा साथ दे रही थी. वो रह रह कर झड़ रही थी और उसका शरीर अब एक गुड़िया की तरह उछल रहा था. कोई १० से १५ मिनट यूँ चोदने के बाद निखिल अपने शीर्ष पर पहुँच गया.

"मैं झड़ने वाला हूँ."

"शुक्र है" शोनाली ने मन में सोचा फिर बोली, "अंदर मत छोड़ना मेरे मुंह में छोड़ना."

"तो फिर उठिये."

निखिल ने अपने लंड को धीरे धीरे बाहर निकाला। जैसे ही उनका टोपा बाहर आया, शोनाली एक बार और झड़ गई. उसने निखिल को सोफे पर बैठाया और उसका लंड चूमने चाटने लगी. फिर मुंह में लेकर ऐसा दबाव बनाया कि निखिल का पानी छूटने लगा. शोनाली ने निसंकोच पूरा रस पी लिया और फिर उठकर सोफे पर बैठकर सुस्ताने लगी.

"तुमने सच में शक्तिशाली चुदाई की है, और मेरी हड्डियाँ हिला दीं. पर आनंद बहुत मिला. कुछ सदस्य तो तुम्हारे लिए पागल ही हो जाएँगी."

"आपने उकसाया न होता तो प्यार से करता."

"नहीं, मुझे क्लब में ऐसे ही चुदना पसंद है. क्या एक ड्रिंक लोगे? फिर इंटरव्यू का दूसरा चरण शुरू करेंगे."

"ठीक है."

शोनाली दोनों के लिए एक मंहगी व्हिस्की का पेग बनाकर आयी.

"हमारे परिवारों को मिलना चाहिए, एक बार." शोनाली मन में कुछ सोचते हुए एक घूँट लेकर बोली.

"नाना से पूछूंगा. मना तो नहीं करेंगे."

कुछ समय यूँ ही बातें करते हुए दोनों ने ड्रिंक ख़त्म की.

"मुझे तो अगले चरण से डर लग रहा है."

"क्यों आंटी?"

"क्लब की अधिकतर महिलाओं को गांड मरवाना अत्यधिक पसंद है. कुछ हैं जो केवल गांड ही मरवाती हैं, जो कुछ रोमियो को नहीं भाता। इसीलिए हमने ये टेस्ट रखा है. क्या तुम्हें गांड मारना पसंद है?"

"अत्यंत. नानी और मम्मी तो गांड मरवाने की रसिया हैं. जब तक दिन में एक बार उनकी गांड की खुजली नहीं मिटाई जाये वो बेचैन रहती हैं. आप चाहें तो उन सारी सदस्यों को जो सिर्फ गांड मरवाना पसंद करती है, मुझे दे सकती है."

"पर सुनो, ऐसी दरिंदगी से मत मारना कि चल न सकूं."

"आप बेफिक्र रहिये. इतने प्यार से मारूंगा कि आप मुझे मान जाएँगी."

"ठीक है. पर ठहरो, मुझे गांड मरवाते समय लंड चूसने अच्छा लगता है. मैं किसी को बुलाती हूँ. तुम्हे आपत्ति तो नहीं है."

"मुझे कोई आपत्ति नहीं है."

शोनाली ने सोनम को फोन लगाकर सचिन को भेजने के लिया कहा.

"दूसरे चरण के लिए लड़का फिट है?" सोनम ने पूछा. उसे शोनाली का स्वाद पता था.

"बिलकुल".

“चलो अब तुम मेरी गांड तैयार करो और सचिन की चिंता मत करना.”

"नो प्रॉब्लम, आंटी जी. बिस्तर पर चलें?"

"नहीं, यहीं कालीन पर. मुझे दो तकिये दो अपने घुटने के नीचे रखने के लिए. और टेबल पर पड़े जैल को भी ले लो."

निखिल बिस्तर पर से दो तकिये उठा लाया और जैल भी ले आया. शोनाली ने तकिये अपने घुटनों और हाथ के नीचे रखे और गांड को आसमान की ओर उठा दिया. निखिल उसके पीछे झुका और उसकी गांड पर अपना मुंह रखकर चाटने लगा. फिर दोनों हाथों से उसने उस रहस्यमई द्वार के पट खोले और अपनी जीभ से कुरेदने लगा. तभी शोनाली को कुछ याद आया. उसने निखिल से कहा कि ड्रावर के अंदर एक बट प्लग रखा है, उसे निकाल ले.

"जब मेरी गांड में अपना माल छोड़ोगे तो इसे लगा देना जिससे तुम्हारा माल अंदर ही रहे."

"ऐसा क्यों?"

"क्योंकि तुम्हारी सुमति आंटी को गांड से निकला हुआ वीर्य बहुत स्वादिष्ट लगता है. तो ये उनके लिए प्रसाद होगा. हर नए रोमियो के पानी को गांड में लेकर जाती हूँ. उन्हें कुछ समय तक गांड में रुका हुआ वीर्य तो और भी अधिक प्रिय है."

निखिल अचंभित हो गया, पर जाकर बट प्लग ले आया.

"ओके, अब शुरू हो जाये जहाँ पर छोड़े थे."

निखिल ने फिर अपना कार्यक्रम पुनरारंभ कर दिया. अपनी जीभ से शोनाली के गांड खोदने लगा और उसके आसपास के भूरे सिकुड़ी रेखाओं से बने हुए गांड के छेद को चाटने लगा. जब उसे लगा कि गांड अब लौड़ा खाने के लिए उपयुक्त है, तब उसने ट्यूब को शोनाली की गांड में डाला और ढेर सारा जैल उसमे भर दिया. फिर दो उँगलियों से उसे अच्छे से गांड के अंदर फैलाया और उसकी गांड को चौडाने लगा. तभी दरवाज़ा खुला और एक लड़का गाउन पहने हुए अंदर आया.

"हेलो शोनाली मैम! सोनम ने कहा आप गांड मरवाने वाली हो तो चूसने के लिए भी लंड चाहिए."

"आ जा सचिन. इससे मिल, ये निखिल है. और अब ये मेरी गांड मारने जा रहा है. तो तू सामने आ जा और दे दे अपना लंड मेरे मुंह में."

"हाय निखिल, आई ऍम सचिन." अपना गाउन उतारते हुए सचिन ने अपना परिचय दिया.

"हेलो सचिन." हाथ मिलते हुए निखिल ने उसे स्वीकार किया.

निखिल ने जब देखा की गांड मस्त तैयार है, तब उसने अपने लंड पर भी जैल लगाया और अच्छे से चिपड़कर चिकना कर दिया. उधर सचिन ने अपना लंड शोनाली के सामने प्रस्तुत किया जिसे शोनाली सहर्ष मुंह में लेकर पूरी तन्मयता से चूसने और चाटने लगी. निखिल ने अपने लंड को शोनाली लुपलुपाते हुए गांड के छेद पर रखा और हल्का सा दबाव बनाया. थोड़ा ठहर कर सुपाड़ा गप्प से अंदर चला गया. निखिल ने अत्यधिक संयम दिखते हुए अपने लंड को धीरे धीरे अंदर पेलना शुरू किया और लगभग ४-५ मिनट में जड़ तक समा दिया.



"ओह, वाह. क्या लंड है तेरा. बिलकुल गांड भर दी तूने अच्छे से. अब धीरे से पेलना, थोड़ा चलने के बाद तेज चुदाई करना." ये निर्देश देकर शोनाली वापिस सचिन के लंड पर पिल गई.

निखिल ने वैसा ही किया, हल्के धक्कों से प्रारम्भ करके धीरे धीरे गति बढ़ाने लगा. कुछ ही समय में वो अपना पूरा लंड तेजी के साथ शोनाली की गांड में पेल रहा था. तभी दरवाज़ा खुला और पार्थ अंदर आया, उसे शीघ्र ही कहीं जाना था तो वो थोड़ी ही बात करके निकल गया. निखिल ने अपना कार्यक्रम चलने दिया और लम्बे ताकतवर धक्कों से उसने शोनाली की गांड का कीमा बना दिया. शोनाली अब हर क्षण झड़ रही थी. सचिन ने बताया कि वो भी निकट है, पर शोनाली रुकी नहीं बल्कि और गहराई से चूसने लगी. तभी निखिल ने भी घोषणा की कि उसका भी निकलने वाला है.

"अंदर ही डालना और फिर बट प्लग से बंद कर देना गांड को मेरी." शोनाली ने उसे चेताया.

निखिल ने बगल से प्लग उठा लिया और एक हुंकार के साथ शोनाली की गांड में अपना पानी छोड़ दिया. लंड सिकुड़ने के बाद उसने बाहर निकला और प्लग से शोनाली की गांड का द्वार सील कर दिया. शोनाली ने अपनी गांड मटका कर और थोड़े अंदरूनी खिचांव से प्लग को ठीक से अंदर किया। उधर सचिन ने भी अपना माल शोनाली के मुंह में छोड़ा जिसे शोनाली ने एक अच्छी चुड़क्कड़ रंडी की तरह कुछ पिया और कुछ अपने चेहरे और वक्ष पर मल लिया.

सचिन ने शोनाली की ओर देखा, “लगता है निखिल ने भरपूर मॉल छोड़ा है आपकी सिस-इन-लॉ के लिए.”

“ओह, यस! शी विल बी वेरी हैप्पी!” शोनाली ने कहा.

फिर वो उठी और किसी पेशेवर विश्लेषक की तरह निखिल का फॉर्म लिया और उस पर उत्तीर्ण और आवेदन स्वीकृत लिखकर हस्ताक्षर कर दिए.

"निखिल, वेलकम टू दिंची क्लब." शोनाली ने उससे हाथ मिलाकर कहा.

सचिन ने भी हाथ बढ़ाया, "वेलकम ब्रो, तुम्हें यहाँ बहुत आनंद आएगा."

"धन्यवाद आप दोनों का. मुझे भी यही आशा है."

कहते हुए सब अपने कपडे पहनने के लिए निकल गए.
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